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राजस्थानी भाषा

सूची राजस्थानी भाषा

हिन्दी, ब्रजभाषा, मेवाती, मारवाड़ी, जैसी कई भाषाओं के मिश्रित झुंड को राजस्थानी भाषा का नाम दिया गया इसे वर्तमान में देवनागरी में लिखा जाता है। राजस्थानी भाषा भारत के राजस्थान प्रान्त व मालवा क्षेत्र तथा पाकिस्तान के कुछ भागों में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। इस भाषा का इतिहास बहुत पुराना है। इस भाषा में प्राचीन साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है। इस भाषा में विपुल मात्रा में लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी आदि उपलब्ध हैं। इस भाषा को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है। इस कारण इसे स्कूलों में पढाया नहीं जाता है। इस कारण शिक्षित वर्ग धीरे धीरे इस भाषा का उपयोग छोड़ रहा है, परिणामस्वरूप, यह भाषा धीरे धीरे ह्रास की और अग्रसर है। कुछ मातृभाषा प्रेमी अच्छे व्यक्ति इस भाषा को सरकारी मान्यता दिलाने के प्रयास में लगे हुए हैं। .

116 संबंधों: चन्द्र प्रकाश देवल, चश्मदीठ गवाह, चेतन स्वामी, एक दुनिया म्हारी, एक पहेली लीला, ढाणी बडी, दिनेश पंचाल, दक्षिण एशिया, देवनारायण की फड़, धरमजुद्ध, नारायण सिंह भाटी, नंद भारद्वाज, नृसिंह राजपुरोहित, नैनमल जैन, नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य, नेमनारायण जोशी, पद्मावत (फ़िल्म एल्बम), पद्मावत (फ़िल्म), पागी, पगफेरो, पगरवा, प्रेमजी प्रेम, पूर्णमिदम्, बरसण रा देगोडा डूंगर लाँघिया, बातां री फुलवारी, बाई चाली सासरिए, ब्रजभाषा, बोल भारमली, बीकानेर का इतिहास, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री, भरत ओळा, भारत सारावली, भारत की भाषाएँ, भारतीय सिनेमा, भगवतीलाल व्यास, मणि मधुकर, मधु आचार्य आशावादी, मरु–मंगल, मरू धर म्‍हारो घर, महावीर प्रसाद जोशी, माटी री महक, मारवाड़ी भाषा, मंगत बादल, म्हारो गाँव, म्हारी कवितावां, मूलचंद प्राणेश, मेवाड़ी भाषा, मेवै रा रूंख, मोहन आलोक, मीरां, ..., यादवेन्द्र शर्मा चंद्र, रतनपुरा, चुरू ज़िला, रानाबाई, रामपाल सिंह राजपुरोहित, रामेश्वर दयाल श्रीमाली, राजस्थान, राजस्थानी, राजस्थानी भाषा और साहित्य, राजस्थानी भाषा आंदोलन, राजस्थानी लोग, राजस्थानी साहित्य, राजस्थानी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेताओं की सूची, रेवतदान चारण कल्पित, लक्ष्मीनारायण रंगा, लीलटांस, शांति भारद्वाज राकेश, शिवदीन राम जोशी, सत्यप्रकाश जोशी, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सांडेराव, सांम्ही खुलतौ मारग, सांवर दइया, सिमरण, सज्जन कीर्ति, सगलोरी पीडा स्वातमेघ, संतोष मायामोहन, सुन्‍दर नैण सुधा, सुमेर सिंह शेखावत, सौभाग्य सिंह शेखावत, सीर रो घर, हिन्द-आर्य भाषाएँ, हिन्द-आर्य भाषाओं की सूची, हिन्दी, जमारो, जयपुर के दर्शनीय स्थल, जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज, जयगढ़ दुर्ग, जूण–जातरा, जीव री जात, घराणो, वासु आचार्य, विजयदान देथा, खाजूवाला, गा–गीत, गवाड़, गोजरी भाषा, ओळूंरी अखियातां, आँख हींयै रा हरियल सपना, आठवीं अनुसूची, आलोचना री आंख सूं, आईदान सिंह भाटी, आंथ्‍योई नहीं दिन हाल, कटेवा, करणीदान बारहठ, कालीरामणा, किस्तूरी मिरग, कंकू कबंध, कुंदन माली, अणहद नाद, अतुल कनक, अधूरा सुपना, अब्दुल वहीद कमल, अम्बिकादत्‍त, अहिराणी भाषा, उड जा रे सुआ, उछालो सूचकांक विस्तार (66 अधिक) »

चन्द्र प्रकाश देवल

डॉ॰ चन्द्र प्रकाश देवल (अथवा चंद्र प्रकाश देवल) प्रसिद्ध राजस्थानी कवि और अनुवादक हैं। वो राजस्थानी साहित्य अकादमी सलाहकार परिषद के संयोजक भी हैं। .

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चश्मदीठ गवाह

चश्मदीठ गवाह राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार मूलचंद ‘प्राणेश’ द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1982 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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चेतन स्वामी

चेतन स्वामी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह किस्तूरी मिरग के लिये उन्हें सन् 2005 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एक दुनिया म्हारी

एक दुनिया म्हारी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार साँवर दइया द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1985 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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एक पहेली लीला

एक पहेली लीला एक भारतीय थ्रिलर बॉलीवुड फ़िल्म है जिसका निर्देशन बॉबी खान नें किया है। इसका निर्माण भूषण कुमार, कृशन कुमार और अहमद खान ने किया है। फिल्म में सन्नी लियोन मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म एक पुनर्जन्म की कहानी हैं। फिल्म की कहानी 300 साल पहले की है। लीला और उसके प्रेमी की हत्या कर दी जाती है। फिल्म में दर्शाया गया है कि कैसे लीला की अधूरी कहानी पूरी होती जब वे आज के समय में वापस जन्म लेते हैं। यह फ़िल्म 10 अप्रैल 2015 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई और अच्छी कमाई के साथ हिट हुई। .

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ढाणी बडी

यह भारत देश के एक राज्य राजस्थान के एक जिले चुरू की तहसील राजगढ का एक छोटा सा गाँव होने के साथ एक पंचायत भी है जिसके तहत दो अन्य गाँव सादपुरा ओर सरदापुरा भी आता है, इस गाँव को ' झाझडियों की ढाणी ' नामक उपनाम से भी जाना जाता है, यहाँ की प्रचलित भाषा जिसे हम खिचडी भाषा कह सकते है क्योंकि यहाँ न शुद्ध हिन्दी बोली जाती है ओर न ही राजस्थानी भाषा बल्कि यहाँ के लोगों की जुबान से हिन्दी के कुछ शब्दों के साथ हरियाणवी भाषा का हल्का तडका लगता है |.

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दिनेश पंचाल

दिनेश पंचाल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह पगरवा के लिये उन्हें सन् 2008 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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दक्षिण एशिया

thumb दक्षिण एशिया एक अनौपचारिक शब्दावली है जिसका प्रयोग एशिया महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से के लिये किया जाता है। सामान्यतः इस शब्द से आशय हिमालय के दक्षिणवर्ती देशों से होता है जिनमें कुछ अन्य अगल-बगल के देश भी जोड़ लिये जाते हैं। भारत, पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश को दक्षिण एशिया के देश या भारतीय उपमहाद्वीप के देश कहा जाता है जिसमें नेपाल और भूटान को भी शामिल कर लिया जाता है। कभी कभी इसमें अफगानिस्तान और म्याँमार को भी जोड़ लेते हैं। दक्षिण एशिया के देशों का एक संगठन सार्क भी है जिसके सदस्य देश निम्नवत हैं.

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देवनारायण की फड़

देवनारायण की फड़ (राजस्थानी: देवनारायण री पड़) एक कपड़े पर बनाई गई भगवान विष्णु के अवतार देवनारायण की महागाथा है जो मुख्यतः राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में गाई जाती है। राजस्थान में भोपे फड़ पर बने चित्रों को देखकर गाने गाते हैं जिसे राजस्थानी भाषा में 'पड़ का बाचना' कहा जाता है। देवनारायण भगवान विष्णु के अवतार थे। इनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार 968 में हुआ था। .

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धरमजुद्ध

धरमजुद्ध राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अर्जुनदेव चारण द्वारा रचित एक नाटक–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1992 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नारायण सिंह भाटी

नारायण सिंह भाटी (1930–2004) पुलिस अधीक्षक तथा राजस्थानी भाषा के साहित्यकार थे। 1970 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वे 1976 से 1980 तक अजमेर के पुलिस अधीक्षक रहे। उन्हें चार बार राष्ट्रपति पुलिस पदक और 6 बार गैलेंट्री अवार्ड भी मिले। 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी उन्होंने भाग लिया। आजादी से पहले वह जैसलमेर के कनोट के हाकम भी रहे। .

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नंद भारद्वाज

नंद भारद्वाज राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास सांम्ही खुलतौ मारग के लिये उन्हें सन् 2004 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नृसिंह राजपुरोहित

नृसिंह राजपुरोहित राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह अधूरा सुपना के लिये उन्हें सन् 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नैनमल जैन

नैनमल जैन राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह सगलोरी पीडा स्वातमेघ के लिये उन्हें सन् 1987 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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नेपाली भाषाएँ एवं साहित्य

नेपाल में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं, जैसे किराँती, गुरुंग, तामंग, मगर, नेवारी, गोरखाली आदि। काठमांडो उपत्यका में सदा से बसी हुई नेवार जाति, जो प्रागैतिहासिक गंधर्वों और प्राचीन युग के लिच्छवियों की आधुनिक प्रतिनिधि मानी जा सकती है, अपनी भाषा को नेपाल भाषा कहती रही है जिसे बोलनेबालों की संख्या उपत्यका में लगभग 65 प्रतिशत है। नेपाली, तथा अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों के ही समान नेवारी भाषा के दैनिक पत्र का भी प्रकाशन होता है, तथापि आज नेपाल की सर्वमान्य राष्ट्रभाषा नेपाली ही है जिसे पहले परवतिया "गोरखाली" या खस-कुरा (खस (संस्कृत: कश्यप; कुराउ, संस्कृत: काकली) भी कहते थे। .

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नेमनारायण जोशी

नेमनारायण जोशी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक संस्मरण ओळूंरी अखियातां के लिये उन्हें सन् 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पद्मावत (फ़िल्म एल्बम)

पद्मावत वर्ष २०१८ की इसी नाम की फिल्म की संगीत एल्बम है। गोलियों की रासलीला रामलीला (२०१३) तथा बाजीराव मस्तानी (२०१५) के बाद इस फिल्म के गीत भी स्वयं संजय लीला भंसाली ने ही सृजित किये। संचित बल्हारा ने फिल्म में पार्श्व संगीत दिया, और फिल्म के गीत ए.एम.

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पद्मावत (फ़िल्म)

'पद्मावत' एक भारतीय ऐतिहासिक फ़िल्म है जिसका निर्देशन संजय लीला भंसाली ने किया है और निर्माण भंसाली प्रोडक्शन्स और वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स ने किया है। फ़िल्म में मुख्य भूमिका में दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह हैं। पहले यह फ़िल्म 1 दिसम्बर 2017 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली थी; परंतु फिर कुछ लोगों के विरोध और सुप्रीम कोर्ट में चली कानूनी कार्यवाही के बाद यह २५ जनवरी २०१८ को रिलीज हुई। इस फ़िल्म में चित्तौड़ की प्रसिद्द राजपूत रानी पद्मिनी का वर्णन किया गया है जो रावल रतन सिंह की पत्नी थीं। यह फ़िल्म दिल्ली सल्तनत के तुर्की शासक अलाउद्दीन खिलजी का १३०३ ई. में चित्तौड़गढ़ के दुर्ग पर आक्रमण को भी दर्शाती है। पद्मावत के अनुसार, चित्तौड़ पर अलाउद्दीन के आक्रमण का कारण रानी पद्मिनी के अनुपन सौन्दर्य के प्रति उसका आकर्षण था। अन्ततः 28 जनवरी 1303 ई. को सुल्तान चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार करने में सफल हुआ। राणा रतन सिंह युद्ध में शहीद हुये और उनकी पत्नी रानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ आत्म-सम्मान और गौरव को मृत्यु से ऊपर रखते हुए जौहर कर लिया। .

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पागी

पागी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार चंद्रप्रकाश देवल द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1979 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पगफेरो

पगफेरो राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार मणि मधुकर द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1975 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पगरवा

पगरवा राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार दिनेश पंचाल द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2008 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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प्रेमजी प्रेम

प्रेमजी प्रेम राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संकलन म्हारी कवितावां के लिये उन्हें सन् 1991 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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पूर्णमिदम्

पूर्णमिदम् राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा द्वारा रचित एक रंग–नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2006 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बरसण रा देगोडा डूंगर लाँघिया

बरसण रा देगोडा डूंगर लाँघिया राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार नारायण सिंह भाटी द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1981 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बातां री फुलवारी

बातां री फुलवारी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार विजयदान देथा द्वारा रचित एक लोककथाएँ है जिसके लिये उन्हें सन् 1974 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बाई चाली सासरिए

बाई चाली सासरिए के अभिनेता बाई चाली सासरिए 1988 में प्रदर्शित राजस्थानी भाषा फ़िल्म है। फ़िल्म १०० दिनों तक चली और राजस्थानी सिनेमा में इतिहास लिख दिया। 2004 में यह प्रतिवेदित हुआ कि इस फ़िल्म ने राजस्थानी भाषा को पुनर्जिवित करने की अभिरूचि में सहायक है, लेकिन 2005 के एक लेख के अनुसार, जिसमें राजस्थानी फ़िल्म इंडस्ट्री के गिरते स्तर के बारे में चर्चा है में लिखा है कि राजस्थानी सिनेमा में पिछले 15 वर्षों में बाई चाली सासरिए एकमात्र सफल राजस्थानी फ़िल्म है। फ़िल्म को हिन्दी पुनर्निर्माण के रूप में जुही चावला और ऋषि कपूर अभिनीत फ़िल्म में साजन का घर (1994) है। इस फ़िल्म का निर्देशन भरत नाहटा ने किया है। .

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ब्रजभाषा

ब्रजभाषा मूलत: ब्रज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" भी कह सकते हैं। ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि। फिल्मों के गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। .

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बोल भारमली

बोल भारमली राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार सत्यप्रकाश जोशी द्वारा रचित एक काव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 1977 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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बीकानेर का इतिहास

बीकानेर। Raja Karan Singh of Bikaner, Auranzeb's ally and enemy एक अलमस्त शहर है, अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफ्क्रि के साथ अपना जीवन यापन करते हैं। इसका कारण यह भी है कि बीकानेर के सँस्थापक राव बीकाजी अलमस्त स्वभाव के थे अलमस्त नहीँ होते तो वे जोधपुर राज्य की गद्दी को यो हीँ बात बात में छोड़ देते। उस समय तो बेटा बाप को मार कर गद्दी पे बैठ जाता था। जैसा कि इतिहास में मिलता है यथा राव मालदेव ने अपने पिता राव गाँगा को गढ की खिडकी से नीचे फेंक कर किया था और जोधपुर की सत्ता हथिया ली थी। इसके विरूद्ध बीकाजी ने अपनी इच्छा से जोधपुर की गद्दी छोडी। इसके पीछे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने जोधाजी से कहा कि आपने भले ही सांतळ जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नथु जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह पुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने बीकाजी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। सालू जी राठी जोधपुर के ओंसिया गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराधय देव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति साथ लायें आज भी उनके वंशज साले की होली पे होलिका दहन करते हैं। साले का अर्थ बहन के भाई के रूप में न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप में होता है बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीर धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँगय में कहा “ मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं’। इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की कृप्या हो तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है ‘ पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ‘ इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई वैसे ये क्षेत्र तब भी निर्जन नहीं था इस क्षेत्र में जाट जाति के कई गाँव थे .

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भट्ट मथुरानाथ शास्त्री

कवि शिरोमणि भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री (23 मार्च 1889 - 4 जून 1964) बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक और युगपुरुष थे। उनका जन्म 23 मार्च 1889 (विक्रम संवत 1946 की आषाढ़ कृष्ण सप्तमी) को आंध्र के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार में हुआ, जिन्हें सवाई जयसिंह द्वितीय ने ‘गुलाबी नगर’ जयपुर शहर की स्थापना के समय यहीं बसने के लिए आमंत्रित किया था। आपके पिता का नाम देवर्षि द्वारकानाथ, माता का नाम जानकी देवी, अग्रज का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथ था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की इसी वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशमान किया। हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हैं, आधुनिक संस्कृत साहित्य के विकास के भी तीन युग - अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग (1890-1930), भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग (1930-1960) और वेंकट राघवन युग (1960-1980) माने जाते हैं। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन भी नहीं हो पाया है। अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री का देहावसान 75 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण 4 जून 1964 को जयपुर में हुआ। .

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भरत ओळा

भरत ओळा राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह जीव री जात के लिये उन्हें सन् 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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भारत सारावली

भुवन में भारत भारतीय गणतंत्र दक्षिण एशिया में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है। यह विश्व का सातवाँ सबसे बड़ देश है। भारत की संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति एवं सभ्यताओं में से है।भारत, चार विश्व धर्मों-हिंदू धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म के जन्मस्थान है और प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का घर है। मध्य २० शताब्दी तक भारत अंग्रेजों के प्रशासन के अधीन एक औपनिवेशिक राज्य था। अहिंसा के माध्यम से महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने भारत देश को १९४७ में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया। भारत, १२० करोड़ लोगों के साथ दुनिया का दूसरे सबसे अधिक आबादी वाला देश और दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। .

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भारत की भाषाएँ

भारत बहुत सारी भाषाओं का देश है, लेकिन सरकारी कामकाज में व्यवहार में लायी जाने वाली दो भाषायें हैं, हिन्दी और अंग्रेज़ी। वृहद भारत के भाषा परिवार .

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भारतीय सिनेमा

भारतीय सिनेमा के अन्तर्गत भारत के विभिन्न भागों और भाषाओं में बनने वाली फिल्में आती हैं जिनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बॉलीवुड शामिल हैं। भारतीय सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी एशिया, ग्रेटर मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त राज्य अमरीका और यूनाइटेड किंगडम भी भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम(परिवर्तन) के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं। दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाना जाते हैं। दादा साहब फाल्के के भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के प्रतीक स्वरुप और 1969 में दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष में भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना उनके सम्मान में की गयी। आज यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित और वांछित पुरस्कार हो गया है। २०वीं सदी में भारतीय सिनेमा, संयुक्त राज्य अमरीका का सिनेमा हॉलीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया।Khanna, 155 2013 में भारत वार्षिक फिल्म निर्माण में पहले स्थान पर था इसके बाद नाइजीरिया सिनेमा, हॉलीवुड और चीन के सिनेमा का स्थान आता है। वर्ष 2012 में भारत में 1602 फ़िल्मों का निर्माण हुआ जिसमें तमिल सिनेमा अग्रणी रहा जिसके बाद तेलुगु और बॉलीवुड का स्थान आता है। भारतीय फ़िल्म उद्योग की वर्ष 2011 में कुल आय $1.86 अरब (₹ 93 अरब) की रही। जिसके वर्ष 2016 तक $3 अरब (₹ 150 अरब) तक पहुँचने का अनुमान है। बढ़ती हुई तकनीक और ग्लोबल प्रभाव ने भारतीय सिनेमा का चेहरा बदला है। अब सुपर हीरो तथा विज्ञानं कल्प जैसी फ़िल्में न केवल बन रही हैं बल्कि ऐसी कई फिल्में एंथीरन, रा.वन, ईगा और कृष 3 ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रूप में सफल हुई है। भारतीय सिनेमा ने 90 से ज़्यादा देशों में बाजार पाया है जहाँ भारतीय फिल्मे प्रदर्शित होती हैं। Khanna, 158 सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, अडूर गोपालकृष्णन, बुद्धदेव दासगुप्ता, जी अरविंदन, अपर्णा सेन, शाजी एन करुण, और गिरीश कासरावल्ली जैसे निर्देशकों ने समानांतर सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और वैश्विक प्रशंसा जीती है। शेखर कपूर, मीरा नायर और दीपा मेहता सरीखे फिल्म निर्माताओं ने विदेशों में भी सफलता पाई है। 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रावधान से 20वीं सेंचुरी फॉक्स, सोनी पिक्चर्स, वॉल्ट डिज्नी पिक्चर्स और वार्नर ब्रदर्स आदि विदेशी उद्यमों के लिए भारतीय फिल्म बाजार को आकर्षक बना दिया है। Khanna, 156 एवीएम प्रोडक्शंस, प्रसाद समूह, सन पिक्चर्स, पीवीपी सिनेमा,जी, यूटीवी, सुरेश प्रोडक्शंस, इरोज फिल्म्स, अयनगर्न इंटरनेशनल, पिरामिड साइमिरा, आस्कार फिल्म्स पीवीआर सिनेमा यशराज फिल्म्स धर्मा प्रोडक्शन्स और एडलैब्स आदि भारतीय उद्यमों ने भी फिल्म उत्पादन और वितरण में सफलता पाई। मल्टीप्लेक्स के लिए कर में छूट से भारत में मल्टीप्लेक्सों की संख्या बढ़ी है और फिल्म दर्शकों के लिए सुविधा भी। 2003 तक फिल्म निर्माण / वितरण / प्रदर्शन से सम्बंधित 30 से ज़्यादा कम्पनियां भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध की गयी थी जो फिल्म माध्यम के बढ़ते वाणिज्यिक प्रभाव और व्यसायिकरण का सबूत हैं। दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग दक्षिण भारत की चार फिल्म संस्कृतियों को एक इकाई के रूप में परिभाषित करता है। ये कन्नड़ सिनेमा, मलयालम सिनेमा, तेलुगू सिनेमा और तमिल सिनेमा हैं। हालाँकि ये स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं लेकिन इनमे फिल्म कलाकारों और तकनीशियनों के आदान-प्रदान और वैष्वीकरण ने इस नई पहचान के जन्म में मदद की। भारत से बाहर निवास कर रहे प्रवासी भारतीय जिनकी संख्या आज लाखों में हैं, उनके लिए भारतीय फिल्में डीवीडी या व्यावसायिक रूप से संभव जगहों में स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं। Potts, 74 इस विदेशी बाजार का भारतीय फिल्मों की आय में 12% तक का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके अलावा भारतीय सिनेमा में संगीत भी राजस्व का एक साधन है। फिल्मों के संगीत अधिकार एक फिल्म की 4 -5 % शुद्ध आय का साधन हो सकते हैं। .

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भगवतीलाल व्यास

भगवतीलाल व्यास राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह अणहद नाद के लिये उन्हें सन् 1988 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मणि मधुकर

मणि मधुकर राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह पगफेरो के लिये उन्हें सन् 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मधु आचार्य आशावादी

मधु आचार्य आशावादी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्‍यास गवाड़ के लिये उन्हें सन् 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मरु–मंगल

मरु–मंगल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार सुमेर सिंह शेखावत द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1984 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मरू धर म्‍हारो घर

मरूधर म्‍हारो घर राजस्‍थानी फिल्‍म अब तक की सर्वाधिक बजट वाली राजस्‍थानी फिल्‍म है। जी टीवी के शो सारेगामापा से अपनी दमदार गायकी का परचम लहराने के बाद बॉलीवुड में एक स्‍थापित गायक के रूप में कार्य करने वाले बीकानेर के राजा हसन को सदैव यह खलता रहा है कि राजस्‍थान में फिल्‍मों का स्‍तर उस तरह का नहीं जैसा कि अन्‍य क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्‍मों का है। यही बात सदैव खटकती रही और गायन के साथ साथ एक बार अपना रूख मोडा है राजस्‍थानी सिनेमा की ओर। इसी क्रम में राजस्‍थानी फिल्‍म मरूधर म्‍हारो घर की कल्‍पना की है राजा हसन ने। राजा के पिता रफीक सागर इस फिल्‍म के निर्माता है तो गीत, संगीत, गायन और मुख्‍य नायक का किरदार निभाया है स्‍वयं राजा हसन ने। फिल्‍म की कहानी भी रची है स्‍वयं राजा हसन ने। मुशाहिद पाशा और तौकीर आलम ने राजा की कल्‍पना के अनुसार राजस्‍थान और राजस्‍थानी संस्‍कृति का पहले खूब अध्‍ययन किया और बाद में एक ऐसी पटकथा रचने में कामयाब रहे जैसा कि राजा हसन चाहते थे। फिल्‍म मनोरंजन के साथ साथ एक ज्‍वलन्‍त मुद्धा उठाने में भी सहायक सिद्ध होगी और वह है कईं आंदोलन करने के बावजूद अब तक राजस्‍थानी भाषा को कोई मान्‍यता नहीं मिलना और इसी तर्ज पर फिल्‍म की कहानी भी राजस्‍थानी भाषा की मान्‍यता को लेकर इसके इर्द गिर्द रची बसी है। फिल्‍म की मुख्‍य नायिका कतरीना, जो कि एक सर्बियन हीरोईन है, पहली बार सिल्‍वर स्‍क्रीन पर दिखाई देगी और कहानी की मांग के अनुसार फिल्‍म में यह विदेशी किरदार एक विदेशी लडकी से ही करवाया गया है ताकि फिल्‍म की सार्थकता और अधिक प्रभावित करे। फिल्‍म राजस्‍थान के प्रमुख सिनेमाघरों में 26 सितम्‍बर, 2014 से प्रदर्शित होगी। .

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महावीर प्रसाद जोशी

महावीर प्रसाद जोशी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह द्वारका के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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माटी री महक

माटी री महक राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार करणीदान बारहठ द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1994 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मारवाड़ी भाषा

राजस्थान में मारवाड़ी बोलने वाले इलाक़े मारवाड़ी राजस्थान में बोली जाने वाली एक क्षेत्रीय भाषा है। यह राजस्थान की एक मुख्य भाषाओं में से एक है। मारवाड़ी गुजरात, हरियाणा और पूर्वी पाकिस्तान में भी बोली जाती है। इसकी मुख्य लिपि देवनागरी है। इसकी कई उप-बोलियाँ भी है। मारवाड़ी की ख़ुद की लिपि जिसे मोड़िया लिपि भी हैं। परन्तु इस लिपि के विकास में राजपुताने राजरस्थान के राजा-महाराजा (वर्तमान में राजस्थान राज्य) व राजस्थान सरकार ने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। पिछले ४०-५० सालों से इस भाषा के विकास पर बातें तो बहुत होती रही है पर कार्य के मामले में कोई विशेष प्रगति नहीं दिखी। इन दिनों सन् 2011 से कोलकाता के श्री शम्भु चौधरी इस दिशा में काफी कार्य किया है। राजस्थानी भाषा कि लिपि के संदर्भ में यह गलत प्रचार किया जाता रहा कि इसकी लिपि देवनागरी है जबकि राजस्थान के पुराने दस्तावेजों से पता चलता है कि इसकी लिपि मोड़िया है। उस लिपि को महाजनी भी कहा जाता है। हांलाकि मोड़िया लिपि को भी महाजनी लिपि कहा जाता हैं। कुछ लोग मोड़ी लिपि को ही मोड़िया लिपि मानते रहे। जब इसके विस्तार में देखा गया तो दोनों लिपि में काफी अन्तर है। .

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मंगत बादल

मंगत बादल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक महाकाव्य मीरां के लिये उन्हें सन् 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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म्हारो गाँव

म्हारो गाँव राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार रामेश्वर दयाल श्रीमाली द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1980 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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म्हारी कवितावां

म्हारी कवितावां राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार प्रेमजी प्रेम द्वारा रचित एक कविता–संकलन है जिसके लिये उन्हें सन् 1991 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मूलचंद प्राणेश

मूलचंद प्राणेश राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह चश्मदीठ गवाह के लिये उन्हें सन् 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मेवाड़ी भाषा

मेवाड़ी (Mewari) भारतीय राज्य राजस्थान की राजस्थानी भाषा की एक प्रमुख बोली यानि उपभाषा है जो हिन्द-आर्य भाषा परिवार के अंतर्गत आती है। यह बोली लगभग ५ लाख लोग बोलते हैं और ज्यादातर राजसमन्द,उदयपुर और चित्तौड़गढ़ में बोलते हैं। .

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मेवै रा रूंख

मेवै रा रूंख राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अन्नाराम ‘सुदामा’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1978 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मोहन आलोक

मोहन आलोक राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह गा–गीत के लिये उन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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मीरां

मीरां राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार मंगत बादल द्वारा रचित एक महाकाव्य है जिसके लिये उन्हें सन् 2010 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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यादवेन्द्र शर्मा चंद्र

यादवेन्द्र शर्मा चंद्र राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संकलन जमारो के लिये उन्हें सन् 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रतनपुरा, चुरू ज़िला

राजस्थान में चुरू जिले के राजगढ़ तहसील में एक गांव तथा ग्राम पंचायत मुख्यालय है। इसकी स्थापना 1848 ई. में हुई। यह गाँव जिला मुख्यालय चुरू से उत्तर पूर्व में 45 किमी तथा तहसील मुख्यालय राजगढ़ से 17 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। .

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रानाबाई

हरनावा में रानाबाई की समाधि रानाबाई अथवा वीराँगना रानाबाई (1504-1570) प्रसिद्ध जाट वीरबाला एवं कवयित्री थीं। उनकी रचनाएं राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। वह राजस्थान की दूसरी मीरा के रूप में जानी जाती है। वह संत चतुर दास (जो कि खोजीजी के नाम से भी जाने जाते हैं) की शिष्या थीं। रानाबाई का जन्म राजस्थान के नागौर जिले के हरनावा गांव में सन् 1543 में चौधरी जालमसिंह धूण के घर में हुआ। रानाबाई ने राजस्थानी भाषा में कई कविताओं की रचना की थी। सारी रचनाएँ सामान्य लय मे रची गई हैं। उनके गानों के संग्रह को 'पदावली' कहा जाता है। उनके द्वारा रचित पदों के गायन का माध्यम ठेठ राजस्थानी था। भक्त शिरोमणि रानाबाई के पिता श्री जालम सिंह खिंयाला गाँव से कृषि का लगान भरकर अपने गाँव हरनावां लौट रहे थे तो रास्ते में गेछाला नाम के तालाब में भूतों ने उन्हें घेर लिया और कहा कि आपकी पुत्री राना का विवाह बोहरा भूत के साथ करने पर ही आपको छोड़ा जायेगा। चिंताग्रस्त जालम सिंह ने अपनी पुत्री के विवाह की सहमति भूतों को दे दी। भूत समुदाय आंधी-तूफान के रूप में जालम सिंह के घर पहुँचा। भक्त शिरोमणि रानाबाई ने अपनी ईश्वरीय शक्ति से भूत समुदाय का सर्वनाश किया। रानाबाई ने विवाह नहीं करने का प्रण लिया।उन्होंने विक्रम संवत् 1627 को फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को जीवित समाधी ली। प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रानाबाई की धाम पर हरनावां गाँव में मेला भरता है। भाद्रपद और माघ मास के शुक्ल पक्ष की तेरस (त्रयोदशी) को राना मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ रहती है। रानाबाई मंदिर के वर्तमान पुजारी श्री रामा राम धूण है। रानाबाई की तपोभूमि हरनावा पट्टी के दो जांबाजों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। शहीद श्री रामकरण थाकण ने मेघदूत ऑपरेशन के दौरान सन् 1991 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। वीर चक्र से सम्मानित शहीद श्री मंगेज सिंह ने कारगिल युद्ध के दौरान अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए देश के लिए प्राण न्योंछावर कर दिए। क्यों प्रसिद्ध हुई रानाबाई ? हरनावा पट्टी नागौर की रानाबाई ने गुरू खोजी जी के सान्निध्य में रहकर श्री राम की भक्ति की। भक्ति के कारण रानाबाई जी में ईश्वरीय शक्ति आ गई थी। एक बार बोरावड़ के मेड़तिया ठाकुर श्री राज सिंह जोधपुर दरबार का साथ देने के लिए बादशाह से युद्ध करने के लिए अहमदाबाद जा रहे थे, रास्ते में हरनावा गाँव में रुके।रानाबाई जी प्रसिद्धि सुनकर वे रानाबाई के दर्शन करने गए। रानाबाई जी गोबर से थेपड़ियाँ (कंडे) बना रही थीं। ठाकुर राज सिंह ने रानाबाई जी को प्रणाम करके पूछा कि क्या मैं बादशाह से युद्ध में विजय हो सकता हूँ तब रानाबाई जी ने गोबर के हाथ का छापा ठाकुर की पीठ पर लगा दिया जो केशरिया रंग में परिवर्तित हो गया। रानाबाई जी ने कहा कि जब थक आपको मेरा यह चूड़ा सहित हाथ दिखाई दे तो निश्चिंत होकर लड़ना, अवश्य जीत होगी। बोरावड़ दरबार बादशाह से युद्ध में विजय हो गये।खुशी के कारण रानाबाई जी को भूल गए। उन्होंने रानाबाई जी को वचन दिया था कि जब जीत जाऊँगा तो आपके पास आकर प्रणाम करके घर जाऊँगा। जब बोरावड़ दरबार मय सेना गढ़ के प्रवेश द्वार पर पहुँचे तो हाथी गढ़ में प्रवेश नहीं कर पाया। फिर ठाकुर राज सिंह रानाबाई के दर्शन करने हरनावा गए तथा बाई राना से क्षमा याचना की तो रानाबाई जी ने क्षमा किया। गढ़ के प्रवेश द्वार में अब आसानी से हाथी प्रवेश कर गया। यह कहा जाता है कि गोबर के हाथ का छापा (केशरिया रंग) वाला कुर्ता आज भी बोरावड़ के गढ़ में विद्यमान है। आज भी रानाबाई जी की ईश्वरीय शक्ति भक्तों को देखने के लिए उस समय मिलती है जब प्रसाद के रूप में चढाए गए नारियल की ऊपरी परत (दाढ़ी) एकत्रित होने पर स्वतः प्रज्वलित हो जाती है। मुगल सेनापति का सिर काट दिया रानाबाई जी ने रानाबाई जी अविवाहित सुन्दर कन्या थी। उनकी सुन्दरता से मोहित होकर मुगल सेनापति आक्रमण कर अपहरण करना चाह रहा था लेकिन रानाबाई जी ने 500 मुगल सैनिकों सहित सेनापति का सिर धड़ से अलग कर दिया। रामस्नेही रानाबाई की मान्यता आस-पास के क्षेत्रों में इतनी है कि रानाबाई नाम से व्यवसाय, संस्थान,परिवहन आदि चलते हैं। .

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रामपाल सिंह राजपुरोहित

रामपाल सिंह राजपुरोहित राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी सुन्‍दर नैण सुधा के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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रामेश्वर दयाल श्रीमाली

रामेश्वर दयाल श्रीमाली राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह म्हारो गाँव के लिये उन्हें सन् 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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राजस्थानी

राजस्थानी उचित संज्ञा शब्द राजस्थान का विशेषण रूप है। इसका उपयोग निम्न में से किसी एक लिए किया गया हो.

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राजस्थानी भाषा और साहित्य

राजस्थानी आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में से एक है, जिसका वास्तविक क्षेत्र वर्तमान राजस्थान प्रांत तक ही सीमित न होकर मध्यप्रदेश के कतिपय पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में और पाकिस्तान के वहावलपुर जिले तथा दूसरे पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी सीमा प्रदेशों में भी है। .

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राजस्थानी भाषा आंदोलन

राजस्थानी भाषा आन्दोलन 1947 से कार्यरत राजस्थानी भाषा के अधिक से अधिक प्रचार एवं मान्यता दिलाने के लिए प्रयासरत आन्दोलन है। .

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राजस्थानी लोग

राजस्थानी लोग भारत के राजस्थान ("राजाओं की भूमि") क्षेत्र के मूल निवासियों को कहा जाता है। यद्दपि राजस्थानी लोगों की विभिन्न उपजातियता पायी जाती है लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप के सभी क्षेत्रों में राजस्थानी लोगों को मारवाड़ी ("राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र के लोग") के नाम से जाता है। उनकी भाषा राजस्थानी इण्डो आर्यन भाषा का पश्चिमी भाग है। .

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राजस्थानी साहित्य

राजस्थानी साहित्य ई॰ सन् १००० से विभिन्न विधाओं में लिखी गई है। लेकिन सर्वसम्मत रूप से माना जाता है कि राजस्थानी साहित्य पर कार्य सूरजमल मिसराणा के कार्य के बाद आरम्भ हुआ।South Asian arts.

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राजस्थानी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेताओं की सूची

साहित्य अकादमी पुरस्कार एक साहित्यिक सम्मान है जो कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं और राजस्थानी भाषा इन में से एक भाषा हैं। इस भाषा में १९७४ से पुरस्कार देना शुरु हुआ। .

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रेवतदान चारण कल्पित

रेवतदान चारण कल्पित राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संकलन उछालो के लिये उन्हें सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लक्ष्मीनारायण रंगा

लक्ष्मीनारायण रंगा राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक रंग–नाटक पूर्णमिदम् के लिये उन्हें सन् 2006 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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लीलटांस

लीलटांस राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1976 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शांति भारद्वाज राकेश

शांति भारद्वाज राकेश राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास उड जा रे सुआ के लिये उन्हें सन् 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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शिवदीन राम जोशी

श्रेणी:राजस्थानी साहित्यकार शिवदीन राम जोशी (जन्म: १० जून १९२१, खंडेला, सीकर जिला) एक भारतीय कवि थे। उनके साहित्य में सवैया, मनहर, मतगयंद, कुंडली छंद ओर कवित्त का प्रयोग तथा धमाल, भजन ओर गजलों का समावेश है। पद्यात्मक रचनाओं का विषय ज्ञान, वैराग्य, प्रेम, प्रकृति चित्रण, प्रार्थना और उपदेश के साथ-साथ समाज में व्याप्त कुरीतियों, पाखंड, भ्रष्टाचार एवं काल चिंतन उनके साहित्य का मुख्य केंद्र रहे हैं। उनके साहित्य की भाषा ब्रज मिश्रित हिंदी है। कहीं कहीं राजस्थानी, उर्दू और फारसी शब्दों के अलावा अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। जोशी का अधिकांश साहित्य अप्रकाशित है। .

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सत्यप्रकाश जोशी

सत्यप्रकाश जोशी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक काव्य बोल भारमली के लिये उन्हें सन् 1977 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार भारत में एक साहित्यिक सम्मान है, जो साहित्य अकादमी प्रतिवर्ष भारत की अपने द्वारा मान्यता प्रदत्त प्रमुख भाषाओं में से प्रत्येक में प्रकाशित सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक कृति को पुरस्कार प्रदान करती है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल २२ भारतीय भाषाओं के अलावा ये राजस्थानी और अंग्रेज़ी भाषा; याने कुल २४ भाषाओं में प्रदान किया जाता हैं। पहली बार ये पुरस्कार सन् 1955 में दिए गए। पुरस्कार की स्थापना के समय पुरस्कार राशि 5,000/- रुपए थी, जो सन् 1983 में ब़ढा कर 10,000/- रुपए कर दी गई और सन् 1988 में ब़ढा कर इसे 25,000/- रुपए कर दिया गया। सन् 2001 से यह राशि 40,000/- रुपए की गई थी। सन् 2003 से यह राशि 50,000/- रुपए कर दी गई है। .

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सांडेराव

सांडेराव भारत के राजस्थान राज्य के पाली ज़िले का एक गांव है,जो बाली कस्बे से १६ किलोमीटर की दूरी पर है ' इस गांव की स्थापना ९वीं शताब्दी में यशोभद्रा की थी यह ५००० हजार साल पहले का एक तीर्थस्थल था ' यहां पर उदयपुर के सिसोदिया राजवंश ने शासन किया था ' वर्तमान में यह एक महत्वपूर्ण जंक्शन साबित हो रहा है यहां कई बड़े-बड़े स्टेशन है ' .

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सांम्ही खुलतौ मारग

सांम्ही खुलतौ मारग राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार नंद भारद्वाज द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2004 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सांवर दइया

साँवर दइया का जन्म 10 अक्टूबर 1948, बीकानेर (राजस्थान) में हुआ। राजस्थानी साहित्य में आधुनिक कहानी के आप प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं। पेशे से शिक्षक रहे श्री दइया ने शिक्षक जीवन और शिक्षण व्यवसाय से जुड़ी बेहद मार्मिक कहानियां लिखी, जो "एक दुनिया म्हारी" कथा संकलन में संकलित है। इसे केंद्रीय साहित्य अकादेमी का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार भी मिला। इस से पूर्व श्री दइया को उनके कहानी संग्रह- "असवाड़े-पसवाड़े" तथा "धरती कद तांईं धूमैली" पर राजस्थान साहित्य अकादेमी उदयपुर, मारवाड़ी सम्मेलन मुम्बई, राजस्थानी ग्रेजुएट नेशनल सर्विस ऐसोसिएशन मुम्बई, राजस्थानी भाषा साहित्य एवं सस्कृति अकादेमी बीकानेर सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं से पुरस्कृत एवं सम्मानित हो चुके थे। राजस्थानी में संवाद कहानियों के लिए भी श्री दइया उल्लेखनीय कहानीकार माने जाते हैं। राजस्थानी कहानी को नूतन धारा एवं प्रवाह देने वाले सशक्त कथाकार के अतिरिक्त आप ने राजस्थानी काव्य में जापानी हाइकू का सूत्रपात किया, वहीं नई कविता को भी गति देने वाले कवियों में उनकी गणना की जाती है। प्रयोग के रूप में कविता के ही क्षेत्र में "पंचलड़ी" का श्रीगणेश आपने किया। रेखांकित करने योग्य बात यह भी है कि राजस्थानी भाषा में व्यंग्य को विद्या के रूप में प्रतिष्ठित करने वाले व्यंग्य-लेखक के रूप में भी आप चर्चित रहे। राजस्थानी साहित्य की इस सॄजन-यात्रा का समापन 30 जुलाई 1992 उन के निधन हो जाने से असमय हो गया। .

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सिमरण

सिमरण राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार संतोष मायामोहन द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2003 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सज्जन कीर्ति

सज्जन कीर्ति राजस्थानी भाषा में प्रकाशित होनी वाली पहली मासिक पत्रिका है। इसकी स्थापना मोहम्मद ज़हीर और धर्मेन्द्र सिंह गहलोट ने 2012 में की। इसपत्रिका का प्रकाशन उदयपुर से शुरू हुआ। http://udaipurtimes.com/sajjan-kirti-rajasthani-language-monthly-newspaper-launched/ .

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सगलोरी पीडा स्वातमेघ

सगलोरी पीडा स्वातमेघ राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार नैनमल जैन द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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संतोष मायामोहन

संतोष मायामोहन राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह सिमरण के लिये उन्हें सन् 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुन्‍दर नैण सुधा

सुन्‍दर नैण सुधा राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार रामपाल सिंह राजपुरोहित द्वारा रचित एक कहानी है जिसके लिये उन्हें सन् 2014 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सुमेर सिंह शेखावत

सुमेर सिंह शेखावत राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह मरु–मंगल के लिये उन्हें सन् 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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सौभाग्य सिंह शेखावत

सौभाग्य सिंह शेखावत राजस्थानी भाषा के भारतीय लेखक हैं। यद्यपि मामूली शिक्षा के साथ भी वो उच्च श्रेणी के विद्वानों में गिने जाते हैं जिन्होंने राजस्थान के लगभग सभी शोध पत्रिकाओं में अपना योगदान दिया है। .

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सीर रो घर

सीर रो घर राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार वासु आचार्य द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1999 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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हिन्द-आर्य भाषाएँ

हिन्द-आर्य भाषाएँ हिन्द-यूरोपीय भाषाओं की हिन्द-ईरानी शाखा की एक उपशाखा हैं, जिसे 'भारतीय उपशाखा' भी कहा जाता है। इनमें से अधिकतर भाषाएँ संस्कृत से जन्मी हैं। हिन्द-आर्य भाषाओं में आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के 'घ', 'ध' और 'फ' जैसे व्यंजन परिरक्षित हैं, जो अन्य शाखाओं में लुप्त हो गये हैं। इस समूह में यह भाषाएँ आती हैं: संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, कश्मीरी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, रोमानी, असमिया, गुजराती, मराठी, इत्यादि। .

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हिन्द-आर्य भाषाओं की सूची

हिन्द-आर्य भाषाओं में लगभग २१० (एसआईएल अनुमान) भाषाएँ और बोलियाँ आती हैं जो एशिया में बहुत से लोगों द्वारा बोली जाती हैं; यह भाषा परिवार हिंद-इरानी भाषा परिवार का भाग है। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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जमारो

जमारो राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार यादवेन्द्र शर्मा ‘चंद्र’ द्वारा रचित एक कहानी–संकलन है जिसके लिये उन्हें सन् 1989 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जयपुर के दर्शनीय स्थल

जयपुर मैट्रो। राजस्थान की राजधानी जयपुर को गुलाबी नगरी नाम से भी जाना जाता है। इस नगर में सुंदर नगरों, हवेलियों और किलों की भरमार है। जयपुर का अर्थ है - जीत का नगर। इसे कुशवाह राजपूत राजा सवाई जय सिंह, द्वितीय ने 1727 में बसाया था। उस समय का यह प्रथम नगर था जो योजनाबद्ध ढ़ंग से बसाया गया था। इसका ख़ाका तैयार किया था वास्तु शिल्पी विद्याधर भट्टाचार्य ने। मुगलों ने जो भवन बनवाए उनमें लाल पत्थर का उपयोग किया जबकि राजा जय सिंह ने पूरे नगर को गुलाबी रंग से पुतवाया। जिसके कारण जयपुर को गुलाबी नगर कहा जाता है l जयपुर को यदि पास से देखना हो तो पूरे नगर को पैरों से नापना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से यह नगर २६२ किमी की दूरी पर स्थित है और बस, रेल और हवाई यातायात से अच्छे से जुड़ा है। यहाँ की प्रमुख भाषाएँ हिन्दी और राजस्थानी है। नाहरगढ़ से जयपुर का रात का दृश्य। जयपुर में आने के बाद पता चलता है, कि आप किसी रजवाडे में प्रवेश कर गये है हैं, शाही साफ़ा बांधे जयपुर के बना और लंहगा-चुन्नी से सजी जयपुर की नारियां, गपशप मारते जयपुर के वृद्ध लोग, राजस्थानी भाषा में कितनी प्यारी बोलियां,पधारो म्हारे देश जैसा स्वागत और बैठो सा, जीमो सा, जैसी बातें, कितनी सुहावनी लगती है। यहाँ के विभिन्न दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं। .

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जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज

जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक नाटक कंकू कबंध के लिये उन्हें सन् 2000 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जयगढ़ दुर्ग

जयगढ़ दुर्ग (राजस्थानी: जयगढ़ क़िला) भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली पर्वतमाला में चील का टीला नामक पहाड़ी पर आमेर दुर्ग एवं मावता झील के ऊपरी ओर बना किला है। इस दुर्ग का निर्माण जयसिंह द्वितीय ने १७२६ ई. में आमेर दुर्ग एवं महल परिसर की सुरक्षा हेतु करवाया था और इसका नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। Jaigarh Fort Aravalli Hills from Jaigarh Fort जयगढ़ दुर्ग को जीत का किला भी कहा जाता है। यह दुर्ग आमेर में स्थित है, जयपुर शहर सीमा मे यह किला १७२६ में बनकर तैयार हुआ था। यहाँ पर विश्व की सबसे बड़ी तोप रखी हुई है। File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-compound-Apr-2004-00.JPG|Jaigarh Fort compound area, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-compound-Apr-2004-01.JPG|Jaigarh Fort compound area, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-perimeter-walls-Apr-2004-00.JPG|Jaigarh Fort fortifications, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-perimeter-walls-Apr-2004-01.JPG|Jaigarh Fort fortifications, Jaipur, Rajasthan File:Rajasthan-Jaipur-Jaigarh-Fort-water-supply-Apr-2004-01.JPG|Jaigarh Fort water supply, Jaipur, Rajasthan File:Jaigarh_fort_cannon.jpg .

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जूण–जातरा

जूण–जातरा राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अतुल कनक द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2011 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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जीव री जात

जीव री जात राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार भरत ओळा द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2002 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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घराणो

घराणो राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अब्दुल वहीद ‘कमल’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2001 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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वासु आचार्य

वासु आचार्य राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह सीर रो घर के लिये उन्हें सन् 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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विजयदान देथा

विजयदान देथा (१ सितम्बर १९२६ - १० नवम्बर २०१३) जिन्हें बिज्जी के नाम से भी जाना था राजस्थान के विख्यात लेखक और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति थे। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और साहित्य चुड़ामणी पुरस्कार जैसे विभिन्न अन्य पुरस्कारों से भी समानित किया जा चुका था। १० नवम्बर २०१३ को ८७ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। .

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खाजूवाला

खाजूवाला राजस्थान राज्य भारत का एक छोटा सा कस्बा है यह जिला बीकानेर में है यह कोई पुराना कस्बा नहीँ है इंदिरा गांधी नहर की अनूपगढ शाखा के आने से इस शहर का विकास हुआ। .

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गा–गीत

गा–गीत राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार मोहन आलोक द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1983 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गवाड़

गवाड़ राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार मधु आचार्य 'आशावादी' द्वारा रचित एक उपन्‍यास है जिसके लिये उन्हें सन् 2015 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोजरी भाषा

गोजरी या गूजरी एक हिन्द-आर्य भाषा है जो उत्तर भारत व पाकिस्तान में गुर्जर समुदाय के कई सदस्यों द्वारा बोली जाती है। भारत में यह भाषा राजस्थान,हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू व कश्मीर, उत्तराखण्ड और पंजाब राज्यों में बोली जाती है। पाकिस्तान में यह पाक-अधिकृत कश्मीर और पंजाब (पाकिस्तान) में बोली जाती है। इस भाषा का मूल ढांचा और गहरी शब्दावली दोनों राजस्थानी भाषा की है लेकिन स्थानानुसार इसमें कई पंजाबी, डोगरी, कश्मीरी, गुजराती, हिन्दको और पश्तो प्रभाव देखे जाते हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में इसे आधिकारिक दर्जा प्राप्त है। .

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ओळूंरी अखियातां

ओळूंरी अखियातां राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार नेमनारायण जोशी द्वारा रचित एक संस्मरण है जिसके लिये उन्हें सन् 1996 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आँख हींयै रा हरियल सपना

आँख हींयै रा हरियल सपना राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार आईदान सिंह भाटी द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2012 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आठवीं अनुसूची

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में २२ भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है। इनमें से १४ भाषाओं को संविधान में शामिल किया गया था। सन १९६७ में, सिन्धी भाषा को अनुसूची में जोड़ा गया। इसके बाद, कोंकणी भाषा, मणिपुरी भाषा, और नेपाली भाषा को १९९२ में जोड़ा गया। हाल में २००४ में बोड़ो भाषा, डोगरी भाषा, मैथिली भाषा, और संथाली भाषा शामिल किए गए। .

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आलोचना री आंख सूं

आलोचना री आंख सूं राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार कुंदन माली द्वारा रचित एक समालोचना है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आईदान सिंह भाटी

आईदान सिंह भाटी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह आँख हींयै रा हरियल सपना के लिये उन्हें सन् 2012 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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आंथ्‍योई नहीं दिन हाल

आंथ्‍योई नहीं दिन हाल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार अम्बिकादत्‍त द्वारा रचित एक कविता-संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2013 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कटेवा

कटेवा राजस्थान, भारत में पायी जाने वाली एक जाट गोत्र है। कटेवा गोत्र के लोग सिंध, पाकिस्तान में भी स्थित है। वो कर्कोटक के वंशज हैं जो एक नागवंशी राजा था। वे महाभारत काल में किकट साम्राज्य के रहने वाले थे। जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार वो यदु वंश के सम्बंधित हैं। वास्तव में वाकाटक या कर्कोटक यदुवंशी थे। कुछ लोगों के समूह ने उनके देव और नागा पुजा की पद्धति के अनुसार वंश का विकास किया। कर्क नागा की पुजा करने वालों को कर्कोटक कहा गया। अतः नागवंशी राजा थे। कर्कोटक के वंशज आज भी राजस्थान के कटेवा नामक जाट गोत्र के रूप में पाये जाते हैं। यह माना जाता है कि इन्होने अधिकतर ने यवनों के साथ युद्ध में अपनी जान गवांई अतः कटेवा कहलाये जैसे राजपूतों में शिशोदिया।ठाकुर देशराज: जाट इतिहास, महाराजा सुरज मल स्मारक शिक्षा संस्थान, दिल्ली, 1934, 2nd संस्करण 1992 (पृष्ठ 614) काटली नदी जो झुन्झुनू में बहती है का नामकरण भी कटेवाओं के नाम पर पड़ा है। इसके तट पर एक कटेवा जनपद था। वहाँ पर काटनी नदी के तट पर भी खुडाना नामक स्थान स्थित है जहाँ पर एक दुर्ग भी है जो कटेवाओं का बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों ने उनकी उपस्थिति जयपुर में बताई है जहाँ वो कुशवाहा के नाम से जाने जाते थे। इनमें से कुछ लोग विधवाओं के पुनःविवाह में विश्वास नहीं करते थे और नरवर चले गये और राजपूत बन गये। बाकी जिन्होंने इन पुराने रिवाजों को छोड़ दिया जाट कहलाए। .

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करणीदान बारहठ

करणीदान बारहठ राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह माटी री महक के लिये उन्हें सन् 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कालीरामणा

कालीरामणा या कालीरमन या कालेरावने हरियाणा और पंजाब की एक जाट गोत्र है। .

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किस्तूरी मिरग

किस्तूरी मिरग राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार चेतन स्वामी द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2005 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कंकू कबंध

कंकू कबंध राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ द्वारा रचित एक नाटक है जिसके लिये उन्हें सन् 2000 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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कुंदन माली

कुंदन माली राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना आलोचना री आंख सूं के लिये उन्हें सन् 2007 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अणहद नाद

अणहद नाद राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार भगवतीलाल व्यास द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1988 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अतुल कनक

अतुल कनक राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास जूण–जातरा के लिये उन्हें सन् 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अधूरा सुपना

अधूरा सुपना राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार नृसिंह राजपुरोहित द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1993 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अब्दुल वहीद कमल

अब्दुल वहीद कमल राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक उपन्यास घराणो के लिये उन्हें सन् 2001 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अम्बिकादत्‍त

अम्बिकादत्‍त राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता-संग्रह आंथ्‍योई नहीं दिन हाल के लिये उन्हें सन् 2013 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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अहिराणी भाषा

अहिराणी महाराष्ट्र के उत्तर में स्थित खानदेश भूभाग में बोली जाने वाली एक हिन्द-आर्य भाषा है। इसे कभी-कभी खानदेशी भी कहा जाता है, लकिन इसका नाम स्थानीय अहीर समुदाय पर पड़ा है। अहिराणी मराठी भाषा की एक उपभाषा समझी जाती है लेकिन व्याकरण और शब्दावली की दृष्टि से इसमें गुजराती भाषा और राजस्थानी भाषा के भी कई लक्षण पाये जाते हैं। अहीरों की विशिष्ट संस्कृति के कारण उनके द्वारा प्रचलित भाषा है अहिराणी आधुनिक हिंदी की खड़ी बोली का निकास है भी अहिराणी भाषा ही है .

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उड जा रे सुआ

उड जा रे सुआ राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार शांति भारद्वाज ‘राकेश’ द्वारा रचित एक उपन्यास है जिसके लिये उन्हें सन् 1998 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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उछालो

उछालो राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार रेवतदान चारण ‘कल्पित’ द्वारा रचित एक कविता–संकलन है जिसके लिये उन्हें सन् 1990 में राजस्थानी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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