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शुक्र

सूची शुक्र

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है। ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है। चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है। चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है। शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है। 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते हैलेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |B.M. Jakosky, "Atmospheres of the Terrestrial Planets", in Beatty, Petersen and Chaikin (eds), The New Solar System, 4th edition 1999, Sky Publishing Company (Boston) and Cambridge University Press (Cambridge), pp.

99 संबंधों: चेस्टर स्मिथ लीमन, चीचेन इट्ज़ा, टाइटन (चंद्रमा), ऍप्सिलन महाश्वान तारा, एनाग्रम, एफ्रोडाईट टेरा, ऐफ़्रोडाइटी, डी.एच. लॉरेन्स, तंत्रसंग्रह, थिया (ग्रह), दानीलोवा क्रेटर (शुक्र ग्रह), नारी, नवग्रह, नक्षत्र, नेइथ, पलायन वेग, प्रसरकोण, प्रकाशीय दूरदर्शी, पृथ्वी द्रव्यमान, पृथ्वी का गुरूत्व, पृथ्वी का इतिहास, फलित ज्योतिष, बाजीकरण, बंधन (1998 फ़िल्म), बुध (ग्रह), बृहस्पति (ग्रह), बेपिकोलम्बो, बीटा रीजियो, भस्मवर्ण प्रकाश, भारतीय शुक्र आर्बिटर मिशन, भौतिकी की शब्दावली, भू-आकृति विज्ञान, भूपर्पटी, भूभौतिकी, मार्स, मंगल (ज्योतिष), मंगल ग्रह, मंगल का उपनिवेशण, मैजलन (अंतरिक्ष यान), मेरिनर 1, मेरिनर 10, मेसेंजर, मेसोअमेरिकी, याबलोचकिना क्रेटर (शुक्र ग्रह), लाल दानव तारा, लाजवर्द, लक्ष्मी प्लैनम, शनि (ज्योतिष), शनि (ग्रह), शुक्र (ज्योतिष), ..., शुक्र का भूविज्ञान, शुक्रवार, सिग्मा सैजिटेरियाइ तारा, संयोजन (खगोलशास्त्र), संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, स्थलीय ग्रह, सौर मण्डल, सौर मंडल के सबसे बड़े क्रेटरों की सूची, सूर्य देवता, सूर्य ग्रहण १५ जनवरी २०१०, सूर्यसिद्धान्त, सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम, होरा, जुड़वा (1997 फ़िल्म), जोंड 1, वृष राशि, वैदिक ज्योतिष, वेनेरा 1, वेनेरा 3, वेगा 1, वेगा 2, वीनस एक्सप्रेस, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, ग्रह, ग्रीनहाउस गैस, ओवडा रीजियो, आर्यभट, इश्तर, इश्तार टेरा, कन्या राशि, कक्षीय अवधि, क्यूपिड, क्रिश्चियन होरेबोव, कॅप्लर-२० तारा, कॅप्लर-२०ऍफ़, कॅप्लर-६९ तारा, , अपसौरिका, अम्मीसाडुका की शुक्र पटलिका, अर्ग, अर्कनोइड (खगोलभूविज्ञान), असुर, अवर एवं वरिष्ठ ग्रह, अंतरिक्ष विज्ञान, अकात्सुकी (अंतरिक्ष यान), अक्ना मोंटेस, उपसौर और अपसौर, १९८९, २२ नवम्बर सूचकांक विस्तार (49 अधिक) »

चेस्टर स्मिथ लीमन

चेस्टर स्मिथ लीमन (Chester Smith Lyman) (13 जनवरी 1814 - 29 जनवरी 1890), एक अमेरिकी शिक्षक, पादरी और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने संयुक्त पारगमन यंत्र तथा शिरोबिंदु दूरबीन, जो हवाई सहित अक्षांश निर्धारण के लिए प्रयुक्त हुआ, का आविष्कार किया था। वें येल वेधशाला के प्रबंधकों के बोर्ड में थे और दिसंबर 1866 में जब ग्रह अवर संयोजन में था उन्होंने पहली बार शुक्र को घेरे हूए फीके छल्ले के प्रकाश को प्रेक्षित किया। इस प्रेक्षण ने ग्रह के चारों ओर वातावरण की उपस्थिति की पुष्टि में मदद की। उन्होंने 1867 में तरंग मशीन के एक डिजाइन का पेटेंट कराया। 1871 में वें एक ही संस्थान में भौतिकी और खगोल विज्ञान के एक प्रोफेसर बन गए, फिर जैसे ही उनका स्वास्थ्य गिरने लगा 1884 में पूरी तरह से खगोल विज्ञान के हो गए। सन् 1889 में वें अवकाश प्राप्त प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए। वें येल वेधशाला के निदेशक बने और अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहे। उनकी मृत्यु दौरे से हुई जिसने उन्हे अंतिम दो वर्षों के लिए घर तक सिमित कर दिया था। .

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चीचेन इट्ज़ा

केंद्रीय चिचेन इत्ज़ा का मानचित्र चीचेन इट्ज़ा या चिचेन इत्ज़ा (स्पेनी:Chichén Itzá यानि "इट्ज़ा के कुएं के मुहाने पर") कोलम्बस-पूर्व युग में माया सभ्यता द्वारा बनाया गया एक बड़ा शहर था। चीचेन इट्ज़ा, उत्तर शास्त्रीय से होते हुए अंतिम शास्त्रीय में और आरंभिक उत्तरशास्त्रीय काल के आरंभिक भाग में उत्तरी माया की तराई में एक प्रमुख केंद्र था। यह स्थल वास्तु शैलियों के विविध रूपों का प्रदर्शन करता है, जिसमें शामिल है "मेक्सीक्नाइज़ड" कही जाने वाली शैली और केंद्रीय मेक्सिको में देखी जाने वाली शैलियों की याद दिलाने वाले से लेकर उत्तरी तराई के पक माया के बीच पाई जाने वाली पक (Puuc) शैली.

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टाइटन (चंद्रमा)

टाइटन (या Τῑτάν), या शनि शष्टम, शनि ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह वातावरण सहित एकमात्र ज्ञातचंद्रमा है, और पृथ्वी के अलावा एकमात्र ऐसा खगोलीय पिंड है जिसके सतही तरल स्थानों, जैसे नहरों, सागरों आदि के ठोस प्रमाण उपलब्ध हों। यूरोपीय-अमेरिकी के कासीनी अंतरिक्ष यान के साथ गया उसका अवतरण यान हायगन्स, १६ जनवरी २००४ को, टाइटन के धरातल पर उतरा जहां उसने भूरे-नारंगी रंग में रंगे टाईटन के नदियों-पहाडों और झीलों-तालाबों वाले जो चित्र भेजे। टाइटन के बहुत ही घने वायुमंडल के कारण इससे पहले उसकी ऊपरी सतह को देख या उसके चित्र ले पाना संभव ही नहीं था। २००८ अगस्त के मध्य में ब्राज़ील की राजधानी रियो दी जनेरो में अंतरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ के सम्मेलन में ऐसे चित्र दिखाये गये और दो ऐसे शोधपत्र प्रस्तुत किये गये, जिनसे पृथ्वी के साथ टाइटन की समानता स्पष्ट होती है। ये चित्र और अध्ययन भी मुख्यतः कासीनी और होयगन्स से मिले आंकड़ों पर ही आधारित थे। .

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ऍप्सिलन महाश्वान तारा

महाश्वान तारामंडल (हिन्दी नामों के साथ) - ऍप्सिलन महाश्वान तारा ("अधारा") कुत्ते की आकृति के निचले पाऊँ पर स्थित है ऍप्सिलन महाश्वान या अधारा, जिसका बायर नाम "ऍप्सिलन कैनिस मेजोरिस" (ε Canis Majoris या ε CMa) है, महाश्वान तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से चौबीसवा सब से रोशन तारा भी है। यह पृथ्वी से लगभग 430 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। हालांकि की पृथ्वी से यह एक तारा लगता है, यह वास्तव में एक द्वितारा मंडल है। .

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एनाग्रम

एनाग्रम शब्दों का एक खेल है, जिसमें किसी शब्द या वाक्यांश के अक्षरों को पुनः व्यवस्थित करके एक नया शब्द या वाक्यांश बनाना होता है और इस खेल में सभी मूल अक्षरों का केवल एकबार उपयोग करने की अनुमति होती है; उदा.

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एफ्रोडाईट टेरा

एफ्रोडाईट टेरा (Aphrodite Terra), शुक्र ग्रह पर भूमध्य रेखा के पास का एक उच्चभूम क्षेत्र है। यह प्यार की देवी पर नामित है जो कि शुक्र के रोमन देवता ग्रीक के समकक्ष है। यह आकार में लगभग अफ्रीका के बराबर और इश्तार टेरा से बहुत मामूली है। सतह झुकी हुई और टूटीफूटी नजर आती है जिससे बड़े सम्पीड़क बलों का पता चलता है। वहां अनेक व्यापक लावा प्रवाह भी हैं। नहरें इस इलाके को पार करती है और उनमें से कुछ तो मनोरम धनुष आकार लिए हुए है। एफ्रोडाईट टेरा पर पर्वत श्रृंखला भी है लेकिन वे इश्तार पर स्थित पहाड़ों के महज आधे हैं। एफ्रोडाईट टेरा के दो मुख्य क्षेत्र है: पश्चिम में ओवडा रीजियो और पूर्व में थेटिस रीजियो। ओवडा रीजियो की मेड़े दो दिशाओं में चल रही है, जो बताती है कि सम्पीड़क बल कई दिशाओं में कार्य कर रहे हैं। वहां के श्याह क्षेत्र जमे हुए लावा प्रवाहों का होना नजर आते हैं। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र का भूगोल.

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ऐफ़्रोडाइटी

ऐफ़्रोडाइटी (अंग्रेज़ी::en:Aphrodite, यूनानी: आफ्रोदितै) प्राचीन यूनानी धर्म की प्रमुख देवियों में से एक थीं। वो प्रेम, ख़ूबसूरती और संभोग की देवी थीं। उनको बेहद ख़ूबसूरत माना जाता था और मिथकों के अनुसार उनकी उत्पत्ति युवतीरूप में ही समुद्र से हुई थी। प्राचीन रोमन धर्म में उनकी समतुल्य देवी थीं वीनस। श्रेणी:यूनान के देवी-देवता श्रेणी:यूनानी धर्म.

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डी.एच. लॉरेन्स

डेविड हर्बर्ट रिचर्ड्स लॉरेंस (11 सितंबर 1885 – 2 मार्च 1930) एक अंग्रेजी उपन्यासकार, कवि, नाटककार, निबंधकार, साहित्यिक आलोचक और चित्रकार थे, जो डी.

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तंत्रसंग्रह

300px तंत्रसंग्रह नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा संस्कृत में रचित खगोलशास्त्रीय ग्रंथ है। यह ग्रंथ 1501 ई में पूर्ण हुआ। इसमें 432 श्लोक हैं जो आठ अध्यायों में विभक्त हैं। इस ग्रन्थ में ग्रहों की गति के पारम्परिक मॉडल के स्थान पर परिस्कृत मॉडल प्रस्तुत किया गया है। इसकी दो टीकाएँ ज्ञात हैं- पहली तंत्रसंग्रहव्याख्या (रचनाकार अज्ञात) तथा युक्तिभाषा (ज्येष्ठदेव द्वारा लगभग १५५० ई में रचित)। तंत्रसंग्रह में नीलकण्ठ सोमयाजि ने बुध और शुक्र ग्रहों की गति का आर्यभट द्वारा प्रस्तुत मॉडल को पुनः सामने रखा। इस ग्रन्थ में दिया हुआ इन दो ग्रहों के केन्द्र का समीकरण १७वीं शताब्दी में केप्लर के पहले तक सबसे शुद्ध मान देता था। .

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थिया (ग्रह)

थिया (अंग्रेजी: Theia, यूनानी: Θεία), प्रारंभिक सौर प्रणाली में, एक अनुमानित प्राचीन ग्रह-द्रव्यमान वस्तु है, जो कि भीमकाय टक्कर परिकल्पना के अनुसार, 4.5 अरब साल पहले एक अन्य ग्रह-द्रव्यमान वस्तु गाया (प्रारंभिक पृथ्वी) के साथ टकराई थी। परिकल्पना के अनुसार थीया, मंगल ग्रह के आकार का एक पिंड था, जिसका व्यास लगभग 6,102 किमी (3,792 मील) था। कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स के भूगर्भ वैज्ञानिक एडवर्ड यंग ने अपोलो मिशनों 12, 15, और 17 द्वारा एकत्रित चट्टानों के विश्लेषण पर चित्रण करते हुए प्रस्तावित किया कि थिया, पृथ्वी के साथ टकराया था, जो एक पिछले सिद्धांत चमकदार प्रभाव के विपरीत है। टक्कर के मॉडल प्रकट करते हैं कि प्रारंभिक चंद्रमा के निर्माण के लिए, थिया का मलबा पृथ्वी के चारों ओर इकट्ठा हो गया था। टक्कर के बाद, थिया के मलबे से पृथ्वी के चारों ओर चमकीले वलय बन गए थे, जो वर्तमान में शनि ग्रह के वलय के समान प्रतीत होते थे। कुछ समय पश्चात, ये वलय पृथ्वी की रोश सीमा से बाहर निकाल गए तथा वलय में उपस्थित पिंडों के संगठन से चंद्रमा का निर्माण हुआ। कुछ वैज्ञानिकों का मानना ​है कि कक्षा में उपस्थित मलबे से मूल रूप से दो चंद्रमाओं का गठन हुआ था जो बाद में एक ही चंद्रमा को बनाने के लिए विलय हो गए थे जिसे हम आज जानते हैं। थिया परिकल्पना यह भी बताती है कि चंद्रमा की अपेक्षा पृथ्वी का कोर क्यों बड़ा होगा: परिकल्पना के अनुसार, थिया की कोर और मैंटल, पृथ्वी की कोर के साथ मिश्रित है। .

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दानीलोवा क्रेटर (शुक्र ग्रह)

मैजलन यान के रेडार द्वारा लिया गया दानीलोवा क्रेटर का चित्र दानीलोवा (अंग्रेज़ी: Danilova, रूसी: Данилова) शुक्र ग्रह (वीनस) पर स्थित एक प्रहार क्रेटर है। इसका व्यास ४९ किमी है। यह एक तीन क्रेटरों के समुह में से एक है। शुक्र पर घने बादल हमेशा उस ग्रह को ढके रहते हैं इसलिए दानीलोवा क्रेटर के बारे में जानकारी केवल मेघ-भेदी रेडार द्वारा ही मिल पाई है। .

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नारी

नारी मानव की स्त्री को कहते हैं, जो नर का स्त्रीलिंग है। नारी शब्द मुख्यत: वयस्क स्त्रियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कई संदर्भो में मगर यह शब्द संपूर्ण स्त्री वर्ग को दर्शाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे: नारी-अधिकार। .

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नवग्रह

ग्रह (संस्कृत के ग्रह से - पकड़ना, कब्जे में करना) माता भूमिदेवी (पृथ्वी) के प्राणियों पर एक 'ब्रह्मांडीय प्रभावकारी' है। हिन्दू ज्योतिष में नवग्रह (संस्कृत: नवग्रह, नौ ग्रह या नौ प्रभावकारी) इन प्रमुख प्रभावकारियों में से हैं। राशि चक्र में स्थिर सितारों की पृष्ठभूमि के संबंध में सभी नवग्रह की सापेक्ष गतिविधि होती है। इसमें ग्रह भी शामिल हैं: मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, और शनि, सूर्य, चंद्रमा, और साथ ही साथ आकाश में अवस्थितियां, राहू (उत्तर या आरोही चंद्र आसंधि) और केतु (दक्षिण या अवरोही चंद्र आसंधि).

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नक्षत्र

आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुड़े हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदांग ज्योतिष में मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार ये नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रचेतापुत्र दक्ष की पुत्रियाँ तथा चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं। .

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नेइथ

नेइथ (Neith), एक खगोलीय वस्तु को दिया गया नाम है जिसे गियोवन्नी कैसिनी ने सर्वप्रथम देखा था। कैसिनी ने उसकी पहचान शुक्र के एक चांद के रूप में की थी। .

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पलायन वेग

कक्षाओं में पृथ्वी की परिक्रमा करने लगती हैं, केवल E की गति पलायन वेग से अधिक थी और वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षक जकड़ तोड़कर अंतरिक्ष में निकल जाती है भौतिकी में किसी वस्तु (जैसे की पृथ्वी) का पलायन वेग उस वेग को कहते हैं जिसपर यदि कोई दूसरी वस्तु (जैसे की कोई रॉकेट) पहली वस्तु से रवाना हो तो उसके गुरुत्वाकर्षण की जकड़ से बाहर पहुँच सकती है। यदि दूसरी वस्तु की गति पलायन वेग से कम हो तो वह या तो पहली वस्तु के गुरुत्वाकर्षक क्षेत्र में ही रहती है - या तो वह वापस आकर पहली वस्तु पर गिर जाती है या फिर उसके गुरुत्व क्षेत्र में सीमित रहकर किसी कक्षा में उसकी परिक्रमा करने लगती है। .

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प्रसरकोण

प्रसरकोण (Elongation), किसी पिंड के लिए वह कोण है जो पृथ्वी पर खड़े प्रेक्षक की दृष्टी में उस पिंड और सूर्य के बीच बनता है। पिंड का कोणांतर सूर्य के सापेक्ष मापा जाता है इसलिए इसे सूर्यांतर कोण भी कहा जाता है। .

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प्रकाशीय दूरदर्शी

आठ-इंच वाला अपवर्तक दूरदर्शी प्रकाशीय दूरदर्शी (optical telescope) ऐसा दूरदर्शक है जो दूरस्थ पिण्ड का आवर्धित प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिये विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम के दृश्य भाग का सहारा लेता है। (न कि एक्स-रे या रेडियो तरंगों का)। इससे प्राप्त प्रतिबिम्ब को सीधे आंख से देखा जा सकता है, फोटोग्राफ लिया जा सकता है या इलेक्ट्रानिक इमेज सेंसरों की सहायता से आंकड़े संचित किये जा सकते हैं। प्रकाशीय दूरदर्शी मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-.

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पृथ्वी द्रव्यमान

पृथ्वी के द्रव्यमान की नेप्चून के द्रव्यमान से तुलना. पृथ्वी द्रव्यमान (M⊕), द्रव्यमान की वह इकाई है जिसका मान पृथ्वी के द्रव्यमान के बराबर है | १ M⊕ .

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पृथ्वी का गुरूत्व

नासा (NASA) के ग्रेस (GRACE) मिशन द्वारा मापा गया धरती का गुरुत्व पृथ्वी के सतह के निकट किसी पिण्ड के इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का गुरुत्व कहलाता है। इसे g के रूप में निरूपित किया जाता है। यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। इसका मान लगभग 9.81 m/s2होता है। (ध्यान रहे कि G एक अलग है; यह गुरूत्वीय नियतांक है।) g का मान पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। g को त्वरण की भातिं भी समझा जा सकता है। यदि कोई पिंड पृथ्वी से ऊपर ले जाकर छोड़ा जाय और उस पर किसी प्रकार का अन्य बल कार्य न करे तो वह सीधा पृथ्वी की ओर गिरता है और उसका वेग एक नियत क्रम से बढ़ता जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण किसी पिंड में उत्पन्न होने वाली वेगवृद्धि या त्वरण को गुरूत्वजनित त्वरण कहते हैं। इसे अंग्रेजी अक्षर g द्वारा व्यक्त किया जाता है। ऊपर कहा जा चुका है कि इसे किसी स्थान पर गुरूत्व की तीव्रता भी कहते हैं। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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फलित ज्योतिष

फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है, तथापि साधारण लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का अर्थ ही लेते हैं। ग्रहों तथा तारों के रंग भिन्न-भिन्न प्रकार के दिखलाई पड़ते हैं, अतएव उनसे निकलनेवाली किरणों के भी भिन्न भिन्न प्रभाव हैं। इन्हीं किरणों के प्रभाव का भारत, बैबीलोनिया, खल्डिया, यूनान, मिस्र तथा चीन आदि देशों के विद्वानों ने प्राचीन काल से अध्ययन करके ग्रहों तथा तारों का स्वभाव ज्ञात किया। पृथ्वी सौर मंडल का एक ग्रह है। अतएव इसपर तथा इसके निवासियों पर मुख्यतया सूर्य तथा सौर मंडल के ग्रहों और चंद्रमा का ही विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी विशेष कक्षा में चलती है जिसे क्रांतिवृत्त कहते हैं। पृथ्वी फलित ज्योतिष उस विद्या को कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का निवासियों को सूर्य इसी में चलता दिखलाई पड़ता है। इस कक्षा के इर्द गिर्द कुछ तारामंडल हैं, जिन्हें राशियाँ कहते हैं। इनकी संख्या है। मेष राशि का प्रारंभ विषुवत् तथा क्रांतिवृत्त के संपातबिंदु से होता है। अयन की गति के कारण यह बिंदु स्थिर नहीं है। पाश्चात्य ज्योतिष में विषुवत् तथा क्रातिवृत्त के वर्तमान संपात को आरंभबिंदु मानकर, 30-30 अंश की 12 राशियों की कल्पना की जाती है। भारतीय ज्योतिष में सूर्यसिद्धांत आदि ग्रंथों से आनेवाले संपात बिंदु ही मेष आदि की गणना की जाती है। इस प्रकार पाश्चात्य गणनाप्रणाली तथा भारतीय गणनाप्रणाली में लगभग 23 अंशों का अंतर पड़ जाता है। भारतीय प्रणाली निरयण प्रणाली है। फलित के विद्वानों का मत है कि इससे फलित में अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि इस विद्या के लिये विभिन्न देशों के विद्वानों ने ग्रहों तथा तारों के प्रभावों का अध्ययन अपनी अपनी गणनाप्रणाली से किया है। भारत में 12 राशियों के 27 विभाग किए गए हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। ये हैं अश्विनी, भरणी आदि। फल के विचार के लिये चंद्रमा के नक्षत्र का विशेष उपयोग किया जाता है। .

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बाजीकरण

बाजीकरण, आयुर्वेद के आठ अंगों (अष्टांग आयुर्वेद) में से एक अंग है। इसके अन्तर्गत शुक्रधातु की उत्पत्ति, पुष्टता एवं उसमें उत्पन्न दोषों एवं उसके क्षय, वृद्धि आदि कारणों से उत्पन्न लक्षणों की चिकित्सा आदि विषयों के साथ उत्तम स्वस्थ संतोनोत्पत्ति संबंधी ज्ञान का वर्णन आते हैं। .

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बंधन (1998 फ़िल्म)

बंधन 1998 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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बुध (ग्रह)

बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह पर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है। बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बेपिकोलम्बो

बेपिकोलम्बो बुध ग्रह के लिए यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) का एक संयुक्त अभियान है। किसी कारणवश यह 2015 मेंप्रक्षेपित होगा। अभियान अभी भी योजना चरण में है इसलिए आगामी कुछ वर्षो के उपरांत वर्तमान विवरण में बदलाव हो सकता है। बजट की कमी और तकनीकी कठिनाइयों के कारण, मिशन के लैंडर भाग, बुध के भूतल तत्व (एमएसई) को रद्द कर दिया गया था। .

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बीटा रीजियो

बीटा रीजियो (Beta Regio), "ज्वालामुखी उदय" के रूप में जाना गया शुक्र ग्रह का एक क्षेत्र है। 3000 किलोमीटर आकलित,.

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भस्मवर्ण प्रकाश

भस्मवर्ण प्रकाश (Ashen light), एक सूक्ष्म चमक है जो शुक्र ग्रह की रात्रि पक्ष की तरफ से दिखाई देती है। यह बहुत हद तक चंद्रमा पर चांदनी के होने के समान है पर इसके चमकीलेपन में विशिष्टता नहीं होती है। यह पहली बार 9 जनवरी 1643 को खगोलविद् गिओवन्नी बतिस्ता रिक्कीओली द्वारा देखा गया | यह अक्सर सर विलियम हर्शेल, पैट्रिक मूर, डेल पी. क्रुइकशांक और विलियम के हार्टमैन सहित अनेकों शोधकर्ताओं द्वारा देखा गया है | श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:प्रकाश.

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भारतीय शुक्र आर्बिटर मिशन

भारतीय शुक्र ऑर्बिटर मिशन (Indian Venusian orbiter mission) शुक्र के वातावरण का अध्ययन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा शुक्र के लिए प्रस्तावित एक ऑर्बिटर है। यदि वित्त पोषित होता है, तो इसे 2017 और 2020 के बीच लॉन्च किया जाएगा। शुक्र के एक्सप्लोरेशन के लिए मिशन का उल्लेख 2017-18 के अनुदान ने स्पेस डिपार्टमेंट ने किया गया है। इसरो ने 2017 में बताया कि सरकार ने मिशन की योजना के लिए मंजूरी दे दी है। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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भू-आकृति विज्ञान

धरती की सतह भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) (ग्रीक: γῆ, ge, "पृथ्वी"; μορφή, morfé, "आकृति"; और λόγος, लोगोस, "अध्ययन") भू-आकृतियों और उनको आकार देने वाली प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है; तथा अधिक व्यापक रूप में, उन प्रक्रियाओं का अध्ययन है जो किसी भी ग्रह के उच्चावच और स्थलरूपों को नियंत्रित करती हैं। भू-आकृति वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करते हैं कि भू-दृश्य जैसे दिखते हैं वैसा दिखने के पीछे कारण क्या है, वे भू-आकृतियों के इतिहास और उनकी गतिकी को जानने का प्रयास करते हैं और भूमि अवलोकन, भौतिक परीक्षण और संख्यात्मक मॉडलिंग के एक संयोजन के माध्यम से भविष्य के बदलावों का पूर्वानुमान करते हैं। भू-आकृति विज्ञान का अध्ययन भूगोल, भूविज्ञान, भूगणित, इंजीनियरिंग भूविज्ञान, पुरातत्व और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में किया जाता है और रूचि का यह व्यापक आधार इस विषय के तहत अनुसंधान शैली और रुचियों की व्यापक विविधता को उत्पन्न करता है। पृथ्वी की सतह, प्राकृतिक और मानवोद्भव विज्ञान सम्बन्धी प्रक्रियाओं के संयोजन की प्रतिक्रिया स्वरूप विकास करती है और सामग्री जोड़ने वाली और उसे हटाने वाली प्रक्रियाओं के बीच संतुलन के साथ जवाब देती है। ऐसी प्रक्रियाएं स्थान और समय के विभिन्न पैमानों पर कार्य कर सकती हैं। सर्वाधिक व्यापक पैमाने पर, भू-दृश्य का निर्माण विवर्तनिक उत्थान और ज्वालामुखी के माध्यम से होता है। अनाच्छादन, कटाव और व्यापक बर्बादी से होता है, जो ऐसे तलछट का निर्माण करता है जिसका परिवहन और जमाव भू-दृश्य के भीतर या तट से दूर कहीं अन्य स्थान पर हो जाता है। उत्तरोत्तर छोटे पैमाने पर, इसी तरह की अवधारणा लागू होती है, जहां इकाई भू-आकृतियां योगशील (विवर्तनिक या तलछटी) और घटाव प्रक्रियाओं (कटाव) के संतुलन के जवाब में विकसित होती हैं। आधुनिक भू-आकृति विज्ञान, किसी ग्रह के सतह पर सामग्री के प्रवाह के अपसरण का अध्ययन है और इसलिए तलछट विज्ञान के साथ निकट रूप से संबद्ध है, जिसे समान रूप से उस प्रवाह के अभिसरण के रूप में देखा जा सकता है। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं विवर्तनिकी, जलवायु, पारिस्थितिकी, और मानव गतिविधियों से प्रभावित होती हैं और समान रूप से इनमें से कई कारक धरती की सतह पर चल रहे विकास से प्रभावित हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, आइसोस्टेसी या पर्वतीय वर्षण के माध्यम से। कई भू-आकृति विज्ञानी, भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की मध्यस्थता वाले जलवायु और विवर्तनिकी के बीच प्रतिपुष्टि की संभावना में विशेष रुचि लेते हैं। भू-आकृति विज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग में शामिल है संकट आकलन जिसमें शामिल है भूस्खलन पूर्वानुमान और शमन, नदी नियंत्रण और पुनर्स्थापना और तटीय संरक्षण। .

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भूपर्पटी

भूपर्पटी या क्रस्ट (अंग्रेज़ी: crust) भूविज्ञान में किसी पथरीले ग्रह या प्राकृतिक उपग्रह की सबसे ऊपर की ठोस परत को कहते हैं। यह जिस सामग्री का बना होता है वह इसके नीचे की भूप्रावार (मैन्टल) कहलाई जाने वाली परत से रसायनिक तौर पर भिन्न होती है। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी, शुक्र, बुध, मंगल, चन्द्रमा, आयो और कुछ अन्य खगोलीय पिण्डों के भूपटल ज़्यादातर ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं में बने हैं (यानि अंदर से उगले गये हैं)।, pp.

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भूभौतिकी

भूभौतिकी (Geophysics) पृथ्वी की भौतिकी है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी सारी समस्याओं की छानबीन होती है। साथ ही यह एक प्रयुक्त विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें भूमि समस्याओं और प्राकृतिक रूपों में उपलब्ध पदार्थों के व्यवहार की व्याख्या मूल विज्ञानों की सहायता से की जाती है। इसका विकास भौतिकी और भौमिकी से हुआ है। भूविज्ञानियों की आवश्यकता के फलस्वरूप नए साधनों के रूप में इसका जन्म हुआ। विज्ञान की शाखाओं या उपविभागों के रूप में भौतिकी, रसायन, भूविज्ञान और जीवविज्ञान को मान्यता मिले एक अरसा बीत चुका है। ज्यों-ज्यों विज्ञान का विकास हुआ, उसकी शाखाओं के मध्यवर्ती क्षेत्र उत्पन्न होते गए, जिनमें से एक भूभौतिकी है। उपर्युक्त विज्ञानों को चतुष्फलकी के शीर्ष पर निरूपित करें तो चतुष्फलक की भुजाएँ (कोर) नए विज्ञानों को निरूपित करती हैं। भूभौतिकी का जन्म भौमिकी एवं भौतिकी से हुआ है। .

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मार्स

The Portrait of a Man as the God Mars मार्स (अंग्रेज़ी::en:Mars, लातिनी: Mars मार्स) प्राचीन रोमन धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक थे। वो युद्ध के देवता थे और देवी वीनस के पति माने जाते थे। उनके समतुल्य प्राचीन यूनानी धर्म के देवता थे एरीस। मार्स के नाम पर ही माच महीने का नाम पड़ा है। श्रेणी:रोम के देवी-देवता श्रेणी:रोमन धर्म.

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मंगल (ज्योतिष)

भारतीय ज्योतिष में मंगल इसी नाम के ग्रह के लिये प्रयोग किया जाता है। इस ग्रह को अंगारक (यानि अंगारे जैसा रक्त वर्ण), भौम (यानि भूमि पुत्र) भी कहा जाता है। मंगल युद्ध का देवता कहलाता है और कुंवारा है। यह ग्रह मेष एवं वृश्चिक राशियों का स्वामी कहलाता है। मंगल रुचक महापुरुष योग या मनोगत विज्ञान का प्रदाता माना जाता है। इसे रक्त या लाल वर्ण में दिखाया जाता है एवं यह त्रिशूल, गदा, पद्म और भाला या शूल धारण किये दर्शाया जाता है। इसका वाहन भेड़ होता है एवं सप्तवारों में यह मंगलवार का शासक कहलाता है। .

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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मंगल का उपनिवेशण

मंगल उपनिवेशण की एक कला अवधारणा. मानव द्वारा मंगल का उपनिवेशण, अटकल और गंभीर अध्ययन का एक केंद्र बिंदु है, क्योंकि उसकी सतही परिस्थितियाँ और जल की उपलब्धता यकीनन मंगल ग्रह को सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा अन्य सबसे अधिक मेहमाननवाज ग्रह बनाता है| चंद्रमा को मानव उपनिवेशण के लिए पहले स्थान के रूप में प्रस्तावित किया गया है, लेकिन मंगल ग्रह के पास एक पतला वायुमंडल है, जो इसे मानव और अन्य जैविक जीवन की मेजबानी के लिए सामर्थ्य क्षमता देता है | संभावित उपनिवेशण स्थलों के रूप में, मंगल और चाँद दोनों के साथ नीचे गहरे गुरुत्वीय कूपों में उतरने के साथ साथ लागत और जोखिम का नुकसान भी जुडा है, जो क्षुद्रग्रहों को सौरमंडल में मानव के प्रारंभिक विस्तार के लिए एक और विकल्प बना सकता है| .

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मैजलन (अंतरिक्ष यान)

मैगलन अंतरिक्ष यान (Magellan spacecraft), एक 1035 किग्रा (2280 पौंड) वजन का रोबोटिक अंतरिक्ष यान था जिसे सिंथेटिक एपर्चर रडार का उपयोग करते हुए शुक्र की सतह के मानचित्रण और ग्रहीय गुरुत्वाकर्षण को मापने के लिए 4 मई 1989 को नासा द्वारा शुरू किया गया था। इसे वीनस राडार मैपर के रूप में भी जाना जाता है। Category:Missions to Venus Category:NASA space probes Category:Destroyed extraterrestrial probes Category:1989 in spaceflight Category:Space radars.

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मेरिनर 1

मेरिनर 1 (Mariner 1), अमेरिकी मेरिनर कार्यक्रम का पहला अंतरिक्ष यान था। 22 जुलाई 1962 को शुक्र फ्लाईबाई मिशन के रूप में उड़ान भरने के 294.5 सेकंड बाद 09:26:16 UT पर एक सीमा सुरक्षा अधिकारी द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया था। .

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मेरिनर 10

मेरिनर 10 (Mariner 10), एक अमेरिकी रोबोटिक अंतरिक्ष यान था जिसे 3 नवम्बर 1973 को बुध और शुक्र ग्रहों से होकर उड़ान भरने के लिए नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। मेरिनर 10 को मेरिनर 9 के करीब दो साल बाद प्रक्षेपित किया गया और यह मेरिनर कार्यक्रम अंतर्गत अंतिम अंतरिक्ष यान था। (मेरिनर 11 और 12 वॉयजर कार्यक्रम के लिए आवंटित किए गए थे और वॉयजर 1 और वॉयजर 2 से नामांकित किए गए थे) मिशन के उद्देश्य, बुध के पर्यावरण, वातावरण, सतह और पिंड की विशेषताओं का मापन करना और शुक्र की इसी तरह की छानबीन करना था। द्वितियक उद्देश्यों में अंतरग्रहीय माध्यम में प्रयोगों का प्रदर्शन करना और एक दोहरा-ग्रह गुरुत्वाकर्षण सहारा के साथ अनुभव प्राप्त करना था। श्रेणी:अंतरिक्ष यान.

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मेसेंजर

मेसेंजर (MESSENGER → MErcury Surface, Space ENvironment, GEochemistry, and Ranging), बुध ग्रह की परिक्रमा कर रहा नासा का एक रोबोटिक अंतरिक्ष यान है | ऐसा करने वाला यह कभी का पहला अंतरिक्ष यान भी है। .

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मेसोअमेरिकी

350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) 350 पीएक्स (px) पैलेंकी के क्लासिक माया शहर का दृश्य, जो 6 और 7 सदियों में सुशोभित हुआ, मेसोअमेरिकी सभ्यता की उपलब्धियों के कई उदाहरणों में से एक है ट्युटिहुकन के मेसोअमेरिकी शहर का एक दृश्य, जो 200 ई. से 600 ई. तक सुशोभित हुआ और जो अमेरिका में दूसरी सबसे बड़ी पिरामिड की साइट है माया चित्रलिपि पत्रिका में अभिलेख, कई मेसोअमरिकी लेखन प्रणालियों में से एक शिलालेख.दुनिया में मेसोअमेरिका पांच स्थानों में से एक है जहां स्वतंत्र रूप से लेखन विकसित हुआ है मेसोअमेरिका या मेसो-अमेरिका (Mesoamérica) अमेरिका का एक क्षेत्र एवं सांस्कृतिक प्रान्त है, जो केन्द्रीय मैक्सिको से लगभग बेलाइज, ग्वाटेमाला, एल सल्वाडोर, हौंड्यूरॉस, निकारागुआ और कॉस्टा रिका तक फैला हुआ है, जिसके अन्दर 16वीं और 17वीं शताब्दी में, अमेरिका के स्पैनिश उपनिवेशवाद से पूर्व कई पूर्व कोलंबियाई समाज फलफूल रहे थे। इस क्षेत्र के प्रागैतिहासिक समूह, कृषि ग्रामों तथा बड़ी औपचारिक व राजनैतिक-धार्मिक राजधानियों द्वारा वर्णित हैं। यह सांस्कृतिक क्षेत्र अमेरिका की कुछ सर्वाधिक जटिल और उन्नत संस्कृतियों जैसे, ऑल्मेक, ज़ैपोटेक, टियोतिहुआकैन, माया, मिक्सटेक, टोटोनाक और एज़्टेक को शामिल करता है। .

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याबलोचकिना क्रेटर (शुक्र ग्रह)

मैजलन यान के रेडार द्वारा लिया गया याबलोचकिना क्रेटर का चित्र याबलोचकिना (अंग्रेज़ी: Yablochkina, रूसी: Яблочкина) शुक्र ग्रह (वीनस) पर स्थित एक प्रहार क्रेटर है। इसका व्यास (डायामीटर) ६४ किमी है। शुक्र पर घने बादल हमेशा उस ग्रह को ढके रहते हैं इसलिए याबलोचकिना क्रेटर के बारे में जानकारी केवल मेघ-भेदी रेडार द्वारा ही मिल पाई है। .

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लाल दानव तारा

एक लाल दानव तारे और सूरज के अंदरूनी ढाँचे की तुलना खगोलशास्त्र में लाल दानव तारा (red giant star, रॅड जायंट स्टार) ऐसे चमकीले दानव तारे को बोलते हैं जो हमारे सूरज के द्रव्यमान का ०.५ से १० गुना द्रव्यमान (मास) रखता हो और अपने जीवनक्रम में आगे की श्रेणी का हो (यानि बूढ़ा हो रहा हो)। ऐसे तारों का बाहरी वायुमंडल फूल कर पतला हो जाता है, जिस से उस का आकार भीमकाय और उसका सतही तापमान ५,००० कैल्विन या उस से भी कम हो जाता है। ऐसे तारों का रंग पीले-नारंगी से गहरे लाल के बीच का होता है। इनकी श्रेणी आम तौर पर K या M होती है, लेकिन S भी हो सकती है। कार्बन तारे (जिनमें ऑक्सीजन की तुलना में कार्बन अधिक होता है) भी ज़्यादातर लाल दानव ही होते हैं। प्रसिद्ध लाल दानवों में रोहिणी, स्वाति तारा और गेक्रक्स शामिल हैं। लाल दानव तारों से भी बड़े लाल महादानव तारे होते हैं, जिनमें ज्येष्ठा और आर्द्रा गिने जाते हैं। आज से अरबों वर्षों बाद हमारा सूरज भी एक लाल दानव बन जाएगा। .

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लाजवर्द

लाजवर्द का एक नमूना - प्राचीन भारतीय सभ्यता में यह नवरत्नों में से एक था लाजवर्द या राजावर्त (अंग्रेज़ी: Lapis lazuli, लैपिस लैज़्यूली) एक मूल्यवान नीले रंग का पत्थर है जो प्राचीनकाल से अपने सुन्दर नीले रंग के लिए पसंद किया जाता है। कई स्रोतों के अनुसार प्राचीन भारतीय संस्कृति में जिन नवरत्नों को मान्यता दी गई थी उनमें से एक लाजवर्द था। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लाजवर्द शुक्र ग्रह का प्रतीक है।, William Goonetilleke, pp.

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लक्ष्मी प्लैनम

लक्ष्मी प्लैनम (Lakshmi Planum), शुक्र ग्रह के पश्चिमी इश्तार टेरा पर एक पठार स्थलाकृति है। यह धन की हिन्दू देवी लक्ष्मी के नाम पर है। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र की स्थलाकृति.

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शनि (ज्योतिष)

बण्णंजी, उडुपी में शनि महाराज की २३ फ़ीट ऊंची प्रतिमा शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:। अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥ भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं। .

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शनि (ग्रह)

शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है। शनि का आंतरिक ढांचा संभवतया, लोहा, निकल और चट्टानों (सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक) के एक कोर से बना है, जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है, तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल के कारण एक हल्का पीला रंग दर्शाता है। माना गया है धातु हाइड्रोजन परत के भीतर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है, जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है और बृहस्पति की एक-बीसवीं शक्ति के करीब है। बाह्य वायुमंडल आम तौर पर नीरस और स्पष्टता में कमी है, हालांकि दिर्घायु आकृतियां दिखाई दे सकती है। शनि पर हवा की गति, 1800 किमी/घंटा (1100 मील) तक पहुंच सकती है, जो बृहस्पति पर की तुलना में तेज, पर उतनी तेज नहीं जितनी वह नेप्च्यून पर है। शनि की एक विशिष्ट वलय प्रणाली है जो नौ सतत मुख्य छल्लों और तीन असतत चाप से मिलकर बनी हैं, ज्यादातर चट्टानी मलबे व धूल की छोटी राशि के साथ बर्फ के कणों की बनी हुई है। बासठ चन्द्रमा ग्रह की परिक्रमा करते है; तिरेपन आधिकारिक तौर पर नामित हैं। इनमें छल्लों के भीतर के सैकड़ों " छोटे चंद्रमा" शामिल नहीं है। टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध ग्रह से बड़ा है और एक बड़े वायुमंडल को संजोकर रखने वाला सौरमंडल का एकमात्र चंद्रमा है। .

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शुक्र (ज्योतिष)

शुक्र (शुक्र, ശുക്രൻ, ಶುಕ್ರ, சுக்ரன், IAST Śukra), जिसका संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध, स्वच्छ, भृगु ऋषि के पुत्र एवं दैत्य-गुरु शुक्राचार्य का प्रतीक शुक्र ग्रह है। भारतीय ज्योतिष में इसकी नवग्रह में भी गिनती होती है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी होता है। यह श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति के होते हैं। इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। उषानस एक वैदिक ऋषि हुए हैं जिनका पारिवारिक उपनाम था काव्य (कवि के वंशज, अथर्व वेद अनुसार जिन्हें बाद में उषानस शुक्र कहा गया। .

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शुक्र का भूविज्ञान

शुक्र एक खरोचदार सतही लक्षणों वाला ग्रह है। इसकी अधिकांश सतह जिसके बारे में जानकारी हुई है रडार प्रेक्षणों की उपज है। इसकी ज्यादातर छवियां मैगलन यान द्वारा 16 अगस्त 1990 और अपने छठे कक्षीय चक्र के समाप्ति अर्थात सितम्बर,1994 के मध्य भेजी गई है। ग्रह की 98 % भूमि मापी जा चुकी है जिनमें से 22% त्रिविमीय स्टीरियोस्कोपी छवियां है। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह.

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शुक्रवार

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सिग्मा सैजिटेरियाइ तारा

धनु तारामंडल में सिग्मा सैजिटेरियाइ तारा "σ Sgr" से नामांकित है सिग्मा सैजिटेरियाइ जिसके बायर नामांकन में भी यही नाम (σ Sgr या σ Sagittarii) दर्ज है, आकाश में धनु तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है और पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ५२वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे २२८ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) २.०६ है। .

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संयोजन (खगोलशास्त्र)

संयोजन (Conjuction), तब होता है जब कोई ग्रह पृथ्वी और सूर्य के बीच की सीधी रेखा पर स्थित होता है। संयोजन का खगोलीय प्रतीक ơ है। इसे हस्तलिपी में और यूनिकोड में U+260C लिखते हैं। हालांकि, इस प्रतीक को आधुनिक खगोल विज्ञान में कभी इस्तेमाल नहीं किया गया है, मात्र ऐतिहासिक रुचि भर का है। ग्रहों के औसत कक्षीय वेग, सूर्य से बढ़ती दूरी के साथ घटते जाते है, जो ग्रहों की परस्पर बदलती स्थिति का कारण बनता है। उदाहरण के लिए, पृथ्वी अपनी कक्षा पर मंगल से ज्यादा तेज चलती है, इसलिए नियमित रूप से मंगल के पास से होकर गुजरती है। इसी तरह से, शुक्र पृथ्वी को पकड़ लेता है और नियमित रूप से उसे पार करता है क्योंकि शुक्र का कक्षीय वेग पृथ्वी की तुलना में ज्यादा है। ग्रहों की पृथ्वी और सूर्य के सापेक्ष स्थिति का परिणाम संयोजन और विमुखता के रूप में होता है। यदि कोई अवर ग्रह (बुध व शुक्र) सूर्य और पृथ्वी के ठीक बीच आ जाये तो स्थिति अवर संयोजन कहलाती है। इन्ही में से कोई एक ग्रह यदि सूर्य के पीछे की तरफ चला जाये तो स्थिति वरिष्ठ संयोजन कहलाती है। वरिष्ठ ग्रहों (मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून) के संयोजन तब होते है जब इनमें से कोई ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य के पीछे की तरफ होता है। इसके विपरित, जब वरिष्ठ ग्रह पृथ्वी की तरफ होते है तब संयोजन को विमुखता के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है। वरिष्ठ ग्रहों को संयोजन में नहीं देख सकते क्योंकि तब वें सूर्य के पीछे मौजुद होते हैं। हालांकि, जब वें विमुखता पर होते है उनकी स्पष्टता सर्वोत्तम होती है। ध्यान रहें केवल अवर ग्रहों में ही अवर और वरिष्ठ संयोजन होते हैं। वरिष्ठ ग्रहों में या तो संयोजन होता है या विमुखता होती है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वें कहां पर स्थित है, पृथ्वी से देखने पर सूर्य के पीछे की तरफ या सूर्य के इस तरफ जहां पृथ्वी है। जब बुध या शुक्र ग्रह, पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरते है, पृथ्वी से देखने पर हो सकता है उनकी छवि काली चकती जैसी नजर आये और सूर्य की मुखाकृति के आरपार खिसकती हुई दिखाई दे, इस तरह की स्थिति पारगमन कहलाती है। पारगमन सभी परिस्थिति में पृथ्वी से नहीं नजर आते, कारण, उनकी कक्षाओं का क्रांतिवृत्त से झुकाव। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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स्थलीय ग्रह

सीरीस (बौना ग्रह)। स्थलीय ग्रह या चट्टानी ग्रह मुख्य रूप से सिलिकेट शैल अथवा धातुओ से बना हुआ ग्रह होता है। हमारे सौर मण्डल में स्थलीय ग्रह, सूर्य के सबसे निकटतम, आंतरिक ग्रह है। स्थलीय ग्रह अपनी ठोस सतह की वजह से गैस दानवों से काफी अलग होते हैं, जो कि मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम और विभिन्न प्रावस्थाओ में मौजूद पानी के मिश्रण से बने होते हैं। .

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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सौर मंडल के सबसे बड़े क्रेटरों की सूची

Following are the largest craters on various worlds of the Solar System.

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सूर्य देवता

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सूर्य ग्रहण १५ जनवरी २०१०

१५ जनवरी २०१० का सूर्य ग्रहण एक वलयाकार या कंकणाकार सूर्य ग्रहण था। इसका परिमाण ०.९१९० रहा। वलयाकार सूर्यग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा सामान्य स्थिति की तुलना में पृथ्वी से दूर हो जाता है। परिणामस्वरूप उसका आकार इतना नहीं दिखता कि वह पूरी तरह सूर्य को ढक पाये। वलयाकार सूर्यग्रहण में चंद्रमा के बाहरी किनारे पर सूर्य मुद्रिका यानी वलय की तरह काफ़ी चमकदार नजर आता है।। बीबीसी हिन्दी। १५ जनवरी २०१० यह ग्रहण भारतीय समयानुसार ११ बजकर ०६ मिनट पर आरंभ हुआ और यह दोपहर ३ बजे के बाद तक चालू रहा। वैज्ञानिकों के अनुसार दोपहर १ बजकर १५ मिनट पर सूर्य ग्रहण अपने चरम पर था। भारत के अलावा सूर्यग्रहण अफ्रीका, हिन्द महासागर, मालदीव, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया में दिखाई दिया। इससे पहले वलयाकार सूर्यग्रहण २२ नवम्बर १९६५ को दिखाई पड़ा था और इसके बाद अगला वलयाकार सूर्यग्रहण २१ जून २०२० को दिखेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इतनी लंबी अवधि का सूर्यग्रहण इसके बाद वर्ष ३०४३ से पहले नहीं दिखाई पड़ेगा। .

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सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

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सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम

सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम (Soviet space program) सोवियत संघ द्वारा आयोजित 1930 के दशक से 1991 में विघटन तक रॉकेट और अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम थे। अपने साठ साल के इतिहास में, यह मुख्य रूप से वर्गीकृत सैन्य कार्यक्रम अंतरिक्ष उड़ान में अग्रणी उपलब्धियों में से एक नंबर के लिए जिम्मेदार था। जिसमे पहली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आर-7), पहला उपग्रह (स्पुतनिक 1), पहला जानवर पृथ्वी की कक्षा में (कुत्ता लाइका स्पुतनिक 2 पर), अंतरिक्ष में पहला मानव (वोस्तोक 1 पर अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन), पहली अंतरिक्ष में महिला (अंतरिक्ष यात्री वालेनटीना तेरेश्कोवा वोस्तोक 6 पर), पहली स्पेसवॉक (वॉस्खोद 2 पर अंतरिक्ष यात्री एलेक्सी लेओनोव), पहला चंद्रमा इम्पैक्ट (लूना 2), चाँद के फार साइड की पहली छवि (लूना 3) और मानवरहित चंद्र सॉफ्ट लैंडिंग (लूना 9), पहला अंतरिक्ष रोवर (लुनोखोड 1), चंद्रमा की मिट्टी का पहला नमूना स्वचालित रूप से निकाला गया और पृथ्वी तक लाया गया नमूना (लूना 16) और पहला अंतरिक्ष स्टेशन (सल्यूट 1) शामिल है। इसके अलावा पहला अंतरग्रहीय प्रोब्स: वेनेरा 1 और मंगल 1 जिसने क्रमश शुक्र और मंगल के फ्लाईब्य की। वेनेरा 3 और मंगल 2 जो इम्पैक्ट हुए। वेनेरा 3 और मंगल 3 जो इम्पैक्ट हुए उल्लेखनीय रिकॉर्ड शामिल है। सोवियत संघ के रॉकेट और अंतरिक्ष कार्यक्रम, शुरू में उन्नत जर्मन रॉकेट कार्यक्रम कब्जा वैज्ञानिकों की सहायता से बढ़ाया। और 1955 के बाद सोवियत इंजीनियरों और वैज्ञानिकों द्वारा मुख्य रूप से प्रदर्शन किया गया था। सेर्गेई कोरोलेव प्रिंसिपल डिजाइन समूह,अपने सरकारी शीर्षक "मुख्य डिजाइनर" के प्रमुख थे। "अंतरिक्ष दौड़" में अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी के विपरीत, जो एक एकल समन्वय एजेंसी के रूप नासा में था। सोवियत संघ के कार्यक्रम में कई प्रतिस्पर्धा डिजाइन कोरोलेव, मिखाइल एंगेल, वैलेन्टिन ग्लुषको, और व्लादिमीर चेलोंमें के नेतृत्व में समूहों के बीच विभाजित किया गया था। क्योंकि कार्यक्रम के क्लासिफाइड स्थिति की, प्रचार, मिशन के परिणामों की घोषणा जब तक सफलता निश्चित नहीं हो जाती तब तक नहीं की जाती थी। और विफलताओं कभी कभी गुप्त रखा गया था। अंतत, 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव की ग्लासनोस्त की नीति के परिणाम के रूप में, अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में कई तथ्यों को सार्वजनिक किया गया था। जिसमे उल्लेखनीय असफलता, 1966 और 1968 के बीच कोरोलेव, व्लादिमीर कोमारोव (सोयुज 1 दुर्घटना में), और (एक नियमित लड़ाकू जेट मिशन पर) यूरी गागरिन की मौत और एन-1 रॉकेट विकास विफलता जो चार मानवरहित परीक्षण पर लिफ्ट ऑफ होने के बाद शीघ्र ही विस्फोट हो गया शामिल थी। सोवियत संघ के पतन के साथ, रूस और यूक्रेन को कार्यक्रम विरासत में मिला। रूस ने रूसी विमानन और अंतरिक्ष एजेंसी, अब रॉसकॉसमॉस राज्य निगम नाम से जाना जाता बनाया। जबकि यूक्रेन की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी बनायीं। .

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होरा

भारतीय ज्योतिष तीन अंगों से निर्मित है- खगोल, संहिता और होरा। फलित ज्योतिष का दूसरा नाम है - होराशास्त्र। ज्योतिष के फलित पक्ष पर जहाँ विकसित नियम स्थापित किए जाते हैं, वह होराशास्त्र है। उदाहरणार्थ: राशि, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, चलित, द्वादशभाव, षोडश वर्ग, ग्रहों के दिग्बल, काल-बल, चेष्टा-बल, ग्रहों के धातु, द्रव्य, कारकत्व, योगायोग, अष्टवर्ग, दृष्टिबल, आयु योग, विवाह योग, नाम संयोग, अनिष्ट योग, स्त्रियों के जन्मफल, उनकी मृत्यु नष्टगर्भ का लक्षण प्रश्न आदि होराशास्त्र के अंतर्गत आते हैं। वैसे होरा का अर्थ है- एक घंटा। .

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जुड़वा (1997 फ़िल्म)

जुड़वा भारतीय हिन्दी हास्य फिल्म है। इसमें सलमान खान ने दो अलग अलग किरदार निभाए हैं। इनके साथ करिश्मा कपूर और रंभा भी मुख्य किरदार में हैं। इसका निर्देशन डेविड धवन ने और निर्माण साजिद नाडियाडवाला ने किया था। इस फिल्म का प्रदर्शन 7 फरवरी 1997 को हुआ था। यह 1994 में बनी भारतीय तेलुगू फिल्म हैलो ब्रदर का पुनः निर्माण थी जिसमें अक्किनेनी नागार्जुन, रम्या कृष्णन और सौन्दर्या मुख्य कलाकार थे। .

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जोंड 1

श्रेणी:अमेरिका के चन्द्र अभियानों की सूची‎.

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वृष राशि

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वैदिक ज्योतिष

भारतीय संस्कृति का आधार वेद को माना जाता है। वेद धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि विज्ञान की पहली पुस्तक है जिसमें चिकित्सा विज्ञान, भौतिक, विज्ञान, रसायन और खगोल विज्ञान का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। भारतीय ज्योतिष विद्या का जन्म भी वेद से हुआ है। वेद से जन्म लेने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष के नाम से जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष की परिभाषा वैदिक ज्योतिष को परिभाषित किया जाए तो कहेंगे कि वैदिक ज्योतिष ऐसा विज्ञान या शास्त्र है जो आकाश मंडल में विचरने वाले ग्रहों जैसे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध के साथ राशियों एवं नक्षत्रों का अध्ययन करता है और इन आकाशीय तत्वों से पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले लोग किस प्रकार प्रभावित होते हैं उनका विश्लेषण करता है। वैदिक ज्योतिष में गणना के क्रम में राशिचक्र, नवग्रह, जन्म राशि को महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा जाता है। राशि और राशिचक्र राशि और राशिचक्र को समझने के लिए नक्षत्रों को को समझना आवश्यक है क्योकि राशि नक्षत्रों से ही निर्मित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में राशि और राशिचक्र निर्धारण के लिए 360 डिग्री का एक आभाषीय पथ निर्धारित किया गया है। इस पथ में आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाते हैं। नक्षत्रो की कुल संख्या 27 है। 27 नक्षत्रो को 360 डिग्री के आभाषीय पथ पर विभाजित करने से प्रत्येक भाग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। इस तरह प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। वैदिक ज्योतिष में राशियो को 360 डिग्री को 12 भागो में बांटा गया है जिसे भचक्र कहते हैं। भचक्र में कुल 12 राशियां होती हैं। राशिचक्र में प्रत्येक राशि 30 डिग्री होती है। राशिचक्र में सबसे पहला नक्षत्र है अश्विनी इसलिए इसे पहला तारा माना जाता है। इसके बाद है भरणी फिर कृतिका इस प्रकार क्रमवार 27 नक्षत्र आते हैं। पहले दो नक्षत्र हैं अश्विनी और भरणी हैं जिनसे पहली राशि यानी मेष का निर्माण होता हैं इसी क्रम में शेष नक्षत्र भी राशियों का निर्माण करते हैं। '''नवग्रह''' वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि और राहु केतु को नवग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर मे भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए ठहरते हैं और अपना अपना राशिफल प्रदान करते हैं। राहु और केतु आभाषीय ग्रह है, नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। ये दोनों राशिमंडल में गणीतीय बिन्दु के रूप में स्थित होते हैं। '''लग्न और जन्म राशि''' पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूरब घूमती है। इस कारण से सभी ग्रह नक्षत्र व राशियां 24 घंटे में एक बार पूरब से पश्चिम दिशा में घूमती हुई प्रतीत होती है। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदित और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए नज़र आते हैं। यही कारण है कि एक निश्चित बिन्दु और काल में राशिचक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदित होती है वह राशि व्यक्ति का जन्म लग्न कहलाता है। जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में बैठा होता है उस राशि को जन्म राशि या चन्द्र लग्न के नाम से जाना जाता है। श्रेणी:भारतीय ज्योतिष श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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वेनेरा 1

वेनेरा 1 (Venera 1), जिसे वेनेरा 1VA No.2 के रूप में भी जाना जाता है, सोवियत संघ के वेनेरा कार्यक्रम अंतर्गत, शुक्र के लिए उड़ान भरने वाला पहला अंतरिक्ष यान था। (NASA Goddard Space Center), accessed August 9, 2010 .

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वेनेरा 3

वेनेरा 3 (Venera 3), शुक्र ग्रह के लिए सोवियत संघ का एक लैंडर था। हालांकि शुक्र के वायुमंडलीय मापन के अपने अभियान मे यह विफल हो गया, पर किसी अन्य ग्रह की धरती को छुने वाली यह पहली मानव निर्मित वस्तुं बन गई। दुर्भाग्य से, एक खराबी ने इसे शुक्र के किसी भी वैज्ञानिक डेटा को प्रेषित करने से रोक दिया | यह 15 नवम्बर,1965 को बैकोनुर, कज़ाख़िस्तान से रवाना हुआ, और 1 मार्च 1966 को शुक्र से टकराया | .

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वेगा 1

वेगा 1 (Vega 1), (वेगा 2 के साथ) एक सोवियत अंतरिक्ष अन्वेषी व वेगा कार्यक्रम का हिस्सा है। यह अंतरिक्ष यान पहले के वेनेरा यान का विस्तार था। वे बाबाकीन अंतरिक्ष केंद्र द्वारा रचे गए और खिम्की पर लेवोच्कीन द्वारा 5VK के रूप में निर्मित किए गए थे। यान बड़े जुड़वां सौर पैनलों द्वारा संचालित किए गए थे और और उपकरणों ने एक डिश एंटीना, कैमरा, स्पेक्ट्रोमीटर, इंफ्रारेड साउंडर, मैग्नेटोमीटर और प्लाज्मा अन्वेषी को शामिल किया था। वेगा 1 और 2 दोनों तीन अक्षों पर स्थिर अंतरिक्ष यान थे। अंतरिक्ष यान हैली धूमकेतु से धूल संरक्षण के लिए एक भरपूर दोहरे ढाल से लैस थे। श्रेणी:अंतरिक्ष यान श्रेणी:अंतरिक्ष परियोजना श्रेणी:मई २०१३ के लेख जिनमें स्रोत नहीं हैं.

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वेगा 2

वेगा 2 (Vega 2), (वेगा 1 के साथ) एक सोवियत अंतरिक्ष अन्वेषी व वेगा कार्यक्रम का हिस्सा है। यह अंतरिक्ष यान पहले के वेनेरा यान का विस्तार था। वे बाबाकीन अंतरिक्ष केंद्र द्वारा रचे गए और खिम्की पर लेवोच्कीन द्वारा 5VK के रूप में निर्मित किए गए थे। यान बड़े जुड़वां सौर पैनलों द्वारा संचालित किए गए थे और और उपकरणों ने एक डिश एंटीना, कैमरा, स्पेक्ट्रोमीटर, इंफ्रारेड साउंडर, मैग्नेटोमीटर और प्लाज्मा अन्वेषी को शामिल किया था। वेगा 1 और 2 दोनों तीन अक्षों पर स्थिर अंतरिक्ष यान थे। अंतरिक्ष यान हैली धूमकेतु से धूल संरक्षण के लिए एक भरपूर दोहरे ढाल से लैस थे। श्रेणी:अंतरिक्ष यान श्रेणी:अंतरिक्ष परियोजना श्रेणी:मई २०१३ के लेख जिनमें स्रोत नहीं हैं.

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वीनस एक्सप्रेस

वीनस एक्सप्रेस (Venus Express (VEX)), यूरोपीय स्पेस एजेंसी का पहला शुक्र अन्वेषण अभियान है। नवंबर 2005 में छोड़ा गया यह यान अप्रैल 2006 में शुक्र पर पहुंचा और शुक्र के आसपास की अपनी ध्रुवीय कक्षा से निरंतर विज्ञान डेटा भेज रहा है। सात वैज्ञानिक उपकरणों से लैस, इस मिशन का मुख्य उद्देश्य शुक्र के वातावरण का लंबी अवधि का प्रेक्षण करना है। शुक्र के लिए ऐसे लंबी अवधि के प्रेक्षण पिछले अभियानों में कभी नहीं किये गये है और वायुमंडलीय गतिशीलता की एक बेहतर समझ के लिए यह महत्वपूर्ण है। आशा है कि इस तरह के अध्ययन सामान्य वायुमंडलीय गतिशीलता की समझ के लिए योगदान कर सकते हैं, साथ ही यह पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन की समझ के लिए भी योगदान करते हैं। मिशन वर्तमान में 31 दिसम्बर 2014 तक ईएसए द्वारा वित्त पोषित है। श्रेणी:अंतरिक्ष यान श्रेणी:अंतरिक्ष अभियान.

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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ग्रीनहाउस गैस

वैश्विक एन्थ्रोपोजेनिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन आठ विभिन्न क्षेत्रों से, वर्ष २००० में ग्रीन हाउस गैसें ग्रह के वातावरण या जलवायु में परिवर्तन और अंततः भूमंडलीय ऊष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती हैं।। दैनिक भास्कर।।६ दिसंबर, २००७। एनएन सच्चिदानंद। श्रेणी:कार्बन श्रेणी:हिन्दी विकि डीवीडी परियोजना eo:Forceja efika gazo.

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ओवडा रीजियो

ओवडा रीजियो (Ovda Regio), शुक्र ग्रह पर एक क्षेत्र है जो एफ्रोडाईट टेरा का पश्चिमी भाग बनाता है। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र का भूगोल श्रेणी:शुक्र की स्थलाकृति.

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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इश्तर

इश्तर (Ishtar) बाबुल, असुर और सुमेर की मातृदेवी थी। वह प्रेम सुन्दरता, सम्भोग, इच्छा, युद्ध, राजनितिक शक्ति आदि कीदेवी थी। गैरसामी-सुमेरी सभ्यता के ऊर, उरुख आदि विविध नगरों में उसकी पूजा नना, इन्नन्ना, नीना और अनुनित नामों से होती थी। इनके अपने अपने विविध मंदिर थे। इनका महत्व अन्य देवियों की भाँति अपने देवपतियों के छायारूप के कारण न होकर अपना निजी था और इनकी पूजा अपनी स्वतंत्र शक्ति के कारण होती थी। ये आरंभ में भिन्न-भिन्न शक्तियों की अधिष्ठात्री देवियाँ थीं पर बाद में अक्कादी-बाबुली काल में, ईसा से प्राय: ढाई हजार साल पहले, इनकी सम्मिलित शक्ति को 'इश्तर' नाम दिया गया। इश्तर का प्राचीनतम अक्कादी रूप 'अश दर' था जो उस भाषा के अभिलेखों में मिलता है। अक्कादी में इसका अर्थ अनुदित होकर वही हुआ जो प्राचीनतर सुमेरी इन्नन्ना या इन्नीनी का था-'स्वर्ग की देवी।' सुमेरी सभ्यता में यह मातृदेवी सर्वथा कुमारी थी। फ़िनीकी में उसका नाम 'अस्तार्ते' पड़ा। उसका संबंध वीनस ग्रह से होने के कारण वही रोमनों में प्रेम की देवी वीनस बनी। इस मातृदेवी की हजारों मिट्टी, चूने मिट्टी और पत्थर की मूर्तियाँ प्राचीन बेबिलोनिया और असूरिया, वस्तुत: समूचे ईराक में मिली हैं, जिससे उस प्रदेश पर उस देवी की प्रभुता प्रकट है। श्रेणी:मेसापोटामिया की देवी.

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इश्तार टेरा

इश्तार टेरा (Ishtar Terra), शुक्र ग्रह पर दो मुख्य उच्चभूम क्षेत्रों में से एक है। यह दो "महाद्वीपों" में छोटा है और उत्तरी ध्रुव के पास स्थित है। यह अकाडिनी देवी इश्तार पर नामित है। इश्तार टेरा का आकार मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका महाद्वीप के बीच है। इसके पूर्वी किनारे पर महान पर्वत श्रृंखला मैक्सवेल मोंटेस स्थित है जो 11 किमी ऊंची है, तुलना के लिए माउंट एवरेस्ट 8.8 किमी उंचा है। पर्वत श्रृंखला के एक तरफ लावा से भरा 100 किमी व्यास का प्रहार क्रेटर है। इश्तार टेरा शुक्र की चार मुख्य पर्वत श्रृंखलाएं शामिल करती है: पूर्वी तट पर मैक्सवेल मोंटेस, उत्तर में फ्रेज्या मोंटेस, अक्ना मोंटेस पश्चिमी तट पर और दक्षिणी क्षेत्र में दानु मोंटेस। ये इश्तार टेरा के निचले मैदान को घेरते हैं, जो कि लक्ष्मी प्लैनम से नामित है (हिंदू देवी लक्ष्मी के नाम पर)। इश्तार टेरा प्रसिद्ध महिलाओं पर नामित ज्वालामुखी भी शामिल करते हैं: साकाज़ाविया, कोलेट और क्लियोपेट्रा। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र की स्थलाकृति.

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कन्या राशि

कन्या राशियह राशि चक्र की छठी राशि है।दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ में फ़ूल की डाली लिये कन्या है। इसका विस्तार राशि चक्र के १५० अंशों से १८० अंश तक है। इस राशि का स्वामी बुध है, इस राशि के तीन द्रेष्काणों के स्वामी बुध,शनि और शुक्र हैं। इसके अन्तर्गत उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे, तीसरे और चौथे चरण,चित्रा के पहले दो चरण और हस्त नक्षत्र के चारों चरण आते है। उत्तराफ़ाल्गुनी के दूसरे चरण के स्वामी सूर्य और शनि है, जो जातक को उसके द्वारा किये जाने वाले कार्यों के प्रति अधिक महत्वाकांक्षा पैदा करते है, तीसरे चरण के स्वामी भी उपरोक्त होने के कारण दोनो ग्रहों के प्रभाव से घर और बाहर के बंटवारे को जातक के मन में उत्पन्न करती है। चौथा चरण भावना की तरफ़ ले जाता है और जातक दिमाग की अपेक्षा ह्रदय से काम लेना चालू कर देता है। इस राशि के लोग संकोची और शर्मीले प्रभाव के साथ झिझकने वाले देखे जाते है। मकान, जमीन.और सेवाओं वाले कार्य ही इनकी समझ में अधिक आते हैं, कर्जा, दुश्मनी और बीमारी के प्रति इनका लगाव और सेवायें देखने को मिलती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से फेफड़ों में ठन्ड लगना और पाचन प्रणाली के ठीक न रहने के कारण आंतों में घाव हो जाना, आदि बीमारियाँ इस प्रकार के जातकों में मिलती है। देवी दुर्गा का एक नाम। .

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कक्षीय अवधि

किसी पिण्ड की कक्षीय अवधि अथवा परिक्रमण काल या संयुति काल उसके द्वारा किसी दूसरे निकाय का एक पूरा चक्कर लगाने में लिया गया समय है। .

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क्यूपिड

हाथ में धनुष लिए प्रेम के देवता क्यूपिड की एक मूर्ति क्यूपिड (लातिनी: Cupidus कूपिदुस) प्राचीन रोमन धर्म के देवताओं में से एक हैं। वह कामदेव की तरह प्रेम और काम-वासना के देवता हैं। उनके समतुल्य प्राचीन यूनानी धर्म के देवता थे ईरोस। उनका एक और लातिनी नाम है, आमोर। ये रोमन देवता ज्यूपिटर और देवी वीनस के पुत्र माने जाते हैं। उनको एक पंख लगे बच्चे की तरह चित्रित किया जाता है, हाथ में धनुष होता है जिससे ये बाण छोड़कर मनुष्यों में प्रेम भाव जागृत करते हैं। कहा जाता है कि क्यूपिड का बाण लगने पर मनुष्य जिससे भी सबसे पहले मिलता है उससे अत्यधिक प्रेम करने लगता है। इन्हें कहानियों में अत्यधिक चंचल, चपल और रसिक वर्णित किया जाता है। इनके तूणीर में दो तरह के बाण होते हैं - स्वर्णिम नोक वाले बाण जिनसे प्रेम जागृत होता है और सीसे की नोक वाले बाण जिनसे घृणा उत्पन्न होती है। कई चित्रों में इनके तीरों की नोक को हृदयाकार भी दिखाते हैं। वैलेंटाइन दिवस के मौके पर खास तौर पर क्यूपिड के चित्र देखने को मिलते हैं। श्रेणी:रोम के देवी-देवता श्रेणी:रोमन धर्म.

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क्रिश्चियन होरेबोव

क्रिश्चियन पेडर्सन होरेबोव (Christian Pedersen Horrebow) (15 अप्रैल 1718-15 सितंबर 1776) 18 वीं सदी के एक डेनिश खगोलशास्त्री थे। वह पेडर होरेबोव के पुत्र थे। 1766 से लेकर1768 तक के शुक्र ग्रह के मार्ग के अपने अध्ययन में उन्होंने ग्रह के एक तथाकथित चाँद "नेइथ" को अंकित किया था। उन्होंने सौर कलंकों के आवधिकता की भी खोज की थी। .

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कॅप्लर-२० तारा

शुक्र ग्रहों से तुलना कॅप्लर-२० उर्फ़ कॅप्लर-२०ए (Kepler-20a) पृथ्वी से ९५० प्रकाश वर्ष दूर लायरा तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक G8 श्रेणी का तारा है। यह आकार में हमारे सूरज से ज़रा छोटा है - इसका द्रव्यमान (मास) हमारे सूरज के द्रव्यमान का ०.९१ गुना और इसका व्यास (डायामीटर) हमारे सूरज के व्यास का ०.९४ गुना अनुमानित किया गया है। सम्भव है कि यह एक मुख्य अनुक्रम तारा है हालाँकि वैज्ञानिकों को अभी यह पक्का ज्ञात नहीं हुआ है। पृथ्वी से देखा गई इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) +१२.५१ मैग्नीट्यूड मापी गई है, यानी इसे देखने के लिए दूरबीन आवश्यक है। इसके इर्द-गिर्द एक ग्रहीय मंडल मिला है, जिसमें पांच ज्ञात ग़ैर-सौरीय ग्रह इस तारे की परिक्रमा कर रहे हैं। .

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कॅप्लर-२०ऍफ़

शुक्र ग्रहों से तुलना कॅप्लर-२०ऍफ़ (Kepler-20f) एक ग़ैर-सौरीय ग्रह है जो पृथ्वी से लगभग ९५० प्रकाश वर्षों की दूरी पर लायरा तारामंडल में स्थित कॅप्लर-२० तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह पहला ज्ञात ग़ैर-सौरीय ग्रह है जिसका अकार पृथ्वी से मिलता-जुलता है। इसका व्यास (डायामीटर) पृथ्वी के व्यास का लगभग १.०३ गुना है। यह अपने तारे से १.६ करोड़ किलोमीटर की दूरी पर परिक्रमा करता है, जो सूरज से बुध ग्रह (मरक्युरी) की दूरी से भी कम है। इस वजह से इसका सतही तापमान काफी गरम है और ४२७ °सेंटीग्रेड अनुमानित किया गया है। इस तापमान पर इसकी सतह पर पानी होने की कोई संभावना नहीं है और यह अपने तारे के वासयोग्य क्षेत्र में नहीं है। इस ग्रह की मिल जाने की घोषणा वैज्ञानिकों ने २० दिसम्बर २०११ को की। इस से पहले ब्रह्माण्ड में मिलने वाले सभी ग़ैर-सौरीय ग्रह पृथ्वी से बड़े थे - या तो वे गैस दानव ग्रह थे और या फिर महापृथ्वी के श्रेणी के बड़े ग्रह थे। पृथ्वी के आकार के ग्रह को देख पाने का अर्थ है कि अब वैज्ञानिकों में इस अकार के ग्रह इतनी दूरी पर खोज निकालने की क्षमता विकसित होनी शुरू हो गई है। इस ग्रह का पता कॅप्लर अंतरिक्ष यान के प्रयोग से लगाया गया। कॅप्लर-२० तारे के मंडल में कुल मिलकर पांच ग्रह ज्ञात हुए हैं और कॅप्लर-२०ऍफ़ से भी छोटा एक ग्रह मिला है जो इस तारे के और भी पास परिक्रमा करता है - इस ग्रह का नामकरण कॅप्लर-२०ई (Kepler-20e) किया गया है। .

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कॅप्लर-६९ तारा

कॅप्लर-६९ (Kepler-69) पृथ्वी से २,७०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर आकाश में हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक हमारे सूरज के जैसा G-श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है। १८ अप्रैल २०१३ को वैज्ञानिकों ने इसके इर्द-गिर्द दो ग्रहों की मौजूदगी ज्ञात होने की घोषणा करी। शुरु में उनका अनुमान था कि इनमें से एक 'कॅप्लर-६९सी' द्वारा नामांकित ग्रह इस ग्रहीय मंडल के वासयोग्य क्षेत्र में स्थित है लेकिन बाद में यह स्पष्ट हुआ कि यह वास-योग्य क्षेत्र से अन्दर है। इसका अर्थ था कि यह हमारे सौर मंडल के शुक्र जैसी परिस्थितियाँ रखता होगा और यहाँ जीवन का पनप पाना बहुत कठिन है। .

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thumb अ देवनागरी लिपि का पहला वर्ण तथा संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली आदि भाषाओं की वर्णमाला का पहला अक्षर एवं ध्वनि है। यह एक स्वर है। यह कंठ्य वर्ण है।। इसका उच्चारण स्थान कंठ है। इसकी ध्वनि को भाषाविज्ञान में श्वा कहा जाता है। यह संस्कृत तथा भारत की समस्त प्रादेशिक भाषाओं की वर्णमाला का प्रथम अक्षर है। इब्राली भाषा का 'अलेफ्', यूनानी का 'अल्फा' और लातिनी, इतालीय तथा अंग्रेजी का ए (A) इसके समकक्ष हैं। अक्षरों में यह सबसे श्रेष्ठ माना जाता हैं। उपनिषदों में इसकी बडी महिमा लिखी है। तंत्रशास्त्र के अनुसार यह वर्णमाला का पहला अक्षर इसलिये है क्योंकि यह सृष्टि उत्पन्न करने के पहले सृष्टिवर्त की आकुल अवस्था को सूचित करता है। श्रीमद्भग्वद्गीता में कृष्ण स्वयं को अक्षरों में अकार कहते हैं- 'अक्षराणामकारोस्मि'। अ हिंदी वर्णमाला का स्वर वर्ण है उच्चारण की दृष्टि से अ निम्नतर,मध्य,अगोलित,हृस्व स्वर है कुछ स्थितियों में अ का उच्चारण स्थान ह वर्ण से पूर्वभी होता है जैसे कहना में वह में अ का उच्चारण स्थानभी है अ हिंदी में पूर्व प्रत्यय के रूप में भी बहुप्रयुक्त वर्ण है अ पूर्व प्रत्यय के रूप में प्रयुक्त होकर प्रायः मूल शब्द के अर्थ का नकारात्मक अथवा विपरीत अर्थ देता है,जैसे-अप्रिय,अन्याय,अनीति ऊ अन्यत्र मूल शब्द के पूर्ण न होने की स्थिति भी दर्शाता है,जैसे-अदृश्य,अकर्म अ पूर्व प्रत्यय की एक अन्य विशेषता यह भी है कि वह मूल शब्द के भाव के अधिकार को सूचित करता है,जैसे-अघोर अक्स उतारने वाला अक्कास कहलाता है चित्रकार;अक्कास कहलाता है .

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अपसौरिका

250px अपसौरिका(अंग्रेज़ी:Perihelion पृथ्वी) के दीर्घवृत्ताकार पथ पर वह बिंदु है जहाँ इसकी आकर्षण के केंद्र (अर्थात् मोटे तौर पर सूर्य के केंद्र) से दूरी अधिकतम होती है। आकर्षण का यह केंद्र सामान्यतः निकाय का द्रव्यमान केंद्र होता है। .

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अम्मीसाडुका की शुक्र पटलिका

अम्मीसाडुका की शुक्र पटलिका (Venus tablet of Ammisaduqa) (एनिमा अनु एनलिल पटलिका 63), शुक्र के खगोलीय प्रेक्षण के अभिलेख को संदर्भित करता है जो प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व से अनगिनत अंकन चाक पटलिकाओं के रूप में संरक्षित हुई चली आ रही है। माना गया है कि यह खगोलीय अभिलेख पहली बार सम्राट अम्मीसाडुका के शासनकाल के दौरान संकलित किए गए जो हाम्मुरबी के बाद के चौथे शासक थे। इस प्रकार, इस पाठ के मूल शायद मध्य सत्रहवीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास के लिए दिनांकित होने चाहिए। अभिलेख ने शुक्र के उदय के समयों तथा सूर्योदय व सूर्यास्त (शुक्र की सूर्य संबंधी उदयता और अस्तता) से पहले या बाद क्षितिज पर अपनी पहली और आखिरी दृश्यता को चंद्र तिथियों के रूप में दर्ज किया। ये प्रेक्षण 21 साल की अवधि के लिए दर्ज किए गए है। .

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अर्ग

अल्जीरिया के इसाऊवान अर्ग की अंतरिक्ष से खींची गई तस्वीर अर्ग (अंग्रेज़ी: Erg, अरबी) ऐसे चौड़े और चपटे रेगिस्तानी क्षेत्र को कहते हैं जो हवा से उड़ाई जाने वाली रेत से ढका हुआ हो और जहाँ वृक्ष-पौधे बहुत कम हों या बिलकुल ही न हों।, NASA Earth Observatory, Accessed 2006-05-18 भूगोल में अर्ग की कड़ी परिभाषा है कि यह १२५ वर्ग किमी से बड़ा क्षेत्र होना चाहिए जिसमें २०% से अधिक धरती रेत से ढकी हो और हवा से रेत बड़ी मात्रा में उड़ती हो।, Judith Totman Parrish, Columbia University Press, Page 166, 2001, ISBN 978-0-231-10207-0 विश्व के सबसे बड़े रेगिस्तान सहारा मरूस्थल में कई सारे अर्ग हैं, जिनमें से चेच अर्ग (Chech Erg) और अल्जीरिया का इसाऊवान अर्ग (Issaouane Erg) दो जाने-माने अर्ग हैं। पृथ्वी की लगभग ८५% हिलने वाले रेत ३२,००० वर्ग किमी से बड़े क्षेत्रफल की अर्गों में सम्मिलित है।, Andrew Warren, Ronald U. Cooke, University of California Press, Page 322, 1973, ISBN 978-0-520-02280-5 पृथ्वी के अलावा अर्ग हमारे सौर मंडल के और भी ग्रहों-उपग्रहों पर मिले हैं, जिनमें शुक्र, मंगल और शनि का चन्द्रमा टाइटन शामिल हैं। .

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अर्कनोइड (खगोलभूविज्ञान)

अर्कनोइड (arachnoid), खगोलभूविज्ञान में अज्ञात मूल की एक बड़ी संरचना है और वे मात्र शुक्र ग्रह की सतह पर ही पाई गई हैं। अर्कनोइड ने अपना नाम मकड़ी के जाले से समानता से पाया है। वे ऐसी दिखाई देती है जैसे संकेंद्रित अंडे को दरारों के एक जटिल नेटवर्क ने चारों ओर से घेर रखा हों और यह 200 किलोमीटर तक फैली हो सकती हैं। शुक्र पर अब तक तीस से अधिक अर्कनोइड की पहचान की जा चुकी है। अर्कनोइड ज्वालामुखी के अनोखे संबंधी हो सकते है, लेकिन संभवतः अलग अलग अर्कनोइड विभिन्न प्रक्रियाओं से बनते हैं।This article contains text from the Astronomy Picture of the Day.

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असुर

मैसूर में महिषासुर की प्रतिमा हिन्दू धर्मग्रन्थों में असुर वे लोग हैं जो 'सुर' (देवताओं) से संघर्ष करते हैं। धर्मग्रन्थों में उन्हें शक्तिशाली, अतिमानवीय, अर्धदेवों के रूप में चित्रित किया गया है। ये अच्छे और बुरे दोनों गुणों वाले हैं। अच्छे गुणों वाले असुरों को 'अदित्य' तथा बुरे गुणों से युक्त असुरों को 'दानव' कहा गया है। 'असुर' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में लगभग १०५ बार हुआ है। उसमें ९० स्थानों पर इसका प्रयोग 'शोभन' अर्थ में किया गया है और केवल १५ स्थलों पर यह 'देवताओं के शत्रु' का वाचक है। 'असुर' का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- प्राणवंत, प्राणशक्ति संपन्न ('असुरिति प्राणनामास्त: शरीरे भवति, निरुक्ति ३.८) और इस प्रकार यह वैदिक देवों के एक सामान्य विशेषण के रूप में व्यवहृत किया गया है। विशेषत: यह शब्द इंद्र, मित्र तथा वरुण के साथ प्रयुक्त होकर उनकी एक विशिष्ट शक्ति का द्योतक है। इंद्र के तो यह वैयक्तिक बल का सूचक है, परंतु वरुण के साथ प्रयुक्त होकर यह उनके नैतिक बल अथवा शासनबल का स्पष्टत: संकेत करता है। असुर शब्द इसी उदात्त अर्थ में पारसियों के प्रधान देवता 'अहुरमज़्द' ('असुर: मेधावी') के नाम से विद्यमान है। यह शब्द उस युग की स्मृति दिलाता है जब वैदिक आर्यों तथा ईरानियों (पारसीकों) के पूर्वज एक ही स्थान पर निवास कर एक ही देवता की उपासना में निरत थे। अनंतर आर्यों की इन दोनों शाखाओं में किसी अज्ञात विरोध के कारण फूट पड़ी गई। फलत: वैदिक आर्यों ने 'न सुर: असुर:' यह नवीन व्युत्पत्ति मानकर असुर का प्रयोग दैत्यों के लिए करना आरंभ किया और उधर ईरानियों ने भी देव शब्द का ('द एव' के रूप में) अपने धर्म के दानवों के लिए प्रयोग करना शुरू किया। फलत: वैदिक 'वृत्रघ्न' (इंद्र) अवस्ता में 'वेर्थ्रोघ्न' के रूप में एक विशिष्ट दैत्य का वाचक बन गया तथा ईरानियों का 'असुर' शब्द पिप्रु आदि देवविरोधी दानवों के लिए ऋग्वेद में प्रयुक्त हुआ जिन्हें इंद्र ने अपने वज्र से मार डाला था। (ऋक्. १०।१३८।३-४)। शतपथ ब्राह्मण की मान्यता है कि असुर देवदृष्टि से अपभ्रष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं (तेऽसुरा हेलयो हेलय इति कुर्वन्त: पराबभूवु)। पतंजलि ने अपने 'महाभाष्य' के पस्पशाह्निक में शतपथ के इस वाक्य को उधृत किया है। शबर स्वामी ने 'पिक', 'नेम', 'तामरस' आदि शब्दों को असूरी भाषा का शब्द माना है। आर्यों के आठ विवाहों में 'आसुर विवाह' का संबंध असुरों से माना जाता है। पुराणों तथा अवांतर साहित्य में 'असुर' एक स्वर से दैत्यों का ही वाचक माना गया है। .

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अवर एवं वरिष्ठ ग्रह

वें ग्रह जिनकी कक्षाएं पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य से नजदीक स्थित है अवर ग्रह (Inferior planet) कहलाते है। इसके विपरीत जिनकी कक्षाएं पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य से दूर है वरिष्ठ ग्रह (superior planet) कहलाते है। इस प्रकार, बुध व शुक्र अवर ग्रह है और मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून वरिष्ठ ग्रह है। ध्यान रहे, यह वर्गीकरण आंतरिक व बाह्य ग्रह से अलग है जो उन ग्रहों के लिए नामित है जिनकी कक्षाएं क्रमशः क्षुद्रग्रह बेल्ट के भीतर और बाहर मौजूद है। "अवर ग्रह" लघु ग्रह या वामन ग्रह से भी बहुत अलग है। .

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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अकात्सुकी (अंतरिक्ष यान)

अकात्सुकी, एक जापानी मानवरहित अंतरिक्ष यान है, जिसका उद्देश्य शुक्र ग्रह का अन्वेषण था | इसे 20 मई 2010 को एक H-IIA 202 रॉकेट पर लादकर प्रमोचित किया गया था | .

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अक्ना मोंटेस

अक्ना मोंटेस (Akna Montes), शुक्र ग्रह पर एक पर्वत श्रेणी हैं। यह 68.9°N, 318.2°E पर केंद्रित है तथा 830 किमी लम्बी है। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र की स्थलाकृति.

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उपसौर और अपसौर

'''1'''- ग्रह अपसौर पर, '''2'''- ग्रह उपसौर पर, '''3'''- सूर्य उपसौर और अपसौर (Perihelion and Aphelion), किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या धूमकेतु की अपनी कक्षा पर सूर्य से क्रमशः न्यूनतम और अधिकतम दूरी है। सौरमंडल में ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते है, कुछ ग्रहों की कक्षाएं करीब-करीब पूर्ण वृत्ताकार होती है, लेकिन कुछ की नहीं।| कुछ कक्षाओं के आकार अंडाकार जैसे ज्यादा है या इसे हम एक खींचा या तना हुआ वृत्त भी कह सकते है। वैज्ञानिक इस अंडाकार आकार को "दीर्घवृत्त" कहते है। यदि एक ग्रह की कक्षा वृत्त है, तो सूर्य उस वृत्त के केंद्र पर है। यदि, इसके बजाय, कक्षा दीर्घवृत्त है, तो सूर्य उस बिंदु पर है जिसे दीर्घवृत्त की "नाभि" कहा जाता है, यह इसके केंद्र से थोड़ा अलग है। एक दीर्घवृत्त में दो नाभीयां होती है। चूँकि सूर्य दीर्घवृत्त कक्षा के केंद्र पर नहीं है, ग्रह जब सूर्य का चक्कर लगाते है, कभी सूर्य की तरफ करीब चले आते है तो कभी उससे परे दूर चले जाते है। वह स्थान जहां से ग्रह सूर्य से सबसे नजदीक होता है उपसौर कहलाता है। जब ग्रह सूर्य से परे सबसे दूर होता है, यह अपसौर पर होता है। जब पृथ्वी उपसौर पर होती है, यह सूर्य से लगभग १४.७ करोड़ कि॰मी॰(3janwari) (९.१ करोड़ मील) दूर होती है। जब अपसौर पर होती है, सूर्य से १५.२ करोड़ कि॰मी॰ (९.५ करोड़ मिल) दूर होती है। पृथ्वी, अपसौर (4jun)पर उपसौर पर की अपेक्षा सूर्य से ५० लाख कि॰मी॰ (३० लाख मील) ज्यादा दूर होती है।उपसौर की स्थिति 3जनवरी को होती है। .

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१९८९

१९८९ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२२ नवम्बर

२२ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३२६वॉ (लीप वर्ष मे ३२७ वॉ) दिन है। साल मे अभी और ३९ दिन बाकी हैं। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

वीनस, शुक्र (ग्रह), शुक्र ग्रह

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