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ल्हासा

सूची ल्हासा

ल्हासा चीन के स्वायत्त प्रांत तिब्बत की राजधानी है। श्रेणी:तिब्बत के नगर श्रेणी:ल्हासा विभाग श्रेणी:तिब्बत के विभाग श्रेणी:चीनी जनवादी गणराज्य के नगर.

28 संबंधों: चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग, एवरेस्ट बेस कैंप, तिब्बत, तिब्बत का इतिहास, तिब्बती भाषा, तवांग मठ, त्सेथंग, दरं जिला, दक्षिण एशिया, दूनहुआंग, नम त्सो, नैन सिंह रावत, प्युनिंग मंदिर, पोताला महल, यमद्रोक झील, यरलुंग त्संगपो नदी, रुतोग ज़िला, शिगात्से, सब्ज़ी, सिक्किम, वृहद भारत, ग्यांत्से, आली, तिब्बत, इउ-त्संग, कुनलुन पर्वत, कोदारी, १९वें कुशक बकुला रिनपोछे, १९५९ का तिब्बती विद्रोह

चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग

ल्हासा, तिब्बत का रेलवे स्टेशन चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग चीनी जनवादी गणराज्य में एक रेलमार्ग है जो चिंगहई प्रान्त में स्थित शिनिंग को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है। यह रेलमार्ग तिब्बत को शेष चीन से जोड़ने वाला पहला रेलमार्ग है, क्योंकि तिब्बत के बहुत ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ किसी भी रेलमार्ग का निर्माण नहीं हो सका था। बीजिंग, चेंग्दू, चोंग्किंग, शिनिंग, शंघाई और लांझोउ से ल्हासा के लिए रेलगाड़ियों की सेवाएँ उपलब्ध हैं। इस रेलमार्ग की कुल लम्बाई १,९५६ किमी है। शिनिंग से गोलमुड तक के ८१५ किमी लम्बे रेलमार्ग का निर्माण १९८४ तक पूरा हो चुका था। शेष १,१४२ किमी लम्बे भाग, जो गोलमुड से ल्हासा तक का है, का उद्घाटन १ जुलाई २००६ को पार्टी आम सचिव हू जिन्ताओ द्वारा किया गया था। यह रेलमार्ग तांगुला दर्रे से होकर भी गुजरता है जो ५,०७२ मीटर की ऊँचाई पर विश्व का सबसे ऊँचा रेलमार्ग है। तांगुला रेलवे स्टेशन जो ५,०६८ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है विश्व का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन है। १,३३८ मीटर लम्बी फ़ेंघुओशन सुरंग ४,९०५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और विश्व की सबसे ऊँची रेल सुरंग है। ४,०१० मीटर की ऊँचाई पर स्थित गुआंजियाओ सुरंग शिनिंग और गोलमुड के मध्य सबसे लम्बी सुरंग है और ३,३४५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित यांग्बैजिंग सुरंग गोलमुड और ल्हासा के मध्य सबसे लम्बी सुरंग है। गोलमुड-ल्हासा अनुभाग का ९६० किमी या लगभग ८०% भाग ४,००० मीटर से अधिक की ऊँचाई पर है। कुल ६७५ पुल जिनकी लम्बाई १५९.८८ किमी है और ५५० किमी रेलमार्ग स्थाई-तुषार भूमि पर बिछाया गया है। .

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एवरेस्ट बेस कैंप

दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत की सीमा भी है। इस प्रकार इसके दो बेस कैंप हैं। एक दक्षिणी बेस कैंप जो कि नेपाल में स्थित है और दूसरा उत्तरी बेस कैंप जो कि तिब्बत में स्थित है। इन बेस कैंपों का प्रयोग पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट के पर्वतारोहण के लिये आधार के तौर पर करते हैं। दक्षिणी बेस कैंप तक पहुँचने के लिये काफ़ी लंबे पैदल रास्ते का प्रयोग किया जाता है और भोजन-आपूर्ति आदि वहाँ के स्थानीय निवासी शेरपा उपलब्ध कराते हैं। दूसरी ओर, उत्तरी बेस कैंप तक सड़क बनी हुई है। बेस कैंपों पर पर्वतारोही कई-कई दिनों तक रुकते हैं ताकि वातावरण के अनुकूल हो सकें। .

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तिब्बत

तिब्बत का भूक्षेत्र (पीले व नारंगी रंगों में) तिब्बत के खम प्रदेश में बच्चे तिब्बत का पठार तिब्बत (Tibet) एशिया का एक क्षेत्र है जिसकी भूमि मुख्यतः उच्च पठारी है। इसे पारम्परिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। इसके प्रायः सम्पूर्ण भाग पर चीनी जनवादी गणराज्य का अधिकार है जबकि तिब्बत सदियों से एक पृथक देश के रूप में रहा है। यहाँ के लोगों का धर्म बौद्ध धर्म की तिब्बती बौद्ध शाखा है तथा इनकी भाषा तिब्बती है। चीन द्वारा तिब्बत पर चढ़ाई के समय (1955) वहाँ के राजनैतिक व धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत में आकर शरण ली और वे अब तक भारत में सुरक्षित हैं। .

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तिब्बत का इतिहास

तिब्बत का ऐतिहासिक मानचित्र 300px मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के अनुसार तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से सहायता माँगी। चीन के सहायता से उसने नेपाल से छुटकारा तो पाया लेकिन इसके बाद 1906-7 ई0 में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार बनाया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। 1912 ई0 में चीन से मांछु शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया.

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तिब्बती भाषा

तिब्बती भाषा (तिब्बती लिपि में: བོད་སྐད་, ü kä), तिब्बत के लोगों की भाषा है और वहाँ की राजभाषा भी है। यह तिब्बती लिपि में लिखी जाती है। ल्हासा में बोली जाने वाली भाषा को मानक तिब्बती माना जाता है। .

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तवांग मठ

तवांग मठ भारत के अरुणाचल प्रदेश में स्थित एक बौद्ध मठ है। यह भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ है और ल्हासा के पोताला महल के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मठ है। यह तवांग नदी की घाटी में तवांग कस्बे के निकट स्थित है। 300 साल पहले बने इस मठ को बौद्ध भिक्षु अंतरराष्ट्रीय धरोहर मानते हैं। इसे 1680 में मेराक लामा लोद्रे ग्यास्तो ने बनवाया। इसमें 570 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु रहते हैं। समुद्र तल से 10,000 फुट की ऊंचाई पर तवांग चू घाटी में बने इस मठ में दुनिया भर के बौद्ध भिक्षु और पर्यटक आते हैं। पहाड़ी पर बने होने के कारण तवांग मठ से पूरी त्वांग घाटी के खूबसूरत दृश्य देखे जा सकते हैं। यह मठ दूर से दुर्ग जैसा दिखाई देता है। इसके प्रवेश द्वार का नाम 'काकालिंग' है जो देखने में झोपडी जैसा लगता है और इसकी दो दीवारों के निर्माण में पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इन दीवारों पर खूबसूरत चित्रकारी की गई है जो पर्यटकों को बहुत पसंद आती है। तवांग मठ .

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त्सेथंग

त्सेथंग तिब्बत का एक शहर है। यह यरलुंग नदी की घाटी में स्थित है जो तिब्बती संस्कृति का जन्मस्थल माना जाता है। प्रशासनिक दृष्टि से यह तिब्बत के ल्होखा विभाग में आता है और उस विभाग की राजधानी भी है। यह शहर तिब्बत के सबसे बड़े नगरों में से एक है और तिब्बत के कई प्राचीन राजा यहीं से राज किया करते थे। १९वीं सदी में यहाँ से गुज़रने वाले यात्रियों के अनुसार यहाँ १,००० घर, गोम्पा (बौद्ध-मठ), बाज़ार और एक द्ज़ोंग (तिब्बती शैली का क़िला) खड़े हुए थे। ल्हासा के बाद यह तिब्बत के इउ-त्संग क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर था। ३,१०० मीटर (१०,१७० फ़ुट) पर बसे हुए इस शहर की आबादी २००५ में ५२,००० अनुमानित की गई थी।, Rod Purcell, pp.

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दरं जिला

असम का '''दरं''' जिला दरं (Darrang) भारत के असम राज्य में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र का प्रसिद्ध जिला है, जिसका मुख्यालय मंगलदोई में है। इस जिले के उत्तर में भूटान तथा दफला पहाड़ियाँ और दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी है, जिससे यहाँ का व्यापार होता है। नदी द्वारा निर्मित क्षेत्र होने के कारण धान, राई, सरसों, गन्ना और जूट यहाँ अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। इस क्षेत्र में चाय के बागानों की भरमार है। इस जिले में चाय उत्पादन के कारखाने, रेशम के कीड़े पालने का उद्योग तथा रेलवे का वर्कशॉप है। यहाँ से तिब्बत की राजधानी लाशा को जाने के लिये सुगम और कम दूरी का मार्ग है, जिसका अंतिम छोर उड़लगुड़ी में है। 1,000 ईo के लगभग पाल राजाओं की राजधानी तेजपुर में थी, इसलिये यहाँ के मंदिरों तथा खंडहरों में शिल्पकला और स्थापत्यकला के दर्शीय नमूने हैं। इस जिले का क्षेत्रफल - 3,481 वर्ग कि॰मी॰ तथा जनसंख्या - 15,03,943 (2001 जनगणना) है। दारं जिले के '''मानस राष्ट्रीय पार्क''' का मुख्यद्वार .

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दक्षिण एशिया

thumb दक्षिण एशिया एक अनौपचारिक शब्दावली है जिसका प्रयोग एशिया महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से के लिये किया जाता है। सामान्यतः इस शब्द से आशय हिमालय के दक्षिणवर्ती देशों से होता है जिनमें कुछ अन्य अगल-बगल के देश भी जोड़ लिये जाते हैं। भारत, पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश को दक्षिण एशिया के देश या भारतीय उपमहाद्वीप के देश कहा जाता है जिसमें नेपाल और भूटान को भी शामिल कर लिया जाता है। कभी कभी इसमें अफगानिस्तान और म्याँमार को भी जोड़ लेते हैं। दक्षिण एशिया के देशों का एक संगठन सार्क भी है जिसके सदस्य देश निम्नवत हैं.

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दूनहुआंग

दूनहुआंग में एक बाज़ार चीन के गांसू प्रान्त में दूनहुआंग शहर (गुलाबी रंग में) हान राजवंश काल के दौरान बने मिट्टी के संतरी बुर्ज के खंडहर नवचंद्र झील दूनहुआंग (चीनी: 敦煌, अंग्रेज़ी: Dunhuang) पश्चिमी चीन के गांसू प्रान्त में एक शहर है जो ऐतिहासिक रूप से रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था। इसकी आबादी सन् २००० में १,८७,५७८ अनुमानित की गई थी। रेत के टीलों से घिरे इस रेगिस्तानी इलाक़े में दूनहुआंग एक नख़लिस्तान (ओएसिस) है, जिसमें 'नवचन्द्र झील' (Crescent Lake) पानी का एक अहम स्रोत है। प्राचीनकाल में इसे शाझोऊ (沙州, Shazhou), यानि 'रेत का शहर', के नाम से भी जाना जाता था। यहाँ पास में मोगाओ गुफ़ाएँ भी स्थित हैं जहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धी ४९२ मंदिर हैं और जिनमें इस क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति पर भारत का गहरा प्रभाव दिखता है।, Morning Glory Publishers, 2000, ISBN 978-7-5054-0715-2,...

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नम त्सो

नम त्सो (तिब्बती: གནམ་མཚོ་, अंग्रेज़ी: Namtso) या नमत्सो, जिसे मंगोल भाषा में तेन्ग्री नोर (Tengri Nor, अर्थ: तेन्ग्री/स्वर्ग की झील) भी कहते हैं, तिब्बत की एक पर्वतीय झील है। यह तिब्बत के ल्हासा विभाग के दमझ़ुंग ज़िले और नगछु विभाग के पलगोन (बैनगोइन) ज़िले की सरहद पर स्थित है। इसका पानी खारा है। लगभग १५,००० फ़ुट पर स्थित यह झील दुनिया की सबसे ऊँची खारी झील है और चिंगहई झील के बाद तिब्बत के पठार की दूसरी सबसे बड़ी झील है।, Suzanne Anthony, pp.

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नैन सिंह रावत

नैन सिंह रावत नैन सिंह रावत (1830-1895) १९वीं शताब्दी के उन पण्डितों में से थे जिन्होने अंग्रेजों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की। नैन सिंह कुमाऊँ घाटी के रहने वाले थे। उन्होने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण किया। उन्होने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊँचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो (Tsangpo) के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया। .

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प्युनिंग मंदिर

प्युनिंग मंदिर() जिसे वस्तुतः विशाल बुद्ध मंदिर कहा जाता है, बौद्ध चेंगडे हेबै प्रांत, चीन में मंदिर परिसर है। यह किंग राजवंश में क्वानानोंग सम्राट के शासनकाल के दौरान १७५५ में बनाया गया था। यह चेंग्डे माउंटेन रिज़ॉर्ट के पास है और पुटुओ ज़ोंगचेंग मंदिर के समान प्रसिद्ध है, प्युनिंग मंदिर चेंगडे के "आठ बाहरी मंदिरों" में से एक है। पिंगिंग मंदिर का सामे मठ के बाद, तिब्बत में पवित्र लामावादी स्थल ल्हासा में पोटोला पैलेस के बाद का पुटुओ ज़ोंगचेंग मंदिर का चित्रण किया गया था। सामने का मंदिर चीनी शैली में बनाया गया था, हालांकि मंदिर परिसर में चीनी और तिब्बती स्थापत्य शैली का प्रयोग किया गया हैं। प्युनिंग मंदिर में बोधिसत्व अवलोकितेश्वर (२२.२८ मीटर ऊंचा और ११० टन) की दुनिया की सबसे ऊंची लकड़ी की मूर्ति है।, इसलिए इसे अक्सर विशाल बुद्ध मंदिर नामक उपनाम दिया जाता है। मंदिर के जटिल वैशिष्टय इस प्रकार हैं - सभामण्डप, मंडप, मृदंग मीनार और घंटी मीनार। .

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पोताला महल

300px पोताला महल (तिब्बती भाषा: པོ་ཏ་ལ) ल्हासा शहर के उत्तर पश्चिमी भाग में खड़े लाल पहाड़ी पर स्थित है। यह एक शानदार बुर्जनुमा भवन है जो तिब्बत का एक प्रतीकात्मक वास्तु है। समूचा निर्माण तिब्बती वास्तु शैली में किया गया और पहाड़ पर खड़ा हुआ है। इसका निर्माण १६४५ में आरम्भ हुआ। यह महल तिब्बत के थुबो राजकाल में राजा सोंगत्सांकांबू ने थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ के साथ विवाह के लिए बनवाया था। 17वीं शताब्दी में उसके पुनर्निर्माण के बाद वह विभिन्न पीढियों के दलाई लामा का आवास बनाया गया। वह तिब्बत के राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित शासन का केन्द्र था। पोताला महल में बेशुमार कीमती चीजें सुरक्षित रखी हुई हैं और देश का एक कलाकृति खजाना माना जाता है। वर्ष 1994 में पोताला महल विश्व सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया। पोताला महल के दो भाग हैं- लाल महल और श्वेत महल। .

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यमद्रोक झील

यमद्रोक झील या यमद्रोक त्सो या यमद्रोक यम्त्सो तिब्बत में एक मीठे पानी की झील है। यह तिब्बत की चार बड़ी धार्मिक-रूप से पवित्र झीलों में से एक है। यह बर्फ़-ढके पर्वतों से घिरी हुई है और कई झरनों के पानी इसे भरते रहते हैं। झील ग्यांत्से शहर से ९० किमी पश्चिम में और तिब्बत की राजधानी ल्हासा से १०० किमी पूर्वोत्तर में है। स्थानीय आस्थाओं के अनुसार यह झील एक देवी का रूप है। झील के एक छोर पर एक प्रायद्वीप (पेनिनसुला) है जिसपर समदिन्ग बौद्ध-मठ बना हुआ है। यह 'झील का सिंहासन' भी कहलाता है और तिब्बत का इकलौता बड़ा मठ है जिसका धार्मिक नेतृत्व एक महिला (साधवी) करती हैं।, Hildegard Diemberger, pp.

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यरलुंग त्संगपो नदी

यरलुंग त्संगपो तिब्बत के पश्चिमी भाग में कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील से दक्षिणपूर्व में स्थित तमलुंग त्सो (झील) से उत्पन्न होने वाली एक नदी है। यह दक्षिण तिब्बत घाटी और यरलुंग त्संगपो महान घाटी बनाती हुई दक्षिण की ओर रुख़ कर के भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य में प्रवेश कर जाती है जहाँ इसे सियांग नदी के नाम से जाना जाता है। यही नदी आगे चलकर और चौड़ी हो जाती है और भारत की प्रसिद्ध ब्रह्मपुत्र नदी बनती है। तिब्बत में इसके द्वारा बनाई गई यरलुंग त्संगपो महान घाटी विश्व की सबसे गहरी और सबसे बड़ी तंग घाटी कहलाती है। प्राचीन तिब्बत की संस्कृति के कई महत्वपूर्ण केन्द्र इसी नदी के किनारे बसे हुए थे।, Robert Kelly, John Vincent Bellezza, pp.

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रुतोग ज़िला

रुतोग ज़िला (तिब्बती: རུ་ཐོག་རྫོང་, Rutog County) तिब्बत का एक ज़िला है जो उस देश के पश्चिमी हिस्से में भारत की सीमा के साथ स्थित है। तिब्बत पर चीन का क़ब्ज़ा होने के बाद यह चीनी प्रशासनिक प्रणाली में तिब्बत स्वशासित प्रदेश के न्गारी विभाग में पड़ता है। रुतोग ज़िले की राजधानी रुतोग शहर है जो तिब्बत की राजधानी ल्हासा से १,१४० किमी पश्चिम-पश्चिमोत्तर में पड़ता है। रुतोग ज़िला अक्साई चिन क्षेत्र से लगा हुआ है, जिसे भारत अपना इलाक़ा मानता है लेकिन जिसपर चीन का नियंत्रण है और जिसपर १९६२ में भारत-चीन युद्ध छिड़ा था। चीनी राष्ट्रीय राजमार्ग २१९, जो अक्साई चिन क्षेत्र से गुज़रता हुआ शिंजियांग को तिब्बत से जोड़ता है, ३४० किमी की दूरी रुतोग ज़िले में तय करता है।, George B. Schaller, pp.

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शिगात्से

शिगात्से (Shigatse, तिब्बती: གཞིས་ཀ་རྩེ་) तिब्बत का एक शहर है। ल्हासा के बाद यह चीन द्वारा नियंत्रित तिब्बत स्वशासित प्रदेश नामक प्रशासनिक इकाई का दूसरा सबसे बड़ा नगर भी है और उस प्रदेश के शिगात्से विभाग की राजधानी है। ३,८३६ मीटर (१२,५८५ फ़ुट) की ऊँचाई पर स्थित यह शहर भारत में ब्रह्मपुत्र नदी कहलाने वाली यरलुंग त्संगपो नदी और न्यांग नदी के संगम-स्थल के पास बसा हुआ है। शिगात्से तिब्बत के ऐतिहासिक उए-त्संग नामक प्रान्त की राजधानी भी हुआ करता था।Das, Sarat Chandra.

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सब्ज़ी

तिब्बत के ल्हासा शहर में सब्ज़ियों की एक मंडी कुछ सब्ज़ियाँ सब्ज़ी किसी पौधे के खाए जाने वाले हिस्से को बोलते हैं, हालाँकि बीजों और मीठे फलों को आम-तौर से सब्ज़ी नहीं बुलाया जाता। खाए जाने वाले पत्ते, तने, डंठल और जड़े अक्सर सब्ज़ी बुलाए जाते हैं। सांस्कृतिक नज़रिए से 'सब्ज़ी' की परिभाषा स्थानीय प्रथा के हिसाब से बदलती है। उदाहरण के लिए बहुत से लोग कुकुरमुत्तों (मशरूमों) को सब्ज़ी मानते हैं (हालाँकि जीववैज्ञानिक दृष्टि से यह पौधे नहीं समझे जाते) जबकि अन्य लोगों के अनुसार यह सब्ज़ी नहीं बल्कि एक अन्य खाने की श्रेणी है। कुछ सब्ज़ियाँ कच्ची खाई जा सकती हैं जबकि अन्य सब्ज़ियों को पकाना पड़ता है। आम-तौर पर सब्ज़ियों को नमक या खट्टाई के साथ पकाया जाता है लेकिन कुछ सब्ज़ियाँ ऐसी भी हैं जिन्हें चीनी के साथ पकाकर उनकी मिठाई या हलवे बनाए जाते हैं (मसलन गाजर)। .

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सिक्किम

(या, सिखिम) भारत पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक पर्वतीय राज्य है। अंगूठे के आकार का यह राज्य पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। अंग्रेजी, नेपाली, लेप्चा, भूटिया, लिंबू तथा हिन्दी आधिकारिक भाषाएँ हैं परन्तु लिखित व्यवहार में अंग्रेजी का ही उपयोग होता है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। गंगटोक राजधानी तथा सबसे बड़ा शहर है। सिक्किम नाम ग्याल राजतन्त्र द्वारा शासित एक स्वतन्त्र राज्य था, परन्तु प्रशासनिक समस्यायों के चलते तथा भारत से विलय के जनमत के कारण १९७५ में एक जनमत-संग्रह के अनुसार भारत में विलीन हो गया। उसी जनमत संग्रह के पश्चात राजतन्त्र का अन्त तथा भारतीय संविधान की नियम-प्रणाली के ढाचें में प्रजातन्त्र का उदय हुआ। सिक्किम की जनसंख्या भारत के राज्यों में न्यूनतम तथा क्षेत्रफल गोआ के पश्चात न्यूनतम है। अपने छोटे आकार के बावजूद सिक्किम भौगोलिक दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। कंचनजंगा जो कि दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है, सिक्किम के उत्तरी पश्चिमी भाग में नेपाल की सीमा पर है और इस पर्वत चोटी चको प्रदेश के कई भागो से आसानी से देखा जा सकता है। साफ सुथरा होना, प्राकृतिक सुंदरता पुची एवं राजनीतिक स्थिरता आदि विशेषताओं के कारण सिक्किम भारत में पर्यटन का प्रमुख केन्द्र है। .

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वृहद भारत

'''वृहद भारत''': केसरिया - भारतीय उपमहाद्वीप; हल्का केसरिया: वे क्षेत्र जहाँ हिन्दू धर्म फैला; पीला - वे क्षेत्र जिनमें बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ वृहद भारत (Greater India) से अभिप्राय भारत सहित उन अन्य देशों से है जिनमें ऐतिहासिक रूप से भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। इसमें दक्षिणपूर्व एशिया के भारतीकृत राज्य मुख्य रूप से शामिल है जिनमें ५वीं से १५वीं सदी तक हिन्दू धर्म का प्रसार हुआ था। वृहद भारत में मध्य एशिया एवं चीन के वे वे भूभाग भी सम्मिलित किये जा सकते हैं जिनमे भारत में उद्भूत बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ था। इस प्रकार पश्चिम में वृहद भारत कीघा सीमा वृहद फारस की सीमा में हिन्दुकुश एवं पामीर पर्वतों तक जायेगी। भारत का सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र .

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ग्यांत्से

ग्यांत्से (Shigatse, तिब्बती: རྒྱལ་རྩེ་) तिब्बत का एक शहर है। ऐतिहासिक रूप से यह ल्हासा और शिगात्से के बाद तिब्बत का तीसरा सबसे बड़ा शहर हुआ करता था लेकिन अब तिब्बत में ग्यांत्से से बड़े दस और नगर हैं। यह चुम्बी घाटी, यातोंग और सिक्किम से आने वाले ऐतिहासिक व्यापारिक मार्गों पर स्थित है।, Michael Buckley, pp.

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आली, तिब्बत

आली (Ali, 阿里) पश्चिमी तिब्बत का एक शहर है जो जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित तिब्बत स्वशासित प्रदेश नामक प्रशासनिक ईकाई के न्गारी विभाग का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। आली न्गारी विभाग के गर ज़िले में स्थित है और उस ज़िले की राजधानी भी है। यह सिन्धु नदी के आरम्भिक प्रवाह के, जिसका नाम सेंगे त्संगपो (या 'सेंगे खबब') है, पास स्थित है, इसलिये इस शहर को कभी-कभी नदी के नाम पर सेंगे-आली, या फिर चीनी लहजे में 'सेंगे त्संगपो' को बदलकर सेंगेज़ंगबो (Sênggêzangbo, 森格藏布), भी कहते हैं। चीनी सरकार सिन्धु नदी को चीनी भाषा में 'शीचुआन हे' (चीनी में 'हे' का अर्थ 'नदी' है) बुलाती है इसलिये इस शहर को शीचुआनहे (Shiquanhe, 狮泉河镇) भी कहते हैं।, Alice Albinia, pp.

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इउ-त्संग

इउ-त्संग (तिब्बती: དབུས་གཙང་, अंग्रेज़ी: Ü-Tsang) या त्संग-इउ तिब्बत के तीन पारम्परिक प्रान्तों में से एक है, जिन्हे तिब्बती भाषा में तिब्बत के तीन 'चोलका' कहा जाता है। अन्य दो प्रान्त खम और अम्दो हैं।, Ashild Kolas, Monika P Thowsen, pp.

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कुनलुन पर्वत

तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग से पश्चिमी कुनलुन पर्वतों में काराकाश नदी का नज़ारा चिंग हई प्रांत में दूर से कुनलुन पर्वतों का दृश्य कुनलुन पर्वत शृंखला (चीनी: 昆仑山, कुनलुन शान; मंगोलियाई: Хөндлөн Уулс, ख़ोन्दलोन ऊल्स) मध्य एशिया में स्थित एक पर्वत शृंखला है। ३,००० किलोमीटर से अधिक चलने वाली यह शृंखला एशिया की सब से लम्बी पर्वतमालाओं में से एक गिनी जाती है। कुनलुन पर्वत तिब्बत के पठार के उत्तर में स्थित हैं और उसके और तारिम द्रोणी के बीच एक दीवार बनकर खड़े हैं। पूर्व में यह उत्तर चीन के मैदानों में वेई नदी के दक्षिण-पूर्व में जाकर ख़त्म हो जाते हैं। कुनलुन पर्वत भारत के अक्साई चिन इलाक़े को भी तारिम द्रोणी से अलग करते हैं, हालांकि वर्तमान में अक्साई चिन क्षेत्र चीन के क़ब्ज़े में है। इस पर्वतमाला में कुछ ज्वालामुखी भी स्थित हैं। .

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कोदारी

कोदारी नेपाल-चीन सीमा पर एक गाँव है जो तिब्बत स्वशासित प्रदेश से लगा हुआ है। कोदारी बागमती अंचल के सिंधुपालचोक जिला में स्थित है। इसके दूसरी तरफ़ झांगमु कस्बा है जो तिब्बत स्वशाषित प्रदेश के न्यालम प्रदेश में स्थित है। .

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१९वें कुशक बकुला रिनपोछे

१९वें कुशक बकुला रिनपोछे (19th Kushok Bakula Rinpoche; 21 मई, 1917 - 4 नवम्बर, 2003) कुशक बकुला रिनपोछे के अवतार माने जाते हैं। वे लद्दाख के सर्वाधिक प्रसिद्ध लामाओं में से एक थे। वे भारत के अन्तरराष्ट्रीय राजनयिक भी थे। उन्होने मंगोलिया एवं रूस में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान के लिये उल्लेखनीय योगदान दिया तथा भारत में निवास कर रहे तिब्बती शरणार्थियों से उनका सम्बन्ध स्थापित किया। १९८८ में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। २००५ में लेह विमानपत्तन का नाम उनके नाम पर बकुला रिनपोछे विमानपत्तन रखा गया। .

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१९५९ का तिब्बती विद्रोह

१० मार्च १९५९ को तिब्बत पर चीन के अधिकार के विरुद्ध तिब्बत की राजधानी ल्हासा में एक विद्रोह शुरु हुआ जिसे तिब्बती विद्रोह कहा जाता है। ध्यातव्य है कि १९५१ में १७ बिन्दु समझौते के द्वारा चीन ने तिब्बत का नियंत्रण अपने हाथ में कर लिया था। यद्यपि १४वें दलाई लामा सन १९५९ में तिब्बत से बाहर निकले, किन्तु खाम और अम्बो क्षेत्रों में तिब्बती विद्रोहियों और चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष १९५६ से ही शुरू हो गया था। यह छापामार युद्ध १९६२ तक चला जिसे चीन ने अत्यन्त नृशंश तरीके के दमन द्वारा दबा दिया। १० मार्च को निर्वासित तिब्बती लोग तिब्बती विद्रोह दिवस के रूप में मनाते हैं। .

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