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लकड़ी

सूची लकड़ी

कई विशेषताएं दर्शाती हुई लकड़ी की सतह काष्ठ या लकड़ी एक कार्बनिक पदार्थ है, जिसका उत्पादन वृक्षों(और अन्य काष्ठजन्य पादपों) के तने में परवर्धी जाइलम के रूप में होता है। एक जीवित वृक्ष में यह पत्तियों और अन्य बढ़ते ऊतकों तक पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है, साथ ही यह वृक्ष को सहारा देता है ताकि वृक्ष खुद खड़ा रह कर यथासंभव ऊँचाई और आकार ग्रहण कर सके। लकड़ी उन सभी वानस्पतिक सामग्रियों को भी कहा जाता है, जिनके गुण काष्ठ के समान होते हैं, साथ ही इससे तैयार की जाने वाली सामग्रियाँ जैसे कि तंतु और पतले टुकड़े भी काष्ठ ही कहलाते हैं। सभ्यता के आरंभ से ही मानव लकड़ी का उपयोग कई प्रयोजनों जैसे कि ईंधन (जलावन) और निर्माण सामग्री के तौर पर कर रहा है। निर्माण सामग्री के रूप में इसका उपयोग मुख्य रूप भवन, औजार, हथियार, फर्नीचर, पैकेजिंग, कलाकृतियां और कागज आदि बनाने में किया जाता है। लकड़ी का काल निर्धारण कार्बन डेटिंग और कुछ प्रजातियों में वृक्षवलय कालक्रम के द्वारा किया जाता है। वृक्ष वलयों की चौड़ाई में साल दर साल होने वाले परिवर्तन और समस्थानिक प्रचुरता उस समय प्रचलित जलवायु का सुराग देते हैं। विभिन्न प्रकार के काष्ठ .

80 संबंधों: चमड़ा, ऊष्मा चालन, ऊष्मा चालकता, चकला, चैत्य, चूम (तम्बू), चूल्हा, टोडा, एसीटोन, ढूला, तारकसी, तंदूरी पाककला, तक्षकर्म, दम पुख्त, धरन, निर्माण सामग्री, नौइंजीनियरी, नूह, पट्टीआरा, पाड़, प्रत्यास्थता मापांक, प्राकृतिक संसाधन, प्लाइवुड, पृथ्वी, फ़र्नीचर, फ़्रांस का भूगोल, फ्रेंच वक्र, फ्लूम, बढ़ई, बाँस, बंदर सेरी बेगवान, बूमरैंग, भारतीय वानिकी संस्थान, भूमंडलीय ऊष्मीकरण, मलखंब, मस्तूल, मानविकी, मालाबार, मिकोयान-गुरेविच मिग-1, मुद्गर, रंदा, रेती, सहजीवन, सिलाई मशीन, सिगार, संरचना इंजीनियरी, संवेष्टन, सुथार, सुनम्य कलाएँ, स्की, ..., सेतु, सेलोफेन, हवन, ज़ेर्वीनोस, जूता, ईन्धन, घुड़च, वनोन्मूलन, वायु प्रदूषण, विश्व गौरैया दिवस, विंगसूट फ़्लाइंग (उड़ान), खड़ताल, गुड़िया, गैनोडर्मा, ओपल, आत्महत्या के तरीके, आरी, इंग्लिश विलो, कठपुतली, कठोरता, काष्ठ कला, काग़ज़, कुल्हाड़ी, क्रोटाइल अल्कोहल, अपघर्षक, अपघर्षी कर्तन, अलातशांति, अजमेर जैन मंदिर, उत्कीर्णन, छेदक सूचकांक विस्तार (30 अधिक) »

चमड़ा

चमड़े के आधुनिक औजारचमड़ा जानवरों की खाल को कमा कर प्राप्त की गयी एक सामग्री है। कमाना या चर्मशोधन एक प्रक्रिया है जो पूयकारी खाल को एक टिकाऊ और विभिन्न प्रयोगों मे आने वाली सामग्री में परिवर्तित कर देती है। चमड़ा बनाने में मुख्यतः गाय और भैंस की खाल का प्रयोग किया जाता है। लकड़ी और चमड़ा ही दो ऐसी सामग्री हैं जो अधिसंख्य प्राचीन तकनीकों का आधार हैं। चमड़ा उद्योग और लोम उद्योग अलग अलग उद्योग हैं और उनकी यह भिन्नता उनके द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल के महत्व से पता चलती है। जहां चमड़ा उद्योग का कच्चा माल मांस उद्योग का एक उपोत्पाद है वहीं लोम चर्म उद्योग में लोम की मांस से अधिक महत्वता है। चर्मप्रसाधन भी जानवरों की खालों का इस्तेमाल करता है, लेकिन इसमें आमतौर पर सिर और पीठ का हिस्सा ही प्रयोग में आता है। चर्म और खाल से गोंद और सरेस (जिलेटिन) का उत्पादन भी किया जाता है। .

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ऊष्मा चालन

किसी पिण्ड के अन्दर सूक्ष्म विसरण तथा कणों के टक्कर के द्वारा जो ऊष्मा का अन्तरण होता है उसे ऊष्मा चालन (Thermal conduction) कहते हैं। यहाँ 'कण' से आशय अणु, परमाणु, इलेक्ट्रान और फोटॉन से है। चालन द्वारा ऊष्मा अन्तरण ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा - सभी प्रावस्थाओं में होती है। .

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ऊष्मा चालकता

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता (थर्मल कण्डक्टिविटी) पदार्थों का वह गुण है जो दिखाती है कि पदार्थ से होकर ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं। ऊष्मा चालकता को k, λ, या κ से निरूपित करते हैं। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है उनसे होकर समान समय में अधिक ऊष्मा प्रवाहित होती है (यदि अन्य परिस्थितियाँ, जैसे ताप का अन्तर, पदार्थ की लम्बाई और क्षेत्रफल आदि समान हों)। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता बहुत कम होती हैं उन्हें ऊष्मा का कुचालक (थर्मल इन्सुलेटर) कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) को उष्मा प्रतिरोधकता (thermal resistivity) कहते हैं। .

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चकला

चकला भारतीय खाना बनाने में इस्तेमाल होनेवाला बर्तन है। प्रायः यह लकड़ी का बना होता है। किंतु यह संगमर्मर या अन्य पत्थरों का या स्टील इत्यादि का भी हो सकता है। इस पर रखकर रोटी को बेलन से बेलते हैं। .

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चैत्य

एलोरा (गुफा संख्या. १०) - अष्टभुजाकार स्तम्भों वाला चैत्य अजन्ता का चैत्य संख्या १९ अजन्ता गुफा संख्या २६ का चैत्य हाल एक चैत्य एक बौद्ध या जैन मंदिर है जिसमे एक स्तूप समाहित होता है। भारतीय वास्तुकला से संबंधित आधुनिक ग्रंथों में, शब्द चैत्यगृह उन पूजा या प्रार्थना स्थलों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जहाँ एक स्तूप उपस्थित होता है। चैत्य की वास्तुकला और स्तंभ और मेहराब वाली रोमन डिजाइन अवधारणा मे समानताएँ दिखती हैं। .

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चूम (तम्बू)

चूम (अंग्रेज़ी: Chum, रूसी: чум) रूस के साइबेरिया क्षेत्र के पश्चिमोत्तरी भाग में रहने वाली बंजारा यूराली लोगों द्वारा बनाएँ जाने वाले अस्थाई आवास तम्बूओं को कहते हैं। यह लोग अक्सर रेनडियर पालन से जीविका चलाते हैं और इन तम्बूओं को भी आम तौर से लकड़ी के खम्बों के इर्द-गिर्द रेनडियर खाल लपेट कर बनाया जाता है। .

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चूल्हा

इण्डोनेशिया का पारम्परिक चूल्हा। भारत में भी कुछ इसी प्रकार के चूल्हें ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी उपयोग किये जाते हैं। गैस चूल्हा चूल्हा उष्मा का वह स्रोत है जिससे प्राप्त उष्मा का प्रयोग भोजन पकाने में किया जाता है। चूल्हे कई प्रकार के होते हैं जैसे, मिट्टी का चूल्हा, अंगीठी या सिगड़ी, गैस का चूल्हा और सूक्ष्मतरंग चूल्हा, सौर चूल्हा आदि और इनमे प्रयोग होने वाले ऊर्जा के स्रोत भी भिन्न हो सकते हैं, जैसे लकड़ी, गोबर के उपले, कोयला, द्रवित पेट्रोलियम गैस सौर ऊर्जा और बिजली आदि। OffeneHerdstelleMainfränkischesMuseumWürzburgL1050585 (3).jpg|जर्मनी के एक संग्रहालय में रखा हुआ खुला चूल्हा Noć muzeja 2015, Čakovec - stari štednjak iz 19.st.jpg|right|thumb|300px|बुडापेस्ट में निर्मित १९वीं शताब्दी का एक चूल्हा। इस चूल्हे को २०१५ में क्रोशिया में प्रदर्शित किया गया था। .

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टोडा

श्रेणी:भारत की जनजातियाँ श्रेणी:केरल की जनजातियां टोडा जनजाति भारत की निलगिरी पहाड़ियों की सबसे प्राचीन और असामान्य जनजाति है। टोडा को कई नामों से जाना जाता है जैसे टूदास, टूडावनस और टोडर। टोडा नाम 'टुड' शब्द, टोड जनजाति के पवित्र टुड पेड़ से लिया गया माना जाता है। टोडा लोगो की अपनी भाषा है और उनके पास गुप्त रीति-रिवाजों और अपाना नियम हैं। टोड के लोगा प्रकृति ओर पहाड़ी देवताओं की पूजा करते हे, जैसे भगवान अमोद और देवी टीकीरजी। .

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एसीटोन

ऐसीटोन (Acetone) एक रंगहीन, अभिलाक्षणिक गंधवाला, ज्वलनशील द्रव है जो पानी, ईथर और ऐलकोहल में मिश्रय है। यह काष्ठ के भंजक आसवन (destructive distillation) से प्राप्त पाइरोलिग्नियस अम्ल का घटक है। इसका मुख्य उपयोग विलायक के रूप में होता है। यह फिल्मों, शक्तिशाली विस्फोटकों, आसंजकों, काँच के समान एक प्लास्टिक (पर्स्पेक्स) और ओषधियों के निर्माण में काम आता है। अति शुद्ध ऐसीटोन का उपयोग इलेक्ट्रानिकी उद्योग में विभिन्न पुर्जो को सुखाने और उन्हें साफ करने के लिए होता है। एसीटोन का सिस्टेमैटिक नाम 'प्रोपेनोन' (propanone) है। इसका अणुसूत्र (CH3)2CO है। यह सबसे सरल कीटोन है। .

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ढूला

कालिब, साँचा, आड़ की दीवार, डाट लगाते समय उसको टेक तथा रूप देने के लिये बनाया गया लकड़ी, लोहे आदि का अस्थायी ढाँचा, जो डाट या छत पूरी तथा स्वावलंबी हो जानेपर हटा दिया जाता है, ढूला (Centring) कहलाता है। डाट के पत्थर या ईंटें एक दूसरे पर अपना भार डालती हुई अंत में सारा भार किनारे के आलंबों पर पहुँचाती हैं और उस भार के फलस्वरूप उत्पन्न दबाव के कारण यथास्थान टिकी रहती हैं। कितु यह क्रिया तभी संपन्न हा सकती है, जब डाट पूरी हो जाय। अत: पूरी होने तक उन ईटों या पत्थरों को यथास्थान स्थिर बनाए रखने के लिये ढूला आवश्यक होता है। अनिवार्यत: ढूले की ऊपरी सतह डाट के तले का जवाब होती है। छोटी डाटों की उठान यदि कम हो तो बहुघा एक ही लकड़ी के ऊपर उन्हें ढाल लेते हैं, अन्यथा दो तख्तों के ऊपर चपतियाँ लगाकर ढूला बना लेते हैं। ज्यादा ऊँची और बड़ी डाटों के ढूले कैंची के सिद्धांत पर बनाए जाते हैं। बहुधा एक निचली तान होती है और दुहरे तख्तों या धज्जियों को जोड़कर मजबूत कैंची का रूप दिया जाता है। इनके जोड़ साल-चूलवाले नहीं होते, बल्कि कीलां और काबलों से कसे रहते हैं, फिर भी वे इतने मजबूत बनाए जाते हैं कि अपने ऊपर पड़नेवाला सारा भार सह सकें। ऐसी दो, या आवश्यकतानुसार अधिक, कैंचियाँ उचित अंतर से रखकर ऊपर चपतियाँ लगा दी जाती हैं। गढ़ी ईंट की डाट के लिये ये चपतियाँ सटी हुई, अनगढ़ी ईट की डाट के लिये कुछ अंतर से और पत्थर की डाट के लिये और भी अधिक अंतर से लगाई जाती हैं। सारा ढूला किनारों पर, और यदि आवश्यकता हुई तो बीच में भी, मजबूत बल्लियों या थूनियों पर टिका रहता है, जिनके ऊपर बंद होनेवाली पच्चड़े लगी रहती हैं। ढूला खोलने में सुविधा के लिये तो ये पच्चड़े जरूरी हैं ही, एक और दृष्टि से भी ये महत्वपूर्ण है: डाट पूरी हो जाने पर पच्चड़ों द्वारा ढूला थोड़ा सा ढीला कर दिया जाता है ताकि डाट की ईंटें या पत्थर परस्पर सटकर बैठ जायँ। इसे डाट का बैठना कहते हैं। कहीं कहीं पच्च्चड़ो के स्थान पर थूनियों के नीचे बालू भरी बोरियाँ चिपटी करके रख दी जाती है। ढूला ढीला करने के लिये थोड़ी बालू निकालने भर की आवश्यकता होती है। इस प्रकार बिना चोट या धक्का पहुँचाए ही काम हो जाता है। छत की डाटों के ढूले छत की गर्डरों से ही लटका दिए जाते हैं। दीवारों पर कड़ियाँ या बल्लियाँ रखकर भी उनपर ढूला बनाया जाता है। आजकल प्रबलित कंक्रीट या प्रबलित चिनाई की छतें बहुत बनाई जाती हैं। इनके ढालने के लिये भी ढूला अनिवार्य है। बहुधा लकड़ी का ढूला बनाया जाता है, जिसकी ऊपरी सतह रंदा करके साफ कर दी जाती है। बहुत अच्छे काम में लाहे की चादरें लगाई जाती हैं। ये लकड़ी से ज्यादा टिकाऊ होती हैं, सरलता से लगाई और निकाली जा सकती हैं और यदि एक जेसी बहुत सी छतें ढालनी हों तो ये सस्ती भी पड़ती हैं। मामूली काम में जहाँ लकड़ी या लोहा लगाने की सुविधा नहीं होती, मिट्टी का (कच्चा) ढूला ही बना लिया जाता है। लकड़ी के, या ईंट की सूखी चिनाई के खंभों के ऊपर कड़ियाँ रखकर ऊपर बाँस, फूस आदि से पाटकर मिट्टी बिछा देते हैं। इसपर मामूली सीमेंट वाले मसाले का पलस्तर करके ठीक सतह बना ली जाती है। सतह पर चूना पोत देने से बाद में छत का तला साफ करने में सुविधा रहती है। प्रबलित चिनाई की छत के लिये बहुधा ऐसा ही ढूला, और वह भी प्राय: बिना पलस्तर का, बनाया जाता है। सपाट छतों के ढूले किनारों की अपेक्षा बीच में कुछ ऊँचे रखे जाते हैं, ताकि ढूले के, या छत के, बैठान लेने पर छत लटकी हुई न दिखाई दे। प्रति फुट पाट के लिये १/२ इंच की ऊँचाई प्रायः पर्याप्त मानी जाती है। धरनों के ढूलों में यह ऊँचाई इसकी आधी ही रखी जाती है। .

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तारकसी

तारकसी कला का मात्र केंद्र भरत के मैनपुर राज्य में है। तारकसी एक काष्ठकला है। पूरी दुनिया में तारकसी कला का मैनपुरी ही एक मात्र केंद्र है। तारकसी लकड़ी पर की जाने वाली एक तरह की नक्काशी है जो धातु के तारों से की जाती है। इसके लिए लकड़ी को खास तरह से तैयार किया जाता है जो एक जटिल और लम्बी प्रक्रिया है। शीशम की लकड़ी अधिक मजबूत होती है इसलिए इस लकड़ी का हमारे दैनिक कार्यों में सबसे अधिक प्रयोग है। .

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तंदूरी पाककला

तंदूरी पाककला तंदूरी पाककला मिट्टी की बेलनाकार भट्टी या तंदूर में लकड़ी के कोयले की आंच पर भोजन पकाने की एक पद्धति है। .

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तक्षकर्म

तक्षण लकड़ी, हाथीदाँत या अन्य सामग्री को अपनी कलात्मक कुशलता से तरह-तरह के रूपों में परिवर्तित कर देना एक महत्त्वपूर्ण कला है। जो लकड़ी का कार्य करते हैं उन्हें बढ़ई कहते हैं। यह कला चौंसठ कलाओं के अन्तर्गत आती है। श्रेणी:चौंसठ कला.

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दम पुख्त

दम पुख्त एक लखनवी व्यंजन पकाने की विधि है। मूलतः इसके द्वारा मांसाहारी व्यंजन पकाये जाते हैं। 'दमपुख़्त' का कायदा है कि गोश्त को मसालों के साथ 4-5 घंटे तक हल्की आँच पर दम दिया जाता है (सारे मसालो जैसे तले हुए प्याज, हरी मिर्च, अदरख-लहसुन और खड़े मसालों को एक साथ पीस कर बरतन में गोश्त के साथ ढक दिया जाता है और ढक्कन के किनारों को गीले आटे से सील कर उसकी भाप (दम) में पकने दिया जाता है)। अगर लकड़ी के कोयले पर इसे पकाया जाए तो इसका असली ज़ायका पता चलता है, पकने के बाद इसे सूखे मेवे, धनिया-पुदीना से सजा रूमाली रोटियों के साथ पेश किया जाता है। श्रेणी:लखनऊ का खाना श्रेणी:भारतीय व्यंजन श्रेणी:अवधी खाना.

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धरन

समान रूप से वितरित लोड के कारण एक धरन में नमन (बेन्डिंग) धरन (Beam) अथवा धरनी, धरणी, या कड़ी, संरचना इंजीनियरी में प्राय: लकड़ी आदि के उस अवयव को कहते हैं जो इमारत में किसी पाट पर छत (पाटन) आदि का कोई भारी बोझ अपनी लंबाई पर धारण करते हुए उसे अपने दोनों सिरों द्वारा सुस्थिर आधारों (आलंबों) तक पहुँचता है। लकड़ी के अतिरिक्त अन्य पदार्थों की भी धरनें बनती हैं। लोहे की धरनें गर्डर कहलाती हैं। प्रबलित कंक्रीट (Reinforced concrete) की धरनें प्राय: छत के स्लैब के साथ समांग ढाली जाती हैं। पन्ना (मध्यप्रदेश, भारत) की पत्थर की खानों के निकट पत्थर की धरनों का प्रयोग भी असामान्य नहीं हैं। .

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निर्माण सामग्री

बहुत से प्राकृतिक पदार्थ (मिट्टी, बालू, लकड़ी, चट्टानें, पत्तियाँ, आदि) निर्माण के लिये प्रयुक्त होते रहे हैं। इसके अलावा अब अनेक प्रकार के कृत्रिम या मानव-निर्मित पदार्थ भी निर्माण के लिये प्रयोग किये जाने लगे हैं; जैसे सीमेंट, इस्पात, अलुमिनियम, आदि। .

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नौइंजीनियरी

'अर्गोनॉट' नामक फ्रांसीसी जहाज का नियंत्रण कक्ष (कन्ट्रोल रूम) प्राकृतिक गैस के उत्पादन के लिये '''P-51''' नामक मंच: ऐसे मंचों का निर्मान भी नौइंजीनियरी के अन्तर्गत आता है। नौइंजीनियरी (Naval engineering) प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसमें समुद्री जहाजों एवं अन्य मशीनों के डिजाइन एवं निर्माण में विशिष्टि (स्पेसलाइजेशन) प्रदान की जाती है। इसके अलावा किसी जलयान पर नियुक्त उन व्यक्तियों (क्रिउ मेम्बर्स) को भी नौइंजीनियर (नेवल इंजीनियर) कहा जाता है जो उस जहाज को चलाने एवं रखरखाव के लिये जिम्मेदार होते हैं। इसके अलावा नौइंजीनियरों को जहाज का सीवेज, प्रकाश व्यवस्था, वातानुकूलन एवं जलप्रदाय व्यवस्था भी देखनी पड़ती है। .

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नूह

नूह (इस्लाम में) या नोआ (Noah) इब्राहीम में श्रद्धा रखने वाले धर्मों (ईसाईयत, यहूदी और इस्लाम) के एक प्रमुख संदेशवाहक और पूर्वज थे। इनको जलप्रलय के समय न्यायोचित प्राणियों को बचाने के लिए जाना जाता है। जिस नाव पर सवार होकर सब प्राणी बचे उसको नोआ की नाव (Ark of Noah, कश्ती नूह) नाम से जाना जाता है। .

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पट्टीआरा

पट्टीआरा पट्टीआरा से काम करते हुए जिस प्रकार मशीनों को चलाने के लिये चालक पुली से चालित पुली पर चमड़े की पट्टी चढ़ाकर काम लिया जाता है, उसी प्रकार पट्टीआरा (Band Saw) मशीन में समान व्यासवाली चालक और चालित पुली पर इस्पात की पट्टी चढ़ाकर, जिसके एक किनारे अथवा दोनों किनारों पर दाँत बने होते हैं, लकड़ी, लोहा आदि धातुओं, रबर, प्लास्टिक आदि पदार्थ और यहाँ तक कि सूखा बरफ और मांस आदि, काटने का काम किया जाता है। भिन्न भिन्न पदार्थो को काटने के लिये आरे की पट्टी की चौड़ाई, मोटाई, प्रति इंच दाँतों की संख्या और उसके घूमने की गति भिन्न-भिन्न होती है। कटाई की इस विधि का आविष्कार इंगलैण्ड में सर्वप्रथम विलियम न्यूबेरी ने सन्‌ १८०८ में किया था। आरंभ में इस प्रकार के आरे का बताना बड़ा ही व्ययसाध्य कार्य था और काम भी बड़ी मंद गति से होता था। आजकल तो यह विशालोत्पादन (mass production) का एक साधारण सा उपकरण समझा जाता है। इन मशीनों पर इंच से लेकर इंच तक चौड़ी आरी की पट्टी चढ़ाकर, विविध पदार्थों के तख्तों को अनेक प्रकार की टेढ़ी मेढ़ी आकृतियों में काटा जा सकत है। इसकी मेज को यांत्रिक विधि से तिरछा कर, तिरछे किनारे भी काटे जा सकते हैं और उनके साथ उचित प्रकार की गाइडें और स्वचल प्रयुक्तियाँ लगाकर, काटे जानेवाले सामान को आगे पीछे स्वत: भी चलाया जा सकता है, जिससे यंत्र संचालक का काम सरल हो जाता है। जिन पट्टीआरों के दोनों किनारों पर दाँत होते हैं, सामान को आगे सरकते और पीछे लौटते समय दोनों ओर से काट सकते हैं, जिससे समय की काफी बचत हो जाती है। श्रेणी:औज़ार.

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पाड़

बांस के पाड़ बहुत अधिक ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं जापान में विनियमन के तहत रखरखाव/मरम्मत के बड़े पैमाने पर आवधिक (हर 10-15 वर्ष) में सम्मिलित.ज्यादातर मामलों में पूरी इमारत को आसान काम और सुरक्षा के लिए इस्पात के मचान और जाल से ढक दिया जाता है। आम तौर पर यह योजना निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार3-5 सप्ताह तक जारी रहता है। मचान, टोक्यो स्काई ट्री निर्माण के आरंभ होने के बाद 10 महीने.i मचान एक अस्थाई ढांचा (विन्यास) है जिसका उपयोग इमारतों और अन्य बड़ी संरचनाओं के या मरम्मत में लोगों एवं सामग्रियों की सहायता के लिए किया जाता है। आमतौर पर यह धातु की पाइपों या नलियों की एक प्रमापीय प्रणाली है, हालांकि यह अन्य सामग्रियों से भी बनाया जा सकता है। चीन गणराज्य (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना) जैसे एशिया के कुछ देशों में अभी भी बांस का प्रयोग किया जाता है। पाड़ (Scaffolding या staging) भवननिर्माण में काम आनेवाली वह अस्थायी संरचना है जिसपर कामगरों तथा उनकी सामग्री को उनके काम की जगह के निकट पहुँचानेवाला मचान रखा जाता है। पाड़ का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। प्रायः यह धातु की पाइपों या नलों से बनी होती है हालांकि यह बाँस आदि अन्य सामग्रियों से भी बनाया जा सकता है। इस अस्थायी संरचना से लगभग आठ फुट मध्यांतर पर खड़ी बल्लियाँ होती हैं, जो चार-चार पाँच-पाँच फुट की ऊँचाई पर क्षैतिज आड़ों द्वारा परस्पर संबंधित रहती हैं। एक ओर इन आड़ों पर तथा दूसरी ओर दीवार में बने छेदों पर, चार चार फुट की दूरी पर आड़ी लकड़ियाँ रखी रहती हैं, जिन्हें 'पेटियाँ' कहते हैं। लकड़ी के तख्ते, जिनकी चाली बनती है, इन्हीं पेटियों पर रखे रहते हैं। चालियाँ प्राय: पाँच पाँच फुट लंबी होती हैं। पत्थर की चिनाई के लिये खड़ी बल्लियों की दो पंक्तियाँ लगती हैं: एक दीवार से सटी हुई तथा दूसरी उससे पाँच फुट के अंतर पर। अन्य पेटियाँ दोनों सिरों पर आड़ी के ऊपर रखी रहती हैं। इस प्रकार यह पाड़ दीवार से पूर्णतया अनाश्रित होती हैं, क्योंकि पत्थर की चिनाई में नियमित अंतर पर छेद छोड़ रखना संभव नहीं। जैसे-जैसे काम आगे बढ़ता है, चालियाँ भी ऊँची उठाई जाती रहती हैं। इसके लिये यदि आवश्यकता होती है, भी अतिरिक्त टुकड़े जोड़कर बल्लियाँ लंबी कर ली जाती हैं। पाड़ में लंबाई की दिशा में स्थिरता लाने के लिये, विकर्ण पेटियाँ भी लगाई जाती हैं। बल्लियाँ, आड़ें तथा पेटियाँ परस्पर रस्सी से कसकर बाँध दी जाती हैं। कीलें, यदि कभी लगाई भी जाती हैं, तो बहुत कम। रस्सी बाँधनेवाले बंधानी विशेष कुशल होने चाहिए, क्योंकि इसमें काफी समय और कौशल लगता है। फिर भी रस्सी में सरकने, ढीली पड़ने, घिस जाने और कट जाने की संभावनाएँ रहती ही हैं। हाल में बड़े-बड़े कामों में इसके बजाय अधिक वैज्ञानिक साधन काम में आने लगे हैं। 'स्कैफिक्सर' बंधन में इस्पात की जंजीर और बंधन की कौशलपूर्ण युक्तियों का संमिश्रण होता है। इसके प्रयोग से सुरक्षा अधिक रहती है और समय कम लगता है। नलोंवाली पाड़ - यह स्वकृत पाड़ की एक अत्यंत सुधरी प्रणाली है, जिसें इस्पात के लगभग दो इंच मोटे नल स्वकृत योजकों द्वारा जोड़े जाते हैं। ऐसी पाड़ जल्दी से और आसानी से खड़ी की जा सकता तथा हटाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त, इसमें पाड़ का एक भाग दीवार में रखने के लिये छेद छोड़ने के बजाय, किसी संधि में थोड़ा सहारा दे देना ही पर्याप्त होता है। निलंबित पाड़ - इस्पात के ढाँचेवाली रचना के लिये मशीन द्वारा ऊँची नीची की जा सकनेवाली भारी निलंबित पाड़ प्राय: उपयुक्त होती है। यह ऊपर बाहुधरनों से तार के रस्सों द्वारा लटकाई जाती है। गंत्री - जहाँ रचना में लगनेवाले प्रस्तरखंड बहुत बड़े हों, जिन्हें राज आसानी से घर उठा न सकें और उत्थापक रस्साकुप्पी का प्रयोग होना हो, वहाँ मंत्री काम आती है। मंच या गंत्री चौकोर लकड़ी से उसी प्रकार बनाई जाती है, जिस प्रकार राज की पाड़; किंतु इसमें दीवार की दोनों ओर खड़े बल्लों की एक एक पंक्ति होती है। इनके ऊपर लंबी लकड़ियाँ या वाहक लगे रहते हैं, जिनपर लोहे की पटरी जड़ी रहती है। खड़े बल्लों के बीच में, उनपर आनेवाले भार तथा उनके आकार के अनुसार १० से लेकर २० फुट तक का अंतर रहता है। एक चलमंच, जिसपर उत्थापक काँटा लगा रहता है, पटरियों पर गंत्री की लंबाई के समांतर चलता है। मंच पर भी पटरियाँ जड़ी रहती है, जिनपर काँटा गंत्री की लंबाई की लंबवत् दिशा में चल सकता है। इस प्रकार गंत्री से घिरे क्षेत्र में प्रत्येक स्थान तक काँटा पहुँच सकता है। .

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प्रत्यास्थता मापांक

तन्य पदार्थ का प्रतिबल-विकृति वक्र यंग मापांक (Young's modulus) या प्रत्यास्थता मापांक (modulus of elasticity) एक संख्या है जो बताती है कि किसी वस्तु या पदार्थ पर बल लगाकर उसका आकार बदलना कितना कठिन है। इसका मान वस्तु के प्रतिबल-विकृति वक्र (stress–strain curve) के प्रवणता के बराबर होता है। परिभाषा के रूप में, .

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प्राकृतिक संसाधन

Marquesas Islands) प्राकृतिक संसाधन वो प्राकृतिक पदार्थ हैं जो अपने अपक्षक्रित (?) मूल प्राकृतिक रूप में मूल्यवान माने जाते हैं। एक प्राकृतिक संसाधन का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है की कितना पदार्थ उपलब्ध है और उसकी माँग (demand) कितनी है। प्राकृतिक संसाधन दो तरह के होते हैं-.

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प्लाइवुड

स्प्रूस से बना हुआ 'सॉफ्टवुड प्लाईवुड' प्लाईवुड ऐसे बनती है परतदार लकड़ी या प्लाईवुड (जर्मन: Sperrholz, अंग्रेजी: Plywood, फ्रेंच: Contreplaqué) लकड़ी की अनेक पतली चादरों (परतों) से निर्मित एक प्रकार का कृत्रिम काष्ठ है। परतें परस्पर चिपकाई जाती हैं ताकि अधिक मजबूती के लिए आसन्न परतों के बीच लकड़ी के तंतु एक दूसरे से समकोण पर रहें। आमतौर पर परतें विषम संख्या में होती हैं क्योंकि समरूपता के कारण बोर्ड के मुड़ने की संभावना कम हो जाती है। .

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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फ़र्नीचर

फर्नीचर भवनों, दुकानों, कार्यालयों आदि के अन्द्र मानव उपयोग (बैठने, सोने, आदि) में आने वाली वस्तुओं को फर्नीचर कहते हैं। इसमें कुर्सी, मेज, सोफा, पलंग आदि आदि हैं। इसके अन्तर्गत प्रायः वे चीजें नहीं आतीं जो 'अचल' हों (जैसे दीवार में जड़ी हुई आलमारी)। फर्नीचर लकड़ी, धातु, प्लास्टिक आदि से बनाये जाते हैं। .

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फ़्रांस का भूगोल

कोई विवरण नहीं।

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फ्रेंच वक्र

फ्रेंच वक्र (French curve) किसी धातु, लकड़ी या प्लास्टिक के बने फर्मा (template) होते हैं जिनमें तरह-तरह के वक्र होते हैं। इनका उपयोग हाथ से (कम्प्यूटर या किसी मशीन से नहीं) विभिन्न आकार वाली निष्कोण वक्र बनाने में किया जाता है।.

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फ्लूम

फ्लूम भारत के धौलीगंगा परियोजना के लिए फ्लूम निर्माण अंग्रेजी का फ्लूम (Flume) शब्द प्रारंभ में लकड़ी या अन्य पदार्थ की बनाई कृत्रिम 'पानी की नालिका' के लिए प्रयुक्त होता था। अब किसी सामान्य आकारवाले जलमार्ग को संकीर्ण करना तथा संकीर्ण जलमार्ग को पुन: सामान्य आकार में परिवर्तित करना नालिका बनाना या फ्लूमिंग (fluming) कहलाता है। नहरों के निर्माण में बहुधा नदी-नाले अदि पार करने पड़ते हैं। उनमें कृत्रिम जलवाही सेतु तथा साइफनों की डिजाइन में नालिका का प्रयोग करने से बड़ी बचत होती है। इसके अतिरिक्त पुल आदि पक्के कामों से बड़ी बचत होती है। इसके अतिरिक्त पुल आदि पक्के कामों के निर्माण में भी नालिकाओं के प्रयोग से व्यय कम हो जाता है। अत: नालिकाविधि इंजीनियरी का महत्वपूर्ण पहलू है। .

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बढ़ई

बढ़ई काष्ठकारी से सम्बन्धित औजार लकड़ी का काम करने वाले लोगों को बढ़ई या 'काष्ठकार' (Carpenter) कहते हैं। ये प्राचीन काल से समाज के प्रमुख अंग रहे हैं। घर की आवश्यक काष्ठ की वस्तुएँ बढ़ई द्वारा बनाई जाती हैं। इन वस्तुओं में चारपाई, तख्त, पीढ़ा, कुर्सी, मचिया, आलमारी, हल, चौकठ, बाजू, खिड़की, दरवाजे तथा घर में लगनेवाली कड़ियाँ इत्यादि सम्मिलित हैं। .

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बाँस

बाँस, ग्रामिनीई (Gramineae) कुल की एक अत्यंत उपयोगी घास है, जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पाई जाती है। बाँस एक सामूहिक शब्द है, जिसमें अनेक जातियाँ सम्मिलित हैं। मुख्य जातियाँ, बैंब्यूसा (Bambusa), डेंड्रोकेलैमस (नर बाँस) (Dendrocalamus) आदि हैं। बैंब्यूसा शब्द मराठी बैंबू का लैटिन नाम है। इसके लगभग २४ वंश भारत में पाए जाते हैं। बाँस एक सपुष्पक, आवृतबीजी, एक बीजपत्री पोएसी कुल का पादप है। इसके परिवार के अन्य महत्वपूर्ण सदस्य दूब, गेहूँ, मक्का, जौ और धान हैं। यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन (२४ घंटे) में १२१ सेंटीमीटर (४७.६ इंच) तक बढ़ जाती हैं। थोड़े समय के लिए ही सही पर कभी-कभी तो इसके बढ़ने की रफ्तार १ मीटर (३९ मीटर) प्रति घंटा तक पहुँच जाती है। इसका तना, लम्बा, पर्वसन्धि युक्त, प्रायः खोखला एवं शाखान्वित होता है। तने को निचले गांठों से अपस्थानिक जड़े निकलती है। तने पर स्पष्ट पर्व एवं पर्वसन्धियाँ रहती हैं। पर्वसन्धियाँ ठोस एवं खोखली होती हैं। इस प्रकार के तने को सन्धि-स्तम्भ कहते हैं। इसकी जड़े अस्थानिक एवं रेशेदार होती है। इसकी पत्तियाँ सरल होती हैं, इनके शीर्ष भाग भाले के समान नुकीले होते हैं। पत्तियाँ वृन्त युक्त होती हैं तथा इनमें सामानान्तर विन्यास होता है। यह पौधा अपने जीवन में एक बार ही फल धारण करता है। फूल सफेद आता है। पश्चिमी एशिया एवं दक्षिण-पश्चिमी एशिया में बाँस एक महत्वपूर्ण पौधा है। इसका आर्थिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इससे घर तो बनाए ही जाते हैं, यह भोजन का भी स्रोत है। सौ ग्राम बाँस के बीज में ६०.३६ ग्राम कार्बोहाइड्रेट और २६५.६ किलो कैलोरी ऊर्जा रहती है। इतने अधिक कार्बोहाइड्रेट और इतनी अधिक ऊर्जा वाला कोई भी पदार्थ स्वास्थ्यवर्धक अवश्य होगा। ७० से अधिक वंशो वाले बाँस की १००० से अधिक प्रजातियाँ है। ठंडे पहाड़ी प्रदेशों से लेकर उष्ण कटिबंधों तक, संपूर्ण पूर्वी एशिया में, ५०० उत्तरी अक्षांश से लेकर उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिम में, भारत तथा हिमालय में, अफ्रीका के उपसहारा क्षेत्रों तथा अमेरिका में दक्षिण-पूर्व अमेरिका से लेकर अर्जेन्टीना एवं चिली में (४७० दक्षिण अक्षांश) तक बाँस के वन पाए जाते हैं। बाँस की खेती कर कोई भी व्यक्ति लखपति बन सकता है। एक बार बाँस खेत में लगा दिया जायें तो ५ साल बाद वह उपज देने लगता है। अन्य फसलों पर सूखे एवं कीट बीमारियो का प्रकोप हो सकता है। जिसके कारण किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। लेकिन बाँस एक ऐसी फसल है जिस पर सूखे एवं वर्षा का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। बाँस का पेड़ अन्य पेड़ों की अपेक्षा ३० प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन छोड़ता और कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन डाईऑक्साइड खींचता है और रात में आक्सीजन छोड़ता है। .

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बंदर सेरी बेगवान

बंदर सेरी बेगवान(जावी: بندر سري بڬاوان) जो पूर्व में ब्रूनेई टाउन के रूप में जाना जाता है, ब्रुनेई सल्तनत की राजधानी और सबसे बड़ा शहर हैं।शहर की अनुमानित आबादी 100,700 है, और पूरे ब्रुनेई-मुरा जिले सहित, महानगरीय क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 279,924 हैं। .

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बूमरैंग

बूमरैंग (Boomerang) एक प्रकार का अस्त्र है, जिसका उपयोग प्राचीन मिस्र निवासी युद्ध और शिकार के लिए करते थे और ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी आज भी इसी रूप में इसका उपयोग करते हैं। .

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भारतीय वानिकी संस्थान

भारतीय वानिकी संस्थान, का एक संस्थान है और भारत में वानिकी शोध के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है। यह देहरादून, उत्तराखण्ड में स्थिर है। इसकी स्थापना १९०६ में की गई थी और यह अपने प्रकार के सब्से पुराने संथानों में से एक है। १९९१ में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा डीम्ड विश्वविद्यालय घोषित कर दिया गया। भारतीय वानिकी संस्थान ४.५ किमी² के क्षेत्रफल में फैला हुआ है, बाहरी हिमालय की निकटता में। मुख्य भवन का वास्तुशिल्प यूनानी-रोमन और औपनिवेशिक शैली में बना हुआ है। यहाँ प्रयोगशालाएँ, एक पुस्तकालय, वनस्पतिय-संग्राह, वनस्पति-वाटिका, मुद्रण - यंत्र और प्रयोगिक मैदानी क्षेत्र हैं जिनपर वानिकी शोध किया जाता है। इसके संग्रहालय, वैज्ञानिक जानकारी के अतिरिक्त, पर्यटकों के लिए आकर्षण भी है। एफ़आरआई और कॉलेज एरिया प्रांगण एक जनगणना क्षेत्र है, उत्तर में देहरादून छावनी और दक्षिण में भारतीय सैन्य अकादमी के बीच। टोंस नदी इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है। देहरादून के घण्टाघर से इस संस्थान की दूरी लगभग ७ किमी है। भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को यहाँ प्रशिक्षण दिया जाता है, क्योंकि भारतीय वानिकी शोध और शिक्षा परिषद जो इस संस्थान का संचालन करता है आईएफ़एस भी चलाता है और इसके अतिरिक्त भारतीय वन्यजीव संस्थान और भारतीय वन प्रबन्धन संस्थान भी संचालित करता है। एफ़आरआई में एक वानिकी संग्रहालय भी है। यह प्रतिदिन प्रातः ९:३० से सांय ५:०० बजे तक खुला रहता है और प्रवेश शुल्क है १५ रू प्रति व्यक्ति और वाहनों के लिए भी नाममात्र का शुल्क है। इस संग्रहालय में छः अनुभाग हैं.

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण

वैश्‍विक माध्‍य सतह का ताप 1961-1990 के सापेक्ष से भिन्‍न है 1995 से 2004 के दौरान औसत धरातलीय तापमान 1940 से 1980 तक के औसत तापमान से भिन्‍न है भूमंडलीय ऊष्मीकरण (या ग्‍लोबल वॉर्मिंग) का अर्थ पृथ्वी की निकटस्‍थ-सतह वायु और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्‍दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है। पृथ्‍वी की सतह के निकट विश्व की वायु के औसत तापमान में 2005 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± 0.18 °C (1.33 ± 0.32 °F) की वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन पर बैठे अंतर-सरकार पैनल ने निष्कर्ष निकाला है कि "२० वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसत तापमान में जो वृद्धि हुई है उसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा निर्मित ग्रीनहाउस गैसें हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को 'ग्लोबल वार्मिंग' कहा जा रहा है। हमारी धरती सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं जो लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव। आईपीसीसी द्वारा दिये गये जलवायु परिवर्तन के मॉडल इंगित करते हैं कि धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21वीं शताब्दी के दौरान और अधिक बढ़ सकता है। सारे संसार के तापमान में होने वाली इस वृद्धि से समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम (extreme weather) में वृद्धि तथा वर्षा की मात्रा और रचना में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के अन्य प्रभावों में कृषि उपज में परिवर्तन, व्यापार मार्गों में संशोधन, ग्लेशियर का पीछे हटना, प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा आदि शामिल हैं। .

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मलखंब

मलखम्ब का प्रदर्शन करती हुई एक मलखम्ब टीम मलखम्ब भारत का एक पारम्परिक खेल है जिसमें खिलाड़ी लकड़ी के एक उर्ध्व खम्भे या रस्सी के उपर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। वस्तुतः इसमें प्रयुक्त खम्भ को 'मल्लखम्भ' ही कहा जाता है। 'मलखम्ब' (शुद्ध, 'मल्लखम्भ') दो शब्दों से मिलकर बना है - 'मल्ल' (बलवान या योद्धा) तथा 'खम्भ' (खम्भा)। .

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मस्तूल

मस्तूल (mast) एक स्थिरता से खड़े हुए लम्बें खम्बे को कहते हैं, विशेषकर नौकाओं में उन खम्बों को जिनपर पाल (sail) लगाया जाता है। अक्सर इन्हें सहारा देने के लिये गाई तारों (guy wires) का प्रयोग किया जाता है। आमतौर में मस्तूल लकड़ी या धातु के बने हुए होते हैं। .

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मानविकी

सिलानिओं द्वारा दार्शनिक प्लेटो का चित्र मानविकी वे शैक्षणिक विषय हैं जिनमें प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मुख्यतः अनुभवजन्य दृष्टिकोणों के विपरीत, मुख्य रूप से विश्लेषणात्मक, आलोचनात्मक या काल्पनिक विधियों का इस्तेमाल कर मानवीय स्थिति का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन और आधुनिक भाषाएं, साहित्य, कानून, इतिहास, दर्शन, धर्म और दृश्य एवं अभिनय कला (संगीत सहित) मानविकी संबंधी विषयों के उदाहरण हैं। मानविकी में कभी-कभी शामिल किये जाने वाले अतिरिक्त विषय हैं प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी), मानव-शास्त्र (एन्थ्रोपोलॉजी), क्षेत्र अध्ययन (एरिया स्टडीज), संचार अध्ययन (कम्युनिकेशन स्टडीज), सांस्कृतिक अध्ययन (कल्चरल स्टडीज) और भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स), हालांकि इन्हें अक्सर सामाजिक विज्ञान (सोशल साइंस) के रूप में माना जाता है। मानविकी पर काम कर रहे विद्वानों का उल्लेख कभी-कभी "मानवतावादी (ह्यूमनिस्ट)" के रूप में भी किया जाता है। हालांकि यह शब्द मानवतावाद की दार्शनिक स्थिति का भी वर्णन करता है जिसे मानविकी के कुछ "मानवतावाद विरोधी" विद्वान अस्वीकार करते हैं। .

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मालाबार

मालाबार केरल राज्य में अवस्थित पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम तट के समानांतर एक संकीर्ण तटवर्ती क्षेत्र है। जब स्‍वतंत्र भारत में छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर १ जुलाई, १९४९ को त्रावनकोर-कोचीन राज्य बना दिया गया, किंतु मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के तहत त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार को मिलाकर १ नवंबर, १९५६ को केरल राज्य बनाया गया। केरल के अधिकांश द्वीप जो त्रावणकोर-मालाबार राज्य में आते थे, अब एर्नाकुलम जिले में आते हैं। मालाबार क्षेत्र के अंतर्गत पर्वतों का अत्यधिक आर्द्र क्षेत्र आता है। वनीय वनस्पति में प्रचुर होने के साथ-साथ इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों, जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू का उत्‍पादन किया जाता है। मालाबार क्षेत्र केरल का बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र माना जाता है। यहाँ उच्चकोटि के कागज का भी निर्माण होता है। यहां पर एशिया की सबसे मशहूर प्लाईवुड फैक्टरी भी स्थित है। इसके अलावा यहां के निकटवर्ती स्थानों पर फूलों के उत्पादन तथा उनके निर्यात के प्रमुख केंद्र भी स्थित हैं। हस्तकला की वस्तुओं तथा बीड़ी आदि का उत्पादन भी मालाबार में काफी होता है। मालाबार तट पर बसे हुए कण्णूर नगर में पयंबलम, मुझापूलंगड तथा मियामी जैसे सुंदर बीच हैं जो अभी पर्यटकों में अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं, अतएव शांत वातावरण बनाए हुए हैं। यहां पायथल मलै नामक आकर्षक पर्वतीय स्थल भी है। निकट ही यहां का सर्प उद्यान है जहां पर अनेक प्रकार के सांपों का प्रदर्शन किया गया है। इस स्थान पर सर्पदंश चिकित्सा केंद्र भी बना है। मालाबार में मलावलतम नदी के किनारे पर परासनी कडायू का प्रसिद्ध मंदिर है, जो केवल हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के लिए भी समान रूप से खुला है। यह मुथप्पन भगवान का मंदिर माना जाता है जो शिकारियों के देवता हैं। इसीलिए इस मंदिर में कांसे के बने हुए कुत्तों की मूर्तियां हैं। यहां ताड़ी तथा मांस का प्रसाद मिलता है तथा यहां के पुजारी दलित वर्ग के होते हैं। केरल की अधिकांश मुस्लिम आबादी, जिन्हें मप्पिला कहते हैं इसी क्षेत्र में निवास करती हैं। मालाबार के हिन्दुओं में गुड़ी पड़वा उत्सव का विशेष महत्त्व है। मालाबार क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति तथा प्रदूषण रहित वातावरण को देख कर मन खुश हो जाता है। वास्को डा गामा की यात्रा के ५०० वर्ष पूरे होने के कारण यह स्थान विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। मालाबार में कालीकट से १६ कि॰मी॰ दूर कापड़ बीच है, जहां २१ मई, १४९८ को वास्को दा गामा ने पहला कदम भारत की भूमि पर रखा था। प्रभासाक्षी पर .

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मिकोयान-गुरेविच मिग-1

मिकोयायन-गुरेविच मिग-1 (रूसी: Микоян-Гуревич МиГ-1) द्वितीय विश्व युद्ध का एक सोवियत लड़ाकू विमान था, जिसे 1939 में जारी एक उच्च ऊंचाई वाले लड़ाकू विमान के लिए आवश्यकता को पूरा करने के लिए बनाया गया था। एल्यूमीनियम जैसे सामरिक सामग्रियों पर मांग को कम करने के लिए, विमान को ज्यादातर स्टील टयूबिंग और लकड़ी से बनाया गया था। उड़ान परीक्षण में कई कमी देखी गईं, लेकिन इन्हे ठीक करने से पहले विमान के उत्पादन का आदेश दिया गया था। हालांकि इसे संभालना मुश्किल हो गया था। इसके डिजाइन को संशोधित करने से पहले एक सौ मिग-1 का निर्माण किया गया था। इसके संशोधित डिजाइन को मिग-3 विमान कहा जाता है। 1941 में सोवियत वायु सेना की लड़ाकू रेजिमेंट के लिए विमान को जारी किया गया था, लेकिन ज्यादातर ऑपरेशन बारबारोसा के शुरुआती दिनों में जाहिरा तौर पर नष्ट हुए थे। ऑपरेशन बारबारोसा जून 1941 में सोवियत संघ का जर्मन पर आक्रमण था। .

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मुद्गर

लकड़ी की मुँगरी रबर की मुँगरी प्लास्टिक की मुँगरी मुद्गर या मुँगरी (mallet) एक प्रकार का हथौड़ा है जो प्रायः रबर या लकड़ी का बना होता है। श्रेणी:हाथ औजार.

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रंदा

रंदा (अंग्रेजी:Plane (tool) एक औजार होता है इसका उपयोग सुथार तथा फर्नीचर बनाने वाले लोग फर्नीचर बनाने में करते हैं। रंदा लकड़ी तथा लोहे का होता है। .

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रेती

डबल कट चपटी फाइल की सतह का विस्तारित दृष्य रेती (file) एक औजार है जिससे धातु, काष्ठ, एवं प्लास्टिक को घिसा जाता है। इसकी सहायता से किसी वस्तु से अल्प मात्रा में पदार्थ काटकर निकाला जा सकता है। श्रेणी:औज़ार.

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सहजीवन

क्लाउनफिश रीढीविहीन जंतुओं पर निर्भर रहती है सहजीवन (Symbiosis) को 'सहोपकारिता' (Mutualism) भी कहते हैं। यह दो प्राणियों में पारस्परिक, लाभजनक, आंतरिक साझेदारी है। यह सहभागिता के (partnership) दो पौधों या दो जंतुओं के बीच, या पौधे और जंतु के पारस्परिक संबंध में हो सकती है। यह संभव है कि कुछ सहजीवियों (symbionts) ने अपना जीवन परजीवी (parasite) के रूप में शुरू किया हो और कुछ प्राणी जो अभी परजीवी हैं, वे पहले सहजीवी रहे हों। सहजीवन का एक अच्छा उदाहरण लाइकेन (lichen) है, जिसमें शैवाल (algae) और कवक के (fungus) के बीच पारस्परिक कल्याणकारक सहजीविता होती है। बहुत से कवक बांज (oaks), चीड़ इत्यादि पेड़ों की जड़ों के साथ सहजीवी होकर रहते हैं। बैसिलस रैडिसिकोला के (Bacillus radicicola) और शिंबी के (leguminous) पौधों की जड़ों के बीच का अंतरंग संबंध भी सहजीविता का उदाहरण है। ये जीवाणु शिंबी पौधों को जड़ों में पाए जाते हैं, जहाँ वे गुलिकाएँ (tubercles) बनाते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं। सहजीविता का दूसरा रूप हाइड्रा विरिडिस (Hydra viridis) और एक हरे शैवाल का पारस्परिक संबंध है। हाइड्रा (Hydra) जूक्लोरेली (Zoochlorellae) शैवाल को आश्रय देता है। हाइड्रा की श्वसन क्रिया में जो कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलता है, वह जूक्लोरेली के प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होता है और जूक्लोरेली द्वारा उच्छ्‌वसित ऑक्सीजन हाइड्रा की श्वसन क्रिया में काम आती है। जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक का भी उपयोग हाइड्रा करता है। कुछ हाइड्रा तो बहुत समय तक, बिना बाहर का भोजन किए, केवल जूक्लोरेली द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक के सहारे ही, जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सहजीविता का एक और अत्यंत रोचक उदाहरण कंबोल्यूटा रोजिओफेंसिस (Convoluta roseoffensis) नामक एक टर्बेलेरिया क्रिमि (Turbellaria) और क्लैमिडोमॉनाडेसिई (Chlamydomonadaceae) वर्ग के शैवाल के बीच का पारस्परिक संयोग है। कंबोल्यूटा के जीवनचक्र में चार अध्याय होते हैं। अपने जीवन के प्राथमिक भाग में कंबोल्यूटा स्वतंत्र रूप से बाहर का भोजन करता है। कुछ दिनों बाद शैवाल से संयोग होता है और फिर इस कृमि का पोषण, इसके शरीर में रहने वाले शैवाल द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक और बाहर के भोजन दोनों से होता है। तीसरी अवस्था में कंबोल्यूटा बाहर का भोजन ग्रहण करना बंद कर देता है और अपने पोषण के लिए केवल शैवाल के प्रकाश संश्लेषण द्वारा बनाए गए कार्बनिक यौगिक पर ही निर्भर रहता है। अंत में कृमि अपने सहजीवी शैवाल को ही पचा लेता है और स्वयं मर जाता है। बहुत से सहजीची जीवाणु और अंतरकोशिक यीस्ट (yeast) आहार नली की कोशिकाओं में रहते हैं और पाचन क्रिया में सहायता करते हैं। दीमक की आहार नली में बहुत से इंफ्यूसोरिया (Infusoria) होते हैं, जिनका काम काष्ठ का पाचन करना होता है और इनके बिना दीमक जीवित नहीं रह सकती। .

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सिलाई मशीन

सन १८४५ में विकसित एलियास होवे की सिलाई मशीन सिलाई मशीन एक ऐसा यांत्रिक उपकरण है जो किसी वस्त्र या अन्य चीज को परस्पर एक धागे या तार से सिलने के काम आती है। इनका आविष्कार प्रथम औद्योगिक क्रांति के समय में हुआ था। सिलाई मशीनों से पहनने के सुंदर कपड़े छोटे-बड़े बैग, चादरें, पतली या मोटी रजाइयां सिली जाती हैं। सुंदर से सुंदर कढ़ाई की जाती है और इसी तरह बहुत कुछ किया जा सकता है। दो हजार से अधिक प्रकार की मशीनें भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए प्रयुक्त होती हैं जैसे कपड़ा, चमड़ा, इत्यादि सीने की। अब तो बटन टाँकने, काज बनाने, कसीदा का सब प्रकार की मशीनें अलग-अलग बनने लगी हैं। अब मशीन बिजली द्वारा भी चलाई जाती है। Needle plate, foot and transporter of a sewing machine Singer sewing machine (detail 1) .

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सिगार

विभिन्न ब्रांडों के चार सिगार (ऊपर से: एच. अपमैन, मोंटेक्रिस्टो, माकानुडो, रोमियो वाय जुलिएट) एक -सेमीएयरटाईट सिगार संग्रहण ट्यूब और एक डबल गिलोटिन-स्टाइल कटर सिगार सूखे और किण्वित तम्बाकू का कसकर-लपेटा गया एक बंडल होता है जिसको जलाकर उसके धुंए का कश मुंह के अंदर खींचा जाता है। सिगार का तम्बाकू ब्राज़ील, कैमरून, क्यूबा, डोमिनिकन गणराज्य, होंडुरास, इंडोनेशिया, मैक्सिको, निकारागुआ, फिलीपींस और पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में काफी मात्रा में उगाया जाता है। .

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संरचना इंजीनियरी

विश्व की सबसे बड़ी इमारत - '''बुर्ज दुबई''' संरचना इंजीनियरी, इंजीनियरी की वह शाखा है जो लोड (बल) सहन करने या बल का प्रतिरोध करने के के लिये बनायी जाने वाली संरचनाओं (structures) के विश्लेषण एवं डिजाइन से सम्बन्ध रखती है। इसे प्रायः सिविल इंजीनियरी के अन्दर एक विशेषज्ञता का क्षेत्र समझा जाता है। संरचना इंजीनियर का काम प्रायः भवनों तथा विशाल गैर-भवन संरचनाओं की डिजाइन करना होता है किन्तु वे मशीनरी, चिकित्सा उपकरण, वाहनों आदि के डिजाइन से भी जुड़े हो सकते हैं। संरचना इंजीनियरी का सिद्धान्त भौतिक नियमों तथा विभिन्न पदार्थों/ज्यामितियों के गुणधर्म से सम्बन्धित अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है। अनेकों छोटे छोटे संरचनात्मक अवयवों के योग से जटिल संरचनाएँ निर्मित की जातीं हैं। संरचना इंजीनियर को लोहे और इस्पात का ही नहीं, बल्कि लकड़ी, ईंट, पत्थर, चूना और सीमेंट का भी आधुनिकतम ज्ञान तथा यांत्रिक एवं विद्युत् इंजीनियरी के कामों में भी दक्ष होना चाहिए, क्योंकि इन्हें अपने ढाँचे यांत्रिकी तथा भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार निरापद ढंग से बनाने पड़ते हैं। भूमि, जल और वायु की प्रकृति का भी पूर्ण ज्ञान सिविल इंजीनियर के समान ही होना चाहिए। .

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संवेष्टन

टेस्को से एक टुकड़े किए हुए पोर्क का सील बंद पैकेट. यह दर्शाता है पकाने का समय, सर्विंग्स की संख्या, 'डिस्प्ले अन्टिल' डेट, 'यूज़ बाई' डेट, किलोग्राम में वजन, £/kg और £/lb दोनों के मूल्य से वजन दर, प्रशीतित और भंडारण निर्देश.यह कहता हैं 'लेस डैन 3% फैट' और 'नो कार्ब्स पर सर्विंग' और इसमें एक बार कोड शामिल है। संघ का ध्वज, ब्रिटिश फार्म मानक ट्रेक्टर लोगो और ब्रिटिश मांस गुणवत्ता मानक लोगो भी मौजूद हैं। एक ब्लिस्टर पैक में गोलियाँ, जो खुद एक तह लगी दफ्ती के कार्टन में पैक है। संवेष्टन या पैकेजिंग, उत्पादों को वितरण, भंडारण, बिक्री और खपत के लिए बंद करने या सुरक्षित करने का विज्ञान, कला और प्रौद्योगिकी है। पैकेजिंग, डब्बों की डिज़ाइन प्रक्रिया, मूल्यांकन और उनके उत्पादन को भी संदर्भित करता है। पैकेजिंग को, उत्पादों को परिवहन, भंडारण, प्रचालन-तन्त्र, बिक्री और खपत के लिए तैयार करने की एक समन्वित प्रणाली के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पैकेजिंग, धारण करता है, सुरक्षा करता है, संरक्षित रखता है, परिवहन करता है, सूचित करता है और बेचता है। कई देशों में यह पूरी तरह से सरकार, व्यापार, संस्थागत, औद्योगिक और व्यक्तिगत उपयोग में एकीकृत होता है। पैकेज लेबलिंग (en-GB) या लेबलिंग (en-US), पैकेजिंग पर या किसी अलग मगर जुड़े हुए लेबल पर लिखा हुआ, इलेक्ट्रॉनिक, ग्राफिक सम्प्रेषण है। .

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सुथार

सुथार (संस्कृत: सूत्रधार) भारत में एक जाति है। मूलतः इस जाति के लोगों का काम है लकड़ी की अन्य वस्तुएँ बनाना है। इस जाति के लोग विश्वकर्मा को अपने ईष्ट देवता मानते हैं। सुथार शब्द का प्रयोग ज्यादातर राजस्थान में ही किया जाता है। सुथार जाति का पारंपरिक काम बढ़ई होता है। बढ़ई शब्द का उल्लेख प्राचीन कालों में भी मिलता है। इनकी आबादी भारत में 7.3 करोड़ के आस पास पाई जाती है और ये भारत के सारे राज्यो में पाई जाती है। .

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सुनम्य कलाएँ

सुनम्य कलाएँ (Plastic arts) उन कलाओं की श्रेणी है जिनमें सुन्यता (plasticity) वाले पदार्थों से कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं। इनमें मोल्डिंग (संचन) और शिल्पकला और मृतिकाशिल्प की कलाएँ शामिल हैं। सुनम्य कला में ऐसी सामग्रीयों का प्रयोग होता है जिन्हें आकार दिया जा सके, जैसे कि पत्थर, लकड़ी, कंक्रीट और धातु। हालांकि इन कलाओं का अंग्रेज़ी नाम "प्लास्टिक आर्ट्स" है, इनमें यह ज़रूरी नहीं है कि प्लास्टिक ही प्रयोग हो। .

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स्की

एक स्कीबाज़ी स्थल पर लगे तरह-तरह के स्की स्की (ski) लकड़ी, धातु या प्लास्टिक के पतले और लम्बे तख़्तों को कहते हैं जिन्हें जूतों के नीचे जोड़कर स्कीबाज़ी (स्कीइंग) का खिलाड़ी बर्फ़ पर फिसलाकर यात्रा करता है। आमतौर पर दोनों पावों के लिए दो अलग स्की होती हैं। स्कीओं को जूतों से जोड़ने वाले बंधन अलग प्रकार के होते हैं, लेकिन अधिकतर विशेष प्रकार के जूतों के नीचे बनी कुंडियों में खटकाकर कसकर बंध जाते हैं। लगभग सभी स्कीओं में पाँव की उँगलियों वाली तरफ़ से तो जूते स्की के साथ जोड़े जाते हैं लेकिन कुछ प्रकार की स्की-खेलों में पाँव एड़ी की तरफ़ से स्की से नहीं जुड़े होते (जबकि अन्य स्कीबाज़ी में उस ओर से भी जुड़े होते हैं)।, Michael W. Dempsey, H.S. Stuttman, 1984, ISBN 978-0-87475-830-6,...

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सेतु

thumb सेतु एक प्रकार का ढाँचा जो नदी, पहाड़, घाटी अथवा मानव निर्मित अवरोध को वाहन या पैदल पार करने के लिये बनाया जाता है। .

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सेलोफेन

छपा हुआ और पारदर्शी सेलोफेन सेलोफेन या सिलोफ़न (Cellophane) पुनर्जीवित सेलूलोज़ से बना एक पतला और पारदर्शी पत्र है। हवा, तेल, ग्रीस और जीवाणुओं के विरुद्ध इसकी निम्न पारगम्यता इसे खाद्य संवेष्ठन (फूड पैकेजिंग) के लिए एक उपयुक्त सामग्री बनाती है। सेलोफेन कई देशों में इनोविया फिल्म्स लिमिटेड, कम्ब्रिया, ब्रिटेन का एक पंजीकृत व्यापार चिह्न है। .

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हवन

हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है। कुण्ड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुँचाने की प्रक्रिया को यज्ञ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वह पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं).

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ज़ेर्वीनोस

ज़ेर्वीनोस की सड़क ज़ेर्वीनोस (Zervynos) एक गाँव दक्षिण लिथुआनिया में है। वह गाँव अलीतुस प्रदेश के भाग वरेणा डिस्ट्रिक्ट में है। ज़ेर्वीनोस चारों ओर से दैनवा वन से गुप्त है और ऊला नदी के किनारे के नज़दीक बैठा है। यहाँ २०११ साल में ४९ निवासी रहते थे। ज़ेर्बीनोस अपने परंपरागत वास्तुशिल्पीय शैली के लिए प्रसिद्ध है। सारे मकान द्ज़ूकिया क्षेत्र की शैली में लकड़ी से निर्माण किये गये हैं। यहाँ भी सलीबों, पुरातात्त्विक जगहों, पुराणे वृक्षों को देखा जा सकता है। गर्मियों में ज़ेर्वीनोस पर्यटकों और कुकुरमुत्ते या बदरियँ लेनेवाले लोगों को आकृष्ट करता है। इस गाँव से रेलगाड़ी विल्नुस-मर्त्सिन्कोनीस चलती है। category:लिथुआनिया श्रेणी:गाँव.

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जूता

आज दुनिया के सबसे व्यापक रूप से उपलब्ध जूता: पब्लिक स्क्वेर, फेज़, मोरक्को में बिक्री के लिए सैकड़ों इस्तेमाल किये हुए खेल के जूतें, 2007 जूता पैरों में पहनने की एक ऐसी वस्तु है जिसका उद्देश्य विभिन्न गतिविधियां करते समय मानव के पैर की रक्षा करना और उसे आराम पहुंचाना है। जूतों का उपयोग एक सजावट की वस्तु के रूप में भी किया जाता है। समय-समय पर तथा संस्कृति से संस्कृति जूते के डिजाइन व रंग-रूप में अत्यधिक परिवर्तिन हुआ है, मूल स्वरूप में इसे काम के समय पहना जाता था। इसके अतिरिक्त, फैशन ने अक्सर कई डिजाइन तत्वों को निर्धारित किया है, जैसे जूते की एड़ी बहुत ही ऊंची हो या समतल हो। समकालीन जूते शैली, जटिलता और लागत की दृष्टि से व्यापक रूप में भिन्न होते हैं। बुनियादी सैंडल में केवल एक पतला तला और एक सामान्य पट्टा शामिल था। उच्च फैशन जूते महंगी सामग्री से और जटिल निर्माण प्रक्रिया द्वारा बनाए जाते हैं तथा उन्हें हजारों डॉलर प्रति जोड़ी बेचा जा सकता है। अन्य जूते अति विशिष्ट प्रयोजनों के लिए होते हैं, जैसे पर्वतारोहण और स्कीइंग के लिए डिजाइन किए गए जूते (बूट).

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ईन्धन

जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध्‌ धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत्‌ ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .

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घुड़च

संगीत में घुड़च (bridge) तंतुवाद्यों का वह भाग होता है जिसपर उस वाद्य के तंतु (तार) टिके हुए होते हैं और जिसके द्वारा उन तंतुओं के कम्पन का प्रसार वाद्य के मुख्य ढांचे में होता है। अक्सर यह हड्डी, प्लास्टिक या लकड़ी का बना हुआ होता है। .

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वनोन्मूलन

वनोन्मूलन का अर्थ है वनों के क्षेत्रों में पेडों को जलाना या काटना ऐसा करने के लिए कई कारण हैं; पेडों और उनसे व्युत्पन्न चारकोल को एक वस्तु के रूप में बेचा जा सकता है और मनुष्य के द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है जबकि साफ़ की गयी भूमि को चरागाह (pasture) या मानव आवास के रूप में काम में लिया जा सकता है। पेडों को इस प्रकार से काटने और उन्हें पुनः न लगाने के परिणाम स्वरुप आवास (habitat) को क्षति पहुंची है, जैव विविधता (biodiversity) को नुकसान पहुंचा है और वातावरण में शुष्कता (aridity) बढ़ गयी है। साथ ही अक्सर जिन क्षेत्रों से पेडों को हटा दिया जाता है वे बंजर भूमि में बदल जाते हैं। आंतरिक मूल्यों के लिए जागरूकता का अभाव या उनकी उपेक्षा, उत्तरदायी मूल्यों की कमी, ढीला वन प्रबन्धन और पर्यावरण के कानून, इतने बड़े पैमाने पर वनोन्मूलन की अनुमति देते हैं। कई देशों में वनोन्मूलन निरंतर की जाती है जिसके परिणामस्वरूप विलोपन (extinction), जलवायु में परिवर्तन, मरुस्थलीकरण (desertification) और स्वदेशी लोगों के विस्थापन जैसी प्रक्रियाएं देखने में आती हैं। .

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वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। वायु प्रदूषण के कारण मौतें और श्वास रोग.

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विश्व गौरैया दिवस

एक नर गौरैया विश्व गौरैया दिवस २० मार्च को मनाया जाता है। .

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विंगसूट फ़्लाइंग (उड़ान)

उड़ान में विंगसूट विंगसूट फ़्लाइंग (उड़ान), विंगसूट नामक एक विशेष जंपसूट का इस्तेमाल कर मानव शरीर को हवा में उड़ाने का खेल है। यह विंगसूट मानव शरीर के सतही आकार में वृद्धि कर उसे उड़ान में काफी मदद करता है। आधुनिक विंगसूट डिजाइनों में सतही आकार वाले भाग को कपड़ों से पैरों के बीच और बाहों के नीचे बानाया जाता है। विंगसूट को बर्डमैन सूट या स्क्विरल सूट भी कहा जा सकता है। विंगसूट उड़ान पैराशूट के खुलने के साथ समाप्त हो जाता है, इसलिए विंग सूट को ऐसे किसी भी स्थान से उड़ाया जा सकता जो हवा में गोते लगाने के लिए पर्याप्त ऊंचाई प्रदान करता है, जैसे कि हवा में गोते लागाने वाले (स्काइडाइविंग) विमान या बेस (BASE) जम्पिंग एग्जिट प्वाइंट, साथ ही यह पैराशूट का उपयोग करने की अनुमति भी देता है। विंगसूट उड़ाका स्काइडाइविंग या बेस जम्पिंग के लिए डिजाइन किया गया पैराशूट उपकरण पहनता है। उड़ाका एक सुनियोजित ऊंचाई पर जाकर पैरासूट का उपयोग करता है और आवश्यकता पड़ने पर बांहों के पंखों को खोलता है, जिससे कि वह नियंत्रण टॉगल तक पहुँच सके और एक सामान्य पैराशूट लैंडिंग के स्तर पर उड़ सके.

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खड़ताल

खड़ताल (Castanets) एक तालवाद्य है जिसमें दो लगभग बराबर धातु, लकड़ी, फ़ाइबरग्लास या किसी अन्य सख़्त सामग्री से बने हिस्सों को एक हाथ में पकड़कर आपस में टकराने से ध्वनी उत्पन्न की जाती है। अक्सर इन दोनों हिस्सों को एक अंत पर धागे से बांधकर जोड़ा गया होता है। .

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गुड़िया

गुड़िया एक प्रकार की मनुष्याकृति होती है। गुड़ि‍या का अस्तित्व मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही रहा है और विभिन्न पदार्थों जैसे पत्थर, मिट्टी, लकड़ी, हड्डी, कपड़े और कागज से लेकर पोर्सलि‍न, चीनी मिट्टी, रबर और प्लास्टिक तक से इसका निर्माण होता रहा है। यद्यपि पारंपरिक रूप से गुड़ि‍या बच्चों का खिलौना रही है परंतु वयस्क भी गृह-विरही महत्व, सुंदरता, ऐतिहासिक महत्व या आर्थिक महत्व के कारण अपने संग्रह करते हैं। प्राचीन काल में, गुड़ि‍यों का उपयोग देव रूप में किया जाता था और धार्मिक उत्स‍वों, तथा धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी मुख्य भूमिका हुआ करती थी। सजीव दिखने वाली या शरीर-रचना की दृष्टि से सही गुड़ि‍या का उपयोग स्वास्थ्यकर्मियों, चिकित्सकीय विद्यालयों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा विभिन्न स्वास्थ्य प्रक्रियाओं या चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने में या बच्चों के साथ हुए यौन दुराचारों के मामलों की छानबीन करने में किया जाता है। कभी-कभी कलाकार इसका उपयोग मानव आकृति बनाने के लिए करते हैं। गतिशील (एक्शन) शारीरिक आकृतियां सुपरहीरोज और उनके पूर्ववर्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं, एक्शन गुड़िया खास तौर पर लड़कों में लोकप्रिय होती हैं। .

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गैनोडर्मा

रिशी या गैनोडर्मा (Ganoderma) खुम्ब की एक जाति है जो लकड़ी पर उगती है। इसके अन्तर्गत लगभग ८० प्रजातियाँ हैं जिसमें से अधिकांश उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में पैदा होतीं है। इनका उपयोग परम्परागत एशियायी चिकित्सा में होता है जिसके कारण ये आर्थिक रूप से अति महत्वपूर्ण हैं। .

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ओपल

ओपल या दूधिया पत्थर धातु से बना जैल है जो बहुत कम तापमान पर किसी भी प्रकार के चट्टान की दरारों में जमा हो जाता है, आमतौर पर चूना पत्थर, बलुआ पत्थर, आग्नेय चट्टान, मार्ल और बेसाल्ट के बीच पाया जा सकता है। ओपल शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द ओपलस और यूनानी शब्द ओपैलियस से हुई है। पानी की मात्रा अक्सर तीन और दस प्रतिशत के बीच होती है लेकिन बहुत ऊंची बीस प्रतिशत तक हो सकती है। ओपल धवल से सफेद, भूरे, लाल, नारंगी, पीले, हरे, नीले, बैंगनी, गुलाबी, स्लेटी, ऑलिव, बादामी और काले रंगों में पाई जाती हैं। इन विविध रंगों में, काले रंग के खिलाफ लाल सबसे अधिक दुर्लभ है जबकि सफेद और हरा सबसे आम है। इन रंगों में भिन्नता लाल और अवरक्त तरंगदैर्घ्य के आकार और विकास के कारण आती है। ओपल ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय रत्न है। .

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आत्महत्या के तरीके

आत्महत्या का तरीके खोजने वालों को भारत में आसरा नामक संस्था परामर्श देती हैं जिसका दूरभाष क्रमांक 022 2754 6669 है। उस संस्था का अधिकृत जालस्थान www.aasra.info है। आत्महत्या का तरीका ऐसी किसी भी विधि को कहते हैं जिसके द्वारा एक या अधिक व्यक्ति जान-बूझकर अपनी जान ले लेते हैं। आत्महत्या के तरीकों को जीवन लीला समाप्त करने की दो विधियों के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है: शारीरिक या रासायनिक.

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आरी

आरी (अंग्रेजी:Saw या hand saw) एक औजार का नाम है जो लोहे तथा कई और धातुओं में बनी मिलती है इसका प्रयोग सुथार तथा अन्य जाति के लोग फर्नीचर बनाने में करते हैं। इससे लकड़ी तथा धातु को आसानी से काटा जाता है। .

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इंग्लिश विलो

सेलिक्स अल्बा (व्हाइट विलो), विलो की एक प्रजाति है जो यूरोप और पश्चिमी और मध्य एशिया की देशज है।मेक्ले, आरडी (1984).

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कठपुतली

कठपुतली विश्व के प्राचीनतम रंगमंच पर खेला जानेवाले मनोरंजक कार्यक्रम में से एक है कठपुतलियों को विभिन्न प्रकार की गुड्डे गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है इसका नाम कठपुतली इस कारण पड़ा क्योंकि पूर्व में भी लकड़ी अर्थात काष्ठ से से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा।प्रत्येक वर्ष २१ मार्च को विश्व कठपुतली दिवस भी मनाया जाता है। धागों से संचालित कठपुतली .

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कठोरता

विकर्स का कठोरतामापी एलास्टोमर पदार्थों के बल-विकृति ग्राफ में हिस्टेरिसिस पायी जाती है (प्रतिबल बढ़ाने पर और घटाने पर ग्राफ अलग-अलग मार्ग से जाता है)। इसे एलास्टिक हिस्टेरिस कहते हैं। प्रतिक्षेप कठोरता (रिबाउण्ड हार्डनेस) का मापन इसी सिद्धान्त पर आधारित है। प्रत्यास्थ पदार्थों में यह हिस्टेरिसिस् नहीं पायी जाती। कठोरता (Hardness) किसी ठोस का वह गुण है जिससे पता चलता है कि उस पर बल लगाने पर उसे स्थायी रूप से विकृत करने की कितनी सम्भावना है। सामान्यतः अधिक कठोर ठोस वह होता है जिसमें अन्तराणविक बल अधिक मजबूत होगा। कठोर पदार्थों के कुछ उदाहरण: सिरामिक (ceramics), कंक्रीट (concrete), कुछ धातुएँ तथा अतिकठोर पदार्थ। 'कठोरता' को मापने के अलग-अलग तरीके हैं.

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काष्ठ कला

काष्ठ कला (Wooden Arts) एक हस्तकला है जो भारतीय राज्य राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है। काष्ठ को आम भाषा में लकड़ी कहा जाता है। इस कला में लोग लकड़ी पर विभिन्न प्रकार के कलाकारी वस्तुएं बनाते हैं। बस्सी चित्तौड़गढ़ ज़िले का बस्सी कस्बा जो प्राचीन समय से काष्ठ कला के लिए प्रसिद्ध रहा है। बस्सी की काष्ठ क्ला के जन्म दाता प्रभात जी सुथार माने जाते हैं। इनके द्वारा सर्वप्रथम एक लकड़ी की गणगौर बनाई गई। जो लगभग आज से ३५५ साल पुरानी है। .

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काग़ज़

कागज का पुलिन्दा चीन में कागज का निर्माण कागज एक पतला पदार्थ है जिस पर लिखा या प्रिन्ट किया जाता है। कागज मुख्य रूप से लिखने और छपाई के लिए प्रयुक्त होता है। यह वस्तुओं की पैकेजिंग करने के काम भी आता है। मानव सभ्यता के विकास में कागज का बहुत बड़ा योगदान है। गीले तन्तुओं (फाइबर्स्) को दबाकर एवं तत्पश्चात सुखाकर कागज बनाया जाता है। ये तन्तु प्राय: सेलुलोज की लुगदी (पल्प) होते हैं जो लकड़ी, घास, बांस, या चिथड़ों से बनाये जाते हैं। पौधों में सेल्यूलोस नामक एक कार्बोहाइड्रेट होता है। पौधों की कोशिकाओं की भित्ति सेल्यूलोज की ही बनी होतीं है। अत: सेल्यूलोस पौधों के पंजर का मुख्य पदार्थ है। सेल्यूलोस के रेशों को परस्पर जुटाकर एकसम पतली चद्दर के रूप में जो वस्तु बनाई जाती है उसे कागज कहते हैं। कोई भी पौधा या पदार्थ, जिसमें सेल्यूलोस अच्छी मात्रा में हो, कागज बनाने के लिए उपयुक्त हो सकता है। रुई लगभग शुद्ध सेल्यूलोस है, किंतु कागज बनाने में इसका उपयोग नहीं किया जाता क्योंकि यह महँगी होती है और मुख्य रूप से कपड़ा बनाने के काम में आती है। परस्पर जुटकर चद्दर के रूप में हो सकने का गुण सेल्यूलोस के रेशों में ही होता है, इस कारण कागज केवल इसी से बनाया जा सकता है। रेशम और ऊन के रेशों में इस प्रकार परस्पर जुटने का गुण न होने के कारण ये कागज बनाने के काम में नहीं आ सकते। जितना अधिक शुद्ध सेल्यूलोस होता है, कागज भी उतना ही स्वच्छ और सुंदर बनता है। कपड़ों के चिथड़े तथा कागज की रद्दी में लगभग शतप्रतिशत सेल्यूलोस होता है, अत: इनसे कागज सरलता से और अच्छा बनता है। इतिहासज्ञों का ऐसा अनुमान है कि पहला कागज कपड़ों के चिथड़ों से ही चीन में बना था। पौधों में सेल्यूलोस के साथ अन्य कई पदार्थ मिले रहते हैं, जिनमें लिग्निन और पेक्टिन पर्याप्त मात्रा में तथा खनिज लवण, वसा और रंग पदार्थ सूक्ष्म मात्राओं में रहते हैं। इन पदार्थों को जब तक पर्याप्त अंशतक निकालकर सूल्यूलोस को पृथक रूप में नहीं प्राप्त किया जाता तब तक सेल्यूलोस से अच्छा कागज नहीं बनाया जा सकता। लिग्निन का निकालना विशेष आवश्यक होता है। यदि लिग्निन की पर्याप्त मात्रा में सेल्यूलोस में विद्यमान रहती है तो सेल्यूलोस के रेशे परस्पर प्राप्त करना कठिन होता है। आरंभ में जब तक सेल्यूलोस को पौधों से शुद्ध रूप में प्राप्त करने की कोई अच्छी विधि ज्ञात नहीं हो सकी थी, कागज मुख्य रूप से फटे सूती कपड़ों से ही बनाया जाता था। चिथड़ों तथा कागज की रद्दी से यद्यपि कागज बहुत सरलता से और उत्तम कोटि का बनता है, तथापि इनकी इतनी मात्रा का मिल सकना संभव नहीं है कि कागज़ की हामरी पूरी आवश्यकता इनसे बनाए गए कागज से पूरी हो सके। आजकल कागज बनाने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं का उपयोग मुख्य रूप से होता है: चिथड़े, कागज की रद्दी, बाँस, विभिन्न पेड़ों की लकड़ी, जैसे स्प्रूस और चीड़, तथा विविध घासें जैसे सबई और एस्पार्टो। भारत में बाँस और सबई घास का उपयोग कागज बनाने में मुख्य रूप से होता है। .

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कुल्हाड़ी

कुल्हाड़ी कटाई की कुल्हाड़ियां कुल्हाड़ी या कुल्हाड़ा, (अन्य हिन्दी शब्दः फरसा या कुठार) एक औजार है, जिसको सदियों से लकड़ी को आकार देने या टुकड़े करने, जंगल से लकड़ी काटने, युद्ध मे एक हथियार के रूप में और एक औपचारिक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कुल्हाड़ी को विभिन्न कार्यों के अनुसार कई रूप दिये गये हैं, लेकिन एक आम कुल्हाड़ी का एक लोहे या इस्पात का सिर और लकड़ी का हत्था होता है। कुल्हाड़ियों के प्राचीन प्रकारों मे इनका हत्था लकड़ी का और सिर और फाल पत्थर का होता था। सभ्यता में प्रगति और तकनीकों का विकास के साथ कुल्हाड़ी का सिर तांबे, पीतल, लोहे और इस्पात से बनाया जाने लगा। .

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क्रोटाइल अल्कोहल

यह एक प्रकार का अल्कोहल है। श्रेणी:अल्कोहल .

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अपघर्षक

औद्योगिक अपघर्षक अपघर्षक ऐसे पदार्थ हैं जिन्हें किसी वस्तु के ऊपर रगड़कर उस वस्तु का आकार बदलने या उसे अधिक चिकना (smooth) बनाने का काम आता है। यह प्राकृतिक तथा कृत्रिम पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है और लकड़ी, धातु तथा पत्थरों के प्रमार्जन तथा उनपर चमक पैदा करने के कामों में लाया जाता है। प्राकृतिक अपघर्षकों में कुरुबिंद (कोरंडम, corundum), एमरी, (emery), बालू (sand) तथा विविध प्रकार के पत्थर हैं, जिनका उपयोग पेषण पत्थर और शाणचक्रों (grinding wheels) के बनाने में होता है। दूसरे प्राकृतिक अपघर्षक भी हैं, जो इतने लाभदायक और अधिक उपयोगी नहीं हैं। कभी-कभी अपघर्षकों का प्रयोग चिकना बनाने के बजाय खुरदरा बनाने के लिए भी किया जाता है। .

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अपघर्षी कर्तन

घूमता हुआ ग्राइंडर अपघर्षण से पदार्थ का कटना ग्राइण्डिंग (Grinding) या पेषण एक अपघर्षक मशीनिंग प्रक्रिया (abrasive machining process) है जो काटने के लिये शीण चक्र (grinding wheel) का उपयोग करती है। घर्षक या ग्राइण्डर लकड़ी, धातु तथा पत्थरों के प्रमार्जन तथा उनपर चमक पैदा करने के कामों में लाया जाता है। ये घर्षक प्राकृतिक तथा बनावटी पदार्थों को मिलाकर बनाया जाता है। कुरुबिंद (कोरंडम, corundum), एमरी, (emery), बालू (sand) तथा विविध प्रकार के पत्थर आदि प्राकृतिक घर्षक हैं, जिनका उपयोग पेषण पत्थर (सिलवट्ट / ग्राइन्डिंग स्लैब) और शाणचक्रों (grinding wheels) के बनाने में होता है। दूसरे प्राकृतिक घर्षक भी हैं, जो इतने लाभदायक और अधिक उपयोगी नहीं हैं। बनावटी घर्षकों में कारबोरंडम (carborundum), पिसा हुआ लोहा तथा इस्पात हैं। कारबोरंडम, कार्बन तथा कुरुबिंद को मिलाकर बनता है। इस्पात से एमरी भी बनाया जाता है। या तो इस्पात को पीसकर, या फिर इस्पात एमरी बनाकर घर्षक बनाते हैं। इस्पात एमरी बनाने का नियम यह है कि अच्छे इस्पात को अधिक तपाकर तुंरत जल में डाल देते हैं। इस ठंढे लोहे को यंत्रों द्वारा पीस लिया जाता है। इन प्राकृतिक तथा बनावटी घर्षकों को चिपकनेवाले पदार्थ के साथ मिलाकर पेषण पत्थर या शाणचक्र बनाए जाते हैं। इन चिपकनेवाले पदार्थों में काचित (Vitrified) सिलिकेट, चपड़ा (shellac), संश्लिष्ट रेजिन और रबर मुख्य हैं। विशेष भारी कामों के लिये, या ऐसे कामों के लिये जहाँ धातु को अधिक तीव्र गति पर घिसना होता है, काचित पदार्थ का उपयोग सबसे अधिक होता है। रबर ऐसे पतले चक्र बनाने के काम में लाया जाता है जिनसे किसी धातु को दो भागों में काटा जाता है। ये चक्र भंगुर नहीं होते और इस प्रकार इनके टूटने का डर नहीं रहता। घर्षक की संरचना पर ध्यान देना जरुरी है। संरचना से मतलब घर्षक के कणों की एक दूसरे से दूरी से है। दूर-दूर रखे गए कण मृदु और तन्य (ductile) धातु को ठीक प्रकार से काट सकते हैं, परंतु पास पास रखे गए कण कठोर तथा भंगुर धातु के लिये उपयुक्त होते हैं। पास पासवाले कण से अच्छी परिसज्जा (finish) होती है और समतल पर चमक आ जाती है। घर्षक के कणों के परिमाण का भी प्रभाव धातु पर पड़ता है। कठोर और भंगुर धातुएँ छोटे कण के घर्षक से अच्छी कटती हैं और इसी प्रकार ये घर्षक प्रमार्जन के लिय भी ठीक होते हैं। मोटे कण के घर्षकों से अधिक धातु कम समय में कट जाती है, परंतु अच्छी परिसज्जा नहीं हो पाती और धातु पर रेखाएँ पड़ जाती हैं। विभिन्न प्रकार के अपघर्षण कार्य श्रेणी:मशीनिंग.

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अलातशांति

लकड़ी आदि को प्रज्वलित कर चक्राकार घुमाने पर अग्नि के चक्र का भ्रम होता है। यदि लकड़ी की गति को रोक दिया जाए तो चक्राकार अग्नि का अपने आप नाश हो जाता है। बौद्ध दर्शन और वेदांत में इस उपमा का उपयोग मायाविनाश के प्रतिपादन के लिए किया गया है। माया के कारण का नाश होने पर माया से उत्पन्न कार्य का भी नाश हो जाता है। यही अलातचक्र के दृष्टांत से सिद्ध किया जाता है। श्रेणी:भारतीय दर्शन श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अजमेर जैन मंदिर

अजमेर जैन मंदिर स्‍थापत्‍य कला की दृष्टि से एक भव्य जैन मंदिर है। इसे सोनीजी की णसियन के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण १९वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ। इसके मुख्य कक्ष को 'स्वर्ण नगरी' (भगवान का नगर) कहा जाता है। इस कक्ष में सोने से परिरक्षित लकड़ी की रचनायें हैं। .

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उत्कीर्णन

लकड़ी पर उत्कीर्ण सुन्दर दृष्य लकड़ी, हाथीदाँत, पत्थर आदि को गढ़ छीलकर अलंकृत करने या मूर्ति बनाने को उत्कीर्णन या नक्काशी करना (अंग्रेजी में कर्विग) कहते हैं। यहाँ काष्ठ उत्कीर्णन पर प्राविधिक दृष्टिकोण से विचार किया गया है। उत्कीर्णन के लिए लकड़ी को सावधानी से सूखने देना चाहिए। एक रीति यह है कि नई लकड़ी को बहते पानी में डाल दिया जाए, जिसमें उसका सब रस बह जाए हवादार जगह में छोड़ देना काफी होता है। शीशम, बाँझ (ओक) और लकड़ियों पर सूक्ष्म उत्कीर्णन किया जा सकता है। मोटा काम प्राय: सभी लकड़ियों पर हो सकता है। उत्कीर्णन के लिए छोटी बड़ी अनेक प्रकार की चपटी और गोल रुखानियों तथा छुरियों का प्रयोग किया जाता है। काम को पकड़ने के लिए बाँक (वाइस) भी हो तो सुविधा होती है। काठ की एक मुँगरी (हथौड़ा) भी चाहिए। कोने अँतरे में लकड़ी को चिकना करने के लिए टेढ़ी रेती भी चाहिए। बारीक काम में रुखानी को ठोंका नहीं जाता। केवल एक हाथ की गदोरी से दबाया जाता है और दूसरे हाथ की अँगुलियों से उसके अग्र को नियंत्रित किया जाता है। उत्कीर्णन सीख सकता है। नौसिखुए के लिए दस बारह औजार पर्याप्त होंगे। उत्कीर्णन के लिए बने यंत्रों को बढ़िया इस्पात का होना चाहिए और उन्हें छुरा तेज करने की सिल्ली पर तेज करे अंतिम धार चमड़े की चमोटी पर रगड़कर चढ़ानी चाहिए। अतीक्ष्ण यंत्रों से काम स्चच्छ नहीं बनता और लकड़ी के फटने या टूटने का डर रहाता है। गोल रुखानियों को नतोदार पृष्ठ की ओर से तेज करने के लिए बेलनाकार सिल्लियाँ मिलती हैं या साधारण सिल्लियाँ भी घिसकर वैसी बनाई जा सकती हैं। यों तो थोड़ा बहुत उत्कीर्णन सभी जगह होता है, पंरतु कश्मीर की बनी अखरोट की लकड़ी की उत्कीर्ण वस्तुएँ बड़ी सुंदर होती हैं। चीन और जापान के मंदिरों में काष्ठोत्कीर्णन के आश्चर्यजनक सूक्ष्म और सुंदर उदाहरण मिलते हैं। .

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छेदक

छेदक इसे अंग्रेजी में (Punch/पंच) कहा जाता है। छेदक का प्रयोग फर्नीचर तथा इत्यादि कामों में करते हैं। लोग फर्नीचर में कील की ऊपरी सतह को लकड़ी के अंदर दबाने के लिए छेदक का प्रयोग करते हैं। छेदक किसी कठोर धातु से विभिन्न प्रकार के बनाए जाते हैं। आज छेदक मशीनी वर्ज़न में भी उपलब्ध है। .

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