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मैग्मा

सूची मैग्मा

मैग्मा चट्टानों का पिघला हुआ रूप है जिसकी रचना ठोस, आधी पिघली अथवा पूरी तरह पिघली चट्टानों के द्वारा होती है और जो पृथ्वी के सतह के नीचे निर्मित होता है। मैग्मा के बाहर निकलने वाले रूप को लावा कहते हैं। मैग्मा के शीतलन द्वारा आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। जब मैग्मा ज़मीनी सतह के ऊपर आकर लावा के रूप में ठंडा होकर जमता है तो बहिर्भेदी और जब सतह के नीचे ही जम जाता है तो अंतर्भेदी आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। सामान्यतः ज्वालामुखी विस्फोट में मैग्मा का लावा के रूप में निकलना एक प्रमुख भूवैज्ञानिक क्रिया के रूप में चिह्नित किया जाता है। .

23 संबंधों: डाइक, द्वीप चाप, पायस (इमल्शन), बहिर्भेदी शैल, भूकम्पीय तरंग, मध्य-महासागर पर्वतमाला, महासागरीय भूपर्पटी, महास्कंध, लावा, लैकोलिथ, लोपोलिथ, सागर नितल प्रसरण, सागरगत ज्वालामुखी, ज्वालामुखी विज्ञान, ज्वालामुखीय चट्टानें, ज्वालाकाच, खनिजों का बनना, गैब्रो, आग्नेय शैल, कायान्तरण (भूविज्ञान), क्रिस्टलकी, अगुंग पर्वत में ज्वालामुखी विस्फोट (2017), उष्णोत्स

डाइक

जब मैग्मा किसी लम्बवत दरार में जमता है तो डाइक (Dyke) कहलाता है। झारखण्ड के सिंहभूम जिले में अनेक डाइक दिखाई देते हैं। श्रेणी:शैलें.

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द्वीप चाप

द्वीप चाप (island arc) एक ऐसा द्वीप समूह होता है जिसमें द्वीप, ज्वालामुखी व समुद्र के नीचे उभरी चट्टानें एक चाप (arc) के आकार में सुसज्जित होती हैं। यह द्वीप चाप अक्सर दो भौगोलिक प्लेटों की सीमा पर स्थित होते हैं और उस सीमा पर एक प्लेट के दूसरी प्लेट के नीचे दब जाने से निर्मित होते हैं। चढ़ी हुई प्लेट उठने से द्वीप बनते हैं और दबी हुई प्लेट की तरफ़ एक गहरी समुद्री खाई भी अक्सर अस्तित्व में होती है। प्लेटों की इस जूझन से मैग्मा भी उभरता है और अक्सर ज्वालामुखी भी द्वीप चापों में मिलते हैं। .

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पायस (इमल्शन)

A. दो अमिश्रणीय तरल जिनका अभी पायसन नहीं बना है; B. प्रावस्था II, प्रावस्था I मे परिक्षेपित होने से बना पायसन; C. एक अस्थिर पायसन समय के साथ अलग होता है; D. पृष्ठसक्रियकारक (सरफैक्टेंट) (बैंगनी रेखा) खुद को प्रावस्था II और प्रावस्था I के मध्य लाकर पायसन को स्थायित्व प्रदान करता है। पायस (emulsion) दो या इससे अधिक अमिश्रणीय तरल पदार्थों से बना एक मिश्रण है। एक तरल (परिक्षेपण प्रावस्था) अन्य तरल (सतत प्रावस्था) में परिक्षेपित (फैलता) होता है। कई पायसन तेल/पानी के पायसन होते हैं, जिनमे आहार वसा प्रतिदिन प्रयोग मे आने वाले तेल का एक सामान्य उदाहरण है। पायसन के उदाहरण में शामिल हैं, मक्खन और मार्जरीन, दूध और क्रीम, फोटो फिल्म का प्रकाश संवेदी पक्ष, मैग्मा और धातु काटने मे काम आने वाले तरल। मक्खन और मार्जरीन, मे वसा पानी की बूंदों को चारो ओर से ढक लेता है (एक पानी में तेल पायसन)। दूध और क्रीम, मे पानी, वसा की बूंदों के चारों ओर रहता है (एक तेल में पानी पायसन)। मैग्मा के कुछ प्रकार में, तरल की गोलिकायें NiFe तरल सिलिकेट की एक सतत प्रावस्था के भीतर परिक्षेपित हो सकती हैं। पायसीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पायसन का निर्माण होता है। पायसन शब्द को तेल क्षेत्र में भी इस्तेमाल किया जाता है जैसे अपरिशोधित कच्चा तेल, तेल और पानी का मिश्रण होता है। श्रेणी:रासायनिक मिश्रण श्रेणी:कलिल श्रेणी:नरम पदार्थ.

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बहिर्भेदी शैल

बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें वे चट्टानें हैं जो मैग्मा के पृथ्वी कि सतह के ऊपर निकल कर लावा के रूप में आकर ठंढे होकर जमने से बनती हैं। चूँकि इस प्रकार के उद्भेदन को ज्वालामुखी उद्भेदन कहा जाता है, अतः ऐसी चट्टानों को ज्वालामुखीय चट्टानें भी कहते हैं। .

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भूकम्पीय तरंग

भूकम्पीय तरंगें (seismic waves) पृथ्वी की आतंरिक परतों व सतह पर चलने वाली ऊर्जा की तरंगें होती हैं, जो भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, बड़े भूस्खलन, पृथ्वी के अंदर मैग्मा की हिलावट और कम-आवृत्ति (फ़्रीक्वेन्सी) की ध्वनि-ऊर्जा वाले मानवकृत विस्फोटों से उत्पन्न होती हैं। .

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मध्य-महासागर पर्वतमाला

मध्य-महासागर पर्वतमाला (mid-ocean ridge) किसी महासागर के जल के अंदर प्लेट विवर्तनिकी द्वारा बनी एक पर्वतमाला होती है। सामान्यतः इसमें कई पहाड़ शृंखलाओं में आयोजित होते हैं और इनके बीच में एक लम्बी रिफ़्ट नामक घाटी चलती है। इस रिफ़्ट के नीचे दो भौगोलिक तख़्तों की संमिलन सीमा होती है जहाँ दबाव और रगड़ के कारण भूप्रावार (मैन्टल) से पिघला हुआ मैग्मा उगलकर लावा के रूप में ऊपर आता है और नया सागर का फ़र्श बनाता है - इसे प्रक्रिया को सागर नितल प्रसरण (seafloor spreading) कहते हैं। .

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महासागरीय भूपर्पटी

महासागरीय भूपर्पटी (Oceanic crust) किसी महासागरीय भौगोलिक तख़्ते की सबसे ऊपरी परत को कहते हैं। इसके विपरीत महाद्वीपीय भौगोलिक तख़्ते की सबसे ऊपरी परत को महाद्वीपीय भूपर्पटी कहते हैं। .

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महास्कंध

पृथ्वी का अभ्यंतर पिघले हुए पाषाणों का आगार है। ताप एवं ऊर्जा का संकेंद्रण कभी-कभी इतना उग्र हो उठता है कि पिघला हुआ पदार्थ (मैग्मा) पृथ्वी की पपड़ी फाड़कर दरारों के मार्ग से बारह निकल आता है। दरारों में जमे मैग्मा के इन शैलपिंडों को नितुन्न शैल (इंट्रूसिव) कहते हैं। उन विराट् पर्वताकार नितुन्न शैलों को, जिनका आकार गहराई के साथ-साथ बढ़ता चला जाता है और जिनके आधार का पता ही नहीं चल पाता है, महास्कंध या अधःशैल या बैथोलिथ (Batholith) कहते हैं। पर्वत निर्माण की घटनाओं से अधशैलों का गंभीर संबंध है। विशाल पर्वत शृंखलाओं के मध्यवर्ती अक्षीय भाग में अधशैल ही अवस्थित होते हैं। हिमालय की केंद्रीय उच्चतम श्रेणियाँ ग्रेनाइट के अधःशैलों से ही निर्मित हैं। अधःशैलों का विकास दो प्रकार से होता है। ये पूर्वस्थित शैलों के पूर्ण रासायनिक प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) एवं पुनस्फाटन (री-क्रिस्टैलाइजेशन) से निर्मित होते हैं और इसके अतिरिक्त अधिकांश छोटे-मोटे नितुन्न शैल पृथ्वी की पपड़ी फाड़कर मैग्मा के जमने से बनते हैं। अध:शैलों की उत्पत्ति के विषय में स्थान का प्रश्न अति महत्वपूर्ण है। क्लूस, इडिंग्स आदि विशेषज्ञों का मत है कि पूर्वस्थित शैल आरोही मैग्मा द्वारा ऊपर एवं पार्श्व की ओर विस्थापित कर दिए गए हैं, परंतु डेली, कोल एवं बैरल जैसे विद्वानों का मत है कि आरोही मैग्मा ने पूर्वस्थित शैलों को सशरीर घोलकर आत्मसात्‌ कर लिया या क्रमश कुतर कुतरकर सरदन (कोरोज़न) द्वारा अपने लिए मार्ग बनाया। .

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लावा

लावा पिघली हुई चट्टान आर्थात मैग्मा का धरातल पर प्रकट होकर बहने वाला भाग है। यह ज्वालामुखी उद्गार द्वारा बाहर निकलता है और आग्नेय चट्टानों की रचना करता है। श्रेणी:भूविज्ञान श्रेणी:ज्वालामुखी श्रेणी:भू-आकृति विज्ञान श्रेणी:ज्वालामुखीयता.

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लैकोलिथ

लैकोलिथ अन्तर्वेधी आग्नेय शैलों द्वारा निर्मित संरचना है जो मैग्मा के ऊपर उठ कर दो क्षैतिज चट्टानी संस्तरों के बीच गुंबदाकार आकृति में जमा होने से निर्मित होती है। पृथ्वी के भीतरी हिस्से से ऊपर उठता मैग्मा जब दो चट्टानी संस्तरों (परतों) के बीच क्षैतिज रूप से फैलता है, अर्थात ऊपर वाली परत को भेद कर बाहर आने की स्थिति में नहीं होता बल्कि अंदर-अंदर परतों के बीच फैलने लगता है तो इस तरह की संरचनाओं का जन्म होता है जिन्हें अंतर्वेधी आग्नेय शैल संरचना कहा जाता है। लैकोलिथ इसी का एक प्रकार है, यह तब निर्मित होता है जब ऊपरी परत निचली की तुलना में कम मजबूत हो और दोनों परतों के बीच में जमा हो रहा मैग्मा ऊपर की परत को ऊपर की ओर उठा दे तथा एक गुंबद की आकृति में जमा हो। इसके विपरीत सिल नामक संरचना में मैग्मा दोनों परतों के बीच अपने पूरे विस्तार लगभग एक समान मोटाई की एक नई परत के रूप में जमा होता है। लैकोलिथ से ठीक विपरीत संरचना लोपोलिथ की होती है जिसमें निचली परत कमज़ोर होने के कारण मैग्मा की परत एक तश्तरीनुमा आकृति बनाते हुए जमा होता है। कुछ दशाओं में लैकोलिथ, बैथोलिथ का ही छोटा रूप हो सकता है और कभी-कभी एक बड़े बैथोलिथ के ऊपरी भाग में छोटे लैकोलिथ पाए जा सकते हैं। .

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लोपोलिथ

जब मैग्मा जमकर तश्तरीनुमा आकर ग्रहण कर लेता है तो, उसे लापोलिथ (Lopolith) कहते है। लापोलिथ, दक्षिण अफ्रीका में मिलते हैं। श्रेणी:आग्नेय शैलविज्ञान.

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सागर नितल प्रसरण

सागर नितल प्रसरण (अंग्रेज़ी:Seafloor spreading) एक भूवैज्ञानिक संकल्पना है जिसमें यह अभिकल्पित किया गया है कि स्थलमण्डल समुद्री कटकों से सहारे प्लेटों में टूट कर इस कटकीय अक्ष के सहारे सरकता है और इसके टुकड़े एक दूसरे से दूर हटते हैं तथा यहाँ नीचे से मैग्मा ऊपर आकार नए स्थलमण्डल (प्लेट) का निर्माण करता है। .

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सागरगत ज्वालामुखी

सागरगत ज्वालामुखी (submarine volcanoes) सागर और महासागरों में पृथ्वी की सतह पर स्थित में चीर, दरार या मुख होते हैं जिनसे मैग्मा उगल सकता है। बहुत से सागरगत ज्वालामुखी भौगोलिक तख़्तों के हिलने वाले क्षेत्रों में होते हैं, जिन्हें मध्य-महासागर पर्वतमालाओं के रूप में देखा जाता है। अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर उगला जाने वाला 75% मैग्मा इन्हीं मध्य-महासागर पर्वतमालाओं में स्थित सागरगत ज्वालामुखियों से आता है।Martin R. Speight, Peter A. Henderson, "Marine Ecology: Concepts and Applications", John Wiley & Sons, 2013.

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ज्वालामुखी विज्ञान

ज्वालामुखी विज्ञान (volcanology या vulcanology) ज्वालामुखियों व उन से सम्बन्धित चीज़ों, जैसे कि मैग्मा, लावा और अन्य सम्बन्धित भूवैज्ञानिक, भूभौतिक और भूरसायनिक पहलुओं के अध्ययन को कहते हैं। ज्वालामुखी वैज्ञानिक का विशेष ध्यान ज्वालामुखियों के निर्माण, ऐतिहासिक अ आधुनिक विस्फोटों, जीवन-क्रमों, इत्यादि को समझने में लगता है। वे अक्सर जीवित, मूर्छित और मृत ज्वालामुखियों पर जाकर माप और नमूने लेते हैं और अन्य छानबीन करते हैं। ज्वालामुखी विज्ञान को भूविज्ञान की शाखा माना जाता है। .

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ज्वालामुखीय चट्टानें

ज्वालामुखीय चट्टान ऐसी आग्नेय चट्टान है जो ज्वालामुखी क्रिया द्वारा मैग्मा के लावा के रूप मे धरती कि सतह के ऊपर आकर जमने से बनती है। .

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ज्वालाकाच

ज्वालाकाच या ऑब्सिडियन (Obsidian), एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ज्वालामुखीय काच है। यह रायोलाइट (Rhyolite) नामक ज्वालामुखी-शिला का अत्यन्त काचीय रूप है। अत: रासायनिक एवं खनिज संरचना में ज्वालाकाच रायोलाइट अथवा ग्रेनाइट के समतुल्य है, परन्तु भौतिक सरंचना एवं बाह्य रूप में दोनों में पर्याप्त भिन्नता है। ज्वालाकाच वस्तुत: 'प्राकृतिक काच' का दूसरा नाम है। नवीन परिभाषा के अनुसार ज्वालाकाच उस स्थूल, अपेक्षाकृत सघन परंतु प्राय: झावाँ की भाँति दिखनेवाले, गहरे भूरे या काले, साँवले, पीले या चितकबरे काच को कहते हैं, जो तोड़ने पर सूक्ष्म शंखाभ विभंग (conchoidal fracture) प्रदर्शित करता है। इस शिला का यह विशेष गुण है। प्राचीन काल में ज्वालाकाच का प्रयोग होता था और वर्तमान समय में भी अपने भौतिक गुणों एवं रासायनिक संरचना के कारण इसका प्रयोग हो रहा है। अभी हाल तक अमरीका की रेडइंडियन जाति अपने बाणों और भालों की नोक इसी शिला के तेज टुकड़ों से बनाती थी। प्लिनी के अनुसार ऑब्सिडियनस नामक व्यक्ति ने ईथियोपिया देश मे सर्वप्रथम इस शिला की खोज की। अतएव इसका नाम ऑब्सिडियन पड़ा। जॉनहिल (१७४६ ईo) के अनुसार एंटियंट जाति इस शिला पर पालिश चढ़ाकर दर्पण के रूप में इसका उपयोग करती थी। इनकी भाषा में ऑब्सिडियन का जो नाम था वह कालांतर में लैटिन भाषा में क्रमश: ऑपसियनस, ऑपसिडियनस तथा ऑवसिडियनस (obsiodianus) लिखा जाने लगा। शब्द की व्युत्पत्ति प्राय: पूर्णतया विस्मृत हो चुकी है, एवं भ्रमवश यह मान लिया गया है कि ऑब्सिडियन नाम उसके आविष्कर्ता ऑब्सिडियनस के नाम पर पड़ा। साधारणतया रायोलाइट के काचीय रूप को ही ऑब्सिडियन कहते हैं, परंतु ट्रेकाइट (trachyte) अथवा डेसाइट नामक ज्वाला-मुखी अम्लशैल (volcanic acid-rocks) भी अत्यंत तीव्र गति से शीतल होकर प्राकृतिक काच को जन्म देते हैं। पर ऐसे शैलों को ट्रेफाइट या डेसाइट ऑब्सिडियन कहते हैं। सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखने पर ज्ञात होता है कि ऑब्सिडियन शैल का अधिकांश भाग काँच से निर्मित है। इसके अंतरावेश में अणुमणिभस्फट (microlite) देखे जा सकते हैं। इन मणिभों के विशेष विन्यास से स्पष्ट आभास मिलेगा कि कभी शैलमूल या मैग्मा (magma) में प्रवाहशीलता थी। शिला का गहरा रंग इन्हीं सूक्ष्म स्फटों के बाहुल्य का प्रतिफल है। कभी कभी ऑब्सिडियन धब्बेदार या धारीदार भी होता है। 'स्फेरूलाइट' तो इस शैल का सामान्य लक्षण है। ज्वालाकांच का आपेक्षिक घनत्व २.३० से २.५८ तक होता है। ऑब्सिडियन सदृश्य काचीय शिलाओं की उत्पत्ति ऐसे शैलमूलों के दृढ़ीभवन के फलस्वरूप होती है जिनकी संरचना स्फटिक (quartz) एवं क्षारीय फैलस्पार (alkali felspar) के 'यूटेकटिक मिश्रणों के निकट हो। ('यूटेकटिक मिश्रण' दो खनिजों के अविरल समानुपात की वह स्थिति है, जब ताप की एक निश्चित अवस्था में दोनों घटकों का एक साथ क्रिस्टल बनने लगे। यूटेकटिक बिन्दुओं के निकट इस प्रकार के शैलमूल पर्याप्त श्यान (viscous) हो उठते हैं। फलस्वरूप या तो मणिभीकरण पूर्णत: अवरुद्ध हो जाता है, या अतिशय बाधापूर्ण अवस्था में संपन्न होता है। तीव्रगति से शीतल होने के कारण ऐसे शैलों का उद्भव होता है जो प्राय: पूर्णत: काचीय होते हैं। ऑब्सिडियन क्लिफ, यलोस्टोन पार्क, संयुक्त राज्य अमरीका, में ७५ इंच से १०० इंच मोटे लावास्तरोें के रूप में ऑब्सिडियन मिलता है। भारत में गिरनार, एवं पावागढ़ के लावास्तरों से ऑब्सिडियन की प्राप्ति प्रचुर मात्रा में होती है। .

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खनिजों का बनना

खनिजों का बनना (formation) अनेक प्रकार से होता है। बनने में उष्मा, दाब तथा जल मुख्य रूप से भाग लेते हैं। निम्नलिखित विभिन्न प्रकारों से खनिज बनते हैं: (१) मैग्मा का मणिभीकरण (Crystallization from magma) - पृथ्वी के आभ्यंतर में मैग्मा में अनेक तत्व आक्साइड एवं सिलिकेट के रूपों में विद्यमान हैं। जब मैग्मा ठंडा होता है तब अनेक यौगिक खनिज के रूप में मणिभ (क्रिस्टलीय) हो जाते है और इस प्रकार खनिज निक्षेपों (deposit) को जन्म देते हैं। इस प्रकार के मुख्य उदाहरण हीरा, क्रोमाइट तथा मोनेटाइट हैं। (२) ऊर्ध्वपातन (Sublimation)- पृथ्वी के आभ्यंतर में उष्मा की अधिकता के कारण अनेक वाष्पशील यौगिक गैस में परिवर्तित हो जाते हैं। जब यह गैस शीतल भागों में पहुँचती है तब द्रव दशा में गए बिना ही ठोस बन जाती है। इस प्रकार के खनिज ज्वालामुखी द्वारों के समीप, अथवा धरातल के समीप, शीतल आग्नेय पुंजों (igneous masses) में प्राप्त होते हैं। गंधक का बनना उर्ध्वपातन क्रिया द्वारा ही हुआ है। (३) आसवन (Distillation) - ऐसा समझा जाता है कि समुद्र की तलछटों (sediments) में अंतर्भूत (imebdded) छोटे जीवों के कायविच्छेदन के पश्चात्‌ तैल उत्पन्न होता है, जो आसुत होता है और इस प्रकार आसवन द्वारा निर्मित वाष्प पेट्रोलियम में परिवर्तित हो जाता है अथवा कभी-कभी प्राकृतिक गैसों को उत्पन्न करता है। (४) वाष्पायन एवं अतिसंतृप्तीकरण (Vaporisation and Supersaturation) - अनेक लवण जल में घुल जाते हैं और इस प्रकार लवण जल के झरनों तथा झीलों को जन्म देते हैं। लवण जल का वाष्पायन द्वारा लवणों का अवशोषण (precipitation) होता है। इस प्रकार लवण निक्षेप अस्तित्व में आते हैं। इसके अतिरिक्त कभी कभी वाष्पायन द्वारा संतृप्त स्थिति आ जाने पर घुले हुए पदार्थों मणिभ पृथक हो जाते हैं। (५) 'गैसों, द्रवों एवं ठोसों की पारस्परिक अभिक्रियाएँ - जब दो विभिन्न गैसें पृथ्वी के आभ्यंतर से निकलकर धरातल तक पहुँचती हैं तथा परस्पर अभिक्रिया करती हैं तो अनेक यौगिक उत्पन्न होते है उदाहरणार्थ: इसी प्रकार गैसें कुछ विलयनों पर अभिक्रिया करती हैं। फलस्वरूप कुछ खनिज अवक्षिप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, जब हाइड्रोजन सल्फाइड गैस ताम्र-सल्फेट-विलयन से पारित होती है तब ताम्र सल्फाइड अवक्षिप्त हो जाता है। कभी ये गैसें ठोस पदार्थ से अभिक्रिया कर खनिजों को उत्पन्न करती हैं। यह क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनेक खनिज सिलिकेट, आक्साइड तथा सल्फाइड के रूप में इसी क्रिया द्वारा निर्मित होते हैं। किसी समय ऐसा होता है कि पृथ्वी के आभ्यंतर का उष्ण आग्नेय शिलाओं से पारित होता है एवं विशाल संख्या में अयस्क कार्यों (ore bodies) को अपने में विलीन कर लेता है। यह विलयन पृथ्वी तल के समीप पहुँच कर अनेक धातुओं को अवक्षिप्त कर देता है। स्वर्ण के अनेक निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए हैं। कुछ अवस्थाओं में इस प्रकार के विलयन पृथ्वीतल के समीप विभिन्न शिलाओं के संपर्क में आते हैं तथा एक एक करके कणों का प्रतिस्थापन (replacement) होता है, अर्थात्‌ जब शिला के एक कण का निष्कासन होता है तो उस निष्कासित कण के स्थान पर धात्विक विलयन के एक कण का प्रतिस्थापन हो जाता है। इस प्रकार शिलाओं के स्थान पर नितांत नवीन धातुएँ मिलती हैं, जिनका आकार और परिमाण प्राचीन प्रतिस्थापित शिलाओं का ही होता है। अनेक दिशाओं में यदि शिलाओं में कुछ विदार (cracks) या शून्य स्थान (void or void spaces) होते हैं तो पारच्यवित विलयन (percolating solution) उन शून्य स्थानों में खनिज निक्षेपों को जन्म देते हैं। यह क्रिया अत्यंत सामान्य है, जिसने अनेक धात्विक निक्षेपों को उत्पन्न किया है। (६) जीवाणुओं (bacteria) द्वारा अवक्षेपण - यह भली प्रकार से ज्ञात है कि कुछ विशेष प्रकार के जीवाणुओं में विलयनों से खनिज अवक्षिप्त करने की क्षमता होती है। उदाहरणार्थ, कुछ जीवाणु लौह को अवक्षिप्त करते हैं। ये जीवाणु विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के निक्षेपों का निर्माण करते हैं। (७) कलिलीय निक्षेपण (Collodial Deposition) - वे खनिज, जो जल में अविलेय हैं, विशाल परिमाण में कलिलीय विलयनों में परिवर्तित हो जाते हैं तथा जब इनसे कोई विद्युद्विश्लेष्य (electroyte) मिलता है तब ये विलयन अवक्षेप देते हैं। इस प्रकार कोई भी धातु अवक्षिप्त हो सकती है। कभी कभी अवक्षेपण के पश्चात्‌ अवक्षिप्त खनिज मणिभीय हो जाते हैं, किंतु अन्य दशाओं में ऐसा नहीं होता। (८) ऋतुक्षारण प्रक्रम (Weathering Process) - यह ऋतुक्षारण शिलाओं के अपक्षय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है उसी प्रकार जो विलयन बनते हैं उनमें लौह, मैंगनीज तथा दूसरे यौगिक हो सकते हैं। ये यौगिक, विलयनों द्वारा सागर में ले जाए जाते हैं और वहीं वे अवक्षिप्त हो जाते हैं। लौह तथा मैगनीज के निक्षेप इसी प्रकार उत्पन्न हुए। ऋतुक्षारण या तो पूर्ववर्ती (pre-existing) शिलाओं से अथवा पूर्ववर्ती खनिज निक्षेपों से हो सकता है। कुछ दशाओं में किसी शिला में कुछ अधोवर्ग (low grade) के विकिरित खनिज (disseminated minerals) होते हैं। तलीय जल शिलाओं के साधारण अवयवों को विलीन कर लेता है और अवशिष्ट भाग को मूल विकीरित खनिजों से समृद्ध करता है। अनेक अयस्क निक्षेप, अवशिष्ट उत्पाद के रूप में पाए जाते हैं, जैसे बाक्साइट। कुछ शिलाएँ, जैसे ग्रैनाइट (कणाश्म), वियोजन (disintegration) के पश्चात्‌ काइनाइट जैसे खनिजों को उत्पन्न करती हैं। (९) उपरूपांतरण (Metamorphism)-कुछ निक्षेप पूर्ववर्ती तलछटों के उपरूपांतरणों द्वारा निर्मित होते हैं। उदाहरण के लिए, चूना पत्थर संगमरमर को तथा कुछ मृत्तिकाएँ और सिलिका निक्षेप सिलोमनाइट को उत्पन्न करते हैं। .

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गैब्रो

गैब्रो एक अंतर्भेदी आग्नेय चट्टान है जिसकी रासायनिक संगठन बेसाल्ट के समतुल्य होता है। यह एक रवेदार चट्टान है जो मैग्मा के ज़मीनी सतह के नीचे ही जम जाने से बनती है। .

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आग्नेय शैल

ग्रेनाइट (एक आग्नेय चट्टान) चेन्नई मे, भारत. आग्नेय चट्टान (जर्मन: Magmatisches Gestein) की रचना धरातल के नीचे स्थित तप्त एवं तरल चट्टानी पदार्थ, अर्थात् मैग्मा, के सतह के ऊपर आकार लावा प्रवाह के रूप में निकल कर अथवा ऊपर उठने के क्रम में बाहर निकल पाने से पहले ही, सतह के नीचे ही ठंढे होकर इन पिघले पदार्थों के ठोस रूप में जम जाने से होती है। अतः आग्नेय चट्टानें पिघले हुए चट्टानी पदार्थ के ठंढे होकर जम जाने से बनती हैं। ये रवेदार भी हो सकती है और बिना कणों या रवे के भी। ये चट्टानें पृथ्वी पर पायी जाने वाली अन्य दो प्रमुख चट्टानों, अवसादी और रूपांतरित के साथ मिलकर पृथ्वी पर पायी जाने वाली चट्टानों के तीन प्रमुख प्रकार बनाती हैं। पृथ्वी के धरातल की उत्पत्ति में सर्वप्रथम इनका निर्माण होने के कारण इन्हें 'प्राथमिक शैल' भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि यही वे पहली चट्टानें हैं जो पिघले हुए चट्टानी पदार्थ से बनती हैंजबकि अवसादी या रूपांतरित चट्टानें इन आग्नेय चट्टानों के टूटने या ताप और दाब के प्रभाव आकार में बदलने से से बनती हैं। इनके दो मुख्य प्रकार हैं। ज्वालामुखी उदगार के समय भूगर्भ से निकालने वाला लावा जब धरातल पर जमकर ठंडा हो जाने के पश्चात आग्नेय चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है तो इसे बहिर्भेदी या ज्वालामुखीय चट्टान कहा जाता है। इसके विपरीत जब ऊपर उठता हुआ मैग्मा धरातल की सतह पर आकर बाहर निकलने से पहले ही ज़मीन के अन्दर ही ठंडा होकर जम जाता है तो इस प्रकार अंतर्भेदी चट्टान कहते हैं। चूँकि, ज़मीनी सतह से नीचे बनने वाली आग्नेय चट्टानें धीरे-धीरे ठंडी होकर जमती है, ये रवेदार होती हैं, क्योंकि मैग्माई पदार्थ के अणुओं के एक दूसरे के साथ संयोजित होकर क्रिस्टल या रवे बनाने हेतु काफ़ी समय मिल जाता है। इसके ठीक उलट, जब मैग्मा लावा के रूप में ज्वालामुखी उदगार के समय बाहर निकल कर ठंढा होकर जमता है तो रवे बनने के लिये पर्याप्त समय नहीं मिलता और इस प्रकार बहिर्भेदी आग्नेय चट्टानें काँचीय या गैर-रवेदार (glassy) होती हैं। आग्नेय चट्टानों में परतों और जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव पाया जाता है। अप्रवेश्यता अधिक होने के कारण इन पर रासायनिक अपक्षय का बहुत कम प्रभाव पड़ता है, लेकिन यांत्रिक एवं भौतिक अपक्षय के कारण इनका विघटन व वियोजन प्रारम्भ हो जाता है। ग्रेनाइट, बेसाल्ट, गैब्रो, ऑब्सीडियन, डायोराईट, डोलोराईट, एन्डेसाईट, पेरिड़ोटाईट, फेलसाईट, पिचस्टोन, प्युमाइस इत्यादि आग्नेय चट्टानों के प्रमुख उदाहरण है। .

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कायान्तरण (भूविज्ञान)

भौमिकी के सन्दर्भ में, जब किसी शैल का भूवैज्ञानिक स्वरूप (टेक्चर), बिना पिघलकर मैग्मा बने ही, बदल जाय तो इसे कायान्तरण (Metamorphism) कहते हैं। अर्थात यह एक ठोस से दूसरे ठोस में परिवर्तन की प्रक्रिया है। यह परिवर्तन मुख्यतः ऊष्मा, दाब, तथा रासायनिक रूप से सक्रिय द्रवों के प्रवेश के कारण सम्भव होता है। .

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क्रिस्टलकी

क्रिस्टलकी (Crystallography) या मणिविज्ञान एक प्रायोगिक विज्ञान है जिसमें ठोसों में परमाणों के विन्यास (arrangement) का अध्ययन किया जाता है। पहले क्रिस्टलिकी से तात्पर्य उस विज्ञान से था जिसमें क्रिस्टलों का अध्ययन किया जाता है। एक्स-किरण के डिफ्रैक्सन द्वारा क्रिस्टलोंके अध्ययनके पहले क्रिस्टलोंका अध्ययन केवल उनकी ज्यामिति (आकार-प्रकार) देखकर की जाती थी। किन्तु आजकल विविध-प्रकार के किरण-पुंजों (एक्स-किरण, एलेक्ट्रान, न्यूट्रान, सिन्क्रोट्रान आदि) के डिफ्रैक्सन से किया जाता है। .

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अगुंग पर्वत में ज्वालामुखी विस्फोट (2017)

नवंबर 2017 में इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर स्थित एक सक्रिय ज्वालामुखी अगुंग पर्वत में विस्फोट हुआ जिसके कारण निकटवर्ती क्षेत्रों में अफरा-तफरी मच गई तथा साथ ही वहाँ से होने वाले हवाई यात्रा में भी बाधा हुई। 28 नवंबर 2017 तक चेतावनी बढ़ा दी गई हैं और लोगों को वहाँ से विस्थापित करने के आदेश दिये जा चुके हैं। .

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उष्णोत्स

उष्णोत्स (geyser, गीज़र या गाइज़र दोनों स्वीकार्य) एक प्रकार का पानी का चश्मा होता है जिसमें समय-समय पर पानी ज़ोरों से धरती से शक्तिशाली फव्वारे की भांति फूटता है और साथ में भाप निकलती है। यह पृथ्वी पर कम स्थानों में ही मिलते हैं क्योंकि इनके निर्माण के लिए विशेष भूतापीय व अन्य भूवैज्ञानिक परिस्थितियों की ज़रूरत होती है। .

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