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विदिशा

सूची विदिशा

विदिशा जिला विदिशा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह मालवा के उपजाऊ पठारी क्षेत्र के उत्तर- पूर्व हिस्से में अवस्थित है तथा पश्चिम में मुख्य पठार से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है। नगर से दो मील उत्तर में जहाँ इस समय बेसनगर नामक एक छोटा-सा गाँव है, प्राचीन विदिशा बसी हुई है। यह नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी-सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है। विदिशा में जन्में श्री कैलाश सत्यार्थी को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। .

44 संबंधों: चरणतीर्थ, विदिशा, चौदहवीं लोकसभा, देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर, बासौदा, बुन्देलखण्ड, बुंदेलखंड के शासक, बेतवा नदी, बेसनगर, बीना, भद्दिलपुर, भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार, भारत के शहरों की सूची, भारतीय स्थापत्यकला, भोपाल विलासपुर एक्सप्रेस, भोजपुर, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश, मध्य प्रदेश का इतिहास, मध्य प्रदेश के शहरों की सूची, मरखेड़ा, मालवा, मालविकाग्निमित्रम्, लुहांगी, श्रीधर वर्मन, शूद्रक, शीतला सहाय, सम्राट अ‍शोक अभियांत्रिकीय संस्थान, साँची का स्तूप, सागर ज़िला, सिंद, सुषमा स्वराज, सुंग वंश, हिन्दी पत्रिकाएँ, हेलिओडोरस स्तंभ, विदिशा ज़िला, विदिशा का इतिहास, विदिशा का किला, विदिशा के दर्शनीय स्थल, विदिशा की जलवायु, विजय मंदिर, विदिशा, गंगा की सहायक नदियाँ, ग्यारसपुर, कैलाश सत्यार्थी, उदयपुरा, विदिशा, उदयगिरि

चरणतीर्थ, विदिशा

विदिशा में स्थित सिद्ध महात्माओं की तपस्थली रही, यह भूमि पर्यटन की दृष्टि से सुंदर स्थान है। एक अवधारणा के अनुसार भगवान राम के चरण पड़ने के कारण इस तीर्थ का नाम चरणतीर्थ पड़ा, लेकिन साहित्यिक प्रमाण बताते हैं कि अयोध्या से लंका जाने के मार्ग में यह स्थान नहीं था। यह धारणा पूर्णरुपेण मि है। कुछ विद्वानों के मतानुसार यह स्थान भृगुवंशियों का केंद्र स्थल था। इस कुंड में च्वयन ॠषि ने तपस्या की थी। पहले इसका नाम च्वयनतीर्थ था, जो कालांतर में चरणतीर्थ के नाम से जाना जाने लगा। त्रिवेणी मंदिर के सामने नदी में ही दोनों शिव मंदिर बने हैं। एक मंदिर को नदी के कटाव से बचाने के लिए उसका चबूतरा इस प्रकार बना है कि पानी का बहाव चबूतरे के कोण को टक्कर मारकर दो धारों में विभक्त हो जाती है। भेलसा के जागीरदारों द्वारा १९ वीं सदी में बना मंदिर कोण को काटने वाला न बनाये जाने के कारण गिर चुका है। नदी के दूसरे किनारे पर अत्यंत प्राचीन "नौलखी' है। कहते हैं कि ऊँचे टीले पर स्थित यह स्थान प्राचीन राजा रुक्मांगद का बगीचा था, जो उसने अपनी प्रयसी के विहार के लिए बनवाया था। इस बगीचे में नौ लाख घास के पूलों की नीड़ होने के कारण यह स्थान नौलखी कहलाता है। त्रिवेणी और नौलखी के नीचे नदी बहुत गहरी है, क्योंकि यहाँ दो नदियों का संगम है। इसके ५० फीट आगे का स्थान दाना बाबा घाट कहलाता है। इसी स्थान से यक्ष व यक्षिणी की विशाल मूर्ति प्राप्त हुई है। यक्षवाली मूर्ति भारत में मिली अब तक की सबसे बड़ी मूर्ति है। इसी मूर्तियों की प्रतिकृतियाँ अभी रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के दरवाजे के दोनों तरफ लगी हुई है। श्रेणी:विदिशा.

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चौदहवीं लोकसभा

भारत में चौदहवीं लोकसभा का गठन अप्रैल-मई 2004 में होनेवाले आमचुनावोंके बाद हुआ था। .

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देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर

देवदत्त रामकृष्ण भांडारकर (19 नवम्बर 1875 -1950) महाराष्ट्र के इतिहासशोधक एवं पुरातत्वशास्त्री थे। आप रामकृष्ण गोपाल भांडारकर के सबसे छोटे पुत्र थे। .

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बासौदा

विदिशा जिले का बासौदा नगर रंगाई- छपाई कार्य के लिए प्रसिद्ध रहा है। कहा जाता है कि इस नगर का पुराना नाम "वासुदेव नगर' था। अब यह "गंज बासौदा' कहलाता है। पुराने ऐतिहासिक साक्ष्यों में इसे "शहजादपुरा' के नाम से जाना जाता था। हो सकता है कि इसे किसी शाहजादे के नाम पर बसाया गया होगा। इसी काल में यहाँ एक शेख करी मुल्ला की कब्र पर मकबरा बना हुआ है। बाद में बासौदा अगरा वरखेड़ा के शासकों के अधिपत्य में आ गया। उन्होंने यहाँ एक हवेली बनवाई तथा कुछ दूरी पर एक बाग लगवाया, जो अभी तक विद्यमान है। उनके बाद यह सिंधिया के अधिपत्य में आ गया। वर्तमान में बासौदा में जिले की सबसे बड़ी कृषि मंडी है। पत्थर का व्यवसाय यहाँ खूब होता है यहाँ का पत्थर विदेशों में जाता है गंज बासौदा में जिले का सबसे बड़ा मंदिर है। जो नौलखी आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है। जिसके महंत श्री नरहरि दास जी महाराज जी है। श्रेणी:विदिशा.

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बुन्देलखण्ड

बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।इसका प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है.

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बुंदेलखंड के शासक

' बुंदेलखंड के ज्ञात इतिहास के अनुसार यहां ३०० ई. प सौरभ तिवारी ब्राह्मण सासक मौर्य शासनकाल के साक्ष्‍य उपलब्‍ध है। इसके पश्‍चात वाकाटक और गुप्‍त शासनकाल, कलचुरी शासनकाल, चंदेल शासनकाल, खंगार1खंगार शासनकाल, बुंदेल शासनकाल (जिनमें ओरछा के बुंदेल भी शामिल थे), मराठा शासनकाल और अंग्रेजों के शासनकाल का उल्‍लेख मिलता है। .

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बेतवा नदी

'''बेतवा''', यमुना की सहायक नदी है। बेतवा भारत के मध्य प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह यमुना की सहायक नदी है। यह मध्य-प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, ललितपुर आदि जिलों में होकर बहती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसकी सम्पूर्ण लम्बाई 480 किलोमीटर है। यह बुंदेलखण्ड पठार की सबसे लम्बी नदी है। यह हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसके किनारे सांची और विदिशा के प्रसिद्ध व सांस्कृतिक नगर स्थित हैं। भारतीय नौसेना ने बैटवा नदी के सम्मान में एक फ्रिगेट्स आईएनएस बेतवा नाम दिया है। .

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बेसनगर

बेसनगर मध्य भारत का एक प्राचीन नगर है, जिसे पाली बौद्ध ग्रंथों में वेस्सागर तथा संस्कृत साहित्य में विदिशा के नाम से पुकारा गया है। भिलसा रेलवे स्टेशन से पश्चिम की तरफ करीब २ मील की दूरी पर स्थित, यह स्थान पुरातत्वेत्ताओं की सांस्कृतिक भूमि कही जा सकती है। यह वेत्रवती और बेस नदी से घिरा हुआ है तथा शेष दो तरफ की भूमि पर प्राचीर बनाकर नगर को एक किले का रूप दे दिया था। प्राचीन काल का वैभव संपन्न यह नगर, अब टूटी- फूटी मूर्तियाँ व कलायुक्त भवनों का खंडहर मात्र रह गया है। यहाँ पाये जाने वाले भग्नावशेष ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से ११ वीं शताब्दी तक की कहानी कहते हैं। अब भी इस स्थान पर ही एक तरफ "बेस' नामक ग्राम बचा हुआ है। .

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बीना

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भद्दिलपुर

विदिशा स्थित भद्दिलपुर, जैनियों के दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ की जन्मभूमि होने के कारण जैनियों के लिए विशेष महत्व का है। यहाँ कई प्राचीन जैन मंदिर है। लेकिन किसी स्थान विशेष पर शीतलनाथ के जन्मभूमि के बारे में कोई साहित्यिक प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन विजय मंदिर के निकट स्थित हवेली के नीचे से मिले कई जैन प्रतिमाएँ, यहाँ के प्राचीनतम मंदिर का साक्ष्य देती है। इससे इसी स्थान पर तीथर्ंकर शीतलनाथ का जन्म होने की संभावना बढ़ जाती है। श्रेणी:विदिशा.

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भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची - प्रदेश अनुसार

भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों का संजाल भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूची भारतीय राजमार्ग के क्षेत्र में एक व्यापक सूची देता है, द्वारा अनुरक्षित सड़कों के एक वर्ग भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण। ये लंबे मुख्य में दूरी roadways हैं भारत और के अत्यधिक उपयोग का मतलब है एक परिवहन भारत में। वे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा भारतीय अर्थव्यवस्था। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 laned (प्रत्येक दिशा में एक), के बारे में 65,000 किमी की एक कुल, जिनमें से 5,840 किमी बदल सकता है गठन में "स्वर्ण Chathuspatha" या स्वर्णिम चतुर्भुज, एक प्रतिष्ठित परियोजना राजग सरकार द्वारा शुरू की श्री अटल बिहारी वाजपेयी.

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भारत के शहरों की सूची

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भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .

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भोपाल विलासपुर एक्सप्रेस

भोपाल बिलासपुर ट्रेन भोपाल शहर के भोपाल जंक्शन तथा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नामक स्थान के बीच चलती है। बिलासपुर पहले मध्यप्रदेश में ही था पर बाद में ये अलग होकर एक नए राज्य छत्तीसगढ़ का हिस्सा बन गया। इसलिए यह दो राज्यों को जोड़ने वाली ट्रेन भी है। .

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भोजपुर, मध्य प्रदेश

भोजपुर मध्य प्रदेश के विदिशा से ४५ मील की दूरी पर रायसेन जिले में वेत्रवती नदी के किनारे बसा है। प्राचीन काल का यह नगर "उत्तर भारत का सोमनाथ' कहा जाता है। गाँव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल शिव मंदिर है। इस नगर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० ई.- १०५३ ई.) ने किया था। अतः इसे भोजपुर मंदिर या भोजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। .

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मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन एवं मध्यप्रदेश के कई नगर उस से हटा कर छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है। हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है। खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया। .

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मध्य प्रदेश का इतिहास

मध्य प्रदेश का इतिहास पेलियोलिथिक समय से ही शुरुआत मे आ गया था। इसे मुख्यत: तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है। .

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मध्य प्रदेश के शहरों की सूची

1.

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मरखेड़ा

मरखेड़ा विदिशा जिले में बासौदा से कुछ दूरी पर स्थित है। यह गाँव अपने कप्नू नगों के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ स्थित सातखनी हवेली प्रसिद्ध है। हवेली के दूसरे द्वार पर कानूनगो परिवार के घोड़े बाँधने की व्यवस्था थी। इससे इनकी वैभवता का पता चलता है। यह गाँव लेटीरी से ६-७ कोस दक्षिण की तरफ ऊँचाई पर यह एक पहाड़ी नदी सांपन के किनारे बसा है। इस स्थान को मध्य भारत एवं गुजरात की सीमा पर बसे गिरासियों ने बसाया था। उनकी "गढ़ी' का प्रमाण अभी भी मिलता है। श्रेणी:विदिशा.

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मालवा

1823 में बने एक एक ऐतिहासिक मानचित्र में मालवा को दिखाया गया है। विंध्याचल का दृश्य, यह मालवा की दक्षिणी सीमा को निर्धारित करता है। इससे इस क्षेत्र की कई नदियां निकली हैं। मालवा, ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग से गठित यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है। मालवा का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है। यद्यपि इसकी राजनीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस छेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति एंव भाषा का विकास हुआ है। मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है। इसे प्राचीनकाल में 'मालवा' या 'मालव' के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में मध्यप्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई ४९६ मी.

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मालविकाग्निमित्रम्

मालविकाग्निमित्रम् कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक है। यह पाँच अंकों का नाटक है जिसमे मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है। वस्तुत: यह नाटक राजमहलों में चलने वाले प्रणय षड़्यन्त्रों का उन्मूलक है तथा इसमें नाट्यक्रिया का समग्र सूत्र विदूषक के हाथों में समर्पित है। यह शृंगार रस प्रधान नाटक है और कालिदास की प्रथम नाट्य कृति माना जाता है। ऐसा इसलिये माना जाता है क्योंकि इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता जो विक्रमोर्वशीय अथवा अभिज्ञानशाकुन्तलम् में है। कालिदास ने प्रारम्भ में ही सूत्रधार से कहलवाया है - अर्थात पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं। वस्तुत: यह नाटक नाट्य-साहित्य के वैभवशाली अध्याय का प्रथम पृष्ठ है। .

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लुहांगी

विदिशा नगर के मध्य रेलवे स्टेशन के निकट ही अत्यन्त कठोर बलुआ पत्थर से निर्मित यह स्थान १७० फीट ऊँची है। इसे अब "राजेन्द्र गिरि' के नाम से जाना जाता है। यह अत्यंत मनोरम स्थान है। इसके चारों ओर रायसेन का किला, साँची की पहाड़ियाँ, उदयगिरि की श्रेणियाँ, वैत्रवती नदी व उनके किनारों पर लगी वृक्षों की श्रृंखलाएँ अत्यंत सुदर दिखती है। पहले की तरह आज भी यहाँ मेला लगता है। .

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श्रीधर वर्मन

प्राचीनकाल से ही सागर जिला मध्य भारत के महत्वपूर्ण इलाकों में शामिल रहा है और यहां कई शासक हुए हैं। ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के अनुसार सागर का प्रथम ऐतिहासिक शासक श्रीधर वर्मन था। ईसा पश्चात चौथी शताब्दी के प्रारंभ में उत्तर भारत में गुप्त वंश की राजनैतिक सर्वोच्चता स्थापित हुई। इस वंश की राजधानी पाटलिपुत्र थी। चंद्रगुप्त के स्वनामधन्य पुत्र समुद्रगुप्त ने शस्त्र-बल से मध्य भारत और दक्षिण भारत तक अपना आधिपत्य स्थापित करते हुए अनेक राजाओं को हराया। उसके इलाहाबाद में मिले स्तंभों से ज्ञात होता है कि कुछ शकों और मुरुंडों ने शक्तिशाली गुप्त साम्राज्‍य की आधीनता स्वीकार कर ली थी और उससे शासनपत्र प्राप्त कर अपने प्रदेशों का उपभोग करते रहे थे। इस क्षेत्र में मिले विभिन्‍न पुरा साक्ष्यों के अनुसार एक पराजित शक अधिपति श्रीधर वर्मन भी था। उसके बारे में जानकारी देने वाले दो स्तंभों से प्रतीत होता है वह विदिशा-एरण प्रदेश पर राज्‍य कर रहा था। कनखेरा में मिले स्तंभ से प्रतीत होता है कि श्रीधर वर्मन ने अपना जीवन एक सेना अधिकारी के रूप में आरंभ किया और वह संभवत: आभीर राजा का समकालीन था। कालांतर में अपनी योग्‍यता के बलबूते पर श्रीधर वर्मन सामंत बना। आभीर वंश का पतन होने पर उसने अपने स्वतंत्र होने की घोषणा कर दी थी। एरण में प्राप्त दूसरे शिलालेख में उसके राज्‍यकाल के 27वें वर्ष के एक लेख में श्रीधर वर्मन का उल्लेख महाक्षत्रप तथा शकनंद के पुत्र के रूप में किया गया है। ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के अनुसार श्रीधर वर्मन धार्मिक प्रवृत्ति का व्‍यक्ति था। दोनों ही शिलालेखों में श्रीधर वर्मन का वर्णन धर्माविजयन अर्थात धार्मिक विजेता के रूप में किया गया है। श्रीधर वर्मन किसी अन्य धर्म का था लेकिन उसे हिंदू धर्म का पक्का अनुयायी माना जाता था। माना जाता है कि समुद्रगुप्त ने किसी बात से उत्तेजित हो उसके राज्‍य पर आक्रमण कर दिया और एरिकिना के युद्ध में उस पर निर्णायक विजय प्राप्त की। श्रेणी:इतिहास श्रेणी:सागर जिला श्रेणी:बुंदेलखंड.

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शूद्रक

शूद्रक नामक राजा का संस्कृत साहित्य में बहुत उल्लेख है। ‘मृच्छकटिकम्’ इनकी ही रचना है। जिस प्रकार विक्रमादित्य के विषय में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं वैसे ही शूद्रक के विषय में भी अनेक दंतकथाएँ हैं। कादम्बरी में विदिशा में, कथासरित्सागर में शोभावती तथा वेतालपंचविंशति में वर्धन नामक नगर में शूद्रक के राजा होने का उल्लेख है। मृच्छकटिकम् में कई उल्लेखों से ज्ञात होता है कि शूद्रक दक्षिण भारतीय थे तथा उन्हें प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। वे वर्ण व्यवस्था में विश्वास रखते थे तथा गायों और ब्राह्मणों का विशेष आदर करते थे। शूद्रक का समय छठी शताब्दी था। मृच्छकटिकम के अतिरिक्त उन्होने वासवदत्ता, पद्मप्रभृतका आदि की रचना भी की। राजा शूद्रक बड़ा कवि था। कुछ लोग कहते हैं, शूद्रक कोई था ही नहीं, एक कल्पित पात्र है। परन्तु पुराने समय में शूद्रक कोई राजा था इसका उल्लेख हमें स्कन्दपुराण में मिलता है। महाकवि भास ने एक नाटक लिखा है जिसका नाम ‘दरिद्र चारुदत्त’ है। ‘दरिद्र चारुदत्त’ भाषा और कला की दृष्टि से ‘मृच्छकटिक’ से पुराना नाटक है। निश्चयपूर्वक शूद्रक के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। बाण ने अपनी ‘कादम्बरी’ में राजा शूद्रक को अपना पात्र बनाया है, पर यह नहीं कहा कि वह कवि भी था। बाण का समय छठी शती है। ऐसा लगता है कि शूद्रक कोई कवि था, जो राजा भी था। वह बहुत पुराना था। परन्तु कालिदास के समय तक उसे प्रधानता नहीं दी गई थी, या कहें कि जिस कालिदास ने सौमिल्ल, भास और कविपुत्र का नाम अपने से पहले बड़े लेखकों में गिनाया है, उसने सबकी सूची नहीं दी थी। शूद्रक का बनाया नाटक पुराना था, जो निरन्तर सम्पादित होता रहा और बाद में प्रसिद्ध हो गया। हो सकता है वह भास के बाद हुआ हो। भास का समय ईसा की पहली या दूसरी शती माना जाता है। .

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शीतला सहाय

शीतला सहाय (1932- 2011) भारत के मध्य प्रदेश के एक राजनेता थे। वे मध्य प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री भी रहे। .

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सम्राट अ‍शोक अभियांत्रिकीय संस्थान

सम्राट अशोक प्रौद्योगिकी संस्थान (Samrat Ashok Technological Institute (SATI)) मध्य प्रदेश के विदिशा में स्थित स्वायत्त प्रौद्योगिकी महाविद्यालय है। इसकी स्थापना १ नवम्बर १९६० को महाराजा जीवाजीराव शिक्षा सोसायटी द्वारा किया गया था। इस संस्थान का नामकरण सम्राट अशोक के नाम पर हुआ है, जिनकी पत्नी देवी विदिशा के एक व्यापारी की पुत्री थीं। यह महाविद्यालय मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित (फण्डेड) है। .

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साँची का स्तूप

सांची भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले, में बेतवा नदी के तट स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से ४६ कि॰मी॰ पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से १० कि॰मी॰ की दूरी पर मध्य प्रदेश के मध्य भाग में स्थित है। यहां कई बौद्ध स्मारक हैं, जो तीसरी शताब्दी ई.पू.

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सागर ज़िला

सागर जिले में प्रमुख रूप से धसान, बेबस, बीना, बामनेर और सुनार नदियां निकलती हैं। इसके अलावा कड़ान, देहार, गधेरी व कुछ अन्य छोटी बरसाती नदियां भी हैं। अन्य प्राकृतिक संसाधनों के मामले में सागर जिले को समृद्ध नहीं कहा जा सकता लेकिन वास्तव में जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, उनका बुद्धिमत्तापूर्ण दोहन बाकी है। कृषि उत्पादन में सागर जिले के कुछ क्षेत्रों की अच्छी पहचान हैं। खुरई तहसील में उन्नत किस्म के गेहूं का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है। अक्षांश - 23.10 से 24.27 उत्तर देशांतर - 78.5 से 79.21 पूर्व औसत वर्षा - 1252 मि.मी.

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सिंद

सिन्द भारत के मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश में बहने वाली एक नदी है। इसकी लंबाई ३५० किमी है। मध्य प्रदेश में यह उत्तर पूर्व दिशा में बहती है और जगमानपुर के पास उत्तर प्रदेश में प्रविष्ट होती है और यहाँ से १५ किमी उत्तर में यह यमुना नदी से मिल जाती है। यह विदिशा जिले के नैनवाकस ग्राम में स्थित ताल से निकलती है जो समुद्र दल से १,७८० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। पार्वती, नन एवं माहूर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। इस नदी में पूरे वर्ष जल रहता है। वर्षा ऋतु में इसमें भयंकर बाढ़ आती है। चट्टानी किनारों के कारण यह नदी सिंचाई के उपयुक्त नहीं है। .

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सुषमा स्वराज

सुषमा स्वराज (जन्म: १४ फरवरी १९५२) एक भारतीय महिला राजनीतिज्ञ और भारत की विदेश मंत्री हैं। वे वर्ष २००९ में भारत की भारतीय जनता पार्टी द्वारा संसद में विपक्ष की नेता चुनी गयी थीं, इस नाते वे भारत की पन्द्रहवीं लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रही हैं। इसके पहले भी वे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में रह चुकी हैं तथा दिल्ली की मुख्यमन्त्री भी रही हैं। वे सन २००९ के लोकसभा चुनावों के लिये भाजपा के १९ सदस्यीय चुनाव-प्रचार-समिति की अध्यक्ष भी रहीं थीं। अम्बाला छावनी में जन्मी सुषमा स्वराज ने एस॰डी॰ कालेज अम्बाला छावनी से बी॰ए॰ तथा पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की डिग्री ली। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं। वर्ष २०१४ में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जबकि इसके पहले इंदिरा गांधी दो बार कार्यवाहक विदेश मंत्री रह चुकी हैं। कैबिनेट में उन्हे शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकारा। वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है। .

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सुंग वंश

सुंगवंश मौर्य वंश के अंतिम सम्राट् बृहद्रथ के प्रधान सेनापति पुष्यामित्र द्वारा प्रतिष्ठित एक प्राचीन राजवंश। ईसा से १८४ वर्ष पूर्व पुष्यमित्र सुंग ने बृहद्रथ को मारकर मौर्य साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाया। यह राजा वैदिक या सनातनी धर्म का पक्का अनुयायी था, जिस समय पुष्यमित्र मगध के सिंहासन पर बैठा, उस समय साम्राज्य नर्मदा के किनारे तक था और उसके अंतर्गत आधुनिक बिहार, संयुक्त प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि थे। कलिंग के राजा खारवेल्ल तथा पंजाब और काबुल के यवन (यूनानी) राजा मिनांडर (बौद्ध मिलिंद) ने सुंग राज्य पर कई बार चढ़ाइयाँ की, पर वे हटा दिए गए। यवनों का जो प्रसिद्ध आक्रमण साकेत (अयोध्या) पर हुआ था, वह पुष्यामित्र के ही राजत्व काल में हुआ। पुष्यमित्र के समय का उसी के किसी सामंत या कर्मचारी का एक शिलालेख अभी हाल में अयोध्या में मिला है जो पालि लिपि में होने पर भी मुुुुख्यतया संस्कृत में है, यह लेख नागरीप्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है इससे जान पड़ता है कि पुष्यामित्र कभी कभी साकेत (अयोध्या) में भी रहता था और वह उस समय एक समृद्धिशाली नगर था। पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने विदर्भ के राजा को परास्त करके दक्षिण में वरदा नदी तक अपने पिता के राज्य का विस्तार बढ़ाया। जैसा कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक से प्रकट है, अग्निमित्र ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था जो वेत्रवती और विदिशा नदी के संगम पर एक अत्यंत सुंदर पुरी थी। इस पुरी के खँडहर भिलसा (ग्वालियर) से थोड़ी दूर पर दूर तक फैले हुए हैं। चक्रवर्ती सम्राट् बनने की कामना से पुष्यामित्र ने इसी समय बड़ी धूमधाम से अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। इस यज्ञ के समय महाभाष्यकार पतंजलि जी विद्यमान थे। अश्वरक्षा का भार पुष्यामित्र के पौत्र (अग्निमित्र के पुत्र) वसुमित्र को सौंपा गया जिसने सिंधु नदी के किनारे यवनों को परास्त किया। पुष्यमित्र के समय में वैदिक या सनातन धर्म का फिर से उत्थान हुआ और बौद्ध धर्म दबने लगा। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार पुष्यमित्र ने बौद्धों पर उनकी यवन प्रेमी राजद्रोही, देशद्रोही एवं जनद्रोही प्रवृत्तियों के कारण बड़ा अत्याचार किया और वे देेेेशद्रोही धर्मद्रोही विलासी बौद्ध राज्य छोड़कर भागने लगे। ईसा से १४८ वर्ष पहले पुष्यमित्र की मृत्यु हुई और उसका पुत्र अग्निमित्र सिंहासन पर बैठा। उसके पीछे पुष्यमित्र का भाई सुज्येष्ठ और फिर अग्निमित्र का पुत्र वसुमित्र गद्दी पर बैठा। फिर धीरे धीरे इस वंश का प्रताप घटता गया और वसुदेव ने विश्वासघात करके 'कण्व' नामक ब्राह्मण राजवंश की प्रतिष्ठा की। श्रेणी:भारत का प्राचीन इतिहास श्रेणी:भारत के राजवंश.

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हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्‍यवस्‍था के लिए चतुर्थ स्‍तम्‍भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्‍त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्‍दोलन और साहित्‍यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्‍य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .

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हेलिओडोरस स्तंभ

हेलिओडोरस स्तंभ (बेसनगर, मध्यप्रदेश, भारत) हेलिओडोरस स्तंभ (Heliodorus pillar) भारत ले मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में आधुनिक बेसनगर के पास स्थित पत्थर से निर्मित प्राचीन स्तम्भ है। इसका निर्माण ११० ईसा पूर्व हेलिओडोरस (Heliodorus) ने कराया था जो भारतीय-यूनानी राजा अंतलिखित (Antialcidas) का शुंग राजा भागभद्र के दरबार में दूत था। य स्तम्भ साँची के स्तूप से केवल ५ मील की दूरी पर स्थित है। यह स्तंभ लोकभाषा में खाम बाबा के रूप में जाना जाता है। एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया, यह स्तंभ ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। स्तंभ पर पाली भाषा में ब्राम्ही लिपि का प्रयोग करते हुए एक अभिलेख मिलता है। यह अभिलेख स्तंभ इतिहास बताता है। नवें शुंग शासक महाराज भागभद्र के दरबार में तक्षशिला के यवन राजा अंतलिखित की ओर से दूसरी सदी ई. पू.

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विदिशा ज़िला

विदिशा जिलाभारतीय राज्य मध्य प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय विदिशा है। यह विंध्याचल पठार पर मुख्य विंध्याचल पर्वतमाला में स्थित है, जो उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर फैला है। पठार उत्तर की ओर ढलान और यह कई नदियों से घिरा है। अधिकांश विदिशा बेतवा नदी की घाटी में स्थित है जो दक्षिण से उत्तर में बहती है। इस घाटी की सीमा पूर्व में गढ़ी-टेंडा रेंज और पश्चिम में गनीरी-राघोगढ़ रेंज द्वारा की गई है। इन दोनों श्रेणियों में मालवा पठार पर विंध्याचल की सीमाओं का हिस्सा बनता है और दक्षिण से उत्तरी तक का विस्तार होता है। .

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विदिशा का इतिहास

विदिशा भारतवर्ष के प्रमुख प्राचीन नगरों में एक है, जो हिंदू तथा जैन धर्म के समृद्ध केन्द्र के रूप में जानी जाती है। जीर्ण अवस्था में बिखरे पड़े कई खंडहरनुमा इमारतें यह बताती है कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि कोण से मध्य प्रदेश का सबसे धनी क्षेत्र है। धार्मिक महत्व के कई भवनों को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो नष्ट कर दिया या मस्जिद में बदल दिया। महिष्मती (महेश्वर) के बाद विदिशा ही इस क्षेत्र की सबसे पुराना नगर माना जाता है। महिष्मती नगरी के ह्रास होने के बाद विदिशा को ही पूर्वी मालवा की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसकी चर्चा वैदिक साहित्यों में कई बार मिलता है। .

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विदिशा का किला

पुराना किला विदिशा का किला पत्थरों के बड़े-बड़े खंडों से बना हुआ है। इसकी चारों तरफ बड़े-बड़े दरवाजे का प्रावधान था। चारों तरफ स्थित किले की मोटी दीवार पर जगह-जगह पर तोप रखने की व्यवस्था थी। किले के दक्षिण पूर्व के दरवाजे की तरफ अभी भी कुछ तोपें देखी जा सकती है। .

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विदिशा के दर्शनीय स्थल

विदिशा मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी है। ऐतिहासिक नगरी होने के कारण विदिशा की प्राचीन इमारते और स्थापत्य दर्शनीय हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ प्राकृतिक स्थल और धार्मिक महत्व के स्थान भी देखने के योग्य हैं। विदिशा के निकटवर्ती छोटे छोटे नगर अपने में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर समेटे हुए हैं। अतः इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए इनको देखना भी रुचिकर है। .

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विदिशा की जलवायु

विदिशा मालवा के उपजाऊ पठारी क्षेत्र के उत्तर- पूर्व हिस्से में अवस्थित है तथा पश्चिम में मुख्य पठार से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है। नगर से दो मील उत्तर में जहाँ इस समय बेसनगर नामक एक छोटा- सा गाँव है, प्राचीन विदिशा बसी हुई है। यह नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी- सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है। .

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विजय मंदिर, विदिशा

विदिशा के किले की सीमा के अंदर पश्चिम की तरफ अवस्थित इस मंदिर के नाम पर ही विदिशा का नाम भेलसा पड़ा। सर्वप्रथम इसका उल्लेख सन् १०२४ में महमूद गजनी के साथ आये विद्धान अलबरुनी ने किया है। अपने समय में यह देश के विशालतम मंदिरों में से एक माना जाता था। साहित्यिक साक्ष्यों के अनुसार यह आधा मील लंबा- चौड़ा था तथा इसकी ऊँचाई १०५ गज थी, जिससे इसके कलश दूर से ही दिखते थे। दो बाहरी द्वारों के भी चिंह मिले हैं। सालों भर यात्रियों का मेला लगा रहता था तथा दिन- रात पूजा आरती होती रहती थी। .

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गंगा की सहायक नदियाँ

देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती हुईं गंगा नदी भारत की एक प्रमुख नदी है। इसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाड़ियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्मा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है। यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी और सोन गंगा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्‍लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रूप में बहती रहती है। गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियाँ चंबल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं। यमुना गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है। हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस तथा बाद में लघु हिमालय में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। इनके अलावा चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की अन्य सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। यमुना इलाहाबाद के निकट बायीँ ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग नैनीताल के निकट से निकलकर बिजनौर जिले से बहती हुई कन्नौज के पास गंगा में जा मिलती है। करनाली मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर अयोध्या, फैजाबाद होती हुई बलिया जिले के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में घाघरा कहा जाता है। गंडक हिमालय से निकलकर नेपाल में 'शालग्रामी' नाम से बहती हुई मैदानी भाग में 'नारायणी' उपनाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिल जाती है। कोसी की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। ब्रह्मपुत्र के बेसिन के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद एवरेस्ट कंचनजंघा शिखरों के बीच से बहती हुई अरूण नदी दक्षिण की ओर ९० किलोमीटर बहती है जहाँ इसमें पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह शिवालिक को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर सोन नदी पटना के पास गंगा में मिलती है। मध्य प्रदेश के मऊ के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर चम्बल नदी इटावा से ३८ किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। काली सिंध, बनास और पार्वती इसकी सहायक नदियाँ हैं। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में भोपाल से निकलकर उत्तर-पूर्वी दिशा में बहती हुई भोपाल, विदिशा, झाँसी, जालौन आदि जिलों में होकर बहती है। इसके ऊपरी भाग में कई झरने मिलते हैं किन्तु झाँसी के निकट यह काँप के मैदान में धीमे-धीमें बहती है। इसकी सम्पूर्ण लम्बाई ४८० किलोमीटर है। यह हमीरपुर के निकट यमुना में मिल जाती है। इसे प्राचीन काल में वत्रावटी के नाम से जाना जाता था। भागीरथी नदी के दायें किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर नदियाँ प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बायें किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गई हैं। .

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ग्यारसपुर

ग्यारसपुर, विदिशा से पूर्वोत्तर दिशा में २३ मील की दूरी पर एक पहाड़ी की उपत्यका में बसा हुआ है। इसके इर्द-गिर्द मिले अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ बौद्ध, जैन तथा ब्राह्मण तीनों संप्रदायों का प्रभाव रहा है। संपूर्ण दशार्ण क्षेत्र में ग्यारसपुर को विदिशा के बाद सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान कहा जाता है। .

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कैलाश सत्यार्थी

कैलाश सत्यार्थी (जन्म: 11 जनवरी 1954) एक भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्ता और बाल-श्रम के विरुद्ध पक्षधर हैं। उन्होंने १९८० में बचपन बचाओ आन्दोलन की स्थापना की जिसके बाद से वे विश्व भर के १४४ देशों के ८३,००० से अधिक बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य कर चुके हैं। सत्यार्थी के कार्यों के कारण ही वर्ष १९९९ में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ द्वारा बाल श्रम की निकृष्टतम श्रेणियों पर संधि सं॰ १८२ को अंगीकृत किया गया, जो अब दुनियाभर की सरकारों के लिए इस क्षेत्र में एक प्रमुख मार्गनिर्देशक है। उनके कार्यों को विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों व पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। इन पुरस्कारों में वर्ष २०१४ का नोबेल शान्ति पुरस्कार भी शामिल है जो उन्हें पाकिस्तान की नारी शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफ़ज़ई के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया है। .

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उदयपुरा, विदिशा

यह स्थान बीना और विदिशा के बीच, विदिशा से लगभग २० कोस की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में एक छोटे से गाँव के रूप में जाने जाना वाला यह स्थान ऐतिहासिक समय में विशेष महत्व का था। धार राज्य के परमारवंशीय राजा उदयादित्य के समय में इसका काफी विकास हुआ। यहाँ मिले कई हिंदु व मुस्लिम स्मारकों का अस्तित्व इस स्थान की प्राचीनता का प्रमाण है। .

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उदयगिरि

उदयगिरि विदिशा से वैसनगर होते हुए पहुँचा जा सकता है। नदी से यह गिरि लगभग १ मील की दूरी पर है। पहाड़ी के पूरब की तरफ पत्थरों को काटकर गुफाएँ बनाई गई हैं। इन गुफाओं में प्रस्तर- मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं, जो भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। उत्खनन से प्राप्त ध्वंसावशेष अपनी अलग कहानी कहते हैं। उदयगिरि को पहले नीचैगिरि के नाम से जाना जाता था। कालिदास ने भी इसे इसी नाम से संबोधित किया है। १० वीं शताब्दी में जब विदिशा धार के परमारों के हाथ में आ गया, तो राजा भोज के पौत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस स्थान का नाम उदयगिरि रख दिया। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

बामोरा मण्डी

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