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संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि

सूची संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि

जिन देशों ने हस्ताक्षर नहीं किया संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ निर्धारित करता है और समुद्री साधनों के प्रयोगों के लिए नियम स्थापित करता है। यह संधि सन् 1982 में तैयार हो गयी लेकिन इसमें एक नियम था के जब तक 60 देशों के नुमाइंदे इसपर हस्ताक्षर नहीं कर देते यह किसी पर लागू नहीं होगी। सन् 1994 में गयाना इसपर दस्तख़त करने वाला साठवा देश बना। सन् 2011 तक 161 देश इसपर हस्ताक्षर कर चुके थे। .

6 संबंधों: दक्षिणी चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, लावारिस क्षेत्र, स्प्रैटली द्वीप समूह, हिन्द महासागर में बिखरे द्वीप, अंटार्कटिक सन्धि तंत्र

दक्षिणी चीन सागर

दक्षिणी चीन सागर का मानचित्र। दक्षिणी चीन सागर चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है। यह प्रशांत महासागर का एक भाग है, जो सिंगापुर से लेकर ताईवान की खाड़ी लगभग ३५,००,००० वर्ग किमी में फैला हुआ है। पाँच महासागरों के बाद यह विश्व के सबसे बड़े जलक्षेत्रों में से एक है। इस सागर में बहुत से छोटे-छोटे द्वीप हैं, जिन्हें संयुक्त रूप से द्वीपसमूह कहा जाता है। सागर और इसके इन द्वीपों पर, इसके तट से लगते विभिन्न देशों का संप्रभुता की दावेदारी है। इन दावेदारियों को इन देशों द्वारा इन द्वीपों के लिए प्रयुक्त होने वाले नामों में भी दिखाई देती है।, Monique Chemillier-Gendreau, Martinus Nijhoff Publishers, 2000, ISBN 978-90-411-1381-8,...

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पूर्वी चीन सागर

पूर्वी चीन सागर का नक़्शा जापान के क्यूशू द्वीप के नागासाकी प्रान्त में स्थित सासेबो शहर से पूर्वी चीन सागर में डूबता सूरज पूर्वी चीन सागर पूर्वी एशिया के पूर्व में स्थित एक समुद्र है। यह प्रशांत महासागर का हिस्सा है और इसका क्षेत्रफल क़रीब १२,४९,००० वर्ग किमी (यानि ७,५०,००० वर्ग मील) है। इसके पश्चिम में चीन है, पूर्व में जापान के क्यूशू और नानसेई द्वीप हैं और दक्षिण में ताईवान है। पूर्वी चीन सागर की सबसे अधिक गहराई लगभग ३,००० मीटर है। चीन की सबसे लम्बी नदी यांगत्सी क्यांग बहकर इसी सागर में मिल जाती है।, Michael Pollard, Evans Brothers, 2003, ISBN 978-0-237-52638-2 .

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लावारिस क्षेत्र

१९३१-१९३३ काल में नोर्वे ने पूर्वी ग्रीनलैंड को 'लावारिस क्षेत्र' बताते हुए उसपर क़ब्ज़ा कर लिया - बाद में इसपर उस समय के स्थाई अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने नोर्वे के ख़िलाफ़ फ़ैसला सुनाया, जिसपर नोर्वे ने इस क्षेत्र को छोड़ दिया लावारिस क्षेत्र, जिसे लातिनी भाषा में 'टेरा नलिस' (Terra nullis) कहते हैं, ऐसे भौगोलिक क्षेत्र को कहा जाता है जिसपर किसी राष्ट्र का अधिकार न हो। ऐसे क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करके उन्हें किसी देश का भाग बनाया जा सकता है हालांकि वर्तमान विश्व में अधिकतर ऐसे क्षेत्रों पर नियंत्रण करना अंतर्राष्ट्रीय संधियों द्वारा वर्जित है। उदाहरण के लिए सन् १९२० तक आर्कटिक महासागर में स्थित स्वालबार्ड द्वीप समूह एक लावारिस क्षेत्र था। यहाँ किसी भी देश का स्थाई क़ब्ज़ा नहीं था और केवल गर्मियों में व्हेल पकड़ने वाले कुछ मछुआरे यहाँ आया करते थे। ९ फ़रवरी १९२० में की गई स्वालबार्ड संधि के अंतर्गत इस लावारिस क्षेत्र को नोर्वे का हिस्सा बना दिया गया।, Anthony Aust, pp.

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स्प्रैटली द्वीप समूह

स्प्रैटली द्वीप समूह का नक़्शा (अगर द्वीप पर किसी देश का क़ब्ज़ा है तो उसका ध्वज साथ दिखाया गया है) स्प्रैटली द्वीप समूह (Spratley Islands) दक्षिणी चीन सागर में स्थित ७५० से अधिक रीफ़ों, समुद्र से बाहर उठने वाली चट्टानों, एटोलों और द्वीपों का एक द्वीप समूह है। इतू अबा (Itu Aba) इसका सबसे बड़ा द्वीप है। यह फ़िलिपीन्ज़ और पूर्वी मलेशिया के तटों से आगे दक्षिणी वियतनाम की तरफ़ जाते हुए एक-तिहाई रस्ते पर मौजूद हैं। इनमें कुल मिलकर चार वर्ग किमी ज़मीन से भी कम क्षेत्रफल है और यह ४,२५,००० वर्ग किमी के समुद्री क्षेत्र पर फैले हुए हैं। वैसे तो इन छोटे-से द्वीपों-रीफ़ों पर कोई मनुष्य नहीं रहता और इनका ज़्यादा आर्थिक मूल्य नहीं है लेकिन यह जिस भी देश के अधीन होंगे उसकी समुद्री सीमा बहुत विस्तृत हो जाएगी और संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि के अंतर्गत उनके नीचे मिलने वाले खनिजों पर और उसमें मौजूद मछलियों पर उस देश के विशेष अधिकार बन जाएंगे। फ़ौजी दृष्टि से भी उस देश की नौसेना अधिक क्षेत्रफल पर सक्रीय हो सकेगी। स्प्रैटली द्वीप समूह के इर्द-गिर्द के बहुत से देशों ने इन द्वीपों पर स्वामित्व होने का दावा किया है। वियतनाम, जनवादी गणतंत्र चीन, ताइवान, मलेशिया और फ़िलिपीन्ज़ ने लगभग ४५ टापुओं पर अपने फ़ौजी दस्ते भेजे हैं और इनमें आपसी तनाव बना रहता है। इनके नेता भी अख़बारों के ज़रिये इन द्वीपों के बारे में एक-दुसरे से तू-तू मैं-मैं करते रहते हैं। नन्हे ब्रुनेई देश ने यहाँ अपनी सेना तो नहीं भेजी लेकिन समुद्री क़ानून संधि के अंतर्गत यह स्प्रैटली समूह के दक्षिण-पूर्वी भाग को अपना आरक्षित आर्थिक क्षेत्र (ऍक्सक्लूसिव इकॉनॉमिक ज़ोन) बताता है।, Monique Chemillier-Gendreau, Martinus Nijhoff Publishers, 2000, ISBN 978-90-411-1381-8,...

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हिन्द महासागर में बिखरे द्वीप

फ़्रांस के 'हिन्द महासागर में बिखरे द्वीप' नामक प्रशासनिक क्षेत्र के द्वीपों की हिन्द महासागर में स्थिति - ऊपर-दाएँ से घड़ी विपरीत घुमते हुए - त्रोम्लिन द्वीप, ग्लोरियोसो द्वीप, झ़ुआन द नोवा द्वीप, बासास दा इण्डिया एटोल ग्लोरियोसो द्वीपों का नक़्शा झ़ुआन द नोवा द्वीप की अंतरिक्ष से ली गई तस्वीर हिन्द महासागर में बिखरे द्वीप (फ़्रांसिसी: Îles Éparses or Îles éparses de l'océan indien, अंग्रेज़ी: Scattered Islands in the Indian Ocean) हिन्द महासागर में स्थित चार छोटे कोरल (प्रवाल) द्वीपों, एक एटोल और एक रीफ़ का सामूहिक नाम है जिनपर फ़्रांस का नियंत्रण है और जो 'फ़्रांसिसी दक्षिणी व अंटार्कटिकी भूमि' (Terres australes et antarctiques françaises या TAAF) नामक प्रशासनिक क्षेत्र के ५वें ज़िले में आते हैं। इन द्वीपों पर कोई भी स्थाई आबादी नहीं है। इनमें से तीन द्वीप (ग्लोरियोसो द्वीप, झ़ुआन द नोवा द्वीप और युरोपा द्वीप) और बासास दा इण्डिया एटोल माडागास्कर से पश्चिम में मोज़ामबीक जलसन्धि में स्थित हैं, जबकि चौथा द्वीप (त्रोम्लिन द्वीप) माडागास्कर से ४५० किमी पूर्व में हिन्द महासागर के खुले पानी में स्थित है। इस प्रशासनिक क्षेत्र में आने वाला बांक द्यु गेज़िर (Banc du Geyser) नामक रीफ़ भी मोज़ामबीक जलसन्धि में स्थित है। .

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अंटार्कटिक सन्धि तंत्र

अंटार्कटिक सन्धि तंत्र (Antarctic Treaty System) दिसम्बर १, १९५९ में हस्ताक्षरित होने वाली अंटार्कटिक सन्धि (Antarctic Treaty) और उस से सम्बन्धित समझौतों का सामूहिक नाम है। अंटार्कटिका पृथ्वी का इकलौता महाद्वीप है जहाँ कोई मनुष्य मूल रूप से नहीं रहता था और यह सन्धि व्यवस्था अंटार्कटिका के विषय में सभी अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों को निर्धारित करता है। अंटार्कटिक सन्धि १९६१ से लागू हुई और सन् २०१६ तक इसपर ५३ देश हस्ताक्षर कर चुके थे। इस सन्धि के अंतर्गत अंटार्कटिका को एक वैज्ञानिक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया और इस महाद्वीप पर किसी भी प्रकार की सैनिक कार्यवाई पर पाबंदी लगा दी गई। साथ ही अंटार्कटिका के मामलों पर निर्णय करने के लिये एक वार्षिक "अंटार्कटिक सन्धि परामर्श बैठक" (Antarctic Treaty Consultative Meeting या ATCM) की परम्परा शुरु की गई। .

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