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संकेत प्रसंस्करण

सूची संकेत प्रसंस्करण

संकेत प्रक्रमण (सिग्नल प्रोसेसिंग) यद्यपि संकेत गैर-विद्युत प्रकृति के भी हो सकते हैं किन्तु अधिकांश संकेत विद्युत संकेत होते हैं या उन्हें संवेदक (सेंसर), संसूचक (डिटेक्टर) या परिवर्तक (ट्रन्स्ड्यूसर) की मदद से विद्युत स्वरूप में बदल दिया जाता है। इसके बाद विद्युत संकेतों को अधिक उपयोगी बनाने के लिये उन्हें अनेक प्रकार से परिवर्तित एवं संस्कारित किया जाता है। इस क्रिया को संकेत प्रसंस्करण (Signal processing) कहते हैं। .

28 संबंधों: एलिआजिंग, डिरैक डेल्टा फलन, प्रतिलोम समस्या, प्रायोगिक भौतिकी, प्रक्रम, पॉलीग्राफ, फ़ूर्ये श्रेणी, फिल्टर (संकेत प्रसंस्करण), फुरिअर विश्लेषण, बेसल फलन, रुदाल्फ एमिल कालमान, रैखिक निकाय, रेलवे संकेतक, लाउडस्पीकर, साईलैब, साईकॉस, साइमन हॅकिन, संवलन, स्पंद संपीडन, सीएमओएस (CMOS), हार्मोनिक विश्लेषण, जेड रूपान्तर, विद्युत संकेत, विद्युत अभियान्त्रिकी, इलेक्ट्रॉनिक फिल्टर, इकाई पग-फलन, काल्पनिक संख्या, अनुरूप फिल्टर

एलिआजिंग

नमूनों के एक समुच्चय पर दो अलग-अलग संकेत फिट हो जा रहे हैं। संकेत प्रसंस्करण में, यदि दो अलग-अलग संकेतों का प्रसंस्करण करने के बाद वे अलग-अलग न रहकर एक-जैसा हो जाँय तो इस प्रभाव को एलियाजिंग (aliasing) कहते हैं। किसी संकेत के नमूनों (सैम्पल्स) को पुनः जोड़कर जो संकेत निर्मित होता है, यदि वह संकेत मूल संकेत से भिन्न हो तो भी इस प्रभाव को एलियाजिंग कहते हैं। एलियाजिंग, समय-डोमेन में सैम्पल लेने पर होता है तथा स्पेस-डोमेन में सैम्पल लेने पर भी। श्रेणी:संकेत प्रसंस्करण.

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डिरैक डेल्टा फलन

डिरैक डेल्टा फलन का योजनामूलक निरुपण: तीरयुक्त रेखा डिरैक डेल्टा फलन (Dirac delta function) या डिरैक का डेल्टा फलन या δ फलन वास्तविक संख्या रेखा पर एक सामान्यीकृत फलन या वितरण है जो शून्य के अलावा सर्वत्र शून्य होता है तथा सम्पूर्ण वास्तविक रेखा पर इसका समाकल १ होता है। कभी-कभी डेल्टा फलन को मूलबिन्दु पर अन्नत ऊँची किन्तु अनन्त पतली स्पाइक के रूप में भी समझा जाता है जिसका कुल क्षेत्रफल १ है। इसका उपयोग आदर्श द्रव्यमान के घनत्व या आदर्श आवेश के घनत्व को निरुपित करने के लिये किया जा सकता है। इसका प्रचलन सैद्धान्तिक भौतिकीविद पॉल डिरैक ने किया। संकेत प्रसंस्करण के क्षेत्र में इसे प्रायः 'इकाई आवेग फलन' (unit impulse function) कहते हैं। .

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प्रतिलोम समस्या

right विज्ञान में ऐसी समस्याओं को प्रतिलोम समस्या (inverse problem) कहते हैं जो कुछ प्रेक्षणों की सहायता से उनको (उन आकड़ों को) उत्पन्न करने वाले कारणों की गणना करतीं हैं। उदाहरण के लिये धरती के गुरुत्वीय क्षेत्र के आंकडों के आधार पर धरती के अन्दर विभिन्न बिन्दुओं पर घनत्व निकालना एक प्रतिलोम समस्या है। इनकों प्रतिलोम समस्या इसलिये कहते हैं कि यह परिणामों से शुरू होतीं हैं और 'उल्टा' चलकर उपयुक्त कारण की खोज करतीं हैं जिनसे ऐसे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अतः यह अनुलोम समस्या (forward problem) का उल्टा है जो कारण से शुरू होकर परिणाम की गणना करती है। प्रतिलोम समस्या की गणना, गणित और विज्ञान की कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याओं में होती है। ये इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे उन प्राचलों (पैरामीटर) के बारे में बताने का प्रयास करतीं हैं जिनको सीधे मापा नहीं जा सकता। इनका उपयोग प्रकाशिकी, राडार, ध्वनिकी, संचार सिद्धान्त, संकेत प्रसंस्करण, मेडिकल इमेजिंग, कम्प्यूटर दृष्टि, भूभौतिकी, समुद्रविज्ञान, खगोलिकी, सुदूर संवेदन, मशीन लर्निंग, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, अविनाशी परीक्षण (nondestructive testing) तथा अन्य अनेकानेक क्षेत्रों में किया जाता है। श्रेणी:गणित.

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प्रायोगिक भौतिकी

भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, प्रायोगिक भौतिकी ब्रह्माण्ड के बारे में आँकड़े संग्रहित करने के क्रम में भौतिक परिघटनाओं के प्रेक्षण से सम्बंधित विषय और उप-विषयों की श्रेणी है। इसकी विधियाँ एक विषय से दूसरे विषय में बहुत परिवर्तित होता है जैसे सरल प्रयोग से प्रेक्षण जैसे कैवेंडिश प्रयोग से बहुत जटिल प्रयोगों में से एक वृहद हेड्रॉन संघट्टक तक। .

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प्रक्रम

किसी काम को पूरा करने के लिये कई छोटे-छोटे कार्यों को एक निश्चित क्रम में करना होता है। इसे ही प्रक्रम (Process) कहते हैं और इस क्रिया को प्रक्रमण (processing) कहते हैं। उदाहरण के लिये दूध से घी बनाने में एक के बाद एक कई काम क्रम से करने पड़ते हैं। .

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पॉलीग्राफ

पॉलीग्राफ़ के परिणाम एक चार्ट रिकॉर्डर पर अंकित किये जाते हैं। पॉलीग्राफ यह एक ऐसी मसीन है जिसका प्रयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है। खास कर इसका प्रयोग तब किया जाता है जब किसी अपराध का पता लगाना हो । पॉलीग्राफ टेस्ट मसीन को झूठ पकड़ने वाली मसीन और लाई डिटेक्टर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खोज जॉन अगस्तस लार्सन 1921 ई के अंदर की थी । भारत के अंदर प्रोलिग्राफिक का प्रयोग करने से पहले कोर्ट से अनुमति लेना आवश्यक है। अब तक इसका कई लोगों पर सफल प्रयोग किया जा चुका है। ‌‌‌लेकिन कुछ वैज्ञानिक रिसर्च के अंदर कुछ लोग इसको भी गच्चा देने मे कामयाब पाए गए । पॉलिग्राफ टेस्ट के अंदर यह पता लगाने के लिए कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच बोल रहा है? कई चीजों को परखा जाता है। जैसे व्यक्ति कि हर्ट रेट.

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फ़ूर्ये श्रेणी

फूर्ये श्रेणी के आरम्भिक एक, दो, तीन या चार पदों द्वारा वर्ग तरंग फलन (square wave function) का सन्निकटीकरण (approximation)। अधिक पद जोड़ने पर प्राप्त ग्राफ, वर्ग-तरंग के ग्राफ के अधिकाधिक निकट दिखने लगता है। गणित में फूर्ये श्रेणी (Fourier series) एक ऐसी अनन्त श्रेणी है जो f आवृत्ति वाले किसी आवर्ती फलन (periodic function) को f, 2f, 3f, आदि आवृत्तियों वाले ज्या और कोज्या फलनों के योग के रूप में प्रस्तुत करती है। इसका प्रयोगे सबसे पहले जोसेफ फ़ूर्ये (१७६८ - १८३०) ने धातु की प्लेटों में उष्मा प्रवाह एवं तापमान की गणना के लिये किया था। किन्तु बाद में इसका उपयोग अनेकानेक क्षेत्रों में हुआ और यह विश्लेषण का एक क्रान्तिकारी औजार साबित हुआ। इसकी सहायता से कठिन से कठिन फलन भी ज्या और कोज्या फलनों के योग के रूप में प्रकट किये जाते हैं जिससे इनसे सम्बन्धित गणितीय विश्लेषण अत्यन्त सरल हो जाते हैं। .

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फिल्टर (संकेत प्रसंस्करण)

आवृत्ति रिस्पॉन्स के अनुसार विभिन्न प्रकार के फिटर संकेत प्रसंस्करण के सन्दर्भ में, उस युक्ति या प्रक्रिया को फिल्टर (filter) कहते हैं जो संकेत (सिगनल) से कुछ अवांछित अवयवों या विशेषताओं को निकाल देता है। उदाहरण के लिये 'लो पास फिल्टर' किसी सिगनल के उन अवयवों को तो आउटपुट में जाने देता है जो कम आवृत्ति के हों किन्तु यह फिल्टर उस संकेत के अधिक आवृत्ति वाले भागों को आउटपुट में जाने से रोक देता है या कम कर देता है। .

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फुरिअर विश्लेषण

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में किसी फलन (फंक्शन) को छोटे-छोटे सरल फलनों के योग के रूप में व्यक्त करने को विश्लेषण कहा जाता है एवं इसकी उल्टी प्रक्रिया को संश्लेषण कहते हैं। हमें ज्ञात है कि फुरिअर श्रेणी के प्रयोग से किसी भी आवर्ती फलन को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप मे व्यक्त करना सम्भव है। इसके सामान्यीकरण के रूप में यह भी कह सकते हैं किं किसी भी समय के साथ परिवर्तनशील संकेत को उचित आयाम, आवृत्ति एवं कला की साइन तरंगो (sine waves) के योग के रूप में व्यक्त करना सम्भव है। फुरिअर विश्लेषण (Fourier analysis) वह तकनीक है जिसका प्रयोग करके बताया जा सकता है कि कोई संकेत (सिग्नल) किन साइन तरंगों से मिलकर बना हुआ है। फलनों (या अन्य वस्तुओं) को सरल टुकड़ों में तोडकर समझने का प्रयास फुरिअर विश्लेषण का सार है। आजकल फुरिअर विश्लेषण का विस्तार होकर यह एक अधिक सामान्य हार्मोनिक विश्लेषण के अंग के रूप में जाना जाने लगा है। .

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बेसल फलन

बेसल के अवकल समीकरण के विहित हलों (canonical solutions) को बेसल फलन (Bessel function) कहते हैं। बेसल के अवकल समीकरण का सामान्य रूप नीचे दिया गया है- इसमें α (जिसे बेसल फलन का 'आर्डर' कहते हैं) कोई वास्तविक या समिश्र संख्या है। सबसे आम और महत्वपूर्ण स्थितियाँ α के पूर्णांक अथवा अर्ध पूर्णांक मानों के लिये आती हैं। इन फलनों की परिभाषा सर्वप्रथम बर्नौली (Daniel Bernoulli) ने की थी और बाद में बेसल (Friedrich Bessel) ने इनका सामान्यीकरण किया। बेसल फलनों को बेलन फलन (cylinder functions) या 'बेलन सन्नादी' (cylindrical harmonics) भी कहते हैं क्योंकि ये लाप्लास समीकरण को बेलनी निर्देशांक प्रणाली में बदलकर हल करने से प्राप्त होते हैं। .

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रुदाल्फ एमिल कालमान

रुदाल्फ एमिल कालमान (Rudolf Emil Kálmán) (जन्म: 19 मई, 1930) हंगरी में जन्मे अमेरिकी विद्युत अभियन्ता, गणितज्ञ एवं शोधकर्ता हैं। वे कालमान फिल्टर के सह-अनुसंधान एवं विकास के लिये प्रसिद्ध हैं। कालमान फिल्टर एक कलन विधि (अल्गोरिद्म) है जिसका उपयोग संकेत प्रसंस्करण, नियंत्रण तंत्र आदि में होता है। उनके कार्य के लिये, अक्टूबर २००९ में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें राष्त्रीय विज्ञान मेडल प्रदान किया।()। .

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रैखिक निकाय

रेखीय तन्त्र (Linear systems) वे तन्त्र हैं अध्यारोपण का सिद्धान्त (superposition) तथा स्केलिंग (scaling) के गुण को सन्तुष्ट करते हैं .

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रेलवे संकेतक

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लाउडस्पीकर

एक सस्ता, कम विश्वस्तता 3½ इंच स्पीकर, आमतौर पर छोटे रेडियो में पाया जाता है। एक चतुर्मार्गी, उच्च विश्वस्तता लाउडस्पीकर सिस्टम. एक लाउडस्पीकर (या "स्पीकर") एक विद्युत-ध्वनिक ऊर्जा परिवर्तित्र है, जो वैद्युत संकेतों को ध्वनि में परिवर्तित करता है। स्पीकर वैद्युत संकेतों के परिवर्तनों के अनुसार चलता है तथा वायु या जल के माध्यम से ध्वनि तरंगों का संचार करवाता है। श्रवण क्षेत्रों की ध्वनिकी के बाद, लाउडस्पीकर (तथा अन्य विद्युत-ध्वनि ऊर्जा परिवर्तित्र) आधुनिक श्रव्य प्रणालियों में सर्वाधिक परिवर्तनशील तत्व हैं तथा ध्वनि प्रणालियों की तुलना करते समय प्रायः यही सर्वाधिक विरूपणों और श्रव्य असमानताओं के लिए उत्तरदायी होते हैं। .

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साईलैब

साईलैब (Scilab) एक मुक्तस्रोत आंकिक विश्लेषण का सॉफ्टवेयर पैकेज है। इसे सन १९९० से ही इन्स्टिट्यूट नेशनल डी रिसर्च एन इन्फार्मेटिक एट एन आटोमेटिक (INRIA) एवं इकोल नेशनल डेस पॉन्ट्स एट चौसेस (ENPC) के अनुसंधानकर्ताओं ने विकसित किया है। सन २००३ में साईलैब कॉन्सोर्सिअम की स्थापना के पश्चात से ही इसकी देख-रेख एवं विकास INRIA द्वारा की जा रही है। साइलैब वास्तव में एक उच्च-स्तर की प्रोग्रामन भाषा है। इसका अर्थ यह है कि कुछ ही लाइन के कोड लिखने पर भी बड़ी-बड़ी गणनाएँ हो जाती हैं। साइलैब सभी मूल डेटा के प्रकारों (primitive data types) को उनके तुल्य एक मैट्रिक्स के रूप में बदलकर काम करता है। जहाँ तक काम का प्रश्न है, यह मैटलैब (MATLAB) जैसा ही है किन्तु यह बिना मूल्य के ही डाउनलोड किया जा सकता है। इसका सिन्टैक्स भी मैटलैब जैसा ही है। किन्तु ऐसा नहीं है कि साईलैब का सभी कोड ज्यों का त्यों मैटलैब में या मैटलैब के सारे कोड साईलैब में पूरी तरह से चल जायेंगे। साईलैब में एक परिवर्तक (कन्वर्टर) की सुविधा भी है जो मैटलैब के स्रोत-कोड को साईलैब के स्रोत-कोड में बदल देता है। सामान्य गणितीय कार्यों के अलावा यह सॉफ्टवेयर, संकेत प्रसंस्करण, सांख्यिकीय विश्लेषण, छवि सुधार तथा नियंत्रण तंत्रों की डिजाइन आदि में बहुत उपयोगी है। साईलैब में एक पैकेज और भी है जिसका नाम एक्स्कॉस (Xcos) है जो साईकॉस (SciCos) का ही एक रूप है। साईकॉस, मैटलैब के साथ आने वाले सिमूलिंक जैसा है जो ग्राफीय ब्लॉक आरेखों का उपयोग करके सतत व डिस्क्रीट गतिक तंत्रों को मॉडल करने व सिमुलेट करने में सहायता करता है। चलते समय साइलैब का एक स्क्रीन-शॉट .

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साईकॉस

साईकॉस (Scicos) गतिक तंत्रों को ग्राफीय ब्लॉक आरेखों की सहायता से मॉडल एवं सिमुलेट करने वाला एक सॉफ्टवेयर पैकेज है। साइकोस के द्वारा मिश्रित गतिक तन्त्रों की गतिकी को मॉडल करके तत्पश्चात उसे कम्पाइल किया जा सकता है जिससे कार्यकारी (executable) कोड प्राप्त हो जाता है। यह मैटलैब के साथ आने वाले सिमूलिंक जैसा ही एक मुक्तस्रोत पैकेज है। आजकल यह साईलैब के साथ एक पैकेज रूप में आता है और www.scicoslab.org से डाउनलोड किया जा सकता है। साईकॉस, कन्ट्रोल सिस्टम्स के विश्लेषण एवं डिजाइन के लिये बहुत उपयोगी है। इसके अलावा संकेत प्रसंस्करण, एवं अन्य तन्त्रों की मॉडलिंग एवं सिमुलेशन के लिये भी बहुत उपयुक्त है। .

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साइमन हॅकिन

साइमन हॅकिन एक ब्रिटिश विद्युत (इलेक्ट्रिकल) इंजीनियर हैं, जो अपने रडार व संचार में अनुप्रयोगों की प्रमुखता वाले अनुकूली संकेत प्रसंस्करण संबंधित अग्रणी कार्य के लिए विख्यात हैं। .

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संवलन

दो आयताकार पल्सों का संवलन एक त्रिभुज होता है। गणित में संवलन (convolution) दो फलनों की एक गणितीय संक्रिया है जिससे एक तीसरा फलन प्राप्त होता है। संवलन, अन्तःसहसंबंध (cross-correlation) के समान है। इसका उपयोग फलनीय विश्लेषण तथा संकेत प्रसंस्करण में होता है। कुछ प्रमुख अनुप्रयोग हैं- प्रायिकता, सांख्यिकी, संगणक दृष्टि (computer vision), छबि प्रसंस्करण, संकेत प्रसंस्करण, अवकल समीकरण आदि। .

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स्पंद संपीडन

स्पंद संपीडन (Pulse compression), संकेत प्रसंस्करण की एक तकनीक है जो मुख्यतः राडार, सोनार तथा प्रतिध्वनिलेखन (echography) में प्रयुक्त होती है जिससे 'रेंज रिजोलूशन' और सिगनल-रव अनुपात (signal to noise ratio) बेहतर करने में मदद मिलती है। श्रेणी:संकेत प्रसंस्करण.

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सीएमओएस (CMOS)

CMOS इनवर्टर (NOT लॉजिक गेट) संपूरक धातु-आक्साइड-अर्धचालक (CMOS) एकीकृत परिपथों के निर्माण के लिए एक प्रौद्योगिकी है। CMOS प्रौद्योगिकी का प्रयोग माइक्रोप्रोसेसर्स, माइक्रोकंट्रोलर्स, स्थैतिक RAM तथा अन्य डिजिटल तर्क परिपथों में किया जाता है। CMOS प्रौद्योगिकी का प्रयोग एनालॉग परिपथों की एक व्यापक श्रेणी, जैसे प्रतिबिंब संवेदकों, डाटा परिवर्तकों, तथा अत्यधिक एकीकृत ट्रांसीवर्स, में भी अनेक प्रकार के संप्रेषणों के लिए किया जाता है। सन 1967 में फ्रैंक वान्लास (Frank Wanlass) ने सफलतापूर्वक CMOS का पेटेंट (US पेटेंट 3,356,858) करवाया.

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हार्मोनिक विश्लेषण

हार्मोनिक विश्लेषण गणित की वह शाखा है जो फलनों या संकेतों को मौलिक तरंगों योग (superposition) के रूप में व्यक्त करने की विधियों एवं अन्य पक्षों का अध्ययन करती है। चूंकि भौतिकी में मौलिक सरल तरंगोंको हर्मोनिक कहा जाता है इसलिये इस विषय का नाम हार्मोनिक विश्लेषण पडा। पिछली दो शताब्दियों में एक विस्तृत विषय बनकर उभरा है। संकेत प्रसंस्करण, क्वांटम यांत्रिकी एवं तंत्रिकाविज्ञान आदि विविध विषयों में इसका उपयोग होता है। हार्मोनिक विश्लेषण, फुरिअर विश्लेषण का अधिक व्यापक रूप है। .

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जेड रूपान्तर

गणित एवं संकेत प्रसंस्करण में जेड रूपान्तर (Z-transform) किसी डिस्क्रीट टाइम-डोमेन संकेत को समिश्र (कम्प्लेक्स) आवृत्ति-डोमेन में बदलता है। डिस्क्रीट टाइम-डोमेन संकेत से तात्पर्य ऐसे संकेत से है जो केवल कुछ निश्चित समयों पर अशून्य मान रखता है, शेष समय वह शून्य रहता है। जेड-रूपान्तर को लाप्लास रूपान्तर का विविक्त-समय अनुरूप (discrete-time equivalent) के रूप में समझा जा सकता है। इसका उपयोग आंकिक संकेत प्रसंस्करण (डीएसपी) एवं आंकिक नियंत्रण (डिजिटल कन्ट्रोल) में किया जाता है। .

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विद्युत संकेत

संचार, संकेत प्रसंस्करण और सामान्य रूप से विद्युत इंजीनियरी के सन्दर्भ में समय के साथ परिवर्तनशील या अवकाश के साथ परिवर्तनशील (spatial-varying) कोई भी राशि संकेत (signal) कहलाती है। उदाहरण के लिये किसी तापयुग्म से प्राप्त वोल्टता एक संकेत है जो तापमान की सूचना देती है। .

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विद्युत अभियान्त्रिकी

विद्युत अभियन्ता, वैद्युत-शक्ति-तन्त्र का डिजाइन करते हैं; और … … जटिल एलेक्ट्रानिक तन्त्रों का डिजाइन भी करते हैं। नियंत्रण तंत्र आधुनिक सभ्यता का अभिन्न अंग है। यह विद्युत अभियान्त्रिकी का भी प्रमुख विषय है। विद्युत अभियान्त्रिकी विद्युत और विद्युतीय तरंग, उनके उपयोग और उनसे जुड़ी तमाम तकनीकी और विज्ञान का अध्ययन और कार्य है। प्रायः इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स भी शामिल रहता है। इसमे मुख्य रूप से विद्युत मशीनों की कार्य विधि एवं डिजाइन; विद्युत उर्जा का उत्पादन, संचरण, वितरण, उपयोग; पावर एलेक्ट्रानिक्स; नियन्त्रण तन्त्र; तथा एलेक्ट्रानिक्स का अध्ययन किया जाता है। एक अलग व्यवसाय के रूप में वैद्युत अभियांत्रिकी का प्रादुर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में हुआ जब विद्युत शक्ति का व्यावसायिक उपयोग होना आरम्भ हुआ। आजकल वैद्युत अभियांत्रिकी के अनेकों उपक्षेत्र हो गये हैं। .

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इलेक्ट्रॉनिक फिल्टर

टेलीविजन में प्रयुक्त एक फिल्टर एलेक्ट्रॉनिक निस्यन्दक या इलेक्ट्रॉनिक फिल्टर ऐसे परिपथों को कहते हैं जो, संकेत प्रसंस्करण का काम करते हैं। ये विद्युत संकेतकों में से अवांछित आवृत्ति वाले अवयवों को कम करते हैं; वांछित आवृत्ति वाले अवयवों को बढ़ाते हैं; या ये दोनो ही कार्य करते हैं। ये विभिन्न प्रकार के होते हैं जैसे: -.

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इकाई पग-फलन

इकाई पग-फलन इकाई पग-फलन (unit step function) या हेविसाइड पग-फलन (Heaviside step function) एक असतत फलन है, जिसका मान स्वतंत्र चर के ऋणात्मक मान के लिये शून्य होता है तथा धनात्मक मान के लिये एक होता है। इसे प्रायः H या u या θ से निरूपित किया जाता है। H(0) का मान क्या हो, इसका अधिक महत्व नहीं है। यह फलन नियंत्रण सिद्धान्त तथा संकेत प्रसंस्करण में बहुत प्रयुक्त होता है। इसके अलावा संरचना इंजीनियरी में भी विभिन्न प्रकार के लोड वितरणों के गणितीय निरूपण के लिये इसका उपयोग किया जाता है। किया जाता है। इसका नाम इंग्लैण्ड के बहुज्ञ ओलिवर हेविसाइड (Oliver Heaviside) के नाम पर रखा गया है। हेविसाइड फलन, डिरैक डेल्टा फलन का समाकल है: H′ .

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काल्पनिक संख्या

एक काल्पनिक संख्या एक संख्या है जिसे वास्तविक संख्या को काल्पनिक इकाई i गुणा के रूप में लिखा जाता है, जो इसके गुण्धर्म i^2.

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अनुरूप फिल्टर

अनुरूप फिल्टर या एनालॉग फिल्टर (Analogue filters) इलेक्ट्रानिकी में प्रयुक्त होने वाले संकेत प्रसंस्करण के मूलभूत अवयव हैं। .

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सिग्नल प्रोसेसिंग, अनुकूली संकेत प्रसंस्करण

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