संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद; United Nations Trusteeship Council; न्यास परिषद के पांच सदस्यों में सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ही शामिल होते हैं इसकी स्थापना ऐसे न्यास प्रदेशों के पर्यवेक्षण हेतु की गयी थी, जहां द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद स्वायत्त शासन की शुरूआत नहीं हो सकी थी। न्यास प्रदेशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय XII के अनुसार अंतरराष्ट्रीय न्यास व्यवस्था के अधीन रखा गया था। इस व्यवस्था का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को बनाये रखना, न्यास प्रदेशों की जनता के हितों को सवर्धित करना बिना किसी भेदभाव के मानव-अधिकारों एवं मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना तथा सभी न्यास क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का उनके नागरिकों के साथ समान व्यवहार को सुनिश्चित करना है। मूल रूप में 11 न्यास प्रदेश थे। न्यास परिषद का कार्य इन क्षेत्रों में स्वतंत्र या स्वायत्त शासन की स्थापना में सहायता देना था। 31 अक्टूबर, 1994 तक सभी न्यास प्रदेशों को पृथक्रा ज्यों या पड़ोसी देशों के साथ विलीनीकरण के रूप में स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी थी। पलाऊ द्वीप समूह ऐसा अंतिम न्यास क्षेत्र था, जिस पर संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रशासन किया जा रहा था। पलाऊ में सुरक्षा परिषद द्वारा न्यास समझौता समाप्त किये जाने के पश्चात् 1 नवंबर, 1994 को न्यास परिषद ने अपने कार्य औपचारिक रूप से निलंबित कर दिये। फिर भी, न्यास परिषद का विघटन नहीं किया गया था। यह इस प्रावधान के साथ अस्तित्व में बनी रही कि आवश्यकता के अनुसार इसे पुनः क्रियाशील किया जा सकता है। हाल ही में, न्यास परिषद की भूमंडलीय पर्यावरण व संसाधन प्रणाली के न्यासी रूप में उपयोग करने का प्रस्ताव भी सामने रखा गया है। .
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