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राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र

सूची राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र

भारतीय इतिहास में दो ऐसे पत्र मिलते हैं जिन्हें दो विख्यात महापुरुषों ने दो कुख्यात व्यक्तिओं को लिखे थे। इनमे पहिला पत्र "जफरनामा" कहलाता है जिसे श्री गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को भाई दया सिंह के हाथों भेजा था। यह दशम ग्रन्थ में शामिल है जिसमे कुल 130 पद हैं। दूसरा पत्र छ्त्रपति शिवाजी ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा था जो उसे 3 मार्च 1665 को मिल गया था। इन दोनों पत्रों में यह समानताएं हैं की दोनों फारसी भाषा में शेर के रूप में लिखे गए हैं। दोनों की पृष्टभूमि और विषय एक जैसी है। दोनों में देश और धर्म के प्रति अटूट प्रेम प्रकट किया गया है। शिवाजी पत्र बरसों तक पटना साहेब के गुरुद्वारे के ग्रंथागार में रखा रहा। बाद में उसे "बाबू जगन्नाथ रत्नाकर" ने सन 1909 अप्रैल में काशी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित किया था। बाद में अमर स्वामी सरस्वती ने उस पत्र का हिन्दी में पद्य और गद्य ने अनुवाद किया था। फिर सन 1985 में अमरज्योति प्रकाशन गाजियाबाद ने पुनः प्रकाशित किया था। राजा जयसिंह आमेर का राजा था। वह उसी राजा मानसिंह का नाती था, जिसने अपनी बहिन अकबर से ब्याही थी। जयसिंह सन 1627 में गद्दी पर बैठा था और औरंगजेब का मित्र था। शाहजहाँ ने उसे 4000 घुड सवारों का सेनापति बना कर "मिर्जा राजा" की पदवी दी थी। औरंगजेब पूरे भारत में इस्लामी राज्य फैलाना चाहता था लेकिन शिवाजी के कारण वह सफल नही हो रहा था। औरंगजेब चालाक और मक्कार था। उसने पाहिले तो शिवाजी से से मित्रता करनी चाही। और दोस्ती के बदले शिवाजी से 23 किले मांगे। लेकिन शिवाजी उसका प्रस्ताव ठुकराते हुए 1664 में सूरत पर हमला कर दिया और मुगलों की वह सारी संपत्ति लूट ली जो उनहोंने हिन्दुओं से लूटी थी। फिर औरंगजेब ने अपने मामा शाईश्ता खान को चालीस हजार की फ़ौज लेकर शिवाजी पर हमला करावा दिया और शिवाजी ने पूना के लाल महल में उसकी उंगलियाँ काट दीं और वह भाग गया। फिर औरंगजेब ने जयसिंह को कहा की वह शिवाजी को परास्त कर दे। जयसिंह खुद को राम का वंशज मानता था। उसने युद्ध में जीत हासिल करने के लिए एक सहस्त्र चंडी यज्ञ भी कराया। शिवाजी को इसकी खबर मिल गयी थी जब उन्हें पता चला की औरंगजेब हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाना चाहता है। जिस से दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे। तब शिवाजी ने जयसिंह को समझाने के लिए जो पत्र भेजा था। उसके कुछ अंश नीचे दिये हैं - 1 जिगरबंद फर्जानाये रामचंद ज़ि तो गर्दने राजापूतां बुलंद। 2 शुनीदम कि बर कस्दे मन आमदी -ब फ़तहे दयारे दकन आमदी। 3 न दानी मगर कि ईं सियाही शवद कज ईं मुल्को दीं रा तबाही शवद। 4 बगर चारा साजम ब तेगोतबर दो जानिब रसद हिंदुआं रा जरर 5 बि बायद कि बर दुश्मने दीं ज़नी बुनी बेख इस्लाम रा बर कुनी। 6 बिदानी कि बर हिन्दुआने दीगर न यामद चि अज दस्त आं कीनावर। 7 ज़ि पासे वफ़ा गर बिदानी सखुन चि कर्दी ब शाहे जहां याद कुन 8 मिरा ज़हद बायद फरावां नमूद -पये हिन्दियो हिंद दीने हिनूद 9 ब शमशीरो तदबीर आबे दहम ब तुर्की बतुर्की जवाबे दहम। 10 तराज़ेम राहे सुए काम ख्वेश - फरोज़ेम दर दोजहाँ नाम ख्वेश .

1 संबंध: ज़फ़रनामा

ज़फ़रनामा

ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, दसम ग्रंथ का एक भाग है और इसकी भाषा फ़ारसी है। भारत के गौरवमयी इतिहास में दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र छत्रपति शिवाजी द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया तथा दूसरा पत्र गुरु गोविन्द सिंह द्वारा शासक औरंगज़ेब को लिखा गया, जिसे ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है। गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे। .

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