लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

वंश (जीवविज्ञान)

सूची वंश (जीवविज्ञान)

एक कूबड़ वाला ड्रोमेडरी ऊँट और दो कूबड़ो वाला बैक्ट्रियाई ऊँट दो बिलकुल अलग जातियाँ (स्पीशीज़) हैं लेकिन दोनों कैमेलस​ (Camelus) वंश में आती हैं जातियाँ आती हैं वंश (लैटिन: genus, जीनस; बहुवाची: genera, जेनेरा) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक वंश में एक-दूसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों की जातियाँ आती हैं। ध्यान दें कि वंश वर्गीकरण के लिए मानकों को सख्ती से संहिताबद्ध नहीं किया गया है और इसलिए अलग अलग वर्गीकरण कर्ता वंशानुसार विभिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

124 संबंधों: चकोतरा, चीनी राशि, ट्रफल, ट्राइसेराटोप्स, टैक्सोन, एपोगोनिडाए, ऐमारैंथेसी, झाड़मुर्गी, डाइप्टेरोकारपेसिए, डूक लंगूर, डेंड्रोग्रामा, तानतानी, तितलीमीन, दर्जिन चिड़िया, दक्षिणी तामान्दुआ, धीमा लोरिस, नौटिलस, नोमास्कस, पतला लोरिस, पत्रंग, पतेना, परवर्ती डेवोनियन विलुप्ति घटना, परकोइडेई, पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना, पर्सिडाए, पिद्दी, पंकलंघी, प्रकार जाति, प्रकार वंश, प्रोटियेसीए, प्रोसियोनिडी, पैंगोलिन, पूर्वजगत बंदर, पोटो, पोमाकैन्थीडाए, पोसाइडनिया, बायसन, बार्टेल उड़न गिलहरी, बालदार गैंडा, बगुला, बैंकसिया, बेरिंजिया, महाश्येन, मानवनुमा, माम्बा, मैथुन, मैनाटी, मैक्रोपोडीडाए, मोनिमिआसिए, रालन, ..., राइज़ोफ़ोरासिए, रंगबिरंगी उड़न गिलहरी, रूमेक्स, लार गिबन, लंगूरकुल, लकड़बग्घा, लौरालेस, लूटजैनिडाए, लोरिस, लोरिसिडाए, शुतुरमुर्ग, श्येन, समुद्री सर्प, साधारण राज़क, सार्वत्रिक वितरण, साइट्रस, साइरेनिया, सियामंग, सिलीन स्टेनोफ़ाइला, संघ (जीवविज्ञान), सुमात्रा गैंडा, स्टेगोसोरस, स्वर्गपक्षी, सैलामैंडर, सेन्ट्रार्चिडाए, सेरानिडाए, सेसलपिनिया, हायलोपीटीस, हायलोबेटीस, हाइड्रोचैरिटेसिए, हूलोक गिबन, ज़ोस्टेरेसिए, जाति (जीवविज्ञान), जगत (जीवविज्ञान), जुनबगला, वर्ग (जीवविज्ञान), वाइटिस, वाइटेसिए, वाइवेरिडाए, वंश (जीवविज्ञान), वंश समूह (जीवविज्ञान), वृक्ष-कंगारू, वॉम्बैट, खरहा, गटापारचा, गण (जीवविज्ञान), गलेगो, गिबन, गिरगिट, ग्रूपर मछली, ऑसेलॉट, ओलिंगीटो, आरेकेसिए, आंगवांतीबो, करैंजिडाए, काराकारा, काला जुनबगला, कांटीकरंज, कुल (जीवविज्ञान), क्रिल, क्वोका, कैनिडाए, कैक्टस, कोरिफ़ेना, कोरिफ़ेनिडाए, कोरैसीडाए, अदनसोनिया, अम्बैसिडाए, अमेरिकी अल्सतियन, अमीबा, अलिस्मातालेस, अश्वनाल केकड़ा, अगस्ति, उत्तरी तामान्दुआ सूचकांक विस्तार (74 अधिक) »

चकोतरा

चकोतरा निम्बू-वंश का एक फल है, जो उस वंश की सबसे बड़ी जातियों में से एक है। हालांकि निम्बू-वंश के बहुत से फल दो या उस से अधिक जातियों के संकर (हाइब्रिड) होते हैं, चकोतरा एक शुद्ध प्राकृतिक जाति है। इसके कच्चे फल का रंग हरा, और पके हुए का हल्का हरा या फिर पीला होता है। पूरा बड़ा होने पर इसके फल का व्यास (डायामीटर) १५-२५ सेमी और वज़न १ से २ किलोग्राम होता है। इसके स्वाद में खटास और कुछ मीठापन तो होता है, लेकिन कड़वाहट नहीं। चकोतरा मूलतः भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्वी एशिया क्षेत्र की जन्मी हुई जाति है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और चकोतरा · और देखें »

चीनी राशि

इस चीनी राशि वर्गीकरण है योजना प्रदान करती है कि एक जानवर के लिए प्रत्येक वर्ष में एक दोहरा बारह साल का चक्र है। 12 साल के चक्र की चीनी राशि चक्र के लिए एक सन्निकटन है 11.86 वर्ष के चक्र में बृहस्पति सबसे बड़ा ग्रह सौर प्रणाली के.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और चीनी राशि · और देखें »

ट्रफल

श्याम पेरिगॉर्ड कंदकवक कंदकवक या ट्रफल (अंग्रेजी:truffle) किसी भूमिगत खुम्बी का फलन-पिंड है, जिसका बीजाणु प्रसार कवकाहारी जीवों द्वारा किया जाता है। लगभग सभी ट्रफल वाह्यमूलकवकीय होते हैं और इसलिए आम तौर पर पेड़ों निकट पाये जाते हैं। कंदकवक की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं। कुछ कंदकवकों के फलन पिंड (ज्यादातर कंद वंशीय) को एक बेशकीमती भोजन माना जाता है: मध्य पूर्वी, फ्रांसीसी, स्पानी, उत्तरी इतालवी और यूनानी भोजन में खाद्य कंदकवकों को बेहतरीन भोजन के रूप में स्वीकार किया जाता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ट्रफल · और देखें »

ट्राइसेराटोप्स

ट्राइसेराटोप्स (Triceratops) डायनासोरों का एक वंश था। यह आज से ६.८ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुए और आज से ६.६ करोड़ वर्ष पहले क्रीटेशस-पैलियोजीन विलुप्ति घटना में सभी अन्य डायनासोरों के साथ इनकी भी विलुप्ति हो गई। यूनानी भाषा में 'ट्राइसेराटोप्स' का अर्थ 'तीन सींगों वाला मुख' होता है। अपनी आकृति और सींग-युक्त सिर के कारण यह आधुनिक गेंडे से मिलते-जुलते थे हालांकि इन दोनों का आनुवंशिकी (जेनेटिक) नज़र से कोई निकट सम्बन्ध नहीं था। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ट्राइसेराटोप्स · और देखें »

टैक्सोन

वंश का दर्जा मिला है टैक्सोन (taxon) या वर्गक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के क्षेत्र में जीवों की जातियों के ऐसे समूह को कहा जाता है जो किसी वर्गकर्ता के मत में एक ईकाई है, यानि जिसकी सदस्य जातियाँ एक-दूसरे से कोई मेल या सम्बन्ध रखती हैं जिस वजह से उनके एक श्रेणी में डाला जा रहा है। अलग-अलग जीववैज्ञानिक अपने विवेकानुसार यह टैक्सोन परिभाषित कर सकते हैं इसलिए उनमें आपसी मतभेद भी आम होता रहता है।, Guillaume Lecointre, Hervé Le Guyader, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और टैक्सोन · और देखें »

एपोगोनिडाए

एपोगोनिडाए (Apogonidae), जिसे कार्डिनल मछली (Cardinalfish) भी कहा जाता है, हड्डीदार किरण-फ़िन मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक कुल है। इसमें लगभग ३७० जातियाँ सम्मिलित हैं जो हिन्द, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों में रहती हैं। यह अधिकतर समुद्री मछलियाँ हैं लेकिन इसकी कुछ जातियाँ अर्ध-खारे और कुछ मीठे पानी में भी रहती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और एपोगोनिडाए · और देखें »

ऐमारैंथेसी

ऐमारैंथेसी (Amaranthaceae) या ऐमारैंथेसिआए (दोनों उच्चारण सही हैं) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक कुल है, जिसे साधारण भाषा में चौलाई कुल (ऐमारैंथ कुल) भी कहते हैं। इसमें 165 जीववैज्ञानिक वंश और 2,040 जातियाँ सम्मिलित हैं। at .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ऐमारैंथेसी · और देखें »

झाड़मुर्गी

झाड़मुर्गी (scrubfowl) मेगापोडिअस‎ जीववैज्ञानिक वंश के पक्षियों को कहते हैं। यह मुर्गी-जैसे मोटे, मध्यमाकार के मेगापोडिडाए जीववैज्ञानिक कुल के पक्षी होते हैं। इनका विस्तार दक्षिणपूर्व एशिया से ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम प्रशांत महासागर के द्वीपों तक है। झाड़मुर्गियाँ अपने अण्डों पर बैठकर उन्हें गरम रखने की बजाए सड़ते हुए पत्तों व अन्य वनस्पतियों की ढेरी बना लेते हैं जिनमें गरमी पैदा होती है और अण्डों को गरम रखती है। झाड़मुर्गी नर समय-समय पर ढेरी का निरीक्षण करता है और तापमान नियंत्रित रखने के लिये उसमें सामग्री डालता-हटाता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और झाड़मुर्गी · और देखें »

डाइप्टेरोकारपेसिए

डाइप्टेरोकारपेसिए (Dipterocarpaceae) विश्व के ऊष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों और वर्षावनों में मिलने वाले वृक्षों का एक जीववैज्ञानिक कुल है। इसमें १६ वंश और लगभग ७०० ज्ञात जातियाँ सम्मिलित हैं। इन वृक्षों के फल अक्सर दो पर-जैसे छिलकों से ढके रहते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और डाइप्टेरोकारपेसिए · और देखें »

डूक लंगूर

डूक लंगूर (douc langur) या सिर्फ़ डूक (douc) दक्षिणपूर्व एशिया में मिलने वाला लंगूरकुल का एक पूर्वजगत बंदर वंश है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और डूक लंगूर · और देखें »

डेंड्रोग्रामा

डेंड्रोग्रामा (अंग्रेजी: Dendrogramma) एक वर्गिक वंश है जिसके अंतर्गत दो प्रजातियां डी.एनिग्मैटिका और डी.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और डेंड्रोग्रामा · और देखें »

तानतानी

तानतानी या लंटाना (अंग्रेजी:Lantana) वेर्बेनाकेऐ कुल से संबंधित लगभग 150 सदाबहार पुष्पजनक प्रजातियों का एक वंश(जीनस) है। यह मूल रूप से अमेरिका और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का निवासी हैं लेकिन कई क्षेत्रों में भी विशेष रूप से ऑस्ट्रेलियाई प्रशांत क्षेत्र में भी यह पाया जाता है क्योंकि इसे इसके मूल क्षेत्रों से लाकर यहां लगाया गया था। तानतानी जीनस के अंतर्गत घास और झाड़ियां दोनों आती हैं, जिनकी ऊंचाई 0.5-2 मीटर (1.6-6.6 फुट) तक हो सकती है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और तानतानी · और देखें »

तितलीमीन

तितलीमीन (Butterflyfish) या केटोडोंटीडाए (Chaetodontidae) उष्णकटिबंधीय समुद्री मछलियों का एक कुल है। इस कुल में १२ वंशों में १२९ जातियाँ सम्मिलित हैं, जो अधिकतर हिन्द, प्रशांत और अटलांटिक महासागरों में रीफ़ो के ऊपर पाई जाती हैं। आकृति से अधिकतर तितलीमीन छोटी एंजलमीन (पोमाकैन्थीडाए) जैसी लगती हैं लेकिन तितलीमीनों के क्लोम पर्दों पर कांटे नहीं होते। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और तितलीमीन · और देखें »

दर्जिन चिड़िया

दर्जिन चिड़िया, ओर्थोटोमस वंश और सिल्वाइडी (Sylviidae) कुल से संबंधित छोटे आकार के पक्षी (फुदकी) हैं। इनकी कुल नौ प्रजातियां अस्तित्व में हैं। दर्जिन चिड़िया को उसका यह नाम उसकी घोंसला बुनने की खास कला के कारण मिला है। यह चिड़िया अपनी लंबी पतली चोंच से एक पत्ती या कई पत्तियों में छेदों की एक श्रृंखला बनाता है और फिर इन छेद के बीच से पौधों के रेशों, कीटों के रेशम और कभी कभी घरेलू इस्तेमाल के धागों को पिरो कर एक दर्जी की तरह पत्तियों की सिलाई कर इन्हें आपस में जोड़ देते हैं। इन सिली हुई पत्तियों के बीच बनी जगह में फिर घास-पात या रूई इत्यादि बिछाकर एक सुविधाजनक घोंसला तैयार किया जाता है। दर्जिन चिड़ियायें, पुराने विश्व (यूरोप, एशिया और अफ्रीका) और मुख्य रूप से एशिया के उष्णकटिबंधीय भागों में पाई जाती हैं। यह फुदकियां आमतौर पर गहरे रंगों में पाई जाती हैं जिनका ऊपरी हिस्सा हरा या धूसर और निचला हिस्सा पीला या सफेद रंग का होता है। अक्सर इनके सिर का रंग भूरा-लाल होता है। दर्जिन चिड़िया के पंख छोटे और गोलाकार, पूंछ छोटी, पैर मजबूत और चोंच लंबी और घुमावदार होती है। यह फुदकियां अपनी पूंछ को आमतौर पर ऊपर की ओर सतर रखती हैं। यह आमतौर पर खुले जंगलों, मैदानों और उद्यानों में पाई जाती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और दर्जिन चिड़िया · और देखें »

दक्षिणी तामान्दुआ

दक्षिणी तामान्दुआ (Southern tamandua) चींटीख़ोर के तामान्दुआ वंश की एक मध्यम आकार की जाति है जो दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। यह चींटीख़ोर सिर-से-पूँछ तक औसतन १.२ मीटर (३ फ़ुट ११ इंच) लम्बा होता है।Miranda, F. & Meritt, D. A. Jr.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और दक्षिणी तामान्दुआ · और देखें »

धीमा लोरिस

धीमा लोरिस (Slow loris) पूर्वोत्तर भारत, चीन के युन्नान प्रान्त, बर्मा, जावा द्वीप, फ़िलिपीन्स और दक्षिणपूर्वी एशिया के कई अन्य देशों में मिलने वाला लोरिस का एक वंश है। यह वंश निकटिसेबस (Nycticebus) कहलाता है। धीमे लोरिसों के हाथ-पाँव में विशेष नसें होती हैं जिनसे घंटो लटकने के बाद भी वह अंग सुन्न नहीं होते। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और धीमा लोरिस · और देखें »

नौटिलस

नौटिलस (Nautilus) नौटिलिडाए जीववैज्ञानिक गण के समुद्री प्राणी होते हैं। ओक्टोपस, स्क्विड और समुद्रफेनी के साथ नौटिलस शीर्षपाद (सेफ़ैलोपोड) जीववैज्ञानिक वर्ग के सदस्य हैं। इन की दो गणों में कुल मिलाकर छह जीववैज्ञानिक जातियाँ अस्तित्व में है, हालांकि इन की अन्य जातियाँ भी हुआ करती थी जो अब विलुप्त हो चुकी हैं। इनके विषेश शंख आसानी से पहचाने जा सकते हैं और नौटिलस करोड़ों वर्षों से पृथ्वी के समुद्रों में बिना बदले रह रहे हैं। इस कारणवश इन्हें कभी-कभी 'जीवित जीवाश्म' (living fossils) भी कहा जाता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और नौटिलस · और देखें »

नोमास्कस

नोमास्कस (Nomascus) गिबन के चार जीववैज्ञानिक वंशों में से एक है। यह दक्षिणी चीन के युन्नान प्रान्त से लेकर वियतनाम तक विस्तृत है और हाइनान द्वीप पर भी पाया जाता है। अन्य गिबन वंशों की तुलना में इस वंश में सर्वाधिक जीववैज्ञानिक जातियाँ हैं, हालांकि सभी विलुप्ति के संकट में हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और नोमास्कस · और देखें »

पतला लोरिस

पतला लोरिस (Slender loris) भारत और श्रीलंका में मिलने वाला लोरिस का एक वंश है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पतला लोरिस · और देखें »

पत्रंग

पत्रंग या पत्रांग सेसलपिनिया वंश में एक सपुष्पक वनस्पति की जीववैज्ञानिक जाति है। इसका वैज्ञानिक नाम "सेसलपिनिया सपन" (Caesalpinia sappan) है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पत्रंग · और देखें »

पतेना

पतेना (Bee-eater) पक्षियों के कोरैसीफ़ोर्मीस जीववैज्ञानिक गण का एक कुल है, जिसे जीववैज्ञानिक रूप से मेरोपिडाए (Meropidae) कहा जाता है। इस कुल में तीन वंश सम्मिलित हैं जिनमें मिलाकर २७ ज्ञात जातियाँ हैं। यह अपने रंग-बिरंगे पतले शरीरों और लम्बी दुमों से पहचानी जाती हैं। इस कुल की अधिकांश जातियाँ अफ़्रीका और एशिया में पाई जाती हैं, लेकिन कुछ दक्षिणी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और नया गिनी में भी रहती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पतेना · और देखें »

परवर्ती डेवोनियन विलुप्ति घटना

परवर्ती डेवोनियन विलुप्ति घटनाएँ (Late Devonian extinction events) पृथ्वी के डिवोनी कल्प (Devonian period) के फ़ामेनियन काल (Famennian) कहलाए जाने वाले अंतिम चरण में हुई दो विलुप्ति घटनाओं को कहते हैं। पहली घटना इस काल के आरम्भ में और दूसरी इसके अंत में हुई थी। यह विलुप्तियाँ आज से लगभग ३७.५ से ३६.० करोड़ वर्ष पूर्व घटीं। इन घटनाओं में अनुमान लगाया जाता है कि, कुल मिलाकर १९% जीववैज्ञानिक कुल (families) और ५०% जीववैज्ञानिक वंश (genera) विनाशित हो गये। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और परवर्ती डेवोनियन विलुप्ति घटना · और देखें »

परकोइडेई

परकोइडेई (Percoidei) हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण के १८ उपगणों में से एक है। विश्वभर के मत्स्योद्योगों में पकड़ी जाने वाली मछलियों में इस उपगण की कई जातियाँ आती हैं, मसलन स्नैपर, जैक, ग्रूपर, पर्च और पोर्गी। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और परकोइडेई · और देखें »

पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना

पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना (Permian–Triassic extinction event) पृथ्वी के पेलियोज़ोइक (पुराजीवी) महाकल्प के पर्मियन कहलाने वाले अंतिम युग और उसके उपरांत आने वाले ट्राइऐसिक युग के बीच घटित विलुप्ति घटना को कहते हैं। आज से लगभग २५.२ करोड़ वर्ष पूर्व घटी इस महाविलुप्ति में पृथ्वी की लगभग ९६% समुद्री जीव जातियाँ और ज़मीन पर रहने वाली लगभग ७०% कशेरुकी (रीढ़-वाली) जीव जातियाँ हमेशा के लिये विलुप्त हो गई। यह पृथ्वी के अब तक के पूरे इतिहास की सब से भयंकर महाविलुप्ति रही है। यह पृथ्वी की इकलौती ज्ञात विलुप्ति घटना है जिसमें कीटों की भी सामूहिक विलुप्ति हुई। अनुमान लगाया जाता है कि, कुल मिलाकर ७०% जीववैज्ञानिक कुल (families) और ८३% जीववैज्ञानिक वंश (genera) विनाशित हो गये। इतने बड़े पैमाने पर जैव विविधता खोने के बाद पृथ्वी को फिर से पूरी तरह जीवों से परिपूर्ण होते हुए अन्य विलुप्ति घटनाओं की तुलना में अधिक समय लगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व में फिर जीव-संख्या और विविधता बनते-बनते १ करोड़ वर्ष लग गये। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पर्मियन-ट्राइऐसिक विलुप्ति घटना · और देखें »

पर्सिडाए

पर्सिडाए (Percidae) पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में (विशेषकर उत्तरी अमेरिका में) मीठे और हलके खारे पानी में मिलने वाली पर्सिफ़ोर्म मछलियों का एक कुल है। इसमें पर्च (जिसकी तीन जातियाँ हैं) और बहुत सी अन्य मछलियाँ शामिल हैं और इस कुल का नाम पर्च पर ही पड़ा है। पर्सिडाए मछलियों के चेहरे पर हलकी या भारी कवच-जैसी त्वचा होती है। इनका शरीर छूने में कठोर होता है और अक्सर लाल, नारंगी और पीले जैसे आकर्षक रंग रखता है। इनके मूहों में अक्सर दांत होते हैं और इनकी बहुत सी जातियाँ अन्य मछलियों को खाती हैं।, Eskandar Firouz, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पर्सिडाए · और देखें »

पिद्दी

पिद्दी (wren) एक छोटी और अक्सर भूरे-ख़ाकी रंग की चिड़िया होती है। यह लगभग २० जीववैज्ञानिक वंशों में विभाजित है और इसकी कुल लगभग ४० ज्ञात भिन्न जातियाँ हैं। पूर्वजगत में केवल इसकी एक ही जाति रहती है, जिसे यूरेशियाई पिद्दी (Eurasian wren, वैज्ञानिक नाम: Troglodytes troglodytes) कहते हैं। अन्य सभी जातियाँ नवजगत में ही मिलती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पिद्दी · और देखें »

पंकलंघी

पंकलंघी (अंग्रेज़ी: mudskipper, मडस्किपर; बंगाली: চিড়িং মাছ, चिड़िम माछ) एक प्रकार की उभयचर मछली होती है, यानि ऐसी मछली जो लम्बे समय के लिये पानी से बाहर गीली रेत में रह सके और कुछ हद तक चलने में भी सक्षम हो। पंकलंघी अपने फ़िनों का प्रयोग कर के धरती पर चल पाती हैं और ऐसे क्षेत्रों में रहती हैं जो ज्वार-भाटा से कभी तो समुद्री पानी से ढके होते हैं और कभी पानी से बाहर हो जाते हैं। इन क्षेत्रों में अन्य मछलियाँ भी रहती हैं लेकिन, जहाँ वे पानी वापस जाने पर बचने वाले पानी के छोटे पोखरों में आश्रय लेती हैं, वहाँ पंकलंघी खुली रेत पर ही भ्रमण करने लगते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पंकलंघी · और देखें »

प्रकार जाति

जीववैज्ञानिक वर्गीकरण। किसी भी वंश में कई जातियाँ आती हैं और प्रकार जाति उनमें से एक ऐसी जाति होती है जिसके नाम पर पूरे वंश का नाम रखा गया हो। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्रकार जाति (type species) किसी जीववैज्ञानिक वंश (biological genus) या उपवंश (subgenus) की ऐसी सदस्य जीववैज्ञानिक जाति (species) को कहते हैं जो उस वंश का मानक उदाहरण हो और जिसके नाम पर पूरे वंश का नाम रखा गया हो। इस से मिलती जुलती एक प्रकार वंश की अवधारणा भी है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और प्रकार जाति · और देखें »

प्रकार वंश

जीववैज्ञानिक वर्गीकरण। किसी भी कुल में कई वंश आते हैं और प्रकार वंश उनमें से एक ऐसा वंश होता है जिसके नाम पर पूरे कुल का नाम रखा गया हो। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्रकार वंश (type genus) किसी जीववैज्ञानिक कुल (biological family) के ऐसे सदस्य जीववैज्ञानिक वंश (genus) को कहते हैं जो उस कुल का मानक उदाहरण हो और जिसके नाम पर पूरे कुल का नाम रखा गया हो। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और प्रकार वंश · और देखें »

प्रोटियेसीए

प्रोटियेसीए (Proteaceae) पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिस्फ़ीयर) में मिलने वाले पुष्पधारी पौधों का एक कुल है। इस कुल में ८० वंशों में विस्तृत १७०० जातियाँ शामिल हैं। दक्षिण अफ़्रीका में मिलने वाले प्रोटिया और ऑस्ट्रेलिया में मिलने वाले बैन्कसिया दोनों इसी कुल में आते हैं। यह कुल प्रोटियेलीज़ गण का हिस्सा है, जिसमें कमल और अन्य पुष्पधारी भी सम्मिलित हैं। प्रोटियेसीए की जातियाँ आमतौर पर छोटे पेड़ों या झाड़ियों के रूप में दिखती हैं।, Else Marie Friis, Peter R. Crane, Kaj Raunsgaard Pedersen, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और प्रोटियेसीए · और देखें »

प्रोसियोनिडी

प्रोसियोनिडी (Procyonidae) मांसाहारी गण के जानवरों का एक कुल जो उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं। इनमें रैकून, कोआटी, किंकाजू, ओलिंगो, छल्ला-दुम और काकोमिसल शामिल हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और प्रोसियोनिडी · और देखें »

पैंगोलिन

वज्रशल्क या पंगोलीन (pangolin) फोलिडोटा गण का एक स्तनधारी प्राणी है। इसके शरीर पर केराटिन के बने शल्क (स्केल) नुमा संरचना होती है जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। पैंगोलिन ऐसे शल्कों वाला अकेला ज्ञात स्तनधारी है। यह अफ़्रीका और एशिया में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसे भारत में सल्लू साँप भी कहते हैं। इनके निवास वाले वन शीघ्रता से काटे जा रहे हैं और अंधविश्वासी प्रथाओं के कारण इनका अक्सर शिकार भी करा जाता है, जिसकी वजह से पैंगोलिन की सभी जातिया अब संकटग्रस्त मानी जाती हैं और उन सब पर विलुप्ति का ख़तरा मंडरा रहा है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पैंगोलिन · और देखें »

पूर्वजगत बंदर

पूर्वजगत बंदर (Old World monkey) एशिया और अफ़्रीका के महाद्वीपों पर मिलने वाले बंदरों का जीववैज्ञानिक कुल है। इसमें वर्षावनों, सवाना घासभूमि और अन्य स्थानों पर रहने वाले कई बंदर आते हैं। यूरोप में भी इस कुल के बंदरों के जीवाश्म (फ़ॉसिल) मिले हैं और जिब्राल्टर पर भी कुछ बंदरों की टोलियाँ अस्तित्व में हैं हालांकि यह शायद अन्य जगहों से लाई गई हो। जीववैज्ञानिक नाम से पूर्वजगत बंदरों के कुल को सेर्कोपिथेसिडाए (Cercopithecidae) बुलाया जाता है। ध्यान दे कि केवल पूर्वजगत के बंदर ही इस कुल में आते है। नवजगत (मसलन दक्षिण अमेरिका) के बंदरों का कुल अलग है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पूर्वजगत बंदर · और देखें »

पोटो

पोटो (Potto) अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसिडाए कुल में पेरोडिकटिकस (Perodicticus) नामक वंश की इकलौती सदस्य जाति हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पोटो · और देखें »

पोमाकैन्थीडाए

पोमाकैन्थीडाए (Pomacanthidae), जिसे समुद्री एंजलमीन (Marine angelfish) भी कहा जाता है, हड्डीदार किरण-फ़िन मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक कुल है। इसमें लगभग ७ वंशों में ८६ जातियाँ सम्मिलित हैं जो हिन्द, अटलांटिक और पश्चिमी प्रशांत महासागरों में रहती हैं। यह अधिकतर कम गहराई वाली रीफ़ों में रहती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पोमाकैन्थीडाए · और देखें »

पोसाइडनिया

पोसाइडनिया (Posidonia) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। यह पोसाइडनिएसिए (Posidoniaceae) जीववैज्ञानिक कुल में आने वाला एकमात्र वंश है। पोसाइडनिया में ९ ज्ञात जातियाँ हैं जो भूमध्य सागर और ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी तट पर मिलने वाली सागरघास हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और पोसाइडनिया · और देखें »

बायसन

बायसन (Bison) गोवंश के जीववैज्ञानिक कुल में विशाल समखुरीय प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में छह ज्ञात जातियाँ हैं, जिनमें से दो अस्तित्व में हैं और चार विलुप्त हो चुकी हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और बायसन · और देखें »

बार्टेल उड़न गिलहरी

बार्टेल उड़न गिलहरी (Bartel's flying squirrel), जिसका वैज्ञानिक नाम हायलोपीटीस बार्टेल्सी (Hylopetes bartelsi), एक प्रकार की उड़न गिलहरी है जो इण्डोनेशिया में पाई जाती है। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से यह कृतंक (रोडेन्ट) गण के हायलोपीटीस वंश की सदस्य है। इसका प्राकृतिक पर्यावास उपोष्णकटिबन्ध और उष्णकटिबन्ध शुष्क वनों में होता है और इन वनों के कटने से इस जाति पर दबाव बन आया है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और बार्टेल उड़न गिलहरी · और देखें »

बालदार गैंडा

बालदार गैंडा (Wooly rhinoceros) गैंडे की एक विलुप्त जाति है जो प्लाइस्टोसीन युग में यूरोप और एशिया में फैली हुई थी। International Rhino Foundation.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और बालदार गैंडा · और देखें »

बगुला

बगुला (Herons) नदियों, झीलों और समुद्रों के किनारे मिलने वाले लम्बी टांगों व गर्दनों वाले पक्षियों का एक कुल है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और बगुला · और देखें »

बैंकसिया

बैंकसिया (Banksia) लगभग १७० जातियों वाला बनफूलों और उद्यानों में लगाने के लिये लोकप्रिय फूलदार पौधों का एक वंश है जिसकी जातियाँ ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं। यह वंश प्रोटियेसीए नामक कुल का सदस्य है। यह अपने विशेष तिनकेदार फूलों और शंकुओं से आसानी से पहचाना जा सकता है। इसकी जातियाँ छोटी झाड़ों से लेकर ३० मीटर लम्बें वृक्षों तक के रूप में मिलती हैं। वे ऑस्ट्रेलिया के वर्षावनों से लेकर अर्ध-शुष्क इलाक़ों तक में पाई जाती हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों में पनप नहीं पाती।, Don Burke, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और बैंकसिया · और देखें »

बेरिंजिया

हिमयुग अंत होने पर बेरिंग ज़मीनी पुल धीरे-धीरे समुद्र के नीचे डूब गया अपने चरम पर बेरिंजिया का क्षेत्र (हरे रंग की लकीर के अन्दर) काफ़ी विशाल था हाथी-नुमा मैमथ बेरिजिंया में रहते थे और उस के ज़रिये एशिया से उत्तर अमेरिका भी पहुँचे बेरिंग ज़मीनी पुल (Bering land bridge) या बेरिंजिया (Beringia) एक ज़मीनी पुल था जो एशिया के सुदूर पूर्वोत्तर के साइबेरिया क्षेत्र को उत्तर अमेरिका के सुदूर पश्चिमोत्तर अलास्का क्षेत्र से जोड़ता था। इस धरती के पट्टे की चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक लगभग १,६०० किमी (१,००० मील) थी यानि इसका क्षेत्रफल काफ़ी बड़ा था। पिछले हिमयुग के दौरान समुद्रों का बहुत सा पानी बर्फ़ के रूप में जमा हुआ होने से समुद्र-तल आज से नीचे था जिस वजह से बेरिंजिया एक ज़मीनी क्षेत्र था। हिमयुग समाप्त होने पर बहुत सी यह बर्फ़ पिघली, समुद्र-तल उठा और बेरिंजिया समुद्र के नीचे डूब गया। जब बेरिंजिया अस्तित्व में था तो क्षेत्रीय मौसम अनुकूल होने की वजह से यहाँ बर्फ़बारी कम होती थी और वातावरण मध्य एशिया के स्तेपी मैदानों जैसा था। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय कुछ मानव समूह एशिया से आकर यहाँ बस गए। वह बेरिंजिया से आगे उत्तर अमेरिका में दाख़िल नहीं हो पाए क्योंकि आगे भीमकाय हिमानियाँ (ग्लेशियर) उनका रास्ता रोके हुए थीं। इसके बाद बेरिंजिया और एशिया के बीच भी एक बर्फ़ की दीवार खड़ी होने से बेरिंजिया पर चंद हज़ार मानव लगभग ५,००० सालों तक अन्य मानवों से बिना संपर्क के हिमयुग के भयंकर प्रकोप से बचे रहे। आज से क़रीब १६,५०० वर्ष पहले हिमानियाँ पिघलने लगी और वे उत्तर अमेरिका में प्रवेश कर गए। लगभग उसी समय के आसपास बेरिंजिया भी पानी में डूबने लगा और आज से क़रीब ६,००० वर्ष पहले तक तटों के रूप वैसे हो गए जैसे कि आधुनिक युग में देखे जाते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और बेरिंजिया · और देखें »

महाश्येन

महाश्येन (ईगल) शिकार करने वाले बड़े आकार के पक्षी हैं। इस पक्षी को ऊँचाई से ही प्रेम है, धरातल से नहीं। यह धरातल की ओर तभी दृष्टिपात करता है, जब इसे कोई शिकार करना होता है। इसकी दृष्टि बड़ी तीव्र होती है और यह धरातल पर विचरण करते हुए अपने शिकार को ऊँचाई से ही देख लेता है। यूरेशिया और अफ्रीका में इसकी साठ से अधिक प्रजातियाँ स्पेसीज (species)पायी जाती हैं। महाश्येन, फैल्कोनिफॉर्मीज़ (Falconiformes) गण, ऐक्सिपिटर (Accipitres) उपगण, फैल्कानिडी (Falconidae) कुल तथा ऐक्विलिनी (Aquilinae) उपकुल के अंतर्गत है। यह उपकुल दो वर्गों में विभाजित है। ये दो वर्ग ऐक्विला स्थल महाश्येन (Aquila Land Eagle) और हैलिई-एटस, जल महाश्येन (Haliaeetus Sea Eagle) हैं। इस श्येन परिवार में लगभग तीन सौ जातियाँ पाई जाती हैं। ये अनेक जातियाँ स्वभाव तथा आकार प्रकार में एक दूसरे से भिन्न होती हैं तथा विश्व भर में पाई जाती हैं। प्राचीन काल से ही यह साहस एवं शक्ति का प्रतीक माना गया है। संभवत इन्हीं कारणों से सभी राष्ट्रों के कवियों ने इसका वर्णन किया है और इसे रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य आदि देशों में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना गया है। भारत में इसे गरुड़ की संज्ञा दी गई है तथा पौराणिक वर्णनों में इसे विष्णु का वाहन कहा गया है। संभवत: तेज गति और वीरता के कारण ही यह विष्णु का वाहन हो सका है। अन्य देशों के भी पौराणिक वर्णनों में इसका वर्णन आता है, जैसे स्कैंडेनेविया में इसे तूफान का देवता माना गया है और यह बताया गया है कि यह देव स्वर्ग लोक के एक छोर पर बैठकर हवा का झोंका पृथ्वी पर फेंकता है। ग्रीसवासियों की, प्राचीन विश्वास के अनुसार, ऐसी धारणा है कि उनके सबसे बड़े देवता, ज़्यूस (Zeus), को इस महाश्येन ने ही सहायतार्थ वज्र प्रदान किया था। भगवान् विष्णु का वाहन होकर भी इस पक्षी की मनोवृत्ति अहिंसक नहीं है। यह मांसभक्षी, अति लोलुप और प्रत्यक्षत: हानि पहुँचानेवाला होता है, तथापि यह उन बहुत से पक्षियों को समाप्त करने में सहायक है, जो कृषि एवं मनुष्यों को हानि पहुँचाते हैं। साथ ही साथ यह हानि पहुँचानेवाले सरीसृप तथा छोटे छोटे स्तनी जीवों को भी समाप्त करता है और इस प्रकार जंतुसंसार का संतुलन बनाए रखता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और महाश्येन · और देखें »

मानवनुमा

ओरन्गउटान एक मानवनुमा नस्ल है मानवनुमा या होमिनिड, जिन्हें महावानर भी कहते हैं, एक ऐसे प्राणी परिवार का नाम है जिनमें कपि (एप्स) परिवार की वे सारी नस्लें शामिल हैं जो मनुष्य हों या मनुष्य जैसी हों। इनमें मनुष्य, चिम्पान्ज़ी, गोरिल्ला और ओरन्गउटान के वंश (या जॅनॅरा) आते हैं। कुछ ऐसी भी मानवनुमा नस्लें हैं जो विलुप्त हो चुकी हैं, जैसे की आस्ट्रेलोपिथिक्स। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और मानवनुमा · और देखें »

माम्बा

माम्बा (Mamba) तीव्रता से हिलने-चलने वाले विषैले सर्पों का एक जीववैज्ञानिक वंश है जिसमें अफ़्रीका में रहने वाली चार जीववैज्ञानिक जातियाँ शामिल हैं। यह साँप बहुत ही ज़हरीले होते हैं और काले माम्बा को छोड़कर अन्य तीन अक्सर पेड़ो पर पाये जाते हैं। सभी दिन के समय अग्रसर रहते हैं और चूहों, पक्षियों, छिपकलियों को अपना ग्रास बनाते हैं। अफ़्रीका में इन सर्पों से सावधानी बर्तने की सीख दी जाती है क्योंकि यह बहुत ही शीघ्रता से उत्तेजित हो जाते हैं और फिर अत्यंत तेज़ी से वार भी कर सकते हैं। फिर भी वैज्ञानिकों का कहना है कि माम्बा जब भी सम्भव हो मनुष्यों से भिड़ने की बजाय भाग निकलने की कोशिश करते हैं। औपचारिक रूप से माम्बाओं के जीववैज्ञानिक वंश को डेन्ड्रोऐस्पिस (Dendroaspis) कहते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और माम्बा · और देखें »

मैथुन

मैथुन जीव विज्ञान में आनुवांशिक लक्षणों के संयोजन और मिश्रण की एक प्रक्रिया है जो किसी जीव के नर या मादा (जीव का लिंग) होना निर्धारित करती है। मैथुन में विशेष कोशिकाओं (गैमीट) के मिलने से जिस नये जीव का निर्माण होता है, उसमें माता-पिता दोनों के लक्षण होते हैं। गैमीट रूप व आकार में बराबर हो सकते हैं परन्तु मनुष्यों में नर गैमीट (शुक्राणु) छोटा होता है जबकि मादा गैमीट (अण्डाणु) बड़ा होता है। जीव का लिंग इस पर निर्भर करता है कि वह कौन सा गैमीट उत्पन्न करता है। नर गैमीट पैदा करने वाला नर तथा मादा गैमीट पैदा करने वाला मादा कहलाता है। कई जीव एक साथ दोनों पैदा करते हैं जैसे कुछ मछलियाँ। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और मैथुन · और देखें »

मैनाटी

मैनाटी एक मध्यम आकार का शाकाहारी समुद्री स्तनधारी प्राणी है जो विश्व के कई भागों में समुद्री तटीय क्षेत्रों के जल में पाया जाता है। यह साइरेनिया जीववैज्ञानिक गण का सदस्य है, जिसमें चार जीववैज्ञानिक जातियाँ पाई जाती हैं। इन चार में से तीन मैनाटी की जातियाँ हैं, जबकि चौथी डूगोंग की इकलौती जाति है। मैनाटी की तीनों जातियाँ ट्रिकेकिडाए (Trichechidae) जीववैज्ञानिक कुल के अंतर्गत ट्रिकेकुस (Trichechus) जीववैज्ञानिक वंश में आती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और मैनाटी · और देखें »

मैक्रोपोडीडाए

मैक्रोपोडीडाए (macropodidae) धानीप्राणी (मारसूपियल​) जानवरों का एक बड़ा जीववैज्ञानिक कुल है। यह कभी-कभी कंगारू कुल भी कहलाता है क्योंकि कंगारू की सभी जातियाँ इसी कुल की सदस्य हैं। इनके अलावा वालाबी, वृक्ष-कंगारू, क्वोका, इत्यादि भी इसी कुल के अंतर्गत हैं। मैक्रोपोडीडाए के सदस्य मैक्रोपोड (macropod) कहलाते हैं। यह प्राणी ऑस्ट्रेलिया, नया गिनी और आसपास के द्वीपों पर रहते हैं। ऑस्ट्रेलिया पर यूरोपीय क़ब्ज़े से पहले यहाँ ६५ मैक्रोपोड जातियाँ मिलती थीं लेकिन तब से ६ विलुप्त हो चुकी हैं और ११ की संख्य बहुत घट चुकी है। इस से पहले, मैक्रोपोड की कुछ ऐसी भी जातियाँ थी जो उस महाद्वीप पर ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी लोगों के आगमन के बाद विलुप्त हो गई। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और मैक्रोपोडीडाए · और देखें »

मोनिमिआसिए

मोनिमिआसिए (Monimiaceae) सपुष्पक पौधों के मैग्नोलिड क्लेड के लौरालेस गण के अंतर्गत एक जीववैज्ञानिक कुल है। इसकी सदस्य जातियाँ झाड़ी, छोटे वृक्ष या लिआना के रूप में होती हैं और पृथ्वी के ऊष्णकटिबन्ध और उपोष्णकटिबन्ध क्षेत्रों में - विशेषकर दक्षिणी गोलार्ध में पाई जाती हैं। इनकी सबसे अधिक विविधता नया गिनी द्वीप में मिलती है जहाँ इस कुल की लगभग ७५ जातियाँ ज्ञात हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और मोनिमिआसिए · और देखें »

रालन

रालन या आलय सेसलपिनिया वंश में एक सपुष्पक वृक्ष की जीववैज्ञानिक जाति है। इसका वैज्ञानिक नाम "सेसलपिनिया डेकापेटाला" (Caesalpinia decapetala) है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और रालन · और देखें »

राइज़ोफ़ोरासिए

राइज़ोफ़ोरासिए (Rhizophoraceae) पृथ्वी के ऊष्णकटिबन्ध और उपोष्णकटिबन्ध क्षेत्रों में मिलने वाले सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक कुल है। इसकी सबसे प्रसिद्ध सदस्य जातियाँ राइज़ोफ़ोरा (Rhizophora) जीववैज्ञानिक वंश में आने वाले मैंग्रोव हैं। कुल मिलाकर राइज़ोफ़ोरासिए कुल में १४७ जातियाँ हैं जो १५ गणों में संगठित हैं। इनमें से अधिकतर जातियाँ पूर्वजगत की निवासी हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और राइज़ोफ़ोरासिए · और देखें »

रंगबिरंगी उड़न गिलहरी

रंगबिरंगी उड़न गिलहरी (Particolored flying squirrel), जिसका वैज्ञानिक नाम हायलोपीटीस ऐल्बोनाइजर (Hylopetes alboniger), एक प्रकार की उड़न गिलहरी है जो भारत, भूटान, नेपाल, बंग्लादेश, बर्मा, युन्नान (चीन), थाइलैण्ड, वियतनाम और लाओस में पाई जाती है। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से यह कृतंक (रोडेन्ट) गण के हायलोपीटीस वंश की सदस्य है। इसका प्राकृतिक पर्यावास उपोष्णकटिबन्ध और उष्णकटिबन्ध शुष्क वनों में होता है और इन वनों के कटने से इस जाति पर दबाव बन आया है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और रंगबिरंगी उड़न गिलहरी · और देखें »

रूमेक्स

रूमेक्स (अंग्रेज़ी: Rumex) पौधों की लगभग २०० जातियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है जो पोलिगोनेसिए कुल के अंतर्गत आता है। इसमें खट्टे पालक सहित और भी गण शामिल हैं। मूल रूप से इसकी अधिकतर जातियाँ पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में उगा करते थे लेकिन मानवीय हस्तक्षेप से अब यह लगभग हर स्थान में मिलते हैं। इनमें से कई खाद्य-योग्य हैं। रूमेक्स वंश की मूल व्याख्या कार्ल लिनेअस ने की थी। तितलियों व पतंगों की कई जातियों के डिंभ (लारवा, शिशु) इनके पत्ते खाते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और रूमेक्स · और देखें »

लार गिबन

लार गिबन (Lar gibbon), जो श्वेत-हस्त गिबन (white-handed gibbon) भी कहलाता है, गिबन के हायलोबेटीस वंश की एक जाति है। यह अन्य गिबनों से अधिक जाना जाता है और अक्सर विश्व के चिड़ियाघरों में मिलता है। इसका निवास स्थान युन्नान, पूर्वी बर्मा, थाईलैण्ड, मलय प्रायद्वीप और पश्चिमी सुमात्रा द्वीप है। इनका शरीर काला या भूरा होता है लेकिन हाथ-पाँव सफ़ेद होते हैं और मुखों पर अक्सर श्वेत रंग के बालों का एक चक्र होता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लार गिबन · और देखें »

लंगूरकुल

लंगूरकुल या कोलोबिनाए (Colobinae) पूर्वजगत बंदरों का एक जीववैज्ञानिक उपकुल है जिसमें १० वंशों में वर्गीकृत ५९ जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं। भारत का जाना-पहचाना लंगूर भी इसी उपकुल का सदस्य है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लंगूरकुल · और देखें »

लकड़बग्घा

भूरा लकड़बग्घा लकड़बग्घा, हाइयेनिडी कुल से संबंधित एक मांसाहारी स्तनधारी जीव है। इसका प्राकृतिक आवास एशिया और अफ्रीका दोनो महाद्वीप हैं। वर्तमान काल में इसकी निम्न चार जीवित प्रजाति अस्तित्व में हैं।.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लकड़बग्घा · और देखें »

लौरालेस

लौरालेस (Laurales) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक गण है जो मैग्नोलिड नामक क्लेड का सदस्य है। इस गण में २५००-२८०० जातियाँ आती हैं जो ८५-९० वंशों में संगठित हैं। यह अधिकतर पृथ्वी के ऊष्णकटिबन्ध और उपोष्णकटिबन्ध क्षेत्रों में (यानि गरम क्षेत्रों में) उगती हैं हालांकि कुछ गिनी-चुनी जातियाँ समशीतोष्ण क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं। तज (बे लॉरल), दालचीनी, रूचिरा (आवोकाडो) और सासाफ़्रास इस गण के सबसे जाने-पहचाने सदस्य हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लौरालेस · और देखें »

लूटजैनिडाए

स्नैपर (Snapper), जो जीववैज्ञानिक रूप से लूटजैनिडाए (Lutjanidae) कहलाता है, हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक कुल है। इस कुल की जातियाँ अधिकतर सागर में रहती हैं लेकिन कुछ आहार पाने के लिए ज्वारनदीमुखों (एस्चुएरियों) में भी जाती हैं। लूटजैनिडाए कुल में ११३ ज्ञात जातियाँ हैं, जिनमें से लाल स्नैपर सबसे अधिक जानी जाती है और मत्स्योद्योग में एक महत्वपूर्ण मछली है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लूटजैनिडाए · और देखें »

लोरिस

लोरिस (Loris) भारत, श्रीलंका और दक्षिणपूर्वी एशिया में मिलने वाले लोरिनाए (Lorinae) कुल के निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। लोरिस वनों में रहते हैं और धीमी गति से पेड़ों पर चलते हैं। कुछ लोरिस जातियाँ केवल कीट खाती हैं जबकि अन्य फल, वृक्षों के छाल से निकलने वाला गोंद, पत्ते और घोंघे खाती हैं। मादा लोरिस पेड़ों पर घर बनाकर उनमें अपने शिशु छोड़कर खाने के लिये निकलतीं हैं। इसके लिये वे अपने बच्चों को अपनी कोहनियों के भीतरी भाग चाटने के बाद चाटती हैं। उनकी कोहनियों के पीछे के क्षेत्र में एक हल्का विष बनता है जो शिशुओं के बालों में फैल जाता है और परभक्षियों को उन्हें खाने से रोकता है। कुछ क्षेत्रों में इसके बावजूद भी ओरंग उतान इनके शिशुओं को खा लेते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लोरिस · और देखें »

लोरिसिडाए

लोरिसिडाए (Lorisidae) मध्य अफ़्रीका, भारत और दक्षिणपूर्वी एशिया में मिलने वाले निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। लोरिस, पोटो और आंगवांतीबो इस श्रेणी में आते हैं। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसोइडेआ अधिकुल में एक कुल हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और लोरिसिडाए · और देखें »

शुतुरमुर्ग

शुतुरमुर्ग (Struthio camelus) पहले मध्य पूर्व और अब अफ्रीका का निवासी एक बड़ा उड़ान रहित पक्षी है। यह स्ट्रुथिओनिडि (en:Struthionidae) कुल की एकमात्र जीवित प्रजाति है, इसका वंश स्ट्रुथिओ (en:Struthio) है। शुतुरमुर्ग के गण, स्ट्रुथिओफॉर्म के अन्य सदस्य एमु, कीवी आदि हैं। इसकी गर्दन और पैर लंबे होते हैं और आवश्यकता पड़ने पर यह ७० किमी/घंटा की अधिकतम गति से भाग सकता है जो इस पृथ्वी पर पाये जाने वाले किसी भी अन्य पक्षी से अधिक है।शुतुरमुर्ग पक्षिओं की सबसे बड़ी जीवित प्रजातियों मे से है और यह किसी भी अन्य जीवित पक्षी प्रजाति की तुलना में सबसे बड़े अंडे देता है। प्रायः शुतुरमुर्ग शाकाहारी होता है लेकिन उसके आहार में अकशेरुकी भी शामिल होते हैं। यह खानाबदोश गुटों में रहता है जिसकी संख्या पाँच से पचास तक हो सकती है। संकट की अवस्था में या तो यह ज़मीन से सट कर अपने को छुपाने की कोशिश करता है या फिर भाग खड़ा होता है। फँस जाने पर यह अपने पैरों से घातक लात मार सकता है। संसर्ग के तरीक़े भौगोलिक इलाकों के मुताबिक भिन्न होते हैं, लेकिन क्षेत्रीय नर के हरम में दो से सात मादाएँ होती हैं जिनके लिए वह झगड़ा भी करते हैं। आमतौर पर यह लड़ाइयाँ कुछ मिनट की ही होती हैं लेकिन सर की मार की वजह से इनमें विपक्षी की मौत भी हो सकती है।आज दुनिया भर में शुतुरमुर्ग व्यावसायिक रूप से पाले जा रहे हैं मुख्यतः उनके पंखों के लिए, जिनका इस्तेमाल सजावट तथा झाड़ू बनाने के लिए किया जाता है। इसकी चमड़ी चर्म उत्पाद तथा इसका मांस व्यावसायिक तौर से इस्तेमाल में लाया जाता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और शुतुरमुर्ग · और देखें »

श्येन

श्येन या शिकारा (Falcon) पक्षियों के फ़ैल्को वंश की सदस्य जातियों को कहते हैं। यह शिकारी पक्षी होते हैं जो अंटार्कटिका को छोड़कर विश्व के हर अन्य महाद्वीप में मिलते हैं। कुल मिलाकर इस वंश में लगभग ४० ज्ञात जातियाँ हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और श्येन · और देखें »

समुद्री सर्प

हाइड्रोफ़ीनाए (Hydrophiinae), जिन्हें समुद्री सर्प (sea snakes) भी कहते हैं, इलापिडाए सर्प कुल की एक उपशाखा है जिसके सदस्य विषैले और अपना अधिकांश जीवन समुद्र व अन्य जलीय स्थानों पर व्यतीत करने वाले होते हैं। इन में से ज़्यादातर का शरीर समुद्री जीवन के अनुकूल होता है और वे धरती पर अधिक समय नहीं रह पाते हालांकि लातिकाउडा (Laticauda) वंश के सर्प कुछ हद तक धरती पर चलने में सक्षम हैं। इनकी पूँछ का अंतिम भाग चपटा होता है, जो उन्हें तैरने में सहायक होता है। समुद्री सर्प हिन्द महासागर से लेकर प्रशांत महासागर के गरम जलीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। आनुवंशिकी (जेनेटिक) दृष्टि से समुद्री साँप औस्ट्रेलिया के विषैले सर्पों से सम्बन्धित हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और समुद्री सर्प · और देखें »

साधारण राज़क

साधारण राज़क या साधारण हॉप (common hop) '​कैनाबेसीए' (Cannabaceae) जीववैज्ञानिक कुल के राज़क (ह्युमुलस) वंश की एक जाति है। इसके मादा और नर पौधे अलग होते हैं और मादा पौधे के शंकुनुमा फूलों का प्रयोग बियर बनाने में किया जाता है, जिसे वह स्वाद और ख़ुशबू प्रदान करते हैं, हालांकि इनसे कुछ कड़वाहट भी आ जाती है। इन फूलों का सार कीटाणु-नाशक भी होता है और उस से पेयों को संरक्षित भी किया जाता है। यह विशव के समशीतोष्ण (टेम्परेट) इलाक़ों में लता के रूप में उगता है और भारत में यह हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में उगाया जाता है।, Narain Singh Chauhan, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और साधारण राज़क · और देखें »

सार्वत्रिक वितरण

जीव-भूगोल में, किसी वर्गक (टैक्सोन) के वितरण को, सार्वत्रिक वितरण तब कहा जाता है यदि, इसका जीव-भौगोलिक क्षेत्र विश्वव्यापी या विश्व के अधिकतर हिस्सों के उपयुक्त पर्यावासों में हो। उदाहरण के लिए, व्हेल का वितरण, सार्वत्रिक वितरण है, क्योंकि यह दुनिया के लगभग सभी महासागरों में पाई जाती है। अन्य उदाहरणों में मनुष्य, लाइकेन प्रजाति पार्मेलिया सुलकाटा और मोलस्क वंश माइटिलस शामिल हैं। सार्वत्रिक वितरण का कारण पर्यावरण सह्य-सीमाओं का व्यापक क्षेत्र, या विकास के लिए आवश्यक समय से अधिक तेजी से हुआ फैलाव हो सकता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सार्वत्रिक वितरण · और देखें »

साइट्रस

साइट्रस रुटेसी परिवार का एक जीनस है। नवीनतम अनुसंधानों से पता चला है कि इसका मूल ऑस्ट्रेलिया, न्यू कैडेलोनिया और न्यू गिनी में हो सकता है। कुछ अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि इसका उद्भव उत्तर पूर्वी भारत से सटे दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्रों, म्यांमार और चीन के युन्नान प्रान्त.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और साइट्रस · और देखें »

साइरेनिया

साइरेनिया (Sirenia) या समुद्री गाय (sea cow) जल में रहने वाले शाकाहारी स्तनधारी प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक गण है जिसके सदस्य नदियों और तट के पास वाले समुद्री क्षेत्रों में रहते हैं। साइरेनिया की चार जीववैज्ञानिक जातियाँ अस्तित्व में हैं, जो दो कुलों और वंशों में विभाजित हैं। इन चार जातियों में मैनाटी की तीन जातियाँ और डूगोंग की एक जाति शामिल है। १८वीं शताब्दी तक स्टेलर समुद्री गाय (Steller's sea cow) नामक एक जाति भी थी जो विलुप्त हो गई। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और साइरेनिया · और देखें »

सियामंग

सियामंग (Nomascus) गिबन के चार जीववैज्ञानिक वंशों में से एक है जो मलेशिया, थाईलैण्ड और सुमात्रा में पाया जाता है। काले रंग का यह वृक्ष विचरणी प्राणी अन्य सभी गिबनों से बड़े आकार का होता है और १ मीटर लम्बा तथा १४ किलोग्राम तक के भार वाला होता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सियामंग · और देखें »

सिलीन स्टेनोफ़ाइला

सिलीन स्टेनोफ़ाइला (Silene stenophylla) पुष्पीय पौधों की एक प्रजाति है, जो कैर्योफ़िलैसिए जीववैज्ञानिक कुल की है। इसे प्रायः नैरो-लीफ़्ड कैम्पियन भी कहा जाता है। यह सिलीन जीववैज्ञानिक वंश में एक प्रजाति है। २०१२ में यह दावा किया गया है कि इसके हिमीकृत नमूनों को, जो ३०,००० वर्ष पुराने थे, पुनर्जीवित कर लेने में सफलता मिली है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सिलीन स्टेनोफ़ाइला · और देखें »

संघ (जीवविज्ञान)

वर्ग आते हैं संघ (अंग्रेज़ी: phylum, फ़ायलम) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी वर्गों (क्लासों) से ऊपर और जगत (किंगडम) के नीचे आता है, यानि एक संघ में बहुत से वर्ग होते हैं और बहुत से संघों को एक जीववैज्ञानिक जगत में संगठित किया जाता है। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक संघ में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और संघ (जीवविज्ञान) · और देखें »

सुमात्रा गैंडा

सुमात्रा गैंडा एक दुर्लभ परिवार राइनोसिरोटिडी के सदस्य और पांच वर्तमान गैंडों में से एक है। सुमात्रा गैंडों को "बालों गैंडों" भी कहा जाता है। यह वंश डाइसिरोराइनस का केवल वर्तमान प्रजातियों है। यह सबसे छोटा गैंडा है भले ही यह एक बड़ा स्तनपायी है। इस गैंडों २.३६-३.१८ मीटर (७.७-१०.४ फुट) की सिर और शरीर की लंबाई और ३५-७० सेंटीमीटर की पूंछ (१४-२८ में साथ, कंधे पर ११२-१४५ सेमी (३.६७-४.७६ फुट) उच्चा खड़ा है)। वजन ५०० से १००० किलोग्राम से पर्वतमाला है। यह भारत, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, और चीन में प्रजातियों का वर्षावन, दलदलों, और बादल जंगलों के सदस्य थे। यह केवल दो सींग के एशियन गैंडों है। सुमात्रा गैंडों आम तौर पर फल, टहनियाँ, पत्ते, और झाड़ियाँ पर फ़ीड कि एकान्त जीव हैं। अन्य गैंडों की तरह वे गंध और तेज सुनवाई की एक गहरी समझ है, और वे एक दूसरे को खोजने के लिए जंगल भर में सुगंधित ट्रेल्स के एक नेटवर्क छोड़ देते है। वह इंडोनेशिया में सबसे बड़ी आबादी मैं मौजूद हैं और सबा, मलेशिया में छोटे अवशेष आबादी मैं मौजूद हैं। सुमात्रा गैंडों प्रेमालाप और संतानों के पालन के लिए छोड़कर ज्यादातर एकान्त जानवर है। यह सबसे मुखर गैंडों का प्रजाति है और पौधे को घुमा कर मिट्टी पर पैटर्न बनाता है और मलमूत्र छोड़ने के माध्यम से संचार करता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सुमात्रा गैंडा · और देखें »

स्टेगोसोरस

स्टेगोसोरस (Stegosaurus) डायनासोरों का एक वंश था जिनके आज से १५ से १५.५ करोड़ पुराने जीवाश्म (फ़ोसिल) मिले हैं। यह एक भारी और बड़े आकार के शाकाहारी डायनासोर थे जो अपने कवच-वाले शरीर, पीठ पर स्थित खड़े हुए तख़्तों की क़तार और पूँछ पर लगी बड़ी नोकदार कीलों के लिये जाने जाते हैं। स्टेगोसोरों के शरीरों में इन तख़्तों के उद्देश्य को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है लेकिन कीलों का प्रयोग स्टेगोसोर अपनी रक्षा के लिये करते थे। आज तक लगभग ८० स्टेगोसोरों के जीवाश्म मिल चुके हैं जिन के आधार पर इस वंश की तीन अलग जीववैज्ञानिक जातियाँ ज्ञात हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और स्टेगोसोरस · और देखें »

स्वर्गपक्षी

स्वर्गपक्षी या बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ पासरीफ़ोर्मीज़ (Passeriformes) गण के पैराडाएसियेडाए (Paradisaeidae) कुल के सदस्य हैं। इस जाति की अधिकांश जातियाँ न्यू गिनी के द्वीप और इसके समीपी क्षेत्रों में पाई जाती हैं, तथा कुछ प्रजातियाँ मोलुक्कास और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं। इस जाति की 13 श्रेणियों में 40 प्रजातियां हैं। अधिकांश प्रजातियों में नरों के पंखों के कारण इस जाति के सदस्य प्रसिद्ध हैं, ये पंख विशेष रूप से अत्यधिक लंबे होते हैं तथा चोंच, डैनों एवं सिर पर फैले हुए परों के रूप में होते हैं। इनकी अधिकांश संख्या घने वर्षावनों तक ही सीमित हैं। सभी प्रजातियों का प्रमुख आहार फल तथा कुछ हद तक कीड़े मकोड़े हैं। बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ पक्षियों में प्रजनन की विभिन्न प्रणालियां हैं जो एक मादा से लेकर सामूहिक रूप से कई मादाओं पर आधारित होती है। न्यू गिनी के निवासियों के लिए इस जाति का सांस्कृतिक महत्व है। बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ की खालों तथा पंखों का व्यापार दो हज़ार साल पुराना है, तथा पश्चिमी संग्रहकर्ताओं, पक्षी वैज्ञानिकों एवं लेखकों की इन पक्षियों में काफी रूचि है। शिकार तथा निवास स्थलों की हानि के कारण कई प्रजातियां खतरे में हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और स्वर्गपक्षी · और देखें »

सैलामैंडर

सैलामैंडर (Salamander) उभयचरों की लगभग 500 प्रजातियों का एक सामान्य नाम है। इन्हें आम तौर पर इनके पतले शरीर, छोटी नाक और लंबी पूँछ, इन छिपकली-जैसी विशेषताओं से पहचाना जाता है। सभी ज्ञात जीवाश्म और विलुप्त प्रजातियाँ कॉडाटा जीववैज्ञानिक वंश के अंतर्गत आती हैं, जबकि कभी-कभी विद्यमान प्रजातियों को एक साथ यूरोडेला के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ज्यादातर सैलामैंडरों के अगले पैरों में चार और पिछले पैरों में पाँच उंगलियाँ होती हैं। उनकी नम त्वचा आम तौर पर उन्हें पानी में या इसके करीब या कुछ सुरक्षा के तहत (जैसे कि नम सतह), अक्सर एक गीले स्थान में मौजूद आवासों में रहने लायक बनाती है। सैलामैंडरों की कुछ प्रजातियाँ अपने पूरे जीवन काल में पूरी तरह से जलीय होती हैं, कुछ बीच-बीच में पानी में रहती हैं और कुछ बिलकुल स्थलीय होती हैं जैसे कि वयस्क.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सैलामैंडर · और देखें »

सेन्ट्रार्चिडाए

सेन्ट्रार्चिडाए (Centrarchidae), जिन्हें सूरजमीन (sunfish) भी कहते हैं, हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक विस्तृत कुल है जो उत्तर अमेरिका में मीठे पानी (नदियों व झीलों) में रहती हैं। इस गण में ३७ ज्ञात जातियाँ हैं। इनकी औसत लम्बाई २० - ३० सेंटीमीटर होती है, हालांकि कालीधारी सूरजमीन (black-banded sunfish) केवल ८ सेमी और बड़ीमुख बैस (largemouth bass) १ मीटर तक पाई गई है। प्रजनन में मादा के अण्डे देने के बाद नर अपनी दुम से रेत में गड्ढा बनाकर उसमें अण्डे डालता है और फिर उनकी रखवाली करता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सेन्ट्रार्चिडाए · और देखें »

सेरानिडाए

सेरानिडाए (Serranidae) हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक विस्तृत कुल है। इस कुल में ६५ वंशों के अंतर्गत लगभग ४५० मछली जातियाँ श्रेणीकृत हैं। इसमें समुद्री बैस और ग्रूपर मछलियाँ भी शामिल हैं। सेरानिडाए कुल की अधिकांश मछलियाँ छोटे आकार की हैं (कुछ तो १० सेंटीमीटर से भी कम), लेकिन महान ग्रूपर (Epinephelus lanceolatus) विश्व की सबसे बड़ी हड्डीदार मछलियों में से एक है: यह २.७ मीटर (८ फ़ुट १० इंच) तक लम्बी और ४०० किलोग्राम तक भारी हो जाती है। सेरानिडाए कुल की मछलियाँ विश्वभर के ऊष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय सागरों में पाई जाती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सेरानिडाए · और देखें »

सेसलपिनिया

सेसलपिनिया (Caesalpinia) सपुष्पक पौधों की फ़बासिए नामक फली (लैग्यूम) कुल में एक जीववैज्ञानिक वंश का नाम है। इस वंश में ७० और १५० जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं, जिनमें से कई की सदस्यता पर वनस्पति वैज्ञानिकों में आपसी विवाद है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और सेसलपिनिया · और देखें »

हायलोपीटीस

हायलोपीटीस (Hylopetes) उड़न गिलहरियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और हायलोपीटीस · और देखें »

हायलोबेटीस

हायलोबेटीस (Hylobates) गिबन के चार जीववैज्ञानिक वंशों में से एक है। यह नाम यूनानी भाषा से लिया गया है, जिसमें "हुले" (ὕλη) का अर्थ "वन" और "बेतिस" (βάτης) का अर्थ "चलनेवाला" होता है, यानि नाम का अर्थ "वन में चलने वाला" होता है। यह गिबनों का सबसे विस्तृत वंश है और दक्षिणी चीन के युन्नान प्रान्त से लेकर पश्चिम और मध्य जावा में फैला हुआ है। हायलोबेटीस गिबनों के मुखों पर अक्सर श्वेत रंग के बालों का एक चक्र होता है और आनुवांशिक दृष्टि से इनमें ४४ गुणसूत्र (क्रोमोसोम) होत हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और हायलोबेटीस · और देखें »

हाइड्रोचैरिटेसिए

हाइड्रोचैरिटेसिए (Hydrocharitaceae) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें १६ ज्ञात वंशों के अंतर्गत १३५ जातियाँ आती हैं। इस कुल में मीठे पानी व समुद्री जल में उगने वाली कई जातियाँ हैं। यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिलती हैं हालांकि कुछ अन्य स्थानों पर भी उगती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और हाइड्रोचैरिटेसिए · और देखें »

हूलोक गिबन

हूलोक गिबन (hoolock gibbon) गिबन के चार जीववैज्ञानिक वंशों में से एक है। इसमें दो जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं और इसके सदस्य पूर्वोत्तरी भारत, दक्षिणपूर्वी चीन के युन्नान प्रान्त, पूर्वी बांग्लादेश और बर्मा में विस्तृत हैं। सियामंग के बाद यह दूसरे सबसे बड़े आकार का गिबन होता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और हूलोक गिबन · और देखें »

ज़ोस्टेरेसिए

ज़ोस्टेरेसिए (Zosteraceae) समुद्री बहुवर्षीय सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक कुल है। यह सागरघासों के चार कुलों में से एक है और इसकी सदस्य जातियाँ विश्व के सागरों व महासागरों में समशीतोष्णीय और उपोष्णकटिबन्धीय तटीय जल में मिलते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ज़ोस्टेरेसिए · और देखें »

जाति (जीवविज्ञान)

जाति (स्पीशीज़) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण की सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी है जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक नज़रिए से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ संतान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी संतान स्वयं आगे संतान जनने की क्षमता रखती हो। उदाहरण के लिए एक भेड़िया और शेर आपस में बच्चा पैदा नहीं कर सकते इसलिए वे अलग जातियों के माने जाते हैं। एक घोड़ा और गधा आपस में बच्चा पैदा कर सकते हैं (जिसे खच्चर बुलाया जाता है), लेकिन क्योंकि खच्चर आगे बच्चा जनने में असमर्थ होते हैं, इसलिए घोड़े और गधे भी अलग जातियों के माने जाते हैं। इसके विपरीत कुत्ते बहुत अलग आकारों में मिलते हैं लेकिन किसी भी नर कुत्ते और मादा कुत्ते के आपस में बच्चे हो सकते हैं जो स्वयं आगे संतान पैदा करने में सक्षम हैं। इसलिए सभी कुत्ते, चाहे वे किसी नसल के ही क्यों न हों, जीववैज्ञानिक दृष्टि से एक ही जाति के सदस्य समझे जाते हैं।, Sahotra Sarkar, Anya Plutynski, John Wiley & Sons, 2010, ISBN 978-1-4443-3785-3,...

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और जाति (जीवविज्ञान) · और देखें »

जगत (जीवविज्ञान)

संघ शामिल होते हैं जगत (अंग्रेज़ी: kingdom, किंगडम) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक ऊँची श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी संघों (फ़ायलमों) से ऊपर आती है, यानि एक जगत में बहुत से संघ होते हैं और बहुत से संघों को एक जीववैज्ञानिक जगत में संगठित किया जाता है।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और जगत (जीवविज्ञान) · और देखें »

जुनबगला

जुनबगला (Bittern) या बकुला एक प्रकार का लम्बी टाँगों वाला बगुले पक्षी कुल के अंतर्गत एक उपकुल है। यह तटीय, नदीय और दलदली क्षेत्रों में मिलते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और जुनबगला · और देखें »

वर्ग (जीवविज्ञान)

गण आते हैं वर्ग (अंग्रेज़ी: class, क्लास) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। आधुनिक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह श्रेणी गणों (ओर्डरों) से ऊपर और संघों (फ़ायलमों) के नीचे आती है, यानि एक वर्ग में बहुत से गण होते हैं और बहुत से वर्गों को एक फ़ायलम में संगठित किया जाता है। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक वर्ग में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वर्ग (जीवविज्ञान) · और देखें »

वाइटिस

वाइटिस (Vitis), जिसके सदस्यों को साधारण भाषा में अंगूरबेल (grapevine) कहा जाता है, सपुष्पक द्विबीजपत्री वनस्पतियों के वाइटेसिए कुल के अंतर्गत एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में ७९ जीववैज्ञानिक जातियाँ आती हैं जो अधिकतर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में उत्पन्न हुई हैं और लताओं के रूप में होती हैं। अंगूर इसका एक महत्वपूर्ण सदस्य है और उसके फल सीधे खाये जाते हैं और उसके रस को किण्वित (फ़रमेन्ट) कर के बड़े पैमाने पर हाला (वाइन) बनाई जाती है। अंगूरबेलों के पालन-पोषण और अंगूर-उत्पादन के अध्ययन को द्राक्षाकृषि (viticulture, विटिकल्चर) कहा जाता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वाइटिस · और देखें »

वाइटेसिए

वाइटेसिए (Vitaceae) सपुष्पक द्विबीजपत्री वनस्पतियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है, जिसमें १४ वंश और अनुमानित ९१० जातियाँ आती हैं, जिनमें अंगूरबेल शामिल है। कुल का नाम वाइटिस वंश से उत्पन्न हुआ है। सन् २००९ से वाइटेसिए कुल को अकेले अपने अलग वाइटालेस (Vitales) जीववैज्ञानिक गण में श्रेणीकृत करा गया है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वाइटेसिए · और देखें »

वाइवेरिडाए

वाइवेरिडाए मध्यम आकार के स्तनधारी प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जिसमें १५ भिन्न जीववैज्ञानिक वंश शामिल हैं, जिनमें स्वयं ३८ प्राणी जातियाँ आती हैं। यह जानवर भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिणपूर्वी एशिया, अफ़्रीका और दक्षिणी यूरोप में पाये जाते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वाइवेरिडाए · और देखें »

वंश (जीवविज्ञान)

एक कूबड़ वाला ड्रोमेडरी ऊँट और दो कूबड़ो वाला बैक्ट्रियाई ऊँट दो बिलकुल अलग जातियाँ (स्पीशीज़) हैं लेकिन दोनों कैमेलस​ (Camelus) वंश में आती हैं जातियाँ आती हैं वंश (लैटिन: genus, जीनस; बहुवाची: genera, जेनेरा) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक वंश में एक-दूसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों की जातियाँ आती हैं। ध्यान दें कि वंश वर्गीकरण के लिए मानकों को सख्ती से संहिताबद्ध नहीं किया गया है और इसलिए अलग अलग वर्गीकरण कर्ता वंशानुसार विभिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वंश (जीवविज्ञान) · और देखें »

वंश समूह (जीवविज्ञान)

कुल के बीच की श्रेणी है वंश समूह (tribe) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। यह वंश (genus) से ऊपर लेकिन कुल (family) से नीचे होती है, यानि एक वंश समूह में एक से अधिक वंश आते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वंश समूह (जीवविज्ञान) · और देखें »

वृक्ष-कंगारू

वृक्ष-कंगारू (tree-kangaroo) डेन्ड्रोलागस जीववैज्ञानिक वंश के धानीप्राणी (मारसूपियल) होते हैं। इनके शरीर वृक्ष विचरण के लिए अनुकूलित होते हैं और यह नया गिनी द्वीप के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों, ऑस्ट्रेलिया के सुदूर पूर्वोत्तर के क्वीन्सलैंड राज्य के वर्षवनों और कुछ निकटवर्ती द्वीपों में मिलते हैं। इन स्थानों पर वनों को संकट होने से लगभग सभी वृक्ष-कंगारू जातियाँ संकटग्रस्त हो गई हैं। मैक्रोपोडों में यह एकमात्र वास्तविक वृक्ष विचरणिय वंश है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वृक्ष-कंगारू · और देखें »

वॉम्बैट

वॉम्बैट (Wombat) चार टांगों पर चलने वाले एक धानीप्राणी (मारसूपियल​) है। यह ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं और इनकी टाँगें और दुम छोटी व बदन लगभग १ मीटर लम्बा होता है। यह विवध वातावरणों में पाए जाते हैं, जिनमें जंगल, पहाड़ और घास के मैदानी क्षेत्र शामिल हैं।, Animal Diversity Web, A. Watson, University of Michigan Museum of Zoology, 1999, Accessed 13 अगस्त 2010 .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और वॉम्बैट · और देखें »

खरहा

खरहा, लेपस वंश और शशक प्रजाति के स्तनधारी जीव हैं। खरहों की चार विशेष प्रजातियों को लेपस वंश से बाहर वर्गीकृत किया जाता है। खरहे बहुत तेज दौड़ाक होते हैं, यूरोपीय भूरा खरहा तो 72 किमी/घंटा की रफ्तार से दौड़ सकता है। ये आम तौर पर एकाकी जीव होते हैं या फिर जोड़ों में रहते हैं, पर कुछ प्रजातियाँ झुंडों में भी रहती हैं। बहुत तेज भागते समय या फिर परभक्षियों को चकमा देते समय उत्पन्न होने वाले गुरुत्व बल को इनका शरीर अवशोषित करने में सक्षम होता है। आमतौर पर खरहा एक शर्मीला जीव है पर समागम के मौसम में इनका व्यवहार बदल जाता है और यह एक दूसरे के पीछे भागते देखे जा सकते हैं। यह एक दूसरे को ऐसे मारते हैं जैसे मुक्केबाज़ी का अभ्यास कर रहें हों। कुछ समय पहले तक तो यह माना जाता था कि प्रतिद्वंदी नर एक दूसरे को मारते हैं पर अब यह स्पष्ट हो गया है कि संभोग के लिए अनिच्छुक मादा, नर को मारती है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और खरहा · और देखें »

गटापारचा

गटापारचा (पैलाक्विम), एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष का वंश है, जो दक्षिण-पूर्व एशिया और उत्तरी आस्ट्रेलिया की एक मूल प्रजाति है। इसका विस्तार ताइवान से मलय प्रायद्वीप के दक्षिण और पूर्व में सोलोमन द्वीप तक है। इससे प्राप्त एक अप्रत्यास्थ प्राकृतिक रबड़ को भी गटापारचा के नाम से ही जाना जाता है जिसे इस पौधे के रस से तैयार किया जाता है। यह रबड़ विशेष रूप से पैलाक्विम गटा नामक प्रजाति के पौधों के रस से तैयार किया जाता है। रासायनिक रूप से, गटापारचा एक पॉलीटरपीन है, जो आइसोप्रीन या पॉलीआइसोप्रीन का एक बहुलक है, विशेष रूप से है (ट्रांस-1,4-पॉलीआइसोप्रीन)। 'गटापारचा' शब्द मलय भाषा में इस पौधे के नाम गेटाह पर्चा से आया है, जिसका अनुवाद “पर्चा का सार” है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और गटापारचा · और देखें »

गण (जीवविज्ञान)

कुल आते हैं गण (अंग्रेज़ी: order, ऑर्डर; लातिनी: ordo, ओर्दो) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में जीवों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक गण में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के कुल आते हैं। ध्यान दें कि हर जीववैज्ञानिक कुल में बहुत सी भिन्न जीवों की जातियाँ-प्रजातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और गण (जीवविज्ञान) · और देखें »

गलेगो

गलेगो (Galago), जो बुशबेबी (bushbaby, अर्थ: झाड़शिशु) और नागापाए (nagapie, आफ़्रीकान्स भाषा में अर्थ: रात का बंदर) भी कहलाता है, अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। यह रात को वृक्षों पर घूम कर बच्चों जैसी आवाज़ें करता है, जिस कारण उसका नाम "झाड़शिशु" (बुशबेबी) पड़ा। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसोइडेआ अधिकुल में एक अलग गलेगिडाए (Galagidae) या गलेगोनिडाए (Galagonidae) नामक कुल हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और गलेगो · और देखें »

गिबन

गिबन (Gibbon) लंबी बाहोंवाला, पेड़ों पर दौड़नेवाला एक कपि का जीववैज्ञानिक कुल है जो उत्तरपूर्वी भारत, पूर्वी बंग्लादेश और दक्षिणपूर्वी चीन से लेकर इण्डोनेशिया के कई द्वीपों (सुमात्रा, जावा और बोर्नियो समेत) में पाया जाता है। गिबन कुल के चार जीववैज्ञानिक वंश और १७ जीववैज्ञानिक जातियाँ अस्तित्व में हैं। इनका रंग काला, भूरा और श्वेत का मिश्रण होता है। पूरे श्वेत रंग के गिबन बहुत् कम ही दिखते हैं। गिबन जातियों में सियामंग, श्वेत-हस्त या लार गिबन और हूलोक गिबन शामिल हैं। यह मानव, चिम्पैन्ज़ी, ओरंग उतान, गोरिला और बोनोबो जैसे महाकपियों की तुलना में आकार में छोटे होते हैं और उनसे अधिक बंदर-जैसे दिखते हैं लेकिन सभी कपियों की भाँति इनकी भी पूँछ नहीं होती और यह अक्सर अपने पिछले पाँवों पर चलते हैं। इन्हें अक्सर हीनकपि (smaller apes) कहा जाता है। ये पृथ्वी पर खड़े होकर तो चल सकते ही हैं, पेड़ों पर भी हाथ के सहारे से खड़े होकर चलते हैं। यह वृक्षों में डाल-से-डाल लटककर बहुत तेज़ी से एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में सक्षम होते हैं। इन्हें एक डाल से ५० फ़ुट (१५ मीटर) दूर की डाल तक कूदते हुए और ५५ किमी प्रति घंटे (३४ मील प्रति घंटे) की गति से पेड़ों में घूमते हुए मापा गया है। उड़ सकने वाले स्तनधारियों को छोड़कर, यह विश्व के सबसे गतिशील वृक्ष विचरणी स्तनधारी हैं। गिबन आजीवन एक ही जीवनसाथी चुनकर उसके साथ रहने के लिये जाने जाते हैं हालांकि कुछ जीववैज्ञानिक इसपर विवाद करते हैं और उनके अनुसार गिबनों में कभी-कभी तलाक जैसी प्रक्रिया भी देखी जा सकती है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और गिबन · और देखें »

गिरगिट

गिरगिट (Chameleons, कैमीलियन) एक प्रकार का पूर्वजगत छिपकली का क्लेड है जिसकी जून २०१५ तक २०२ जीववैज्ञानिक जातियाँ ज्ञात थी। गिरगिटें कई रंगों की होती हैं और उनमें से कई में रंग बदलने की क्षमता होती है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और गिरगिट · और देखें »

ग्रूपर मछली

ग्रूपर (Grouper) हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण के सेरानिडाए कुल के एपिनेफ़ेलिनाए (Epinephelinae) उपकुल के सदस्य होते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ग्रूपर मछली · और देखें »

ऑसेलॉट

ऑसेलॉट​ (Ocelot), जिसे बौना तेन्दुआ (dwarf leopard) भी कहा जाता है एक प्रकार की जंगली बिल्ली है जो दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका और मेक्सिको में पाई जाती है। कुछ सूत्रों के हवाले से यह संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास राज्य में और कैरिबियाई सागर के त्रिनिदाद द्वीप पर देखी जा चुकी है। यह देखने में पालतू बिल्ली जैसी है हालांकि इसकी ख़ाल जैगुआर और बादली तेन्दुए जैसी होती है। किसी ज़माने में इनकी ख़ाल के लिए यह लाखो की संख्या में मारे गए लेकिन फिर इन्हें बचने के लिए इन्हें 1972 से 1996 काल में विलुप्तप्राय जाति घोषित कर दिया गया। इनकी आबादी बढ़ी और 2008 आईयूसीएन लाल सूची में इन्हें संकटमुक्त कहा गया है।, Neil Edward Schlecht, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ऑसेलॉट · और देखें »

ओलिंगीटो

ओलिंगीटो (स्पैनिश: Olinguito; "छोटी ओलिंगो" वैज्ञानिक नाम: Bassaricyon neblina), एक स्तनधारी जीव है। यह एक नयी जीव प्रजाति है जिसकी खोज की घोषणा 15 अगस्त 2013 को की गयी है। इस प्रजाति का वंश "बासारिस्योन" और कुल "प्रोसाइओनिडी" (रैकून कुल) है।यह प्रजाति कोलम्बिया और ईक्वाडोर के पर्वतीय वनों में वास करती है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और ओलिंगीटो · और देखें »

आरेकेसिए

आरेकेसिए (Arecaceae) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक कुल है। इसकी सदस्य जातियाँ ताड़ से सम्बन्धित हैं और वृक्षों, चढ़ने वाली लकड़ीदार लताओं व क्षुपों के रूप में होती हैं। इस वंश में २०२ ज्ञात वंश हैं जिनमें कुल मिलाकर लगभग २,६०० जातियाँ शामिल हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और आरेकेसिए · और देखें »

आंगवांतीबो

आंगवांतीबो (Angwantibo) अफ़्रीका के मुख्य महाद्वीप में मिलने वाला निशाचरी (रात्रि में सक्रीय) नरवानर प्राणी होते हैं। यह नरवानर गण के स्ट्रेपसिराइनी उपगण के लीमरिफ़ोर्मीस अधोगण (इन्फ़ाऑर्डर) के लोरिसिडाए कुल में आर्कटिसीबस (Arctocebus) नामक वंश की दो जातियों का साधारण नाम हैं। यह दिखने में पोटो जैसे लगते हैं लेकिन इनका रंग सुनहरा होता है, जिस कारणवश इन्हें सुनहरा पोटो (golden potto) भी कहा जाता है। आंगवांतीबो की दोनो जातियाँ - कालाबार आंगवांतीबो और सुनहरा आंगवांतीबो - दोनों मध्य अफ़्रीका में रहते हैं और उनका विस्तार नाइजीरिया और कैमरून से लेकर कांगो लोकतांत्रिक गणतंत्र के उत्तरी भाग तक है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और आंगवांतीबो · और देखें »

करैंजिडाए

करैंजिडाए (Carangidae) हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक कुल है जिसमें जैक मछलियाँ (Jacks) शामिल हैं। इस कुल में पोम्पानो, जैक मैकरल और स्कैड मछलियाँ भी सम्मिलित हैं। यह समुद्री मछलियाँ हैं जो अटलांटिक, प्रशांत और हिन्द महासागरों में पाई जाती हैं। करैंजिडाए कुल की मछलियाँ तेज़ तैरने वाली परभक्षी जातियाँ होती हैं जो रीफ़ों के ऊपर और खुले सागर में शिकार करती हैं और कुछ सागरतह में रेत में छुपे अकशेरुकों को खोदकर निकालती और खाती हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और करैंजिडाए · और देखें »

काराकारा

काराकारा (Caracara) पक्षियों के फ़ैल्कोनीडाए कुल के पोलीबोरिनाए (Polyborinae) उपकुल के सदस्य होते हैं, हालांकि कुछ जीववैज्ञानिकों के अनुसार इनका काराकारीनाए (Caracarinae) नामक अलग उपकुल होना चाहिए। इनके साथ वन श्येन भी पोलीबोरिनाए उपकुल में सम्मिलित हैं और दोनों ही शिकारी पक्षी होते हैं। काराकारा दक्षिण व मध्य अमेरिका के निवासी है और इनका उत्तरी विस्तार दक्षिणी संयुक्त राज्य अमेरिका तक है। यह फ़ैल्कोनीडाए कुल की दूसरी, फ़ैल्को, नामक शाखा (जिसमें श्येन आते हैं) के पक्षियों जितनी तेज़ी से नहीं उड़ पाते और न ही यह हवा में उड़ती अन्य चिड़ियाँ का शिकार करने में सक्षम हैं, इसलिए यह यह अक्सर मुर्दाखोर, यानि मृत जानवरों का माँस खाते हुए, भी नज़र आते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और काराकारा · और देखें »

काला जुनबगला

काला जुनबगला (अंग्रेज़ी: Black bittern, ब्लैक बिटर्न) पूर्वजगत का एक जुनबगला है जो एशिया के गरम (ऊष्णकटिबन्धीय) क्षेत्रों में भारतीय उपमहाद्वीप, चीन, इण्डोनीश्या, ऑस्ट्रेलिया। इत्यादि में पाया जाता है। आमतौर पर यह स्थानीय है लेकिन कुछ उत्तर में रहने वाले काले जुनबगले छोटी दूरियों पर प्रवास करते हैं। यह इक्सोब्राएकस (Ixobrychus) नामक जुनबगलों के जीववैज्ञानिक वंश की सबसे बड़े आकार की जाति है और ५८ सेमी (२३ इंच) लम्बी हो सकती है। यह अपनी लम्बी गर्दन और लम्बी पीली चोंच से पहचानी जाती है। इसके शिशु गाढ़े ख़ाकी रंग के होते हैं लेकिन बड़े होकर इनका ऊपरी भाग लगभग पूरा काला हो जाता है। गर्दन दाई-बाई ओर से पीली होती है और धड़ का निचला हिस्सा भूरी लकीरो वाला श्वेत होता है। काले जुनबगले अपने अण्डे सरकंडों वाले दलदली क्षेत्रों में देते हैं जहाँ वे सरकंडों के गुच्छों, झाड़ियों या वृक्षों पर घोंसले बनाते हैं। मादा हर वर्ष तीन से पाँच अण्डे देती है। ज़मीन पर यह छुपकर बिना अधिक ध्वनी करे चलते हैं इसले कम देखे जाते हैं लेकिन उड़ते हुए इनका ऊपर-से-काला नीचे-से-श्वेत शरीर आसानी से पहचाना जाता है। वे कीटों, मछलियों और उभयचरों को आहार बनाते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और काला जुनबगला · और देखें »

कांटीकरंज

कांटीकरंज या लताकारंज या कड़वा बदाम सेसलपिनिया वंश में एक सपुष्पक वनस्पति की है। यह एक लता की भांति ६ मीटर (२० फ़ूट) तक दूसरे वृक्षों पर चढ़ सकने वाला एक झाड़ीनुमा वनस्पति है। इसके तनों पर मुड़े हुए कांटे-जैसे ढांचे होते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कांटीकरंज · और देखें »

कुल (जीवविज्ञान)

वंश आते हैं कुल (अंग्रेज़ी: family, फ़ैमिली; लातिनी: familia, फ़ामिलिया) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में प्राणियों के वर्गीकरण की एक श्रेणी होती है। एक कुल में एक-दुसरे से समानताएँ रखने वाले कई सारे जीवों के वंश आते हैं। ध्यान दें कि हर प्राणी वंश में बहुत-सी भिन्न प्राणियों की जातियाँ सम्मिलित होती हैं।, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कुल (जीवविज्ञान) · और देखें »

क्रिल

क्रिल (Krill) छोटे आकार के क्रस्टेशिया प्राणी हैं जो विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं। समुद्रों में क्रिल खाद्य शृंखला की सबसे निचली श्रेणियों में होते हैं - क्रिल सूक्ष्मजीवी प्लवक (प्लैन्कटन) खाते हैं और फिर कई बड़े आकार के प्राणी क्रिलों को खाते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और क्रिल · और देखें »

क्वोका

क्वोका (quokka) पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी भाग में मिलने वाला एक बिल्ली-जितने आकार का मैक्रोपोड धानीप्राणी (मारसूपियल) है। कंगारू और वालाबी जैसे अन्य धानीप्राणियों की तरह यह भी शाकाहारी और मुख्य रूप से निशाचरी होता है। क्वोका सेटोनिक्स (Setonix) वंश की एकमात्र सदस्य जाति है। क्वोका पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कुछ द्वीपों में मिलता है, जैसे कि रॉटनेस्ट द्वीप और ऐल्बनी के पास स्थित बॉल्ड द्वीप। इसके अलावा मुख्यभूमि पर टू पीपल्स बे प्राकृतिक उद्यान नामक संरक्षित क्षेत्र में भी इसकी कुछ आबादी है, जहाँ वे गिल्बर्ट्स पोटोरू नामक एक अन्य धानीप्राणी के साथ रहता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और क्वोका · और देखें »

कैनिडाए

कैनिडाए (Canidae) मांसाहारी गण के जानवरों का एक कुल है जिसमें कुत्ता, भेड़िया, सियार, कायोटी और कई कुत्ते-जैसी जीवित और विलुप्त जातियाँ शामिल हैं। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं: कैनिनी (Canini, भेड़िये से सम्बंधित) और वलपायनी (Vulpini, सियार से सम्बंधित)। कैनिडाए की दो जातियाँ (चमगादड़-कान सियार और रैकून कुत्ता) ऐसी हैं जो बहुत रूढ़ी मानी जाती हैं और इन दोनों शाखाओं से बाहर हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कैनिडाए · और देखें »

कैक्टस

कैक्टस (cactus) सपुष्पक वनस्पतियों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जो अपने मोटे, फूले हुए तनों में पानी बटोरकर शुष्क व रेगिस्तानी परिस्थितियों में जीवित रहने और अपने कांटों से भरे हुए रूप के लिए जाना जाता है। इसकी लगभग १२७ वंशों में संगठित १७५० जातियाँ ज्ञात हैं और वह सभी-की-सभी नवजगत (उत्तर व दक्षिण अमेरिका) की मूल निवासी हैं। इनमें से केवल एक जाति ही पूर्वजगत में अफ़्रीका और श्रीलंका में बिना मानवीय हस्तक्षेप के पहुँची थी और माना जाता है इसे पक्षियों द्वारा फैलाया गया था। कैक्टस लगभग सभी गूदेदार पौधे होते हैं जिनके तनों-टहनियों में विशेषीकरण से पानी बचाया जाता है। इनके पत्तों ने भी विशेषीकरण से कांटो का रूप धारण करा होता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कैक्टस · और देखें »

कोरिफ़ेना

कोरिफ़ेना (Coryphaena), जो डोल्फ़िनफ़िश (dolphinfish) भी कहलाती है, किरण-फ़िन मछलियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। यह वंश कोरिफ़ेनिडाए (Coryphaenidae) गण के अंतर्गत आता है और उसका एकलौता सदस्य वंश है। इसमें आने वाली मछली जातियाँ चपटे सिर और पीठ पर एक लम्बा फ़िन रखती हैं। वास्तव में इनका डोल्फ़िनों के साथ कोई जीववैज्ञानिक सम्बन्ध नहीं है। डॉलफ़िनफ़िश समुद्र में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली मछिलियों में से एक है और इसका आकार ६ फ़ुट लम्बा और वज़न ४० किलो तक पहुँच सकता है। इसलिए अन्य मछलियाँ इसका बहुत शिकार करती हैं और मछुआरे भी इन्हें बहुत पकड़ते हैं। क्योंकि डॉलफ़िन एक बुद्धिमान स्तनधारी माना जाता है इसलिए बहुत से लोग उसे खाना नापसंद करते हैं इसलिए डॉलफ़िनफ़िश को अक्सर 'माही-माही' के नाम से बेचा जाता है ताकि लोग इसे ग़लती से डॉलफ़िन न समझ बैठें।, Maurice Burton, Robert Burton, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कोरिफ़ेना · और देखें »

कोरिफ़ेनिडाए

कोरिफ़ेनिडाए (Coryphaenidae) समुद्र में मिलने वाली पर्सिफ़ोर्मेज़​ गण की किरण-फ़िन मछलियाँ हैं। इस गण में केवल एक ही 'कोरिफ़ेना' (Coryphaena) नामक वंश आता है जिसमें दो जीववैज्ञानिक जातियाँ हैं। इन मछिलयों की सबसे बड़ी पहचान एक बड़ा, चकोर लेकिन चपटा सिर, दो गहरे काँटों वाली दुम और पीठ पर शरीर के आगे से लेकर अंत तक चलने वाला एक फ़िन होतीं हैं। इसे आम भाषा में 'डॉलफ़िनफ़िश' (Dolphinfish) कहा जाता है हालांकि इस मछली का डॉलफ़िन (सूंस) से कोई सम्बन्ध नहीं है - डॉलफ़िन वायु से सांस लेने वाली एक स्तनधारी होती है जबकि डॉलफ़िनफ़िश पानी में सांस लेने वाली एक मछली है। डॉलफ़िनफ़िश समुद्र में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली मछिलियों में से एक है और इसका आकार ६ फ़ुट लम्बा और वज़न ४० किलो तक पहुँच सकता है। इसलिए अन्य मछलियाँ इसका बहुत शिकार करती हैं और मछुआरे भी इन्हें बहुत पकड़ते हैं। क्योंकि डॉलफ़िन एक बुद्धिमान स्तनधारी माना जाता है इसलिए बहुत से लोग उसे खाना नापसंद करते हैं इसलिए डॉलफ़िनफ़िश को अक्सर 'माही-माही' के नाम से बेचा जाता है ताकि लोग इसे ग़लती से डॉलफ़िन न समझ बैठें।, Maurice Burton, Robert Burton, pp.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कोरिफ़ेनिडाए · और देखें »

कोरैसीडाए

कोरैसीडाए (Coraciidae) या रोलर पक्षी (Roller) पूर्वजगत में मिलने वाले कोरैसीफ़ोर्मीस जीववैज्ञानिक गण के पक्षियों का एक कुल है, जिसका एक प्रसिद्ध सदस्य नीलकंठ पक्षी है। यह आकृति और आकार में कौवे जैसे होते है लेकिन इनके शरीर पतेना और रामचिरैया की तरह रंग-बिरंगे होते हैं। प्रणवकाल में यह हवा में कलाबाज़ियाँ खाते हुए नज़र आते हैं। इनका आहार मुख्य रूप से कीट पर आधारित है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और कोरैसीडाए · और देखें »

अदनसोनिया

अदनसोनिया वृक्षों की आठ प्रजातियों का एक वंश (जीनस) है, जिनमें से, छह मेडागास्कर, एक अफ्रीका की मुख्य भूमि और अरब प्रायद्वीप तथा एक ऑस्ट्रेलिया की मूल प्रजाति है। अफ्रीकी मुख्य भूमि की प्रजाति के वृक्ष मेडागास्कर में भी पाये जाते हैं, लेकिन यह इस द्वीप की मूल प्रजाति नहीं है। इसे आम तौर पर गोरक्षी (हिन्दी नाम) या बाओबाब के नाम से जाना जाता है। इसके अन्य आम नामों में बोआब, बोआबोआ, बोतल वृक्ष, उल्टा पेड़ तथा बंदर रोटी पेड़ आदि नाम शामिल हैं। अरबी में इसे 'बु-हिबाब' कहा जाता है जिसका अर्थ है 'कई बीजों वाला पेड़', शायद इसी बु-हिबाब शब्द का अपभ्रंश रूप है बाओबाब। बाओबाब का अफ्रीका के आर्थिक विकास में काफ़ी योगदान होने की वजह से अफ्रीका ने इसे 'द वर्ल्ड ट्री' की उपाधि भी प्रदान की है और इसे एक संरक्षित वृक्ष भी घोषित किया है। इसका अनुवांशिक नाम मिशेल एडनसन, जो कि एक फ्रांसीसी प्रकृतिवादी और अन्वेषक थे और जिन्होने पहले पहल इस वृक्ष का वर्णन किया था, के सम्मान में अदनसोनिया डिजिटाटा रखा गया है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अदनसोनिया · और देखें »

अम्बैसिडाए

एशियाई शीशमीन (Asiatic glassfishes) या अम्बैसिडाए (Ambassidae) हड्डीदार मछलियों के पर्सिफ़ोर्मेज़ गण का एक कुल है जो समुद्र व मीठे पानी दोनों में मिलती हैं। इसके ८ वंशों में ४९ जातियाँ हैं। एशियाई शीशमीन एशिया, ओशिआनिया, हिन्द महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर में मिलती है। इनमें से कुछ की लम्बाई २६ सेंटीमीटर तक होती है। इन मछलियों की कई जातियों के शरीर शीशे जैसे पारदर्शी या अर्ध-पारदर्शी होते हैं, जिसके कारण इन्हें मीनशालाओं में पालतु रूप से रखा जाता है। पहले इन्हें रंगों के टीके लगाकर मछली रखने वालों को बेचा जाता था लेकिन इस से मछली को भयंकर पीढ़ा होती है और जल्दी मृत्यु भी हो जाती है, और इस क्रूरता की वजह से लोगों ने इन्हें ख़रीदना कम कर लिया है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अम्बैसिडाए · और देखें »

अमेरिकी अल्सतियन

अल्सतियन शेपालुत कुता अल्सतियन शेपालुत पालतू कुत्तो की एक बड़ी नसल है जिसका की जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ। यह अपनी शांत, प्यार करने वाली व बुद्धिमानी की खूबियों की वजह से जानी जाती है। हालाकि इस नसल के तार अलास्कन मलामुट, जर्मन शेफर्ड, इंग्लिश मस्तिफ्फ़, अंतोलियन शेफर्ड व महान पिरेनीस वंश से जुड़े है। इन कुत्तो की निरंतर प्रजनन से आज के अल्सतियन शेपालुत कुत्तो का जन्म हुआ जीने के इंसान का सच्चा साथी माना जाता है। वजह यह भी है की इन्हें बचाव कार्य, साथ देने व दुर्गम स्थितियों में काम में लिया जा सकता है। श्रेणी:श्वान.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अमेरिकी अल्सतियन · और देखें »

अमीबा

अमीबा (Amoeba) जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में एक वंश है तथा इस वंश के सदस्यों को भी प्रायः अमीबा कहा जाता है। अत्यंत सरल प्रकार का एक प्रजीव (प्रोटोज़ोआ) है जिसकी अधिकांश जातियाँ नदियों, तालाबों, मीठे पानी की झीलों, पोखरों, पानी के गड्ढों आदि में पाई जाती हैं। कुछ संबंधित जातियाँ महत्त्वपूर्ण परजीवी और रोगकारी हैं। जीवित अमीबा बहुत सूक्ष्म प्राणी है, यद्यपि इसकी कुछ जातियों के सदस्य 1/2 मि.मी.

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अमीबा · और देखें »

अलिस्मातालेस

अलिस्मातालेस (Alismatales) सपुष्पक पौधों का एक जीववैज्ञानिक गण है, जिसमें लगभग ४,५०० जातियाँ वर्गीकृत हैं। यह जातियाँ अधिकतर उष्णकटिबंधीय या जलीय हैं। कुछ मीठे पानी में उगती हैं और कुछ समुद्री पर्यावासों में। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अलिस्मातालेस · और देखें »

अश्वनाल केकड़ा

अश्वनाल केकड़ा (Horseshoe crab) समुद्री आर्थ्रोपोड हैं जो ज़िफ़ोसुरा गण के लिम्युलिडाए कुल में श्रेणीकृत हैं। यह तटों के पास सागरों व महासागरों के कम गहराई वाले क्षेत्रों में रहते हैं और के लिए बाहर भूमि पर आते हैं। क्रमविकास द्वारा इनकी उत्पत्ति लगभग ४५ करोड़ वर्ष पहले हुई थी और, क्योंकि तब से इनमें बहुत कम बदलाव आया है, इन्हें जीवित जीवाश्म बुलाया जाता है। अपने नाम और रूप के बावजूद यह केकड़ों से कम और मकड़ियों से अधिक अनुवांशिक सम्बन्ध रखते हैं। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अश्वनाल केकड़ा · और देखें »

अगस्ति

अगस्ति या गाछ मूंगा (वैज्ञानिक नाम: Sesbania grandiflora, सेस्बानिया ग्रैन्डीफ़्लोरा) सेस्बानिया जीववैज्ञानिक वंश का एक छोटा पौधा है। यह एक तेज़ी से उगने वाला वृक्ष है जो ३ से ७ मीटर लम्बा होता है और मुलायम लकड़ी का बना होता है। इसके फल लम्बी व चपटी फलियों जैसे होते हैं और फूल लाल या सफ़ेद रंग के। यह मूल रूप से मलेशिया से उत्तर ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र का निवासी है लेकिन अब भारत और श्रीलंका में भी उगाया जाता है। इसकी छाल, फूल और जड़ को आयुर्वेद और कई अन्य पारम्परिक चिकित्सा प्रणालियों में रोग-निवारण के लिये प्रयोग में लाया जाता है। .

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और अगस्ति · और देखें »

उत्तरी तामान्दुआ

उत्तरी तामान्दुआ (Northern tamandua) चींटीख़ोर के तामान्दुआ वंश की एक मध्यम आकार की जाति है जो दक्षिणी मेक्सिको, मध्य अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के ऐन्डीज़ पर्वतों के उत्तरतम भागों में पाई जाती है। यह चींटीख़ोर सिर-से-पूँछ तक औसतन १.२ मीटर (३ फ़ुट ११ इंच) लम्बा होता है।Ortega Reyes, J., Tirira, D.G., Arteaga, M. & Miranda, F. (2014).

नई!!: वंश (जीवविज्ञान) और उत्तरी तामान्दुआ · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

जीववैज्ञानिक वंश, जीववैज्ञानिक वंशों

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »