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रवि वासवानी

सूची रवि वासवानी

रवि बासवानी (२९ सितम्बर १९४६ – २७ जुलाई २०१०) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। .

18 संबंधों: चल मेरे भाई, चश्मेबद्दूर (1981 फ़िल्म), नसीरुद्दीन शाह, प्यार तूने क्या किया (2001 फ़िल्म), पीछा करो (1988 फ़िल्म), फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार, मैं बलवान (1986 फ़िल्म), लाड़ला, लकी (2005 फ़िल्म), हिंदी चलचित्र, १९८० दशक, जब प्यार किसी से होता है (1998 फ़िल्म), ज़ेवर (1987 फ़िल्म), जान तेरे नाम, जाने भी दो यारों (1983 फ़िल्म), घर संसार (1986 फ़िल्म), कभी हाँ कभी ना (फ़िल्म), छोटा चेतन (1998 फ़िल्म), २०१० में निधन

चल मेरे भाई

चल मेरे भाई 2000 में बनी हिन्दी भाषा की डेविड धवन द्वारा निर्देशित फिल्म है। इसमें प्रमुख भूमिकाओं में संजय दत्त, सलमान खान और करिश्मा कपूर हैं। यह करिश्मा की चौथी लगातार फिल्म थी जिसमें उनके किरदार का नाम सपना था। .

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चश्मेबद्दूर (1981 फ़िल्म)

चश्मेबद्दूर 1981 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। .

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नसीरुद्दीन शाह

नसीरुद्दीन शाह हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। नसीरुद्दीन शाह, जिन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग में अदाकारी का एक पैमाना कहा जाए तो शायद ही किसी को एतराज हो। नसीर की काबिलियत का सबसे बड़ा सुबूत है, सिनेमा की दोनों धाराओं में उनकी कामयाबी। नसीर का नाम अगर पैरेलल सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हुआ तो बॉलीवुड की मुख्य धारा या व्यापारिक फ़िल्मों में भी उन्होंने बड़ी कामयाबी हासिल की है। नसीर अपने शानदार अंदाज से मुख्य धारा के चहेते सितारे बन गए, ऐसा सितारा जिसने हर तरह के किरदार को बेहतरीन अभिनय से जिंदा कर दिया। ये सितार जब भी स्क्रीन पर आया देखने वाले के दिल पर उस किरदार की यादगार छाप छोड़ गया। उसकी कॉमेडी ने पब्लिक को खूब गुदगुदाया तो एक्शन में भी उसका अलग ही अंदाज नजर आया। मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत 1980 में आई फ़िल्म 'हम पांच' से हुई। फ़िल्म भले ही व्यापारिक थी, लेकिन इसमें नसीर के अभिनय की गहराई समानांतर सिनेमा वाली फ़िल्मों से कम नहीं थी। गुलामी को अपनी तकदीर मान चुके एक गांव में विद्रोह की आवाज बुलंद करते नौजवान के किरदार में नसीर ने जान फूंक दी। हालांकि फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही और एक व्यापारिक एक्टर के तौर पर सफलता साबित करने के लिए नसीर को टिकट खिड़की पर भी बिकाऊ बनने की जरूरत थी। और उनके लिए ये काम किया 'जाने भी दो यारों' ने। बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट कॉमेडी फ़िल्मों में शुमार 'जाने भी दो यारों' में रवि वासवानी और नसीर की जोड़ी ने बेजोड़ कॉमिक टाइमिंग दिखाई और फ़िल्म बेहद कामयाब रही। लेकिन कमर्शियल सिनेमा में नसीर की सबसे बड़ी कामयाबी बनी 'मासूम'। बाप और बेटे के रिश्तों को उकेरती 'मासूम' में नसीर ने कमाल की अदाकारी से ना केवल खूब वाहवाही बटोरी बल्कि फ़िल्म भी सुपरहिट हुई और नसीर को एक स्टार का दर्जा मिल गया। नसीर के इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया 1986 में आई सुभाष घई की मल्टीस्टारर मेगाबजट फ़िल्म 'कर्मा' ने। फ़िल्म में नसीर के लिए अपनी छाप छोड़ना आसान नहीं था क्योंकि वहां अभिनय सम्राट "दिलीप कुमार भी थे। और उस दौर के नए नवेले सितारे जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर भी थे। 1987 में गुलजार की 'इजाजत' नसीर के लिए कामयाबी का एक और जरिया बन कर आई। एक जज्बाती कहानी, बेहतरीन निर्देशन, शानदार अभिनय और यादगार संगीत। 'इजाजत' ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की और बतौर व्यापारिक एक्टर नसीर का रुतबा और बढ़ गया। 'त्रिदेव' जैसी सुपरहिट फ़िल्म देकर, 90 का दशक आते-आते नसीर ने व्यापारिक फ़िल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना ली थी। 2003 में आई हॉलीवुड फ़िल्म 'द लीग ऑफ एक्सट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमेन' में नसीरुद्दीन ने कैप्टन नीमो का किरदार निभाया तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी फ़िल्म 'खुदा के लिए' में भी उन्होंने शानदार काम किया। देश से लेकर परदेस तक, नसीरुद्दीन शाह ने अपनी अदाकारी का लोहा सारी दुनिया में मनवाया है। लेकिन नसीर अपनी काबिलियत को खुशकिस्मती का नाम देते हैं। वो कहते हैं, 'मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मुझे इतने मौके मिले, लेकिन मैं व्यापारिक फ़िल्मों से अभी संतुष्ट नहीं हूँ।' 2008 में आई 'अ वेडनेसडे' ने नसीर की कमाल की अदाकारी का एक और नजराना पेश किया तो 'इश्किया', 'राजनीति', 'सात खून माफ' और 'डर्टी पिक्चर' जैसी फ़िल्मों के जरिए नसीरुद्दीन ने बार-बार ये साबित किया कि एक सच्चे कलाकार को उम्र बांध नहीं सकती। हाल ही में रिलीज हुई फ़िल्म 'मैक्सिमम' में भी नसीर की जोरदार एक्टिंग ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है। आज के नसीरुद्दीन शाह की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई रोल है जो उनपर फिट नहीं बैठे। आखिर वो एक्टर ही ऐसे हैं कि हर रोल के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। लेकिन एक समय था जब नसीर को दो रोल करने की इच्छा थी जो उस समय उन्हें नहीं मिले। लेकिन बाद 'मिर्जा गालिब', दूरदर्शन धारावाहिक में उन्हें दो रोल मिले जिसमें उन्होंने ग़ालिब का वास्तविक चित्र उभारने की कोशिश की। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि गालिब बनने की नसीर की तमन्ना उनके दिल में एक अधूरे ख्वाब की तरह अटकी हुई थी। 1988 में सीरियल बनाने से सालों पहले गुलजार साहब गालिब पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उस फ़िल्म में गालिब के तौर पर उनकी दिली इच्छा संजीव कुमार को लेने की थी। नसीर साहब ने इस बारे में बताते हुए कहा, 'मैंने गुलजार भाई को चिठ्ठी लिखी और अपनी फोटोग्राफ्स भेजी, मैंने लिखा कि ये क्या कर रहे हैं, इस फ़िल्म में आपको मुझे लेना चाहिए।' लेकिन संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ गया था और सेहत उनका साथ नहीं दे रही थी। फिर उसके बाद गुलजार साहब के दिल में उस रोल के लिए अमिताभ के नाम का खयाल आया। लेकिन वहां भी बात नहीं बनी और आखिरकार गालिब पर फ़िल्म बनाने का प्लान ही ठंडे बस्ते में पड़ गया। शायद उस वक्त गुलजार को भी नहीं मालूम होगा कि इस किरदार पर तो तकदीर ने किसी और का नाम लिख दिया है। कई साल बाद गुलजार साहब ने एक दिन नसीर को फोन लगाया। नसीर ने बताया, 'एक दिन मुझे गुलजार भाई का फोन आया कि सीरियल में काम करोगे। मैंने पूछा कौन सा सीरियल तो उन्होंने बताया गालिब पर है। मैंने बिना कुछ सोचे फौरन हां कह दिया।' साल 1982 में 'गांधी' के रिलीज होने के अट्ठारह साल बाद कमल हासन ने 'हे राम' बनाई, जिसने नसीर साहब की गांधी बनने की तमन्ना को भी पूरा कर दिया। सधी हुई अदाकरी और बेजोड़ अंदाज से उन्होंने ना केवल गांधी के किरदार में जान डाल दी। बेजोड़ एक्टिंग और गजब की क्षमता से हर तरह के किरदार निभाने वाले नसीर ने अपनी छाप नकारात्मक भूमिकाओं में भी छोड़ी। समानांतर सिनेमा का ये हीरो कमर्शियल फ़िल्मों में एक ख़तरनाक विलेन के तौर पर भी हमेशा याद किया जाता रहेगा। हिन्दी सिनेमा में विलेन का ये नया चेहरा था, खूंखार और अजीबोगरीब शक्ल वाला कोई गुंडा नहीं बल्कि सोफेस्टिकेटेड इंसान जिसके दिमाग में सिर्फ जहर ही जहर था। विलेन का ये किरदार जितना संजीदा था उससे भी ज्यादा संजीदगी से उसे निभाया था नसीरुद्दीन शाह ने। वैसे खलनायक के तौर पर उनकी एक दो फ़िल्में नहीं थीं। 'मोहरा' में उन्होंने दिखाया विलेन का वो चेहरा जो किसी के भी दिल में खौफ पैदा कर सकता है। अंधा होने का नाटक करने वाला एक शिकारी, लेकिन ये नसीर की असली पहचान नहीं थी। नसीर की असली पहचान समानांतर सिनेमा था। सिनेमा की वो धारा जिसमें एक स्टार के लिए कम और एक्टर के लिए गुंजाइश ज्यादा होती है। और ये बात किसी से छुपी नहीं कि नसीर एक एक्टर पहले और स्टार बाद में हैं। समानांतर सिनेमा के इस सितारे ने स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, अमरीश पुरी और ओम पुरी जैसे माहिर कलाकारों के साथ मिलकर आर्ट फ़िल्मों को एक नई पहचान दी। 'निशान्त' जैसी सेंसेटिव फ़िल्म से अभिनय का सफर शुरू करने वाले नसीर ने 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'भवनी भवाई', 'अर्धसत्य', 'मंडी' और 'चक्र' जैसी फ़िल्मों में अभिनय की नई मिसाल पेश कर दी। .

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प्यार तूने क्या किया (2001 फ़िल्म)

प्यार तूने क्या किया 2001 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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पीछा करो (1988 फ़िल्म)

पीछा करो 1988 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। .

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फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार

फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार .

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मैं बलवान (1986 फ़िल्म)

मैं बलवान 1986 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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लाड़ला

लाड़ला 1994 की राज कँवर द्वारा निर्देशित हिन्दी भाषा की फिल्म है। फिल्म में प्रमुख भूमिकाओं को श्रीदेवी और अनिल कपूर द्वारा चित्रित किया गया है। रवीना टंडन, फरीदा ज़लाल, शक्ति कपूर, अरुणा ईरानी, आलोक नाथ, मोहनीश बहल और प्रेम चोपड़ा सहायक भूमिका निभाने वालों में शामिल हैं। शुरुआत में फिल्म में दिव्या भारती को प्रमुख महिला किरदार के लिये चुना गया था और उन्होंने अधिकांश फिल्म को पूरा भी कर दिया था। हालांकि 1993 में उनकी असामयिक मौत के कारण, किरदार को श्रीदेवी द्वारा निभाया गया। .

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लकी (2005 फ़िल्म)

लकी 2005 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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हिंदी चलचित्र, १९८० दशक

1980 के दशक के हिंदी चलचित्र: .

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जब प्यार किसी से होता है (1998 फ़िल्म)

जब प्यार किसी से होता है 1998 में बनी हिन्दी भाषा की प्रेमकहानी फ़िल्म है। फ़िल्म दीपक सरीन द्वारा निर्देशित और हनी ईरानी द्वारा लिखी गई है। फिल्म में सलमान खान को लड़कीबाज़ के रूप में दिखाया गया है और ट्विंकल खन्ना उसके पहले असली प्यार के रूप में चित्रित किया गया है। आदित्य नारायण सलमान के पहले अज्ञात बेटे का किरदार निभाते हैं। .

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ज़ेवर (1987 फ़िल्म)

ज़ेवर 1987 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। .

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जान तेरे नाम

जान तेरे नाम 1992 की हिन्दी भाषा की प्रेमकहानी फ़िल्म है जो दीपक बलराज विज द्वारा निर्देशित है और जिमी निरुला द्वारा निर्मित है। इसमें मुख्य भूमिकाओं में रॉनित रॉय और फरहीन है। यह फिल्म रोनित रॉय और फरहीन की पहली फिल्म थी। फिल्म अपने गीतों के लिए व्यापक रूप से लोकप्रिय थी और नदीम-श्रवण के मधुर गीतों को अब भी याद किया जाता है। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई की थी। .

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जाने भी दो यारों (1983 फ़िल्म)

जाने भी दो यारों १९८३ में बनी हिन्दी भाषा की व्यंगात्मक तथा हास्य फ़िल्म है। .

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घर संसार (1986 फ़िल्म)

घर संसार 1986 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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कभी हाँ कभी ना (फ़िल्म)

कभी हाँ कभी ना 1994 की कुंदन शाह द्वारा निर्देशित हिन्दी भाषा की हास्य फिल्म है। शाहरुख खान, सुचित्रा कृष्णमूर्ति और दीपक तिजोरी मुख्य अभिनेता हैं। इसे व्यापक रूप से शाहरुख खान के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में से एक माना जाता है। शाहरुख खान ने अपने बैनर रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट के तहत फिल्म के अधिकार खरीदे हैं। .

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छोटा चेतन (1998 फ़िल्म)

छोटा चेतन 1998 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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२०१० में निधन

निम्नलिखित सूची २०१० में निधन हो गये लोगों की है। यहाँ पर सभी दिनांक के क्रमानुसार हैं और एक दिन की दो या अधिक प्रविष्टियाँ होने पर उनके मूल नाम को वर्णक्रमानुसार में दिया गया है। यहाँ लिखने का अनुक्रम निम्न है.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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