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सतारा

सूची सतारा

सातारा भारत के महाराष्ट्र प्रान्त का एक शहर है। सतारा, बम्बई प्रेसीडेन्सी (वर्तमान महाराष्ट्र) का एक नगर, पहले यह राज्य (रियासत) भी था। सतारा शाहूजी के वंशजों की राजधानी रहा। यद्यपि मराठा राज्य की सत्ता पेशवाओं के हाथों में जाने के फलस्वरूप यह उनके अधीन था। .

57 संबंधों: चौदहवीं लोकसभा, दबंग 2, देश, महाराष्ट्र, नरसिंह चिंतामन केलकर, नाना फडनवीस, पद्माकर, पुणे, प्रतापसिंह छत्रपति, प्रतापगढ़ दुर्ग, प्रार्थना समाज, पृथ्वीराज चह्वाण, पेशवा, फलटण, बाबासाहेब भोसले, बाजीराव मस्तानी (फ़िल्म), ब्रिटिश भारत में रियासतें, भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार, भारत के प्रमुख अस्पताल, भारत छोड़ो आन्दोलन, मराठा राजवंश एवं राज्यो की सूची, माधवराव पेशवा, यमुनाबाई सावरकर, यशवंतराव चव्हाण, रमाबाई रानडे, राम शास्त्री, रामायणकालीन छत्तीसगढ़, रघुनाथराव, ललिता बबर, शाहु, शिवाजी, शंकर केशव कानेटकर, सतारा जिला, सिल्हारा राजवंश, सिंधिया, संभाजी भिडे, सुरेखा यादव, स्मिता तांबे, जय सिंह द्वितीय, ज्योतिराव गोविंदराव फुले, जैन धर्म, वासुदेव महादेव अभ्यंकर, वासुदेव वामन शास्त्री खरे, विद्यार्थी दिवस (महाराष्ट्र), व्यपगत का सिद्धान्त, वेद, गोपाल बालकृष्ण कोल्हटकर, गोपाल गणेश आगरकर, गोआ एक्स्प्रेस २७७९, कराड, काशिनाथ वासुदेव अभ्यंकर, ..., काका कालेलकर, कंपनी राज, कुम्हार, अजिंक्यतारा, अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, उमाबाई दाभाड़े, १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सूचकांक विस्तार (7 अधिक) »

चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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दबंग 2

दबंग 2 अरबाज खान प्रोडक्शंस के बैनर के तहत अरबाज खान द्वारा निर्देशित और निर्मित २०१२ की एक भारतीय एक्शन कॉमेडी फिल्म है। यह २०१० की फिल्म दबंग की अगली कड़ी है और दबंग फिल्म श्रृंखला की दूसरी फिल्म है। फिल्म की कहानी दिलीप शुक्ला ने लिखी है तथा सलमान खान, सोनाक्षी सिन्हा और प्रकाश राज इस फिल्म में प्रमुख भूमिकाओं में हैं। फिल्म की कहानी तबादले के बाद कानपुर पहुंचे इंस्पेक्टर चुलबुल पांडे (सलमान खान) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका सामना वहां राजनेता बच्चा सिंह (प्रकाश राज) से होता है। २०१० में दबंग फिल्म रिलीज़ होने के बाद इस फिल्म का विकास शुरू हुआ। अभिनव कश्यप के बाहर हो जाने के बाद निर्माता अरबाज खान ने फिल्म का निर्देशन अपने हाथों में ले लिया। सलमान, सोनाक्षी, अरबाज तथा विनोद खन्ना ने क्रमशः चुलबुल पांडे, रज्जो, मक्खी तथा प्रजापति पांडे के फिल्म दबंग के पात्र निभाए। फिल्म की शूटिंग ९ मार्च २०१२ को मुंबई के कमालिस्तान स्टूडियो में शुरू हुई, हालांकि बाकी की शूटिंग फिल्म सिटी में की गयी। ८ नवंबर २०१२ को फिल्म के पहले पोस्टर का अनावरण किया गया, और १० नवंबर २०१२ को खान के रियलिटी शो बिग बॉस ६ पर फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ हुआ था। फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर २१ दिसंबर २०१२ को रिलीज किया गया था। इस फिल्म ने भारत में तीन दिन में लगभग ५८ करोड़ रुपये की कमाई कर एक था टाइगर का रिकॉर्ड तोड़ दिया। एक था टायगर के बाद यह २०१२ की दूसरी सबसे बड़ी कमाई वाली हिंदी फिल्म है। .

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देश, महाराष्ट्र

देश भारत के महाराष्ट्र प्रदेश का एक क्षेत्र हैं। यह महाराष्ट्र-देश इस शब्द का संचिप्त रूप हैं.इतिहास में यह क्षेत्र पश्चिमी मध्य दक्कन जिसे आज कल पुणे विभाग भी कहा जाता हैं और मराठवाड़ा को मिला कर कहा जाता था। मराठवाड़ा जिसे की बाद में हैदराबाद के निजाम ने जीत लिया आज एक अलग क्षेत्र माना जाता है .

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नरसिंह चिंतामन केलकर

नरसिंहन चिंतामन केलकर या तात्यासाहेब केलकर (२४ अगस्त, १८७२- १४ अक्तूबर, १९४७) एक उल्लेखानीय साहित्यकार थे जिन्हें 'साहित्य-सम्राट' की उपाधि से अलंकृत किया गया था। ये केसरी-महारत्त समाचार-पत्र के ४१ वर्षों तक संपादक रहे थे। इसके साथ ही ये केसरी न्यास के न्यासी (ट्रस्टी) भी थे। इन्होंने कला स्नातक व विधि स्नातक किया था। बाद में इन्होंने सतारा में वकालत की। इनको लोकमान्य तिल्क द्वारा १८६९ में मुंबई बुलाया गया था। १९१६ में इन्होंने तिलक क साठवें जन्मदिवस के आयोजन के लिए सक्रिय भाग लिया, व एक लाख रुपए का चंदा जमा किया। १९२० में तिलक की मृत्यु उपरांत कांग्रेस में तिलक समर्थकों के अग्रणी रहे। ये १९२४-१९२९ तक वाइसरॉय परिषद के सदस्य भी रहे थे। ये अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए (१९२८-जबलपुर सत्र एवं १९३२-दिल्ली सत्र)। .

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नाना फडनवीस

नाना फडनवीस (1741-1800) 'बालाजी जनार्दन भानु' उर्फ 'नाना फडनवीस' का जन्म सतारा में हुआ था। यह चतुर राजनीतिज्ञ तथा देशभक्त था और इसमें व्यावहारिक ज्ञान तथा वास्तविकता की चेतना जागृत थी। इसमें तीन गुण थे - स्वामिभक्ति, स्वाभिमान, तथा स्वदेशाभिमान। इसके जीवन की यही कसौटी है। इसके सामने तीन समस्यएँ थीं; पेशवा पद को स्थिर रखना, मराठा संघ को बनाए रखना, तथा विदेशियों से मराठा राज्य की रक्षा करना। कुशल राजनीतिज्ञ नाना फडनवीस पर मराठा-संघ की नीति के संचालन का भार 1774 से आया। मराठा संघ के घटक सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ तथा भोसले भी थे। इनमें परस्पर द्वेष और कटुता थी और पक्ष और उपपक्ष थे जिनकी प्रेरणा से अनेक षड्यंत्र, विप्लव, विश्वासघात आदि घृणित कार्य करवाए जा रहे थे। अत: नाना फडनवीस को बड़ी दूरदर्शिता एवं कूटनीतिज्ञता से संघ का कार्य चलाना पड़ा और राज्य के अंदर सुव्यवस्था लाने का भार भी उसपर आ पड़ा। सभी सरदार पेशवा को अपना नेता मानते थे। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) के बाद पेशवा का नियंत्रण अत्यंत शिथिल होने लगा था। साथ ही पेशवा के उत्तराधिकार के संबंध में मतभेद और आपसी षड्यंत्र भी चल रहे थे। अत: नाना को दो समस्याओं का हल एक साथ ही करना था। अत: अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए नाना ने पेशवा की, तथा मराठाराज्य की रक्षा की, तथा मराठा संघ को विछिन्न होने से बचाया। अंग्रेज अपने साम्राज्य को बढ़ाना चाहते थे परंतु नाना ने वर्षानुवर्ष युद्ध करके मराठों के शत्रु अंग्रेजों से पेशवा का साष्टी के अतिरिक्त पूराराज्य जीत लिया। इस प्रकार नाना ने अंग्रेजों की बढ़ती हुई शक्ति को रोका और संघ को विच्छिन्न होने से बचाया। परन्तु नाना की मृत्यु के बाद ही मराठा संघ का अंत हुआ। लार्ड वेलजली के नाना के संबंध के शब्द स्मरणीय हैं। नाना फडनवीस केवल एक योग्य मंत्री ही नहीं था, किंतु वह ईमानदार तथा उच्च आदर्शों से प्रेरित था। उसने अपना पूरा जीवन राज्य के कल्याण के लिए तथा अपने अधिकारियों की कल्याणकामना के लिए उत्सर्ग किया। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:मराठा.

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पद्माकर

रीति काल के ब्रजभाषा कवियों में पद्माकर (1753-1833) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में अंतिम चरण के सुप्रसिद्ध और विशेष सम्मानित कवि थे। मूलतः हिन्दीभाषी न होते हुए भी पद्माकर जैसे आन्ध्र के अनगिनत तैलंग-ब्राह्मणों ने हिन्दी और संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि में जितना योगदान दिया है वैसा अकादमिक उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। .

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पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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प्रतापसिंह छत्रपति

प्रतापसिंह छत्रपति (१७९३- १८४७) शाहू द्वितीय के पुत्र थे। प्रतापसिंह पिता के मृत्यु के बाद सतारा के सिंहासन पर बैठा (१८०८)। वह सच्चरित्र, उदार, बुद्धिमान्, विद्याप्रेमी तथा धार्मिक वृत्ति का व्यक्ति था। सतारा की सत्ता तो पहिले ही शून्यप्राय हो चुकी थी। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने प्रतापसिंह को बसौटा के एकाकी किले में रख, उसे और भी अपंग बना दिया था। आंग्ल मराठा युद्ध में अष्टा में बाजीराव की पराजय के बाद वह अँगरेजों के अधिकार में आ गया। अँगरेजों ने उसे छोटा सा राज्य दे पुन: सतारा में सिंहासनासीन किया (१० अप्रैल १८१८)। प्राय: तीन साल वह ग्रांट (ग्रांट डफ, प्रसिद्ध इतिहासकार) के अभिभावकत्व में रहा। १८२२ में उसे पूर्ण शासनाधिकार सौंपे गए। १८३९ में, राज्यद्रोह के अभियोग पर पदच्युत कर, उसे बनारस निष्कासित कर दिया गया, जहाँ १८४७ में दयनीय परिस्थिति में उसकी मृत्यु हो गई। .

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प्रतापगढ़ दुर्ग

प्रतापगढ़ दुर्ग (या किला) महाराष्ट्र के सतारा जिले में सतारा शहर से २० कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है। यह मराठा शासक शिवाजी के अधिकार में था। उन्होंने इस किले को नीरा और कोयना नदियों की ओर से सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से बनवाया था। १६५६ में किले का निर्माण पूर्ण हुआ था। उसी वर्ष १० नवम्बर को इसी किले से शिवाजी और अफज़ल खान के बीच युद्ध हुआ था और इस युद्ध में शिवाजी को विजय प्राप्त हुई थी। इस जीत से मराठा साम्राज्य की हिम्मत को और बढ़ावा मिला था। दुर्ग समुद्री तल से १००० मीटर ऊंचाई पर स्थित है। किले में मां भवानी और शिव जी का मंदिर हैं। .

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प्रार्थना समाज

प्रार्थना समाज भारतीय नवजागरण के दौर में धार्मिक औ्र सामाजिक सुधारों के लिए स्थापित समुदाय है। को इसकी स्थापना आत्माराम पांडुरंग ने बंबई में 31 मार्च 1867 में की। .

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पृथ्वीराज चह्वाण

पृथ्वीराज चह्वाण (पृथ्वीराज चव्हाण) को भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडल में विज्ञान एवं तकनीकी, भू विज्ञान, प्रधानमंत्री कार्यालय, जनशिकायत, पेंशन एवं संसदीय कार्य में मंत्री बनाया गया है। .

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पेशवा

दरबारियों के साथ पेशवा मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवे) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है। पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरंभ में, संभवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। छत्रपति राजाराम के समय में पंत-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरंपरागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किंतु, यह परिवर्तन छत्रपति शाहू के सहयोग और सहमति द्वारा ही संपन्न हुआ, उसकी असमर्थता के कारण नहीं। यद्यपि बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के सीमाविस्तार के साथ साथ अपनी सत्ता को भी सर्वोपरि बना दिया, तथापि वैधानिक रूप से पेशवा की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन शाहू की मृत्यु के बाद, बाजीराव के पुत्र बालाजी के समय में हुआ। अल्पवयस्क छत्रपति रामराजा की अयोग्यता के कारण समस्त राजकीय शक्ति संगोला के समझौते (२५ सितंबर १७५०) के अनुसार, पेशवा को हस्तांतरित हो गई, तथा शासकीय केंद्र सातारा की अपेक्षा पुणे निर्धारित किया गया। किंतु पेशवा माधवराव के मृत्युपरांत जैसा सातारा राजवंश के साथ हुआ, वैसा ही पेशवा वंश के साथ हुआ। माधवराव के उत्तराधिकारियों की नितांत अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता उनके अभिभावक नाना फडनवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। किंतु आँग्ल शक्ति के उत्कर्ष के कारण इस स्थिति में भी शीघ्र ही महान परिवर्तन हुआ। अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय को वसई की संधि के अनुसार (३१ दिसम्बर १८०२) अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा; १३ जून १८१७, की संधि के अनुसार मराठा संघ पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा; तथा अंत में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति पर, मराठा साम्राज्य के विसर्जन के बाद, पदच्युत होकर अंग्रेजों की पेंशन ग्रहण करने के लिये विवश होना पड़ा।; पेशवाओं का शासनकाल-.

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फलटण

फलटण महाराष्ट्र के सतारा जिले का एक नगर एवं तालुका है। यह सतारा से ५९ किमी उत्तर-पूर्व में तथा पुणे से ११० किमी दूरी पर स्थित है। श्रेणी:महाराष्ट्र का भूगोल.

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बाबासाहेब भोसले

बाबासाहेब भोसले (१५ जनवरी १९२१ - ६ अक्टूबर २००७) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने २१ जनवरी १९८२ से १ फरवरी १९८३ तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे। .

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बाजीराव मस्तानी (फ़िल्म)

'बाजीराव मस्तानी' एक भारतीय ऐतिहासिक (मराठा युग) रोमांस फ़िल्म है जिसका निर्देशन और निर्माण संजय लीला भंसाली ने किया है। फ़िल्म मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव और उसकी दूसरी पत्नी मस्तानी के बारे में बताती है। रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण ने ये दोनों मुख्य किरदार निभाए हैं, प्रियंका चोपड़ा ने बाजीराव की पहली पत्नी का व तन्वी आज़मी ने बाजीराव की माँ का किरदार निभाया है। बाजीराव मस्तानी १८ दिसम्बर २०१५ को रिलीज़ हुई है। .

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ब्रिटिश भारत में रियासतें

15 अगस्त 1947 से पूर्व संयुक्त भारत का मानचित्र जिसमें देशी रियासतों के तत्कालीन नाम साफ दिख रहे हैं। ब्रिटिश भारत में रियासतें (अंग्रेजी:Princely states; उच्चारण:"प्रिंस्ली स्टेट्स्") ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में नाममात्र के स्वायत्त राज्य थे। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में "रियासत", "रजवाड़े" या व्यापक अर्थ में देशी रियासत कहते थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे। परन्तु उन भारतीय शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था। सन् 1947 में जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ तब यहाँ 565 रियासतें थीं। इनमें से अधिकांश रियासतों ने ब्रिटिश सरकार से लोकसेवा प्रदान करने एवं कर (टैक्स) वसूलने का 'ठेका' ले लिया था। कुल 565 में से केवल 21 रियासतों में ही सरकार थी और मैसूर, हैदराबाद तथा कश्मीर नाम की सिर्फ़ 3 रियासतें ही क्षेत्रफल में बड़ी थीं। 15 अगस्त,1947 को ब्रितानियों से मुक्ति मिलने पर इन सभी रियासतों को विभाजित हिन्दुस्तान (भारत अधिराज्य) और विभाजन के बाद बने मुल्क पाकिस्तान में मिला लिया गया। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सार्वभौम सत्ता का अन्त हो जाने पर केन्द्रीय गृह मन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नीति कौशल के कारण हैदराबाद, कश्मीर तथा जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी रियासतें शान्तिपूर्वक भारतीय संघ में मिल गयीं। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में सैनिक कार्रवाई द्वारा हैदराबाद को भी भारत में मिला लिया गया। इस प्रकार हिन्दुस्तान से देशी रियासतों का अन्त हुआ। .

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भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी.

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भारत के प्रमुख अस्पताल

भारत के प्रत्येक मुख्य नगर में सरकार तथा दानी सज्जनों द्वारा स्थापित अनेक अस्पताल हैं। नीचे केवल कुछ प्रमुख तथा विशिष्ट रोगों से पीड़ितों के लिए अस्पतालों के नाम दिए जाते हैं:-- अमृतसर (पंजाब) - पंजाव मेंटल हास्पिटल (केवल मानसिक रोगों की चिकित्सा के लिए); पंजाब डेंटल हास्पिटल (केवल दंतरोग का चिकित्सा स्थान)। इंदौर (मध्यप्रदेश): इन्फ़ेक्शस डिज़ीज़ेज़ हास्पिटल (संक्रामक रोगों की चिकित्सा के लिए); कल्याणमल नर्सिग होम (रोगियों की देखभाल और उपचार के लिए विशिष्ट संस्था); लेपर असाइलम (कुष्ठरोगियों के लिए); मेंटल हास्पिटल (मानसिक रोगों का चिकित्सालय); टी.बी.

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भारत छोड़ो आन्दोलन

बंगलुरू के बसवानगुडी में दीनबन्धु सी एफ् अन्ड्रूज का भाषण भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ८ अगस्त १९४२ को आरम्भ किया गया था|यह एक आन्दोलन था जिसका लक्ष्य भारत से ब्रितानी साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन में शुरू किया गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विश्वविख्यात काकोरी काण्ड के ठीक सत्रह साल बाद ९ अगस्त सन १९४२ को गांधीजी के आह्वान पर समूचे देश में एक साथ आरम्भ हुआ। यह भारत को तुरन्त आजाद करने के लिये अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एक सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फ़ैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बम्बई में अखिल भारतीय काँगेस कमेटी के बम्बई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नाम दिया गया था। हालांकि गाँधी जी को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फ़ोड़ की कार्रवाइयों के जरिए आंदोलन चलाते रहे। कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी सदस्य भूमिगत प्रतिरोधि गतिविधियों में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार, प्रतिसरकार की स्थापना कर दी गई थी। अंग्रेजों ने आंदोलन के प्रति काफ़ी सख्त रवैया अपनाया फ़िर भी इस विद्रोह को दबाने में सरकार को साल भर से ज्यादा समय लग गया। .

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मराठा राजवंश एवं राज्यो की सूची

मराठा साम्राज्य का ध्वज मराठा राजवंश एवं राज्यो की सूची .

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माधवराव पेशवा

पेशवा माधवराव प्रथम (शासनकाल- 1761-1772 ई०) मराठा साम्राज्य के चौथे पूर्णाधिकार प्राप्त पेशवा थे। वे मराठा साम्राज्य के महानतम पेशवा के रूप में मान्य हैं जिनके अल्पवयस्क होने के बावजूद अद्भुत दूरदर्शिता एवं संगठन-क्षमता के कारण पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की खोयी शक्ति एवं प्रतिष्ठा की पुनर्प्राप्ति संभव हो पायी। 11 वर्षों की अपनी अल्पकालीन शासनावधि में भी आरंभिक 2 वर्ष गृहकलह में तथा अंतिम वर्ष क्षय रोग की पीड़ा में गुजर जाने के बावजूद उन्होंने न केवल उत्तम शासन-प्रबंध स्थापित किया, बल्कि अपनी दूरदर्शिता से योग्य सरदारों को एकजुट कर तथा नाना फडणवीस एवं महादजी शिंदे दोनों का सहयोग लेकर मराठा साम्राज्य को भी सर्वोच्च विस्तार तक पहुँचा दिया। .

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यमुनाबाई सावरकर

यमुनाबाई सावरकर या माई सावरकर (०४ दिसम्बर, १८८८- ०८ नवंबर १९६३) प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की पत्नी थीं। इनका जन्म ४ दिसम्बर, १८८८ (तदनुसार मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, विक्रम संवत १९४५) को हुआ था। इनके पिता भाउराव (या रामचंद्र त्रयंबक) चिपलूनकर ठाणे के निकट जवाहर कस्बे के दीवान थे। सावरकर के साथ इनका विवाह फरवरी, (तदनुसार माघ, वि॰सं॰१९५७) को हुआ था। इन्हें माई सावरकर नाम से अधिक प्रसिद्धि मिली। इनके पिता ने ही सावरकर की उच्च शिक्षा व लंदन जाने का बोझ वहन किया। आयु पर्यन्त ये सावरकर का समर्तन व सहयोग शांतिपूर्वक करते रहे। माई ने रत्नागिरी में सावरकर के समाज सुधार कार्यक्रम के भाग के रूप में हल्दी-कुमकुम कार्यक्रम आयोजित किए थे। इनके चार संताने हुईं। सबसे बडए प्रभाकर की मृत्यु बहुत पहले ही हो गई, जब सावरकर लंदन में थे। जनवरी १९२५ में सतारा में इनके एक पुत्री-प्रभात हुई। इनकी दूसरी पुत्री शालिनी एक रुग्ण बालिका थी, जिसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। मार्च, १९२८ को इनके एक पुत्र हुआ- विश्वास। माई की मृत्यु ८ नवंबर, १९६३ (तदनुसार कार्तिक वद्य, अष्टमी, वि॰सं॰ २०२०) को मुंबई में हुई। .

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यशवंतराव चव्हाण

यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण (12 मार्च 1913 - 25 नवम्बर 1984) मुंबई राज्य के विभाजन के बाद महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री और भारत के पांचवें उप प्रधान मंत्री थे। वे एक मजबूत कांग्रेस नेता, स्वतंत्रता सेनानी, सहकारी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक थे। उन्हें आम लोगों के नेता के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अपने भाषणों और लेखों में दृढ़ता से समाजवादी लोकतंत्र की वकालत की और महाराष्ट्र में किसानों की बेहतरी के लिए सहकारी समितियों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। .

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रमाबाई रानडे

रमाबाई रानडे (25 जनवरी 1863 – 1924) एक भारतीय समाजसेवी और 19वीं शताब्दी में पहली महिला अधिकार कार्यकर्ताओं में से एक थी। वह 1863 में कुरलेकर परिवार में पैदा हुई थी। 11 वर्ष की आयु में, उन्होंने जस्टिस महादेव गोविंद रानडे से विवाह किया, जो एक प्रतिष्ठित भारतीय विद्वान और सामाजिक सुधारक थे। सामाजिक असमानता के उस युग में, महिलाओं को स्कूल जाने और साक्षर बनने की इजाजत नहीं थी, रमाबाई, उनकी शादी के कुछ ही समय बाद, महादेव गोविंद रानडे के मजबूत समर्थन और प्रोत्साहन के साथ पढ़ने और लिखना सीखने लगी। अपनी मूल भाषा मराठी के साथ शुरू करके, रमाबाई ने अंग्रेजी और बंगाली की मास्टरी करने के लिए कड़ी मेहनत की। अपने पति से प्रेरित होकर, रमाबाई ने महिलाओं में सार्वजनिक बोलने को विकसित करने के लिए मुंबई में 'हिंदू लेडीज सोशल क्लब' की शुरुआत की। रमाबाई पुणे में 'सेवा सदन सोसाइटी' की संस्थापक और अध्यक्ष थी। रमाबाई ने अपने जीवन को महिलाओं के जीवन में सुधार के लिए समर्पित किया। रमाबाई रानडे ने अपने पति और अन्य सहयोगियों के साथ 1886 में पुणे में लड़कियों का पहला उच्च विद्यालय, प्रसिद्ध हुजूरपागा स्थापित किया। .

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राम शास्त्री

राम शास्त्री प्रभूणे राम शास्त्री प्रभूणे १८वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मराठा साम्राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश थे। वे उस समय के पेशवा के विरुद्ध निर्णय देने के लिये प्रसिद्ध हैं जिस पर हत्या के लिये उकसाने का आरोप था। सार्वजनिक जीवन में उनकी शुचिता सदा के लिये एक आदर्श बन गयी है। महाराष्ट्र में राम शास्त्री प्रभूणे की न्याय-प्रियता की गाथा आज तक सुनाई जाती है। राम शास्त्री प्रभूणे का जन्म सतारा के माहुली ग्राम में एक गरीब ब्राह्मण के घर सन् 1724 में हुआ था। 12 वर्ष (1739 से 1751) तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे पुणे लौटे तो उनकी योग्यता व विद्वता के कारण उन्हें पेशवा के अदालती कार्यों का प्रधान न्यायपति नियुक्त किया गया। .

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रामायणकालीन छत्तीसगढ़

अंगकोर (कंबोडिया) में रामायण की वानरसेना का एक दृश्यऐसे अनेक तथ्य हैं जो इंगित करते हैं कि ऐतिहासिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ प्रदेश की प्राचीनता रामायण युग को स्पर्श करती है। उस काल में दण्डकारण्य नाम से प्रसिद्ध यह वनाच्छादित प्रान्त आर्य-संस्कृति का प्रचार केन्द्र था। यहाँ के एकान्त वनों में ऋषि-मुनि आश्रम बना कर रहते और तपस्या करते थे। इनमें वाल्मीकि, अत्रि, अगस्त्य, सुतीक्ष्ण प्रमुख थे इसीलिये दण्डकारण्य में प्रवेश करते ही राम इन सबके आश्रमों में गये। राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश काव्य में उल्लेख है कि राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। यदि शरावती और श्रावस्ती को एक मान लिया जाये तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश दक्षिण कोशल के शासक बने। सम्भवतः उनकी राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी, शायद कोसला ग्राम ही उस काल की कुशावती थी। यदि कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि मान लिया जावे तो भी किसी प्रकार की विसंगति प्रतीत नहीं होती। रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिये विन्ध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोशल में ही था। उपरोक्त सभी उद्धरणों से स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ आदिकाल से ही ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों का पावन तपोस्थल रहा है। प्रतीत होता है कि छोटा नागपुर से लेकर बस्तर तथा कटक से ले कर सतारा तक के बिखरे हुये राजवंशों को संगठित कर राम ने वानर सेना बनाई हो। आर.पी.

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रघुनाथराव

श्रीमन्त रघुनाथराव बल्लाल पेशवा (उपाख्य, राघो बल्लाल या राघो भरारी) (18 अगस्त1734 – 11 दिसम्बर 1783), सन १७७३ से १७७४ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे। .

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ललिता बबर

ललिता बबर (अंग्रेजी:Lalita Babar) (जन्म ०२ जून १९८९,सातारा,महाराष्ट्र) एक भारतीय लम्बी दौड़ करने वाली महिला खिलाड़ी है। इनका जन्म महाराष्ट्र के सातारा ज़िले के एक छोटे से गाँव में १९८९ में हुआ था। यह वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय रिकॉर्ड में शामिल है। .

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शाहु

छत्रपति शाहु (१६८२-१७४९) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के पौत्र और सम्भाजी का बेटे थे। ये ये छत्रपति शाहु महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंतराव था। जब शाहूजी महाराज बालावस्था में थे तभी उनकी माता राधाबाई का निधन तब हो गया । उनके पिता का नाम श्रीमान जयसिंह राव अप्पा साहिब घटगे था। कोलहापुर के राजा शिवजी चतुर्थ की हत्या के पश्चात उनकी विधवा आनन्दीबाई ने उन्हें गोद ले लिया। शाहूजी महाराज को अल्पायु में ही कोल्हापुर की राजगद्दी का उतरदायित्व वहन करना पड़ा। वर्ण-विधान के अनुसार शहूजी शूद्र थे। वे बचपन से ही शिक्षा व कौशल में निपुर्ण थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् उन्होने भारत भ्रमण किया। यद्यपि वे कोल्हापुर के महाराज थे परन्तु इसके बावजूद उन्हें भी भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद के विष को पीना पड़ा। नासिक, काशी व प्रयाग सभी स्थानों पर उन्हें रूढ़ीवादी ढोंगी ब्राम्हणो का सामना करना करना पड़ा। वे शाहूजी महाराज को कर्मकांड के लिए विवश करना चाहते थे परंतु शाहूजी ने इंकार कर दिया। समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा जाति के आधार पर किया जा रहा अत्याचार को देख शाहूजी महाराज ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि दलित उद्धार योजनाए बनाकर उन्हें अमल में भी लाए। लन्दन में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह के पश्चात् शाहूजी जब भारत वापस लौटे तब भी ब्राह्मणो ने धर्म के आधार पर विभिन्न आरोप उन पर लगाए और यह प्रचारित किया गया की समुद्र पार किया है और वे अपवित्र हो गए है। शाहूजी महाराज की ये सोच थी की शासन स्वयं शक्तिशाली बन जाएगा यदि समाज के सभी वर्ग के लोगों की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सन 1902 में शाहूजी ने अतिशूद्र व पिछड़े वर्ग के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया। उन्होंने कोलहापुर में शुद्रों के शिक्षा संस्थाओ की शृंखला खड़ी कर दी। अछूतों की शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया। शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृति व पुरस्कार की व्यवस्था भी करवाई। यद्यपि शाहूजी एक राजा थे परन्तु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक समाजसेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ की। उन्होंने देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त किया। विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की और नारी शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा का भार सरकार पर डाला। मन्दिरो, नदियों, सार्वजानिक स्थानों को सबके लिए समान रूप से खोल दिया गया। शाहूजी महाराज ने डॉ.

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शिवाजी

छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले (१६३० - १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। .

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शंकर केशव कानेटकर

शंकर केशव कानेटकर (२८ अक्टूबर १८९३ - १९७४) मराठी के सुप्रसिद्ध कवि। कानेतकर का जन्म 28 अक्टूबर 1893 ई. को फत्यापुर, रहिमतपुर, जिला सतारा में हुआ। आपने एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और लेखनकार्य में जुट गए। 'अभागी कमल' (1923 ई.), 'अंबाराय' (1928), 'कांचनगंगा' (1930), 'चंद्रलेखा' (1951) तथा 'अनिकेत' (1955) इत्यादि आपके प्रकाशित काव्यग्रंथ हैं। 'नाट्यछटा' (1939 ई.) नामक एक आलोचनात्मक ग्रंथ का भी आपने प्रणयन किया है। 4 दिसम्बर 1973 ई. को 80 वर्ष की आयु में आपका देहावसान हो गया। श्रेणी:मराठी साहित्यकार.

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सतारा जिला

सतारा जिला (मराठी: सातारा जिल्हा), भारत के पश्चिम में स्थित राज्य महाराष्ट्र के पैंतीस जिलों में से एक है। यह महाराष्ट्र के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और इसका कुल क्षेत्रफल 10480 किमी² है। 2001 की जनगणना के अनुसार सतारा जिले की कुल जनसंख्या 2808994 है जिसमें से 14.17% आबादी शहरी है। जिले का मुख्यालय सतारा शहर है। जिले के अन्य प्रमुख स्थानों में वाई, कराड, कोयनानगर, रहमतपुर, फलटन, महाबलेश्वर और पंचगनी शामिल हैं। यह जिला पुणे मंडल के अंतर्गत आता है। इस जिले के उत्तर में पुणे जिला, पश्चिमोत्तर में रायगढ़ जिला, पूर्व में सोलापुर जिला, दक्षिण में सांगली जिला और पश्चिम में रत्नागिरि जिला स्थित है। .

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सिल्हारा राजवंश

हिन्दू सिल्हारा राजवंश वर्तमान मुंबई क्षेत्र पर ८१० से १२४० ई. के लगभग शासन करता था। इनकी तीन शाखाएं थीं:-.

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सिंधिया

सिंधिया भारत में एक शाही मराठा वंश है। इस वंश मे ग्वालियर राज्य के १८वीं और १९वीं शताब्दी में शासक शामिल है। .

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संभाजी भिडे

संभाजी विनायकराव भिडे उर्फ भिडे गुरुजी महाराष्ट्र से एक भारतीय हैं। वर्तमान में वे श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्थान के संस्थापक एवं प्रमुख हैं। इससे पूर्व वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे। वे "भिडे गुरुजी" के नाम से लोकप्रिय हैं। उनकी आयु ८१ वर्ष है। वे सांगली जिले के निवासी हैं। 1980 तक वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे, किन्तु कुछ विवाद के कारण अलग होकर एक नया संगठन बनाकर कार्य करने लगे, जिसकी मूल भावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही करीब थी। आगे चलकर उन्होने 1984 में श्री शिव प्रतिष्ठान की स्थापना की। उनके संगठन का मूल उद्देश्य शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के दिखाये गए मार्ग पर चलना है। .

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सुरेखा यादव

सुरेख यादव (जन्म २ सितम्बर, १९८५) भारतीय रेलवे की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर हैं। १९८८ में वह भारत की पहली महिला ट्रेन चालक बनीं। अप्रैल २००० में तत्कालीन रेलवे मंत्री ममता बनर्जी द्वारा पहली बार चार महानगरीय शहरो में "लेडीज स्पेशल"- लोकल ट्रेन शुरू की गयीं जिनके चालक दल की सदस्या यादव भी बनीं। उनके कैरियर में एक महत्वपूर्ण घटना ८ मार्च २०११ को, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हुई थी, जब वह डेक्कन क्वीन नामक रेलगाड़ी को पुणे से सीएसटी, मुंबई तक ले जाने के लिए एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बन गई थीं, जहाँ मुंबई के तत्कालीन महापौर श्रद्धा जाधव ने केन्द्रीय रेलवे क्षेत्र के मुख्यालय सीएसटी में उनका स्वागत किया। यह सुरेखा के लिए सपना सच होने जैसा था, क्योंकि वह मध्य रेलवे की एक प्रतिष्ठित गाड़ियों में से एक की चालक थी, जो कि महिला चालक द्वारा चलयी गयी; मुंबई-पुणे रेलवे प्रवासी संघ (एसोसिएशन) ने इस ट्रेन को चलाने के लिए उनका जोरदार समर्थन किया। .

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स्मिता तांबे

स्मिता तांबे एक प्रसिद्ध मराठी और हिंदी फिल्म, टेलीविजन और मंच अभिनेत्री है, जो महाराष्ट्र के सातारा जिले में पैदा हुई थी। वह पुणे में पली बड़ी। फिर वह मुंबई आकर फ़िल्मों में काम करने लगी। .

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जय सिंह द्वितीय

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। .

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ज्योतिराव गोविंदराव फुले

ज्योतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - ११ अप्रैल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०) एक भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें 'महात्मा फुले' एवं 'ज्‍योतिबा फुले' के नाम से भी जाना जाता है। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे। .

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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वासुदेव महादेव अभ्यंकर

वासुदेव महादेव अभ्यंकर (जन्म १८६१, मृत्यु १९४३) सुप्रसिद्ध वैयाकरण तथा अनेक शास्त्रों के पारंगत विद्वान्‌। हिंदुस्थान की सरकार ने १९२१ में आपको "महामहोपाध्याय" की उपाधि से विभूषित किया। संकेतश्वर के शंकराचार्य जी ने भी उन्हें "विद्वद्रत्न" की पदवी प्रदान की। सतारा के प्रसिद्ध विद्वान्‌ पंडित राजाराम शास्त्री गोडबोले उनके गुरु थे। इनके गुरु भास्कर शास्त्री अभ्यंकर उनके पितामह थे। उनके पिता की मृत्यु के बाद राजाराम शास्त्री ने उनका सारा भार अपने ऊपर ले लिया। न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडे ने उनकी विद्वत्ता को देखकर फर्ग्युसन कॉलेज में शास्त्री के पद पर उनकी नियुक्ति की। व्याकरण के साथ साथ वेदान्त, मीमांसा, साहित्य, न्याय, ज्योतिष आदि शास्त्रों में भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का समान रूप में परिचय दिया। इन विषयों का अध्ययन, अध्यापन तथा लेखन आपका अव्याहत गति से चलता रहा। अभ्यंकर की लेखनशैली बहुत ही मार्मिक, मौलिक तथा सरल है। ग्रंथों का स्तर ऊँचा है। संस्कृत में अनेक ग्रंथों पर उन्होंने टीकाएँ लिखी हैं। स्वंतत्र रचनाओं में अद्वैतामोद:, कायशुद्धि:, धर्मतत्वनिर्णय:, सूत्रांतर परिग्रह विचार: आदि हैं। ब्रह्मसूत्र शांकरभाश्य तथा पातञ्जल महाभाष्य का मराठी अनुवाद भी उनकी कृतियाँ हैं। ये रचनाएँ आनन्दाश्रम, पुणे, तथा गायकवाड़ पौर्वात्य पुस्तकमाला (ओरियन्टल सिरीज) में प्रकाशित हैं। वे मुंबई विश्वविद्यालय के एम.

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वासुदेव वामन शास्त्री खरे

वासुदेव वामन शास्त्री खरे (जन्म सं. १८५८, मृत्यु सं. १९२४) प्रसिद्ध शिक्षाविद तथा इतिहासकार थे। .

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विद्यार्थी दिवस (महाराष्ट्र)

भीमराव आंबेडकर के विद्यालय प्रवेश दिवस 7 नवंबर को विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है। 'विद्यार्थी दिवस' मनाने का निर्णय महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा 27 अक्तुबर 2017 को लिया गया गया है। इस दिन महाराष्ट्र के सभी विद्यालयों एवं कनिष्ठ महाविद्यालयों में भीमराव आंबेडकर के जीवन पर आधारित व्याख्यान, निबंध, प्रतियोगितायें, क्विज कॉम्पिटिशन, कविता पाठ सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। .

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व्यपगत का सिद्धान्त

व्यपगत का सिद्धान्त या हड़प नीति (अँग्रेजी: The Doctrine of Lapse, 1848-1856) भारतीय इतिहास में हिन्दू भारतीय राज्यों के उत्तराधिकार संबंधी प्रश्नों से निपटने के लिए ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी द्वारा 1848 में तैयार किया गया नुस्खा था। यह परमसत्ता के सिद्धान्त का उपसिद्धांत था, जिसके द्वारा ग्रेट ब्रिटेन ने भारतीय उपमहाद्वीप के शासक के रूप में अधीनस्थ भारतीय राज्यों के संचालन तथा उनकी उत्तराधिकार के व्यवस्थापन का दावा किया।John Keay,India: A History.

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वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

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गोपाल बालकृष्ण कोल्हटकर

गोपाल बालकृष्ण कोल्हटकर (1878-1955 ई.) भारत के रसायनशास्त्री थे। उनका जन्म सातारा जिले के एक छोटे से गाँव जाखण में हुआ था। गाँव की प्राथमिक पाठशाला में शिक्षा पाकर मुंबई के मराठा हाई स्कूल में और बाद में सेंट जेवियर्स कालेज में भौतिकी और रसायन का अध्ययन किया। रसायन की एम.

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गोपाल गणेश आगरकर

गोपाल गणेश आगरकर गोपाल गणेश आगरकर (१४ जुलाई, १८५६ - १८९५) भारत के महाराष्ट्र प्रदेश के समाज सुधारक एवं पत्रकार थे। वे मराठी के प्रसिद्ध समाचार पत्र केसरी के प्रथम सम्पादक थे। किन्तु बाल गंगाधर तिलक से वैचारिक मतभेद के कारण उन्होने केसरी का सम्पादकत्व छोड़कर सुधारक नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। आगरकर, विष्णु कृष्ण चिपलूणकर तथा तिलक "डेकन एजुकेशन सोसायटी" के संस्थापक सदस्य थे। .

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गोआ एक्स्प्रेस २७७९

गोवा एक्सप्रेस वास्को डा गामा से हजरत निजामुद्दीन,नई दिल्ली तक जानेवालि भारतीय रेल द्वारा संचालित एक दैनिक सुपरफास्ट ट्रेन है। इस ट्रेन के संबंधित राज्यों की राजधानियों और नई दिल्ली के बीच सुविधाजनक लिंक उपलब्ध कराने में दूसरे ट्रेनों कि तरह, जैसे कर्नाटक एक्सप्रेस और आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों के समान है। वास्को डा गामा (आईआर कोड: वि एस जी) रेलवे स्टेशन पणजी, गोवा के निकटतम है। पंजिम द्वारा रेल कि कोई सुविधा नहीं है। .

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कराड

कराड भारत के महाराष्ट्र राज्य के सातारा जिले की एक तालुका है। यह नगर कृष्णा नदी तथा कोयना नदी के संगम पर सतारा नगर से ४५ किमी दक्षिण-पूर्व में बसा है।। कराड यशवंत नगरी के नाम से भी जानी जाती है। यहां पर अधिकतर मुस्लिम धर्म के लोग रहते है साथ ही बहुत संख्या में मस्जिद भी बने हुए हैं। कराड पुणे से लगभग २४० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस नगर का स्वायत्त शासन १८८५ ई. में आरंभ हुआ और अब यह एक सुव्यवस्थित नगरपालिका द्वारा शासित होता है। यहाँ की बौद्धकालीन गुफाएँ, मुसलमान-कालीन मस्जिदें और नवीन मंदिर आकर्षण के विशेष केंद्र हैं। कुछ लोग इसे 'करदाह' या 'करहाकादा' के नाम से भी जानते हैं। .

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काशिनाथ वासुदेव अभ्यंकर

महामहोपाध्याय काशिनाथ वासुदेव अभ्यंकर (७ अगस्त १८९० -- ०१ दिसम्बर १९७६) मराठी के साथ-साथ अर्धमागधी, प्राकृत और संस्कृत के अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान थे। उनका जन्म सतारा के सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वानों के अभ्यंकर परिवार में हुआ था। वे महामहोपाध्याय वासुदेव महादेव अभ्यंकर के पुत्र थे। उनकी शिक्षा पाठशाला के पारम्परिक परिवेश में तथा पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में हुई। उन्होने १९१३ में मुम्बई सरकार के शिक्षा विभाग में सेवा से आरम्भ की और १९४५ में अहमदाबाद के गुजरात महाविद्यालय से सेवानिवृत हुए। .

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काका कालेलकर

काका कालेलकर (1885 - 21 अगस्त 1981) के नाम से विख्यात दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर भारत के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। काकासाहेब कालेलकर ने गुजराती और हिन्दी में साहित्यरचना की। उन्होने हिन्दी की महान सेवा की। उनके द्वारा रचित जीवन–व्यवस्था नामक निबन्ध–संग्रह के लिये उन्हें सन् 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे साबरमती आश्रम के सदस्य थे और अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गांधी जी के निकटतम सहयोगी होने का कारण ही वे 'काका' के नाम से जाने गए। वे सर्वोदय पत्रिका के संपादक भी रहे। 1930 में पूना का यरवदा जेल में गांधी जी के साथ उन्होंने महत्वपूर्ण समय बिताया। .

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कंपनी राज

कंपनी राज का अर्थ है ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारत पर शासन। यह 1773 में शुरू किया है, जब कंपनी कोलकाता में एक राजधानी की स्थापना की है, अपनी पहली गवर्नर जनरल वार्रन हास्टिंग्स नियुक्त किया और संधि का एक परिणाम के रूप में बक्सर का युद्ध के बाद सीधे प्रशासन, में शामिल हो गया है लिया जाता है1765 में, जब बंगाल के नवाब कंपनी से हार गया था, और दीवानी प्रदान की गई थी, या बंगाल और बिहार में राजस्व एकत्रित करने का अधिकार हैशा सन १८५८ से,१८५७ जब तक चला और फलस्वरूप भारत सरकार के अधिनियम १८५८ के भारतीय विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार सीधे नए ब्रिटिश राज में भारत के प्रशासन के कार्य ग्रहण किया। .

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कुम्हार

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले को कुम्हार कहते हैं। कुम्हार जाति सपूर्ण भारत में हिन्दू व मुस्लिम धर्म सम्प्रदायो में पायी जाती है। क्षेत्र व उप-सम्प्रदायो के आधार पर कुम्हारों को अन्य पिछड़ा वर्ग.

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अजिंक्यतारा

अजिंक्यतारा महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित किला है। श्रेणी:महाराष्ट्र के किले.

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अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन मराठी भाषा के लेखकों का वार्षिक साहित्यिक सम्मेलन है।प्रथम मराठी साहित्य सम्मेलन १८७८ ई में पुणे में हुआ था जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानडे ने की थी। .

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उमाबाई दाभाड़े

उमाबाई दाभाड़े (1728-52 A.D.) खाण्डेराव दाभाड़े की पत्नी थीं। वे एक वीरांगना एवं साहसी महिला थीं। .

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१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट। १८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।2 मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।3 जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।4 मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।5 धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया।6 एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है 7 यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था।8 विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे।9 हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।10 आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।11 धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया12 और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा।13 ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी।14 लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे।15 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये।16 पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया।17 जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।18 आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। संदर्भ एवं टिप्पणी 1.

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