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युएझ़ी लोग

सूची युएझ़ी लोग

समय के साथ मध्य एशिया में युएझ़ी लोगों का विस्तार, १७६ ईसापूर्व से ३० ईसवी तक यूइची (Yue-Tche) या युएझ़ी, युएज़ी या रुझ़ी (अंग्रेज़ी: Yuezhi, चीनी: 月支, 'झ़' के उच्चारण पर ध्यान दें, यह 'झ' से भिन्न है) प्राचीन काल में मध्य एशिया में बसने वाली एक जाति थी। माना जाता है कि यह एक हिन्द-यूरोपीय लोग थे जो शायद तुषारी लोगों से सम्बंधित रहें हों। शुरू में यह तारिम द्रोणी के पूर्व के शुष्क घास के मैदानी स्तेपी इलाक़े के वासी थे, जो आधुनिक काल में चीन के शिंजियांग और गांसू प्रान्तों में पड़ता है। समय के साथ वे मध्य एशिया के अन्य इलाक़ों, बैक्ट्रिया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों में फैल गए। संभव है कि भारत के कुशान साम्राज्य की स्थापना में भी उनका हाथ रहा हो।, Madathil Mammen Ninan, 2008, ISBN 978-1-4382-2820-4,...

14 संबंधों: चिन शी हुआंग, चिलियन पर्वत शृंखला, तुरफ़ान, तुषारी लोग, तूमन चानयू, दूनहुआंग, मोदू चानयू, शक, हफथाली लोग, गुजरात ज़िला, कनिष्क, कासनिया, कुषाण राजवंश, कुजुल कडफिसेस

चिन शी हुआंग

चिन शी हुआंग जिसे चिन शी हुआंगदी (秦始皇帝, हिंदी: चीन का प्रथम सम्राट) (जिसका असली नाम यिंग जेंग था)के नाम से भी जाना जाता है, चीन का प्रथम सम्राट था। इसी ने चिन राजवंश की स्थापना कि थी। उसने चीन के बाकि झगड़ते राज्यों को चिन देश के अधीन किया था। उसने शांग राजवंश और झोऊ राजवंश की पारंपरिक उपाधि महाराज (王, wáng) को त्याग कर सम्राट (皇帝 huáng dì) को अपनाया जो की उसकी मृत्यु के २००० वर्ष तक चीन के शासकों ने धारण कि। चिन शी के सेनापतियो ने चू राज्य के दक्षिण में स्थित युएझ़ी काबिले को हराकर हुनान और गुआंगदोंग क्षेत्र को चिन राज्य में सम्मिलित किया। उन्होंने शियोंगनु काबिले से बीजिंग के पश्चिम की भूमि प्राप्त कि। पर इसके उत्तर में शियोंगनु काबिले ने मोदू चानयू के नेतृत्व में एक संघ बनाया चिन राज्य से लड़ने के लिए। चिन शी हुआंग ने अपने मंत्रीली सी के साथ मिलकर चीन के आर्थिक और राजनैतिक स्थिति सुधारने और उसके मानकीकरण के हेतु कई नियम बनाये जिस कारण कई ग्रंथो को जलाया गया और विद्वानों को जिन्दा दफनाया गया। उसने अपनी जनता के लिए विशाल राजमार्गो की प्रणाली स्थापित की और अपनी जनता की सुरक्षा के लिए सभी राज्यों की दीवारों को जोड़कर चीन की महान दीवार बनवाई। उसने खुदके लिए एक नगर के आकार की समाधी बनवाई और उसकी रक्षा के लिए टेराकोटा सेना खड़ी की। अपने अमृत की खोज के निरर्थक प्रयास के बाद २१० ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हो गयी, पारे के अत्याधिक सेवन के कारण। श्रेणी:चीन के सम्राट.

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चिलियन पर्वत शृंखला

चिलियन पर्वत शृंखला चिलियन पर्वत शृंखला (祁连山, चिलियन शान; Qilian Mountains) या नान शान (南山, Nan Shan) कुनलुन पर्वत शृंखला की एक उत्तरी शाखा है जो जनवादी गणराज्य चीन की वर्तमान चिंगहई और गांसू प्रान्तों के बीच की सरहद पर स्थित है। यह तिब्बत के पठार की उत्तरी सीमा भी है। यह दुनहुआंग शहर के दक्षिण से शुरू होकर ८०० किमी दक्षिण-पूर्व को चलती है जहां यह हेशी गलियारे की दक्षिणी सरहद भी बनती हैं। .

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तुरफ़ान

१४४ फ़ुट ऊंची एमीन मीनार अंगूर की लताओं से ढकी चलने की एक सड़क तुरफ़ान (अंग्रेज़ी: Turfan) या तुरपान (उईग़ुर:, अंग्रेज़ी: Turpan, चीनी: 吐魯番) चीन द्वारा नियंत्रित शिनजियांग प्रान्त के तुरफ़ान विभाग में स्थित एक ज़िले-स्तर का शहर है जो मध्य एशिया की प्रसिद्ध तुरफ़ान द्रोणी में स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) भी है। सन् २००३ में इसकी आबादी २,५४,९०० गिनी गई थी। यह शहर उत्तरी रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था।, Julie Hill, AuthorHouse, 2006, ISBN 978-1-4259-7280-6,...

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तुषारी लोग

तारिम द्रोणी में स्थित क़िज़िल गुफ़ाओं में तुषारियों की छठी सदी में बनी तस्वीर - माना जाता है कि इनमें से बहुत के सुनहरे बाल और बिलौरी आँखें होती थीं तुषारी या तुख़ारी (अंग्रेज़ी: Tocharian, टोचेरियन) प्राचीन काल में मध्य एशिया में स्थित तारिम द्रोणी में बसने वाली एक जाति थी। यह हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ बोलने वाले सब से पूर्वतम लोग थे। चीनी स्रोतों के अनुसार इनका युएझ़ी लोगों से गहरा सम्बन्ध था। इनकी उत्तरी शियोंगनु लोगों से बहुत झड़पें हुई, जिसके बाद इन्होनें तारिम द्रोणी का इलाक़ा छोड़ दिया। ८०० ईसवी के बाद इस क्षेत्र में इस क्षेत्र में उइग़ुर लोग के आकर बसने पर यहाँ हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ विलुप्त हो गई और तुर्की भाषाएँ बोली जाने लगी। अफ़्ग़ानिस्तान के तख़ार प्रांत का नाम इसी जाति पर पड़ा है। इनका ज़िक्र संस्कृत ग्रंथों में बहुत होता है। अथर्ववेद में इन्हें शक लोगों और बैक्ट्रिया के लोगों से सम्बंधित बताया गया है।, Vasudev Sharan Agrawal, Prithvi Prakashan, 1963,...

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तूमन चानयू

२०० ईसापूर्व में शियोंगनु साम्राज्य तूमन (चीनी: 頭曼, मंगोल: Түмэн, अंग्रेज़ी: Touman) मध्य एशिया और चीन पर प्राचीनकाल में अधिकार रखने वाले शियोंगनु लोगों का सबसे पहला चानयू (सम्राट) था। उसका शासनकाल २२० ईसापूर्व से २०९ ईसापूर्व अनुमानित किया गया है। इतिहासकारों का मानना है कि तूमन का नाम शब्द मंगोल भाषा के 'तुमेन' शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब 'दस हज़ार' होता है। .

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दूनहुआंग

दूनहुआंग में एक बाज़ार चीन के गांसू प्रान्त में दूनहुआंग शहर (गुलाबी रंग में) हान राजवंश काल के दौरान बने मिट्टी के संतरी बुर्ज के खंडहर नवचंद्र झील दूनहुआंग (चीनी: 敦煌, अंग्रेज़ी: Dunhuang) पश्चिमी चीन के गांसू प्रान्त में एक शहर है जो ऐतिहासिक रूप से रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव हुआ करता था। इसकी आबादी सन् २००० में १,८७,५७८ अनुमानित की गई थी। रेत के टीलों से घिरे इस रेगिस्तानी इलाक़े में दूनहुआंग एक नख़लिस्तान (ओएसिस) है, जिसमें 'नवचन्द्र झील' (Crescent Lake) पानी का एक अहम स्रोत है। प्राचीनकाल में इसे शाझोऊ (沙州, Shazhou), यानि 'रेत का शहर', के नाम से भी जाना जाता था। यहाँ पास में मोगाओ गुफ़ाएँ भी स्थित हैं जहाँ बौद्ध धर्म से सम्बन्धी ४९२ मंदिर हैं और जिनमें इस क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति पर भारत का गहरा प्रभाव दिखता है।, Morning Glory Publishers, 2000, ISBN 978-7-5054-0715-2,...

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मोदू चानयू

मोदू के शासनकाल के आरम्भ में शियोंगनु साम्राज्य का विस्तार मोदू चानयू (चीनी: 冒頓單于, मंगोल: Модун шаньюй, अंग्रेज़ी: Modu Chanyu) मध्य एशिया, मंगोलिया और उत्तरी चीन के कई इलाक़ों पर प्राचीनकाल में अधिकार रखने वाले शियोंगनु लोगों का एक चानयू (सम्राट) था। मोदू को शियोंगनु साम्राज्य का निर्माता भी कहा जाता है और उसका शासनकाल २०९ ईसापूर्व से १७४ ईसापूर्व तक चला। मोदू ने अपने अधीन मंगोलिया के स्तेपी क्षेत्र के ख़ानाबदोश क़बीलों को संगठित किया और चीन के चिन राजवंश के लिए ख़तरा बन गया। उसका शियोंगनु साम्राज्य पूर्व में लियाओ नदी से लेकर पश्चिम में पामीर पर्वतों तक और उत्तर में साइबेरिया की बायकल झील तक विस्तृत था। .

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शक

सरमतिया मध्य एशिया का भौतिक मानचित्र, पश्चिमोत्तर में कॉकस से लेकर पूर्वोत्तर में मंगोलिया तक स्किथियों के सोने के अवशेष, बैक्ट्रिया की तिलिया तेपे पुरातन-स्थल से ३०० ईसापूर्व में मध्य एशिया के पज़ियरिक क्षेत्र से शक (स्किथी) घुड़सवार शक प्राचीन मध्य एशिया में रहने वाली स्किथी लोगों की एक जनजाति या जनजातियों का समूह था। इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन रहा है क्योंकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका अलग-अलग विवरण देते हैं। फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि 'सभी शक स्किथी थे, लेकिन सभी स्किथी शक नहीं थे', यानि 'शक' स्किथी समुदाय के अन्दर के कुछ हिस्सों का जाति नाम था। स्किथी विश्व के भाग होने के नाते शक एक प्राचीन ईरानी भाषा-परिवार की बोली बोलते थे और इनका अन्य स्किथी-सरमती लोगों से सम्बन्ध था। शकों का भारत के इतिहास पर गहरा असर रहा है क्योंकि यह युएझ़ी लोगों के दबाव से भारतीय उपमहाद्वीप में घुस आये और उन्होंने यहाँ एक बड़ा साम्राज्य बनाया। आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलंडर 'शक संवत' कहलाता है। बहुत से इतिहासकार इनके दक्षिण एशियाई साम्राज्य को 'शकास्तान' कहने लगे हैं, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सिंध, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा और अफ़्ग़ानिस्तान शामिल थे।, Vesta Sarkhosh Curtis, Sarah Stewart, I.B.Tauris, 2007, ISBN 978-1-84511-406-0,...

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हफथाली लोग

५०० ईसवी के नक़्शे में हफथाली ख़ानत​ उद्यान के राजा लखन (लखन उदयादित्य) का सिक्का हफथाली (Hephthalites) मध्य एशिया में ५वीं और ६ठी सदी ईसवी में रहने वाली एक ख़ानाबदोश जाति थी। भारत में यह श्वेत हूण और तुरुष्क के नाम से भी जाने जाते थे। चीनी सूत्रों के हवाले से यह पहले चीन की महान दीवार से उत्तर में रहने वाले युएझ़ी लोग थे।, Encyclopaedia Britannica, 1973, ISBN 978-0-85229-173-3,...

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गुजरात ज़िला

पाकिस्तानी पंजाब प्रांत में गुजरात ज़िला (लाल रंग में) गुजरात (उर्दू:, अंग्रेज़ी: Gujrat) पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक ज़िला है। गुजरात ज़िले की राजधानी गुजरात शहर है। इस ज़िले की तीन तहसीलें हैं - गुजरात, खारियाँ और सराय आलमगीर। यह ज़िला पाकिस्तानी पंजाब प्रान्त के पूर्वोत्तर में स्थित है। इसकी सीमाएँ पूर्वोत्तर में पाक-अधिकृत कश्मीर के मीरपुर ज़िले से, पश्चिमोत्तर में झेलम नदी से जो इसे झेलम ज़िले से अलग करती है, पूर्व और दक्षिण पूर्व में चेनाब नदी से जो इसे गुजराँवाला ज़िले से और सियालकोट ज़िले से अलग करती है और पश्चिम में मंडी बहाउद्दीन ज़िले से लगतीं हैं। कृपया ध्यान देन कि एक ही नाम होने के बावजूद पाकिस्तानी पंजाब के गुजरात ज़िले का भारत के गुजरात राज्य से कोई लेना-देना नहीं है। .

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कनिष्क

कनिष्क प्रथम (Κανηϸκι, Kaneshki; मध्य चीनी भाषा: 迦腻色伽 (Ka-ni-sak-ka > नवीन चीनी भाषा: Jianisejia)), या कनिष्क महान, द्वितीय शताब्दी (१२७ – १५० ई.) में कुषाण राजवंश का भारत का एक महान् सम्राट था। वह अपने सैन्य, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों तथा कौशल हेतु प्रख्यात था। इस सम्राट को भारतीय इतिहास एवं मध्य एशिया के इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान मिलता है। कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस का ही एक वंशज, कनिष्क बख्त्रिया से इस साम्राज्य पर सत्तारूढ हुआ, जिसकी गणना एशिया के महानतम शासकों में की जाती है, क्योंकि इसका साम्राज्य तरीम बेसिन में तुर्फन से लेकर गांगेय मैदान में पाटलिपुत्र तक रहा था जिसमें मध्य एशिया के आधुनिक उजबेकिस्तान तजाकिस्तान, चीन के आधुनिक सिक्यांग एवं कांसू प्रान्त से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और समस्त उत्तर भारत में बिहार एवं उड़ीसा तक आते हैं। पर कुषाण।अभिगमन तिथि: १५ फ़रवरी, २०१७ इस साम्राज्य की मुख्य राजधानी पेशावर (वर्तमान में पाकिस्तान, तत्कालीन भारत के) गाँधार प्रान्त के नगर पुरुषपुर में थी। इसके अलावा दो अन्य बड़ी राजधानियां प्राचीन कपिशा में भी थीं। उसकी विजय यात्राओं तथा बौद्ध धर्म के प्रति आस्था ने रेशम मार्ग के विकास तथा उस रास्ते गांधार से काराकोरम पर्वतमाला के पार होते हुए चीन तक महायान बौद्ध धर्म के विस्तार में विशेष भूमिका निभायी। पहले के इतिहासवेत्ताओं के अनुसार कनिष्क ने राजगद्दी ७८ ई० में प्राप्त की, एवं तभी इस वर्ष को शक संवत् के आरम्भ की तिथि माना जाता है। हालांकि बाद के इतिहासकारों के मतानुसार अब इस तिथि को कनिष्क के सत्तारूढ़ होने की तिथि नहीं माना जाता है। इनके अनुमानानुसार कनिष्क ने सत्ता १२७ ई० में प्राप्त की थी। .

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कासनिया

कासनिया राजस्थान, भारत की एक जाट गोत्र है। उनके वंशज परम्पराओं के अनुसार भगवान कृष्ण से चले आ रहे हैं। संस्कृत में कृष्ण शब्द से ही कृष्णिया और कासनिया व्युत्पन्न हुए। कासनिया वंश के लोग चीन में कुषाण और युझी के रूप में जाने जाते हैं। उनके अनुसार वो लोग कासगार नामक स्थान के वंशज माने जाते हैं। ठाकुर देशराज के अनुसार, जाटों ने महाभारत के युद्ध के बाद शिवालिक की पहाड़ियों और मानसरोवर झील के नीचले क्षेत्रों को छोड़कर उत्तरकुरु (जाहिर तौर पर एक पौराणिक जगह जिसे कभी-कभी कुरु साम्राज्य भी कहा जाता है।) की ओर आ गये। उनमें से कुछ पंजाब में बस गये और कुछ कश्मीर की ओर चले गये एवं बाकी बचे हुए साइबेरिया क्षेत्रों में चले गये। .

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कुषाण राजवंश

कुषाण प्राचीन भारत के राजवंशों में से एक था। कुछ इतिहासकार इस वंश को चीन से आए युएझ़ी लोगों के मूल का मानते हैं। कुछ विद्वानो इनका सम्बन्ध रबातक शिलालेख पर अन्कित शब्द गुसुर के जरिये गुर्जरो से भी बताते हैं। सर्वाधिक प्रमाणिकता के आधार पर कुषाण वन्श को चीन से आया हुआ माना गया है। लगभग दूसरी शताब्दी ईपू के मध्य में सीमांत चीन में युएझ़ी नामक कबीलों की एक जाति हुआ करती थी जो कि खानाबदोशों की तरह जीवन व्यतीत किया करती थी। इसका सामना ह्युगनु कबीलों से हुआ जिसने इन्हें इनके क्षेत्र से खदेड़ दिया। ह्युगनु के राजा ने ह्यूची के राजा की हत्या कर दी। ह्यूची राजा की रानी के नेतृत्व में ह्यूची वहां से ये पश्चिम दिशा में नये चरागाहों की तलाश में चले। रास्ते में ईली नदी के तट पर इनका सामना व्ह्सुन नामक कबीलों से हुआ। व्ह्सुन इनके भारी संख्या के सामने टिक न सके और परास्त हुए। ह्यूची ने उनके चरागाहों पर अपना अधिकार कर लिया। यहां से ह्यूची दो भागों में बंट गये, ह्यूची का जो भाग यहां रुक गया वो लघु ह्यूची कहलाया और जो भाग यहां से और पश्चिम दिशा में बढा वो महान ह्यूची कहलाया। महान ह्यूची का सामना शकों से भी हुआ। शकों को इन्होंने परास्त कर दिया और वे नये निवासों की तलाश में उत्तर के दर्रों से भारत आ गये। ह्यूची पश्चिम दिशा में चलते हुए अकसास नदी की घाटी में पहुँचे और वहां के शान्तिप्रिय निवासिओं पर अपना अधिकार कर लिया। सम्भवतः इनका अधिकार बैक्ट्रिया पर भी रहा होगा। इस क्ष्रेत्र में वे लगभग १० वर्ष ईपू तक शान्ति से रहे। चीनी लेखक फान-ये ने लिखा है कि यहां पर महान ह्यूची ५ हिस्सों में विभक्त हो गये - स्यूमी, कुई-शुआंग, सुआग्म,,। बाद में कुई-शुआंग ने क्यु-तिसी-क्यो के नेतृत्व में अन्य चार भागों पर विजय पा लिया और क्यु-तिसी-क्यो को राजा बना दिया गया। क्यु-तिसी-क्यो ने करीब ८० साल तक शासन किया। उसके बाद उसके पुत्र येन-काओ-ट्चेन ने शासन सम्भाला। उसने भारतीय प्रान्त तक्षशिला पर विजय प्राप्त किया। चीनी साहित्य में ऐसा विवरण मिलता है कि, येन-काओ-ट्चेन ने ह्येन-चाओ (चीनी भाषा में जिसका अभिप्राय है - बड़ी नदी के किनारे का प्रदेश जो सम्भवतः तक्षशिला ही रहा होगा)। यहां से कुई-शुआंग की क्षमता बहुत बढ़ गयी और कालान्तर में उन्हें कुषाण कहा गया। .

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कुजुल कडफिसेस

यूनानी में लिखा है 'ΚΟΖΟΛΑ ΚΑΔΑΦΕΣ ΧΟϷΑΝΟΥ ΖΑΟΟΥ', 'कुजुल कडफिसेस ख़ोशानोउ ज़ाओओउ', यानि 'कुजुल कडफिसेस, कुषाणों का शासक' कुजुल कडफिसेस (Κοζουλου Καδφιζου, Kujula Kadphises) एक कुषाण राजकुंवर था जिसने पहली सदी ईसवी में युएझ़ी परिसंघ को संगठित किया और पहला कुषाण सम्राट बना। अफ़ग़ानिस्तान के बग़लान प्रान्त में सुर्ख़ कोतल नामक पुरातन स्थल में पाए गए रबातक शिलालेख के अनुसार कुजुल कडफिसेस प्रसिद्ध कुषाण सम्राट कनिष्क का पड़-दादा था। कुजुल के सिक्कों पर अक्सर खरोष्ठी और यूनानी लिपि मिलती है।, Ahmad Hasan Dani, Motilal Banarsidass Publishers, 1999, ISBN 978-81-208-1408-0,...

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युएझ़ी, युएझ़ी लोगों, यूइची, ह्यूची

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