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शिवाजी

सूची शिवाजी

छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले (१६३० - १६८०) भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने १६७४ में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन १६७४ में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। .

127 संबंधों: चिन्तामणि त्रिपाठी(रीतिग्रंथकार कवि), चंद्रसेन राजा, डाल्टन योजना, तानाजी मालुसरे, ताराबाई, तारकनाथ दास, तारकरली, तुलजा भवानी मंदिर, उस्मानाबाद, दत्तात्रेय विष्णु आप्टे, दशहरा, दादोजी कोंडदेव, दापोली, दामोदर स्वरूप 'विद्रोही', दक्षिण भारत, देवसंहिता, नागनाथ इनामदार, पण्डारी, पारिभाषिक शब्दावली, पांडुरंग महादेव बापट, पुणे, पुणे के पर्यटन स्थल, प्रतापगढ़ दुर्ग, पेशवा, पोवाड़ा, फ़ार्मागुड़ी, बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे, बालाजी आवजी चिटनवीस, बाजीप्रभु देशपाण्डे, बुंदेली भाषा, बोरी बंदर, भारत में महिलाएँ, भारत का इतिहास, भारत के राजनीतिक दलों की सूची, भारतवर्ष (टीवी सीरीज), भारतीय राष्ट्रवाद, भारतीय व्यक्तित्व, भारतीय इतिहास तिथिक्रम, भगवंतराय खीची, भक्ति आन्दोलन, भूषण (हिन्दी कवि), मध्यकालीन भारत, मराठा, मराठा साम्राज्य, मराठा साम्राज्य से संबंधित युद्ध, मराठी लोग, मराठी साहित्य, मर्दानी खेल, महार रेजिमेंट, महाराष्ट्र की संस्कृति, महाराजा जसवंत सिंह (मारवाड़), ..., महाराजा छत्रसाल, माता-पिता, माधवाचार्य विद्यारण्य, मालवन, मालोजी भोंसले, मुहम्मद अकबर, मैनपुरी षड्यन्त्र, मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले, मोरोपंत पिंगले, मी शिवाजीराजे भोसले बोलतोय, येसूबाई, रणजीत देसाई, रामराज, रायगढ़, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत), राजमाता जिजाऊ, राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र, राजाराम प्रथम, राजगुरु, राज्यव्यवहार कोश, लता मंगेशकर, लाला लाजपत राय, शरभोजी राजे भोसले (द्वितीय), शाहजी, शाहु, शिवनेरी, शिवराज भूषण, शिवा बावनी, श्याम नारायण पाण्डेय, श्री छत्रपति शाहू संग्रहालय, कोल्हापुर, समर्थ रामदास, सम्भाजी, सम्राट कृष्ण देव राय, सात्राप, साई भोसले, सिसोदिया (राजपूत), सिंधुदुर्ग, सखाराम गणेश देउस्कर, संभाजी भिडे, स्त्री शक्ति पुरस्कार, स्वानन्द किरकिरे, सूफी अंबा प्रसाद भटनागर, हिन्दवी स्वराज, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, जरीब, ज़फ़रनामा, जिवा महाला, जिंजी दुर्ग, जीजाबाई, घृष्णेश्वर मन्दिर, घोरपडे राजवंश, विद्याधर शास्त्री, विष्णु कृष्ण चिपलूणकर, व्यक्तित्व, खान्देरी दुर्ग, गणेशोत्सव, गेंदालाल दीक्षित, गोविंद सखाराम सरदेसाई, औरंगज़ेब, आबाजी सोनदेव, आज्ञापत्र, आगरा, आगरा का किला, इस्लाम से हिंदू धर्म के धर्मान्तरण की सूची, कडलूर, करणकौस्तुभ, कर्नाटक का इतिहास, कान्होजी आंग्रे, कोरेगाँव की लड़ाई, कोलाबा दुर्ग, अब्द, अरनाला का किला, अष्टप्रधान, अजिंक्यतारा, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, १९ फरवरी, ९ दिसम्बर सूचकांक विस्तार (77 अधिक) »

चिन्तामणि त्रिपाठी(रीतिग्रंथकार कवि)

टिकमापुर, जन्म स्थान चिंतामणि त्रिपाठी हिन्दी के रीतिकाल के कवि हैं। ये यमुना के समीपवर्ती गाँव टिकमापुर या भूषण के अनुसार त्रिविक्रमपुर (जिला कानपुर) के निवासी काश्यप गोत्रीय कान्यकुब्ज त्रिपाठी ब्राह्मण थे। इनका जन्मकाल संo १६६६ विo और रचनाकाल संo १७०० विo माना जाता है। ये रतिनाथ अथवा रत्नाकर त्रिपाठी के पुत्र (भूषण के 'शिवभूषण' की विभिन्न हस्तलिखित प्रतियों में इनके पिता के उक्त दो नामों का उल्लेख मिलता है) और कविवर भूषण, मतिराम तथा जटाशंकर (नीलकंठ) के ज्येष्ठ भ्राता थे। चिंतामणि कभी-कभी अपनी रचनाओं में अपना नाम 'मनिलाल' और 'लालमनि' भी रखते थे। इनका संबंध शाहजहाँ, चित्रकूटाधिपति रुद्रशाह सोलंकी, जैनुद्दीन अहमद और नागपुर के भोंसला राजा मकरदशाह के राजदरबारों से था, जहाँ से इन्हें पर्याप्त सम्मान और प्रतिष्ठा मिली। नागपुर में उस समय कोई मकरदशाह संज्ञक भोंसला राजा नहीं था, इसलिये मकरंदशाह नामधारी इस कवि के आश्रयदाता संभवत: शिवाजी के पितामह ही थे, जो 'मालो जी' नाम से प्रख्यात हैं और भूषण ने जिनका स्मरण 'माल मकरद' कहकर किया है। .

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चंद्रसेन राजा

चंद्रसेन राजा संभाजी भोंसले के विश्वासपात्र सरदार धनाजी यादव का पुत्र। पिता के बाद चंद्रसेन प्रधान सेनापति बना। गुप्त रूप से शिवाजी की माता ताराबाई का पक्ष करने से साहूजी ने बालाजी विश्वनाथ को इनपर दृष्टि रखने के लिये नियुक्त किया। संयोग से एक दिन शिकार खेलते समय चंद्रसेन और बालाजी विश्वनाथ में लड़ाई हो गई। चंद्रसेन भागकर ताराबाई के पास पहुँचा। सन्‌ 1712 ई. में जब ताराबाई और शिवाजी कारागार में डाले गए और महारानी राजसबाई कोल्हापुर में प्रधान नियुक्त हुई चंद्रसेन इस डर से कि कहीं वह पकड़कर साहूजी के पास न भेज दिया जाय, भागकर निजामुल्मुल्क आसफजाह के पास पहुँचा और उसकी सलाह से वह बादशाह फर्रुखसियर की सेवा में चला आया। बादशाह ने उसे सातहजारी मंसब दिया और बीदर प्रांत की कई जागीरें दे दी। इसने पंचमहाल ताल्लुके में कष्णा नदी के पास एक पहाड़ी पर छोटा सा दुर्ग बनवाया जिसका नाम चंद्रगढ़ रखा। सन्‌ 1726 ई. में निजामुल्मुल्क आसफजाह की साहूजी पर चढ़ाई के समय चंद्रसेन ने आसफजाह की सहायता की। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

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डाल्टन योजना

डाल्टन प्रयोगशाला योजना या 'डाल्टन योजना' (Dalton Plan) शिक्षण का एक कांसेप्ट है जिसे अमेरिका की शिक्षाशास्त्रिणी कुमारी हेलेन पार्खस्ट (Helen Parkhurst) ने आरम्भ किया। सन्‌ 1912 में अमरीका की शिक्षाशास्त्रिणी कुमारी हेलन पार्खस्ट ने आठ से 12 वर्ष के बीच की अवस्थावाले बालकों के लिए एक नई शिक्षायोजना बनाई। यद्यपि यह योजना उनके मन में पहले से ही थी किंतु उसका वास्तविक प्रयोग सन्‌ 1913 और 1915 के बीच किया गया। इसी बीच प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) छिड़ गया और कुमारी पार्खर्स्ट ने भी अपनी योजना थोड़े दिन के लिए ढीली कर दी। विश्वयुद्ध समाप्त होने के पश्चात्‌ सन्‌ 1920 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अमरीका के मैसाच्यूसेट राज्य के डाल्टन स्थित विद्यालयों में अपनी योजना प्रारंभ की। इसके पश्चात्‌ उन्होंने एक बाल विश्वविद्यालय पाठशाला (चिल्ड्रेंस यूनिवर्सिटी स्कूल) स्थापित करके उसमें अपनी डाल्टन प्रयोगशाला योजना (डाल्टन लैबोरेटरी प्लान) का व्यवहार किया। .

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तानाजी मालुसरे

तानाजी की प्रतिमा तानाजी मालुसरे शिवाजी के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान सरदार थे। अपने बेटे की शादी जैसे महत्वपुर्ण कार्य को दुय्यम समझते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए कोंढाणा किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। इस लडाई में क़िला तो "स्वराज्य" में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपती शिवाजी ने जब यह ख़बर सुनी तो वो बोल पड़े "गढ़ तो जीता, लेकिन "सिंह" नहीं रहा (मराठी - गड आला पण सिंह गेला)। .

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ताराबाई

महारानी ताराबाई (१६७५-१७६१) छत्रपती राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हंबीरराव मोहिते की कन्या थीं।.

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तारकनाथ दास

तारकनाथ दास या तारक नाथ दास (बंगला: তারকানাথ দাস, 15 जून 1884 - 22 दिसम्बर 1958), एक ब्रिटिश-विरोधी भारतीय बंगाली क्रांतिकारी और अंतर्राष्ट्रवादी विद्वान थे। वे उत्तरी अमेरिका के पश्चमी तट में एक अग्रणी आप्रवासी थे और टॉल्स्टॉय के साथ अपनी योजनाओं के बारे में चर्चा किया करते थे, जबकि वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पक्ष में एशियाई भारतीय आप्रवासियों को सुनियोजित कर रहे थे। वे कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे और साथ ही कई अन्य विश्वविद्यालयों में अतिथि प्रोफेसर के रूप में भी कार्यरत थे। .

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तारकरली

तारकरली (मराठी: तारकर्ली), महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका, का एक गांव है। आकर्षक समुद्र तट वाला यह स्थल तटीय महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय पर्यटक गंतव्य है। यहाँ से, शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित प्रसिद्ध नौसेनिक किले सिंधुदुर्ग को देख सकते हैं। यह गांव अपने रामनवमी उत्सव के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल महापुरुष मंदिर में रामनवमी के उत्सव की व्यवस्था की जाती है। इस अवसर पर विभिन्न नाटकों (मराठी नाटक) का मंचन किया जाता हैं। यहाँ का समुद्र तट एक लंबी पर संकीर्ण पट्टी के रूप में स्थित है, जहां का पानी बहुत साफ है। किसी खुले दिन में 20 फीट की गहराई तक का सागर तल साफ दिखाई देता है। पृष्ठभूमि में 'शुरु' के पेड़ एक अनोखी छटा प्रस्तुत करते हैं। विस्तृत नदी, सुंदर पालनौकायें और नदी तट पर बनी सुन्दर द्वीपीय झोंपड़ियां तारकरली की सुरम्य सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। अक्सर यहां अठखेलियां करती डॉल्फ़िनें देखी जा सकती हैं। यहाँ साल भर मछलियों पकड़ी जाती हैं, गर्मी और सर्दियों के दौरान समुद्र से और मानसून के दौरान प्रतीप जल से, मानसून में ऐसा सुरक्षा कारणों की वजह से भी किया जाता है। .

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तुलजा भवानी मंदिर, उस्मानाबाद

महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान जहाँ छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी माँ तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। तुलजा भवानी महाराष्ट्र के प्रमुख साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है तथा भारत के प्रमुख इक्यावन शक्तिपीठ में से भी एक मानी जाती है। मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी माँ ने तलवार प्रदान की थी। अभी यह तलवार लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है। .

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दत्तात्रेय विष्णु आप्टे

दत्तात्रेय विष्णु आप्टे (जन्म संo 1880, मृत्यु संo 1943) महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार एवं इतिहासकार थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा जमखिंडी में हुई। 1902 में पूना के फर्ग्युसन कालेज से बी.

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दशहरा

दशहरा (विजयादशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा .

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दादोजी कोंडदेव

दादोजी कोंडदेव (१५७७ - १६४९) महाराज शिवाजी के पिता शाहजी के विश्वसनीय ब्राह्मण क्लार्क (कारकुन) थे। पूना में रहनेवाले शाहजी के कुटुंब और वहाँ की उनकी जागीर की देखभाल करने के लिए इनकी नियुक्ति सन् १६३७ ई. में हुई थी। ये इसलिये प्रसिद्ध हैं कि युवा शिवाजी का प्रशिक्षण इनकी ही देखरेख में हुआ था, जो आगे चलकर मराठा साम्राज्य के संस्थापक बने। ये चकबंदी के काम में बड़े ही निपुण थे। इनकी देखभाल से पूना प्रांत की खेती में बहुत से सुधार हुए। पूना की आबादी बढ़ी। हर साल जो फसल होती थी उसमें से कुछ न कुछ हिस्सा लगान के रूप में लेने की पद्धति ही दादाजी ने रूढ़ की थी। उनके समय मावला लोगों की आर्थिक दशा निकृष्ट हो गई थी। अत: इन्होंने उनका सारा लगान माफ कर दिया था। इन्होंने उसमें से कुछ लोगों को दूसरी ओर का लगान वसूल करने के लिए अपने यहाँ रखकर उनकी स्थिति सुधारने की भरसक चेष्टा की। इन्होंने बाल शिवाजी और माता जीजाबाई के रहने के लिए पूना में एक लालमहल बनवा दिया और बाल शिवाजी को आवश्यक सैनिक तथा धार्मिक शिक्षा दी। शिवाजी के मन में अपने धर्म के प्रति स्वाभिमान जगाया जिससे प्रसन्न होकर शिवाजी के पिता शाहजी ने दादाजी की सेना बढ़ाई और उनको ऊँचा अधिकारी बनाया। युवक शिवाजी ने सन् १६४६ ई. में तोरणा किला जीत लिया अत: बीजापुर के दरबार में शिवाजी के विषय में प्रतिकूल चर्चा हुई और पिता शाहजी ने शिवाजी को समझाने को काम दादाजी का सौंपा। दादाजी ने शिवाजी को अपने कार्यों से परावृत्त करने का भरसक प्रयत्न किया किंतु व्यर्थ हुआ अत: स्वामिभक्त दादाजी को शिवाजी के संबंध में बड़ी चिंता हुई। इतिहासकार कहते हैं कि स्वराज स्थापना का जो कार्य छिपकर होता था उसमें भी दादाजी का हाथ था। मावल प्रदेश के देशमुख, देशपांडे आदि दंगा मचाते थे, उनको उन्होंने शांत किया और उनको स्वराज्य स्थापना के अनुकूल बनाया। शिवापुर नामक गाँव में इन्होंने सरकारी उद्यान बनवाए। न्याय में वे अत्यंत निष्ठुर थे। यहाँ तक कि एक बार शिवाजी की आज्ञा के बिना उन्होंने आम का फल तोड़ लिया जिसके दंड स्वरूप उन्होंने अपना हाथ काट डालने का निश्चय किया किंतु शिवाजी के मना करने पर जिंदगी भर अपने कुर्ते की एक बाँह अधूरी ही रखी। महाराज शिवाजी द्वारा की गई स्वराज्य स्थापना की नींव पक्की करनेवाले इस स्वामिभक्त की मृत्यु सन् १६४९ में हुई। .

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दापोली

दापोली - यह भारत के महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी ज़िले में स्थित एक छोटा सा शहर है। .

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दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'

दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' (जन्म:2 अक्टूबर 1928 - मृत्यु: 11 मई 2008) अमर शहीदों की धरती के लिये विख्यात शाहजहाँपुर जनपद के चहेते कवियों में थे। यहाँ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर विद्रोही जी का नाम आज भी उतना ही है जितना कि तब था जब वे जीवित थे। विद्रोही की अग्निधर्मा कविताओं ने उन्हें कवि सम्मेलन के अखिल भारतीय मंचों पर स्थापित ही नहीं किया अपितु अपार लोकप्रियता भी प्रदान की। उनका एक मुक्तक तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ: सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में उनकी पहचान वीर रस के सिद्धहस्त कवि के रूप में भले ही हुई हो परन्तु यह भी एक सच्चाई है कि उनके हृदय में एक सुमधुर गीतकार भी छुपा हुआ था। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द के विधान पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। भ्रष्टाचार, शोषण, अत्याचार, छल और प्रवचन के समूल नाश के लिये वे ओजस्वी कविताओं का निरन्तर शंखनाद करते रहे। उन्होंने चीन व पाकिस्तान युद्ध और आपातकाल के दिनों में अपनी आग्नेय कविताओं की मेघ गर्जना से देशवासियों में अदम्य साहस का संचार किया। हिन्दी साहित्य के आकाश में स्वयं को सूर्य-पुत्र घोषित करने वाले यशस्वी वाणी के धनी विद्रोही जी भौतिक रूप से भले ही इस नश्वर संसार को छोड़ गये हों परन्तु अपनी कालजयी कविताओं के लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा। .

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दक्षिण भारत

भारत के दक्षिणी भाग को दक्षिण भारत भी कहते हैं। अपनी संस्कृति, इतिहास तथा प्रजातीय मूल की भिन्नता के कारण यह शेष भारत से अलग पहचान बना चुका है। हलांकि इतना भिन्न होकर भी यह भारत की विविधता का एक अंगमात्र है। दक्षिण भारतीय लोग मुख्यतः द्रविड़ भाषा जैसे तेलुगू,तमिल, कन्नड़ और मलयालम बोलते हैं और मुख्यतः द्रविड़ मूल के हैं। .

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देवसंहिता

देवा संहिता गोरख सिन्हा द्वारा मद्य काल में लिखा हुआ संस्कृत श्लोकों का एक संग्रह है जिसमे जाट जाति का जन्म, कर्म एवं जाटों की उत्पति का उल्लेख शिव और पार्वती के संवाद के रूप में किया गया है। ठाकुर देशराज लिखते हैं कि जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक मनोरंजक कथा कही जाती है। महादेवजी के श्वसुर राजा दक्ष ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो महादेवजी को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री सती को ही निमंत्रित किया। पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए.

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नागनाथ इनामदार

नागनाथ संतराम इनामदार, (जन्म:23 नवंबर 1923, मृत्यु: 16 अक्टूबर 2002) मराठी साहित्यकार थे। मराठी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में इनकी विशेष ख्याति रही है। मराठी के साथ-साथ ये हिन्दी में भी अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। .

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पण्डारी

पिंडारी (मराठी:पेंढारी) दक्षिण भारत के युद्धप्रिय पठान सवार थे। उनकी उत्पत्ति तथा नामकरण विवादास्पद है। वे बड़े कर्मठ, साहसी तथा वफादार थे। टट्टू उनकी सवारी थी। तलवार और भाले उनके अस्त्र थे। वे दलों में विभक्त थे और प्रत्येक दल में साधारणत: दो से तीन हजार तक सवार होते थे। योग्यतम व्यक्ति दल का सरदार चुना जाता था। उसकी आज्ञा सर्वमान्य होती थी। पिंडारियों में धार्मिक संकीर्णता न थी। 18वीं शताब्दी में पासी जाति भी उनके सैनिक दलों में शामिल थे। उनकी स्त्रियों का रहन-सहन हिंदू स्त्रियों जैसा था। उनमें-देवी देवताओं की पूजा प्रचलित थी। मराठों की अस्थायी सेना में उनका महत्वपूर्ण स्थान था। पिंडारी सरदार नसरू ने मुगलों के विरुद्ध शिवाजी की सहायता की। पुनापा ने उनके उत्तराधिकारियों का साथ दिया। गाजीउद्दीन ने बाजीराव प्रथम को उसके उत्तरी अभियानों में सहयोग दिया। चिंगोदी तथा हूल के नेतृत्व में 15 हजार पिंडारियों ने पानीपत के युद्ध में भाग लिया। अंत में वे मालवा में बस गए और सिंधियाशाही तथा होल्करशाही पिंडारी कहलाए। ही डिग्री और बुर्रन उनके सरदार थे। बाद में चीतू, करीम खाँ, दोस्तमुहम्मद और वसीलमुहम्मद सिंधिया की पिंडारी सेना के प्रसिद्ध सरदार हुए तथा कादिर खाँ, तुक्कू खाँ, साहिब खाँ और शेख दुल्ला होल्कर की सेना में रहे। पिंडारी सवारों की कुल संख्या लगभग 50,000 थी। युद्ध में लूटमार और विध्वंस के कार्य उन्हीं को सौंपे जाते थे। लूट का कुछ भाग उन्हें भी मिलता था। शांतिकाल में वे खेतीबाड़ी तथा व्यापार करते थे। गुजारे के लिए उन्हें करमुक्त भूमि तथा टट्टू के लिए भत्ता मिलता था। मराठा शासकों के साथ वेलेजली की सहायक संधियों के फलस्वरूप पिंडारियों के लिए उनकी सेना में स्थान न रहा। इसलिए वे धन लेकर अन्य राज्यों का सैनिक सहायता देने लगे तथा अव्यवस्था से लाभ उठाकर लूटमार से धन कमाने लगे। संभव है उन्हीं के भय से कुछ देशी राज्यों ने सहायक संधियाँ स्वीकार की हों। सन् 1807 तक पिंडारियों के धावे यमुना और नर्मदा के बीच तक सीमित रहे। तत्पश्चात् उन्होंने मिर्जापुर से मद्रास तक और उड़ीसा से राजस्थान तथा गुजरात तक अपना कार्यक्षेत्र विस्तृत कर दिया। 1812 में उन्होंने बुंदेलखंड पर, 1815 में निजाम के राज्य से मद्रास तक तथा 1816 में उत्तरी सरकारों के इलाकों पर भंयकर धावे किए। इससे शांति एवं सुरक्षा जाती रही तथा पिंडारियों की गणना लुटेरों में होने लगी। इस गंभीर स्थिति से मुक्ति पाने के उद्देश्य से लार्ड हेस्टिंग्ज ने 1817 में मराठा संघ को नष्ट करने के पूर्व कूटनीति द्वारा पिंडारी सरदारों में फूट डाल दी तथा संधियों द्वारा देशी राज्यों से उनके विरुद्ध सहायता ली। फिर अपने और हिसलप के नेतृत्व में 120,000 सैनिकों तथा 300 तोपों सहित उनके इलाकों को घेरकर उन्हें नष्ट कर दिया। हजारों पिंडारी मारे गए, बंदी बने या जंगलों में चले गए। चीतू को असोरगढ़ के जंगल में चीते ने खा डाला। वसील मुहम्मद ने कारागार में आत्महत्या कर ली। करीम खाँ को गोरखपुर जिले में गणेशपुर की जागीर दी गई। इस प्रकार पिंडारियों के संगठन टूट गए और वे तितर बितर हो गए। .

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पारिभाषिक शब्दावली

पारिभाषिक शब्दावली या परिभाषा कोश, "ग्लासरी" (glossary) का प्रतिशब्द है। "ग्लासरी" मूलत: "ग्लॉस" शब्द से बना है। "ग्लॉस" ग्रीक भाषा का glossa है जिसका प्रारंभिक अर्थ "वाणी" था। बाद में यह "भाषा" या "बोली" का वाचक हो गया। आगे चलकर इसमें और भी अर्थपरिवर्तन हुए और इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के शब्द (पारिभाषिक, सामान्य, क्षेत्रीय, प्राचीन, अप्रचलित आदि) के लिए होने लगा। ऐसे शब्दों का संग्रह ही "ग्लॉसरी" या "परिभाषा कोश" है। ज्ञान की किसी विशेष विधा (कार्य क्षेत्र) में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की उनकी परिभाषा सहित सूची पारिभाषिक शब्दावली (glossary) या पारिभाषिक शब्दकोश कहलाती है। उदाहरण के लिये गणित के अध्ययन में आने वाले शब्दों एवं उनकी परिभाषा को गणित की पारिभाषिक शब्दावली कहते हैं। पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग जटिल विचारों की अभिव्यक्ति को सुचारु बनाता है। महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' नामक प्रथम अध्याय में कहा है- इसके बाद उन्होने लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन, समय, सोना, चाँदी एवं अन्य धातुओं के मापन की इकाइयों के नाम और उनकी परिभाषा (परिमाण) दिया है। इसके बाद गणितीय संक्रियाओं के नाम और परिभाषा दी है तथा अन्य गणितीय परिभाषाएँ दी है। द्विभाषिक शब्दावली में एक भाषा के शब्दों का दूसरी भाषा में समानार्थक शब्द दिया जाता है व उस शब्द की परिभाषा भी की जाती है। अर्थ की दृष्टि से किसी भाषा की शब्दावली दो प्रकार की होती है- सामान्य शब्दावली और पारिभाषिक शब्दावली। ऐसे शब्द जो किसी विशेष ज्ञान के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, वह पारिभाषिक शब्द होते हैं और जो शब्द एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त नहीं होते वह सामान्य शब्द होते हैं। प्रसिद्ध विद्वान आचार्य रघुवीर बड़े ही सरल शब्दों में पारिभाषिक और साधारण शब्दों का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहते हैं- पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार - डॉ॰ भोलानाथ तिवारी 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं- .

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पांडुरंग महादेव बापट

पांडुरंग महादेव बापट (12 नवम्बर 1880 – 28 नवम्बर 1967), भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे। वे 'सेनापति बापट' के नाम से अधिक मशहूर हैं। इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था - 'सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज, समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है। साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गाँधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे। बापट को भक्ति, ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी। .

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पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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पुणे के पर्यटन स्थल

पुणे को महाराष्ट्र की सांस्‍कृतिक राजधानी कहा जाता है। इसे क्‍वीन ऑफ द दक्कन के नाम से भी जाना जाता है। पुणे में बहुत सारे उच्‍च कोटि के शिक्षण संस्‍थान, शोध केन्‍द्र के साथ-साथ खेल, योगा, आयुर्वेद और समाज सेवा आदि से जुड़े अनेक संस्थान है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में पुणे सूचना तकनीकी के क्षेत्र में भी सक्रिय रूप से विकसित हो रहा है। ऐतिहासिक तौर पर सत्रहवीं शताब्दी में इस शहर के प्रमुख केंद्र बिंदु मराठा शासक छत्रपति शिवाजी थे। शिवाजी का जन्‍म पुणे के शिवनेरी किला में हुआ था। उन्‍होंने अपना बचपन भी यही बिताया था। इस महल का निर्माण शिवाजी के पिता शाहजी ने करवाया था। शाहजी के मित्र कोंडदेव ने पुणे में गणेश मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे कसबा गणपति के नाम से जाना जाता है। यहां गणपति ग्राम देवता के रूप में जाने जाते हैं, जिन्हें धार्मिक त्योहारों, उपनयन समारोह या किसी अन्य समारोह में सबसे पहला आमंत्रण दिया जाता है। सन् 1818 में हुए कोरेगांव युद्ध के बाद पुणे ईस्ट इंडिया कम्‍पनी के हाथों में चला गया। ब्रिटिश इसे ग्रीष्‍मकालीन राजधानी बनाना चाहते थे लेकिन इसे उन्नीसवीं शताब्दी का आर्मी टाउन बनाया गया और यह पुना कहलाने लगा। स्‍वतंत्रता संग्राम के समय सबसे पहले पुना से ही लोकमान्‍य तिलक ने देशवासियों से विदेशी समानों का बहिष्‍कार तथा स्‍वदेशी समानों को अपनाने का आग्रह किया था। यहां कई आकर्षण हैं:- पुणे का पातालेश्वर मंदिर, जो कि राष्ट्रकूट वंश काल में गुफाएं काट कर बनाया गया था। .

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प्रतापगढ़ दुर्ग

प्रतापगढ़ दुर्ग (या किला) महाराष्ट्र के सतारा जिले में सतारा शहर से २० कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है। यह मराठा शासक शिवाजी के अधिकार में था। उन्होंने इस किले को नीरा और कोयना नदियों की ओर से सुरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से बनवाया था। १६५६ में किले का निर्माण पूर्ण हुआ था। उसी वर्ष १० नवम्बर को इसी किले से शिवाजी और अफज़ल खान के बीच युद्ध हुआ था और इस युद्ध में शिवाजी को विजय प्राप्त हुई थी। इस जीत से मराठा साम्राज्य की हिम्मत को और बढ़ावा मिला था। दुर्ग समुद्री तल से १००० मीटर ऊंचाई पर स्थित है। किले में मां भवानी और शिव जी का मंदिर हैं। .

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पेशवा

दरबारियों के साथ पेशवा मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा (मराठी: पेशवे) कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। शिवाजी के अष्टप्रधान मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। 'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ 'अग्रणी' है। पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। आरंभ में, संभवत: पेशवा मर्यादा में अन्य सदस्यों के बराबर ही माना जाता था। छत्रपति राजाराम के समय में पंत-प्रतिनिधि का नवनिर्मित पद, राजा का प्रतिनिधि होने के नाते पेशवा से ज्येष्ठ ठहराया गया था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरंपरागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। किंतु, यह परिवर्तन छत्रपति शाहू के सहयोग और सहमति द्वारा ही संपन्न हुआ, उसकी असमर्थता के कारण नहीं। यद्यपि बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बाजीराव ने मराठा साम्राज्य के सीमाविस्तार के साथ साथ अपनी सत्ता को भी सर्वोपरि बना दिया, तथापि वैधानिक रूप से पेशवा की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन शाहू की मृत्यु के बाद, बाजीराव के पुत्र बालाजी के समय में हुआ। अल्पवयस्क छत्रपति रामराजा की अयोग्यता के कारण समस्त राजकीय शक्ति संगोला के समझौते (२५ सितंबर १७५०) के अनुसार, पेशवा को हस्तांतरित हो गई, तथा शासकीय केंद्र सातारा की अपेक्षा पुणे निर्धारित किया गया। किंतु पेशवा माधवराव के मृत्युपरांत जैसा सातारा राजवंश के साथ हुआ, वैसा ही पेशवा वंश के साथ हुआ। माधवराव के उत्तराधिकारियों की नितांत अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता उनके अभिभावक नाना फडनवीस के हाथों में केंद्रित हो गई। किंतु आँग्ल शक्ति के उत्कर्ष के कारण इस स्थिति में भी शीघ्र ही महान परिवर्तन हुआ। अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय को वसई की संधि के अनुसार (३१ दिसम्बर १८०२) अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा; १३ जून १८१७, की संधि के अनुसार मराठा संघ पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा; तथा अंत में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध की समाप्ति पर, मराठा साम्राज्य के विसर्जन के बाद, पदच्युत होकर अंग्रेजों की पेंशन ग्रहण करने के लिये विवश होना पड़ा।; पेशवाओं का शासनकाल-.

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पोवाड़ा

पोवाड़ा महाराष्ट्र का प्रसिद्ध लोक गायन है। मुख्यतः यह शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान तथा स्तुति है। पोवाडा वीर रस के गायन एवं लेखन प्रकार है जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। मूल रूप से दलित समुदायों द्वारा गाये जाने वाले गाथागीतों की इस विधा ने शिवाजी महाराज को युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। पोवाडा का प्राचीन मराठी भाषा में अर्थ होता है गुणगान करना। मराठी में पोवाड़ा गाने वालों को शाहिर कहा जाता है। शाहिर शब्द उतना ही पुराना है जितनी कि मराठी संस्कृति। शाहिर साहित्य को मराठी कविताओं का उदयकाल कहा जाता है। मराठी भाषिको को यह स्फूर्ति देणे वाला गीत प्रकार है। भारत में इसका उदय १७वी शताब्धि में हुआ। इसमें ऐतिहासिक घटना सामने रखकर गीत की रचना की जाती है। इस गीत प्रकार की रचना करनेवाले गीतकारों को शाहिर कहां जाता है। इसी दौरान यह व्यवसाय करनेवाले जो गायक सामने आये है उन्हें गोंधली कहते है। पोवाडा मराठी साहित्य की एक प्रमुख विधा है पोवाडा जिसे गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग गाते थे पर आगे चलकर, शिवाजी के बाद, सभी जातियों के लोगों ने इसे अपना लिया। युद्धों का वर्णन पोवाडा गायकों का प्रमुख विषय होता था जिसका वे बेहद सजीव और ओजपूर्ण वर्णन करते थे, वह भीतरी कलहों और बाहरी आक्रमणों का काल था। अतः अपने आश्रयदाताओं को उनकी पूरी ताकत से युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना, उस काल के कवि का प्रमुख कर्तव्य-सा बन गया था। लेकिन महात्मा फुले ने पोवाडा का जनजागृति के लिए इस्तेमाल किया.

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फ़ार्मागुड़ी

फ़ार्मागुड़ी भारत के गोवा राज्य के उत्तर गोवा जिले में स्थित एक कस्बा है। यह पौण्डा तालुक में स्थित है। यह पणजी की ओर जाने वाले मार्ग मुख्य पौण्डा नगर से 3 किमी दूर एक पठार पर स्थित है। यहाँ के कुछ प्रमुख शिक्षण संस्थान हैं (जीवीऍम का) उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जीवीऍम का वाणिज्य व अर्थशास्त्र महाविद्यालय, पौण्डा शिक्षा संघ का उच्चतर माध्यमिक विद्यालय और गोवा अभियान्त्रिकी महाविद्यालय। प्रसिद्ध गोपाल गणपती मन्दिर और शिवाजी का किला भी पणजी जाने वाले मार्ग पर स्थित हैं। श्रेणी:गोवा के नगर, कस्बे, और ग्राम.

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बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे

बाबासाहेब पुरन्दरे बलवंत मोरेश्वर पुरन्दरे उपाख्य बाबासाहेब पुरंदरे (जन्म: २९ जुलाई १९२२) मराठी साहित्यकार, नाटककार तथा इतिहास लेखक हैं। महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च सम्मान 'महाराष्ट्र भूषण' से सम्मानित किया है। वे शिवाजी से सम्बन्धित इतिहास शोध के लिये प्रसिद्ध हैं। प्रसिद्ध नाटक जाणता राजा (विवेकशील राजा) उनकी ही कृति है। .

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बालाजी आवजी चिटनवीस

बालाजी आवजी चिटनवीस वर्ष १६५८ से लेकर १६८० तक शिवाजी के चिटनिस (व्यक्तिगत सहायक या सेक्रेटरी) थे। बालाजी का मूल उपनाम (सरनेम) 'चित्रे' था किन्तु शिवाजी के चिटनवीस बनने के बाद उन्होने 'चिटनवीस' उपyनाम अपना लिया। .

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बाजीप्रभु देशपाण्डे

पन्हाला दुर्ग में बाजीप्रभु की प्रतिमा बाजीप्रभु देशपांडे (1615-1660) एक नामी वीर थे। मराठों के इतिहास में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। .

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बुंदेली भाषा

बुंदेलखंड के निवासियों द्वारा बोली जाने वाली बोली बुंदेली है। यह कहना बहुत कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं लेकिन ठेठ बुंदेली के शब्द अनूठे हैं जो सादियों से आज तक प्रयोग में हैं। केवल संस्कृत या हिंदी पढ़ने वालों को उनके अर्थ समझना कठिन हैं। ऐसे सैकड़ों शब्द जो बुंदेली के निजी है, उनके अर्थ केवल हिंदी जानने वाले नहीं बतला सकते किंतु बंगला या मैथिली बोलने वाले आसानी से बता सकते हैं। प्राचीन काल में बुंदेली में शासकीय पत्र व्यवहार, संदेश, बीजक, राजपत्र, मैत्री संधियों के अभिलेख प्रचुर मात्रा में मिलते है। कहा तो यह‍ भी जाता है कि औरंगजेब और शिवाजी भी क्षेत्र के हिंदू राजाओं से बुंदेली में ही पत्र व्यवहार करते थे। ठेठ बुंदेली का शब्दकोश भी हिंदी से अलग है और माना जाता है कि वह संस्कृत पर आधारित नहीं हैं। एक-एक क्षण के लिए अलग-अलग शब्द हैं। गीतो में प्रकृति के वर्णन के लिए, अकेली संध्या के लिए बुंदेली में इक्कीस शब्द हैं। बुंदेली में वैविध्य है, इसमें बांदा का अक्खड़पन है और नरसिंहपुर की मधुरता भी है। डॉ॰ वीरेंद्र वर्मा ने हिंदी भाषा का इतिहास नामक ग्रंथ में लिखा है कि बुंदेली बुंदेलखंड की उपभाषा है। शुद्ध रूप में यह झांसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, ओरछा, सागर, नरसिंहपुर, सिवनी तथा होशंगाबाद में बोली जाती है। इसके कई मिश्रित रूप दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, बालाघाट तथा छिंदवाड़ा विदिशा के कुछ भागों में पाए जाते हैं।कुछ कुछ बांदा के हिस्से में भी बोली जाती है .

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बोरी बंदर

बोरी बंदर, भारत में मुंबई, की पूर्वी तट रेखा से सटा एक क्षेत्र है, जिसका प्रयोग मुंबई से आयात और निर्यात होने वाले माल के एक गोदाम के तौर पर होता था। बोरी बंदर असल में हिन्दी शब्द बोरी भंडार का ही बिगड़ा रूप है। अंग्रेजों द्वारा भंडार शब्द का उच्चारण बंडार होता था जो धीरे धीरे बंदर बन गया। कुछ लोग बंदर शब्द को बंदरगाह से भी जोड़ते हैं। कुछ भी कहें यहां पर माल को बोरों में भर कर भंडारित किया जाता था। 1850 के दशक में, ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे ने इस क्षेत्र में एक रेलवे टर्मिनस बनाया और स्टेशन का नाम बोरी बंदर रखा गया जिसे बाद में बदलकर विक्टोरिया टर्मिनस और आजकल यह महाराष्ट्र के 17 वीं शताब्दी के राजा शिवाजी के नाम पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CSTM) के नाम से जाना जाता है। 16 अप्रैल 1853 को ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे ने भारतीय रेल की औपचारिक शुरुआत बोरी बंदर से ठाणे के बीच भारत की पहली यात्री रेलगाडी को चला कर की थी, जिसने इन दोनो स्टेशनों के बीच 34 किलोमीटर की दूरी तय की थी। .

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भारत में महिलाएँ

ताज परिसर में भारतीय महिलाएँऐश्वर्या राय बच्चन की अक्सर उनकी सुंदरता के लिए मीडिया द्वारा प्रशंसा की जाती है।"विश्व की सर्वाधिक सुंदर महिला?"cbsnews.com. अभिगमन तिथि २७ अक्टूबर २००७01 भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है। प्राचीन काल में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं। .

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा। वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल २००० ईसा पूर्व से ६०० ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल ३००० ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की २६०० बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र २६५ बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से ४००० साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि सदी में जैन और बौद्ध धर्म सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। अशोक (ईसापूर्व २६५-२४१) इस काल का एक महत्वपूर्ण राजा था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैल गया था। पर वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल सबसे शक्तिशाली निकले। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व ७ वीं और शुरूआती ६ वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, कुरु, पान्चाल, चेदि और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। इसके बाद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया। आठवीं सदी में सिन्ध पर अरबी अधिकार हो गाय। यह इस्लाम का प्रवेश माना जाता है। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क दासों का शासन आ गया जिन्होंने अगले कई सालों तक राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। १५५६ में विजय नगर का पतन हो गया। सन् १५२६ में मध्य एशिया से निर्वासित राजकुमार बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़ल वंश की स्थापना की जो अगले ३०० सालों तक चला। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार शुरु हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। उसने हिन्दुओं पर से जज़िया कर हटा लिया। १६५९ में औरंग़ज़ेब ने इसे फ़िर से लागू कर दिया। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनवाया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिखों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (१७०७) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डचों, पुर्तगालियों तथा फ्रांसिसियों को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और १८५७ के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी १९४७ में मिली जिसमें महात्मा गाँधी के अहिंसा आधारित आंदोलन का योगदान महत्वपूर्ण था। १९४७ के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है। आज़ादी के समय ही भारत का विभाजन हुआ जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ और दोनों देशों में कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर तनाव बना हुआ है। .

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भारत के राजनीतिक दलों की सूची

भारत में बहुदलीय प्रणाली बहु-दलीय पार्टी व्यवस्था है जिसमें छोटे क्षेत्रीय दल अधिक प्रबल हैं। राष्ट्रीय पार्टियां वे हैं जो चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त हैं। उन्हें यह अधिकार भारत के चुनाव आयोग द्वारा दिया जाता है, जो विभिन्न राज्यों में समय समय पर चुनाव परिणामों की समीक्षा करता है। इस मान्यता की सहायता से राजनीतिक दल कुछ पहचानों पर अपनी स्थिति की अगली समीक्षा तक विशिष्ट स्वामित्व का दावा कर सकते हैं जैसे की पार्टी चिन्ह.

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भारतवर्ष (टीवी सीरीज)

भारतवर्ष: महानायकों की गौरव कथा एक भारतीय टेलीविजन ऐतिहासिक वृत्तचित्र श्रृंखला (डॉक्यूमेन्टरी) है, हिंदी समाचार चैनल एबीपी न्यूज पर अभिनेता-निर्देशक अनुपम खेर द्वारा होस्ट किया गया। यह 20 अगस्त 2016 को शुरू हुआ। यह शो भारत के 5000 वर्षीय इतिहास में व्यक्तित्वों के विचारों और विचारों को प्रस्तुत करता है और प्राचीन भारत से 19वीं शताब्दी तक का सफर दर्शाता है। सीजन-1 23 अक्टूबर 2016 को समाप्त हुआ। कुछ अंतराल के बाद सीजन 2 शुरू होगा। .

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भारतीय राष्ट्रवाद

२६५ ईसापूर्व में मौर्य साम्राज्य भारतीय ध्वज (तिरंगा) मराठा साम्राज्य का ध्वज राष्ट्र की परिभाषा एक ऐसे जन समूह के रूप में की जा सकती है जो कि एक भौगोलिक सीमाओं में एक निश्चित देश में रहता हो, समान परम्परा, समान हितों तथा समान भावनाओं से बँधा हो और जिसमें एकता के सूत्र में बाँधने की उत्सुकता तथा समान राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाएँ पाई जाती हों। राष्ट्रवाद के निर्णायक तत्वों मे राष्ट्रीयता की भावना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। राष्ट्रीयता की भावना किसी राष्ट्र के सदस्यों में पायी जानेवाली सामुदायिक भावना है जो उनका संगठन सुदृढ़ करती है। भारत में अंग्रेजों के शासनकाल मे राष्ट्रीयता की भावना का विशेषरूप से विकास हुआ, इस विकास में विशिष्ट बौद्धिक वर्ग का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से एक ऐसे विशिष्ट वर्ग का निर्माण हुआ जो स्वतन्त्रता को मूल अधिकार समझता था और जिसमें अपने देश को अन्य पाश्चात्य देशों के समकक्ष लाने की प्रेरणा थी। पाश्चात्य देशों का इतिहास पढ़कर उसमें राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि भारत के प्राचीन इतिहास से नई पीढ़ी को राष्ट्रवादी प्रेरणा नहीं मिली है किन्तु आधुनिक काल में नवोदित राष्ट्रवाद अधिकतर अंग्रेजी शिक्षा का परिणाम है। देश में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त किए हुए नवोदित विशिष्ट वर्ग ने ही राष्ट्रीयता का झण्डा उठाया। .

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भारतीय व्यक्तित्व

यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय इतिहास तिथिक्रम

भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.

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भगवंतराय खीची

भगवंतराय खीची (अथवा भगवंतसिंह असोथर) उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के रहनेवाले थे। ये कई सुकवियों के आश्रयदाता और बड़े गुणग्राही नरेश थे। महाराज छत्रसाल ओर छत्रपति शिवाजी का जैसा गुणगान 'भूषण' ने किया वैसे ही अनेक सुकवियों ने इनका भी गुणगान किया। सं.

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भक्ति आन्दोलन

भक्ति आन्दोलन मध्‍यकालीन भारत का सांस्‍कृतिक इतिहास में एक महत्‍वपूर्ण पड़ाव था। इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों की धारा द्वारा समाज विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया गया। यह एक मौन क्रान्ति थी। यह अभियान हिन्‍दुओं, मुस्लिमों और सिक्‍खों द्वारा भारतीय उप महाद्वीप में भगवान की पूजा के साथ जुड़े रीति रिवाजों के लिए उत्तरदायी था। उदाहरण के लिए, हिन्‍दू मंदिरों में कीर्तन, दरगाह में कव्‍वाली (मुस्लिमों द्वारा) और गुरुद्वारे में गुरबानी का गायन, ये सभी मध्‍यकालीन इतिहास में (800 - 1700) भारतीय भक्ति आंदोलन से उत्‍पन्‍न हुए हैं। .

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भूषण (हिन्दी कवि)

भूषण (१६१३-१७१५) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों में से एक हैं, अन्य दो कवि हैं बिहारी तथा केशव। रीति काल में जब सब कवि शृंगार रस में रचना कर रहे थे, वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने अपने को सबसे अलग साबित किया। 'भूषण' की उपाधि उन्हें चित्रकूट के राजा रूद्रसाह के पुत्र हृदयराम ने प्रदान की थी। ये मोरंग, कुमायूँ, श्रीनगर, जयपुर, जोधपुर, रीवाँ, शिवाजी और छत्रसाल आदि के आश्रय में रहे, परन्तु इनके पसंदीदा नरेश शिवाजी और बुंदेला थे। .

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मध्यकालीन भारत

मध्ययुगीन भारत, "प्राचीन भारत" और "आधुनिक भारत" के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की लंबी अवधि को दर्शाता है। अवधि की परिभाषाओं में व्यापक रूप से भिन्नता है, और आंशिक रूप से इस कारण से, कई इतिहासकार अब इस शब्द को प्रयोग करने से बचते है। अधिकतर प्रयोग होने वाले पहली परिभाषा में यूरोपीय मध्य युग कि तरह इस काल को छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक माना जाता है। इसे दो अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: 'प्रारंभिक मध्ययुगीन काल' 6वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक और 'गत मध्यकालीन काल' जो 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चली, और 1526 में मुगल साम्राज्य की शुरुआत के साथ समाप्त हो गई। 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक चले मुगल काल को अक्सर "प्रारंभिक आधुनिक काल" के रूप में जाना जाता है, लेकिन कभी-कभी इसे "गत मध्ययुगीन" काल में भी शामिल कर लिया जाता है। एक वैकल्पिक परिभाषा में, जिसे हाल के लेखकों के प्रयोग में देखा जा सकता है, मध्यकालीन काल की शुरुआत को आगे बढ़ा कर 10वीं या 12वीं सदी बताया जाता है। और इस काल के अंत को 18वीं शताब्दी तक धकेल दिया गया है, अत: इस अवधि को प्रभावी रूप से मुस्लिम वर्चस्व (उत्तर भारत) से ब्रिटिश भारत की शुरुआत के बीच का माना जा सकता है। अत: 8वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के अवधि को "प्रारंभिक मध्ययुगीन काल" कहा जायेगा। .

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मराठा

मराठा (पुरातन रूप से मरहट्टा या मारहट्टा के रूप में लिप्यंतरित) भारत में जातियों का एक समूह मुख्य रूप से महाराष्ट्र राज्य में रहता है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के मुताबिक, "मराठा, भारत के इतिहास के बहादुर लोग हैं, इतिहास में प्रचलित हैं और हिंदू धर्म के विजेता हैं।" वे मुख्यतः भारतीय राज्य महाराष्ट्र में रहते हैं। ब्रिटिश राज काल के एक अप्रशिक्षित नृवंशविद वैज्ञानिक रॉबर्ट वाणे रसेल, जो वैदिक साहित्य पर बड़े पैमाने पर अपने शोध का आधार था, ने लिखा कि मराठों को 96 विभिन्न कुलों में विभाजित किया जाता है, जिसे 96 कुलि मराठों या 'शाहनु कुले', के रूप में जाना जाता है, जो की क्षत्रिय है मराठी, में शाहन्नौ का मतलब है 96। सूचियों का सामान्य निकाय अक्सर एक-दूसरे के साथ महान विचरण होता है। .

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मराठा साम्राज्य

मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपती शिवाजी महाराज जी ने १६७४ में डाली। उन्होने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आये पेशवाओनें इसे उत्तर भारत तक बढाया, ये साम्राज्य १८१८ तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया। .

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मराठा साम्राज्य से संबंधित युद्ध

मराठा साम्राज्य (नारंगी रंग में) १७५८ के आस-पास दक्षिण एशिया का राजनैतिक मानचित्र मराठों ने भारतीय उपमहाद्वीप में एक के बाद एक अनेक युद्ध लड़े और जीते। इससे मराठा साम्राज्य का निर्माण हुआ। इन विजयों की शृंखला का आरम्भ १६५९ में शिवाजी द्वारा प्रतापगढ़ के युद्ध में विजयप्राप्ति के साथ हुआ। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

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मराठी लोग

शिवाजी महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रजनीकांत सचिन तेंदुलकर .

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मराठी साहित्य

मराठी साहित्य महाराष्ट्र के जीवन का अत्यंत संपन्न तथा सुदृढ़ उपांग है। .

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मर्दानी खेल

मर्दानी खेल भारत के महाराष्ट्र प्रान्त का परम्परागत मार्शल आर्ट है। यह मराठों द्वारा सृजित एक शस्त्रों वाली युद्ध कला है। इस परम्परागत कला का अभ्यास मुख्यतः कोल्हापुर में किया जाता है। यह युद्ध कला महाराष्ट्र के पहाड़ी क्षेत्र के अनुकूल है जहाँ यह उत्पन्न हुयी थी। इसमें तेज गतियाँ शामिल होती हैं। यह कला शस्त्रों विशेषकर तलवारों पर केन्द्रित है। इसमें लाठी-काठी, तलवार-ढाल, दाँडपट्टा आदि हथियारों का अभ्यास शामिल हैं। दोहरी पट्टा तलवार दाँडपट्टा का प्रयोग प्रमुख है। अन्य हथियारों में बाघनख, बिछवा आदि शामिल हैं। अभ्यास करने वाले परम्परागत सफेद-भगवा वेशभूषा पहनते हैं। .

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महार रेजिमेंट

महार रेजिमेंट भारतीय सेना का एक इन्फैन्ट्री रेजिमेंट है। यद्यपि मूलतः इसे महाराष्ट्र के महार सैनिकों को मिलाकर बनाने का विचार था, किन्तु केवल यही भारतीय सेना का एकमात्र रेजिमेन्ट है जिसे भारत के सभी समुदायों और क्षेत्रों के सैनिकों को मिलाकर बनाया गया है। .

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महाराष्ट्र की संस्कृति

महाराष्ट्र भारत देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य हैं। स्कन्दपुराणके अनुसार यह क्षेत्र पंच द्रविडमे से एक हैं| विन्ध्याचल से उत्तर और दक्षिण को मुख्य क्षेत्र माननेवाले ब्राह्मणों की दश सम्प्रदाय में से एक समुह महाराष्ट्र हैं| वह संतों, शिक्षाविदों और क्रांतिकारियों की भूमि मानी जाती हैं, जिनमें महादेव गोविंद रानाडे, विनायक दामोदर सावरकर, सावित्रीबाई फुले, बाल गंगाधर तिलक, आदि प्रसिद्ध हैं। वारकरी धार्मिक आन्दोलन के मराठी संतों का लम्बा इतिहास हैं जिनमें ज्ञानेश्वर, नामदेव, चोखामेला, एकनाथ और तुकाराम जैसे संत शामिल हैं, जो महाराष्ट्र या मराठी संस्कृति की संस्कृति के आधार को एक बनाता हैं। महाराष्ट्र अपने पुरोगामी संस्कृति (सुधारवादी संस्कृति) के लिए भी जाना जाता हैं, जो शुरू पूर्व संतों द्वारा किया गया और महात्मा फुले, शाहू महाराज, डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने आधुनिक समय में इसका नेतृत्व में किया। १७ वी सदी के मराठा साम्राज्य के राजा शिवाजी और उनकी हिंदवी स्वराज्य की अवधारणा (लोगों का स्व-शासन) के कारण महाराष्ट्र का पूरी दुनिया में बड़ा प्रभाव हैं। महाराष्ट्र राज्य में कई संस्कृतियों का फैलाव हैं, जिनमें वैदिक हिंदू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई आदि से संबंधित संस्कृतियाँ शामिल हैं। भगवान गणेश और भगवान विट्ठल महाराष्ट्र के हिंदुओं द्वारा पूजित पारंपरिक देवता हैं। महाराष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में बाँटा गया हैं - मराठवाडा, विदर्भ, खानदेश, कोंकण, आदि तथा प्रत्येक क्षेत्र की लोक गीत, भोजन, जातीयता, मराठी भाषा के विभिन्न बोलियों के रूप में अपनी खुद की सांस्कृतिक पहचान हैं। .

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महाराजा जसवंत सिंह (मारवाड़)

महाराजा जसवंत सिंह (26 दिसम्बर 1629 – 28 दिसम्बर 1678) मारवाड़ के शासक थे। वे राठौर राजपूत थे। वे एक अच्छे लेखक थे जिन्होने 'सिद्धान्त-बोध', 'आनन्दविलास' तथा 'भाषाभूषण' नामक ग्रंथों की रचना की। .

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महाराजा छत्रसाल

छत्रसाल छत्रसाल (4 मई 1649 – 20 दिसम्बर 1731) भारत के मध्ययुग के एक प्रतापी योद्धा थे जिन्होने मुगल शासक औरंगजेब से युद्ध करके बुन्देलखण्ड में अपना राज्य स्थापित किया और 'महाराजा' की पदवी प्राप्त की। .

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माता-पिता

माता-पिता या जनक का अंग्रेजी अनुवाद अधिक प्रयोग में आता है, जिसे  parent शब्द से उल्लिखित किया जाता है। भारतीय सभ्यता में माता-पिता का एक विशिष्ट स्थान है उन्हें गुरु व भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। इसे अति सरल शब्दो में समझनें के लिये बस इतना ही पर्याप्त है कि भारत में जितने भी अवतार आज तक हुए हैं, उन में से अधिकतर ने किसी न किसी माता के गर्भ से ही जन्म लिया है। चाहे भगवान श्री राम चन्द्र हो, श्री कृष्ण हो, श्री वामन अवतार हो, परशुराम अवतार हो या फिर संकट मोचन हनुमान हो। ये अवतार चाहे किसी भी भगवान ने लिया हो सब को किसी न किसी माता के गर्भ से जन्म लेना ही पड़ा है। अर्थात् हर अवतार को परिपूर्ण रूप से माता-पिता की स्नेह रूपी छाया में रह कर प्राम्भिक शिक्षा, संस्कार व आचार विहार सब कुछ ग्रहण करना पड़ता है। इस श्रेणी में पालक माता-पिता और पालक सम्बन्धी भी अन्तर्भूत होते हैं। जिसका सन्दर्भ श्रीकृष्ण की पालक/अभिभावक माता यशोदा और नन्द हैं। भारतीय सभ्यता का मूल रूप व आचरण सर्व प्र्थम माता-पिता द्वारा दी गई प्रारम्भिक शिक्षा पर ही निर्भर करता है। जिसके लिये भारतवर्ष पूर्णतय शक्ष्म है लेकिन इन्ही सस्कांरो,आचरणो व आचार विहार को खण्डित करने में उन सभी बाहरी ताकतो ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी जिन्होने इस पावन धरती पर हजारों साल राज किया और हमारी धरोहर संस्कृति को तार-२ करने में कोई कसर नहीं छोडी। ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पूर्वज कितने गुणवान,सभ्य व स्ंस्कारी थे और भारत का इतिहास व स्ंरचना तो ऐसे कर्मठ योगियों,साधु-सन्तो व ऋषि-मुनियों द्वारा रचित की गई है जो अपने आप में उस समय के पुर्ण विज्ञानिक थे उनके एक-२ शोध वेदों व विज्ञानिक दृषिट से सम्पुर्ण थे। भारतीय संस्कृति में माता-पिता का आदर करना,उनके द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करना बच्चो का प्र्मुख कर्त्तव्य रहता है भारतीय समाज निर्माण में भी माता-पिता का एक विशिष्ठ स्थान है यह एक ऐसा सत्य है जिसके बीसीयों परिमाण हमारे देश में मौज़ूद है माता-पिता के आदर्शो पर चलने वाले असख्य्ं ऐसे महापुरषों के उदाहरण है जेसे:- आदर्श पुरुष श्री राम चन्द्र जी, श्रवण कुमार, महाराजा रण्जीत सिंह, शिवाजी महाराजा, शहिद भगत सिंह व अन्य कितनी विडम्बना है कि आज के परिपेक्ष में हम लोग ही अपनी धरोहर संस्कृति से दूर होते जा रहें है इन सब के अनेक कारण है जेसे:- संयुक्त परिवार चित्र:गुणराज अवस्थीको परिवार.jpg|संयुक्त परिवार संयुक्त परिवार का विघटन, हजारों साल की गुलामी,पाश्चात्य संस्कृति का बिना सोचे समझे अनुसरण,कार्य की अत्यधिक व्यस्तता, बडों के प्र्ति आदर-सम्मान की कमी व मोबाईल और नेट के अत्य्धिक प्रचलन ने भी हमें अपनो से ही दूर होने पर मजबुर कर दिया है इस का एक और अत्यधिक सवेदनशील् ज्जवलंत कारण है पेसा कमाने की होड में आज के परिपेक्ष में माता-पिता दोनो का नौकरी करना जिसकी वजह से आज के युग में भारतीय बच्चे अपने माता-पिता के सुख व उनके द्वारा दिये जाने वाले संस्कारो से वंचित रह रहे हैं दूसरे एकाकी परिवारवाद ने भी हमें अपने बजुर्गो के आशिर्वाद से हमें वंचित कर दिया है परन्तुं अभी भी आधुनिक् भारतीय परिपेक्ष में हमनें अपने वैदिक संस्कारों को नहीं भुला है माता-पिता जितना भी हो सके अपने बच्चों में भरतीय संस्कार देना नहीं भुलते। .

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माधवाचार्य विद्यारण्य

माधवाचार्य, द्वैतवाद के प्रवर्तक माध्वाचार्य से भिन्न हैं। ---- माधवाचार्य या माधव विद्यारण्य (१२९६ -- १३८६), विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक हरिहर राया प्रथम एवं बुक्का राया प्रथम के संरक्षक, सन्त एवं दार्शनिक थे। उन्होने दोनो भाइयों को सन् १३३६ में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में सहायता की। वे विद्या के भण्डार-सरस्वती के वरद पुत्र, महान तपस्वी और अद्भुत प्रतिभावान् थे। संस्कृत वाङ्मय में इतनी अधिक एवं उनकी इतनी उच्चकोटि की कृतियाँ है कि उन्हें इस युग के व्यास कहा जाता है। उन्होने सर्वदर्शनसंग्रह की रचना की जो हिन्दुओं दार्शनिक सम्प्रदायों के दर्शनों का संग्रह है। इसके अलावा उन्होने अद्वैत दर्शन के 'पंचदशी' नामक ग्रन्थ की रचना भी की। विद्यारण्य की तुलना में यदि मध्यकाल में दूसरा कोई नाम लिया जा सकता है, तो वह समर्थ गुरु रामदास का है, जिन्होंने शिवाजी महाराज को माध्यम बनाकर इस्लामी साम्राज्य का मुकाबला किया। स्वामी विद्यारण्य का जन्म 11 अप्रैल 1296 को तुंगभद्रा नदी के तटवर्ती पम्पाक्षेत्र (वर्तमान हम्पी) के किसी गांव में हुआ था। उनके पिता मायणाचार्य उस समय के वेद के प्रकांड विद्वान थे। मां श्रीमती देवी भी विदुषी थी। इन्हीं विद्यारण्य के भाई आचार्य सायण ने चारों वेदों का वह प्रतिष्ठित टीका की थी, जिसे ‘सायणभाष्य’ के नाम से जाना जाता है। विद्यारण्य का बचपन का नाम माधव था। विद्यारण्य का नाम तो 1331 में उन्होंने तब धारण किया, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। विद्यारण्य ने हरिहर प्रथम के समय से राजाओं की करीब तीन पीढ़ियों का राजनीतिक व सांस्कृतिक निर्देशन किया। 1372 में करीब 76 वर्ष की आयु में उन्होंने राजनीति से सेवानिवृत्ति ली और श्रृंगेरी वापस पहुंच गये और उसके पीठाधीश्वर बने। इसके करीब 14 वर्ष बाद 1386 में उनका स्वर्गवास हो गया। लेकिन जीवनभर वह भारत देश, समाज व संस्कृति के संरक्षण की चिंता करते रहे। उन्होंने अद्वैत दर्शन से संबंधित ग्रंथों के साथ सामाजिक महत्व के ग्रंथों का भी प्रणयन किया। अपनी पुस्तक ‘प्रायश्चित सुधानिधि’ में उन्होंने हिन्दुओं के पतन के कारणों की भी अपने ढंग से व्याख्या की है। उन्होंने हिन्दुओं की विलासिता को उनके पतन का सबसे बड़ा कारण बताया। नियंत्रणहीन विलासिता का इस्लामी जीवन हिन्दुओं को बहुत आकर्षित कर रहा था। नाचने गाने वाली दुश्चरित्र स्त्रियों व मुस्लिम वेश्याओं के संग का उन्होंने कठोरता से निषेध किया है। विद्यारण्य की प्रारंभिक शिक्षा तो उनके पिता के सान्निध्य में ही हुई थी, लेकिन आगे की शिक्षा के लिए वह कांची कामकोटि पीठ के आचार्य विद्यातीर्थ के पास गये थे। इन स्वामी विद्यातीर्थ ने विद्यारण्य को मुस्लिम आक्रमण से देश की संस्कृति और समाज की रक्षा हेतु नियुक्त किया था। विद्यारण्य ने गुरु का आदेश पाकर पूरा जीवन उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समर्पित कर दिया। .

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मालवन

मालवन या मालवण (मराठी:मालवण),भारत के राज्य महाराष्ट्र में दक्षिण में स्थित सिंधुदुर्ग जिले, का एक कस्बा है। सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह कस्बा सिंधुदुर्ग जिले का एक तालुका भी है। मालवन शिवाजी द्वारा निर्मित सिंधुदुर्ग और मालवनी भोजन के लिए मशहूर है। यह स्थान आमों की विभिन्न किस्मों जैसे कि अलफांसो और मालवनी हापुस के लिए भी प्रसिद्ध है। इसके साथ ही यहाँ बनने वाली मिठाइयां जैसे कि मालवनी खेजा और मालवनी लड्डू पूरे महाराष्ट्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में प्रसिद्ध हैं। पौराणिक कहानियों पर आधारित नाटक, मालवनी दशावतार, मालवनी संस्कृति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रसिद्ध नाटककार और टीवी अभिनेता श्री मछीन्द्र कांबली मालवन से आते हैं। .

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मालोजी भोंसले

मालोजी भोंसले (लगभग १५५०-१६२० ई०) शाहजी के पिता तथा ख्यातिलब्ध छत्रपति शिवाजी के पितामह थे। मालोजी के पिता का नाम बाबाजी भोंसले था जो वेरूल के निवासी थे। उनका विवाह मराठा अभिजात वंश में उत्पन्न बनगोजी नामक निंबालकर की बहिन दीपाबाई से हुआ था। २७ वर्ष की अवस्था में वे सिंधखेड के लखू जी यादव के अधीन, जो अहमदनगर के निजामशाही राज में उच्च पदाधिकारी थे, एक पद पर नियुक्त हो गए। सौभाग्य से मालोजी को अकस्मात् एक स्थान पर गड़ा हुआ धन प्राप्त हो गया। जिससे उन्होंने अपनी सेना में बहुत से युवक सिलहदारों को भरती कर लिया। अपने साहस, वीरता और सैनिक पराक्रम से उन्होंने यथेष्ट ख्याति अर्जित कर ली और समाज में अपने पुराने स्वामी लखूजी जादव के समकक्ष स्थान प्राप्त कर लिया। अब उन्होंने लखू जी से अनुरोध किया कि वे अपनी पुत्री जीजाबाई का विवाह उनके पुत्र शाहजी से कर दें। इसका प्रस्ताव उन्होंने एक बार पहले भी किया था किंतु उस समय लखूजी ने उसे ठुकरा दिया था, पर अब उन्हें प्रतिष्ठित स्थिति में देखकर लखूजी ने सहर्ष इसकी स्वीकृति दे दी। निजामशाही वंश को कुछ सीमा तक पुनरधिष्ठित कराने में मालोजी ने प्रसिद्ध सेनानी और राजनेता मलिक अंबर की सहायता की, जिसके बदले में उन्हें दौलताबाद तथा पूना के बीच में स्थित कुछ क्षेत्र जागीर के रूप में भेंट कर दिए गए। उन्होंने वेरूल के धृष्णेश्वर मंदिर का जीर्णोद्वार कराया, जैसा एक अभिलेख से प्रकट होता है। उन्होंने खानदेश में शिंगनपुर नामक स्थान पर एक तालाब बनवाया जिससे वहाँ के निवासियों को यथेष्ट मात्रा में पेय जल की उपलब्धि हो सके। श्रेणी:भारत के शासक श्रेणी:भारत का इतिहास.

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मुहम्मद अकबर

मुहम्मद अकबर (१६५३-१७०४ ई.) औरंगजेब का चौथा पुत्र था और 'अकबर द्वितीय' के नाम से इतिहास में जाना जाता है। उसने अपने पिता औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कर सम्राट बनने की कोशिश की जिसमें उसे सफलता नहीं मिली। सन् १६७८ में पश्चिमोत्तर भारत के अंतर्गत जमरूद नामक स्थान पर जोधपुर के महाराजा यशवंत सिंह की मृत्यु हो गई। औरंगजेब ने तत्काल महाराजा के राज्य पर कब्जा किया और उनके बालक पुत्र अजीत सिंह को उसकी माँ के साथ शाही हरम में कैद कर लिया। स्वयं औरंगजेब अजमेर पहुँचा और जिजिया लागू कर दिया। इसी बीच दुर्गादास राठौर लड़-भिड़कर अजीत सिंह और महारानी को दिल्ली से निकाल लाया। उधर अपनी संशयालु प्रकृति के कारण औरंगजेब ने अकबर को चित्तौड़ की सूबेदारी से हटाकर मारवाड़ भेज दिया। इससे क्षुब्ध अकबर ने महाराणा जयसिंह और दुर्गादास से मिलकर स्वयं को मुगल सम्राट घोषित किया और मुगल साम्राज्य पर कब्जा करने के इरादे से अजमेर की तरफ बढ़ा। औरंगजेब तत्काल इस स्थिति में नहीं था कि वह अकबर की ७० हजार सेना से टक्कर ले सकता। अत उसने धोखाधड़ी भरा एक पत्र अकबर के नाम लिखा और योजनानुसार उसे राजपूतों के हाथों पड़ जाने दिया। पत्र पाकर राजपूत शंकित हो उठे और उन्होंने अकबर का साथ छोड़ दिया। विवश अकबर को युद्धविरत होना पड़ा। कुछ समय उपरांत पत्र का रहस्य खुल जाने पर दुर्गादास स्वयं अकबर से मिला और मई, १६८१ में सुरक्षित उसे दक्षिण भारत पहुँचा दिया, जहाँ वह एक वर्ष से अधिक शिवाजी के पुत्र संभाजी (शंभुजी) के दरबार में रहा। पश्चात् अकबर फारस चला गया। वहाँ सन् १७०४ में उसकी मृत्यु हो गई। .

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मैनपुरी षड्यन्त्र

पं० गेंदालाल दीक्षित (मैनपुरी काण्ड के नेता) का चित्र परतन्त्र भारत में स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिये उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी में सन् १९१५-१६ में एक क्रान्तिकारी संस्था की स्थापना हुई थी जिसका प्रमुख केन्द्र मैनपुरी ही रहा। मुकुन्दी लाल, दम्मीलाल, करोरीलाल गुप्ता, सिद्ध गोपाल चतुर्वेदी, गोपीनाथ, प्रभाकर पाण्डे, चन्द्रधर जौहरी और शिव किशन आदि ने औरैया जिला इटावा निवासी पण्डित गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध काम करने के लिये उनकी संस्था शिवाजी समिति से हाथ मिलाया और एक नयी संस्था मातृवेदी की स्थापना की। इस संस्था के छिप कर कार्य करने की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को लग गयी और प्रमुख नेताओं को पकड़कर उनके विरुद्ध मैनपुरी में मुकदमा चला। इसे ही बाद में अंग्रेजों ने मैनपुरी षडयन्त्र कहा। इन क्रान्तिकारियों को अलग-अलग समय के लिये कारावास की सजा हुई। मैनपुरी षडयन्त्र की विशेषता यह थी कि इसकी योजना प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश के निवासियों ने ही बनायी थी। यदि इस संस्था में शामिल मैनपुरी के ही देशद्रोही गद्दार दलपतसिंह ने अंग्रेजी सरकार को इसकी मुखबिरी न की होती तो यह दल समय से पूर्व इतनी जल्दी टूटने या बिखरने वाला नहीं था। मैनपुरी काण्ड में शामिल दो लोग - मुकुन्दीलाल और राम प्रसाद 'बिस्मिल' आगे चलकर सन् १९२५ के विश्वप्रसिद्ध काकोरी काण्ड में भी शामिल हुए। मुकुन्दीलाल को आजीवन कारावास की सजा हुई जबकि राम प्रसाद 'बिस्मिल' को तो फाँसी ही दे दी गयी क्योंकि वे भी मैनपुरी काण्ड में गेंदालाल दीक्षित को आगरा के किले से छुडाने की योजना बनाने वाले मातृवेदी दल के नेता थे। यदि कहीं ये लोग अपने अभियान में कामयाब हो जाते तो न तो सन् १९२७ में राजेन्द्र लाहिडी व अशफाक उल्ला खाँ सरीखे होनहार नवयुवक फाँसी चढते और न ही चन्द्रशेखर आजाद जैसे नर नाहर तथा गणेशशंकर विद्यार्थी सरीखे प्रखर पत्रकार की सन् १९३१ में जघन्य हत्याएँ हुई होतीं। .

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मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले

मोरोपन्त त्रयम्बक पिंगले (1620 – 1683), मराठा साम्राज्य के प्रथम पेशवा थे। उन्हें 'मोरोपन्त पेशवा' भी कहते हैं। वे शिवाजी के अष्टप्रधानों में से एक थे। .

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मोरोपंत पिंगले

मोरेश्वर नीलकण्ठ पिंगले (मोरेश्वर निळकंठ पिंगळे; 30 अक्टूबर 1919 -21 सितम्बर 2003) उपाख्य मोरोपन्त पिंगले, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अग्रणी नेता थे। उन्हें मराठी में "हिन्दु जागरणाचा सरसेनानी", (हिन्दू जनजागरण के सेनापति) की उपाधि से विभूषित किया जाता है। आरएसएस के प्रचारक के रूप में उनके ६५ वर्ष के कार्यकाल में वे अनेक उत्तरदायित्वों का निर्वाह किया जिसमें अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख का उत्तरदायित्व प्रमुख है। सन् १९७५ के आपातकाल के समय ६ अघोषित सरसंघचालकों में से वे भी एक थे। वे रामजन्मभूमि आन्दोलन के रणनीतिकार थे। .

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मी शिवाजीराजे भोसले बोलतोय

मी शिवाजीराजे भोसले बोलतोय (हिन्दी अनुवाद:मैं शिवाजीराजे भोसले बोल रहा हूँ) २००९ में बनी मराठी फ़िल्म ह। फ़िल्म को १३९ पर्दों पर रिलीज़ किया गया था और इसने पहले ही हफ़्ते में १.५ करोड़ कमाए जो एक मराठी फ़िल्म के लिए सबसे बड़ी शुरुआत थी। इसने कुल २६ करोड़ का व्यवसाय किया। .

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येसूबाई

येसूबाई (1719 ए डी), मराठा छत्रपति संभाजी की पत्नी थीं।  वह पिलाजीराव शिरके, एक मराठा सरदार (मुखिया) जो कि छत्रपति शिवाजी की सेवाओं में थे, उनकी बेटी थीं। जब रायगढ़ के मराठा किले पर  मुग़लों द्वारा 1689 में कब्जा कर लिया गया था, तब येसूबाई को उनके युवा पुत्र शाहु के साथ कैद कर लिया गया था। हालांकि उनको हर जगह औरंगजेब के साथ लेजाया जाता था पर फिर भी उसने (औरंगजेब) कभी भी उनका ध्यान नहीं रखा। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, उनका बेटा आजम सम्राट बना और उसने मराठा रैंकों में विभाजन को प्रोत्साहित करने के लिए, शाहु को जारी किया। हालांकि, मुग़लों ने येसूबाई को एक दशक के लिए कैद में रखा था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि शाहु अपनी रिहाई पर हस्ताक्षर किए गए संधि की शर्तों पर ध्यान रखे। आखिर 1719 में, पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट ने उन्हें वहाँ से एक व्यापक संधि के साथ छुड़वा लिया जिसे मुग़लों की मान्यता प्राप्त थी और उसमें शाहु को शिवाजी का असली उत्तराधिकारी माना गया था। .

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रणजीत देसाई

रणजीत रामचंद्र देसाई (जन्म- 8 अप्रैल 1928 ई०, निधन- 6 मार्च 1998 ई०) मराठी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके हिन्दी में अनूदित उपन्यास भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। .

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रामराज

मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी का वंशज।.

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रायगढ़

रायगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के महाड में पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध दुर्ग है। इसे छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था और १६७४ में इसे अपनी राजधानी बनाया। रायगड पश्चिमी भारत का ऐतिहासिक क्षेत्र है। यह मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के ठीक दक्षिण में महाराष्ट्र में स्थित है। यह कोंकण समुद्रतटीय मैदान का हिस्सा है, इसका क्षेत्र लहरदार और आड़ी-तिरछी पहाड़ियों वाला है, जो पश्चिमी घाट (पूर्व) की सह्याद्रि पहाड़ियों की खड़ी ढलुआ कगारों से अरब सागर (पश्चिम) के ऊँचे किनारों तक पहुँचता है। यह किला सह्याद्री पर्वतरांग मे स्थित है.

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राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत)

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, भारतीय सशस्त्र सेना की एक संयुक्त सेवा अकादमी है, जहां तीनों सेवाओं, थलसेना, नौसेना और वायु सेना के कैडेटों को उनके संबंधित सेवा अकादमी के पूर्व-कमीशन प्रशिक्षण में जाने से पहले, एक साथ प्रशिक्षित किया जाता है। यह महाराष्ट्र, पुणे के करीब खडकवासला में स्थित है। जबसे अकादमी की स्थापना हुई है तब से एनडीए के पूर्व छात्रों ने सभी बड़े संघर्ष का नेतृत्व किया है जिसमें भारतीय थलसेना को कार्यवाही के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है। पूर्व छात्रों में तीन परमवीर चक्र प्राप्तकर्ता और 9 अशोक चक्र प्राप्तकर्ता शामिल हैं। .

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राजमाता जिजाऊ

राजमाता जिजाऊ मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपती शिवाजी की माँ जिजाबाई के जीवन पर आधारित २०११ की एक मराठी फ़िल्म है। .

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राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र

भारतीय इतिहास में दो ऐसे पत्र मिलते हैं जिन्हें दो विख्यात महापुरुषों ने दो कुख्यात व्यक्तिओं को लिखे थे। इनमे पहिला पत्र "जफरनामा" कहलाता है जिसे श्री गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को भाई दया सिंह के हाथों भेजा था। यह दशम ग्रन्थ में शामिल है जिसमे कुल 130 पद हैं। दूसरा पत्र छ्त्रपति शिवाजी ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा था जो उसे 3 मार्च 1665 को मिल गया था। इन दोनों पत्रों में यह समानताएं हैं की दोनों फारसी भाषा में शेर के रूप में लिखे गए हैं। दोनों की पृष्टभूमि और विषय एक जैसी है। दोनों में देश और धर्म के प्रति अटूट प्रेम प्रकट किया गया है। शिवाजी पत्र बरसों तक पटना साहेब के गुरुद्वारे के ग्रंथागार में रखा रहा। बाद में उसे "बाबू जगन्नाथ रत्नाकर" ने सन 1909 अप्रैल में काशी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित किया था। बाद में अमर स्वामी सरस्वती ने उस पत्र का हिन्दी में पद्य और गद्य ने अनुवाद किया था। फिर सन 1985 में अमरज्योति प्रकाशन गाजियाबाद ने पुनः प्रकाशित किया था। राजा जयसिंह आमेर का राजा था। वह उसी राजा मानसिंह का नाती था, जिसने अपनी बहिन अकबर से ब्याही थी। जयसिंह सन 1627 में गद्दी पर बैठा था और औरंगजेब का मित्र था। शाहजहाँ ने उसे 4000 घुड सवारों का सेनापति बना कर "मिर्जा राजा" की पदवी दी थी। औरंगजेब पूरे भारत में इस्लामी राज्य फैलाना चाहता था लेकिन शिवाजी के कारण वह सफल नही हो रहा था। औरंगजेब चालाक और मक्कार था। उसने पाहिले तो शिवाजी से से मित्रता करनी चाही। और दोस्ती के बदले शिवाजी से 23 किले मांगे। लेकिन शिवाजी उसका प्रस्ताव ठुकराते हुए 1664 में सूरत पर हमला कर दिया और मुगलों की वह सारी संपत्ति लूट ली जो उनहोंने हिन्दुओं से लूटी थी। फिर औरंगजेब ने अपने मामा शाईश्ता खान को चालीस हजार की फ़ौज लेकर शिवाजी पर हमला करावा दिया और शिवाजी ने पूना के लाल महल में उसकी उंगलियाँ काट दीं और वह भाग गया। फिर औरंगजेब ने जयसिंह को कहा की वह शिवाजी को परास्त कर दे। जयसिंह खुद को राम का वंशज मानता था। उसने युद्ध में जीत हासिल करने के लिए एक सहस्त्र चंडी यज्ञ भी कराया। शिवाजी को इसकी खबर मिल गयी थी जब उन्हें पता चला की औरंगजेब हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाना चाहता है। जिस से दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे। तब शिवाजी ने जयसिंह को समझाने के लिए जो पत्र भेजा था। उसके कुछ अंश नीचे दिये हैं - 1 जिगरबंद फर्जानाये रामचंद ज़ि तो गर्दने राजापूतां बुलंद। 2 शुनीदम कि बर कस्दे मन आमदी -ब फ़तहे दयारे दकन आमदी। 3 न दानी मगर कि ईं सियाही शवद कज ईं मुल्को दीं रा तबाही शवद। 4 बगर चारा साजम ब तेगोतबर दो जानिब रसद हिंदुआं रा जरर 5 बि बायद कि बर दुश्मने दीं ज़नी बुनी बेख इस्लाम रा बर कुनी। 6 बिदानी कि बर हिन्दुआने दीगर न यामद चि अज दस्त आं कीनावर। 7 ज़ि पासे वफ़ा गर बिदानी सखुन चि कर्दी ब शाहे जहां याद कुन 8 मिरा ज़हद बायद फरावां नमूद -पये हिन्दियो हिंद दीने हिनूद 9 ब शमशीरो तदबीर आबे दहम ब तुर्की बतुर्की जवाबे दहम। 10 तराज़ेम राहे सुए काम ख्वेश - फरोज़ेम दर दोजहाँ नाम ख्वेश .

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राजाराम प्रथम

राजाराम राजे भोंसले (24 फरवरी 1670 - 3 मार्च 1700 सिंहगढ़) मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के छोटे पुत्र थे तथा सम्भाजी के सौतेले भाई थे। वे 1689 में मुग़ल साम्राज्य के शासक औरंगजेब के द्वारा सम्भाजी की हत्या कर दिये जाने के बाद मराठा साम्राज्य के तृतीय छत्रपति बने। उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा, जिसमें अधिकांश समय वह मुग़लों से युद्ध में उलझे रहे। .

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राजगुरु

अमर शहीद '''शिवराम हरि राजगुरु''' शिवराम हरि राजगुरु (मराठी: शिवराम हरी राजगुरू, जन्म:२४अगस्त१९०८-मृत्यु:२३ मार्च १९३१) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ २३ मार्च १९३१ को फाँसी पर लटका दिया गया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी। शिवराम हरि राजगुरु का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी सम्वत् १९६५ (विक्रमी) तदनुसार सन् १९०८ में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था। ६ वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। इन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदो का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कण्ठस्थ कर लिया था। इन्हें कसरत (व्यायाम) का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे। वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये। आजाद की पार्टी के अन्दर इन्हें रघुनाथ के छद्म-नाम से जाना जाता था; राजगुरु के नाम से नहीं। पण्डित चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे। साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी। २३ मार्च १९३१ को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया। .

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राज्यव्यवहार कोश

राज्यव्यवहार कोश एक कोशग्रन्थ है जिसका निर्माण छत्रपति शिवाजी के एक मंत्री रामचन्द्र अमात्य ने धुन्धिराज नामक विद्वान की सहायता से निर्मित किया था। इस कोश में १३८० फारसी के प्रशासनिक शब्दों के तुल्य संस्कृत शब्द थे। अपने राज्याभिषेक के बाद शिवाजी ने रामचन्द्र अमात्य को शासकीय उपयोग में आने वाले फारसी शब्दों के लिये उपयुक्त संस्कृत शब्द निर्मित करने का यह कार्य सौंपा था। इस कोश में रामचन्द्र ने लिखा है- श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

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लता मंगेशकर

लता मंगेशकर (जन्म 28 सितंबर, 1929 इंदौर) भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं, जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालाँकि लता जी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में फ़िल्मी और गैर-फ़िल्मी गाने गाये हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लता की जादुई आवाज़ के भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में दीवाने हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पार्श्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। .

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लाला लाजपत राय

लालाजी (१९०८ में) लाला लाजपत राय (पंजाबी: ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ, जन्म: 28 जनवरी 1865 - मृत्यु: 17 नवम्बर 1928) भारत के जैन धर्म के अग्रवंश मे जन्मे एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। सन् 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये और अन्तत: १७ नवम्बर सन् १९२८ को इनकी महान आत्मा ने पार्थिव देह त्याग दी। .

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शरभोजी राजे भोसले (द्वितीय)

राजा शरभोजी भोसले (द्वितीय) (तमिल: இரண்டாம் சரபோஜி ராஜா போன்ஸ்லே; मराठी: शरभोजी राजे भोसले (द्वितीय)) (२४ सितम्बर १७७७ - ७ मार्च १८३२) तंजावुर के मराठा राज्य भोसले राजवंश के अन्तिम शासक थे जिनका प्रजा पर पूर्ण सत्ता थी। वे शिवाजी के भाई वेंकोजी के वंशज थे। उन्होने १७९८ ईसवी से १८३२ ई तक (मृत्यु पर्यन्त) तंजावुर पर शासन किया। वे एक अच्छे नेत्र चिकित्सक भी थे। .

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शाहजी

शाहजी भोसले (१५९४-१६६४) छत्रपति शिवाजी के पिता थे। .

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शाहु

छत्रपति शाहु (१६८२-१७४९) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के पौत्र और सम्भाजी का बेटे थे। ये ये छत्रपति शाहु महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंतराव था। जब शाहूजी महाराज बालावस्था में थे तभी उनकी माता राधाबाई का निधन तब हो गया । उनके पिता का नाम श्रीमान जयसिंह राव अप्पा साहिब घटगे था। कोलहापुर के राजा शिवजी चतुर्थ की हत्या के पश्चात उनकी विधवा आनन्दीबाई ने उन्हें गोद ले लिया। शाहूजी महाराज को अल्पायु में ही कोल्हापुर की राजगद्दी का उतरदायित्व वहन करना पड़ा। वर्ण-विधान के अनुसार शहूजी शूद्र थे। वे बचपन से ही शिक्षा व कौशल में निपुर्ण थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् उन्होने भारत भ्रमण किया। यद्यपि वे कोल्हापुर के महाराज थे परन्तु इसके बावजूद उन्हें भी भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद के विष को पीना पड़ा। नासिक, काशी व प्रयाग सभी स्थानों पर उन्हें रूढ़ीवादी ढोंगी ब्राम्हणो का सामना करना करना पड़ा। वे शाहूजी महाराज को कर्मकांड के लिए विवश करना चाहते थे परंतु शाहूजी ने इंकार कर दिया। समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा जाति के आधार पर किया जा रहा अत्याचार को देख शाहूजी महाराज ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि दलित उद्धार योजनाए बनाकर उन्हें अमल में भी लाए। लन्दन में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह के पश्चात् शाहूजी जब भारत वापस लौटे तब भी ब्राह्मणो ने धर्म के आधार पर विभिन्न आरोप उन पर लगाए और यह प्रचारित किया गया की समुद्र पार किया है और वे अपवित्र हो गए है। शाहूजी महाराज की ये सोच थी की शासन स्वयं शक्तिशाली बन जाएगा यदि समाज के सभी वर्ग के लोगों की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सन 1902 में शाहूजी ने अतिशूद्र व पिछड़े वर्ग के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया। उन्होंने कोलहापुर में शुद्रों के शिक्षा संस्थाओ की शृंखला खड़ी कर दी। अछूतों की शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया। शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृति व पुरस्कार की व्यवस्था भी करवाई। यद्यपि शाहूजी एक राजा थे परन्तु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक समाजसेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ की। उन्होंने देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त किया। विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की और नारी शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा का भार सरकार पर डाला। मन्दिरो, नदियों, सार्वजानिक स्थानों को सबके लिए समान रूप से खोल दिया गया। शाहूजी महाराज ने डॉ.

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शिवनेरी

शिवनेरी दुर्ग का मुख्य प्रवेश शिवनेरी दुर्ग या शिवनेरी किला, भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे के जुन्नर गांव के पास स्थित एक ऐतिहासिक किला है। शिवनेरी छत्रपति शिवाजी का जन्मस्थान भी है। शिवाजी के पिता, शाहजी बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह की सेना में एक सेनापति थे। लगातार हो रहे युद्ध के कारण शाहजी, अपनी गर्भवती पत्नी जीजाबाई की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, इस लिए उन्होने अपने परिवार को शिवनेरी में भेज दिया। शिवनेरी चारों ओर से खड़ी चट्टानों से घिरा एक अभेद्य गढ़ था। शिवाजी का जन्म १९ फ़रवरी १६३० को हुआ था और उनका बचपन भी यहीं बीता। इस गढ़ के भीतर माता शिवाई का एक मन्दिर था, जिनके नाम पर शिवाजी का नाम रखा गया। किले के मध्य में एक सरोवर स्थित है जिसे "बादामी तालाब" कहते हैं। इसी सरोवर के दक्षिण में माता जीजाबाई और बाल शिवाजी की मूर्तियां स्थित हैं। किले में मीठे पानी के दो स्रोत हैं जिन्हें गंगा-जमुना कहते हैं और इनसे वर्ष भर पानी की आपूर्ति चालू रहती है। किले से दो किलोमीटर की दूरी पर लेन्याद्री गुफाएं स्थित हैं जहां अष्टविनायक का मन्दिर बना है। .

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शिवराज भूषण

शिवराज भूषण, कवि भूषण की प्रसिद्ध रचना है। इसमें कुल ३८५ पद्य हैं। भूषण ने अपनी इस कृति की रचना-तिथि ज्येष्ठ वदी त्रयोदशी, रविवार, संम्वत् 1730 (29 अप्रैल, 1673 ई.) को दी है। इस ग्रन्थ में उल्लिखित शिवाजी विषयक ऐतिहासिक घटनाएँ 1673 ई. तक घटित हो चुकी थीं। इससे भी इस ग्रन्थ का उक्त रचनाकाल ठीक ठहरता है तथा साथ में शिवाजी और भूषण की समसामयिकता भी सिद्ध हो जाती है। 'शिवराज-भूषण' में ३८५ छन्द हैं। रीतिकाल के कवि होने के कारण भूषण ने अपना प्रधान ग्रंथ 'शिवराजभूषण' अलंकार के ग्रंथ के रूप में बनाया। दोहों में अलंकारों की परिभाषा दी गयी है तथा कवित्त एवं सवैया छन्दों में उदाहरण दिये गये हैं, जिनमें शिवाजी के कार्यकलापों का वर्णन किया गया है। शिवराज भूषण की एक बानगी देखिये- xxxx .

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शिवा बावनी

शिवा बावनी भूषण द्वारा रचित बावन (52) छन्दों का काव्य है जिसमें छत्रपति शिवाजी के शौर्य, पराक्रम आदि का ओजपूर्ण वर्णन है। इसमें इस बात का वर्णन है कि किस प्रकार उन्होंने हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा की। शिवा बावनी की कुछ कविताएँ: xxxx xxxx .

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श्याम नारायण पाण्डेय

वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय (1907-1991) श्याम नारायण पाण्डेय (1907 - 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे। .

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श्री छत्रपति शाहू संग्रहालय, कोल्हापुर

श्री छत्रपति शाहू संग्रहालय, कोल्हापुर महाराष्ट्र,भारत के ज़िले कोल्हापुर में स्थित एक प्राचीन संग्रहालय (महल) है। जिनका निर्माण सन १८७७ से १८८४ के बीच किया गया था। इस संग्रहालय में काले रंग के पॉलिश्ड पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। श्री छत्रपति शाहू संग्रहालय में हर कांच में छत्रपति शिवाजी के जीवन की घटनाओं को चित्रित कर के रखा गया है। यहां एक चिड़ियाघर भी है। आज भी, यह शाहु महाराज का निवास माना जाता है। .

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समर्थ रामदास

समर्थ रामदास (१६०६ - १६८२) महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध सन्त थे। वे छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। उन्होने दासबोध नामक एक ग्रन्थ की रचना की जो मराठी में है। .

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सम्भाजी

छत्रपति संभाजी राजे भोसले छत्रपती संभाजी राजे (छत्रपति संभाजी राजे भोसले) या शम्भाजी (1657-1689) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी। उस समय मराठाओं के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगजेब बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही। संभाजी राजे अपनी शौर्यता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। संभाजी महाराज ने अपने कम समय के शासन काल में १४० युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने कसम खायी थी के जब तक छत्रपती संभाजी पकडे नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा। .

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सम्राट कृष्ण देव राय

"सम्राट कृष्णदेव राय " दक्षिण भारत के प्रतापी सम्राटों में एक थे जिनके विजयनगर साम्राज्य की ख्याति विदेशों तक फैली हुई थी।माघ शुक्ल चतुर्दशी संवत् 1566 विक्रमी को विजयनगर साम्राज्य के सम्राट कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक भारत के इतिहास की एक अद्भुत घटना थी। इस घटना को दक्षिण भारत में स्वर्णिम युग का प्रारम्भ माना जाता है, क्योंकि उन्होंने दक्षिण भारत में बर्बर मुगल सुल्तानों की विस्तारवादी योजना को धूल चटाकर आदर्श हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी, जो आगे चलकर छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य का प्रेरणा स्रोत बना। अद्भुत शौर्य और पराक्रम के प्रतीक सम्राट कृष्ण देव राय का मूल्यांकन करते हुए इतिहासकारों ने लिखा है कि इनके अन्दर हिन्दू जीवन आदर्शों के साथ ही सभी भारतीय सम्राटों के सद्गुणों का समन्वय था। इनके राज्य में विक्रमादित्य जैसी न्याय व्यवस्था थी, चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसी सुदृढ़ शासन व्यवस्था तथा श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य महान संत विद्यारण्य स्वामी की आकांक्षाओं एवं आचार्य चाणक्य के नीतिगत तत्वों का समावेश था। इसीलिए उनके सम्बन्ध में बाबर ने बाबरनामा में लिखा था कि काफिरों के राज्य विस्तार और सेना की ताकत की दृष्टि से विजयनगर साम्राज्य ही सबसे विशाल है। दक्षिण भारत में कृष्णदेव राय और उत्तर भारत में राणा सांगा ही दो बड़े काफिर राजा हैं। वैसे तो सन् 1510 ई. में सम्राट कृष्णदेव राय का राज्याभिषेक विजयनगर साम्राज्य के लिए एक नये जीवन का प्रारम्भ था किन्तु इसका उद्भव तो सन् 1336 ई. में ही हुआ था। कहते हैं कि विजय नगर साम्राज्य के प्रथम शासक हरिहर तथा उनके भाई बुक्काराय भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे और उन्हीं की प्रेरणा से अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना करना चाहते थे। हरिहर एक बार शिकार के लिए तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित वन क्षेत्र में गये, उनके साथ के शिकारी कुत्तों ने एक हिरन को दौड़ाया किन्तु हिरन ने डर कर भागने के बजाय शिकारी कुत्तों को ही पलट कर दौड़ा लिया। यह घटना बहुत ही विचित्र थी। घटना के बाद अचानक एक दिन हरिहर राय की भेंट महान संत स्वामी विधारण्य से हुयी और उन्होंने पूरा वृत्तान्त स्वामी जी को सुनाया। इस पर संत ने कहा कि यह भूमि शत्रु द्वारा अविजित और सर्वाधिक शक्तिशाली होगी। सन्त विधारण्य ने उस भूमि को बसाने और स्वयं भी वहीं रहने का निर्णय किया। यही स्थान विकसित होकर विजयनगर कहा गया। वास्तव में दक्षिण भारत के हिन्दु राजाओं की आपसी कटुता, अलाउद्दीन खिलजी के विस्तारवादी अभियानों तथा मोहम्मद तुगलक द्वारा भारत की राजधानी देवगिरि में बनाने के फैसलों ने स्वामी विद्यारण्य के हिन्दू ह्रदय को झकझोर दिया था, इसीलिए वे स्वयं एक शक्तिपीठ स्थापित करना चाहते थे। हरिहर राय के प्रयासों से विजयनगर राज्य बना और जिस प्रकार चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य थे, उसी प्रकार विजयनगर साम्राज्य के महामंत्री संत विद्यारण्य स्वामी और प्रथम शासक बने हरिहर राय। धीरे-धीरे हरिहर राय प्रथम का शासन कृष्णानदी के दक्षिण में भारत की अन्तिम सीमा तक फैल गया। शासक बदलते गये और हरिहर प्रथम के बाद बुक्काराय, हरिहर द्वितीय, देवराय प्रथम, देवराय द्वितीय, मल्लिकार्जुन और विरूपाक्ष के हाथों में शासन की बागडोर आयी, किन्तु दिल्ली सल्तनत से अलग होकर स्थापित बहमनी राज्य के मुगलशासकों से लगातार सीमाविस्तार हेतु संर्घष होता रहा। जिसमें विजयनगर साम्राज्य की सीमाऐं संकुचित हो गयीं। 1485ई.

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सात्राप

रुद्रदमन का सिक्का, जो पश्चिमी सात्राप कहलाने वाले गुजरात-राजस्थान क्षेत्र के शक राजाओं में से एक था सात्राप या क्षत्राप (फ़ारसी:, Satrap) प्राचीन ईरान के मीदि साम्राज्य और हख़ामनी साम्राज्य के प्रान्तों के राज्यपालों को कहा जाता था। इस शब्द का प्रयोग बाद में आने वाले सासानी और यूनानी साम्राज्यों ने भी किया। आधुनिक युग में किसी बड़ी शक्ति के नीचे काम करने वाले नेता को कभी-कभी अनौपचारिक रूप से 'सात्राप' कहा जाता है। किसी सात्राप के अधीन क्षेत्र को सात्रापी (satrapy) कहा जाता था।, Krishna Chandra Sagar, Northern Book Centre, 1992, ISBN 978-81-7211-028-4,...

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साई भोसले

साई भोसले (१६३३ - ०५ सितम्बर १६९५,फलटण,महाराष्ट्र,भारत) मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की पहली पत्नी और प्रमुख पत्नी थीं। वह अपने पति के उत्तराधिकारी और दूसरी छत्रपति सम्भाजी की मां थीं। .

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सिसोदिया (राजपूत)

सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया यासिसोदिया एक राजपूत राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी राजपूत थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं। 'गुहिल' या 'गेहलोत' 'गुहिलपुत्र' शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत: ब्राह्मण मानते हैं, किंतु वे स्वयं अपने को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है। कुछ समय तक चित्तौड़ प्रतिहारों के अधिकार में रहा और गुहिल उनके अधीन रहे। भर्तृ पट्ट द्वितीय के समय गुहिल फिर सशक्त हुए और उनके पुत्र अल्लट (विक्रम संवत् १०२४) ने राजा देवपाल को हराया जो डा.

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सिंधुदुर्ग

मुख्यभूमि से सिंधुदुर्ग। सिंधुदुर्ग (मराठी: सिंधुदुर्ग), (दो संस्कृत या हिन्दी शब्दों, सिंधु यानि समुद्र और दुर्ग यानि किला से मिल कर बना है और जिसका अर्थ समुद्र का किला है) शिवाजी द्वारा सन 1664 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर निर्मित एक नौसैनिक महत्व के किले का नाम है। यह मुंबई के दक्षिण में महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में स्थित है। .

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सखाराम गणेश देउस्कर

सखाराम गणेश देउस्कर (17 दिसम्बर 1869 - 23 नवम्बर 1912) क्रांतिकारी लेखक, इतिहासकार तथा पत्रकार थे। वे भारतीय जन-जागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल बांग्ला तथा चिंतन-मनन का क्षेत्र इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज एवं साहित्य था। देउस्कर भारतीय जनजागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल भारतीयता का अद्भुत संगम था। वे महाराष्ट्र और बंगाल के नवजागरण के बीच सेतु के समान हैं। उनका प्रेरणा-स्रोत महाराष्ट्र है, पर वे लिखते बांग्ला में हैं। अपने मूल से अटटू लगाव और वर्तमान से गहरे जुड़ाव का संकेत उनके देउस्कर नाम में दिखाई देता है, जो 'देउस' और ' करौं ' के योग से बना है। विचारक, पत्रकार और लेखक सखाराम गणेश देउस्कर भारतीय नवजागरण के प्रमुख निर्माताओं में से एक थे। मराठी मूल के लेकिन बंगाली परिवेश में जन्मे और पले-बढ़े देउस्कर ने महाराष्ट्र और बंगाल के नवजागरण के बीच सेतु की तरह काम किया। अरविंद घोष ने लिखा है कि 'स्वराज्य' शब्द के पहले प्रयोग का श्रेय देउस्कर को ही जाता है। पत्रकार के तौर पर जीवन की शुरुआत करने वाले देउस्कर की इतिहास, साहित्य और राजनीति में विशेष रूप से रुचि थी। उन्होंने बांग्ला की अधिकांश क्रांतिकारी पत्रिकाओं में सतत लेखन किया। देउस्कर की जिस एक रचना ने नवजागरण काल के प्रबुद्धवर्ग को सर्वाधिक प्रभावित किया, वह थी 1904 में प्रकाशित कृति 'देशेर कथा'। इसका हिंदी-अनुवाद 'देश की बात' (1910) नाम से हुआ। विलियम डिग्बी, दादाभाई नौरोजी और रमेश चंद्र दत्त ने भारतीय अर्थव्यवस्था के जिस विदेशी शोषण के बारे में लिखा था, सखाराम देउस्कर ने मुख्यतः उसी आधार पर इस ऐतिहासिक कृति की रचना की। हिंदुस्तान के उद्योग-धंधों की बर्बादी का चित्रण करती देउस्कर की यह कृति ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जंजीरों में जकड़ी और शोषण के तले जीती-मरती भारतीय जनता के रुदन का दस्तावेज़ है। .

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संभाजी भिडे

संभाजी विनायकराव भिडे उर्फ भिडे गुरुजी महाराष्ट्र से एक भारतीय हैं। वर्तमान में वे श्री शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्थान के संस्थापक एवं प्रमुख हैं। इससे पूर्व वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे। वे "भिडे गुरुजी" के नाम से लोकप्रिय हैं। उनकी आयु ८१ वर्ष है। वे सांगली जिले के निवासी हैं। 1980 तक वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे, किन्तु कुछ विवाद के कारण अलग होकर एक नया संगठन बनाकर कार्य करने लगे, जिसकी मूल भावना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही करीब थी। आगे चलकर उन्होने 1984 में श्री शिव प्रतिष्ठान की स्थापना की। उनके संगठन का मूल उद्देश्य शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज के दिखाये गए मार्ग पर चलना है। .

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स्त्री शक्ति पुरस्कार

स्त्री शक्ति पुरस्कार (महिला शक्ति पुरस्कार), भारत का राष्ट्रीय सम्मान की एक श्रृंखला है, जो अपनी असाधारण उपलब्धि के लिए व्यक्तिगत महिलाओं को प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार महिलाओं और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा छह श्रेणियों में दिया गया है। यह कठिन परिस्थितियों में एक महिला की हिम्मत की भावना को पहचानता है, जिसने अपने निजी या पेशेवर जीवन में साहस की भावना स्थापित की है। यह पुरस्कार महिलाओं के सशक्तिकरण और महिलाओं के मुद्दों को बढ़ाने में एक व्यक्ति के अग्रणी योगदान को भी पहचानता है। १९९१ में स्थापित, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक वर्ष नई दिल्ली में ८ मार्च को पुरस्कार प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार में एक लाख रुपये (१००,००० रुपये) और एक प्रमाण पत्र का नकद पुरस्कार दिया जाता है। भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने २०१२ में रानी लक्ष्मीबाई स्त्री शक्ति पुरस्कार मृत्यु के बाद दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार मामला पीड़ित निर्भया को दिया गया था। .

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स्वानन्द किरकिरे

स्वानन्द किरकिरे (जन्म १९७०) एक भारतीय गीतकार, पार्श्वगायक एवं लेखक होने के साथ-साथ हिन्दी सिनेमा एवं दूरदर्शन सीरियल कहानीकार, सहायक निर्देशक एवं डयलॉग लेखक हैं। किरकिरे को दो बार.

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सूफी अंबा प्रसाद भटनागर

सूफ़ी अंबा प्रसाद भटनागर (१८५८ - २१ जनवरी, १९१७) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे। इनका जन्म १८५८ में मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके जन्म से ही दायां हाथ नहीं था। इन्होंने १९०९ में पंजाब से 'पेशवा' अखबार निकाला। बाद में अंग्रेज़ों से बचने हेतु नाम बदल कर सूफ़ी मुहम्मद हुसैन रखा। इस कारण ये सूफ़ी अंबा प्रसाद भटनागर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हें १८९७ और फिर १९०७ में दूसरी बार फांसी की सजा ब्रिटिश सरकार ने सुनायी थी। इससे बचने के लिए ये नाम बदल कर ईरान भाग गये। वहां ये गदर पार्टी के अग्रणी नेता भी रहे।। जसपाल सिंह इनका मकबरा ईरान के शीराज़ शहर में स्थित है। जालस्थल पर .

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हिन्दवी स्वराज

स्वराज्य एक सामाजिक एवं राजनयिक शब्द है जिसकी मूल विचारधारा भारतवर्ष को हर प्रकार के विदेशी सैन्य व राजनैतिक प्रभाव से मुक्त करना है। इस शब्द के प्रणेता छत्रपति शिवाजी महाराज हैं जिन्होंने पहली बार इस शब्द प्रयोग 1645 इ० के एक पत्र में किया था। इसी विचार को नारा बना कर शिवाजी महाराज ने संपूर्ण भारतवर्ष को एकत्रित करने के लिये अफ़ग़ानों, मुग़लों, पोर्तुगीज और अन्य विदेशी मूल के शासकों द्वारा शासित हुक़ूमतों के ख़िलाफ़ किया था। उनकी मुख्य विचारधारा भारत को विदेशी आक्रमणकारियो के प्रभाव से मुक्त करना था,क्योंकि वे भारतीय जनता, विशेषता हिन्दुओं पर अत्याचार करते थे, उनके धर्माक्षेत्रों को नष्ट किया करते थे और उनका जबरन धर्मपरिवर्तन किया करते थे। स्वतंत्रा संग्राम के दौरान इसी विचारधारा को बालगंगाधर तिलक ने ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ पुनर्जीवित किया था।पूर्णतः भारतीय स्वराज। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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जरीब

गुंटर्स जरीब, जिसे सर्वेक्षकों की जरीब भी कहते हैं 66 फीट लम्बी होती है और इसमें सौ कड़ियाँ होती हैं। जरीब लम्बाई नापने की एक इकाई है, साथ ही जिस जंजीर से यह दूरी नापी जाती है उसे भी जरीब कहते हैं। एक जरीब की मानक लम्बाई 66 फीट अथवा 22 गज अथवा 4 लट्ठे (Rods) होती है। जरीब में कुल 100 कड़ियाँ होती हैं, इस प्रकार प्रत्येक कड़ी की लम्बाई 0.6 फ़ुट या 7.92 इंच होती है। 10 जरीब की दूरी 1 फर्लांग के बराबर और 80 जरीब की दूरी 1 मील के बराबर होती है। .

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ज़फ़रनामा

ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, दसम ग्रंथ का एक भाग है और इसकी भाषा फ़ारसी है। भारत के गौरवमयी इतिहास में दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र छत्रपति शिवाजी द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया तथा दूसरा पत्र गुरु गोविन्द सिंह द्वारा शासक औरंगज़ेब को लिखा गया, जिसे ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे। .

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जिवा महाला

जिवा महाला छत्रपति शिवाजी के अंगरक्षक थे। प्रतापगढ की लड़ाई में इन्होने शिवाजी के प्राण बचाए थे।.

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जिंजी दुर्ग

जिंजी दुर्ग या सेंजी दुर्ग तमिलनाडु में स्थित एक दुर्ग है। यह दुर्ग विल्लुपुरम जिले में पुद्दुचेरी के पास स्थित है। यह इस प्रकार निर्मित है कि छत्रपति शिवाजी ने इस किले को भारत का सबसे 'अभेद्य दुर्ग' कहा था। अंग्रेजों ने इसे 'पूरब का ट्रॉय' कहा था। जिंजी दुर्ग दक्षिण भारत के उत्‍कृष्‍टतम किलों में से एक है। इसका निर्माण नौंवी शताब्‍दी में कराया गया था, जब यह चोल राजवंश के अधिकार में था, किन्‍तु यह किला आज जिस रूप में है वह विजय नगर के राजा का कठिन कार्य है, जिन्‍होंने इसे एक अभेद्य दुर्ग बनाया। सन् 1677 ई. में शिवाजी ने जिंजी के दुर्ग को बीजापुर से छीन लिया और अपनी कर्नाटक सरकार की राजधानी बना दिया। शिवाजी की मृत्यु के बाद जिंजी पूर्वी तट पर मराठों के स्वातंत्र्य युद्ध का प्रमुख केन्द्र बन गया। श्रेणी:भारत के दुर्ग.

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जीजाबाई

कोई विवरण नहीं।

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घृष्णेश्वर मन्दिर

महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्‍णेश्‍वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। .

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घोरपडे राजवंश

घोरपडे उपनाम शिवाजी के समय से अधिक प्रसिद्ध हुआ है। शिवाजी के पिता शाहजी एक महान योद्धा थे। बीजापुर के आदिलशाह के आदेश पर उन्हें मुस्तफा खान, अफजल खान और बाजी घोरपड़े ने धोखे से कैद कर लिया। शिवाजी ने शाहजहां से परदे के पीछे संपर्क किया और अपने पिता को मुक्त करा लिया। लेकिन, शाहजी अपने अपमान को भूले नहीं। बाजी घोरपड़े के बारे में उन्होंने अपने बेटे शिवाजी को लिखा: ‘मेरे बेटे, वह बाजी घृणित तुर्कों की साजिश में शामिल हो गया और उसने मुझे धोखा दिया। तुम उससे बदला जरूर लेना।’ शिवाजी ने अक्टूबर, 1664 में एक खुली लड़ाई में बाजी घोरपड़े को मार डाला था। .

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विद्याधर शास्त्री

विद्याधर शास्त्री (१९०१-१९८३) संस्कृत कवि और संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं के विद्वान थे। आपका जन्म राजस्थान के चूरु शहर में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) से शास्त्री की परीक्षा आपने सोलह वर्ष की आयु में उत्तीर्ण की थी। आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय) से आपने संस्कृत कलाधिस्नातक परीक्षा में सफलता प्राप्त की। शिक्षण कार्य और अकादमिक प्रयासों के दौरान आपने बीकानेर शहर में जीवन व्यतीत किया। १९६२ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से आपको सम्मानित किया गया था। .

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विष्णु कृष्ण चिपलूणकर

विष्णु कृष्ण चिपलूणकर (१८५०-१८८२) आधुनिक मराठी गद्य के युगप्रवर्तक साहित्यिकार और संपादक थे। श्री विष्णु शास्त्री चिपलूणकर का जन्म पूना के एक विद्वान् परिवार में हुआ। इनके पिता श्री कृष्ण शास्त्री अपनी स्वाभाविक बुद्धिमत्ता, रसिकता, काव्यप्रतिभा, अनुवाद करने की अपनी अनूठी शैली इत्यादि के लिये लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी और प्राचीन मराठी का गहरा अध्ययन किया और बी.ए. की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में वे शासकीय हाई स्कूल में अध्यापक हुए पर ईसाई मिश्नरियों के भारतीय संस्कृति के विरोध में किए जानेवाले प्रचार से इनका स्वधर्म, स्वसंस्कृति, स्वदेश और स्वभाषा संबंधी अभिमान जाग्रत हुआ। नवशिक्षितों की अकर्मण्यता पर भी इनको दु:ख हुआ। अत: इन्होंने लोकजागरण और लोकशिक्षा की दृष्टि से "निबंधमाला" नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किय। इनके लेख ओजस्वी, स्वाभिमानपूर्ण, स्वधर्म और स्वभाषा के प्रति प्रेम से ओतप्रोत होते थे। जिस प्रकार अनुभूति और विषय की दृष्टि से इनके निबंध श्रेष्ठ हैं उसी प्रकार मौलिकता, प्रतिपादन की प्रभावकारी शैली और कलाविकास की दृष्टि से भी वे रमणीय हैं। इनमें राष्ट्रीयता, ओज, लोकमंगल की कामना और रमणीयता ओतप्रोत हैं। निबंधमाला में भाषाशुद्धि, भाषाभिवृद्धि, अंग्रेजी शैली की समीक्षा, शास्त्रीय ढंग से इतिहासलेखन, कलापूर्ण जीवनी की रचना, साहित्य और समाज का अन्योन्य संबंध और सामाजिक रूढ़ियों के गुण दोष इत्यादि के विषयों में विचारप्रवर्तक लेख हैं। इनकी निबंधशैली में मैकाले, एडीसन, स्टील, जॉन्सन इत्यादि की लेखनशैलियों के गुणों का समन्वय है। इनकी शैली में ओज, विनोद और व्यंग्य तथा सजीवता हैं। इसी प्रकार इन्होंने अंग्रेजी समीक्षा के अनुसार संस्कृत के पाँच प्रसिद्ध कवियों की उत्कृष्ट कृतियों की सरस समीक्षा कर मराठी में नई समीक्षा शैली की उद्भावना की। इनके "आमच्या देशाचीं सद्यस्थिति" (हमारे देश की वर्तमान स्थिति) नामक विस्तृत एवं ओजस्वितापूर्ण निबंध लिखने पर अंग्रेजी शासन इनपर रुष्ट हुआ। पर इन्होंने स्वयं शासकीय सेवा की स्वर्णशृंखला तोड़ डाली। इन्होंने चित्रशाला नामक एक प्रेस की भी स्थापना की जो भारत में रंगीन चित्रों को प्रकाशित करनेवाले सबसे पहले छापेखानों में से एक थी। पूना में आकर इन्होंने श्री जी. जी. अगरकर और श्री बाल गंगाधर तिलक ने मिलकर १ जनवरी, १८८१ से मराठी में "केसरी" और अंग्रेजी में "मराठा" नामक दो समाचारपत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया। इसी प्रकार नई पीढ़ी में स्वदेशप्रेम जागृत करने के उद्देश्य से इन्होंने न्यू इंग्लिश स्कूल नामक पाठशाला स्थापित की। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और श्री आगरकर से चिपलूणकर को बड़ी सहायता मिली। ३२ वर्ष की अल्पायु में युगप्रवर्तक साहित्यिक सेवा कर इनकी असामयिक मृत्यु हुई। ये मराठी भाषा के "शिवाजी" कहलाते हैं। इन्होंने डॉ॰ जॉन्सन के "रासेलस" उपन्यास का मराठी में सरस एवं कलापूर्ण अनुवाद किया। .

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व्यक्तित्व

व्यक्तित्व (personality) आधुनिक मनोविज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रमुख विषय है। व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वकथन भी किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हो जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों एवं विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है। व्यक्तित्व एक स्थिर अवस्था न होकर एक गत्यात्मक समष्टि है जिस पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है और इसी कारण से उसमें बदलाव आ सकता है। व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार, क्रियाएं और गतिविधियों में व्यक्ति का व्यक्तित्व झलकता है। व्यक्ति का समस्त व्यवहार उसके वातावरण या परिवेश में समायोजन करने के लिए होता है। जनसाधारण में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप से लिया जाता है, परन्तु मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के रूप गुणों की समष्ठि से है, अर्थात् व्यक्ति के बाह्य आवरण के गुण और आन्तरिक तत्व, दोनों को माना जाता है। .

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खान्देरी दुर्ग

खान्देरी, मुम्बई के दक्षिण में समुद्र के किनारे स्थित एक द्वीप है। खान्देरी दुर्ग यहीं स्थित है। .

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गणेशोत्सव

गणेशोत्सव के अवसर पर गणेश की प्रतिमा के पास बैठी हुई हिन्दी फिल्मों की नायिका शिल्पा शेट्टी गणेशोत्सव (गणेश + उत्सव) हिन्दुओं का एक उत्सव है। वैसे तो यह कमोबेश पूरे भारत में मनाया जाता है, किन्तु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र में भी पुणे का गणेशोत्सव जगत्प्रसिद्ध है। यह उत्सव, हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतुर्दशी (चार तारीख से चौदह तारीख तक) तक दस दिनों तक चलता है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। गणेश हिन्दुओं के आदि आराध्य देव है। हिन्दू धर्म में गणेश को एक विशष्टि स्थान प्राप्त है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है। महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव की प्रथमा चलायी थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भ गपश की उपासना करते थे। .

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गेंदालाल दीक्षित

गेंदालाल दीक्षित (१८८८-१९२०) पं॰ गेंदालाल दीक्षित (अंग्रेजी:Pt. Genda Lal Dixit जन्म:१८८८, मृत्यु:१९२०) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा, महान क्रान्तिकारी व उत्कट राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने आम आदमी की बात तो दूर, डाकुओं तक को संगठित करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खडा करने का दुस्साहस किया। दीक्षित जी उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों के द्रोणाचार्य कहे जाते थे। उन्हें मैनपुरी षड्यन्त्र का सूत्रधार समझ कर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया किन्तु वे अपनी सूझबूझ और प्रत्युत्पन्न मति से जेल से निकल भागे। साथ में एक सरकारी गवाह को भी ले उड़े। सबसे मजे की बात यह कि पुलिस ने सारे हथकण्डे अपना लिये परन्तु उन्हें अन्त तक खोज नहीं पायी। आखिर में कोर्ट को उन्हें फरार घोषित करके मुकदमे का फैसला सुनाना पड़ा। .

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गोविंद सखाराम सरदेसाई

महान इतिहासकार '''गोविंद सखाराम सरदेसाई''' गोविंद सखाराम सरदेसाई (17 मई 1865 - 1959) का मराठों के अर्वाचीन इतिहासकारों में अग्रगण्य स्थान है। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९५७ में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। .

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औरंगज़ेब

अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर (3 नवम्बर १६१८ – ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा। औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर फ़तवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी क़ानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए ग़ैर-मुस्लिमों पर अतिरिक्त कर भी लगाया। ग़ैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था। मुग़ल शासनकाल में उनके शासन काल में उसके दरबारियों में सबसे ज्यादा हिन्दु थे। और सिखों के गुरु तेग़ बहादुर को दाराशिकोह के साथ मिलकर बग़ावत के जुर्म में मृत्युदंड दिया गया था। .

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आबाजी सोनदेव

आबाजी सोनदेव प्रख्यात मराठा वीर और छत्रपति शिवाजी के सेनापति थे। इन्होंने अपनी सैनिक सूझबुझ और अनुभव से कई युद्धों में सफलता प्राप्त की। सन् १६४८ ई. में इन्होंने अचानक आक्रमण करके मुम्बई के थाना जिले के कल्याणनगर को मुसलमानों से छीन लिया था। .

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आज्ञापत्र

आज्ञापत्र मराठा साम्राज्य के राजनयिक एवं योद्धा रामचंद्र पन्त अमात्य द्वारा मराठी भाषा में मोडी लिपि में लिखित एक राजाज्ञा (royal edict) है। इसका उद्देश्य राज्य के संचालन में शिवाजी के पौत्र सम्भाजी द्वितीय का मार्गदर्शन करना था। इसे राज्यसंचालन से सम्बन्धित शिवाजी के आदर्शों, सिद्धान्तों एवं नीतियों की औपचारिक दस्तावेज के रूप में समझा जाता है।.

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आगरा

आगरा उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक महानगर, ज़िला शहर व तहसील है। विश्व का अजूबा ताजमहल आगरा की पहचान है और यह यमुना नदी के किनारे बसा है। आगरा २७.१८° उत्तर ७८.०२° पूर्व में यमुना नदी के तट पर स्थित है। समुद्र-तल से इसकी औसत ऊँचाई क़रीब १७१ मीटर (५६१ फ़ीट) है। आगरा उत्तर प्रदेश का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। .

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आगरा का किला

आगरा का किला एक यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर स्थल है। यह किला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर में स्थित है। इसके लगभग 2.5 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में ही विश्व प्रसिद्ध स्मारक ताज महल मौजूद है। इस किले को कुछ इतिहासकार चारदीवारी से घिरी प्रासाद महल नगरी कहना बेहतर मानते हैं। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब यहां रहा करते थे, व यहीं से पूरे भारत पर शासन किया करते थे। यहां राज्य का सर्वाधिक खजाना, सम्पत्ति व टकसाल थी। यहाँ विदेशी राजदूत, यात्री व उच्च पदस्थ लोगों का आना जाना लगा रहता था, जिन्होंने भारत के इतिहास को रचा। .

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इस्लाम से हिंदू धर्म के धर्मान्तरण की सूची

इस्लाम से हिंदू धर्म के धर्मान्तरण की सूची उन व्यक्तियों को सूचीबद्ध किया गया हैं, जिन्होंने किसी कारण अपना हिन्दू धर्म त्याग कर इस्लाम धर्म अंगीकार किया और किसी कारण पुनः हिन्दूधर्म को स्वीकारा। इस सूची में उन लोगो को भी सम्मिलित किया गया है, जिन्होंने इस्लाम धर्म से हिन्दू धर्म में धर्माधन्तरण किया है। .

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कडलूर

कडलोर भारत का एक नगर है जो तमिलनाडु राज्य के कडलूर जिले का मुख्यालय है। यह नगर मद्रास नगर से १९० कि॰मी॰ तथा पांडिचेरी से १९ कि॰मी॰ की दूरी पर मद्रास-त्रिचनापल्ली सड़क पर स्थित है। यहाँ की जलवायु अच्छी है। यह आसपास के जिलों का स्वास्थ्यवर्धक केंद्र है। पोनेयर तथा गदिलम नदियाँ इस नगर से बहती हुई समुद्र में गिरती हैं। इसका नाम संभवत: 'कुदल-उर' का विकृत रूप है, जिसका अर्थ दो नदियों का संगम है। १८८४ ई. में बाढ़ का पानी नगर के बीच से बहने लगा था। यहाँ से गन्ना और तेलहन बाहर भेजा जाता हे। यह नगर संत डेविड के किले के लिए प्रख्यात हे जो खंडहर के रूप में गदिलम नदी के किनारे स्थित है। इस किले का निर्माण एक हिंदू व्यापारी ने कराया था। सन् १६७७ ई. में यह शिवाजी के हाथ में चला आया। तब से इसका नाम 'संत डेविड का किला' हो गया। सन् १७५६ ई. में रॉबर्ट क्लाइव यहाँ का गर्वनर नियुक्त किया गया। १७५८ ई. में फ्रांसीसियों ने इसको अपने अधिकार में कर लिया। १७८५ ई. में यह पुन: अंग्रेजों के हाथ में चला आया। बाफ्ता की बुनाई यहाँ का मुख्य उद्योग है। जेल के कैदी दरी, गमछे तथा अन्य सूती कपड़े बुनते हैं। यहाँ दो महाविद्यालय हैं। श्रेणी:तमिलनाडु श्रेणी:तमिल नाडु के शहर.

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करणकौस्तुभ

करणकौस्तुभ कृष्ण दैवज्ञ द्वारा शक संवत् १५७५ (सन् १६५३) संस्कृत में रचित खगोलशास्त्र का ग्रन्थ है। इसकी रचना छत्रपति शिवाजी के लिये की गयी थी। यह ग्रन्थ गणेश दैवज्ञ के ग्रहलाघव पर आधारित है। इसमें १४ अधिकरण (अध्याय) हैं-.

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कर्नाटक का इतिहास

बदामी के चालुक्यों के अन्दर ही सम्पूर्ण कर्नाटक एक शासन सूत्र में बंध पाया था। वे अपने शासनकाल में बनाई गई कलाकृतियों के लिए भी जाने जाते हैं। इसी कुल के पुलकेशिन द्वितीय (609-42) ने हर्षवर्धन को हराया था। पल्लवों के साथ युद्ध में वे धीरे-धीरे क्षीण होते गए। बदामी के चालुक्यों की शक्ति क्षीण होने के बाद राष्ट्रकूटों का शासन आया पर वे अधिक दिन प्रभुत्व मे नहीं रह पाए। कल्याण के चालुक्यों ने सन् 973 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। सोमेश्वर प्रथम ने चोलों के आक्रमण से बचने की सफलतापूर्वक कोशिश की। उसने कल्याण में अपनी राजधानी स्थापित की और चोल राजा राजाधिराज की कोप्पर में सन् 1054 में हत्या कर दी। उसका बेटा विक्रमादित्य षष्टम तो इतना प्रसिद्ध हुआ कि कश्मीर के कवि दिल्हण ने अपनी संस्कृत रचना के लिए उसके नायक चुना और विक्रमदेव चरितम की रचना की। वो एक प्रसिद्ध कानूनविद विज्ञानेश्वर का भी संरक्षक था। उसने चोल राजधानी कांची को 1085 में जीत लिया। चालुक्य साम्राज्य अपने महत्तम विस्तार पर - सातवीं सदी यादवों (या सेवुना) ने देवगिरि (आधुनिक दौलताबाद, जो बाद में मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी बना) से शासन करना आरंभ किया। पर यादवों को दिल्ली सल्तनत की सेनाओं ने 1296 में हरा दिया। यादवों के समय भास्कराचार्य जैसे गणितज्ञों ने अपनी अमर रचनाए कीं। हेमाद्रि की रचनाए भी इसी काल में हुईं। चालुक्यों की एक शाखा इसी बीच शकितशाली हो रही थी - होयसल। उन्होंने बेलुरु, हेलेबिदु और सोमनाथपुरा में मन्दिरों की रचना करवाई। जब तमिल प्रदेश में चोलों और पाण्ड्यों में संघर्ष चल रहा था तब होयसलों ने पाण्ड्यों को पीछे की ओर खदेड़ दिया। बल्लाल तृतीय (मृत्यु 1343) को दिल्ली तथा मदुरै दोनों के शासकों से युद्ध कना पड़ा। उसके सैनिक हरिहर तथा बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी। होयसलों के शासनकाल में कन्नड़ भाषा का विकास हुआ। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के समय वो दक्षिण में एक हिन्दू शक्ति के रूप में देखा गया जो दिल्ली और उत्तरी भारत पर सत्तारूढ़ मुस्लिम शासकों के विरूद्ध एक लोकप्रिय शासक बना। हरिहर तथा बुक्का ने न केवल दिल्ली सल्तनत का सामना किया बल्कि मदुरै के सुल्तान को भी हराया। कृष्णदेव राय इस काल का सबसे महान शासक हुआ। विजयनगर के पतन (1565) के बाद बहमनी सल्तनत के परवर्ती राज्यों का छिटपुत शासन हुआ। इन राज्यों को मुगलों ने हरा दिया और इसी बीच बीजापुर के सूबेदार शाहजी के पुत्र शिवाजी के नेतृत्व में मराठों की शक्ति का उदय हुआ। मराठों की शक्ति अठारहवीं सदी के अन्त तक क्षीण होने लगी थी। दक्षिण में हैदर अली ने मैसूर के वोड्यार राजाओं की शक्ति हथिया ली। चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान को मात देकर अंग्रेजों ने मैसूर का शासन अपने हाथों में ले लिया। सन् 1818 में पेशवाओं को हरा दिया गया और लगभग सम्पूर्ण राज्य पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। सन् 1956 में कर्नाटक राज्य बना। श्रेणी:कर्नाटक का इतिहास.

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कान्होजी आंग्रे

कान्होजी आंग्रे कान्होजी आंग्रे (जन्म: अगस्त 1669, देहांत: 4 जुलाई 1729), जिन्हें 18वी सदी ई॰ में मराठा साम्राज्य की नौसेना के सर्वप्रथम सिपहसालार थे। उन्हें सरख़ेल आंग्रे भी कहा जाता है। "सरख़ेल" का अर्थ भी नौसेनाध्यक्ष (ऐडमिरल) होता है। उन्होंने आजीवन हिन्द महासागर में ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच नौसैनिक गतिविधियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। उनके पिता तान्होजी आंग्रे भी छत्रपति शिवाजी की फ़ौज में नायक थे और कान्होजी आंग्रे का बचपन से ही मराठा फ़ौज के साथ सम्बन्ध रहा। उन्होंने मराठा नौसेना को एक नए स्तर पर पहुँचाया और कई स्थानों पर मराठा नौसैनिक अड्डे स्थापित किये, जिनमें अण्डमान द्वीप, विजयदुर्ग (मुंबई से 425 किमी दूर), आदि शामिल थे। वे आजीवन अपराजित रहे। .

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कोरेगाँव की लड़ाई

कोरेगाँव की लड़ाई १ जनवरी १८१८ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच, कोरेगाँव भीमा में लड़ी गई। बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में २८ हजार मराठों को पुणे पर आक्रमण करना था। रास्ते में उनका सामना कंपनी की सैन्य शक्ति को मजबूत करने पुणे जा रही एक ८०० सैनिकों की टुकड़ी से हो गया। पेशवा ने कोरेगाँव में तैनात इस कंपनी बल पर हमला करने के लिए २ हजार सैनिक भेजे। कप्तान फ्रांसिस स्टौण्टन के नेतृत्व में कंपनी के सैनिक लगभग १२ घंटे तक डटे रहे। अन्ततः जनरल जोसेफ स्मिथ की अगुवाई में एक बड़ी ब्रिटिश सेना के आगमन की संभावना के कारण मराठा सैन्यदल पीछे हट गए। अंग्रेजो की फूट डालो और राज करो की नीति का ये एक और उदाहरण था। भारतीय मूल के कंपनी सैनिकों में मुख्य रूप से बॉम्बे नेटिव इन्फैंट्री से संबंधित महार रेजिमेंट के सैनिक शामिल थे, और इसलिए महार लोग इस युद्ध को अपने इतिहास का एक वीरतापूर्ण प्रकरण मानते हैं। .

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कोलाबा दुर्ग

कोलाबा दुर्ग किल्ला महाराष्ट्र राज्य में अलीबाग के समुद्री तट पहुँचकर देखा जा सकता है। इतिहासकार कोलाबा किले को महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज का आखिरी निर्माण मानते हैं। कोलाबा किल्ला अलीबाग बीच से लगभग 1 कि.मी.

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अब्द

अब्द का अर्थ वर्ष है। यह वर्ष, संवत्‌ एवं सन्‌ के अर्थ में आजकल प्रचलित है क्योंकि हिंदी में इस शब्द का प्रयोग सापेक्षिक दृष्टि से कम हो गया है। शताब्दी, सहस्राब्दी, ख्रिष्टाब्द आदि शब्द इसी से बने हैं। अनेक वीरों, महापुरुषों, संप्रदायों एवं घटनाओं के जीवन और इतिहास के आरंभ की स्मृति में अनेक अब्द या संवत्‌ या सन्‌ संसार में चलाए गए हैं, यथा, १. सप्तर्षि संवत् - सप्तर्षि (सात तारों) की कल्पित गति के साथ इसका संबंध माना गया है। इसे लौकिक, शास्त्र, पहाड़ी या कच्चा संवत्‌ भी कहते हैं। इसमें २४ वर्ष जोड़ने से सप्तर्षि-संवत्‌-चक्र का वर्तमान वर्ष आता है। २. कलियुग संवत् - इसे 'महाभारत सम्वत' या 'युधिष्ठिर संवत्‌' कहते हैं। ज्योतिष ग्रंथों में इसका उपयोग होता है। शिलालेखों में भी इसका उपयोग हुआ है। ई.॰ईपू॰ ३१०२ से इसका आरंभ होता है। वि॰सं॰ में ३०४४ एवं श.सं.

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अरनाला का किला

अर्नाला का किला महाराष्ट्र की राजधानी के निकट वसई गाँव में है। यह दुर्ग जल के बीच एक द्वीप पर बना होने के कारण इसे जलदुर्ग या जन्जीरे-अर्नाला भी कहा जाता है। यह मुम्बई से ४८ किमी दूरी पर ख्य अर्नाला से ८ कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है। इस किले पर १७३९ में पेशवा बाजीराव के भाई चीमाजी ने अधिकार कर लिया था। वैसे इस किले पर अधिकार के अलावा उस युद्ध में मराठाओं ने अपनी सेना के एक बड़े भाग की हानि सही थी। १८०२ ई॰ में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने ब्रिटिश सेना से द्वितीय वसई सन्धि कर ली और तदोपरान्त अर्नाला का किला अंग्रेजो के अधिकार में आ गया। यह किला सामरिक दृष्टि से काफ़ी महत्त्वपूर्ण था। यहां से गुजरात के सुल्तान,पुर्तगाली,अंग्रेज और मराठाओं ने शासन किया है। अरनाला का किला तीनो ओर से समुद्र से घिरा हुआ है | .

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अष्टप्रधान

मराठा शासक शिवाजी के सलाहकार परिषद को अष्ट प्रधान कहा जाता था। शिवाजी महाराज थे उनके राज्याभिषेक में भी कई समस्याएं आईं। प्रथम पेशवा जो की स्वयं ब्राहमण था, ने शिवाजी के क्षत्रिय होने का सार्वजनिक रूप से विरोध किया। उसने शिवाजी से कहा उनका राज्याभिषेक एक क्षत्रिय के रूप में नहीं वरन शुद्र के रूप में हो सकता हे और कुछ ब्राहमण इसके लिए तैयार हे। ब्राहमणों ने शिवाजी के द्वारा किये गए जाने-अनजाने पापों की सूची बनाई जिसमे भूलवश युद्ध के दौरान गोवध भी शामिल था इसके आधार पर दंड निर्धारण किया गया और यह दंड उन को देना पड़ा। इस प्रकार 11000 ब्राहमणों को परिवार् सहित भोज्य वस्त्र और अन्यसामग्री 4 महीने तक दी गयी। उन्होंने इसे अपना अपमान समझा शिवाजी के राज तिलक के समय पर उन्हें स्वर्ण मुकुट पहनाया गया और बहुमूल्य रत्नों और स्वर्ण पुष्पों की वर्षा की गई। ब्राह्मणों को दिए गए उपहारों के कारण उन लोगो ने अपने विरोध को दबाये रखा। शिवाजी का शुद्धिकरण शुद्र से क्षत्रिय, गंगा भट्ट नामक ब्राहमण ने वैदिक मन्त्र सिखा कर किया। ब्राहमणों ने कहा इस समय सिर्फ ब्राहमण ही द्विजाति हे और कोई भी क्षत्री जाती वास्तविक नहीं हे अपनी समाज के इस मंतव्य पर गनगा भट्ट अपना आप खो बता और उसने एक अनुष्टान को छोड़ दिया। जिसे बाद में रायगढ़ में किया गया। गंगा भट्ट को एक लाख रुपया दिया गया। शिवाजी तिलक को सूरत में अंग्रेजी फैक्ट्री मुख्य हेनरी ओक्सेंदेंग ने अपनी आँखों से देखा। इस दोरान इस बात को भी बताया जाता हे की सिवाजी ने अपना हिरन्य गर्भ संस्कार कराया था जिससे वे शुद्ध क्षत्र्य बन जाये। इतना शक्तिशाली योधा भी जातिवाद का शिकार होकर क्षत्रियत्व को प्राप्त करने को प्रलोभित किया गया। उसने अपना राजकोष सिर्फ इस कार्य के लिए खली कर दिया और सैनिक तयारी पर कुछ भी खर्च नहीं किया । अंतत: बहुत सा धन देकर असंतुष्ट ब्राहमणों को प्रसन्न किया गया। कुल मिला कर 460 लाख रुपया खर्च हुआ। किन्तु पुणे के ब्राहमण लोग अभी भी संतुष्ट नहीं हुए और शिवाजी महारज को राजा मानने से इंकार कर दिया। तब अष्ट प्रधान मंडल की स्थापना की गयी। जिसमे सात सदस्य ब्राह्मण थे। इसका विवरण इस प्रकार है -.

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अजिंक्यतारा

अजिंक्यतारा महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित किला है। श्रेणी:महाराष्ट्र के किले.

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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (मराठी: छत्रपती शिवाजी महाराज टरमीनस), पूर्व में जिसे विक्टोरिया टर्मिनस कहा जाता था, एवं अपने लघु नाम वी.टी., या सी.एस.टी.

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१९ फरवरी

19 फरवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 50वॉ दिन है। साल में अभी और 315 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 316)। .

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९ दिसम्बर

9 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 343वॉ (लीप वर्ष मे 344 वॉ) दिन है। साल में अभी और 22 दिन बाकी है। .

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