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शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अंतरराष्ट्रीय संघ

सूची शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अंतरराष्ट्रीय संघ

IUPAC प्रतीक चिन्ह शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अन्तरराष्ट्रीय संघ ((IUPAC: इंटरनैशनल यूनियन फॉर प्योर एंड एप्लाइड केमिस्ट्री) उच्चारणः आइ-यू-पैक)) एक गैर सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1919 में रसायन शास्त्र की उन्नति के लिए की गयी थी। इसके सदस्य राष्ट्रीय रसायन समितियाँ हैं। यह संगठन रासायनिक तत्वों और उनके यौगिकों के नामकरण के लिए मानक विकसित करने के लिए अधिकृत है, जो यह इसकी नाम और चिह्न की अन्तर्विभागीय समिति (आइ यू पी ए सी नॉमेनक्लॅचर) के माध्यम से करता है। यह अन्तरराष्ट्रीय विज्ञान परिषद (आई सी एस यू) का भी एक सदस्य है। .

16 संबंधों: एल्कीन, ऐक्टिनाइड, डार्मस्टाडियम, निस्तापन, पॉलीमर, मैकरोसायकिल, रोमन संख्यांक, लिवरमोरियम, संक्रमण धातु, सोडियम बाईकार्बोनेट, वायुमंडलीय दाब, आइ. यू. पी. ए. सी. नाम, कार्बनिक रसायनों की आईयूपीएसी नामपद्धति, अभिक्रिया की दर, अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल, अकार्बनिक यौगिकों की सूची

एल्कीन

सरलतम एल्कीन इथाइलीन का एक त्रिआयामी निदर्श कार्बनिक रसायन में, एक एल्कीन, ओलेफिन, या ओलेफाइन एक असंतृप्त रासायनिक यौगिक होता है जिसमे कम से कम एक कार्बन-से-कार्बन का द्वि-बन्ध होता है। सरलतम अचक्रीय एल्कीन वह होते हैं जिसमे सिर्फ एक द्वि-बन्ध होता है तथा अन्य कोई क्रियाशील समूह नहीं होता, यह मिलकर एक समरूप हाइड्रोकार्बन श्रृंखला की रचना करते हैं जिसका साधारण सूत्र (फार्मूला) CnH2n होता है। सरलतम एल्कीन, इथाइलीन (C2H4) है जिसका (IUPAC: शुद्ध और अनुप्रयोगिक रसायन का अंतरराष्ट्रीय संघ) नाम इथीन (ethane) है। एल्कीनों को ओलेफिन भी कहा जाता है, (यह इसका एक पुराना पर्याय जो पैट्रोरसायन उद्योग में व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है)। एरोमैटिक (सुरभित) यौगिकों को अक्सर चक्रीय एल्कीन का रूप माना जाता है, लेकिन उनकी संरचना और गुण इससे भिन्न होते हैं और वे एल्कीन नहीं होते। .

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ऐक्टिनाइड

एक्टिनॉएड ((आईयूपीएसी नामकरण) या एक्टिनाइड (परंपरागत वृहत प्रयोगनीय नामकरण) एक १५ रासायनिक तत्त्वओं की श्रेणी होती है, जो एक्टिनियम से लेकर लॉरेन्शियम तक आवर्त सारणी में पाये जाते हैं। इनके परमाणु संख्या ८९ - १०३ तक होते हैं। इस श्रेणी का नाम इसके प्रथम सदस्य एक्टीनियम के नाम पर रखा गया है। .

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डार्मस्टाडियम

डार्मस्टाडियम (अंग्रेज़ी:Darmstadtium) एक रासायनिक तत्व है। इसे Ds से प्रदर्शित किया जाता है। इसका परमाणु क्रमांक 110 है। यह एक अति रेडियोधर्मी पदार्थ है। इसका अर्धायु काल लगभग 10 सेकंड का होता है। इस पदार्थ का खोज वर्ष 1994 में डर्मस्टाद्ट, जर्मनी में रहने कुछ वैज्ञानिकों ने किया। .

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निस्तापन

निस्तापन (calcination या calcining) की सही परिभाषा पर मतैक्य नहीं है। आईयूपीएसी के अनुसार, वायु या ऑक्सीजन की उपस्थिति में उच्च ताप तक गरम करना निस्तापन है। किन्तु वायु या आक्सीजन की सीमित उपस्थिति में किया जाने वाला उष्मा उपचार भी निस्तापन कहलाता है। श्रेणी:रासायनिक प्रक्रम श्रेणी:धातुकार्मिक प्रक्रम.

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पॉलीमर

रिअल लीनिअर पॉलीमर कड़ियां, जो परमाणिव्क बल सूक्ष्मदर्शी द्वारा तरल माध्यम के अधीन देखी गयी हैं। इस बहुलक की चेन लंबाई ~२०४ नैनो.मीटर; मोटाई is ~०.४ नै.मी.वाई.रोइटर एवं एस.मिंको, http://dx.doi.org/10.1021/ja0558239 ईफ़एम सिंगल मॉलिक्यूल एक्स्पेरिमेंट्स ऐट सॉलिड-लिक्विड इंटरफ़ेस, अमरीकन कैमिकल सोसायटी का जर्नल, खण्ड १२७, ss. 45, pp. 15688-15689 (2005) वहुलक या पाॅलीमर बहुत अधिक अणु मात्रा वाला कार्बनिक यौगिक होता है। यह सरल अणुओं जिन्हें मोनोमर कहा जाता; के बहुत अधिक इकाईयों के पॉलीमेराइजेशन के फलस्वरूप बनता है।। नैनोविज्ञान। वर्ल्डप्रेस पर पॉलीमर में बहुत सारी एक ही तरह की आवर्ती संरचनात्मक इकाईयाँ यानि मोनोमर संयोजी बन्ध (कोवैलेन्ट बॉण्ड) से जुड़ी होती हैं। सेल्यूलोज, लकड़ी, रेशम, त्वचा, रबर आदि प्राकृतिक पॉलीमर हैं, ये खुली अवस्था में प्रकृति में पाए जाते हैं तथा इन्हें पौधों और जीवधारियों से प्राप्त किया जाता है। इसके रासायनिक नामों वाले अन्य उदाहरणों में पालीइथिलीन, टेफ्लान, पाॅली विनाइल क्लोराइड प्रमुख पाॅलीमर हैं। कृत्रिम या सिंथेटिक पॉलीमर मानव निर्मित होते हैं। इन्हें कारखानों में उत्पादित किया जा सकता है। प्लास्टिक, पाइपों, बोतलों, बाल्टियों आदि के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली पोलीथिन सिंथेटिक पॉलीमर है। बिजली के तारों, केबलों के ऊपर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक कवर भी सिंथेटिक पॉलीमर है। फाइबर, सीटकवर, मजबूत पाइप एवं बोतलों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली प्रोपाइलीन भी सिंथेटिक पॉलीमर है। वाल्व सील, फिल्टर क्लॉथ, गैस किट आदि टेफलॉन से बनाए जाते हैं। सिंथेटिक रबर भी पॉलीमर है जिससे मोटरगाड़ियों के टायर बनाए जाते हैं। हॉलैंड के वैज्ञानिकों के अनुसार मकड़ी में उपस्थित एक डोप नामक तरल पदार्थ उसके शरीर से बाहर निकलते ही एकप प्रोटीनयुक्त पॉलीमर के रूप में जाला बनाता है। पॉलीमर शब्द का प्रथम प्रयोग जोंस बर्जिलियस ने १८३३ में किया था। १९०७ में लियो बैकलैंड ने पहला सिंथेटिक पोलीमर, फिनोल और फॉर्मएल्डिहाइड की प्रक्रिया से बनाया। उन्होंने इसे बैकेलाइट नाम दिया। १९२२ में हर्मन स्टॉडिंगर को पॉलीमर के नए सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले यह माना जाता था कि ये छोटे अणुओं का क्लस्टर है, जिन्हें कोलाइड्स कहते थे, जिसका आण्विक भार ज्ञात नहीं था। लेकिन इस सिद्धांत में कहा गया कि पाॅलीमर एक शृंखला में कोवेलेंट बंध द्वारा बंधे होते हैं। पॉलीमर शब्द पॉली (कई) और मेरोस (टुकड़ों) से मिलकर बना है। एक ही प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को होमोपॉलीमर कहते हैं। जैसे पॉलीस्टायरीन का एकमात्र मोनोमर स्टायरीन ही है। भिन्न प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को कोपॉलीमर कहते हैं। जैसे इथाइल-विनाइल-एसीटेट भिन्न प्रकार के मोनोमरों से बनता है। भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा जा सकता है: right.

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मैकरोसायकिल

इरिथ्रोमाइसिन का एक उदाहरण है एक स्वाभाविक रूप से होने वाली macrocycle के औषधीय महत्व है। एक macrocycle है, के रूप में द्वारा परिभाषित आईयूपीएसी, "एक चक्रीय macromolecule या एक macromolecular चक्रीय हिस्से के एक अणु है." में रासायनिक साहित्य, macrocycles varyingly शामिल अणुओं युक्त छल्ले के 8 या अधिक परमाणुओं,Still, W. C.; Galynker, I. Tetrahedron 1981, 37, 3981-3996.

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रोमन संख्यांक

रोमन संख्यांक द्वारा दर्शायी गयी संख्यांक पद्धत्ति का प्राचीन रोम में उद्गम हुआ और भली भांति उत्तर मध्य युग में पूर्ण यूरोप में संख्याओं को लिखना का सामान्य तरीका बना रहा। ऑस्ट्रिया के लोफ़र नामक शहर में एक गिरजे के ऊपर उसके निर्माण की तिथि रोमन अंकों में तराशी हुई है - MDCLXXVIII का अर्थ सन् १६७८ है रोमन अंक प्राचीन रोम की संख्या प्रणाली है, जिसमें लातिनी भाषा के अक्षरों को जोड़कर संख्याएँ लिखी जाती थीं। पहले दस रोमन अंक इस प्रकार हैं - .

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लिवरमोरियम

लिवरमोरियम एक अति भारी तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक 116 है। यह एक रेडियोसक्रियता वाला तत्व है, जिसे केवल प्रयोगशाला में ही बनाया जाता है और प्रकृति में इसकी कोई उपस्थिति नहीं होती है। इसके नाम को आईयूपीएसी ने 30 मई 2012 को अपनाया था। इसका द्रव्यमान संख्या 290 और 293 के मध्य होता है। इसका अर्धायु काल 60 मिलीसेकंड (0.001 सेकंड) का होता है। .

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संक्रमण धातु

परमाणु संख्या २१ से ३०, ३९ से ४८, ५७ से ८० और ८९ से ११२ वाले रासायनिक तत्त्व संक्रमण तत्व (transition elements/ट्राँज़िशन एलिमेंट्स) कहलाते हैं। चूँकि ये सभी तत्त्व धातुएँ हैं, इसलिये इनको संक्रमण धातु भी कहते हैं। इनका यह नाम आवर्त सारणी में उनके स्थान के कारण पड़ा है क्योंकि प्रत्येक पिरियड में इन तत्त्वों के d ऑर्बिटल में इलेक्ट्रान भरते हैं और 'संक्रमण' होता है। आईयूपीएसी (IUPAC) ने इनकी परिभाषा यह दी है- वे तत्त्व जिनका d उपकक्षा अंशतः भरी हो। इस परिभाषा के अनुसार, जस्ता समूह के तत्त्व संक्रमण तत्त्व नहीं हैं क्योंकि उनकी संरचना d10 है। .

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सोडियम बाईकार्बोनेट

सोडियम बाईकारोनेट के अणु की संरचना सोडियम बाई कार्बोनेट सोडियम बाईकार्बोनेट एक अकार्बनिक यौगिक है। इसे मीठा सोडा या 'खाने का सोडा' (बेकिंग सोडा) भी कहते हैं क्योंकि विभिन्न व्यंजनों को बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। इसका अणुसूत्र NaHCO3 है। इसका आईयूपीएसी नाम 'सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट' है। .

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वायुमंडलीय दाब

ऊँचाई बढ़ने पर वायुमण्डलीय दाब का घटना (१५ डिग्री सेल्सियस); भू-तल पर वायुमण्डलीय दाब १०० लिया गया है। वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी के वायुमंडल में किसी सतह की एक इकाई पर उससे ऊपर की हवा के वजन द्वारा लगाया गया बल है। अधिकांश परिस्थितियों में वायुमंडलीय दबाव का लगभग सही अनुमान मापन बिंदु पर उसके ऊपर वाली हवा के वजन द्वारा लगाए गए द्रवस्थैतिक दबाव द्वारा लगाया जाता है। कम दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता है, जबकि अधिक दबाव वाले क्षेत्रों में उन स्थानों के ऊपर अधिक वायुमंडलीय द्रव्यमान होता है। इसी प्रकार, जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है उस स्तर के ऊपर वायुमंडलीय द्रव्यमान कम होता जाता है, इसलिए बढ़ती ऊंचाई के साथ दबाव घट जाता है। समुद्र तल से वायुमंडल के शीर्ष तक एक वर्ग इंच अनुप्रस्थ काट वाले हवा के स्तंभ का वजन 6.3 किलोग्राम होता है (और एक वर्ग सेंटीमीटर अनुप्रस्थ काट वाले वायु स्तंभ का वजन एक किलोग्राम से कुछ अधिक होता है)। .

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आइ. यू. पी. ए. सी. नाम

आइ.

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कार्बनिक रसायनों की आईयूपीएसी नामपद्धति

300px वर्तमान समय में कार्बनिक यौगिकों के नामकरण की सबसे नवीन और सबसे प्रचलित पद्धति आईयूपीएसी द्वारा प्रवर्तित पद्धति है। यह एक अत्यन्त क्रमबद्ध और तर्कपूर्ण पद्धति है। इसका प्रकाशन 'नॉमन्क्लेचर ऑफ ऑर्गैनिक केमेस्ट्री' नामक पुस्तक में होता है जिसे 'ब्लू बुक' भी कहते हैं। आईयूपीएसी ने अकार्बनिक यौगिकों के नामकरण की पद्धति भी सुझायी है। आदर्श रूप में, सभी कार्बनिक यौगिकों का नाम रखा जाना आवश्यक है जिससे उसका असंदिग्ध संरचना सूत्र बनाया जा सके। किन्तु सामान्य व्यवहार में कभी-कभी आईयूपीएसी द्वारा संस्तुत नामों का उपयोग नहीं किया जाता है। ऐसा प्रायः भारी-भरकम नाम से बचने के लिए किया जाता है। प्रायः कार्बनिक यौगिकों के सामान्य नाम प्रयोग किए जाते हैं जो उस यौगिक के प्राप्ति के स्रोयत के नाम से व्युत्पन्न होते हैं। .

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अभिक्रिया की दर

लोहे पर जंग लगना - कम अभिक्रिया दर वाली रासायनिक अभिक्रिया है। लकड़ी का जलना - तीव्र अभिक्रिया दर वाली रासायनिक अभिक्रिया अभिक्रिया की दर (reaction rate या rate of reaction) का मतलब यह है कि किसी दी हुई रासायनिक अभिक्रिया में किसी अभिकारक या उत्पाद की मात्रा कितना धीमे या कितनी तेजी से बदल रही है। भौतिक रसायन के अन्तर्गत रासायनिक गतिकी (Chemical kinetics) में अभिक्रिया की दर का अध्ययन किया जाता है। 'अभिक्रिया की दर' का रासायनिक इंजीनियरी एवं अन्य रासायनिक विधाओं में बहुत महत्व है। .

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अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल

α-लिनोलेनिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक होता है, जो कई सामान्य वनस्पति तेलों में पाया जाटा है। आईयूपीएसी नामकरण पद्धति के अनुसार इसे ऑल-सिस-9,12,15-octadecatrienoic acid.

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अकार्बनिक यौगिकों की सूची

इस सूची में अधिकांश रासायनिक यौगिकों के नाम आईयूपीएसी (IUPAC) नाम दिये गये हैं किन्तु कहीं-कहीं उनके पारम्परिक नाम भी साथ में दे दिये गये हैं।.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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