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यूराल नदी

सूची यूराल नदी

विमान से ली गई काज़ाख़स्तान में यूराल नदी की एक तस्वीर कैस्पियन सागर में यूराल नदी की विचित्र ऊँगली-जैसी डेल्टा (नदीमुख) यूराल नदी (अंग्रेज़ी: Ural), उराल नदी (रूसी: Урал) या झ़ायक नदी (रूसी: Жайық) रूस और काज़ाख़स्तान से बहने वाली एक नदी है। यह यूराल पहाड़ों के दक्षिणी भाग में उत्पन्न होती है और १,५११ किमी के लम्बे सफ़र के बाद कैस्पियन सागर में मिल जाती है। वोल्गा नदी और डैन्यूब नदी के बाद यह यूरोप की तीसरी सबसे लम्बी नदी है। कैस्पियन सागर के लिए यह वोल्गा नदी के बाद दूसरा सबसे मुख्य जलस्रोत है। .

13 संबंधों: एशिया, पश्चिम क़ज़ाख़स्तान प्रांत, प्राचीन आर्य इतिहास का भौगोलिक आधार, पूर्वी यूरोप, भारत की नदियों की सूची, महाद्वीपीय यूरोप, यूरोप, ख़्वारेज़्म, ओरेनबूर्ग ओब्लास्त, कैस्पियन सागर, अतिर​ऊ प्रांत, अत्तिला, अकतोबे प्रांत

एशिया

एशिया या जम्बुद्वीप आकार और जनसंख्या दोनों ही दृष्टि से विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है, जो उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। पश्चिम में इसकी सीमाएं यूरोप से मिलती हैं, हालाँकि इन दोनों के बीच कोई सर्वमान्य और स्पष्ट सीमा नहीं निर्धारित है। एशिया और यूरोप को मिलाकर कभी-कभी यूरेशिया भी कहा जाता है। एशियाई महाद्वीप भूमध्य सागर, अंध सागर, आर्कटिक महासागर, प्रशांत महासागर और हिन्द महासागर से घिरा हुआ है। काकेशस पर्वत शृंखला और यूराल पर्वत प्राकृतिक रूप से एशिया को यूरोप से अलग करते है। कुछ सबसे प्राचीन मानव सभ्यताओं का जन्म इसी महाद्वीप पर हुआ था जैसे सुमेर, भारतीय सभ्यता, चीनी सभ्यता इत्यादि। चीन और भारत विश्व के दो सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश भी हैं। पश्चिम में स्थित एक लंबी भू सीमा यूरोप को एशिया से पृथक करती है। तह सीमा उत्तर-दक्षिण दिशा में नीचे की ओर रूस में यूराल पर्वत तक जाती है, यूराल नदी के किनारे-किनारे कैस्पियन सागर तक और फिर काकेशस पर्वतों से होते हुए अंध सागर तक। रूस का लगभग तीन चौथाई भूभाग एशिया में है और शेष यूरोप में। चार अन्य एशियाई देशों के कुछ भूभाग भी यूरोप की सीमा में आते हैं। विश्व के कुल भूभाग का लगभग ३/१०वां भाग या ३०% एशिया में है और इस महाद्वीप की जनसंख्या अन्य सभी महाद्वीपों की संयुक्त जनसंख्या से अधिक है, लगभग ३/५वां भाग या ६०%। उत्तर में बर्फ़ीले आर्कटिक से लेकर दक्षिण में ऊष्ण भूमध्य रेखा तक यह महाद्वीप लगभग ४,४५,७९,००० किमी क्षेत्र में फैला हुआ है और अपने में कुछ विशाल, खाली रेगिस्तानों, विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतों और कुछ सबसे लंबी नदियों को समेटे हुए है। .

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पश्चिम क़ज़ाख़स्तान प्रांत

पश्चिम क़ज़ाख़स्तान प्रांत (कज़ाख़: Батыс Қазақстан облысы, अंग्रेज़ी: West Kazakhstan Province) मध्य एशिया के क़ज़ाख़स्तान देश का एक प्रांत है। इसकी राजधानी ओराल (Oral) नाम का शहर है, जिसे 'उराल्स्क' (Uralsk) भी कहा जाता है। इस प्रांत की सरहदें रूस से लगती हैं और यह यूराल पहाड़ों के पास स्थित है। यूराल नदी प्रांत से गुज़रकर कैस्पियन सागर की तरफ़ जाती है। भौगोलिक रूप से इस प्रांत को अक्सर पूर्वी यूरोप में माना जाता है। पश्चिम क़ज़ाख़स्तान प्रदेश का पहला गठन सोवियत संघ के ज़माने में सन् १९३२ में किया गया। १९६२ में इसका नाम बदलकर उराल्स्क प्रदेश कर दिया गया लेकिन १९९२ में इसे फिर से 'पश्चिम क़ज़ाख़स्तान' का नाम दे दिया गया।, Paul Brummell, Bradt Travel Guides, 2012, ISBN 978-1-84162-369-6,...

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प्राचीन आर्य इतिहास का भौगोलिक आधार

भारतीय आर्यों के प्राचीन इतिहास तथा भूगोल का अज्ञान, या तो हमारे आलस्य के कारण या हमारी बहुमूल्य ऐतिहासिक पुस्तकों के शत्रुओं द्वारा नष्ट हो जाने के कारण, अभी तक हमें पूर्ण निश्चय के साथ यह उद्घोषित करने का अवसर नहीं देता कि हमारी प्राचीन आर्य संस्कृति किस श्रेणी तक उस समय पहुंच चुकी थी, जिस समय आधुनिक नव्य-सभ्य राष्ट्रों का उदय तो कौन कहे, नाम व निशान भी नहीं था ! अवश्य ही हमारे प्राचीन इतिहास के अनुशीलन में योरपीय विद्वानों ने जो सहायता पहुंचायी है, वह बहुमूल्य है। विदेशी होकर भी आज तक उन लोगों ने जो कुछ किया, वह आशातीत और हमारी आंखें खोलने के लिये पर्याप्त है। हमारा इतिहास कुछ ख्रीष्टाब्द या विक्रमाब्द से मर्यादित नहीं; यह तो सृष्टि-सनातन और आधुनिक विद्वानों के मस्तिष्क रूपी अनुवीक्षण यन्त्र की दृष्टि से बाहर है। सच पूछा जाय, तो आर्यों का इतिहास ही विश्व का इतिहास है। आज तक यह कोई भी ठीक-ठीक नहीं कह सकता कि आर्यों का सम्पूर्ण इतिहास विश्व की विद्वन्मण्डली को कब दृष्टिगोचर होगा। योरपीय विद्वानों ने अन्धकार से निकलने की युक्ति हमें बता दी है। अब तो हमारा कर्तव्य है कि अपने इतिहास का देदीप्यमान चित्र विश्व के सामने रख दें। पाश्चात्य विद्वानों की प्रायः यह धारणा रही है और है कि भारतवासी आर्य इतिहास लिखना या सुरक्षित रखना नहीं जानते थे। यह विवाद, जो किसी भी भारतीय विद्वान् को असह्य है, बहुत दिनों से चला आ रहा है। प्राचीन इतिहास के अनुशीलन के लिये प्रायः दो परिपाटी चल पड़ी हैं और ऐतिहासिक तत्त्वों का स्पष्टीकरण भी प्रायः दो ज़ुदे-ज़ुदे मार्गों से हो रहा है। पाश्चात्य विद्वान् अवश्य ही समय-निर्धारण में अत्यन्त संकोच और द्वेष बुद्धि से काम लेते आये हैं। यह आज बिल्कुल निर्विवाद है कि हमारे आर्य ऋषि-प्रवर साहित्य, ज्योतिष, विज्ञान, आयुर्वेद आदि समस्त कलाओं में उस पूर्णता तक पहुंच चुके थे, जो आज भी योरप के लिये स्वप्नवत् प्रतीत हो रही है। यह एक सत्य है, जिसे पहले तो नहीं, परन्तु अब प्रत्येक पाश्चात्य विद्वान् मुक्त-कण्ठ से स्वीकार कर रहा है। हाँ, समय निर्धारण का प्रश्न बड़ा ही जटिल है और वह भी इसलिये कि हमारे पास ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव-सा समझा जाता है। हमारे हृदय सम्राट् बाल गंगाधर तिलक का ’ओरायन’ ग्नन्थ इस दिशा में हमें बहुत कुछ प्रकाश में ला चुका है। उनका विचार एवं निष्कर्ष ज्योतिष, गणित और वैदिक ऋचाओं पर अवलम्बित है। सच तो यह है कि जिस समय हम थे, उस समय हमारी जाति के सिवा संसार में और कोई भी सभ्य जाति नहीं के बराबर थी। हमारी ऐतिहासिक प्राचीनता में एक ऐतिहासिक गौरव सन्निहित है। आज "हम" हम नहीं, आज बहुतेरे हम हो गये और इसी हमाहमी में एक भारतीय इतिहास ही नहीं, प्रत्युत विश्व इतिहास झगड़े की चीज़ बन गया। संसार में आर्य और अनार्य दो ही मुख्य जातियां हैं। आर्यों की शाखायें-प्रशाखायें इतनी बढ़ गयी हैं कि उस अन्धकार में इतिहास के पन्ने उलटना बड़ी विकट समस्या है। उस पर एक आश्चर्य यह कि सम्पूर्ण प्राचीन इतिहास के मुख्यतः दो ही आधार हैं-एक तो वैदिक साहित्य और दूसरे भौगोलिक आधार पर पृथ्वी की भिन्न-भिन्न सतहों की खोज। दिन-दिन हमारे इतिहास को नव-नव प्रकाश मिलता जा रहा है। आर्य-इतिहास एक बुझौवल या प्रहेलिका के रूप में हमें मिल रहा है। वैदिक साहित्य की व्याख्यान का रूप दिन-दिन विकसित और गम्भीर होता जा रहा है। सच पूछिये तो वैदिक साहित्य संसार-मात्र का साहित्य हो रहा है। इसमें सभी समान रूप से दिलचस्पी ले रहे हैं। कोई नहीं कह सकता कि भविष्य में हमारे आर्य इतिहास का क्या रूप होगा तथा हमारा अन्तर-राष्ट्रीय सम्बन्ध कैसा रहेगा। हमारा समस्त साहित्य विश्व का साहित्य हो रहा है। कौन कह सकता है कि हमारे दर्शन, साहित्य और इतिहास एक दिन विश्वमात्र के लिये दर्शन, साहित्य और इतिहास नहीं हो जायँगे ? विश्व आज उसी की पुनरावृत्ति कर रहा है, जो आर्य लोग कर चुके हैं; और सम्भवतः वहीं पहुँचेगा, जहाँ हम एक बार पहुँचकर भटक से गये हैं। यह एक ऐतिहासिक सत्य है। यह एक दिन सबके सामने आयेगा। इसी से कहा जाता है कि अन्तर-राष्ट्रीय मिलन का एकमात्र आधार भारतवर्ष होगा; क्योंकि उसकी कुंजी इसी के हाथ मॆं है। हाँ, तो हमारा इतिहास आज एक प्रकार से प्रमाणों के अभाव में Mythology सा बन गया है। पुराण गप्प-सा बन गया है और रामायण और महाभारत को रूपक का रूप मिल गया है ! यह हमारे लिये लाचारी और लज्जा की बात है। भारतीय विद्वान् इसी गुत्थी के सुलझाने का प्रयत्न कर रहे हैं। विद्वद्वर श्रीयुत् के.

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पूर्वी यूरोप

पूर्वी यूरोप यूरोप के महाद्वीप का पूर्वी भाग है। इसकी सीमाओं पर आम सहमति न होने के कारण इसमें सम्मिलित देशों व क्षेत्रों की कोई सर्वस्विकृत सूची नहीं है। अक्सर इसमें यूरोप के वह देश आते हैं जो या तो भूतपूर्व सोवियत संघ के भाग थे या उसके प्रभाव में थे। इनमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, पोलैण्ड, बुल्गारिया, चेक गणतंत्र, स्लोवाकिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुएनिया, हंगरी और मोल्दोवा सम्मिलित हैं। कुछ स्रोतों में अल्बानिया और भूतपूर्व यूगोस्लाविया के विखंडन से बने देश - सर्बिया, मासेदोनिया, स्लोवीनिया, क्रोएशिया, बोस्निया - भी शामिल हैं। लगभग सभी परिभाषाओं में यूराल पर्वतमाला, यूराल नदी और कॉकस क्षेत्र पूर्वी यूरोप की पूर्वतम सीमा माने जाते हैं। .

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भारत की नदियों की सूची

भारत में मुख्यतः चार नदी प्रणालियाँ है (अपवाह तंत्र) हैं। उत्तरी भारत में सिंधु, उत्तरी-मध्य भारत में गंगा, और उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली है। प्रायद्वीपीय भारत में नर्मदा, कावेरी, महानदी, आदि नदियाँ विस्तृत नदी प्रणाली का निर्माण करती हैं। यहाँ भारत की नदियों की एक सूची दी जा रही है: .

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महाद्वीपीय यूरोप

महाद्वीपीय यूरोप; पूर्वी सरहद कुछ विवादास्पद है। महाद्वीपीय यूरोप यूरोप की मुख्यभूमि को कहते हैं जिसमें द्वीपीय देश सम्मिलित नहीं किये जाते हैं। सबसे आम परिभाषा में इसमें साइप्रस, आयरलैंड, आइसलैंड, माल्टा तथा युनाइटेड किंगडम और उसके अधीशासित क्षेत्र सम्मिलित नहीं होते हैं। लगभग सभी परिभाषाओं में पूर्व की प्राकृतिक हदों को शामिल किया जाता है, जैसे यूराल पर्वत शृंखला, यूराल नदी, कैस्पियन सागर और कॉकॅसस पर्वत शृंखला।.

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यूरोप

यूरोप पृथ्वी पर स्थित सात महाद्वीपों में से एक महाद्वीप है। यूरोप, एशिया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। यूरोप और एशिया वस्तुतः यूरेशिया के खण्ड हैं और यूरोप यूरेशिया का सबसे पश्चिमी प्रायद्वीपीय खंड है। एशिया से यूरोप का विभाजन इसके पूर्व में स्थित यूराल पर्वत के जल विभाजक जैसे यूराल नदी, कैस्पियन सागर, कॉकस पर्वत शृंखला और दक्षिण पश्चिम में स्थित काले सागर के द्वारा होता है। यूरोप के उत्तर में आर्कटिक महासागर और अन्य जल निकाय, पश्चिम में अटलांटिक महासागर, दक्षिण में भूमध्य सागर और दक्षिण पश्चिम में काला सागर और इससे जुड़े जलमार्ग स्थित हैं। इस सबके बावजूद यूरोप की सीमायें बहुत हद तक काल्पनिक हैं और इसे एक महाद्वीप की संज्ञा देना भौगोलिक आधार पर कम, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर अधिक है। ब्रिटेन, आयरलैंड और आइसलैंड जैसे देश एक द्वीप होते हुए भी यूरोप का हिस्सा हैं, पर ग्रीनलैंड उत्तरी अमरीका का हिस्सा है। रूस सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यूरोप में ही माना जाता है, हालाँकि इसका सारा साइबेरियाई इलाका एशिया का हिस्सा है। आज ज़्यादातर यूरोपीय देशों के लोग दुनिया के सबसे ऊँचे जीवनस्तर का आनन्द लेते हैं। यूरोप पृष्ठ क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप है, इसका क्षेत्रफल के १०,१८०,००० वर्ग किलोमीटर (३,९३०,००० वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह का २% और इसके भूमि क्षेत्र का लगभग ६.८% है। यूरोप के ५० देशों में, रूस क्षेत्रफल और आबादी दोनों में ही सबसे बड़ा है, जबकि वैटिकन नगर सबसे छोटा देश है। जनसंख्या के हिसाब से यूरोप एशिया और अफ्रीका के बाद तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है, ७३.१ करोड़ की जनसंख्या के साथ यह विश्व की जनसंख्या में लगभग ११% का योगदान करता है, तथापि, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार (मध्यम अनुमान), २०५० तक विश्व जनसंख्या में यूरोप का योगदान घटकर ७% पर आ सकता है। १९०० में, विश्व की जनसंख्या में यूरोप का हिस्सा लगभग 25% था। पुरातन काल में यूरोप, विशेष रूप से यूनान पश्चिमी संस्कृति का जन्मस्थान है। मध्य काल में इसी ने ईसाईयत का पोषण किया है। यूरोप ने १६ वीं सदी के बाद से वैश्विक मामलों में एक प्रमुख भूमिका अदा की है, विशेष रूप से उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद.

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ख़्वारेज़्म

ख़्वारेज़्म​ और उसके पड़ोसी क्षेत्रों की अंतरिक्ष से ली गई तस्वीर ख्वारज्म साम्राज्य, ११९० से १२२० के मध्य ख़्वारेज़्म​, ख़्वारज़्म​ या ख़्वारिज़्म​ (फ़ारसी:, अंग्रेजी: Khwarezm) मध्य एशिया में आमू दरिया के नदीमुख (डेल्टा) में स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) क्षेत्र है। इसके उत्तर में अरल सागर, पूर्व में किज़िल कुम रेगिस्तान, दक्षिण में काराकुम रेगिस्तान और पश्चिम में उस्तयुर्त पठार है। ख़्वारेज़्म​ प्राचीनकाल में बहुत सी ख़्वारेज़्मी संस्कृतियों का केंद्र रहा है जिनकी राजधानियाँ इस इलाक़े में कोनये-उरगेंच और ख़ीवा जैसे शहरों में रहीं हैं। आधुनिक काल में ख़्वारेज़्म का क्षेत्र उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रों के बीच बंटा हुआ है।, Rafis Abazov, Macmillan, 2008, ISBN 978-1-4039-7542-3,...

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ओरेनबूर्ग ओब्लास्त

ओरेनबूर्ग, रूस का एक ओब्लास्त (области या प्रांत) है। सोवियत संघ के ज़माने में, १९३८ से १९५७ तक, इसका नाम बदलकर च्कालोव ओब्लास्त रखा गया था। .

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कैस्पियन सागर

कैस्पियन सागर (फ़ारसी:, दरया-ए-माज़ंदरान), एशिया की एक झील है जिसे अपने वृहत आकार के कारण सागर कहा जाता है। मध्य एशिया में स्थित यह झील क्षेत्रफल के हिसाब से विश्व की सबसे बड़ी झील है। इसका क्षेत्रफल ४,३०,००० वर्ग किलोमीटर तथा आयतन ७८,२०० घन किलोमीटर है। इसका कोई बाह्यगमन नहीं है और पानी सिर्फ़ वाष्पीकरण के द्वारा बाहर जाता है। ऐतिहासिक रूप से यह काला सागर के द्वारा बोस्फ़ोरस, ईजियन सागर और इस तरह भूमध्य सागर से जुड़ा हुआ माना जाता है जिसके कारण इसे ज्यरचना के आधार पर इसे झील कहना उचित नहीं है। इसका खारापन १.२ प्रतिशत है जो विश्व के सभी समुद्रों के कुल खारेपन का एक-तिहाई है। .

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अतिर​ऊ प्रांत

अतिरऊ प्रांत (कज़ाख़: Атырау облысы, अंग्रेज़ी: Atyrau Province) मध्य एशिया के क़ाज़ाख़स्तान देश का एक प्रांत है। इसकी राजधानी भी अतिरऊ नाम का शहर ही है। अतिरऊ प्रांत देश के पश्चिमी हिस्से में कैस्पियन सागर के पूर्वोत्तरी किनारे पर स्थित है। .

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अत्तिला

सिंहासन पर अत्तिला हूण अत्तिला (406-453) या अत्तिला हूण वर्ष 434 से अपनी मृत्यु तक हूणों का राजा था। यह हूण साम्राज्य का नेता था यह मूल रूप से भारत में आये स्वेत हूंणों का ही वंशज था जो मूल रूप से गुर्जर वंश के थे हूंणों के परिवार के सदस्य कंषान गुर्जर कुषान/ड के परिवार के थे। जर्मनी से यूराल नदी और डैन्यूब नदी से बाल्टिक सागर तक फैला हुआ था। अपने राजकाल में यह पश्चिमी और पूर्वी रोमन साम्राज्य का सबसे भयानक शत्रु था। इसे बाद के इतिहासकारों ने ' भगवान का कोड़ा' (Scourge of God.) कहा। इसने दो बार बाल्कन क्षेत्र पर हमला किया, गोल (आधुनिक फ्रांस) में यह ऑर्लेयाँ तक पहुँच गया, पर इसने इस्तानबुल या रोम पर कभी आक्रमण नहीं किया। लगभग सारे पश्चिमी यूरोप में इसे क्रूरता और लोभ के परम उदाहरण के रूप में याद किया जाता है, लेकिन कुछ ऐतिहासिक विवरणों और कहानियों में अटिला को महान सम्राट के रूप में दर्शाया गया है। नोर्स गाथाओं में अटिला की प्रमुख भूमिका है। अत्तिला के पिता का नाम मुंदजुक था। उसके जन्म से कुछ पहले ही कास्पियन सागर के उत्तरवर्ती प्रदेशों के हूण दानूब नदी की घाटों में जा बसे थे। अत्तिला के पिता का परिवार भी उन्हीं हूणों में से था। चाचा रुआस के मरने पर अपने भाई ब्लेदा के साथ अत्तिला दानूबतटीय हूणों का संयुक्त राजा बना। रुआस का शासनकाल हूणों के यूरोप में विशेष उत्कर्ष का था। उसने जर्मन और स्लाव जातियों पर आधिपत्य कर लिया था और उसका दबदबा कुछ ऐसा बढ़ा कि पूर्वी रोमन सम्राट उसे वार्षिक कर देने लगा। चाचा के ऐश्वर्य का अत्तिला ने प्रभूत प्रसार किया और आठ वर्षों में वह कास्पियन और बाल्टिक सागर के बीच के समूचे राज्यों का, राइन नदी तक, स्वामी बन गया। 450 ई. के पश्चात्‌ अत्तिला पूर्वी साम्राज्य को छोड़ पश्चिमी साम्राज्य की ओर बढ़ा। पश्चिमी साम्राज्य का सम्राट तब वालेंतीनियन तृतीय था। सम्राट की भगिनी जुस्ताग्राता होनोरिया ने अपने भाई के विरुद्ध सहायता के अर्थ अत्तिला को अपनी अँगूठी भेजी थी। इसे विवाह का प्रस्ताव मान हूणराज ने सम्राट से भगिनी के यौतुक में आधा राज्य माँगा और अपनी सेना लिए वह गाल को रौंदता, मेत्स को लूटता, ल्वार नदी के तट पर बसे और्लियाँ जा पहुँचा, पर रोमन सेना ने पश्चिमी गोथों और नगरवासियों की सहायता से हूणों को नगर का घेरा उठा लेने को मजबूर किया। फिर दो महीने बाद जून, 451 में इतिहास की सबसे भयंकर खूनी लड़ाइयों में से एक लड़ी गई, जब दोनों सेनाएँ सेन नदी के तट पर त्रॉय के निकट परस्पर मिलीं। भीषण युद्ध हुआ और जीवन में बस एक वार हारकर अत्तिला को भागना पड़ा। पर अत्तिला चुप बैठने वाला आदमी न था। अगले साल सेना लेकर शक्ति केंद्र स्वयं इटली पर उसने धावा बोल दिया और देखते-देखते उसका उत्तरी लोंबार्दी का प्रांत उजाड़ डाला। उखड़े, भागे हुए लोगों ने आर्द्रियातिक सागर पहुँच वहाँ के प्रसिद्ध नगर वेनिस की नींव डाली। सम्राट बालेंतीनियन ने भागकर रावेना में शरण ली। पर पोप लिओ प्रथम ने रोम की रक्षा के लिए मिंचिओ नदी के तीर पड़ाव डाले अत्तिला से प्रार्थना की। कुछ पोप के अनुनय से, कुछ हूणों के बीच प्लेग फूट पड़ने से अत्तिला ने इटली छोड़ देना स्वीकार किया। इटली से लौटकर उसने बर्गडों को राजकुमारी इल्दिको को ब्याह पर अपनी सुहागरात को ही वह रक्तचाप से मस्तिष्क की नली फट जाने के कारण पानीनिया में मर गया। अत्तिला ने पश्चिमी रोमन साम्राज्य की रीढ़ तोड़ दी। उसके और हूणों के नाम से यूरोपीय जनता थरथर काँपने लगी। हंगरी में बसकर तो उन्होंने उस देश को अपना नाम दिया हो, उनका शासन नार्वे और स्वीडेन तक चला। चीन के उत्तर-पूर्वी प्रांत कासू से उनका निकास हुआ था और वहाँ से यूरोप तक हूणों ने अपना खूनी आधिपत्य कायम किया। उन्हीं की धाराओं पर धाराओं ने दक्षिण बहकर भारत के गुप्त साम्राज्य को भी कमर तोड़ दी। .

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अकतोबे प्रांत

अकतोबे प्रांत (कज़ाख़: Ақтөбе облысы, अंग्रेज़ी: Aktobe Province) मध्य एशिया के क़ाज़ाख़स्तान देश का एक प्रांत है। इसकी राजधानी भी अकतोबे नाम का शहर ही है। इस प्रांत से इलेक नदी (Ilek river) निकलती है जो यूराल नदी की एक महत्त्वपूर्ण उपनदी है। इस प्रान्त में तेल की खाने हैं और उनसे प्रांत को अच्छी आमदनी हो जाती है। सोवियत संघ के ज़माने में यहाँ की आलिया मोल्दागुलोवा (Али́я Молдагу́лова, Aliya Moldagulova) नामक स्त्री सोवियत लाल सेना में एक मशहूर निशानेबाज़ थी और प्रांत में जगह-जगह उसके नाम के स्मारक हैं।, Paul Brummell, Bradt Travel Guides, 2012, ISBN 978-1-84162-369-6,...

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युराल नदी, उराल नदी

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