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श्रीनिवास रामानुजन्

सूची श्रीनिवास रामानुजन्

श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) (22 दिसम्बर 1887 – 26 अप्रैल 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया। ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है। .

19 संबंधों: दीर्घवृत्त, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर, भारतीय व्यक्तित्व, भारतीय वैज्ञानिकों की सूची, भारतीय गणित, भारतीय गणित का इतिहास, भारतीय गणितज्ञों की सूची, भारतीय अंक प्रणाली, माया वर्ग, रामानुजन अटकल, रामानुजन-नागेल समीकरण, स्वयंपाठी, गणित, गणित का इतिहास, गॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी, इरोड जिला, १७२९ (संख्या), १८८७

दीर्घवृत्त

कार्तीय निर्देशांक पद्धति में '''दीर्घवृत्त''' गणित में दीर्घवृत्त एक ऐसा शांकव होता है जिसकी उत्केन्द्रता इकाई से कम होती है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार, दीर्घवृत्त ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिनकी दो निश्चित बिन्दुओं से दूरी का योग सदैव अचर रहता है। इन निश्चित बिन्दुओं को दीर्घवृत्त की नाभियाँ (Focus) कहते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी सहित कई ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घवृत्तीय कक्षा में घूमते हैं और इस दीर्घवृत्त की एक नाभि पर सूर्य अवस्थित होता है। दीर्घवृत्त इस प्रकार, यह एक वृत्त का सामान्यीकृत रूप होता है। वृत्त एक विशेष प्रकार का दीर्घवृत्त होता है जिसमें दोनों नाभियाँ एक ही स्थान पर होती हैं। एक दीर्घवृत्त का आकार इसकी उत्केन्द्रता से दर्शाया जाता है, जिसका मान दीर्घवृत्त के लिए 0 से लेकर 1 के मध्य होता है। यदि किसी दीर्घवृत्त की उत्केन्द्रता 0 हो तो वह दीर्घवृत्त, एक वृत्त होता है। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर भारत सरकार द्बारा १९५१ में स्थापित अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) और प्रौद्योगिकी -उन्मुख एक स्वायत्त उच्च शिक्षा संस्थान है। सात आईआईटी में यह सबसे पुरानी है। भारत सरकार ने इसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान माना है और इसकी गणना भारत के सर्वोत्तम इंजीनियरिंग संस्थानों में होती है। आई आई टी खड़गपुर को विभिन्न इंजीनियरिंग शिक्षा सर्वेक्षणों जैसे कि इंडिया टुडे और आउटलुक में सर्वोच्च इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक का स्थान दिया गया है। १९४७ में भारत की स्वाधीनता के बाद आई आई टी खड़गपुर की स्थापना उच्च कोटि के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को प्रसिक्षित करने के लिए हुई थी। इसका संस्थागत ढांचा दूसरी IITओं की ही तरह है और इसकी प्रवेश की विधि भी बाकी IITओं के साथ ही होती है। आई आई टी खड़गपुर के छात्रों को अनौपचारिक तौर पर केजीपिअन् (KGPians) कहा जाता है। सभी IITओं में इसका कैम्पस क्षेत्रफल सबसे ज्यादा (२१०० एकड़) है और साथ ही विभाग और छात्रों की संख्या भी सर्वाधिक है। आई आई टी खड़गपुर, इल्लुमिनेशन, रंगोली, क्षितिज और स्प्रिन्ग्फेस्ट जैसे अपने वार्षिक उत्सवों के कारण जाना जाता है। .

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भारतीय व्यक्तित्व

यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय वैज्ञानिकों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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भारतीय गणितज्ञों की सूची

सिन्धु सरस्वती सभ्यता से आधुनिक काल तक भारतीय गणित के विकास का कालक्रम नीचे दिया गया है। सरस्वती-सिन्धु परम्परा के उद्गम का अनुमान अभी तक ७००० ई पू का माना जाता है। पुरातत्व से हमें नगर व्यवस्था, वास्तु शास्त्र आदि के प्रमाण मिलते हैं, इससे गणित का अनुमान किया जा सकता है। यजुर्वेद में बड़ी-बड़ी संख्याओं का वर्णन है। .

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भारतीय अंक प्रणाली

भारतीय अंक प्रणाली को पश्चिम के देशों में हिंदू-अरबी अंक प्रणाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि यूरोपीय देशों को इस अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ था। जबकि अरबों को यह ज्ञान भारत से मिला था। भारतीय अंक प्रणाली में 0 को मिला कर कुल 10 अंक होते हैं। संसार के अधिकतम 10 अंकों वाली अंक प्रणाली भारतीय अंक प्रणाली पर ही आधारित हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास के अनुसार, .

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माया वर्ग

नौ खानों वाला एक माया वर्ग मनोरंजक गणित में n कोटि (आर्डर) का माया वर्ग या 'मैजिक वर्ग' (magic square) n2 संख्याओं (प्रायः पूर्णांकों) का ऐसा विन्यास (arrangement) होता है कि सभी पंक्तियों, स्तम्भों, एवं दोनों विकर्णों में स्थित संख्याओं का योग समान होता है। इसे 'अंक यंत्र' भी कहते हैं। प्रत्येक पंक्ति, स्तम्भ या विकर्ण (diagonal) का योग माया नियतांक (magic constant) M कहलाता है। इसे 'माया योगफल' (मैजिक सम) भी कहते हैं। किसी सामान्य माया वर्ग का माया नियतांक केवल उसके कोटि n पर ही निर्भर है और इसका मान अतः n .

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रामानुजन अटकल

श्रीनिवास रामानुजन ने सन् १९१६ में एक गणितीय अटकल दिया जिसे रामानुजन् अटकल (Ramanujan conjecture) कहते हैं। इस अटकल के अनुसार १२ भार वाले \Delta(z) कस्प फॉर्म के फुरिए गुणांकों से बना रामानुजन टाऊ फलन (Ramanujan's tau function) (where q.

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रामानुजन-नागेल समीकरण

गणित में संख्या सिद्धान्त के अन्तर्गत रामानुजन-नागेल समीकरण (Ramanujan–Nagell equation) चरघातांकी डियोफैंटीय समीकरण का एक विशेष रूप है। .

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स्वयंपाठी

जब कोई विद्यार्थी बिना किसी विद्यालय तथा बिना किसी शिक्षक के द्वारा पढ़ाई करता है तथा स्वयंपाठी का फार्म भर कर पढ़ाई करता है तो उन्हें स्वयंपाठी कहा जाता है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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गणित का इतिहास

ब्राह्मी अंक, पहली शताब्दी के आसपास अध्ययन का क्षेत्र जो गणित के इतिहास के रूप में जाना जाता है, प्रारंभिक रूप से गणित में अविष्कारों की उत्पत्ति में एक जांच है और कुछ हद तक, अतीत के अंकन और गणितीय विधियों की एक जांच है। आधुनिक युग और ज्ञान के विश्व स्तरीय प्रसार से पहले, कुछ ही स्थलों में नए गणितीय विकास के लिखित उदाहरण प्रकाश में आये हैं। सबसे प्राचीन उपलब्ध गणितीय ग्रन्थ हैं, प्लिमपटन ३२२ (Plimpton 322)(बेबीलोन का गणित (Babylonian mathematics) सी.१९०० ई.पू.) मास्को गणितीय पेपाइरस (Moscow Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित (Egyptian mathematics) सी.१८५० ई.पू.) रहिंद गणितीय पेपाइरस (Rhind Mathematical Papyrus)(इजिप्ट का गणित सी.१६५० ई.पू.) और शुल्बा के सूत्र (Shulba Sutras)(भारतीय गणित सी. ८०० ई.पू.)। ये सभी ग्रन्थ तथाकथित पाईथोगोरस की प्रमेय (Pythagorean theorem) से सम्बंधित हैं, जो मूल अंकगणितीय और ज्यामिति के बाद गणितीय विकास में सबसे प्राचीन और व्यापक प्रतीत होती है। बाद में ग्रीक और हेल्लेनिस्टिक गणित (Greek and Hellenistic mathematics) में इजिप्त और बेबीलोन के गणित का विकास हुआ, जिसने विधियों को परिष्कृत किया (विशेष रूप से प्रमाणों (mathematical rigor) में गणितीय निठरता (proofs) का परिचय) और गणित को विषय के रूप में विस्तृत किया। इसी क्रम में, इस्लामी गणित (Islamic mathematics) ने गणित का विकास और विस्तार किया जो इन प्राचीन सभ्यताओं में ज्ञात थी। फिर गणित पर कई ग्रीक और अरबी ग्रंथों कालैटिन में अनुवाद (translated into Latin) किया गया, जिसके परिणाम स्वरुप मध्यकालीन यूरोप (medieval Europe) में गणित का आगे विकास हुआ। प्राचीन काल से मध्य युग (Middle Ages) के दौरान, गणितीय रचनात्मकता के अचानक उत्पन्न होने के कारण सदियों में ठहराव आ गया। १६ वीं शताब्दी में, इटली में पुनर् जागरण की शुरुआत में, नए गणितीय विकास हुए.

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गॉडफ्रे हेरॉल्ड हार्डी

गॉडफ्रे हेरॉल्ड "जी एच" हार्डी (7 फ़रवरी 1877 - 1 दिसम्बर 1947, Godfrey Harold "G.) एक अंग्रेज गणितज्ञ थे जो संख्या सिद्धांत और गणितीय विश्लेषण में उनकी उपलब्धियों के लिए जाना जाते हैं। वह भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के गुरू थे। .

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इरोड जिला

ईरोड भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु का एक जिला है। तमिळनाडु के पश्चिमोत्तर भाग में स्थित यह जिला सेलम तथा कोयम्बटूर के मध्य आता है। 31 अगस्त, 1979 को इसे कोयम्बटूर ज़िले के विभाजनस्वरूप बनाया गया था। २००१ की जनगणना के मुताबिक इसकी जनसंख्या २५ लाख थी और साक्षरता दर ७५ प्रतिशत। यह ज़िला तमिल समाज सुधारक पेरियार (इ वी रामास्वामी) तथा प्रसिद्ध गणितज्ञ रामानुजन का जन्म स्थान है। इसके उत्तर में कर्नाटक है तथा इसकी पूर्वी सीमा कावेरी नदी से निर्धारित होती है। कावेरी नदी के पार सेलम, नमक्कल तथा करुर के जिले हैं। श्रेणी:तमिलनाडु श्रेणी:तमिलनाडु के जिले.

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१७२९ (संख्या)

संख्या 1729 को रामानुजन संख्या या हार्डी-रामानुजन संख्या कहा जाता है। यह वह संख्या है जिसे दो संख्याओं के घनों के योग के बराबर लिखा जा सकता है। इस प्रकार का गुण रखने वाली बहुत ही कम अन्य संख्याएँ हैं। श्रीनिवास रामानुजन् एक प्रकार से संख्याओं के जादूगर थे। संख्याओं के साथ उनका गहरा संबंध था। हम कह सकते हैं कि वे संख्याओं के साथ खेलते थे। श्रीनिवास रामानुजन जब इंग्लैंड में थे तो अक्सर बीमार रहते थे। उनके परामर्शदाता जी.एच.

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१८८७

1887 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

एस. रामानुजन, भारत के गौरव - श्रीनिवास रामानुजन, रामानुजन, श्रीनिवास रामानुज, श्रीनिवास रामानुजन

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