लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

रानी की वाव

सूची रानी की वाव

'''रानी की वाव''' का ऊपर से लिया गया चित्र रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया। पाटण को पहले 'अन्हिलपुर' के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी थी। कहते हैं कि रानी की वाव (बावड़ी) वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की प्रेमिल स्‍मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। रानी उदयमति जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक रा' खेंगार की पुत्री थीं। सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक मूलराज थे। सीढ़ी युक्‍त बावड़ी में कभी सरस्वती नदी के जल के कारण गाद भर गया था। यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का अनूठा वाव है। वाव के खंभे सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं। 'रानी की वाव' को विश्व विरासत की नई सूची में शामिल किए जाने का औपचारिक ऐलान कर दिया गया है। 11वीं सदी में निर्मित इस वाव को यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने भारत में स्थित सभी बावड़ी या वाव (स्टेपवेल) की रानी का भी खिताब दिया है। इसे जल प्रबंधन प्रणाली में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का बेहतरीन उदाहरण माना है। 11वीं सदी का भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना का अनूठे प्रकार का सबसे विकसित एवं व्यापक उदाहरण है यह, जो भारत में वाव निर्माण के विकास की गाथा दर्शाता है। सात मंजिला यह वाव मारू-गुर्जर शैली का साक्ष्य है। ये करीब सात शताब्दी तक सरस्वती नदी के लापता होने के बाद गाद में दबी हुई थी। इसे भारतीय पुरातत्व सर्वे ने वापस खोजा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सायआर्क और स्कॉटिस टेन के सहयोग से वाव के दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन भी कर लिया है। .

6 संबंधों: पाटण, गुजरात, बावड़ी, भारत के विश्व धरोहर स्थल, भीमदेव प्रथम, अडालज वाव, अग्रसेन की बावली

पाटण, गुजरात

पाटण का '''सहस्रलिंग तालाव''' (एक हजार लिंग वाला तालाब) पाटण भारत के गुजरात प्रदेश का जिला एवं जिला-मुख्यालय है। यह एक प्राचीन नगर है जिसकी स्थापना ७४५ ई में वनराज छावडा ने की थी। राजा ने इसका नाम 'अन्हिलपुर पाटण' या 'अन्हिलवाड़ पाटन' रखा था। यह मध्यकाल में गुजरात की राजधानी हुआ करता था। इस नगर में बहुत से ऐतिहास स्थल हैं जिनमें हिन्दू एवं जैन मन्दिर, रानी की वाव आदि प्रसिद्ध हैं। पाटण का प्राचीन नाम 'अन्हिलपुर' है। प्राचीन काल में इसे मुसलमानों ने खंडहर बना दिया था, उन्हीं खंडहरों पर पुन: नवीन पाटन ने प्रगति की है। महाराज भीम की रानी उद्यामती का बनवाया भवन खंडहर अवस्था में अब भी विद्यमान है। नगर के दक्षिण में एक प्रसिद्ध खान सरोवर है। एक जैन मंदिर में वनराजा की मूर्ति भी दर्शनीय है। नवीन पाटन मराठा लोगों के प्रयास का फल है। यह सरस्वती नदी से डेढ किमी की दूरी पर है। जैन मंदिरों की संख्या यहाँ एक सौ से भी अधिक है, पर ये विशेष कलात्मक नहीं हैं। खादी के व्यवसाय में इधर काफी उन्नति हुई है। .

नई!!: रानी की वाव और पाटण, गुजरात · और देखें »

बावड़ी

बावड़ी श्रेणी:सिंचाई श्रेणी:भारतीय वास्तुशास्त्र श्रेणी:भारत में जल प्रबंधन श्रेणी:भारतीय स्थापत्य कला श्रेणी:बावड़ी.

नई!!: रानी की वाव और बावड़ी · और देखें »

भारत के विश्व धरोहर स्थल

यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किए गए भारतीय सांस्‍कृतिक और प्राकृतिक स्‍थलों की सूची - .

नई!!: रानी की वाव और भारत के विश्व धरोहर स्थल · और देखें »

भीमदेव प्रथम

भीम मैं (आर। सी। 1022-1064 सीई) एक भारतीय राजा जो आज के गुजरात के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। उन्होंने Chaulukya (भी चालुक्य या सोलंकी कहा जाता है) वंश के एक सदस्य था। भीम मैं गुर्जर शासनकाल ग के राजा। 1022-1064 सीई पूर्ववर्ती Durlabharaja उत्तराधिकारी कर्ण पति Udayamati अंक Mularaja, क्षहेमराजा और कर्ण राजवंश Chaulukya (सोलंकी) पिता नागराज भीम मैं भारत भीम IBhima IBhima में स्थित है मैं भीम के शासनकाल के दौरान जारी किए गए शिलालेख के धब्बे का पता लगाएं प्रारंभिक वर्षों भीम के शासनकाल के ग़ज़नवी साम्राज्य के शासक महमूद ने सोमनाथ मंदिर को बर्खास्त कर दिया से एक आक्रमण को देखा। भीम ने अपनी राजधानी को छोड़ दिया और इस आक्रमण के दौरान Kanthkot में शरण ले ली। महमूद के चले जाने के बाद, वह अपनी शक्ति बरामद किए गए और सभी प्रदेशों वह विरासत में मिला था बनाए रखा। उन्होंने Arbuda में अपने जागीरदार द्वारा एक ने विद्रोह को कुचलने, और असफल Naddula Chahamana राज्य पर आक्रमण करने की कोशिश की। उनके शासनकाल के अंत में, वह कलचुरी राजा लक्ष्मी-कर्ण के साथ गठबंधन किया है, और परमार राजा भोज के पतन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिलवाड़ा मंदिर और Modhera सूर्य मंदिर का जल्द से जल्द भीम के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। रानी की वाव का निर्माण कार्य भी अपनी रानी Udayamati को जिम्मेदार ठहराया है। .

नई!!: रानी की वाव और भीमदेव प्रथम · और देखें »

अडालज वाव

अडालज की बावड़ी का कुएँ वाला भाग अडालज की बावड़ी (गुजराती: अडालजनी वाव) एक सीढ़ीदार कुँआ (बावड़ी) है जो गुजरात के अडालज नामक गाँव में है। दूर-दराज से बड़ी संख्या में लोग इस कुएं को देखने आते रहते हैं। वास्तव में यह एक बड़े भवन के रूप में निर्मित है। भारत में इस तरह के कई सीड़ीनुमा कूप हैं अडालज गाँव गांधीनगर जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और गांधीनगर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह छोटा सा गाँव प्राचीन काल में 'दांडई देश' नाम से जाना जाता था। .

नई!!: रानी की वाव और अडालज वाव · और देखें »

अग्रसेन की बावली

अग्रसेन की बावली अग्रसेन की बावली, एक संरक्षित पुरातात्विक स्थल हैं जो नई दिल्ली में कनॉट प्लेस के पास स्थित है।इस बावली में सीढ़ीनुमा कुएं में करीब 105 सीढ़ीयां हैं। 14वीं शताब्दी में महाराजा अग्रसेन ने इसे बनाया था। सन 2012 में भारतीय डाक अग्रसेन की बावली पर डाक टिकट जारी किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित हैं। इस बावली का निर्माण लाल बलुए पत्थर से हुआ है। अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली की बेहतरीन बावलियों में से एक है। क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का जीर्णोद्धार कराया। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अभी भी अच्छी स्थिति में हैं। जंतर मंतर के निकट, हेली रोड पर यह बावली मौजूद है। यहाँ पर नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग कभी तैराकी सीखने के लिए आते थे। बावली की स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुग़लक़ तथा लोदी काल (13वी-16वी ईस्वी) से मेल खाती है। लाल बलुए पत्थर से बनी इस बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएँ तुग़लक़ और लोदी काल की तरफ़ संकेत कर रहे हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार इसे अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने बनवाया था। इमारत की मुख्य विशेषता है कि यह उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लम्बी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है। पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद है। यह एक ठोस ऊँचे चबूतरे पर किनारों की भूमिगत दालानों से युक्त है। इसके स्थापत्य में ‘व्हेल मछली की पीठ के समान’ छत, ‘चैत्य आकृति’ की नक़्क़ाशी युक्त चार खम्बों का संयुक्त स्तम्भ, चाप स्कन्ध में प्रयुक्त पदक अलंकरण इसको विशिष्टता प्रदान करता है। .

नई!!: रानी की वाव और अग्रसेन की बावली · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »