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मोटापा

सूची मोटापा

मोटापा (अंग्रेज़ी: Obesity) वो स्थिति होती है, जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वो स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह आयु संभावना को भी घटा सकता है। शरीर भार सूचकांक (बी.एम.आई), मानव भार और लंबाई का अनुपात होता है, जब २५ कि.ग्रा./मी.

38 संबंधों: डगलस कोलमैन, नारियल तेल, पित्ताशय का कर्कट रोग, प्रोबायोटिक, पूर्णहृदरोध, फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता, बाल्यकाल स्थूलता (बच्चों में मोटापा), बिवाई, बवासीर, भार वृद्धि, भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009), मधुमेह टाइप 2, मनोविदलता, मैनुएल उरीबे, मैकडॉनल्ड्स, मोटरवाहन, यकृत शोथ, रक्त चाप, रेकी चिकित्सा, शर्करा, शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index), शारीरिक फिटनेस, स्तन कैन्सर, स्वस्थ आहार, हारा हाची बू, हृदयाघात, जंक फूड, वात रोग, व्यायाम, वृद्धि हार्मोन, गर्भकालीन मधुमेह, आहारीय रेशा, आहारीय आयोडीन, इंग्लिश मास्टिफ़, कर्कट रोग, कार्बोहाइड्रेट, कुपोषणजन्य रोग, उच्च रक्तचाप

डगलस कोलमैन

डगलस एल॰ कोलमैन का लेपटिन का ऑ-बी जीन का खोज्। डगलस एल॰ कोलमैन का लेपटिन का ऑ-बी जीन का खोज् (६ अक्टूबर १९३१ – १६ अप्रैल २०१४) स्ट्रैटफ़ोर्ड में जन्मे कनाडाई वैज्ञानिक और बार हार्बर, मेन स्थित जैक्सन प्रयोगशाला में आचार्य (प्रोफेसर) थे। उन्होंने लेप्टिन हार्मोन की ओब जीन की इनकोडिंग को प्रागुक्त किया था बाद में १९९४ में इसका आविष्कार जेफरी फ्रीडमैन, रूडोल्फ लाइबेल और रॉकफेलर विश्वविद्यालय में उनके साथी शोधार्थियों ने किया। लेप्टिन एक ऐसा हार्मोन है जो मानव भोजन को संतुलित रखता है। इस हार्मोन के अभाव में मानव मोटापे का शिकार हो जाता है। उन्होंने अपनी स्नातक की डीग्री मैकमास्टर विश्वविद्यालय से १९५४ में और जीव-रसायन में पीएचडी विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय से १९५८ में प्राप्त की। उन्हें १९९८ में यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज का सदस्य चुना गया। उन्हें २००९ में शॉ प्राइज़ से सम्मनित किया गया। उन्हें २०१० में अल्बर्ट लस्कर अवार्ड फॉर बेसिक मेडिकल रिसर्च, २०१२ में बीबीवीए फ्रोंटियर्स ऑफ़ नोलेज अवार्ड से सम्मानित किया गया। १६ अप्रैल २०१४ को लामोइन स्थित उनके निवास पर ८२ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। .

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नारियल तेल

सेशेल्स में बैल-चालित चक्की के प्रयोग से नारियल तेल बनाने का पारंपरिक तरीका. नारियल तेल नारियल के पेड़ (कोकोस न्यूसीफेरा) में लगे पके हुए नारियल के गूदे या सार से निकाला जाता है। समूची उष्णकटिबंधीय दुनिया में यह पीढ़ी दर पीढ़ी लाखों लोगों के आहार में वसा का मुख्य स्रोत रहा है। भोजन, औषधि एवं उद्योग में इसकी विभिन्न उपयोगिताएं हैं। नारियल तेल बेहद उष्णता सुचालक है अतः यह खाना पकाने एवं तलने का एक उत्कृष्ट तेल है। इसका धूम्र बिंदु लगभग 360 °F (180 °C) है। इसकी स्थिरता की वजह से इसका ऑक्सीकरण धीमी गति से होता है, जिससे यह जल्दी बासी नहीं होता और उच्च संतृप्त वसा तत्व की वजह से दो वर्षों तक टिक सकता है। .

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पित्ताशय का कर्कट रोग

पित्ताशय का कर्कट रोग एक प्रकार का कम घटित होने वाला कर्कट रोग है। भौगोलिक रूप से इसकी व्याप्ति विचित्र है - उत्तरी भारत, जापान, केंद्रीय व पूर्वी यूरोप, केंद्रीय व दक्षिण अमरीका में अधिक देखा गया है; कुछ खास जातीय समूहों में यह अधिक पाया जाता है - उ. उत्तर अमरीकी मूल निवासियों में और हिस्पैनिकों में। जल्दी निदान होने पर पित्ताशय, यकृत का कुछ अंश और लसीकापर्व निकाल के इसका इलाज किया जा सकता है। अधिकतर इसका पता उदरीय पीड़ा, पीलिया और उल्टी आने, जैसे लक्षणों से पता चलता है और तब तक यह यकृत जैसे अन्य अंगों तक फैल चुका होता है। यह काफ़ी विरला होने वाला कर्कट रोग है और इसका अध्ययन अभी भी हो रहा है। पित्ताशय में पथरी होने से इसका संबंध माना जा रहा है, इससे पित्ताशय का कैल्सीकरण भी हो सकता है ऐसी स्थिति को चीनीमिट्टी पित्ताशय कहते हैं। चीनीमिट्टी पित्ताशय भी काफ़ी विरला होने वाला रोग है। अध्ययनों से यह पता चल रहा है कि चिनीमिट्टी पित्ताशय से ग्रस्त लोगों में पित्ताशय का कर्कट रोग होने की अधिक संभावना है, लेकिन अन्य अध्ययन इसी निष्कर्ष पर सवालिया निशान भी लगाते हैं। अगर कर्कट रोग के बारे में लक्षण प्रकट होने के बाद पता चलता है तो स्वास्थ्य लाभ की संभावना कम है। .

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प्रोबायोटिक

लैक्टोबैसिलस जीवाणु प्रोबायोटिक जीवाणु है, जो दूध को दही में बदलता है। प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं। प्रोबायोटिक विधि रूसी वैज्ञानिक एली मैस्निकोफ ने २०वीं शताब्दी में प्रस्तुत की थी। इसके लिए उन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।। हिन्दुस्तान लाइव। १ दिसम्बर २००९ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रोबायोटिक वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं।। बिज़नेस भास्कर। २४ मई २००९। डॉ॰ रतन सागर खन्ना ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं।। बिज्नेस स्टैण्डर्ड। नेहा भारद्वाज। १८ सितंबर २००८ इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु। भोजन के द्वारा यदि मित्र जीवाणुओं को भीतर लें तो वे धीरे-धीरे शरीर में उपलब्ध शत्रु जीवाणुओं को नष्ट करने में कारगर सिद्ध होते हैं। मित्र जीवाणु प्राकृतिक स्रोतों और भोजन से प्राप्त होते हैं, जैसे दूध, दही और कुछ पौंधों से भी मिलते हैं। अभी तक मात्र तीन-चार ही ऐसे जीवाणु ज्ञात हैं जिनका प्रयोग प्रोबायोटिक रूप में किया जाता है। इनमें लैक्टोबेसिलस, बिफीडो, यीस्ट और बेसिल्ली हैं। इन्हें एकत्र करके प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ में डाला जाता है। वैज्ञानिकों के अब तक के अध्ययन के अनुसार इस तरह से शरीर में पहुंचने वाले जीवाणु किसी प्रकार की हानि भी नहीं पहुंचाते हैं। शोधों में रोगों के रोकथाम में इनकी भूमिका सकारात्मक पाई गई है तथा इनके कोई दुष्प्रभाव भी ज्ञात नहीं हैं। .

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पूर्णहृदरोध

पूर्णहृदरोध, (जिसे कार्डियोपल्मोनरी अरेस्ट या सर्कुलेटरी अरेस्ट) हृदय द्वारा प्रभावी ढंग से सिकुड़ने में विफलता की वजह से रक्त के सामान्य संचरण का ठहराव है। चिकित्सा कर्मी एक अप्रत्याशित पूर्णहृदरोध को सडेन कार्डियक अरेस्ट या SCA सन्दर्भित कर सकते हैं। पूर्णहृदरोध, दिल के दौरे से भिन्न है (लेकिन उसकी वजह से हो सकता है) जिसके तहत हृदय की मांसपेशी में रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है। बाधित रक्त परिसंचरण, शरीर में ऑक्सीजन के वितरण को रोक देता है। मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी से चेतना का लोप हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सांस लेने में असामान्यता आ जाती है या श्वास अनुपस्थिति हो जाती है। यदि पूर्णहृदरोध पांच मिनट से अधिक देर तक अनुपचारित रहे तो मस्तिष्क घात की संभावना होती है। बचने और स्नायविक लाभ के सबसे अच्छे मौके के लिए तत्काल और निर्णायक इलाज आवश्यक है। पूर्णहृदरोध एक चिकित्सकीय आपातस्थिति है, कुछ ख़ास स्थितियों में अगर इसका समय से इलाज किया जाए तो संभावित रूप से सुधार आ जाता है। जब अप्रत्याशित पूर्णहृदरोध से मौत हो जाती है तो इसे सडेन कार्डिएक डेथ (SCD) कहा जाता है। पूर्णहृदरोध का उपचार कार्डियोपल्मोनरी पुनरुत्थान (CPR) है जिसके द्वारा परिसंचरण समर्थन प्रदान किया जाता है, जिसके बाद यदि कंपन देने योग्य लय मौजूद है तो डिफ़ाइब्रिलेशन होता है। सीपीआर और अन्य नैदानिक उपायों के बाद अगर कम्पन देने योग्य लय विद्यमान नहीं है तो मौत अनिवार्य है। .

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फुफ्फुसीय अन्त:शल्यता

फुफ्फुसीय अन्त: शल्यता (PE) फेफड़े की मुख्य धमनी या इसके किसी भाग में किसी पदार्थ के द्वारा होने वाला एक रूकावट है जो शरीर के किसी अन्य भाग से रक्त प्रवाह (इंबोलिज्म) के माध्यम से आता है। यह आमतौर पर पैर के गहरे नसों सेथ्रंबस(रक्त थक्का) के एंबोलिज्म को कारण होता है, इस प्रक्रिया को शिरापरक थ्रंबोइंबोलिज्म कहते हैं। इसका एक छोटा अनुपात हवा, वसा या उल्बीय तरल के इंबोलाइजेशन के कारण होता है। फेफड़े में रक्त प्रवाह की रूकावट और परिणामस्वरूप हृदय केदाहिने सुराग में दबाव पीई के लक्षण और संकेत को दिशा देता है। विभिन्न अवस्थाओं में पीई का खतरा बढ़ जाता है, जैसेकिकैंसर और लंबे समय का आराम.

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बाल्यकाल स्थूलता (बच्चों में मोटापा)

बाल्यकाल स्थूलता एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में उपस्थित अतिरिक्त वसा बच्चे के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। चूंकि प्रत्यक्ष रूप से शारीरिक वसा के मापन की विधियां कठिन हैं, मोटापे या स्थूलता का निदान अक्सर बीएमआई पर आधारित होता है। बच्चों में स्थूलता या मोटापे की स्थिति बढती जा रही है और मोटापा स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसीलिए इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बंधित एक गंभीर चिंता का विषय माना जाता है। ऐसे बच्चों को अक्सर स्थूलता से पीड़ित नहीं कहा जाता बल्कि ऐसा कहा जाता है कि उनका वजन अधिक है या वे ओवरवेट हैं, क्योंकि यह सुनने में कम बुरा लगता है। .

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बिवाई

बिवाई पैरों की एड़ियों में होती हैं। इसे एड़ियों का फटना भी कहा जाता है। एक सामान्य सौंदर्य समस्या हो सकती है, लेकिन इससे गंभीर चिकित्सकीय समस्या भी पैदा हो सकती है। एड़ियों की बिवाई उस समय सामने आती है, जब एड़ियों के नीचे की बाहरी सतह की त्वचा कड़ी, सूखी और भुरभुरी हो जाती है। कभी-कभी तो बिवाई इतनी गहरी होती है कि उसमें दर्द होने लगता है और खून निकलने लगता है। फटी हुई एड़ियां पैरों की एक सामान्य समस्या है, जिसे बिवाई भी कहा जाता है। एड़ियों का फटना आमतौर पर सूखी त्वचा (जेरोसिस) के कारण होता है। जब एड़ी के चारों ओर की त्वचा मोटी हो जाती है (कैलस), तो समस्या अधिक गंभीर हो जाती है। .

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बवासीर

बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है। 1- खूनी बवासीर:- खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है। 2-बादी बवासीर:- बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी भाषा में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीड़ा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अँग्रेजी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रकार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। .

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भार वृद्धि

वजन बढ़ाने के एक उत्पाद के लिए 1895 का एक विज्ञापन शरीर के वजन में बढ़ोतरी को वजन वृद्धि कहते हैं। यह, या तो मांसपेशियों में बढ़ोतरी और वसा के एकत्रीकरण से हो सकता है या फिर अतिरिक्त तरल पदार्थ जैसे पानी के कारण हो सकता है। .

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भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (2009)

वर्ष 2009 में भारत के लोगों को पोलियो, एचआईवी और मलेरिया जैसी चिरपरिचित बिमारियों के साथ ही स्वाइन फ्लू नामक नई बीमारी का भी सामना करना पडा। इस वर्ष की दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं- .

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मधुमेह टाइप 2

मधुमेह मेलिटस टाइप 2जिसे पहले "गैर-इंसुलिन-निर्भर मधुमेह मेलिटस (NIDDM)" या "वयस्कता में शुरु होने वाला मधुमेह"कहा जाता था, एक चपापचय विकार है, जिसे इंसुलिन प्रतिरोध और सापेक्ष इंसुलिन कमी के संदर्भ में उच्च रक्त ग्लूकोस द्वारा पहचाना जाता है।यह मधुमेह मेलिटस टाइप 1 के विपरीत होता है जिसमें अग्नाशय में आइलेट कोशिकाओं के विघटन के कारण पूर्ण इंसुलिन की कमी होती है। अधिक प्यास लगना, बार-बार मूत्र लगना और लगातार भूख लगना कुछ चितपरिचित लक्षण हैं। मधुमेह टाइप 2 का आरंभिक प्रबंधन व्यायाम और आहार संबंधी सुधारको बढ़ा कर किया जाता है। यदि इन उपायों से रक्त ग्लूकोस स्तर पर्याप्त रूप से कम नहीं होते हैं तो मेटफॉर्मिनया इंसुलीन जैसी दवाओं की जरूरत हो सकती है। वे लोग जो इंसुलिन पर हैं, उनमें रक्त शर्करास्तरों की नियमित जांच की आवश्यकता होती है। मधुमेह की दर, मोटापे की दर के सामान पिछले 50 वर्षों में समांतर रूप से बढ़ी है। 2010 में लगभग 285 मिलियन लोग इस रोग से पीड़ित हैं, जबकि 1985 में इनकी संख्या लगभग 30 मिलियन थी। उच्च रक्त शर्करा से दीर्घावधि में होने वाली जटिलताओं में हृदय रोग, दौरे, मधुमेह रैटिनोपैथी जिसमें आंखो की देखने की क्षमता प्रभावित होती है, गुर्दे की विफलता जिसमें डायलिसिसकी जरूरत पड़ सकती है और अंगों में खराब संचरण के कारण अंग विच्छेदनशामिल हो सकता है। हलांकि मधुमेह टाइप 1 का गुण जो कि कीटोन बॉडी की अधिकताकी गंभीर जटिलता है, असमान्य है। हलांकि, नॉनएकेटोटिक हाइप्रोस्मोलर कोमाहो सकता है। .

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मनोविदलता

मनोविदलता (Schizophrenia/स्किज़ोफ्रेनिया) एक मानसिक विकार है। इसकी विशेषताएँ हैं- असामान्य सामाजिक व्यवहार तथा वास्तविक को पहचान पाने में असमर्थता। लगभग 1% लोगो में यह विकार पाया जाता है। इस रोग में रोगी के विचार, संवेग तथा व्यवहार में आसामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह कुछ समय लिए अपनी जिम्मेदारियों तथा अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है। 'मनोविदलता' और 'स्किज़ोफ्रेनिया' दोनों का शाब्दिक अर्थ है - 'मन का टूटना'। .

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मैनुएल उरीबे

मैनुएल उरीबे मैनुएल उरीबे गर्ज़ा (११ जून १९६५ – २६ मई २०१४) मैक्सिको के नागरिक थे। वो दर्ज इतिहास के सबसे अधिकत्तम अवस्था में मोटापे की बिमारी से ग्रस्थ व्यक्ति थे। उनका नाम सन् २००६ में उरीबे का वज़न ५६० किलो था जिसके साथ ही उनका नाम दुनिया के सबसे मोटे व्यक्ति के तौर पर गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज़ हो गया। .

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मैकडॉनल्ड्स

मैकडॉनल्ड्स कार्पोरेशन (McDonald's Corporation), हैमबर्गर फास्ट फ़ूड रेस्तरां की विश्व की सबसे बड़ी श्रृंखला है, जो प्रतिदिन 58 मिलियन से ज्यादा ग्राहकों की सेवा करती है। खुद की प्रमुख रेस्तरां श्रृंखला के अतिरिक्त, मैकडॉनल्ड्स कार्पोरेशन के पास 2008 तक प्रेट ए मैनेजर में अल्पसंख्यक हिस्सेदारी थी, यह 2006 तक चिपोटल मेक्सिकन ग्रिल में प्रमुख निवेशक रही थी, और 2007 तक बोस्टन मार्केट रेस्तरां श्रृंखला का स्वामित्व भी इसके अधीन था। एक मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां को फ्रेंचाइजी, सहबद्ध या स्वयं कार्पोरेशन द्वारा संचालित किया जाता है। कार्पोरेशन की आय किराये, रॉयल्टी और फ्रेंचाइजी द्वारा दी गयी फीस, साथ ही कंपनी द्वारा संचालित रेस्तरां में होने वाली बिक्री से भी होती है।२०१५ में, कंपनी के एक ब्रांड के ८१ बिलियन यू.एस.डॉलर के एक से अधिक अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, स्टारबक्स दोगुना से अधिक मूल्य था। मैकडॉनल्ड्स इतनी भूमंडलीकृत कि बिग मैक सूचकांक के पैमाने है कि एक बिग मैक बर्गर की कीमत का उपयोग कर दोनों देशों के बीच क्रय शक्ति अब एक समानता के उपाय का वैश्विक सूचक है।कीमत के बावजूद, बिग एमएसीएस दुनिया भर में २०१५ में मैकडॉनल्ड्स २५.४१ बिलियन यू.एस.

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मोटरवाहन

कार्ल बेन्ज़'स "वेलो"मॉडल (1894) -सबसे पहले गाड़ियों के होड़ में आई right विश्व मानचित्र प्रति 1000 लोग गाड़ी, मोटरवाहन, कार, मोटरकार या ऑटोमोबाइल एक पहियों वाला वाहन है, जो यात्रियों के परिवहन के काम आता है; और जो अपना इंजन या मोटर भी स्वयं उठाता है। इस शब्द की अधिकांश परिभाषाओं के अनुसार मोटरवाहन मुख्य रूप से सड़कों पर चलाने के लिए हैं, एक से आठ लोगों कों बैठाने के लिए हैं, आमतौर पर जिनके चार पहिये होते हैं, जिनका निर्माण मुख्य रूप से सामान के उपेक्षा लोगों के परिवहन के लिए किया जाता है। मोटरकार शब्द का प्रयोग विद्युतिकृत रेल प्रणाली के सन्दर्भ में, एक ऐसी कार के लिए प्रयुक्त होता है, जो एक छोटा लोकोमोटिव होने के साथ ही, इसमे लोगों और सामान के लिए जगह भी होती है। ये लोकोमोटिव कार उपनगरीय मार्गों में अंतर्नगरीय रेल प्रणालियों में इस्तेमाल की जाती हैं। 2002 तक, 590 मिलियन यात्री करें दुनिया भर में थी (मोटे तौर पर एक कार प्रति ग्यारह लोग).

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यकृत शोथ

हेपाटाइटिस या यकृत शोथ यकृत को हानि पहुंचाने वाला एक गंभीर और खतरनाक रोग होता है। इसका शाब्दिक अर्थ ही यकृत को आघात पहुंचना है। यह नाम प्राचीन ग्रीक शब्द हेपार (ἧπαρ), मूल शब्द हेपैट - (ἡπατ-) जिसका अर्थ यकृत और प्रत्यय -आइटिस जिसका अर्थ सूज़न है, से व्युत्पन्न है। इसके प्रमुख लक्षणों में अंगो के उत्तकों में सूजी हुई कोशिकाओं की उपस्थिति आता है, जो आगे चलकर पीलिया का रूप ले लेता है। यह स्थिति स्वतः नियंत्रण वाली हो सकती है, यह स्वयं ठीक हो सकता है, या यकृत में घाव के चिह्न रूप में विकसित हो सकता है। हैपेटाइटिस अतिपाती हो सकता है, यदि यह छः महीने से कम समय में ठीक हो जाये। अधिक समय तक जारी रहने पर चिरकालिक हो जाता है और बढ़ने पर प्राणघातक भी हो सकता है।। हिन्दुस्तान लाइव। १८ मई २०१० हेपाटाइटिस विषाणुओं के रूप में जाना जाने वाला विषाणुओं का एक समूह विश्व भर में यकृत को आघात पहुंचने के अधिकांश मामलों के लिए उत्तरदायी होता है। हेपाटाइटिस जीवविषों (विशेष रूप से शराब (एल्कोहोल)), अन्य संक्रमणों या स्व-प्रतिरक्षी प्रक्रिया से भी हो सकता है। जब प्रभावित व्यक्ति बीमार महसूस नहीं करता है तो यह उप-नैदानिक क्रम विकसित कर सकता है। यकृत यानी लिवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह भोजन पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर में जो भी रासायनिक क्रियाएं एवं परिवर्तन यानि उपापचय होते हैं, उनमें यकृत विशेष सहायता करता है। यदि यकृत सही ढंग से अपना काम नहीं करता या किसी कारण वे काम करना बंद कर देता है तो व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं। जब रोग अन्य लक्षणों के साथ-साथ यकृत से हानिकारक पदार्थों के निष्कासन, रक्त की संरचना के नियंत्रण और पाचन-सहायक पित्त के निर्माण में संलग्न यकृत के कार्यों में व्यवधान पहुंचाता है तो रोगी की तबीयत ख़राब हो जाती है और वह रोगसूचक हो जाता है। ये बढ़ने पर पीलिया का रूफ लेता है और अंतिम चरण में पहुंचने पर हेपेटाइटिस लिवर सिरोसिस और यकृत कैंसर का कारण भी बन सकता है। समय पर उपचार न होने पर इससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। .

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रक्त चाप

स्फिगमोमनोमीटर, धमनीय दाब के मापन में प्रयुक्त एक उपकरण. रक्त चाप (BP), रक्त वाहिकाओं की बाहरी झिल्ली पर रक्त संचार द्वारा डाले गए दबाव (बल प्रति इकाई क्षेत्र) है और यह प्रमुख जीवन संकेतों में से एक है। संचरित रक्त का दबाव, धमनियों और केशिकाओं के माध्यम से हृदय से दूर और नसों के माध्यम से हृदय की ओर जाते समय कम होता जाता है। जब अर्थ सीमित ना हो, तब सामान्यतः रक्त चाप शब्द से तात्पर्य '''बाहु धमनीय दाब''' है: अर्थात् बाईं या दाईं ऊपरी भुजा की मुख्य रक्त वाहिका, जो रक्त को हृदय से दूर ले जाती है। तथापि, रक्त चाप को कभी-कभी शरीर के अन्य भागों में भी मापा जा सकता है, जैसे टखनों पर.

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रेकी चिकित्सा

100px रेकी चिकित्सा प्रगति पर 2-ch'i4 |j.

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शर्करा

डेट्राइट, मिशिगनआवर्धित रूप में चीनी के दाने शक्कर, शर्करा या चीनी (Sugar) एक क्रिस्टलीय खाद्य पदार्थ है। इसमें मुख्यत: सुक्रोज, लैक्टोज एवं फ्रक्टोज उपस्थित होता है। मानव की स्वाद ग्रन्थियाँ मस्तिष्क को इसका स्वाद मीठा बताती हैं। चीनी मुख्यत: गन्ना (या ईख) एवं चुकन्दर से तैयार की जाती है। यह फलों, मधु एवं अन्य कई स्रोतों में भी पायी जाती है। इसे मारवाडी भाषा में 'खोड' अथवा ' मुरस ' कहा जाता है। चीनी की अत्यधिक मात्रा खाने से प्रकार-२ का मधुमेह होने की घटनाएँ अधिक देखी गयीं हैं। इसके अलावा मोटापा और दाँतों का क्षरण भी होता है। विश्व में ब्राजील में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत सर्वाधिक होती है। भारत में एक देश के रूप में सर्वाधिक चीनी का खपत होती है। .

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शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index)

शरीर द्रव्यमान सूचकांक (Body mass index) (BMI), या क्वेटलेट सूचकांक, एक विवादास्पद सांख्यिकीय माप है जो एक व्यक्ति के भार और उंचाई की तुलना करता है। हालांकि यह वास्तव में शरीर की वसा की प्रतिशतता का मापन नहीं करता है, फिर भी यह व्यक्ति की लम्बाई के आधार पर उसके स्वस्थ शरीर के भार का अनुमान लगाता है। इसकी मापन और गणना की आसान पद्धति के कारण, यह एक आबादी में भार की समस्याओं को पता लगाने का सबसे व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला नैदानिक उपकरण है, आमतौर पर यह पता लगाने का कि व्यक्तियों का भार जरुरत से कम है (underweight), जरुरत से अधिक है (overweight), या वे मोटापे (obese) के शिकार हैं। इसकी खोज 1830 और 1850 के बीच बेल्जियन पोलिमेथ एडोल्फ क्वेटलेट ने "सामाजिक भौतिकी" के विकास के दौरान की.

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शारीरिक फिटनेस

लगभग सभी सैन्य बलों में सेवा के लिए आवश्यक गुण शारीरिक फिटनेस है। शारीरिक फिटनेस के अंतर्गत दो संबंधित अवधारणाएं होती हैं: सामान्य फिटनेस (स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती की एक स्थिति) और विशिष्ट फिटनेस (खेल या व्यवसायों के विशिष्ट पहलुओं को करने की योग्यता पर आधारित कार्योन्मुखी परिभाषा).

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स्तन कैन्सर

स्तन कैन्सर (Breast cancer), स्तन के ऊतकों से आरम्भ होने वाला कैन्सर है। .

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स्वस्थ आहार

ताजा सब्जियां स्वस्थ आहार की महत्वपूर्ण घटक हैं। प्रमुख रंगीन फल स्वस्थ आहार वह है जोकि स्वास्थ्य को बनाए रखने या उसे सुधारने में मदद करता है। यह कई चिरकालिक स्वास्थ्य जोखिम जैसे कि: मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है। एक स्वस्थ आहार में समुचित मात्रा में सभी पोषक तत्वों और पानी का सेवन शामिल है। पोषक तत्व कई अलग खाद्य पदार्थों से प्राप्त किए जा सकते हैं, अतः विस्तृत विविध आहार मौजूद हैं जिन्हें स्वस्थ आहार माना जा सकता है। स्वस्थ्य आहार हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। .

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हारा हाची बू

हारा हाची बू (腹八分) एक जापानी कहावत और नारा है जिसका अर्थ है "दस में से आठ भाग भरना"। यह जापान के कई क्षेत्रों में, विशेषकर ओकिनावा, में खाना खाने से सम्बंधित एक प्रथा है जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को भोजन करते हुए केवल उतना ही खाना चाहिए जिसमें उसे लगे के उसका पेट 80% भर चुका है। यानि उतना कभी नहीं खाना चाहिए के पूरी तृप्ति हो जाये। काफ़ी अध्ययन के बाद पाया गया है के ओकिनावा के लोगों में मोटापा, मधुमेह और इनसे सम्बंधित हृदय रोग लगभग न के बराबर देखे जाते हैं। ओकिनावा के 29% लोग 100 साल की उम्र से ज़्यादा जीतें हैं जो पश्चिमी देशों का चार गुना है। इस स्वास्थ्य का श्रेय "हारा हाची बू" और ओकिनावा की अन्य सेहत सुरक्षित रखने वाली प्रथाओं को दिया जाता है। .

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हृदयाघात

रोधगलन (MI) या तीव्र रोधगलन (AMI) को आमतौर पर हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल के दौरे के रूप में जाना जाता है, जिसके तहत दिल के कुछ भागों में रक्त संचार में बाधा होती है, जिससे दिल की कोशिकाएं मर जाती हैं। यह आमतौर पर कमजोर धमनीकलाकाठिन्य पट्टिका के विदारण के बाद परिहृद्-धमनी के रोध (रूकावट) के कारण होता है, जो कि लिपिड (फैटी एसिड) का एक अस्थिर संग्रह और धमनी पट्टी में श्वेत रक्त कोशिका (विशेष रूप से बृहतभक्षककोशिका) होता है। स्थानिक-अरक्तता के परिणामस्वरूप (रक्त संचार में प्रतिबंध) और ऑक्सीजन की कमी होती है, अगर लम्बी अवधि तक इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो हृदय की मांसपेशी ऊतकों (मायोकार्डियम) की क्षति या मृत्यु (रोधगलन) हो सकती है। तीव्र रोधगलन के शास्त्रीय लक्षणों में अचानक छाती में दर्द, (आमतौर पर बाएं हाथ या गर्दन के बाएं ओर), सांस की तकलीफ, मिचली, उल्टी, घबराहट, पसीना और चिंता (अक्सर कयामत आसन्न भावना के रूप में वर्णित) शामिल हैं.

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जंक फूड

चीटोज़ को भी जंक खाद्य श्रेणी में स्थान मिला है, क्योंकि ये औद्योगिक रसोई में ही निर्मित होते हैं व पैक किये जाते हैं लूथर बर्गर, बेकन चीज़ बर्गर में डोनट का प्रयोग होने पर भी उच्च शर्करा और वसा मात्रा होने से जंक खाद्य में रखा गया है जंक फूड आमतौर पर विश्व भर में चिप्स, कैंडी जैसे अल्पाहार को कहा जाता है। बर्गर, पिज्जा जैसे तले-भुने फास्ट फूड को भी जंक फूड की संज्ञा दी जाती है तो कुछ समुदाय जाइरो, तको, फिश और चिप्स जैसे शास्त्रीय भोजनों को जंक फूड मानते हैं। इस श्रेणी में क्या-क्या आता है, ये कई बार सामाजिक दर्जे पर भी निर्भर करता है। उच्चवर्ग के लिए जंक फूड की सूची काफी लंबी होती है तो मध्यम वर्ग कई खाद्य पदार्थो को इससे बाहर रखते हैं। कुछ हद तक यह सही भी है, खासकर शास्त्रीय भोजन के मामले में। सदियों से पारंपरिक विधि से तैयार होने वाले ये खाद्य पदार्थ पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। संजय गांधी स्नातकोत्तर अनुसंधान संस्थान के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ॰ सुशील गुप्ता के अनुसार जंक फूड आने से पिछले दस सालों में मोटापे से ग्रस्त रोगियों की संख्या काफी बढ़ी है। इनमें केवल बच्चे ही नहीं बल्कि युवा वर्ग भी शामिल है।। जोश १८।।१९ मार्च,२००८। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। अनुपमा त्रिपाठी। इसी संस्थान के गैस्ट्रोएंट्रोलाजी विभाग के प्रोफेसर जी.

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वात रोग

वात रोग (जिसे पोडाग्रा के रूप में भी जाना जाता है जब इसमें पैर का अंगूठा शामिल हो) एक चिकित्सिकीय स्थिति है आमतौर पर तीव्र प्रदाहक गठिया—लाल, संवेदनशील, गर्म, सूजे हुए जोड़ के आवर्तक हमलों के द्वारा पहचाना जाता है। पैर के अंगूठे के आधार पर टखने और अंगूठे के बीच का जोड़ सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है (लगभग 50% मामलों में)। लेकिन, यह टोफी, गुर्दे की पथरी, या यूरेट अपवृक्कता में भी मौजूद हो सकता है। यह खून में यूरिक एसिड के ऊंचे स्तर के कारण होता है। यूरिक एसिड क्रिस्टलीकृत हो जाता है और क्रिस्टल जोड़ों, स्नायुओं और आस-पास के ऊतकों में जमा हो जाता है। चिकित्सीय निदान की पुष्टि संयुक्त द्रव में विशेष क्रिस्टलों को देखकर की जाती है। स्टेरॉयड-रहित सूजन-रोधी दवाइयों (NSAIDs), स्टेरॉयड या कॉलचिसिन लक्षणों में सुधार करते हैं। तीव्र हमले के थम जाने पर, आमतौर पर यूरिक एसिड के स्तरों को जीवन शैली में परिवर्तन के माध्यम से कम किया जाता है और जिन लोगों में लगातार हमले होते हैं उनमें, एलोप्यूरिनॉल या प्रोबेनेसिड दीर्घकालिक रोकथाम प्रदान करते हैं। हाल के दशकों में वात रोक की आवृत्ति में वृद्धि हुई है और यह लगभग 1-2% पश्चिमी आबादी को उनके जीवन के किसी न किसी बिंदु पर प्रभावित करता है। माना जाता है कि यह वृद्धि जनसंख्या बढ़ते हुए जोखिम के कारकों की वजह से है, जैसे कि चपापचयी सिंड्रोम, अधिक लंबे जीवन की प्रत्याशा और आहार में परिवर्तन। ऐतिहासिक रूप से वात रोग को "राजाओं की बीमारी" या "अमीर आदमी की बीमारी" के रूप में जाना जाता था। .

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व्यायाम

एक यू एस मैरीन ट्रायाथलॉन के तैरने के हिस्से को पूरा कर पानी से बाहर आता हुआ। व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है। यह कई अलग अलग कारणों के लिए किया जाता है, जिनमे शामिल हैं: मांसपेशियों को मजबूत बनाना, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, एथलेटिक कौशल बढाना, वजन घटाना या फिर सिर्फ आनंद के लिए। लगातार और नियमित शारीरिक व्यायाम, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है और यह हमारी नींद कम करता है इससे हमें सुबह उठने पर तकलीफ नहीं होतीहृदय रोग, रक्तवाहिका रोग, टाइप 2 मधुमेह और मोटापा जैसे समृद्धि के रोगों को रोकने में मदद करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है और तनाव को रोकने में मदद करता है। बचपन का मोटापा एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता का विषय है और शारीरिक व्यायाम से बचपन के मोटापे के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है। .

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वृद्धि हार्मोन

वृद्धि हार्मोन (जीएच (GH)) एक प्रोटीन पर आधारित पेप्टाइड हार्मोन है। यह मनुष्यों और अन्य जानवरों में वृद्दि, कोशिका प्रजनन और पुनर्निर्माण को प्रोत्साहित करता है। वृद्धि हार्मोन एक 191-अमाइनो अम्लों वाला, एकल-श्रंखला का पॉलिपेप्टाइड है जिसे अग्र पीयूष ग्रंथि के पार्श्विक कक्षों के भीतर सोमेटोट्रॉपिन (कायपोषी) कोशिकाओं द्वारा संश्लेषित, संचयित और स्रावित किया जाता है। सोमेटोट्रॉपिन (कायपोषी) से मतलब जानवरों में प्राकृतिक रूप से उत्पादित वृद्धि हार्मोन 1 से है, जबकि पुनःसंयोजी डीएनए (DNA) तकनीक से उत्पादित वृद्धि हार्मोन के लिये सोमाट्रॉपिन शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका संक्षिप्त रूप मनुष्यों में "एचजीएच (HGH)" है। वृद्धि हार्मोन का प्रयोग चिकित्सा-विज्ञान में बच्चों के वृद्धि विकारों और वयस्क वृद्धि हार्मोन अल्पता के उपचार के लिये नुस्खे में लिखी जाने वाली औषधि के रूप में किया जाता है। युनाइटेड स्टेट्स में यह कानूनी रूप से केवल डाक्टर के नुस्खे पर दवाई की दुकानों में उपलब्ध है। पिछले कुछ वर्षों में, युनाइटेड स्टेट्स में कुछ डाक्टरों ने जीएच-अल्पताग्रस्त (लेकिन स्वस्थ लोगों में नहीं) अधिक उम्र के रोगियों में जीवनशक्ति बढ़ाने के लिये वृद्धि हार्मोन के नुस्खे लिखना शुरू कर दिया है। कानूनन सही होते हुए भी, एचजीएच (HGH) के इस प्रयोग की प्रभावशीलता और सुरक्षा को किसी चिकित्सकीय प्रयोग में नहीं परखा गया है। इस समय, एचजीएच (HGH) को अभी भी एक अत्यंत जटिल हार्मोन माना जाता है और इसके कार्यों में से कई के बारे में अब तक जानकारी नहीं है। उपचय-प्रोत्साहक एजेंट के रूप में, एचजीएच (HGH) का प्रयोग 1970 के दशक से खेलों में प्रतिस्पर्धियों द्वारा किया जाता रहा है और इसे आईओसी (IOC) और एनसीएए (NCCA) द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है। चूंकि पारम्परिक मूत्र विश्लेषण से एचजीएच (HGH) की उपस्थिति का पता नहीं लगाया जा सकता था, इसलिये इस प्रतिबंध को 2000 के दशक के प्रारंभ तक लागू नहीं किया जा सका, जिस समय प्राकृतिक और कृत्रिम एचजीएच (hGH) का अंतर पहचानने वाले रक्त परीक्षणों का विकास शुरू हो रहा था। एथेंस, ग्रीस में 2004 ओलिम्पिक खेलों में ‘वाडा (WADA)’ द्वारा किये गए रक्त के परीक्षणों का उद्देश्य मुख्यतः एचजीएच (HGH) का पता लगाना था। इस दवा का यह उपयोग एफडीए (FDA) द्वारा अनुमोदित नहीं है और युनाइटेड स्टेट्स में कानूनन जीएच (GH) केवल डाक्टरी नुस्खे पर ही उपलब्ध है। जीएच का अध्ययन औद्योगिक कृषि में पशुधन का अधिक बेहतर तरीके से विकास करने हेतु प्रयोग के लिये किया गया है और पशुधन के उत्पादन में जीएच के प्रयोग के लिये सरकारी अनुमोदन प्राप्त करने के लिये कई प्रयत्न किये गए हैं। ये प्रयोग विवादास्पद रहे हैं। युनाइटेड स्टेट्स में, जीएच (GH) का केवल एक एफडीए-अनुमोदित उपयोग है और वह है, डेरी की गायों में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिये गोवंशीय सोमेटोट्रॉपिन नामक जीएच के एक गाय-विशिष्ट प्रकार का प्रयोग.

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गर्भकालीन मधुमेह

गर्भकालीन मधुमेह (या गर्भकालीन मधुमेह मेलिटस, जीडीएम (GDM)) एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें ऐसी महिलाओं में, जिनमें पहले से मधुमेह का निदान न हुआ हो, गर्भावस्था के समय रक्त में शर्करा के उच्च स्तर पाए जाते हैं। गर्भकालीन मधुमेह के साधारणतः बहुत कम लक्षण होते हैं और इसका निदान अधिकतर गर्भावस्था में जांच के समय किया जाता है। रोग की पहचान के लिए किए जाने वाले परीक्षणों से रक्त के नमूनों में ग्लूकोज़ के अनुपयुक्त उच्च स्तर का पता चलता है। गर्भकालीन मधुमेह अध्ययनाधीन आबादी के अनुसार सभी सगर्भताओं के 3-10% को प्रभावित करती है।थॉमस आर मूर के प्रबंध निदेशक एट अल.

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आहारीय रेशा

लेग्यूम्स में आहारीय रेशा भरपूर मात्रा में उपस्थित होता है आहारीय रेशा, आहार में उपस्थित रेशे तत्त्व को कहते हैं। ये पौधों से मिलने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारू बनाने का अत्यावश्यक योगदान करते हैं। रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं। इनको एन्ज़ाइम भंग नहीं कर पाते हैं। अतः ये अपाच्य होते हैं।।। हेल्थ एण्ड थेराप्यूटिक। अभिगमन तिथि:११ अक्टूबर, २००९ कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के संबंध में बेकार समझा जाता था, किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषतायें होती हैं, जैसे ये शरीर में जल को रोक कर रखते हैं, जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं। रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर भी बांटा जाता है। ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं। ये दोनों तत्व पौधों से मिलने वाले रेशों में पाए जाते हैं। सब्जियां, गेहू और अधिकतर अनाजों में घुलनशील रेशे की अपेक्षा अघुलनशील रेशा होता है। स्वास्थ्य में योगदान की दृष्टि से दोनों तरह के रेशे अपने-अपने ढंग से काम करते हैं। जहां घुलनशील रेशे से संपूर्ण स्वास्थय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं अघुलनशील रेशे से मोटापा संबंधी समस्या भी बढ़ सकती है। अघुलनशील रेशे पाचन में मदद करते है और कब्ज कम करते है। घुलनशील रेशे सीरम कोलेस्ट्राल कम करते है और अच्छे कोलेस्ट्राल (एच.डी.एल) का अनुपात बढाते है। भोजन में उच्च रेशे वाले आहार से वजन नियंत्रित होता है। ऐसे भोजन को अधिक चबाना पड़ता है एवं अधिक ऊर्जा व्यय होती है। इसके साथ ही रेशा इन्सुलिन के स्तर कोप भी गिराता है, जिससे भूख पर नियंत्रण रहता है, तथा उच्च रेशा आहार पेट में अधिक समय तक रहते हैं, जिससे पेट भरे होने का अहसास भी रहता है। रेशा मल निर्माण को भी प्रभावित करता है और इसे अधिक भारी बनाता है। मल जितना भारी होगा, आंतों से निकलने में उसे उतना ही समय लगेगा। गेहू की चोकर उच्च रेशे से परिपूर्ण होने के कारण मल का भार बढाने में मदद करती है। उसी मात्रा के गाजर या बन्दगोभी के रेशे से दूगनी प्रभावशील है। हिप्पोक्रेटज के अनुसार सम्पूर्ण अनाज की डबल रोटी आंत को साफ़ कर देती है। आहारीय रेशे सभी पौधों में पाए जाते हैं। जिन पौधों में रेशा अधिक मात्र में पाया जाता है, अधिकतर उनसे ही इन्हें प्राप्त किया जाता है। अधिक मात्र वाले फाइबर पौधों को सीधे तौर पर भी आहार में ग्रहण किया जा सकता है या इन्हें उचित विधि से पकाकर भोजन के तौर पर भी खाया जा सकता है। घुलनशील रेशे कई पौधों में पाए जाते हैं जिनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थो में जौ, केला, सेब, मूली, आलू, प्याज आदि प्रमुख हैं। अघुलनशील रेशे मक्का, आलू के छिलके, मूंगफली, गोभी और टमाटर में से प्राप्त होते हैं। रसभरी जैसे फल में भी रेशा होता है। घुलनशील रेशे से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है, जबकि अघुलनशील रेशे से शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं करनी चाहिए। यह भी ध्यान योग्य है कि दोनों तरीके से शरीर में प्रति ग्राम फाइबर से चार कैलोरी भी जाती है। .

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आहारीय आयोडीन

आहारीय आयोडीन मानव शरीर के अत्यावश्यक भौतिक तत्त्व है। ये अवटु ग्रंथि के सम्यक, कार्यविधि के लिए आवश्यक है जो शक्ति का निर्माण करती है, हानिप्रद कीटाणुओं को मारती है और इसके हार्मोन थांयरांक्सीजन की कमी पूरी करती है। आयोडीन मन को शांति प्रदान करती है, तनाव कम करती है, मस्तिष्क को सतर्क रखती है और बाल, नाखून, दांत और त्वचा को उत्तम स्थिति में रखने में मदद करता है। आयोडिन की कमी से गर्दन के नीचे अवटु ग्रंथि की सूजन (गलगंड) हो सकती है और हार्मोन का उत्पादन बन्द हो सकता है जिससे शरीर के सभीसंस्थान अव्यवस्थित हो सकते हैं। इसकी कमी से मन्द मानसिक प्रतिक्रियायें, धमनियों में सख्ती एवं मोटापा हो सकता है। मानव शरीर में केवल १०-१२ मिलीग्राम आयोडिन होती है किन्तु इसके बिना जीवित रहना सम्भव नही है। आयोडिन कोलेस्ट्रॉल की रासायनिक संशलेषण में सहायता करती है और धमनियों में कोलेस्ट्रॉल चर्बी को भी बढ़ाती है। शरीर में आयोडिन की अधिकता होने से नाक में नमी अधिक हो जाती है। जल में ली गई क्लोरीन शरीर से आयोडिन अधिकता को निकालने का कारण होती है। अधिक मात्रा में आयोडीन वाले आहार है मूली, शतावर (एस्पेरेगस रेसिमोसस), गाजर, टमाटर, पालक, आलू, मटर, खुंभी, सलाद, प्याज, केला, स्ट्राबेरी, समुद्र से प्राप्त होने वाले आहार, अंडे की जर्दी, दूध, पनीर और कॉड-लिवर तेल। आयोडिन की कमी से उत्पन्न विकारों पर नियंत्रण के लिये १९८६ में न्यूसेफ़ और आस्ट्रेलिया की सरकार के समर्थन से तीसरी दुनिया के देशों को सहायता देने के लिये एक अन्तराष्ट्रीय परिषद स्थापित की गई थी। भारत ने १९९२ से पहले व्यापक आयोडिन युक्त नमक की नीति अपनाई थी। श्रेणी:पोषण श्रेणी:आयोडीन श्रेणी:आहार श्रेणी:अवटु ग्रंथि श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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इंग्लिश मास्टिफ़

इंग्लिश मास्टिफ़ कुत्तों की एक नस्ल अंग्रेजी मास्टिफ, जिसे वस्तुत: ऑल केनेल क्लब (एकेसी) आम तौर पर मास्टिफ कहते हैं, कुत्तों की एक बड़ी नस्ल का नाम है, जो पगनेसेज ब्रिटानिया के माध्यम से प्राचीन अलाउंट के वंशज के रूप में संदर्भित किया जाता है। अपने विशाल आकार, बड़े सिर और रंगों के एक सीमित दायरे, लेकिन हमेशा एक काला नकाब प्रदर्शित करने के कारण अलग पहचान वाला मास्टिफ अपने विनम्र स्वभाव के लिए विख्यात है। आधुनिक कुत्तों की वंशावली को 19 वीं शताब्दी की शुरुआत से खोजा जा सकता है और और इसका आधुनिक प्रकार 1880 के दशक में स्थिर हुआ। तेजी से गिरावट के एक मास्टिफ ने दुनिया भर में अपनी लोकप्रियता बढाई.

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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कार्बोहाइड्रेट

रासायनिक रुप से ‘‘कार्बोहाइड्रेट्स पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स होते हैं तथा स्वयं के जलीय अपघटन के फलस्वरुप पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स देते हैं।’’ कार्बोहाइड्रेट्स, कार्बनिक पदार्थ हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन होते है। इसमें हाइड्रोजन व आक्सीजन का अनुपात जल के समान होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स सजीवों के शरीर के रचनात्मक तत्वों का निर्माण करते हैं जैसे कि सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज, काइटिन तथा पेक्टिन। जबकि कुछ कार्बोहाइड्रेट्स उर्जा प्रदान करते हैं, जैसे कि मण्ड, शर्करा, ग्लूकोज़, ग्लाइकोजेन.

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कुपोषणजन्य रोग

कुपोषणजन्य रोग (Deficiency diseases or Nutrition disorders) वे रोग हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शरीर में आवश्यक पोषक पदार्थों की कमी के कारण उत्पन्न होते हैं। बेरीबेरी रोग इसका एक उदाहरण है। ये रोग प्राय: अधिक समय तक कुपोषण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। पोषक पदार्थों की कमी के बजाय उनकी अत्यधिक सेवन भी विषाक्तता जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है। इसी तरह अत्यधिक खाने से उत्पन्न हुआ मोटापा भी स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याओं को जन्म दे सकता है। .

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उच्च रक्तचाप

(HTN) हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है। दबाव की इस वृद्धि के कारण, रक्त की धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाये रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है। रक्तचाप में दो माप शामिल होती हैं, सिस्टोलिक और डायस्टोलिक, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हृदय की मांसपेशियों में संकुचन (सिस्टोल) हो रहा है या धड़कनों के बीच में तनाव मुक्तता (डायस्टोल) हो रही है। आराम के समय पर सामान्य रक्तचाप 100-140 mmHg सिस्टोलिक (उच्चतम-रीडिंग) और 60-90 mmHg डायस्टोलिक (निचली-रीडिंग) की सीमा के भीतर होता है। उच्च रक्तचाप तब उपस्थित होता है यदि यह 90/140 mmHg पर या इसके ऊपर लगातार बना रहता है। हाइपरटेंशन प्राथमिक (मूलभूत) उच्च रक्तचाप तथा द्वितीयक उच्च रक्तचाप के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 90-95% मामले "प्राथमिक उच्च रक्तचाप" के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं, जिसका अर्थ है स्पष्ट अंतर्निहित चिकित्सीय कारण के बिना उच्च रक्तचाप। अन्य परिस्थितियां जो गुर्दे, धमनियों, दिल, या अंतःस्रावी प्रणाली को प्रभावित करती हैं, शेष 5-10% मामलों (द्वितीयक उच्च रक्तचाप) का कारण होतीं हैं। हाइपरटेंशन स्ट्रोक, मायोकार्डियल रोधगलन (दिल के दौरे), दिल की विफलता, धमनियों की धमनी विस्फार (उदाहरण के लिए, महाधमनी धमनी विस्फार), परिधीय धमनी रोग जैसे जोखिमों का कारक है और पुराने किडनी रोग का एक कारण है। धमनियों से रक्त के दबाव में मध्यम दर्जे की वृद्धि भी जीवन प्रत्याशा में कमी के साथ जुड़ी हुई है। आहार और जीवन शैली में परिवर्तन रक्तचाप नियंत्रण में सुधार और संबंधित स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को कम कर सकते हैं। हालांकि, दवा के माध्यम से उपचार अक्सर उन लोगों के लिये जरूरी हो जाता है जिनमें जीवन शैली में परिवर्तन अप्रभावी या अपर्याप्त हैं। .

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'मोटापा', मेदुरता

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