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वाद्य संगीत

सूची वाद्य संगीत

वाद्य संगीत ऐसी संगीत रचना होती है जिसमें बोल और गायन नहीं होते हैं। ऐसे संगीत की रचना पूर्ण रूप से वाद्य यन्त्र पर की जाती है। ऐसी रचना संगीत रचयिता स्वयं अपने किसी प्रदर्शन के लिये कर सकता है। वाद्य संगीत की परम्परा पश्चिमी संस्कृति और भारत में बहुत प्राचीन है। भारत में बहुत पहले समय से वीणा के उपयोग से वाद्य संगीत की रचना की जाती थी। .

17 संबंधों: चौसठ कलाएँ, धड़कन (2000 फ़िल्म), बॉम्बे (फ़िल्म), शरण रानी, शक्ति (2002 फ़िल्म), संस्कृत नाटक, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, संगीत, संगीत रचयिता, संगीत गोष्ठी, हमराज़ (2002 फ़िल्म), जान तेरे नाम, वाद्य यन्त्र, ओड, कभी खुशी कभी ग़म, कल हो ना हो, कहो ना प्यार है

चौसठ कलाएँ

दण्डी ने काव्यादर्श में कला को 'कामार्थसंश्रयाः' कहा है (अर्थात् काम और अर्थ कला के ऊपर आश्रय पाते हैं।) - नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः। भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। कामसूत्र में ६४ कलाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त 'प्रबन्ध कोश' तथा 'शुक्रनीति सार' में भी कलाओं की संख्या ६४ ही है। 'ललितविस्तर' में तो ८६ कलाएँ गिनायी गयी हैं। शैव तन्त्रों में चौंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है। कामसूत्र में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं- 1- गानविद्या 2- वाद्य - भांति-भांति के बाजे बजाना 3- नृत्य 4- नाट्य 5- चित्रकारी 6- बेल-बूटे बनाना 7- चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना 8- फूलों की सेज बनान 9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 10- मणियों की फर्श बनाना 11- शय्या-रचना (बिस्तर की सज्जा) 12- जल को बांध देना 13- विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना 14- हार-माला आदि बनाना 15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना 16- कपड़े और गहने बनाना 17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना 18- कानों के पत्तों की रचना करना 19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना 20- इंद्रजाल-जादूगरी 21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना 22- हाथ की फुती के काम 23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना 24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 25- सूई का काम 26- कठपुतली बनाना, नाचना 27- पहली 28- प्रतिमा आदि बनाना 29- कूटनीति 30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 32- समस्यापूर्ति करना 33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना 34- गलीचे, दरी आदि बनाना 35- बढ़ई की कारीगरी 36- गृह आदि बनाने की कारीगरी 37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 38- सोना-चांदी आदि बना लेना 39- मणियों के रंग को पहचानना 40- खानों की पहचान 41- वृक्षों की चिकित्सा 42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति 43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना 44- उच्चाटनकी विधि 45- केशों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- म्लेच्छित-कुतर्क-विकल्प 48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान 49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना 50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 52- सांकेतिक भाषा बनाना 53- मनमें कटकरचना करना 54- नयी-नयी बातें निकालना 55- छल से काम निकालना 56- समस्त कोशों का ज्ञान 57- समस्त छन्दों का ज्ञान 58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 59- द्यू्त क्रीड़ा 60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 61- बालकों के खेल 62- मन्त्रविद्या 63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या वात्स्यायन ने जिन ६४ कलाओं की नामावली कामसूत्र में प्रस्तुत की है उन सभी कलाओं के नाम यजुर्वेद के तीसवें अध्याय में मिलते हैं। इस अध्याय में कुल २२ मन्त्र हैं जिनमें से चौथे मंत्र से लेकर बाईसवें मंत्र तक उन्हीं कलाओं और कलाकारों का उल्लेख है। .

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धड़कन (2000 फ़िल्म)

धड़कन 2000 में बनी हिन्दी भाषा की नाटकीय प्रेमकहानी फ़िल्म है। इसका निर्देशन धर्मेश दर्शन द्वारा किया गया। इसमें शिल्पा शेट्टी, सुनील शेट्टी और अक्षय कुमार की प्रमुख भूमिकाएं हैं, जबकि महिमा चौधरी एक विस्तारित अतिथि उपस्थिति में है। फिल्म प्रेम त्रिकोण से संबंधित है। यह फिल्म एक आलोचनात्मक और वाणिज्यिक सफलता थी और साल की चौथी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। सुनील शेट्टी ने अपने प्रदर्शन के लिए फिल्मफेयर बेस्ट विलेन अवॉर्ड जीता। .

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बॉम्बे (फ़िल्म)

बॉम्बे 1995 की तमिल रूमानी नाट्य फ़िल्म है। इसका निर्देशन मणिरत्नम् ने किया है और मुख्य किरदार अरविन्द स्वामी और मनीषा कोइराला ने निभाए है। संगीत दिया है ए॰ आर॰ रहमान ने और हिन्दी गीत महबूब द्वारा लिखे गए हैं। यह फिल्म भारत के दिसंबर 1992 से जनवरी 1993 की अवधि के दौरान हुई घटनाओं पर केंद्रित है। विशेष रूप से अयोध्या के बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद, फिर उसका तोड़ना, मुम्बई (जब बॉम्बे) में सांप्रदायिक तनाव होना और अंतत बंबई के दंगे होना। यह फिल्म मणिरत्नम् की रोज़ा और दिल से के साथ एक श्रृंखला के रूप में ली जाती है। फ़िल्म दोनों आलोचनात्मक और आर्थिक तौर पर सफल रही। इसी नाम से फ़िल्म को हिन्दी और तेलुगू भाषा में डब किया गया। ए॰ आर॰ रहमान द्वारा दिया गया संगीत बहुत ही सराहा गया और कई पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किये। मणिरत्नम् के निर्देशन की भी सराहना हुई। .

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शरण रानी

शरण रानी (९ अप्रैल १९२९ - ८ अप्रैल २००८) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विद्वान और सुप्रसिद्ध सरोद वादक थीं। गुरु शरन रानी प्रथम महिला थीं जिन्होंने सरोद जैसे मर्दाना साज को संपूर्ण ऊँचाई दी। वे प्रथम महिला थीं जो संगीत को लेकर पूरे भूमंडल में घूमीं, विदेश गईं, जिन्हें सरोद के कारण विभिन्न‍ प्रकार के सम्मान मिले और सरोद पर डॉक्टलरेट की उपाधियों से नवाज़ा गया। वे प्रथम महिला थीं जिन्होंडने पंद्रहवीं शताब्दी के बाद बने हुए वाद्य यंत्रों को न केवल संग्रहीत किया बल्कि राष्ट्री य संग्रहालय को दान में दे दिया। उन्होंने यूनेस्को के लिए रिकार्डिग भी की। इसलिए पं॰ नेहरू ने उन्हें 'सांस्कृतिक राजदूत' और पं॰ ओंकार नाथ ठाकुर ने 'सरोद रानी' का खिताब दिया था। दिल्ली में पैदा हुई सरोद साम्राज्ञी ने उस्ताद अलाउद्दीन खां और उस्ताद अली अकबर खां जैसे गुरुओं से सरोद की शिक्षा ग्रहण की थी। वह मैहर सेनिया घराने से ताल्लुक रखती थीं। पद्मभूषण से अलंकृत शरण रानी ने कई रागों की रचना की थी। वाद्य संगीत तथा सरोद वादन के क्षेत्र में वह देश की पहली महिला कलाकार थीं, जिन्होंने अमेरिका तथा ब्रिटेन की संगीत कंपनियों के साथ रिकार्डिंग कीं। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उन्हें ‘भारत की सांस्कृतिक दूत’ कहा करते थे। शरण रानी ने "दि डिवाइन सरोद: इट्स आ॓रिजिन एंटिक्विटी एंड डेवलपमेंट इन इंडिया सिंस बीसी सेकेंड सेंचुरी" किताब लिखी थीं। वे दुर्लभ वाद्यों का संग्रह करती थीं। उन्होंने ‘शरण रानी बाकलीवाल वीथिका’ की स्थापना भी की जिसमें ४५० शास्त्रीय संगीत के वाद्यों को प्रदर्शित किया गया है। संगीत के प्रति समर्पण के कारण उन्हें १९६८ में पद्मश्री, १९७४ में साहित्य कला परिषद, १९८६ में संगीत नाटक अकादमी, २००० में पद्मभूषण व २००४ में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। १९९२ में उन्होंने सरोद के उद्भव, इतिहास व विकास पर किताब भी लिखी। उन्हें सरकार की ओर से ‘राष्ट्रीय कलाकार’, ‘साहित्य कला परिषद पुरस्कार’ और ‘राजीव गांधी राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। उनकी वीथिका से चार वाद्य लेकर वर्ष १९९८ में डाक टिकट भी जारी किए गए थे। .

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शक्ति (2002 फ़िल्म)

शक्ति 2002 में बनी हिन्दी भाषा की एक्शन ड्रामा फ़िल्म है। करिश्मा कपूर, नाना पाटेकर और संजय कपूर प्रमुख भूमिकाओं में हैं। जबकि शाहरुख खान, दीप्ति नवल, रितु शिवपुरी और प्रकाश राज की सहायक भूमिका है। ऐश्वर्या राय एक आइटम नंबर में दिखाई दी हैं। फिल्म तब सेवानिवृत्त अभिनेत्री श्रीदेवी (संजय कपूर की भाभी) द्वारा बनाई गई थी और यह उनकी वापसी फिल्म मानी जाती थीं। लेकिन जब उन्हें पता चला कि वह गर्भवती थी तो उन्होंने शुरुआत में काजोल को अपनी भूमिका की पेशकश की। लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया तो इसलिये करिश्मा कपूर को लिया गया। .

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संस्कृत नाटक

संस्कृत नाटक (कोडियट्टम) में सुग्रीव की भूमिका संस्कृत नाटक रसप्रधान होते हैं। इनमें समय और स्थान की अन्विति नही पाई जाती। अपनी रचना-प्रक्रिया में नाटक मूलतः काव्य का ही एक प्रकार है। सूसन के लैंगर के अनुसार भी नाटक रंगमंच का काव्य ही नहीं, रंगमंच में काव्य भी है। संस्कृत नाट्यपरम्परा में भी नाटक काव्य है और एक विशेष प्रकार का काव्य है,..दृश्यकाव्य। ‘काव्येषु नाटकं रम्यम्’ कहकर उसकी विशिष्टता ही रेखांकित की गयी है। लेखन से लेकर प्रस्तुतीकरण तक नाटक में कई कलाओं का संश्लिष्ट रूप होता है-तब कहीं वह अखण्ड सत्य और काव्यात्मक सौन्दर्य की विलक्षण सृष्टि कर पाता है। रंगमंच पर भी एक काव्य की सृष्टि होती है विभिन्न माध्यमों से, कलाओं से जिससे रंगमंच एक कार्य का, कृति का रूप लेता है। आस्वादन और सम्प्रेषण दोनों साथ-साथ चलते हैं। अनेक प्रकार के भावों, अवस्थाओं से युक्त, रस भाव, क्रियाओं के अभिनय, कर्म द्वारा संसार को सुख-शान्ति देने वाला यह नाट्य इसीलिए हमारे यहाँ विलक्षण कृति माना गया है। आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय में नाट्य को तीनों लोकों के विशाल भावों का अनुकीर्तन कहा है तथा इसे सार्ववर्णिक पंचम वेद बतलाया है। भरत के अनुसार ऐसा कोई ज्ञान शिल्प, विद्या, योग एवं कर्म नहीं है जो नाटक में दिखाई न पड़े - .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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संगीत

नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं। गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते हैं। .

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संगीत रचयिता

फ्रेंच संगीतकार http://en.wikipedia.org/wiki/Louis-Nicolas_Clérambault Louis-Nicolas Clérambault पियानो पर रचना करते हुए। एक संगीतकार व्याख्या और प्रदर्शन के लिए, या वैद्युत-ध्वनिक संगीत के रूप में ध्वनि सामग्री के प्रत्यक्ष हेरफेर के माध्यम से, संगीत के नोट या मौखिक परंपरा से, या तो संगीत बनाता है जो एक व्यक्ति है। .

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संगीत गोष्ठी

पहले गायक या वादक अपने गायन या वादन का प्रदर्शन राजाओं या रईसों के सम्मुख करता था अथवा किसी धार्मिक उत्सव के समय मंदिरों में करता था। कभी-कभी वह मेले इत्यादि में भी जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता था। किंतु उसके पास ऐसा कोई साधन नहीं था जिसके द्वारा वह संगीत के एक पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम को जनता के सामने प्रस्तुत कर सके। यूरोप में इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, इत्यादि देशों में संगीतगोष्ठी का आयोजन प्रारंभ हुआ। इसे "कंसर्ट" (concert) कहते हैं। संगीत सभाएँ या संगीत विद्यालय अथवा कुछ व्यवसायी लोगों ने संगीतगोष्ठी का आयोजन प्रारंभ किया। किसी अच्छे कलाकार या कलाकारों के गायन वादन का कार्यक्रम किसी बड़े भवन में संपन्न होता था। इस संगीतगोष्ठी में जनता का प्रवेश टिकट या चंदे के द्वारा होने लगा। इस प्रकार की संगीतगोष्ठियाँ अमरीका और अन्य देशों में प्रारंभ हुई। बड़े बड़े नगरों में इस प्रकार की गोष्ठियों के लिए विशाल गोष्ठीभवन (concert hall) या सभाभवन (Auditorium) बन गए। भारत में इस प्रकार की संगीतगोष्ठी का आयोजन बंबई, पूना, कलकत्ता इत्यादि बड़े नगरों में प्रारंभ हो गया है। इन संगीतगोष्ठियों के अतिरिक्त भारत में कई स्थानों में संगीतोत्सव या संगीतपरिषदों का आयोजन भी होता है जिनमें बहुत से कलाकार एकत्र होते है और उनका कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। इनमें श्रोताओं का प्रवेश टिकट द्वारा होता है। यूरोप के 18वीं शती में संगीतगोष्ठी के आयोजन और प्रबंध के लिए बहुत सी संस्थाएँ स्थापित हो गई। ये संस्थाएँ संगीतगोष्ठियों का आयोजन करने लगीं और संचित द्रव्य में से कलाकार तथा आयोजन और प्रबंध के लिए एक भाग लेने लगीं। सामंतों और रईसों का आश्रय समाप्त होने पर कलाकारों के कार्यक्रम के आयोजन के लिए स्थान स्थान पर संस्थाएँ स्थापित होने लगी और 19वीं शती तक इन संस्थाओं ने एक अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय का रूप धारण कर लिया। संगीतगोष्ठी के अर्थ के अतिरिक्त फ्रांस, जर्मनी और इटली में कंसर्ट एक विशिष्ट वाद्य-संगीत-प्रबंध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। श्रेणी:संगीत.

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हमराज़ (2002 फ़िल्म)

हमराज़ 2002 की एक भारतीय हिंदी रोमांटिक थ्रिलर फिल्म है। अब्बास-मस्तान द्वारा निर्देशित इस फिल्म का निर्माण वीनस मूवीज़ के बैनर तले हुआ है। बॉबी देओल, अक्षय खन्ना और अमीषा पटेल ने इस फिल्म में प्रमुख भूमिकाऐं निभाई हैं। इसकी कहानी 1998 की फिल्म ए परफेक्ट मर्डर पर आधारित है। हमराज़ को 5 जुलाई 2002 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया गया था। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और इसे एवरेज घोषित किया गया था। कहो ना प्यार है और ग़दर: एक प्रेम कथा के बाद यह अमीषा पटेल की लगातार तीसरी हिट फिल्म थी। हिमेश रेशमिया द्वारा रचित फिल्म का संगीत भी ख़ासा लोकप्रिय रहा। .

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जान तेरे नाम

जान तेरे नाम 1992 की हिन्दी भाषा की प्रेमकहानी फ़िल्म है जो दीपक बलराज विज द्वारा निर्देशित है और जिमी निरुला द्वारा निर्मित है। इसमें मुख्य भूमिकाओं में रॉनित रॉय और फरहीन है। यह फिल्म रोनित रॉय और फरहीन की पहली फिल्म थी। फिल्म अपने गीतों के लिए व्यापक रूप से लोकप्रिय थी और नदीम-श्रवण के मधुर गीतों को अब भी याद किया जाता है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की थी। .

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वाद्य यन्त्र

एक वाद्य यंत्र का निर्माण या प्रयोग, संगीत की ध्वनि निकालने के प्रयोजन के लिए होता है। सिद्धांत रूप से, कोई भी वस्तु जो ध्वनि पैदा करती है, वाद्य यंत्र कही जा सकती है। वाद्ययंत्र का इतिहास, मानव संस्कृति की शुरुआत से प्रारंभ होता है। वाद्ययंत्र का शैक्षणिक अध्ययन, अंग्रेज़ी में ओर्गेनोलोजी कहलाता है। केवल वाद्य यंत्र के उपयोग से की गई संगीत रचना वाद्य संगीत कहलाती है। संगीत वाद्य के रूप में एक विवादित यंत्र की तिथि और उत्पत्ति 67,000 साल पुरानी मानी जाती है; कलाकृतियां जिन्हें सामान्यतः प्रारंभिक बांसुरी माना जाता है करीब 37,000 साल पुरानी हैं। हालांकि, अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि वाद्य यंत्र के आविष्कार का एक विशिष्ट समय निर्धारित कर पाना, परिभाषा के व्यक्तिपरक होने के कारण असंभव है। वाद्ययंत्र, दुनिया के कई आबादी वाले क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से विकसित हुए.

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ओड

ओड (Ode) एक प्रकार की कविता है जो मिश्र छंद के ढाँचे में, सामान्यत: ओजपूर्ण स्वर और उच्च शैली की, एक सार्वभौम अभिरुचिवाली विषयवस्तु से युक्त संबोधनपरक होती है। नृत्य एवं संगीत वाद्यों के साथ गाए जानेवाले यूनानी समवेत गीतों में इसका मूल उद्गम निहित है। यूनान में, ओडों का मुख्य आदर्श यूनानी दुःखान्तों के सहगानों में प्राप्त था। छंद की दृष्टि से ये ओड अपनी रचना में अत्यंत मिश्र थे, जो तीन भागों में विभक्त हैं–स्ट्रोफ़ी (ग्रीक अर्थ .

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कभी खुशी कभी ग़म

कभी खुशी कभी ग़म... 2001 की हिन्दी भाषा की पारिवारिक नाटक फिल्म है। यह करण जौहर द्वारा लिखित और निर्देशित है और इसका निर्माण यश जौहर ने किया। फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, काजोल, ऋतिक रोशन और करीना कपूर प्रमुख भूमिका निभाते हैं जबकि रानी मुखर्जी विस्तारित विशेष उपस्थिति में दिखीं हैं। यह घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख व्यावसायिक सफलता के रूप में उभरी। भारत के बाहर, यह फिल्म सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म थी, जब तक कि करण की अगली फिल्म कभी अलविदा ना कहना (2006) द्वारा यह रिकॉर्ड तोड़ा नहीं गया था। इसने अगले वर्ष लोकप्रिय पुरस्कार समारोहों में कई पुरस्कार जीते, जिसमें पांच फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी शामिल थे। .

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कल हो ना हो

कल हो ना हो 2003 में बनी हिन्दी भाषा की नाटकीय प्रेमकहानी फ़िल्म है। इस फ़िल्म के द्वारा निखिल आडवाणी ने निर्देशक के रूप में बॉलीवुड में पदार्पण किया। इस फिल्म में जया बच्चन, शाहरुख खान, सैफ अली खान और प्रीति जिंटा प्रमुख भूमिका में हैं, जिसमें सुषमा सेठ, रीमा लागू, लिलेट दुबे और डेलनाज़ पॉल भूमिकाओं का समर्थन करते हैं। धर्मा प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म को यश जौहर एवं करण जौहर ने निर्माण किया। सगीत शंकर एहसान लॉय ने दिया और गीत जावेद अख्तर ने लिखे। फिल्म को सकारात्मक आलोचनात्मक प्रतिक्रिया मिली और यह व्यावसायिक रूप से साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बनी थी। इसने 2004 में दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, आठ फिल्मफेयर पुरस्कार, तेरह अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी पुरस्कार, तीन स्टार स्क्रीन पुरस्कार और दो ज़ी सिने पुरस्कार जीते। .

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कहो ना प्यार है

कहो ना प्यार है 2000 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इस फिल्म के निर्देशक और लेखक राकेश रोशन हैं। इस फिल्म के द्वारा ऋतिक रोशन और अमीषा पटेल ने फिल्मों में अपने अभिनय के सफर को शुरू किया था। इसमें ऋतिक रोशन रोहित और राज की दोहरी भूमिका निभाएँ हैं। यह फिल्म 2000 की सबसे सफल फिल्म थी। इसे बहुत अधिक पुरस्कार भी मिले। इस फिल्म के लिए राकेश रोशन को पहली बार निर्माता और निर्देशक के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेता के लिए ऋतिक रोशन को एक ही फिल्म में यह दोनों पुरस्कार भी मिल गया। .

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