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मैदा

सूची मैदा

मैदा गेहूं के बारीक पिसे चूर्ण यानि आट को कहते हैं। श्रेणी:गेहूं श्रेणी:खाद्य पदार्थ.

15 संबंधों: डबलरोटी, परांठा, पुरन पोली, बालूशाही, मद्दूर वड़ा, मोयन, लूची, शीरमाल, समोसा, साबुन, घेवर, खाजा, गुझिया, आवश्यक वस्तु अधिनियम, कुल्चा

डबलरोटी

डबलरोटी या ब्रैड भाड़ में पकाई हुई खमीर लगे मैदे की रोटी होती है। यह मोटी व गुदगुदी होती है। .

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परांठा

पुदीना परांठा परांठा (उर्दू: پراٹھا, तमिल: பராட்டா) भारतीय रोटी का विशिष्ट रूप है। यह उत्तर भारत में जितना लोकप्रिय है, लगभग उतना ही दक्षिण भारत में भी है, बस मूल फर्क ये हैं, कि जहां उत्तर में आटे का बनता है, वहीं दक्षिण में मैदे का बनता है। प्रतिदिन के उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीपीय नाश्ते में सबसे लोकप्रिय पदार्थ अगर कोई है तो वह परांठा ही है। इसे बनाने की जितनी विधियां हैं वैसे ही हिन्दी में इसके कई रूप प्रचलित हैं जैसे पराठा, परौठा, परावठा, परांठा और परांवठा। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक यह भारतीय रसोई का हिस्सा है और हर सुबह तवे पर सेंके जाते परांठे की लुभावनी खुशबू भूख बढ़ा देती है। हां स्वास्थ्य की दृष्टि से ये अवश्य वसा से भरपूर होने के कारण सीमित मात्रा में ही उपभोग किये जाने चाहिये। परांठा लगभग रोटी की तरह ही बनाया जाता है, फर्क सिर्फ इसकी सिंकाई का है। रोटी को जहां तवे पर सेंकने के बाद सीधे आंच पर भी फुलाया जाता है वहीं परांठा सिर्फ तवे पर ही सेंका जाता है। रोटी को बनाने के बाद ऊपर से शुद्ध घी लगाया जा सकता है, वहीं परांठे को तवे पर सेंकते समय ही घी या तेल लगा कर सेंका जाता है। भरवां परांठा बनाने के लिए आटा या मैदा मल कर उसकी लोई बेल कर उसमें भरावन भरें, फिर उसे बेल कर तवे पर सेंकें। परांठा शब्द बना है उपरि+आवर्त से। उपरि यानी ऊपर का और आवर्त यानी चारों और घुमाना। सिर्फ तवे पर बनाई जाने वाली रोटी या परांठे को सेंकने की विधि पर गौर करें। इसे समताप मिलता रहे इसके लिए इसे ऊपर से लगातार घुमा-फिरा कर सेंका जाता है। फुलके की तरह परांठे की दोनो पर्तें नहीं फूलतीं बल्कि सिर्फ ऊपरी परत ही फूलती है। इसका क्रम कुछ यूं रहा उपरि+आवर्त > उपरावटा > परांवठा > परांठा। वैसे सीधे शब्दों में पर्त वाला आटा का व्यंजन .

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पुरन पोली

पुरन पोली (मराठी और कोंकणी: पुरणपोळी/पुरणाची पोळी, गुजराती: પોળી, तमिल: போளி पोली, कन्नड़: ಹೋಳಿಗೆ ओबट्टु/होलिगे, तेलुगु:बूरेलु या बोब्बाटु या बोब्बाटलु या पोलेय्लु, भाकशालू), महाराष्ट्र का प्रसिद्ध मीठा पकवान है। निशा मधुलिका द्वारा यह हरेक तीज त्योहार आदि के अवसरों पर बनाया जाता है। इसे आमटी के साथ खाया जाता है। गुड़ीपडवा पर्व पर इसे विशेष रूप से बनाया जाता है। पुरन पोली की मुख्य सामग्री चना दाल होती है और इसे गुड़ या शक्कर से मीठा स्वाद दिया जाता है। इसे भरवां मीठा परांठा कहा जा सकता है। हिन्दी भाषी इस स्वादिष्ट व्यंजन को पूरनपोली कहते हैं क्योंकि मराठी के ळ व्यंजन का उच्चारण हिन्दी में नहीं होता है तो इसकी निकटतम ध्वनि ल से काम चलाया जाता है। पूरणपोळी चने की दाल को शक्कर की चाशनी में उबालकर बनाई गयी मीठी पिट्ठी से बनती है। यह पिठ्ठी ही भरावन होता है जिसमें जायफल, इलायची, केसर और यथासंभव मेवा डाल कर सुस्वादु बनाया जाता है। इसमें पीले रंग के लिए चुटकी भर हल्दी भी डाली जा सकती है। चूंकि इसे ही मैदा या आटे की लोई में पूरा या भरा जाता है इसलिए पूरण नाम मिला। संस्कृत की पूर् धातु से बना है पूरण शब्द जिसका अर्थ ऊपर तक भरना, पूरा करना, आदि हैं। चूंकि ऊपर तक भरा होना ही सम्पूर्ण होना है सो पूरण में संतुष्टिकारक भाव भी हैं। मराठी में रोटी के लिए पोळी शब्द है। भाव हुआ भरवां रोटी। पोळी शब्द बना है पल् धातु से जिसमें विस्तार, फैलाव, संरक्षण का भाव निहित है इस तरह पोळी का अर्थ हुआ जिसे फैलाया गया हो। बेलने के प्रक्रिया से रोटी विस्तार ही पाती है। इसके बाद इसे तेल या शुद्ध घी से परांठे की तरह दोनों तरफ घी लगाकर अच्छी तरह लाल और करारा होने तक सेक लेते हैं। वैसे इसे महाराष्ट्र में करारा होने तक सेका जाता है, वहीं कर्नाटक और आंध्र प्रदेश आदि में इसे मुलायम ही रखते हैं। सिकने के बाद इसे गर्म या सामान्य कर परोसा जाता है। इसके साथ आमटी या खीर भी परोसी जाती है। चार सदस्यों के लिए पुरनपोली बनाने का समय है ४० मिनट। इसे बना कर ३-४ दिनों तक रखा भी जा सकता है। कड़ाले बेल ओबट्टु (चना दाल ओबट्टु) .

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बालूशाही

बालूशाही (उर्दू: بالوشاھی) एक प्रकार का पकवान है जो मैदा तथा चीनी से बनाया जाता है। बालूशाही मैदा आटे से बनती है और गहरे घी में तली जाती है। तत्पश्चात् उसे चीनी के सिरप में डुबाया जाता है। श्रेणी:भारतीय मिठाइयाँ.

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मद्दूर वड़ा

मद्दूर वड़ा (ಮದ್ದೂರು ವಡೆ) एक प्रकार का वड़ा होता है और केवल कर्नाटक राज्य विशेष के खानपान में आता है। इस अल्पाहार का नाम कर्नाटक राज्य के मांड्या जिला के मद्दूर कस्बे से आया है। यह शहर बंगलुरु एवं मैसूर शहरों के बीच बसा हुआ है और मद्दूर वड़े इन दोनों के बीच रेल मार्ग एवं सड़क मार्ग पर बसों व रेलों में बेचा जाता है। यह चावल के आटे, सूची एवं मैदा से बनता है। इसमें कड़ी पत्ता, कसा हुआ नारियल, हींग एवं बारीक कटी प्याज भी पड़ती है। सभी चीजों को तेल में हल्का छौंक लगा कर भूना जाटा है और फिर कुछ पानी के साथ मिलाकर गूंधा जाता है। तब इसके बड़े बनाये जाते हैं और सुनहरे भूरे रंग होने तक तेल में तले जाते हैं। .

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मोयन

कोई विवरण नहीं।

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लूची

यदि पूड़ी आटे के स्थान पर मैदे से बनाई जाये तो यह लूची कहलाती है। लूची विशेष रूप से पूर्व में स्थित भारतीय राज्यों जैसे कि पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा और ओसाम में प्रचलित है। इसे बनाने के लिए मैदे में घी का मोयन मिलाकर पानी अथवा दूध में गूंधा जाता है और फिर इसे घी या तेल में तल लिया जाता है। इसे अक्सर तरी वाली सब्जियों के साथ परोसा जाता है। .

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शीरमाल

शीरमाल (ﺸﻴر ماﻝ), केसर के स्वाद वाली मैदा व दूध से बनी अवधी खानपान व पाकिस्तानी खान्पान की एक रोटी होती है। .

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समोसा

समोसा एक तला हुआ या बेक किया हुआ भरवां अल्पाहार व्यंजन है। इसमें प्रायः मसालेदार भुने या पके हुए सूखे आलू, या इसके अलावा मटर, प्याज, दाल, कहीम कहीं मांसा भी भरा हो सकता है। इसका आकार प्रायः तिकोना होता है किन्तु आकार और नाप भिन्न-भिन्न स्थानों पर बदल सकता है। अधिकतर ये चटनी के संग परोसे जाते हैं। ये अल्पाहार या नाश्ते के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, दक्षिण पश्चिम एशिया, अरब प्रायद्वीप, भूमध्य सागर क्षेत्र, अफ़्रीका का सींग, उत्तर अफ़्रीका एवं दक्षिण अफ़्रीका में प्रचलित हैं। .

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साबुन

तरह-तरह के सजावटी साबुन साबुन उच्च अणु भार वाले कार्बनिक वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण है। मृदु साबुन का सूत्र C17H35COOK एवं कठोर साबुन का सूत्र C17H35COONa है। साबुनीकरण की क्रिया में वनस्पति तेल या वसा एवं कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के जलीय घोल को गर्म करके रासायनिक प्रतिक्रिया के द्वारा साबुन का निर्माण होता तथा ग्लीसराल मुक्त होता है। साधारण तापक्रम पर साबुन नरम ठोस एवं अवाष्पशील पदार्थ है। यह कार्बनिक मिश्रण जल में घुलकर झाग उत्पन्न करता है। इसका जलीय घोल क्षारीय होता है जो लाल लिटमस को नीला कर देता है। .

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घेवर

घेवर छप्पन भोग के अन्तर्गत प्रसिद्ध व्यंजन हॅ। यह मैदे से बना, मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक ख़स्ता और मीठा पकवान है। सावन माह की बात हो और उसमें घेवर का नाम ना आए तो कुछ अटपटा लगेगा। घेवर, सावन का विशेष मिष्ठान माना जाता है। हालाँकि अब घेवर की माँग अन्य मिठाइयों के सामने कुछ कम हुई है लेकिन फिर भी आज कुछ लोग घेवर को ही महत्व देते हैं। सावन में तीज के अवसर पर बहन-बेटियों को सिंदारा देने की परंपरा काफी पुरानी है, इसमें चाहे कितना ही अन्य मिष्ठान रख दिया जाए लेकिन घेवर होना अवश्यक होता है। इसलिए साल के विशेष समय पर बनने वाली इस पारंपरिक मिठाई घेवर का वर्चस्व टूटना संभव नहीं है, भले ही आधुनिक मिठाइयों के सामने इसकी लोकप्रियता में कुछ कमी दिखाई देती हो। सावन में इस मिष्ठान की माँग को पूरा करने के लिए छोटे हलवाई से लेकर प्रतिष्ठित हलवाई महिनों पहले काम शुरु कर देते हैं। घेवर बनाने का काम प्रत्येक गली मौहल्ले में जोर-शोर से शुरू हो जाता है। पुराने लोग बताते हैं कि बगैर घेवर के न रक्षाबंधन का सगन पूरा माना जाता है और न ही तीज का। घेवर वैश्वीकरण के दौर में आज घेवर का रूप भी बदलने लगा है, ४० से लेकर २०० रूपये प्रति किलो का घेवर बाजार में उपलब्ध है, जो जैसा दाम लगाता है उसे उसी प्रकार का माल मिल जाता है, सादा घेवर सस्ता है जबकि पिस्ता, बादाम और मावे वाला घेवर मँहगा। पिस्ता बादाम और मावे वाला घेवर ज्यादा प्रचलित हैं, हालाँकि लोगों का कहना है कि जितना आनंद सादा घेवर के सेवन में आता है उतना मेवा-घेवर में कतई नहीं। फिर भी लोग मावा-घेवर को ही खरीदना पसंद करते हैं। कुल मिला कर सावन के महीने में घेवर की खुशबू पूरे बाजार को महका देती है और तीज व रक्षाबंधन के अवसर पर घेवर की दुकानों पर भीड़ देखते ही बनती है। घेवर दो तरह को होता है, फीका और मीठा। ताज़ा घेवर नर्म और ख़स्ता होता है पर यह रखा रखा थोड़ा सख़्त होने लगता है। इस समय फीके घेवर को बेसन में लपेटकर, तलकर मज़ेदार पकौड़े बनाए जाते हैं। मीठे घेवर की पुडिंग बढ़िया बनती है। .

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खाजा

खाजा एक प्रकार का पकवान है जो मुख्यतः मैदा, चीनी, घी या डालडा से बनाया जाता है। यह पूर्वी भारत के बिहार, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में बहुत लोकप्रिय है। ये सभी क्षेत्र एक समय मौर्य साम्राज्य के अंग थे। कहा जाता है कि दो हजार वर्ष पूर्व भी इन क्षेत्रों के उपजाऊ इलाकों में खाजा बनाया जाता था। सिलाव तथा राजगीर दो ऐसे स्थान है, जहां का खाजा अन्य के मुकाबले बेहतर समझा जाता है। बिहार तथा पड़ोसी राज्यों से होते हुए खाजा अब अन्य राज्यों में भी लोकप्रिय हो गया है। आंध्र प्रदेश के काकिनाड़ा का खाजा, स्तानीय रूप से प्रसिद्ध है। .

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गुझिया

गुझिया (अन्य नामः गुजिया, गुंजिया) एक प्रकार का पकवान है जो मैदे और खोए से बनाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ में कुसली, महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पिड़की, आंध्र प्रदेश में कज्जिकयालु, कहते हैं। उत्तर भारत में होली तथा दक्षिण भारत में दीपावली के अवसर पर घर में गुझिया बनाने की परंपरा है। गुझिया मुख्य रूप से दो तरह से बनाई जातीं है, एक- मावा भरी गुझिया, दूसरी रवा भरी गुझिया। मावा इलायची भरी गुझिया के ऊपर चीनी की एक परत चढ़ाकर वर्क लगाकर इसको एक नया रूप भी देते हैं। मावा के साथ कभी कभी हरा चना, मेवा या दूसरे खाद्य पदार्थ मिलाकर, जैसे अंजीर या खजूर की गुझिया भी बनाई जाती हैं। .

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आवश्यक वस्तु अधिनियम

आवश्यक वस्‍तु अधिनियम, 1955 को उपभोक्‍ताओं को अनिवार्य वस्‍तुओं की सहजता से उपलब्‍धता सुनिश्चित कराने तथा कपटी व्‍यापारियों के शोषण से उनकी रक्षा के लिए बनाया गया है। अधिनियम में उन वस्‍तुओं के उत्‍पादन वितरण और मूल्‍य निर्धारण को विनियमित एवं नियंत्रित करने की व्‍यवस्‍था की गई है, जिनकी आपूर्ति बनाए रखने या बढ़ाने तथा उनका समान वितरण प्राप्‍त करने और उचित मूल्‍य पर उनकी उपलब्‍धता के लिए अनिवार्य घोषित किया गया है। अधिनियम के तहत अधिकांश शक्तियां राज्‍य सरकारों को दी गई हैं। अनिवार्य घोषित की गई वस्‍तुओं की सूची की आर्थिक परिस्थितियों में, परिवर्तनों विशेषतया उनके उत्‍पादन मांग और आपूर्ति के संबंध में, के आलोक में समय-समय पर समीक्षा की जाती है। 15 फरवरी, 2002 से सरकार ने पहले घोषित अनिवार्य वस्‍तुओं की सूची से 12 वस्‍तुओं को पूरी तरह और एक को आंशिक रूप से हटा दिया है। आर्थिक विकास त्‍वरित करने और उपभोक्‍ताओं को लाभ पहुँचाने के लिए 31 मार्च 2004 से और दो वस्‍तुओं को सूची से हटा दिया गया है। वर्तमान में अनिवार्य वस्‍तुओं की सूची में 16 नाम ही शामिल हैं। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के उदारीकरण के संदर्भ में यह निर्णय लिया गया कि अनिवार्य वस्‍तु अधिनियम 1944 केंद्र और राज्‍य के लिए छत्र विधान के रूप में जारी रहे, जब आवश्‍यक हो इसका उपयोग तथापि प्रगतिशील नियंत्रण और प्रतिषेध के लिए किया जाए। तदनुसार केंद्र सरकार ने लाइसेंसिंग की आवश्‍यकता हटाने, स्‍टॉक सीमा और विनिर्दिष्‍ट खाद्य वस्‍तुओं की आवाजाही प्रति‍बद्ध करने का आदेश 2002, 15 फरवरी, 2002 अनिवार्य वस्‍तु अधिनियम, 1955 के तहत जारी कर दिया है जिसमें गेहूँ, धान, चावल, मोटे अनाज, शर्करा, खाद्य तिलहन और खाद्य तेलों के संबंध में जिसके लिए किसी लाइसेंस की आवश्‍यकता नहीं है या अनुमति की आवश्‍यकता अधिनियम के तहत जारी किसी आदेश के अधीन नहीं है। किसी भी मात्रा में व्‍यापारी को मुक्‍त खरीददारी करने, भण्‍डारण बिक्री, परिवहन, वितरण, बिक्री करने की अनुमति दी गई है।.

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कुल्चा

कुल्चा (کلچه; पंजाबी ਕੁਲਚਾ) एक उत्तर भारतीय रोटी की किस्म है। भारत के साथ-साथ ये पाकिस्तान में भी लोकप्रिय हैं। प्रायः इसे छोले के संग खाया जाता है। यह मैदा को खमीर उठा कर आवे में बनाया जाता है। कुल्चा मुख्यतः एक पंजाबी व्यंजन है, जो पंजाब से उद्गम हुआ है। अमृतसर का खास कुल्चा अमृतसरी कुल्चा कहलाता हैं। मैदा को दही के साथ मल कर खमीर उठाया जाता है। उसके बाद उसमें उबले मसालेदार आलू और कटी प्याज आदि भर कर भरवां कुल्चे बनाये जाते हैं। इन्हें सुनहरे रंग का होने तक आवे या तंदूर में पकाया जाता है। उसके बाद इसके ऊपर मक्खन लगा कर छोले के साथ परोसते हैं। ये अमृतसरी कुल्चे होते हैं। बिना भरे हुए सादे कुल्चे बनते हैं। कुल्चे का उद्गम ईरान में माना जाता है। इसके लखनऊ के व्यंजन विशेषज्ञों ने प्रयोग कर अंतरण बनाये हैं। इनमें कुल्चा नाहरी भी एक है। इसके विशेषज्ञ कारीगर हाजी जुबैर अहमद के अनुसार कुलचा अवधी व्यंजनों में शामिल खास रोटी है, जिसका साथ नाहरी बिना अधूरा है। लखनऊ के गिलामी कुलचे यानी दो भाग वाले कुलचे उनके परदादा ने तैयार किये। कुलचे रिच डाइट में आते हैं और ऐसा माना जाता है, कि कि अच्छी खुराक वाला इंसान भी तीन से अधिक नहीं खा सकता है। कुलचे गर्म खाने में ही मजा है यानी तंदूर से निकले और परोसे जायें। .

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