3 संबंधों: ध्रुवीय भालू, महावीर (गणितज्ञ), क्रमचय-संचय।
ध्रुवीय भालू
ध्रुवीय भालू (उर्सूस मारीटिमस) एक ऐसा भालू है जो आर्कटिक महासागर, उसके आस-पास के समुद्र और आस-पास के भू क्षेत्रों को आवृत किये, मुख्यतः आर्कटिक मंडल के भीतर का मूल वासी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा मांसभक्षी है और सर्वाहारी कोडिअक भालू के लगभग समान आकार के साथ, यह सबसे बड़ा भालू भी है। एक वयस्क नर का वज़न लगभग होता है, जबकि एक वयस्क मादा उसके करीब आधे आकार की होती है। हालांकि यह भूरे भालू से नज़दीकी रूप से संबंधित है, लेकिन इसने विकास करते हुए संकीर्ण पारिस्थितिकीय स्थान हासिल किया है, जिसके तहत ठंडे तापमान के लिए, बर्फ, हिम और खुले पानी पर चलने के लिए और सील के शिकार के लिए, जो उसके आहार का मुख्य स्रोत है, अनुकूलित कई शारीरिक विशेषताएं हैं। यद्यपि अधिकांश ध्रुवीय भालू भूमि पर जन्म लेते हैं, वे अपना अधिकांश समय समुद्र पर बिताते हैं (अतः उनके वैज्ञानिक नाम का अर्थ है "समुद्री भालू") और केवल समुद्री बर्फ से लगातार शिकार कर सकते हैं, जिसके लिए वे वर्ष का अधिकांश समय जमे हुए समुद्र पर बिताते हैं। ध्रुवीय भालू को एक नाज़ुक प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसकी 19 में से 8 उप-जनसंख्या में गिरावट देखी गई है।IUCN ध्रुवीय भालू विशेषज्ञ समूह, 2009.
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महावीर (गणितज्ञ)
महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे। उन्होने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में 'सारसंग्रह गणितम्' नाम से अनुवाद किया। महावीर ने गणित के महत्व के बारे में कितनी महान बात कही है- .
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क्रमचय-संचय
दोहराव के साथ क्रमपरिवर्तन। क्रमचय-संचय (Combinatorics) गणित की शाखा है जिसमें गिनने योग्य विवर्त (discrete) संरचनाओं (structures) का अध्ययन किया जाता है। शुद्ध गणित, बीजगणित, प्रायिकता सिद्धांत, टोपोलोजी तथा ज्यामिति आदि गणित के विभिन्न क्षेत्रों में क्रमचय-संचय से संबन्धित समस्याये पैदा होतीं हैं। इसके अलावा क्रमचय-संचय का उपयोग इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन), संगणक विज्ञान, एर्गोडिक सिद्धांत (ergodic theory) तथा सांख्यिकीय भौतिकी में भी होता है। ग्राफ सिद्धांत, क्रमचय-संचय के सबसे पुराने एवं सर्वाधिक प्रयुक्त भागों में से है। ऐतिहासिक रूप से क्रमचय-संचय के बहुत से प्रश्न विलगित रूप में उठते रहे थे और उनके तदर्थ हल प्रस्तुत किये जाते रहे। किन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्तिशाली एवं सामान्य सैद्धांतिक विधियाँ विकसित हुईं और क्रमचय-संचय गणित की स्वतंत्र शाखा बनकर उभरा। .
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यहां पुनर्निर्देश करता है:
संचय।