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राक्षस

सूची राक्षस

The Army of Super Creatures राक्षस प्राचीन काल के प्रजाति का नाम है। राक्षस वह है जो विधान और मैत्री में विश्वास नहीं रखता और वस्तुओं को हडप करना चाहता है। रावण ने रक्ष संस्कृति या रक्ष धर्म की स्थापना की थी। रक्ष धर्म को मानने वाले गरीब, कमजोर, विकास के पीछे रह गए लोगों, किसानों व वंचितों की रक्षा करते थे। रक्ष धर्म को मानने वाले राक्षस थे। श्रेणी:रामायण.

39 संबंधों: चाणक्य, चाणूर, चुड़ैल, ताड़का, तिलोत्तमा, दैत्य, नमुचि, नरभक्षण, निशाचरता, नवरात्रि, पराशर ऋषि, परी कथा, पिशाच, पुलस्त्य, भस्मासुर, महर्षि दुर्वासा, महाभारत, यक्ष, रामायण, रावण, लंकाकाण्ड, श्रीभार्गवराघवीयम्, श्रीसीतारामकेलिकौमुदी, स्लीपिंग ब्यूटी, स्वायम्भूव मनु, ज्वारासुर, वराहावतार, विश्वेदेव, खाटूश्यामजी, गीतरामायणम्, कबन्ध, किरातार्जुनीयम्, कंस, कुवलयाश्व (अयोध्या के सूर्यवंशी राजा), अरण्यकाण्ड, अरुन्धती (महाकाव्य), अष्टावक्र (महाकाव्य), असुर (आदिवासी), अहिरावण

चाणक्य

चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 - ईसापूर्व 283) चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (एक नगर जो रावलपिंडी के पास था) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे। उनके नाम पर एक धारावाहिक भी बना था जो दूरदर्शन पर 1990 के दशक में दिखाया जाता था। .

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चाणूर

चाणूर एक राक्षस था जो मल्लयुद्ध में विशेष निपुण तथा कंस का सेवक था। धनुर्यज्ञ में, कंस के बुलाने पर कृष्ण मथुरा गए थे। वहाँ इसने उन्हें मल्लयुद्ध के लिये ललकारा और उनके ही हाथों मारा गया। श्रेणी:पौराणिक पात्र.

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चुड़ैल

चुड़ैल भारतीय उपमहाद्वीप और कुछ दक्षिण-पूर्वी एशिया के हिस्सों में लोककथा में एक प्रकार की दानव या राक्षसनी है। इनकी पहचान के लिये कहा जाता है कि ये उन महिलायों से बनती है जो प्रसव के समय मर जाती हैं। इनका रूप घिनौना और भयंकर बताया जाता है। लेकिन वो सुंदर स्त्री का रूप भी धारण कर सकती है। उन्हें सिर्फ उनके उल्टे पैरों की वजह से पहचाना जा सकता है। इस मामले में इसकी डायन से कई समानताएँ हैं। हाल फिलहाल में महिलाओं को चुड़ैल बताकर उनपर जादू-टोना का आरोप लगाकर मारने के मामलें सामने आते हैं। .

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ताड़का

रामायण की एक पात्र। यह सुकेतु यक्ष की पुत्री थी जिसका विवाह सुड नामक राक्षस के साथ हुआ था। यह अयोध्या के समीप स्थित सुंदर वन में अपने पति और दो पुत्रों सुबाहु और मारीच के साथ रहती थी। उसके शरीर में हजार हाथियों का बल था। उसके प्रकोप से सुंदर वन का नाम ताड़का वन पड़ गया था। उसी वन में विश्वामित्र सहित अनेक ऋषि-मुनि भी रहते थे। उनके जप, तप और यज्ञ में ये राक्षस गण हमेशा बाधाएँ खड़ी करते थे। विश्वामित्र राजा दशरथ से अनुरोध कर राम और लक्ष्मण को अपने साथ सुंदर वन लाए। राम ने ताड़का का और विश्वामित्र के यज्ञ की पूर्णाहूति के दिन सुबाहु का भी वध कर दिया। मारीच उनके बाण से आहत होकर दूर दक्षिण में समुद्र तट पर जा गिरा। .

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तिलोत्तमा

तिलोत्तमा को पाने के लिये आपस में लड़ते राक्षस सुन्द और उपसुन्द तिलोत्तमा एक प्रसिद्ध अप्सरा का नाम है। तिलोत्तमा कश्यप और अरिष्टा की कन्या जो पूर्वजन्म में ब्राह्मणी थी और जिसे असमय स्नान करने के अपराध में अप्सरा होने का शाप मिला था। एक दूसरी कथा के अनुसार यह कुब्जा नामक स्त्री थी जिसने अपनी तपस्या से वैकुंठ पद प्राप्त किया। उस समय सुंद और उपसुंद नामक राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था इसलिये उनके संहार के लिए ब्रह्मा ने विश्व की उत्तम वस्तुओं से तिल-तिल सौंदर्य लेकर इस अपूर्व सुंदरी की रचना की (इसी से तिलोत्तमा नाम पड़ा)। उसे देखते ही दोनों राक्षस उसे पाने के लिये आपस में लड़ने लगे और दोनों एक दूसरे द्वारा मारे गए। श्रेणी:अप्सरा.

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दैत्य

विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्य कश्यप ऋषि और दिति के पुत्र थे। उन्हें असुर और राक्षस भी कहा गया है। हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष प्रसिद्ध दैत्य थे। दैत्यों की प्रवृत्तियाँ आसुरी थीं। आगे चलकर उनका देवताओं या सुरों से युद्ध भी हुआ। देवता दैत्यों के सौतेले भाई थे और कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी अदिति के पुत्र थे। श्रेणी:पुराण.

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नमुचि

नमुचि नाम के दो प्रसिद्ध राक्षस हुए हैं। एक तो शुंभ निशुंभ का तीसरा भाई था जिसकी कथा वामन पुराण में हैं, दूसरा दानवों का राजा जिसका वध इंद्र ने धोखे से किया था। नमुचि डर के मारे छिपा था। लेकिन इंद्र ने नमुचि का सिर काट लिया तो कटा हुआ सिर इंद्र के पीछे उड़ने लगा। अंत में इंद्र भागकर ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा की आज्ञा से इंद्र को प्रायश्चित्त स्वरूप सरस्वती की शाखा अरुण में स्नान करके यज्ञ करना पड़ा। उसी नदी में नमुचि का कटा सिर भी डाल दिया गया जिससे नमुचि को अक्षय लोक की प्राप्ति हुई। यह कथा विस्तारपूर्वक महाभारत में मिलती है। श्रेणी:पौराणिक पात्र.

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नरभक्षण

हैंस स्टैडेन द्वारा कहा गया 1557 में नरभक्षण. लियोंहार्ड कर्ण द्वारा नरभक्षण, 1650 नरभक्षण (नरभक्षण) (नरभक्षण की आदत के लिए विख्यात वेस्ट इंडीज जनजाति कैरीब लोगों के लिए स्पेनिश नाम कैनिबलिस से) एक ऐसा कृत्य या अभ्यास है, जिसमें एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का मांस खाया करता है। इसे आदमखोरी (anthropophagy) भी कहा जाता है। हालांकि "कैनिबलिज्म" (नरभक्षण) अभिव्यक्ति के मूल में मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य के खाने का कृत्य है, लेकिन प्राणीशास्त्र में इसका विस्तार करते हुए किसी भी प्राणी द्वारा अपने वर्ग या प्रकार के सदस्यों के भक्षण के कृत्य को भी शामिल कर लिया गया है। इसमें अपने जोड़े का भक्षण भी शामिल है। एक संबंधित शब्द, "कैनिबलाइजेशन" (अंगोपयोग) के अनेक अर्थ हैं, जो लाक्षणिक रूप से कैनिबलिज्म से व्युत्पन्न हैं। विपणन में, एक उत्पाद के कारण उसी कंपनी के अन्य उत्पाद के बाजार के शेयर के नुकसान के सिलसिले में इसका उल्लेख किया जा सकता है। प्रकाशन में, इसका मतलब अन्य स्रोत से सामग्री लेना हो सकता है। विनिर्माण में, बचाए हुए माल के भागों के पुनःप्रयोग पर इसका उल्लेख हो सकता है। खासकर लाइबेरिया और कांगो में, अनेक युद्धों में हाल ही में नरभक्षण के अभ्यास और उसकी तीव्र निंदा दोनों ही देखी गयी। अतीत में दुनिया भर के मनुष्यों के बीच व्यापक रूप से नरभक्षण का प्रचलन रहा था, जो 19वीं शताब्दी तक कुछ अलग-थलग दक्षिण प्रशांत महासागरीय देशों की संस्कृति में जारी रहा; और, कुछ मामलों में द्वीपीय मेलेनेशिया में, जहां मूलरूप से मांस-बाजारों का अस्तित्व था। फिजी को कभी 'नरभक्षी द्वीप' ('Cannibal Isles') के नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि निएंडरथल नरभक्षण किया करते थे, और हो सकता है कि आधुनिक मनुष्यों द्वारा उन्हें ही कैनिबलाइज्ड अर्थात् विलुप्त कर दिया गया हो। अकाल से पीड़ित लोगों के लिए कभी-कभी नरभक्षण अंतिम उपाय रहा है, जैसा कि अनुमान लगाया गया है कि ऐसा औपनिवेशिक रौनोक द्वीप में हुआ था। कभी-कभी यह आधुनिक समय में भी हुआ है। एक प्रसिद्ध उदाहरण है उरुग्वेयन एयर फ़ोर्स फ्लाइट 571 की दुर्घटना, जिसके बाद कुछ बचे हुए यात्रियों ने मृतकों को खाया.

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निशाचरता

उल्लू एक निशाचरी प्राणी है निशाचरता कुछ जानवरों की रात को सक्रीय रहने की प्रवृति को कहते हैं। निशाचरी जीवों में उल्लू, चमगादड़ और रैकून जैसे प्राणी शामिल हैं। कुछ निशाचरी जानवरों में दिन और रात दोनों में साफ़ देखने की क्षमता होती है लेकिन कुछ की आँखें अँधेरे में ही ठीक से काम करती हैं और दिन के वक़्त चौंधिया जाती हैं। .

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नवरात्रि

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ देवियाँ है:-.

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पराशर ऋषि

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे।  .

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परी कथा

परी कथा एक काल्पनिक कहानी होती है जिसमे विभिन्न लोककथनीय पात्रों का जैसे कि परियां, पिशाच, राक्षस, जादूगर, दानव और, बात करने वाले पशु और पक्षिओं का समावेश होता है, साथ ही विभिन्न विस्मयकारी घटनाओं और आमतौर पर एक लम्बे काल का वर्णन होता है। परी कथायें आमतौर पर छोटे बच्चों को आकर्षित करती हैं क्योंकि इन्हें समझना आसान होता है और इनमे वर्णित चरित्र उन्हें दिलचस्प लगते हैं। .

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पिशाच

फिलिप बर्न-जोन्स द्वारा पिशाच, 1897 पिशाच कल्पित प्राणी है जो जीवित प्राणियों के जीवन-सार खाकर जीवित रहते हैं आमतौर पर उनका खून पीकर.

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पुलस्त्य

पुलस्त्य या पुलस्ति (सिंहली: පුලස්ති/पुलस्ति, थाई: ท้าวจตุรพักตร์) हिन्दू पौराणिक कथाओं के एक पात्र हैं। ये कथाएँ इन्हें ब्रह्मा के दस मानस पुत्रों में से एक बताती हैं। ये इन्हें प्रथम मन्वन्तर के सात सप्तर्षियों में से एक भी बताती हैं। विष्णुपुराण के अनुसार ये ऋषि उन लोगों में से एक हैं जिनके माध्यम से कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। इसके अनुसार इन्होंने ब्रह्मा से विष्णु पुराण सुना था और उसे पराशर ऋषि को सुनाया, और इस तरह ये पुराण मानव जाति को प्राप्त हुआ। ये आदिपुराण का मनुष्यों में प्रचार करने का श्रेय भी इन्हें देता है। हिन्दू धर्म ग्रंथ पुलस्त्य के वंश के बारे में ये कहते हैं (यह सारांश है): पुलस्त्य ऋषि के पुत्र हुए विश्रवा, कालान्तर में जिनके वंश में कुबेर एवं रावण आदि ने जन्म लिया तथा राक्षस जाति को आगे बढ़ाया। पुलस्त्य ऋषि का विवाह कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं में से एक से हुआ जिनका नाम हविर्भू था। उनसे ऋषि के दो पुत्र उत्पन्न हुए -- महर्षि अगस्त्य एवं विश्रवा। विश्रवा की दो पत्नियाँ थीं - एक थी राक्षस सुमाली एवं राक्षसी ताड़का की पुत्री कैकसी, जिससे रावण, कुम्भकर्ण तथा विभीषण उत्पन्न हुए, तथा दूसरी थी इलाविडा- जिसके कुबेर उत्पन्न हुए। इलाविडा चक्रवर्ती सम्राट तृणबिन्दु की अलामबुशा नामक अपसरा से उत्पन्न पुत्री थी। ये वैवस्वत मनु श्राद्धदेव के वंशावली की कड़ी थे। इन्होंने अपने एक यज्ञ में केवल स्वर्ण पात्रों का ही उपयोग किया था एवं ब्रह्मा को इतना दान दिया कि वे उसे ले जा भी न पाये और काफ़ी कुछ वहीं छोड़ गये। उसी बचे हुए स्वर्ण से, जो कालान्तर में युधिष्ठिर को मिला, उन्होंने भी यज्ञ किया। तृणबिन्दु मारुत की वंशावली में आते थे। तुलसीदास ने रावण के संबंध में उल्लेख करते हुए लिखा है-: उत्तम कुल पुलस्त्य कर गाती। विश्रवा के दो पत्नियाँ थीं, बड़ी से कुबेर हुए और छोटी से रावण तथा उसके दो भाई। .

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भस्मासुर

भस्मासुर हिन्दू पौराणिक कथाओं में वर्णित एक ऐसा राक्षस था जिसे वरदान था कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। कथा के अनुसार भस्मासुर ने इस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं शिव जी को भस्म करने चला। शिव जी ने विष्णु जी से सहायता माँगी। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णु जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। भस्मासुर अपने ही वरदान से भस्म हो गया। श्रेणी:असुर श्रेणी:हिन्दू कथाएं.

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महर्षि दुर्वासा

हिंदूधर्म में, दुर्वासा एक ऋषि हैं, जो अत्रि और अनसुइया की संतान थे। दुर्वासा शिव के अवतार माने जाते हैं। दुर्वासा अपने क्रोध के कारण मशहूर थे। उन्होंने अपने शाप से कई लोगों की जिंदगी तबाह कर दी.

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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यक्ष

यह लेख यक्ष नामक पौराणिक चरित्रों पर है। अन्य यक्ष लेखों के लिए देखें: यक्ष (बहुविकल्पी) यक्षों एक प्रकार के पौराणिक चरित्र हैं। यक्षों को राक्षसों के निकट माना जाता है, यद्यपि वे मनुष्यों के विरोधी नहीं होते, जैसे राक्षस होते है। माना जाता है कि प्रारम्भ में दो प्रकार के राक्षस होते थे; एक जो रक्षा करते थे वे यक्ष कहलाये तथा दूसरे यज्ञों में बाधा उपस्थित करने वाले राक्षस कहलाये। यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू की शक्ति'। हिन्दू धर्मग्रन्थो में एक अच्छे यक्ष का उदाहरण मिलता है जिसे कुबेर कहते हैं तथा जो धन-सम्पदा में अतुलनीय थे। एक अन्य यक्ष का प्रसंग महाभारत में भी मिलता है। जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात यक्ष प्रश्न किए थे। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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रावण

त्रिंकोमली के कोणेश्वरम मन्दिर में रावण की प्रतिमा रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश .

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लंकाकाण्ड

लंका जाने के लिए रामसेतु का निर्माण करते हुई वानर सेना लंकाकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यंत व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना। शांति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बिठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये। बालासाहेब पंत प्रतिनिधि द्वारा चित्र जिसमे रावण वध दर्शाया गया है रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी राम के शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुये और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया। .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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श्रीसीतारामकेलिकौमुदी

श्रीसीतारामकेलिकौमुदी (२००८), शब्दार्थ: सीता और राम की (बाल) लीलाओं की चन्द्रिका, हिन्दी साहित्य की रीतिकाव्य परम्परा में ब्रजभाषा (कुछ पद मैथिली में भी) में रचित एक मुक्तक काव्य है। इसकी रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००७ एवं २००८ में की गई थी।रामभद्राचार्य २००८, पृष्ठ "क"–"ड़"काव्यकृति वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है और सीता तथा राम के बाल्यकाल की मधुर केलिओं (लीलाओं) एवं मुख्य प्रसंगों का वर्णन करने वाले मुक्तक पदों से युक्त है। श्रीसीतारामकेलिकौमुदी में ३२४ पद हैं, जो १०८ पदों वाले तीन भागों में विभक्त हैं। पदों की रचना अमात्रिका, कवित्त, गीत, घनाक्षरी, चौपैया, द्रुमिल एवं मत्तगयन्द नामक सात प्राकृत छन्दों में हुई है। ग्रन्थ की एक प्रति हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अक्टूबर २००८ को किया गया था। .

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स्लीपिंग ब्यूटी

सर एडवर्ड बरने-जोन्स द्वारा द स्लीपिंग ब्यूटी चित्रित. स्लीपिंग ब्यूटी (La Belle au Bois dormant "जंगल में सुप्त सौन्दर्य") एक खूबसूरत शहज़ादी और एक बांके शहज़ादे की क्लासिक परी कथा है। यह चार्ल्स पेरौलट द्वारा 1697 में कॉन्टेस डी मा मेरी इयोए ("टेल्स ऑफ मदर गूज") की प्रकाशित सेट की पहली कहानी है। हालांकि पेरौल्ट का संस्करण काफी मशहूर है, गियामबतिस्ता बेसिल के पेंटामेरोन में शामिल "सन, मून एंड टालिया" नामक कथा का एक पुराना संस्करण 1634 में प्रकाशित हुआ। अंग्रेजी भाषी दुनिया की सबसे परिचित स्लीपिंग ब्यूटी ' पर 1959 वाल्ट डिज्नी एनिमेटेड फिल्म बनी, जिसमें शाइकोवस्कि के बैले (1890 में सेंट पीटर्सबर्ग में प्रदर्शित) से भी उतना ही लिया गया है जितना कि पेरौल्ट से.

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स्वायम्भूव मनु

मनु जो एक धर्मशास्त्रकार थे, धर्मग्रन्थों के बाद धर्माचरण की शिक्षा देने के लिये आदिपुरुष स्वयंभुव मनु ने स्मृति की रचना की जो मनुस्मृति के नाम से विख्यात है। ये ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से थे जिनका विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न शतरूपा से हुआ था। उत्तानपाद जिसके घर में ध्रुव पैदा हुआ था, इन्हीं का पुत्र था। मनु स्वायंभुव का ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत पृथ्वी का प्रथम क्षत्रिय माना जाता है। इनके द्वारा प्रणीत 'स्वायंभुव शास्त्र' के अनुसार पिता की संपत्ति में पुत्र और पुत्री का समान अधिकार है। इनको धर्मशास्त्र का और प्राचेतस मनु अर्थशास्त्र का आचार्य माना जाता है। मनुस्मृति ने सनातन धर्म को आचार संहिता से जोड़ा था। .

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ज्वारासुर

हिंदू पौराणिक कथाओं अनुसार, ज्वारासुर बुखार के दानव और शीतला देवी का जीवनसाथी है। .

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वराहावतार

वराह अवतार, अलवर में प्राप्त एक मिनियेचर कलाकृति वराहावतार भगवान श्री हरि का एक अवतार है। जब जब धरती पापी लोगों से कष्ट पाती है तब तब भगवान विविध रूप धारण कर इसके दु:ख दूर करते हैं। .

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विश्वेदेव

विश्वेदेव (संस्कृत: विश्वेदेवाः; शाब्दिक अर्थ: सभी देवता) से तात्पर्य 'सभी देवताओं' से है। ऋग्वेद में अनेकों मंत्रों में 'विश्वदेवाः' की स्तुति की गई है जैसे 1.89, 3.54-56, 4.55, 5.41-51, 6.49-52, 7.34-37, 39, 40, 42, 43, 8.27-30, 58, 83 10.31, 35, 36, 56, 57, 61-66, 92, 93, 100, 101, 109, 114, 126, 128, 137, 141, 157, 165, 181 आदि। ऋग्वेद के मंत्र 3.54.17 में इन्द्र को विश्वेदेवाः का अध्यक्ष कहा गया है। 'विश्वेदेवाः' अग्नि तथा श्राद्ध देवता का भी नाम है और इस नाम का एक राक्षस भी हुआ है, पर प्राय: विश्वेदेवा: उन सभी नौ या दस देवताओं के समूह के लिए आता है जिनके नाम वेद, संहिता तथा अग्निपुराण आदि में दिए गए हैं। भागवत में इन्हें धर्म ऋषि तथा (दक्षकन्या), विश्वा के पुत्र बताया है और इनके नाम दक्ष, व्रतु, वसु, काम, सत्य, काल, रोचक, आद्रव, पुरुरवा तथा कुरज दिए हैं। इन सबों ने राजा मरुत के यज्ञ में सभासदों का काम किया था। वर्तमान मन्वन्तर में सात ही विश्वेदेव मान गए हैं और मार्कण्डेय पुराण के अनुसार विश्वामित्र के तिरस्कार करने के कारण इन्हें द्रौपदी के गर्भ से उनके पाँच पुत्रों के रूप में जन्म लेना और अश्वत्थामा के हाथों मरना पड़ा था। ऋग्वेद के कुछ सूक्तों में विश्वेदेवा की स्तुति की गई है और शुक्ल यजुर्वेद में इन्हें गणदेवता के रूप में माना गया है। वेद संहिता में इनकी सख्या केवल नौ है और इन्हें इंद्र, अग्नि आदि से कुछ निम्न श्रेणी का माना है। ये मानवों के रक्षक तथा सत्कर्मों के पुरस्कारदाता कहे जाते हैं और ऋक्संहिता के एक मंत्र में इन्हें विश्व के अधिपति की उपाधि दी गई है। श्रेणी:हिन्दू देवता.

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खाटूश्यामजी

श्री खाटू श्याम जी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जहाँ पर बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। .

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गीतरामायणम्

गीतरामायणम् (२०११), शब्दार्थ: गीतों में रामायण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००९ और २०१० ई में रचित गीतकाव्य शैली का एक संस्कृत महाकाव्य है। इसमें संस्कृत के १००८ गीत हैं जो कि सात कांडों में विभाजित हैं - प्रत्येक कांड एक अथवा अधिक सर्गों में पुनः विभाजित है। कुल मिलाकर काव्य में २८ सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग में ३६-३६ गीत हैं। इस महाकाव्य के गीत भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गीतों की ढाल, लय, धुन अथवा राग पर आधारित हैं। प्रत्येक गीत रामायण के एक या एकाधिक पात्र अथवा कवि द्वारा गाया गया है। गीत एकालाप और संवादों के माध्यम से क्रमानुसार रामायण की कथा सुनाते हैं। गीतों के बीच में कुछ संस्कृत छंद हैं, जो कथा को आगे ले जाते हैं। काव्य की एक प्रतिलिपि कवि की हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन संस्कृत कवि अभिराज राजेंद्र मिश्र द्वारा जनवरी १४, २०११ को मकर संक्रांति के दिन किया गया था। .

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कबन्ध

कबन्ध एक गन्धर्व था जो कि दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण राक्षस बन गया था। राम ने उसका वध करके राक्षस योनि से उसका उद्धार किया। श्रेणी:रामायण के पात्र एक अन्य कथा के अनुसार यह "श्री" नामक अप्सरा का पुत्र था और "विश्वावसु "नाम का गंधर्व था | यह अत्यंत सुंदर बलशाली तथा इच्छा के अनुसार रूप धारण करने वाला था एक बार इसने बड़ा भयंकर रूप धारण करके स्थूलशिरा नामक ऋषि को बहुत परेशान किया तब उन्होंने इसे शाप दे दिया कि तू इसी रूप में बना रहे यह बड़ा दारुण शाप था, इसके बाद एक बार इंद्र ने इस पर वज्र का प्रहार किया जिससे इसका सिर पेट में घुस गया केवल कबंध अर्थात धड़ ही शेष रहा जिसके कारण इसका नाम कबन्ध पड़ा || साभार आचार्य गोपाल कृष्ण - रामकथा प्रवक्ता.

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किरातार्जुनीयम्

अर्जुन शिव को पहचान जाते हैं और नतमस्तक हो जाते हैं। (राजा रवि वर्मा द्वारा१९वीं शती में चित्रित) किरातार्जुनीयम् महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. में रचित महाकाव्य है जिसे संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की 'वृहत्त्रयी' में स्थान प्राप्त है। महाभारत में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत है किन्तु यह मुख्यतः वीर रस प्रधान रचना है। संस्कृत के छ: प्रसिद्ध महाकाव्य हैं – बृहत्त्रयी और लघुत्रयी। किरातार्जनुयीयम्‌ (भारवि), शिशुपालवधम्‌ (माघ) और नैषधीयचरितम्‌ (श्रीहर्ष)– बृहत्त्रयी कहलाते हैं। कुमारसम्भवम्‌, रघुवंशम् और मेघदूतम् (तीनों कालिदास द्वारा रचित) - लघुत्रयी कहलाते हैं। किरातार्जुनीयम्‌ भारवि की एकमात्र उपलब्ध कृति है, जिसने एक सांगोपांग महाकाव्य का मार्ग प्रशस्त किया। माघ-जैसे कवियों ने उसी का अनुगमन करते हुए संस्कृत साहित्य भण्डार को इस विधा से समृद्ध किया और इसे नई ऊँचाई प्रदान की। कालिदास की लघुत्रयी और अश्वघोष के बुद्धचरितम्‌ में महाकाव्य की जिस धारा का दर्शन होता है, अपने विशिष्ट गुणों के होते हुए भी उसमें वह विषदता और समग्रता नहीं है, जिसका सूत्रपात भारवि ने किया। संस्कृत में किरातार्जुनीयम्‌ की कम से कम 37 टीकाएँ हुई हैं, जिनमें मल्लिनाथ की टीका घंटापथ सर्वश्रेष्ठ है। सन 1912 में कार्ल कैप्पलर ने हारवर्ड ओरियेंटल सीरीज के अंतर्गत किरातार्जुनीयम् का जर्मन अनुवाद किया। अंग्रेजी में भी इसके भिन्न-भिन्न भागों के छ: से अधिक अनुवाद हो चुके हैं। .

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कंस

कृष्ण द्वारा कंस का वध किया गया कंस हिन्दू पौराणिक कथाएँ अनुसार यदुकुल के राजा था जिसकी राजधानी मथुरा थी। वह भगवान कृष्ण की मां देवकी का भाई है। कंस को प्रारंभिक स्रोतों में मानव और पुराणों में एक राक्षस के रूप में वर्णित किया गया है। कंस का जन्म राजा उग्रसेन और रानी पद्मावती के यहाँ हुआ था। हालांकि महत्वाकांक्षा से और अपने व्यक्तिगत विश्वासियों, बाणासुर और नरकासुर की सलाह पर, कंस ने अपने पिता को अपदस्थ किया और मथुरा के राजा के रूप में खुद को स्थापित किया। कंस ने मगध के राजा जरासन्ध की बेटियों अस्थी और प्रिप्ती से शादी करने का फैसला किया। एक दिन आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र उसे मार डालेगा। इसलिये उसने देवकी और उसके पति वसुदेव को कैद कर दिया और उनके शुरुआती छः बच्चों को मार डाला (सातवाँ बलराम भी बच गए)। हालांकि आठवें बेटे भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण को गोकुल ले जाया गया, जहां उन्हें ग्वाला के मुखिया नंदा की देखभाल में पाला गया था। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षसों को भेजा, जिनमें से सभी की कृष्ण द्वारा हत्या कर दी गई थी। अंत में, कृष्ण मथुरा पहुँचते हैं और अपने मामा कंस को मार डालते हैं। .

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कुवलयाश्व (अयोध्या के सूर्यवंशी राजा)

कुवलयाश्व, इक्ष्वाकुवंशीय राजा बृहदश्व के पुत्र। अपने पिता के आदेश से इन्होंने धुंधु नामक राक्षस का वध किया था। इसी से इनका दूसरा प्रसिद्ध नाम 'धुंधमार' भी है। इसके वध की कथा विस्तारपूर्वक हरिवंश पुराण में वर्णित है। इनके सौ पुत्र थे। श्रेणी:अयोध्या के सूर्यवंशी राजा.

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अरण्यकाण्ड

Rama Fights the Demons अरण्यकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। कुछ काल के पश्चात राम ने चित्रकूट से प्रयाण किया तथा वे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुँचे। अत्रि ने राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पातिव्रत धर्म के मर्म समझाये। वहाँ से फिर राम ने आगे प्रस्थान किया और शरभंग मुनि से भेंट की। शरभंग मुनि केवल राम के दर्शन की कामना से वहाँ निवास कर रहे थे अतः राम के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन किया। और आगे बढ़ने पर राम को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े जिनके विषय में मुनियों ने राम को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों को खा डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं। इस पर राम ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर देंगे। राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषियों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश किया जहाँ पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। राम ने पंचवटी को अपना निवास स्थान बनाया। सीता हरण (चित्रकार: रवि वर्मा) पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर राम से प्रणय निवेदन-किया। राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट लिये। शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला। शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा दे कर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच के हाथों मारा गया पर मरते मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर 'हा लक्ष्मण' का क्रन्दन किया जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को राम के पास भेज दिया। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने उसके पंख काटकर उसे अधमरा कर दिया। सीता को न पा कर राम अत्यंत दुखी हुये और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अंतिम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुँचे जहाँ पर कि उसके द्वारा दिये गये झूठे बेरों को उसके भक्ति के वश में होकर खाया| इस प्रकार राम सीता की खोज में सघन वन के अंदर आगे बढ़ते गये। .

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अरुन्धती (महाकाव्य)

अरुन्धती हिन्दी भाषा का एक महाकाव्य है, जिसकी रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) ने १९९४ में की थी। यह महाकाव्य १५ सर्गों और १२७९ पदों में विरचित है। महाकाव्य की कथावस्तु ऋषिदम्पती अरुन्धती और वसिष्ठ का जीवनचरित्र है, जोकि विविध हिन्दू धर्मग्रंथों में वर्णित है। महाकवि के अनुसार महाकाव्य की कथावस्तु का मानव की मनोवैज्ञानिक विकास परम्परा से घनिष्ठ सम्बन्ध है।रामभद्राचार्य १९९४, पृष्ठ iii—vi। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार, उत्तर प्रदेश द्वारा १९९९४ में किया गया था। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा द्वारा जुलाई ७, १९९४ के दिन किया गया था। .

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अष्टावक्र (महाकाव्य)

अष्टावक्र (२०१०) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) द्वारा २००९ में रचित एक हिन्दी महाकाव्य है। इस महाकाव्य में १०८-१०८ पदों के आठ सर्ग हैं और इस प्रकार कुल ८६४ पद हैं। महाकाव्य ऋषि अष्टावक्र की कथा प्रस्तुत करता है, जो कि रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों में उपलब्ध है। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया था। पुस्तक का विमोचन जनवरी १४, २०१० को कवि के षष्टिपूर्ति महोत्सव के दिन किया गया। इस काव्य के नायक अष्टावक्र अपने शरीर के आठों अंगों से विकलांग हैं। महाकाव्य अष्टावक्र ऋषि की संपूर्ण जीवन यात्रा को प्रस्तुत करता है जोकि संकट से प्रारम्भ होकर सफलता से होते हुए उनके उद्धार तक जाती है। महाकवि, जो स्वयं दो मास की अल्पायु से प्रज्ञाचक्षु हैं, के अनुसार इस महाकाव्य में विकलांगों की सार्वभौम समस्याओं के समाधानात्मक सूत्र प्रस्तुत किए गए हैं। उनके अनुसार महाकाव्य के आठ सर्ग विकलांगों की आठ मनोवृत्तियों के विश्लेषण मात्र हैं।रामभद्राचार्य २०१०, पृष्ठ क-ग। .

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असुर (आदिवासी)

असुर भारत में रहने वाली एक प्राचीन आदिवासी समुदाय है। असुर जनसंख्या का घनत्व मुख्यतः झारखण्ड और आंशिक रूप से पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में है। झारखंड में असुर मुख्य रूप से गुमला, लोहरदगा, पलामू और लातेहार जिलों में निवास करते हैं। समाजविज्ञानी के.

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अहिरावण

कृत्तिवास रामायण में अहिरावण विश्रवा ऋषि के पुत्र और रावण के भाई थे। वो राक्षस थे और गुप्त रूप से राम और उनके भाई लक्ष्मण को नरग-लोक में ले गये और वहाँ पर अपनी आराघ्य महामाया के लिए दोनो भाइयों की बलि देने को तैयार हो गये। लेकिन हनुमान ने अहिरावण और उनकी सेना को मारकर इनकी रक्षा की। .

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