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रेशम मार्ग

सूची रेशम मार्ग

रेशम मार्ग का मानचित्र - भूमार्ग लाल रंग में हैं और समुद्री मार्ग नीले रंग में रेशम मार्ग प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का एक समूह था जिसके माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका जुड़े हुए थे। इसका सबसे जाना-माना हिस्सा उत्तरी रेशम मार्ग है जो चीन से होकर पश्चिम की ओर पहले मध्य एशिया में और फिर यूरोप में जाता था और जिस से निकलती एक शाखा भारत की ओर जाती थी। रेशम मार्ग का जमीनी हिस्सा ६,५०० किमी लम्बा था और इसका नाम चीन के रेशम के नाम पर पड़ा जिसका व्यापार इस मार्ग की मुख्य विशेषता थी। इसके माध्यम मध्य एशिया, यूरोप, भारत और ईरान में चीन के हान राजवंश काल में पहुँचना शुरू हुआ। रेशम मार्ग का चीन, भारत, मिस्र, ईरान, अरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। इस मार्ग के द्वारा व्यापार के आलावा, ज्ञान, धर्म, संस्कृति, भाषाएँ, विचारधाराएँ, भिक्षु, तीर्थयात्री, सैनिक, घूमन्तू जातियाँ, और बीमारियाँ भी फैलीं। व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशम, चाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता था, भारत मसाले, हाथीदांत, कपड़े, काली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोना, चांदी, शीशे की वस्तुएँ, शराब, कालीन और गहने आते थे। हालांकि 'रेशम मार्ग' के नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था वास्तव में बहुत कम लोग इसके पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे। अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान हाथ बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था। शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थे, फिर सोग़दाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के मिश्रण भी पैदा हुए, मसलन तारिम द्रोणी में बैक्ट्रियाई, भारतीय और सोग़दाई लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।, Susan Whitfield, British Library, pp.

67 संबंधों: चिलास, चंगेज़ ख़ान, टकलामकान, ताशक़ुरग़ान​, तांग राजवंश, तक्षशिला, तुर्कमेनाबात, तोकमोक, दाशोग़ुज़, दूनहुआंग, नाथूला दर्रा, नारोमुरार, नारीन, पश्चिमी क्षेत्र, पहलवी साम्राज्य, पाकिस्तान में परिवहन, पंजाकॅन्त, प्राचीन चीन, फ़ाहियान, बामियान के बुद्ध, बाघ, बुख़ारा, भारतीय उपमहाद्वीप का इस्लामी इतिहास, मध्य एशिया, मध्यकालीन चीन, मर्व, मरी प्रान्त, मरी, तुर्कमेनिस्तान, मार्को पोलो, मैसूर सिल्क, मोगाओ गुफ़ाएँ, राखीगढ़ी, शबरग़ान, शिनिंग, शिआन, समरक़न्द, सिक्किम, स्तॅपी, सोग़दा, हान राजवंश, हुन्ज़ा नदी, हुन्ज़ा घाटी, हुई लोग, ह्वेन त्सांग, हेरात, जलालाबाद (किर्गिज़स्तान), विम कडफिसेस, व्यापार मार्ग, वैश्वीकरण, ख़ज़र लोग, ..., खुली अर्थव्यवस्था, गोएकतुर्क, गोबी मरुस्थल, ओश, कनिष्क, काराशहर, काराकोरम राजमार्ग, काश्गर, काशीपुर का इतिहास, काइदू नदी, किरगिज़ लोग, किज़िल गुफ़ाएँ, कूचा राज्य, कोन्या-उरगेन्च, अश्क़ाबाद, अक्साई चिन, उत्तरी रेशम मार्ग सूचकांक विस्तार (17 अधिक) »

चिलास

चिलास तक जाने के लिए पुल चिलास या चलास (उर्दू: چلاس), पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलतिस्तान क्षेत्र के दिआमेर ज़िले में स्थित एक छोटा-सा क़्स्बा है जो उस ज़िले की राजधानी भी है। यह काराकोरम राजमार्ग के द्वारा रेशम मार्ग से जुड़ता है साथ ही यह राजमार्ग इसे दक्षिण मे इस्लामाबाद से जोड़ता है। काराकोरम राजमार्ग पर चिलास से इस्लामाबाद के रास्ते में दासु, मनसेहरा, ऐबटाबाद और हरिपुर नगर आते हैं जबकि, इसके उत्तर में यह गिलगित और सोस्त के रास्ते चीनी शहरों कशगार और ताशकुरगन से जुड़ता है। .

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चंगेज़ ख़ान

चंगेज़ खान १२२७ में चंगेज खान का साम्राज्य चंगेज खान का मंदिर चंगेज़ ख़ान (मंगोलियाई: Чингис Хаан, चिंगिस खान, सन् 1162 – 18 अगस्त, 1227) एक मंगोल ख़ान (शासक) था जिसने मंगोल साम्राज्य के विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई। वह अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए प्रसिद्ध हुआ। इससे पहले किसी भी यायावर जाति (यायावर जाति के लोग भेड़ बकरियां पालते जिन्हें गड़रिया कहा जाता है।) के व्यक्ति ने इतनी विजय यात्रा नहीं की थी। वह पूर्वोत्तर एशिया के कई घुमंतू जनजातियों को एकजुट करके सत्ता में आया। साम्राज्य की स्थापना के बाद और "चंगेज खान" की घोषणा करने के बाद, मंगोल आक्रमणों को शुरू किया गया, जिसने अधिकांश यूरेशिया पर विजय प्राप्त की। अपने जीवनकाल में शुरू किए गए अभियान क़रा खितई, काकेशस और ख्वारज़्मियान, पश्चिमी ज़िया और जीन राजवंशों के खिलाफ, शामिल हैं। मंगोल साम्राज्य ने मध्य एशिया और चीन के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर कब्जा कर लिया। चंगेज खान की मृत्यु से पहले, उसने ओगदेई खान को अपन उत्तराधिकारी बनाया और अपने बेटों और पोते के बीच अपने साम्राज्य को खानतों में बांट दिया। पश्चिमी जिया को हराने के बाद 1227 में उसका निधन हो गया। वह मंगोलिया में किसी न किसी कब्र में दफनाया गया था।उसके वंशजो ने आधुनिक युग में चीन, कोरिया, काकेशस, मध्य एशिया, और पूर्वी यूरोप और दक्षिण पश्चिम एशिया के महत्वपूर्ण हिस्से में विजय प्राप्त करने वाले राज्यों को जीतने या बनाने के लिए अधिकांश यूरेशिया में मंगोल साम्राज्य का विस्तार किया। इन आक्रमणों में से कई स्थानों पर स्थानीय आबादी के बड़े पैमाने पर लगातार हत्यायेँ की। नतीजतन, चंगेज खान और उसके साम्राज्य का स्थानीय इतिहास में एक भयावय प्रतिष्ठा है। अपनी सैन्य उपलब्धियों से परे, चंगेज खान ने मंगोल साम्राज्य को अन्य तरीकों से भी उन्नत किया। उसने मंगोल साम्राज्य की लेखन प्रणाली के रूप में उईघुर लिपि को अपनाने की घोषणा की। उसने मंगोल साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित किया, और पूर्वोत्तर एशिया की अन्य जनजातियों को एकजुट किया। वर्तमान मंगोलियाई लोग उसे मंगोलिया के 'संस्थापक पिता' के रूप में जानते हैं। यद्यपि अपने अभियानों की क्रूरता के लिए चंगेज़ खान को जाना जाता है और कई लोगों द्वारा एक नरसंहार शासक होने के लिए माना जाता है परंतु चंगेज खान को सिल्क रोड को एक एकत्रीय राजनीतिक वातावरण के रूप में लाने का श्रेय दिया जाता रहा है। यह रेशम मार्ग पूर्वोत्तर एशिया से मुस्लिम दक्षिण पश्चिम एशिया और ईसाई यूरोप में संचार और व्यापार लायी, इस तरह सभी तीन सांस्कृतिक क्षेत्रों के क्षितिज का विस्तार हुआ। .

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टकलामकान

अंतरिक्ष से ली गई टकलामकान की एक तस्वीर टकलामकान रेगिस्तान का एक दृश्य नक़्शे में टकलामकान टकलामकान मरुस्थल (उइग़ुर:, तेकलीमाकान क़ुम्लुक़ी) मध्य एशिया में स्थित एक रेगिस्तान है। इसका अधिकाँश भाग चीन द्वारा नियंत्रित श़िंजियांग प्रांत में पड़ता है। यह दक्षिण से कुनलुन पर्वत शृंखला, पश्चिम से पामीर पर्वतमाला और उत्तर से तियन शान की पहाड़ियों द्वारा घिरा हुआ है। .

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ताशक़ुरग़ान​

ताशक़ुरग़ान​ (सरिकोली:, तॉशक़ुरग़ॉन​; उइग़ुर:, ताशक़ूरग़ान बाज़िरी; चीनी: 塔什库尔干镇, ताशिकु'एरगन; अंग्रेज़ी: Tashkurgan) मध्य एशिया में चीन द्वारा नियंत्रित शिनजियांग प्रान्त के ताशक़ुरग़ान​ ताजिक स्वशासित ज़िले की राजधानी है। पाकिस्तान से पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र से आने वाले काराकोरम राजमार्ग पर यह पहला महत्वपूर्ण चीनी पड़ाव है। इस राजमार्ग पर सरहद पर स्थित ख़ुंजराब दर्रे की चीनी तरफ़ ताशक़ुरग़ान​ है और पाकिस्तानी तरफ़ सोस्त है।, Andrew Burke, pp.

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तांग राजवंश

तांग राजवंश (चीनी: 唐朝, तांग चाओ) चीन का एक राजवंश था, जिसका शासनकाल सन् ६१८ ईसवी से सन्न ९०७ ईसवी तक चला। इनसे पहले सुई राजवंश का ज़ोर था और इनके बाद चीन में पाँच राजवंश और दस राजशाहियाँ नाम का दौर आया। तांग राजवंश की नीव 'ली' (李) नामक परिवार ने रखी जिन्होनें सुई साम्राज्य के पतनकाल में सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिए। इस राजवंश के शासन में लगभग १५ साल का एक अंतराल आया था, जो ८ अक्टूबर ६९० से ३ मार्च ७०५ तक चला, जिसमें दुसरे झऊ राजवंश की महारानी वू ज़ेतियाँ ने कुछ समय के लिए राजसिंहासन पर नियंत्रण हासिल कर लिया।, Tonia Eckfeld, Psychology Press, 2005, ISBN 978-0-415-30220-3, Dora Shu-fang Dien, Wu hou (Empress of China), Nova Science Publishers, 2003, ISBN 978-1-59033-804-9 तांग साम्राज्य ने शिआन के शहर को अपनी राजधानी बनाया और इस समय शिआन दुनिया का सब से बड़ा नगर था। इस दौर को चीनी सभ्यता की चरम सीमा माना जाता है। चीन में पूर्व के हान राजवंश को इतनी इज़्ज़त से याद किया जाता है कि उनके नाम पर चीनी जाति को हान चीनी बुलाया जाने लगा, लेकिन तांग राजवंश को उनके बराबर का या उनसे भी महान वंश समझा जाता है। ७वीं और ८वीं शताब्दियों में तांग साम्राज्य ने चीन में जनगणना करवाई और उन से पता चलता है कि उस समय चीन में लगभग ५ करोड़ नागरिकों के परिवार पंजीकृत थे। ९वीं शताब्दी में वे जनगणना पूरी तो नहीं करवा पाए लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि देश में ख़ुशहाली होने से आबादी बढ़कर ८ करोड़ तक पहुँच चुकी थी। इस बड़ी जनसँख्या से तांग राजवंश लाखों सैनिकों की बड़ी फौजें खड़ी कर पाया, जिनसे मध्य एशिया के इलाक़ों में और रेशम मार्ग के बहुत मुनाफ़े वाले व्यापारिक रास्तों पर यह वंश अपनी धाक जमाने लगी। बहुत से क्षेत्रों के राजा तांग राजवंश को अपना मालिक मानने पर मजबूर हो गए और इस राजवंश का सांस्कृतिक प्रभाव दूर-दराज़ में कोरिया, जापान और वियतनाम पर भी महसूस किया जाने लगा। तांग दौर में सरकारी नौकरों को नियुक्त करने के लिए प्रशासनिक इम्तिहानों को आयोजित किया जाता था और उस आधार पर उन्हें सेवा में रखा जाता था। योग्य लोगों के आने से प्रशासन में बेहतरी आई। संस्कृति के क्षेत्र में इस समय को चीनी कविया का सुनहरा युग समझा जाता है, जिसमें चीन के दो सब से प्रसिद्ध कवियों - ली बाई और दू फ़ू - ने अपनी रचनाएँ रची। हान गान, झांग शुआन और झऊ फ़ंग जैसे जाने-माने चित्रकार भी तांग ज़माने में ही रहते थे। इस युग के विद्वानों ने कई ऐतिहासिक साहित्य की पुस्तकें, ज्ञानकोश और भूगोल-प्रकाश लिखे जो आज तक पढ़े जाते हैं। इसी दौरान बौद्ध धर्म भी चीन में बहुत फैला और विकसित हुआ।तांग राजवंश के काल में काफी विकास हुआ और स्थिरता आई चीन में, सिवाय अन लुशान विद्रोह और केन्द्रीय सत्ता के कमजोर होने के बाद जो के साम्राज्य के अंतिम वर्षो में हुआ। तांग शासकों ने जिएदूशी नाम के क्षेत्रीय सामंतो को नियुक्त किया अलग अलग प्रान्तों में पर ९वी सदी के अंत तक इन्होने तांग साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध शुरू कर दिया और खुदके स्वतंत्र राज्य स्थापित किये। .

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तक्षशिला

तक्षशिला में प्राचीन बौद्ध मठ के भग्नावशेष तक्षशिला (पालि: तक्कसिला) प्राचीन भारत में गांधार देश की राजधानी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ का विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में शामिल है। यह हिन्दू एवं बौद्ध दोनों के लिये महत्व का केन्द्र था। चाणक्य यहाँ पर आचार्य थे। ४०५ ई में फाह्यान यहाँ आया था। ऐतिहासिक रूप से यह तीन महान मार्गों के संगम पर स्थित था- (१) उत्तरापथ - वर्तमान ग्रैण्ड ट्रंक रोड, जो गंधार को मगध से जोड़ता था, (२) उत्तरपश्चिमी मार्ग - जो कापिश और पुष्कलावती आदि से होकर जाता था, (३) सिन्धु नदी मार्ग - श्रीनगर, मानसेरा, हरिपुर घाटी से होते हुए उत्तर में रेशम मार्ग और दक्षिण में हिन्द महासागर तक जाता था। वर्तमान समय में तक्षशिला, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी जिले की एक तहसील तथा महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है जो इस्लामाबाद और रावलपिंडी से लगभग ३२ किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। ग्रैंड ट्रंक रोड इसके बहुत पास से होकर जाता है। यह स्थल १९८० से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में सम्मिलित है। वर्ष २०१० की एक रिपोर्ट में विश्व विरासत फण्ड ने इसे उन १२ स्थलों में शामिल किया है जो अपूरणीय क्षति होने के कगार पर हैं। इस रिपोर्ट में इसका प्रमुख कारण अपर्याप्त प्रबन्धन, विकास का दबाव, लूट, युद्ध और संघर्ष आदि बताये गये हैं। .

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तुर्कमेनाबात

तुर्कमेनाबत का हवाई अड्डा तुर्कमेनाबत (तुर्कमेनी: Türkmenabat, रूसी: Түркменабат) तुर्कमेनिस्तान के लेबाप प्रांत की राजधानी है। सन् २००९ की जनगणना में इसकी आबादी लगभग २,५४,००० थी। इस शहर को पहले चारझ़ेव (Чәрҗев, Charzhew) या 'चारजू' बुलाया जाता था (जिसका अर्थ फ़ारसी में 'चार नदियाँ या नहरें' है, इसमें 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें)। .

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तोकमोक

तोकमोक शहर के एक चौराहे पर मिग (MIG) हवाई जहाज़ स्मारक तोकमोक (किरगिज़: Токмок, अंग्रेज़ी: Tokmok) मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान देश के चुय प्रांत में एक शहर है। यह किर्गिज़स्तान के उत्तर में राष्ट्रीय राजधानी बिश्केक से पूर्व में चुय नदी और काज़ाख़स्तान की सरहद के पास स्थित है। सन् २००४ से १९ अप्रैल २००६ तक यह चुय प्रांत की राजधानी भी रहा था। .

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दाशोग़ुज़

दाशोग़ुज़ (तुर्कमेनी: Daşoguz, अंग्रेज़ी: Daşoguz, रूसी: Дашогуз), जिसका पुराना नाम 'ताशाउज़' (Ташауз) था, तुर्कमेनिस्तान के दाशोग़ुज़ प्रांत की राजधानी है। सन् २००९ की जनगणना में इसकी आबादी २,२७,१८४ थी। यह शहर तुर्कमेनिस्तान के उत्तर में उज़बेकिस्तान के क़ाराक़ालपाक़स्तान प्रान्त के साथ की सरहद पर स्थित है। 'दाशोग़ुज़' शब्द का मतलब तुर्कमेनी भाषा में 'पत्थर का चश्मा' होता है। .

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दूनहुआंग

दूनहुआंग में एक बाज़ार चीन के गांसू प्रान्त में दूनहुआंग शहर (गुलाबी रंग में) हान राजवंश काल के दौरान बने मिट्टी के संतरी बुर्ज के खंडहर नवचंद्र झील दूनहुआंग (चीनी: 敦煌, अंग्रेज़ी: Dunhuang) पश्चिमी चीन के गांसू प्रान्त में एक शहर है जो ऐतिहासिक रूप से रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था। इसकी आबादी सन् २००० में १,८७,५७८ अनुमानित की गई थी। रेत के टीलों से घिरे इस रेगिस्तानी इलाक़े में दूनहुआंग एक नख़लिस्तान (ओएसिस) है, जिसमें 'नवचन्द्र झील' (Crescent Lake) पानी का एक अहम स्रोत है। प्राचीनकाल में इसे शाझोऊ (沙州, Shazhou), यानि 'रेत का शहर', के नाम से भी जाना जाता था। यहाँ पास में मोगाओ गुफ़ाएँ भी स्थित हैं जहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धी ४९२ मंदिर हैं और जिनमें इस क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति पर भारत का गहरा प्रभाव दिखता है।, Morning Glory Publishers, 2000, ISBN 978-7-5054-0715-2,...

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नाथूला दर्रा

नाथूला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के सिक्किम राज्य और दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है।, G. S. Bajpai, pp.

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नारोमुरार

नारोमुरार वारिसलीगंज प्रखण्ड के प्रशाशानिक क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग 31 से 10 KM और बिहार राजमार्ग 59 से 8 KM दूर बसा एकमात्र गाँव है जो बिहार के नवादा और नालंदा दोनों जिलों से सुगमता से अभिगम्य है। वस्तुतः नार का शाब्दिक अर्थ पानी और मुरार का शाब्दिक अर्थ कृष्ण, जिनका जन्म गरुड़ पुराण के अनुसार विष्णु के 8वें अवतार के रूप में द्वापर युग में हुआ, अर्थात नारोमुरार का शाब्दिक अर्थ विष्णुगृह - क्षीरसागर है। प्रकृति की गोद में बसा नारोमुरार गाँव, अपने अंदर असीम संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए है। यह भारत के उन प्राचीनतम गांवो में से एक है जहाँ 400 वर्ष पूर्व निर्मित मर्यादा पुरुषोत्तम राम व् परमेश्वर शिव को समर्पित एक ठाकुर वाड़ी के साथ 1920 इसवी, भारत की स्वतंत्रता से 27 वर्ष पूर्व निर्मित राजकीयकृत मध्य विद्यालय और सन 1956 में निर्मित एक जनता पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय का उद्घाटन श्रीकृष्ण सिंह के समय बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा की गयी थी। .

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नारीन

नारीन बाज़ार नारीन(किरगिज़: Нарын, अंग्रेज़ी: Naryn) मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान देश का एक शहर है और उस राष्ट्र के नारीन प्रांत की राजधानी भी है। यह नारीन नदी के किनारे बसा हुआ है जो प्रसिद्ध सिर दरिया की एक प्रमुख उपनदी है और शहर से गुज़रते हुए एक आकर्षक तंग घाटी बनाती है। इस शहर में दो क्षेत्रीय संग्रहालय, एक आकर्षक मस्जिद, एक 'हाकिमयत' नामक सरकारी कार्यालय और कुछ यात्रियों के ठहरने के होटल हैं लेकिन इनके अलावा यह एक छोटा सा शहर है।, Bradley Mayhew, pp.

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पश्चिमी क्षेत्र

पहली सदी ईसा-पूर्व में चीनी दृष्टिकोण से पश्चिमी क्षेत्रों का नक़्शा पश्चिमी क्षेत्र या षीयू (चीनी भाषा: 西域) तीसरी सदी ईसा-पूर्व से आठवी सदी ईसवी तक लिखे गए चीनी ग्रंथों में मध्य एशिया को कहा जाता था। कभी-कभी भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य पूर्व के क्षेत्र को भी इसमें शामिल किया जाता था। व्यापार के लिए ऐतिहासिक रेशम मार्ग इन्हीं क्षेत्रों से होकर गुज़रता था। चीन में तंग राजवंश के काल के दौरान प्रसिद्ध यात्री ह्वेन त्सांग इसी क्षेत्र में दाख़िल हुआ, जिसमें उसने भारत को भी सम्मिलित किया। अपनी वापसी पर उसने "पश्चिमी क्षेत्र का महान तंग वर्णन" नामक ग्रन्थ लिखा। .

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पहलवी साम्राज्य

पहलवी साम्राज्य (Parthian Empire 247 ईसा पूर्व – 224 ईस्वी), प्राचीन ईरान और ईराक का प्रमुख राजनैतिक और सांस्कृतिक केन्द्र था। इसका संस्थापक पार्थिया का अश्क प्रथम, जो कि पर्णि कबीले का प्रमुख भी था, ने तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व में पार्थिया क्षेत्र को जीत कर की थी। मिहर्दत प्रथम (शासनकाल 171–138 ईसा पूर्व) ने सेल्युकसी साम्राज्य से मीदि व मेसोपोटामिया छीनकर और अधिक विस्तार किया। अपने उत्कर्ष काल में यह साम्राज्य फ़रात नदी तक फैल गया था, जो क्षेत्र वर्तमान में उत्तर-पूर्वी तुर्की से लेकर पूर्वी ईरान तक है। यह साम्राज्य रेशम मार्ग पर स्थित था, जो कि उस समय रोमन साम्राज्य व हान राजवंश के मध्य प्रमुख व्यापारिक मार्ग था। इस कारण से यह साम्राज्य व्यापारिक व वाणिज्यिक केन्द्र बन गया था। पहलवों ने कला, वास्तु-कला, धार्मिक मान्यताएँ और राजचिह्न वृहत स्तर पर अपने समकालीन सांस्कृतिक साम्राज्यों सी ली थी, जो कि पर्शियन व हेलिनिस्टिक कालखण्ड को परलक्षित करते हैं। इस साम्राज्य के प्रथम अर्ध कालखण्ड पर यूनानी संस्कृति की छाप दिखती हैं, जो कि धीरे-धीरे अंत तक ईरानी संस्कृति में परिवर्तित हो जाती है। पहलवी साम्राज्य के शासकों को "राजाधिराज" को उपाधि प्राप्त थी क्योंकि ये स्वयं को हख़ामनी साम्राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी मानते थे। प्रारम्भ में पहलवों के शत्रु पश्चिम में सेल्युकसी साम्राज्य व पूर्व में शक थे। जैसे-जैसे इनके साम्राज्य का पश्चिम की ओर विस्तार हुआ, उनका सीधा संघर्ष आर्मेनियाई साम्राज्य व रोम गणतन्त्र से होने लगा। रोमनों व पहलवों में आर्मेनिया के राजाओं को अपने कठपुतली के रूप में स्थापित करने की होड़ लगी रहती थी। पहलवों ने रोमन गवर्नर मार्कस लिसीनियस क्रास्सस को 53 ईसा पूर्व में कार्रहाए के युद्ध में निर्णायक रूप से हराकर 40–39 ईसा पूर्व तक टायर को छोड़कर पूरे लेवांट क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। तथापि मार्क एन्टोनी ने जवाबी आक्रमण करके एक सीमित सफलता प्राप्त की। इस तरह से कुछ शताब्दियों तक रोमन-पहलव युद्ध चलता रहा। इन युद्धों में कई बार रोमनों ने सेल्युसिया व तेसीफोन नगरों पर नियंत्रण तो किया परन्तु वे लम्बे समय तक इसे अपने हाथ में नहीं रख पाये। इसी बीच सिंहासन के लिये पहलवों के मध्य ही गृह युद्ध होने लग गये जो कि विदेशी आक्रमण से भी अधिक खतरनाक थे। पहलव साम्राज्य का पतन तब हुआ जब फ़ार्स के इश्तकिर के शासक अर्दशीर प्रथम ने पहलवों के विरुद्ध बगावत कर दी व अंतिम शासक अर्ताबनुस पंचम की हत्या करके सासानी साम्राज्य की स्थापना की, जो कि ईरान पर मुस्लिम आक्रमण के पहले सातवीं शताब्दी तक अस्तित्व में रहा। पहलवी व यूनानी में लिखे मूल पहलव स्रोत सासानी व हख़ामनी की तुलना में बहुत ही दुर्लभ है। फैले हुए कीलाकर फलकों, शिलालेखों, द्राच्मा सिक्कों तथा कुछ चर्मपत्रों के अतिरिक्त पहलवों का इतिहास बाहरी स्रोतों से ही प्राप्त हुए हैं। .

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पाकिस्तान में परिवहन

पाकिस्तान परिवहन नेटवर्क कराची में एक व्यस्त चौराहा, अन्य प्रकार के परिवहन दिखाते हुए पाकिस्तान में परिवहन विस्तृत और विविध प्रकार के हैं लेकिन यह अभी भी विकास की प्रक्रिया में है और 170 मिलियन से भी अधिक व्यक्तियों को सेवा प्रदान कर रहा है।پاکِستان نقل و حمل नए हवाई अड्डों, सड़कों और रेलवे मार्गों के निर्माण के फलस्वरूप देश में रोजगारों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। पाकिस्तान का अधिकांश मार्ग तंत्र (राष्ट्रीय राजमार्ग) और रेलवे मार्ग तंत्र 1947 के पहले के बने हुए हैं, मुख्यतया ब्रिटिश राज के दौरान.

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पंजाकॅन्त

पंजाकॅन्त का बाज़ार पंजाकॅन्त ज़िला ताजिकिस्तान के पश्चिमोत्तर में स्थित है पंजाकॅन्त का बाहर मिलने वाले प्राचीन खँडहर पंजाकॅन्त (ताजिकी: Панҷакент, फ़ारसी:, रूसी: Пенджикент, अंग्रेज़ी: Panjakent) उत्तर-पश्चिमी ताजिकिस्तान के सुग़्द प्रांत में ज़रफ़शान नदी के किनारे बसा हुआ एक शहर है। सन् २००० की जनगणना में यहाँ की आबादी ३३,००० थी। यह प्राचीनकाल में सोग़दा का एक प्रसिद्ध शहर हुआ करता था और उस पुरानी नगरी के खँडहर आधुनिक पंजाकॅन्त शहर के बाहरी इलाक़ों में देखे जा सकते हैं। .

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प्राचीन चीन

चीन का सबसे पुराना राजवंश है - शिया राजवंश। इनका अस्तित्व एक लोककथा लगता था पर हेनान में पुरातात्विक खुदाई के बाद इसके वजूद की सत्यता सामने आई। प्रथम प्रत्यक्ष राजवंश था -शांग राजवंश, जो पूर्वी चीन में 18वीं से 12 वीं सदी इसा पूर्व पीली नदी के किनारे बस गए। 12वीं सदी ईसा पूर्व में पश्चिम से झाऊ शासकों ने इनपर हमला किया और इनके क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इन्होने 5वीं सदी ईसा पूर्व तक राज किया। इसके बाद चीन के छोटे राज्य आपसी संघर्ष में भिड़ गए। ईसा पूर्व 221 में किन राजाओं ने चीन का प्रथम बार एकीकरण किया। इन्होने राजा का कार्यालय स्थापित किया और चीनी भाषा का मानकीकरण किया। ईसा पूर्व 220 से 206 ई. तक हान राजवंश के शासकों ने चीन पर राज किया और चीन की संस्कृति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। य़ह प्रभाव अब तक विद्यमान है। इन्होने रेशम मार्ग की भी स्थापना रखी। हानों के पतन के बाद चीन में फिर से अराजकता का माहौल छा गया। सुई राजवंश ने 580 ईस्वी में चान का एकीकरण किया जिसके कुछ ही सालों बाद (614 ई.) इस राजवंश का पतन हो गया। .

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फ़ाहियान

फ़ाहियान के यात्रा-वृत्तान्त का पहला पन्ना फ़ाहियान या फ़ाशियान (चीनी: 法顯 या 法显, अंग्रेज़ी: Faxian या Fa Hien; जन्म: ३३७ ई; मृत्यु: ४२२ ई अनुमानित) एक चीनी बौद्ध भिक्षु, यात्री, लेखक एवं अनुवादक थे जो ३९९ ईसवी से लेकर ४१२ ईसवी तक भारत, श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए। उनका ध्येय यहाँ से बौद्ध ग्रन्थ एकत्रित करके उन्हें वापस चीन ले जाना था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने वृत्तांत में लिखा जिसका नाम बौद्ध राज्यों का एक अभिलेख: चीनी भिक्षु फ़ा-शियान की बौद्ध अभ्यास-पुस्तकों की खोज में भारत और सीलोन की यात्रा था। उनकी यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल था और चीन में जिन राजवंश काल चल रहा था। फा सिएन पिंगगयांग का निवासी था जो वर्तमान शांसी प्रदेश में है। उसने छोटी उम्र में ही सन्यास ले लिया था। उसने बौद्ध धर्म के सद्विचारों के अनुपालन और संवर्धन में अपना जीवन बिताया। उसे प्रतीत हुआ कि विनयपिटक का प्राप्य अंश अपूर्ण है, इसलिए उसने भारत जाकर अन्य धार्मिक ग्रंथों की खोज करने का निश्चय किया। लगभग ६५ वर्ष की उम्र में कुछ अन्य बंधुओं के साथ, फाहिएन ने सन् ३९९ ई. में चीन से प्रस्थान किया। मध्य एशिया होते हुए सन् ४०२ में वह उत्तर भारत में पहुँचा। यात्रा के समय उसने उद्दियान, गांधार, तक्षशिला, उच्छ, मथुरा, वाराणसी, गया आदि का परिदर्शन किया। पाटलिपुत्र में तीन वर्ष तक अध्ययन करने के बाद दो वर्ष उसने ताम्रलिप्ति में भी बिताए। यहाँ वह धर्मसिद्धांतों की तथा चित्रों की प्रतिलिपि तैयार करता रहा। यहाँ से उसने सिंहल की यात्रा की और दो वर्ष वहाँ भी बिताए। फिर वह यवद्वीप (जावा) होते हुए ४१२ में शांतुंग प्रायद्वीप के चिंगचाऊ स्थान में उतरा। अत्यंत वृत्र हो जाने पर भी वह अपने पवित्र लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहा। चिएन कांग (नैनकिंग) पहुँचकर वह बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद के कार्य में संलग्न हो गा। अन्य विद्वानों के साथ मिलकर उसने कई ग्रंथों का अनुवाद किया, जिनमें से मुख्य हैं-परिनिर्वाणसूत्र और महासंगिका विनय के चीनी अनुवाद। 'फौ-कुओ थी' अर्थात् 'बौद्ध देशों का वृत्तांत' शीर्षक जो आत्मचरित् उसने लिखा है वह एशियाई देशों के इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विश्व की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है। .

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बामियान के बुद्ध

अलेक्जेंडर बर्नस द्वारा १८३२ में बना बामियान के बुद्ध का चित्रण। बामियान के बुद्ध चौथी और पांचवीं शताब्दी में बनी बुद्ध की दो खडी मूर्तियां थी जो अफ़ग़ानिस्तान के बामयान में स्थित थी। ये काबुल के उत्तर पश्चिम दिशामें २३० किलोमीटर (१४० मील) पर, २५०० मीटर (८२०० फीट) की ऊंचाई पर थे। इनमेंसे छोटी मूर्ति सन् ५०७ में और बडी मूर्ति सन् ५५४ में निर्मित थी। ये क्रमश: ३५ मीटर (११५ फीट) और ५३ मीटर (१७४ फीट) की ऊंचाई की थी। मार्च २००१ में अफ़ग़ानिस्तान के जिहादी संगठन तालिबान के नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के कहने पर डाइनेमाइट से उडा दिया गया। कुछ हफ्तों में संयुक्त राज्य अमेरिका के दौरेपर अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के दूत सईद रहमतुल्लाह हाशमी ने बताया कि उन्होने विशेष रूप से मूर्तियोंके रखरखाव के लिए आरक्षित अंतर्राष्ट्रीय सहायता का विरोध किया था जबकि अफ़ग़ानिस्तान अकाल का सामना कर रहा था। .

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बाघ

बाघ जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनपायी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया, अफगानिस्तान और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है। इस पर काले रंग की पट्टी पायी जाती है। वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है। बाघ १३ फीट लम्बा और ३०० किलो वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम पेंथेरा टिग्रिस है। यह भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है। .

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बुख़ारा

बुख़ारा के अमीर के महल का दरवाज़ा, यह यूनेस्को द्वारा पंजीकृत विश्व धरोहर स्थल है बुख़ारा में पाया गया यवन-बैक्ट्रियाई सम्राट युक्राटीडीस (१७०-१४५ ईसापूर्व) द्वारा ज़र्ब सिक्का जो प्राचीनकाल का सबसे बड़ा सोने का सिक्का है। इसका वज़न १६९.२ ग्राम और व्यास (डायामीटर) ५८ मिलीमीटर है। इसे फ़्रांसिसी सम्राट नेपोलियन तृतीय ने ले लिया था और अब यह पैरिस के एक संग्राहलय में है। अलीम ख़ान (१८८०-१९४४), बुख़ारा का अंतिम अमीर, जिसे १९२० में सिंहासन से हटा दिया गया कलाँ मीनार (यानि 'बड़ी मीनार') नादिर दीवान-बेग़ी मदरसे के दरवाज़े पर अमरपक्षी (काल्पनिक फ़ीनिक्स पक्षी), यह लब-ए-हौज़ स्थल का हिस्सा है बुख़ारा (रूसी: Бухара, फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: Bokhara) मध्य एशिया में स्थित उज़बेकिस्तान देश के बुख़ारा प्रान्त की राजधानी है। यह उज़बेकिस्तान की पाँचवी सबसे बड़ी नगरी है। इसकी जनसंख्या २,३७,९०० है (सन् १९९९ अनुमानानुसार) और यह शहर लगभग पाँच हजार वर्षों से बसा हुआ है।, Europa Publications Limited, Taylor & Francis, 2002, ISBN 978-1-85743-137-7,...

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भारतीय उपमहाद्वीप का इस्लामी इतिहास

इस्लाम भारतीय उपमहाद्वीप का एक प्रमुख धर्म हैं। भारत की कुल जनसंख्या के 14.5%, पाकिस्तान के 97 %, बांग्लादेश के 89%, नेपाल के 6%,भूटान के 1.1% लोग इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं। उपमहाद्वीप को इस्लाम से सबसे पहले अरबी व्यापरियो ने सातवी शताब्दी के मध्य में अवगत कराया। इस्लाम का व्यापक फैलाव सातवी शताब्दी के अंत में मोहम्मद-बिन-कासिम के सिंध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकों के द्वारा हुआ। इस प्रान्त ने विश्व के कुछ महान इस्लामिक साम्राज्यों के उठान एवं पतन को देखा है। सातवी शतब्दी से लेकर सन १८५७ तक विभिन्न इस्लामिक साम्राज्यों ने भारत, पाकिस्तान एवं दुसरे देशों पर गहरा असर छोड़ा है। इस्लामिक शासक आपने साथ मध्य एवं पश्चिमी एशिया की विभिन्न कलाएं एवं विज्ञानं लेकर उपमहाद्वीप में आयें। भारतीय एवं इस्लामिक कलाओ का संगम ने विश्व को कई अनुपम धरोहर दी .

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मध्य एशिया

मध्य एशिया एशिया के महाद्वीप का मध्य भाग है। यह पूर्व में चीन से पश्चिम में कैस्पियन सागर तक और उत्तर में रूस से दक्षिण में अफ़ग़ानिस्तान तक विस्तृत है। भूवैज्ञानिकों द्वारा मध्य एशिया की हर परिभाषा में भूतपूर्व सोवियत संघ के पाँच देश हमेशा गिने जाते हैं - काज़ाख़स्तान, किरगिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़बेकिस्तान। इसके अलावा मंगोलिया, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तान, भारत के लद्दाख़ प्रदेश, चीन के शिनजियांग और तिब्बत क्षेत्रों और रूस के साइबेरिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को भी अक्सर मध्य एशिया का हिस्सा समझा जाता है। इतिहास में मध्य एशिया रेशम मार्ग के व्यापारिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। चीन, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच लोग, माल, सेनाएँ और विचार मध्य एशिया से गुज़रकर ही आते-जाते थे। इस इलाक़े का बड़ा भाग एक स्तेपी वाला घास से ढका मैदान है हालाँकि तियान शान जैसी पर्वत शृंखलाएँ, काराकुम जैसे रेगिस्तान और अरल सागर जैसी बड़ी झीलें भी इस भूभाग में आती हैं। ऐतिहासिक रूप मध्य एशिया में ख़ानाबदोश जातियों का ज़ोर रहा है। पहले इसपर पूर्वी ईरानी भाषाएँ बोलने वाली स्किथी, बैक्ट्रियाई और सोग़दाई लोगों का बोलबाला था लेकिन समय के साथ-साथ काज़ाख़, उज़बेक, किरगिज़ और उईग़ुर जैसी तुर्की जातियाँ अधिक शक्तिशाली बन गई।Encyclopædia Iranica, "CENTRAL ASIA: The Islamic period up to the Mongols", C. Edmund Bosworth: "In early Islamic times Persians tended to identify all the lands to the northeast of Khorasan and lying beyond the Oxus with the region of Turan, which in the Shahnama of Ferdowsi is regarded as the land allotted to Fereydun's son Tur.

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मध्यकालीन चीन

सुई राजवंश के बाद तंग राजवंश और सोंग राजवंश काकाल आया। इनके शासन के दौरान चीन की संस्कृति और विज्ञान अपने चरम पर पहुंच गया। सातवीं से चौदहवीं सदी तक चीन विश्व का सबसे संस्कृत देश बना रहा। 1271 में मंगोल सरदार कुबलय खां ने युआन रादवंश की स्थापना की जिसने 1279 तक सोंग वंश को सत्ता से हटाकर अपना अधिपत्य कायम किया। एक किसान ने 1368 में मंगोलों को भगा दिया और मिंग राजवंश की स्थापना की जो 1664 तक चला। मंचू लोगों के द्वारा स्थापित क्विंग राजवंश ने चीन पर 1911 तक राज किया जो चीन का अंतिम वंश था। चीन का सबसे पुराना राजवंश है - शिया राजवंश। इनका अस्तित्व एक लोककथा लगता था पर हेनान में पुरातात्विक खुदाई के बाद इसके वजूद की सत्यता सामने आई। प्रथम प्रत्यक्ष राजवंश था - शांग राजवंश, जो पूर्वी चीन में 18वीं से 12 वीं सदी इसा पूर्व पीली नदी के किनारे बस गए। 12वीं सदी ईसा पूर्व में पश्चिम से झोऊ शासकों ने इनपर हमला किया और इनके क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इन्होने 5वीं सदी ईसा पूर्व तक राज किया। इसके बाद चीन के छोटे राज्य आपसी संघर्ष में भिड़ गए। ईसा पूर्व 221 में चिन राजवंश ने चीन का प्रथम बार एकीकरण किया। इन्होने राजा का कार्यालय स्थापित किया और चीनी भाषा का मानकीकरण किया। ईसा पूर्व 220 से 206 ई. तक हान राजवंश के शासकों ने चीन पर राज किया और चीन की संस्कृति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। य़ह प्रभाव अब तक विद्यमान है। इन्होने रेशम मार्ग की भी स्थापना रखी। हानों के पतन के बाद चीन में फिर से अराजकता का माहौल छा गया। सुई राजवंश ने 580 ईस्वी में चान का एकीकरण किया जिसके कुछ ही सालों बाद (614 ई.) इस राजवंश का पतन हो गया। युद्ध कला में मध्य एशियाई देशों से आगे निकल जाने के कारण चीन ने मध्य एशिया पर अपना प्रभुत्व जमा लिया, पर साथ ही साथ वह यूरोपीय शक्तियों के समक्ष कमजोर पड़ने लगा। चीन शेष विश्व के प्रति सतर्क हुआ और उसने यूरोपीय देशो के साथ व्यापार का रास्ता खोल दिया। ब्रिटिश भारत तथा जापान के साथ हुए युद्धों तथा गृहयुद्धो ने क्विंग राजवंश को कमजोर कर डाला। अंततः 1912 में चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई। युद्ध कला में मध्य एशियाई देशों से आगे निकल जाने के कारण चीन ने मध्य एशिया पर अपना प्रभुत्व जमा लिया, पर साथ ही साथ वह यूरोपीय शक्तियों के समक्ष कमजोर पड़ने लगा। चीन शेष विश्व के प्रति सतर्क हुआ और उसने यूरोपीय देशो के साथ व्यापार का रास्ता खोल दिया। ब्रिटिश भारत तथा जापान के साथ हुए युद्धों तथा गृहयुद्धो ने क्विंग राजवंश को कमजोर कर डाला। अंततः 1912 में चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई। चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इस मानव निर्मित ढांचे को अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है। यह दीवार ६,४०० किलोमीटर (१०,००० ली, चीनी लंबाई मापन इकाई) के क्षेत्र में फैली है। इसका विस्तार पूर्व में शानहाइगुआन से पश्चिम में लोप नुर तक है और कुल लंबाई लगभग ६७०० कि॰मी॰ (४१६० मील) है। हालांकि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार समग्र महान दीवार, अपनी सभी शाखाओं सहित ८,८५१.८ कि॰मी॰ (५,५००.३ मील) तक फैली है। अपने उत्कर्ष पर मिंग वंश की सुरक्षा हेतु दस लाख से अधिक लोग नियुक्त थे। यह अनुमानित है, कि इस महान दीवार निर्माण परियोजना में लगभग २० से ३० लाख लोगों ने अपना जीवन लगा दिया था। चीन में राज्य की रक्षा करने के लिए दीवार बनाने की शुरुआत हुई आठवीं शताब्दी ईसापूर्व में जिस समय कुई (अंग्रेजी:Qi), यान (अंग्रेजी:Yan) और जाहो (अंग्रेजी:Zhao) राज्यों ने तीर एवं तलवारों के आक्रमण से बचने के लिए मिटटी और कंकड़ को सांचे में दबा कर बनाई गयी ईटों से दीवार का निर्माण किया। ईसा से २२१ वर्ष पूर्व चीन किन (अंग्रेजी:Qin) साम्राज्य के अनतर्गत आ गया। इस साम्राज्य ने सभी छोटे राज्यों को एक करके एक अखंड चीन की रचना की। किन साम्राज्य से शासको ने पूर्व में बनायी हुई विभिन्न दीवारों को एक कर दिया जो की चीन की उत्तरी सीमा बनी। पांचवीं शताब्दी से बहुत बाद तक ढेरों दीवारें बनीं, जिन्हें मिलाकर चीन की दीवार कहा गया। प्रसिद्धतम दीवारों में से एक २२०-२०६ ई.पू.

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मर्व

मर्व के प्राचीन खँडहर सुलतान संजर का मक़बरा मर्व (अंग्रेज़ी: Merv, फ़ारसी:, रूसी: Мерв) मध्य एशिया में ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर स्थित एक महत्वपूर्ण नख़लिस्तान (ओएसिस) में स्थित शहर था। यह तुर्कमेनिस्तान के आधुनिक मरी नगर के पास था। भौगोलिक दृष्टि से यह काराकुम रेगिस्तान में मुरग़ाब नदी के किनारे स्थित है। कुछ स्रोतों के अनुसार १२वीं शताब्दी में थोड़े से समय के लिए मर्व दुनिया का सबसे बड़ा शहर था। प्राचीन मर्व के स्थल को यूनेस्को ने एक विश्व धरोहर घोषित कर दिया है। .

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मरी प्रान्त

तुर्कमेनिस्तान में मरी प्रान्त (हरे रंग में) मरी शहर में एक मस्जिद मरी प्रान्त (तुर्कमेनी: Mary welaýaty, Мары велаяты; अंग्रेज़ी: Mary Province; फ़ारसी:, मर्व) तुर्कमेनिस्तान की एक विलायत (यानि प्रान्त) है जो उस देश के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसकी सरहद अफ़्ग़ानिस्तान से लगती हैं। इस प्रान्त का क्षेत्रफल ८७,१५० किमी२ है और सन् २००५ की जनगणना में इसकी आबादी १४,८०,४०० अनुमानित की गई थी।Statistical Yearbook of Turkmenistan 2000-2004, National Institute of State Statistics and Information of Turkmenistan, Ashgabat, 2005.

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मरी, तुर्कमेनिस्तान

प्राचीन मर्व शहर के कुछ खँडहर मरी (तुर्कमेनी: Mary, Мары; अंग्रेज़ी: Mary; फ़ारसी:, मर्व) तुर्कमेनिस्तान के मरी प्रांत की राजधानी है। इसके पुराने नाम 'मर्व' (Merv), 'मेरु' और 'मारजियाना' (Margiana) हुआ करते थे। यह काराकुम रेगिस्तान में मुरग़ाब नदी के किनारे बसा हुआ एक नख़लिस्तान (ओएसिस) है। सन् २००९ में इसकी आबादी १,२३,००० थी जो १९८९ में ९२,००० से बढ़ी हुई थी। .

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मार्को पोलो

मार्को पोलो (वेनिस १५ सितंबर, १२५४ - वेनिस, २९ जनवरी, १३२४) एक इतालवी व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत था। उसका जन्म वेनिस गणराज्य में मध्य युग के अंत में हुआ था। अपने पिता, निकोलस पोलो (Niccolò) और अपने चाचा, मातेयो (Matteo), के साथ वह रेशम मार्ग की यात्रा करने वाले सर्वप्रथम यूरोपियनों में से एक था। उसने अपनी यात्रा १२७२ में लाइआसुस बंदरगाह (आर्मेनिया) से प्रारंभ की थी। उनकी चीन समेत, पूर्व की यात्रा का विस्तृत प्रतिवेदन ही लंबे समय तक पश्चिम में एशिया के बारे में जानकारी देने वाला स्रोत रहा है।मार्कोपोलो (1292-93ईं) वेनिस निवासी इतालवी यात्री था जिस ’ मध्यकालीन यात्रियों का राजकुमार' की उपाधि दी गई । इसका वृतांत ’द बुक ऑफ सर-मार्कोपोलो’ के नाम से हैं, जो तत्कालीन भारत के अर्थिक इतिहास की द्ष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उनका यात्रा मार्ग इस प्रकार था: आर्मेनिया से होते हुए वे तुर्की के उत्तर में गए। .

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मैसूर सिल्क

मैसूर सिल्क साड़ीl भारत में कुल 14,000 मीट्रिक टन का शहतूत रेशम उत्पादन होता है, कर्नाटक  में  ही ९००० मीट्रिक टन क उत्पादन होता है।   देश में, इस प्रकार से कर्नाटक देश के कुल शहतूत रेशम का ७०% भाग का योगदान करता है। कर्नाटक में रेशम मुख्य रूप से  मैसूर जिला में उगाया जाता है। .

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मोगाओ गुफ़ाएँ

मोगाओ गुफ़ाएँ (Mogao Caves), जिन्हें हज़ार बुद्धों की गुफ़ाएँ (Caves of the Thousand Buddhas) भी कहते हैं, पश्चिमी चीन के गान्सू प्रांत के दूनहुआंग शहर से २५ किमी दक्षिणपूर्व में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। रेशम मार्ग पर स्थित इस नख़्लिस्तान (ओएसिस) क्षेत्र में ४९२ मंदिरों का एक मंडल है। इनमें १००० वर्षों के काल में गुफ़ाएँ खोदी गई। सबसे पहली गुफ़ाएँ ३६६ ईसापूर्व में बौद्ध चिंतन और पूजा के लिए स्थान बनाने के लिए बनाई गई थी। सन् १९०० में एक गुफ़ा में बहुत से दस्तावेज़ों का एक भण्डार मिला जो ११वीं शताब्दी में चुनवा के बंद कर दिया गया था। इसे 'पुस्तकालय गुफ़ा' कहा जाने लगा और इसकी सामग्री दुनिया भर में बंट गई। मोगाओ की बहुत सी गुफ़ाएँ पर्यटकों के लिए खुली हैं और यहाँ हर वर्ष बहुत से सैलानी घूमने आते हैं।, Roderick Whitfield, Susan Whitfield, Neville Agnew, Getty Publications, 2000, ISBN 978-0-89236-585-2 .

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राखीगढ़ी

हारियाणा हरियानणा राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार ज़िले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। राखीगढ़ी सिन्धु घाटी सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में धोलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है। राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया। राखीगढ़ी से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं। राखीगढ़ी से महत्त्वपूर्ण स्मारक एवं पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें दुर्ग-प्राचीर, अन्नागार, स्तम्भयुक्त वीथिका या मण्डप, जिसके पार्श्व में कोठरियाँ भी बनी हुई हैं, ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएँ आदि मुख्य हैं। .

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शबरग़ान

शबरग़ान में चुनावों में मतदान देते कुछ नागरिक शबरग़ान (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Sheberghan) उत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान के जोज़जान प्रान्त की राजधानी है। यह शहर सफ़ीद नदी के किनारे मज़ार-ए-शरीफ़ से लगभग १३० किलोमीटर दूर स्थित है। सन् २००६ में इसकी जनसँख्या १,४८,३२९ अनुमानित की गई थी। .

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शिनिंग

शिनिंग का केन्द्रीय व्यापारिक क्षेत्र शिनिंग (西宁, Xining) जनवादी गणराज्य चीन के पश्चिमी भाग में स्थित चिंगहई प्रांत की राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। यह तिब्बत के पठार पर स्थित सभी नगरों में से भी सबसे बड़ा है। यह चीन की प्रशासन प्रणाली के अनुसार एक उपप्रांतीय शहर (प्रीफ़ेक्चर, दिजी) का दर्जा रखता है। सन् २०१० की जनगणना में इसकी आबादी २२,०८,७०८ अनुमानित की गई थी, जिसमें से ११,९८,३०४ शहरी इलाक़ों में रहते थे। ऐतिहासिक रूप से यह शहर रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव था और चीन और तिब्बत के दरमियान ऊन, लकड़ी और नमक के व्यापार के लिए भी अहम था। यहाँ कुमबुम (སྐུ་འབུམ, Kumbum) तिब्बती बौद्ध मठ और ६०० साल पुरानी दोंगगुआन मस्जिद (东关清真寺, Dongguan Mosque) स्थित हैं।, David Leffman, Martin Zatko, Penguin, 2011, ISBN 978-1-4053-8908-2,...

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शिआन

शिआन के नज़ारे, ऊपर बाई तरफ़ से घड़ी की तरह गोल घुमते हुए: मिटटी की फ़ौज, 'महान जंगली बत्तख़' बौद्ध पगोडा, शिआन ढोल मंज़िल, शिआन घंटाघर, शिआन की नगर दीवार, तंग स्वर्ग बाग़ शिआन (चीनी: 西安; अंग्रेज़ी: Xi'an) चीन के शान्शी प्रांत की राजधानी है और चीन की प्रशासनिक प्रणाली में शहरी उपप्रान्त का दर्जा रखता है। वेई नदी के किनारे स्थित शिआन का इतिहास ३,१०० वर्षों से चला आ रहा है और यह चीन के प्राचीनतम शहरों में से एक है। मिंग राजवंश के दौर से पहले इसे 'चंगअन' के नाम से जाना जाता था। शिआन प्राचीन चीन की चार महान राजधानियों में से एक है और कई चीनी राजवंशों ने इसे अपनी राजधानी के रूप में प्रयोग किया है, जिनमें झोऊ, चिन, हान, सुई और तंग राजवंश शामिल हैं।, Britannica Educational Publishing, The Rosen Publishing Group, 2010, ISBN 978-1-61530-182-9 शिआन ऐतिहासिक रेशम मार्ग का सब से पूर्वी केंद्र था, जहाँ से माल मध्य पूर्व, भारत और यूरोप के बाज़ारों तक आया-जाया करता था। चीन की प्रसिद्ध 'मिटटी की फ़ौज' भी शिआन में ही स्थित है, जो अब पर्यटकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है और जिसमें सन् १९७४ में हज़ारों सैनिकों की मूर्तियाँ कुछ किसानों को अकस्माक ही प्रथम चिन सम्राट के मक़बरे में मिल गई।, Jane Portal, Hiromi Kinoshita, Harvard University Press, 2007, ISBN 978-0-674-02697-1 सन् २०१० में शिआन शहरी क्षेत्र की आबादी लगभग ८० लाख थी। .

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समरक़न्द

समरक़न्द शहर का 'रेगिस्तान' नामक पुरातन स्थल समरक़न्द (Samarqand, Самарқанд, سمرقند) उज़बेकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। मध्य एशिया में स्थित यह नगर ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। इस नगर का महत्व रेशम मार्ग पर पश्चिम और चीन के मध्य स्थित होने के कारण बहुत अधिक है। भारत के इतिहास में भी इस नगर का महत्व है क्योंकि बाबर इसी स्थान के शासक बनने की चेष्टा करता रहा था। बाद में जब वह विफल हो गया तो भागकर काबुल आया था जिसके बाद वो दिल्ली पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गया था। 'बीबी ख़ानिम की मस्जिद' इस शहर की सबसे प्रसिद्ध इमारत है। २००१ में यूनेस्को ने इस २७५० साल पुरान शहर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया। इसका उस सूची में नाम है: 'समरकन्द - संस्कृति का चौराहा'। .

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सिक्किम

(या, सिखिम) भारत पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक पर्वतीय राज्य है। अंगूठे के आकार का यह राज्य पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। अंग्रेजी, नेपाली, लेप्चा, भूटिया, लिंबू तथा हिन्दी आधिकारिक भाषाएँ हैं परन्तु लिखित व्यवहार में अंग्रेजी का ही उपयोग होता है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। गंगटोक राजधानी तथा सबसे बड़ा शहर है। सिक्किम नाम ग्याल राजतन्त्र द्वारा शासित एक स्वतन्त्र राज्य था, परन्तु प्रशासनिक समस्यायों के चलते तथा भारत से विलय के जनमत के कारण १९७५ में एक जनमत-संग्रह के अनुसार भारत में विलीन हो गया। उसी जनमत संग्रह के पश्चात राजतन्त्र का अन्त तथा भारतीय संविधान की नियम-प्रणाली के ढाचें में प्रजातन्त्र का उदय हुआ। सिक्किम की जनसंख्या भारत के राज्यों में न्यूनतम तथा क्षेत्रफल गोआ के पश्चात न्यूनतम है। अपने छोटे आकार के बावजूद सिक्किम भौगोलिक दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। कंचनजंगा जो कि दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है, सिक्किम के उत्तरी पश्चिमी भाग में नेपाल की सीमा पर है और इस पर्वत चोटी चको प्रदेश के कई भागो से आसानी से देखा जा सकता है। साफ सुथरा होना, प्राकृतिक सुंदरता पुची एवं राजनीतिक स्थिरता आदि विशेषताओं के कारण सिक्किम भारत में पर्यटन का प्रमुख केन्द्र है। .

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स्तॅपी

मंगोलिया में स्तॅपी पर लगे खेमे बसंत के मौसम में रूस के इलोवलिंसकी ज़िले में स्तॅपी की घास में खिले जंगली फूल मंगोलियाई स्तॅपी में अश्वधावन स्तॅप, स्तॅपी या स्टेपी (अंग्रेज़ी: steppe, रूसी: степь) यूरेशिया के समशीतोष्ण (यानि टॅम्प्रेट) क्षेत्र में स्थित विशाल घास के मैदानों को कहा जाता है। यहाँ पर वनस्पति जीवन घास, फूस और छोटी झाड़ों के रूप में अधिक और पेड़ों के रूप में कम देखने को मिलता है। यह पूर्वी यूरोप में युक्रेन से लेकर मध्य एशिया तक फैले हुए हैं। स्तॅपी क्षेत्र का भारत और यूरेशिया के अन्य देशों के इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। ऐसे घासदार मैदान दुनिया में अन्य स्थानों में भी मिलते हैं: इन्हें यूरेशिया में "स्तॅपी", उत्तरी अमेरिका में "प्रेरी" (prairie), दक्षिण अमेरिका में "पाम्पा" (pampa) और दक्षिण अफ़्रीका में "वॅल्ड" (veld) कहा जाता है। स्तॅपी में तापमान ग्रीष्मऋतु में मध्यम से गरम और शीतऋतु में ठंडा रहता है। गर्मियों में दोपहर में तापमान ४० °सेंटीग्रेड और सर्दियों में रात को तापमान -४० °सेंटीग्रेड तक जा सकता है। कुछ क्षेत्रों में दिन और रात के तापमान में भी बहुत अंतर होता है: मंगोलिया में एक ही दिन में सुबह के समय ३० °सेंटीग्रेड और रात के समय शून्य °सेंटीग्रेड तक तापमान जा सकता है। अलग-अलग स्तॅपी इलाक़ों में भिन्न मात्राओं में बर्फ़ और बारिश पड़ती है। कुछ क्षेत्र बड़े शुष्क हैं जबकि अन्य भागों में सर्दियों में भारी बर्फ़ पड़ती है। .

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सोग़दा

३०० ईसापूर्व में सोग़दा का क्षेत्र एक चीनी शिल्प-वस्तु पर सोग़दाई लोगों का चित्रण सोग़दाई व्यापारी भगवान बुद्ध को भेंट देते हुए (बाएँ की तस्वीर के निचले हिस्से को दाई तरफ़ बड़ा कर के दिखाया गया है) सोग़दा, सोग़दिया या सोग़दियाना (ताजिक: Суғд, सुग़्द; तुर्की: Soğut, सोग़ुत) मध्य एशिया में स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी। यह आधुनिक उज़्बेकिस्तान के समरक़न्द, बुख़ारा, ख़ुजन्द और शहर-ए-सब्ज़ के नगरों के इलाक़े में फैली हुई थी। सोग़दा के लोग एक सोग़दाई नामक भाषा बोलते थे जो पूर्वी ईरानी भाषा थी और समय के साथ विलुप्त हो गई। माना जाता है कि आधुनिक काल के ताजिक, पश्तून और यग़नोबी लोगों में से बहुत इन्ही सोग़दाई लोगों के वंशज हैं। .

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हान राजवंश

चीन में हान साम्राज्य का नक़्शा एक मकबरे में मिला हानवंश के शासनकाल में निर्मित लैम्प हान काल में जारी किया गया एक वुशु (五銖) नाम का सिक्का हान काल में बना कांसे के गियर (दांतदार पहिये) बनाने का एक साँचा हान राजवंश (चीनी: 漢朝, हान चाओ; अंग्रेज़ी: Han Dynasty) प्राचीन चीन का एक राजवंश था जिसने चीन में २०६ ईसापूर्व से २२० ईसवी तक राज किया। हान राजवंश अपने से पहले आने वाले चिन राजवंश (राजकाल २२१-२०७ ईसापूर्व) को सत्ता से बेदख़ल करके चीन के सिंहासन पर विराजमान हुआ और उसके शासनकाल के बाद तीन राजशाहियों (२२०-२८० ईसवी) का दौर आया। हान राजवंश की नीव लिऊ बांग नाम के विद्रोही नेता ने रखी थी, जिसका मृत्यु के बाद औपचारिक नाम बदलकर सम्राट गाओज़ू रखा गया। हान काल के बीच में, ९ ईसवी से २३ ईसवी तक, शीन राजवंश ने सत्ता हथिया ली थी, लेकिन उसके बाद हान वंश फिर से सत्ता पकड़ने में सफल रहा। शीन राजवंश से पहले के हान काल को पश्चिमी हान राजवंश कहा जाता है और इसके बाद के हान काल को पूर्वी हान राजवंश कहा जाता है। ४०० से अधिक वर्षों का हान काल चीनी सभ्यता का सुनहरा दौर माना जाता है। आज तक भी चीनी नसल अपने आप को 'हान के लोग' या 'हान के बेटे' बुलाती है और हान चीनी के नाम से जानी जाती है। इसी तरह चीनी लिपि के भावचित्रों को 'हानज़ी' (यानि 'हान के भावचित्र') बुलाया जाता है।, Xiaoxiang Li, LiPing Yang, Asiapac Books Pte Ltd, 2005, ISBN 978-981-229-394-7,...

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हुन्ज़ा नदी

हुन्ज़ा नदी या दरया-ए-हुन्ज़ा (Hunza river) पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलतिस्तान क्षेत्र के हुन्ज़ा-नगर ज़िले का अहम दरिया है। बहुत ज़्यादा मिट्टी और चट्टानी ज़र्रों की आमेज़िश की वजह से ये बहुत गदला है। यह नदी किलिक नाले और ख़ुंजराब नाले नामक दो झरनों के संगम से बनती है और इसमें कई हिमानियाँ (ग्लेशियर) जल देती हैं। आगे इसी में नलतर नाला और गिलगित नदी मिलते हैं। अंत में यह सिन्धु नदी में मिल जाता है। ऐतिहासिक रेशम मार्ग इस दरिया के साथ चलता है। हुन्ज़ा नदी काराकोरम पर्वतों में इतनी पैनी दिवारों वाली तंग घाटी काटकर निकलती है कि कुछ समीक्षकों ने कहा है कि 'लगता है कि चट्टानें चाकू से काटी गई हों'।, Soren Arutyunyan, Electa Napoli, 1994,...

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हुन्ज़ा घाटी

हुन्ज़ा में बलतित क़िला हुन्ज़ा घाटी पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बलतिस्तान क्षेत्र के हुन्ज़ा-नगर ज़िले मे स्थित एक घाटी है। यह गिलगित से उत्तर में नगर वादी के समीप रेशम मार्ग पर स्थित है। इसमें कई छोटी छोटी बस्तीयों का जमावड़ा है। सब से बड़ी बस्ती करीमाबाद है, हालांकि इसका मूल नाम "बलतित" था। घाटी से राकापोशी का नज़ारा बहुत सुंदर है। यहाँ के मुख्य व्यवसाय पाकिस्तानी सेना और पर्यटन से सम्बन्धित है। वादी से हुन्ज़ा नदी गुज़रती है। स्थानीय लोग बुरुशस्की बोलते है। बलतित क़िला देखने की जगह है। श्रेणी:गिलगित-बल्तिस्तान की घाटियाँ.

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हुई लोग

कुछ हुई मुस्लिम लोग हुई लोग (चीनी भाषा: 回族, हुईज़ू; श्याओ'अरजिंग) चीन की सरकार द्वारा मान्य एक जाति है जिसके सदस्य मुख्य रूप से चीनी भाषा अपनी मातृभाषा के रूप में बोलने वाले मुस्लिम लोग हैं। इनमें से बहुत से लोग वे हैं जिनके पूर्वज रेशम मार्ग पर यात्री थे और चीन में आ बसे और जिन्होनें चीनी संस्कृति और भाषा अपना ली। हुई लोग सांस्कृतिक दृष्टि से और काफ़ी हद तक देखने में चीन के बहुसंख्यक हान चीनी समुदाय के सदस्यों से मिलते जुलते हैं, लेकिन इन्हें चीन में हान नहीं समझा जाता। यह भी ध्यान रहे कि यह चीन के अन्य मुस्लिम समुदायों, जैसे कि उइग़ुर लोग, से भी भिन्न समझे जाते हैं। हुई लोगों का खान-पान हान चीनियों से मिलता है, लेकिन इसमें कुछ भिन्नताएँ हैं, मसलन ये सूअर का मांस नहीं खाते जो वरना चीनी खाने में आम है।, Michael Dillon, Psychology Press, 1999, ISBN 978-0-7007-1026-3 .

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ह्वेन त्सांग

ह्वेन त्सांग का एक चित्र ह्वेन त्सांग एक प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु था। वह हर्षवर्द्धन के शासन काल में भारत आया था। वह भारत में 15 वर्षों तक रहा। उसने अपनी पुस्तक सी-यू-की में अपनी यात्रा तथा तत्कालीन भारत का विवरण दिया है। उसके वर्णनों से हर्षकालीन भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अवस्था का परिचय मिलता है। .

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हेरात

हेरात हेरात (पश्तो:, अंग्रेजी: Herat) अफ़्ग़ानिस्तान का एक नगर है और हेरात प्रान्त की राजधानी भी है। यह देश के पश्चिम में है और ऐतिहासिक महत्व के शहर है। यह वृहत ख़ोरासान क्षेत्र का हिस्सा है और सबसे बड़ा शहर भी। रेशम मार्ग पर स्थित होने के कारण यह वाणिज्य का केन्द्र रहा है जहाँ से भारत और चीन से पश्चिमी देशों का व्यापार होता रहा है। पारसी ग्रंथ अवेस्ता में इसका ज़िक्र मिलता है। ईसा के पूर्व पाँचवीं सदी के हख़ामनी काल से ही यह एक संपन्न शहर रहा है। यहाँ इस्लाम सातवीं सदी के मध्य में आया जिसके बाद कई विद्रोह हुए। हेरात हरी नदी (हरीरूद) के किनारे बसा हुआ है। .

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जलालाबाद (किर्गिज़स्तान)

जलालाबाद शहर का रेवोल्यूत्योन मैदानी (क्रांती मैदान) जलालाबाद, जिसे किरगिज़ भाषा में जलालाबात (किरगिज़: Жалалабат, अंग्रेज़ी: Jalalabat) कहते हैं, मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान देश का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। यह किर्गिज़स्तान के पश्चिम में जलालाबाद प्रांत की राजधानी है और उज़बेकिस्तान के साथ लगी सरहद के पास प्रसिद्ध फ़रग़ना वादी के पूर्वोत्तरी छोर पर स्थित है। जलालाबाद अपने पानी के चश्मों के लिए मशहूर है। कहा जाता है कि इनका पानी पीने से और उसमें स्नान करने से बहुत सी बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। सोवियत संघ के ज़माने में यहाँ बहुत से हस्पताल बनाए गए थे और यहाँ से पानी बोतलों में किर्गिज़स्तान के अन्य हिस्सों में और दुनिया के अन्य भागों में निर्यात होता है। जलालाबाद के अधिकतर लोग उज़बेक समुदाय के हैं।, Laurence Mitchell, Bradt Travel Guides, 2008, ISBN 978-1-84162-221-7,...

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विम कडफिसेस

विम कडफिसेस (बाख़्त्री में Οοημο Καδφισης) लगभग 90-100 सी.ई. में कुषाण वंश का शासक था। रबातक शिलालेख के अनुसार वह विम ताकतू का पुत्र तथा कनिष्क का पिता था। उसे कडफिसेस द्वितीय भी कहा जाता है। .

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व्यापार मार्ग

प्रथम शताब्दी के व्यापार मार्गों केकेन्द्र में रेशम मार्ग था। नौभार (कार्गो) के लाने-ले जाने के लिये प्रयुक्त मार्गों के नेटवर्क को व्यापार मार्ग (trade route) कहते हैं। कुछ प्रसिद्ध व्यापार मार्ग ये थे, अम्बर मार्ग, मसाला मार्ग, पुर्तगालियों द्वारा खोजा गया यूरोप से भारत पहुँचने का समुद्री मार्ग, रेशम मार्ग, रोमन-भारत मार्ग, ग्रैंड ट्रंक रोड आदि। .

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वैश्वीकरण

Puxi) शंघाई के बगल में, चीन. टाटा समूहहै। वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात, व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूंजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण.

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ख़ज़र लोग

सन् ६५० और ८५० के बीच ख़ज़र ख़ागानत ख़ज़र (रूसी:Хазары, ख़ाज़ारी; अंग्रेज़ी: Khazar) मध्यकालीन यूरेशिया की एक तुर्की जाति थी जिनका विशाल साम्राज्य आधुनिक रूस के यूरोपीय हिस्से, पश्चिमी कज़ाख़स्तान, पूर्वी युक्रेन, अज़रबेजान, उत्तरी कॉकस (चरकस्सिया, दाग़िस्तान), जोर्जिया, क्राइमिया और उत्तरपूर्वी तुर्की पर विस्तृत था। इनकी राजधानी वोल्गा नदी के किनारे बसा आतील शहर था। ख़ज़र लोगों की ख़ागानत सन् ४४८ से १०४८ तक चली। इसमें कई धर्मों के लोग और, तुर्की जातियों के अलावा, यूराली, स्लावी और अन्य जातियाँ भी रहती थीं। ख़ज़र ख़ागानत रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव था और दक्षिण-पश्चिमी एशिया को उत्तरी यूरोप से जोड़ने वाली एक मुख्य कड़ी थी।, David Christian, Wiley-Blackwell, 1998, ISBN 978-0-631-20814-3,...

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खुली अर्थव्यवस्था

खुली अर्थव्यवस्था (ओपेन इकनॉमी) अर्थव्यवस्था का एक दर्शन (philosophy) है। खुली अर्थव्यवस्था को अगर उसके शाब्दिक अर्थ से समझें तो इसका मतलब होता है एक ऐसा देश या समाज जहाँ किसी को किसी से भी व्यापार करने की छूट होती है और ऐसा भी नही कि इस व्यापार पे कोई सरकारी अंकुश या नियंत्रण नही होता। पर सरकार ऐसी नीतियाँ बनाती है जिससे आम लोग उद्योग और अन्य प्रकार के व्यापार आसानी से शुरू कर सकें। ऐसी अर्थव्यवस्था मे व्यापारों को स्वतंत्र रूप से फलने-फूलने दिया जाता है। सरकारी नियंत्रण ऐसे बनाये जातें है जिनमें व्यापारों को किसी भी प्रकार की बेईमानी से तो रोका जाता है पर नियंत्रण को इतना भी कड़ा नही किया जाता है कि ईमान्दार व्यापार मे असुविधा हो। खुली अर्थव्यवस्था न केवल उस समाज य देश के अंदरूनी व्यापार के लिये होती है बल्कि बाहरी व्यापार को भी उसी दृष्टि से देखा जाता है। .

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गोएकतुर्क

अपने शुरुआती काल में गोएकतुर्क ख़ागानत गोएकतुर्क (पुरानी तुर्की: 7px7px7px7px 7px7px7px, कोक तुरुक; अंग्रेजी: Göktürk) मध्य एशिया और उत्तरपूर्वी एशिया में एक मध्यकालीन ख़ानाबदोश क़बीलों का परिसंघ था जिन्होंने ५५२ ईसवी से ७४४ ईसवी तक अपना गोएकतुर्क ख़ागानत (Göktürk Khaganate) नाम का साम्राज्य चलाया। इन्होनें यहाँ पर अपने से पहले सत्ताधारी जू-जान ख़ागानत को हटाकर रेशम मार्ग पर चल रहे व्यापार को अपने नियंत्रण में कर लिया। 'गोएक' (gök) का अर्थ तुर्की भाषा में 'आकाश' होता है और 'गोएकतुर्क' का मतलब 'आसमानी तुर्क' है। यह इतिहास का पहला साम्राज्य था जिसने अपने आप को 'तुर्क' बुलाया। इस से पहले 'तुर्क' या 'तुरुक' निपुण लोहार माने जाते थे लेकिन राजा-महाराजा नहीं।, Barbara A. West, Infobase Publishing, 2009, ISBN 978-1-4381-1913-7,...

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गोबी मरुस्थल

गोबी मरुस्थल, चीन और मंगोलिया में स्थित है। यह विश्व के सबसे बड़े मरुस्थलों में से एक है। गोबी दुनिया के ठंडे रेगिस्तानों में एक है, जहां तापमान शून्य से चालीस डिग्री नीचे तक चला जाता है। गोबी मरुस्थल एशिया महाद्वीप में मंगोलिया के अधिकांश भाग पर फैला हुआ है। यह मरुस्थल संसार के सबसे मरुस्थलों में से एक है। 'गोबी' एक मंगोलियन शब्द है, जिसका अर्थ होता है- 'जलरहित स्थान'। आजकल गोबी मरूस्थल एक रेगिस्तान है, लेकिन प्राचीनकाल में यह ऐसा नहीं था। इस क्षेत्र के बीच-बीच में समृद्धशाली भारतीय बस्तियाँ बसी हुई थीं। गोबी मरुस्थल पश्चिम में पामीर की पूर्वी पहाड़ियों से लेकर पूर्व में खिंगन पर्वतमालाओं तक तथा उत्तर में अल्ताई, खंगाई तथा याब्लोनोई पर्वतमालाओं से लेकर दक्षिण में अल्ताइन तथा नानशान पहाड़ियों तक फैला है। इस मरुस्थल का पश्चिमी भाग तारिम बेसिन का ही एक हिस्सा है। यह संसार का पांचवां बड़ा और एशिया का सबसे विशाल रेगिस्तान है। सहारा रेगिस्तान की भांति ही इस रेगिस्तान को भी तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है- 1.

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ओश

ओश और उसके पीछे के पर्वतों का नज़ारा ओश बाज़ार में ख़ुश्क मेवे की दुकानें ओश (किरगिज़:, अंग्रेज़ी: Osh) मध्य एशिया के किर्गिज़स्तान देश का दूसरा सबे बड़ा शहर है। यह किर्गिज़स्तान के दक्षिण में प्रसिद्ध फ़रग़ना वादी में स्थित है और इसे कभी-कभी 'किर्गिज़स्तान की दक्षिणी राजधानी' भी कहा जाता है। माना जाता है कि ओश शहर कम-से-कम ३,००० सालों से बसा हुआ है और यह शहर सन् १९३९ से किर्गिज़स्तान के ओश प्रांत की राजधानी भी है। फ़रग़ना वादी में बहुत से जाति-समुदाय रहते हैं और ठीक यही ओश में भी देखा जाता है - यहाँ किरगिज़ लोग, उज़बेक लोग, रूसी लोग, ताजिक लोग और अन्य समुदाय बसते हैं। .

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कनिष्क

कनिष्क प्रथम (Κανηϸκι, Kaneshki; मध्य चीनी भाषा: 迦腻色伽 (Ka-ni-sak-ka > नवीन चीनी भाषा: Jianisejia)), या कनिष्क महान, द्वितीय शताब्दी (१२७ – १५० ई.) में कुषाण राजवंश का भारत का एक महान् सम्राट था। वह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौशल हेतु प्रख्यात था। इस सम्राट को भारतीय इतिहास एवं मध्य एशिया के इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान मिलता है। कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस का ही एक वंशज, कनिष्क बख्त्रिया से इस साम्राज्य पर सत्तारूढ हुआ, जिसकी गणना एशिया के महानतम शासकों में की जाती है, क्योंकि इसका साम्राज्य तरीम बेसिन में तुर्फन से लेकर गांगेय मैदान में पाटलिपुत्र तक रहा था जिसमें मध्य एशिया के आधुनिक उजबेकिस्तान तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक आते हैं। पर कुषाण।अभिगमन तिथि: १५ फ़रवरी, २०१७ इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारत के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपिशा में भी थीं। उसकी विजय यात्राओं तथा बौद्ध धर्म के प्रति आस्था ने रेशम मार्ग के विकास तथा उस रास्ते गांधार से काराकोरम पर्वतमाला के पार होते हुए चीन तक महायान बौद्ध धर्म के विस्तार में विशेष भूमिका निभायी। पहले के इतिहासवेत्ताओं के अनुसार कनिष्क ने राजगद्दी ७८ ई० में प्राप्त की, एवं तभी इस वर्ष को शक संवत् के आरम्भ की तिथि माना जाता है। हालांकि बाद के इतिहासकारों के मतानुसार अब इस तिथि को कनिष्क के सत्तारूढ़ होने की तिथि नहीं माना जाता है। इनके अनुमानानुसार कनिष्क ने सत्ता १२७ ई० में प्राप्त की थी। .

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काराशहर

काराशहर (Karasahr, उईग़ुर) या यान्ची (Yanqi, चीनी: 焉耆), जिसे संस्कृत में अग्नि या अग्निदेश कहते थे, रेशम मार्ग पर स्थित एक प्राचीन शहर है। यह मध्य एशिया में जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त के बायिनग़ोलिन मंगोल स्वशासित विभाग के यान्ची हुई स्वशासित ज़िले में स्थित है। काराशहर काइदू नदी के किनारे बसा हुआ है। .

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काराकोरम राजमार्ग

काराकोरम राजमार्ग काराकोरम राजमार्ग (अंग्रेजी: Karakoram Highway या KKH; उर्दू:, शाहराह-ए-काराकोरम'; चीनी: 喀喇昆仑 公路, के ला कून लुन गोन्ग लु) दुनिया की सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित एक पक्की अंतरराष्ट्रीय सड़क है। यह काराकोरम पर्वत श्रृंखला से होकर गुज़रता है तथा चीन और पाकिस्तान को ख़ुंजराब दर्रे के माध्यम से आपस में जोड़ता है। यहाँ इसकी ऊँचाई समुद्र तल से 4693 मी (15397 फुट) है और इसकी पुष्टि एसआरटीएम और जीपीएस के एकाधिक पाठ्यांकों द्वारा होती है। यह पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्तिस्तान के साथ चीन के शिंजियांग क्षेत्र को जोड़ता है। इसके साथ ही यह एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण भी है। काराकोरम राजमार्ग को आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान में N-35 और चीन में चीन का राष्ट्रीय राजमार्ग 314 (G314) के नाम से जाना जाता है। .

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काश्गर

ईद गाह मस्जिद, काशगर काश्गर, कशगार, काशगुर या काशी (उईगुर:, चीनी: 喀什, फारसी) मध्य एशिया में चीन के शिनजियांग प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ३,५०,००० है। काश्गर शहर काश्गर विभाग का प्रशासनिक केंद्र है जिसका क्षेत्रफल १,६२,००० किमी² और जनसंख्या लगभग ३५ लाख है। काश्गर शहर का क्षेत्रफल १५ किमी² है और यह समुद्र तल से १,२८९.५ मीटर (४,२८२ फ़ुट) की औसत ऊँचाई पर स्थित है। यह शहर चीन के पश्चिमतम क्षेत्र में स्थित है और तरीम बेसिन और तकलामकान रेगिस्तान दोनों का भाग है, जिस वजह से इसकी जलवायु चरम शुष्क है।, S. Frederick Starr, M.E. Sharpe, 2004, ISBN 978-0-7656-1318-9 पुराकाल से ही काश्गर व्यापार तथा राजनीति का केंद्र रहा है और इसके भारत से गहरे सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से शिनजियांग का व्यापार मार्ग लद्दाख़ के रस्ते से काश्गर जाया करता था।, Prakash Charan Prasad, Abhinav Publications, 1977, ISBN 978-81-7017-053-2 ऐतिहासिक रेशम मार्ग की एक शाखा भी, जिसके ज़रिये मध्य पूर्व, यूरोप और पूर्वी एशिया के बीच व्यापार चलता था, काश्गर से होकर जाती थी। काश्गर अमू दरिया वादी से खोकंद, समरकंद, अलमाटी, अक्सू, और खोतान मार्गो के बीच स्थित है। .

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काशीपुर का इतिहास

काशीपुर, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधम सिंह नगर जनपद का एक महत्वपूर्ण पौराणिक एवं औद्योगिक शहर है। .

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काइदू नदी

काइदू नदी (चीनी: 开都河, अंग्रेज़ी: Kaidu River) मध्य एशिया में जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त की एक नदी है। यह नदी तियान शान पर्वतमाला की दक्षिण-मध्य ढलानों में युल्दुज़ द्रोणी से उत्पन्न होती है और यान्ची द्रोणी से होती हुई बोस्तेन झील में विलय हो जाती है। झील का ८३% जल इसी नदी से आता है। झील से फिर यह नदी 'कोन्ची दरिया' के नाम से निकलती है और लौह द्वार दर्रे से होती हुई तारिम द्रोणी में चली जाती है। ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर स्थित काराशहर इसी नदी के किनारे बसा हुआ है। .

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किरगिज़ लोग

काराकोल में एक मनासची कथाकार पारम्परिक किरगिज़ वेशभूषा में एक किरगिज़ परिवार किरगिज़ मध्य एशिया में बसने वाली एक तुर्की-भाषी जाति का नाम है। किरगिज़ लोग मुख्य रूप से किर्गिज़स्तान में रहते हैं हालाँकि कुछ किरगिज़ समुदाय इसके पड़ौसी देशों में भी मिलते हैं, जैसे कि उज़्बेकिस्तान, चीन, ताजिकिस्तान, अफ़्ग़ानिस्तान और रूस। .

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किज़िल गुफ़ाएँ

किज़िल गुफ़ाएँ (उईग़ुर:, अंग्रेज़ी: Kizil Caves) या क़िज़िल गुफ़ाएँ (Qizil Caves) जनवादी गणतंत्र चीन द्वारा नियंत्रित शिंजियांग प्रान्त में एक बौद्ध गुफ़ाओं का समूह है जहाँ प्राचीनकाल में तारिम द्रोणी में तुषारी लोगों और बौद्ध धर्म से सम्बन्धित चित्र, मूर्तियाँ, लिखाईयाँ व अन्य पुरातन चीज़ें मिली हैं। यह गुफ़ाएँ शिंजियांग प्रान्त के आक़्सू विभाग के बाईचेंग ज़िले में मुज़ात नदी के उत्तरी किनारे पर कूचा से ६५ किमी दूर स्थित हैं। यह इलाक़ा ऐतिहासिक रेशम मार्ग पर स्थित हुआ करता था और तीसरी से आठवी शताब्दी ईसवी के बीच विकसित हुआ। .

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कूचा राज्य

कूचा (Kucha या Kuqa) या कूचे या कूचार या (संस्कृत में) कूचीन मध्य एशिया की तारिम द्रोणी में तकलामकान रेगिस्तान के उत्तरी छोर पर और मुज़ात नदी से दक्षिण में स्थित एक प्राचीन राज्य का नाम था जो ९वीं शताब्दी ईसवी तक चला। यह तुषारी लोगों का राज्य था जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और हिन्द-यूरोपी भाषा-परिवार की तुषारी भाषाएँ बोलते थे। कूचा रेशम मार्ग की एक शाखा पर स्थित था जहाँ से इसपर भारत, सोग़्दा, बैक्ट्रिया, चीन, ईरान व अन्य क्षेत्रों का बहुत प्रभाव पड़ा। आगे चलकर यह क्षेत्र तुर्की-मूल की उईग़ुर ख़ागानत के क़ब्ज़े में आ गया और कूचा राज्य नष्ट हो गया। .

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कोन्या-उरगेन्च

सोल्तान तेकेश मक़बरा गुतलुक-तेमिर मीनार कोन्या उरगेन्च या कोन्ये उरगेन्च (तुर्कमेन: Köneürgenç, अंग्रेज़ी: Konye-Urgench) मध्य एशिया के तुर्कमेनिस्तान देश के पूर्वोत्तरी भाग में उज़बेकिस्तान की सरहद के पास स्थित एक बस्ती है। यह उरगेन्च की प्राचीन नगरी का स्थल है जिसमें १२वीं सदी के ख़्वारेज़्म क्षेत्र की राजधानी के खँडहर मौजूद हैं। २००५ में यूनेस्को ने इन खँडहरों को एक विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया।, UNESCO World Heritage Center, UNESCO, Accessed 19 फ़रवरी 2011 .

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अश्क़ाबाद

अश्क़ाबाद या अश्गाबात (तुर्कमेन: Aşgabat, फ़ारसी:; रूसी: Ашхабад, अंग्रेज़ी: Ashgabat) मध्य एशिया के तुर्कमेनिस्तान राष्ट्र की राजधानी और सबसे बड़ी नगरी है। २००१ की जनगणना में इसकी आबादी ६,९५,३०० थी और २००९ में इसकी अनुमानित आबादी १० लाख थी। अश्क़ाबाद काराकुम रेगिस्तान और कोपेत दाग़ पर्वत शृंखला के बीच में स्थित है। इसमें रहने वाले ज्यादातर लोग तुर्कमेन जाति के हैं हालाँकि यहाँ रूसी, अर्मेनियाई और अज़ेरियों के समुदाय भी रहते हैं। इस नगर का नाम फ़ारसी के 'इश्क़' और 'आबाद' शब्दों को मिलकर बना है और इसका अर्थ 'इश्क़ का शहर' है।, Bradley Mayhew, Lonely Planet, 2007, ISBN 978-1-74104-614-4,...

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अक्साई चिन

अक्साई चिन या अक्सेचिन (उईग़ुर:, सरलीकृत चीनी: 阿克赛钦, आकेसैचिन) चीन, पाकिस्तान और भारत के संयोजन में तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित एक विवादित क्षेत्र है। यह कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है। ऐतिहासिक रूप से अक्साई चिन भारत को रेशम मार्ग से जोड़ने का ज़रिया था और भारत और हज़ारों साल से मध्य एशिया के पूर्वी इलाकों (जिन्हें तुर्किस्तान भी कहा जाता है) और भारत के बीच संस्कृति, भाषा और व्यापार का रास्ता रहा है। भारत से तुर्किस्तान का व्यापार मार्ग लद्दाख़ और अक्साई चिन के रास्ते से होते हुए काश्गर शहर जाया करता था।, Prakash Charan Prasad, Abhinav Publications, 1977, ISBN 978-81-7017-053-2 १९५० के दशक से यह क्षेत्र चीन क़ब्ज़े में है पर भारत इस पर अपना दावा जताता है और इसे जम्मू और कश्मीर राज्य का उत्तर पूर्वी हिस्सा मानता है। अक्साई चिन जम्मू और कश्मीर के कुल क्षेत्रफल के पांचवें भाग के बराबर है। चीन ने इसे प्रशासनिक रूप से शिनजियांग प्रांत के काश्गर विभाग के कार्गिलिक ज़िले का हिस्सा बनाया है। .

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उत्तरी रेशम मार्ग

टकलामकान रेगिस्तान उत्तरी रेशम मार्ग (Northern Silk Road) वर्तमान जनवादी गणतंत्र चीन के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक मार्ग है जो चीन की प्राचीन राजधानी शिआन से पश्चिम की ओर जाते हुए टकलामकान रेगिस्तान से उत्तर निकलकर मध्य एशिया के प्राचीन बैक्ट्रिया और पार्थिया राज्य और फिर और भी आगे ईरान और प्राचीन रोम पहुँचता था। यह मशहूर रेशम मार्ग की उत्तरतम शाखा है और इसपर हज़ारों सालों से चीन और मध्य एशिया के बीच व्यापारिक, फ़ौजी और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती रहीं हैं। पहली सहस्राब्दी (यानि हज़ार साल) ईसापूर्व में चीन के हान राजवंश ने इस मार्ग को चीनी व्यापारियों और सैनिकों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए यहाँ पर सक्रीय जातियों के खिलाफ़ बहुत अभियान चलाए जिस से इस मार्ग का प्रयोग और विस्तृत हुआ। चीनी सम्राटों ने विशेषकर शियोंगनु लोगों के प्रभाव को कम करने के बहुत प्रयास किये।, Frances Wood, University of California Press, 2004, ISBN 978-0-520-24340-8,...

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

शाहराह रेशम, सिल्क रुट

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