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वानस्पतिक नाम

सूची वानस्पतिक नाम

वानस्पतिक नाम (botanical names) वानस्पतिक नामकरण के लिए अन्तरराष्ट्रीय कोड (International Code of Botanical Nomenclature (ICBN)) का पालन करते हुए पेड़-पौधों के वैज्ञानिक नाम को कहते हैं। इस प्रकार के नामकरण का उद्देश्य यह है कि पौधों के लिए एक ऐसा नाम हो जो विश्व भर में उस पौधे के संदर्भ में प्रयुक्त हो। .

102 संबंधों: चिलमिल, चीकू, झरबेर, डायनथस कैरीओफ़िलस, ढैंचा, तगर, तेलिया कन्द, तीखुर, दारुहरिद्रा, दवना, दक्षिण एशियाई भोजन में प्रयुक्त पादप, द्विनाम पद्धति, दूब घास, नाम, नागरमोथा, निर्गुन्डी, पत्थरचूर, पथरचटा, पथरचटा (खरपतवार), पिप्पली, पुत्रजीव, पुनर्नवा, प्राजक्ता (फूल), बच, बड़ी दुधी, बनधनिया, बबूल, बरसीम, बिलायती बबूल, बकायन, ब्रह्म कमल, ब्राह्मी, बेर, भारत के इमारती लकड़ी वाले वृक्ष, भारतीय पेड़ों पौधों तथा फूलों के नामों की बहुभाषी सूची, भिर्रा, भुंई आमला, मण्डूकपर्णी, मदार, मजीठ, मुस्कदाना, मूँग, मोरशिखा, रसभरी, रामपत्री, रामफल, रजनीगन्धा, लतरी, लौकी, लोध्र, ..., शतावर, शहतूत, शंखपुष्पी, श्रीआई, श्वेत बटन खुम्ब, सतावर, सप्तपर्ण, सल्फी, सहजन, सांवा घास, सुथनी, सुबबूल, हड़जोड़, हरीतकी, ज़ैतून, जायफल, जायफल का वृक्ष, जंगल जलेबी, जीरा, जीववैज्ञानिक वर्गीकरण, विडंग, विदारीकंद, विधारा, गुड़मार, गूमा, गोरखचिंच, गोरखमुंडी, आमड़ा, आलू बुख़ारा, इन्द्रजाल (वनस्पति), कचरी, कटीली चौलाई, कठमूली, कठगूलर, कनकउआ, कपूर कचरी, कमल, कलिहारी, काकमारी, ककोड़ा, कुचिला, कुटज, कुलथी, कुंबी, कैथा, अदरक, अपराजिता, अमरूद, अरण्यतुलसी, अखरोट, अगर (वृक्ष), छोटी दुद्धी सूचकांक विस्तार (52 अधिक) »

चिलमिल

चिलमिल (वानस्पतिक नाम: Holoptelea integrifolia; अंग्रेजी: Indian Elm) एक पर्णपाती वृक्ष है जो १० मीटर तक लम्बा हो सकता है। श्रेणी:वृक्ष.

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चीकू

चीकू का वृक्ष जिस पर फल लगे हैं। मैसूर में एक स्त्री पके चीकू बेच रही है। चीकू (वानस्पतिक नाम: Manilkara zapota) फल का एक प्रकार हैं। चीकू मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं।.

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झरबेर

300px झरबेर (वानस्पतिक नाम:Ziziphus nummularia) एक कंटीली झाड़ी है जिसमें बेर जैसे फल लगते हैं। इसे झड़बेर या जंगली बेर भी कहते हैं। इन .

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डायनथस कैरीओफ़िलस

कार्नेशन कार्नेशन (डायनथस कैरीओफ़िलस / Dianthus caryophyllus) एक महत्वपूर्ण एवं अत्यंत आकर्षक व्यावसायिक पुष्प है। यह कैरियोफाइलेसी कुल का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम डायन्थस कैरियोफिलस है। कार्नेशन का उत्पत्ति स्थल दक्षिण फ्रांस माना जाता है। इसको 'डिविन् फ्लॉवर' के नाम से जाना जाता है। इसके पुष्प की सुगन्ध, विभिन्न रंग, कम वजन एवं अधिक दिनों तक तरोताजा बने रहने के कारण मुख्य दस कर्तित पुष्पों में इसका स्थान है। इसका कट फ्लॉवर गुलदस्ता बनाने, घर की सजावट, गाड़ियों की सजावट इत्यादि में किया जाता है। इसकी व्यावसायिक खेती यूरोप, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, कोलम्बिया, केन्या, टर्की, मोरक्को, नीदरलैंड, इजराइल, पोलैण्ड, स्पेन, भारत इत्यादि देशों में की जाती है। इसके पुष्प विभिन्न रंगों के जैसे गुलाबी, लाल, पीला, सफेद एवं विभिन्न प्रकार के मिश्रित रंगों में पाये जाते हैं। .

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ढैंचा

ढैंचा की पत्तियाँ, फूल एवं फल ढैंचा (वानस्पतिक नाम: Sesbania bispinosa) चकवँड़ की तरह का एक पेड़ है। इसकी छाल से रस्सियाँ बनाई जाती है। हरी खाद के रूप में भी इसका प्रयेग होता है। .

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तगर

तगर (वानस्पतिक नाम: Valeriana wallichii) एक प्रकार का पेड़ जो अफगानिस्तान, कश्मीर, भूटान और कोंकण में नदियों के किनारे पाया जाता है। भारत के बाहर यह मडागास्कर और जंजीबार में भी होता है। इसकी लकड़ी बहुत सुगंधित होती है और उसमें से बहुत अधिक मात्रा में एक प्रकार का तेल निकलता है। यह लकड़ी अगर की लकड़ी के स्थान पर तथा औषध के काम में आती है। लकड़ी काले रंग की और सुगंधित होती है और उसका बुरादा जलाने के काम में आता है। भावप्रकाश के अनुसार तगर दो प्रकार का होता है, एक में सफेद रंग के और दूसरे में नीले रंग के फूल लगते हैं। इसकी पत्तियों के रस से आँख के अनेक रोग दूर होते हैं। वैद्यक में इसे उष्ण, वीर्यवर्धक, शीतल, मधुर, स्निग्ध, लघु और विष, अपस्मार, शूल, दृष्टिदोष, विषदोष, भूतोन्माद और त्रिदोष आदि का नाशक माना है। श्रेणी:औषधीय पादप.

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तेलिया कन्द

300px तेलिया कन्द (वानस्पतिक नाम: yphonium venosum या Sauromatum venosum) हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला एक पादप है। तेलिया कन्द के लिए राज निघण्टु में लिखा है कि “तैल कन्द: देह सिद्धिं विद्यते” अर्थात तेलिया कन्द के द्वारा व्यक्ति देह सिद्घि को प्राप्त कर सकता है। दु:साध्य नपुंसक को भी पुरुषार्थ प्राप्त हो सकता है। श्रेणी:औषधीय पादप.

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तीखुर

तीखुर तीखुर (वानस्पतिक नाम: Curcuma angustifolia) हल्दी जाति का एक पादप जिसकी जड़ का सार सफेद चूर्ण के रूप में होता है और खीर, हलुआ आदि बनाने के काम आता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का देशज है। अपने औषधीय गुणों के कारण पश्चिमी जगत में में भी इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। एक विदेशज तीखुर भी आता है जिसे अरारोट कहते हैं। .

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दारुहरिद्रा

दारुहरिद्रा दारुहरिद्रा (वानस्पतिक नाम:Berberis aristata), एक औषधीय पौधा है। यह पादप भारत और नेपाल के पर्वतीय हिमालयी क्षेत्रों का देशज वृक्ष है। यह श्रीलंका में भी पाया जाता है। यह मधुमेह की चिकित्सा में बहुत उपयोगी है। .

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दवना

दवना का फूला हुआ पौधा दवना का तेल दवना या दौना (वानस्पतिक नाम: Artemisia pallens) एक सुगंधित औषधीय वनस्पति है। इसकी बहुत सी जातियाँ हैं। .

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दक्षिण एशियाई भोजन में प्रयुक्त पादप

दक्षिण एशिया और विशेषतः भारतीय, भोजन अधिकांशतः शाकमय होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियाँ, अन्न, तथा मसाले होते हैं। इस लेख में दणिण एशिया के देशों के भोजन में प्रयुक्त पौधों के नाम विभिन्न भाषाओं में दिए गये हैं। .

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द्विनाम पद्धति

द्विनाम पद्धति (Binomial nomenclature) जीवों (जंतु एवं वनस्पति) के नामकरण की पद्धति है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक लिनिअस ने इसका प्रतिपादन किया। इसके अनुसार दिए गए नाम के दो अंग होते हैं, जो क्रमशः जीव के वंश (जीनस) और जाति (स्पीशीज) के द्योतक हैं। जैसे 'एलिअम सेपा' (प्याज)। यहाँ “एलिअम” वंश को और “सेपा” जाति को सूचित करता है। .

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दूब घास

जमीन पर पसरी '''दूब''' घास हरी भरी '''दूब''' घास दूब या दुर्वा (वानस्पतिक नाम: Cynodon dactylon) एक घास है जो जमीन पर पसरती है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग किया जाता है। मारवाडी भाषा में इसे ध्रो कहा जाता हैँ। शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो दूब को नहीं जानता होगा। हाँ यह अलग बात है कि हर क्षेत्रों में तथा भाषाओँ में यह अलग अलग नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे दूब, दुबडा, संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली, मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा, गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो, अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन, बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामों से जाना जाता है। इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है। इसके औषधीय गुणों के अनुसार दूब त्रिदोष को हरने वाली एक ऐसी औषधि है जो वात कफ पित्त के समस्त विकारों को नष्ट करते हुए वात-कफ और पित्त को सम करती है। दूब सेवन के साथ यदि कपाल भाति की क्रिया का नियमित यौगिक अभ्यास किया जाये तो शरीर के भीतर के त्रिदोष को नियंत्रित कर देता है, यह दाह शामक, रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदर, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोगों, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है। यह कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक, उदर रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है। श्वेत दूर्वा विशेषतः वमन, कफ, पित्त, दाह, आमातिसार, रक्त पित्त, एवं कास आदि विकारों में विशेष रूप से प्रयोजनीय है। सेवन की दृष्टि से दूब की जड़ का 2 चम्मच पेस्ट एक कप पानी में मिलाकर पीना चाहिए। .

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नाम

नाम का प्रयोग एक वस्तु को दूसरी से अलग करने में सहायक होता है। नाम किसी एक वस्तु का हो सकता है या बहुत सी वस्तुओं के समूह का हो सकता है। किसी वस्तु का नाम 'व्यक्तिवाचक संज्ञा' (प्रॉपर नाउन) कहलाती है। .

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नागरमोथा

नागरमोथा (वानस्पतिक नाम: Cyperus scariosus) एक पौधा है जो पूरे भारत में खरपतवार के रूप में उगता है। इससे इत्र बनता है और औषधि के रूप में इसका उपयोग होता है। संस्कृत में इसे नागरमुस्तक या भद्र मुस्तक कहते हैं। यह नमी वाले तथा जलीय क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। .

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निर्गुन्डी

300px निर्गुन्डी (वानस्पतिक नाम: Vitex negundo) एक औषधीय गुणों वाली क्षुप (झाड़ी) है। हिन्दी में इसे संभालू/सम्मालू, शिवारी, निसिन्दा शेफाली, तथा संस्कृत में इसे सिन्दुवार के नाम से जाना जाता है। इसके क्षुप १० फीट तक ऊंचे पाए जाते हैं। संस्कृत में इसे इन्द्राणी, नीलपुष्पा, श्वेत सुरसा, सुबाहा भी कहते हैं। राजस्थान में यह निनगंड नाम से जाना जाता है। इसकी पत्तियों के काढ़े का उपयोग जुकाम, सिरदर्द, आमवात विकारों तथा जोड़ों की सूजन में किया जाता है। यह बुद्धिप्रद, पचने में हल्का, केशों के लिए हितकर, नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला तो होता ही है, साथ ही शूल, सूजन, आंव, वायु, पेट के कीड़े नष्ट करने, कोढ़, अरुचि व ज्वर आदि रोगाें की चिकित्सा में भी काम आता है। इसके पत्ते में रक्तशोधन का भी विशेष गुण होता है।; अन्य भाषाओं में नाम.

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पत्थरचूर

पत्थरचूर पत्थरचूर या पाषाणभेद (वानस्पतिक नाम: Plectranthus barbatus तथा Coleus forskohlii) एक औषधीय पादप है। कोलियस फोर्सकोली जिसे पाषाणभेद अथवा पत्थरचूर भी कहा जाता है, उन कुछ औषधीय पौधों में से है, वैज्ञानिक आधारों पर जिनकी औषधीय उपयोगिता हाल ही में स्थापित हुई है। भारतवर्ष के समस्त ऊष्ण कतिबन्धीय एवं उप-ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों के साथ-साथ पाकिस्तान, श्रीलंका, पूर्वी अफ्रीका, ब्राजील, मिश्र, ईथोपिया तथा अरब देशों में पाए जाने वाले इस औषधीय पौधे को भविष्य के एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधे के रूप में देखा जा रहा है। वर्तमान में भारतवर्ष के विभिन्न भागों जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा राजस्थान में इसकी विधिवत खेती भी प्रारंभ हो चुकी है जो काफी सफल रही है। विभिन्न भाषाओं में पाषाणभेद के नाम-.

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पथरचटा

पथरचटा का पौधा पथरचटा या पथरचट्टा (वानस्पतिक नाम - Kalanchoe pinnata या Bryophyllum calycinum या Bryophyllum pinnatum) यह एक सपुष्पक पादप है जो भारत के सभी राज्यों में पाया जाता है। माडागास्कर को इसका उत्पत्तिस्थल बताया जाता है। इसके पत्तों के किनारों से से नया पौधा निकलता है। यह पथरी तथा अन्य रोगों में उपयोगी है। .

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पथरचटा (खरपतवार)

पत्थरचट्टा (वानस्पतिक नाम: ट्राइन्थिमा मोनोगाइना / Trianthema monogyna) खरीफ ऋतु का एकवर्षीय खरपतवार है। वर्षा ऋतु में यह बहुत बढता हैं व फूलता-फलता है। इसकी वृद्धि उपजाऊ तथा नम भूमि में बहुत अधिक होती है। भूमि में जड़ें गहराई तक जाती हैं। इसके तने फैलने वाले, बहुशाखीय व सरस होते हैं जिनकी लम्बाई २५-३० सेमी होती है। पत्तियां विभिन्न आकार की रसदार व मोटी होती हैं। पुष्प सलिटरी व्रत्तहीन, सफेद अथवा लालिमा युक्त होते हैं। फूल कैप्सूल के आकार का होता हैं तथा फल काले अनेक रखाओं से युक्त होते हैं। .

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पिप्पली

पिप्पली (वानस्पतिक नाम: Piper longum), (पीपली, पीपरी, एवं अंग्रेज़ी: 'लॉन्ग पाइपर'), पाइपरेसी परिवार का पुष्पीय पौधा है। इसकी खेती इसके फल के लिये की जाती है। इस फल को सुखाकर मसाले, छौंक एवं औदषधीय गुणों के लिये आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है। इसका स्वाद अपने परिवार के ही एक सदस्य काली मिर्च जैसा ही किन्तु उससे अधिक तीखा होता है। इस परिवार के अन्य सदस्यों में दक्षिणी या सफ़ेद मिर्च, गोल मिर्च एवं ग्रीन पैपर भी हैं। इनके लिये अंग्रेज़ी शब्द पैपर इनके संस्कृत एवं तमिल/मलयाली नाम पिप्पली से ही लिया गया है। विभिन्न भाषाओं में इसके नाम इस प्रकार से हैं: संस्कृत पिप्पली, हिन्दी- पीपर, पीपल, मराठी- पिपल, गुजराती- पीपर, बांग्ला- पिपुल, तेलुगू- पिप्पलु, तिप्पली, फारसी- फिलफिल। अंग्रेज़ी- लांग पीपर, लैटिन- पाइपर लांगम। पिप्पली के फल कई छोटे फलों से मिल कर बना होता है, जिनमें से हरेक एक खसखस के दाने के बराबर होता है। ये सभी मिलकर एक हेज़ल वृक्ष की तरह दिखने वाले आकार में जुड़े रहते हैं। इस फल में ऍल्कलॉयड पाइपराइन होता है, जो इसे इसका तीखापन देता है। इसकी अन्य प्रजातियाँ जावा एवं इण्डोनेशिया में पायी जाती हैं। इसमें सुगन्धित तेल (0.७%), पाइपराइन (४-५%) तथा पिपलार्टिन नामक क्षाराभ पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त दो नए तरल क्षाराभ सिसेमिन और पिपलास्टिरॉल भी हाल ही मेंज्ञात हुए हैं। पीपर की जड़ जिसे पीपला मूल भी कहा गया है पाइपरिन (०.१५-०.१८%), पिपलार्टिन (०.१३-०.२०%), पाइपरलौंगुमिनिन, एक स्टिरॉएड तथा ग्लाइकोसाइड से युक्त होती है। .

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पुत्रजीव

पुत्रजीव के पत्ते और फल पुत्रजीव (वानस्पतिक नाम: Putranjiva Roxburghii) एक औषधीय पादप है। संस्कृत में इसे पुत्रंजीव, गर्भकर, कुमारजीव आदि नामों से जाना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप, जापान, दक्षिणी चीन, न्यू गिनिया आदि का देशज है। .

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पुनर्नवा

पुनर्नवा या शोथहीन या गदहपूरना (वानस्पतिक नाम:Boerhaavia diffusa) एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है। श्वेत पुनर्नवा का पौधा बहुवर्षायु और प्रसरणशील होता है। क्षुप 2 से 3 मीटर लंबे होते हैं। ये प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में नए निकलते हैं व ग्रीष्म में सूख जाते हैं। इस क्षुप के काण्ड प्रायः गोलाई लिए कड़े, पतले व गोल होते हैं। पर्व संधि पर ये मोटे हो जाते हैं। शाखाएं अनेक लंबी, पतली तथा लालवर्ण की होती हैं। पत्ते छोटे व बड़े दोनों प्रकार के होते हैं। लंबाई 25 से 27 मिलीमीटर होती है। निचला तल श्वेताभ होता है व छूने पर चिकना प्रतीत होता है। .

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प्राजक्ता (फूल)

प्राजक्ता एक पुष्प देने वाला वृक्ष है। इसे हरसिंगार, शेफाली, शिउली आदि नामो से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊँचा होता है। इसका वानस्पतिक नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। पारिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है। यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है। .

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बच

बच बच (वानस्पतिक नाम:Acorus calamus) एक बारहमासी पौधा है जिसकी शाखायें बहुत विस्तृत होती है। पत्तियाँ रेखाकार, लंबी मोटी व मध्य शिरा युक्त होती है और 0.7 से 1.7 से.मी.

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बड़ी दुधी

बड़ी दुधी बड़ी दुधी (वानस्पतिक नाम:Euphorbia hirta) एक खरपतवार है। बडी दुद्धी एकवर्षीय खरपतवार है। यह ऊँची भूमि में उगता है। वर्षा ऋतु में अधिक वृद्धि होती है। पत्तियां व तना तोड़ने पर दूध के रंग जैसा तरल पदार्थ निकलता हैं। जडें मूसला होती हैं लेकिन अधिक गहराई तक भूमि में नहीं जाती हैं। तना कमजोर होता है जो भूमि पर फैलकर बढता है तथा तने पर छोटे-छोटे बाल होते हैं। पत्तियां दीर्घायत (ओबलांग), लाल रंग लिए हुए तथा सिरा नुकीला होता है। फूल कम्पोजिट, फल कैप्सूल बाल युक्त, ०.१२५ सेमी लम्बे होते हैं। .

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बनधनिया

बनधनिया बनधनिया (वानस्पतिक नाम:Spergula arvensis) एक खरपतवार है। श्रेणी:खरपतवार.

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बबूल

बबूल या कीकर (वानस्पतिक नाम: आकास्या नीलोतिका) अकैसिया प्रजाति का एक वृक्ष है। यह अफ्रीका महाद्वीप एवं भारतीय उपमहाद्वीप का मूल वृक्ष है। उत्तरी भारत में बबूल की हरी पतली टहनियां दातून के काम आती हैं। बबूल की दातुन दांतों को स्वच्छ और स्वस्थ रखती है। बबूल की लकड़ी का कोयला भी अच्छा होता है। हमारे यहां दो तरह के बबूल अधिकतर पाए और उगाये जाते हैं। एक देशी बबूल जो देर से होता है और दूसरा मासकीट नामक बबूल.

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बरसीम

बरसीम बरसीम (वानस्पतिक नाम: Trifolium alexandrinum) चारे की वार्षिक फसल है। इसकी खेती अधिकांशतः सिंचित उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में भैंस एवं अन्य पशुओं के चारे के लिए की जाती है। प्राचीन मिस्र में यह एक महत्वपूर्ण फसल थी। भारत में बरसीम उन्नीसवीं शताब्दी में आरम्भ में आयी। अमेरिका और यूरोप में भी इसकी खेती होती है। बरसीम का पौधा 30 से 60 सेमी लम्बा होता है। .

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बिलायती बबूल

बिलायती बबूल बिलायती बबूल (वानस्पतिक नाम: Prosopis juliflora / प्रोसोपीस् यूलीफ़्लोरा) झाड़ीदार छोटे आकार का वृक्ष है। इसका मूल स्थान मेक्सिको, दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन हैं। अब यह एशिया, आस्ट्रेलिया एवं अन्य स्थानों पर एक अवांछित वृक्ष (weed) के रूप में पाया जाने लगा है। इसको पशुआहार, लकड़ी एवं पर्यावरण प्रबन्धन के लिये उपयोग में लाया जाता है। इसको 'अंग्रेजी बबूल' 'काबुली कीकर', 'बिलायती खेजरा/खेजरि' भी कहते हैं। यह वृक्ष १२ मीटर तक लम्बा होता है और इसके तने का व्यास 1.2 मीटर तक होता है। इसकी जड़ें इतनी गहराई तक पहुँचती हैं कि यह एक कीर्तिमान है। एरिजोना के पास एक खुली खान में पाया गया था कि इसकी जड़ें 53.3 मीटर गहराई तक प्रवेश कर गयीं थीं। .

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बकायन

महानिम्ब की एक शाखा में पत्तियाँ, फूल और फल बकायन (वानस्पतिक नाम: Melia azedarach) नीम की जाति का एक पेड़ है। भारत में प्रायः सभी प्रान्तों में पाया जाता है। नीम से छोटा एवं अचिरस्थाई होता है। इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकाइन की लकड़ी इमारती कामों के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह छायादार पेड़ होता है। इसके फल भी कड़वे नीम के फल के समान होते हैं। इसको महानिम्ब भी कहते हैं। यह एक औषधीय पेड़ है। आयुर्वेद में बकायन का बहुत महत्त्व है। .

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ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल (वानस्पतिक नाम: Saussurea obvallata) एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सूर्यमुखी, गेंदा, डहलिया, कुसुम एवं भृंगराज इस कुल के अन्य प्रमुख पौधे हैं। भारत में Epiphyllum oxypetalum को भी 'ब्रह्म कमल' कहते हैं। .

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ब्राह्मी

तालकटोरा उद्यान, दिल्ली में ब्राह्मी का पौधा ब्राह्मी का पौधा ब्राह्मी (वानस्पतिक नाम: Bacapa monnieri) का एक औषधीय पौधा है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियाँ मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। यह पौधा नम स्‍थानों में पाया जाता है, तथा मुख्‍यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है। इसे भारत वर्ष में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है जैसे हिन्‍दी में सफेद चमनी, संस्‍कृत में सौम्‍यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्‍ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि तथा इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है। यह पूर्ण रूपेण औषधीय पौधा है। यह औषधि नाडि़यों के लिये पौष्टिक होती है। कब्‍ज को दूर करती है। इसके पत्‍ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर करती है। ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है। यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है। .

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बेर

डाली में लगा हुआ बेर का फल पके हुए बेर बेर (वानस्पतिक नाम: Ziziphus mauritiana) फल का एक प्रकार हैं। कच्चे फल हरे रंग के होते हैं। पकने पर थोड़ा लाल या लाल-हरे रंग के हो जाते हैं। बेर एक ऐसा फलदार पेड़़ है जो कि एक बार पूरक सिंचाई से स्थापित होने के पश्चात वर्षा के पानी पर निर्भर रहकर भी फलोत्पादन कर सकता है। यह एक बहुवर्षीय व बहुउपयोगी फलदार पेड़ है जिसमें फलों के अतिरिक्त पेड़ के अन्य भागों का भी आर्थिक महत्व है। शुष्क क्षेत्रों में बार-बार अकाल की स्थिति से निपटने के लिए भी बेर की बागवानी अति उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसकी पत्तियाँ पशुओं के लिए पौष्टिक चारा प्रदान करती है जबकि इसमें प्रतिवर्ष अनिवार्य रूप से की जाने वाली कटाई-छंटाई से प्राप्त कांटेदार झाड़ियां खेतों व ढ़ाणियों की रक्षात्मक बाड़ बनाने व भण्डारित चारे की सुरक्षा के लिए उपयोगी है। बेर खेती ऊष्ण व उपोष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है क्योंकि इसमें कम पानी व सूखे से लड़ने की विशेष क्षमता होती है बेर में वानस्पतिक बढ़वार वर्षा ऋतु के दौरान व फूल वर्षा ऋतु के आखिर में आते है तथा फल वर्षा की भूमिगत नमी के कम होने तथा तापमान बढ़ने से पहले ही पक जाते है। गर्मियों में पौधे सुषुप्तावस्था में प्रवेश कर जाते है व उस समय पत्तियाँ अपने आप ही झड़ जाती है तब पानी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है। इस तरह बेर अधिक तापमान तो सहन कर लेता है लेकिन शीत ऋतु में पड़ने वाले पाले के प्रति अति संवेदनशील होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में जहां नियमित रूप से पाला पड़ने की सम्भावना रहती है, इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। जहां तक मिट्टी का सवाल है, बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है, हालाकि बलुई मिट्टी में भी समुचित मात्रा में देशी खाद का उपयोग करके इसकी खेती की जा सकती है। हल्की क्षारीय व हल्की लवणीय भूमि में भी इसको लगा सकते है। बेर में 300 से भी अधिक किस्में विकसित की जा चुकी है परन्तु सभी किस्में बारानी क्षेत्रों में विशेषकर कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसे क्षेत्रों के लिए अगेती व मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में ज्यादा उपयुक्त पाई गई है। .

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भारत के इमारती लकड़ी वाले वृक्ष

भारत में 150 से भी अधिक इमारती लकड़ी वाले वृक्षों की जातियाँ पायी जाती हैं। नीचे इनकी कुछ प्रमुख जातियों की सूची दी गयी है- ¹ After seasoning at 12% moisture content .

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भारतीय पेड़ों पौधों तथा फूलों के नामों की बहुभाषी सूची

भारत एक विशाल देश है जिसमें बहुत सी भाषाएँ बोली जातीं हैं। भारत में पाए जाने वाले पेड़-पौधों एवं फूलों के नाम भी अलग-अलग भाषाओं एवं क्षेत्रों में अलग-अलग हैं। नीचे की सूची में भारत की प्रमुख भाषाओं में विभिन्न पेड़ों, पौधों एवं फूलों के नाम दिए गए हैं- .

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भिर्रा

भिर्रा भिर्रा (वानस्पतिक नाम:Chloroxylon swietenia); अंग्रेजी: Ceylon satinwood, East Indian satinwood or buruta) एक कठोर काष्ठ वाला पादप है। यह दक्षिणी भारत, श्री लंका और मडगास्कर का देशज वृक्ष है। अन्य भाषाओं में नाम: commonly known as: Ceylon satinwood, East Indian satinwood • Malayalam: പുരുഷ് purus, വരിമരം varimaram • Marathi: (बेहरु) behru, हेद heda, हेद्रू hedru • Oriya: ଭେରୁ bheru • Sanskrit: पीतदारु pitadaru, पीतकाष्ठ pitakastha • Tamil: கன்முதிரை kan-mutirai, கரும்புரசு karum-puracu, முதிரை mutirai, புரசு puracu • Telugu: బిళ్లు billu .

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भुंई आमला

भूआमलकी भुंई आंवला (वानस्पतिक नाम: Phyllanthus niruri) अथवा भुंई आमला अथवा भूआमलकी एरन्ड कुल का लगभग 1.5 फीट से 2 फीट ऊंचा एक वर्षीय पौधा होता है जो बरसात के समय खेतों में खरपतवार के रूप में स्वयंमेव उगता दिखाई देता है। यद्यपि आंवला की तुलना में यह पौधा बहुत छोटा होता है परन्तु आवंला के पौधे जैसे पत्तों तथा पत्तों के पीछे छोटे-छोटे आंवला जैसे फल लगने के कारण संभवतया इसको जमीन का आंवला अथवा 'भुंई आमला' कहा जाता है। अधिकांशतः बंजर जमीनों के साथ-साथ खेतों में वर्षा ऋतु में खरपतवार के रूप में उगने वाले पौधे भुंई आमला का उत्पत्ति स्थल अमेरिका माना जाता है। भुंई आमला का सम्पूर्ण पंचांग (जड़, तना, पत्ती, पुष्प, फल) औषधीय उपयोग का होता है। भारतवर्ष में यह लगभग सभी क्षेत्रों में बहुतायत में खरपतवार के रूप में मिलता जिसे लोक परंपराओं के अनुसार लीवर से संबंधित विकारों विशेषतया पीलिया तथा हैप्टीटाइटस-बी के उपचार हेतु प्रयुक्त किया जाता है। इसके पत्तों में पौटाशियम की काफी अधिक मात्रा (लगभग 0.83 प्रतिशत) होने के कारण यह काफी अधिक मूत्रल (Diuretic) है। लीवर संबंधी विकारों के साथ-साथ भुंई आमला बुखार, मधुमेह, घनोरिया, आंखों की बीमारियों, खुजली तथा चर्मरोगों, फोड़ों, पेशाब से संबंधित विकारों जैसे पेशाब में खून आना, पेशाब में जलन होना आदि के उपचार हेतु भी प्रयुक्त किया जाता है। इसकी जड़ों से उपयोगी टांनिक बनाया जाता है। इसकी जड़े कब्ज में प्रयुक्त की जाती हैं। इसके मुख्य घटक फाइलेन्थिन तथा हाईपोफाइलेन्थिन हैं तथा इसकी सूखी शाक में फाइलेन्थिल तत्व की मात्रा 0.4% से 0.5% तक होती है। निःसंदेह भुंई आवला काफी अधिक औषधीय उपयोग का पौधा है विशेष रूप से हैप्टीटाइस-बी जैसी जानलेवा बीमारियों के उपचार में प्रभावी सिद्ध होने के कारण इस पौधे की उपयोगगिता और भी बढ़ गई है। यद्यपि अभी तक भुंई आवला प्राकृतिक रूप से ही काफी मात्रा में प्राप्त हो जाता रहा है तथा बड़े स्तर पर इसके कृषिकरण हेतु प्रयास नहीं किए गए हैं। परन्तु इसकी उपयोगिता तथा मांग को देखते हुए इसके कृषिकरण की आवश्यकता महसूस हो रही है क्योंकि अभी तक इसका बड़े स्तर तक कृषिकरण नहीं हो पाया है, इसका कृषिकरण काफी आसान है, यह काफी कम अवधि की फसल है, अतः इसकी खेती किसानों के लिए व्यवसायिक रूप से काफी लाभकारी सिद्ध हो सकती है। इसकी औषधीय उपयोगिता को देखते हुए इसके बाजार के निरंतर बढ़ते जाने की पर्याप्त संभावनाएं प्रतीत हो रही हैं। दोस्तों भूमि अमला एक दिव्य औषधि है और औषधि के प्रयोग से अनेकों प्रकार की बीमारियों का सहज इलाज संभव है लेकिन जानकारी के अभाव में भारत के लोग भूमि अमला का प्रयोग नहीं कर पाते हैं यह बहुत दुख का विषय है और इसके लिए भारत सरकार की नरेंद्र मोदी सरकार को चाहिए कि भूमि आंवला का अधिक से अधिक प्रचार प्रसार किया जाए जिससे कि लीवर आंतों की बीमारी डायबिटीज और पीलिया जैसी भयंकर बीमारी कौशल इलाज किया जा सकता है धन्यवाद देवेन्द्र प्रसाद मिश्र शिक्षक रीवा मध्यप्रदेश भारत मोबाइल नंबर प्लस 91 7:00 0 6888 63 एंड अदर मोबाइल नंबर Airtel कंपनी और मोबाइल नंबर है प्लस 91 70 24 18 0020 फर्स्ट मोबाइल नंबर इस जियो 4जी सिम कार्ड एंड विभिन्न भाषाओं में भुंई आमला के नाम.

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मण्डूकपर्णी

ब्राह्मी बूटी या मण्डूकपर्णी (वानस्पतिक नाम: Centella asiatica) एक औषधीय वनस्पति है। इसका फैलने वाला छोटा क्षुप होता है जो नमी वाले स्थानों पर होता है। पत्ते कुछ मांसल और छ्त्राकार होते हैं तथा किनारों पर दंतुर होते है। इसके पत्तों का व्यास लगभग आधा ईंच से लेकर एक ईंच तक होता है। उत्तरी भारत में यह लगभग हर जगह पर नमी वाली जगह पर छाया वाली जगह पर मिल जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधीय क्षुप माना जाता है। यह वनस्पति मेध्य द्रव्य (मेधा शक्ति बढाने वाला) के रूप में गिना जाता है। पागलपन और मिर्गी की प्रसिद्ध औषधि सारस्वत चूर्ण में इसके स्वरस की भावना दी जाती है। .

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मदार

मदार का वृक्ष आक के पुष से बनीं मालाएँ मदार (वानस्पतिक नाम:Calotropis gigantea) एक औषधीय पादप है। इसको मंदार', आक, 'अर्क' और अकौआ भी कहते हैं। इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है। पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है। आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है। चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है। आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है, यह मनुष्य को मार डालता है। इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य की मृत्यु हो सकती है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है। .

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मजीठ

मजीठ मजीठ मजीठ (संस्कृत: मंजिष्ठा; वानस्पतिक नाम:Rubia cordifolia) एक पुष्पित होने वाला औषधीय पादप है। इसकी जड़ों से लाग रंजक निकाला जाता है। यह भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाती है। इसकी जड़ें जमीन में दूर-दूर तक फैलीं होतीं हैं। .

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मुस्कदाना

मुस्कदाना मुस्कदाना (वानस्पतिक नाम:Abelmoschus moschatus) एक सगंधीय एवं औषधीय पादप है। यह मलवेसी कुल (Malvaceae) का पादप है और भारत का देशज है। .

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मूँग

मूँग एक प्रमुख फसल है। इसका वानस्पतिक नाम बिगना रेडिएटा (Vigna radiata) है। यह लेग्यूमिनेसी कुल का पौधा हैं तथा इसका जन्म स्थान भारत है। मूँग के दानों में २५% प्रोटिन, ६०% कार्बोहाइड्रेट, १३% वसा तथा अल्प मात्रा में विटामिन सी पाया जाता हैं। .

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मोरशिखा

मोरशिखा मोरशिका (वानस्पतिक नाम: Celosia cristata) एक पौधा है जिसका फूल मोर (या मुर्गे) के शिखा जैसा दिखता है। इसलिए हिन्दी में इसे 'मुर्गे का फूल' या 'लाल मुर्गा' भी कहते हैं। यह पौधा घर के अन्दर और बाहर समान रूप से उगाया जा सकता है। इस पौधे का उपयोग प्रायः सजाने के लिए किया जाता है। इसकी पत्तियाँ और फूल सब्जी के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं। भारत, पश्चिमी अफ्रीका, दक्षिणी अफ्रीका में सब्जी के रूप में इनकी खेती होती है। .

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रसभरी

रसभरी रसभरी (वानस्पतिक नाम: Physalis peruviana; physalis .

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रामपत्री

रामपत्री भारत के पश्चिम तटीय क्षेत्र में पाया जाने वाला पौधा है जिसका वनस्पति वैज्ञानिक नाम 'मिरिस्टिका मालाबारिका' (Myristica malabarica) है। यह भारत का देशज पौधा है जो लुप्ति के कगार पर है। इसके पेड़ की लम्बाई २५ मीटर तक होती है। इसकी छाल हरा-काला तथा चिकनी होती है, कभी-कभी लाल भी होती है। इसे पुलाव और बिरयानी में सुगंध के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र ने इससे कैंसर की दवा विकसित की है जिसका परीक्षण चूहों पर किया जा चुका है। यह दवा फेफड़े के कैंसर और बच्चों में होने वाले दुर्लभ प्रकार के कैंसर 'न्यूरोब्लास्टोमा' के उपचार में काफी असरदार साबित हो सकती है। न्यूरोब्लास्टोमा एक ऐसा कैंसर है जिसमें वृक्क ग्रंथियों, गर्दन, सीने और रीढ़ की नर्व कोशिकाओं में कैंसर कोशिकाएं बढ़ने लगती हैं। .

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रामफल

रामफल रामफल रामफल (वानस्पतिक नाम: Annona reticulata) एक फल है। श्रेणी:फल.

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रजनीगन्धा

रजनीगन्धा (वानस्पतिक नाम: Polianthes tuberosa) सुगन्धित फूलों वाला पौधा है जो पूरे भारत में पाया जाता है। रजनीगंधा का पुष्प कुप्पी (फनल) के आकार का और सफेद रंग का लगभग 25 मिलीमीटर लम्बा तथा सुगन्धित होते हैं।रजनीगन्धा के फूल को कहीं-कहीं 'अनजानी' तथा 'सुगंधराज' नाम से भी जाना जाता है। रजनीगंधा का फूल अपनी मनमोहक भीनी-भीनी सुगन्ध, अधिक समय तक ताजा रहने तथा दूर तक परिवहन क्षमता के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। .

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लतरी

खेसरी की फलियाँ खेसारी के सूखे बीज लतरी का पौधा लतरी या खेसारी (वानस्पतिक नाम: Lathyrus sativus) एक वनस्पति है जिससे दाल प्राप्त होती है। दुनिया के अनेक राष्ट्रों में इसकी खेती एवं इसका उपयोग प्राचीनकाल से किया जाता रहा है। खेसारी दाल का वनस्पति शास्त्र का नाम लेथाइरस सेटाइवस एवं अंग्रेजी का नाम ग्रास पी, मराठी का लाख-लाखोड़ी, हिन्दी, असमी, बंगला, बिहारी नाम खेसारी-खेसाड़ा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे लतरी कहते हैं। खेसारी दाल में ODAP जहरीला तत्व है खेसारी दाल कम कीमत पर मिलने वाली दाल है इसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इसके उपयोग से पक्ष घात व गठिया रोग होता है इसे कच्चा खाने से तिरुपुट नामक रोग उत्पन्न होता है .

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लौकी

लौकी लौकी (वानस्पतिक नाम: Lagenaria siceraria) एक सब्जी है। वैकल्पिक नाम 'लउका' या 'कद्दू' है। मोटापा कम करने के लिए इसके रस का प्रयोग किया जाता है। आकार के अनुसार लौकी मुख्यतः दो प्रकार की होती है- लम्बी बेलनाकार लौकी तथा गोल लौकी। .

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लोध्र

लोध्र या लोध (वानस्पतिक नाम: Symplocos racemosa) एक आयुर्वेदिक औषधीय वनस्पति है। और लोध एक भारतीय समाज की एक प्राचीन जाति का नाम भी है। .

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शतावर

शतावर (वानस्पतिक नाम: Asparagus officinalis / एस्पैरागस ऑफ़ीशिनैलिस) एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग सिद्धा तथा होम्योपैथिक दवाइयों में होता है। यह आकलन किया गया है कि भारत में विभिन्न औषधियों को बनाने के लिए प्रति वर्ष 500 टन सतावर की जड़ों की जरूरत पड़ती है। यह यूरोप एवं पश्चिमी एशिया का देशज है। इसकी खेती २००० वर्ष से भी पहले से की जाती रही है। भारत के ठण्डे प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है। इसकी कंदिल जडें मधुर तथा रसयुक्त होती हैं। यह पादप बहुवर्षी होता है। इसकी जो शाखाएँ निकलतीं हैं वे बाद में पत्तियों का रूप धारण कर लेतीं हैं, इन्हें क्लैडोड (cladodes) कहते हैं। .

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शहतूत

शहतूत की डाली, पत्तियाँ एवं फल शहतूत की पत्ती पर रखे शहतूत के फल 300px शहतूत (वानस्पतिक नाम: Morus alba) एक फल है। इसका वृक्ष छोटे से लेकर मध्यम आकार का (१० मीटर से २० मीटर ऊँचा) होता है और तेजी से बढ़ता है। इसका जीवनकाल कम होता है। यह चीन का देशज है किन्तु अन्य स्थानों पर भी आसानी से इसकी खेती की जाती है। इसे संस्कृत में 'तूत', मराठी में 'तूती', तुर्की भाषा में 'दूत', तथा फारसी, अजरबैजानी एवं आर्मेनी भाषाओं में 'तूत' कहते हैं रेशम के कीड़ों को खिलाने के लिये सफेद शहतूत की खेती की जाती है। यह भारत के अन्दर खासकर उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश बिहार झारखण्ड मध्य-प्रदेश हरियाणा पंजाब हिमाचल-प्रदेश इत्यादि राज्यों में अत्यधिक इसकी खेती की जाती है। .

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शंखपुष्पी

कॉन्वल्वस अर्वेन्विस (Convolvulus arvenvis) का पुष्प शंखपुष्पी (वानस्पतिक नाम:Convolvulus pluricaulis) एक पादप है। शंख के समान आकृति वाले श्वेत पुष्प होने से इसे शंखपुष्पी कहते हैं। इसे क्षीरपुष्प (दूध के समान सफेद फूल वाले), 'मांगल्य कुसुमा' (जिसके दर्शन से मंगल माना जाता हो) भी कहते हैं। यह सारे भारत में पथरीली भूमि में जंगली रूप में पायी जाती हैं। .

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श्रीआई

श्रीआई (वानस्पतिक नाम: Celosia argentea) एक शाकीय पादप है। भारत और चीन में इसे एक समस्याजनक खर माना जाता है। .

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श्वेत बटन खुम्ब

अगेरिकस बाइस्पोरस यूरोप और उत्तरी अमेरिका के घास के मैदानों में उगने वाला एक खाने योग्य बेसीडियोमाइसिटी खुम्भ है। अपरिपक्व अवस्था में यह दो रंगों सफेद और भूरे रंगों में पाया जाता है। परिपक्व अवस्था में यह पोर्टोबेलो मशरूम कहा जाता है। छोटे आकार के पोर्टोबेलो मशरूम को पोर्टोबेलिनी कहा जाता है । अपरिपक्व और सफेद मशरूम को आम मशरूम, बटन मशरूम, सफेद मशरूम, कृष्य मशरूम, टेबल मशरूम और चैम्पिग्नोन मशरूम इत्यादि नामों से जाना जाता है। अपरिपक्व और भूरे रंग के मशरूम को स्विस ब्राउन मशरूम, रोमन ब्राउन मशरूम, इतालवी ब्राउन, इतालवी मशरूम, क्रेमिनी मशरूम, बेबी बेला, ब्राउन कैप मशरूम या चेस्टनट मशरूम इत्यादि नामों से जाना जाता है। अगेरिकस बाइस्पोरस की खेती विश्व के सत्तर से अधिक देशों में होती है। यह विश्व में सबसे अधिक खाया जाने वाला मशरूम है। .

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सतावर

सतावर सतावर (वानस्पतिक नाम: Asparagus racemosus / ऐस्पेरेगस रेसीमोसस) लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे 'शतावर', 'शतावरी', 'सतावरी', 'सतमूल' और 'सतमूली' के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत, श्री लंका तथा पूरे हिमालयी क्षेत्र में उगता है। इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त काँटेदार लता के रूप में एक मीटर से दो मीटर तक लम्बा होता है। इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। वर्तमान समय में इस पौधे पर लुप्त होने का खतरा है। एक और काँटे रहित जाति हिमलाय में 4 से 9 हजार फीट की ऊँचाई तक मिलती है, जिसे एस्पेरेगस फिलिसिनस नाम से जाना जाता है। यह 1 से 2 मीटर तक लंबी बेल होती है जो हर तरह के जंगलों और मैदानी इलाकों में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसे ‘औषधियों की रानी’ माना जाता है। इसकी गांठ या कंद का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जो महत्वपूर्ण रासायनिक घटक पाए जाते हैं वे हैं ऐस्मेरेगेमीन ए नामक पॉलिसाइक्लिक एल्कालॉइड, स्टेराइडल सैपोनिन, शैटेवैरोसाइड ए, शैटेवैरोसाइड बी, फिलियास्पैरोसाइड सी और आइसोफ्लेवोंस। सतावर का इस्तेमाल दर्द कम करने, महिलाओं में स्तन्य (दूध) की मात्रा बढ़ाने, मूत्र विसर्जनं के समय होने वाली जलन को कम करने और कामोत्तेजक के रूप में किया जाता है। इसकी जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज, ट्यूमर, गले के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और कमजोरी में फायदेमंद होती है। यह पौधा कम भूख लगने व अनिद्रा की बीमारी में भी फायदेमंद है। अतिसक्रिय बच्चों और ऐसे लोगों को जिनका वजन कम है, उन्हें भी ऐस्पैरेगस से फायदा होता है। इसे महिलाओं के लिए एक बढ़िया टॉनिक माना जाता है। इसका इस्तेमाल कामोत्तेजना की कमी और पुरुषों व महिलाओं में बांझपन को दूर करने और रजोनिवृत्ति के लक्षणों के इलाज में भी होता है। .

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सप्तपर्ण

सप्तपर्ण वृक्ष सप्तपर्ण की एक डाली सप्तपर्ण (वानस्पतिक नाम:Alstonia scholaris) का वृक्ष बहुत बड़ा होता है। इसे हिन्दी में छितवन भी कहते हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप का देशज वृक्ष है जो उष्णकटिबन्धीय तथा सदापर्णी (सदाबहार) है। श्रेणी:भारतीय वृक्ष श्रेणी:औषधीय पादप.

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सल्फी

सल्फी के पेड़ 'बस्तर बीयर' नामक मादक द्रब्य सल्फी के पेड़ से ही मिलता है सल्फी (वानस्पतिक नाम:Caryota urens / केरियोटा यूरेन्स) ताड़ कुल का एक पुष्पधारी वृक्ष है। यह भारतीय उपमहाद्वीप तथा दक्षिण-पूर्व एशिया का देशज है। इसको संस्कृत में 'मोहकारी' कहते हैं। सूखने के बाद इसकी पत्ती को मछली पकडने के डण्डे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसे 'बस्तर बीयर' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इससे एक मादक रस (बीयर) बनायी जाती है। मादक रस देने वाले इस वृक्ष को गोंडी बोली में 'गोरगा' कहा जाता है तो बस्तर के ही बास्तानार इलाके में ये 'आकाश पानी' के नाम से जाना जाता है। एक दिन में करीब बीस लीटर तक मादक रस देने वाले इस पेड़ की बस्तर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। एक पेड़ से साल में छह से सात माह तक मादक रस निकलता है। .

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सहजन

नेपाल के भूमिपे मिले सहजन अौर इसकी फलियाँ सहजन (Drumstick tree; वानस्पतिक नाम: "मोरिंगा ओलिफेरा" (Moringa oleifera)) एक एक बहुत उपयोगी पेड़ है। इसे हिन्दी में सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस पेड़ के विभिन्न भाग अनेकानेक पोषक तत्वों से भरपूर पाये गये हैं इसलिये इसके विभिन्न भागों का विविध प्रकार से उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों और फली की सब्जी बनती है। इसका उपयोग जल को साफ करने के लिये तथा हाथ की सफाई के लिये भी उपयोग किया जा सकता है। इसका कभी-कभी जड़ी-बूटियों में भी प्रयोग होता है। .

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सांवा घास

साँवा घास साँवा घास (वानस्पतिक नाम:Echinochloa crus-galli) एक खरपतवार है। यह खरीफ की फसलों के साथ उगती है। .

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सुथनी

सुथनी (वानस्पतिक नाम: Dioscorea esculenta; अंग्रेजी: lesser yam) एक प्रकार का कंद है जो शकरकंद परिवार से आता है। हालांकि इसका स्वाद शकरकंद के सामान मीठा नहीं होता, फिर भी यह कठिन परिश्रम करने वाले लोगों को लंबे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है। शकरकंद प्रजाति का यह कंद अब विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुका है। यह जमीन की सतह से पांच-छः इंच नीचे पैदा होता है। सुथनी को मुख्यतः उबालकर खाया जाता है और इसका स्वाद हल्का मीठा होता है। हालांकि प्रत्येक कंद का कुछ भाग स्वादहीन होता है। आजकल सुथनी के कई व्यंजन भी बनाए जाने लगे हैं। सुथनी को अंग्रेजी में लेसर येम कहा जाता है और इसका वानस्पतिक नाम दायोस्कोरिया एस्कुलान्ता है। इसकी लता तीन मीटर तक लंबी होती है। यह उष्णकटिबंधीय प्रदेशों, खासकर एशिया और प्रशांत क्षेत्रों में मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक रहा है। चीन में 1700 सालों से भी अधिक समय से इसका बड़ी मात्रा में उत्पादन किया जाता रहा है। .

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सुबबूल

सुबबूल की एक टहनी में पत्तियाँ एवं फूल सुबबूल (वानस्पतिक नाम: Leucaena leucocephala) एक पेड़ है जो कम पानी एवं देखरेख पर भी बहुत तेजी से बढ़ता है। यह सालभर हरा रहता है। एक बार लगा देने पर यह बड़ी तेजी से फैलता है। इसका उपयोग ईंधन एवं बायोमास (Biomass) के लिये बहुत उपयोगी पाया गया है। इसकी लकड़ी बहुत कमजोर होती है। .

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हड़जोड़

हड़जोड़ हड़जोड़ या 'अस्थिसंधानक' (वानस्पतिक नाम: Cissus quadrangularis) अंगूर परिवार का बहुवर्षी पादप है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह लता हड्डियों को जोड़ती है। .

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हरीतकी

हरीतकी (वानस्पतिक नाम:Terminalia chebula) एक ऊँचा वृक्ष होता है एवं भारत में विशेषतः निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है। हिन्दी में इसे 'हरड़' और 'हर्रे' भी कहते हैं। आयुर्वेद ने इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं। फल एक से तीन इंच तक लंबे और अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं। कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं। प्रत्येक फल में एक बीज होता है। अप्रैल-मई में नए पल्लव आते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं। पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है। कहा जाता है हरीतकी की सात जातियाँ होती हैं। यह सात जातियाँ इस प्रकार हैं: 1.

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ज़ैतून

ज़ैतून के फल यूनान में ज़ैतून के वृक्ष ज़ैतून अँग्रेजी नाम ओलिव (olive), वानस्पतिक नाम 'ओलेआ एउरोपैआ', (Olea europaea); प्रजाति ओलिया, जाति थूरोपिया; कुल ओलियेसी; एक वृक्ष है, जिसका उत्पत्तिस्थान पश्चिम एशिया है। यह प्रसिद्ध है कि यूनान के ऐटिका (एथेंस) प्रांत की पहाड़ियों में, चूनेदार चट्टानों द्वारा बनी हुई मिट्टी में, ज़ैतून के वृक्ष सर्वप्रथम पैदा किए गए। ये अब भूमध्य सागर के आस-पास के देशों, जैसे स्पेन, पुर्तगाल, ट्यूनीशिया और टर्की आदि में भली भाँति पैदा किए जाते हैं। यूनान के पर्वतीय प्रांतों में ज़ैतून की खेती व्यापारिक अभिप्राय से की जाती है। अफ्रीका के केप उपनिवेश, चीन तथा न्यूज़ीलैंड में भी इसकी खेती सफलता पूर्वक की जाती है। अमरीका के कैलिफोर्निया प्रांत में ज़ैतून के बाग लगाए गए हैं। यूरोप में ज़ैतून के दो प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं। एक जंगली काँटेदार और दूसरा बिना काँटे का होता है। जंगली वृक्ष छोटा या झाड़ी की भाँति होता है और उसकी डालियों पर काँटे होते हैं। पत्तियाँ विपरीत, दीर्घवत्‌ और नुकीली होती हैं। इसके पुष्प सफेद होते हैं तथा प्रत्येक पुष्प में चार विदरित बाह्यदलपुंज (calyx) तथा दलपुंज (corolla), दो पुंकेसर तथा द्विशाख वर्तिंकाग्र (stigma) होते हैं। बागों में लगाए गए वृक्ष ऊँचे, सुगठित और बिना काँटे के होते हैं। इनकी कई किस्में हैं। इस वृक्ष के फल से व्यापारिक महत्व का तेल प्राप्त किया जाता है। इसके फल में सूखे पदार्थ के आधार पर 50 से 60 प्रति शत तक तेल रहता है। इसे भली भाँति कुचल कर, दबाकर या दाबक से तेल निकालते हैं। फल का अचार बनाया जाता है। ये तिक्त होते हैं। नमक के पानी मे फल का रखने स तिक्तता दूर हो जाती है। ज़ैतून के नए पौधे कलम द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। प्रौढ़ डालियों के 6 इंच के टुकड़े काट कर अक्टूबर या रवरी में कर्तन (Cutting) लगाते हैं। जब जड़ें निकल आती हैं तब उन्हें रोपण क्यारी में लगा देते हैं। दो वर्ष बाद स्थायी स्थान में 30-40 फुट की दूरी पर लगा कर बाग तैयार करते हैं। 5 वर्ष बाद वृक्ष फल देने लगते हैं। सर्वाधिक फल 15-20 वर्ष की अवस्था होने पर ही प्राप्त होते हैं। प्रति वर्ष वृक्षों की डालियों की कटाई-छँटाई की जाती है। नाइट्रोजन की खाद इसके लिय सबसे उपयोगी है। .

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जायफल

गोवा में मिरिस्टिका फ्रेग्रंस वृक्ष वृक्ष पर जायफल (केरल) जायफल (वानस्पतिक नाम: Myristica fragrans; संस्कृत: जातीफल) एक सदाबहार वृक्ष है जो इण्डोनेशिया के मोलुकास द्वीप (Moluccas) का देशज है। इससे दो मसाले प्राप्त होते हैं - जायफल (nutmeg) तथा जावित्री (mace)। यह चीन, ताइवान, मलेशिया, ग्रेनाडा, केरल, श्रीलंका, और दक्षिणी अमेरिका में खूब पैदा होता है। मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है। मिरिस्टका की अनेक जातियाँ हैं परंतु व्यापारिक जायफल अधिकांश मिरिस्टिका फ्रैग्रैंस से ही प्राप्त होता है। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग ८० जातियाँ हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशंत महासागर के द्वीपों में उपलब्ध हैं। यह पृथग्लिंगी (डायोशियस, dioecious) वृक्ष है। इसके पुष्प छोटे, गुच्छेदार तथा कक्षस्थ (एक्सिलरी, axillary) होते हैं। मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। यह बीज चारों ओर से बीजोपांग (aril) द्वारा ढँका रहता है। यही बीजोपांग व्यापारिक महत्व का पदार्थ जावित्री है। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का १ इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदा होता है। परिपक्व होने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग का बीजोपांग या जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके काष्ठवत् खोल को तोड़ने पर भीतर जायफल (nutmeg) प्राप्त होता है। जायफल तथा जावित्री व्यापार के लिये मुख्यत: पूर्वी ईस्ट इंडीज से प्राप्त होता हैं। जायफल का वृक्ष समुद्रतट से ४००-५०० फुट तक की ऊँचाई पर उष्णकटिबंध की गरम तथा नम घाटियों में पैदा होता है। इसकी सफलता के लिये जल-निकास-युक्त गहरी तथा उर्वरा दूमट मिट्टी उपयुक्त है। इसके वृक्ष ६-७ वर्ष की आयु प्राप्त होने पर फूलते-फलते हैं। फूल लगने के पहले नर या मादा वृक्ष का पहचाना कठिन होता है। ग्रैनाडा (वेस्ट इंडीज) में साधारणत: नर तथा मादावृक्ष ३: १ के अनुपात में पाए जाते हैं जमैका के वनस्पति उद्यान में जायफल के छोटे पौधों पर मादावृक्ष की टहनी कलम करके मादा वृक्ष की संख्यावृद्धि में सफलता प्राप्त की गई है। .

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जायफल का वृक्ष

जायफल का वृक्ष डाली और फल जावित्री और जायफल जायफल का वृक (वानस्पतिक नाम: Myristica fragrans) एक सदाबहार वृक्ष है जो इण्डोनेशिया के मोलुकस द्वीप (Moluccas) का देशज है। इसी वृक्ष से जायफल (nutmeg) तथा जावित्री (मेस/mace) दो प्रमुख मसाले प्राप्त होते हैं। यह चीन के गुआंगडांग तथा युन्नान प्रान्त, ताइवान, इण्डोनेशिया, मलेशिया, ग्रेनाडा, केरल, श्री लंका एवं दक्षिणी अमेरिका में खूब पैदा होता है। .

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जंगल जलेबी

जंगल जलेबी के फल जंगल जलेबी का वृक्ष जंगल जलेबी या गंगा जलेबी (वानस्पतिक नाम: Pithecellobium dulce) एक सपुष्पी पादप है। यह मटर के प्रजाति का है। इसका फल सफ़ेद और पूर्णतः पक जाने पर लाल हो जाता है खाने में मीठा होता है। यह फल मूलतः मेक्सिको का है और दक्षिण पूर्व एशिया में बहुतायत से पाया जाता है.

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जीरा

जीरा (वानस्पतिक नाम:क्यूमिनम सायमिनम) ऍपियेशी परिवार का एक पुष्पीय पौधा है। यह पूर्वी भूमध्य सागर से लेकर भारत तक के क्षेत्र का देशज है। इसके प्रत्येक फल में स्थित एक बीज वाले बीजों को सुखाकर बहुत से खानपान व्यंजनों में साबुत या पिसा हुआ मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह दिखने में सौंफ की तरह होता है। संस्कृत में इसे जीरक कहा जाता है, जिसका अर्थ है, अन्न के जीर्ण होने में (पचने में) सहायता करने वाला। .

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जीववैज्ञानिक वर्गीकरण

जीवजगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

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विडंग

बिडंग के बीज पुष्पित बिडंग बिडंग या बाय बिडंग (संस्कृत: वायु बिडंग; वानस्पतिक नाम: Embelia ribes) एक औषधीय पादप है। आयुर्वेद में अनेकानेक रोगों की चिकित्सा में यह उपयोगी माना जाता है। होम्योपैथी में भी इसका उपयोग किया जाता है। यह पूरे भारत में पाया जाता है। श्रेणी:औषधीय पादप.

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विदारीकंद

विदारीकन्द (वानस्पतिक नाम: Pueraria tuberosa) पसरने वाली एक लता है। एसके जड में एक कन्द लगती है। इसको 'सुराल', 'पातालकोहड़ा', 'बिलाईकन्द' भी कहते हैं। .

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विधारा

विधारा विधारा (वानस्पतिक नाम: Argyreia nervosa; अंग्रेजी:Elephant Creeper) सदाबहार लता है जो भारतीय उपमहाद्वीप की देशज है। यहाँ से यह हवाई, अफ्रीका, केरेबियन देशों में गई है। इसे 'अधोगुडा' भी कहते हैं। इसकी दो प्रजातियाँ हैं: अर्गीरिया नर्वोसा प्रजाति नर्वोसा (Argyreia nervosa var. nervosa) तथा अर्गीरिया नर्वोसा प्रजाति स्पेसिओसा (Argyrea nervosa var. speciosa) जो आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयुक्त होती है। अर्गीरिया नर्वोसा प्रजाति नर्वोसा से मन:प्रभावी औषधि (psychoactive drug) बनाए जाते हैं। वर्षा ऋतु में इसके फूल आते हैं। विधारा को घाव बेल भी कहते हैं। यह मांस को जल्दी भर देता है या कहें कि जोड़ देता है। .

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गुड़मार

गुड़मार गुड़मार गुड़मार (वानस्पतिक नाम: Gymnema sylvestre) एक औषधीय पौधा है जो मध्य भारत (मध्य प्रदेश), दक्षिण भारत और श्रीलंका का देशज है॥ यह बेल (लता) के रूप में होता है। इसकी पत्ती को खा लेने पर किसी भी मीठी चीज का स्वाद लगभग एक घंटे तक के लिए समाप्त हो जाता है। इसे खाने के बाद गुड़ या चीनी की मिठास खत्म हो जाती है और वह खाने पर रेत के समान लगती है। इस विशेषता के कारण स्थानीय लोग इसे गुड़मार के नाम से पुकारते हैं। मधुमेह में इसका उपयोग प्रायः किया जाता है। .

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गूमा

गूमा (हैदराबाद) गूमा (वानस्पतिक नाम:Leucas aspera) एक खरपतवार है। यह लैमिनेसी कुल की है। यह एक आयुर्वेदिक औषधि भी है। औषधीय उपयोग- सिरदर्द, मधुमेह, पीलिया, मलेरिया। .

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गोरखचिंच

गोरखचिंच गोरखचिंच (वानस्पतिक नाम: Adansonia digitata, अदानसोनिया डिजिटेटा; अंग्रेजी: African baobab) एक वृक्ष है। इसे हिन्दी में 'पारिजात' भी कहते हैं जो महाराष्ट्र में पाये जाने वाले पारिजात से बिलकुल अलग है। .

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गोरखमुंडी

गोरखमुंडी गोरखमुंडी (वानस्पतिक नाम: स्फ़ीरैंथस इंडिकस Sphaeranthus Indicus) कंपोज़िटी (Compositae) कुल की वनस्पति है। इसे मुंडी या गोरखमुंडी (प्रादेशिक भाषाओं में) और मुंडिका अथवा श्रावणी (संस्कृत में) कहते हैं। गोरखमुंडी एकवर्षा आयु वाली, प्रसर, वनस्पति धान के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में वर्षा के बाद निकलती है। यह किंचित् लसदार, रोमश और गंधयुक्त होती है। कांड पक्षयुक्त, पत्ते विनाल, कांडलग्न और प्राय: व्यस्तलट्वाकार (Obovate) और पुष्प सूक्ष्म किरमजी (Magenta-coloured) रंग के और मुंडकाकार व्यूह में पाए जाते हैं। इसके मूल, पुष्पव्यूह अथवा पंचाग का चिकित्सा में व्यवहार होता है। यह कटुतिक्त, उष्ण, दीपक, कृमिघ्न (कीड़े मारने वाली), मूत्रजनक रसायन और वात तथा रक्तविकारों में उपयोगी मानी जाती है। इसमें कालापन लिए हुए लाल रंग का तैल और कड़वा सत्व होता है। तैल त्वचा और वृक्क द्वारा नि:सारित होता है, अत: इसके सेवन से पसीने और मूत्र में एक प्रकार की गंध आने लगती है। मूत्रजनक होने और मूत्रमार्ग का शोधन करने के कारण मूत्रेंद्रिय के रोगों में इससे अच्छा लाभ होता है। अधिक दिन सेवन करने से फोड़े फुन्सी का बारंबार निकलना बंद हो जाता है। यह अपची, अपस्मार, श्लीपद और प्लीहा रोगों में भी उपयोगी मानी जाती है। .

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आमड़ा

आमड़ा आमड़ा (संस्कृत: आम्रालक; वानस्पतिक नाम: Spondias Mangifera) एक फल है जो बहुत खट्टा होता है। इसका अचार डाला जाता है। इसको 'अमला' (आँवला, नहीं) भी कहा जाता है। श्रेणी:औषधीय पादप.

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आलू बुख़ारा

पेड़ पर लटकते आलू बुख़ारे पीले रंग के मिराबॅल आलू बुख़ारे अलूचा या आलू बुखारा (अंग्रेजी नाम: प्लम; वानस्पतिक नाम: प्रूनस डोमेस्टिका) एक पर्णपाती वृक्ष है। इसके फल को भी अलूचा या प्लम कहते हैं। फल, लीची के बराबर या कुछ बड़ा होता है और छिलका नरम तथा साधरणत: गाढ़े बैंगनी रंग का होता है। गूदा पीला और खटमिट्ठे स्वाद का होता है। भारत में इसकी खेती बहुत कम होती है; परंतु अमरीका आदि देशों में यह महत्वपूर्ण फल है।आलूबुखारा (प्रूनस बुखारेंसिस) भी एक प्रकार का अलूचा है, जिसकी खेती बहुधा अफगानिस्तान में होती है। अलूचा का उत्पत्तिस्थान दक्षिण-पूर्व यूरोप अथवा पश्चिमी एशिया में काकेशिया तथा कैस्पियन सागरीय प्रांत है। इसकी एक जाति प्रूनस सैल्सिना की उत्पत्ति चीन से हुई है। इसका जैम बनता है। आलू बुख़ारा एक गुठलीदार फल है। आलू बुख़ारे लाल, काले, पीले और कभी-कभी हरे रंग के होते हैं। आलू बुख़ारों का ज़ायका मीठा या खट्टा होता है और अक्सर इनका पतला छिलका अधिक खट्टा होता है। इनका गूदा रसदार होता है और इन्हें या तो सीधा खाया जा सकता है या इनके मुरब्बे बनाए जा सकते हैं। इनके रस पर खमीर उठने पर आलू बुख़ारे की शराब भी बनाई जाती है। सुखाए गए आलू बुख़ारों को बहुत जगहों पर खाया जाता है और उनमें ऑक्सीकरण रोधी (ऐन्टीआक्सडन्ट) पदार्थ होते हैं जो कुछ रोगों से शरीर को सुरक्षित रखने में मददगार हो सकते हैं। आलू बुख़ारों की कई क़िस्मों में कब्ज़ का इलाज करने वाले (यानि जुलाब के) पदार्थ भी होते हैं। यह खटमिट्ठा फल भारत के पहाड़ी प्रदेशों में होता है। अलूचा के सफल उत्पादन के लिए ठंडी जलवायु आवश्यक है। देखा गया है कि उत्तरी भारत की पर्वतीय जलवायु में इसकी उपज अच्छी हो सकती है। मटियार, दोमट मिट्टी अत्यंत उपयुक्त है, परंतु इस मिट्टी का जलोत्सारण (ड्रेनेज) उच्च कोटि का होना चाहिए। इसकी सिंचाई आड़ू की भांति करनी चाहिए। अलूचा का वर्गीकरण फल पकने के समयानुसार होता है.

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इन्द्रजाल (वनस्पति)

इन्द्रजाल (वानस्पतिक नाम: lygodium flexuosum) एक वनस्पति है। .

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कचरी

कचरी (वानस्पतिक नाम: Cucumis pubescens) एक जंगली लता है जिसके पत्ते ककड़ी के पत्तों जैसे होते हैं। इसमें पीले-पीले फूल लगते हैं।इसका फल सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग मांस के मृदूकरण (tenderizing) के लिये भी किया जाता है। कचरी को आयुर्वेद में 'मृगाक्षी' कहा जाता है और यह बिगड़े हुए जुकाम, पित्‍त, कफ, कब्‍ज, परमेह सहित कई रोगों में बेहतरीन दवा मानी गई है। .

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कटीली चौलाई

300px कटीली चौलाई (वानस्पतिक नाम: अमेरेन्थस स्पिनोसस (Amaranthus spinosus L); सामान्य नाम: स्पाईन अमेरेन्थस) एक खरपतवार है। यह एकबीजपत्री, वार्षिक पौधा है। इसका प्रजनन बीज से होता है। इसकी पत्तियां पतली लम्बी नीचे की तरफ लाल होतीं हैं। फूल हरा, हरा-सफेद १ मिमी.

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कठमूली

कठमूली कठमूली या झिंझोरी (वानस्पतिक नाम:Bauhinia racemosa) एक वृक्ष है। यह अल्प प्राप्य औषधीय पादप है। इसका धार्मिक महत्व भी है। हिन्दू लोग विजया दशमी के अगले दिन अपने मित्रों से मिलते हैं और इसकी पत्तियों का आदान-प्रदान करते हैं। इसकी पत्तियों को 'सोना पत्ती' कहते हैं। यह दक्षिणी-पूर्वी एशिया का देशज वृक्ष है। इसका पेड़ ३ से ५ मीटर ऊँचा होता है। इसमें फरवरी से मार्च के बीच फूल लगते हैं। इसकी पत्तियों का आकार गाय के खुर के समान होता है।; अन्य भाषाओं में नाम.

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कठगूलर

कठगूलर (वानस्पतिक नाम:Ficus hispida) एक छोटा सा वृक्ष है जिस पर गूलर जैसे फल लगते हैं। यह एशिया के विभिन्न भागों में तथा दक्षिण-पूर्व एशिय और आस्ट्रेलिया तक में पाया जाता है। कठगूलर का फल कठगूलर, मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है। .

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कनकउआ

कनकउआ या केना घास कनकउआ (वानस्पतिक नाम:Commelina benghalensis / कोमेलिना बेघालेंसिस; अंग्रेजी: Tropical prider wort) एक खरपतवार है। इसे केना या 'कृष्ण घास' भी कहते हैं। इसे असम में 'कोनासियोलू', महाराष्ट्र में 'केना' तथा उड़ीसा में 'कंचारा कांकु' से जाना जाता है यह वार्षिक या बहुवर्षीय चौड़ी पत्ती श्रेणी की लता है, जो अधिकतम ४० सें.मी.

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कपूर कचरी

कपूरकचरी ज़िंजीबरेसी कुल (Zingiberaceae) की एक क्षुप जाति है जिसका वानस्पतिक नाम हेडीचियम स्पाइकेटम (Fedychium Spicatum) है। यह उपोष्णदेशीय हिमालय, नेपाल तथा कुमाऊँ में पाँच सात हजार फुट की ऊँचाई तक स्वत: उत्पन्न होता है। इसके पत्र साधारणत: लगभग एक फुट लंबे, आयताकार अथवा आयताकार-भालाकार, (oblong lancedate) चिकने और कांड पर दो पंक्तियों में पाए जाते हैं। कांड के शीर्ष पर कभी-कभी एक फुट तक लंबी सघन पुष्पमंजरी बनती है, जिसमें पुष्प अवृंत और श्वेत तथा निपत्र (bracts) हरित वर्ण के होते हैं। इसके नीचे भूमिशायी, लंबा और गाँठदार प्रकंद (rhyzome) होता है जिसके गोल, चपटे कटे हुए और शुष्क टुकड़े बाजार में मिलते हैं। कचूर की तरह इसमें ग्रंथामय मूल (nodulose roots) नहीं होते और गंध अधिक तीव्र होती है। ऐसा मालूम होता है कि प्राचीन आयुर्वेदाचार्यो ने जिस शटी या शठी नामक औषद्रव्य का संहिताओं में प्रचुर उपयोग बतलाया है, वह यही हिमोद्भवा कपूरकचरी है। परंतु इसके अलभ्य होने के कारण इसी कुल के कई अन्य द्रव्य, जो मैदानों में उगते हैं और जो गुण में शठी तुल्य हो सकते हैं, संभवत: इसके स्थान पर प्रतिनिधि रूप में ग्रहण कर लिए गए हैं। इनमें कचूर, चंद्रमूल (कैंपफ़ेरिया गालैंजा, Kaempferia galanga) तथा वनहरिद्रा (करक्यूमा ऐरोमैटिका, Curcuma arcmatica) मुख्य हैं। इसीलिए इन सभी द्रव्यों के स्थानीय नामों में प्राय: कचूर, शठी, तथा कपूरकचरी आदि नाम मिलते हैं, जो भ्रम पैदा करते हैं। निघंटुओं के शठी, कर्चुर, गंधपलाश, मुरा तथा एकांगी आदि नाम इन्हीं द्रव्यों के प्रतीत होते हैं। आयुर्वेद में शटी (या 'शठी') को कटु, तिक्त, उष्णवीर्य एवं मुख के वैरस्य, मल एवं दुर्गध को नष्ट करनेवाली और वमन, कास-श्वास, घ्राण, शूल, हिक्का और ज्वर में उपयोगी माना गया है। .

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कमल

'''कमल''' - यही भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है। कमल (वानस्पतिक नाम:नीलंबियन न्यूसिफ़ेरा (Nelumbian nucifera)) वनस्पति जगत का एक पौधा है जिसमें बड़े और सुन्दर फूल खिलते हैं। यह भारत का राष्ट्रीय पुष्प है। संस्कृत में इसके नाम हैं - कमल, पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, सरोज, सरोरुह, सरसीरुह, जलज, जलजात, नीरज, वारिज, अंभोरुह, अंबुज, अंभोज, अब्ज, अरविंद, नलिन, उत्पल, पुंडरीक, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि आदि। फारसी में कमल को 'नीलोफ़र' कहते हैं और अंग्रेजी में इंडियन लोटस या सैक्रेड लोटस, चाइनीज़ वाटर-लिली, ईजिप्शियन या पाइथागोरियन बीन। कमल का पौधा (कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी) पानी में ही उत्पन्न होता है और भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है। कमल का फूल सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे, होते हैं। पत्तों की लंबी डंडियों और नसों से एक तरह का रेशा निकाला जाता है जिससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं। कहते हैं, इस रेशे से तैयार किया हुआ कपड़ा पहनने से अनेक रोग दूर हो जाते हैं। कमल के तने लंबे, सीधे और खोखले होते हैं तथा पानी के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैलते हैं। तनों की गाँठों पर से जड़ें निकलती हैं। .

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कलिहारी

कलिहारी कलिहारी (वानस्पतिक नाम:Gloriosa superba) एक सुंदर बहुवर्षीय वृक्षारोही लता है; यह कोल्चिकेसी (Colchicaceae) परिवार का सदस्य है। इसके सुंदर पुष्पों के कारण अग्निशिखा के नाम से भी जाना जाता है। यह जंगल में सामान्य रूप से मिलता है। जिसके राइजोम आयताकार, अँग्रेजी के V के आकार के सफेद रंग के होते है।यह अफ्रीका, एशिया, श्रीलंका और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाता है। उष्णकटिबंधीय भारत में उत्तर पश्चिम हिमालय से लेकर असम और दक्षिणी प्रायदीप तक पाया जाता है। यह झाड़ी अल्सर, कुष्ठ रोग और बवासीर के उपचार में बहुत उपयोगी होती है। .

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काकमारी

काकमारी की लता काकमारी के फल काकमारी के फल की आन्तरिक रचना काकमारी (वानस्पतिक नाम: Anamirta cocculus) भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाने वाली आरोही लता है। इसके फल (Cocculus indicus) से प्रिक्रोटॉक्सिन (picrotoxin) बनती है जो एक विषैला, उत्तेजक अल्कलॉयड है। इसे नेत्रमल, जरमेह, हृयुबेर, काकिघ्न, काकारि, गोविषा आदि नामों से भी जाना जाता है। .

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ककोड़ा

ककोड़ा के फल ककोड़ा या कर्कोट (वानस्पतिक नाम: Momordica dioica) एक सब्जी है। इसका फल छोटे करेले से मिलता-जुलता होता है जिसपर छोटे-छोटे कांटेदार रेशे होते हैं। ककोड़ा या खेखसा अधिकतर पहाड़ी जमीन में पैदा होता है। यह बरसात के मौसम में होने वाला साग है। ककोड़ा की बेल होती है जो अपने आप जंगलों-झड़ियों में उग आती है और फैल जाती है। इसके 'नर' और 'मादा' बेल अलग-अलग होते हैं। इसका साग बहुत ही अच्छा व स्वादिष्ट होता है। नर्म ककोड़ा का साग अधिक स्वादिष्ट होता है जिसे लोग अधिक पसन्द करते हैं। गर्म मसालों या लहसुन के साथ ककोड़ा का साग बनाकर खाने से वात पैदा नहीं होता है। जमीन के नीचे ककोड़ा के जड़ में आधी फुट लम्बी गांठ होती है जिसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। ककोड़ा का कन्द चीनी या शहद के साथ 1 से 5 ग्राम की मात्रा में औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है। ककोड़ा का कन्द अधिक मात्रा में प्रयोग करने से उल्टी पैदा हो सकती है। .

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कुचिला

कुचिला के बीज कुचिला का वृक्ष और फल कुचिला (वानस्पतिक नाम:Strychnos nux vomica) एक पादप है। इसे 'कुचला', जहर, कजरा आदि भी कहते हैं। यह एक पर्णपाती वृक्ष है तथा भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया का देशज है। इसकी पत्तियाँ ५ से १० सेमी आकार की होतीं हैं। .

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कुटज

कुटज का फूल कुटज (वानस्पतिक नाम: Wrightia antidysenterica) एक पादप है। इसके पौधे चार फुट से १० फुट तक ऊँचे तथा छाल आधे इंच तक मोटी होती है। पत्ते चार इंच से आठ इंच तक लंबे, शाखा पर आमने-सामने लगते हैं। फूल गुच्छेदार, श्वेत रंग के तथा फलियाँ एक से दो फुट तक लंबी और चौथाई इंच मोटी, इंच मोटी, दो-दो एक साथ जुड़ी, लाल रंग की होती हैं। इनके भीतर बीज कच्चे रहने पर हरे और पकने पर जौ के रंग के होते हैं। इनकी आकृति भी बहुत कुछ जौ की सी होती है, परंतु ये जौ से लगभग ड्योढ़े बड़े होते हैं। कुटज की फली के बीज का नाम इंद्रजौ या इंद्रयव है। संस्कृत, बँगला तथा गुजराती में भी बीज का यही नाम है। परंतु इस फली के पौधे को हिंदी में कोरैया या कुड़ची, संस्कृत में कुटज या कलिंग, बँगला और अंग्रेजी में कुड़ची तथा लैटिन में राइटिया एटिडिसेंटेरिका (Wrightia antidysenterica) कहते हैं। .

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कुलथी

कुलथी के दाने कुलथी (वानस्पतिक नाम:Macrotyloma uniflorum) तीन पत्तियों वाला पौधा है। जिसे सामान्यतः कुर्थी भी कहा जाता है। इसके बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इसका उपयोग औषधि के रूप में होता है। इसके बीज पशुओं को खिलाने के काम आते हैं। दक्षिण भारत में इसके अंकुरित दाने तथा इसके पकवान बनाए जाते हैं। .

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कुंबी

कुंबी कुंबी (वानस्पतिक नाम: Careya arborea) एक पर्णपाती वृक्ष जो समस्त भारत में पाया जाता है। इसकी ऊँचाई ९ से १८ मीटर तक होती है। इसका अंतकाष्ठ हलका या गहरे लाल रंगा का होता है। लकड़ी भारी तथा कठोर होती है। कुंबी की लकड़ी का उपयोग कृषि औजारों, आलमारियों, बंदूक के कुंदों, घरों के खंभों और तख्तों के बनाने के काम आता है, यह परिरक्षी उपचार के बाद रेल के स्लीपर बनाने के लिए अच्छी मानी गई है। कनारा और मालाबार से काफी मात्रा में लकड़ी प्राप्त होती है। कुंबी का छाल रेशेदार होती है जिसका उपयोग भूरे कागज और घटिया जहाजी रस्सों के बनाने में होता है। इसकी छाल ठंड में शामक के रूप में दी जाती है। इसका उपयोग चेचक एवं ज्वरहारी खुजली को नष्ट करने में होता है। फूलों की पर्णयुक्त कलियों में श्लेष्मा होता है। फल सुंगधित और खाद्य होते हैं। इसमें कषाय गोंद पाए जाते हैं। फल का काढ़ा पाचक होता है। बीज विषैले होते हैं। पत्तियों में १९ प्रतिशत टैनिन पाया जाता है। इनका उपयोग चुरुट और बीड़ी बनाने में होता है। पौधों में टसर रेशम के कीड़े पाले जाते हैं। .

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कैथा

कैथा (वानस्पतिक नाम: Feronia limonia) एक वृक्ष है जिसके फल का उपयोग आयुर्वेदिक औषधि के रूप में किया जाता है। मान्यता है कि तपस्या करने गये ध्रुव ने फलाहार के तौर पर इसे लिया था। .

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अदरक

अदरक अदरक का चूर्ण अदरक का खेत अदरक की कैन्डी अदरक (वानस्पतिक नाम: जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale), एक भूमिगत रूपान्तरित तना है। यह मिट्टी के अन्दर क्षैतिज बढ़ता है। इसमें काफी मात्रा में भोज्य पदार्थ संचित रहता है जिसके कारण यह फूलकर मोटा हो जाता है। अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अधिकतर उष्णकटिबंधीय (ट्रापिकल्स) और शीतोष्ण कटिबंध (सबट्रापिकल) भागों में पाया जाता है। अदरक दक्षिण एशिया का देशज है किन्तु अब यह पूर्वी अफ्रीका और कैरेबियन में भी पैदा होता है। अदरक का पौधा चीन, जापान, मसकराइन और प्रशांत महासागर के द्वीपों में भी मिलता है। इसके पौधे में सिमपोडियल राइजोम पाया जाता है। सूखे हुए अदरक को सौंठ (शुष्ठी) कहते हैं। भारत में यह बंगाल, बिहार, चेन्नई,मध्य प्रदेश कोचीन, पंजाब और उत्तर प्रदेश में अधिक उत्पन्न होती है। अदरक का कोई बीज नहीं होता, इसके कंद के ही छोटे-छोटे टुकड़े जमीन में गाड़ दिए जाते हैं। यह एक पौधे की जड़ है। यह भारत में एक मसाले के रूप में प्रमुख है। .

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अपराजिता

अपराजिता अपराजिता (वानस्पतिक नाम:Clitoria ternatea) एक खरपतवार है। अपराजिता लता वाला पौधा है। इसके आकर्षक फूलों के कारण इसे लान की सजावट के तौर पर भी लगाया जाता है। ये इकहरे फूलों वाली बेल भी होती है और दुहरे फूलों वाली भी। फूल भी दो तरह के होते हैं - नीले और सफेद। बंगाल या पानी वाले इलाकों में अपराजिता एक बेल की शक्ल में पायी जाती है। इसका पत्ता आगे से चौडा और पीछे से सिकुडा रहता है। इसके अन्दर आने वाले स्त्री की योनि की तरह से होते है इसलिये इसे ’भगपुष्पी’ और ’योनिपुष्पी’ का नाम दिया गया है। इसका उपयोग काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में विशेषरूप में किया जाता है। जहां काली का स्थान बनाया जाता है वहां पर इसकी बेल को जरूर लगाया जाता है। गर्मी के कुछ समय के अलावा हर समय इसकी बेल फूलों से सुसज्जित रहती है। .

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अमरूद

लाल अमरूद का फल अमरूद (वानस्पतिक नाम: सीडियम ग्वायवा, प्रजाति सीडियम, जाति ग्वायवा, कुल मिटसी) एक फल देने वाला वृक्ष है। वैज्ञानिकों का विचार है कि अमरूद की उत्पति अमरीका के उष्ण कटिबंधीय भाग तथा वेस्ट इंडीज़ से हुई है। .

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अरण्यतुलसी

अरण्यतुलसी (वानस्पतिक नाम: Ocimum americanum) का पौधा ऊँचाई में आठ फुट तक, सीधा और डालियों से भरा होता है। छाल खाकी, पत्ते चार इंच तक लंबे और दोनों ओर चिकने होते हैं। यह बंगाल, नेपाल, आसाम की पहाड़ियों, पूर्वी नेपाल और सिंध में मिलता है। इसके पत्तों को हाथ से मलने पर तेज सुगंध निकलती है। आयुर्वेद में इसके पत्तों को वात, कफ, नेत्ररोग, वमन, मूर्छा अग्निविसर्प (एरिसिपलस), प्रदाह (जलन) और पथरी रोग में लाभदायक कहा गया है। ये पत्ते सुखपूर्वक प्रसव कराने तथा हृदय को भी हितकारक माने गए हैं। इन्हें पेट के फूलने को दूर करनेवाला, उत्तेजक, शांतिदायक तथा मूत्रनिस्सारक समझा जाता है। रासायनिक विश्लेषण से इनमें थायमोल, यूगेनल तथा एक अन्य उड़नशील (एसेंशियल) तेल मिले हैं। श्रेणी:औषधीय पादप श्रेणी:चित्र जोड़ें .

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अखरोट

अखरोट (अंग्रेजी: Walnut, वैज्ञानिक नाम: Juglans Regia) पतझड़ करने वाले बहुत सुन्दर और सुगन्धित पेड़ होते हैं। इसकी दो जातियां पाई जाती हैं। 'जंगली अखरोट' 100 से 200 फीट तक ऊंचे, अपने आप उगते हैं। इसके फल का छिलका मोटा होता है। 'कृषिजन्य अखरोट' 40 से 90 फुट तक ऊंचा होता है और इसके फलों का छिलका पतला होता है। इसे 'कागजी अखरोट' कहते हैं। इससे बन्दूकों के कुन्दे बनाये जाते हैं। अखरोट का फल एक प्रकार का सूखा मेवा है जो खाने के लिये उपयोग में लाया जाता है। अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है और अंदर मानव मस्तिष्क के जैसे आकार वाली गिरी होती है। अखरोट (के वृक्ष) का वानस्पतिक नाम जग्लान्स निग्रा (Juglans Nigra) है। आधी मुट्ठी अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा होती हैं, 9 ग्राम प्रोटीन होता है, 39 ग्राम वसा होती है और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। इसमें विटामिन ई और बी6, कैल्शियम और मिनेरल भी पर्याप्तं मात्रा में होते है। .

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अगर (वृक्ष)

अगर (वानस्पतिक नाम: Aquilaria malaccensis) एक वृक्ष है। कागज के विकास के पहले इसके छाल का उपयोग ग्रन्थ लिखने के लिये होता था। भारत की विभिन्न भाषाओं में इसके नाम ये हैं-.

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छोटी दुद्धी

छोटी दुद्धी (वानस्पतिक नाम: यूफोरबिया मैक्रोफाइली (Euphorbia macrophyllae)) एक खरपतवार है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

पादप और उनके वैज्ञानिक नाम

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