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विश्वज्ञानकोश

सूची विश्वज्ञानकोश

विश्वज्ञानकोश, विश्वकोश या ज्ञानकोश (Encyclopedia) ऐसी पुस्तक को कहते हैं जिसमें विश्वभर की तरह तरह की जानने लायक बातों को समावेश होता है। विश्वकोश का अर्थ है विश्व के समस्त ज्ञान का भंडार। अत: विश्वकोश वह कृति है जिसमें ज्ञान की सभी शाखाओं का सन्निवेश होता है। इसमें वर्णानुक्रमिक रूप में व्यवस्थित अन्यान्य विषयों पर संक्षिप्त किंतु तथ्यपूर्ण निबंधों का संकलन रहता है। यह संसार के समस्त सिद्धांतों की पाठ्यसामग्री है। विश्वकोश अंग्रेजी शब्द "इनसाइक्लोपीडिया" का समानार्थी है, जो ग्रीक शब्द इनसाइक्लियॉस (एन .

47 संबंधों: तन्त्र, तेलुगू साहित्य, द वंडर दैट वाज़ इण्डिया, नगेंद्रनाथ वसु, पतञ्जलि, बांग्लापीडिया, ब्रिटैनिका विश्वकोष, बृहत्संहिता, बैदू, भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास, भगवद्गोमण्डल, मराठी विश्वकोश, महानकोश, महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश, मानसोल्लास, माइक्रोसॉफ्ट एन्कार्टा, रूसो, शब्दकल्पद्रुम, शब्दकोश, शिवानन्द गोस्वामी, समान्तर कोश, सहपीडिया, सार-संग्रह, संस्कृत शब्दकोश, संस्कृत के आधुनिक कोश, हिन्दू धर्म का विश्वकोश, हिन्दी साहित्य कोश, हिन्दी विश्वकोश, हिन्दी कम्प्यूटरी, हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें, जॉन मार्ले, जॉन मिल्स, विदारी नवप्रवर्तन, विश्वकोषों की सूची, विष्णुधर्मोत्तर पुराण, विकिपीडिया, वैज्ञानिक साहित्य, गुजराती विश्वकोश, ऑनलाइन विश्वकोषों की सूची, इनसाइक्लोपीदी, कोश, कीट विज्ञान, अभिनय, अमरकोश, अल बुस्तानी, अग्निपुराण, अंग्रेज़ी भाषा

तन्त्र

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित तंत्र या प्रणाली या सिस्टम के बारे में तंत्र (सिस्टम) देखें। ---- तन्त्र कलाएं (ऊपर से, दक्षिणावर्त): हिन्दू तांत्रिक देवता, बौद्ध तान्त्रिक देवता, जैन तान्त्रिक चित्र, कुण्डलिनी चक्र, एक यंत्र एवं ११वीं शताब्दी का सैछो (तेन्दाई तंत्र परम्परा का संस्थापक तन्त्र, परम्परा से जुड़े हुए आगम ग्रन्थ हैं। तन्त्र शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत है। तन्त्र-परम्परा एक हिन्दू एवं बौद्ध परम्परा तो है ही, जैन धर्म, सिख धर्म, तिब्बत की बोन परम्परा, दाओ-परम्परा तथा जापान की शिन्तो परम्परा में पायी जाती है। भारतीय परम्परा में किसी भी व्यवस्थित ग्रन्थ, सिद्धान्त, विधि, उपकरण, तकनीक या कार्यप्रणाली को भी तन्त्र कहते हैं। हिन्दू परम्परा में तन्त्र मुख्यतः शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है, उसके बाद शैव सम्प्रदाय से, और कुछ सीमा तक वैष्णव परम्परा से भी। शैव परम्परा में तन्त्र ग्रन्थों के वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं। बौद्ध धर्म का वज्रयान सम्प्रदाय अपने तन्त्र-सम्बन्धी विचारों, कर्मकाण्डों और साहित्य के लिये प्रसिद्ध है। तन्त्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र”। जिससे अभिप्राय है – तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गुह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है। तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है जिसका विकास प्रथम सहस्राब्दी के मध्य के आसपास हुआ। साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना शास्त्र, प्राचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं। यूरोपीय विद्वानों ने अपने उपनिवीशवादी लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तन्त्र को 'गूढ़ साधना' (esoteric practice) या 'साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड' बताकर भटकाने की कोशिश की है। वैसे तो तन्त्र ग्रन्थों की संख्या हजारों में है, किन्तु मुख्य-मुख्य तन्त्र 64 कहे गये हैं। तन्त्र का प्रभाव विश्व स्तर पर है। इसका प्रमाण हिन्दू, बौद्ध, जैन, तिब्बती आदि धर्मों की तन्त्र-साधना के ग्रन्थ हैं। भारत में प्राचीन काल से ही बंगाल, बिहार और राजस्थान तन्त्र के गढ़ रहे हैं। .

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तेलुगू साहित्य

तेलुगु का साहित्य (तेलुगु: తెలుగు సాహిత్యం / तेलुगु साहित्यम्) अत्यन्त समृद्ध एवं प्राचीन है। इसमें काव्य, उपन्यास, नाटक, लघुकथाएँ, तथा पुराण आते हैं। तेलुगु साहित्य की परम्परा ११वीं शताब्दी के आरम्भिक काल से शुरू होती है जब महाभारत का संस्कृत से नन्नय्य द्वारा तेलुगु में अनुवाद किया गया। विजयनगर साम्राज्य के समय यह पल्लवित-पुष्पित हुई। .

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द वंडर दैट वाज़ इण्डिया

द वंडर दैट वाज़ इण्डिया: अ सर्वे ऑफ़ कल्चर ऑफ़ इण्डियन सब-कांटिनेंट बिफ़ोर द कमिंग ऑफ़ द मुस्लिम्स (The Wonder That Was India: A Survey of the Culture of the Indian Sub-Continent Before the Coming of the Muslims), भारतीय इतिहास से सम्बन्धित एक प्रसिद्ध पुस्तक है जिसकी रचना १९५४ में आर्थर लेवेलिन बाशम ने की थी। यह पुस्तक पशिमी जगत के पाठकों को लक्षित करके लिखी गयी थी। इस पुस्तक में बाशम ने अपने पूर्व के कुछ इतिहासकारों द्वारा खींची गयी भारतीय इतिहास की नकारात्मक छबि को ठीक करने का प्रयास किया है। इसका हिंदी अनुवाद "अद्भुत भारत" नाम से अनुदित और प्रकाशित हुआ। 'द वंडर दैट वाज़ इण्डिया' ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे भारतविद के तौर पर स्थापित किया जिसकी प्रतिष्ठा विलियम जोंस और मैक्समूलर जैसी है। इसी पुस्तक के कारण उनकी छवि आज भी भारतीय बौद्धिक मानस में अंकित है। मुख्यतः पश्चिम के पाठक वर्ग के लिए लिखी गयी इस पुस्तक की गणना आर.सी. मजूमदार द्वारा रचित बहुखण्डीय "हिस्ट्री ऐंड कल्चर ऑफ़ इण्डियन पीपुल" के साथ की जाती है। इससे पहले औपनिवेशिक इतिहासकारों का तर्क यह था कि अपने सम्पूर्ण इतिहास में भारत सबसे अधिक सुखी, समृद्ध और संतुष्ट अंग्रेजों के शासनकाल में ही रहा। बाशम और मजूमदार को श्रेय जाता है कि उन्होंने अपने-अपने तरीके से भारत के प्राचीन इतिहास का वि-औपनिवेशीकरण करते हुए जेम्स मिल, थॉमस मैकाले और विंसेंट स्मिथ द्वारा गढ़ी गयी नकारात्मक रूढ़ छवियों को ध्वस्त किया। समीक्षकों के अनुसार पुस्तक का सर्वाधिक सफल अध्याय राज्य, समाज-व्यवस्था और दैनंदिन जीवन से संबंधित है। बाशम अपनी इस विख्यात पुस्तक की शुरुआत 662 ईस्वी में लिखे गये एक कथन से करते हैं जो सीरियन ज्योतिषी और भिक्षु सेवेरस सेबोकीट का था: वस्तुतः इसी निष्पक्ष दृष्टि द्वारा प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर किये गये उनके कार्यों ने आज भी बाशम को उन लोगों के लिए प्रासंगिक बना रखा है जिनकी थोड़ी सी भी रुचि भारत, भारतीय संस्कृति और सभ्यता में है। प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर किये गये अपने इस कार्य को "द वंडर दैट वाज़ इण्डिया" जैसे अलंकृत शीर्षक के तहत प्रस्तुत करने के पीछे वे एडगर एलन पो का हाथ मानते हैं। पो की कविता ‘टु हेलेन’ की पंक्तियों ‘द ग्लोरी दैट वाज़ ग्रीस, ऐंड द ग्रैंडियर दैट वाज़ रोम’ की तर्ज़ पर प्रकाशकों ने इस पुस्तक का भड़कीला, अलंकृत किंतु आकर्षक नामकरण किया। यह ग्रंथ भारतीय उपमहाद्वीप की उस सभ्यता के आविर्भाव और विकासक्रम का प्रतिबिम्बन है जो प्रागैतिहासिक काल से शुरू हो मुसलमानों के आगमन के पूर्व तक यहाँ फली-फूली। दस अध्यायों में बँटी यह रचना मुख्यतः भारत संबंधी पाँच विषय-वस्तुओं को सम्बोधित है: इतिहास और प्राक्-इतिहास, राज्य-सामाजिक व्यवस्था-दैनंदिन जीवन, धर्म, कला और भाषा व साहित्य। प्राक्-इतिहास, प्राचीन साम्राज्यों का इतिहास, समाज, और ग्राम का दैनिक जीवन, धर्म और उसके सिद्धांत, वास्तुविद्या, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत और नृत्य, भाषा साहित्य, भारतीय विरासत और उसके प्रति विश्व का ऋण जैसे विषयों का संघटन इस पुस्तक को प्राचीन भारतीय सभ्यता का एक शुद्ध विश्वकोश बना देता है। इस पुस्तक ने भारतीय इतिहास और संस्कृति के विद्यार्थियों की एक पूरी पीढ़ी के लिए मूल पाठ का काम किया है। भारतीयों द्वारा विश्व को दिये गये सांस्कृतिक अवदान की चर्चा करते हुए बाशम ने इस कृति में दिखाया है कि कैसे सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को अपनी अधिकांश संस्कृति भारत से प्राप्त हुई, जिसका प्रतिबिम्बन जावा के बोरोबुदूर के बौद्ध स्तूप और कम्बोडिया में अंग्कोरवाट के शैव मंदिर में परिलक्षित होता है। बृहत्तर भारत के संदर्भ में चर्चा करते हुए कुछ भारतीय राष्ट्रवादी इतिहासकार इस क्षेत्र में बौद्ध और ब्राह्मण धर्म के लक्षणों का सांस्कृतिक विस्तार पाते हैं। लेकिन बाशम ने दिखाया है कि यद्यपि दक्षिण-पूर्व एशिया की भाँति चीन ने भारतीय विचारों को उनकी संस्कृति के प्रत्येक रूप में आत्मसात नहीं किया, फिर भी सम्पूर्ण सुदूर-पूर्व बौद्ध धर्म के लिए भारत का ऋणी है। इसने चीन, कोरिया, जापान और तिब्बत की विशिष्ट सभ्यताओं के निर्माण में सहायता प्रदान की है। भारत ने बौद्ध धर्म के रूप में एशिया को विशेष उपहार देने के अलावा सारे संसार को जिन व्यवहारात्मक अवदानों द्वारा अभिसिंचित किया हैं, बाशम उन्हें, चावल, कपास, गन्ना, कुछ मसालों, कुक्कुट पालन, शतरंज का खेल और सबसे महत्त्वपूर्ण-संख्या संबंधी अंक-विद्या की दशमलव प्रणाली के रूप में चिह्नित करते हैं। दर्शन के क्षेत्र में प्राचीन बहसों में पड़े बिना बाशम ने पिछली दो शताब्दियों में युरोप और अमेरिका पर भारतीय अध्यात्म, धर्म-दर्शन और अहिंसा की नीति के प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाया है। इस पुस्तक के बारे में केनेथ बैलाचेट कहते हैं कि यह रचना भारतीय संस्कृति को सजीव और अनुप्राणित करने वाली बौद्धिक और उदार प्रवृत्ति के संश्लेषण का एक मास्टरपीस है। भारतीय महाद्वीप के बँटवारे के तुरंत बाद आयी यह सहानुभूति, और समभाव मूलभाव से अनुप्राणित औपनिवेशिकोत्तर काल की पांडित्यपूर्ण कृति साबित हुई। ब्रिटेन में अपने प्रकाशन के तुरन्त बाद इसका अमेरिका में ग्रोव प्रकाशन से पुनर्मुद्रण हुआ। इसके पेपरबैक संस्करणों ने इसे अमेरिकी बुकस्टोरों की शान बना दिया। फ्रेंच, पोलिश, तमिल, सिंहली और हिंदी में अनुवाद के साथ भारत और इंग्लैंड में भी इसके पेपरबैक संस्करण आये। मुख्यतः औपनिवेशिक ढंग से लिखे विंसेंट स्मिथ के ग्रंथ "ऑक्सफ़र्ड हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया" का संशोधित रूप में सम्पादन बाशम ने ही किया। इस पुस्तक में बाशम स्मिथ द्वारा भारतीय सभ्यता की प्रस्तुति में सहानुभूतिपरक दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए बताते हैं की कैसे अलग-अलग संस्कृतियों में रुचि संबंधी मानदण्डों का भेद समझ पाने की अपनी असमर्थता के कारण स्मिथ इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि राजपूत महाकाव्य रुक्ष और रसात्मक दृष्टि से निकृष्टतम है। इसके विपरीत बाशम ने सिद्ध किया कि वस्तुतः ऐसा नहीं है। .

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नगेंद्रनाथ वसु

नगेन्द्रनाथ बसु (6 जुलाई 1866-1938) बांग्ला भाषा के ज्ञानकोशकार थे। उनके द्वारा संपादित बंगला विश्वकोश ही भारतीय भाषाओं से प्रणीत प्रथम आधुनिक विश्वकोश है। यह सन् 1911 में 22 खंडों में प्रकाशित हुआ। Nagendranath Basu Plate नगेंद्रनाथ वसु ने ही अनेक हिंदी विद्वानों के सहयोग से बंगला विश्वकोश का हिन्दी रूपान्तर 'हिंदी विश्वकोश' की रचना की जो सन् 1916 से 1932 के मध्य 25 खंडों में प्रकाशित हुआ। नगेन्द्रनाथ बसु पुरातत्वविद, इतिहासकार तथा लेखक थे। उनका जन्म कोलकाता में हुआ था। कम आयु में ही उन्होने कविता एवं उपन्यास लिखना शुरू कर दिया था किन्तु शीघ्र वे सम्पादन कार्य में लग गए। 'तपस्विनी' तथा 'भारत' नामक दो मासिक पत्रिकाओं का उन्होने सम्पादन किया। .

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पतञ्जलि

पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार है जो हिन्दुओं के छः दर्शनों (न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, वेदान्त) में से एक है। भारतीय साहित्य में पतंजलि के लिखे हुए ३ मुख्य ग्रन्थ मिलते हैः योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ। कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति ने लिखे; अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियाँ हैं। पतंजलि ने पाणिनि के अष्टाध्यायी पर अपनी टीका लिखी जिसे महाभाष्य का नाम दिया (महा+भाष्य (समीक्षा, टिप्पणी, विवेचना, आलोचना))। इनका काल कोई २०० ई पू माना जाता है। .

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बांग्लापीडिया

बांग्लापीडिया या बांग्लादेश का राष्ट्रीय विश्वकोश, एशियाटिक सोसाइटी बांग्लादेश द्वारा प्रकाशित एक द्विभाषी और पहला बांग्लादेशी विश्वकोश है। यह बांग्ला और अंग्रेजी भाषाओं में उपलब्ध है। इसे प्रथम बार 2003 में 500 पृष्ठों वाले 10 खण्डों में प्रकाशित किया गया था। इसमें लगभग 6000 आलेख हैं। मुद्रित और आनलाइन संस्करण के अलावा यह सीडी रोम पर भी उपलब्ध है। इसका प्रस्तावित अद्यतन प्रति 2 वर्षों पश्चात होना तय पाया गया है। बांग्लापीडिया के प्रधान सम्पादक सिराजुल इस्लाम थे। लगभग 1200 बंग्लादेशी और विदेशी लेखकों ने इस विश्वकोश में उपलब्ध लेखों को लिखा है। इस परियोजना का वित्त-पोषण बंग्लादेशी सरकार, निजी क्षेत्र के संगठनों, शैक्षिक संस्थानों और यूनेस्को द्वारा किया गया है। इस परियोजना का मूल बजट 800,000 टका था, पर अंत में इस परियोजना पर एशियाटिक सोसाइटी को लगभग 8 करोड़ टका खर्च करना पड़ा। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध और स्वदेशी लोगों पर की गयीं विवादास्पद प्रविष्टियों के बावजूद, दोनों बांग्ला और अंग्रेजी संस्करण प्रकाशन के समय से ही पर पाठकों के बीच लोकप्रिय हैं। बांग्लापीडिया एक सामान्य विश्वकोश न होकर, बांग्लादेश से संबंधित विषयों पर आधारित एक विशेष विश्वकोश है। विश्वकोश के प्रयोजनों के लिए, बांग्लादेश को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है जो ऐतिहासिक रूप से क्रमश: प्राचीन पूर्वी भारत, सूबा बांग्ला, शाही बंगलाह, मुगल सूबा बंगला, बंगाल प्रेसीडेंसी, बंगाल प्रांत, पूर्वी बंगाल, पूर्वी पाकिस्तान और स्वतंत्र बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया। .

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ब्रिटैनिका विश्वकोष

एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका (Encyclopædia Britannica; हिन्दी अर्थ: 'ब्रितानी विश्वकोश') ब्रिटैनिका कंपनी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी भाषा का विश्वकोष है। कंपनी ने 32 खंडों में प्रकाशित होने वाले इस प्रिंट संस्करण का प्रकाशन बंद कर दिया है (मार्च, २०१२) और अब डिजिटल संस्करण पर ध्यान दिये जाने की बात कही है। इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका को सबसे पहले 1768 में स्कॉटलैंड में प्रकाशित किया गया था। इसके नये संस्करण प्रत्येक दो साल में प्रकाशित होते थे। इसे अंतिम बार 2010 में प्रकाशित किया गया था। हर दो साल पर प्रकाशित होने वाले 32 खंडों के प्रिंटेड संस्करण की कीमत 1400 अमेरिकी डॉलर (करीब 69,900 रुपये) थी। लेकिन अब इसके ऑनलाइन संस्करण के लिए प्रति वर्ष केवल 70 अमेरिकी डॉलर (करीब 2800 रुपये) कीमत चुकानी होगी। इसके अलावा, कंपनी ने लोगों की सुविधानुसार प्रति माह के हिसाब से ऑनलाइन सदस्यता शुल्क 1.99 से लेकर 4.99 अमेरिकी डॉलर तक भी शुरू कर दिया है। .

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बृहत्संहिता

बृहत्संहिता वाराहमिहिर द्वारा ६ठी शताब्दी संस्कृत में रचित एक विश्वकोश है जिसमें मानव रुचि के विविध विषयों पर लिखा गया है। इसमें खगोलशास्त्र, ग्रहों की गति, ग्रहण, वर्षा, बादल, वास्तुशास्त्र, फसलों की वृद्धि, इत्रनिर्माण, लग्न, पारिवारिक संबन्ध, रत्न, मोती एवं कर्मकांडों का वर्णन है। वृहत्संहिता में १०६ अध्याय हैं। यह अपने महान संकलन के लिये प्रसिद्ध है। .

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बैदू

बैदू इन्कॉर्पोरेशन (Baidu, Inc. / चीनी भाषा: 百度公司; पिन्यिन: bǎidù gōngsī, NASDAQ: BIDU), जिसे सामान्यत: 'बैदू' नाम से जाना जाता है, चीनी एवं जापानी भाषाओं का खोजी यंत्र है। इसकी स्थापना १८ जनवरी सन् २००० को हुई थी। यह वेबसाइटें, आडियो फाइलें तथा छबियाँ खोजता है। बैदू के कुल ५७ खोज-सेवाएं एवं अन्य सामुदायिक सेवाएं (जैसे आनलाइन विश्वकोश आदि) विद्यमान हैं। रॉबिन ली और एरिक जू इसके संस्थापक थे। दोनो ही संस्थापक चीनी थे। अलेक्सा इन्टरनेट रैंकिंग के अनुसार अप्रैल २०१० में बैदू का स्थान आठवाँ था। .

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भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास

भारत की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की विकास-यात्रा प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होती है। भारत का अतीत ज्ञान से परिपूर्ण था और भारतीय संसार का नेतृत्व करते थे। सबसे प्राचीन वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानवीय क्रियाकलाप मेहरगढ़ में पाये गये हैं जो अब पाकिस्तान में है। सिन्धु घाटी की सभ्यता से होते हुए यह यात्रा राज्यों एवं साम्राज्यों तक आती है। यह यात्रा मध्यकालीन भारत में भी आगे बढ़ती रही; ब्रिटिश राज में भी भारत में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति हुई तथा स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। सन् २००९ में चन्द्रमा पर यान भेजकर एवं वहाँ पानी की प्राप्ति का नया खोज करके इस क्षेत्र में भारत ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। चार शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हुई पश्चिमी विज्ञान व प्रौद्योगिकी संबंधी क्रांति में भारत क्यों शामिल नहीं हो पाया ? इसके अनेक कारणों में मौखिक शिक्षा पद्धति, लिखित पांडुलिपियों का अभाव आदि हैं। .

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भगवद्गोमण्डल

भगवद्गोमण्डल (Gujarati: ભગવદ્ગોમન્ડલ) गुजराती भाषा में एक विश्वकोश तथा गुजराती-से-गुजराती शब्दकोश है। इसकी परिकल्पना गोंडल के राजा भगवतसिंह ने सन् १९२८ में की थी। यह विश्वकोश ९ भागों में ९५०० पन्नों वाला विश्वकोश है। इसमें कोई २८१,३७७ शब्दों के अर्थ एवं उनकी व्याख्या दी हुई है। .

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मराठी विश्वकोश

मराठी विश्वकोश महाराष्ट्र सरकार की खास पहल द्वारा मराठी भाषा में निर्मित एन्सायक्लोपीडिया ब्रिटानिया की तरह एक ज्ञानकोश है। मुद्रित स्वरूप में इस विश्वकोश को प्रकाशित करने का कार्य महाराष्ट्र राज्य विश्वकोश निर्मिती मंडल द्वारा सन १९६० में आरम्भ किया गया। अक्टूबर २०१२ तक मराठी विश्वकोश के १८ खंड प्रकाशित किये जा चुके है। योजना के अनुसार इस विश्वकोश के दो और काया खंड प्रकाशित किये जायेंगे। उसके बाद प्रतिशब्द संग्रह, सूची संग्रह और मानचित्र संग्रह भी प्रकाशित किये जायेंगे। .

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महानकोश

महानकोश या गुरु शबद रत्नाकर महानकोश पंजाबी भाषा का सार्वजनिक ज्ञानकोश है। इसके रचयिता भाई काह्न सिंह नाभा थे। इसमें पंजाबी शब्दों का कोश है जिसमें सिख धर्म की शब्दावली विशेष रूप से प्रतिबिम्बित है। इसके साथ ही उन्नीसवीं शती के अन्तिम व बीसवीं शती के प्रारम्भिक दिनों के आम जनजीवन के बारे में भी वर्णन है। इसको "सिख महानकोश" भी कहा जाता है। इस को छपवाने का काम अब पंजाब भाषा विभाग, पटियाला को सौंपा हुआ है और अब तक इस के सात भाग छप चुके हैं और आठवां भाग छपवाने के लिए वित्तीय समस्या आ रही है। .

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महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश

महाराष्ट्रीय ज्ञानकोश मराठी का प्रथम विश्वकोश था। डॉ श्रीधर व्यंकटेश केतकर इसके प्रधान सम्पादक थे। इस विश्वकोश पर १९१६ में कार्य आरम्भ हुआ और १९२८ में यह समाप्त हुआ। .

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मानसोल्लास

'मानसोल्लास' नामक टीका-ग्रन्थ के लिए देखें, मानसोल्लास (टीका ग्रन्थ) ---- मानसोल्लास (मानस + उल्लास .

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माइक्रोसॉफ्ट एन्कार्टा

माइक्रोसॉफ्ट एन्कार्टा, माइक्रोसॉफ्ट निगम द्वारा 1993 के बाद से प्रकाशित एक अंकीय बहुमीडिया (डिजिटल मल्टीमीडिया) विश्वकोष है। 2008 तक पूर्ण अंग्रेजी संस्करण, एन्कार्टा प्रीमियम जिसमे 62,000 से अधिक Googleboy.net, कई सारी तस्वीरें और चित्र, संगीत क्लिप, वीडियो, अंतरक्रियायें, समयरेखायें, नक्शे और एटलस और गृहकार्य उपकरण आदि हैं, वर्ल्ड वाइड वेब पर वार्षिक सदस्यता पर उपलब्ध है, इसे डीवीडी-ROM या सीडी-ROM पर खरीदा भी जा सकता है। विज्ञापनों द्वारा समर्थित एक सेवा पर कई लेखों को मुफ़्त ऑनलाइन भी देखा जा सकता है। माइक्रोसॉफ्ट एन्कार्टा ट्रेडमार्क के तहत विभिन्न भाषाओं जैसे फ्रांसीसी, स्पैनिश, डच, इतालवी, पुर्तगाली, जर्मन और जापानी आदि मे भी इस विश्वकोष को प्रकाशित करती है। स्थानीय संस्करण में लाइसेंस प्राप्त राष्ट्रीय स्रोतों से ली गयी विषयवस्तु उपलब्ध हो सकती है और इसमे अंग्रेजी संस्करण की तुलना में विषयवस्तु कम या ज्यादा हो सकती है। उदाहरण के लिए, डच संस्करण में उपलब्ध विषयवस्तु डच विंक्लर प्रिंस विश्वकोश से ली गयी है। मार्च 2009 में, माइक्रोसॉफ्ट ने एन्कार्टा के डिस्क और ऑनलाइन संस्करण को बंद करने की घोषणा की। (MSN Encarta) .

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रूसो

महान दार्शनिक '''रूसो''' जीन-जक्क़ुएस रूसो (1712 - 78) की गणना पश्चिम के युगप्रवर्तक विचारकों में है। किंतु अंतर्विरोध तथा विरोधाभासों से पूर्ण होने के कारण उसके दर्शन का स्वरूप विवादास्पद रहा है। अपने युग की उपज होते हुए भी उसने तत्कालीन मान्यताओं का विरोध किया, बद्धिवाद के युग में उसने बुद्धि की निंदा की (विश्वकोश के प्रणेताओं (Encyclopaedists) से उसका विरोध इस बात पर था) और सहज मानवीय भावनाओं को अत्यधिक महत्व दिया। सामाजिक प्रसंविदा (सोशल कंट्रैक्ट) की शब्दावली का अवलंबन करते हुए भी उसने इस सिद्धांत की अंतरात्मा में सर्वथा नवीन अर्थ का सन्निवेश किया। सामाजिक बंधन तथा राजनीतिक दासता की कटु आलोचना करते हुए भी उसने राज्य को नैतिकता के लिए अनिवार्य बताया। आर्थिक असमानता और व्यक्तिगत संपत्ति को अवांछनीय मानते हुए भी रूसो साम्यवादी नहीं था। घोर व्यक्तिवाद से प्रारंभ होकर उसे दर्शन की परिणति समष्टिवाद में होती है। स्वतंत्रता और जनतंत्र का पुजारी होते हुए भी वह राबेसपीयर जैसे निरंकुशतावादियों का आदर्श बन जाता है। .

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शब्दकल्पद्रुम

शब्दकल्पद्रुम संस्कृत का आधुनिक युग का एक महाशब्दकोश है। यह स्यार राजा राधाकांतदेव बाहादुर द्वारा निर्मित है। इसका प्रकाशन १८२८-१८५८ ई० में हुआ। यह पूर्णतः संस्कृत का एकभाषीय कोश है और सात खण्डों में विरचित है। इस कोश में यथासंभव समस्त उपलब्ध संस्कृत साहित्य के वाङ्मय का उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त अंत में परिशिष्ट भी दिया गया है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐतिहसिक दृष्टि से भारतीय-कोश-रचना के विकासक्रम में इसे विशिष्ट कोश कहा जा सकता है। परवर्ती संस्कृत कोशों पर ही नहीं, भारतीय भाषा के सभी कोशों पर इसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ता रहा है। यह कोश विशुद्ध शब्दकोश नहीं है, वरन् अनेक प्रकार के कोशों का शब्दार्थकोश, प्रर्यायकोश, ज्ञानकोश और विश्वकोश का संमिश्रित महाकोश है। इसमें बहुबिधाय उद्धरण, उदाहरण, प्रमाण, व्याख्या और विधाविधानों एवं पद्धतियों का परिचय दिया गया है। इसमें गृहीत शब्द 'पद' हैं, सुवंततिंगन्त प्रातिपदिक या धातु नहीं। .

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शब्दकोश

शब्दकोश (अन्य वर्तनी:शब्दकोष) एक बडी सूची या ऐसा ग्रंथ जिसमें शब्दों की वर्तनी, उनकी व्युत्पत्ति, व्याकरणनिर्देश, अर्थ, परिभाषा, प्रयोग और पदार्थ आदि का सन्निवेश हो। शब्दकोश एकभाषीय हो सकते हैं, द्विभाषिक हो सकते हैं या बहुभाषिक हो सकते हैं। अधिकतर शब्दकोशों में शब्दों के उच्चारण के लिये भी व्यवस्था होती है, जैसे - अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक लिपि में, देवनागरी में या आडियो संचिका के रूप में। कुछ शब्दकोशों में चित्रों का सहारा भी लिया जाता है। अलग-अलग कार्य-क्षेत्रों के लिये अलग-अलग शब्दकोश हो सकते हैं; जैसे - विज्ञान शब्दकोश, चिकित्सा शब्दकोश, विधिक (कानूनी) शब्दकोश, गणित का शब्दकोश आदि। सभ्यता और संस्कृति के उदय से ही मानव जान गया था कि भाव के सही संप्रेषण के लिए सही अभिव्यक्ति आवश्यक है। सही अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द का चयन आवश्यक है। सही शब्द के चयन के लिए शब्दों के संकलन आवश्यक हैं। शब्दों और भाषा के मानकीकरण की आवश्यकता समझ कर आरंभिक लिपियों के उदय से बहुत पहले ही आदमी ने शब्दों का लेखाजोखा रखना शुरू कर दिया था। इस के लिए उस ने कोश बनाना शुरू किया। कोश में शब्दों को इकट्ठा किया जाता है। .

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शिवानन्द गोस्वामी

शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल: संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे। इनके पूर्वज मूलतः तेलंगाना के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए| शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।" .

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समान्तर कोश

समान्तर कोश (thesaurus) शब्दकोश के ही समान संदर्भ पुस्तक को कहा जाता है जिसमें शब्दों के अर्थ व उच्चारण की बजाय उसके समानार्थक (synonym) तथा विलोम (antonym) शब्दों व उनके प्रयोग पर जोर दिया जाता है। शब्दकोश की भांति समान्तर कोश में शब्दों को पारिभाषित नहीं किया जाता वरन् समान शब्दों में भेद स्पष्ट कर सटीक शब्द के चुनाव को आसान बनाया जाना इसका ध्येय होता है। अतः समान्तर कोश को शब्दसूची नहीं समझा जाना चाहिये। हिन्दी का पहला समान्तर कोश बनाने का श्रेय अरविन्द कुमार व उनकी पत्नी कुसुम को दिया जाता है। .

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सहपीडिया

सहपीडिया (Sahapedia), भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित विषयों पर अंग्रेजी भाषा में लिखा जा रहा एक निःशुल्क ज्ञानकोश है। इसका आरम्भ २०१६ में सुधा गोपालकृष्णन ने किया। 'सह' एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, 'साथ'। .

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सार-संग्रह

किसी ज्ञानराशि के संक्षिप्त किन्तु सर्वसमावेशी (comprehensive) संकलन को सार-संग्रह (compendium) कहते हैं। उदाहरण के लिए कोई सार-संग्रह किसी बड़े ग्रन्थ का साररूप हो सकता है। प्रायः जिस ज्ञानराशि का सार-संग्रह किया जाता है वह मानव-रुचि के सीमित क्षेत्र का ही प्रतिनिधित्व करती है। इस दृष्टि से, ज्ञानकोश या विश्वकोश मानव के सम्पूर्ण ज्ञान का सार-संग्रह कहा जा सकता है। 21वीं शताब्दी में विभिन्न क्षेत्रों के लोकीकृत, ऑनलाइन सार-संग्रहों के उदय का काल रहा है। श्रेणी:शब्दकोश.

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संस्कृत शब्दकोश

सबसे पहले शब्द-संकलन भारत में बने। भारत की यह शानदार परंपरा वेदों जितनी—कम से कम पाँच हजार वर्ष—पुरानी है। प्रजापति कश्यप का निघण्टु संसार का प्राचीनतम शब्द संकलन है। इस में १८०० वैदिक शब्दों को इकट्ठा किया गया है। निघंटु पर महर्षि यास्क की व्याख्या 'निरुक्त' संसार का पहला शब्दार्थ कोश (डिक्शनरी) एवं विश्वकोश (ऐनसाइक्लोपीडिया) है। इस महान शृंखला की सशक्त कड़ी है छठी या सातवीं सदी में लिखा अमरसिंह कृत 'नामलिंगानुशासन' या 'त्रिकांड' जिसे सारा संसार 'अमरकोश' के नाम से जानता है। अमरकोश को विश्व का सर्वप्रथम समान्तर कोश (थेसेरस) कहा जा सकता है। .

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संस्कृत के आधुनिक कोश

भारत में आधुनिक पद्धति पर बने संस्कृत कोशों की दो वर्गों में रखा जा सकता है.

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हिन्दू धर्म का विश्वकोश

हिन्दू धर्म का विश्वकोश या इंसाइक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुइज्म (Encyclopedia of Hinduism) हिन्दू धर्म एवं इससे सम्बन्धित अनेकानेक विषयों का विश्वकोश है। इसका प्रथम संस्करण २०१२ में निकला। यह ग्यारह भागों में है और अंग्रेजी भाषा में है। यह विश्वकोश ७१८४ पृष्टों में है जिसमें मन्दिरों, स्थानों, विचारकों, कर्मकाण्डों एवं त्यौहारों का विवरण रंगीन चित्रों के साथ दिया हुआ है। यह परियोजना परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानन्द सरस्वती की प्रेरणा से चली एवं फलीभूत हुई। २५ वर्षों के निरन्तर प्रयास तथा २००० से अधिक विद्वानों के योगदान से यह विश्वकोश निर्मित हुआ है। इसके सम्पादक डॉ कपिल कपूर हैं। यह विश्वकोश केवल हिन्दू धर्म तक ही सीमीति नहीं है बल्कि कला, इतिहास, भाषा, साहित्य, दर्शन, राजनीति, विज्ञान तथा नारी विषयों को भी इसमें स्थान दिया गया है। .

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हिन्दी साहित्य कोश

हिन्दी साहित्य कोश हिन्दी साहित्य एवं उससे सम्बन्धित विषयों का विश्वकोश (encyclopedia) है। यह सन् १९६४ में दो भागों में प्रकाशित हुआ। इसके मुख्य सम्पादक धीरेन्द्र वर्मा और ब्रजेश्वर वर्मा थे। डॉ रघुवंश इसके सह सम्पादक थे। यह ज्ञान मण्डल, वाराणसी द्वारा प्रकाशित है। .

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हिन्दी विश्वकोश

हिन्दी विश्वकोश, नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिन्दी में निर्मित एक विश्वकोश है। यह बारह खण्डों में पुस्तक रूप में उपलब्ध है। इसके अलावा यह अन्तरजाल पर पठन के लिये भी नि:शुल्क उपलब्ध है। यह किसी एक विषय पर केन्द्रित नहीं है बल्कि इसमें अनेकानेक विषयों का समावेश है। .

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हिन्दी कम्प्यूटरी

हिन्दी कम्प्यूटरी (हिन्दी कम्प्यूटिंग), भाषा कम्प्यूटरी का एक प्रभाग है जो हिन्दी भाषा से सम्बन्धित सकल कार्यों को संगणक, मोबाइल या अन्य डिजिटल युक्तियों पर कर पाने से सम्बन्धित है। यह मुख्यत: उन साफ्टवेयर उपकरणों एवं तकनीकों से सम्बन्ध रखता है जो संगणक पर हिन्दी के विविध प्रकार से प्रयोग में सुविधा प्रदान करते हैं। यद्यपि यह शब्द भाषिक रूप से सही नहीं था, सही शब्द देवनागरी कम्पयूटरी/कम्प्यूटिंग हो सकता था, परन्तु बाद में उपरोक्त विषय के लिए यही शब्द प्रचलित हो गया। .

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हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें

चित्र:|350px|हिन्दी की सौ श्रेष्ठ पुस्तकें जयप्रकाश भारती की रचना है। इसमें सौ श्रेष्ठ हिन्दी पुस्तकों का प्रत्येक के लिये तीन-चार पृष्ठों में सकारात्मक परिचय दिया गया है। किताब में विवेचित अधिकतर पुस्तकें पुरस्कृत हैं और अपने विषय और प्रस्तुति में अनूठी हैं। इसमें स्वाधीनता से पहले की चौबीस और बाद की चौहत्तर पुस्तकों की चर्चा है। इस पुस्तक में हिन्दी के बाइस काव्यों और पच्चीस उपन्यासों पर चर्चा है। पुस्तक में रचनाओं का परिचय देते हुए लेखक की शब्द-संपदा, शैली और भाषा प्रवाह की झलक के लिए जहां-तहां उनकी कुछ पंक्तियां उद्धृत की हैं। हर पुस्तक का प्रथम प्रकाशन-वर्ष भी दिया है और पुस्तक को प्राप्त प्रमुख पुरस्कार-सम्मान का उल्लेख भी है। कृति-विशेष का परिचय देने के बाद लेखक की कुछ अन्य पुस्तकों का उल्लेख भी अंत में किया गया है। .

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जॉन मार्ले

जान मॉर्ले (John Morley; १८३८ - १९२३) ब्रिटेन का पत्रकार, लेखक और कूटनीतिज्ञ था। मॉर्ले का जन्म २४ दिसंबर, १८३८ को लंकाशायर के ब्लैकबर्न नगर में हुआ। उसने १८५९ में आक्सफोर्ड के लिंकन कालेज से बी० ए० की उपाधि प्राप्त की। इस वर्ष ही वह लंदन नगर आया और मृतप्राय लिटरेरी गजट का संपादक नियुक्त हुआ। साहित्य और राजनीति मार्ले के प्रिय विषय थे। उसके तथ्ययुक्त विचारपूर्ण लेखों ने उसको शीघ्र ही प्रसिद्ध कर दिया। मिलिटरी गजट का प्रकाशन कुछ समय बाद बंद हो गया किंतु मार्ले के साहित्यिक जीवन की ठोस नींव इस काल में पड़ गई। वह १८६७ में फोर्टनाइटली रिव्यू का संपापदक नियुक्त हुआ और १८८३ तक इस पद पर कार्य करता रहा। इस बीच उसने १८६८ से १८७० तक दैनिक मार्निग स्टार और १८८० से १८८३ तक पाल माल गजट का भी संपादन किया। १८८३ से १८८५ तक वह मेंकमिलंस मैगज़ीन का संपादक रहा। सुप्रसिद्ध साहित्यिक और राजनीतिक पुरूषों के जीवनकार्यों का उसने विशेष अध्ययन किया और उनकी जीवनियाँ लिखीं। 'एडमंड बर्क'- एक ऐतिहासिक अध्ययन का प्रकाशन १८६७ में हुआ। फ्रांस के वोल्तेर, रूसो, दिदेरी और विश्वकोशकारों तथा इंग्लैंड के रिचर्ड काबडेन की जीवनियाँ इस काल में प्रकाशित हुईं। १८७४ में उसका प्रसिद्ध निबंध 'कंप्रोमाइज' प्रकाशित हुआ। इस निबंध ने मार्ले को दार्शनिकों की पंक्ति में स्थान दिला दिया। वालपोल, आलिवर क्रामवेल और ग्लेडस्टन की जीवनियाँ १८८९, १९०० और १९०३ में प्रकाशित हुई। मॉर्ले की अन्य दो प्रसिद्ध कृतियाँ 'स्टडीज इन लिटरेचर' और 'द स्टडी आव लिटरेचर' भी शताब्दी के अंतिम दशक में प्रकाशित हुई। मॉर्ले ने १८६९ में अपने नगर से और १८८० में वेस्टमिस्टर से पार्लमेंट में पहुँचने का असफल प्रयत्न किया। १८८३ में वह न्यूकासिल आन टाइन से पार्लमेंट का सदस्य चुन लिया गया। इसी वर्ष उसकी अध्यक्षता में लीड्स में उदारदल का वृहत् सम्मेलन हुआ। प्रतिनिधि व्यवस्था और निर्वाचन पद्धति में सुधार के संबंध में सम्मेलन के महत्वपूर्ण निर्णयों ने उदारदल के प्रभाव में वृद्धि की। मॉर्ले ने समान निर्वाचन क्षेत्रों, नगरों और काउंटियों में समान मताधिकार योग्यता तथा सदस्यों को वेतन देने के पक्ष में देश भर में जनमत तैयार किया। आयरलैण्ड के राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति भी मॉर्ले की पूर्ण सहानुभूति थी। उस देश को स्वशासन का अधिकार देने के प्रश्न पर वह ग्लैडस्टन के विचारों से सहमत था। ग्लैडस्टन ने उसको १८८६ ई० में आयर्लैंड का सचिव नियुक्त किया। बहुमत द्वारा समर्थन के अभाव में आयर्लैंड के प्रश्न पर छह मास में ही सरकार की पराजय हो गई पर मॉर्ले अपने क्षेत्र से फिर चुन लिया गया। १८९२ में उदार दल की सरकार बनने पर प्रधान मंत्री ग्लेडस्टन ने मॉर्ले को दुबारा आयर्लैंड का सचिव नियुक्त किया। आयर्लैंड की समस्या को हल करने में मार्लै को सफलता नहीं मिली। दल के मतभेदश् ने इस संबंध के कानून को पार्लमेंट में स्वीकृत नहीं होने दिया। १८९५ में उदार दल की सरकार भंग हो गई और अगले दस वर्षो तक शासनसूत्र अनुदार दल के हाथ में रहा। मॉर्ले ने इस अवधि में कई उत्तम रचनाएँ देश को दीं। १९०२ में एंड्रू कार्नेगी ने लार्ड एक्टन का मूल्यवान् पुस्तकालय खरीदकर मॉर्ले को भेंट किया। मॉर्ले ने उसे केंब्रिज विश्वविद्यालय को सौंप दिया। १९०५ में उदार दल की सरकार बनने पर मॉर्ले भारत सचिव के पद पर नियुक्त हुआ। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को दबाने के लिये उसने १९०७ में कठोर कानून की सृष्टि की। देश की एकता के लिये घातक सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली के जन्मदाता १९०९ के कानून की रचना में उसका प्रमुख हाथ था। ब्लेमबर्न के वाइकाउंट का पद देकर १९०८ में सरकार ने मॉर्ले का सम्मान किया। तबसे जीवन के अंतिम दिन तक वह लार्ड सभा का सदस्य रहा। १९०९ में उसके विशेष प्रयत्न से लार्ड सभा ने अर्थबिल पर स्वीकृति दी थी। १९१० से १९१४ तक कौंसिल के प्रेसीडेंट का पद भी उसने सँभाला। मॉर्ले शांतिवादी था। १९१४ में प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ होने पर उसने स्वयं ही लार्ड प्रेसीडेंट का पद त्याग दिया। १९१७ में उसके संस्मरण प्रकाशित हुए। २३ सितंबर, १९२३ को विल्लेडन में उसकी मृत्यु हुई। श्रेणी:यूके के उदार दल के एमपी.

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जॉन मिल्स

जॉन मिल्स (John Mills; 1717 – 1786 or 1796) विश्वकोशकार था जिसने इनसाइक्लोपीदी नामक फ्रांसीसी विश्वकोश का सम्पादन किया। मूलतः वह इंग्लैण्ड के कृषि से सम्बन्धित विषयों पर लिखता था। मिल्स ने सेलियस (Sellius) के साथ मिलकर चैम्बर्स इनसाइक्लोपीडिया के लेखों का अंग्रेजी से फ्रेंच अनुवाद का प्रस्ताव रखा था। किन्तु मिल्स का फ्रेंच ज्ञान अपर्याप्त था। प्रकाशक एण्द्री ली ब्रेटोन उसके कार्य से बहुत निराश हुआ और उसको मारा-पीटा। मिल्स ने ब्रेटोन पर मुकदमा चलाया किन्तु निर्णय ब्रेटोन के पक्ष में गया। ब्रेटोन ने मिल्स के स्थान पर ज्याँ पाल (Jean Paul de Gua de Malves), को नियुक्त किया और फिर उसके स्थान पर डेनिश दिट्रॉयट को। श्रेणी:विश्वकोशकार.

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विदारी नवप्रवर्तन

विदारी नवप्रवर्तन, समय के साथ सबसे आगे निकल जाता है। वह नवप्रवर्तन जो नया बाजार और नया नेटवर्क निर्मित करता है और अन्ततः वर्तमान बाजार और नेटवर्क को छिन्न-भिन्न करके बाजार में स्थापित अग्रणी कम्पनियों को हटा देता है, उसे विदारी नवप्रवर्तन (disruptive innovation) या विदारी प्रौद्योगिकी (डिस्रप्टिव टेक्नॉलॉजी) कहते हैं। उदाहरण.

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विश्वकोषों की सूची

इस लेख में विश्वकोषों की सूची दी गयी है। इनमें उन विश्वकोष परियोजनाओं को भी सम्मिलित किया गया है जो अभी पूरी नहीं हुई हैं। इस सूची को अशेष (comprehensive) नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन सभी कार्यों की सुची बहुत लम्बी होगी जिन्हें विश्वकोष की श्रेणी में रखा जा सकता है।.

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विष्णुधर्मोत्तर पुराण

विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण है। इसकी प्रकृति विश्वकोशीय है। कथाओं के अतिरिक्त इसमें ब्रह्माण्ड, भूगोल, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, काल-विभाजन, कूपित ग्रहों एवं नक्षत्रों को शान्त करना, प्रथाएँ, तपस्या, वैष्णवों के कर्तव्य, कानून एवं राजनीति, युद्धनीति, मानव एवं पशुओं के रोगों की चिकित्सा, खानपान, व्याकरण, छन्द, शब्दकोश, भाषणकला, नाटक, नृत्य, संगीत और अनेकानेक कलाओं की चर्चा की गयी है। यह विष्णुपुराण का परिशिष्‍ट माना जाता है। वृहद्धर्म पुराण में दी हुई १८ पुराणों की सूची में विष्णुधर्मोत्तर पुराण भी है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के 'चित्रसूत्र' नामक अध्याय में चित्रकला का महत्त्व इन शब्दों में बताया गया है- (अर्थ: कलाओं में चित्रकला सबसे ऊँची है जिसमें धर्म, अर्थ, काम एवम् मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः जिस घर में चित्रों की प्रतिष्ठा अधिक रहती है, वहाँ सदा मंगल की उपस्थिति मानी गई है।) .

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विकिपीडिया

यह लेख इंटरनेट विश्वकोश के बारे में है। विकिपीडिया के मुख पृष्ठ के लिए, विकिपीडिया का मुख्य पृष्ठ देखें। विकिपीडिया के आगंतुक परिचय के लिए, विकिपीडिया के बारे में पृष्ठ देखें। Name-Ramesh wada Father name.mohanji Rajpurohit Villege.

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वैज्ञानिक साहित्य

वैज्ञानिक साहित्य के अन्तर्गत वे प्रकाशन आते हैं जिनमें प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान से सम्बन्धित मौलिक प्रायोगिक या सैद्धान्तिक कार्यों का विवरण हो। अकादमिक प्रकाशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अनुसंधानों को साहित्य में जगह मिलती है। किसी वैज्ञानिक पत्रिका (जर्नल) में पहली बार प्रकाशित होने वाले मौलिक वैज्ञानक अनुसंधान को 'प्राथमिक साहित्य' कहते हैं। पैटेन्ट, तकनीकी रिपोर्ट, इंजीनियरी और डिजाइन से सम्बन्धित लघु अनुसंधान, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर आदि से सम्बन्धित डिजाइन कार्य आदि भी प्राथमिक साहित्य के अन्तर्गत गिने जा सकते हैं। द्वितीयक साहित्य के अन्तर्गत पुनरीक्षण लेख (review articles) तथा पुस्तकें आती हैं। तृतीयक साहित्य के अन्तर्गत विश्वकोश आदि रखे जा सकते हैं। .

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गुजराती विश्वकोश

गुजराती भाषा में ज्ञानकोश ट्रस्ट गुजराती विश्वकोश गुजराती भाषा का प्रथम तथा एकमात्र विश्वकोश है। इसका प्रकाशन गुजराती विश्वकोश ट्रस्ट द्वारा किया गया है। यह २५ भागों में है तथा १६६ से अधिक विषयों पर २,३०,००० से अधिक लेख हैं। .

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ऑनलाइन विश्वकोषों की सूची

ऑनलाइन विश्वकोष उन विश्वकोषों को कहते हैं जिन्हें कम्प्यूटर या किसी अन्य आंकिक युक्ति पर अन्तरजाल के सहारे पढा जा सके। कुछ प्रमुख ऑनलाइन विश्वकोषों की सूची नीचे दी गयी है.

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इनसाइक्लोपीदी

इनसाइक्लोपीदी का शीर्षक पृष्ट इनसाइक्लोपीदी (Encyclopédie) फ्रांस में 1751 एवं 1772 के बीच प्रकाशित एक सामान्य विश्वकोश था। इसका पूरा नाम Encyclopédie, ou dictionnaire raisonné des sciences, des arts et des métiers (हिन्दी: विश्वकोश, या विज्ञान, कला और शिल्प का सुनियोजित कोश) था। इनसाइक्लोपीदी कई दृष्टियों से नयापन लिए हुए थी। यह पहला विश्वकोश था जिसमें बहुत से नामित योगकर्ताओं के लेख सम्मिलित किए गये थे। यह पहला सामान्य विश्वकोश था जिसने 'यांत्रिक कलाओं' पर ध्यान दिया था। किन्तु इन सब बातों से परे इनसाइक्लोपीदी इसलिए भी प्रसिद्ध है कि इसने की ज्ञानोदय (इनलाइटमेन्ट) का विचार प्रस्तुत किया। देनिश दिदेरो ने 'इन्साक्लोपीदी' नामक लेख में लिखा था कि इसका उद्देश्य लोगों के सोचने के तरीके में ही परिवर्तन ला देना है। उसकी इच्छा थी कि विश्व के सारे ज्ञान को इनसाइक्लोपीदी में समेट दिया जाय और वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों में यह ज्ञान फैल जाय। इसकी रचना "चैंबर्स साइक्लोपीडिया" के फ्रेंच अनुवाद के रूप में अंग्रेज विद्वान् जॉन मिल्स द्वारा उसके फ्रांस आवासकाल में प्रारंभ हुई, जिसे उसने मॉटफ़ी सेल्स की सहायता से सन् 1745 में समाप्त किया। पर वह इसे प्रकाशित न कर सका और इंग्लैंड वापस चला गया। इसके संपादन हेतु एक-एक कर कई विद्वानों की सेवाएँ प्राप्त की गईं और अनेक संघर्षों के पश्चात् यह विश्वकोश प्रकाशित हो सका। इनसाइक्लोपीदी अठारहवीं शती की महत्तम साहित्यिक उपलब्धि है। यह मात्र संदर्भ ग्रंथ नहीं था; यह निर्देश भी प्रदान करता था। यह आस्था और अनास्था का विचित्र संगम था। इसने उस युग के सर्वाधिक शक्तिसंपन्न चर्च और शासन पर प्रहार किया। संभवत: अन्य कोई ऐसा विश्वकोश नहीं है, जिसे इतना राजनीतिक महत्व प्राप्त हो और जिसने किसी देश के इतिहास और साहित्य पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला हो। पर इन विशिष्टताओं के होते हुए भी यह विश्वकोश उच्च कोटि की कृति नहीं है। इसमें स्थल-स्थल पर त्रुटियाँ एवं विसंगतियाँ थीं। यह लगभग समान अनुपात में उच्च और निम्न कोटि के निबंधों का मिश्रण था। इस विश्वकोश की कटु आलोचनाएँ भी हुईं। दिदेरो और अ’लम्बर्त ने तय किया कि उनका इनसाइक्लोपीदी समस्त ज्ञान का दस्तावेज़ीकरण करेगा, सभी तरह की कलाओं और हस्तकौशल को गम्भीर अध्ययन का विषय मानते हुए उनके बारे में जानकारियाँ देगा, ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के वर्गीकरण और उनके अंतर-संबंधों पर विशेष ध्यान देगा और ज्ञानोदय से उद्भूत विचारों की रोशनी में चिंतन-मनन की सामान्य विधियों को स्थायी रूप से बदलने का प्रयास करेगा। पहले तीनों लक्ष्य तो हैरिस और चेम्बर्स ने भी वेधने की कोशिश की थी लेकिन यह चौथा मकसद कुछ ख़ास तरह का था। सम्पादक-द्वय चाहते थे कि मध्ययुगीन तत्त्वमीमांसा ख़ारिज करके इंद्रियानुभववाद की रोशनी में वैज्ञानिक चिंतन की अनिवार्यता स्थापित की जाए, ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ नये तरह से सोचने के लिए मजबूर हो जाएँ। उनके लिए इंद्रियानुभववाद का सीधा मतलब था इंद्रियों को सभी तरह के ज्ञान का एकमात्र प्रामाणिक स्रोत मानना और तब तक किसी भी दावे को ज्ञान की संज्ञा न देना जब तक वह अनुभव और प्रयोग की कसौटी पर खरा न साबित हो जाए। पाँच इंद्रियों के माध्यम से प्राप्त अनुभव पर ज़ोर देने वाले इस सिद्धांत के मुताबिक ज्ञान की प्रमाण- पुष्टि भी इंद्रियजनित प्रेक्षणीय अनुभव से ही होनी चाहिए थी। इंद्रियानुभववाद की जड़ें इस विचार में निहित थीं कि यह जगत केवल उतना ही है जितना वह हमें अपने बारे में बताने के लिए तैयार है। इसलिए इस जगत का हमें तटस्थ रूप से बिना किसी राग-द्वेष के प्रेक्षण करना चाहिए। प्रेक्षणीय सूचना प्राप्त करने के रास्ते में डाली गयी कोई भी बाधा ज्ञान को विकृत करके उसे मनमानी कल्पना का शिकार बना देगी। इंद्रियानुभववाद के गर्भ से ही प्रेक्षण, अनुभव और प्रयोग के वे आग्रह निकले जिन्होंने आगे चल कर आगमनात्मक तर्कपद्धति को प्रमुखता देते हुए विज्ञान के दर्शन पर अमिट छाप छोड़ी। मानवीय इंद्रियजनित अनुभव को ज्ञानमीमांसक प्राथमिकता मिलने के सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक फलितार्थ होने लाज़मी थे। मनुष्य और उसके इहलौकिक संसार को सभी तरह के चिंतन और समझ के केंद्र में आ जाना था। इनसाइक्लोपीदी का पाठक उस जिज्ञासु के रूप में सामने आया जो दावा कर सकता था कि उसमें तथ्य को मिथ्या से अलग करके जाँचने-परखने की क्षमता है। यह पाठक अपने इस मूल्य-निर्णय के लिए किसी उच्चतर प्राधिकार द्वारा थमाये गये प्रमाण की आवश्यकता से इनकार करने वाला था। स्वाभाविक तौर पर आँसिएँ रेज़ीम की नुमाइंदगी करने वाली तत्कालीन सामाजिक और राजकीय व्यवस्था इस नये ज्ञान और उसके आधार पर बनने वाले नये व्यक्ति में निहित सम्भवानाओं के प्रति किसी किस्म की गफ़लत में नहीं रह सकती थी। उसने जल्दी ही भाँप लिया कि दिदेरो और अ’लम्बर्त जिस ज्ञान-कोश का खण्ड दर खण्ड प्रकाशन करते जा रहे हैं, वह अंततः राजशाही की वैधता के क्षय का ख़ामोश औज़ार साबित होगा। इसी के परिणामस्वरूप केवल तीन साल के भीतर 1751 में पेरिस के आर्कबिशप ने इनसाइक्लोपीदी की भर्त्सना की और अगले साल रॉयल कौंसिल ऑफ़ स्टेट ने उसके प्रकाशन को प्रतिबंधित कर दिया। 1759 में पेरिस की संसद ने भी ज्ञान- कोश रचने की इस परियोजना की निंदा की और एक आदेश के ज़रिये वे तमाम सुविधाएँ वापस ले ली गयीं जो दिदेरो और द’अलम्बर्त को मिली हुई थीं। इस तरह 1766 तक कोश रचने का यह प्रोजेक्ट सरकारी दमन का शिकार हो कर ठप पड़ा रहा। इस कोश के लेखकों में रूसो और कोंदोर्स जैसी हस्तियाँ शामिल थीं। अंततः सत्रह खण्डों में पूरे हुए इस विशाल ज्ञान-कोश ने फ़्रांसीसी और अमेरिकी क्रांतियों की नेतृत्वकारी हस्तियों के चिंतन पर निर्णायक असर डाला। बेंजामिन फ़्रैंकलिन, जॉन ऐडम्स और थॉमस जेफ़रसन ने न केवल व्यक्तिगत रूप से इस कोश  को ख़रीदा, बल्कि अपने राजनीतिक-बौद्धिक दायरों में इसे पढ़ने की सिफ़ारिश भी की। अगले दो सौ साल तक इनसाइक्लोपीदी की आधारभूत अवधारणाओं ने समाज- विज्ञानों के विमर्श को अपनी पकड़ में बनाये रखा। इसकी प्रतिक्रिया भी हुई। कोई बीस साल बाद स्कॉटलैण्ड में इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका का पहला संस्करण प्रकाशित हुआ, जो घोषित रूप से दिदेरो और अ’लम्बर्त के कोश को ‘विधर्मी’ और ‘अप्रामाणिक’ मान कर उसके जवाब के तौर पर रचा गया था। इनसाइक्लोपीदी को विधर्मी इसलिए कहा गया था कि वह मानवीय ज्ञान के स्रोतों की नयी परिभाषा करने में लगा हुआ था और वह अप्रामाणिक इसलिए करार दिया गया कि दिदेरो और अ’लम्बर्त की लेखक-मण्डली फ़्रांस की मशहूर बौद्धिक हस्तियों से बनी थी और सम्पादक-द्वय उनके द्वारा लिखी गयी लम्बी-लम्बी प्रविष्टियों में उल्लखित तथ्यों की सच्चाई सुनिश्चित करने के फेर में नहीं पड़े थे। .

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कोश

कोश एक ऐसा शब्द है जिसका व्यवहार अनेक क्षेत्रों में होता है और प्रत्येक क्षेत्र में उसका अपना अर्थ और भाव है। यों इस शब्द का व्यापक प्रचार वाङ्मय के क्षेत्र में ही विशेष है और वहाँ इसका मूल अर्थ 'शब्दसंग्रह' (lexicon) है। किंतु वस्तुत: इसका प्रयोग प्रत्येक भाषा में अक्षरानुक्रम अथवा किसी अन्य क्रम से उस भाषा अथवा किसी अन्य भाषा में शब्दों की व्याख्या उपस्थित करनेवाले ग्रंथ के अर्थ में होता है। .

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कीट विज्ञान

कीट विज्ञान (ग्रीक ἔντομον, एटकोन "कीट" और -λογία, -logia से) प्राणी विज्ञान की एक शाखा है जिसमे कीड़ो का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। अतीत में, शब्द "कीट" अधिक अस्पष्ट था और ऐतिहासिक रूप से कीटविज्ञान की परिभाषा में आर्थ्रोपॉड, फ़िला और स्थलीय जीवों का अध्ययन जैसे कि एराचैड्स, मायरीपॉड, गांडव, भूमि घोंघे और स्लग भी इसमें शामिल थे। जंतु विज्ञान के अंतर्गत वर्गीकृत अन्य क्षेत्रों की तरह, कीट विज्ञान एक टैक्सोन-आधारित श्रेणी है; वैज्ञानिक अध्ययन के किसी भी रूप में,जिसमें कीट से संबंधित विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, परिभाषा के अनुसार, कीट विज्ञान - एंटोमोलॉजी है। इसलिए आणविक आनुवंशिकी, व्यवहार, बायोमैकेनिक्स, बायोकेमेस्ट्री, सिस्टमैटिक्स, फिजियोलॉजी, डेवलपमेंट बायोलॉजी, पारिस्थितिकी, इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) और पेलीयंटोलोजी के रूप में विभिन्न विषयों का मिश्रण हैं। 1.3 मिलियन से ज्यादा जीव प्रजातियों में दो-तिहाई से अधिक तो कीट प्रजाति के प्राणी ही है और पृथ्वी पर मनुष्यों और जीवन के अन्य रूपों के साथ 400 मिलियन वर्ष पहले से संपर्क हैं। phasmid,एक पत्ता के आकार का कीट .

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अभिनय

अभिनय करती हुई श्रीनिका पुरोहित अभिनय किसी अभिनेता या अभिनेत्री के द्वारा किया जाने वाला वह कार्य है जिसके द्वारा वे किसी कथा को दर्शाते हैं, साधारणतया किसी पात्र के माध्यम से। अभिनय का मूल ग्रन्थ नाट्यशास्त्र माना जाता है। इसके रचयिता भरतमुनि थे। जब प्रसिद्ध या कल्पित कथा के आधार पर नाट्यकार द्वारा रचित रूपक में निर्दिष्ट संवाद और क्रिया के अनुसार नाट्यप्रयोक्ता द्वारा सिखाए जाने पर या स्वयं नट अपनी वाणी, शारीरिक चेष्टा, भावभंगी, मुखमुद्रा वेषभूषा के द्वारा दर्शकों को, शब्दों को शब्दों के भावों का प्रिज्ञान और रस की अनुभूति कराते हैं तब उस संपूर्ण समन्वित व्यापार को अभिनय कहते हैं। भरत ने नाट्यकारों में अभिनय शब्द की निरुक्ति करते हुए कहा है: "अभिनय शब्द 'णीं' धातु में 'अभि' उपसर्ग लगाकर बना है। अभिनय का उद्देश्य होता है किसी पद या शब्द के भाव को मुख्य अर्थ तक पहुँचा देना; अर्थात्‌ दर्शकों या सामाजिकों के हृदय में भाव या अर्थ से अभिभूत करना"। कविराज विश्वनाथ ने सहित्य दर्पण के छठे परिच्छेद के आरम्भ में कहा है: 'भवेदभिनयोSवस्थानुकार:' अर्थात् अवस्था का अनुकरण ही अभिनय कहलाता है। अभिनय करने की प्रवृत्ति बचपन से ही मनुष्य में तथा अन्य अनेक जीवों में होती है। हाथ, पैर, आँख, मुंह, सिर चलाकर अपने भाव प्रकट करने की प्रवृत्ति सभ्य और असभ्य जातियों में समान रूप से पाई जाती है। उनके अनुकरण कृत्यों का एक उद्देश्य तो यह रहता है कि इससे उन्हें वास्तविक अनुभव जैसा आनंद मिलता है और दूसरा यह कि इससे उन्हें दूसरों को अपना भाव बताने में सहायता मिलती है। इसी दूसरे उद्देश्य के कारण शारीरिक या आंगिक चेष्टाओं और मुखमुद्राओं का विकास हुआ जो जंगली जातियों में बोली हुई भाषा के बदले या उसकी सहायक होकर अभिनय प्रयोग में आती है। .

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अमरकोश

अमरकोश संस्कृत के कोशों में अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है। इसे विश्व का पहला समान्तर कोश (थेसॉरस्) कहा जा सकता है। इसके रचनाकार अमरसिंह बताये जाते हैं जो चन्द्रगुप्त द्वितीय (चौथी शब्ताब्दी) के नवरत्नों में से एक थे। कुछ लोग अमरसिंह को विक्रमादित्य (सप्तम शताब्दी) का समकालीन बताते हैं। इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ मेदिनी में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार हैं। इसी कारण पंडितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। .

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अल बुस्तानी

अल बुस्तानी बुट्रस अल बुस्तानी (१८१९ - १८८३) वर्तमान लेबनान के एक लेखक एवं साहित्य पंडित थे। वे १९वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में मिस्र में शुरू होकर मध्य पूर्व में फैले अरबी पुनर्जागरण के प्रमुख अग्रदूतों में से थे। अमरीकी मिशनरियों के संपर्क में आकर वह ऐबे में अध्यापक बने। उन्होने अली स्मिथ के बाइबिल के अरबी अनुवाद में सहायक का कार्य किया। इसके लिए उसको इब्रानी, यूनानी, सीरियाई और लैटिन भाषाएँ भी सीखनी पड़ीं। वह अंग्रेजी, फ्रांसीसी और इतालीय भाषाओं के भी विद्वान् थे। उन्होने एक विस्तृत अरबी शब्दकोश का भी संपादन किया। उसका दूसरा संपादित ग्रंथ 'दायरात अल-म-आरिफ़' (विश्वकोश) भी बहुत प्रसिद्ध है। १८६० में, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच गृहयुद्ध के दौरान अपने पत्र 'नफीर सूरीया' के माध्यम से सद्भावना और सुमति का संदेश प्रचारित किया। अपने जीवन भर बुस्तानी सहिष्णुता और देशभक्ति के मूल्यों का प्रचार करते रहे। श्रेणी:अरबी साहित्यकार.

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अग्निपुराण

अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्‍णु एवं शिव तथा सूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है। पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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