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मिथ्या तर्क

सूची मिथ्या तर्क

मिथ्या तर्क (fallacy) किसी कथन का वह भाग है जो तार्किक रूप से दोषपूर्ण सिद्ध किया जा सके। हिन्दी में इसे 'मिथ्या हेतु', हेत्वाभास, तर्काभास और भ्रामकता भी कहा जाता है। मिथ्या हेतु बहुत प्रकार के होते हैं। अपनी बात और उसके निष्कर्ष को सही सिद्ध करने के लिये चतुर लोग जानबूझकर मिथ्या हेतु का सहारा लेते हैं। इसलिये विविध प्रकार के मिथ्या हेतु का ज्ञान रखना अपनी बात को (तर्क) दोष से रहित बनाने के लिये उतना ही जरूरी है जितना किसी दूसरे की बात में निहित तर्क दोष को उजागर करके उसे तर्कपूर्ण बात कहने के लिये विवश करने के लिये। तर्क मिथ्या, आंकडों के दोष (त्रुटि) से भिन्न चीज है। .

5 संबंधों: त्रुटि, प्रहसन कुतर्क, लोकप्रियता कुतर्क, हेत्वाभास, व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क

त्रुटि

मोंटपार्नासे, फ्रांस, में ट्रेन का मलबा,1895 शब्द त्रुटि के कई अर्थ है और सापेक्ष रूप से इसे कैसे लागू किया जाता हैं इस आधार पर इसके कई उपयोग भी हैं। लैटिन भाषा के शब्द एरर (error यानि त्रुटि) का वास्तविक अर्थ है "भटकना" या "इधर उधर घूमना".

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प्रहसन कुतर्क

प्रहसन कुतर्क (लातिनी: reductio ad ridiculum, अंग्रेज़ी: appeal to ridicule) तर्कशास्त्र में ऐसे मिथ्या तर्क (ग़लत तर्क) को कहते हैं जिसमें किसी दावे को उपहासजनक तरीक़े से प्रस्तुत करके उसका मज़ाक़ बनाकर या खिल्ली उड़ाकर उसे झुठा ठहराने का ग़लत प्रयास किया जाए। अक्सर इसमें मूल दावे को अवैध अतिशयोक्ति या तथ्यों के साथ बताया जाता है ताकि उसपर आक्रमण करने में आसानी रहे।, Bo Bennett, pp.

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लोकप्रियता कुतर्क

लोकप्रियता कुतर्क (लातिनी: argumentum ad populum, आर्ग्युमॅन्टम ऐड पॉप्युलम; अंग्रेज़ी: populist fallacy या appeal to the masses), जिसे कभी-कभी गणतांत्रिक कुतर्क (democratic fallacy) भी कहते हैं, तर्कशास्त्र में ऐसे मिथ्या तर्क (ग़लत तर्क) को कहते हैं जिसमें किसी दावे को इस आधार पर सच ठहराया जाने का प्रयास जो कि उसे बहुत या अधिकतर लोग मानते हैं।, Jacob Van Vleet, pp.

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हेत्वाभास

भारतीय न्यायदर्शन (तर्कशास्त्र) में हेत्वाभास उस अवस्था को कहते हैं जिसमें वास्तविक हेतु का अभाव होने पर या किसी अवास्तविक असद् हेतु के वर्तमान रहने पर भी वास्तविक हेतु का आभास मिलता या अस्तित्व दिखाई देता है और उसके फल-स्वरूप भ्रम होता या हो सकता हो। 'हेत्वाभास' दो शब्दों 'हेतु' और 'आभास' की सन्धि से बना है। 'आभास' का मतलब है 'जो नहीं है वह दीखना' या 'जो नहीं है वैसा दीखना'। हेतु का आभास तब होता है जब हेतु के पाँचों लक्षणों (पक्षसत्व, सपक्षसत्व, विपक्षासत्व, अवाधितत्व और असत् प्रतिपक्षतव) का अभाव हो। भारतीय नैयायिकों ने इसके पाँच प्रकारों की चर्चा की है। गौतम ने हेत्वाभास के निम्नलिखित पाँच भेद बताए हैं-.

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व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क

व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क (लातिनी और अंग्रेज़ी: argumentum ad hominem, आर्ग्युमॅन्टम ऐड हॉमिनॅम​) तर्कशास्त्र में ऐसे मिथ्या तर्क (ग़लत तर्क) को कहते हैं जिसमें किसी दावे की निहित सच्चाई को झुठलाने की कोशिश उस दावेदार के चरित्र, विचारधारा या किसी अन्य गुण की ओर ध्यान बंटाकर की जाए। उदाहरण के लिए यह कहना कि 'वर्मा साहब ने जो भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है उसपर ध्यान नहीं देना चाहिए क्योंकि वह को हमेशा अपनी पत्नी से झगड़ते रहते हैं' एक व्यक्ति-केन्द्रित कुतर्क है क्योंकि वर्माजी की व्यक्तिगत समस्याओं का भ्रष्टाचार का इलज़ाम सच या झूठ होने से कोई सम्बन्ध नहीं। ऐसे कुतर्क में कभी-कभी किसी दावे को सच्चा जतलाने का प्रयत्न भी उसके कहने वाले के गुणों के आधार पर किया जाता है। मसलन किसी साबुन के विज्ञापन में अगर कोई मशहूर फ़िल्म अभिनेता आये तो यह कुतर्क प्रस्तुत किया जा रहा होता है कि 'आपको अगर यह अभिनेता पसंद है तो आपको यह साबुन भी पसंद आएगा', हालांकि साबुन का अभिनेता से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं होता।, Rudolph F. Verderber, Deanna D. Sellnow, Kathleen S. Verderber, pp.

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