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शिव दयाल सिंह

सूची शिव दयाल सिंह

श्री शिव दयाल सिंह साहब (1861 - 1878) (परम पुरुश पुरन धनी हुजुर स्वामी जी महाराज) राधास्वामी मत की शिक्षाओं का प्रारंभ करने वाले पहले सन्त सतगुरु थे। उनका जन्म नाम सेठ शिव दयाल सिंह था। उनका जन्म 24 अगस्त 1818 में आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत में जन्माष्टमी के दिन हुआ। पाँच वर्ष की आयु में उन्हें पाठशाला भेजा गया जहाँ उन्होंने हिंदी, उर्दू, फारसी और गुरमुखी सीखी। उन्होंने अरबी और संस्कृत भाषा का भी कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त किया। उनके माता-पिता हाथरस, भारत के परम संत तुलसी साहब के अनुयायी थे। छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ। उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं। शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए। वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई.

6 संबंधों: दयाल बाग, बाबा फकीर चंद, राधास्वामी, शिव ब्रत लाल, सुरत शब्द योग, आगरा

दयाल बाग

स्वामी बाग समाधि दयालबाग की स्थापना राधास्वामी सत्संग के पांचवे संत सत्गुरु परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज (सर आनन्द स्वरुप साहब) ने की थी। दयालबाग की स्थापना भी बसन्त पंचमी के दिन 20 जनवरी 1915 को शहतूत का पौधा लगा कर की गई थी। दयालबाग राधास्वामी सत्संग का हेडक्वाटर है और राधास्वामी सत्संग के आठवे संत सत्गुरु परम गुरु हुजूर सत्संगी साहब (परम पुज्य डा प्रेम सरन सतसंगी साहब) का निवास भी है। स्वामीबाग़ समाधि हुजूर स्वामी जी महाराज (श्री शिव दयाल सिंह सेठ) का स्मारक/ समाधि है। यह आगरा के बाहरी क्षेत्र में है, जिसे स्वामी बाग कहते हैं। वे राधास्वामी मत के संस्थापक थे। उनकी समाधि उनके अनुयाइयों के लिये पवित्र है। सन् 1908 ईस्वी में इसका निर्माण आरम्भ हुआ था और कहते हैं, कि यह कभी समाप्त नहीं होगा। इसमें भी श्वेत संगमरमर का प्रयोग हुआ है। साथ ही नक्काशी व बेलबूटों के लिये रंगीन संगमरमर व कुछ अन्य रंगीन पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह नक्काशी व बेल बूटे एकदम जीवंत लगते हैं। यह भारत भर में कहीं नहीं दिखते हैं। पूर्ण होने पर इस समाधि पर एक नक्काशीकृत गुम्बद शिखर के साथ एक महाद्वार होगा। इसे कभी-कभार दूसरा ताज भी कहा जाता है। श्रेणी:आगरा श्रेणी:उत्तर प्रदेश के भवन और स्थापत्य.

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बाबा फकीर चंद

बाबा फकीर चंद (१८ नवंबर, १८८६ - ११ सितंबर, १९८१) सुरत शब्द योग अर्थात मृत्यु अनुभव के सचेत और नियंत्रित अनुभव के साधक और भारतीय गुरु थे। वे संतमत के पहले गुरु थे जिन्होंने व्यक्ति में प्रकट होने वाले अलौकिक रूपों और उनकी निश्चितता के छा जाने वाले उस अनुभव के बारे में बात की जिसमें उस व्यक्ति को चैतन्य अवस्था में इसकी कोई जानकारी नहीं थी जिसका कहीं रूप प्रकट हुआ था। इसे अमरीका के कैलीफोर्निया में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ॰ डेविड सी. लेन ने नई शब्दावली 'चंदियन प्रभाव' के रूप में व्यक्त किया और उल्लेख किया। राधास्वामी मत सहित नए धार्मिक आंदोलनों के शोधकर्ता मार्क ज्यर्गंसमेयेर ने फकीर का साक्षात्कार लिया जिसने फकीर के अंतर्तम को उजागर किया। यह साक्षात्कार फकीर की आत्मकथा का अंश बना। .

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राधास्वामी

राधास्वामी मत, श्री शिव दयाल सिंह साहब द्वारा संस्थापित एक पन्थ हैं। 1861 में वसंत पंचमी के दिन पहली बार इसे आम लोग के लिये जारी किया गया था। दयालबाग इसी राधास्वामी मत का एक मुख्य मंदिर है। विश्व में इस विचारधारा का पालन करने वाले दो करोड़ से भी अधिक लोग हैं। .

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शिव ब्रत लाल

शिव ब्रत लाल वर्मन का जन्म सन् 1860 ईस्वी में भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के भदोही ज़िला में हआ था। वे 'दाता दयाल' और महर्षि जी' के नाम से भी प्रसिद्ध हुए.

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सुरत शब्द योग

सुरत शब्द योग एक आंतरिक साधन या अभ्यास है जो संत मत और अन्य संबंधित आध्यात्मिक परंपराओं में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में 'सुरत' का अर्थ आत्मा, 'शब्द' का अर्थ ध्वनि और 'योग' का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को 'ध्वनि की धारा' या 'श्रव्य जीवन धारा' कहते हैं।.

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आगरा

आगरा उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक महानगर, ज़िला शहर व तहसील है। विश्व का अजूबा ताजमहल आगरा की पहचान है और यह यमुना नदी के किनारे बसा है। आगरा २७.१८° उत्तर ७८.०२° पूर्व में यमुना नदी के तट पर स्थित है। समुद्र-तल से इसकी औसत ऊँचाई क़रीब १७१ मीटर (५६१ फ़ीट) है। आगरा उत्तर प्रदेश का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। .

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श्री शिव दयाल सिंह साहब्

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