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विपश्यना

सूची विपश्यना

विपश्यना (संस्कृत) या विपस्सना (पालि) यह गौतम बुद्ध द्वारा बताई गई एक बौद्ध योग साधना हैं। विपश्यना का अर्थ है - विशेष प्रकार से देखना (वि + पश्य + ना)। योग साधना के तीन मार्ग प्रचलित हैं - विपश्यना, भावातीत ध्यान और हठयोग। भगवान बुद्ध ने ध्यान की 'विपश्यना-साधना' द्वारा बुद्धत्व प्राप्त किया था। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं में से एक विपश्यना भी है। यह वास्तव में सत्य की उपासना है। सत्य में जीने का अभ्यास है। विपश्यना इसी क्षण में यानी तत्काल में जीने की कला है। भूत की चिंताएं और भविष्य की आशंकाओं में जीने की जगह भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को आज के बारे में सोचने केलिए कहा। विपश्यना सम्यक् ज्ञान है। जो जैसा है, उसे ठीक वैसा ही देख-समझकर जो आचरण होगा, वही सही और कल्याणकारी सम्यक आचरण होगा। विपश्यना जीवन की सच्चाई से भागने की शिक्षा नहीं देता है, बल्कि यह जीवन की सच्चाई को उसके वास्तविक रूप में स्वीकारने की प्रेरणा देता है। .

7 संबंधों: प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास, बमा लोग, सत्यनारायण गोयनका, समानता की प्रतिमा, विट्ठलदास मोदी, इगतपुरी, २०१३ में निधन

प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास

प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं प्रकृति। यह चिकित्सा विज्ञान आज की सभी चिकित्सा प्राणालियों से पुराना है। अथवा यह भी कहा जा सकता है कि यह दूसरी चिकित्सा पद्धतियों कि जननी है। इसका वर्णन पौराणिक ग्रन्थों एवं वेदों में मिलता है, अर्थात वैदिक काल के बाद पौराणिक काल में भी यह पद्धति प्रचलित थी। आधुनिक युग में डॉ॰ ईसाक जेनिग्स (Dr. Isaac Jennings) ने अमेरिका में 1788 में प्राकृतिक चिकित्सा का उपयोग आरम्भ कर दिया था। जोहन बेस्पले ने भी ठण्डे पानी के स्नान एवं पानी पीने की विधियों से उपचार देना प्रारम्भ किया था। महाबग्ग नामक बोध ग्रन्थ में वर्णन आता है कि एक दिन भगवान बुद्ध के एक शिष्य को सांप ने काट लिया तो उस समय विष के नाश के लिए भगवान बुद्ध ने चिकनी मिट्टी, गोबर, मूत्र आदि को प्रयोग करवाया था और दूसरे भिक्षु के बीमार पड़ने पर भाप स्नान व उष्ण गर्म व ठण्डे जल के स्नान द्वारा निरोग किये जाने का वर्णन 2500 वर्ष पुरानी उपरोक्त घटना से सिद्ध होता है। प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-2 योग एवं आसानों का प्रयोग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सुधारों के लिये 5000 हजारों वर्षों से प्रचलन में आया है। पतंजलि का योगसूत्र इसका एक प्रामाणिक ग्रन्थ है इसका प्रचलन केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी है। प्राकृतिक चिकित्सा का विकास (अपने पुराने इतिहास के साथ) प्रायः लुप्त जैसा हो गया था। आधुनिक चिकित्सा प्राणालियों के आगमन के फलस्वरूप इस प्रणाली को भूलना स्वाभाविक भी था। इस प्राकृतिक चिकित्सा को दोबारा प्रतिष्ठित करने की मांग उठाने वाले मुख्य चिकित्सकों में बड़े नाम पाश्चातय देशों के एलोपैथिक चिकित्सकों का है। ये वो प्रभावशाली व्यक्ति थे जो औषधि विज्ञान का प्रयोग करते-2 थक चुके थे और स्वयं रोगी होने के बाद निरोग होने में असहाय होते जा रहे थे। उन्होने स्वयं पर प्राकृतिक चिकित्सा के प्रयोग करते हुए स्वयं को स्वस्थ किया और अपने शेष जीवन में इसी चिकित्सा पद्धति द्वारा अनेकों असाध्य रोगियों को उपचार करते हुए इस चिकित्सा पद्धति को दुबारा स्थापित करने की शुरूआत की। इन्होने जीवन यापन तथा रोग उपचार को अधिक तर्कसंगत विधियों द्वारा किये जाने का शुभारम्भ किया। प्राकृतिक चिकित्सा संसार मे प्रचलित सभी चिकित्सा प्रणाली से पुरानी है आदिकाल के ग्रंथों मे जल चिकित्सा व उपवास चिकित्सा का उल्लेख मिलता है पुराण काल मे (उपवास)को लोग अचूक चिकित्सा माना करते थे .

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बमा लोग

१८९० के दशक का एक बमा पति-पत्नी का युग्म सन् १९२० के काल की एक सुसज्जित बमा स्त्री रंगून के एक घर के बाहर नाट देवताओं के लिए बना एक छोटा सा मंदिर बमा (बर्मी भाषा: ဗမာလူမျိုး / बमा लूम्योः) या बर्मन बर्मा का सबसे बड़ा जातीय समूह है। बर्मा के के दो-तिहाई लोग इसी समुदाय के सदस्य हैं। बमा लोग अधिकतर इरावती नदी के जलसम्भर क्षेत्र में रहते हैं और बर्मी भाषा बोलते हैं। प्रायः म्यन्मा के सभी लोगों को 'बमा' कह दिया जाता हैं, जो सही नहीं है क्योंकि बर्मा में और भी जातियाँ रहती हैं। विश्व भर में देखा जाए तो बमा लोगों की कुल सँख्या सन् २०१० में लगभग ३ करोड़ की थी। .

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सत्यनारायण गोयनका

सत्यनारायण गोयनका (जनवरी 30, 1924 – सितम्बर 29, 2013) विपासना ध्यान के प्रसिद्ध बर्मी-भारतीय गुरु थे। उनका जन्म बर्मा में हुआ, उन्होंने सायागयी उ बा खिन का अनुसरण करते हुए १४ वर्षों तक प्रशिक्षण प्राप्त किया। १९६९ में वो भारत प्रतिस्थापित हो गये और ध्यान की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया और इगतपुरी में, नासिक के पास १९७६ में एक ध्यान केन्द्र की स्थापना की। .

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समानता की प्रतिमा

समानता की प्रतिमा या डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर स्मारक, मुम्बई' 106.68 मीटर (350 फीट) ऊँचा महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तावित भारत के प्रथम कानून मंत्री तथा भारतीय संविधान के पिता डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी का स्मारक है। भारत के प्रधानमंत्री श्री॰ नरेन्द्र मोदी ने अक्टूबर 2015 को डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी की इस विशालकाय मूर्ति एवं विश्व-स्मारक के निर्माण का मुंबई में शिलान्यास किया। इंदू मिल की 12 एकड भूमि पर यह भव्य स्मारक बनेगा। समानता का यह स्मारक डॉ॰ आंबेडकर के समाधि स्थल चैत्य भूमि के करीब है। डॉ॰ भीमराव आंबेडकर जी ने करोड़ो देशवासियों के समानता के पूरे जीवन भर संघर्ष किया, इसलिए भीमराव को समानता का प्रतीक (सिम्बॉल ऑफ इक्वेलिटी) कहा जाता है। .

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विट्ठलदास मोदी

विट्ठलदास मोदी (२५ अप्रैल १९१२ - २३ मार्च २०००) भारत के एक प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक थे। इन्होने गोरखपुर में आरोग्य मंदिर की स्थापना की तथा प्राकृतिक चिकित्सा पर हिन्दी एवं अंग्रेजी में अनेकों पुस्तकों की रचना की। अपने जीवन के 60 वर्ष प्राकृतिक चिकित्सा को समर्पित किए। मोदी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा में मानस के निर्मलीकरण के लिए भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्तित विपश्यना ध्यान-साधना का समावेश किया। .

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इगतपुरी

इगतपुरी (इगतपुरी), भारत के राज्य महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित एक पर्वतीय स्थल और नगर परिषद है। यह पश्चिमी घाट पर स्थित है। इगतपुरी रेलवे स्टेशन मुंबई और नासिक रोड नामक रेलवे स्टेशनों के बीच स्थित है। सड़क मार्ग पर यह व्यस्त मुंबई-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग-3 पर मुंबई से 130 किमी और नासिक से 45 किमी की दूरी पर स्थित है। इगतपुरी की औसत ऊँचाई 586 मीटर है। इगतपुरी अपने बौद्ध ध्यान विपश्यना केन्द्र और वड़ापाव के लिए प्रसिद्ध है। इगतपुरी एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है और यहां पर विद्युतधारा में बदलाव के चलते (प्रत्यावर्ती धारा से एकदिष्ट धारा) रेलगाड़ियों के इंजन बदले जाते हैं, साथ ही यहां से चालक और गार्ड भी अपनी पालियां बदलते हैं। इंडियन रेलवे में जितने भी इगतपुरी स्तर के हैं उन सभी स्टशनों में इगतपुरी स्टेशन पर मिलने वाला भोजन सबसे उत्तम है अगर आप घुमक्कड़ प्रवर्ति के हैं तो आप के लिय इगतपुरी से अच्छी जगह कोई नहीं चारो तरफ फैले हुये पहाड़ आपका मन मोह लेते हैं प्रकृति ने अपनी पूरी ताकत लगा कर यहाँ पर अपनी छटा बिखेरी है .

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२०१३ में निधन

निम्नलिखित सूची २०१३ में निधन हो गये लोगों की है। यहाँ पर सभी दिनांक के क्रमानुसार हैं और एक दिन की दो या अधिक प्रविष्टियाँ होने पर उनके मूल नाम को वर्णक्रमानुसार में दिया गया है। यहाँ लिखने का अनुक्रम निम्न है.

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