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शिवाजी द्वितीय

सूची शिवाजी द्वितीय

शिवाजी द्वितीय (1696 - 1707) मराठा राजा था। राजाराम की मृत्यु के बाद शिवाजी द्वितीय गद्दी पर बैठा। जब वह गद्दी पर बैठा तो केवल 4 साल का था और उसकी माँ ताराबाई ने उसे गद्दी पर बिठाया था। उसकी माँ उसकी संरक्षिका बनी। ताराबाई ने  शिवाजी द्वितीय  मुगलों के खिलाफ मराठों का नेतृत्व किया जिसमें मराठों को सफलता भी मिली। शिवाजी द्वितीय के राजा बनने का शाहूजी ने विरोध किया पर वो 17 सालों तक मुगलों के यहाँ बन्दी बना रहा। शिवाजी की मृत्यु के बाद शिवाजी ने १७०० से १७०७ तक शासन किया था। शाहूजी ने मराठों का नेतृत्व किया। .

5 संबंधों: मराठा साम्राज्य, राजाराम प्रथम, शाहु, शिवाजी, सतारा के राजाराम द्वितीय

मराठा साम्राज्य

मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपती शिवाजी महाराज जी ने १६७४ में डाली। उन्होने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आये पेशवाओनें इसे उत्तर भारत तक बढाया, ये साम्राज्य १८१८ तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया। .

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राजाराम प्रथम

राजाराम राजे भोंसले (24 फरवरी 1670 - 3 मार्च 1700 सिंहगढ़) मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के छोटे पुत्र थे तथा सम्भाजी के सौतेले भाई थे। वे 1689 में मुग़ल साम्राज्य के शासक औरंगजेब के द्वारा सम्भाजी की हत्या कर दिये जाने के बाद मराठा साम्राज्य के तृतीय छत्रपति बने। उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा, जिसमें अधिकांश समय वह मुग़लों से युद्ध में उलझे रहे। .

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शाहु

छत्रपति शाहु (१६८२-१७४९) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के पौत्र और सम्भाजी का बेटे थे। ये ये छत्रपति शाहु महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंतराव था। जब शाहूजी महाराज बालावस्था में थे तभी उनकी माता राधाबाई का निधन तब हो गया । उनके पिता का नाम श्रीमान जयसिंह राव अप्पा साहिब घटगे था। कोलहापुर के राजा शिवजी चतुर्थ की हत्या के पश्चात उनकी विधवा आनन्दीबाई ने उन्हें गोद ले लिया। शाहूजी महाराज को अल्पायु में ही कोल्हापुर की राजगद्दी का उतरदायित्व वहन करना पड़ा। वर्ण-विधान के अनुसार शहूजी शूद्र थे। वे बचपन से ही शिक्षा व कौशल में निपुर्ण थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् उन्होने भारत भ्रमण किया। यद्यपि वे कोल्हापुर के महाराज थे परन्तु इसके बावजूद उन्हें भी भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद के विष को पीना पड़ा। नासिक, काशी व प्रयाग सभी स्थानों पर उन्हें रूढ़ीवादी ढोंगी ब्राम्हणो का सामना करना करना पड़ा। वे शाहूजी महाराज को कर्मकांड के लिए विवश करना चाहते थे परंतु शाहूजी ने इंकार कर दिया। समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा जाति के आधार पर किया जा रहा अत्याचार को देख शाहूजी महाराज ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि दलित उद्धार योजनाए बनाकर उन्हें अमल में भी लाए। लन्दन में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह के पश्चात् शाहूजी जब भारत वापस लौटे तब भी ब्राह्मणो ने धर्म के आधार पर विभिन्न आरोप उन पर लगाए और यह प्रचारित किया गया की समुद्र पार किया है और वे अपवित्र हो गए है। शाहूजी महाराज की ये सोच थी की शासन स्वयं शक्तिशाली बन जाएगा यदि समाज के सभी वर्ग के लोगों की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सन 1902 में शाहूजी ने अतिशूद्र व पिछड़े वर्ग के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया। उन्होंने कोलहापुर में शुद्रों के शिक्षा संस्थाओ की शृंखला खड़ी कर दी। अछूतों की शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया। शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृति व पुरस्कार की व्यवस्था भी करवाई। यद्यपि शाहूजी एक राजा थे परन्तु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक समाजसेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ की। उन्होंने देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त किया। विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की और नारी शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा का भार सरकार पर डाला। मन्दिरो, नदियों, सार्वजानिक स्थानों को सबके लिए समान रूप से खोल दिया गया। शाहूजी महाराज ने डॉ.

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शिवाजी

छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले (१६३० - १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। .

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सतारा के राजाराम द्वितीय

राजाराम द्वितीय भोसले, जिसे रामराज के नाम से भी जाना जाता है, मराठा साम्राज्य का 6 वां राजा थे । वह छत्रपति शाहू के एक दत्तक पुत्र थे ताराबाई ने उन्हें अपने पोते के रूप में शाहू के पास पेश किया था और शाहू की मौत के बाद उन्हें सत्ता में लेने के लिए इस्तेमाल किया था। पेशवा बालाजी बाजीराव ने उन्हें छत्रपति का नाम रखने दिया । वास्तव में, पेशवा और अन्य प्रमुखों के हाथ में सभी कार्यकारी शक्ति थी, जबकि राजाराम द्वितीय केवल एक कठपुतली थे । .

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