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राइजोबियम

सूची राइजोबियम

राइजोबियम (Rhizobium) भूमि का जीवाणु (बैक्टिरिया) है जो नाइट्रोजन का यौगीकीकरण करता है। .

3 संबंधों: स्फूर घोलक जैव उर्वरक, सूक्ष्मजीव, जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर)

स्फूर घोलक जैव उर्वरक

फास्फोरस घोलक जीवाणु (Phosphate solubilizing bacteria (PSB)) एक उपयोगी जीवाणुओं (बैक्टीरिया) का समूह है जो जैविक तथा अजैविक फॉस्फोरस को जल-अपघटित (हाइड्रोलाइज) करने की क्षमता रखता है। .

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सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

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जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर)

नील-हरित कवक एक जैव-उर्वरक है। भूमि की उर्वरता को टिकाऊ बनाए रखते हुए सतत फसल उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रकृतिप्रदत्त जीवाणुओं को पहचानकर उनसे बिभिन्न प्रकार के पर्यावरण हितैषी उर्वरक तैयार किये हैं जिन्हे हम जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर) या 'जीवाणु खाद' कहते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है की जैव उर्वरक जीवित उर्वरक है जिनमे सूक्ष्मजीव विद्यमान होते है। फसलों में जैव उर्वरकों इस्तेमाल करने से वायुमण्डल में उपस्थित नत्रजन पौधो को (अमोनिया के रूप में) सुगमता से उपलब्ध होती है तथा भूमि में पहले से मौजूद अघुलनशील फास्फोरस आदि पोषक तत्व घुलनशील अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं। चूंकि जीवाणु प्राकृतिक हैं, इसलिए इनके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और पर्यावरण पर विपरीत असर नहीं पड़ता। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक है, विकल्प कतई नहीं है। रासायनिक उर्वरकों के पूरक के रूप में जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से हम बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते है। वास्तव में जैव उर्वरक विशेष सूक्ष्मजीवों एवं किसी नमी धारक पदार्थ के मिश्रण हैं। विशेष सूक्ष्म जीवों की निर्धारित मात्रा को किसी नमी धारक धूलीय पदार्थ (चारकोल, लिग्नाइट आदि) में मिलाकर जैव उर्वरक तैयार किये जाते हैं। यह प्रायः 'कल्चर' के नाम से बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में जैव उर्वरक एक प्राकृतिक उत्पाद है। इनका उपयोग विभिन्न फसलों में नत्रजन एवं स्फूर की आंशिक पूर्ति हेतु किया जा सकता है। इनके उपयोग का भूमि पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि ये भूमि के भौतिक व जैविक गुणों में सुधार कर उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं। जैविक खेती में जैव उर्वरकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जीवाणु खाद का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। हमारे खेत की एक ग्राम मिट्टी में लगभग दो-तीन अरब सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते हैं जिसमें मुख्यतः बैक्टिरीया, फफूंद, कवक, प्रोटोजोआ आदि होते हैं जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने व फसलोत्पादन की वृद्धि में अनेक कार्य करते हैं। .

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