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रोश सीमा

सूची रोश सीमा

एक द्रव्य के जमावड़े की कल्पना कीजिये, जो अपने अंदरूनी गुरुत्वाकर्षण से एकत्रित है और अपने ग्रह के पास है - अगर रोश सीमा से काफ़ी बहार हो तो यह एक गोले का आकार ले लेता है अब अगर यह गोला ग्रह के पास आता है तो बड़े ग्रह के गुरुत्वाकर्षण की खींच से इसका आकार खिंच सा जाता है और गोले को बेढंगा कर देता है रोश सीमा के अन्दर का द्रव्य ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आ जाता है और गोला इस खींचातानी में टूट जाता है ग्रह के पास वाले कण (लाल तीरों से दर्शाए हुए) ग्रह से दूर वाले कणों से ज़्यादा तेज़ परिक्रमा करते हैं अलग कणों की अलग गति से द्रव्य खिंच जाता है और एक उपग्रही छल्ला बना देता है खगोलशास्त्र में रोश सीमा या रोश व्यास ब्रह्माण्ड में दो वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण के तालमेल के एक परिणाम को उजागर करता है। आम तौर से कोई भी वस्तु अपने ही गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इकठ्ठा होकर रहती है, जैसे की ग्रह, उपग्रह, वग़ैराह। लेकिन यदि कोई दूसरी बड़ी वस्तु पास में आ जाए तो वह पहली वस्तु के जमकर एक हो जाने में ख़लल डालती है। किसी भी वस्तु की रोश सीमा वह सीमा है जिसके अन्दर वह वस्तु किसी भी दूसरी वस्तु को जमकर एकत्रित नहीं होने देती। साधारण तौर पर रोश सीमा का प्रयोग ग्रहों के इर्द-गिर्द मंडराते हुए उपग्रहों के लिए होता है। अगर उपग्रह ग्रहों की रोश सीमा से बहार बन जाए, तो साधारण उपग्रह बन पाते हैं, वर्ना ग्रह का गुरुत्वाकर्षण इतना प्रभावशाली होता है के वह या तो बड़ा उपग्रह बनने ही नहीं देता, या फिर उपग्रही छल्ला बना देता है, या उस मलबे को अपनी और खींचकर उसका अपने अन्दर ही विलय कर लेता है। .

12 संबंधों: डस्पीना (उपग्रह), थलैसा (उपग्रह), थिया (ग्रह), धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९, नैअड (उपग्रह), मीटस (उपग्रह), लरिसा (उपग्रह), शनि के छल्ले, ज्वारभाटा बल, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, गैलाटिआ (उपग्रह), उपग्रही छल्ला

डस्पीना (उपग्रह)

वरुण ग्रह को दर्शाता है जिसके इर्द-गिर्द डस्पीना परिक्रमा करता है डस्पीना सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से तीसरा सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। डस्पीना का औसत व्यास १५० किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और डस्पीना उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, डस्पीना भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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थलैसा (उपग्रह)

वरुण ग्रह को दर्शाता है जिसके इर्द-गिर्द थलैसा परिक्रमा करता है थलैसा सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से दूसरा सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। थलैसा का औसत व्यास ८२ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और थलैसा उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, थलैसा भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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थिया (ग्रह)

थिया (अंग्रेजी: Theia, यूनानी: Θεία), प्रारंभिक सौर प्रणाली में, एक अनुमानित प्राचीन ग्रह-द्रव्यमान वस्तु है, जो कि भीमकाय टक्कर परिकल्पना के अनुसार, 4.5 अरब साल पहले एक अन्य ग्रह-द्रव्यमान वस्तु गाया (प्रारंभिक पृथ्वी) के साथ टकराई थी। परिकल्पना के अनुसार थीया, मंगल ग्रह के आकार का एक पिंड था, जिसका व्यास लगभग 6,102 किमी (3,792 मील) था। कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स के भूगर्भ वैज्ञानिक एडवर्ड यंग ने अपोलो मिशनों 12, 15, और 17 द्वारा एकत्रित चट्टानों के विश्लेषण पर चित्रण करते हुए प्रस्तावित किया कि थिया, पृथ्वी के साथ टकराया था, जो एक पिछले सिद्धांत चमकदार प्रभाव के विपरीत है। टक्कर के मॉडल प्रकट करते हैं कि प्रारंभिक चंद्रमा के निर्माण के लिए, थिया का मलबा पृथ्वी के चारों ओर इकट्ठा हो गया था। टक्कर के बाद, थिया के मलबे से पृथ्वी के चारों ओर चमकीले वलय बन गए थे, जो वर्तमान में शनि ग्रह के वलय के समान प्रतीत होते थे। कुछ समय पश्चात, ये वलय पृथ्वी की रोश सीमा से बाहर निकाल गए तथा वलय में उपस्थित पिंडों के संगठन से चंद्रमा का निर्माण हुआ। कुछ वैज्ञानिकों का मानना ​है कि कक्षा में उपस्थित मलबे से मूल रूप से दो चंद्रमाओं का गठन हुआ था जो बाद में एक ही चंद्रमा को बनाने के लिए विलय हो गए थे जिसे हम आज जानते हैं। थिया परिकल्पना यह भी बताती है कि चंद्रमा की अपेक्षा पृथ्वी का कोर क्यों बड़ा होगा: परिकल्पना के अनुसार, थिया की कोर और मैंटल, पृथ्वी की कोर के साथ मिश्रित है। .

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धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९

हबल अंतरिक्ष दूरबीन से १७ मई १९९४ को शूमेकर-लेवी ९ के २१ टुकड़ों की तस्वीर बृहस्पति ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध पर कुछ टकराव स्थलों पर धब्बे धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९ (Comet Shoemaker–Levy 9), जिसका औपचारिक नाम डी/१९९३ ऍफ़२ (D/1993 F2) था, एक धूमकेतु (कोमॅट) था जो जुलाई १९९४ में बृहस्पति ग्रह से टकराकर ध्वस्त हो गया। हमारे सौर मंडल में यह पृथ्वी से असंबंधित खगोलीय वस्तुओं की सबसे पहली देखी गई टक्कर थी, जिस वजह से इसपर समाचारों में भारी चर्चा हुई। दुनिया-भर के खगोलशास्त्रियों ने टकराव से पहले इस धूमकेतु पर नज़रें गाढ़ लीं। टकराव से बृहस्पति के बारे में और उसके अंदरूनी सौर मंडल से मलबा हटाने की प्रक्रियाओं पर और जानकारी मिली। शूमेकर-लेवी ९ की खोज तीन अमेरिकी खगोलशास्त्रियों ने की थी - कैरोलाइन और यूजीन शूमेकर (Caroline और Eugene Shoemaker) तथा डेविड लेवी (David Levy)। उन्होने २४ मार्च १९९३ को इसकी बृहस्पति की परिक्रमा करते हुए तस्वीर उतारी। यह किसी ग्रह की परिक्रमा करते हुआ पहला ज्ञात धूमकेतु था और समझा जाता है कि बृहस्पति ने इसे अपने गुरुत्वाकर्षण से २०-३० साल पहले पकड़ लिया था। हिसाब लगाने पर पता चला कि इसका टूटा-सा स्वरूप इसके जुलाई १९९२ में बृहस्पति के अधिक पास आने से हुए था। उस समय शूमेकर-लेवी ९ की कक्षा (ऑर्बिट) बृहस्पति की रोश सीमा के भीतर आ जाने से बृहस्पति के ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ दिया था। बाद में इसे २ किमी तक के व्यास (डायामीटर) वाले टुकड़ों में देखा गया। यह टुकड़े १९९४ में १६ जुलाई से २२ जुलाई तक बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिसफ़्येर​) से ६० किमी प्रति सैकिंड (यानि २,१६,००० किमी प्रति घंटे) की गति से टकराकर ध्वस्त हो गए। इनसे बृहस्पति के वायुमंडल में गहरी ख़रोंचे बन गई जो महीनो तक दिखाई देती रहीं। पृथ्वी से यह बृहस्पति के महान लाल धब्बे (Great Red Spot) से भी स्पष्ट दिखाई देती थी।, Kenneth R. Lang, Cambridge University Press, 2003, ISBN 978-0-521-81306-8,...

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नैअड (उपग्रह)

वरुण ग्रह को दर्शाता है जिसके इर्द-गिर्द नैअड परिक्रमा करता है) नैअड सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। नैअड का औसत व्यास ६६ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और नैअड उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, नैअड भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। फ़िलहाल नैअड वरुण के वायुमंडल के ऊपरी बादलों से २३,५०० किमी ऊपर उस ग्रह की परिक्रमा कर रहा है। .

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मीटस (उपग्रह)

सन् १९९६-९७ में गैलिलेओ यान द्वारा ली गयी मीटस की झलकी मीटस (यूनानी: Μήτις, अंग्रेज़ी: Metis) बृहस्पति ग्रह का सब से अंदरूनी उपग्रह है। इस ग्रह के अस्तित्व के बारे में सब से पहले १९७९ में पता चला जब अंतरिक्ष यान वॉयेजर प्रथम बृहस्पति के पास से गुज़रा और मीटस को उसके द्वारा खींची गयी तस्वीरों में देखा गया। उसके बाद १९९६ से लेकर सितम्बर २००३ तक गैलिलेओ यान (जिसे बृहस्पति मण्डल का अध्ययन करने भेजा गया था) ने भी इसके कई चित्र उतारे। मीटस के बृहस्पति के इतना पास होने से और बृहस्पति से इतना छोटा होने से यह उपग्रह बृहस्पति की स्थिरमुखी परिक्रमा करता है, यानि परिक्रमा करते हुए मीटस का एक ही रुख़ हमेशा बृहस्पति की ओर होता है। बृहस्पति के तगड़े गुरूत्वाकर्षक खिचाव से इस उपग्रह की गोलाई भी बेढंगी हो गयी है - इसकी लम्बाई इसकी चौड़ाई से दो गुना अधिक है। यह उपग्रह बृहस्पति की रोश सीमा के अन्दर आता है और यदि मीटस में अंदरूनी चिपकाव कम होता तो बृहस्पति का भयंकर गुरुत्वाकर्षण इसे तोड़ चुका होता। वैज्ञानिकों का मानना है के इस उपग्रह के कुछ अंशों का चूरा बनकर बृहस्पति की मुख्य उपग्रही छल्ले के बनने में प्रयोग हुआ है। .

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लरिसा (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी लरिसा की दो तस्वीरें लरिसा सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से चौथा सबसे बड़ा है। लरिसा का औसत व्यास २०० किमी से ज़रा कम है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और लरिसा उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। लरिसा धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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शनि के छल्ले

शनि के छल्लों की तस्वीर - बाहरी "ए" छल्ले और भीतरी "बी" छल्ले के बीच की कैसिनी दरार साफ़ नज़र आ रही है शनि के छल्ले हमारे सौर मण्डल के सबसे शानदार उपग्रही छल्लों का गुट हैं। यह छोटे-छोटे कणों से लेकर कई मीटर बड़े अनगिनत टुकड़ों से बने हुए हैं जो सारे इन छल्लों का हिस्सा बने शनि की परिक्रमा कर रहें हैं। यह सारे टुकड़े अधिकतर पानी की बर्फ़ के बने हुए हैं जिनमें कुछ-कुछ धुल भी मिश्रित है। यह सारे छल्ले एक चपटे चक्र में एक के अन्दर एक हैं। इस चक्र में छल्लों के बीच कुछ ख़ाली छल्ले-रुपी अंतराल या दरारे भी हैं। इन में से कुछ दरारे तो इस चक्र में परिक्रमा करते हुए उपग्रहों ने बना लीं हैं: जहाँ इनकी परिक्रमा की कक्षाएँ हैं वहाँ इन्होने छल्लों में से मलबा हटा दिया है। लेकिन कुछ दरारों के कारण अभी वैज्ञानिकों को ज्ञात नहीं हैं। .

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ज्वारभाटा बल

बृहस्पति से टकराया - बृहस्पति के भयंकर ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ डाला पृथ्वी पर ज्वार-भाटा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण से बने ज्वारभाटा बल से आते हैं शनि के उपग्रही छल्ले ज्वारभाटा बल की वजह से जुड़कर उपग्रह नहीं बन जाते ज्वारभाटा बल वह बल है जो एक वस्तु अपने गुरुत्वाकर्षण से किसी दूसरी वस्तु पर स्थित अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग स्तर से लगाती है। पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार-भाटा के उतार-चढ़ाव का यही कारण है। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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गैलाटिआ (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी गैलाटिआ की तस्वीर - यह चित्र थोड़ा खिचा हुआ है, वास्तव में गैलाटिआ इतना लम्बा नहीं है गैलाटिआ सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से चौथा सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। लरिसा का औसत व्यास १७६ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और गैलाटिआ उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, गैलाटिआ भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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उपग्रही छल्ला

हमारे सौर मण्डल के शनि ग्रह के मशहूर उपग्रहीय छल्ले बर्फ़ और धूल के बने हैं खगोलशास्त्र में उपग्रही छल्ला किसी ग्रह के इर्द गिर्द घूमता हुआ पत्थरों, धुल, बर्फ़ और अन्य पदार्थों का बना हुआ छल्ला होता है। हमारे सौर मण्डल में इसकी सबसे बड़ी मिसाल शनि की परिक्रमा करते हुए उसके छल्ले हैं। हमारे सौर मण्डल के अन्य तीन गैस दानव ग्रहों - बृहस्पति, अरुण और वरुण - के इर्द-गिर्द भी उपग्रहीय छल्ले हैं लेकिन उनकी संख्या और चौड़ाई शनि के छल्लों से कई कम है। .

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