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लल्लू लाल

सूची लल्लू लाल

लल्लू लाल (१७६३ - १८३५) हिन्दी गद्य के चार प्रमुख स्तम्भों- (इंशा अल्ला खाँ, सदल मिश्र, मुंशी सदासुखलाल, लल्लू लाल) में से एक हैं। इनका लिखा हुआ ग्रंथ 'प्रेमसागर' है। लल्लू लाल का जन्म सन् १७६३ ई० में उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ। इनके पूर्वज गुजरात से आकर आगरा में बस गये थे। लल्लू लाल आजीविका के लिये अनेक शहरों में घूमते हुये अन्त में कलकत्ता पहुँचे। ये बहुत अच्छे तैराक थे। एक बार तैरते समय इन्होंने एक अँग्रेज को डूबने से बचाया था। बाद में उस अँग्रेज ने इनकी बहुत सहायता की। उसने इन्हें फोर्ट विलियम कालेज में हिन्दी पढ़ाने तथा हिन्दी ग्रंथों की रचना का कार्य दिलवाया। प्रेमसागर इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक है जो कि प्रारम्भिक हिन्दी खड़ीबोली का नमूना है। १८३५ ई० में कलकत्ता में इनका निधन हो गया। .

6 संबंधों: प्रेमसागर, मुंशी सदासुखलाल, लल्लू लाल, हिन्दी साहित्य का इतिहास, हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम, खड़ीबोली

प्रेमसागर

लल्लू लाल की यह कृति खड़ी बोली गद्य की आरंभिक कृतियों में से एक है। शुक्ल जी इसकी भाषा को पूर्वीपन से युक्त मानते हैं। .

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मुंशी सदासुखलाल

मुंशी सदासुखलाल (1746 - 1824) हिन्दी लेखक थे। खड़ी बोली के प्रारंभिक गद्यलेखकों में उनका ऐतिहासिक महत्व है। फारसी एवं उर्दू के लेखक और कवि होते हुए भी इन्होंने तत्कालीन शिष्ट लोगों के व्यवहार की भाषा को अपने गद्य-लेखन-कार्य के लिए अपनाया। इस भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग करके भाषा के जिस रूप को इन्होंने उपस्थित किया, उसमें खड़ी बोली के भावी साहित्यिक रूप का आभास मिलता है। अंग्रेजों के प्रभाव से मुक्त इन्होंने उस गद्य परंपरा का अनुसरण किया जो रामप्रसाद 'निरंजनी' तथा दौलतराम से चली आ रही थी। .

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लल्लू लाल

लल्लू लाल (१७६३ - १८३५) हिन्दी गद्य के चार प्रमुख स्तम्भों- (इंशा अल्ला खाँ, सदल मिश्र, मुंशी सदासुखलाल, लल्लू लाल) में से एक हैं। इनका लिखा हुआ ग्रंथ 'प्रेमसागर' है। लल्लू लाल का जन्म सन् १७६३ ई० में उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ। इनके पूर्वज गुजरात से आकर आगरा में बस गये थे। लल्लू लाल आजीविका के लिये अनेक शहरों में घूमते हुये अन्त में कलकत्ता पहुँचे। ये बहुत अच्छे तैराक थे। एक बार तैरते समय इन्होंने एक अँग्रेज को डूबने से बचाया था। बाद में उस अँग्रेज ने इनकी बहुत सहायता की। उसने इन्हें फोर्ट विलियम कालेज में हिन्दी पढ़ाने तथा हिन्दी ग्रंथों की रचना का कार्य दिलवाया। प्रेमसागर इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक है जो कि प्रारम्भिक हिन्दी खड़ीबोली का नमूना है। १८३५ ई० में कलकत्ता में इनका निधन हो गया। .

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हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य पर यदि समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ० हरदेव बाहरी के शब्दों में, हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही हिन्दी है। इस भाषा का दुर्भाग्य रहा है कि युग-युग में इसका नाम परिवर्तित होता रहा है। कभी 'वैदिक', कभी 'संस्कृत', कभी 'प्राकृत', कभी 'अपभ्रंश' और अब - हिन्दी। आलोचक कह सकते हैं कि 'वैदिक संस्कृत' और 'हिन्दी' में तो जमीन-आसमान का अन्तर है। पर ध्यान देने योग्य है कि हिब्रू, रूसी, चीनी, जर्मन और तमिल आदि जिन भाषाओं को 'बहुत पुरानी' बताया जाता है, उनके भी प्राचीन और वर्तमान रूपों में जमीन-आसमान का अन्तर है; पर लोगों ने उन भाषाओं के नाम नहीं बदले और उनके परिवर्तित स्वरूपों को 'प्राचीन', 'मध्यकालीन', 'आधुनिक' आदि कहा गया, जबकि 'हिन्दी' के सन्दर्भ में प्रत्येक युग की भाषा का नया नाम रखा जाता रहा। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश-अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य-रचना प्रारम्भ हो गयी थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या 'प्राकृताभास हिन्दी' में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था। .

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हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम

यहाँ पर हिन्दी से सम्बन्धित सबसे पहले साहित्यकारों, पुस्तकों, स्थानों आदि के नाम दिये गये हैं।.

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खड़ीबोली

खड़ी बोली वह बोली है जिसपर ब्रजभाषा या अवधी आदि की छाप न हो। ठेंठ हिंदी। आज की राष्ट्रभाषा हिंदी का पूर्व रूप। इसका इतिहास शताब्दियों से चला आ रहा है। यह परिनिष्ठित पश्चिमी हिंदी का एक रूप है। .

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