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विद्युत धारा

सूची विद्युत धारा

आवेशों के प्रवाह की दिशा से धारा की दिशा निर्धारित होती है। विद्युत आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे विद्युत धारा (इलेक्ट्रिक करेण्ट) कहते हैं। इसकी SI इकाई एम्पीयर है। एक कूलांम प्रति सेकेण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहेंगे। .

94 संबंधों: चुम्बकीय ऊर्जा, चुम्बकीय परिपथ, चुम्बकीय आघूर्ण, चुम्बकीय क्षेत्र, चुंबकत्व, चुंबकीय प्रतिष्टम्भ, ट्रायक, टेफ्लान, एम्पियर, एक्स किरण नलिका, डायोड, थाइरिस्टर विद्युत नियंत्रक, दिक्-परिवर्तक, द्विधात्विक संक्षारण, धनाग्र, धारा दर्पण, धारा परिणामित्र, धारा स्रोत, धारा घनत्व, धूम्र संसूचक, नियत-धारा डायोड, निर्वात नली, पुनर्भरणीय विद्युत्कोष, प्रतिबाधा, प्रतिरोध भट्ठी, प्रतिरोधक, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, प्रक्षेप धारामापी, प्लाज़्मा पटल, प्लाज़्मा ग्लोब, फ्यूज, फैराडे कप, फैराडे का विद्युत अपघटन का नियम, फोटोडायोड, बायो-सेवर्ट का नियम, बैटरी आवेशक, भँवर धारा, भौतिक राशियों की सूची, भौतिक विज्ञानी, भूधाराएँ, मापन प्रणालियाँ, लघु परिपथ, शनि (ग्रह), शास्त्रीय विद्युत्चुम्बकत्व, शंट (विद्युत), शक्ति प्रवाह का अध्ययन, समिश्र संख्या, साइमन्स (इकाई), संगणन हार्डवेयर का इतिहास, हाल प्रभाव, ..., हेडफ़ोन, हेनरी (इकाई), जल का विद्युत अपघटन, जूल (इकाई), जेम्स प्रेस्कॉट जूल, जॉर्ज साइमन ओम, विद्युत, विद्युत चालन, विद्युत चालक, विद्युत चालकता, विद्युत चुम्बक, विद्युत धारा, विद्युत प्रतिरोध, विद्युत प्रदायी, विद्युत स्पर्शाघात, विद्युत घंटी, विद्युत आवेश, विद्युत उपकरण, विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास, विद्युतरोधी, विद्युतवाहक बल, विद्युत्-तापन, विद्युत्-लेपन, विद्युत्-आक्षेपी चिकित्सा, विमीय विश्लेषण, विस्थापन धारा, वैद्युत प्रतिघात, वैद्युत बैलास्ट, वैज्ञानिक यन्त्र, वैज्ञानिक उपकरण, वेल्डन विद्युत प्रदाय, वॉट, वोल्टता स्रोत, वोल्टमीटर, वोल्टा, ओम का नियम, आन्द्रे मैरी एम्पीयर, आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण, क्षीणता, केबल, अतिचालकता, अन्तरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली, अन्तर्वाह धारा, अमीटर सूचकांक विस्तार (44 अधिक) »

चुम्बकीय ऊर्जा

भौतिकी में, चुम्बकीय ऊर्जा, चुम्बकीय क्षेत्र से सम्बन्धित ऊर्जा है। B चुम्बकीय क्षेत्र में रखे हुए m चुम्बकीय आघूर्ण वाले चुम्बक की स्थितिज ऊर्जा निम्नलिखित है- किसी प्रेरकत्व L में धारा I प्रवाहित हो रही हो तो उसमें संग्रहित ऊर्जा: ऊर्जा को चुम्बकीय क्षेत्र के रूप में भी भण्डारित किया जाता है। \mu पारगम्यता वाले किसी क्षेत्र के ईकाई आयतन में संगृहित चुम्बकीय ऊर्जा: जहाँ B सम्बन्धित बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (टेसला में) है। .

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चुम्बकीय परिपथ

केवल एक लूप वाला चुम्बकीय परिपथ चुंबकीय परिपथ (magnetic circuit) एक या अधिक बंद लूप वाले मार्गों से बना होता है जिनमें चुंबकीय फ्लक्स होता है। यह फ्लक्स प्राय: किसी स्थाई चुम्बक या विद्युत चुम्बक द्वारा पैदा किया जाता है। इन मार्गों में स्थित लौहचुम्बकीय पदार्थों के कारण फ्लक्स इन मार्गों में ही सीमित रहता है तथा मार्ग के बाहर फ्लक्स की मात्रा नगण्य ही रहती है। चुम्बकीय परिपथ का कांसेप्ट विद्युतचुम्बकीय युक्तियों की डिजाइन में बहुत सुविधा प्रदान करता है। यह विभिन्न स्थानों से होकर गुजरने वाले फ्लक्स की मात्रा आदि की गणना में बहुत उपयोगी है। चूंकि विद्युत परिपथ और चुम्बकीय परिपथ में समानता है, इस कारण विद्युत परिपथ के विश्लेषण के सभी औजार (जैसे KCL, KVL, suparposition आदि) चुम्बकीय परिपथ के विश्लेषण में काम आ जाते हैं। .

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चुम्बकीय आघूर्ण

किसी चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण (magnetic moment) वह राशि है जो बताती है कि उस चुम्बक को किसी वाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर वह कितना बलाघूर्ण अनुभव करेगा। छद़ चुम्बक, एक लूप जिसमें विद्युत धारा बह रही हो, परमाणु का चक्कर काटता इलेक्ट्रॉन, अणु, ग्रह आदि सभी का चुम्बकीय आघूर्ण होता है। .

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चुम्बकीय क्षेत्र

किसी चालक में प्रवाहित विद्युत धारा '''I''', उस चालक के चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र '''B''' उत्पन्न करती है। चुंबकीय क्षेत्र विद्युत धाराओं और चुंबकीय सामग्री का चुंबकीय प्रभाव है। किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र दोनों, दिशा और परिमाण (या शक्ति) द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है; इसलिये यह एक सदिश क्षेत्र है। चुंबकीय क्षेत्र घूमते विद्युत आवेश और मूलकण के आंतरिक चुंबकीय क्षणों द्वारा उत्पादित होता हैं जो एक प्रमात्रा गुण के साथ जुड़ा होता है। 'चुम्बकीय क्षेत्र' शब्द का प्रयोग दो क्षेत्रों के लिये किया जाता है जिनका आपस में निकट सम्बन्ध है, किन्तु दोनों अलग-अलग हैं। इन दो क्षेत्रों को तथा, द्वारा निरूपित किया जाता है। की ईकाई अम्पीयर प्रति मीटर (संकेत: A·m−1 or A/m) है और की ईकाई टेस्ला (प्रतीक: T) है। चुम्बकीय क्षेत्र दो प्रकार से उत्पन्न (स्थापित) किया जा सकता है- (१) गतिमान आवेशों के द्वारा (अर्थात, विद्युत धारा के द्वारा) तथा (२) मूलभूत कणों में निहित चुम्बकीय आघूर्ण के द्वारा विशिष्ट आपेक्षिकता में, विद्युत क्षेत्र और चुम्बकीय क्षेत्र, एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र दो रूपों में देखने को मिलता है, (१) स्थायी चुम्बकों द्वारा लोहा, कोबाल्ट आदि से निर्मित वस्तुओं पर लगने वाला बल, तथा (२) मोटर आदि में उत्पन्न बलाघूर्ण जिससे मोटर घूमती है। आधुनिक प्रौद्योगिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों का बहुतायत में उपयोग होता है (विशेषतः वैद्युत इंजीनियरी तथा विद्युतचुम्बकत्व में)। धरती का चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय सुई के माध्यम से दिशा ज्ञान कराने में उपयोगी है। विद्युत मोटर और विद्युत जनित्र में चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग होता है। .

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चुंबकत्व

चुंबकत्व प्रायोगिक चुंबकीय क्षेत्र के परमाणु या उप-परमाणु स्तर पर प्रतिक्रिया करने वाले तत्वों का गुण है। उदाहरण के लिए, चुंबकत्व का ज्ञात रूप है जो की लौह चुंबकत्व है, जहां कुछ लौह-चुंबकीय तत्व स्वयं अपना निरंतर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते रहते हैं। हालांकि, सभी तत्व चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति से कम या अधिक स्तर तक प्रभावित होते हैं। कुछ चुंबकीय क्षेत्र (अणुचंबकत्व) के प्रति आकर्षित होते हैं; अन्य चुंबकीय क्षेत्र (प्रति-चुंबकत्व) से विकर्षित होते हैं; जब कि दूसरों का प्रायोगिक चुंबकीय क्षेत्र के साथ और अधिक जटिल संबंध होता है। पदार्थ है कि चुंबकीय क्षेत्रों द्वारा नगण्य रूप से प्रभावित पदार्थ ग़ैर-चुंबकीय पदार्थ के रूप में जाने जाते हैं। इनमें शामिल हैं तांबा, एल्यूमिनियम, गैस और प्लास्टिक.

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चुंबकीय प्रतिष्टम्भ

एक सरल चुम्बकीय परिपथ जिसमें लोहे और वायु-गैप का प्रतिष्टम्भ श्रेणीक्रम में हैं।Rm .

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ट्रायक

ट्रायक का प्रतीक विभिन्न आकार-प्रकार के ट्रायक एक सरल परिपथ में ट्रायक की कार्यविधि ट्रायक (TRIAC) तीन सिरों (टर्मिनल) वाली एक इलेक्क्त्रानिक युक्ति है जो ट्रिगर किये जाने पर दोनों दिशाओं में (आगे और पीछे) धारा को प्रवाहित होने देती है। इसका 'ट्रायोड' नाम 'ट्रायोड फॉर अल्टरनेटिंग करेण्ट' के लिये दिया गया है। पार्श्व चित्र में ट्रायोड का संकेत दिया गया है जिसमें A1 एनोड१ है, A2 एनोड२ है तथा G गेट है जो 'ट्रिगर' करने के काम आता है। प्रायः एनोड१ और एनोड२ को मुख्य टर्मिनल १ (MT1) तथा मुख्य टर्मिनल २ (MT2) कहा जाता है। चूंकि यह दोनों दिशाओं में धारा बहने देता है, अतः एक ट्रायोड दो एस सी आर के समतुल्य है जो एन्टी-पैरेलेल जुड़े हों। .

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टेफ्लान

टेफ्लॉन की पट्टी, फीता(टेप) आदि टेफ्लान का अणु टेफ्लॉन की परत चढ़ाया हुआ बरतन (पैन) टेफ्लान या पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन (Polytetrafluoroethylene (PTFE)) एक संश्लेषित फ्लूरोबहुलक है। यह अनेकों कार्यों के लिये उपयोगी है। 'टेफ्लोन' (Teflon) डूपॉण्ट (DuPont Co) द्वारा विकसित पीटीएफई का ब्राण्ड-नाम है। पीटीएफई बहुत ही कठोर पदार्थ है। इस पर ऊष्मा, अम्ल तथा क्षार का प्रभान नहीं पड़ता है। यह विद्युत धारा का कुचालक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एम्पियर

विद्युत धारा को गैल्वैनोमीटर के द्वारा मापा जा सकता है। वैसे इसको मापने का सही उपकरण है एम्मीटर एम्पीयर, लघु रूप में amp, (चिन्ह: A) विद्युत धारा, या विद्युत आवेश की मात्रा प्रति सैकण्ड; की इकाई है। एम्पीयर SI मूल इकाई है और इसका नाम विद्युतचुम्बकत्व को खोजने वाले वैज्ञानिक आंद्रे-मैरी एम्पीयर के नाम पर्रखा गया है। .

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एक्स किरण नलिका

सन् १९१७ के आसपास बनी कूलिज की एक्सरे-नलिका; गरम कैथोड बाएँ तरफ है तथा एनोड दाँयी तरफ है। एक्सरे, नीचे की तरफ निकलती है। उस निर्वात नलिका को एक्स किरण नलिका या 'एक्सरे ट्यूब' (X-ray tube) कहते हैं जो एक्स किरण उत्पन्न करती है। एक्सरे नलिकाओं का विकास क्रुक्स की नलिका से हुआ जिससे सर्वप्रथमेक्सरे खोजा गया था। इन नलिकाओं से प्राप्त एक्स किरणों के अनेक उपयोग हैं, जैसे- रेडियोग्राफी, कैट (CAT) स्कैनर, हवाई-अड्डों के सामान-स्कैनर, एक्सरे-क्रिस्टलोग्राफी आदि। .

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डायोड

निर्वात नलिका डायोड का योजनामूलक चित्र डायोड आकार-प्रकार में भिन्न दिख सकते हैं। यहाँ चार डायोड दिखाये गये हैं जो सभी अर्धचालक डायोड हैं। सबसे नीचे वाला एक ब्रिज-रेक्टिफायर है जो चार डायोडों से बना होता है। डायोड (diode) या द्विअग्र / द्वयाग्र एक वैद्युत युक्ति है। अधिकांशत: डायोड दो सिरों (अग्र) वाले होते हैं किन्तु ताप-आयनिक डायोड में दो अतिरिक्त सिरे भी होते हैं जिनसे हीटर जुड़ा होता है। डायोड कई तरह के होते हैं किन्तु इन सबकी प्रमुख विशेषता यह है कि यह एक दिशा में धारा को बहुत कम प्रतिरोध के बहने देते हैं जबकि दूसरी दिशा में धारा के विरुद्ध बहुत प्रतिरोध लगाते हैं। इनकी इसी विशेषता के कारण ये अन्य कार्यों के अलावा प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा के रूप में बदलने के लिये दिष्टकारी परिपथों में प्रयोग किये जाते हैं। आजकल के परिपथों में अर्धचालक डायोड, अन्य डायोडों की तुलना में बहुत अधिक प्रयोग किये जाते हैं। .

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थाइरिस्टर विद्युत नियंत्रक

थाइरिस्टर विद्युत नियंत्रक (Thyristor power controllers या SCR power controllers) किसी विद्युत लोड में जाने वाली विद्युत शक्ति, धारा या वोल्टता का नियन्त्रण करते हैं। इसके कुछ मुख्य उपयोग ये हैं- किसी हीटर/फरनेस की की शक्ति को घटाना/बढ़ाना, किसी मोटर की चाल को घटाना/बढ़ाना या नियन्त्रित करना आदि। श्रेणी:शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी.

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दिक्-परिवर्तक

युनिवर्सल मोटर का दिक्-परिवर्तक ('''A''') तथा '''B''' ब्रश हैं। दिक्परिवर्तक की कार्य करने की विधि दिक्-परिवर्तक या कम्यूटेटर (commutator) दिष्टधारा मशीनों एवं कुछ अन्य उपकरणों में प्रयुक्त एक युक्ति है जो विद्युत धारा की दिशा बदलने के काम आती है। वास्तव में, ब्रश के साथ मिलकर यह एक घूर्णी यांत्रिक स्विच (rotary electrical switch) का काम करती है। दिक्- परिवर्तक (commutator) कठोर कर्षित ताम्बे का बना होता है श्रेणी:विद्युत मशीन.

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द्विधात्विक संक्षारण

स्टेनलेस स्टील के नट-बोल्ट के सम्पर्क में लगे अन्य पदार्थ के वाशर संक्षारित हो गये हैं। द्विधात्विक संक्षारण या गैवानिक संक्षारण (bimetallic corrosion या Galvanic corrosion) एक विद्युतरासायनिक प्रक्रिया है जिसमें परस्पर सटाकर रखीं गयी दो धातुओं में से होकर विद्युत धारा बहती है तो उनमें से एक संक्षारण होती है और दूसरी नहीं। इसी गैवानिक अभिक्रिया का उपयोग करते हुए प्राथमिक सेल कार्य करते हैं (वोल्टता उत्पन्न करते हैं)। श्रेणी:संक्षारण.

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धनाग्र

ऐनोड धनाग्र (ऐनोड / anode) उस विद्युताग्र (इलेक्ट्रोड) को कहते हैं जिससे होकर किसी वैद्युत युक्ति में विद्युत धारा प्रवेश करती है। विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रॉन के प्रवाह की दिशा के विपरीत होती है। श्रेणी:विद्युत.

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धारा दर्पण

दो बीजेटी से निर्मित एक सरल धारा दर्पण विल्सन का धारा दर्पण धारा दर्पण (current mirror) उस विद्युत परिपथ को कहते हैं जिसके किसी एक अवयव में जितनी विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, उस परिपथ के एक अन्य अवयव में उस धारा के बराबर या उसके कुछ गुना धारा बहती है। उदाहरण के लिये, किसी परिपथ के ट्रांजिस्टर Q1 में १ अम्पीयर धारा जब बहती है तो Q2 में भी 1 अम्पीयर बहती है तथा जब Q1 में 3 अम्पीयर धारा बहायी जाती है तो Q2 में भी 3 अम्पीयर धारा बहने लगती है तो यह परिपथ एक 'धारा दर्पण' की तरह कार्य कर रहा है। किन्तु ध्यान देना चाहिये कि दो अवयव यदि श्रेणीक्रम में जुड़े हों तो भी उन दोनों में हर स्थिति में समान धारा बहेगी, किन्तु इस परिपथ को 'धारा दर्पण' नहीं कहा जाता। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धारा दर्पण वास्तव में धारा नियंत्रित धारा स्रोत (current-controlled current source (CCCS)) होता है। इलेक्ट्रानिकी में धारा दर्पण के मुख्यतः दो उपयोग हैं-.

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धारा परिणामित्र

११० किलोवोल्ट पर काम करने वाला धारा परिणामित्र (CT) CT का कार्य सिद्धान्त विद्युत इंजीनियरी में धारा परिणामित्र या 'करेंट ट्रांस्फॉर्मर' (current transformer (CT)) विद्युत धारा को मापने के काम आता है। धारा परिणामित्र और विभव परिणामित्र (voltage transformers (VT) या (potential transformers (PT)) को सम्मिलित रूप से 'इंस्ट्रूमेन्त ट्रांस्फॉर्मर' कहा जाता है। अन्य ट्रांसफॉर्मरों की तरह धारा ट्रान्सफॉर्मर में दो वाइंडिंग होती हैं। - प्राथमिक (प्राइमरी) और द्वितीयक (सेकेंडरी)। प्रायः प्राइमरी एक टर्न की होती है। यदि प्राइमरी में केवल एक टर्न हो और सेकेंडरी में N टर्न तो सेकेंडरी में धारा का मान प्राइमरी की धारा के मान का 1/N होता है। जहाँ कहीँ धारा का मान बहुत अधिक होने से उसे सीधे मापक यंत्रों (जैसे अमीटर) द्वारा मापना अव्यवहारिक हो, वहाँ सी टी का प्रयोग किया जाता है। धारा परिणामित्र अधिक परिणाम की धारा के समानुपाती कम परिणाम की धारा देता है जिसे किसी अमीटर में जोड़कर सीधे धारा का मान पढ़ा जा सकता है। सेकेंडरी में कोई छोटे मान का प्रतिरोध जोड़कर धारा को वोल्टेज में बदल लिया जाता है जिसे किसी कन्ट्रोल परिपथ में नियंत्रण या सुरक्षा (प्रोटेक्शन) के लिये दिया जा सकता है। सी टी लगाने का एक और लाभ यह है कि यह उच्च वोल्टता वाली लाइन से आइसोलेशन प्रदान करता है जिससे इसके सेकेंडरी साइड में कोई उपकरण आदि लगाने में कोई खतरा नहीं रहता। .

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धारा स्रोत

प्रतिरोध (दाएँ) से जुड़ा एक धारा स्रोत (बाएँ) एक सरल धारा स्रोत जो बीजेटी का उपयोग करते हुए बना है। धारा स्रोत (current source) वह युक्ति या एलेक्ट्रानिक परिपथ है जो एक नियत धारा देती है या लेती है, चाहे उसके सिरों के बीच विभवान्तर कुछ भी हो। उदाहरण के लिए 1.5 एम्पीयर धारा-स्रोत के सिरों के बीच 1 ओम का प्रतिरोध लागाएँ तो उसमें 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी और स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 1.5 वोल्ट होगा और यदि इस धारा स्रोत के सिरों के बीच 5 ओम का प्रतिरोध जोड़ें तो इस प्रतिरोध में भी 1.5 अम्पीयर धारा बहेगी जबकि इस स्थिति में स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर 7.5 (.

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धारा घनत्व

चालक माध्यम के भीतर किसी प्रष्ठ के लम्बवत दिशा मे इकाई क्षेत्रफल के द्वारा प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा, धारा घनत्व (करेन्ट डेन्सिटी) कहलाती है। यह एक सदिश राशि है, जबकि धारा स्वयं एक अदिश राशि होती है। धारा घनत्व को J से प्रदर्शित करते हैं। यदि किसी चालक से I धारा प्रवाहित हो और उसका अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A हो, तब धारा घनत्व - इसका S.I मात्रक एम्पियर/मी२ होता है। .

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धूम्र संसूचक

स्मोक डिटेक्टर (धुएं का पता लगाने वाला यंत्र) एक उपकरण है जो ख़ास तौर पर आग के सूचक के रूप में धुएं का पता लगाता है। व्यावसायिक, औद्योगिक और बड़े पैमाने पर उपयोग होने वाले आवासीय उपकरण आग लगने की चेतावनी देने वाली एक प्रणाली को संकेत देते हैं, जबकि घरेलू डिटेक्टर, जिन्हें स्मोक अलार्म (धुएं की चेतावनी देने वाला उपकरण कहा जाता है), आम तौर पर डिटेक्टर से ही स्थानीय रूप से सुनाई और/या दिखाई देने वाली चेतावनी देते हैं। स्मोक डिटेक्टर को ख़ास तौर पर डिस्क के आकार वाले प्लास्टिक के एक घेरे में रखा जाता है जिसका व्यास लगभग एवं मोटाई लगभग होती है। अधिकांश स्मोक डिटेक्टर या तो प्रकाशीय (ऑप्टिकल) पहचान (विद्युतप्रकाशीय) या भौतिक प्रक्रिया (आयनीकरण) के द्वारा काम करते हैं, जबकि अन्य डिटेक्टर धुएं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने के लिए पहचान की दोनों विधियों का उपयोग करते हैं। संवेदनशील अलार्म का उपयोग शौचालयों एवं विद्यालयों जैसे धूम्रपान प्रतिबंधित क्षेत्रों में इसका पता लगाने और इस प्रकार उसे रोकने में किया जा सकता है। बड़े व्यावसायिक, औद्योगिक और आवासीय इमारतों में आमतौर पर स्मोक डिटेक्टरों को एक आग की चेतावनी देने वाली एक केंद्रीय प्रणाली से ऊर्जा मिलती है, जिसे बैटरी बैकअप वाली इमारत की बिजली से ऊर्जा प्राप्त होती है। हालांकि, कई एकाकी परिवार और छोटे एकाधिक परिवार वाले आवासों में, स्मोक (धुंआ) अलार्म को अक्सर केवल एक बार प्रयोग किये जाने योग्य एकल बैटरी द्वारा संचालित किया जाता है। .

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नियत-धारा डायोड

प्रतीक तथा जे-फेट से निर्मित नियत-धारा डायोड नियत-धारा डायोड (Constant-current diode) एक इलेक्ट्रानिक युक्ति है जो अपने अन्दर से होकर प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा को एक सीमा से अधिक नहीं होने देती। इसलिये इसे धारा-सीमक डायोड (current-limiting diode) या धारा-नियामक डायोड (current-regulating diode) भी कहते हैं। श्रेणी:वैद्युत युक्ति.

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निर्वात नली

आधुनिक निर्वात नलियाँ (अधिकांशतः लघु आकार वाली) इलेक्ट्रॉनिकी में निर्वात नली एक ऐसी युक्ति है जिसका कार्य निर्वात में विद्युत धारा के प्रवाह पर आधारित है। इसे एलेक्ट्रॉन नली (उत्तरी अमेरिका), तापायनिक वॉल्व (यूके में) या केवल 'ट्यूब' या 'वॉल्व' भी कहते हैं। इनमें एक तप्त फिलामेण्ट (कैथोड) से निकलने वाले एलेक्ट्रॉन निर्वात में गति करके एनोड पर पहुंचते हैं जो कैथोड की अपेक्षा अधिक वोल्टता पर रखा गया होता है। निर्वात नलियों के प्रादुर्भाव ने एलेक्ट्रॉनिकी के जन्म और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। .

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पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

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प्रतिबाधा

विद्युत के सन्दर्भ में, किसी परिपथ पर वोल्टता आरोपित करने पर उसमें धारा के प्रवाह के विरोध की माप का नाम प्रतिबाधा (impedance) है। संख्यात्मक मान की दृष्टि से किसी परिपथ की प्रतिबाधा उस परिपथ के सिरों के बीच समिश्र वोल्टता तथा समिश्र धारा के अनुपात के बराबर होती है। प्रतिबाधा को एसी के लिए प्रतिरोध के विस्तार के रूप में समझा जा सकता है। अर्थात् डीसी में जो भूमिका प्रतिरोध की है वही भूमिका एसी में प्रतिबाधा की है। प्रतिबाधा एक समिश्र संख्या है जिसका परिमाण (magnitude) और कला (phase) दोनों होते हैं। श्रेणी:विद्युत.

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प्रतिरोध भट्ठी

प्रतिरोध भट्ठियों (Electric Arc Furnace) में, भट्ठी की दीवारों पर तार अंशक (coil) लगे होते हैं, जिनमें प्रवाहित होनेवाली धारा ऊष्मा उत्पन्न करती है। भट्ठी की दीवारें सामान्य भट्ठी की तरह अग्निसह ईटों की बनी होती हैं, अथवा किसी भी ऐसे उच्च तापसह (refractory) पदार्थ की जो ऊष्मा का चालक हो। ऊष्मा अंशक, सामान्यत:, नाइक्रोम (nichrome) अथवा मौलिब्डेनम (molybdenum) तार के बने होते हैं और उच्च तापसह पदार्थ की नलिका पर वर्तित (wound) होते हैं। उच्च ताप की भट्ठियों में (1,200° सें. ऊपर) प्लैटिनम धातु के तारों का प्रयोग भी किया जाता है, जो अधिक कीमती होने के कारण सभी भट्ठियों में नहीं प्रयोग किए जा सकते। उच्च ताप की भट्ठियों में तार अंशकों के स्थान पर सिलिकॉन कार्बाइड (silicon carbide) की छड़ें और नलिकाएँ भी प्रयोग की जाती हैं। ऊष्मा अंशक, भट्ठी की दीवारों पर न लगाकर, सामान्यत:, उसमें ही निवेशित कर दिए जाते हैं, जिससे भट्ठी में अधिक जगह हो सके और इन अंशकों को भी क्षति से बचाया जा सके। ताप अंशक एक दूसरे से श्रेणी (series) एंवं पार्श्व संबंधन में संबद्ध होते हैं कि प्रतिरोध का विचरण कर आसानी से ताप का विचरण किया जा सके। कहीं कहीं ये स्टार एवं डेल्टा (star and delta) प्ररूप में भी संबद्ध होते हैं। पिघलानेवाली धातु भट्ठी के बीच में रखी जाती है। इसे साधारण बोलचाल में धान (charge) कहते हैं। यह पिघलने पर नली के द्वारा भट्ठी से बाहर आ जाती है, अथवा चार्ज की हाँड़ी, जिसे मूषा (crucible) कहते हैं, भट्ठी के बाहर निकाल ली जाती है। ताप नियंत्रण स्वत: चालन से ताप-वैद्युत युग्म (thermocouple) द्वारा किया जाता है। कुछ प्रतिरोध भट्ठियाँ लवण कुंडिका (salt bath) किस्म की होती हैं। कई प्रकार के लवण (सामान्य नमक नहीं) इस कार्य के लिए प्रयुक्त होते हैं। इनमें विद्युत्धारा पिघले हुए लवण के प्रतिरोध में होकर पारित होती है, जिससे लवण कुंडिका गरम हो जाती है और इसमें रखा हुआ धान पिघलाया जा सकता है, इस प्रकार की भट्ठी में ऊष्मा का अधिक अंश में उपयोग संभव है, अर्थात्‌ बहुत कम ऊष्मा नष्ट होती है, क्योंकि इसका उपयोग सीधे ही धान को गरम करने में हो जाता है। ऐसी भट्ठियाँ, कैल्सियम, सेडियम, पोटैशियम आदि लवणों को पिघलाने के लिए प्रयोग की जाती है, जिनके रासायनिक लवण सीधे ही भट्ठी में रखे जा सकें। इस प्रकार धान को ही ऊष्ण अंशक के रूप में प्रयोग किया जाता है और उसके प्रतिरोध के कारण उत्पन्न ऊष्मा उसको पिघलाती है। धारा धान में निवेशित दो एलेक्ट्रोडों द्वारा पहुँचाई जाती है। ऐलुमिनियम की इसी प्रकार की प्रतिरोध भट्ठी में प्राप्त होता है। .

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प्रतिरोधक

नियत मान वाले कुछ प्रतिरोधक प्रतिरोधक (resistor) दो सिरों वाला वैद्युत अवयव है जिसके सिरों के बीच विभवान्तर उससे बहने वाली तात्कालिक धारा के समानुपाती (या लगभग समानुपाती) होता है। ये विभिन्न आकार-प्रकार के होते हैं। इनसे होकर धारा बहने पर इनके अन्दर उष्मा उत्पन्न होती है। कुछ प्रतिरोधक ओम के नियम का पालन करते हैं जिसका अर्थ है कि -; V .

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प्रकाश उत्सर्जक डायोड

एल.ई.डी की आंतरिक संरचना प्रकाश उत्सर्जन डायोड (अंग्रेज़ी:लाइट एमिटिंग डायोड) एक अर्ध चालक-डायोड होता है, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह प्रकाश इसकी बनावट के अनुसार किसी भी रंग का हो सकता है। एल.ई.डी.

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प्रक्षेप धारामापी

प्रक्षेप धारामापी (Ballistic galvanometer) एक प्रकार का दर्पण धारामापी है जो धारा के मापन के लिये उपयोग नहीं किया जाता बल्कि इससे होकर प्रवाहित आवेश की मात्रा मापने के काम आता है। वस्तुतः यह चल कुण्डली धारामापी या चल लौह धारामापी ही होता है किन्तु इसका जड़त्वाघूर्ण बहुत अधिक होता है (जबकि सामान्य धारामापी का जड़त्वाघूर्ण कम से कम रखने की कोशिश की जाती है।) .

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प्लाज़्मा पटल

सं.अ.अमी. द्वारा विक्रय किया जाता है। प्लाज्मा टीवी एक प्रकार का हाईडेफिनेशन टीवी (एचडीटीवी) होता है, जो कि प्रायः प्रचलित कैथोड किरण दूरदर्शी का विकल्प हैं। प्लाज्मा एक वैज्ञानिक शब्द है, जिसको कि निऑन और ज़ेनॉन आदि अक्रिय (इनर्ट) गैसों के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १८ अक्टूबर २००९द्रव्य, गैस और ठोस के अलावा प्लाज्मा को पदार्थ की चतुर्थ अवस्था के रूप में प्रयोग किया जाता है। टेलीविजन में हजारों की संख्या में छोटे-छोटे घटक होते हैं, जिन्हें पिक्सल कहते हैं। रंगीन टेलीविजनों में तीन वर्ण मिलकर एक पिक्सल का निर्माण करते हैं। इनमें सामान्यत: प्रकाश के तीन प्राथमिक रंग लाल, हरा और नीला का प्रयोग किया जाता है। वहीं प्लाज्मा टीवी में प्रत्येक पिक्सल अक्रिय गैस जैसे कि निऑन और जीनॉन के छोटे-छोटे पात्रों से मिलकर बना होता है। प्लाज्मा टीवी में अनुमानित हजारों की संख्या में ऐसे छोटे-छोटे टय़ूब उपस्थित होते हैं। प्रत्येक पिक्सल को दो वैद्युत आवेशित प्लेटों के बीच में रखा जाता है। विद्युत धारा का प्रवाह करने पर प्लाज्मा चमकता है। टीवी में लगा छोटा सा कंप्यूटर विद्युत क्षेत्र को नियंत्रित करता है, जिससे विभिन्न रंगों का मिश्रण बनता है जो कि दृश्य-पटल पर दिखाई देते हैं। इस टेलीवीज़न का लाभ ये हैं कि इसका दृश्य पट्ल यानि मॉनीटर, एकदम सपाट यानि फ्लैट होता है, जिसको कि आप सीधे दीवार पर लगा सकते हैं। इसमें चित्र और रंग दूसरे टीवी की तुलना में बेहतर दिखती है। इसका भार अन्य समान आकार के स्क्रीन वाले टीवी की तुलना में बहुत कम होता है। प्लाज़्मा टीवी या पटल के प्रमुख निर्माताओं में एल.जी इलेक्ट्रॉनिक्स, सोनी, सैमसंग, पैनासॉनिक, हिटैची आदि हैं।। नवभारत टाइम्स। १६ जुलाई २००८ .

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प्लाज़्मा ग्लोब

प्लाज़्मा ग्लोब अथवा प्लाज़्मा दीप (प्लाज़्मा गेंद, गुम्बद, गोला, नली अथवा बिब इत्यादि, आकृति के अनुसार नाम) सामान्यतः विभिन्न उत्कृष्ट गैसों से भरा हुआ काँच का गोला है जिसके केद्र पर उच्च वोल्टता के इलेक्ट्रोड लगे हुये हैं। प्लाज़्मा तन्तु आन्तरिक इलेक्ट्रोड से बाहरी कुचालक काँच तक विस्तारित होता है जिससे विभिन्न रंगो के स्थायी प्रकाश पूँज देखने को मिलते हैं। प्लाज़्मा ग्लोब १९८० के दशक में विचित्र वस्तु के रूप में लोकप्रिय हुये थे। प्लाज़्मा दीप का आविष्कार निकोला टेस्ला ने किया था। उन्होंने उच्च वोल्टता से सम्बद्ध घटनाओं के अध्ययन के लिए काँच की खाली नली में उच्च आवृत्ति धारा के साथ प्रयोग आरम्भ किया था जिसमें इसका आविष्कार किया। लेकिन इसका आधुनिक संस्करण पहली बार बिल पार्कर ने बनाया। टेस्ला ने अपने इस आविष्कार को अक्रिय गैस अनावेशन नली नाम दिया। .

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फ्यूज

80 kA ब्रेकिंग क्षमता वाला कोई औद्योगिक फ्यूज वैद्युत प्रौद्योगिकी एवं एलेक्ट्रॉनिकी फ्यूज (fuse), परिपथ का एक संरक्षात्मक (प्रोटेक्टिव) अवयव है जो एक नियत मात्रा से अधिक धारा बहने पर परिपथ को तोड देता है। इस प्रकार परिपथ में स्थित अन्य मूल्यवान अवयव अत्यधिक धारा के कारण खराब होने से बच जाते हैं। फ्यूज शब्द फ्यूजिबल लिंक का लघु रूप है। मोटे तौर पर एक धातु की तार या पट्टी इसका मुख्य भाग है जो अधिक धारा बहने की दशा में पिघल जाती है और इस प्रकार परिपथ टूट जाता है। एक सरल परिपथ में फ्यूज की स्थिति कुछ अलग-अलग प्रकार के फ्यूज मोटरगाड़ियों में लगाये जाने वाले फ्यूज विभिन्न प्रकार के फ्यूज-होल्डर .

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फैराडे कप

फैराडे कप (Faraday cup) किसी धातु से निर्मित सुचालक कप होता है जिसे निर्वात में आवेशित कणों को एकत्र करने हेतु प्रयोग में लाया जाता है। इन आवेशों के कप में गिरने के फलस्वरूप जो धारा उत्पन्न होती है उसे मापकर उससे इस कप में गिरे आवेशों (ऑयन या इलेक्ट्रानों) की संख्या ज्ञात की जा सकती है। इसका नाम माइकल फैराडे के नाम पर पड़ा है। .

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फैराडे का विद्युत अपघटन का नियम

सन् १८३४ में फैराडे ने विद्युतरसायन से सम्बन्धित अपने कुछ संख्यात्मक प्रेक्षणों को प्रकाशित किया। इन्हें फैराडे के विद्युत अपघटन के नियम (Faraday's laws of electrolysis) कहते हैं। इसके अन्तर्गत दो नियम हैं। पाठ्यपुस्तकों और वैज्ञानिक साहित्य में में इन नियमों को अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है लेकिन वहुधा प्रचलित रूप कुछ इस प्रकार है-; फैराडे का विद्युत अपघटन का प्रथम नियम विद्युत अपघटन में विद्युताग्रों (एलेक्ट्रोड्स) पर जमा हुए पदार्थ की मात्रा धारा की मात्रा समानुपाती होती है। 'धारा की मात्रा' का अर्थ आवेश से है न कि विद्युत धारा से।; फैराडे का विद्युत अपघटन का द्वितीय नियम 'धारा की मात्रा' समान होने पर विद्युताग्रों पर जमा/हटाये गये पदार्थ की मात्रा उस तत्व के तुल्यांकी भार के समानुपाती होती है। (किसी पदार्थ का तुल्यांकी भार उसके मोलर द्रव्यमान को एक पूर्णांक से भाग देने पर मिलता है। यह पूर्णांक इस बात पर निर्भर करता है कि वह पदार्थ किस तरह की रासायनिक अभिक्रिया करता है।) .

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फोटोडायोड

अलग-अलग प्रकार के फोटोडायोड फोटोडायोड (photodiode) एक अर्धचालक युक्ति है जो प्रकाश को विद्युत ऊर्जा (या, विद्युत धारा) में बदलती है। दूसरे शब्दों में, यदि फोटोडायोड किसी लोड से जुडा है और इस पर प्रकाश आपतित होता है, तो इसमें विद्युत धारा बहने लगती है। सौर सेल (solar cell) भी एक फोटोडायोड है जिसका उपयोग प्रकाश से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिये किया जाता है। फोटोडायोड का उपयोग प्रकाश संसूचक (फोटो-डिटेक्टर) की तरह भी किया जा सकता है।;फोटो डायोड के लिए प्रयोग किये जाने वाले पदार्थ: * सिलिकन - वेव लेंथ रेंज (nm) १९० - ११०० * जेर्मेनियम - वेव लेंथ रेंज (nm) ४०० - १७०० * इन्डियम गालियम आर्सेनाइड - ८०० - २६०० * लेड सल्फाइड - < १००० - ३५०० .

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बायो-सेवर्ट का नियम

बायो-सेवर का नियम (Biot–Savart law) विद्युतचुम्बकत्व के अन्तर्गत एक समीकरण है जो किसी विद्युतधारा द्वारा किसी बिन्दु पर उत्पादित चुम्बकीय क्षेत्र B का मान बताता है। सदिश राशि B धारा के परिमाण, दिशा, लम्बाई, एवं बिन्दू से दूरी पर निर्भर करती है। यह नियम स्थिरचुम्बकीय स्थिति में ही वैध है और इससे प्राप्त B का मान एम्पीयर का नियम तथा गाउस का नियम से प्राप्त चुम्बकीय क्षेत्र से मेल खाते हैं। यह नियम सन १८२० में प्रतिपादित किया गया था। .

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बैटरी आवेशक

रिचार्जेबल सेल को चार्ज करने वाला चार्जर कार की बैटरी के लिये उपयुक्त चार्जर: यह ६ या १२ वोल्ट की बैटरी को ४ अम्पीयर धारा देकर चार्ज कर सकता है। द्वितीयक सेल या 'रिचार्जेबल बैटरी' में विद्युत धारा प्रवाहित कराकर उनमें विद्युत ऊर्जा भरने वाली एलेक्ट्रॉनिक युक्तियों को बैटरी आवेशक (battery charger) कहते हैं। ये प्रायः २२० वोल्ट एसी से विद्युत ऊर्जा लेकर उसे कम वोल्टेज (४८ वोल्ट, १२ वोल्ट, ९ वोल्त, ३ वोल्ट आदि) की डीसी में बदल देते हैं। इनमें प्रायः आवेशन धारा का नियंत्रण करने और अधिक चार्ज होने के पहले ही चार्ज करना रोकने की व्यवस्था होती है। इनका उपयोग क्षेत्र बहुत विस्तृत है। जहाँ-जहाँ द्वितीयक बैटरी है, वहाँ-वहाँ बैटरी-आवेशक है। कार आदि गाड़ियों के बैटरी आवेशक, लैपटॉप के आवेशक, सेल फोन के आवेशक, तथा यूपीएस के आवेशक कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। किसी भी बैटरी को चार्ज करने हेतु उसमें धारा प्रवाहित करनी पड़ती है जिसकी दिशा ऐसी हो कि बैटरी के धनाग्र (पॉजिटिव एलेक्ट्रोड) में घुसकर उसके ऋणाग्र से निकले। धारा की मात्रा और अन्य बातें चार्ज की जाने वाली बैटरी या सेल की प्रकृति पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिये ट्रक की बैटरी को आवेशित करने हेतु २० एम्पीयर धारा दी जा सकती है जबकि किसी पेंसिल सेल को चार्ज करने के लिये एक अम्पीयर से भी कम धारा चाहिये। बैटरी आवेशक के विद्युत परिपथ में अन्य बातों के अलावा एक एसी से डीसी करने वाला दिष्टकारी (रेक्टिफायर) तथा बैटरी में जाने वाली धारा को उचित मान पर बनाये रखने वाला धारा नियंत्रक होता है। बैटरी चार्जर भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। कम शक्ति के आवेशकों में आजकल एसएमपीएस (जैसे फॉरवर्ड कन्वर्टर) पर आधारित परिपथ प्रयोग किया जाता है जिससे इनका आकार अपेक्षाकृत बहुत छोटा होता है। .

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भँवर धारा

ट्रान्सफार्मर के कोर में फ्ल्क्स और भँवर धारा; भँवरधारा के कारण ऊर्जा-ह्रास को रोकने के लिए कोर को पतली-पतली पट्टियों से बनाया जाता है। किसी चालक के भीतर परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र होने पर उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है उसे भँवर धारा (Eddy current) कहते हैं। धारा की ये भवरें चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करती हैं और यह चुम्बकीय बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र के परिवर्तन का विरोध करता है। भँवर धाराओं से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र आकर्षण, प्रतिकर्षण, ऊष्मन आदि प्रभाव उत्पन्न करता है। बाहर से आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र जितना ही तीव्र होगा और उसके परिवर्तन की गति जितनी अधिक होगी और पदार्थ की विद्युत चालकता जितनी अधिक होगी, उतनी ही अधिक मात्रा में भँवर धाराएँ उत्पन्न होंगी तथा उनके कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र का मान भी उतना ही अधिक होगा। परिणामित्र (ट्रांसफॉर्मर), विद्युत जनित्र एवं विद्युत मोटरों के कोर में भँवर धाराओं के कारण ऊर्जा की हानि होती है और इसके कारण क्रोड गर्म होती है। कोर में भँवरधारा हानि कम करने के लिए क्रोड को पट्टयित (लैमिनेटेड) बनाया जाता है, अर्थात पतली-पतली पट्टियों को मिलाकर कोर बनाई जाती है, न कि एक ठोस कोर (सॉलिड कोर) से। .

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भौतिक राशियों की सूची

यह भौतिक राशियों की सूची है। श्रेणी:भौतिक इकाई.

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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भूधाराएँ

भूपर्पटी में प्रवाहित विद्युत धाराओं को भू-धाराएँ (Earth Currents) कहते हैं। यह वह धारा है जो भूमि के अन्दर से या समुद्र से होकर बहती है। ये बहुत ही कम आवृत्ति की विद्युत-धाराएँ हैं जो धरती के तल या उसके आसपास बहुत बड़े क्षेत्रफल में प्रवाहित होतीं हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण प्राकृतिक भी है और मानवीय क्रियाकलाप भी। भू-धाराओं को भूभौतिकीविद् स्थलमंडलीय धाराएँ (telluric currents) कहते हैं और हाल ही में पेट्रोलियम खोजने के क्षेत्र में इससे बहुत लाभ उठाया गया है। पेट्रोलियम तैलाशय की उच्च प्रतिरोधकता चट्टानों में इन धारानिकायों से उत्पन्न विभव प्रवणता के अध्ययन से, भूभौतिकीय अन्वेषण के लिये अत्यंत उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। अनुमानत: इसका प्रेरण उपरली धारा पद्धति (overhead current system) से होता है। सर्वप्रथम 1847 ई0 में इंग्लैंड में, सुविकसित तार प्रणाली (telegraphy) की सहायता से पर्पटी में परिवर्तनशील विद्युद्धाराओं का प्रेक्षण किया गया था। इससे अनेक अनुसंधानकर्ताओं को भू-धाराओं के अध्ययन की प्रेरणा मिली। .

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मापन प्रणालियाँ

मापन प्रणाली एक इकाइयों का समूह है, जो कि प्रत्येक उस वस्तु के परिमाण को दर्शाने हेतु प्रयोग होता है, जिसे मापा जा सकता है। क्योंकि यह व्यापार और आंतरिक वाणिज्य हेतु महत्वपूर्ण थीं, इसलिये, इन्हें इन्हें संशोधित, नियमित कर मानकीकृत किया गया था। वैज्ञानिक दृष्टि से, जब शोध किये गये, तो पता चला, कि कुछ इकाइयां मानक होतीं हैं, जिनसे कि अन्य सभी को व्युत्पन्न किया जा सकता है। पूर्व में यह राज्यों के शासकों द्वारा निर्धारित कर लागू किये जाती थीं। इसलिये ये आवश्यक रूप से सर्वानुकूल, या आपस में सामन्जस्य रखने वाली नहीं होती थीं। चाहे हम यह राय बनायें, कि मिस्र निवासियों ने मापन कला की खोज की थी; परन्तु वे यूनानी ही थे, जिन्होंने मापन कला खोजी थी। यूनानियों की ज्यामिती का ज्ञान और उनके आरम्भिक भार एवं मापों के प्रयोग, जल्दी ही वैज्ञानिक स्तर पर उनकी मापन प्रणाली को स्थान देने लगे.

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लघु परिपथ

तूफान के दौरान पेड़ की शाखाओं द्वारा हुआ शॉर्ट सर्किट का दृष्य वैद्युत परिपथ में लघु परिपथ (शॉर्ट सर्किट) (कभी-कभी संक्षेप में शॉर्ट भी कहते है) उसे कहते हैं जो विद्युत्प्रवाह को उस मार्ग से जाने की अनुमति देता है जिसमे प्रतिबाधा शून्य या बहुत कम होती है। "खुला सर्किट" (ओपन सर्किट), लघु परिपथ का वैद्युतिक विलोम है जिसमें विद्युत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच प्रतिबाधा का मान अनन्त होता है। .

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शनि (ग्रह)

शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है। शनि का आंतरिक ढांचा संभवतया, लोहा, निकल और चट्टानों (सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक) के एक कोर से बना है, जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है, तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल के कारण एक हल्का पीला रंग दर्शाता है। माना गया है धातु हाइड्रोजन परत के भीतर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है, जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है और बृहस्पति की एक-बीसवीं शक्ति के करीब है। बाह्य वायुमंडल आम तौर पर नीरस और स्पष्टता में कमी है, हालांकि दिर्घायु आकृतियां दिखाई दे सकती है। शनि पर हवा की गति, 1800 किमी/घंटा (1100 मील) तक पहुंच सकती है, जो बृहस्पति पर की तुलना में तेज, पर उतनी तेज नहीं जितनी वह नेप्च्यून पर है। शनि की एक विशिष्ट वलय प्रणाली है जो नौ सतत मुख्य छल्लों और तीन असतत चाप से मिलकर बनी हैं, ज्यादातर चट्टानी मलबे व धूल की छोटी राशि के साथ बर्फ के कणों की बनी हुई है। बासठ चन्द्रमा ग्रह की परिक्रमा करते है; तिरेपन आधिकारिक तौर पर नामित हैं। इनमें छल्लों के भीतर के सैकड़ों " छोटे चंद्रमा" शामिल नहीं है। टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध ग्रह से बड़ा है और एक बड़े वायुमंडल को संजोकर रखने वाला सौरमंडल का एकमात्र चंद्रमा है। .

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शास्त्रीय विद्युत्चुम्बकत्व

शास्त्रीय विद्युत्चुम्बकत्व (Classical electromagnetism) सैद्धान्तिक भौतिकी की वह शाखा है जिसमें न्यूटनवादी भौतिकी के आधार पर विद्युत आवेशों (चार्ज) और विद्युत धाराओं (करंट) के एक-दूसरे के ऊपर हुए प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। यह आधुनिक विद्युत्चुम्बकत्व से ज़रा भिन्न है क्योंकि शास्त्रीय विद्युत्चुम्बकत्व में केवल क्वान्टम भौतिकी को पूरी तरह से नज़र-अंदाज़ किया जाता है। क्वान्टम प्रभावों को उपेक्षित करने के कारण शास्त्रीय विद्युत्चुम्बकत्व केवल बड़ी वस्तुओं और विद्युत धाराओं को ही समझने में सक्षम है। ऐसे बड़े पैमानों पर शास्त्रीय विद्युत्चुम्बकत्व से बहुत लाभ उठाया जा सकता है। .

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शंट (विद्युत)

५० अम्पीयर वाला एक शन्ट शन्ट (shunt), विद्युत परिपथ मे लगायी जाने वाली एक युक्ति है जिसके मुख्यतः दो उपयोग हैं- (१) परिपथ की किसी शाखा से होकर जाने वाली धारा को दूसरे मार्ग से भेजना, (२) परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली धारा का मापन करना। किसी गैल्वानोमीटर की क्वायल के समान्तर शन्ट लगाकर उसे अमीटर में बदला जाता है। यदि किसी अमीटर का परास (रेंज) बढ़ाना हो तो उसके क्वायल के समान्तर उचित प्रतिरोध वाला एक शन्ट जोड़ा जाता है। परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली धारा मापने के लिए उस शाखा के श्रेणीक्रम (सीरीज) में एक कम प्रतिरोध वाला शन्ट जोड़ा जाता है। धारा बहने से इस प्रतिरोध के दोनों सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर इस शाखा में बहने वाली विद्युत धारा के समानुपाती होता है। .

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शक्ति प्रवाह का अध्ययन

शक्ति इंजीनियरी के सन्दर्भ में, किसी शक्ति प्रणाली में विद्युत शक्ति के प्रवाह तथा अन्य प्राचलों (जैसे वोल्टता) की गणना करना शक्ति-प्रवाह अध्ययन (power-flow study) या उद्भार प्रवाह अध्ययन (load-flow study) कहलाता है। यह अध्ययन, शक्ति प्रणाली को स्टीडी-स्टेट में मानते हुए, किसी दिये हुए लोड के लिये, की जाती है। इसके द्वारा प्रणाली के विभिन्न बिन्दुओं (नोडों) पर वोल्टता, वोल्टता कोण, वास्तविक शक्ति तथा आभासी शक्ति आदि की गणना की जाती है। शक्ति-प्रवाह अध्ययन का उद्देश्य यह है कि इसके माध्यम से पहले से ही पता रहता है कि किस स्थिति में क्या होगा। उदाहरण के लिये, हम पहले से ही पता कर सकते हैं कि कोई ट्रान्समिशन लाइन रखरखाव के लिये काट दी जाय (बन्द कर दी जाय) तो क्या शेष लाइनों के माध्यम से, लाइनों की क्षमता के अन्दर रहते हुए भी, लोडों को आवश्यक शक्ति की पूर्ति की जा सकेगी या नहीं। शक्ति-प्रवाह अध्ययन की दृष्टि से बसें (buses) तीन प्रकार की मानी जातीं हैं-.

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समिश्र संख्या

किसी समिश्र संख्या का अर्गेन्ड आरेख पर प्रदर्शन गणित में समिश्र संख्याएँ (complex number) वास्तविक संख्याओं का विस्तार है। किसी वास्तविक संख्या में एक काल्पनिक भाग जोड़ देने से समिश्र संख्या बनती है। समिश्र संख्या के काल्पनिक भाग के साथ i जुड़ा होता है जो निम्नलिखित सम्बन्ध को संतुष्ट करती है: किसी भी समिश्र संख्या को a + bi, के रूप में व्यक्त किया जा सकता है जिसमें a और b दोनो ही वास्तविक संख्याएं हैं। a + bi में a को वास्तविक भाग तथा b को काल्पनिक भाग कहते हैं। उदाहरण: 3 + 4i एक समिश्र संख्या है। .

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साइमन्स (इकाई)

साइमन्स (चिन्ह: S) विद्युत चालकता की SI व्युत्पन्न इकाई है। यह ओह्म का प्रतिलोम है। इसका नाम जर्मन वैज्ञानिक खोजक और उद्योगपति अर्न्स्ट वर्नर वान साइमन्स के नाम पर है। पूर्व में इसे ओह्म का उलटा यानि म्हो कहा जाता था। 1971 में 14वें CIPM में इसका SI व्युत्पन्न इकाई के रूप में प्रयोग अनुमोदित हुआ था। .

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संगणन हार्डवेयर का इतिहास

सूचना संसाधन (ब्लॉक आरेख) के लिए कंप्यूटिंग हार्डवेयर एक उचित स्थान है संगणन हार्डवेयर का इतिहास कंप्यूटर हार्डवेयर को तेज, किफायती और अधिक डेटा भंडारण में सक्षम बनाने के लिए चल रहे प्रयासों का एक रिकॉर्ड है। संगणन हार्डवेयर का विकास उन मशीनों से हुआ है जिसमें हर गणितीय ऑपरेशन के निष्पादन के लिए, पंच्ड कार्ड मशीनों के लिए और उसके बाद स्टोर्ड प्रोग्राम कम्प्यूटरों के लिए अलग मैनुअल कार्रवाई की आवश्यकता होती है। स्टोर्ड प्रोग्राम कंप्यूटरों के इतिहास का संबंध कंप्यूटर आर्किटेक्चर यानी इनपुट और आउटपुट को निष्पादित करने, डेटा संग्रह के लिए और एक एकीकृत यंत्रावली के रूप में यूनिट की व्यवस्था से होता है (दाएं ब्लॉक आरेख को देखें).

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हाल प्रभाव

जब किसी चालक में किसी दिशा में धारा प्रवाहित करते हुए धारा के लम्बवत दिशा में चुम्बकीय क्षेत्र लगाते हैं एक विद्युतवाहक बल उत्पन्न होता है जो धारा एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों के लम्बवत होता है। इस प्रभाव को हाल प्रभाव (Hall effect) कहते हैं तथा उत्पन्न विभव को "हाल वोल्टेज" कहा जाता है। इस प्रभाव की खोज एड्विन हाल ने सन् 1879 में की थी। इस प्रभाव के कई उपयोग हैं जैसे- हाल सेंसर इसी प्रभाव पर आधारित है। .

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हेडफ़ोन

सेन्नहेइसेर HD555 हेडफ़ोन, का इस्तेमाल ऑडियो प्रोडक्शन माहौल में होता है. हेडफ़ोन छोटे लाउडस्पीकरों की एक जोड़ी है, या आमतौर पर कम से कम एक स्पीकर होता है, इन्हें उपयोगकर्ता के कान के पास लगाया जाता है और यह ऑडियो ऐम्प्लीफायर, रेडियो या सीडी प्लेयर जैसे एकल स्रोत को इससे जोड़ने का साधन है.

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हेनरी (इकाई)

एक प्रेरण कुंडली. हेनरी (चिन्ह: H) प्रेरकत्व की SI इकाई है.

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जल का विद्युत अपघटन

जब जल से होकर विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो जल के अणुओं का विघटन हो जाता है और हाइड्रोजन एवं आक्सीजन प्राप्त होतीं हैं। इसे ही जल का विद्युत अपघटन (Electrolysis of water) कहते हैं। चूंकि शुद्ध जल विद्युत का कुचालक है इसलिये आसानी से कम वोल्टता लगाकर ही धारा प्रवाहित करने के लिये शुद्ध जल में बहुत कम मात्रा में अम्ल मिला दिया जाता है। thumb .

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जूल (इकाई)

जूल (संकेताक्षर: J), अंतर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली के अंतर्गत ऊर्जा या कार्य की एक व्युत्पन्न इकाई है। एक जूल, एक न्यूटन बल को बल की दिशा में, एक मीटर दूरी तक लगाने में, या फिर एक एम्पियर की विद्युत धारा को एक ओम के प्रतिरोध से एक सेकण्ड तक गुजारने में व्यय हुई ऊर्जा या किये गये कार्य के बराबर होता है। इस इकाई को अंग्रेज भौतिक विज्ञानी जेम्स प्रेस्कॉट जूल के नाम पर नामित किया गया है। अन्य एस आई इकाइयों के संदर्भ में: जहां N न्यूटन, m मीटर, kg किलोग्राम, s सेकण्ड, Pa पास्कल और W वाट है। .

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जेम्स प्रेस्कॉट जूल

जूल का ऊष्मा-उपकरण जेम्स प्रेस्कॉट जूल (अंग्रेजी: James Prescott Joule, जन्म: 24 दिसम्बर 1818 - मृत्यु: 11 अक्टूबर 1889) सैल्फोर्ड, लंकाशायर में जन्मे एक अंग्रेज भौतिकविज्ञानी और शराब निर्माता थे। .

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जॉर्ज साइमन ओम

जॉर्ज साइमन ओम जॉर्ज साइमन ओम (16 मार्च 1789 - 6 जुलाई 1854) प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री थे। उन्होने ही विद्युत चालकों के एक सामन्य गुण (प्रतिरोध) की खोज की और 'ओम का नियम' प्रतिपादित किया। .

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विद्युत

वायुमण्डलीय विद्युत विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत (Electricity) कहा जाता है। विद्युत से अनेक जानी-मानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित, स्थैतिक विद्युत, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण, तथा विद्युत धारा। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो (जैसे रेडियो तरंग) का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है? विद्युत के साथ चुम्बकत्व जुड़ी हुई घटना है। विद्युत आवेश वैद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत आवेशों पर बल लगता है। समस्त विद्युत का आधार इलेक्ट्रॉन हैं। इलेक्ट्रानों के हस्तानान्तरण के कारण ही कोई वस्तु आवेशित होती है। आवेश की गति ही विद्युत धारा है। विद्युत के अनेक प्रभाव हैं जैसे चुम्बकीय क्षेत्र, ऊष्मा, रासायनिक प्रभाव आदि। जब विद्युत और चुम्बकत्व का एक साथ अध्ययन किया जाता है तो इसे विद्युत चुम्बकत्व कहते हैं। विद्युत को अनेकों प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है किन्तु सरल शब्दों में कहा जाये तो विद्युत आवेश की उपस्थिति तथा बहाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न उस सामान्य अवस्था को विद्युत कहते हैं जिसमें अनेकों कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होती है। विद्युत चल अथवा अचल इलेक्ट्रान या प्रोटान से सम्बद्ध एक भौतिक घटना है। किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न उर्जा को विद्युत कहते हैं। .

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विद्युत चालन

किसी संचरण माध्यम (transmission medium) से होकर आवेशित कणों के प्रवाह को विद्युत चालन कहते हैं। आवेशों के प्रवाह से विद्युत धारा बनती है। आवेशों का प्रवाह दो कारणों से सम्भव है-.

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विद्युत चालक

विद्युत चालक (electrical conductors) वे पदार्थ है जिनसे होकर विद्युत धारा सरलता से प्रवाहित होती हैं। ताँबा, अलुमिनियम, जस्ता, सोना, चाँदी आदि विद्युत चालक हैं। .

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विद्युत चालकता

पदार्थों द्वारा विद्युत धारा संचालित करने की क्षमता के माप को विद्युत चालकता (Electrical conductivity) या विशिष्ट चालकता (specific conductance) कहते हैं। जब किसी पदार्थ से बने किसी 'चालक' के दो सिरों के बीच विभवान्तर आरोपित किया जाता है तो इसमें विद्यमान घूम सकने योग्य आवेश प्रवाहित होने लगते हैं जिसे विद्युत धारा कहते हैं। आंकिक रूप से धारा घनत्व \mathbf तथा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता \mathbf के अनुपात को चालकता (σ) कहते हैं। अर्थात - विद्युत चालकता के व्युत्क्रम (reciprocal) राशि को विद्युत प्रतिरोधकता (ρ) कहते हैं जिसकी SI इकाई सिमेन्स प्रति मीटर (S·m-1) होती है। विद्युत चालकता के आधार पर पदार्थों को कुचालक, अर्धचालक, सुचालक तथा अतिचालक आदि कई वर्गों में बांटा जाता है जिनका अपना-अपना महत्व एवं उपयोग होता है चालकता ___(Conductance) जिस प्रकार प्रतिरोध, विधुत धारा प्रवाह का विरोध करता है उसी प्रकार चालकता प्रतिरोध के प्रभाव के विपरीत है, परंतु चालकता विधुत धारा प्रवाह को सुगमता प्रदान करती है। .

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विद्युत चुम्बक

विद्युत धारा के प्रभाव से जिस लोहे में चुंबकत्व उत्पन्न होता है, उसे विद्युत चुंबक (Electromagnet) कहते हैं। इसके लिये लोहे पर तार लपेटकर उस तार से विद्युत् धारा बहाकर लोहे को चुंबकित किया जा सकता है। (लोहे पर चुंबक रगड़कर लोहे को चुंबकीय किया जा सकता है जो विद्युत चुम्बकत्व नहीं है) .

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विद्युत धारा

आवेशों के प्रवाह की दिशा से धारा की दिशा निर्धारित होती है। विद्युत आवेश के गति या प्रवाह में होने पर उसे विद्युत धारा (इलेक्ट्रिक करेण्ट) कहते हैं। इसकी SI इकाई एम्पीयर है। एक कूलांम प्रति सेकेण्ड की दर से प्रवाहित विद्युत आवेश को एक एम्पीयर धारा कहेंगे। .

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विद्युत प्रतिरोध

आदर्श प्रतिरोधक का V-I वैशिष्ट्य। जिन प्रतिरोधकों का V-I वैशिष्ट्य रैखिक नहीं होता, उन्हें अनओमिक प्रतिरोधक (नॉन-ओमिक रेजिस्टर) कहते हैं। किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उससे प्रवाहित विद्युत धारा के अनुपात को उसका विद्युत प्रतिरोध (electrical resistannce) कहते हैं।इसे ओह्म में मापा जाता है। इसकी प्रतिलोमीय मात्रा है विद्युत चालकता, जिसकी इकाई है साइमन्स। जहां बहुत सारी वस्तुओं में, प्रतिरोध विद्युत धारा या विभवांतर पर निर्भर नहीं होता, यानी उनका प्रतिरोध स्थिर रहता है। right समान धारा घनत्व मानते हुए, किसी वस्तु का विद्युत प्रतिरोध, उसकी भौतिक ज्यामिति (लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) और वस्तु जिस पदार्थ से बना है उसकी प्रतिरोधकता का फलन है। जहाँ इसकी खोज जार्ज ओह्म ने सन 1820 ई. में की।, विद्युत प्रतिरोध यांत्रिक घर्षण के कुछ कुछ समतुल्य है। इसकी SI इकाई है ओह्म (चिन्ह Ω).

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विद्युत प्रदायी

व्यक्तिगत कम्प्यूटर (पीसी) की पॉवर सप्लाई विद्युत शक्ति के किसी स्रोत को सामान्य रूप से विद्युत प्रदायी या 'विद्युत प्रदायक' या 'पॉवर सप्लाई' कहा जाता है। यह शब्द अधिकांशतः वैद्युत शक्ति आपूर्ति के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त होता है; यांत्रिक शक्ति के सन्दर्भ में यह बहुत कम प्रयुक्त होता है; अन्य उर्जा के सन्दर्भ में लगभग इसका कभी भी उपयोग नहीं होता।.

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विद्युत स्पर्शाघात

विद्युत दुर्घटना होने पर सहायता तथा प्राथमिक उपचार विद्युत के किसी स्रोत से सम्पर्क में आने के कारण त्वचा, मांसपेशियों अथवा बाल से होकर पर्याप्त विद्युत धारा प्रवाहित हो जाती है तो इसे विद्युत स्पर्शाघात (Electric shock) कहते हैं। यह जानबूझकर किया गया हो सकता है या दुर्घटनावश हो सकता है। किन्तु प्रायः 'स्पर्शाघात' से आशय शरीर के किसी अंग से अवांछित धारा-प्रवाह से ही लिया जाता है। विद्युत स्पर्शाघात से त्वचा जल सकती है, आदमी बेहोश हो सकता है, या मृत्यु हो सकती है। .

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विद्युत घंटी

विद्युत घंटी विद्युत घंटी ऐसे काम करती है। विद्युत घंटी (electric bell) धातु की बनी घंटी होती है जिसपर विद्युतचुम्बक की क्रिया द्वारा बार-बार एक 'हथौड़ा' प्रहार करता है। इसकी कुण्डली (क्वायल) में जब धारा प्रवाहित होती है तो यह एक ध्वनि उत्पन्न करती है। घरों की घंटीयाँ, अग्नि चेतावनी देने वाली घंटियाँ, चोर-चेतावनी की घंटियाँ, विद्यालयों की घंटी आदि में विद्युत घंटी का प्रयोग किया जाता रहा है किन्तु अब इसके स्थान पर एलेक्ट्रानिक बजर या बीपर भी उपयोग किये जाने लगे हैं। .

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विद्युत आवेश

विद्युत आवेश कुछ उपपरमाणवीय कणों में एक मूल गुण है जो विद्युतचुम्बकत्व का महत्व है। आवेशित पदार्थ को विद्युत क्षेत्र का असर पड़ता है और वह ख़ुद एक विद्युत क्षेत्र का स्रोत हो सकता है। आवेश पदार्थ का एक गुण है! पदार्थो को आपस में रगड़ दिया जाये तो उनमें परस्पर इलेक्ट्रोनों के आदान प्रदान के फलस्वरूप आकर्षण का गुण आ जाता है। .

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विद्युत उपकरण

एक वोल्टमापी, जिसके सभी अवयव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। किसी पॉवर सप्लाई में लगे हुए अमीटर और वोल्टमीटर वर्तमान समय में अधिकांश उपकरण डिजिटल हो गये हैं। एक '''डिजिटल बहुमापी''' (मल्टीमीटर) विद्युत का उपयोग बहुत समय से होता आ रहा है और निरंतर अन्वेषण कार्य के फलस्वरूप आज के युग में अनेक प्रकार के विद्युत् उपकरणों (Electrical Instruments) का प्रयोग होने लगा है। .

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विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास

एफिल टॉवर पर बिजली (१९०२) विद्युतचुम्बकीय सिद्धान्त का इतिहास उसी समय से शुरू माना जा सकता है जबसे प्राचीन काल में लोगों ने वायुमण्डलीय विद्युत (विशेषतः तड़ित) को समझना शुरू किया। .

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विद्युतरोधी

११० किलोवोल्ट का एक सिरैमिक कुचालक विद्युतरोधी (Insulator) वे पदार्थ होते हैं जो तुलनात्मक रूप से विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करते हैं या जिनमें से होकर समान स्थितियों में बहुत कम धारा प्रवाहित होती है। लकड़ी (सूखी हुई), बैकेलाइट, एस्बेस्टस, चीनी मिट्टी, कागज, पीवीसी आदि कुचालकों के कुछ उदाहरण हैं। वैद्युत प्रौद्योगिकी में जिस तरह सुचालकों, अर्धचालकों एवं अतिचालकों के विविध उपयोग हैं, उसी प्रकार कुचालकों के भी विविध प्रकार से उपयोग किये जाते हैं। ये सुचालक तारों के ऊपर चढ़ाये जाते हैं; विद्युत मशीनों के वाइंडिंग में तारों की परतों के बीच उपयोग किये जाते हैं; उच्च वोल्टता की लाइनों को खम्भों या तावरों से आश्रय देने (लटकाने/झुलाने) आदि विविध कामों में प्रयुक्त होते हैं। .

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विद्युतवाहक बल

भौतिकी में मोटे तौर पर विद्युतवाहक बल (electromotive force, या emf) वह कारण है जो विद्युत धारा (या एलेक्ट्रॉन/ आयन) को परिपथ में प्रवाहित करता है। किन्तु विद्युतवाहक बल की औपचारिक परिभाषा इस प्रकार है: वोल्टीय सेल, विद्युतउष्मीय युक्तियाँ, सौर सेल, विद्युत जनित्र, वान डी ग्राफ आदि कुछ विद्युतवाहक बल उत्पन्न करने वाले सामान हैं। .

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विद्युत्-तापन

३० किलोवाट का विद्युत-तापक जिस किसी प्रक्रिया में विद्युत ऊर्जा, ऊष्मा में बदली जाती है उसे विद्युत्-तापन (Electric heating) कहते हैं। कमरे का तापन, खाना बनाना, पानी गरम करना तथा अनेकों औद्योगिक प्रक्रम आदि कार्य विद्युत तापन द्वारा किये जा सकते हैं। विद्युत तापक (इलेक्ट्रिक हीटर) वह युक्ति है जिससे विद्युत ऊर्जा को ऊष्मा में बदला जाता है। सभी प्रकार के वैद्युत तापकों में ऊष्मा पैदा करने का कार्य विद्युत प्रतिरोध द्वारा किया जाता है जो जूल तापन द्वारा ऊष्मा प्रदान करता है। किसी प्रतिरोध R से होकर I धारा प्रवाहित होती है तो उसमें प्रति सेकेण्ड I2R जूल ऊष्मा उत्पन्न होती है। आधुनिक विद्युत तापन की अधिकांश युक्तियों में तापक के रूप में नाइक्रोम तार का उपयोग किया जाता है। श्रेणी:तापन.

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विद्युत्-लेपन

विद्युत धारा द्वारा, धातुओं पर लेपन करने की विधि को विद्युतलेपन (Electroplating) कहते हैं। बहुधा लोहे की वस्तुओं को संक्षरण से बचाने तथा चमक के लिए, उन पर ताँबे, निकल अथवा क्रोमियम का लेपन किया जाता है। आधार धातु पर लेपन करने के बाद, लेपन की जानेवाली धातु के बाहरी गुण दिखाई देते हैं। इससे वस्तु का बाहरी रूप रंग निखर जाता है तथा साथ ही वस्तु संक्षारण से भी बचती है। विद्युत्लेपन द्वारा लेपित की जानेवाली धातु, आधार धातु से अच्छी प्रकार संबद्ध हो जाती है और लेपन प्राय: स्थायी रूप में किया जा सकता है। .

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विद्युत्-आक्षेपी चिकित्सा

विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा के लिये बनी एक मशीन ९१९६) विद्युत्-आक्षेपी चिकित्सा (Electroconvulsive therapy / ECT) मनश्चिकित्सा की एक मानक विधि है। सामान्यतः इसे 'आघात चिकित्सा' या आम भाषा में 'बिजली के झटके' कहा जाता है। यह एकध्रुवीय अवसाद (Major depressive disorder) का एक जैविक उपचार है जिसमें रोगी के सिर से इलेक्ट्रोड संलग्न कर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित करके मष्तिष्क तक पहुँचाई जाती है। यह तीव्र अवसाद के रोगियों पर प्रभावी होती है जिन पर औषधि-चिकित्सा असफल हो जाती है। बिजली के झटके या ईचीटी के के संबन्ध में साधारण लोगों मे एक डर रहता है किन्तु ईसीटी एक बहुत ही सुरक्षित एवं असरदार इलाज है। कई मरीज जो अवसाद से ग्रस्त हों, इस कदर की वो आत्महत्या की बात सोंचे या करे, उनमें भी ईसीटी बहुत जल्द असर दिखाती है। इसे इतना सुरक्षित माना गया है कि गर्भवती महिलाएंँ जब मानसिक रूप से बीमार हो जाती हैं, ईसीटी देना दवाइयों से ज्यादा सुरक्षित माना गया है। शोध किये गये हैं जिसमें ईसीटी को पूरी तरह से सुरक्षित माना गया है। .

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विमीय विश्लेषण

विमीय विश्लेषण (Dimensional analysis) एक संकाल्पनिक औजार (कांसेप्चुअल टूल) है जो भौतिकी, रसायन, प्रौद्योगिकी, गणित एवं सांख्यिकी में प्रयुक्त होता है। यह वहाँ उपयोगी होता है जहाँ कई तरह की भौतिक राशियाँ किसी घटना के परिणाम के लिये जिम्मेदार हों। भौतिकविद अक्सर इसका उपयोग किसी समीकरण आदि कि वैधता (plausibility) की जाँच के लिये करते रहते हैं। दूसरी तरफ इसका उपयोग जटिल भौतिक स्थितियों से सम्बंधित चरों को आपस में समीकरण द्वारा जोड़ने के लिये किया जाता है। विमीय विश्लेषण की विधि से प्राप्त इन सम्भावित समीकरणों को प्रयोग द्वारा जाँचा जाता है, या अन्य सिद्धान्तों के प्रकाश में देखा जाता है। बकिंघम का पाई प्रमेय (Buckingham π theorem), विमीय विश्लेषण का आधार है। .

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विस्थापन धारा

संधारित्र में धारा का सातत्य: संधारित्र के बाहर वास्तविक धारा बहती है और उसके प्लेटों के बीच विस्थापन धारा विद्युतचुम्बकत्व में विद्युत विस्थापन क्षेत्र (D) के परिवर्तन की दर को विस्थापन धारा (displacement current) के रूप में परिभाषित किया गया है। विस्थापन धारा, मैक्सवेल के समीकरणों में आती है। विस्थापन धारा और विद्युत धारा घनत्व का मात्रक समान है। जिस प्रकार विद्युत धारा के संगत एक चुम्बकीय क्षेत्र मौजूद होता है, उसी प्रकार विस्थापन धारा के संगत भी एक चुम्बकीय क्षेत्र का अस्तित्व होता है। किन्तु विस्थापन धारा, गतिमान आवेशों की धारा नहीं है बल्कि समय के साथ परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र के कारण उत्पन्न होती है। श्रेणी:विद्युत चुम्बकत्व.

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वैद्युत प्रतिघात

विद्युत प्रणालियों तथा इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों में, किसी अवयव द्वारा धारा अथवा वोल्टता के परिवर्तन के विरोध को उस अवयव का प्रतिघात (रिएक्टैंस) कहते हैं। चुम्बकीय क्षेत्र, धारा के परिवर्तन का विरोध करता है जबकि विद्युत क्षेत्र, वोल्टता के परिवर्तन का। वैद्युत प्रतिघात की संकल्पना कई अर्थों में वैद्युत प्रतिरोध के समान है, किन्तु कुछ अर्थों में भिन्न भी है। .

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वैद्युत बैलास्ट

बैलास्ट के रूप में प्रेरकत्व (चोक) का पारम्परिक उपयोग A -- ट्यूब, B -- २३० वोल्ट ए सी, C -- स्टार्टर, E -- संधारित्र, F -- फिलामेण्ट, G -- चोक (बैलास्ट) सी एफ एल का इलेक्त्रानिक बैलास्ट ट्यूबलाइट के बैलास्ट का परिपथ - यह उच्च आवृत्ति की ए सी उत्पन्न करने वाला इन्वर्टर है। किसी वैद्युत परिपथ में धारा को एक सीमा में बनाये रखने के लिये जो युक्ति प्रयोग की जाती है उसे वैद्युत बैलास्ट (electrical ballast) कहते हैं। ट्यूब लाइट को चालू करने तथा उसकी धारा को असीमित होने से रोकने के लिये उसके श्रेणीक्रम में एक प्रेरकत्व लगाया जाने वाला 'चोक' इसका प्रमुख उदाहरण है। इसको न लगाया जाय तो ट्यूब से बहुत अधिक धारा बहेगी जिसके अनेकों हानिकारक प्रभाव होंगे। ध्यान रखने योग्य बात है कि ट्यूब का एक विशेष गुण है कि उसमें धारा बढ़ने पर उसका वोल्टेज कम होता है अर्थात यह ऋणात्मक प्रतिरोध प्रदर्शित करता है। वैद्युत बैलास्ट तरह-तरह की डिजाइन के होते हैं। उदाहरण के लिये एक श्रेणीक्रम में लगाया गया प्रतिरोध, प्रेरकत्व या संधारित्र एक सरल बैलास्ट के रूप में काम कर सकता है। दूसरी तरफ जटिल डिजाइन वाले एलेक्ट्रानिक बैलास्ट हैं जिनमें जटिल पॉवर एलेक्त्रानिक्स लगी होती है। श्रेणी:वैद्युत युक्ति.

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वैज्ञानिक यन्त्र

ऑल्टीमीटर - इससे विमानोँ की ऊँचाई नापी जाती हैं। अमीटर - इससे विद्युत धारा को नापा जाता हैं। एनिमोमीटर - इससे वायु की शक्ति तथा गति को नापा जाता हैं। आडियोमीटर - यह मनुष्य द्वारा ध्वनि के सुनने की क्षमता को मापने वाला यंत्र हैं। ओडियोफोन - इसे लोग सुनने में सहायता के लिए कान में लगाते हैं। बैरोग्राफ - यह वायुमण्डल के दाब में होने वाले परिवर्तन को नापता है और स्वतः ही इसका ग्राफ बना देता हैं। बाइनोकुलर्स - इससे दूर स्थित वस्तुयें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। कैलीपर्स - इससे गोल वस्तुओँ के भीतरी तथा बाहरी व्यास नापा जा सकता है। इससे मोटाई भी नापी जा सकती हैं। कैलोरीमीटर - इससे ऊष्मा की मात्रा मापी जाती हैं। कारडियोग्राम - इससे हृदय रोग से ग्रसित व्यक्ति की हृदय गति की जाँच की जाती हैं। सिनेमोटोग्राफ - इस यंत्र के द्वारा छोटी-छोटी फिल्म के चित्रोँ को बड़ा करके दिखाया जाता हैं। इसमें अनेक लैंसोँ को इस प्रकार लगाया जाता है कि चित्र गतिमय दिखाई देते हैं। दिक्सूचक सुई (कम्पास नीडिल) - इसके द्वारा किसी स्थान की दिशा ज्ञात की जाती हैं। एपीडायस्कोप - इस यंत्र के द्वारा अपारदर्शक चित्र पर्दे पर दिखाये जा सकते हैं। यूडिओमीटर - इसके द्वारा गैसोँ में रासायनिक क्रिया के कारण होने वाले आयतन के परिवर्तनोँ को नापा जाता हैं। फेदोमीटर - इससे समुद्र की गहराई नापी जाती हैं। ग्रामोफोन - इस उपकरण के द्वारा रिकॉर्ड पर अंकित ध्वनि तंरगोँ को पुनः उत्पादित किया जा सकता है और सुना जा सकता हैं। ग्रेवोमीटर - इससे पानी की सतह पर तेल की उपस्थिति ज्ञात की जाती हैं। आर्द्रतामापी (हाइग्रोमीटर) - इससे वायुमण्डल में व्याप्त आर्द्रता नापी जाती हैं। हाइड्रोफोन - इससे पानी में ध्वनि को अंकित किया जाता हैं। लैक्टोमीटर - इससे दूध की शुद्धता ज्ञात की जाती हैं। मैनोमीटर - इससे गैसोँ का दाब ज्ञात करते हैं। सूक्षमदर्शी (माइक्रोस्कोप) - बहुत ही सूक्ष्म वस्तुओँ को इस उपकरण द्वारा आवर्धन करके (Magnify) देखा जाता हैं। माइक्रोटोम - इसे किसी वस्तु को बहुत पतले-पतले भागोँ में काटने के काम में लाया जाता हैं। ओडोमीटर - इससे मोटर गाड़ी की गति को ज्ञात किया जाता हैं। पैराशूट - यह छाते के समान उपकरण है जिससे युद्ध या आपात स्थिति के समय वायुयान से नीचे कूदा जा सकता हैं। परिदर्शी (पेरिस्कोप) - इसके द्वारा जब पनडुब्बी पानी के अंदर होती है तो पानी की सतह का अवलोकन कर सकती है और इसमें बैठे लोग बिना किसी के जाने हुए बिना किसी बाधा के बाहरी हलचल ज्ञात कर सकते हैं। फोनोग्राफ - इससे ध्वनि की तरगोँ को पुनः ध्वनि में परिवर्तित किया जाता हैं। फोटो कैमरा - इससे फोटोग्राफ लेकर कैमीकल्स की सहायता से इसे डेवलप किया जाता है ताकि सही चित्र बनकर निकलें। पिपेट - इसकी सहायता से द्रव की मापी गई मात्रा दूसरे बर्तन में डाली जा सकती हैं। विभवमापी (पोटेन्शियोमीटर) - इससे किसी सेल के विद्युत वाहक बल तथा तार के दो सिरोँ के विभवान्तर की नाप होती हैं। पायरोमीटर - उच्च तापोँ को मापने का उपकरण हैं। रेडियेटर - यह कारोँ तथा गाड़ियोँ के इंजनो को ठण्डा करने वाला उपकरण हैं। वर्षामापी (रेन गेज) - इससे किसी विशेष स्थान पर हुई वर्षा की मात्रा नापी जाती हैं। रेडियोमीटर - इस यंत्र द्वारा विकीर्ण ऊर्जा की तीव्रता को नापा जाता हैं। शर्करामापी - यह यंत्र किसी घोल में शक्कर की मात्रा नापने के काम आता हैं। भूकम्पमापी (सिस्मोग्राफ) - इस यंत्र से पृथ्वी सतह पर आने वाले भूकम्प के झटकोँ का स्वतः ही ग्राफ चित्रित होता हैं। स्पेक्ट्रोमीटर - इस यंत्र के माध्यम से स्पेक्ट्रम की उत्पत्ति की जाती है जिससे कि विभिन्न किरणोँ के तरंग दैर्ध्य को नापा जा सकें। वेगमापी (स्पीडोमीटर) - इससे किसी मोटर गाड़ी की चालन गति ज्ञात की जाती हैं। स्फैरोमीटर - इससे धरातल की वक्रता नापी जाती हैं। स्फिग्मोमेनोमीटर - इससे धमनियोँ में बहने वाले रक्त का दाब नापा जाता हैं। स्फिग्मोफोन - इससे नाड़ी धड़कन को तेज ध्वनि में सुना जा सकता हैं। स्टीरियोस्कोप - यह एक प्रकार का उत्तम वाइनोकुलर है। इससे किसी द्विविमीय चित्र को भली-भांति देखा जा सकता हैं। स्टेथिस्कोप - इससे हृदय तथा फेफड़ोँ की आवाज को सुना जा सकता है और रोग के लक्षण ज्ञात किये जा सकते हैं। स्टोप वॉच - इससे किसी कार्य या क्रिया की समय अवधि (यदि वह 30 मिनट से अधिक नहीं है) सही रूप में नापी जा सकती हैं। स्ट्रोवोस्कोप - इससे उन वस्तुओँ को जो तेज गति से घूम रही है रूकी हुई अवस्था में उनकी जाँच की जाती हैं। टैकोमीटर - इससे वायुयानोँ तथा मोटर वोटोँ की गति नापी जाती हैं। टेलीफोन - इसके द्वारा दो व्यक्ति, जो एक दूसरे से दूर होते हैं, आपस में बातचीत कर सकते हैं। दूरदर्शी (टेलिस्कोप) - इसकी सहायता से दूर स्थित वस्तुयें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। टेलस्टार - 10 जुलाई 1962 को कैप कैनडी से छोड़ा गया यह अंतरिक्ष का संचार उपग्रह है इसके द्वारा एक देश के निवासी दूसरे देश के निवासियोँ से टेलिफोन द्वारा बातचीत कर सकते हैं इसके अतिरिक्त टेलिविजन संचार भी विभिन्न देशोँ में इसके द्वारा संभव हो सका हैं। थ्योडोलाइट - यह सर्वेक्षण करने का यंत्र है जो क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर कोणोँ को नापकर दूरी को ज्ञात कराता हैं। तापयुग्म (थर्मोकपल) - जब भिन्न-भिन्न धातुओँ के तारोँ को सिरोँ पर जोड़ा जाय और उनमें से एक ओर के सिरोँ को गर्म किया जाये तथा दूसरी ओर के सिरोँ को एक कम स्थिर ताप पर रखा जाये तो परिपथ में एक विधुत धारा बहने लगती हैं इस प्रकार भिन्न धातुओँ के जोड़े को थर्मोकपल कहते हैं। थर्मोस्टेट - इस यंत्र के द्वारा उष्मा अपूर्ति पर नियंन्नण करके किसी वस्तु या पदार्थ का तापमान किसी बिन्दु पर नियत कर दिया जाता हैं। विस्कोमीटर - इस यंत्र से द्रवोँ की श्यानता नापी जाती हैं। लाइफ बोट तथा लाइफ वेस्ट - जब कोई जहाज डूबता है तो इनको उपयोग में लाकर यात्रियोँ को बचाया जाता हैं। .

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वैज्ञानिक उपकरण

वैज्ञानिक उपकरण से हमारे काम आसानी से हो जाते हैं। वैज्ञानिक उपकरण किसी विज्ञान के कार्य को करने में सुविधा या सरलता या आसानी प्रदान करते हैं। यह उन वैज्ञानिक कार्यों को भी सहज से कर सकते हैं जो उनके बिना सम्भव ही नहीं होता। .

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वेल्डन विद्युत प्रदाय

धातुओं की आर्क वेल्डिंग करने के लिए रेक्टिफायर आधारित वेल्डन विद्युत प्रदाय वेल्डन विद्युत प्रदाय या 'वेल्डिंग पॉवर स्प्लाई' वह युक्ति है जो वेल्डिंग करने के लिए विद्युत धारा प्रदान करती है। वेल्डन के लिए प्रायः उच्च धारा (80 अम्पीयर से अधिक) आवश्यक होती है। स्पॉट वेल्डिंग में 12,000 एम्पीयर तक धारा आवश्यक हो सकती है। कहीं-कहीं कम धारा से भी वेल्डिंग की जाती है। जैसे, दो रेजर ब्लेडों को परस्पर वेल्ड करने के लिए ५ अम्पीयर वाली टंगस्टन आर्क वेल्डिंग। वेल्डन शक्ति प्रदाय बहुत सरल हो सकती है (जैसे, कार बैटरी द्वारा वेल्डन) या बहुत जटिल हो सकती है (जैसे, IGBT का प्रयोग करके उच्च आवृत्ति पर स्विच करके बनी पॉवर सप्लाय)। .

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वॉट

वॉट (चिह्न: W) शक्ति की SI व्युत्पन्न इकाई है। यह ऊर्जा के परिवर्तन या रूपान्तरण की दर मापती है। एक वॉट - १ जूल (J) ऊर्जा प्रति सैकण्ड के समकक्ष होती है। यांत्रिक ऊर्जा के संबंध में, एक वॉट उस कार्य को करने की दर होती है, जब एक वस्तु को १ मीटर प्रति सैकण्ड की गति से १ न्यूटन के बल के विरुद्ध ले जाया जाये। पोटेन्शियल डिफरेन्स (वोल्ट) और विद्युत धारा (एम्पीयर) की परिभाषा अनुसार, कार्य १ वॉट की दर से किया गया होता है, जब १ एम्पीयर विद्युत धारा, १ वोल्ट पोटेन्शियल डिफरेन्स पर बहती है। .

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वोल्टता स्रोत

एक प्रतिरोध (दाहिने) से जुड़ा वोल्टता स्रोत (बाएँ) वोल्टता स्रोत (Voltage source) दो सिरों वाली युक्ति है जिसके सिरों के बीच का विभवान्तर नियत (fixed) हो। भिन्न-भिन्न धारा देने के बावजूद आदर्श वोल्टता स्रोत के सिरों का विभवान्तर नियत बना रहता है। वास्तव में 'आदर्श वोल्टता स्रोत' असम्भव है किन्तु ऐसे वोल्टता स्रोत बनाए जा सकते हैं जिनका गुण आदर्श वोल्टता स्रोत के काफी निकट हो। वास्तविक वोल्टता स्रोत के सिरों के बीच विभवान्तर धारा के साथ कुछ न कुछ बदलता है। इसके अलावा वे अनन्त धारा नहीं दे सकते। वोल्टता स्रोत, धारा स्रोत का द्वैत (dual) है। विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत जैसे बैटरी, जनित्र तथा शक्ति निकाय (power systems) को विश्लेषण के लिए एक आदर्श वोल्टता स्रोत तथा एक प्रतिबाधा (impedance) के श्रेणीक्रम संयोजन के रूप में मॉडल किया जा सकता है। .

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वोल्टमीटर

भौतिकी की कक्षा में प्रदर्शन के लिये रखा वोल्टमीटर वोल्टमीटर (अंग्रेज़ी:Voltmeter) एक मापन यंत्र है जो किसी परिपथ के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर को मापने के लिये प्रयोग किया जाता है। १८१९ में हैंस ऑरेस्टड ने वोल्टमीटर का आविष्कार किया।।हिन्दुस्तान लाइव।१२ नवंबर,२००९ उन्होंने चुम्बकीय दिशासूचक की सुई के पास रखे तार में विद्युत धारा का प्रवाह किया तो उन्होंने देखा कि इसकी दिशा में परिवर्तन हो रहा है। ध्यान देने पर ज्ञात हुआ कि तार में जितनी अधिक एंपियर की धारा प्रवाहित की जाती है, सुई की दिशा में उतनी ही तीव्रता से परिवर्तन होता है। इसी कारण से उनका मापन एकदम सही नहीं आ रहा था। १९वीं शताब्दी में आर्सीन डी आर्सोनवल ने ऐसा यंत्र बनाया जो पहले बने यंत्रों की तुलना में बेहतर मापन कर सके। इसके लिए उन्होंने कंपास की सुई को छोटा किया और उसे चारों तरफ से चुंबक से घेर दिया। यह डी आर्सोनवल मूवमेंट के नाम से जाना जाता है और इसका प्रयोग आज के एनालॉग मीटर में होता है। व्यावहारिक तौर पर वोल्टमीटर अमीटर की तरह ही काम करते हैं, जो वोल्टेज को मापने के साथ, विद्युत धारा और प्रतिरोध को भी मापते हैं। .

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वोल्टा

वोल्टा इटली के वैज्ञानिक थे। ये 1800 ईस्वी में विद्युत धारा के आविष्कार के लिए जाने जाते हैं। वोल्टा का जन्म कोमो में १८ फरवरी, १७४५ को हुआ। .

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ओम का नियम

जॉर्ज साइमन ओम प्रतिरोध ''R'', के साथ ''V'' विभवान्तर का स्रोत लगाने पर उसमें विद्युत धारा, ''I '' प्रवाहित होती है। ये तीनों राशियाँ ओम के नियम का पालन करती हैं, अर्थात ''V .

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आन्द्रे मैरी एम्पीयर

आन्द्रे मैरी एम्पीयर आन्द्रे मैरी एम्पीयर (२० जनवरी १७७५ - १० जून १८३६) फ्रांस के भौतिकशास्त्री थे। उन्होने विद्युतचुंबकत्व से संबंधित एक महत्वपूर्ण नियम का प्रतिपादन किया जिसे 'एम्पीयर का नियम' कहते हैं। विद्युत धारा की इकाई एम्पीयर उनके ही नाम पर है। श्रेणी:1775 में जन्मे लोग श्रेणी:भौतिक विज्ञानी श्रेणी:१८३६ में निधन.

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आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण

वस्तुओं के द्रव्यमान और गति से उनके आसपास के दिक्-काल (स्पेसटाइम) में मरोड़ आती है और आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण इसका विवरण देते हैं आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण (Einstein field equations) भौतिकी में ऐल्बर्ट आइनस्टाइन​ के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में दस समीकरणों (इक्वेशनों) का एक समूह है जो पदार्थ और ऊर्जा द्वारा दिक्-काल (स्पेसटाइम) में पैदा की गई मरोड़ से होने वाले गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का वर्णन करता है। इसे आइनस्टाइन​ ने सन् १९१५ में आतानक विश्लेषण (टेन्सर अनैलिसिस) के रूप में छापा था। जिस तरह मैक्सवेल के समीकरण आवेश (चार्ज) और विद्युत धारा से उत्पन्न होने वाले विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र की विवरण देते हैं उसी तरह आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण ऊर्जा, द्रव्यमान और चाल (गति) से दिक्-काल में उत्पन्न होने वाले बदलावों का बखान करते हैं।, Norman K. Glendenning, pp.

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क्षीणता

धूप के चश्मे (सन ग्लास) पहनकर किसी चमकीली वस्तु (जैसे सूर्य) को भी देखा जा सकता है। इससे आँख में पहुँचने वाला प्रकाश चश्मे पर गिरने वाले प्रकाश से बहुत कम हो जाता है। सामान्यतः देखने को मिलता है कि किसी प्रणाली या किसी माध्यम में घुसने वाली ऊर्जा/संकेत उससे निकलने पर कम को जाती है। इस प्रक्रिया को क्षीणन (attenuation) कहते हैं। उदाहरण के लिए रंगीन काच से गुजरने पर प्रकाश की त्तिव्रता कम हो जाती है। इसी तरह सीसे (lead) की सिल्ली को पार करने के बाद X-किरणे क्षीण हो जातीं हैं। जल तथा वायु प्रकाश एवं ध्वनि को क्षीण करतीं हैं। विद्युत इंजीनियरी में और सूरसंचार में, तंरंगें और संकेत जब किसी विद्युत नेटवर्क, ऑप्टिकल फाइबर या वायु से होकर गुजरते हैं तो उनका क्षीणन होता है। जो वस्तुएँ क्षीणन करतीं हैं, उन्हें क्षीणक (अटिनुएटर) कहते हैं। अतः क्षीणक, प्रवर्धक (ऐम्प्लिफायर) का उल्टा काम करता है। .

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केबल

पीवीसी इंसुलेटेड '''केबल''' केबल या मोटा तार दो या दो से अधिक तारों को लम्बाई में साथ साथ जोड़कर, मरोड़कर या गूंथकर तैयार की गयी एक, एकल रचना होती है। यांत्रिकी में, केबलों जिन्हें हिन्दी में रज्जु कहा जाता है (हिन्दी में इसके लिए आमतौर पर रस्सा या 'धातु का रस्सा' शब्द भी प्रयोग किया जाता है पर आजकल अंग्रेजी प्रभाव के चलते केबल शब्द भी प्रयोग किया जाने लगा है। हिन्दी में केबल का प्रयोग मुख्यत: बिजली के तार के संबंध में होता है।) का प्रयोग तनाव के माध्यम से उठाने, ढोने, खींचने और प्रवहण के लिए किया जाता है। वैद्युत अभियांत्रिकी (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग) में केबल का उपयोग विद्युत धारा के प्रवाह के लिए किया जाता है। प्रकाशीय केबल में एक सुरक्षात्मक आवरण के अंदर एक या एक से अधिक तंतु उपस्थित होते हैं। लोहे की कड़ियों से बनी जंजोरों को भी केबल कहते हैं। यह जहाजों के लंगर डालने के काम आता है। जमीन के नीचे या समुद्र के पानी में डाले हुए तार के उन रस्सों को भी केबल कहते हैं जिनके द्वारा तार या टेलीफोन का संचार होता है। .

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अतिचालकता

सामान्य चालकों तथा अतिचालकों में ताप के साथ प्रतिरोधकता का परिवर्तन जब किसी मैटेरियल को 0°k तक ठंडा किया जाता है तो उसका प्रतिरोध पूर्णतः शून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। उनके इस गुण को अतिचालकता (superconductivity) कहते हैं। शून्य प्रतिरोधकता के अलावा अतिचालकता की दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है जिसे मेसनर प्रभाव (Meissner effect) के नाम से जाना जाता है। सुविदित है कि धात्विक चालकों की प्रतिरोधकता उनका ताप घटाने पर घटती जाती है। किन्तु सामान्य चालकों जैसे ताँबा और चाँदी आदि में, अशुद्धियों और दूसरे अपूर्णताओं (defects) के कारण एक सीमा के बाद प्रतिरोधकता में कमी नहीं होती। यहाँ तक कि ताँबा (कॉपर) परम शून्य ताप पर भी अशून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, अतिचालक पदार्थ का ताप क्रान्तिक ताप से नीचे ले जाने पर, इसकी प्रतिरोधकता तेजी से शून्य हो जाती है। अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है। अतिचालकता एक प्रमात्रा-यांत्रिक दृग्विषय (quantum mechanical phenomenon.) है। अतिचालक पदार्थ चुंबकीय परिलक्षण का भी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इन सबका ताप-वैद्युत-बल शून्य होता है और टामसन-गुणांक बराबर होता है। संक्रमण ताप पर इनकी विशिष्ट उष्मा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिन परमाणुओं में बाह्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है। .

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अन्तरराष्ट्रीय मात्रक प्रणाली

अन्तर्राष्ट्रीय मात्रक प्रणाली (संक्षेप में SI; फ्रेंच Le Système International d'unités का संक्षिप्त रूप), मीटरी पद्धति का आधुनिक रूप है। इसे सामान्य रूप में दशमलव एवं दस के गुणांकों में बनाया गया है। यह विज्ञान एवं वाणिज्य के क्षेत्र में विश्व की सर्वाधिक प्रयोग की जाने वाली प्रणाली है। पुरानी मेट्रिक प्रणाली में कई इकाइयों के समूह प्रयोग किए जाते थे। SI को 1960 में पुरानी मीटर-किलोग्राम-सैकण्ड यानी (MKS) प्रणाली से विकसित किया गया था, बजाय सेंटीमीटर-ग्राम-सैकण्ड प्रणाली की, जिसमें कई कठिनाइयाँ थीं। SI प्रणाली स्थिर नहीं रहती, वरन इसमें निरंतर विकास होते रहते हैं, परंतु इकाइयां अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों के द्वारा ही बनाई और बदली जाती हैं। यह प्रणाली लगभग विश्वव्यापक स्तर पर लागू है और अधिकांश देश इसके अलावा अन्य इकाइयों की आधिकारिक परिभाषाएं भी नहीं समझते हैं। परंतु इसके अपवाद संयुक्त राज्य अमरीका और ब्रिटेन हैं, जहाँ अभी भी गैर-SI इकाइयों उनकी पुरानी प्रणालियाँ लागू हैं।भारत मॆं यह प्रणाली 1 अप्रैल, 1957 मॆं लागू हुई। इसके साथ ही यहां नया पैसा भी लागू हुआ, जो कि स्वयं दशमलव प्रणाली पर आधारित था। इस प्रणाली में कई नई नामकरण की गई इकाइयाँ लागू हुई। इस प्रणाली में सात मूल इकाइयाँ (मीटर, किलोग्राम, सैकण्ड, एम्पीयर, कैल्विन, मोल, कैन्डेला, कूलम्ब) और अन्य कई व्युत्पन्न इकाइयाँ हैं। कुछ वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में एस आई प्रणाली के साथ अन्य इकाइयाँ भी प्रयोग में लाई जाती हैं। SI उपसर्गों के माध्यम से बहुत छोटी और बहुत बड़ी मात्राओं को व्यक्त करने में सरलता होती है। तीन राष्ट्रों ने आधिकारिक रूप से इस प्रणाली को अपनी पूर्ण या प्राथमिक मापन प्रणाली स्वीकार्य नहीं किया है। ये राष्ट्र हैं: लाइबेरिया, म्याँमार और संयुक्त राज्य अमरीका। .

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अन्तर्वाह धारा

२३०वोल्ट, ६० वोल्ट-अम्पीयर के एक ट्रान्सफॉर्मर की अन्तर्वाह धारा का ग्राफ: यह धारा दस-पन्द्रह सायकिल तक बनी रहती है तथा इसमें डीसी कम्पोनेन्ट भी होता है। ट्रान्सफॉर्मर, स्विच मोड पॉवर सप्लाई, विद्युत मोटर, प्रकाश बल्ब आदि विद्युत उपकरण चालू करते ही जो धारा लेते हैं वह उनके द्वारा सामान्य अवस्था में ली जाने वाली धारा से बहुत अधिक (दस-बीस गुना) हो सकती है। इस अत्यधिक धारा को अन्तर्वाह धारा (inrush current) कहते हैं। यह धारा कुछ मिलीसेकेण्ड से लेकर कुछ सेकेण्ड तक बहती है जो अलग अलग लोड के लिए अलग अलग होती है। इस धारा को रोकने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। इसके अलावा फ्यूज और परिपथ विच्छेदक इस प्रकार की रेटिंग के चुने जाते हैं ताकि उनसे होकर कुछ देर (जैसे, १ सेकेण्ड तक) बहुत अधिक धारा भी बहे (और फिर कम हो जाय) तो भी वे ट्रिप न हों। .

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अमीटर

अमीटर जिस धारा को नापना है, उसे वहन करने वाला तारस्प्रिंग रोटर की गति का विरोध करते हुए बल लगाती है अमीटर, जिसका शून्य बीच में है। ऐमीटर या 'एम्मापी' (ammeter या AmpereMeter) किसी परिपथ की किसी शाखा में बहने वाली विद्युत धारा को मापने वाला यन्त्र है। बहुत कम मात्रा वाली धाराओं को मापने के लिये प्रयुक्त युक्तियोंको "मिलिअमीटर" (milliameter) या "माइक्रोअमीटर" (microammeter) कहते हैं। अमीटर की सबसे पुरानी डिजाइन डी'अर्सोनल (D'Arsonval) का धारामापी या चलित कुण्डली धारामापी था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

विद्युत धाराओं, वैद्युत धारा

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