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शिकारी-फ़रमर

सूची शिकारी-फ़रमर

तंज़ानिया के शिकार-संचय व्यवस्था में रहने वाली हाद्ज़ा जनजाति के दो पुरुष शिकार से लौटते हुए archivedate.

8 संबंधों: त्वा लोग, पुरापाषाण काल, प्रागितिहास, प्रेरी, बेरिंजिया, रुआण्डा, खोइसान, उत्तरी सेण्टिनली

त्वा लोग

त्वा लोग (Twa या Cwa) अफ़्रीका की कई जातियों व जनजातियों का नाम है जो शिकारी-फ़रमर जीवन बसर करते हैं। यह अक्सर बांटू लोगों के समीप रहते हैं, हालांकि त्वा अपनी जीवनी जंगलों से चलाते हैं जबकि बांटू लोग कृषक होते हैं। सामाजिक रूप से त्वा को बांटूओं की तुलना में निचला दर्जा दिया जाता था। इनमें परस्पर-निर्भरता रही है: त्वा वनों से जानवर माँस व अन्य वन्य उत्पाद लाकर बांटूओं द्वारा उगाये गये अन्न, सब्ज़ियाँ व अन्य कृषि उत्पादनों से अदल-बदल का व्यापार करते हैं। कई त्वा जातियाँ पिग्मी की श्रेणी में आती हैं, यानि त्वाओं का क़द औसत मानव क़द से असाधारण रूप से कम है। इतिहासकार मानते हैं कि त्वाओं के पूर्वज अपने क्षेत्रों के आदि-निवासी थे और बांटू बाद में आये। .

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पुरापाषाण काल

पुरापाषाण काल (अंग्रेजी Palaeolithic) प्रौगएतिहासिक युग का वह समय है जब मानव ने पत्थर के औजार बनाना सबसे पहले आरम्भ किया। यह काल आधुनिक काल से २५-२० लाख साल पूर्व से लेकर १२,००० साल पूर्व तक माना जाता है। इस दौरान मानव इतिहास का ९९% विकास हुआ। इस काल के बाद मध्यपाषाण युग का प्रारंभ हुआ जब मानव ने खेती करना शुरु किया था। भारत में पुरापाषाण काल के अवशेष तमिल नाडु के कुरनूल, कर्नाटक के हुँस्न्गी, ओडिशा के कुलिआना, राजस्थान के डीडवानाके श्रृंगी तालाब के निकट और मध्य प्रदेश के भीमबेटका में मिलते हैं। इन अवशेषो की संख्या मध्यपाषाण काल के प्राप्त अवशेषो से बहुत कम है। इस काल को जलवायु परिवर्तन तथा उस समय के पत्थर के हथियारो तथा औजारो के प्रकारों के आधार पर निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है:- .

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प्रागितिहास

आज से लगभग २७,००० साल पहले फ़्रान्स की एक गुफ़ा में एक प्रागैतिहासिक मानव ने अपने हाथ के इर्दगिर्द कालख लगाकर यह छाप छोड़ी प्रागैतिहासिक (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है।, Chris Gosden, pp.

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प्रेरी

अमेरिका के दक्षिण डकोटा राज्य में प्रेरी पर खड़ा एक घर अमेरिका के आइओवा राज्य में ऍफ़िजी माउंड्स राष्ट्रीय स्मारक क्षेत्र में विस्तृत प्रेरी प्रेरी (अंग्रेज़ी: prairie) पृथ्वी के समशीतोष्ण (यानि टॅम्प्रेट) क्षेत्र में स्थित विशाल घास के मैदानों को कहा जाता है। इनमें तापमान ग्रीष्मऋतु में मध्यम और शीतऋतु में ठंडा रहता है और मध्यम मात्राओं में बर्फ़-बारिश पड़ती है। यहाँ पर वनस्पति जीवन घास, फूस और छोटी झाड़ों के रूप में अधिक और पेड़ों के रूप में कम देखने को मिलता है। ऐसे घासदार मैदानों को उत्तरी अमेरिका में "प्रेरी", यूरेशिया में "स्तॅप" या "स्तॅपी" (steppe), दक्षिण अमेरिका में "पाम्पा" (pampa) और दक्षिण अफ़्रीका में "वॅल्ड" (veld) कहा जाता है। .

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बेरिंजिया

हिमयुग अंत होने पर बेरिंग ज़मीनी पुल धीरे-धीरे समुद्र के नीचे डूब गया अपने चरम पर बेरिंजिया का क्षेत्र (हरे रंग की लकीर के अन्दर) काफ़ी विशाल था हाथी-नुमा मैमथ बेरिजिंया में रहते थे और उस के ज़रिये एशिया से उत्तर अमेरिका भी पहुँचे बेरिंग ज़मीनी पुल (Bering land bridge) या बेरिंजिया (Beringia) एक ज़मीनी पुल था जो एशिया के सुदूर पूर्वोत्तर के साइबेरिया क्षेत्र को उत्तर अमेरिका के सुदूर पश्चिमोत्तर अलास्का क्षेत्र से जोड़ता था। इस धरती के पट्टे की चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक लगभग १,६०० किमी (१,००० मील) थी यानि इसका क्षेत्रफल काफ़ी बड़ा था। पिछले हिमयुग के दौरान समुद्रों का बहुत सा पानी बर्फ़ के रूप में जमा हुआ होने से समुद्र-तल आज से नीचे था जिस वजह से बेरिंजिया एक ज़मीनी क्षेत्र था। हिमयुग समाप्त होने पर बहुत सी यह बर्फ़ पिघली, समुद्र-तल उठा और बेरिंजिया समुद्र के नीचे डूब गया। जब बेरिंजिया अस्तित्व में था तो क्षेत्रीय मौसम अनुकूल होने की वजह से यहाँ बर्फ़बारी कम होती थी और वातावरण मध्य एशिया के स्तेपी मैदानों जैसा था। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय कुछ मानव समूह एशिया से आकर यहाँ बस गए। वह बेरिंजिया से आगे उत्तर अमेरिका में दाख़िल नहीं हो पाए क्योंकि आगे भीमकाय हिमानियाँ (ग्लेशियर) उनका रास्ता रोके हुए थीं। इसके बाद बेरिंजिया और एशिया के बीच भी एक बर्फ़ की दीवार खड़ी होने से बेरिंजिया पर चंद हज़ार मानव लगभग ५,००० सालों तक अन्य मानवों से बिना संपर्क के हिमयुग के भयंकर प्रकोप से बचे रहे। आज से क़रीब १६,५०० वर्ष पहले हिमानियाँ पिघलने लगी और वे उत्तर अमेरिका में प्रवेश कर गए। लगभग उसी समय के आसपास बेरिंजिया भी पानी में डूबने लगा और आज से क़रीब ६,००० वर्ष पहले तक तटों के रूप वैसे हो गए जैसे कि आधुनिक युग में देखे जाते हैं। .

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रुआण्डा

रुआण्डा (Rwanda) मध्य-पूर्व अफ़्रीका में स्थित एक देश है। इसका क्षेत्रफल लगभग २६ हज़ार वर्ग किमी है, जो भारत के केरल राज्य से भी छोटा है। यह अफ़्रीका महाद्वीप की मुख्यभूमि पर स्थित सबसे छोटे देशों में से एक है। रुआण्डा पृथ्वी की भूमध्य रेखा (इक्वेटर) से ज़रा दक्षिण में स्थित है और महान अफ़्रीकी झीलों के क्षेत्र का भाग है। इसके पश्चिम में पहाड़ियाँ और पूर्व में घासभूमि है। .

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खोइसान

एक ३३ वर्षीय सान पुरुष एक सान स्त्री खोईसान या खोइसान दक्षिण अफ़्रीका में रहने वाली दो अलग जातियों का सामूहिक नाम है जो खोईसान भाषाएँ बोलती हैं और अपने इर्द-गिर्द रहने वाले बहुसंख्यक बांटू भाषा बोलने वाली जातियों से भिन्न हैं। यह दो जातियाँ हैं: शिकारी-फ़रमर जीवनी बसर करने वाली सान जाति (जिन्हें बुशमैन भी कहा जाता है) और मवेशी-पालन करने वाली खोई जाति। यह दोनों समुदाय कालाहारी रेगिस्तान के क्षेत्र में रहते हैं। .

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उत्तरी सेण्टिनली

उत्तरी सेण्टिनली अण्डमान द्वीपसमूह के उत्तरी सेन्टीनल द्वीप की एक आदिवासी जनजाति है। ये एक शिकारी-फ़रमर समाज है जो शिकार करके, मछली पकड़ कर, और जंगली पौधों एकत्रित कर के रहता है। इस जनजाति में अभी तक खेती-बाड़ी या आग उत्पादन नहीं देखा गया है। इनकी भाषा अवर्गीकृत बनी हुई है क्योंकि इनके सबसे निकटतम पड़ोसी जारवा लोग भी इनकी भाषा को नहीं समझ सकते हैं। .

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शिकार-फ़रमर, शिकारी-संचयी

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