6 संबंधों: पुरुषोत्तमदेव (वैयाकरण), बल्लाल सेन, बंगाली साहित्य, सेन राजवंश, विश्वरूप सेन, इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी।
पुरुषोत्तमदेव (वैयाकरण)
पुरुषोत्तमदेव बहुत बड़े वैयाकरण थे। इनको 'देव' नाम से भी पुकारा गया है। ये बंगाल के निवासी और बौद्ध धर्मावलंबी थे। बौद्धों और वैदिकों की अनबन पुरानी है। इन वातावरण के प्रभाव में पुरुषोत्तमदेव ने अष्टाध्यायी के सूत्रों में से वैदिक सूत्रों को अलग करके शेष सूत्रों पर भाष्य लिखा। इस भाष्य का नाम 'भाषावृत्ति' है। इस ग्रंथ का बहुत बड़ा महत्व है। देव के समय में उपलब्ध होने वाले प्रामाणिक ग्रंथों का उल्लेख भाषावृत्ति में पाया जाता है। वे ग्रंथ अब लुप्त हो गए हैं। भाषावृत्ति का प्रमाण उत्तरवर्ती वैयाकरणों ने स्वीकार किया है। बंगाल के निवासी सृष्टिधर थे। उन्होंने भाषावृत्ति की (भाषावृत्यर्थवृत्ति) टीका की है। इसमें २३ वैयाकरण उद्धृत हैं। भाषावृत्ति के निर्माण का कारण भी लिखा है। तदनुसार राजा लक्ष्मण सेन जी की प्रेरणा से बंगाल के निवासी श्री पुरुषोत्तमदेव ने भाषावृत्ति का निर्माण किया था। अतएव राजा लक्ष्मण सेन का बौद्ध होना और पुरुषोत्तमदेव का उनके आश्रित होना प्रतीत होता है। पुरुषोत्तमदेव ने जैनधर्म को भी सादर स्मरण किया है। राजा लक्ष्मण सेन सं.
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बल्लाल सेन
बल्लाल सेन बंगाल के सेन राजवंश के (1158-79 ई.) प्रमुख शासक थे। उसने उत्तरी बंगाल पर विजय प्राप्त की और मगध के पालों के विरुद्ध भी अभियान चलाया और बंगाल में पाल वंश के शासन का अन्त कर दिया। वो विजय सेन के उत्तराधिकारी थे।चित्ता रंजन मिश्रा,, बांग्लापूडीया: द नेशनल एनसाइकलोपीडिया ऑफ़ बांग्लादेश, एसिटिक सोसाइटी ऑफ़ बांग्लादेश, ढाका, अभिगमन तिथि: २८ जून २०१४ 'लघुभारत' एवं 'वल्लालचरित' ग्रंथ के उल्लेख से प्रमाणित होता है कि वल्लाल का अधिकार मिथिला और उत्तरी बिहार पर था। इसके अतिरिक्त राधा, वारेन्द्र, वाग्डी एवं वंगा वल्लाल सेन के अन्य चार प्रान्त थे। वल्ला सेन कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ संस्कृत का ख्याति प्राप्त लेखक थे। उन्होंने स्मृति दानसागर नाम का लेख एवं खगोल विज्ञानपर अद्भुतसागर लेख लिखा। उन्होंने जाति प्रथा एवं कुलीन को अपने शासन काल में प्रोत्साहन दिया। उन्होंने गौड़ेश्वर तथा निशंकर की उपाधि से उसके शैव मतालम्बी होने का आभास होता है। उनका साहित्यिक गुरु विद्वान अनिरुद्ध थे। जीवन के अन्तिम समय में वल्लालसेन ने सन्यास ले लिया। उन्हें बंगाल के ब्राह्मणों और कायस्थों में 'कुलीन प्रथा' का प्रवर्तक माना जाता है। .
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बंगाली साहित्य
बँगला भाषा का साहित्य स्थूल रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है - 1.
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सेन राजवंश
staying in bengal सेन राजवंश एक राजवंश का नाम था, जिसने १२वीं शताब्दी के मध्य से बंगाल पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। सेन राजवंश ने बंगाल पर १६० वर्ष राज किया। इस वंश का मूलस्थान कर्णाटक था। इस काल में कई मन्दिर बने। धारणा है कि बल्लाल सेन ने ढाकेश्वरी मन्दिर बनवाया। कवि जयदेव (गीत-गोविन्द का रचयिता) लक्ष्मण सेन के पंचरत्न थे। .
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विश्वरूप सेन
विश्वरूप सेन (1206 - 1225 ई॰) सेन राजवंश (बंगाल) के राजा थे। श्रेणी:सेन राजवंश के राजा.
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इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी
इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी (बांग्ला:ইখতিয়ার উদ্দিন মুহম্মদ বখতিয়ার খলজী, फारसी: اختيار الدين محمد بن بختيار الخلجي), जिसे बख्तियार खिलजी भी कहते हैं, कुतुबुद्दीन एबक का एक सैन्य सिपहसालार था। .
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