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रीमान जीटा फलन

सूची रीमान जीटा फलन

रीमान जीटा फलन अथवा आयलर–रीमान जीटा फलन, ζ(s), उन सम्मिश्र चर s का फलन है जो अनन्त श्रेणी के संकलन में वैश्लेषिक हैं जो s के वास्तविक मान के 1 से अधिक होने पर अभिसारी होती है। सभी s के लिए ζ(s) व्यापक निरूपण नीचे दिया गया है। रीमान जीटा फलन विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में मुख्य फलन के रूप में प्रयुक्त होता है और इसके अनुप्रयोग भौतिकी, प्रायिकता सिद्धांत और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी में मिलते हैं। वास्तविक तर्क के फलन के रूप में, यह फलन १८वीं सदी के पूर्वार्द्ध में सम्मिश्र विश्लेषण का उपयोग किये बिना (क्योंकि उस समय यह उपलब्ध नहीं थी) पहली बार लियोनार्ड आयलर ने किया था। बर्नहार्ड रीमान ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख "दिये गये परिमाण से छोटी अभाज्य संख्याओं पर" (मूल जर्मन: Ueber die Anzahl der Primzahlen unter einer gegebenen Grösse) आयलर की परिभाषा सम्मिश्र चरों के लिए विस्तारित किया तथा फलनिक समीकरण और अनंतकी अनुवर्ती सिद्ध किया एवं शून्य व अभाज्य संख्याओं के बंटन में सम्बन्ध स्थापित किया। धनात्मक सम संख्याओं पर रीमान जीटा फलन के मान आयलर द्वारा अभिकलित किये गये। इनमें प्रथम ζ(2) बेसल समस्या का हल प्रदान करता है। सन् १९७९ में एपेरी ने ''ζ''(3) की अपरिमेयता सिद्ध की। नकारात्मक पूर्णांक बिन्दुओं के लिए भी आयलर के अनुसार परिमेय संख्यायें प्रतिरूपक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले एल-फलन और एल-फलन के रूप में रीमान जीटा फलन के विभिन्न व्यापकीकरण ज्ञात हैं। .

4 संबंधों: डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले ईटा फलन, रीमान हैपोथिसिस, १ − २ + ३ − ४ + · · ·

डीरिख्ले श्रेणी

गणित में डीरिख्ले श्रेणी निम्न प्रकार की श्रेणी को कहा जाता है: जहाँ s सम्मिश्र और a सम्मिश्र अनुक्रम है। यह सामान्य डीरिख्ले श्रेणी की विशेष अवस्था है। डीरिख्ले श्रेणी विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में विभिन्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रीमान जीटा फलन की सबसे प्रचलित परिभाषा डीरिख्ले एल-फलन के रूप में डीरिख्ले श्रेणी है। श्रेणी का नामकरण पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले के सम्मान में रखा गया। .

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डीरिख्ले ईटा फलन

गणित में, विश्लेषी संख्या सिद्धान्त के क्षेत्रफल में, 'डीरिख्ले ईटा फलन निम्नलिखित डीरिख्ले श्रेणी से परिभाषित किया जाता है जो किसी भी सम्मिश्र संख्या पर अभिसरित होती है जिसका वास्तविक भाग शून्य से अधिक है: डीरिख्ले श्रेणी रीमान जीटा फलन ζ(s) के डीरिख्ले विस्तार के प्रत्यावर्ती योग के तुल्य है — इसी कारण से डीरिख्ले ईटा फलन को प्रत्यावर्ती जीटा फलन भी कहते हैं और इसे ζ*(s) से निरुपित करते हैं। इसका निम्नलिखित सरल सम्बंध होता है: .

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रीमान हैपोथिसिस

गणित में रीमान परिकल्पना, एक निश्कर्श है जिसके प्रकार रीमान ज़ीटा समारोह केवल नकारात्मक सम संख्या और जटिल संख्य जिसका असली भाग १/२ होने पर शून्य होता है। बर्नहार्ड रीमन(१८५९) इस परिकल्पना को प्रस्थापित किया इसीलिये उनका नाम ही रखा गया है। यही नाम इस तरह के परिमित क्षेत्रों से अधिक गटत के लिये रीमान परिकल्पना के रूप में कुछ निकट से संबन्धित अनुरूप के लिये प्रयोग किय जाता है। रीमान परिकल्पना, सम संख्यों के वितरण के बारे बताता है। उपयुक्त समान्यीकरण के साथ कुछ गणितज्ञों का मानना है कि यह गणित के सबसे महत्वपूर्ण अनसुलझे हुए विवाद का विषय है।रीमान परिकल्पना,गोल्डब्याच का अनुमान के साथ-साथ,२३ अनसुलझी समस्यओं के डेविड हिलबर्ट की सूची में आठवें समस्या का हिस्सा है।यह क्ले गणित सम्स्थान के मिल्लेनियम प्रैज़ प्रोब्लम्स में एक है। रीमान ज़ीटा समारोह ζ(s) एक ऐसा समारोह है जो १ के अलावा कोई भी जटिल स्ंख्या देने पर उसका मूल्य जटिल ही रहता है। इसके नकारत्मक सम स्ंख्यो पर शून्य रह्त है। माने s.

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१ − २ + ३ − ४ + · · ·

गणित में, 1 − 2 + 3 − 4 + ··· एक अनन्त श्रेणी है जिसके व्यंजक क्रमानुगत धनात्मक संख्याएं होती हैं जिसके एकांतर चिह्न होते हैं अर्थात प्रत्येक व्यंजक के चिह्न, इसके पूर्व व्यंजक से विपरीत होते हैं। श्रेणी के प्रथम m पदों का योग सिग्मा योग निरूपण की सहायता से निम्नवत् लिखा जा सकता है: अनन्त श्रेणी के अपसरण का मतलब यह है कि इसके आंशिक योग का अनुक्रम किसी परिमित मान की ओर अग्रसर नहीं होता है। बहरहाल, 18वीं शताब्दी के मध्य में लियोनार्ड आयलर ने विरोधाभासी समीकरण में लिखा: लेकिन इस समीकरण की सार्थकता बहुत समय बाद तक स्पष्ट नहीं हो पाई। 1980 के पूर्वार्द्ध में अर्नेस्टो सिसैरा, एमिल बोरेल तथा अन्य ने अपसारी श्रेणियों को व्यापक योग निर्दिष्ट करने के लिए सुपरिभाषित विधि प्रदान की— जिसमें नवीन आयलर विधियों का भी उल्लेख था। इनमें से विभिन्न संकलनीयता विधियों द्वारा का "योग" लिखा जा सकता है। सिसैरा-संकलन उन विधियों में से एक है जो का योग प्राप्त नहीं कर सकती, अतः श्रेणी एक ऐसा उदाहरण है जिसमें थोड़ी प्रबल विधि यथा एबल संकलन विधि की आवश्यकता होती है। श्रेणी, ग्रांडी श्रेणी से अतिसम्बद्ध है। आयलर ने इन दोनों श्रेणियों को श्रेणी जहाँ (n यदृच्छ है), की विशेष अवस्था के रूप में अध्ययन किया और अपने शोध कार्य को बेसल समस्या तक विस्तारित किया। बाद में उनका ये कार्य फलनिक समीकरण के रूप में परिणत हुआ जिसे अब डीरिख्ले ईटा फलन और रीमान जीटा फलन के नाम से जाना जाता है। .

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