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शैवसिद्धान्त

सूची शैवसिद्धान्त

शैवसिद्धान्त, आगम शैव सम्प्रदाय तथा वैदिक शैव सम्प्रदाय का सम्मिलित सिद्धान्त है। यह द्वैत सिद्धान्त है। शैवसिद्धान्त का लक्ष्य शिव की कृपा की प्राप्ति द्वारा ज्ञानी बनना है। .

7 संबंधों: तन्त्र, परमेश्वर, परशिव, पराशक्ति, हिन्दू दर्शन, कामिकागम, ॐ नमः शिवाय

तन्त्र

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित तंत्र या प्रणाली या सिस्टम के बारे में तंत्र (सिस्टम) देखें। ---- तन्त्र कलाएं (ऊपर से, दक्षिणावर्त): हिन्दू तांत्रिक देवता, बौद्ध तान्त्रिक देवता, जैन तान्त्रिक चित्र, कुण्डलिनी चक्र, एक यंत्र एवं ११वीं शताब्दी का सैछो (तेन्दाई तंत्र परम्परा का संस्थापक तन्त्र, परम्परा से जुड़े हुए आगम ग्रन्थ हैं। तन्त्र शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत है। तन्त्र-परम्परा एक हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा तो है ही, जैन धर्म, सिख धर्म, तिब्बत की बोन परम्परा, दाओ-परम्परा तथा जापान की शिन्तो परम्परा में पायी जाती है। भारतीय परम्परा में किसी भी व्यवस्थित ग्रन्थ, सिद्धान्त, विधि, उपकरण, तकनीक या कार्यप्रणाली को भी तन्त्र कहते हैं। हिन्दू परम्परा में तन्त्र मुख्यतः शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है, उसके बाद शैव सम्प्रदाय से, और कुछ सीमा तक वैष्णव परम्परा से भी। शैव परम्परा में तन्त्र ग्रन्थों के वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं। बौद्ध धर्म का वज्रयान सम्प्रदाय अपने तन्त्र-सम्बन्धी विचारों, कर्मकाण्डों और साहित्य के लिये प्रसिद्ध है। तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र”। जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है। तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है जिसका विकास प्रथम सहस्राब्दी के मध्य के आसपास हुआ। साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्राचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं। यूरोपीय विद्वानों ने अपने उपनिवीशवादी लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तन्त्र को 'गूढ़ साधना' (esoteric practice) या 'साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड' बताकर भटकाने की कोशिश की है। वैसे तो तन्त्र ग्रन्थों की संख्या हजारों में है, किन्तु मुख्य-मुख्य तन्त्र 64 कहे गये हैं। तन्त्र का प्रभाव विश्व स्तर पर है। इसका प्रमाण हिन्दू, बौद्ध, जैन, तिब्बती आदि धर्मों की तन्त्र-साधना के ग्रन्थ हैं। भारत में प्राचीन काल से ही बंगाल, बिहार और राजस्थान तन्त्र के गढ़ रहे हैं। .

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परमेश्वर

परमेश्वर का शाब्दिक अर्थ 'परम ईश्वर' है। .

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परशिव

शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा (अंडाकार भाग) परशिव का प्रतिनिधित्व करता है परशिव भगवान शिव के तीन पहलुओं में से एक है। शैव सिद्धांत के अनुसार जो शैव सम्प्रदाय का हिस्सा है; परशिव संपूर्ण वास्तविकता (अतत्त्व) है जो मानव समझ और समस्त विशेषताओं से परे है।  इस पहलू में भगवान शिव शाश्वत, निराकार (बिना आकार के) और अनंत हैं। शैव सम्प्रदाय धर्मशास्त्र के अनुसार, परशिव इस ब्रह्मांड के समस्त वस्तुओं का स्रोत और मंज़िल है। शैव सम्प्रदाय के परशिव का सिद्धान्त, वैष्णव सम्प्रदाय के 'महाविष्णु' के सिद्धान्त, शाक्त सम्प्रदाय के 'आदि पराशक्ति' के सिद्धान्त, एवं स्मार्त सम्प्रदाय के 'निर्गुण ब्रह्म/परब्रह्म' सिद्धान्त जैसा है। शैव सिद्धांत के अनुसार भगवान शिव के अन्य दो पहलु पराशक्ति और परमेश्वर हैं।  शिवलिंग का निचला हिस्सा पराशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जबकि ऊपरी हिस्सा (अंडाकार भाग) परशिव का प्रतिनिधित्व करता है। परशिव शैव दर्शन के 36 तत्त्वों से परे है। श्रेणी:लेख जिनमें July 2009 से स्रोतहीन कथन हैं श्रेणी:सभी लेख जिनमें स्रोतहीन कथन हैं .

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पराशक्ति

शिवलिंग का निचला हिस्सा पराशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है  पराशक्ति  भगवान शिव के तीन पहलुओं में से एक है। इसका अर्थ "सर्वोच्च ऊर्जा" या "श्रेष्ठ शक्ति" है। शैव सिद्धांत के अनुसार जो शैव सम्प्रदाय का हिस्सा है; पराशक्ति सर्वव्यापी, शुद्ध चेतना, सर्वोच्च शक्ति है और समस्त वस्तुओं का मूल पदार्थ है। शैव सम्प्रदाय हिंदू धर्म के 4 प्रमुख संप्रदाय में से एक है। परशिव के विपरीत पराशक्ति का आकार है (परशिव निराकार है)। भगवान शिव के अन्य दो पहलु परशिव और परमेश्वर हैं।  शिवलिंग का निचला हिस्सा पराशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है जबकि ऊपरी हिस्सा (अंडाकार भाग) परशिव का प्रतिनिधित्व करता है। .

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हिन्दू दर्शन

हिन्दू धर्म में दर्शन अत्यन्त प्राचीन परम्परा रही है। वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं। .

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कामिकागम

कामिकागम या कामिकातन्त्र १२वीं शताब्दी में रचित एक सम्स्कृत ग्रन्थ है। यह शैवसिद्धान्त नामक सम्प्रदाय का ग्रन्थ है। इसके दो भाग हैं- पूर्वभाग तथा उत्तरभाग। अध्यायों की कुल संख्या ७५ है। श्रेणी:संस्कृत ग्रन्थ.

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ॐ नमः शिवाय

देवनागरी लिपि में "ॐ नमः शिवाय" मंत्र लैटिन लिपि) इस रूप में प्रकट हुआ है ॐ नमः शिवाय (IAST: Om Namaḥ Śivāya) यह सबसे लोकप्रिय हिंदू मंत्रों में से एक है और शैव सम्प्रदाय का महत्वपूर्ण मंत्र है। नमः शिवाय का अर्थ "भगवान शिव को नमस्कार" या "उस मंगलकारी को प्रणाम!" है। इसे शिव पञ्चाक्षर मंत्र या पञ्चाक्षर मंत्र भी कहा जाता है, जिसका अर्थ "पांच-अक्षर" मंत्र (ॐ को छोड़ कर) है। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह मंत्र श्री रुद्रम् चमकम् और रुद्राष्टाध्यायी में "न", "मः", "शि", "वा" और "य" के रूप में प्रकट हुआ है। श्री रुद्रम् चमकम्, कृष्ण यजुर्वेद का हिस्सा है और रुद्राष्टाध्यायी, शुक्ल यजुर्वेद का हिस्सा है। श्रेणी:ग़ैर हिन्दी भाषा पाठ वाले लेख पञ्चाक्षर के रूप में 'नमः शिवाय' मंत्र त्रिपुण्ड्र से सजा हुआ शिवलिंग  .

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शैव सिद्धान्त, शैव सिद्धांत

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