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राष्ट्रकूट राजवंश

सूची राष्ट्रकूट राजवंश

राष्ट्रकूट (ರಾಷ್ಟ್ರಕೂಟ) दक्षिण भारत, मध्य भारत और उत्तरी भारत के बड़े भूभाग पर राज्य करने वाला राजवंश था। .

सामग्री की तालिका

  1. 56 संबंधों: चालुक्य राजवंश, चित्रदुर्ग (किला), चंपू, चोल राजवंश, एलोरा गुफाएं, दन्तिदुर्ग, दक्षिण भारत, देवनागरी, देवनागरी का इतिहास, धनपाल, ध्रुव धारवर्ष, नलचम्पू, नागभट्ट द्वितीय, नागभट्ट प्रथम, पत्तदकल स्मारक परिसर, पश्चिम गंग वंश, पुणे, प्राचीन भारत, बिश्वेश्वर नाथ रेऊ, भारत में पर्यटन, भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची, भारत सारावली, भुक्ति, मध्यकालीन भारत, महाराष्ट्र, महाराष्ट्र का इतिहास, महावीर (गणितज्ञ), मान्यखेट, मुहम्मद बिन क़ासिम, यपनिय, राष्ट्रकूट साहित्य, सिल्हारा राजवंश, सौंदत्ती, सीयक हर्ष, जैन धर्म का इतिहास, घारापुरी गुफाएँ, वाकपतिराज, खोट्टिग अमोघवर्ष, गुर्जर, गुर्जर प्रतिहार राजवंश, गोविन्द ४, आदिपुराण, इन्द्र ३, इन्द्र ४, कन्नड़ साहित्य, कर्नाटक, कर्क २, कलचुरि राजवंश, कविराजमार्ग, कुमुदेन्दु, ... सूचकांक विस्तार (6 अधिक) »

चालुक्य राजवंश

चालुक्य प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध क्षत्रिय राजवंश है। इनकी राजधानी बादामी (वातापि) थी। अपने महत्तम विस्तार के समय (सातवीं सदी) यह वर्तमान समय के संपूर्ण कर्नाटक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्य प्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात तथा पश्चिमी आंध्र प्रदेश में फैला हुआ था। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और चालुक्य राजवंश

चित्रदुर्ग (किला)

चित्रदुर्ग, कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में स्थित एक दुर्ग है। .

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चंपू

चम्पू श्रव्य काव्य का एक भेद है, अर्थात गद्य-पद्य के मिश्रित् काव्य को चम्पू कहते हैं। गद्य तथा पद्य मिश्रित काव्य को "चंपू" कहते हैं। काव्य की इस विधा का उल्लेख साहित्यशास्त्र के प्राचीन आचार्यों- भामह, दण्डी, वामन आदि ने नहीं किया है। यों गद्य पद्यमय शैली का प्रयोग वैदिक साहित्य, बौद्ध जातक, जातकमाला आदि अति प्राचीन साहित्य में भी मिलता है। चम्पूकाव्य परंपरा का प्रारम्भ हमें अथर्व वेद से प्राप्त होता है। चम्पू नाम के प्रकृत काव्य की रचना दसवीं शती के पहले नहीं हुई। त्रिविक्रम भट्ट द्वारा रचित 'नलचम्पू', जो दसवीं सदी के प्रारम्भ की रचना है, चम्पू का प्रसिद्ध उदाहरण है। इसके अतिरिक्त सोमदेव सुरि द्वारा रचित यशःतिलक, भोजराज कृत चम्पू रामायण, कवि कर्णपूरि कृत आनन्दवृन्दावन, गोपाल चम्पू (जीव गोस्वामी), नीलकण्ठ चम्पू (नीलकण्ठ दीक्षित) और चम्पू भारत (अनन्त कवि) दसवीं से सत्रहवीं शती तक के उदाहरण हैं। यह काव्य रूप अधिक लोकप्रिय न हो सका और न ही काव्यशास्त्र में उसकी विशेष मान्यता हुई। हिन्दी में यशोधरा (मैथिलीशरण गुप्त) को चम्पू-काव्य कहा जाता है, क्योंकि उसमें गद्य-पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है। गद्य और पद्य के इस मिश्रण का उचित विभाजन यह प्रतीत होता है कि भावात्मक विषयों का वर्णन पद्य के द्वारा तथा वर्णनात्मक विषयों का विवरण गद्य के द्वारा प्रस्तुत किया जाय। परन्तु चंपूरचयिताओं ने इस मनोवैज्ञानिक वैशिष्ट्य पर विशेष ध्यान न देकर दोनों के संमिश्रण में अपनी स्वतंत्र इच्छा तथा वैयक्तिक अभिरुचि को ही महत्व दिया है। .

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चोल राजवंश

चोल (तमिल - சோழர்) प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया। 'चोल' शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से की जाती रही है। कर्नल जेरिनो ने चोल शब्द को संस्कृत "काल" एवं "कोल" से संबद्ध करते हुए इसे दक्षिण भारत के कृष्णवर्ण आर्य समुदाय का सूचक माना है। चोल शब्द को संस्कृत "चोर" तथा तमिल "चोलम्" से भी संबद्ध किया गया है किंतु इनमें से कोई मत ठीक नहीं है। आरंभिक काल से ही चोल शब्द का प्रयोग इसी नाम के राजवंश द्वारा शासित प्रजा और भूभाग के लिए व्यवहृत होता रहा है। संगमयुगीन मणिमेक्लै में चोलों को सूर्यवंशी कहा है। चोलों के अनेक प्रचलित नामों में शेंबियन् भी है। शेंबियन् के आधार पर उन्हें शिबि से उद्भूत सिद्ध करते हैं। 12वीं सदी के अनेक स्थानीय राजवंश अपने को करिकाल से उद्भत कश्यप गोत्रीय बताते हैं। चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। कात्यायन ने चोडों का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में भी इसका उल्लेख उपलब्ध है। किंतु इन्होंने संगमयुग में ही दक्षिण भारतीय इतिहास को संभवत: प्रथम बार प्रभावित किया। संगमकाल के अनेक महत्वपूर्ण चोल सम्राटों में करिकाल अत्यधिक प्रसिद्ध हुए संगमयुग के पश्चात् का चोल इतिहास अज्ञात है। फिर भी चोल-वंश-परंपरा एकदम समाप्त नहीं हुई थी क्योंकि रेनंडु (जिला कुडाया) प्रदेश में चोल पल्लवों, चालुक्यों तथा राष्ट्रकूटों के अधीन शासन करते रहे। .

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एलोरा गुफाएं

एलोरा या एल्लोरा (मूल नाम वेरुल) एक पुरातात्विक स्थल है, जो भारत में औरंगाबाद, महाराष्ट्र से 30 कि॰मि॰ (18.6 मील) की दूरी पर स्थित है। इन्हें राष्ट्रकूट वंश के शासकों द्वारा बनवाया गया था। अपनी स्मारक गुफाओं के लिए प्रसिद्ध, एलोरा युनेस्को द्वारा घोषित एक विश्व धरोहर स्थल है। एलोरा भारतीय पाषाण शिल्प स्थापत्य कला का सार है, यहाँ 34 "गुफ़ाएँ" हैं जो असल में एक ऊर्ध्वाधर खड़ी चरणाद्रि पर्वत का एक फ़लक है। इसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन गुफ़ा मन्दिर बने हैं। ये पाँचवीं और दसवीं शताब्दी में बने थे। यहाँ 12 बौद्ध गुफ़ाएँ (1-12), 17 हिन्दू गुफ़ाएँ (13-29) और 5 जैन गुफ़ाएँ (30-34) हैं। ये सभी आस-पास बनीं हैं और अपने निर्माण काल की धार्मिक सौहार्द को दर्शाती हैं। एलोरा के 34 मठ और मंदिर औरंगाबाद के निकट 2 कि॰मि॰ के क्षेत्र में फैले हैं, इन्हें ऊँची बेसाल्ट की खड़ी चट्टानों की दीवारों को काट कर बनाया गया हैं। दुर्गम पहाड़ियों वाला एलोरा 600 से 1000 ईसवी के काल का है, यह प्राचीन भारतीय सभ्यता का जीवन्त प्रदर्शन करता है। बौद्ध, हिन्दू और जैन धर्म को भी समर्पित पवित्र स्थान एलोरा परिसर न केवल अद्वितीय कलात्मक सृजन और एक तकनीकी उत्कृष्टता है, बल्कि यह प्राचीन भारत के धैर्यवान चरित्र की व्याख्या भी करता है। यह यूनेस्को की विश्व विरासत में शामिल है। .

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दन्तिदुर्ग

दन्तिदुर्ग (राष्ट्रकूट साम्राज्य) (735-756) ने चालुक्य साम्राज्य को पराजित कर राष्ट्रकूट साम्राज्य की नींव डाली। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और दन्तिदुर्ग

दक्षिण भारत

भारत के दक्षिणी भाग को दक्षिण भारत भी कहते हैं। अपनी संस्कृति, इतिहास तथा प्रजातीय मूल की भिन्नता के कारण यह शेष भारत से अलग पहचान बना चुका है। हलांकि इतना भिन्न होकर भी यह भारत की विविधता का एक अंगमात्र है। दक्षिण भारतीय लोग मुख्यतः द्रविड़ भाषा जैसे तेलुगू,तमिल, कन्नड़ और मलयालम बोलते हैं और मुख्यतः द्रविड़ मूल के हैं। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और दक्षिण भारत

देवनागरी

'''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि .

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देवनागरी का इतिहास

देवनागरी लिपि की जड़ें प्राचीन ब्राह्मी परिवार में हैं। गुजरात के कुछ शिलालेखों की लिपि, जो प्रथम शताब्दी से चौथी शताब्दी के बीच के हैं, नागरी लिपि से बहुत मेल खाती है। ७वीं शताब्दी और उसके बाद नागरी का प्रयोग लगातार देखा जा सकता है। .

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धनपाल

धनपाल नाम के कई प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। .

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ध्रुव धारवर्ष

ध्रुव धारवर्ष राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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नलचम्पू

नलचम्पू एक चम्पूकाव्य है जिसके रचयिता त्रिविक्रम भट्ट हैं। संस्कृत साहित्य में चम्पूकाव्य का प्रथम निदर्शन इसी ग्रन्थ में हुआ है। इसमें चंपू का वैशिष्ट्य स्फुटतया उद्भासित हुआ है। दक्षिण भारत के राष्ट्रकूटवंशी राजा कृष्ण (द्वितीय) के पौत्र, राजा जगतुग और लक्ष्मी के पुत्र, इंद्रराज (तृतीय) के आश्रय में रहकर त्रिविक्रम ने इस रुचिर चंपू की रचना की थी। इंद्रराज का राज्याभिषेक वि॰सं॰ 972 (915 ई.) में हुआ था और उनके आश्रित होने से कवि का भी वही समय है- दशम शती का पूर्वार्ध। इस चंपू के सात उच्छ्वासों में नल तथा दमयंती की विख्यात प्रणयकथा का बड़ा ही चमत्कारी वर्णन किया गया है। काव्य में सर्वत्र शुभग संभग श्लेष का प्रसाद लक्षित होता है। .

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नागभट्ट द्वितीय

नागभट्ट द्वितीय (805-833), अपने पिता वत्सराज से गद्दी प्राप्त कर गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के चौथे राजा बने। उनकी माता का नाम सुन्दरीदेवी था। नागभट्ट द्वितीय को परमभट्टारक, महाराजाधिराज और कन्नौज विजय के बाद 'परमेश्वर' की उपाधि दी गई थी। शाकम्भरी के चाहमानों ने गुर्जरों की अधिनता स्वीकार कर ली और उस समय के चाहमान प्रमुख गुवक ने अपनी बहन कलावती का विवाह नागभट्ट से करा दिया। निस्संदेह नागभट्ट द्वितीय गुर्जर प्रतीहार वंश का एक शक्तिशाली शासक था। चन्द्रप्रभासुरि कृत प्रभावकचरित के अन्तर्गत बप्पभट्टिचरित में नागभट्ट के ग्वालियर के भव्य दरबार का वर्णन मिलता हैं। उसके दरबार के नवरत्नों मे से एक जैन आचार्य बप्पभट्टिसुरि के कहने से नागभट्ट ने ग्वालियर में जैन प्रतिमाएं स्थापित करवायी थी। पं० गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा के अनुसार जिस नाहड़राव प्रतिहार ने पुष्कर सरोवर (अजमेर) का निर्माण कराया था, वो असल में नागभट्ट द्वितीय ही था। .

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नागभट्ट प्रथम

नागभट्ट प्रथम (मृत्यु ७८० ई) गुर्जर प्रतिहार राजवंश का प्रथम राजा था। इसे 'हरिश्चन्द्र' के नाम से भी जाना जाता था। पुष्यभूति साम्राज्य के हर्षवर्धन के बाद पश्चिमी भारत पर उसका शासन था। उसकी राजधानी कन्नौज थी। उसने सिन्ध के अरबों को पराजित किया और काठियावाड़, मालवा, गुजरात तथा राजस्थान के अनेक क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। नागभट्ट प्रथम राष्ट्रकूट नरेश दन्तिदुर्ग से पराजित हो गया। कुचामन किले का निर्माण नागभट्ट प्रतिहार ने करवाया था। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और नागभट्ट प्रथम

पत्तदकल स्मारक परिसर

पत्तदकल स्मारक परिसर भारत के कर्नाटक राज्य में एक पत्तदकल नामक कस्बे में स्थित है। यह अपने पुरातात्विक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। चालुक्य वंश के राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में यहाँ कई मंदिर बनवाए। एहोल को स्थापत्यकला का विद्यालय माना जाता है, बादामी को महाविद्यालय तो पत्तदकल को विश्वविद्यालय कहा जाता है। यहाँ कुल दस मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्मशाला भी शामिल है। इन्हें घेरे हुए ढेरों चैत्य, पूजा स्थल एवं कई अपूर्ण आधारशिलाएं हैं। यहाँ चार मंदिर द्रविड़ शैली के हैं, चार नागर शैली के हैं एवं पापनाथ मंदिर मिश्रित शैली का है। पत्तदकल को १९८७ में युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। विरुपाक्ष मंदिर यहाँ का सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। इसे महाराज विक्रमादित्य द्वितीय की पत्नी लोकमहादेवी ने ७४५ ई.

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और पत्तदकल स्मारक परिसर

पश्चिम गंग वंश

पश्चिम गंग वंश (३५०-१००० ई.) (ಪಶ್ಚಿಮ ಗಂಗ ಸಂಸ್ಥಾನ) प्राचीन कर्नाटक का एक राजवंश था। ये पूर्वी गंग वंश से अलग थे। पूर्वी गंग जिन्होंने बाद के वर्षों में ओडिशा पर राज्य किया। आम धारण के अनुसार पश्चिम गंग वंश ने शसन तब संभाला जब पल्लव वंश के पतन उपरांत बहुत से स्वतंत्र शासक उठ खड़े हुए थे। इसका एक कारण समुद्रगुप्त से युद्ध भी रहे थे। इस वंश ने ३५० ई से ५५० ई तक सार्वभौम राज किया था। इनकी राजधानी पहले कोलार रही जो समय के साथ बदल कर आधुनिक युग के मैसूर जिला में कावेरी नदी के तट पर तालकाड स्थानांतरित हो गयी थी। .

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पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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बिश्वेश्वर नाथ रेऊ

लैइब्ररी बिश्वेश्वर नाथ रेऊ (१८९०-१९६६) जोधपुर रियासत के इतिहास विभाग, पुरातत्व विभाग, सरदार संग्रहालय, पुस्तक प्रकाश (पांडुलिपि पुस्तकालय) तथा सुमेर पुस्तकालय के अध्यक्ष थे। महामहोपाध्याय पंडित रेऊ ने एक इतिहासकार, पुरालेखवेत्ता, मुद्राशास्त्रज्ञ तथा संस्कृतज्ञ के रूप में अपनी छाप छोड़ी। पंडित रेऊ लिखित मारवाड़ का इतिहास सुप्रसिद्ध है। .

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भारत में पर्यटन

हर साल, 3 मिलियन से अधिक पर्यटक आगरा में ताज महल देखने आते हैं। भारत में पर्यटन सबसे बड़ा सेवा उद्योग है, जहां इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6.23% और भारत के कुल रोज़गार में 8.78% योगदान है। भारत में वार्षिक तौर पर 5 मिलियन विदेशी पर्यटकों का आगमन और 562 मिलियन घरेलू पर्यटकों द्वारा भ्रमण परिलक्षित होता है। 2008 में भारत के पर्यटन उद्योग ने लगभग US$100 बिलियन जनित किया और 2018 तक 9.4% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, इसके US$275.5 बिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है। भारत में पर्यटन के विकास और उसे बढ़ावा देने के लिए पर्यटन मंत्रालय नोडल एजेंसी है और "अतुल्य भारत" अभियान की देख-रेख करता है। विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद के अनुसार, भारत, सर्वाधिक 10 वर्षीय विकास क्षमता के साथ, 2009-2018 से पर्यटन का आकर्षण केंद्र बन जाएगा.

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भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची

भारत में सबसे बडे साम्राज्यों की सूची इसमें 10 लाख से अधिक वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र पर राज करने वाले भारत के सबसे बड़े साम्राज्यों की ऐतिहासिक सूची है। (भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी पूंजी के साथ है, ब्रिटिश राज और सिकंदर महान साम्राज्य की तरह विदेशी शासित साम्राज्य को छोड़कर) एक साम्राज्य बाहरी प्रदेशों के ऊपर एक राज्य की संप्रभुता का विस्तार शामिल है। सम्राट अशोक का मौर्य साम्राज्य भारत का सबसे बडा साम्राज्य और सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और भारत में सबसे बड़े साम्राज्यों की सूची

भारत सारावली

भुवन में भारत भारतीय गणतंत्र दक्षिण एशिया में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है। यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ देश है। भारत की संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति एवं सभ्यताओं में से है।भारत, चार विश्व धर्मों-हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म के जन्मस्थान है और प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का घर है। मध्य २० शताब्दी तक भारत अंग्रेजों के प्रशासन के अधीन एक औपनिवेशिक राज्य था। अहिंसा के माध्यम से महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत देश को १९४७ में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया। भारत, १२० करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। .

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भुक्ति

शासन की सुविधा के लिये गुप्त वंश के शासकों ने साम्राज्य को अनेक भुक्तियों में विभाजित किया था। ये भुक्तियाँ वर्तमान कमिश्नरी की भाँति थीं जिनमें कई 'विषय' या जिले होते थे। भुक्तियों का शासन 'उपरिक' नाम के अधिकारियों के हाथ में था जो अधिक शक्तिशाली हो जाने पर 'उपरिक महाराज' कहलाते थे। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और भुक्ति

मध्यकालीन भारत

मध्ययुगीन भारत, "प्राचीन भारत" और "आधुनिक भारत" के बीच भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की लंबी अवधि को दर्शाता है। अवधि की परिभाषाओं में व्यापक रूप से भिन्नता है, और आंशिक रूप से इस कारण से, कई इतिहासकार अब इस शब्द को प्रयोग करने से बचते है। अधिकतर प्रयोग होने वाले पहली परिभाषा में यूरोपीय मध्य युग कि तरह इस काल को छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक माना जाता है। इसे दो अवधियों में विभाजित किया जा सकता है: 'प्रारंभिक मध्ययुगीन काल' 6वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक और 'गत मध्यकालीन काल' जो 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चली, और 1526 में मुगल साम्राज्य की शुरुआत के साथ समाप्त हो गई। 16वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक चले मुगल काल को अक्सर "प्रारंभिक आधुनिक काल" के रूप में जाना जाता है, लेकिन कभी-कभी इसे "गत मध्ययुगीन" काल में भी शामिल कर लिया जाता है। एक वैकल्पिक परिभाषा में, जिसे हाल के लेखकों के प्रयोग में देखा जा सकता है, मध्यकालीन काल की शुरुआत को आगे बढ़ा कर 10वीं या 12वीं सदी बताया जाता है। और इस काल के अंत को 18वीं शताब्दी तक धकेल दिया गया है, अत: इस अवधि को प्रभावी रूप से मुस्लिम वर्चस्व (उत्तर भारत) से ब्रिटिश भारत की शुरुआत के बीच का माना जा सकता है। अत: 8वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के अवधि को "प्रारंभिक मध्ययुगीन काल" कहा जायेगा। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और मध्यकालीन भारत

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र भारत का एक राज्य है जो भारत के दक्षिण मध्य में स्थित है। इसकी गिनती भारत के सबसे धनी राज्यों में की जाती है। इसकी राजधानी मुंबई है जो भारत का सबसे बड़ा शहर और देश की आर्थिक राजधानी के रूप में भी जानी जाती है। और यहाँ का पुणे शहर भी भारत के बड़े महानगरों में गिना जाता है। यहाँ का पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है। महाराष्ट्र की जनसंख्या सन २०११ में ११,२३,७२,९७२ थी, विश्व में सिर्फ़ ग्यारह ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या महाराष्ट्र से ज़्यादा है। इस राज्य का निर्माण १ मई, १९६० को मराठी भाषी लोगों की माँग पर की गयी थी। यहां मराठी ज्यादा बोली जाती है। मुबई अहमदनगर पुणे, औरंगाबाद, कोल्हापूर, नाशिक नागपुर ठाणे शिर्डी-अहमदनगर आैर महाराष्ट्र के अन्य मुख्य शहर हैं। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और महाराष्ट्र

महाराष्ट्र का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि सन १००० ईसापूर्व से पहले महाराष्ट्र में खेती होती थी लेकिन उस समय मौसम में अचानक परिवर्तन आया और कृषि रुक गई थी। सन् ५०० इसापूर्व के आसपास मुंबई (प्राचीन नाम शुर्पारक, सोपर) एक महत्वपूर्ण पत्तन बनकर उभरा था। यह सोपर ओल्ड टेस्टामेंट का ओफिर था या नहीं इस पर विद्वानों में विवाद है। प्राचीन १६ महाजनपदमहाजनपदों में अश्मक या अस्सक का स्थान आधुनिक अहमदनगर के आसपास है। सम्राट अशोक के शिलालेख भी मुंबई के निकट पाए गए हैं। मौर्यों के पतन के बाद यहाँ यादवों का उदय हुआ (२३० ईसापूर्व)। वकटकों के समय अजन्ता गुफाओं का निर्माण हुआ। चालुक्यों का शासन पहले सन् 550-760 तथा पुनः 973-1180 रहा। इसके बीच राष्ट्रकूटों का शासन आया था। अलाउद्दीन खिलजी वो पहला मुस्लिम शासक था जिसने अपना साम्राज्य दक्षिण में मदुरै तक फैला दिया था। उसके बाद मुहम्मद बिन तुगलक (१३२५) ने अपनी राजधानी दिल्ली से हटाकर दौलताबाद कर ली। यह स्थान पहले देवगिरि नाम से प्रसिद्ध था औैर अहमदनगर के निकट स्थि्त है। बहमनी सल्तनत के टूटने पर यह प्रदेश गोलकुण्डा के आशसन में आया और उसके बाद औरंगजेब का संक्षिप्त शासन। इसके बाद मराठों की शक्ति में उत्तरोत्तर वुद्धि हुई और अठारहवीं सदी के अन्त तक मराठे लगभग पूरे महाराष्ट्र पर तो फैल ही चुके थे और उनका साम्राज्य दक्षिण में कर्नाटक के दक्षिणी सिरे तक पहुँच गया था। १८२० तक आते आते अंग्रेजों ने पेशवाओं को पूर्णतः हरा दिया था और यह प्रदेश भी अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बन चुका था। श्रेणी:महाराष्ट्र.

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और महाराष्ट्र का इतिहास

महावीर (गणितज्ञ)

महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं शती के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। वे अमोघवर्ष प्रथम नामक महान राष्ट्रकूट राजा के आश्रय में रहे। उन्होने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में 'सारसंग्रह गणितम्' नाम से अनुवाद किया। महावीर ने गणित के महत्व के बारे में कितनी महान बात कही है- .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और महावीर (गणितज्ञ)

मान्यखेट

मान्यखेट (प्राकृत: मन्नखेड़ा, आधुनिक मळखेड) कर्नाटक के गुलबर्ग जिले के सेदम तालुका में कगिना नदी के किनारे स्थित है। यह नगर ८१८ से ९८२ ई तक राष्ट्रकूट राजाओं की राजधानी था। .

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और मान्यखेट

मुहम्मद बिन क़ासिम

मुहम्मद बिन क़ासिम के तहत भारतीय उपमहाद्वीप में उमय्यद ख़िलाफ़त का विस्तार अपने चरम पर उमय्यद ख़िलाफ़त मुहम्मद बिन क़ासिम (अरबी:, अंग्रेज़ी: Muhammad bin Qasim) इस्लाम के शुरूआती काल में उमय्यद ख़िलाफ़त का एक अरब सिपहसालार था। उसने १७ साल की उम्र में भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी इलाक़ों पर हमला बोला और सिन्धु नदी के साथ लगे सिंध और पंजाब क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर लिया। यह अभियान भारतीय उपमहाद्वीप में आने वाले मुस्लिम राज का एक बुनियादी घटना-क्रम माना जाता है। .

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यपनिय

यपनिय पश्चिमी कर्नाटक में एक जैन संप्रदाय था जो कि अब विलुप्त हो चुका है। उनके बारे में पहला वर्णन 475-490 ई॰ में पलासिका के, कदंब के राजा मृग्सवर्मन के शिलालेखों में मिलता है, जिन्होंने जैन मंदिर के लिए दान दिया था और यपनियों, निर्ग्रंथियों (दिगम्बरों के रूप में पहचान) तथा कुर्चकों को अनुदान दिया। शक 1316 (1394 ई॰पू॰) का अंतिम शिलालेख जिसमें यपनियों के बारे में वर्णन है, दक्षिण पश्चिम कर्नाटक के तुलुव इलाके में मिला है। दर्शन-सारा के अनुसार वे शेवताम्बर संप्रदाय की एक शाखा थे। हालाँकि श्वेताम्बर लेखकों द्वारा उनको दिगम्बर के तौर पर देखा गया है। यपनिय साधू नग्न रहते थे लेकिन साथ ही साथ कुछ श्वेताम्बर दृष्टिकोण को भी अनुसरण करते थे। उनके पास श्वेताम्बर रीतियों की अपनी खुद की व्याख्या थी। मलयगिर ने अपने ग्रन्थ नंदीसूत्र में लिखा है कि महान व्याकरणाचर्या श्कतायन, जो कि राष्ट्रकूट के राजा अमोघवर्ष नृपतुंग (817-877) के सम-सामयिक थे, एक यापनिय थे। .

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राष्ट्रकूट साहित्य

राष्ट्रकूट राजवंश के राज्यकाल में विशाल मात्रा में कन्नड, संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य रचा गया। इस राजवंश का प्रसिद्ध शासक अमोघवर्ष प्रथम ने सबसे पुरानी ज्ञात कन्नड कविता कविराजमार्ग के कुछ खंडों की रचना की थी। उनके शासन काल में जैन गणितज्ञों और विद्वानों ने 'कन्नड' व 'संस्कृत' भाषाओं के साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पुष्पदन्त ने अपभ्रंश में अनेक ग्रन्थों की रचना की। श्रेणी:भारतीय साहित्य.

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सिल्हारा राजवंश

हिन्दू सिल्हारा राजवंश वर्तमान मुंबई क्षेत्र पर ८१० से १२४० ई. के लगभग शासन करता था। इनकी तीन शाखाएं थीं:-.

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सौंदत्ती

सौंदत्ती (कन्नड़ ಸವದತ್ತಿ)(जिसे सुगंधवर्ती एवं सवदत्ती नाम से भी जाना जाता है) बेलगाम जिला का प्राचीनतम शहर है। यह कर्नाटक राज्य में स्थित है और बेलगाम से ७८ कि.मी दूर स्थित है। पहले इस ताल्लुक का नाम पारसगढ़ था। यहां अनेक प्राचीन मंदिर हैं। .

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सीयक हर्ष

सीयक हर्ष या सीयक द्वितीय परमार वंश का शासक था। .

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जैन धर्म का इतिहास

उदयगिरि की रानी गुम्फा जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते है। http://www.umich.edu/~umjains/jainismsimplified/chapter20.html  संभेद्रिखर, राजगिर, पावापुरी, गिरनार, शत्रुंजय, श्रवणबेलगोला आदि जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ हैं। पर्यूषण या दशलाक्षणी, दिवाली और रक्षाबंधन इनके मुख्य त्योहार हैं। अहमदाबाद, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल आदि के अनेक जैन आजकल भारत के अग्रगण्य उद्योगपति और व्यापारियों में गिने जाते हैं। जैन धर्म का उद्भव की स्थिति अस्पष्ट है। जैन ग्रंथो के अनुसार धर्म वस्तु का स्वाभाव समझाता है, इसलिए जब से सृष्टि है तब से धर्म है, और जब तक सृष्टि है, तब तक धर्म रहेगा, अर्थात् जैन धर्म सदा से अस्तित्व में था और सदा रहेगा। इतिहासकारो द्वारा Helmuth von Glasenapp,Shridhar B.

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घारापुरी गुफाएँ

घारापुरी गुफाएँ (मराठी: घारापुरीची लेणी; अंग्रेज़ी: एलीफेंटा) भारत में मुम्बई के गेट वे ऑफ इण्डिया से लगभग १२ किलोमीटर दूर स्थित एक स्थल है जो अपनी कलात्मक गुफ़ाओं के कारण प्रसिद्ध है। यहाँ कुल सात गुफाएँ हैं। मुख्य गुफा में २६ स्तंभ हैं, जिसमें शिव को कई रूपों में उकेरा गया हैं। पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियाँ दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित है। इसका ऐतिहासिक नाम घारपुरी है। यह नाम मूल नाम अग्रहारपुरी से निकला हुआ है। एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहाँ पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया गया था। यहाँ हिन्दू धर्म के अनेक देवी देवताओं कि मूर्तियाँ हैं। ये मंदिर पहाड़ियों को काटकर बनाये गए हैं। यहाँ भगवान शंकर की नौ बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ हैं जो शंकर जी के विभिन्न रूपों तथा क्रियाओं को दिखाती हैं। इनमें शिव की त्रिमूर्ति प्रतिमा सबसे आकर्षक है। यह मूर्ति २३ या २४ फीट लम्बी तथा १७ फीट ऊँची है। इस मूर्ति में भगवान शंकर के तीन रूपों का चित्रण किया गया है। इस मूर्ति में शंकर भगवान के मुख पर अपूर्व गम्भीरता दिखती है। दूसरी मूर्ति शिव के पंचमुखी परमेश्वर रूप की है जिसमें शांति तथा सौम्यता का राज्य है। एक अन्य मूर्ति शंकर जी के अर्धनारीश्वर रूप की है जिसमें दर्शन तथा कला का सुन्दर समन्वय किया गया है। इस प्रतिमा में पुरुष तथा प्रकृति की दो महान शक्तियों को मिला दिया गया है। इसमें शंकर तनकर खड़े दिखाये गये हैं तथा उनका हाथ अभय मुद्रा में दिखाया गया है। उनकी जटा से गंगा, यमुना और सरस्वती की त्रिधारा बहती हुई चित्रित की गई है। एक मूर्ति सदाशिव की चौमुखी में गोलाकार है। यहाँ पर शिव के भैरव रूप का भी सुन्दर चित्रण किया गया है तथा तांडव नृत्य की मुद्रा में भी शिव भगवान को दिखाया गया है। इस दृश्य में गति एवं अभिनय है। इसी कारण अनेक लोगों के विचार से एलिफेण्टा की मूर्तियाँ सबसे अच्छी तथा विशिष्ट मानी गई हैं। यहाँ पर शिव एवं पार्वती के विवाह का भी सुन्दर चित्रण किया गया है। १९८७ में यूनेस्को द्वारा एलीफेंटा गुफ़ाओं को विश्व धरोहर घोषित किया गया है। यह पाषाण-शिल्पित मंदिर समूह लगभग ६,००० वर्ग फीट के क्षेत्र में फैला है, जिसमें मुख्य कक्ष, दो पार्श्व कक्ष, प्रांगण व दो गौण मंदिर हैं। इन भव्य गुफाओं में सुंदर उभाराकृतियां, शिल्पाकृतियां हैं व साथ ही हिन्दू भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर भी है। ये गुफाएँ ठोस पाषाण से काट कर बनायी गई हैं। यह गुफाएं नौंवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक के सिल्हारा वंश (८१००–१२६०) के राजाओं द्वारा निर्मित बतायीं जातीं हैं। कई शिल्पाकृतियां मान्यखेत के राष्ट्रकूट वंश द्वारा बनवायीं हुई हैं। (वर्तमान कर्नाटक में)। .

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वाकपतिराज

वाकपति मुंज परमार राजा थे जो सीयक द्वितीय के दत्तक पुत्र थे और जिन्होंने राष्ट्रकूटों के पश्चात मालवा राज्य स्थापित किया। उनके प्राचीनतम ज्ञात पूर्वज उपेंद्र कृष्णराज थे। श्रेणी:भारतीय शासक वाक्पति मुंज (973 से 995 ई.) सीयक का दत्तक पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने कलचुरी शासक युवराज द्वितीय तथा चालुक्य राजा तैलप द्वितीय को युद्व में परास्त किया। तैलप को मुंज ने क़रीब 6 बार युद्ध में परास्त किया था। सातवी बार युद्ध में बन्दी बनाकर उसकी हत्या कर दी गयी। इस घटना का उल्लेख अभिलेखों एवं 'आइना-ए-अकबरी' में मिलता है। वाक्पति मुंज का काल परमारों के लिए गौरव का काल था। मुंज ने 'श्री वल्लभ', 'पृथ्वी वल्लभ', 'अमोघवर्ष' आदि उपाधियां धारण की थीं। 'कौथेम' दानपात्र से विदित होता है कि वाक्पति मुंज ने हूणों को भी पराजित किया था। वह एक सफल विजेता होने के साथ ही कवियों एवं विद्धानों का आश्रयदाता भी था। उसके राजदरबार में 'यशोरूपावलोक' के रचयिता धनिक, 'नवसाहसांकचरित' के लेखक पद्मगुप्त, 'दशरूपक' के लेखक धनंजय आदि रहते थे। वाक्पति मुंज के बाद उसका छोटा भाई सिंधु परमार वंश का शासक हुआ। उसने 'कुमार नारायण' एवं 'साहसांक' की उपाधि धारण की। वाक्पति मुंज ने धार में अपने नाम से 'मुज सागर' नामक तालाब का निर्माण कराया था।.

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खोट्टिग अमोघवर्ष

खोट्टिग अमोघवर्ष राष्ट्रकूट वंश का एक राजा। खोट्टिग राष्ट्रकूट राजवंश के कृष्ण तृतीय का छोटा भाई जो उसके मरने के बाद ९६८ ई.

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गुर्जर

सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति:भारत उपवन, अक्षरधाम मन्दिर, नई दिल्ली गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।; आधुनिक स्थिति प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। .

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गुर्जर प्रतिहार राजवंश

प्रतिहार वंश मध्यकाल के दौरान मध्य-उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में राज्य करने वाला राजवंश था, जिसकी स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने ७२५ ई॰ में की थी। इस राजवंश के लोग स्वयं को राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज मानते थे, जिसने अपने भाई राम को एक विशेष अवसर पर प्रतिहार की भाँति सेवा की। इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल में साम्राज्य पश्चिम में सतुलज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बगांल असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि गुर्जर प्रतिहार राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था, इसलिए गुर्जर प्रतिहार (रक्षक) नाम पड़ा। गुर्जर प्रतिहारों ने उत्तर भारत में जो साम्राज्य बनाया, वह विस्तार में हर्षवर्धन के साम्राज्य से भी बड़ा और अधिक संगठित था। देश के राजनैतिक एकीकरण करके, शांति, समृद्धि और संस्कृति, साहित्य और कला आदि में वृद्धि तथा प्रगति का वातावरण तैयार करने का श्रेय प्रतिहारों को ही जाता हैं। गुर्जर प्रतिहारकालीन मंदिरो की विशेषता और मूर्तियों की कारीगरी से उस समय की प्रतिहार शैली की संपन्नता का बोध होता है। .

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गोविन्द ४

गोविन्द ४ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। गोविंद चतुर्थ इंद्र तृतीय का द्वितीय पुत्र था और अपने बड़े भाई अमोघवर्ष द्वितीय को राजगद्दी से हटा एवं मारकर राष्ट्रकूट की राजगद्दी पर बैठा था। इस घटना के ठीक समय के बारे में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। सिंहासनारोहण के समय वह लगभग २०-२५ वर्षों का नवजवान था। परंतु दुर्भाग्यवश उसकी प्रवृत्ति भोगविलास में अधिक थी। अपने सौंदर्य और जवानी को उसने नाच, गान और इंद्रियभोग में लगाया और राजकाज की चिंता बिलकुल ही छोड़ दी। जनता और राष्ट्रकूट साम्राज्य के शुभचितंक सांमतों को इस बात से बड़ी चिंता हुई और सबने उसके चचा अमोघवर्ष तृतीय से उससे मुक्ति दिलाने क आग्रह किया। अमोघवर्ष ने स्वयं उसके विरुद्ध योजनाओं का प्रारंभ किया हो, ऐसा नहीं लगता, परंतु अपने भतजे (गोविंद चतुर्थ) की बदनामी और अन्य सारी परिस्थितियों को अपने अनुरूप पाकर उसने गोविंद को गद्दी से हटा दिया। इस कार्य में उसे अपने संबंधी चेदिराज से सहायत मिली। उसका निजी व्यक्तित्व और सुचरित्र भी उसके पक्ष में था और ९३६ के आसपास गोविंद चतुर्थ को अपदस्थ कर उसने गद्दी ले ली। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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आदिपुराण

आदिपुराण जैनधर्म का एक प्रख्यात पुराण है जो सातवीं शताब्दी में जिनसेन आचार्य द्वारा लिखा गया था। इसका कन्नड भाषा में अनुवाद, आदिवाकि पम्पा ने चम्पू शैली में किया था। इसमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के दस जन्मों का वर्णन है। .

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इन्द्र ३

इन्द्र ३ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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इन्द्र ४

इन्द्र ४ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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कन्नड़ साहित्य

प्राचीन कन्नड शिलालेख (578 ई; बदामी चालुक्य राजवंश; बदामी गुफा मंदिर संख्या-३) कन्नड साहित्य का इतिहास लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुराना है। R.S.

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कर्नाटक

कर्नाटक, जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। २९ जिलों के साथ यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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कर्क २

कर्क २ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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कलचुरि राजवंश

1200 ई में एशिया के राज्य; इसमें 'यादव' राज्य एवं उसके पड़ोसी राज्य देख सकते हैं। कलचुरि प्राचीन भारत का विख्यात राजवंश था। 'कलचुरी ' नाम से भारत में दो राजवंश थे- एक मध्य एवं पश्चिमी भारत (मध्य प्रदेश तथा राजस्थान) में जिसे 'चेदि', या 'हैहय' या 'उत्तरी कलचुरि' कहते हैं तथा दूसरा 'दक्षिणी कलचुरी' जिसने वर्तमान कर्नाटक के क्षेत्रों पर राज्य किया। चेदी प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था। इसका शासन क्षेत्र मध्य तथा पश्चिमी भारत था। आधुनिक बुंदलखंड तथा उसके समीपवर्ती भूभाग तथा मेरठ इसके आधीन थे। शक्तिमती या संथिवती इसकी राजधानी थी। कलचुरी शब्द के विभिन्न रूप- कटच्छुरी, कलत्सूरि, कलचुटि, कालच्छुरि, कलचुर्य तथा कलिचुरि प्राप्त होते हैं। विद्वान इसे संस्कृत भाषा न मानकर तुर्की के 'कुलचुर' शब्द से मिलाते हैं जिसका अर्थ उच्च उपाधियुक्त होता है। अभिलेखों में ये अपने को हैहय नरेश अर्जुन का वंशधर बताते हैं। इन्होंने २४८-४९ ई.

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कविराजमार्ग

कविराजमार्ग, कन्नड का सर्वप्रथम उपलब्ध ग्रंथ है। चंपू शैली में लिखा हुआ यह रीतिग्रंथ प्रधानतया दण्डी के काव्यादर्श पर आधरित है। इसका रचनाकाल सन् 815-877 ई के बीच माना जाता है। इस बात में विद्वानों में मतभेद है कि इसके रचयिता मान्यखेट के राष्ट्रकूट चक्रवर्ती स्वयं नृपतुंग थे या उनका कोई दरबारी कवि। डॉ॰ मुगलि का यह मत है कि इसके लेखक नृपतुंग के दरबारी कवि श्रीविजय थे। कविराजमार्ग का प्रतिपाद्य विषय अलंकार है। ग्रंथ तीन परिच्छेदों में विभाजित है। द्वितीय तथा तृतीय परिच्छेदों में क्रमश: शब्दालंकारों तथा अर्थालंकारों का निरूपण उदाहरण सहित किया गया है। प्रथम पच्छिेद में काव्य के दोषादोष (गुण, दोष) का विचार किया गया है। साथ ही ध्वनि, रस, भाव, दक्षिणी और उत्तरी काव्यपद्धतियाँ, काव्यप्रयोजन, साहित्यकार की साधना, साहित्यविमर्श के स्वरूप आदि का संक्षेप में परिचय दिया गया है। कन्नड भाषा, कन्नड साहित्य, कन्नड प्रदेश, कर्नाटक की जनता की संस्कृति आदि कई बातों की दृष्टि से कविराज मार्ग एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। श्रेणी:कन्नड साहित्य.

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कुमुदेन्दु

कुमुदेन्दु मुनि (कन्नड़: ಕುಮುದೆಂದು ಮುನಿ) ऐक दिगम्बर साधु थे जिन्होने सिरिभूवलय कि रचना की थी। वे आचार्य वीरसेन व जिनसेन के शिष्य तथा राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष के अध्यात्मिक गुरू थे। उन्होंने कहा है करने के लिए रहता है के आसपास के हजार साल पहले.

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कृष्ण तृतीय

कृष्ण तृतीय (939 – 967 ई), मान्यखेत के राष्ट्रकूट राजवंश का अन्तिम महान एवं योग्य शासक था। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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कृष्ण १

कृष्ण १ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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कृष्ण २

कृष्ण २ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे।.

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अमोघवर्ष नृपतुंग

पट्टडकल का जैन नारायण मंदिर अमोघवर्ष नृपतुंग ने निर्मित कराया था। अमोघवर्ष नृपतुंग या अमोघवर्ष प्रथम (800 –- 878) भारत के राष्ट्रकूट वंश के महानतम शाशक थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। इतिहासकारों ने उनकी शांतिप्रियता एवं उदारवादी धार्मिक दृष्टिकोण के लिये उन्हें सम्राट अशोक से तुलना की है। उनके शासनकाल में कई संस्कृत एवं कन्नड के विद्वानो को प्रश्रय मिला जिनमें महान गणितज्ञ महावीराचार्य का नाम प्रमुख है। .

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अमोघवर्ष २

अमोघवर्ष २ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

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अमोघवर्ष ३

अमोघवर्ष ३ राष्ट्रकूट वंश के राजा थे। श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:राष्ट्रकूट राजवंश.

देखें राष्ट्रकूट राजवंश और अमोघवर्ष ३

राष्ट्रकूट, राष्ट्रकूट वंश, राष्ट्रकूट साम्राज्य के रूप में भी जाना जाता है।

, कृष्ण तृतीय, कृष्ण १, कृष्ण २, अमोघवर्ष नृपतुंग, अमोघवर्ष २, अमोघवर्ष ३