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रेडॉक्स

सूची रेडॉक्स

रेडॉक्स (Redox; 'Reduction and Oxidation' का लघुकृत रूप) अभिक्रियाएँ के अन्तर्गत वे सब रासायनिक अभिक्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनमें परमाणुओं के आक्सीकरण अवस्थाएँ बदल जातीं हैं। सामान्यतः रेडॉक्स अभिक्रियाओं के अभिकारकों के परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रानों का आदान-प्रदान होता है। कभी भी आक्सीकरण या अपचयन अभिक्रिया अकेले नहीं होती। दोनो साथ-साथ होतीं हैं। एक ही अभिक्रिया में यदि किसी चीज का आक्सीकरण होता है तो किसी दूसरी का अपचयन होता है। इसीलिये इनका अलग-अलग अध्ययन न करके एकसाथ अध्ययन करने हैं और दोनों को मिलाकर 'रेडॉक्स' कहते हैं। .

61 संबंधों: एथिलीन ग्लाइकोल, एल्युमिनियम, एसिटिक अम्ल, तम्बाकू धूम्रपान, ताप-विघटन, तुल्यांकी भार, थर्माइट, दहन, दहन ऊष्मा, धातुकर्म, नाइट्रीकरण, निम्नतापी रॉकेट इंजन, निष्कर्षण धातुकर्मिकी, पारा, पिरिडीन, पुनर्भरणीय विद्युत्कोष, प्रतिऑक्सीकारक, प्रलाक्ष, प्रांगार चक्र, प्रगलन, प्रकाश-संश्लेषण, प्रकाशीय दूरदर्शी, ब्लैक टी, मलेरिया का मानव जीनोम पर प्रभाव, रासायनिक अभिक्रिया, रुबिडियम, रीनियम, लाइकोपेन, लवण, साइक्लोपेन्टानॉल, स्नेहक, सोडियम, हरी चाय, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, जल (अणु), जी6पीडी, जीवदीप्ति, घी, वार्निश, वाहितमल उपचार, विद्युत्-रसायन, विरंजन, खाद्य परिरक्षण, गन्धकाम्ल, ग्लाइकोलिसिस, गैल्वानी सेल, ऑक्साइड, ऑक्सीकरण संख्या, ओजोन थेरेपी, ..., आग, आक्सी श्वसन, क्रेब्स चक्र, क्रोटाइल अल्कोहल, क्लीमेन्सन अपचयन, क्षारीय पार्थिव धातु, कैल्सियम, कोशिकीय श्वसन, अपचायक, अर्ध-अभिक्रिया, अल्युमिनियम हाइड्रोक्साइड सूचकांक विस्तार (11 अधिक) »

एथिलीन ग्लाइकोल

एथलीन ग्लाइकोल एथलीन ग्लाइकोल (Ethylene glycol; IUPAC नाम: इथेन-1,2-डायोल) एक कार्बनिक यौगिक है जो मोटरगाड़ियों में प्रतिहिमकारी (antifreeze) के रूप में उपयोग में आता है। इसे 'ग्लाइकोल' भी कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र (HO-CH2-CH2-OH) है। यह बहुलकों का पूर्वरूप था। शुद्ध एथलीन ग्लाइकोल गंधहीन, रंगहीन, सिरप जैसा और स्वाद में मीठा द्रव है। यह विषैला होता है तथा इसे ग्रहण करने पर मृत्यु हो सकती है। यह सुंगधित तैलीय द्रव है, जिसका क्वथनांक १९७.५° सें.

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एल्युमिनियम

एलुमिनियम एक रासायनिक तत्व है जो धातुरूप में पाया जाता है। यह भूपर्पटी में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाने वाली धातु है। एलुमिनियम का एक प्रमुख अयस्क है - बॉक्साईट। यह मुख्य रूप से अलुमिनियम ऑक्साईड, आयरन आक्साईड तथा कुछ अन्य अशुद्धियों से मिलकर बना होता है। बेयर प्रक्रम द्वारा इन अशुद्धियों को दूर कर दिया जाता है जिससे सिर्फ़ अलुमिना (Al2O3) बच जाता है। एलुमिना से विद्युत अपघटन द्वारा शुद्ध एलुमिनियम प्राप्त होता है। एलुमिनियम धातु विद्युत तथा ऊष्मा का चालक तथा काफ़ी हल्की होती है। इसके कारण इसका उपयोग हवाई जहाज के पुर्जों को बनाने में किया जाता है। भारत में जम्मू कश्मीर, मुंबई, कोल्हापुर, जबलपुर, रांची, सोनभद्र, बालाघाट तथा कटनी में बॉक्साईट के विशाल भंडार पाए जाते है। उड़ीसा स्थित नाल्को (NALCO) दुनिया की सबसे सस्ती अलुमिनियम बनाने वाली कम्पनी है। .

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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तम्बाकू धूम्रपान

तम्बाकू धूम्रपान एक ऐसा अभ्यास है जिसमें तम्बाकू को जलाया जाता है और उसका धुआं या तो चखा जाता है या फिर उसे सांस में खींचा जाता है। इसका चलन 5000-3000 ई.पू.के प्रारम्भिक काल में शुरू हुआ। कई सभ्यताओं में धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान इसे सुगंध के तौर पर जलाया गया, जिसे बाद में आनंद प्राप्त करने के लिए या फिर एक सामाजिक उपकरण के रूप में अपनाया गया। पुरानी दुनिया में तम्बाकू 1500 के दशक के अंतिम दौर में प्रचलित हुआ जहां इसने साझा व्यापारिक मार्ग का अनुसरण किया। हालांकि यह पदार्थ अक्सर आलोचना का शिकार बनता रहा है, लेकिन इसके बावज़ूद वह लोकप्रिय हो गया। जर्मन वैज्ञानिकों ने औपचारिक रूप से देर से 1920 के दशक के अन्त में धूम्रपान और फेफड़े के कैंसर के बीच के संबंधों की पहचान की जिससे आधुनिक इतिहास में पहले धूम्रपान विरोधी अभियान की शुरुआत हुई। आंदोलन तथापि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दुश्मनों की सीमा में पहुंचने में नाकाम रहा और उसके बाद जल्द ही अलोकप्रिय हो गया। 1950 में स्वास्थ्य अधिकारियों ने फिर से धूम्रपान और कैंसर के बीच के सम्बंध पर चर्चा शुरू की। वैज्ञानिक प्रमाण 1980 के दशक में प्राप्त हुए, जिसने इस अभ्यास के खिलाफ राजनीतिक कार्रवाई पर जोर दिया। 1965 से विकसित देशों में खपत या तो क्षीण हुई या फिर उसमें गिरावट आयी। हालांकि, विकासशील दुनिया में बढ़त जारी है। तम्बाकू के सेवन का सबसे आम तरीका धूम्रपान है और तम्बाकू धूम्रपान किया जाने वाला सबसे आम पदार्थ है। कृषि उत्पाद को अक्सर दूसरे योगज के साथ मिलाया जाता है और फिर सुलगाया जाता है। परिणामस्वरूप भाप को सांस के जरिये अंदर खींचा जाता है फिर सक्रिय पदार्थ को फेफड़ों के माध्यम से कोशिकाओं से अवशोषित कर लिया जाता है। सक्रिय पदार्थ तंत्रिका अंत में रासायनिक प्रतिक्रियाओं को शुरू करती है जिससे हृदय गति, स्मृति और सतर्कता और प्रतिक्रिया की अवधि बढ़ जाती है। डोपामाइन (Dopamine) और बाद में एंडोर्फिन(endorphin) का रिसाव होता है जो अक्सर आनंद से जुड़े हुए हैं। 2000 में धूम्रपान का सेवन कुछ 1.22 बिलियन लोग करते थे। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में धूम्रपान की संभावना अधिक होती हैं तथापि छोटे आयु वर्ग में इस लैंगिक अंतर में गिरावट आती है। गरीबों में अमीरों की तुलना में और विकसित देशों के लोगों में अमीर देशों की तुलना में धूम्रपान की संभावना अधिक होती है। धूम्रपान करने वाले कई किशोरावस्था में या आरम्भिक युवावस्था के दौरान शुरू करते हैं। आम तौर पर प्रारंभिक अवस्था में धूम्रपान सुखद अनुभूतियां प्रदान करता है, सकारात्मक सुदृढीकरण के एक स्रोत के रूप में कार्य करता है। एक व्यक्ति में कई वर्षों के धूम्रपान के बाद परिहार के लक्षण और नकारात्मक सुदृढीकरण उसे जारी रखने का प्रमुख उत्प्रेरक बन जाता है। .

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ताप-विघटन

तापविघटन की प्रक्रिया का सरल निरूपण आक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों को गरम करने पर वे रासायनिक रूप से विघटित (decompose) हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को ताप-विघटन (Pyrolysis) कहते हैं। ताप-विघटन के लिये प्राय: ४३० डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान एवं वायुमण्डल से अधिक दाब की जरूरत होती है। व्यवहार में पूर्ण रूप से आक्सीजन-मुक्त वातावरण निर्मित करना सम्भव नहीं है क्योंकि सभी पदार्थों में कुछ न कुछ आक्सीजन उपस्थित होती है। इस कारण थोड़ा सा आक्सीकरण भी हो जाता है। .

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तुल्यांकी भार

१८६६ में प्रकाशित तुल्यांकी भारों की सूची तुल्यांकी भार (Equivalent weight) रसायन विज्ञान का एक पारिभाषिक शब्द है जो भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त होता है। तुल्यांकी भार की सबसे सामान्य परिभाषा यह है-.

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थर्माइट

थर्माइट मिश्रण सन् १८९५ में जर्मन वैज्ञानिक हांस गोल्डशिमट् (Hans Goldschmidt) ने क्रोमियम और मैंगनीज़ धातु बनाने के प्रयत्न मे एक मिश्रण खोज निकाला, जिसके द्वारा अनेक धातुओं के ऑक्साइडों का सरलता से अवकरण हो सकता था। ऐसे एक संमिश्रण को थर्माइट (Thermite) कहते हैं। .

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दहन

आक्सीजन की उपस्थिति में लकड़ी का दहन किसी जलने वाले पदार्थ के वायु या आक्सीकारक द्वारा जल जाने की क्रिया को दहन या जलना (Combustion) कहते हैं। दहन एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया (exothermic reaction) है। इस क्रिया में आँखों से ज्वाला दिख भी सकती है और नहीं भी। इस प्रक्रिया में ऊष्मा तथा अन्य विद्युतचुम्बकीय विकिरण (जैसे प्रकाश) भी उत्पन्न होते हैं। आम दहन के उत्पाद गैसों के द्वारा प्रदूषण भी फैलता है। विज्ञान के इतिहास में अग्नि वा ज्वाला सबंधी सिद्धांतों का विशेष महत्व रहा है। उदाहरण के लिए किसी हाइड्रोकार्बन के दहन का सामान्य रासायनिक समीकरण निम्नलिखित है- मिथेन के लिए इस समीकरण का स्वरूप निम्नवत हो जाएगा- .

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दहन ऊष्मा

किसी तत्त्व या यौगिक की १ ग्राम-अणु मात्रा को ऑक्सीजन में स्थिर आयतन पर पूर्णतया जलाने से जितनी उष्मा निकलती है, उसे उस तत्व या यौगिक की दहन-उष्मा (Heat of combustion) कहते हैं। दहन ऊष्मा का मान निम्नलिखित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है-.

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धातुकर्म

धातुनिर्माता कारखाने में इस्पात का निर्माण दिल्ली का लौह-स्तम्भ भारतीय धातुकर्म के गौरव का साक्षी है। धातुकर्म पदार्थ विज्ञान और पदार्थ अभियांत्रिकी का एक क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत धातुओं, उनसे बनी मिश्रधातुओं और अंतर्धात्विक यौगिकों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। .

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नाइट्रीकरण

नाइट्रोजन चक्र नाइट्रीकरण जैव रासायनिक क्रिया है, इसमें अमोनिया के आक्सीकरण से नाइट्राइट एवं नाइट्रेट बनते हैं। यह नाइट्रोजन चक्र की एक महत्वपूर्ण अवस्था है। सर्वप्रथम नाइट्राइट जीवाणु नाइट्रोसोमोनास एवं नाइट्रोकॉकस अमोनिया का ऑक्सीकरण नाइट्राइट (NO2) में करते हैं। उसके पश्चात नाइट्रेट जीवाणु-नाइट्रोबैक्टर नाइट्राइट का परिवर्तन नाइट्रेट में करते हैं। यह नाइट्रेट फिर पादपों द्वारा भूमि से जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और इस प्रकार नाइट्रोजन आहार शृंखला में प्रवेश करता है। नाइट्रीकरण की क्रिया दो समूह के जीवों द्वारा होती है, अमोनिया का आक्सीकरण करने वाले जीवाणु तथा अमोनिया का आक्सीकरण करने वाले आर्किया .

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निम्नतापी रॉकेट इंजन

150px भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त होने वाली द्रव ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन निम्नतापी रॉकेट इंजन या तुषारजनिक रॉकेट इंजन (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक रॉकेट इंजिन) कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र बढ़े कदम पा लेंगे मंजिल। हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१० क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (२००० डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत: ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -२५३ डिग्री सेल्सियस से लेकर २००० डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए थ्रस्ट चैंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है। .

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निष्कर्षण धातुकर्मिकी

निष्कर्षण धातुकर्मिकी या निष्कर्षण धातुकर्म (Extractive metallurgy) के अन्तर्गत किसी अयस्क से धातु प्राप्त करना, उसको शुद्ध करना एवं उसकी पुनर्चक्रण (री-साइक्लिंग) करने की प्रक्रियाओं एवं उससे सम्बन्धित विषयों का अध्ययन किया जाता है। .

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पारा

साधारण ताप पर पारा द्रव रूप में होता है। पारे का अयस्क पारा या पारद (संकेत: Hg) आवर्त सारिणी के डी-ब्लॉक का अंतिम तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक ८० है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप और दाब पर द्रव रूप होती है। .

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पिरिडीन

पिरिडीन की रासायनिक संरचना पिरिडीन (C5 H5 N) एक विषमचक्रीय कार्बनिक यौगिक है, जिसके चक्र में कार्बन के पाँच और नाइट्रोजन का एक परमाणु रहता है। इसके संरचनासूत्र का प्रतिपादन कोरनर (Korner) ने १८६९ ई. में किया था। इस सूत्र से पिरिडीन के रासायनिक व्यवहार की व्याख्या संतोषजनक ढंग से हो जाती है। .

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पुनर्भरणीय विद्युत्कोष

तरह-तरह की पुनर्भरणीय बैटरियाँ जिन बैटरियों को पुन: आवेशित करके पुनः विद्युत ऊर्जा ली जा सकती है उन्हें पुनर्भरणीय बैटरी (rechargeable battery) कहते हैं। इन्हें द्वितीयक सेल भी कहते हैं। इनमें होने वाली विद्युतरासायनिक अभिक्रियाएँ विद्युतीय रूप से उत्क्रमणीय (electrically reversible) होती हैं। पुनर्भरणीय बैटरियाँ विभिन्न आकार-प्रकार की होतीं है - बटन सेल से लेकर मेगावाट शक्ति प्रदान करने वाली प्रणालियाँ (विद्युत वितरण को स्थायित्व प्रदान करने के लिये) .

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प्रतिऑक्सीकारक

एक एंटीऑक्सीडेंट- मेटाबोलाइट ग्लूटाथायोन का प्रतिरूप। पीले गोले रेडॉक्स-सक्रिय गंधक अणु हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट क्रिया उपलब्ध कराते हैं और लाल, नीले व गहरे सलेटी गोले क्रमशः ऑक्सीजन, नाईट्रोजन, हाईड्रोजन एवं कार्बन परमाणु हैं। प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidants) या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का निरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण निरोधक (OXidation inhibitor) तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। अर्थात प्रति-आक्सीकारक वे अणु हैं, जो अन्य अणुओं को ऑक्सीकरण से बचाते हैं या अन्य अणुओं की आक्सीकरण प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ऑक्सीकरण एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है जिसके द्वारा किसी पदार्थ से इलेक्ट्रॉन या हाइड्रोजन ऑक्सीकारक एजेंट को स्थानांतरित हो जाते हैं। प्रतिआक्सीकारकों का उपयोग चिकित्साविज्ञान तथा उद्योगों में होता है। पेट्रोल में प्रतिआक्सीकारक मिलाए जाते हैं। ये प्रतिआक्सीकारक चिपचिपाहट पैदा करने वाले पदार्थ नहीं बनने देते जो अन्तर्दहन इंजन के लिए हानिकारक हैं। प्रायः प्रतिस्थापित फिनोल (Substituted phenols) एवं फेनिलेनेडिआमाइन के व्युत्पन्न (derivatives of phenylenediamine) इस काम के लिए प्रयुक्त होते हैं। .

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प्रलाक्ष

प्रलाक्ष संचिका (मिंग वंश, १६वीं शताब्दी) सामान्य अर्थों में प्रलाक्ष (lacquer) वह पदार्थ है जिसका व्यवहार धातु या काठ के तलों पर लेप चढ़ाने में होता है। लेप चढ़ाने का उद्देश्य तल का संरक्षण, या उसे आकर्षक बनाना, होता है। अंग्रेजी शब्द 'लैकर' (lacquer) संस्कृत के 'लक्ष' शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ 'लाख' होता है जो एक कीड़ा व उसके द्वारा स्रावित तरल पदार्थ को कहते हैं। ('लक्ष' का अर्थ १००००० भी होता है।) प्राचीन भारत में लाख का प्रयोग लकड़ी की सतह को चमकाने के लिए किया जाता था। .

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प्रांगार चक्र

कार्बन चक्र आरेख. काली संख्याएं बिलियन टनों में सूचित करती हैं कि विभिन्न जलाशयों में कितना कार्बन संग्रहीत है ("GtC" से तात्पर्य कार्बन गिगाटन और आंकडे लगभग 2004 के हैं). गहरी नीली संख्याएं सूचित करती हैं कि प्रत्येक वर्ष कितना कार्बन जलाशयों के बीच संचालित होता है। इस चित्र में वर्णित रूप से अवसादों में कार्बोनेट चट्टान और किरोजेन के ~70 मिलियन GtC शामिल नहीं हैं। कार्बन चक्र जैव-भूरासायनिक चक्र है जिसके द्वारा कार्बन का जीवमंडल, मृदामंडल, भूमंडल, जलमंडल और पृथ्वी के वायुमंडल के साथ विनिमय होता है। यह पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण चक्रों में एक है और जीवमंडल तथा उसके समस्त जीवों के साथ कार्बन के पुनर्नवीनीकरण और पुनरुपयोग को अनुमत करता है.

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प्रगलन

फॉस्फेट प्रगलन के लिये प्रयुक्त विद्युत भट्ठी (टीवीए केमिकल प्लाण्ट, १९४२) प्रगलन (Smelting) एक प्रकार की निष्कर्षण धातुकर्मिकी है। अयस्क से धातु बनाने के लिये मुख्यतः इसका उपयोग किया जाता है। चाँदी, लोहा, ताँबा आदि इस विधि से निर्मित होते हैं। प्रगलन की तकनीक आज से कोई आठ हजार वर्ष पूर्व से उपयोग में लायी जा रही है। फिर भी प्रगलन को एक उच्च तकनीकी उपलब्धि माना जाता है। प्रगलन की प्रक्रिया में भूनना (रोस्टिंग), अपचयन तथा गन्दगी को फ्लक्स के रूप में धातु से अलग करना शामिल है। अयस्क के प्रगलन के फलस्वरूप धातु प्राप्त होती है वह तत्त्व के रूप में होती है या धातु के सरल यौगिक के रूप में। प्रायः अयस्क को किसी आक्सीकारक (जैसे वायु) या किसी अपचयक (जैसे कोक) की उपस्थिति में गलनांक से अधिक ताप तक गरम किया जाता है। अनुमान किया जाता है कि सबसे पहले ताँबे का प्रगलन ५००० ईसापूर्व किया गया था। उसके बाद टिन, सीसा और चाँदी का प्रगलन हुआ। चूँकि प्रगलन के लिये उच्च ताप (गलनांक से अधिक ताप) की आवश्यकता होती है, इसके लिये भट्टियों में तेज वायु का झोंका (प्रवात/draught) भेजा जाता है। ईँधन एके रूप में चारकोल का उपयोग किया जाता था जो १८वीं शताब्दी में कोक के आने तक जारी था। आज वात्या भट्ठी (ब्लास्ट फरनेस) इस काम को अत्यन्त दक्षतापूर्वक करती है। अलग-अलग धातुओं के लिये प्रगलन की प्रक्रिया में बहुत कुछ भिन्नता होती है। श्रेणी:धातुकर्म.

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प्रकाश-संश्लेषण

हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .

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प्रकाशीय दूरदर्शी

आठ-इंच वाला अपवर्तक दूरदर्शी प्रकाशीय दूरदर्शी (optical telescope) ऐसा दूरदर्शक है जो दूरस्थ पिण्ड का आवर्धित प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिये विद्युतचुम्बकीय स्पेक्ट्रम के दृश्य भाग का सहारा लेता है। (न कि एक्स-रे या रेडियो तरंगों का)। इससे प्राप्त प्रतिबिम्ब को सीधे आंख से देखा जा सकता है, फोटोग्राफ लिया जा सकता है या इलेक्ट्रानिक इमेज सेंसरों की सहायता से आंकड़े संचित किये जा सकते हैं। प्रकाशीय दूरदर्शी मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-.

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ब्लैक टी

काली चाय का प्याला दार्जिलिंग की काली चाय की सूखी पत्तियाँ ब्लैक टी यानि काली चाय, एक प्रकार की चाय होती है। यह अधिक ऊलॉन्ग व वाइट टी से अपेक्षाकृत ऑक्सीकृत होती है। इसकी चार प्रजातियां होती हैं और सभी कैमेलिया साइनेन्सिस से प्राप्त होती हैं। .

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मलेरिया का मानव जीनोम पर प्रभाव

मलेरिया हाल के इतिहास में मानव जीनोम पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला रोग रहा है। इसी कारण मलेरिया से बड़ी मात्रा में लोगों की मृत्यु होती है| यह मानव जीनोम पर अनेक प्रकार से प्रभाव डालता है। .

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रासायनिक अभिक्रिया

लकड़ी का जलना एक रासायनिक अभिक्रिया है। एक बीकर में हाइड्रोजन क्लोराइड की वाष्प में परखनली से अमोनिया की वाष्प मिलाने से एक नया पदार्थ अमोनियम क्लोराइड बनते हुए रासायनिक अभिक्रिया में एक या अधिक पदार्थ आपस में अन्तर्क्रिया (इन्टरैक्शन) करके परिवर्तित होते हैं और एक या अधिक भिन्न रासायनिक गुण वाले पदार्थ बनते हैं। किसी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों को अभिकारक (रिएक्टैन्ट्स) कहते हैं। अभिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न पदार्थों को उत्पाद (प्रोडक्ट्स) कहते हैं। लैवासिये के समय से ही ज्ञात है कि रासायनिक अभिक्रिया बिना किसी मापने योग्य द्रव्यमान परिवर्तन के होती है। (द्रव्यमान परिवर्तन अत्यन्त कम होता है जिसे मापना कठिन है)। इसी को द्रव्यमान संरक्षण का नियम कहते हैं। अर्थात किसी रासायनिक अभिक्रिया में न तो द्रव्यमान नष्ट होता है न ही बनता है; केवल पदार्थों का परिवर्तन होता है। परम्परागत रूप से उन अभिक्रियाओं को ही रासायनिक अभिक्रिया कहते हैं जिनमें रासायनिक बन्धों को तोडने या बनाने में एलेक्ट्रानों की गति जिम्मेदार होती है। .

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रुबिडियम

रूबिडियम (Rubidium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का चौथा तत्व है। इसमें धातुगुण वर्तमान हैं। इसके तीन स्थिर समस्थानिक प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ क्रमश: ८५, ८६, ८७ हैं। इस तत्व की खोज बुंसन तथा किर्खहॉफ़ ने १८६० ई. में स्पेक्ट्रमदर्शी (spectroscope) द्वारा की थी। स्पेक्ट्रमदर्शी द्वारा प्रयोगों में दो नई लाल रेखाएँ मिलीं, जिनके कारण इसका नाम 'रूबिडियम' रखा गया। लेपिडोलाइट अयस्क में रूबिडियम की मात्रा लगभग १ प्रतिशत रहती है। इसके अतिरिक्त अभ्रक तथा कार्टेलाइड में भी यह न्यून मात्रा में मिलता है। पोटैशियम तथा रूबिडियम के प्लैटिनिक क्लोराइडों की विलेयता भिन्न भिन्न है, जिसके कारण इन दोनों को पृथक् किया जा सकता है। .

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रीनियम

रेनियम (Rhenium; संकेत: Re) एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणुभार १८६.३१ तथा परमाणु संख्या ७५ है। इसका आविष्कार १९२५ ई. में इडा तथा वाल्टर नौडाक (Ida and Walter Noddock) द्वारा हुआ था। इसके स्थायी समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या १८५ है और अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक १८२, १८३, १८४, १८६, १८७ और १८८ द्रव्यमान संख्याओं के प्राप्त हैं। यह तत्व अनेक खनिजों में बहुत विस्तृत पाया जाता है, पर बड़ी अल्प मात्रा में ही। खनिजों में यह सल्फाइड के रूप में रहता है। इसके ऑक्साइड वाष्पशील होते हैं, अत: खनिजों के प्रद्रावण पर यह अवशेष में, या चिमनी धूल में, सांद्रित रहता है। इसका निष्कर्षण पोटैशियम पररेनेट के रूप में होता है, जो जल में अल्प विलेय है। लवण के पुन: क्रिस्टलीकरण से यह शुद्ध रूप में प्राप्त होता है। हाइड्रोजन के वातावरण में पोटैशियम या अमोनियम पररेनेट के अपचयन से धूसर, या काले चूर्ण के रूप में धातु प्राप्त होती है। ऊँचे ताप पर यह धातु स्थूल रूप में प्राप्त होती है। धातु का घनत्व २१ और गलनांक ३,१४० डिग्री सेल्सियस है। इसे १५० डिग्री सेल्सियस से ऊपर गरम करने से ऑक्साइड बनता है। इसके अनेक ऑक्साइड बनते हैं। इसका क्लोराइड, ऑक्सीक्लोराइड, सल्फाइड और फॉस्फाइड भी बनता है। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में अविलेय है, पर नाइट्रिक अम्ल में विलेय है। इसकी अनेक मिश्रधातुएँ बनी हैं। श्रेणी:रीनियम श्रेणी:रासायनिक तत्व श्रेणी:संक्रमण धातु श्रेणी:उच्चतापसह धातुएँ.

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लाइकोपेन

लाइकोपेन एक लाल चमकदार कैरोटीन और कैरोटीनॉयड रंगद्रव्य और फिटोकेमिकल है, जो टमाटर एवं अन्य लाल फलों और सब्जियों, जैसे लाल गाजर, तरबूज और पपीता (लेकिन स्ट्रॉबेरी या चेरी में नहीं) में पाया जाता है। हालांकि, रासायनिक दृष्टि से लाइकोपेन एक कैरोटीन है, पर इसमें कोई विटामिन ए गतिविधि नहीं होती है। पौधों, शैवाल और अन्य प्रकाश संश्लेषक जैविक संरचनाओं में, लाइकोपेन पीले, नारंगी या लाल रंगद्रव्यों, प्रकाश संश्लेषण तथा प्रकाश संरक्षण के लिए जिम्मेदार बीटा कैरोटीन सहित अधिकांश कैरोटीनॉयड के जैविक संश्लेषण का एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ होता है। संरचनात्मक रूप से यह एक टेट्राटरपेन है, जो पूरी तरह कार्बन और हाइड्रोजन से बने आठ आइसोप्रेन इकाइयों का एक संगठित रूप है और यह पानी में अघुलनशील है। लाइकोपेन के ग्यारह संयुग्मित दुहरे जुडाव इसे इसका गहरा लाल रंग देते हैं और इसकी ऑक्सीकरण प्रतिरोधक गतिविधि के लिए जिम्मेदार है। अपने सशक्त रंग और गैर-विषाक्तता के कारण लाइकोपेन भोजन में प्रयुक्त होनेवाला एक उपयोगी रंग है। लाइकोपेन, मनुष्य के लिए आवश्यक पोषक तत्व नहीं है, लेकिन सामान्यतः यह आहार में, मुख्य रूप से टमाटर सॉस के साथ तैयार व्यंजनों में पाया जाता है। अमाशय में अवशोषित होने के बाद लाइकोपेन विभिन्न लिपो प्रोटीनों द्वारा रक्त में पहुंचाया है और यकृत, अधिवृक्क ग्रंथियों तथा वीर्यकोश में जमा हो जाता है। प्रारंभिक अनुसंधान में टमाटर के उपभोग और कैंसर के खतरे में प्रतिकूल व्युत्क्रम दिखाए जाने की वजह से लाइकोपेन को कई प्रकार के कैंसर, विशेष रूप से प्रोस्टेट कैंसर की रोकथाम के लिए एक संभावित एजेंट माना गया है। हालांकि, अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी दावे के अनुमोदन के लिए इस क्षेत्र के अनुसंधान और प्रोस्टेट कैंसर के साथ इसके संबंध को अपर्याप्त सबूत समझा गया है (नीचे ऑक्सीकारक गुण और संभावित स्वास्थ्य लाभ के तहत देखें).

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लवण

लवण (Salt) वह यौगिक है जो किसी अम्ल के एक, या अधिक हाइड्रोजन परमाणु को किसी क्षारक के एक, या अधिक धनायन से प्रतिस्थापित करने पर बनता है। खानेवाला नमक एक प्रमुख लवण है। रसायनत: यह नमक सोडियम और क्लोरीन का सोडियम क्लोराइड नामक यौगिक है। पोटैशियम नाइट्रेट एक दूसरा लवण है, जो नाइट्रिक अम्ल के हाइड्रोजन आयन को पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के पोटैशियम आयन (धनायन) द्वारा प्रतिस्थापित करने से बनता है। नाइट्रिक अम्ल के अणु में केवल एक हाइड्रोजन होता है, जो पोटैशियम से प्रतिस्थापित होता है। सल्फ्यूरिक अम्ल में प्रतिस्थापनीय हाइड्रोजन की संख्या दो है। अत: सोडियम द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के दोनों हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित होने पर सोडियम सल्फेट नामक लवण प्राप्त होता है। दोनों ही यौगिक लवण कहलाते हैं। पहला नॉर्मल (normal) लवण और दूसरा अम्लीय लवण कहलाता है। विविध अम्लों और विविध क्षारों के सहयोग से अनेक लवण बने हैं। .

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साइक्लोपेन्टानॉल

साइक्लोपेन्टानॉल एक शराब है। ज्वलनशील और / या विषाक्त गैसों क्षार धातुओं, और मजबूत एजेंटों को कम करने के साथ एल्कोहल के संयोजन के द्वारा उत्पन्न कर रहे हैं। वे एस्टर के साथ साथ पानी के लिए फार्म और कार्बोक्जिलिक एसिड के साथ प्रतिक्रिया। ऑक्सीकरण एजेंट उन्हें एल्डीहाइड या कीटोन कन्वर्ट करने के लिए। अल्कोहल दोनों कमजोर अम्ल और कमजोर आधार व्यवहार दिखा रहे हैं। वे आइसोसाइनेट और के आरंभ हो सकता है। सेहत को खतरा आग से खतरा http://www.chemicalbook.com/ChemicalProductProperty_EN_cb5854727.htm https://pubchem.ncbi.nlm.nih.gov/compound/cyclopentanol www.chemistry.sc.chula.ac.th/bsac/experiment%2012.

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स्नेहक

लूब्रिकेंट (जिसे कभी-कभी "लूब" के रूप में संदर्भित किया जाता है) एक ऐसा पदार्थ है (अक्सर तरल) जो दो गतिशील सतहों के बीच लगाया जाता है ताकि उनके बीच घर्षण कम हो, कार्यकुशलता में सुधार हो और जल्दी घिस ना जाए.

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सोडियम

सोडियम (Sodium; संकेत, Na) एक रासायनिक तत्त्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का दूसरा तत्व है। इस समूह में में धातुगण विद्यमान हैं। इसके एक स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या २३) और चार रेडियोसक्रिय समस्थानिक (द्रव्यमन संख्या २१, २२, २४, २४) ज्ञात हैं। .

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हरी चाय

गायवान में पकी हरी चाय की पत्तियाँ किण्वन की विभिन्न श्रेणियों में चाय कैमेलिया साइनेसिस का पौधा हरी चाय (अंग्रेज़ी: ग्रीन टी) एक प्रकार की चाय होती है, जो कैमेलिया साइनेन्सिस नामक पौधे की पत्तियों से बनायी जाती है। इसके बनाने की प्रक्रिया में ऑक्सीकरण न्यूनतम होता है। इसका उद्गम चीन में हुआ था और आगे चलकर एशिया में जापान से मध्य-पूर्व की कई संस्कृतियों से संबंधित रही। इसके सेवन के काफी लाभ होते हैं।। हिन्दुस्तान लाइव। ६ जनवरी २०१० प्रतिदिन कम से कम आठ कप ग्रीन टी हृदय रोग होने की संभावनाओं को कम करने कोलेस्ट्राल को कम करने के साथ ही शरीर के वजन को भी नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होती है। प्रायः लोग ग्रीन टी के बारे में जानते हैं लेकिन इसकी उचित मात्र न ले पाने की वजह से उन्हें उनका पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। हरी चाय का फ्लेवर ताज़गी से भरपूर और हल्का होता है तथा स्वाद सामान्य चाय से अलग होता है। इसकी कुछ किस्में हल्की मिठास लिए होती है, जिसे पसंद के अनुसार दूध और शक्कर के साथ बनाया जा सकता है।। दैनिक भास्कर। १ मार्च २००८ ग्रीन टी बनाने के लिए एक प्याले में २-४ ग्राम चाय पड़ती है। पानी को पूरी तरह उबलने के बाद २-३ मिनट के लिए छोड़ देते हैं। प्याले में रखी चाय पर गर्म पानी डालकर फिर तीन मिनट छोड़ दें। इसे कुछ देर और ठंडा होने पर सेवन करते हैं। विभिन्न ब्रांड के अनुसार एक दिन में दो से तीन कप ग्रीन टी लाभदायक होती है। इसका अर्थ है कि एक दिन में ३००-४०० मिलीग्राम ग्रीन टी पर्याप्त होती है। अब तक ग्रीन टी का सिर्फ एक ही नुकसान ज्ञात हुआ है, अनिद्रा यानी नींद कम आने की बीमारी। इसका कारण चाय में उपस्थित कैफीन है। हालांकि इसमें कॉफी के मुकाबले कम कैफीन होता है। .

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हाइड्रोजन

हाइड्रोजन पानी का एक महत्वपूर्ण अंग है शुद्ध हाइड्रोजन से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हाइड्रोजन (उदजन) (अंग्रेज़ी:Hydrogen) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी का सबसे पहला तत्व है जो सबसे हल्का भी है। ब्रह्मांड में (पृथ्वी पर नहीं) यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। तारों तथा सूर्य का अधिकांश द्रव्यमान हाइड्रोजन से बना है। इसके एक परमाणु में एक प्रोट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन होता है। इस प्रकार यह सबसे सरल परमाणु भी है। प्रकृति में यह द्विआण्विक गैस के रूप में पाया जाता है जो वायुमण्डल के बाह्य परत का मुख्य संघटक है। हाल में इसको वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सकने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं। यह एक गैसीय पदार्थ है जिसमें कोई गंध, स्वाद और रंग नहीं होता है। यह सबसे हल्का तत्व है (घनत्व 0.09 ग्राम प्रति लिटर)। इसकी परमाणु संख्या 1, संकेत (H) और परमाणु भार 1.008 है। यह आवर्त सारणी में प्रथम स्थान पर है। साधारणतया इससे दो परमाणु मिलकर एक अणु (H2) बनाते है। हाइड्रोजन बहुत निम्न ताप पर द्रव और ठोस होता है।।इण्डिया वॉटर पोर्टल।०८-३०-२०११।अभिगमन तिथि: १७-०६-२०१७ द्रव हाइड्रोजन - 253° से.

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हाइड्रोजन पेरॉक्साइड

'हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) एक बहुत हल्का नीला, पानी से जरा सा अधिक गाढ़ा द्रव है जो पतले घोल में रंगहीन दिखता है। इसमें आक्सीकरण के प्रबल गुण होते हैं और यह एक शक्तिशाली विरंजक है। इसका इस्तेमाल एक विसंक्रामक, रोगाणुरोधक, आक्सीकारक और रॉकेट्री में प्रणोदक के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड की आक्सीकरण क्षमता इतनी प्रबल होती है कि इसे आक्सीजन की उच्च प्रतिक्रिया वाली जाति समझा जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड जीवों में आक्सीकरण चयापचय के उपोत्पाद के रूप में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है। लगभग सभी जीवित वस्तुओं (विशेषकर, सभी आब्लिगेटिव और फेकल्टेटिव वातापेक्षी जीव) में परॉक्सिडेज नामक एन्ज़ाइम होते हैं जो बिना हानि पहुंचाए और उत्प्रेरण द्वारा उदजन परूजारक की छोटी मात्राओं को पानी और आक्सीजन में विघटित करते हैं। .

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जल (अणु)

जल पृथ्वी की सतह पर सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला अणु है, जो इस ग्रह की सतह के 70% का गठन करता है। प्रकृति में यह तरल, ठोस और गैसीय अवस्था में मौजूद है। मानक दबावों और तापमान पर यह तरल और गैस अवस्थाओं के बीच गतिशील संतुलन में रहता है। घरेलू तापमान पर, यह तरल रूप में हल्की नीली छटा वाला बेरंग, बेस्वाद और बिना गंध का होता है। कई पदार्थ, जल में घुल जाते हैं और इसे सामान्यतः सार्वभौमिक विलायक के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस वजह से, प्रकृति में मौजूद जल और प्रयोग में आने वाला जल शायद ही कभी शुद्ध होता है और उसके कुछ गुण, शुद्ध पदार्थ से थोड़ा भिन्न हो सकते हैं। हालांकि, ऐसे कई यौगिक हैं जो कि अनिवार्य रूप से, अगर पूरी तरह नहीं, जल में अघुलनशील है। जल ही ऐसी एकमात्र चीज़ है जो पदार्थ की सामान्य तीन अवस्थाओं में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है - अन्य चीज़ों के लिए रासायनिक गुण देखें. पृथ्वी पर जीवन के लिए जल आवश्यक है। जल आम तौर पर, मानव शरीर के 55% से लेकर 78% तक का निर्माण करता है। .

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जी6पीडी

ग्लूकोज़ 6 फ़ॉस्फ़ेट डीहाइड्रोजनेज़ (अंग्रेजी: glucose-6-phosphate dehydrogenase, जी6पीडी) एक प्रकार का किण्वक (अंग्रेजी: enzyme, एंज़ाइम) है जो लाल रक्त कोशिका को आक्सीकारक दबाव से बचाता है। इस किण्वक के अभाव से भी गंभीर मलेरिया से सुरक्षा मिल जाती है। श्रेणी:मलेरिया.

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जीवदीप्ति

एक प्रकाशोत्पादक जन्तु प्रकाश उत्पन्न करने के अनेक साधन हैं। कुछ प्राणी भी प्रकाश उत्पन्न करते हैं। प्राणी से उत्पन्न प्रकाश को जीवदीप्ति (Bio-luminescence), या 'शीतल प्रकाश', कहते हैं। साधारण प्रकाश में प्रकाश के साथ-साथ उष्मा भी रहती है, पर जीवदीप्ति में उष्मा नहीं रहती। .

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घी

घी घी (संस्कृत: घृतम्), एक विशेष प्रकार का मख्खन (बटर) है जो भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से भोजन के एक अवयव के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। भारतीय भोजन में खाद्य तेल के स्थान पर भी प्रयुक्त होता है। यह दूध के मक्खन से बनाया जाता है। दक्षिण एशिया एवं मध्य पूर्व के भोजन में यह एक महत्वपूर्ण अवयव है। .

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वार्निश

संग्रहालय में वार्निश की हुईं कुछ लकड़ी की वस्तुएँ रोगन या वार्निश (अंग्रेजी:Varnish) एक पदार्थ है जो लकड़ी तथा अन्य कुछ पदार्थों के ऊपर लगायी जाती है जिससे उनकी सुरक्षा हो और वे सुन्दर दिखें। वार्निश के लेप चढ़ाने का उद्देश्य किसी तल को चिकना, चमकीला और आकर्षक बनाना होता है। यदि तल लकड़ी का है, तो तल की कीटों से रक्षा भी वार्निश से हो सकती है। यदि तल धातुओं का है, तो उसपर वायु, जल, प्रकाश आदि, से रक्षा कर मुरचा लगने से उसे बचाया जा सकता है। .

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वाहितमल उपचार

मलजल प्रशोधन का उद्देश्य - समुदायों के लिए कोई मुसीबत पैदा किए बिना या नुकसान पहुंचाए बिना निषकासनयोग्य उत्प्रवाही जल को उत्पन्न करना और प्रदूषण को रोकना है।1 मलजल प्रशोधन, या घरेलू अपशिष्ट जल प्रशोधन, अपवाही (गन्दा जल) और घरेलू दोनों प्रकार के अपशिष्ट जल और घरेलू मलजल से संदूषित पदार्थों को हटाने की प्रक्रिया है। इसमें भौतिक, रासायनिक और जैविक संदूषित पदार्थों को हटाने की भौतिक, रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसका उद्देश्य एक अपशिष्ट प्रवाह (या प्रशोधित गन्दा जल) और एक ठोस अपशिष्ट या कीचड़ का उत्पादन करना है जो वातावरण में निर्वहन या पुनर्प्रयोग के लिए उपयुक्त होता है। यह सामग्री अक्सर अनजाने में कई विषाक्त कार्बनिक और अकार्बनिक यौगिकों से संदूषित हो जाती है। .

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विद्युत्-रसायन

जॉन डेनियल और माइकल फैराडे (दायें तरफ), जिन्हे विद्युतरसायन का जनक माना जाता है विद्युतरसायन (eletro-chemistry), भौतिक रसायन की वह शाखा है जिसमें उन रासायनिक अभिक्रियों का अध्ययन किया जाता है जो किसी विलयन (सलूशन्) के अन्दर एक एलेक्ट्रान चालक और एक ऑयनिक चालक (विद्युत अपघट्य) के मिलन-तल (इन्टरफेस) पर होती है। इसमें इलेक्ट्रान चालक कोई धातु या अर्धचालक हो सकता है। यदि रासायनिक अभिक्रिया किसी बाहर से आरोपित विभवान्तर (वोल्टेज्) के कारण घटित होती है (जैसे विद्युत अपघटन में); या रासायनिकभिक्रिया के परिणामस्वरूप विभवान्तर पैदा होता है (जैसे बैटरी में) तो ऐसी रासायनिक अभिक्रियों को विद्युत्त्-रासायनिक अभिक्रिया (electrochemical reaction) कहते हैं। सामान्य रूप से देखें तो पाते हैं कि विद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण एवं अपचयन क्रियाएं निहित होती हैं जो समय या स्थान (स्पेस और टाइम) में अलग होती हैं और किसी बाहरी परिपथ से जुड़ी होती हैं। .

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विरंजन

विरंजक कू बोतल रंगीन पदार्थों से रंग निकालकर उन्हें श्वेत करने को विरंजन करना (ब्लीचिंग) कहते हैं। विरंजन से केवल रंग ही नहीं निकलता, वरन् प्राकृतिक पदार्थों से अनेक अपद्रव्य भी निकल जाते हैं। अनेक पदार्थों को विरंजित करने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे पदार्थों में रूई, वस्त्र, लिनेन, ऊन, रेशम, कागज लुगदी, मधु, मोम, तेल, चीनी और अनेक अन्य पदार्थ हैं। विरंजकों का कार्य प्रायः आक्सीकरण पर आधारित है। अधिकांश विरंजक क्लोरीन पर आधारित हैं। .

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खाद्य परिरक्षण

विभिन्न संरक्षित खाद्य पदार्थ कनाडा का विश्व युद्ध प्रथम के समय का पोस्टर जो लोगों को सर्दियों के लिए भोजन संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। खाद्य परिरक्षण खाद्य को उपचारित करने और संभालने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे उसके खराब होने (गुणवत्ता, खाद्यता या पौष्टिक मूल्य में कमी) की उस प्रक्रिया को रोकता है या बहुत कम कर देता है, जो सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा होती या तेज कर दी जाती है। यद्दपि कुछ तरीकों में, सौम्य बैक्टीरिया, जैसे खमीर या कवक का प्रयोग किया जाता है ताकि विशेष गुण बढ़ाए जा सके और खाद्य पदार्थों को संरक्षित किया जा सके (उदाहरण के तौर पर पनीर और शराब).

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गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

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ग्लाइकोलिसिस

ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) या ग्लाइको अपघटन, श्वसन की प्रथम अवस्था है जो कोशिका द्रव में होती है। इस क्रिया में ग्लूकोज का आंशिक आक्सीकरण होता है, फलस्वरूप ग्लूकोज के एक अणु से पाइरूविक अम्ल के 2 अणु बनते हैं तथा कुछ ऊर्जा मुक्त होती है। यह क्रिया कई चरणों में होती है एवं प्रत्येक चरण में एक विशिष्ठ इन्जाइम उत्प्रेरक का कार्य करता है। इस क्रिया को इएणपी पाथवे भी कहा जाता है। इसमें ग्लूकोज में संचित ऊर्जा का 4 प्रतिशत भाग मुक्त होकर एनएडीएच (NADH2) में चली जाती है तथा शेष 96 प्रतिशत ऊर्जा पाइरूविक अम्ल में संचित हो जाती है। ग्लाइकोलिसिस की अभिक्रिया माइट्रोकांड्रिया के मैट्रिक्स में संपन्न होती है ग्लाइकोसिस की प्रक्रिया ग्लूकोकोज से आरम्भ होकर विभिन्न मध्यवर्ती उपापचयजों (metabolites) से होते हुए पाइरुवेट तक जाती है। हर रासायनिक परिवर्तन (लाल बक्सा) एक अलग एंजाइम द्वारा सम्पन्न होता है। चरण 1 तथा 3 में ATP (नीला) का उपभोग होता है और चरण 7 तथा 10 में ATP (पीला) बनता है। चूँकि चरण 6-10 प्रत्येक ग्लूकोज अणु के लिये दो बार होती है, इस कारण नेट ATP उत्पादन होता है। श्रेणी:श्वसन.

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गैल्वानी सेल

300px दो अर्ध सेलों को लवण-सेतु से जोड़कर बना सेल (जिंक-कॉपर गैल्वानी सेल) आजकल तरह-तरह के सेल और बैटरियाँ बाजार में उपलब्ध हैं। गैल्वानी सेल (galvanic cell) या वोल्टाई सेल (voltaic cell) एक विद्युतरासायनिक युक्ति है अपने अन्दर होने वाली रेडॉक्स अभिक्रिया के फलस्वरूप विद्युत ऊर्जा प्रदान करता है। इसके ये नाम क्रमशः लुइगी गैल्वानी तथा एलेसान्द्रो वोल्टा के नाम पर रखे गये हैं जिन्होने इस क्षेत्र में सबसे पहले काम किया। सेल के अन्दर दो भिन्न धातुएँ होतीं हैं जो एक लवण-सेतु (साल्ट ब्रिज) के माध्यम से जुड़ी होतीं हैं। वोल्टा ने वोल्टाई पाइल (voltaic pile) का आविष्कार किया जो प्रथम विद्युत बैटरी थी। साधारण प्रयोग में बैटरी एक सेल को भी बैटरी कह दिया जाता है किन्तु बैटरी का वास्तविक अर्थ 'एक से अधिक सेलों का संयोजन' है। This cell is also called 'syed' or 'galloesa'.

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ऑक्साइड

लौह (३) ऑक्साइड-हाइड्रॉक्साइड (FeO(OH), Fe(OH)3) की मात्रा होती हैं, अन्य तत्त्वों के साथ अभिक्रिया होने पर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ऑक्साइड वे रासायनिक यौगिक होते हैं, जिनमें कम से कम एक ऑक्सीजन परमाणु और कम से कम एक अन्य तत्त्व हो। पृथ्वी की सतह का अधिकांश भाग ऑक्साइड से से बना है। तत्त्वों की वायु में ऑक्सीजन से ऑक्सीकरण अभिक्रिया से ऑक्साइड्स का निर्माण होता है। आक्साइड किसी तत्व के साथ आक्सीजन के यौगिक हैं। ये सर्वत्र बहुतायत से मिलते हैं। हाइड्रोजन का आक्साइड पानी (H2O) पृथ्वी पर बहुत बड़ी मात्रा में है। इसके अतिरिक्त हवा में कई प्रकार के गैसीय आक्साइड हैं, जैसे कार्बन डाइ आक्साइड, सल्फर डाइ आक्साइड आदि। खनिजों, चट्टानों और धरती की ऊपरी तह में भी विभिन्न आक्साइड हैं। आक्सीजन कुछ तत्वों को छोड़कर लगभग सभी तत्वों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष क्रिया करता है। इससे अनेक आक्साइड उपलब्ध हैं। .

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ऑक्सीकरण संख्या

ऑक्सीकरण संख्या (oxidation number) या ऑक्सीकरण अवस्था (oxidation state) किसी रासायनिक यौगिक में बंधे हुए किसी परमाणु के ऑक्सीकरण (oxidation) के दर्जे का सूचक होता है। यह संख्या गिनाती है कि उस यौगिक के रासायनिक बंध में वह परमाणु कितने इलेक्ट्रान उस यौगिक में स्थित अन्य परमाणुओं को खो चुका है। उदाहरण के लिए, पानी (जिसका रासायनिक सूत्र H2O है) में दोनो हाइड्रोजन परमाणु अपना एक-एक इलेक्ट्रान ऑक्सीजन परमाणु को दे चुके होते हैं। इसलिये जल में हर हाइड्रोजन परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या +1 होती है जबकि ऑक्सीजन की -2 होती है (क्योंकि वह खोने की बजाय दो इलेक्ट्रान प्राप्त कर लेता है)। .

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ओजोन थेरेपी

एक चिकित्सकीय ओज़ोन जनरेटर।सौजन्य: http://www.medpolinar.com/eng_version/ozon.htm www.medpolinar.com ओजोन थेरेपी में ओजोन और ऑक्सीजन के मिश्रण को मनुष्य के शरीर के लाभ हेतु प्रयोग किया जाता है। ओजोन एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सक्षम है, इसलिए यह ऑक्सीडेटिव मानसिक तनाव को कम कर सकता है। ओजोन का यह एंटीऑक्सीडेंट प्रतिरोधक तंत्र विकिरण और कीमोथेरेपी के दौरान पैदा होने वाले रेडिकल्स को संतुलित करता है।। हिन्दुस्तान लाइव। ९ मई २०१० चाहे शरीर में शीघ्र थकान होने की शिकायत हो, सुस्ती अनुभव होती हो, छाती में दर्द की समस्या हो या उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्राल वृद्धि, मधुमेह आदि की चिंता हो, या कैंसर से लेकर एचआईवी जैसे घातक रोगों में, ओजोन थेरेपी इन सभी में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में समान रूप से सहायक हो सकती है। यह अल्पजीवी गैस शरीर के अंदर जाकर ऑक्सीकरण प्रक्रिया को तेज करने के साथ-साथ ऑक्सीजन को फेफड़ों से लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक ले जाने की क्षमता बढ़ा देती है। इससे शरीर द्वारा बनाये गए अफल विषैले तत्वों को बाहर निकालने एवं क्षय हो रही ऊर्जा के पुनर्संचय में मदद मिलती है। .

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आग

जंगल की आग आग दहनशील पदार्थों का तीव्र ऑक्सीकरण है, जिससे उष्मा, प्रकाश और अन्य अनेक रासायनिक प्रतिकारक उत्पाद जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और जल.

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आक्सी श्वसन

ऑक्सीय श्वसन श्वसन की वह पद्धति है जिसमें आक्सीजन की उपस्थिति अनिवार्य है तथा इसमें भोजन का पूर्ण आक्सीकरण होता है। इस क्रिया के अन्त में पानी, कार्बन डाई-आक्साइड तथा ऊष्मीय ऊर्जा का निर्माण होता है। एक ग्राम मोल ग्लूकोज के आक्सीकरण से ६७४ किलो कैलोरी ऊर्जा मुक्त होती है। जिन जीवधारियों में यह श्वसन पाया जाता है उन्हें एरोब्स कहते हैं। श्रेणी:श्वसन.

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क्रेब्स चक्र

क्रेब्स चक्र वायवीय श्वसन की दूसरी अवस्था है। यह कोशिका के माइटोकाँन्ड्रिया में होती है। इस क्रिया में ग्लूकोज का अंत पदार्थ पाइरूविक अम्ल पूर्ण रूप से आक्सीकृत होकर कार्बन डाईआक्साइड और जल में बदल जाता है तथा अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। यह क्रिया कई चरणों में होती है तथा एक चक्र के रूप में कार्य करती है। इस चक्र का अध्ययन सर्वप्रथम हैन्स एडोल्फ क्रेब ने किया था, उन्हीं के नाम पर इस क्रिया को क्रेब्स चक्र कहते हैं। श्रेणी:श्वसन.

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क्रोटाइल अल्कोहल

यह एक प्रकार का अल्कोहल है। श्रेणी:अल्कोहल .

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क्लीमेन्सन अपचयन

क्लीमेन्सन अपचयन (Clemmensen reduction) १९१२ ई. में एरिक क्रिस्चन क्लेमेंसन द्वारा खोजी गई एक अपचयन अभिक्रिया है। इस अभिक्रिया में ऐल्डिहाइड एवं कीटोनों को एल्केन समूह में बदला जा सकता है। एल्डिहाइड एवं कीटोन का कार्बोनिल समूह अमलगमित जिंक एवं सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा अभिक्रिया के साथ गरम करने पर एल्केन समूह में परिवर्तित हो जाते हैं। इस अभिक्रिया का नाम डैनिश रसायनज्ञ एरिक क्रिश्चियन क्लीमेन्सन के नाम पर पड़ा है। .

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क्षारीय पार्थिव धातु

क्षारीय पार्थिव धातुएँ (alkaline earth metals) आवर्त सारणी के समूह-२ में स्थित रासायनिक तत्त्वों वह समूह है जिसमें बेरिलियम (Be), मैग्नेशियम (Mg), कैल्शियम (Ca), स्ट्रॉन्शियम (Sr), बेरियम (Ba) एवं रेडियम (Ra) हैं। .

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कैल्सियम

कैल्सियम (Calcium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्तसारणी के द्वितीय मुख्य समूह का धातु तत्व है। यह क्षारीय मृदा धातु है और शुद्ध अवस्था में यह अनुपलब्ध है। किन्तु इसके अनेक यौगिक प्रचुर मात्रा में भूमि में मिलते है। भूमि में उपस्थित तत्वों में मात्रा के अनुसार इसका पाँचवाँ स्थान है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘Ca’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्सियम क्लोराइड से अलग किया था। चूना पत्थर, कैल्सियम का महत्वपूर्ण खनिज स्रोत है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है। अपने शुद्ध रूप में कैल्शियम चमकीले रंग का होता है। यह अपने अन्य साथी तत्वों के बजाय कम क्रियाशील होता है। जलाने पर इसमें से पीला और लाल धुआं उठता है। इसे आज भी कैल्शियम क्लोराइड से उसी प्रक्रिया से अलग किया जाता है जो सर हम्फ्री डैवी ने 1808 में इस्तेमाल की थी। कैल्शियम से जुड़े ही एक अन्य यौगिक, कैल्सियम कार्बोनेट को कंक्रीट, सीमेंट, चूना इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य कैल्शियम कंपाउंड अयस्कों, कीटनाशक, दुर्गन्धहर, खाद, कपड़ा उत्पादन, कॉस्मेटिक्स, लाइटिंग इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है। जीवित प्राणियों में कैल्शियम हड्डियों, दांतों और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। यह रक्त में भी होता है और शरीर की अंदरूनी देखभाल में इसकी विशेष भूमिका होती है। कैल्सियम अत्यंत सक्रिय तत्व है। इस कारण इसको शुद्ध अवस्था में प्राप्त करना कठिन कार्य है। आजकल कैल्सियम क्लोराइड तथा फ्लोरस्पार के मिश्रण को ग्रेफाइट मूषा में रखकर विद्युतविच्छेदन द्वारा इस तत्व को तैयार करते हैं। शुद्ध अवस्था में यह सफेद चमकदार रहता है। परन्तु सक्रिय होने के कारण वायु के आक्सीजन एवं नाइट्रोजन से अभिक्रिया करता है। इसके क्रिस्टल फलक केंद्रित घनाकार रूप में होते हैं। यह आघातवर्ध्य तथा तन्य तत्व है। इसके कुछ गुणधर्म निम्नांकित हैं- साधारण ताप पर यह वायु के ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से धीरे धीरे अभिक्रिया करता है, परंतु उच्च ताप पर तीव्र अभिक्रिया द्वारा चमक के साथ जलता है और कैलसियम आक्साइड (CaO) बनाता है। जल के साथ अभिक्रिया कर यह हाइड्रोजन उन्मुक्त करता है और लगभग समस्त अधातुओं के साथ अभिक्रिरिया कर यौगिक बनाता है। इसके रासायनिक गुण अन्य क्षारीय मृदा तत्वों (स्ट्रांशियम, बेरियम तथा रेडियम) की भाँति है। यह अभिक्रिया द्वारा द्विसंयोजकीय यौगिक बनाता है। ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होने पर कैलसियम ऑक्साइड का निर्माण होता है, जिसे कली चूना और बिना बुझा चूना (quiklime) भी कहते हैं। पानी में घुलने पर कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड या शमित चूना या बुझा चूना (slaked lime) बनता है। यह क्षारीय पदार्थ है जिसका उपयोग गृह निर्माण कार्य में पुरतान काल से होता आया है। चूने में बालू, जल आदि मिलाने पर प्लास्टर बनता है, जो सूखने पर कठोर हो जाता है और धीरे-धीरे वायुमण्डल के कार्बन डाइऑक्साइड से अभिक्रिया कर कैलसियम कार्बोनेट में परिणत हो जाता है। कैलसियम अनेक तत्वों (जैसे हाइड्रोजन, फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन आयोडीन, नाइट्रोजन सल्फर आदि) के साथ अभिक्रिया कर यौगिक बनता है। कैलसियम क्लोराइड, हाइड्रोक्साइड, तथा हाइपोक्लोराइड का एक मिश्रण और ब्लिचिंग पाउडर कहलाता है जो वस्त्रों आदि के विरंजन में उपयोगी है। कैलसियम कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट भी उपयोगी है। अपाचयक तत्व होने के कारण कैलसियम अन्य धातुओं के निर्माण में काम आता है। कुछ धातुओं में कैलसियम मिश्रित करने पर उपयोगी मिश्र धातुएँ बनती हैं। कैलसियम के यौगिक के अनेक उपयोग हैं। कुछ यौगिक (नाइट्रेट, फॉसफेट आदि) उर्वरक के रूप में उपयोग में आते है। कैलसियम कार्बाइड का उपयोग नाइट्रोजन स्थिरीकरण उद्योग में होता है और इसके द्वारा एसिटिलीन गैस बनाई जाती है। कैलसियम सल्फेट द्वारा प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाया जाता है। इसके अतिरक्ति कुछ यौगिक चिकित्सा, पोर्स्लोिन उद्योग, काच उद्योग, चर्म उद्योग तथा लेप आदि के निर्माण में उपयोगी है। भारत के प्राचीन निवासी कैलसियम के यौगिक तत्वों से परिचित थे। उनमें चूना (कैलसियम आक्साइड) मुख्य है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है तत्कालीन निवासी चूने का उपयोग अनेक कार्यों में करते थे। चूने के साथ कतिपय अन्य पदार्थों के मिश्रण से 'वज्रलेप' तैयार करने का प्राचीन साहित्य में प्राप्त होता है। चरक ने ऐसे क्षारों का वर्णन किया है जिनको विभिन्न समाक्षारों पर चूने की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता था। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कोपिया नामक एक स्थान से काँच बनाने के एक प्राचीन कारखाने के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसका काल लगभग पाँचवी शती ईसवी पूर्व अनुमान किया जाता है। वहाँ से मिली काँच की वस्तुओं की परीक्षा से ज्ञात हुआ है कि उस काल के काँच बनाने में चूने का उपयोग होता था। .

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कोशिकीय श्वसन

सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं। यह एक केटाबोलिक क्रिया है जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है। कोशिकीय श्वसन एवं श्वास क्रिया में अभिन्न सम्बंध है एवं ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। श्वांस क्रिया सजीव के श्वसन अंगों एवं उनके वातावरण के बीच होती है। इसके दौरान सजीव एवं उनके वातावरण के बीच आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है तथा इस क्रिया द्वारा आक्सीजन गैस वातावरण से सजीवों के श्वसन अंगों में पहुँचती है। आक्सीजन गैस श्वसन अंगों से विसरण द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती है। रक्त परिवहन का माध्यम है जो इस आक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में पहुँचा देता है। वहाँ इसका उपयोग कोशिकाएँ अपने कोशिकीय श्वसन में करती हैं। श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति-गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। .

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अपचायक

रसायन शास्त्र में अपचायक (reducing agent) ऐसे रासायनिक तत्व या रासायनिक यौगिक को कहते हैं जो रासायनिक अभिक्रिया (रिऐक्शन) में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन किसी अन्य रसायन को देता है। इलेक्ट्रॉन लेने वाले रसायन को आक्सीकारक (oxidizing agent) कहते हैं और अपचायक व आक्सीकारक की आपसी अभिक्रिया को रेडॉक्स अभिक्रिया कहते हैं। मसलन हाइड्रोजन और ओक्सीजन जब अभिक्रिया कर के पानी बनाते हैं इसमें हाइड्रोजन अपचायक होता है और उसके दो परमाणु एक ओक्सीजन के परमाणु को एक-एक इलेक्ट्रॉन देते हैं। इस अभिक्रिया में ओक्सीजन आक्सीकारक होता है। .

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अर्ध-अभिक्रिया

किसी रेडॉक्स अभिक्रिया के केवल आक्सीकरण या केवल अपचयन वाली अभिक्रिया को अर्ध-अभिक्रिया (half reaction) कहते हैं। यह ध्यान रखने योग्य है कि आक्सीकरण या अपचयन अकेले नहीं होते बल्कि साथ-साथ होते हैं, और इसीलिये इसे 'रेडॉक्स अभिक्रिया' कहते हैं। .

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अल्युमिनियम हाइड्रोक्साइड

अल्युमिनियम हाइड्राइड का आणुविक गठन अल्युमिनियम हाइड्राइड एक अकार्बनिक यौगिक है। इसका प्रयोग मुख्यतः कार्बनिक यौगिकों के अवकरण में होता है। श्रेणी:अकार्बनिक यौगिक.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

रेडॉक्स अभिक्रिया, ऑक्सीकरण, आक्सीकरण, आक्सीकृत, अपचयन, अवकरण

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