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योगी

सूची योगी

योग को जानने वाला या योग का अभ्यास करने वाला योगी कहलाता है। .

30 संबंधों: तिरुवन्नमलई, त्रैलंग स्वामी, देवरहा बाबा, पंचानन भट्टाचार्य, फ़रीदुद्दीन गंजशकर, फ़क़ीर, भारत भूषण (योगी), भारतीय कवियों की सूची, महाश्रमण, मिलारेपा, मोहनानन्द ब्रह्मचारी, युवान शंकर राजा, योगिनी, योगेश्वर, योगेश्वरी, शिरडी के सांई बाबा, शिव, श्रमण परम्परा, सन्त चरणदास, सहज, संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची, सुदर्शनाचार्य, स्वामी सोमदेव, सूर्य देवता, जग्गी वासुदेव, वागीश शास्त्री, गोरखपुर, आचार्य महाप्रज्ञ, आध्यात्मिकता, आलार कालाम

तिरुवन्नमलई

भारत के तमिलनाडु राज्य स्थित तिरुवन्नमलई जिले में बसा तिरुवन्नमलई एक तीर्थ शहर और नगरपालिका है। यह तिरुवन्नमलई जिले का मुख्यालय भी है। अन्नमलईयर मंदिर इसी तिरुवन्नमलई में बसा हुआ है, जो कि अन्नमलई पहाड़ की तराई में स्थित है और यह मंदिर तमिलनाडु में भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। लम्बे समय से तिरुवन्नमलई कई योगियों और सिद्धों से जुड़ा रहा है, और सबसे हाल के समय की बात करें तो अरुणाचल की पहाड़ियां, जहां 20वीं सदी के गुरु रमण महर्षि रहते थे, वह एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में चर्चित हो चुका है। .

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त्रैलंग स्वामी

त्रैलंग स्वामी (जिन्हें गणपति सरस्वती भी कहते हैं) (ज्ञात १५२९ ई. या १६०७ -१८८७) एक हिन्दू योगी थे, जो अपने आध्यात्मिक शक्तियों के लिये प्रसिद्ध हुए। ये वाराणसी में निवास करते थे। इनकी बंगाल में भी बड़ी मान्यता है, जहां ये अपनी यौगिक अएवं आध्यात्मिक शक्तियों एवं लंबी आयु के लिये प्रसिद्ध रहे हैं। कुछ ज्ञात तथ्यों के अनुसार त्रैलंग स्वामी की आयु लगभग ३०० वर्ष रही थी, जिसमें ये वाराणसी में १७३७-१८८७ तक रहे। इन्हें भगवान शिव का एवं रामकृष्ण का अवतार माना जाता है। साथ ही इन्हें वाराणसी के चलते फिरते शिव की उपाधि भी दी गई है। .

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देवरहा बाबा

देवरहा बाबा, भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे। .

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पंचानन भट्टाचार्य

पंचानन भट्टाचार्य' (1853–1919) भारत के एक योगी थे। वे लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। लाहिड़ी महाशय ने उनको ही सबसे पहले क्रिया योग की शिक्षा देने के लिये अधिकृत किया था। उन्होने आर्य मिशन नामक सम्स्था बनाकर लाहिड़ी महाशय की शिक्षाओं का बंगाल में प्रचार-प्रसार किया। .

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फ़रीदुद्दीन गंजशकर

बाबा फरीद (1173-1266), हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर (उर्दू: حضرت بابا فرید الدین مسعود گنج شکر) भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र के एक सूफी संत थे। आप एक उच्चकोटि के पंजाबी कवि भी थे। सिख गुरुओं ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया। वर्तमान समय में भारत के पंजाब प्रांत में स्थित फरीदकोट शहर का नाम बाबा फरीद पर ही रखा गया था। बाबा फरीद का मज़ार पाकपट्टन शरीफ (पाकिस्तान) में है। बाबा फरीद का जन्म ११७3 ई. में लगभग पंजाब में हुआ। उनका वंशगत संबंध काबुल के बादशाह फर्रुखशाह से था। १८ वर्ष की अवस्था में वे मुल्तान पहुंचे और वहीं ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के संपर्क में आए और चिश्ती सिलसिले में दीक्षा प्राप्त की। गुरु के साथ ही मुल्तान से देहली पहुँचे और ईश्वर के ध्यान में समय व्यतीत करने लगे। देहली में शिक्षा दीक्षा पूरी करने के उपरांत बाबा फरीद ने १९-२० वर्ष तक हिसार जिले के हाँसी नामक कस्बे में निवास किया। शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मृत्यु के उपरांत उनके खलीफा नियुक्त हुए किंतु राजधानी का जीवन उनके शांत स्वभाव के अनुकूल न था अत: कुछ ही दिनों के पश्चात् वे पहले हाँसी, फिर खोतवाल और तदनंतर दीपालपुर से कोई २८ मील दक्षिण पश्चिम की ओर एकांत स्थान अजोधन (पाक पटन) में निवास करने लगे। अपने जीवन के अंत तक वे यहीं रहे। अजोधन में निर्मित फरीद की समाधि हिंदुस्तान और खुरासान का पवित्र तीर्थस्थल है। यहाँ मुहर्रम की ५ तारीख को उनकी मृत्यु तिथि की स्मृति में एक मेला लगता है। वर्धा जिले में भी एक पहाड़ी जगह गिरड पर उनके नाम पर मेला लगता है। वे योगियों के संपर्क में भी आए और संभवत: उनसे स्थानीय भाषा में विचारों का आदान प्रदान होता था। कहा जाता है कि बाबा ने अपने चेलों के लिए हिंदी में जिक्र (जाप) का भी अनुवाद किया। सियरुल औलिया के लेखक अमीर खुर्द ने बाबा द्वारा रचित मुल्तानी भाषा के एक दोहे का भी उल्लेख किया है। गुरु ग्रंथ साहब में शेख फरीद के ११२ 'सलोक' उद्धृत हैं। यद्यपि विषय वही है जिनपर बाबा प्राय: वार्तालाप किया करते थे, तथापि वे बाबा फरीद के किसी चेले की, जो बाबा नानक के संपर्क में आया, रचना ज्ञात होते हैं। इसी प्रकार फवाउबुस्सालेकीन, अस्रारुख औलिया एवं राहतुल कूल्ब नामक ग्रंथ भी बाबा फरीद की रचना नहीं हैं। बाबा फरीद के शिष्यों में निजामुद्दीन औलिया को अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वास्तव में बाबा फरीद के आध्यात्मिक एवं नैतिक प्रभाव के कारण उनके समकालीनों को इस्लाम के समझाने में बड़ी सुविधा हुई। उनका देहावसान १२६५ ई. में हुआ। .

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फ़क़ीर

हिन्दू धर्म में एक फकीर योगी का चित्र। नुकीली शर-शय्या पर आराम से लेटे हुए इस योगी का चित्र बनारस में बहुत पहले सन १९०७ में लिया गया था। फकीर (अंग्रेजी: Fakir, अरबी: فقیر‎) अरबी भाषा के शब्द फक़्र (فقر‎) से बना है जिसका अर्थ होता गरीब। इस्लाम में सूफी सन्तों को इसीलिये फकीर कहा जाता था क्योंकि वे गरीबी और कष्टपूर्ण जीवन जीते हुए दरवेश के रूप में आम लोगों की बेहतरी की दुआ माँगने और उसके माध्यम से इस्लाम पन्थ के प्रचार करने का कार्य मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में किया करते थे। आगे चलकर यह शब्द उर्दू, बाँग्ला और हिन्दी भाषा में भी प्रचलन में आ गया और इसका शाब्दिक अर्थ भिक्षुक या भीख माँगकर गुजारा करने वाला हो गया। जिस प्रकार हिन्दुओं में स्वामी, योगी व बौद्धों में बौद्ध भिक्खु को सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी उसी प्रकार मुसलमानों में भी फकीरों को वही दर्ज़ा दिया जाने लगा। यही नहीं, इतिहासकारों ने भी यूनानी सभ्यता की तर्ज़ पर ईसा पश्चात चौथी शताब्दी के नागा लोगों एवं मुगल काल के फकीरों को एक समान दर्ज़ा दिया है। हिन्दुस्तान में फकीरों की मुस्लिम बिरादरी में अच्छी खासी संख्या है। .

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भारत भूषण (योगी)

भारत भूषण (योगी) (अंग्रेजी: Bharat Bhushan (Yogi), जन्म: 30 अप्रैल 1952) एक भारतीय योग शिक्षक हैं। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए उन्होंने पूर्णत: सन्यस्त भाव से देश-विदेश में योग को प्रचारित और प्रसारित करने का उल्लेखनीय कार्य किया। भारत सरकार ने सन १९९१ में उन्हें पद्म श्री की उपाधि से अलंकृत किया। योग एवं शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रपति से पद्म श्री सम्मान प्राप्त करने वाले वे प्रथम भारतीय हैं। योग के साथ-साथ बॉडी बिल्डिंग में भी उन्हें भारतश्री का अतिविशिष्ट सम्मान मिल चुका है। उनका ऐसा मानना है कि योग में ही समस्त मनुष्य जाति की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का एकमात्र समाधान निहित है। .

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भारतीय कवियों की सूची

इस सूची में उन कवियों के नाम सम्मिलित किये गये हैं जो.

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महाश्रमण

आचार्य महाश्रमण (जन्म 13 मई 1962) जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्याहरवें संत अथवा आचार्य हैं। महाश्रमण पुज्य संत, योगी, आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक, लेखक, वक्ता और कवि हैं। .

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मिलारेपा

मिलारेपा (तिब्बती: རྗེ་བཙུན་མི་ལ་རས་པ, Wylie: rje btsun mi la ras pa) (1052 ई. – 1135 ई.) तिब्बत के सबसे प्रसिद्ध योगियों तथा कवियों में से एक थे। .

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मोहनानन्द ब्रह्मचारी

मोहनानन्द ब्रह्मचारी (17 दिसम्बर 1903 – 29 अगस्त 1999) भारत के एक योगी एवं गुरु थे। वे राम निवास ब्रह्मचर्य आश्रम के द्वितीय महन्त थे। Ashram.

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युवान शंकर राजा

युवान शंकर राजा (யுவன் சங்கர் ராஜா; जन्म 31 अगस्त 1979) एक भारतीय फ़िल्म स्वर-लिपि और साउंडट्रैक संगीतकार, गायक और अनियत गीतकार हैं। उन्होंने मुख्य रूप से कॉलीवुड की तमिल फ़िल्मों और साथ ही साथ, तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों के लिए भी संगीत दिया है। 1997 के दौरान, 16 साल की उम्र में, उनके संगीत कॅरियर की शुरूआत हुई, जब उन्होंने फ़िल्म अरविंदन के लिए स्वर-लिपि तैयार की। बाद में उन्होंने अनेक दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के लिए संगीत रचा, जिसमें धीना, मन्मदन, पारुथिवीरन, बिल्ला और आडवारी माटलकु अर्थालु वेरूले जैसी अत्यधिक सफल और साथ ही कादल कोंडेन, 7G रेनबो कॉलोनी, पुदुपेटई, चेन्नई 600028 और कट्रादु तमिल जैसी आलोचनात्मक रूप से प्रशंसित फ़िल्में शामिल हैं। छह वर्षों के भीतर ही, युवान शंकर राजा ने स्वयं को तमिल सिनेमा के अग्रणी संगीतकार के रूप में स्थापित कर लिया। 13 वर्ष की अवधि में युवान शंकर राजा ने 75 से भी अधिक फ़िल्मों के लिए संगीत दिया। सर्वतोमुखी प्रतिभावान संगीतकार माने गए युवान, अक्सर अलग, नवोन्मेषी और स्टाइलिश संगीत देने का प्रयास करते हैं और इन्होंने लोकसंगीत से लेकर हेवी मेटल जैसी व्यापक विभिन्न शैलियों के तत्वों का उपयोग किया है। वे विशेष रूप से अपनी रचनाओं में पश्चिमी संगीत के तत्वों के उपयोग के लिए विख्यात हैं और अक्सर उन्हें तमिल फ़िल्म और संगीत उद्योग में हिप हॉप और तमिलनाडु में "रीमिक्स युग" की शुरूआत करने का श्रेय दिया जाता है। युवा पीढ़ी के बीच बेहद लोकप्रिय होने के नाते, उन्हें प्रायः "तमिल फ़िल्म संगीत का युवा प्रतीक" कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, युवान शंकर राजा फ़िल्मों में पार्श्व संगीत के लिए अलग पहचान रखते हैं, जिसके लिए उन्हें आलोचकों की भारी प्रशंसा हासिल हुई है। 2004 में उन्होंने 25 साल की उम्र में ही 7G रेनबो कॉलोनी के संगीत के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता और सबसे कम उम्र के पुरस्कार विजेता बने। इसके अलावा, 2006 में दो फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार नामांकन, एक तमिलनाडु राज्य फ़िल्म पुरस्कार और 2006 में ही राम के लिए साइप्रस अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह पुरस्कार हासिल किया और इस पुरस्कार को जीतने वाले एकमात्र भारतीय संगीतकार बने। .

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योगिनी

योगाभ्यास करने वाली स्त्री को योगिनी या योगिन कहा जाता है। पुरुषों के लिए इसका समानांतर योगी है। .

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योगेश्वर

योगेश्वरजी (१५ अगस्त १९२१ - १८ मार्च १९८४) बीसवीं सदी में गुजरात में उत्पन्न संत, योगी, दार्शनिक और साहित्यकार थे। हिमालय में जाकर कड़ी तपस्या करने के बाद समाज को आध्यात्म के मार्ग पर चलने के लिए उन्होंने मार्गदर्शन दिया। .

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योगेश्वरी

अम्बाजोगाई स्थित योगेश्वरी (अम्बा) मन्दिर का प्रवेशद्वार योगेश्वरी का अर्थ दुर्गा होता है। योगीजन इसकी उपासना करते हैं। योगेश्वरी देवी का वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है। दुष्टों के संहार के लिये अत्यंत तीक्ष्ण खड्ग उसके हाथ में रहता है और रुद्राक्ष की माला वह धारण करती है। उनकी जिह्वा लंबी है, तीक्ष्ण दाढ़ है, भयंकर मुख है, केश उनके ऊपर को उठे हुए हैं। कंठ में वह नरकपाल और अस्थियों की माला पहनती हैं। उनके वाम हस्त में रक्त और मांस से भरा हुआ खप्पर है और दक्षिण हस्त में वह बर्छी धारण किए हैं। उनके तीन नेत्र हैं। उनका उदर अंदर को घुसा हुआ है। श्रेणी:हिन्दू देवी देवता.

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शिरडी के सांई बाबा

साईंबाबा (जन्म: 1838, मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८) जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर थे जिन्हें उनके भक्तों द्वारा संत कहा जाता है। वह मुस्लिम परिवार से थे। जब उन्हें उनके पूर्व जीवन के सन्दर्भ में पुछा जाता था तो टाल-मटोल उत्तर दिया करते थे। साईं शब्द उन्हें भारत के पश्चिमी भाग में स्थित प्रांत महाराष्ट्र के शिरडी नामक कस्बे में पहुंचने के बाद मिला था .

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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श्रमण परम्परा

श्रमण परम्परा भारत में प्राचीन काल से जैन, बौद्ध तथा कुछ अन्य पन्थों में पायी जाती है। जैन भिक्षु या जैन साधु को श्रमण कहते हैं, जो पूर्णत: हिंसादि का प्रत्याख्यान करता और सर्वविरत कहलाता है। श्रमण को पाँच महाव्रतों - सर्वप्राणपात, सर्वमृष्षावाद, सर्वअदत्तादान, सर्वमैथुन और सर्वपरिग्रह विरमण को तन, मन तथा कार्य से पालन करना पड़ता है। .

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सन्त चरणदास

चरणदास की प्रतिमा (चरणदास मंदिर, पुरानी दिल्ली) सन्त चरणदास (१७०६ - १७८५) भारत के योगाचार्यों की श्रृंखला में सबसे अर्वाचीन योगी के रूप में जाने जाते है। आपने 'चरणदासी सम्प्रदाय' की स्थापना की। इन्होने समन्वयात्मक दृष्टि रखते हुए योगसाधना को विशेष महत्व दिया। .

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सहज

सहज का शाब्दिक अर्थ है - 'एक साथ उत्पन्न' या 'बिना परिश्रम के प्राकृतिक रूप से उत्पन्न' है यह शब्द भारतीय तथा तिब्बती बौद्ध दर्शन में महत्वपूर्ण है। 'सहज' दर्शन का आरम्भ ८वीं शताब्दी में बंगाल में हुआ। यह 'सहजिया सिद्ध नामक बौद्ध योगियों में प्रचलित था। .

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संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची

यह संस्कृत मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची है। इनमें से कई शब्द सीधे संस्कृत से नहीं आये बल्कि ग्रीक, लैटिन, फारसी आदि से होते हुए आये हैं। इस यात्रा में कुछ शब्दों के अर्थ भी थोड़े-बहुत बदल गये हैं। .

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सुदर्शनाचार्य

जगद्गुरु सुदर्शनाचार्य (जन्म: 27 मई 1937, मृत्यु: 22 मई 2007) श्री रामानुजाचार्य द्वारा स्थापित वैष्णव सम्प्रदाय के एक प्रख्यात हिन्दू सन्त थे जिन्हें तपोबल से असंख्य सिद्धियाँ प्राप्त थीं। राजस्थान प्रान्त में सवाई माधोपुर जिले के पाड़ला ग्राम में एक ब्राह्मण जाति के कृषक परिवार में शिवदयाल शर्मा के नाम से जन्मे इस बालक को मात्र साढ़े तीन वर्ष की आयु में ही धर्म के साथ कर्तव्य का वोध हो गया था। बचपन से ही धार्मिक रुचि जागृत होने के कारण उन्होंने सात वर्ष की आयु में ही मानव सेवा का सर्वोत्कृष्ट धर्म अपना लिया था। वेद, पुराण व दर्शनशास्त्र का गम्भीर अध्ययन करने के उपरान्त उन्होंने बारह वर्ष तक लगातार तपस्या की और भूत, भविष्य व वर्तमान को ध्यान योग के माध्यम से जानने की अतीन्द्रिय शक्ति प्राप्त की। उन्होंने फरीदाबाद के निकट बढकल सूरजकुण्ड रोड पर 1990 में सिद्धदाता आश्रम की स्थापना की जो आजकल एक विख्यात सिद्धपीठ का रूप धारण कर चुका है। 1998 में हरिद्वार के महाकुम्भ में सभी सन्त महात्मा एकत्र हुए और सभी ने एकमत होकर उन्हें जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की। आश्रम में उनके द्वारा स्थापित धूना आज भी उनकी तपश्चर्या के प्रभाव से अनवरत उसी प्रकार सुलगता रहता है जैसा उनके जीवित रहते सुलगता था। सुदर्शनाचार्य तो अब ब्रह्मलीन (दिवंगत) हो गये परन्तु भक्तों के दर्शनार्थ उनकी चरणपादुकायें (खड़ाऊँ) उनकी समाधि के समीप स्थापित कर दी गयी हैं। सिद्धदाता आश्रम में आज भी उनके भक्तों का मेला लगा रहता है। यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय का हो, बिना किसी भेदभाव के प्रवेश की अनुमति है। वर्तमान में स्वामी पुरुषोत्तम आचार्य यहाँ आने वाले श्रद्धालु भक्तों की समस्या सुनते हैं और सिद्धपीठ की आज्ञानुसार उसका समाधान सुझाते हैं। यह आश्रम आजकल देश विदेश से आने वाले लाखों लोगों के लिये एक तीर्थस्थल बन चुका है। .

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स्वामी सोमदेव

स्वामी सोमदेव आर्य समाज के एक विद्वान धर्मोपदेशक थे। ब्रिटिश राज के दौरान पंजाब प्रान्त के लाहौर शहर में जन्मे सोमदेव का वास्तविक नाम ब्रजलाल चोपड़ा था। सन १९१५ में जिन दिनों वे स्वास्थ्य लाभ के लिये आर्य समाज शाहजहाँपुर आये थे उन्हीं दिनों समाज की ओर से राम प्रसाद 'बिस्मिल' को उनकी सेवा-सुश्रूषा में नियुक्त किया गया था। किशोरावस्था में स्वामी सोमदेव की सत्संगति पाकर बालक रामप्रसाद आगे चलकर 'बिस्मिल' जैसा बेजोड़ क्रान्तिकारी बन सका। रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में मेरे गुरुदेव शीर्षक से उनकी संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित जीवनी लिखी है। सोमदेव जी उच्चकोटि के वक्‍ता तो थे ही, बहुत अच्छे लेखक भी थे। उनके लिखे हुए कुछ लेख तथा पुस्तकें उनके ही एक भक्‍त के पास थीं जो उसकी लापरवाही से नष्‍ट हो गयीं। उनके कुछ लेख प्रकाशित भी हुए थे। लगभग 57 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। .

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सूर्य देवता

कोई विवरण नहीं।

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जग्गी वासुदेव

जग्गी वासुदेव (जन्म: 5 सितम्बर, 1957) एक योगी, सद्गुरु और दिव्‍यदर्शी हैं। उनको 'सद्गुरु' भी कहा जाता है। वह ईशा फाउंडेशन (अंग्रेजी: Isha Foundation) नामक लाभरहित मानव सेवी संस्‍थान के संस्थापक हैं। ईशा फाउंडेशन भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में योग कार्यक्रम सिखाता है साथ ही साथ कई सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं पर भी काम करता है। इसे संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद (अंग्रेजी: ECOSOC) में विशेष सलाहकार की पदवी प्राप्‍त है। उन्होने ८ भाषाओं में १०० से अधिक पुस्तकों की रचना की है। .

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वागीश शास्त्री

भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी वागीश शास्त्री (जन्म: २४ जुलाई १९३४; बी.पी.टी. वागीश शास्त्री के नाम से भी जाने जाते हैं) अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत व्याकरणज्ञ, उत्कृष्ट भाषाशास्त्री, योगी एवं तांत्रिक हैं। इनका जन्म खुरई, मध्य प्रदेश में २४ जुलाई १९३४ को हुआ था। प्राथमिक शिक्षा वहीं पाकर आगे वृंदावन और बनारस में अध्ययन किया। १९५९ में इन्होंने संस्कृत व्याख्याता के रूप में टीकमणि संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी में कार्य किया। जल्दी ही इनके कार्य देखते हुए इन्हें १९७० मे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में व्याख्याता और फिर निदेशक पद पर चयन हो गया। इस माननीय शैक्षणिक पद पर ये तीन दशक तक रहे। वर्ष 2014-15 के लिए यश भारती सम्मान पाने वाले भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्त्री’ अपने चाहने वालों के बीच बीपीटी के नाम से जाने जाते हैं। लगभग 30 वर्ष तक संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को अपनी सेवा देने वाले आचार्य वागीश शास्त्री को 1982 में ही काशी पंडित परिषद की ओर से 'महामहोपाध्याय' की पदवी दी गई थी। उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं और 300 से ज्यादा पांडुलिपियों का संपादन किया है। काशी परंपरा के संस्कृत के विद्वान डॉ॰ वागीश शास्त्री को साल 2013 में संस्कृत साहित्य में योगदान के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें राजस्थान संस्कृत अकादमी की ओर से बाणभट्ट पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वागीश शास्त्री ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘सरस्वती सुषमा’ का लगभग 30 सालों तक संपादन किया था। .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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आचार्य महाप्रज्ञ

आचार्य श्री महाप्रज्ञ (14 जून 1920 – 9 मई 2010) जैन धर्म के श्वेतांबर तेरापंथ के दसवें संत थे। महाप्रज्ञ एक संत, योगी, आध्यात्मिक, दार्शनिक, अधिनायक, लेखक, वक्ता और कवि थे। उनकी बहुत पुस्तकें और लेख उनके पूर्व नाम मुनि नथमल के नाम से प्रकाशित हुई। उन्होंने दस वर्ष की आयु में जैन संन्यासी के रूप में विकास और धार्मिक प्रतिबिंब का जीवन आरम्भ किया। महाप्रज्ञ ने अनुव्रत आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई जो गुरु आचार्य तुलसी ने 1949 में आरम्भ किया था और 1995 के आंदोलन में स्वीकृत अधिनायक बन गए। आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में अच्छी तरह से नियमबद्ध प्रेक्षा ध्यान तैयार किया और शिक्षा प्रणाली में "जीवन विज्ञान" का विकास किया जो छात्रों के संतुलित विकास और उसका चरित्र निर्माण के लिए प्रयोगिक पहुँच है। .

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आध्यात्मिकता

हेलिक्स नेब्युला, कभी-कभी इसे "भगवान की आंख" कहा जाता है आध्यात्मिकता, मूर्तिपूजा शब्द के समान ही कई अलग मान्यताओं और पद्धतियों के लिए प्रयुक्त शब्द है, यद्यपि यह उन लोगों के साथ विश्वासों को साझा नहीं करती है जो मूर्तिपूजक हैं अथवा अनिवार्यतः आत्मा के अस्तित्व में विश्वास या अविश्वास से निर्मित नहीं है। आध्यात्मिकता की एक सामान्य परिभाषा यह हो सकती है कि यह ईश्वरीय उद्दीपन की अनुभूति प्राप्त करने का एक दृष्टिकोण है, जो धर्म से अलग है। आध्यात्मिकता को, ऐसी परिस्थितियों में अक्सर धर्म की अवधारणा के विरोध में रखा जाता है, जहां धर्म को संहिताबद्ध, प्रामाणिक, कठोर, दमनकारी, या स्थिर के रूप में ग्रहण किया जाता है, जबकि अध्यात्म एक विरोधी स्वर है, जो आम बोलचाल की भाषा में स्वयं आविष्कृत प्रथाओं या विश्वासों को दर्शाता है, अथवा उन प्रथाओं और विश्वासों को, जिन्हें बिना किसी औपचारिक निर्देशन के विकसित किया गया है। इसे एक अभौतिक वास्तविकता के अभिगम के रूप में उल्लिखित किया गया है; एक आंतरिक मार्ग जो एक व्यक्ति को उसके अस्तित्व के सार की खोज में सक्षम बनाता है; या फिर "गहनतम मूल्य और अर्थ जिसके साथ लोग जीते हैं।" आध्यात्मिक व्यवहार, जिसमें ध्यान, प्रार्थना और चिंतन शामिल हैं, एक व्यक्ति के आतंरिक जीवन के विकास के लिए अभिप्रेत है; ऐसे व्यवहार अक्सर एक बृहद सत्य से जुड़ने की अनुभूति में फलित होती है, जिससे अन्य व्यक्तियों या मानव समुदाय के साथ जुड़े एक व्यापक स्व की उत्पत्ति होती है; प्रकृति या ब्रह्मांड के साथ; या दैवीय प्रभुता के साथ.

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आलार कालाम

आलार कालाम गौतम बुद्ध के समकालीन एक योग एवं योग-शिक्षक थे। त्रिपिटक के अनुसार वे गौतम बुद्ध के गुरुओं में से एक थे। श्रेणी:भारतीय योगी.

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