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शिक्षाशास्त्री

सूची शिक्षाशास्त्री

पूरब और पश्चिम के अनेक शिक्षाशास्त्री - शंकर, रामानुज, निंबार्क, कर्वे, मदनमोहन मालवीय, सुकरात न्यूटन, स्पेसर आदि हुए हैं। पश्चिम के शिक्षाशास्त्रियों में सुकरात, अफलातून (प्लेटो) और उसके शिष्य अरस्तू का प्रमुख स्थान है। .

20 संबंधों: नरेन्द्र देव, फ्रीड्रिक फ्रोबेल, भारतीय शिक्षाशास्त्रियों के विचार, मसूद हुसैन ख़ान, महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन, मृदुल काबरा, राष्ट्रीय शिक्षा दिवस, शिवमंगल सिंह 'सुमन', शिक्षा दर्शन, शिक्षाशास्त्र, शीला कौल, सर्वेपल्लि राधाकृष्णन, ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ), जॉन डिवी, वासुदेव वामन शास्त्री खरे, वी आर रामचन्द्र दीक्षितार, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, कर्म एवं उद्यमों की सूची, अरविंद कुमार (शैक्षणिक), अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'

नरेन्द्र देव

फैजाबाद स्थित आचार्य नरेन्द्र देव का पारिवारिक घर आचार्य नरेंद्रदेव (1889-19 फ़रवरी 1956) भारत के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। वे कांग्रेस समाजवादी दल के प्रमुख सिद्धान्तकार थे। विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के स्वामी आचार्य नरेन्द्रदेव अध्यापक के रूप में उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान शिक्षाविद् थे। काशी विद्यापीठ के आचार्य बनने के बाद से यह उपाधि उनके नाम का ही अंग बन गई। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया। .

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फ्रीड्रिक फ्रोबेल

फ़्रीड्रिक विलियम अगस्त फ्रोबेल (Friedrich Wilhelm August Fröbel; जर्मन उच्चारण:; 21 अप्रैल, 1782 – 21 जून, 1852) जर्मनी के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री थे। वे पेस्तालोजी के शिष्य थे। उन्होने किंडरगार्टन (बालवाड़ी) की संकल्पना दी। उन्होने शैक्षणिक खिलौनों का विकास किया जिन्हें 'फ्रोबेल उपहार' के नाम से जाना जाता है। शिक्षा जगत में फ्रोबेल का महत्वपूर्ण स्थान है। बालक को पौधे से तुलना करके, फ्रोबेल ने बालक के स्वविकास की बात कही वह पहला व्यक्ति था, जिसने प्राथमिक स्कूलों के अमानवीय व्यवहार के विरूद्ध आवाज उठाई और एक नई शिक्षण विधि का प्रतिपादन किया। उसने आत्मक्रिया स्वतन्त्रता, सामाजिकता तथा खेल के माध्यम से स्कूलों की नीरसता को समाप्त किया। संसार में फ्रोबेल ही पहला व्यक्ति था जिसने अल्पायु बालकों की शिक्षा के लिए एक व्यवहारिक योजना प्रस्तुत किया। उसने शिक्षकों के लिए कहा कि वे बालक की आन्तरिक शक्तियों के विकास में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें, बल्कि प्रेम एवं सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करते हुए बालकों को पूरी स्वतन्त्रता दें। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार का परिवर्तन लाने के लिए फ्रोबेल को हमेशा याद किया जायेगा। .

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भारतीय शिक्षाशास्त्रियों के विचार

शिक्षा आद्य शंकराचार्य (७८८-८२० ई.), स्वामी दयानन्द (१८२४-१८८३), स्वामी विवेकानन्द (१८७३-१९०२), श्रीमती एनी बेसेण्ट (१८४७-१९३३), गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (१८६१-१९४१), महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय (१८६१-१९४५), महात्मा गाँधी (१८६९-१९४८) और महर्षि अरविन्द (१८७२-१९५०) आदि विचारक आधुनिक भारत के महान शिक्षा-शास्त्री माने जाते हैं। वे अन्य विचारकों द्वारा ग्रहण की हुई भारतीय शिक्षा से सम्बन्धित विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहाँ भारतीय शिक्षा-शास्त्रियों की मुख्य विचारधारा का अवलोकन किया जायगा और यह भी बतलाने का प्रयत्न किया जायगा कि भारतीय विचारकों के शिक्षा-सम्बन्धी विचारों में मुख्य पाश्चात्य शिक्षा-दर्शन की छाप कहाँ तक पायी जाती है। .

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मसूद हुसैन ख़ान

मसूद हुसैन ख़ान (28 जनवरी 1919 - 16 अक्टूबर 2010) एक प्रख्यात भारतीय शिक्षाविद, भाषाविद् और साहित्यकार थे। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान के पहले प्रोफेसर एमेरिटस थे और नई दिल्ली स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिलिया इस्लामिया के पांचवें कुलपति थे। वर्ष-१९८४ में उनकी साहित्यिक आलोचना की पुस्तक इक़बाल की नज़री–ओ–अमली शेरियात के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः गांधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। उनका मूलमंत्र था - 'शोषण-विहीन समाज की स्थापना करना'। उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। अतः गांधीजी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों की व्याख्या की तथा प्रारंभिक शिक्षा योजना उनके शिक्षादर्शन का मूर्त रूप है। अतएव उनका शिक्षादर्शन उनको एक शिक्षाशास्त्री के रूप में भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उनका शिक्षा के प्रति जो योगदान था वह अद्वितीय था। उनका मानना था कि मेरे प्रिय भारत में बच्चों को 3H की शिक्षा अर्थात् head hand heart की शिक्षा दी जावे। शिक्षा उन्हें स्वावलंबी बनाये और वे देश को मतबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। .

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मृदुल काबरा

मृदुल काबरा (जुलाई २३, १९९३) एक भारतीय उद्यमी, टेडएक्स स्पीकर एवं डिजिटल मार्केटिंग गुरु हैं। वें क्वेडरिगो (Quadrigo) नामक डिजिटल मार्केटिंग कंपनी व शैक्षणिक संस्थान के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। .

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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

यह दिवस भारत सरकार भारत के पहले शिक्षा मंत्री एवं भारत रत्न से सम्मानित मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की याद में हर 11 नवंबर को मनाया जाता है। वैधानिक रूप से इसका प्रारम्भ 11 नवम्बर 2008 से किया गया है। .

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शिवमंगल सिंह 'सुमन'

शिवमंगल सिंह 'सुमन' (1 915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद् थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा, "डॉ शिव मंगल सिंह 'सुमन' केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली हस्ताक्षर ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी थी। " .

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शिक्षा दर्शन

गाँधीजी महान शिक्षा-दार्शनिक भी थे। शिक्षा और दर्शन में गहरा सम्बन्ध है। अनेकों महान शिक्षाशास्त्री स्वयं महान दार्शनिक भी रहे हैं। इस सह-सम्बन्ध से दर्शन और शिक्षा दोनों का हित सम्पादित हुआ है। शैक्षिक समस्या के प्रत्येक क्षेत्र में उस विषय के दार्शनिक आधार की आवश्यकता अनुभव की जाती है। फिहते अपनी पुस्तक "एड्रेसेज टु दि जर्मन नेशन" में शिक्षा तथा दर्शन के अन्योन्याश्रय का समर्थन करते हुए लिखते हैं - "दर्शन के अभाव में ‘शिक्षण-कला’ कभी भी पूर्ण स्पष्टता नहीं प्राप्त कर सकती। दोनों के बीच एक अन्योन्य क्रिया चलती रहती है और एक के बिना दूसरा अपूर्ण तथा अनुपयोगी है।" डिवी शिक्षा तथा दर्शन के संबंध को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि दर्शन की जो सबसे गहन परिभाषा हो सकती है, यह है कि "दर्शन शिक्षा-विषयक सिद्धान्त का अत्यधिक सामान्यीकृत रूप है।" दर्शन जीवन का लक्ष्य निर्धारित करता है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा उपाय प्रस्तुत करती है। दर्शन पर शिक्षा की निर्भरता इतनी स्पष्ट और कहीं नहीं दिखाई देती जितनी कि पाठ्यक्रम संबंधी समस्याओं के संबंध में। विशिष्ट पाठ्यक्रमीय समस्याओं के समाधान के लिए दर्शन की आवश्यकता होती है। पाठ्यक्रम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ प्रश्न उपयुक्त पाठ्यपुस्तकों के चुनाव का है और इसमें भी दर्शन सन्निहित है। जो बात पाठ्यक्रम के संबंध में है, वही बात शिक्षण-विधि के संबंध में कही जा सकती है। लक्ष्य विधि का निर्धारण करते हैं, जबकि मानवीय लक्ष्य दर्शन का विषय हैं। शिक्षा के अन्य अंगों की तरह अनुशासन के विषय में भी दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका है। विद्यालय के अनुशासन निर्धारण में राजनीतिक कारणों से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण कारण मनुष्य की प्रकृति के संबंध में हमारी अवधारणा होती है। प्रकृतिवादी दार्शनिक नैतिक सहज प्रवृत्तियों की वैधता को अस्वीकार करता है। अतः बालक की जन्मजात सहज प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति के लिए छोड़ देता है; प्रयोजनवादी भी इस प्रकार के मापदण्ड को अस्वीकार करके बालक व्यवहार को सामाजिक मान्यता के आधार पर नियंत्रित करने में विश्वास करता है; दूसरी ओर आदर्शवादी नैतिक आदर्शों के सर्वोपरि प्रभाव को स्वीकार किए बिना मानव व्यवहार की व्याख्या अपूर्ण मानता है, इसलिए वह इसे अपना कर्त्तव्य मानता है कि बालक द्वारा इन नैतिक आधारों को मान्यता दिलवाई जाये तथा इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वह शनैःशनैः इन्हें अपने आचरण में उतार सके। शिक्षा का क्या प्रयोजन है और मानव जीवन के मूल उद्देश्य से इसका क्या संबंध है, यही शिक्षा दर्शन का विजिज्ञास्य प्रश्न है। चीन के दार्शनिक मानव को नीतिशास्त्र में दीक्षित कर उसे राज्य का विश्वासपात्र सेवक बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य मानते थे। प्राचीन भारत में सांसारिक अभ्युदय और पारलौकिक कर्मकांड तथा लौकिक विषयों का बोध होता था और परा विद्या से नि:श्रेयस की प्राप्ति ही विद्या के उद्देश्य थे। अपरा विद्या से अध्यात्म तथा रात्पर तत्व का ज्ञान होता था। परा विद्या मानव की विमुक्ति का साधन मान जाती थी। गुरुकुलों और आचार्यकुलों में अंतेवासियों के लिये ब्रह्मचर्य, तप, सत्य व्रत आदि श्रेयों की प्राप्ति परमाभीष्ट थी और तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय प्राकृतिक विषयों के सम्यक् ज्ञान के अतिरिक्त नैष्ठिक शीलपूर्ण जीवन के महान उपस्तंभक थे। भारतीय शिक्षा दर्शन का आध्यात्मिक धरातल विनय, नियम, आश्रममर्यादा आदि पर सदियों तक अवलंबित रहा। .

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शिक्षाशास्त्र

दक्षिण भारत के एक गाँव में शिक्षण शिक्षण-कार्य की प्रक्रिया का विधिवत अध्ययन शिक्षाशास्त्र या शिक्षणशास्त्र (Pedagogy) कहलाता है। इसमें अध्यापन की शैली या नीतियों का अध्ययन किया जाता है। शिक्षक अध्यापन कार्य करता है तो वह इस बात का ध्यान रखता है कि अधिगमकर्ता को अधिक से अधिक समझ में आवे। शिक्षा एक सजीव गतिशील प्रक्रिया है। इसमें अध्यापक और शिक्षार्थी के मध्य अन्त:क्रिया होती रहती है और सम्पूर्ण अन्त:क्रिया किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षाशास्त्र के आधार पर एक दूसरे के व्यक्तित्व से लाभान्वित और प्रभावित होते रहते हैं और यह प्रभाव किसी विशिष्‍ट दिशा की और स्पष्ट रूप से अभिमुख होता है। बदलते समय के साथ सम्पूर्ण शिक्षा-चक्र गतिशील है। उसकी गति किस दिशा में हो रही है? कौन प्रभावित हो रहा है? इस दिशा का लक्ष्य निर्धारण शिक्षाशास्त्र करता है। .

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शीला कौल

शीला कौल (7 फ़रवरी 1915 – 13 जून 2015) राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सुधारक, शिक्षाविद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सामाजिक लोकतंत्रीय नेत्री, पूर्व केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, स्वतंत्रता सेनानी और हिमाचल प्रदेश की पूर्व राज्यपाल रह चुकी हैं। वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साले प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल की पत्नी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मामी थी। .

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सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (சர்வபள்ளி ராதாகிருஷ்ணன்; 5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (५ सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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ज़ाकिर हुसैन (राजनीतिज्ञ)

डाक्टर ज़ाकिर हुसैन (8 फरवरी, 1897 - 3 मई, 1969, indiapress.org पर भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों की जीवनी) भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक था। डा.

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जॉन डिवी

जॉन डुई जान डुई (John Dewey; 1859-1952) संयुक्त राज्य अमेरिका के शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक थे। .

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वासुदेव वामन शास्त्री खरे

वासुदेव वामन शास्त्री खरे (जन्म सं. १८५८, मृत्यु सं. १९२४) प्रसिद्ध शिक्षाविद तथा इतिहासकार थे। .

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वी आर रामचन्द्र दीक्षितार

विशनमपेट आर रामचन्द्र दीक्षितार (16 अप्रैल, 1896 – 24 नवम्बर, 1953) भारत के एक इतिहासकार एवं भारतविद थे। वे मद्रास विश्वविद्यालय में इतिहास एवं पुरातत्व के प्रोफेसर थे। उन्होने भारतीय इतिहास से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों की रचना की। .

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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

कन्हैयालाल मुंशी कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (२९ दिसंबर, १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, गुजराती एवं हिन्दी के ख्यातिनाम साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे। उन्होने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। .

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कर्म एवं उद्यमों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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अरविंद कुमार (शैक्षणिक)

अरविंद कुमार (Arvind Kumar) एक भारतीय भौतिक विज्ञानी और शिक्षाविद हैं। वह 1994-2008 की अवधि के दौरान केंद्र शिक्षा विभाग, होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केंद्र, मुंबई के निदेशक थे। विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए, उन्हें 2010 में भारत के चौथे उच्चतम नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वह नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज सहचर भी हैं और कई अन्य सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं जिसमें विज्ञान शिक्षा के लिए द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज क्षेत्रीय पुरस्कार भी शामिल है। .

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अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'

अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान (१६ जून १९३६ – १३ फ़रवरी २०१२), जिन्हें उनके तख़ल्लुस या उपनाम शहरयार से ही पहचाना जाना जाता है, एक भारतीय शिक्षाविद और भारत में उर्दू शायरी के दिग्गज थे। .

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