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करुणाभरण नाटक
करुणाभरण नाटक ब्रजभाषा का अत्यंत महत्वपूर्ण काव्यनाटक है। इसके रचयिता लछिराम हैं। कृष्णजीवन से संबंधित यह नाटक दोहा, चौपाई छंदों में लिखा गया है और विभिन्न अंगों में विभाजित है। अंगों का नामकरण राधा अवस्था, राधा मिलन आदि शीर्षकों में किया गया है। इसमें कृष्ण का, सूर्यग्रहण के अवसर पर, रुक्मिणी, सत्यभामा आदि के साथ कुरुक्षेत्र आना और वहीं नंद, यशोदा, राधा, गोपियों तथा गोपसमूह से उनका मिलन वर्णित है। करुणभरण का कथानक अत्यंत प्रौढ़ एवं नाट्यधर्मी है। पात्रों को मनोवैज्ञानिक भूमि पर प्रस्तुत किया गया है और उनका अंतर्द्वंद भी उभरकर सामने आता है। नाटक में मानसिक संघर्ष की अधिकता है। सत्यभामा की ईर्ष्या को केंद्रबिदु बनाकर कथानक का ताना बाना बुना गया है। भाषा सीधी सादी, सरस तथा सहज प्रवाहपूर्ण है। संवाद चुटीले हैं तथा वर्णन भी उबाऊ नहीं हैं। करुणाभरण नाटक के रचनाकाल को लेकर काफी मतभेद है। बाबू ब्रजरत्नदास (हिंदी नाट्य साहित्य, च.सं. पृ. 60) तथा डॉ॰ दशरथ ओझा इसका प्रणयनकाल 1772 वि.
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