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वंश समूह

सूची वंश समूह

आण्विक क्रम-विकास के अध्ययन में वंश समूह या हैपलोग्रुप ऐसे जीन के समूह को कहतें हैं जिनसे यह ज्ञात होता है के उस समूह को धारण करने वाले सभी प्राणियों का एक ही पूर्वज था। .

67 संबंधों: पितृवंश समूह टी, पितृवंश समूह ऍन, पितृवंश समूह ऍनओ, पितृवंश समूह ऍफ़, पितृवंश समूह ऍम, पितृवंश समूह ऍल, पितृवंश समूह ऍस, पितृवंश समूह ए, पितृवंश समूह एच, पितृवंश समूह डी, पितृवंश समूह पी, पितृवंश समूह बी, पितृवंश समूह सी, पितृवंश समूह जे, पितृवंश समूह जी, पितृवंश समूह ई, पितृवंश समूह ओ, पितृवंश समूह आर, पितृवंश समूह आर१ए, पितृवंश समूह आई, पितृवंश समूह आईजे, पितृवंश समूह आईजेके, पितृवंश समूह क्यु, पितृवंश समूह के, पितृवंश समूह के(ऍक्सऍलटी), मनुष्य पितृवंश समूह, मनुष्य मातृवंश समूह, मातृवंश समूह टी, मातृवंश समूह ऍन, मातृवंश समूह ऍफ़, मातृवंश समूह ऍम, मातृवंश समूह ऍल०, मातृवंश समूह ऍल१, मातृवंश समूह ऍल२, मातृवंश समूह ऍल३, मातृवंश समूह ऍल४, मातृवंश समूह ऍल५, मातृवंश समूह ऍल६, मातृवंश समूह ऍस, मातृवंश समूह ऍक्स, मातृवंश समूह ए, मातृवंश समूह एच, मातृवंश समूह एचवी, मातृवंश समूह डब्ल्यू, मातृवंश समूह डी, मातृवंश समूह पी, मातृवंश समूह बी, मातृवंश समूह यु, मातृवंश समूह सी, मातृवंश समूह सीज़ॅड, ..., मातृवंश समूह ज़ॅड, मातृवंश समूह जे, मातृवंश समूह जेटी, मातृवंश समूह जेटी-पूर्व, मातृवंश समूह जी, मातृवंश समूह ई, मातृवंश समूह वाए, मातृवंश समूह वी, मातृवंश समूह आर, मातृवंश समूह आर०, मातृवंश समूह आई, मातृवंश समूह क्यु, मातृवंश समूह के, समूह, सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष, सर्वप्रथम मातृवंशी नारी, वाई गुण सूत्र सूचकांक विस्तार (17 अधिक) »

पितृवंश समूह टी

दुनिया में पितृवंश समूह टी का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किस इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह टी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप T एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह के से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ समुदायों में मिलते हैं। दक्षिण भारत के येरुकाला आदिवासी, पश्चिम बंगाल के बाओड़ी जनजाति और राजस्थान के लोधा समुदाय के अधिकांश पुरुष इसके वंशज हैं। अफ़्रीका में सोमालिया और दक्षिणी मिस्र के पुरुषों में इसके वंशज भारी मात्रा में पाए जाते हैं। ईरान में केरमान शहर के पारसी समुदाय और दक्षिण-पश्चिमी ईरान के बख्तिआरी बंजारा समुदाय में भी इसके काफ़ी वंशज मिलते हैं। यूरोप में जर्मनी, इटली के सार्दिनिया द्वीप, स्पेन और पुर्तगाल में इसके सदस्य मिलते हैं। उत्तर-पूर्वी पुर्तगाल के यहूदी समुदाय में इसके वंशज भारी मात्रा में मौजूद हैं। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह टी जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २५,०००-३०,००० साल पहले मध्य पूर्व का रहने वाला था। .

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पितृवंश समूह ऍन

रूस के साइबेरिया क्षेत्र के नॅनॅत्स जनजाति के ७५% पुरुष पितृवंश समूह ऍन के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍन या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप N एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍनओ से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर यूरेशिया के सुदूर उत्तरी इलाक़ों में पाए जाते हैं, जैसे कि साइबेरिया, उत्तरी रूस, फिनलैंड, लातविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया। साइबेरिया की याकूत और नॅनॅत्स जनजातियों के ७५% पुरुष, फिनलैंड की सामी जनजाति के ४०% पुरुष और फिनलैंड की ही बहुसंख्यक फ़िन्न जाती के ६०% पुरुष इस पितृवंश समूह के सदस्य हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग १५,०००-२०,००० वर्ष पहले सुदूर पूर्व एशिया का निवासी था। .

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पितृवंश समूह ऍनओ

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍनओ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप NO एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह के (ऍक्सऍलटी) से उत्पन्न हुई एक शाखा है। विश्व में इसकी उपशाखाओं - पितृवंश समूह ऍन और पितृवंश समूह ओ - के तो बहुत पुरुष मिलते हैं, लेकिन सीधा पितृवंश समूह ऍनओ का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है के इसे समूह के वंशज कभी ज़रूर रहे होंगे। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३०,०००-४०,००० वर्ष पहले एशिया में अरल सागर से पूर्व की ओर कहीं रहता था।Rootsi, Siiri et al.

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पितृवंश समूह ऍफ़

पितृवंश समूह ऍफ़ की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में हुई और इस पितृवंश की शाखाओं आगे चलकर हर दिशा में फैल गयी - विश्व के ९०% पुरुष इसकी उपशाखाओं के ही वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍफ़ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप F एक पितृवंश समूह है। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ५०,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में रहता था। इस पितृवंश से आगे चलकर बहुत सी पितृवंश उपशाखाएँ बनी और विश्व के ९०% पुरुष इन्ही उपशाखाओं के वंशज हैं। क्योंकि यह पितृवंश मनुष्यों के अफ़्रीका से निकलने के बाद ही उत्पन्न हुआ इसलिए इस पितृवंश के पुरुष उप-सहारा अफ़्रीका के क्षेत्रों में बहुत कम ही मिलते हैं। बाक़ी विश्व में ऐसे पुरुष जो सीधा इस पितृवंश के सदस्य हैं (यानि की इसकी उपशाखाओं के नहीं बल्कि केवल पितृवंश समूह ऍफ़ के वंशज हैं) भारत, उत्तरी पुर्तगाल, चीन के यून्नान राज्य के पहाड़ी इलाकों और कोरिया में पाए जाते हैं। भारतीय पुरुषों में से १२.५% इसके सीधे सदस्य हैं, लेकिन भारतीय जनजातियों के पुरुषों में यह मात्र बढ़ कर १८.१% पर देखी गयी है। कोरियाई पुरुषों में से ८% इस पितृवंश समूह की संतति हैं। पुर्तगाल में इसकी ०.५% तक की हलकी मौजूदगी का कारण भारतीय पुरुषों के साथ संबंधों को माना जाता है, क्योंकि पुर्तगाल और भारत का ५०० वर्ष तक संपर्क रहा है। चीन में इसे ज़्यादातर युन्नान क्षेत्र की लाहू जनजाति में देखा गया है। .

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पितृवंश समूह ऍम

पितृवंश समूह ऍम का ओशिआनिया में फैलाव - आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍम या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप M एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर ओशिआनिया के द्वीप राष्ट्रों में मिलते हैं, जैसे की नया गिनी, फ़िजी, टोंगा, सोलोमन द्वीपसमूह, वग़ैराह। पश्चिमी नया गिनी में (जो इण्डोनेशिया का एक राज्य है) अधिकाँश पुरुष इसी पितृवंश समूह के वंशज हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३२,०००-४७,००० वर्ष पहले दक्षिण पूर्व एशिया या ओशिआनिया के मॅलानिशिया क्षेत्र में रहता था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .

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पितृवंश समूह ऍल

दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में पितृवंश समूह ऍल का फैलाव - आंकड़े बताते हैं के उस इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍल या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L एक पितृवंश समूह है। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से २५,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप का निवासी था। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर भारत और पाकिस्तान में पाए जाते हैं। मध्य एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण यूरोप के भी कुछ पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। सारे भारतीय पुरुषों में से ७%-२०% इसके वंशज हैं। लगभग ७% पठान इसके वंशज हैं। सीरिया के एक अल राक्क़ाह नाम के शहर के तो ५१% पुरुष इसके वंशज पाए गएँ हैं।Mirvat El-Sibai et al."Geographical Structure of the Y-chromosomal Genetic Landscape of the Levant: A coastal-inland contrast"," 'Annals of Human Genetics (2009) .

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पितृवंश समूह ऍस

ओशिआनिया में पितृवंश समूह ऍस का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किसी भी इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ऍस या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप S एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष ज़्यादातर ओशिआनिया के मेलानेशिया क्षेत्र में बसते हैं, लेकिन कुछ-कुछ इण्डोनेशिया के नज़दीकी हिस्सों में भी पाए जाते हैं। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह ऍस जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २८,०००-४१,००० साल पहले नया गिनी या उसके इर्द-गिर्द के किसी इलाक़े का रहने वाला था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .

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पितृवंश समूह ए

दक्षिण अफ्रीका की बुशमैन जनजातियों के पुरुष अक्सर पितृवंश समूह ए के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ए या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप A एक अत्यंत प्राचीनतम पितृवंश समूह है। पितृवंश समूह बी (B) और यह विश्व के दो सब से प्राचीन पितृवंश माने जाते हैं। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर अफ़्रीका के सुदूर दक्षिणी क्षेत्रों में और नील नदी के दक्षिण वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ७५,००० वर्ष पूर्व इसी इलाक़े में रहता था। .

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पितृवंश समूह एच

रोमा समुदाय के भी कुछ पुरुष पितृवंश समूह एच के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह एच या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप H एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍफ़ से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिलते हैं, हालाँकि यूरोप में रोमा समुदाय के भी कुछ पुरुष इसके वंशज हैं, क्योंकि उनमें से बहुत भारतीय मूल के हैं। भारत में यह आदिवासियों में २५-३५% पुरुषों में पाया जाता है और सुवर्ण समुदायों के लगभग १०% पुरुषों में। मध्य पूर्व और मध्य एशिया के कुर्द, ईरानी, ताजिक, उइग़ुर और अन्य समुदायों में भी यह १% से १२% पुरुषों में पाया गया है। माना जाता है के पितृवंश समूह एच जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से २०,०००-३०,००० साल पहले दक्षिण एशिया का रहने वाला था। .

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पितृवंश समूह डी

बहुत से भारतीय अंडमानी आदिवासी पुरुष पितृवंश समूह डी के वंशज हैं, जो जापानी और तिब्बती पुरुषों में भी आम है मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह डी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप D पितृवंश समूह है। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर तिब्बत, जापान और अंडमान द्वीपों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ५०,००० या ६०,००० वर्ष पहले एशिया के महाद्वीप में कहीं रहता था, लेकिन इस से आगे उसके निवास स्थान का ठीक से अनुमान नहीं लग पाया है। यह पितृवंश समूह बहुत प्राचीन माना जाता है और अंदाज़ा है इसकी उत्पत्ति मनुष्यों के अफ़्रीका छोड़ने के जल्द बाद ही हो गयी थी। एशिया के बाहर यह पितृवंश समूह किसी पुरुष में कहीं नहीं पाया गया है। यह पुरुष स्वयं पितृवंश समूह डीई (DE) का वंशज था और पितृवंश समूह डी को पितृवंश समूह डीई की एक शाखा माना जाता है। .

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पितृवंश समूह पी

भारत के माडिया गोंड समुदाय के २५% पुरुष पितृवंश समूह पी के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह पी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप P एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष भारत में कुछ समुदायों में ही मिलते हैं - मणिपुर के ३०% मुस्लिम पुरुष और गोंड जनजाति की माडिया शाखा के २५% पुरुष इसके सदस्य हैं। यूरोप में क्रोएशिया के ह्वार द्वीप पर भी कुछ पुरुष इसके वंशज हैं। चाहे पितृवंश समूह पी के सीधे वंशज कम हों, लेकिन इस से उत्पन्न क्यु और आर उपशाखाओं के वंशज यूरोप, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका पर करोड़ों की संख्या में दूर-दूर तक फैले हुए हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से पितृवंश समूह पी शुरू हुआ वह आज से लगभग २७,०००-४१,००० वर्ष पहले जीवित था और मध्य एशिया या साइबेरिया में रहता था। .

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पितृवंश समूह बी

अफ्रीका की पिग्मी जनजाति के पुरुष अक्सर पितृवंश समूह बी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह बी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप B एक अत्यंत प्राचीनतम पितृवंश समूह है। पितृवंश समूह ए (A) और यह विश्व के दो सब से प्राचीन पितृवंश माने जाते हैं। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर उप-सहारा अफ़्रीका के क्षेत्रों में और पश्चिम-मध्य अफ़्रीका के घने जंगलों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ६०,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका के इलाक़े में रहता था। .

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पितृवंश समूह सी

पितृवंश समूह सी की शुरुआत भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में हुई जब मनुष्य अफ्रीका से नए-नए पूर्व की और निकले थे - इस पितृवंश की शाखाओं के वंशजों ने आगे चलकर पूर्वी एशिया और उत्तरी अमरीका को मनुष्यों से सर्वप्रथम आबाद किया मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह सी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप C एक पितृवंश समूह है। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष भारत और मंगोलिया, रूस के सुदूर पूर्व, ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों और कोरिया में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ६०,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप या मध्य पूर्व में रहता था। मानना है के जब इस पितृवंश की शुरुआत हुई तो मनाव अफ्रीका के अपने जन्मस्थल से नए-नए पूर्व की ओर निकले थे। इस पितृवंश समूह की शाखाओं के वंशजों ने आगे चलकर पूर्वी एशिया और उत्तरी अमरीका में मनुष्यों की जाती को सर्वप्रथम स्थापित किया। .

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पितृवंश समूह जे

पितृवंश समूह जे का मध्य पूर्व और अरबी प्रायद्वीप में फैलाव। आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। भारत तक इसका हल्का फैलाव देखा जा सकता है। मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह जे या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप J एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजे से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर मध्य पूर्व और अरबी प्रायद्वीप में मिलते हैं, हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया और दक्षिण यूरोप के कुछ पुरुष भी इसके सदस्य हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३०,०००-५०,००० वर्ष पहले अरबी प्रायद्वीप में या उसके आस-पास रहता था। भारत में इसकी उपशाखा पितृवंश समूह जे२ के वंशज पुरुष अधिक मिलते हैं। ठीक यही उपशाखा भूमध्य सागर के इर्द-गिर्द के इलाक़ों में भी मिलती है। .

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पितृवंश समूह जी

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह जी या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप G एक पितृवंश समूह है। जिस पुरुष से इस पितृवंश समूह की शुरुआत हुई उसके जीवनकाल का ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है, लेकिन अनुमान किया जाता है के वह आज से ९,५०० से लेकर २०,००० साल के अंतराल में कभी या तो मध्य पूर्व में या एशिया में कहीं बसता था। यह पुरुष स्वयं पितृवंश समूह ऍफ़ का वंशज था और इसलिए पितृवंश समूह जी को पितृवंश समूह ऍफ़ की उपशाखा माना जाता है। पितृवंश समूह जी के वंशज पुरुष हलकी मात्रा में पूरे यूरोप, उत्तर एशिया, मध्य पूर्व, उत्तर अफ़्रीका, भारत, श्रीलंका और मलेशिया में पाए जाते हैं। .

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पितृवंश समूह ई

अफ्रीका, यूरोप और मध्य पूर्व में पितृवंश समूह ई का फैलाव - आंकड़े बताते हैं के किस इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ई या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप E पितृवंश समूह है। इस पितृवंश समूह के सदस्य पुरुष ज़्यादातर अफ्रीका में पाए जाते हैं, हालाँकि इस पितृवंश समूह की एक उपशाखा है, जिसका नाम ई१बी१बी है, जो उत्तर और पूर्वी अफ्रीका के साथ-साथ एशिया और यूरोप के कुछ पुरुषों में भी पाई जाती है। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से ५०,००० या ५५,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ्रीका में कहीं रहता था।Karafet et al.

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पितृवंश समूह ओ

पितृवंश समूह ओ का फैलाव। आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। ध्यान दीजिये के इसके वंशज पुरुष केवल पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और अफ़्रीका के नज़दीक वाले मेडागास्कर द्वीप पर ही मौजूद हैं। मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह ओ या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप O एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍनओ से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष पूर्वी एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया के इलाक़ों में पाए जाते हैं और उस से बाहर बहुत कम मिलते हैं। इस इलाक़े के अतिरिक्त इसके वंशज केवल अफ़्रीका के नज़दीक स्थित मेडागास्कर द्वीप पर मिलते हैं, क्योंकि इस द्वीप को सैंकड़ों वर्ष पहले समुद्री रास्ते से आये इण्डोनेशिया के लोगों ने ही आबाद किया था। पूर्वी भारत और बंगलादेश में भी इसके वंशज पुरुष मिलतें हैं क्योंकि यह क्षेत्र पूर्वी एशिया के पड़ौसी हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग २८,०००-४१,००० वर्ष पहले पूर्वी एशिया या दक्षिण पूर्व एशिया का निवासी था।Laura Scheinfeldt, Françoise Friedlaender, Jonathan Friedlaender, Krista Latham, George Koki, Tatyana Karafet, Michael Hammer and Joseph Lorenz, "," Molecular Biology and Evolution 2006 23(8):1628-1641 .

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पितृवंश समूह आर

दुनिया में पितृवंश समूह आर की उपशाखाओं का फैलाव - आंकड़े बता रहे हैं के किसी भी इलाक़े के कितने प्रतिशत पुरुष इसके वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आर या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप R एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह पी से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश की आर१ए, आर१बी और आर२ उपशाखाओं के पुरुष ज़्यादातर यूरोप, मध्य एशिया, पूर्वी एशिया, पश्चिमी एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण एशिया में पाए जाते हैं। इसकी आर१ शाखा के पुरुष उत्तर अमेरिका के कुछ आदिवासी समुदायों में भी पाए जाते हैं और विचार है के इनके पूर्वज शायद चंद हज़ार साल पहले ही साइबेरिया से उत्तर अमेरिकी उपमहाद्वीप पहुंचे थे। माना जाता है के मूल पितृवंश समूह आर जिस पुरुष के साथ आरम्भ हुआ वह आज से ३५,०००-४०,००० साल पहले मध्य एशिया या मध्य पूर्व का रहने वाला था। .

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पितृवंश समूह आर१ए

पितृवंश समूह आर१ए का विस्तार पितृवंश समूह आर१ए या हैपलोग्रुप R1a मनुष्यों में वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) का एक वर्ग है, यानि की सभी पुरुष जिनमें इस वंश समूह के चिन्ह हैं एक ही ऐतिहासिक पुरुष की संतान हैं। अनुमान लगाया जाता है के यह पुरुष आज से १८,५०० साल पहले जीवित था। इस पितृवंश के पुरुष भारत, पाकिस्तान, मध्य एशिया, रूस, पूर्वी यूरोप और स्कैन्डिनेवियाई देशों में पाए जाते हैं। .

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पितृवंश समूह आई

पितृवंश समूह आई का यूरोप और तुर्की में फैलाव - आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आई या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप I एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजे से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष अधिकतर यूरोप और तुर्की में ही मिलते हैं, हालांकि मध्य पूर्व और मध्य एशिया के कुछ पुरुष भी इसके सदस्य हैं। सारे यूरोपीय पुरुषों में से लगभग २०% पुरुष इसके वंशज हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर यह तादाद ज़्यादा है, जैसे की बॉस्निया और हर्ज़ेगोविना के लगभग ६५% पुरुष इसके सदस्य हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग २५,०००-३०,००० वर्ष पहले यूरोप या तुर्की के अनातोलिया क्षेत्र में रहता था। .

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पितृवंश समूह आईजे

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आईजे या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप IJ एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजेके से उत्पन्न हुई एक शाखा है। विश्व में इसकी दो उपशाखाओं - पितृवंश समूह आई और पितृवंश समूह जे - के तो बहुत पुरुष मिलते हैं, लेकिन सीधा पितृवंश समूह आईजे का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है। फिर भी पितृवंश समूह आई और पितृवंश समूह जे का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों का मानना है के इसे समूह के वंशज कभी ज़रूर रहे होंगे। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३५,०००-४०,००० वर्ष पहले मध्य पूर्व या दक्षिण-पश्चिमी एशिया में रहता था। .

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पितृवंश समूह आईजेके

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह आईजेके या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप IJK एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह ऍफ़ से उत्पन्न हुई एक शाखा है और आगे चलकर इसकी स्वयं दो शाखाएँ हैं - पितृवंश समूह आईजे और पितृवंश समूह के। सीधा पितृवंश समूह आईजेके का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है और न ही कोई सीधा पितृवंश समूह आईजे का सदस्य मिला है। फिर भी पितृवंश समूह आई, पितृवंश समूह जे और पितृवंश समूह के का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों का मानना है के आईजेके और आईजे दोनों समूह कभी अस्तित्व में ज़रूर थे चाहे उनके सदस्य बहुत ही कम संख्या में ही क्यों न रहे हों। अनुमान है के जिस पुरुष से यह आईजेके पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४०,०००-४५,००० वर्ष पहले पश्चिम एशिया में रहता था। .

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पितृवंश समूह क्यु

पितृवंश समूह क्यु का फैलाव। आंकड़े बता रहें हैं के इन इलाकों के कितने प्रतिशत पुरुष इस पितृवंश के वंशज हैं। मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह क्यु या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Q एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह पी से उत्पन्न हुई एक शाखा है। इस पितृवंश के पुरुष मध्य एशिया के सभी समुदायों में और उत्तरी एशिया, उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के आदिवासी समुदायों में पाए जाते हैं। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग १७,०००-२२,००० वर्ष पहले जीवित था, लेकिन इस बात पर विवाद है के वह किस क्षेत्र का निवासी था। कुछ विशेषज्ञों का कहना है की वह मध्य एशिया में रहता था, लेकिन अन्य वैज्ञानिक भारतीय उपमहाद्वीप या साइबेरिया को उसका घर बताते हैं। भारत में इसकी एक अनूठी उपशाखा मिली है, लेकिन यह बहुत ही कम संख्या के भारतीय पुरुषों में पायी गयी है। .

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पितृवंश समूह के

ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों के कई पुरुष पितृवंश समूह 'के' (K) के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह के या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप K एक पितृवंश समूह है। यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह आईजेके से उत्पन्न हुई एक शाखा है। अंदाज़ा लगाया जाता है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४७,००० वर्ष पहले दक्षिण एशिया या पश्चिम एशिया में रहता था। इस पितृवंश समूह के सदस्य ओशिआनिया के द्वीपों पर और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों में मिलते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप, इण्डोनेशिया और फ़िलीपीन्स के भी आदिवासी समुदायों में भी बहुत कम संख्या में भी इसके वंशज पुरुष मिलते हैं। .

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पितृवंश समूह के(ऍक्सऍलटी)

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह के (ऍक्सऍलटी) या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप K(xLT), जिसे पहले पितृवंश समूह ऍमऍनओपीऍस या वाए-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप MNOPS बुलाया जाता था, एक पितृवंश समूह है।Jacques Chiaroni, Peter A. Underhill, and Luca L. Cavalli-Sforza, "Y chromosome diversity, human expansion, drift, and cultural evolution," PNAS published online before print November 17, 2009, doi: 10.1073/pnas.0910803106 यह पितृवंश स्वयं पितृवंश समूह के से उत्पन्न हुई एक शाखा है। विश्व में इसकी उपशाखाओं - ऍम, ऍनओ, पी और ऍस - के तो बहुत पुरुष मिलते हैं, लेकिन सीधा पितृवंश समूह के (ऍक्सऍलटी) का सदस्य आज तक कोई नहीं मिला है। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है के इसे समूह के वंशज कभी ज़रूर रहे होंगे। अनुमान है के जिस पुरुष से यह पितृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ३५,०००-४५,००० वर्ष पहले मध्य एशिया या भारतीय उपमहाद्वीप में रहता था। .

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मनुष्य पितृवंश समूह

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में पितृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका पुरुषों के वाए गुण सूत्र (Y-क्रोमोज़ोम) पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो पुरुषों का पितृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनका हजारों साल पूर्व एक ही पुरुष पूर्वज रहा है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों पुरुष अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .

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मनुष्य मातृवंश समूह

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह उस वंश समूह या हैपलोग्रुप को कहते हैं जिसका किसी भी व्यक्ति (स्त्री या महिला) के माइटोकांड्रिया के गुण सूत्र पर स्थित डी॰एन॰ए॰ की जांच से पता चलता है। अगर दो व्यक्तियों का मातृवंश समूह मिलता हो तो इसका अर्थ होता है के उनकी हजारों साल पूर्व एक ही महिला पूर्वज रही है, चाहे आधुनिक युग में यह दोनों व्यक्ति अलग-अलग जातियों से सम्बंधित ही क्यों न हों। .

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मातृवंश समूह टी

आयरलैंड के बहुत से लोग मातृवंश समूह टी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह टी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप T एक मातृवंश समूह है। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम के लोग और मध्य पूर्व और यूरोप के लोग अक्सर इसके वंशज होते हैं। यूरोप के १०% से थोड़े कम लोग इसके वंशज पाए गए हैं, लेकिन आयरलैंड में यह संख्या अधिक है।, The Genographic Project वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब १०,००० से १२,००० साल पहले इराक़, तुर्की, सीरिया या उन्ही के आस-पास कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍन

मानवों के अफ़्रीका से निकलने के बाद, मातृवंश समूह ऍम और ऍन (और उनकी उपशाखाओं) के वंशजों नें एशिया और यूरोप को आबाद किया मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍन या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप N एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह और मातृवंश समूह ऍम ने मानव इतिहास में बहुत बड़ा किरदार अदा किया है क्योंकि अफ़्रीका के बहार जितने भी मानव हैं वे इन दोनों या इनकी उपशाखाओं के वंशज हैं। मातृवंश समूह ऍन और मातृवंश समूह ऍम मातृवंश समूह ऍल३ की दो उपशाखाएँ हैं। माना जाता है के जब मनुष्य अफ़्रीका के अपने जन्मस्थल से पहली बार निकले तो जो महिला या महिलाएँ अफ़्रीका से बाहर निकलीं वे इसी मातृवंश समूह ऍल३ की वंशज थी। मातृवंश समूह ऍन की उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं लेकिन उप-सहारा अफ़्रीका में बहुत कम संख्या में मिलती है। वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है के अफ़्रीका में जो इस मातृवंश के लोग हैं उनके पूर्वज यूरेशिया से अफ़्रीका आये थे। इसकी मातृवंश समूह ऍन५ उपशाखा ज़्यादातर भारतीय महाद्वीप में ही मिलती है। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ७१,००० वर्ष पहले एशिया या पूर्वी अफ़्रीका की निवासी थी। .

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मातृवंश समूह ऍफ़

जापान के कुछ लोग मातृवंश समूह ऍफ़ के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍफ़ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप F एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह जापान, पूर्वी चीन और दक्षिण पूर्वी एशिया में मिलता है। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४३,००० वर्ष पहले पूर्वी एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ऍफ़ और मातृवंश समूह ऍफ़), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह ऍम

मातृवंश समूह ऍम की उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍम या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप M एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह और मातृवंश समूह ऍन ने मानव इतिहास में बहुत बड़ा किरदार अदा किया है क्योंकि अफ़्रीका के बहार जितने भी मानव हैं वे इन दोनों या इनकी उपशाखाओं के वंशज हैं। मातृवंश समूह ऍम और मातृवंश समूह ऍन मातृवंश समूह ऍल३ की दो उपशाखाएँ हैं। माना जाता है के जब मनुष्य अफ़्रीका के अपने जन्मस्थल से पहली बार निकले तो जो महिला या महिलाएँ अफ़्रीका से बाहर निकलीं वे इसी मातृवंश समूह ऍल३ की वंशज थी। मातृवंश समूह ऍम की उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं। कुछ तो अफ़्रीका में भी मिलती हैं - इनपर वैज्ञानिकों में आपसी विवाद है के यह अफ़्रीका में उत्पन्न हुई या एशिया में उत्पन्न होने के बाद अफ़्रीका में जा पहुंची।Rajkumar et al.

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मातृवंश समूह ऍल०

उप-सहारा अफ़्रीका की बुशमैन जनजातियों के स्त्री ओर पुरुष अक्सर मातृवंश समूह ऍल० के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल० या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L0 एक अत्यंत प्राचीनतम मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य व्यक्ति (स्त्री ओर पुरुष दोनों) ज़्यादातर उप-सहारा अफ़्रीका में पाए जाते हैं। इस इलाक़े के खोइसान जनजाति के ७३% लोग, !कुंग जनजाति की नामीबिया वाली शाखा के ७९% लोग ओर !कुंग जनजाति की बोत्सवाना वाली शाखा के १००% लोग इसके वंशज हैं। अनुमान है के जिस नारी से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ११२,२०० से १८८,००० वर्ष पूर्व पूर्वी अफ़्रीका में रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍल१

मध्य अफ़्रीका की पिग्मी जनजातियों के स्त्री ओर पुरुष अक्सर मातृवंश समूह ऍल१ के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल१ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L1 एक अत्यंत प्राचीनतम मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य व्यक्ति (स्त्री ओर पुरुष दोनों) ज़्यादातर मध्य ओर पश्चिम अफ़्रीका में पाए जाते हैं। इस इलाक़े की पिग्मी जनजाति की अम्बेंगा शाखा के लोगों में यह मातृवंश सब से अधिक मिलता है। अनुमान है के जिस नारी से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग १५०,००० से १७०,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका में रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍल२

उत्तर-मध्य अफ़्रीका के चाड देश के लोग अक्सर मातृवंश समूह ऍल२ के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल२ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L2 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश की उपशाखाएँ अफ़्रीका के पश्चिमी, उत्तरी ओर पूर्वी हिस्सों में कई स्थानों पर ओर कई समुदायों में मिलती हैं। चाड देश के लगभग ३८% लोग इसके वंशज हैं, लेकिन यह बहुत से और देशों में भी मिलता है। अनुमान है के जिस नारी से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ६८,१०० से १११,१०० वर्ष पहले जीवित थी। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है के वह पूर्वी अफ़्रीका की निवासी थी, लेकिन इस को लेकर वैज्ञानिकों में काफ़ी आपसी मतभेद है। .

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मातृवंश समूह ऍल३

अफ़्रीका से बाहर मिलने वाले सारे मातृवंश मातृवंश समूह ऍल३ से उत्पन्न हुई शाखाएँ हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल३ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L3 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश की मानव इतिहास में बहुत ही अहम भूमिका रही है, क्योंकि जब मनुष्य अफ़्रीका के अपने जन्मस्थल से पहली बार निकले तो जो महिला या महिलाएँ अफ़्रीका से बाहर निकलीं वे इसी की वंशज थी। अफ़्रीका के महाद्वीप से बाहर विश्व-भर में मिलने वाले जितने भी मातृवंश हैं, वे सब इसी मातृवंश समूह ऍल३ से उत्पन्न हुई शाखाएँ हैं। मातृवंश समूह ऍल३ के सीधे वंशज (यानि इसकी बड़ी ग़ैर-अफ़्रीकी उपशाखाओं के नहीं) ज़्यादातर पूर्वी अफ़्रीका में मिलते हैं, जैसे की इथियोपिया और सोमालिया में। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ८४,००० से १०४,००० वर्ष पहले पूर्वी अफ़्रीका की निवासी थी। .

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मातृवंश समूह ऍल४

तानज़ानिया के हदज़ा समुदाय के ६०-८३% लोग मातृवंश समूह ऍल४ के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल४ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L4 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य स्त्रियों और पुरुषों की तादाद ज़्यादा नहीं है, लेकिन वे पूर्वी अफ़्रीका और अफ़्रीका के सींग के कई समुदायों में मिलते हैं। तंज़ानिया के हदज़ा समुदाय के ६०-८३% लोग और संदावे समुदाय के ४८% लोग इसके वंशज हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ आज से हज़ारों साल पहले जिस स्त्री से इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह पूर्वी अफ़्रीका की वासी थी। .

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मातृवंश समूह ऍल५

मध्य अफ़्रीका की पिग्मी जनजातियों के कुछ स्त्री ओर पुरुष मातृवंश समूह ऍल५ के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल५ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L5 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य स्त्रियों और पुरुषों की तादाद ज़्यादा नहीं है, लेकिन वे पूर्वी और मध्य अफ़्रीका के कुछ समुदायों में मिलते हैं। पिग्मी जनजाति की अम्बूटी शाखा के १५% लोग इसके वंशज हैं और तंज़ानिया के संदावे समुदाय के में भी कम तादाद में इसके वंशज मिलते हैं। अफ़्रीका से बाहर बहुत कम तादाद में इसके वंशज साउदी अरब में भी पाए गए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ जिस स्त्री से इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह पूर्वी अफ़्रीका में आज से लगभग ११४,२०० से १२६,२०० साल पहले रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍल६

यमन के कुछ स्त्री ओर पुरुष मातृवंश समूह ऍल६ के वंशज हैं, जिसका फैलाव विश्व में काफ़ी सीमित है मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍल६ या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप L6 एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के सदस्य स्त्रियों और पुरुषों की तादाद ज़्यादा नहीं है, लेकिन वे यमन और इथियोपिया के कुछ समुदायों में मिलते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक़ जिस स्त्री से इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह पूर्वी अफ़्रीका में आज से लगभग ८१,५०० से १२९,८०० साल पहले रहती थी। .

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मातृवंश समूह ऍस

ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी अक्सर मातृवंश समूह ऍस के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍस या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप S एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों में पाया जाता है। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ऍस और मातृवंश समूह ऍस), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह ऍक्स

विश्व में मातृवंश समूह ऍक्स का फैलाव मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ऍक्स या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप X एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर यूरोप, पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ़्रीका में और कुछ मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में पाया जाता है। यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका की लगभग २% आबादी इस मातृवंश की वंशज है। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई थी वह आज से ३०,००० साल पहले ईरान-ईराक़ के पास कहीं पश्चिमी एशिया में रहती थी। उनके लिए यह एक पहेली है के यह मातृवंश उत्तरी अमेरिका में कैसे जा पहुंचा जबकि इसकी शुरुआत दूर पश्चिमी एशिया में हुई थी। इसकी सोच अब यह है के इस मातृवंश की वंशज महिलाऐं मध्य एशिया के अल्ताई पर्वत श्रंखला के इलाक़े से होती हुई पहले साइबेरिया और फिर अलास्का के ज़रिये उत्तरी अमेरिका में दाख़िल हुईं। याद रहे के हालांकि मातृवंश बताने वाले माइटोकांड्रिया मर्दों और औरतों दोनों में होतें हैं, संतानों को यह केवल अपनी माताओं से ही मिलते हैं। .

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मातृवंश समूह ए

बहुत से एस्किमो लोग मातृवंश समूह ए के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ए या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप A एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों, पूर्वी साइबेरिया के लोगों और कुछ पूर्वोत्तर एशिया के लोगों में पाया जाता है। चुकची, एस्किमो और अमेरिका की ना-देने जनजातियों में यह सब से आम मातृवंश है। ७.५% जापानी और २% तुर्की लोगों में भी यह पाया जाता है। अनुमान लगाया जाता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ५०,००० साल पहले पूर्वी एशिया या मध्य एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह ए और मातृवंश समूह ए), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह एच

लगभग १०% पंजाबी लोग मातृवंश समूह एच के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह एच या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप H एक मातृवंश समूह है। यूरोप में यह सब से अधिक पाया जाने वाले मातृवंश है। यूरोप के ५०%, मध्य पूर्व और कॉकस के २०%, ईरान के १७% और पाकिस्तान, उत्तर भारत और मध्य एशिया के १०% से ज़रा कम लोग इस मातृवंश के वंशज हैं। फ़ारस की खाड़ी के इर्द-गिर्द के इलाक़ों में भी १०% से ज़रा कम लोग इसके वंशज हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब २५,००० से ३०,००० साल पहले मध्य पूर्व में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह एचवी

कॉकस क्षेत्र के लोग अक्सर मातृवंश समूह एचवी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह एचवी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप HV एक मातृवंश समूह है। मातृवंश समूह एच और मातृवंश समूह वी इसी से उत्पन्न हुई बड़ी उपशाखाएँ हैं। मातृवंश समूह एचवी मध्य पूर्व, दक्षिण रूस के कॉकस क्षेत्र, ईरान और अनातोलिया में काफ़ी लोगों में पाया जाता है। इसके अलावा इसके वंशज हलकी मात्रा में भारत और इर्द-गिर्द के इलाक़ों में और दक्षिण यूरोप के कुछ क्षेत्रों में भी मिलते हैं। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग २५,००० से ३०,००० वर्ष पहले मध्य पूर्व या कॉकस क्षेत्र की निवासी थी।B.

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मातृवंश समूह डब्ल्यू

कुछ पंजाबी लोग मातृवंश समूह डब्ल्यू के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह डब्ल्यू या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप W एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर यूरोप, पश्चिमी एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। इन इलाकों में सब जगह इसके वंशज हलकी मात्रा में ही मिलते हैं और उनका सबसे भारी जमावड़ा उत्तरी पाकिस्तान में है। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई थी वह आज से २३,९०० साल पहले ईरान-ईराक़ के पास कहीं पश्चिमी एशिया में रहती थी। .

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मातृवंश समूह डी

साइबेरिया की याकूत जनजाति के लोग अक्सर मातृवंश समूह डी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह डी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप D एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर पूर्वोत्तर एशिया (ख़ासकर साइबेरिया), मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों, मध्य एशिया और कोरिया में भारी संख्या में और पूर्वोत्तर यूरोप और मध्य पूर्व के दक्षिण-पश्चिमी एशियाई इलाक़ों में हलकी संख्या में मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब ४८,००० साल पहले पूर्व एशिया में कहीं रहती थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह डी और मातृवंश समूह डी), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह पी

ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों में बहुत से लोग मातृवंश समूह पी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह पी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप P एक मातृवंश समूह है। यह ज़्यादातर ओशिआनिया के लोगों में मिलता है, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी और पापुआ और मेलानिशिया के लोग शामिल हैं।Friedlaender et al.

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मातृवंश समूह बी

साइबेरिया की तूवाई जनजाति में मातृवंश समूह बी के वंशज मिलते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह बी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप B एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह पूर्वी एशिया, साइबेरिया और मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में मिलता है। इसे तिब्बत, मोंगोलिया, चीन, ताइवान, फ़िलिपीन्स, कोरिया, पोलिनीशिया, इंडोनीशिया, वग़ैराह में पाया जाता है। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ५०,००० वर्ष पहले पूर्वी एशिया की निवासी थी।Yong-Gang Yao et al.

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मातृवंश समूह यु

स्पेन के रोमा समुदाय के बहुत से लोग मातृवंश समूह यु के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह यु या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप U एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश का फैलाव भारत, मध्य पूर्व, कॉकस, यूरोप और उत्तरी अफ़्रीका में है। भारत में इसकी यु२ उपशाखा काफ़ी पायी जाती है, जो मध्य एशिया और यूरोप में भी मिलती है - यहाँ तक की यही उपशाखा एक ३०,००० साल पुराने रूसी शिकारी के शव में भी मिली है। स्पेन और पोलैंड के रोमा लोगों में ३०-६५% इसकी यु३ उपशाखा के वंशज पाए गए हैं। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ मातृवंश समूह पी शुरू हुआ वह आज से लगभग ५५,००० वर्ष पूर्व मध्य पूर्व में रहती थी। .

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मातृवंश समूह सी

साइबेरिया की चुकची जनजाति के ११% लोग मातृवंश समूह सी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह सी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप C एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह सीज़ॅड की एक उपशाखा है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर पूर्वोत्तर एशिया (ख़ासकर साइबेरिया) और अमेरिका के आदिवासियों में पाए जाते हैं, लेकिन हाल ही में यह पश्चिमी यूरोप के आइसलैण्ड राष्ट्र में भी पाए गाये हैं। साइबेरिया की चुकची जनजाति के ११% लोग मातृवंश समूह सी के वंशज होते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ६०,००० साल पहले मध्य एशिया में कैस्पियन सागर और बेकाल झील के दरमियानी क्षेत्र में कहीं रहती थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह डी और मातृवंश समूह डी), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह सीज़ॅड

कुछ पूर्वोत्तर भारतीय मातृवंश समूह सीज़ॅड के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह सीज़ॅड या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप CZ एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश समूह के लोग ज़्यादातर उत्तर-पूर्वी एशिया में मिलते हैं, ख़ासकर साईबेरिया में। पूर्वोत्तर भारत में भी कुछ मातृवंश समूह सीज़ॅड के वंशज मिलते हैं। .

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मातृवंश समूह ज़ॅड

फिनलैंड की सामी जनजाति के लोग अक्सर मातृवंश समूह ज़ॅड के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ज़ॅड या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Z एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह सीज़ॅड की एक उपशाखा है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर रूस, फिनलैंड के सामी समुदाय, उत्तर चीन, मध्य एशिया और कोरिया में मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से हज़ारों साल पहले मध्य एशिया में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह जे

मध्य पूर्व के क़रीब १२% लोग मातृवंश समूह जे के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जे या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप J एक मातृवंश समूह है। मध्य पूर्व के १२% लोग, यूरोप के ११% लोग, कॉकस क्षेत्र के ८% लोग और उत्तरी अफ़्रीका के ६% लोग इस मातृवंश के वंशज पाए गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान में यह ५% लोगों में पाया गया है और उत्तरी पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की कलश जनजाति के ९% लोगों में। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब ४५,००० साल पहले पश्चिमी एशिया में कहीं रहती थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह जे और मातृवंश समूह जे), लेकिन यह महज़ एक इत्तेफ़ाक है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। यह पाया गया है कुछ मातृवंश समूह जे की उपशाखाओं में माइटोकांड्रिया के डी॰एन॰ए॰ में ऐसे उत्परिवर्तन (या म्युटेशन) मौजूद हैं जिनसे नौजवान आदमियों में "लॅबॅर की ऑप्टिक हॅरॅडिटरी न्यूरोपैथी" नाम की बिमारी की सम्भावनाएँ ज़्यादा होती हैं, जिसमें नज़र का केन्द्रीय अंधापन हो जाता है (यानि जहाँ सीधे देख रहें हो वो चीज़ नज़र नहीं आती लेकिन इर्द-गिर्द की चीजें नज़र आती हैं)। .

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मातृवंश समूह जेटी

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जेटी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप JT एक मातृवंश समूह है। इसकी दो शाखाएँ - मातृवंश समूह जे और मातृवंश समूह टी - यूरोप और मध्य पूर्व में काफ़ी फैली हुई हैं। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ५०,३०० वर्ष पहले दक्षिण पश्चिमी एशिया में रहती थी। .

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मातृवंश समूह जेटी-पूर्व

आज के विश्व में मातृवंश समूह जेटी-पूर्व में कोई नहीं, लेकिन इसके उपशाखाओं के वंशज बहुत हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जेटी-पूर्व या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप pre-JT एक मातृवंश समूह है। मातृवंश समूह जेटी इसी से उत्पन्न हुआ था। वैज्ञानिकों नें अनुसन्धान करने पर पाया है के कभी सीधे जेटी-पूर्व मातृवंश के लोग दुनिया में ज़रूर रहे होंगे, लेकिन आज की दुनिया में यह लोग नहीं पाए जाते। इस मातृवंश को पहले "आर२'जेटी" (R2'JT) कहा जाता था। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ४२,६०० से ६७,१०० वर्ष पहले जीवित थी। .

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मातृवंश समूह जी

साइबेरिया की जनजातियों के लोग अक्सर मातृवंश समूह जी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह जी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप G एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर पूर्वोत्तर साइबेरिया में होते हैं, जहाँ की कोरिआक और इतेलमेन जनजातियों में यह मातृवंश आम है। कम संख्या में इसके वंशज पूर्वी एशिया, मध्य एशिया और नेपाल में भी मिलते हैं। आम तौर पर जो मातृवंश साइबेरिया के पूर्वोत्तर में मिलते हैं वे मूल अमेरिकी आदिवासी समुदायों में भी मिलते हैं क्योंकि माना जाता है के साइबेरिया के लोग उत्तरी अमेरिका में मनुष्यों की पहली आबादियों के स्रोत थे। इसलिए वैज्ञानिकों को आश्चर्य हुआ के मातृवंश समूह जी मूल अमेरिकी आदिवासियों में कभी नहीं पाया गया है, लेकिन अब सोच यह है के इसकी शुरुआत पूर्वी एशिया में हुई और फिर यह साइबेरिया में फैल गया। वैज्ञानिकों अनुमान लगाते हैं के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ३५,७०० साल पहले पूर्वी एशिया में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह ई

ताइवान की आदिवासी जनजातियों के लोग अक्सर मातृवंश समूह ई के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह ई या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप E एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश के लोग ज़्यादातर मलेशिया, ताइवान, पापुआ न्यू गिनी, फ़िलीपीन्स और इण्डोनेशिया में मिलते हैं। इसके कुछ वंशज प्रशांत महासागर में स्थित गुआम के द्वीप पर भी मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग ३०,००० साल पहले मलय द्वीपसमूह में कहीं रहती थी। यह दक्षिण पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच सागर में फैला हुआ बहुत बड़ा द्वीपसमूह है जिसमें इण्डोनेशिया भी आता है।Soares et al.

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मातृवंश समूह वाए

आइनू आदिवासियों में से २०% मातृवंश समूह वाए के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह वाए या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Y एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ज़्यादातर पूर्वी एशिया में ही मिलता है, जहां जापान के आइनू आदिवासियों में से २०% और साइबेरिया के पूर्वी तट से कुछ दूरी पर स्थित रूस के शाखालिन द्वीप के निव्ख़ आदिवासियों के ६६% लोग इसके मातृवंशी होते हैं।M.

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मातृवंश समूह वी

तुनिशिया के कुछ बर्बर समुदायों में १६% से अधिक लोग मातृवंश समूह वी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह वी या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप V एक मातृवंश समूह है। यूरोप में यह सब से ज़्यादा मात्रा (१०.४%) में उत्तरी स्कैन्डिनेविया की सामी जनजाति के लोगों में और स्पेन-फ्रांस के सीमावर्ती इलाक़ों में बसने वाले बास्क लोगों में मिलता है। उत्तरी अफ़्रीका में यह तुनिशिया के मतमाता शहर में रहने वाले बर्बर समुदाय के १६.३% लोगों में मिलता है। इस मातृवंश के लोग हलकी मात्राओं में पूरे यूरोप, मध्य पूर्व और मध्य एशिया में मिलते हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से क़रीब १३,६०० से ३०,००० साल पहले भू मध्य सागर के पश्चिमी भाग के इर्द-गिर्द के इलाक़ों (जिनमें स्पेन, दक्षिणी फ्रांस, लीबिया, तुनिशिया, वग़ैराह शामिल हैं) में कहीं रहती थी। .

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मातृवंश समूह आर

मातृवंश समूह आर और उसकी उपशाखाएँ विश्व भर में मिलती हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह आर या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप R एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश समूह और इसकी बड़ी उपशाखाएँ यूरेशिया, ओशिआनिया और महाअमेरिका में फैली हुई हैं। अनुमान है के जिस स्त्री से यह मातृवंश शुरू हुआ वह आज से लगभग ६६,००० वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप की निवासी थी।Palanichamy, M. et al.

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मातृवंश समूह आर०

उत्तरी पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की कलश जनजाति के अनुमानित २३% लोग मातृवंश समूह आर० के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह आर० या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप R0 एक मातृवंश समूह है। इसे पहले मातृवंश समूह एचवी-पूर्व या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप pre-HV के नाम से जाना जाता था। मातृवंश समूह एचवी इसी से उत्पन्न हुई एक बड़ी उपशाखा है। मातृवंश समूह आर० अरबी प्रायद्वीप पर बहुत देखा जाता है, जहाँ के यमन राष्ट्र के सुक़तरा द्वीप के ५०,००० निवासियों में से ३८% इसके वंशज हैं।Viktor Cerny et al.

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मातृवंश समूह आई

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह आई या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप I एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश ३% से कम मात्राओं में भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य पूर्व और यूरोप में मिलता है। इन इलाकों से बहार यह बहुत की कम मिलता है। मध्य और पूर्वी यूरोप में फैली कारपैथियन पर्वत श्रंखला के इलाकों में इसकी मात्रा ११% है जो की दुनिया में सब से अधिक है। स्कैन्डिनेवियाई देशों में पाए गए पुराने शवों से पता चला है के प्राचीनकाल में इस क्षेत्र में मातृवंश समूह आई के वंशजों की संख्या १३% थी जबकि इन्ही इलाकों में यह संख्या अब २.५% है - इतिहासकारों का अंदाज़ा है के इस का मतलब है के पिछले हज़ार वर्षों में इन इलाकों में बाहार के बहुत से लोग आकर बसे होंगे जो मातृवंश समूह आई के वंशज नहीं हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में सिन्धी लोगों में इसकी संख्या ८% के आस-पास देखी गयी है। अनुमान लगाया जाता है के जिस स्त्री के साथ इस मातृवंश की शुरुआत हुई वह आज से लगभग २६,३०० साल पहले पश्चिमी एशिया की निवासी थी। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह आई और मातृवंश समूह आई), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह क्यु

नया गिनी के बहुत से लोग मातृवंश समूह सी के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह क्यु या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप Q एक मातृवंश समूह है। यह मातृवंश दक्षिणी ओशिआनिया के लोगों में बहुत मिलता है। इसमें नया गिनी और मॅलानिशिया के वासी शामिल हैं और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी भी। नया गिनी के नज़दीक स्थित पूर्वी इण्डोनेशिया के इलाकों में भी यह काफ़ी तादाद में पाया जाता है। इस क्षेत्र से दूर-दराज़ इलाकों में, जैसे की पोलीनेशिया में, भी कुछ लोग इसके वंशज हैं लेकिन काफ़ी संख्या में। ध्यान दें के कभी-कभी मातृवंशों और पितृवंशों के नाम मिलते-जुलते होते हैं (जैसे की पितृवंश समूह क्यु और मातृवंश समूह क्यु), लेकिन यह केवल एक इत्तेफ़ाक ही है - इनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। .

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मातृवंश समूह के

सीरिया के द्रूज़ समुदाय के १६% लोग मातृवंश समूह के के वंशज होते हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में मातृवंश समूह के या माइटोकांड्रिया-डी॰एन॰ए॰ हैपलोग्रुप K एक मातृवंश समूह है। इस मातृवंश का फैलाव भारत, मध्य पूर्व, कॉकस, यूरोप और उत्तरी अफ़्रीका में है। सीरिया और लेबनान के द्रूज़ समुदाय के १६% लोग इसके वंशज हैं। यहूदी लोगों की अशकेनाज़ी शाखा के ३२% लोग इसके वंशज हैं। वैज्ञानिकों ने अंदाज़ा लगाया है के जिस स्त्री के साथ मातृवंश समूह के शुरू हुआ वह आज से लगभग १२,००० वर्ष पूर्व मध्य पूर्व में रहती थी। यह मानना है के इस मातृवंश की उत्पत्ति मातृवंश समूह यु की यु८ शाखा से हुई। .

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समूह

समूह इकट्ठे किए गए हैं या एक साथ वर्गीकृत हैं कई लोग या चीजें। .

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सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष

विश्व के सभी पितृवंश समूहों के सदस्य पुरुष इसी एक सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष के वंशज हैं मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष या वाए-क्रोमोज़ोमल ऐडम उस अज्ञात पुरुष को कहते हैं जो आज के विश्व में मौजूद सारे पुरुषों का निकटतम सांझा पूर्वज था। दुनिया में जितने भी मनुष्य पितृवंश समूह हैं वे सभी इसी सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष की संतति की उपशाखाएँ हैं। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के यह पुरुष अफ़्रीका के महाद्वीप पर आज से ६०,००० से ९०,००० साल पहले रहा करता था। यह ध्यान योग्य बात है के अनुसंधान से पता लगा है के आधुनिक मनुष्यों की सर्वप्रथम मातृवंशी नारी (जो विश्व के सारे स्त्रियों ओर पुरुषों की निकटतम सांझी पूर्वज थी) ने इस पुरुष से लगभग ५०,००० से ८०,००० साल पहले अपना जीवनकाल व्यतीत किया। .

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सर्वप्रथम मातृवंशी नारी

मनुष्यों की आनुवंशिकी (यानि जॅनॅटिक्स) में सर्वप्रथम मातृवंशी नारी या माइटोकांड्रियल ईव उस अज्ञात नारी को कहते हैं जो आज के विश्व में मौजूद सारे नारियों ओर पुरुषों की निकटतम सांझी पूर्वजा थी। दुनिया में जितने भी मनुष्य मातृवंश समूह हैं वे सभी इसी सर्वप्रथम मातृवंशी नारी की संतति की उपशाखाएँ हैं। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं के यह नारी अफ़्रीका के महाद्वीप पर आज से २००,००० साल पहले रहा करता थी। यह ध्यान योग्य बात है के अनुसंधान से पता लगा है के आधुनिक मनुष्य जाती के पुरुषों के सर्वप्रथम पितृवंशी पुरुष (जो विश्व के सारे पुरुषों का निकटतम सांझा पूर्वज था) ने इस नारी से लगभग ५०,००० से ८०,००० साल बाद अपना जीवनकाल व्यतीत किया। .

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वाई गुण सूत्र

वाई गुण सूत्र के विभिन्न हिस्सों का चित्रण वाई गुण सूत्र किसी भी स्तनधारी श्रेणी के जानवर (जिसमें मनुष्य भी शामिल हैं) में लिंग की पहचान देने वाला एक गुण सूत्र है। इन जीवों में केवल ऐसे दो लिंग-भेद करने वाले गुण सूत्र होते हैं - एक्स गुण सूत्र और वाई गुण सूत्र। इनका नाम अंग्रेज़ी के "X" और "Y" अक्षरों पर पड़ा है क्योंकि इनके आकार उनसे मिलते-जुलते हैं। नरों में एक वाई और एक एक्स गुण सूत्र होता है, जबकि मादाओं में दो एक्स गुण सूत्र होते हैं। साधारण तौर पर किसी भी पिता का यह इकलौता वाई गुण सूत्र बिना किसी बदलाव के उसके पुत्रों में जाता है। इसलिए वाई गुण सूत्र के अध्ययन से किसी भी पुरुष के पितृवंश समूह का पता लगाया जा सकता है। वाई गुण सूत्र पर एक एस॰आर॰वाई॰ (SRY) नाम की जीन मौजूद होती है जो नर की विकास-आयु में शरीर को अंडकोषों को विकसित करने का आदेश देती है।, Institute of Medicine (U.S.). Committee on Understanding the Biology of Sex and Gender Differences, Theresa M. Wizemann, Mary Lou Pardue, National Academies Press, 2001, ISBN 978-0-309-07281-6,...

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