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शरीर

सूची शरीर

शरीर सामान्य अर्थों में किसी भी जीवधारी के समस्त अंग-प्रत्यंगों का समुच्चय। उर्दू से आया हुआ शब्द "चंचल" के अर्थों में प्रयुक्त। संबंधित लेख निम्नवत हैं.

67 संबंधों: ऊतक विकृतिविज्ञान, चाल विश्लेषण, चिकनगुनिया, टीका (वैक्सीन), एचआइवी, नृत्य चिकित्सा, पण्डित, परिसंचरण तंत्र, प्लास्टीनेशन, पॉलीग्राफ, पी. सी. शर्मा, फोरेंसिक पादचिकित्सा, फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स, बाल, भावनात्मक श्रम, मन, महाधमनी, मैग्नीसियम, मूर्च्छा, यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे, राना टिग्रिना, रक्त, लाला हरदयाल, लिवोर मोर्टिस, लकी डायमंड रिच, शरीर द्रव्यमान सूचकांक, शरीर का निर्जलीकरण, सन्धिपाद, सर्वांगशोथ, साँप, सायबॉर्ग, सारस (पक्षी), सांकेतिक भाषा, सिस्ट, संधि (शरीररचना), सुरत शब्द योग, सूर्य देवता, सेब, हाइपोक्सिया, हिन्दू संस्कार का इतिहास, हृदय, हृदय रोग, जलना (चिकित्सा), जामुन, वसा, विरोचन, विकृतिविज्ञान, व्यायाम, खींप, गैस, ..., आत्महत्या के तरीके, आमाशय (पेट), आहारीय मैग्नेशियम, आहारीय सोडियम, आहारीय खनिज, इक्टोपिया कॉर्डिस, कुचलन, केकड़ा, अनुकूलन, अस्थि, अंजू शर्मा, अंग तंत्र, उपास्थि, उल्टी, ऋषि, छिपकली, 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला सूचकांक विस्तार (17 अधिक) »

ऊतक विकृतिविज्ञान

ऊतक विकृतिविज्ञान (Histopathology) शरीर के किसी भाग में स्थित या वहाँ से लिए गए ऊतक (टिशू) का सूक्ष्मदर्शी द्वारा किया गया निरीक्षण है, जिसमें रोग के प्रभावों को ढूंढने या समझने की चेष्टा की जाती है। अक्सर इसमें करी जा रही ऊतक परीक्षा के लिए ऊतक के नमूनों को शल्यचिकित्सा (सर्जरी) या सुई द्वारा शरीर से निकाला जाता है और उसे महीनता से काटकर सूक्ष्मदर्शी के नीचे उसकी जाँच की जाती है। .

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चाल विश्लेषण

चाल विश्लेषण एक व्यवस्थित अध्ययन है मानव की चाल का, जो उपयोगी है मानव की पहचान करने मे। व्यक्ति की पहचान करने के लिए चाल विश्लेषण के लिए शरीर आंदोलनों, शरीर यांत्रिकी और मांसपेशियों की गतिविधि को मापा जाता है। चाल विश्लेषण की स्थिति चलने के लिए उनकी क्षमता को प्रभावित करने के साथ, का आकलन करने की योजना है, और व्यक्तियों के इलाज के लिए किया जाता है। .

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चिकनगुनिया

चिकनगुनिया लम्बें समय तक चलने वाला जोडों का रोग है जिसमें जोडों मे भारी दर्द होता है। इस रोग का उग्र चरण तो मात्र २ से ५ दिन के लिये चलता है किंतु जोडों का दर्द महीनों या हफ्तों तक तो बना ही रहता है। चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है जिसे अल्फाविषाणु परिवार का माना जाता है। यह मानव में एडिस मच्छर के काटने से प्रवेश करता है। यह विषाणु ठीक उसी लक्षण वाली बीमारी पैदा करता है जिस प्रकार की स्थिति डेंगू रोग मे होती है। .

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टीका (वैक्सीन)

Edward Jenner was the person who developed first vaccine टीका (vaccine) एक जीवों के शरीर का उपयोग करके बनाया गया द्रब्य है जिसके प्रयोग से शरीर की किसी रोग विशेष से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। .

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एचआइवी

एचआइवी अथवा कपोसी सार्कोमा प्रभावित महिला की नाक का चित्र एचआईवी (ह्युमन इम्युनडिफिशिएंशी वायरस) या मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु एक विषाणु है जो शरीर की रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रहार करता है और संक्रमणों के प्रति उसकी प्रतिरोध क्षमता को धीरे-धीरे कम करता जाता है। यह लाइलाज बीमारी एड्स का कारण है। मुख्यतः यौण संबंध तथा रक्त के जरिए फैलने वाला यह विषाणु शरीर की श्वेत रक्त कणिकाओं का भक्षण कर लेता है। इसमें उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता का गुण है। यह विशेषता इसके उपचार में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। .

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नृत्य चिकित्सा

नृत्य चिकित्सा या डांस थेरेपी भावनात्मक, संज्ञानात्मक, सामाजिक व्यवहार और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए गति और नृत्य का उपयोग करने वाली चिकित्सा शैली है। यह शारिरिक गति और मानसिक भावना के संबंध की धारणा पर आधारित है। १९५० में अपनी उत्पत्ति के बाद से इस चिकित्सा शैली ने काफी लोकप्रियता हासिल की है। इस बीच इसमें अनेक तकनीकी विकास हुए हैं। .

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पण्डित

एक कर्मकाण्डी पण्डित (ब्राह्मण) का चित्र पण्डित (पंडित), या पण्डा (पंडा), अंग्रेजी में Pandit का अर्थ है एक विद्वान, एक अध्यापक, विशेषकर जो संस्कृत और हिंदू विधि, धर्म, संगीत या दर्शनशास्त्र में दक्ष हो। अपने मूल अर्थ में 'पण्डित' शब्द का तात्पर्य हमेशा उस हिन्दू ब्राह्मण से लिया जाता है जिसने वेदों का कोई एक मुख्य भाग उसके उच्चारण और गायन के लय व ताल सहित कण्ठस्थ कर लिया हो। .

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परिसंचरण तंत्र

परिसंचरण तंत्र की खोज 1628 ईसवी में विलियम हार्वे ने किया था। मानव का परिसंचरण तंत्र; यहाँ लाल रंग आक्सीजनयुक्त रक्त का सूचक है तथा नीला रंग आक्सीजनरहित रक्त का सूचक है। परिसंचरण तंत्र या वाहिकातंत्र (circulatory system) अंगों का वह समुच्चय है जो शरीर की कोशिकाओं के बीच पोषक तत्वों का यातायात करता है। इससे रोगों से शरीर की रक्षा होती है तथा शरीर का ताप एवं pH स्थिर बना रहता है। अमिनो अम्ल, विद्युत अपघट्य, गैसें, हार्मोन, रक्त कोशिकाएँ तथा नाइट्रोजन के अपशिष्ट उत्पाद आदि परिसंचरण तंत्र द्वारा यातायात किये जाते हैं। केवल रक्त-वितरण नेटवर्क को ही कुछ लोग वाहिका तंत्र मानते हैं जबकि अन्य लोग लसीका तंत्र को भी इसी में सम्मिलित करते हैं। मानव एवं अन्य कशेरुक प्राणियों के परिसंचरण तंत्र, 'बन्द परिसंचरण तंत्र' हैं (इसका मतलब है कि रक्त कभी भी धमनियों, शिराओं, एवं केशिकाओं के जाल से बाहर नहीं जाता)। अकशेरुकों के परिसंचरण तंत्र, 'खुले परिसंचरण तंत्र' हैं। बहुत से तुच्छ (primitive animal) में परिसंचरन तंत्र होता ही नहीं। किन्तु सभी प्राणियों का लसीका तंत्र एक खुला तंत्र होता है। वाहिकातंत्र हृदय, धमनियों तथा शिराओं के समूह का नाम है। धमनियों और शिराओं के बीच केशिकाओं का विस्तृत समूह भी इसी तंत्र का भाग है। इस तंत्र का काम शरीर के प्रत्येक भाग में रुधिर को पहुँचाना है, जिससे उसे पोषण और ऑक्सीजन प्राप्त हो सकें। इस तंत्र का केंद्र हृदय है, जो रुधिर को निरंतर पंप करता रहता है और धमनियाँ वे वाहिकाएँ हैं जिनमें होकर रुधिर अंगों में पहुँचता है तथा केशिकाओं द्वारा वितरित होता है। केशिकाओं के रुधिर से पोषण और ऑक्सीजन ऊतकों में चले जाते हैं और इस पोषण और ऑक्सीजन से विहीन रुधिर को वे शिरा में लौटाकर हृदय में लाती हैं जो उसको फुप्फुस में ऑक्सीजन लेने के लिए भेज देता है। आंत्र से अवशोषित होकर पोषक अवयव भी इस रुधिर में मिल जाते हैं और फिर से इस रुधिर को अंगों में ऑक्सीजन तथा पोषण पहुँचाने के लिए धमनियों द्वारा भेज दिया जाता है। .

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प्लास्टीनेशन

प्लास्टीनेशन कि प्रक्रिया के कूल चार स्टेप हैं.

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पॉलीग्राफ

पॉलीग्राफ़ के परिणाम एक चार्ट रिकॉर्डर पर अंकित किये जाते हैं। पॉलीग्राफ यह एक ऐसी मसीन है जिसका प्रयोग झूठ पकड़ने के लिए किया जाता है। खास कर इसका प्रयोग तब किया जाता है जब किसी अपराध का पता लगाना हो । पॉलीग्राफ टेस्ट मसीन को झूठ पकड़ने वाली मसीन और लाई डिटेक्टर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खोज जॉन अगस्तस लार्सन 1921 ई के अंदर की थी । भारत के अंदर प्रोलिग्राफिक का प्रयोग करने से पहले कोर्ट से अनुमति लेना आवश्यक है। अब तक इसका कई लोगों पर सफल प्रयोग किया जा चुका है। ‌‌‌लेकिन कुछ वैज्ञानिक रिसर्च के अंदर कुछ लोग इसको भी गच्चा देने मे कामयाब पाए गए । पॉलिग्राफ टेस्ट के अंदर यह पता लगाने के लिए कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच बोल रहा है? कई चीजों को परखा जाता है। जैसे व्यक्ति कि हर्ट रेट.

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पी. सी. शर्मा

डॉ० प्रकाश चन्द शर्मा (जन्म: १ जुलाई, १९६२) एक प्रशासनिक अधिकारी, लेखक एवं चिकित्सक हैं। वें स्वास्थ्य मंत्रालय के आयुष विभाग के डिप्टी डायरेक्टर हैं। आयुर्विज्ञान पर इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। सन २००८ में धन्वंतरि सम्मान और सन २०१६ में सिंहस्थ सेवा सम्मान द्वारा सम्मानित हैं। .

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फोरेंसिक पादचिकित्सा

फोरेंसिक पादचिकित्सा फोरेंसिक विज्ञान की एक उप अनुशासन है। फोरेंसिक चिकित्सा का ज्ञान एक कानूनी और आपराधिक में शरीर रचना विज्ञान, समारोह, विकृति और पैर, टखने और समय पर, पूरे मानव शरीर की जांच करने के लिए पैर से संबंधित साक्ष्य के रोगों के ज्ञान के साथ संयोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है और जांच के संदर्भ मे। फॉरेंसिक पादचिकित पैरों के निशान, जूते की जांच कर सकते हैं, या विश्लेषण और अज्ञात व्यक्तियों के चाल की तुलना कर सकते हैं। सन १९७० मे डॉ नॉर्मन गुन डीपीएम एक पादचिकित ने कनाडा में स्थित चिकित्सक केस कार्य शुरू किया था। फोरेंसिक पादचिकित्सा कानूनी मामलों को पादचिकित्सा ज्ञान के आवेदन पत्र है। अपराध का एक दृश्य के साथ एक व्यक्ति के संघ दिखाने के लिए, या पैर के साथ संबंध किसी अन्य कानूनी सवाल का जवाब "ध्वनि के आवेदन और फॉरेंसिक जांच में पादचिकित्सा ज्ञान और अनुभव से छानबीन की,: फोरेंसिक पादचिकित्सा के रूप में परिभाषित किया गया है या जूते "कामकाज पैर के ज्ञान की आवश्यकता है। बेयरफुट प्रिंट कभी कभी अपराध के दृश्य पर पाए जाते हैं, संभावित बनाने अपराधी के साथ पैरों के निशान से जोड़े जाते हैं।.

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फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स

फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स विज्ञान एक शाखा है जो मानव शरीर की संरचनात्मक क्षेत्रों के विघटन के लिए यांत्रिक बलों संबंधित है।फोरेंसिक बायोमैकेनिक्स जानकारी के मूल्यवान स्रोत देता है जो इस्तेमाल होता है, पेशेवर चोटों की प्रकृति का निर्धारण देता है, दुर्घटनाओं के निहितार्थ को समझने मे मदद करता है जो सिविल और आपराधिक जांच मे काम आता है। .

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बाल

अपने सुन्दर बालों को पूरती हुई कन्या बाल (Hair) स्तनधारी प्राणियों के बाह्य चर्म का उद्वर्ध (outer growth) है। कीटों के शरीर पर जो तंतुमय उद्वर्ध होते हैं, उन्हें भी बाल कहते हैं। बाल कोमल से लेकर रुखड़ा, कड़ा (जैसे सूअर का) और नुकीला तक (जैसे साही का) होता है। प्रकृति ने ठंडे गर्म प्रभाव वाले क्षेत्रों में बसने बाले जीवों को बाल दिये हैं, जो जाडे की ॠतु में ठंड से रक्षा करते है और गर्मी में अधिक ताप से सिर की रक्षा करते हैं। जब शरीर से न सहने वाली गर्मी पडती है, तो शरीर से पसीना बहकर निकलता है, वह बालों के कारण गर्मी से जल्दी नहीं सूखता है, किसी कठोर वस्तु से अचानक हुए हमला से भी बाल बचाव करते है। बहुत से मानवेतर स्तनधारियों के शरीर पर मुलायम बाल पाये जाते हैं; इसे 'फर' कहते हैं। बाल की बनावट पक्षियों के परों या सरीसृप के शल्कों से बिल्कुल भिन्न होती है। स्तनधारियों में ह्वेल के शरीर पर सबसे कम बाल होता है। कुछ वयस्क ह्वेल के शरीर पर तो बाल बिल्कुल होता ही नहीं। मनुष्यों में सबसे घना बाल सिर पर होता है। बाल शरीर को सर्दी और गरमी से बचाता है। शरीर के अन्य भागों पर बड़े सूक्ष्म छोटे छोटे रोएँ होते है। पलकों, हथेली, तलवे तथा अँगुलियों और अँगूठों के नीचे के भाग पर बाल नहीं होते। प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों का शरीर झबरे बालों से ढँका रहता था। पर सभ्य मनुष्य के शरीर पर झबरे बाल नहीं होते। इसलिए वह वस्त्र धारण कर अपने शरीर की सर्दी और गरम से रक्षा करता है। मनुष्य के कुछ भागों में, हारमोन के स्राव बनने पर ही बाल उगते हैं, जैसे ओठों पर, काँखों में, लिंगोपरि भागों में इत्यादि। मनुष्यों के लिए बालों के अनेक उपयोग हैं। घोड़ों और बैलों के बाल गद्दों में भरे जाते हैं। कुछ बालों से वार्निश लेपने के बुरुश, दाँत साफ करने के बुरुश बनते हैं। छोटे-छोटे बाल सीमेंट में मिलाकर गृहनिर्माण में प्रयुक्त होते हैं। लंबे-लंबे बालों से कपड़े बुने जाते हैं। ऐसे कपड़े कोट बनाने में लाइनिंग के रूप में काम आते हैं। भेड़ों और कुछ बकरियों से ऊन प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग कंबलों और ऊनी वस्त्रों के निर्माण में होता है। ऊँटों और कुछ किस्म के खरगोशों के बाल से भी कपड़े बुने जाते हैं। कुछ पशुओं के बाल बड़े कोमल होते हैं और समूर (फर) के रूप में व्यवहृत होते हैं। .

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भावनात्मक श्रम

भावनात्मक श्रम को एक भावना विनियमन कह जा सकता है जिससे कर्मचारियों काम पर अपने भावनाओ नियंत्रण या संयम रखते है। इसका मतलभ यह है कि सामाजिक मानदंडों के अनुरूप करने के लिए कुछ भावनाओं को दबाना उचित समझते है। भावनाएँ कर्मचारियों को काम दिन का एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भावनात्मक श्रम का विचार सिर्फ कार्यस्थल पर ही नहीं बल्कि जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। भावना का काम तीन तरह के होते है: संज्ञानात्मक, शारीरिक, और अर्थपूर्ण। संज्ञानात्मक भावना काम के भीतर लोगो के साथ जुड़े भावनाओं को बदलने की उम्मीद में छवियों या विचारों को बदलने के लिए प्रयास करता है। उदाहण देते हुए कह सकते है कि खुशी के भावना अपनी परिवार कि तस्वीर से जुडा सकते है और खुशी का प्रयास करने के लिए कह गए तस्वीर को देख सकते है। शारीरिक भावना काम में वांछित भावना पैदा करने के शारीरिक लक्षणों को बदलने का प्रयास करते है। उदाहरण, गहरी साँस लेने से लोग अपने क्रोध को कम करने का प्रयास करते है। अर्थपूर्ण भावना काम में आंतरिक भावनाओं को बदलने के लिए अर्थपूर्ण इशारों को बदलने का प्रयास किया गया है। उदाहरण, खुशी महसूस करने के लिए मुस्कुराने का प्रयास करने लगता है। समाजशास्त्री आर्ली होछशिल्ड के अनुसार भावनात्मक श्रम से जुड़े नौकरियों को उन नौकरियों के नीछे परिभाषित किया जा सकता है जिससे;.

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मन

मन मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान (अंतर्दृष्टि), इत्यादि में सक्षम बनाती है।Dictionary.com, "mind": "1.

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महाधमनी

महाधमनी एक सुअर महाधमनी खुला भी कुछ छोड़ने धमनियों दिखा कटौती. महाधमनी (Aorta) शरीर की सबसे बड़ी तथा मुख्य धमनी है, जो हृदय के बाएँ निलय (ventricle) से आरंभ होती है तथा जिसमें से ऑक्सीजनमिश्रित रक्त सारे शरीर की ऊतकों में ऑक्सीजन का संचारण करता है। यह धमनी दैहिक (systemic) एवं फुफ्फुसीय (pulmonary) रक्त परिवहन करती है तथा दैहिक कोशिकाओं और शिरातंत्रों से होती हुई, पुन: हृदय के दाहिने अलिंद (auricle) में वापस जाती है। बाएँ निलय से, जहाँ इसका व्यास प्राय: तीन सेंटीमीटर होता है, निकल तथा कुछ ऊपर चढ़कर, धनुषाकार मुड़कर, वक्ष में पृष्ठ कशेरुकाओं (vertebra) के बाईं ओर से उदरगुहा में प्रवेश करती है तथा चौथी कटि कशेरुका के पास दाहिनी तथा बाईं श्रोणिफलक (iliac) धमनियों में विभक्त हो जाती है। सरलता के लिये इसे अधिरोही महाधमनी, महाधमनी की चाप (arch) तथा अवरोही वक्षीय और उदरीय महाधमनी में विभाजित करते हैं। महाधमनी की संरचना (योजनामूलक) महाधमनी के उद्गम भाग के छिद्र पर, अर्धगोलाकार तथा जेब के आकार के तीन वाल्व हैं, जिन्हें त्रिवलन कपाट (Tricuspid valves) कहते हैं। इन वाल्वों का नतोदर भाग हृदय की ओर रहता है। बाएँ निलय से रक्तपरिवतन के समय रुधिर चाप के कारण इन वाल्वों का मुख्य खुल जाता है, जिससे हृदय से महाधमनी में रक्तसंचारक होता है, पर विपरीत दशा में जब बाएँ निलय में अनुशिथिलन (diastole) रहता है, तब महाधमनी के स्थितिस्थापक प्रतिक्षेप (recoil) के कारण रक्तचाप महाधमनी से हृदय की ओर हो जाता है। इस कारण तीनों वाल्व रक्तचाप से फूलकर बंद हो जाते हैं, जिससे रक्त संचरण की दिशा विपरीत नहीं होती और रक्त महाधमनी से बाएँ निलय में वापस नहीं आ सकता है। हाँ, कपाटिकाओं में जब रोग के कारण शोथ आदि उत्पन्न हो जाता है, उस दशा में वाल्व ठीक कार्य नहीं करते तथा उनका मुख खुला रह जाने से रक्तसंचारण विपरीत दिशा में होता है। इससे रक्त पुन: महाधमनी से बाएँ निलय में प्रवेश करता है, जिसके कारण रक्त संचालन में विकृति होती है तथा रोग उत्पन्न होने लगता है। .

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मैग्नीसियम

मैग्नेशियम एक रासायनिक तत्त्व है, जिसका चिह्न है Mg, परमाणु संख्या १२ एवं सामान्य ऑक्सीडेशन संख्या +२ है। है। यह कैल्शियम और बेरियम की तरह एक एल्केलाइन अर्थ धातु है एवं पृथ्वी पर आठवाँ बहुल उपलब्ध तत्त्व है तथा भार के अनुपात में २% है, और पूरे ब्रह्माण्ड में नौंवा बहुल तत्त्व है। इसके बाहुल्य का संबंध ये तथ्य है, कि ये सुपरनोवा तारों में तीन हीलियम नाभिकों के कार्बन में शृंखलागत तरीके से जुड़ने पर मैग्नेशियम का निर्माण होता है। मैग्नेशियम आयन की जल में उच्च घुलनशीलता इसे सागर के जल में तीसरा बहुल घुला तत्त्व बनाती है। मैग्नीशियम सभी जीव जंतुओं के साथ मनुष्य के लिए भी उपयोगी तत्त्व है। यह प्रकाश का स्नोत है और जलने पर श्वेत प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह मानव शरीर में पाए जाने वाले पांच प्रमुख रासायनिक तत्वों में से एक है। मानव शरीर में उपस्थित ५०% मैग्नीशियम अस्थियों और हड्डियों में होता है जबकि शेष भाग शरीर में हाने वाली जैविक कियाओं में सहयोगी रहता है। left एक स्वस्थ आहार में इसकी पर्याप्त मात्रा होनी चाहिये। इसकी अधिकता से अतिसार और न्यूनता से न्यूरोमस्कुलर समस्याएं हो सकती है। मैग्नीशियम हरी पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है।|हिन्दुस्तान लाईव। २४ मई २०१० इसकी खोज सर हंफ्री डेवी ने १८०८ में की थी। असल में डेवी ने वास्तव में धातु के एक ऑक्साइड को खोजा था, जो बाद में एक तत्व निकला। एक अन्य मान्यता अनुसार कि मैग्नीशियम की खोज १८वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी। वैसे इसके एक यौगिक एप्सम लवण की खोज १७वीं शताब्दी में हो चुकी थी और वह आज भी प्रयोग में आता है। इसका एक अन्य यौगिक मिल्क ऑफ मैग्नीशिया कहलाता है। मैग्नीशियम अन्य तत्वों के साथ सरलता से अभिक्रिया कर यौगिक बना लेता है, जिस कारण यह प्रकृति में सदा यौगिकों के रूप में उपस्थित होता है। सागर का जल मैग्नीशियम का एक बड़ा स्रोत है, अतः कई धातु-शोधक कंपनियां इसे सागर से शोधित कर इसका औद्योगिक प्रयोग करती हैं। विलयन पर यह चांदी जैसा सफेद और भार में अपेक्षाकृत हल्का हो जाता है। धातु रूप में यह विषैला (टॉक्सिक) नहीं होता, किन्तु जलाने पर यह विषैला प्रभाव छोड़ता है। इसीलिए गर्म मैग्नीशियम का प्रयोग करते समय नाक को सावधानी से बचाकर काम करना चाहिए। मैग्नीशियम हल्का तत्व होने पर भी काफी मजबूत होता है। इस कारण ही इसे मिश्र धातुओं और अंतरिक्ष उद्योग के लिए उपयोगी माना जाता है। कुछ उच्च क्षमता वाले स्वचालित यंत्रों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। .

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मूर्च्छा

मूर्च्छा (syncope) या बेहोशी मानव शरीर की वह स्थिति है जिसमें उसकी चैतन्य शक्ति और मांसपेशियो की शक्ति समाप्त हो जाती है। यह स्थिति तब होती है जब शरीर में किसी बाहरी या अंदरूनी चोट के कारण बहुत ज्यादा रक्तस्राव होता है; किसी प्रकार के शॉक से अचानक हृदय पर दबाव पड़ता है, तापमान कम हो जाता है, शरीर को झटका लगता है या कोई अचानक गिर जाए तो भी बेहोशी की स्थिति होती है। बेहोशी कभी-कभी किसी बीमारी के कारण भी हो जाती है। बेहोशी के लक्षण में चेहरे एवम होंठो पर अस्वाभाविक पीलापन उत्पन्न हो जाता है। शरीर की त्वचा ठंडी एवम चिपचिपी हो जाती है। बेचैनी और थकावट महसूस होना बेहोशी से पहले आम बात है। सर का चकराना, दृष्टि भ्रम होना यह सब लक्षण बेहोशी के होते हैं। .

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यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे

यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे एक महावाक्य है जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड और शरीर की क्रिया में बन्धु हैं। श्रेणी:महावाक्य.

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राना टिग्रिना

भारतीय मेढ़क '''राना टिग्रिना''' राना टिग्रिना नामक मेढ़क भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला बड़े आकार का मेढ़क है। .

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रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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लाला हरदयाल

लाला हरदयाल (१४ अक्टूबर १८८४, दिल्ली -४ मार्च १९३९) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अग्रणी क्रान्तिकारियों में थे जिन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों को देश की आजादी की लडाई में योगदान के लिये प्रेरित व प्रोत्साहित किया। इसके लिये उन्होंने अमरीका में जाकर गदर पार्टी की स्थापना की। वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के बीच देशभक्ति की भावना जागृत की। काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मई, सन् १९२७ में लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। इसके बाद सन् १९३८ में पुन: प्रयास करने पर अनुमति भी मिली परन्तु भारत लौटते हुए रास्ते में ही ४ मार्च १९३९ को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया। .

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लिवोर मोर्टिस

लिवोर मोर्टिस (लातीनी भाषा में शरीर का नीलापन), ह्य्पोस्तासिस (यूनानी भाषा में खड़े ढाँचे के नीचे), पोस्टमॉर्टम लिविडिटी (लातीनी: मरने के बाद काले और नीले होना) यह तीनों सामान्य शब्द है, और यह मृत्यु के बाद का चौथी अवस्था है। लिवोर मोर्टिस मृत्यु के बाद का बाद का एक ऐसा समय है जिसमें शारीर का सारा रक्त निचले हिस्से में एकत्रित हो जाता है और त्वचा को बैंगनी रंग अथवा लाल रंग का कर देता है। यहाँ पर दिल काम करना बंद कर देता है और रक्त का बहाव की कोई शक्ति नहीं रह जाती है। इस समय भरी लाल रक्त कोशिकाएँ भी गुरुत्वाकर्षण के कारण प्लाविका में डूब जाती हैं। लिवोर मोर्टिस की प्रक्रिया २०-३० मिनट में शुरू हो जाती है और लगभग १-३ घंटो के अंदर ही सारे शारीर पर बैंगनी रंग के पैच (धब्बे) हो जाते हैं। पैच का आकार अगले ३-६ घंटों में बढता है। निश्चित रूप से जीवन के अंतिम संकेत ६-१२ घंटों तक ही दिखाई देते हैं। लिवोर मोर्टिस के रंग की तीव्रता रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा पर निर्भर करती है। रंग का फीका होना शारीर के उन भागों में नही दिखाई देता जो भाग किसी भी वस्तु या भूमी के संपर्क में होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यहाँ की कोशिकाएँ दब जाती हैं और रंग बदलने नहीं देती। .

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लकी डायमंड रिच

लकी डायमंड रिच (अंग्रेजी:Lucky Diamond Rich) (जन्म: ग्रेगरी पॉल मैकलरीन1971) विश्व का वह इंसान है जिसके पूरे शरीर पर गोदना बनाये गये हैं। इसके शरीर पर हर अंग पर -आँख,कान,नाक गाल इत्यादि जगह पर गोदने किये गये हैं। गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने भी यह दावा किया है कि इसके शरीर पर 100% प्रतिशत गोदने अर्थात छेद है, इस कारण 2006 में इसका गिनीज़ विश्व कीर्तिमान पुस्तक में उल्लेख किया गया है। .

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शरीर द्रव्यमान सूचकांक

एक शरीर द्रव्यमान सूचकांक का ग्राफ़ यहां दिखाया गया है। डैश वाली रेखा प्रधान श्रेणी के खण्ड दिखाती है। कम भार के उपखण्ड हैं: अत्यंत, मध्यम एवं थोड़ा। ''विश्व स्वास्थ्य संगठन के http://www.who.int/bmi/index.jsp?introPage.

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शरीर का निर्जलीकरण

मनुष्य शरीर का वितरन पानी शरीर से अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ समाप्त हो जाना जल्ह्रास या निर्जलीकरण (अंग्रेज़ी:डी-हाइड्रेशन) कहलाता है। मानव शरीर को कार्य करने के लिए निर्धारित मात्रा में कम से कम ८ गिलास के बराबर (एक लीटर या सवा लीटर) तरल पदार्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है जो व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता और आयु पर निर्भर करता है। परंतु अधिक कार्यशील व्यक्ति को इससे दो या तीन गुना अधिक तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है। साधारण मानव जो तरल पदार्थ लेते हैं, वह उस तरल पदार्थ का स्थान ले लेती है जो शारीरिक कार्य को करने के लिए आवश्यक होता है। यदि कोई शरीर की आवश्यकता से कम तरल पदार्थ लेते हैं, तब निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) हो जाता है। .

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सन्धिपाद

आर्थ्रोपोडा संघ के प्राणी सन्धिपाद (अर्थोपोडा) प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है। पृथ्वी पर सन्धिपाद की लगभग दो तिहाई जातियाँ हैं, इसमें कीट भी सम्मिलित हैं। इनका शरीर सिर, वक्ष और उदर में बँटा रहता है। शरीर के चारों ओर एक खोल जैसी रचना मिलती है। प्रायः सभी खंडों के पार्श्व की ओर एक संधियुक्त शाखांग होते हैं। सिर पर दो संयुक्त नेत्र होते हैं। ये जन्तु एकलिंगी होते हैं और जल तथा स्थल दोनों स्थानों पर मिलते हैं। तिलचट्टा, मच्छर, मक्खी, गोजर, झिंगा, केकड़ा आदि इस संघ के प्रमुख जन्तु हैं। .

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सर्वांगशोथ

सर्वांगशोथ से पीड़ित एक बालक सर्वांगशोथ, या देहशोथ (Anasarca) शरीर की एक विशिष्ट सर्वांगीय शोथयुक्त अवस्था है, जिसके अंतर्गत संपूर्ण अधस्त्वचीय ऊतक में शोथ (oedema) के कारण तरल पदार्थ का संचय हो जाता है। इसके कारण शरीर का आकार बहुत बड़ा हो जाता है तथा उसकी एक विशेष प्रकार की आकृति हो जाती है। .

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साँप

साँप साँप या सर्प, पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी है। यह जल तथा थल दोनों जगह पाया जाता है। इसका शरीर लम्बी रस्सी के समान होता है जो पूरा का पूरा स्केल्स से ढँका रहता है। साँप के पैर नहीं होते हैं। यह निचले भाग में उपस्थित घड़ारियों की सहायता से चलता फिरता है। इसकी आँखों में पलकें नहीं होती, ये हमेशा खुली रहती हैं। साँप विषैले तथा विषहीन दोनों प्रकार के होते हैं। इसके ऊपरी और निचले जबड़े की हड्डियाँ इस प्रकार की सन्धि बनाती है जिसके कारण इसका मुँह बड़े आकार में खुलता है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुडे़ दाँत तेज तथा खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में साँपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसकी कुछ प्रजातियों का आकार १० सेण्टीमीटर होता है जबकि अजगर नामक साँप २५ फिट तक लम्बा होता है। साँप मेढक, छिपकली, पक्षी, चूहे तथा दूसरे साँपों को खाता है। यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है। सरीसृप वर्ग के अन्य सभी सदस्यों की तरह ही सर्प शीतरक्त का प्राणी है अर्थात् यह अपने शरीर का तापमान स्वंय नियंत्रित नहीं कर सकता है। इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। यह अपने शरीर के तापमान को बढ़ाने के लिए भोजन पर निर्भर नहीं है इसलिए अत्यन्त कम भोजन मिलने पर भी यह जीवीत रहता है। कुछ साँपों को महीनों बाद-बाद भोजन मिलता है तथा कुछ सर्प वर्ष में मात्र एक बार या दो बार ढेड़ सारा खाना खाकर जीवीत रहते हैं। खाते समय साँप भोजन को चबाकर नहीं खाता है बल्कि पूरा का पूरा निकल जाता है। अधिकांश सर्पों के जबड़े इनके सिर से भी बड़े शिकार को निगल सकने के लिए अनुकुलित होते हैं। अफ्रीका का अजगर तो छोटी गाय आदि को भी नगल जाता है। विश्व का सबसे छोटा साँप थ्रेड स्नेक होता है। जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल १०-१२ सेंटीमीटर लंबा होता है। विश्व का सबसे लंबा साँप रैटिकुलेटेड पेथोन (जालीदार अजगर) है, जो प्राय: १० मीटर से भी अधिक लंबा तथा १२० किलोग्राम वजन तक का पाया जाता है। यह दक्षिण -पूर्वी एशिया तथा फिलीपींस में मिलता है। .

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सायबॉर्ग

सायबॉर्ग ऐसे काल्पनिक मशीनी मानव होते हैं, जिनका आधा शरीर मानव और आधा मशीन का बना होता है। ऐसे मानव विज्ञान के क्षेत्र और विज्ञान गल्प में दिखाये जाते हैं, व फिल्म प्रेमियों द्वारा हॉलीवुड की स्टार ट्रेक और अन्य विज्ञान फंतासी फिल्मों इनका प्रदर्शन किया जाता रहा है। इस शब्द का पहली बार प्रयोग १९६० में मैन्फ्रेड क्लिंस और नैथन क्लाइन ने बाहरी अंतरिक्ष में मानव-मशीनी प्रणाली के प्रयोग के संदर्भ के एक आलेख में किया था। इसके बाद १९६५ में डी.एस.

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सारस (पक्षी)

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं। अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली। .

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सांकेतिक भाषा

संकेत भाषा (या सांकेतिक भाषा) एक ऐसी भाषा है, जो अर्थ सूचित करने के लिए श्रवणीय ध्वनि पैटर्न में संप्रेषित करने के बजाय, दृश्य रूप में सांकेतिक पैटर्न (हस्तचालित संप्रेषण, अंग-संकेत) संचारित करती है-जिसमें वक्ता के विचारों को धाराप्रवाह रूप से व्यक्त करने के लिए, हाथ के आकार, विन्यास और संचालन, बांहों या शरीर तथा चेहरे के हाव-भावों का एक साथ उपयोग किया जाता है। जहां भी बधिर लोगों का समुदाय मौजूद हो, वहां संकेत भाषा का विकास होता है। उनके पेचीदा स्थानिक व्याकरण, उच्चरित भाषाओं के व्याकरण से स्पष्ट रूप से अलग है। दुनिया भर में सैकड़ों संकेत भाषाएं प्रचलन में हैं और स्थानीय बधिर समूहों द्वारा इनका उपयोग किया जा रहा है। कुछ संकेत भाषाओं ने एक प्रकार की क़ानूनी मान्यता हासिल की है, जबकि अन्य का कोई महत्व नहीं है। .

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सिस्ट

सिस्ट (cyst), जिसे गाँठ या पुटि भी कहते हैं, शरीर के भीतर झिल्ली (मेम्ब्रेन) में बंद एक असाधारण (अनुचित) थैली होती है, जिसकी अंदर कोशिकाएँ आसपास के ऊतकों (टिशू) से अलग आयोजित होती हैं। सिस्ट की परिभाषा के अनुसार यह एक विकृत ढांचा माना जाता है, हालांकि बहुत से सिस्ट शारीर में बिना हानि के आजीवन रह सकते हैं। सिस्ट के भीतर वायु, द्रव या अर्ध-ठोस सामग्री हो सकती है। कुछ सिस्टों स्वयं ही समय के साथ-साथ छोटे होकर लुप्त हो जाते हैं जबकि कुछ एक ही आकार बनाए हुए दशकों तक रह सकते हैं। अन्य सिस्ट आकार में बढ़ते रहते हैं और उनका उपचार दवा से या फिर शल्यचिकित्सा (सर्जरी) से करा जाता है। कुछ सिस्ट आगे चलकर कर्क रोग (कैंसर) के फुलाव (ट्यूमर) बन सकते हैं। .

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संधि (शरीररचना)

400px संधि या जोड़ (जर्मन: Gelenke, फ्रेंच: Articulations, अंग्रेज़ी: Joints) शरीर के उन स्थानों को कहते हैं, जहाँ दो अस्थियाँ एक दूसरे से मिलती है, जैसे कंधे, कुहनी या कूल्हे की संधि। इनका निर्माण शरीर में गति सुलभ करने और यांत्रिक आधार हेतु होता है। इनका वर्गीकरण संरचना और इनके प्रकार्यों के आधार पर होता है। .

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सुरत शब्द योग

सुरत शब्द योग एक आंतरिक साधन या अभ्यास है जो संत मत और अन्य संबंधित आध्यात्मिक परंपराओं में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में 'सुरत' का अर्थ आत्मा, 'शब्द' का अर्थ ध्वनि और 'योग' का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को 'ध्वनि की धारा' या 'श्रव्य जीवन धारा' कहते हैं।.

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सूर्य देवता

कोई विवरण नहीं।

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सेब

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हाइपोक्सिया

हाइपोक्सिया वह स्थिति है जिसमे शरीर या शरीर के अंग को ऊतक स्तर पर पर्याप्त ऑक्सीजन नही मील पाती है। हालांकि हाइपोक्सिया अक्सर एक रोग की स्थिति है, धमनी ऑक्सीजन सांद्रता में बदलाव सामान्य शरीर विज्ञान का हिस्सा हो सकता है। जैसे की: हाइपोवेंटिलेशन प्रशिक्षण या ज़ोरदार शारीरिक व्यायाम से भी हाइपोक्सिया की स्थिति बन सकती है। हाइपोक्सिया, हाइपोजेमिया और एनोजेमिया से अलग होता है। हाइपोक्सिया ऑक्सीजन की कमी को या आपूर्ति न हो पाने को कहा जाता है परन्तु हाइपोजेमिया और एनोजेमिया ऑक्सीजन की शुन्य स्थिति को खा जाता है, जिसमे शारीर को न मात्र में ऑक्सीजन मिलती है। हाइपोक्सिया नवजात शिशु में अपरिपक्व जन्म की एक गंभीर स्थिति है। इसका मुख्य कारण यह है कि मानव भ्रूण के गर्भावस्था के दौरान फेफडों का दुसरे अंगो के बाद विकसित होना। फेफड़ों की सहायता करने के लिए पूरे शरीर में ऑक्सीजन युक्त रक्त वितरित की जाती है जिसके लिए हाइपोक्सिया के जोखिम शिशुओं को अक्सर इनक्यूबेटर के अंदर रखा जाता है जो की निरंतर सकारात्मक एयरवे प्रेशर प्रदान करने में सक्षम होता है। .

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हिन्दू संस्कार का इतिहास

संस्कारों के विवरण हेतु देखें - सनातन धर्म के संस्कार संस्कार शब्द का अर्थ है - शुद्धिकरण; अर्थात् मन, वाणी और शरीर का सुधार। हमारी सारी प्रवृतियों का संप्रेरक हमारे मन में पलने वाला संस्कार होता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में व्यक्ति निर्माण पर जोर दिया गया है। हिन्दू संस्कारों का इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। .

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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हृदय रोग

हृदय रोग हृदय शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। मानवों मेंयह छाती के मध्य में, थोड़ी सी बाईं ओर स्थित होता है और एक दिन में लगभग एक लाख बार एवं एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है। यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को धकेलता करता है। हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के द्वारा मिलता है जो कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान किया जाता है। यह अंग दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं। दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है और रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है। चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं। हृदय में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार से हैं.

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जलना (चिकित्सा)

हाथ में द्वितीय श्रेणी (2a) का दाह शरीर के किसी एक या अनेक अंगों का जलना एक प्रकार की दुर्घटना है जो उष्मा, विद्युत, रसायन, प्रकाश, विकिरण या घर्षण आदि से हो सकती है। बहुत ठण्डी चीजों के सम्पर्क में आने से भी शरीर "जल" सकता है जिसे "शीत-जलन" (कोल्ड बर्न) कहते हैं। विश्व में प्रति वर्ष सहस्त्रों व्यक्ति दाह से मरते हैं और इससे बहुत अधिक संख्या में अपंग होकर समाज के भार बन जाते हैं। दाह रोग प्राय: असाध्य नहीं होता। .

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जामुन

जामुन का पेड़ जामुन (वैज्ञानिक नाम: Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है जिसके फल बैंगनी रंग के होते हैं (लगभग एक से दो सेमी. व्यास के) | यह वृक्ष भारत एवं दक्षिण एशिया के अन्य देशों एवं इण्डोनेशिया आदि में पाया जाता है। इसे विभिन्न घरेलू नामों जैसे जामुन, राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबेरी आदि के नाम से जाना जाता है। प्रकृति में यह अम्लीय और कसैला होता है और स्वाद में मीठा होता है। अम्लीय प्रकृति के कारण सामान्यत: इसे नमक के साथ खाया जता है। जामुन का फल 70 प्रतिशत खाने योग्य होता है। इसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो मुख्य स्रोत होते हैं। फल में खनिजों की संख्या अधिक होती है। अन्य फलों की तुलना में यह कम कैलोरी प्रदान करता है। एक मध्यम आकार का जामुन 3-4 कैलोरी देता है। इस फल के बीज में काबोहाइट्ररेट, प्रोटीन और कैल्शियम की अधिकता होती है। यह लोहा का बड़ा स्रोत है। प्रति 100 ग्राम में एक से दो मिग्रा आयरन होता है। इसमें विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं। .

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वसा

lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .

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विरोचन

विरोचन हिन्दू पौराणिक गाथाओ के अनुसार भक्त प्रह्लाद का पुत्र तथा बली का पिता और एक असुर राजा था। छान्दोग्य उपनिषद् के अनुसार इन्द्र और वह प्रजापति के पास आत्मन् के बारे में शिक्षा ग्रहण करने गये और ३२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया। लेकिन अंत में विरोचन ने प्रजापति की शिक्षा को ग़लत समझ लिया और असुरों को आत्मन् की जगह शरीर को पूजने की शिक्षा देने लगा। इसी कारणवश असुर मृतक की देह को सुगंध, माला तथा आभूषणों से सुसज्जित करते थे। विरोचन देवताओं के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। .

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विकृतिविज्ञान

जिन कारणों से शरीर के विभिन्न अंगों की साम्यावस्था, या स्वास्थ्यावस्था, नष्ट होकर उनमें विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, उनको हेतुकीकारक (Etiological factors) और उनके शास्त्र को हेतुविज्ञान (Etiology) कहते हैं। ये कारण अनेक हैं। इन्हें निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है.

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व्यायाम

एक यू एस मैरीन ट्रायाथलॉन के तैरने के हिस्से को पूरा कर पानी से बाहर आता हुआ। व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है। यह कई अलग अलग कारणों के लिए किया जाता है, जिनमे शामिल हैं: मांसपेशियों को मजबूत बनाना, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, एथलेटिक कौशल बढाना, वजन घटाना या फिर सिर्फ आनंद के लिए। लगातार और नियमित शारीरिक व्यायाम, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है और यह हमारी नींद कम करता है इससे हमें सुबह उठने पर तकलीफ नहीं होतीहृदय रोग, रक्तवाहिका रोग, टाइप 2 मधुमेह और मोटापा जैसे समृद्धि के रोगों को रोकने में मदद करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है और तनाव को रोकने में मदद करता है। बचपन का मोटापा एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता का विषय है और शारीरिक व्यायाम से बचपन के मोटापे के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। .

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खींप

खींप जिसका वानस्पतिक नाम (लेप्टाडेनिया पाइरोटेकनिका/Leptadenia pyrotechnica) होता है यह एक रेगिस्तानी आयुर्वेदिक अर्थात एक प्रकार की घास होती है जो विशेष रूप से राजस्थान के रेगिस्तानी हिस्सों में ही पाई जाती है इसे पंजाबी में खीप कहते हैं खींप का कूटने से में जो पानी निकलता है वो पानी अर्थात इसका रस शरीर के लिए काफी नुकसानदेह होता है इससे शरीर पर खुजली हो जाती है राजस्थान में खींप के सूखने के पश्चात झोंपड़ा बनाने में तथा झाड़ू बनाने में काफी हद तक प्रयोग किया जाता है। .

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गैस

गैसों का कण मॉडल: गैसों के कणों के बीच की औसत दूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। गैस (Gas) पदार्थ की तीन अवस्थाओं में से एक अवस्था का नाम है (अन्य दो अवस्थाएँ हैं - ठोस तथा द्रव)। गैस अवस्था में पदार्थ का न तो निश्चित आकार होता है न नियत आयतन। ये जिस बर्तन में रखे जाते हैं उसी का आकार और पूरा आयतन ग्रहण कर लेते हैं। जीवधारियों के लिये दो गैसे मुख्य हैं, आक्सीजन गैस जिसके द्वारा जीवधारी जीवित रहता है, दूसरी जिसे जीवधारी अपने शरीर से छोड़ते हैं, उसका नाम कार्बन डाई आक्साइड है। इनके अलावा अन्य गैसों का भी बहु-प्रयोग होता है, जैसे खाना पकाने वाली रसोई गैस। पानी दो गैसों से मिलकर बनता है, आक्सीजन और हाइड्रोजन। .

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आत्महत्या के तरीके

आत्महत्या का तरीके खोजने वालों को भारत में आसरा नामक संस्था परामर्श देती हैं जिसका दूरभाष क्रमांक 022 2754 6669 है। उस संस्था का अधिकृत जालस्थान www.aasra.info है। आत्महत्या का तरीका ऐसी किसी भी विधि को कहते हैं जिसके द्वारा एक या अधिक व्यक्ति जान-बूझकर अपनी जान ले लेते हैं। आत्महत्या के तरीकों को जीवन लीला समाप्त करने की दो विधियों के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है: शारीरिक या रासायनिक.

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आमाशय (पेट)

कशेरुकी, एकाइनोडर्मेटा वंशीय जंतु, कीट (आद्यमध्यांत्र) और मोलस्क सहित, कुछ जंतुओं में, आमाशय एक पेशीय, खोखला, पोषण नली का फैला हुआ भाग है जो पाचन नली के प्रमुख अंग के रूप में कार्य करता है। यह चर्वण (चबाना) के बाद, पाचन के दूसरे चरण में शामिल होता है। आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).

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आहारीय मैग्नेशियम

मैग्नेशियम के कुछ अच्छे स्रोत मैग्नेशियम का एक भाग मानव-शरीर की प्रत्येक कोशिका में होता है। यह भाग अतिसूक्ष्म हो सकता है, किंतु महत्त्वपूर्ण अवश्य होता है। सम्पूर्ण शरीर में मैग्नेशियम की मात्रा ५० ग्राम से कम होती है। शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, स्नायुओं और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्यशीलता और एन्जाइमों, को सर्किय बनाने के लिये मैग्नेशियम आवश्यक है। कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है।|हिन्दुस्तान लाइव। १४ अप्रैल २०१० इसीलिये फ़्रांस में कैंसर की अधिकता का मुख्य कारण स्थानीय मिट्टी में मैग्नेशियम का कम अंश पाया गया है। मैग्नेशियम के निम्न स्तरों और उच्च रक्तचाप में स्पष्ट अंतर्संबंध स्थापित हो चुका है। निम्न मैग्नेशियम स्तर से मधुमेह भी हो सकता है। यूरोलोजी जर्नल की एक रिर्पोट के अनुसार मैग्नेशियम और विटामिन बी६ गुर्दे और पित्ताशय की पथरी के खतरे को कम करने में प्रभावी थे। कठोर दैहिक व्यायाम शरीर के मैग्नेशियम की सुरक्षित निधि को क्षय कर देते है और संकुचन को कमजोर कर देते है। व्यायाम एवं शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नेशियम सम्पूरकों की आवश्यकता है। एक गिलास भारी जल मैग्नेशियम के लियें खाघ-संपूरक है। भारी जल में निरपवाद रूप से उच्च मैग्नेशियम का अंश होता है। भारी जल का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में हृदयाघात न्य़ूनतम होते हैं। इसके अन्य महत्वपूर्ण स्रोत है सम्पूर्ण अनाज, दाल, गिरीदार फ़ल, हरी पत्तीदार सब्जियां, डेरी उत्पाद और समुद्र से प्राप्त होने वाले आहार। .

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आहारीय सोडियम

आहारीय सोडियम शरीर की कोशिकाओं के अन्दर और बाहर जल के सन्तुलन को बनायें रखने में सहायक होता है। इसकी कमी से मांसपेशियों में ऐठन एडेमा, हो सकता है, किन्तु इसकी अधिकता से हानिकारक परिणाम जैसे उच्च रक्तचाप, गुर्दे की बीमारियां, यकृत का सूत्रणरोग और संकुलन संबंधी हृदय रोग हो सकते है। सोडियम मूत्र और विशेषतः पसीने में सोडियम क्लोराइड के रूप में निकलता है। कभी-कभी आहारों में जैव सोडियम आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त नही होता। अतः सोडियम क्लोराइड या खाने का नमक भोजन में शामिल करना पडता है। .

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आहारीय खनिज

आहारीय खनिज वे खनिज होते हैं, जो आहार के संग शरीर को मिलते हैं एवं पोषण करने में सहाय्क होते हैं। शरीर के लिए पांच महत्त्वपूर्ण तत्त्व कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ़ास्फ़ोरस, पोटाशियम और सोडियम अत्यावश्वक होते हैं। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण किंतु सूक्ष्म मात्रिक तत्व हैं, क्रोमियम, तांबा, आयोडिन, लोहा, मैगनीज और जस्ता। इसके अतिरिक्त सेलेनियम भी अच्छे स्वास्थ्य बनाये रखने में एक उपयोगी है। अन्य सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों में सल्फ़र, निकल, कोबाल्ट, फ़्यूरीन, आंक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन भी हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। ये सब मिलकर आहारीय खनिज कहलाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने विटामिन इत्यादि। लौह रक्त के लिए और कैल्शियम हडिडयों के लिए सम्पूरक के रूप में गर्भावस्था में महत्वपूर्ण है। आयोडिन की कमी गलगण्ड और मन्दबुद्धि, तथा मैग्नेशियम की कमी कैन्सर का कारण बन सकती है। मैगनीज और क्रोमियम का भी हृदय-रोग से संबध है। सामान्य रक्त-शर्करा के स्तरों को बनाए रखने के लिए क्रोमियम की आवश्यकता है। पाचन-तंत्र में जस्ते की कमी से गंजापन, भूख न लगना और यौन-दुष्क्रिया के परिणाम हो सकते है। एक ७० किलों भार वाले मनुष्य के लिए खनिजांश और उसके दैनिक औसत अन्नग्रहण की आवश्यकताओं का अनुमान निम्न प्रकार से है-.

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इक्टोपिया कॉर्डिस

इक्टोपिया कॉर्डिस के कारण मृत एक नवजात शिशु का संरक्षित प्रतिरूप मानव ह्रदय को ६४ साल के वृद्ध पुरुष में से हटाया गया। इक्टोपिया कोर्डिस एक प्रकार का जन्म दोष है, जिसमें हृदय जन्म के समय शरीर में अपने नियत स्थान में न होकर, बल्कि छाती के अगले हिस्से की ओर उभर आता है या कभी छाती के आस-पास के हिस्सों में पाया जाता है। इस बीमारी के सही कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है। ज्यादातर ऐसे मामलों में बच्चे की जन्म के बाद मृत्यु हो जाती है, लेकिन कभी-कभी इसका ऑपरेशन सफल भी होता है। २ सितंबर, २००९ को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में डॉक्टरों की टीम ने इक्टोपिया कॉर्डिस से ग्रस्त १० दिन के एक शिशु के हृदय का सफल ऑपरेशन किया है। सामान्यतः यह बीमारी बहुत कम होती है। दस हजार में सिर्फ ०.०७९ प्रतिशत बच्चों में ही इसकी संभावना पाई गई है। इस गंभीर बीमारी को हम एक्टोकॉर्डिया और एक्ज़ोकार्डियो भी कहते हैं। अभी तक इसके संक्रामक या आनुवांशिक होने की पुष्टि नहीं हुई है। इसकी पहचान जन्म के पहले अल्ट्रासाउंड में ही हो जाती है। दिल की स्थिति के आधार पर इक्टोपिया कॉर्डिस को चार भागों में बाँटा गया है- सरवाइकल, थोरासिक, थोराकोएब्डॉमिनल और एब्डॉमिनल। इक्टोपिया कोर्डिस के साथ जुड़े जन्म दोष की इक्टोपिया कॉर्डिस बीमारी से ग्रसित अब तक जीवित व्यक्ति क्रिस्टोफर वॉल (१९७५) का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। आने वाले समय में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए इक्टोपिया कॉर्डिस एक चुनौती के रूप में सामने है। .

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कुचलन

जब किसी बिना धार वाली वस्तु से शरीर पर चोट पहुँचती है, तो उस जगह रक्त कोशिकाएँ फट जाती हैं पर कोई कटाव नही होता। रक्त कोशिकाओं के फटने से आस पास रक्त भर जाता है और उस जगह का सूजन आ जाती है। यह सूजन शुरुआत में नीले रंग की होती है और वक्त के साथ-साथ इसका रंग भी बदलता है। इस सूजन को नील या कुचलना कहते हैं! इस नील का आकर उस वस्तु के अनुसार पाया जाता है जिससे उसे चोट पहुँची है। नील और सूजन शरीर के नाज़ुक अंगो में ज़्यादा दिखती है, जैसे की पलकें, कान, होंठ आदि। कई बार सूजन जिस जगह चोट लगी है उस स्थान पर न होकर नाज़ुक स्थान पर दिखाई देती है, जैसे; सर पर चोंट का आभाव आँखों पर दिखाई देता है! इस प्रकार के नील को स्थानांतरित नील कहते हैं। .

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केकड़ा

केकड़ा केकड़ा आर्थ्रोपोडा संघ का एक जन्तु है। इसका शरीर गोलाकार तथा चपटा होता है। सिरोवक्ष (सिफेलोथोरेक्स) तथा उदर में बँटा रहता है। इसका उदर बहुत छोटा होता है। इसके सिरोवक्ष के अधर वाले भाग में पाँच जोड़े चलन पाद मिलते हैं। सिर पर एक जोड़ा सवृन्त संयुक्त नेत्र मिलता है। इसमें श्वसन गिल्स द्वारा होता है। .

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अनुकूलन

अनुकूलन किसी विशेष वातावरण में सुगमता पूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंशवृद्धि के लिए जीवों के शरीर में रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थायी परिवर्तन उत्पन्न होने की प्रक्रिया है। यह शरीर का अंग या स्थिति नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है अनुकूलन द्वारा होने वाले स्थायी बदलावों को इस प्रक्रिया से भिन्न स्पष्ट करने के लिए उन्हें अनुकूलन जन्य लक्षण कहा जा सकता है। .

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अस्थि

अस्थियाँ या हड्डियाँ रीढ़धारी जीवों का वह कठोर अंग है जो अन्तःकंकाल का निर्माण करती हैं। यह शरीर को चलाने (स्थानांतरित करने), सहारा देने और शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा करने मे सहायता करती हैं साथ ही यह लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने और खनिज लवणों का भंडारण का कार्य भी करती हैं। अस्थियाँ विभिन्न आकार और आकृति की होने के साथ वजन मे हल्की पर मजबूत होती हैं। इनकी आंतरिक और बाहरी संरचना जटिल होती है। अस्थि निर्माण का कार्य करने वाले प्रमुख ऊतकों मे से एक उतक को खनिजीय अस्थि ऊतक, या सिर्फ अस्थि ऊतक भी कहते हैं और यह अस्थि को कठोरता और मधुकोशीय त्रिआयामी आंतरिक संरचना प्रदान करते हैं। अन्य प्रकार के अस्थि ऊतकों मे मज्जा, अन्तर्स्थिकला और पेरिओस्टियम, तंत्रिकायें, रक्त वाहिकायें और उपास्थि शामिल हैं। वयस्क मानव के शरीर में 206 हड्डियों होती हैं वहीं एक शिशु का शरीर २७० अस्थियों से मिल कर बनता है। .

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अंजू शर्मा

डॉ० अंजू शर्मा (जन्म: ५ अगस्त, १९६०) एक जानीमानी भारतीय लेखिका, शिक्षिका एवं चिकित्सिका हैं। आयुर्विज्ञान पर अब तक इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वह चिकित्सा सेवा सम्मान २००९ से पुरस्कृत व सम्मानित हैं। .

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अंग तंत्र

तंत्र का एक उदाहरण - तंत्रिका तंत्र; इस चित्र में दिखाया गया है कि यह तंत्र मूलत: चार अंगों से मिलकर बना है: मस्तिष्क, प्रमस्तिष्क (cerebellum), मेरुदण्ड (spinal cord) तथा तंत्रिकाएं (nerve) नाना प्रकार के ऊतक (tissue) मिलकर शरीर के विभिन्न अंगों (organs) का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार, एक प्रकार के कार्य करनेवाले विभिन्न अंग मिलकर एक अंग तंत्र (organ system) का निर्माण करते हैं। कई अंग तंत्र मिलकर जीव (जैसे, मानव शरीर) की रचना करते हैं। .

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उपास्थि

सूक्ष्मदर्शी से देखने पर केटिलेज उपास्थि मानव शरीर एवं अन्य प्राणियों में पाया जाने वाला लचीला संयोजी उत्तक है। यह हमारी मज्जा में स्थापित कॉन्ड्रोसाइट्स कोशिकाओं से बने होते हैं। कान की हड्डी, नाक की हड्डी, अस्थियों के जोड़ आदि उपास्थि के बने हैं। उपास्थि की संरचना के अनुसार ये कोलेजन या एलॉस्टिन के बने होते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं- हाइलीन उपास्थि, एलास्टिक और फाइब्रो उपास्थि। उपास्थि शरीर के ऊतकों को मजबूत बनाने का काम करते हैं। ये हमारे शरीर के जोड़ों को लचीला भी बनाते हैं। इसकी मौजूदगी की वजह से ही हमारे शरीर के कई अंग सुचारू रूप से काम करते हैं। उपास्थि रक्त वाहिकाओं से जुड़े नहीं होते बल्कि इनके अंदर पोषक तत्व बिखरा रहता है। आमतौर पर ये लचीले होते हैं लेकिन जरूरत और प्रकार के हिसाब से इनकी प्रकृति में अंतर होता है। कुछ ऐसे अंग जिनमें उपास्थि पाया जाता है, वे हैं- कान, नाक, पंजर और इंटरवर्टीब्रल डिस्क। तीन तरह के उपास्थि में हाइलीन को ही आमतौर पर उपास्थि कहा जाता है क्योंकि शरीर में ज्यादातर हाइलीन उपास्थि ही होता है। यह हड्डियों को जोड़ों में बांटता है ताकि वे मुड़कर सहजता से काम कर सकें। हाइलीन उपास्थि आमतौर पर कोलेजन फाइबर का बना होता है। लोचदार उपास्थि बाकी अन्य उपास्थि से ज्यादा लचीले होते हैं क्योंकि इनमें एलॉस्टिन फाइबर पाया जाता है। इस तरह का उपास्थि कान के बाहरी हिस्से (जिसे लैरिक्स कहते हैं) और यूस्टेशियन ट्यूब में मौजूद होता है। लचीला होने के कारण यह इन अंगों की संरचना को बेहतर संतुलित करता है, जिससे कान में बाहर रहने वाली गोलाकार संरचना खुली रह सके। फाइब्रो उपास्थि तीनों उपास्थि में सबसे अधिक मजबूत और दृढ़ संरचना वाला होता है। इसमें हाइलीन उपास्थि से ज्यादा टाइप वन कोलेजन होते हैं, जो टाइप सेकेंड से ज्यादा मजबूत होते हैं। फाइब्रो उपास्थि अंतरवर्टीबल डिस्क का निर्माण करते हैं। इसके अलावा ये शिराओं और अस्थिमज्जा को हड्डियों से जोड़ने का काम भी करते हैं। हाइलीन उपास्थि क्षतिग्रस्त होने पर फाइब्रो उपास्थि में बदल जाते हैं। हालांकि दृढ़ता की वजह से इन उपास्थि का वजन कम होता है। .

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उल्टी

200px आमाशय के अन्दर के पदार्थों को बलपूर्वक शरीर के बाहर निकालने की क्रिया को उल्टी या वमन (Vomiting) कहते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि गैस्ट्रीक, जहर या मस्तिष्क का ट्यूमर इत्यादि.

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ऋषि

ऋषि भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। आधुनिक बातचीत में मुनि, योगी, सन्त अथवा कवि इनके पर्याय नाम हैं। ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ देखना होता है। ऋषि के प्रकाशित कृतियों को आर्ष कहते हैं जो इसी मूल से बना है, इसके अतिरिक्त दृष्टि (नज़र) जैसे शब्द भी इसी मूल से हैं। सप्तर्षि आकाश में हैं और हमारे कपाल में भी। ऋषि आकाश, अन्तरिक्ष और शरीर तीनों में होते हैं। .

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छिपकली

Clockwise from top left: veiled chameleon(''Chamaeleo calyptratus''), rock monitor (''Varanus albigularis''), common blue-tongued skink (''Tiliqua scincoides''), Italian wall lizard (''Podarcis sicula''), giant leaf-tailed gecko (''Uroplatus fimbriatus''), and legless lizard (''Anelytropsis papillosus'') छिपकली स्क्वमाटा जीववैज्ञानिक गण के सरीसृप प्राणियों का एक उपगण है, जिसमें अंटार्कटिका के अलावा लगभग विश्व भर के हर बड़े भू-भाग में मिलने वाली लगभग ६००० ज्ञात जातियाँ शामिल हैं। ध्यान दें कि सर्प भी स्क्वमाटा गण के सदस्य होते हैं और छिपकली व सर्प दोनों एक ही पूर्वज के वंशज हैं लेकिन परिभाषिक रूप से सर्पों को छिपकली नहीं समझा जाता। .

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2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला

दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड के विरोध में कलकत्ता में हुए प्रदर्शन का एक दृश्य दिल्ली के सामूहिक बलात्कार कांड के विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन हुए उन्हीं में से बंगलौर का एक दृश्य 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला भारत की राजधानी दिल्ली में 16 दिसम्बर 2012 को हुई एक बलात्कार तथा हत्या की घटना थी, जो संचार माध्यम के त्वरित हस्तक्षेप के कारण प्रकाश में आयी। इसकी संक्षेप में कहानी इस प्रकार है। "भारत की राजधानी नई दिल्ली में भौतिक चिकित्सा की प्रशिक्षण कर रही एक युवती पर दक्षिण दिल्ली में अपने पुरुष मित्र के साथ बस में सफर के दौरान 16 दिसम्बर 2012 की रात में बस के निर्वाहक, मार्जक व उसके अन्य साथियों द्वारा पहले फब्तियाँ कसी गयीं और जब उन दोनों ने इसका विरोध किया तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया। जब उसका पुरुष दोस्त बेहोश हो गया तो उस युवती के साथ उन ने बलात्कार करने की कोशिश की। उस युवती ने उनका डटकर विरोध किया परन्तु जब वह संघर्ष करते-करते थक गयी तो उन्होंने पहले तो उससे बेहोशी की हालत में बलात्कार करने की कोशिश की परन्तु सफल न होने पर उसके यौनांग में व्हील जैक की रॉड घुसाकर उसके अन्तरंगों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। बाद में वे सभी उन दोनों को एक निर्जन स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। किसी तरह उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया। वहाँ बलात्कृत युवती की शल्य चिकित्सा की गयी। परन्तु हालत में कोई सुधार न होता देख उसे 26 दिसम्बर 2012 को सिंगापुर के माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया जहाँ उस युवती ने 29 दिसम्बर 2012 को यह शरीर सदा-सदा के लिये त्याग दिया।" 30 दिसम्बर 2012 को उसका शव दिल्ली लाकर पुलिस की सुरक्षा में जला दिया गया। भारत सरकार के इस कृत्य की निन्दा करते हुए सोशल मीडिया में ट्वीटर फेसबुक आदि पर काफी कुछ लिखा गया। इस घटना के विरोध में पूरे देश में उग्र व शान्तिपूर्ण प्रदर्शन हुए उन्हीं में से नई दिल्ली, कलकत्ता और बंगलौर में हुए प्रदर्शनों के कुछ दृश्य भी बानगी के तौर पर यहाँ दिये जा रहे हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि नई दिल्ली में यौन अपराधों की दर अन्य मैट्रोपॉलिटन शहरों के मुकाबले सर्वाधिक (प्रति 18 घण्टे पर लगभग एक बलात्कार) है। इससे पूर्व भारत की एक मात्र महिला राष्ट्र्पति प्रतिभा पाटिल सुप्रीम कोर्ट द्वारा बलात्कार के पाँच मामलों में दी गयी फाँसी की सजा को माफ करके उम्रकैद में बदल चुकी हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी निन्दा हुई है। सम्प्रति जनता के आक्रोश और समय की माँग को देखते हुए भारत की केन्द्र सरकार बलात्कारियों को जीवन भर के लिये नपुंसक बना देने पर विचार कर रही है। .

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