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मानवतावाद

सूची मानवतावाद

मानवतावाद मानव मूल्यों और चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाला अध्ययन, दर्शन या अभ्यास का एक दृष्टिकोण है। इस शब्द के कई मायने हो सकते हैं, उदाहरण के लिए.

11 संबंधों: एरागॉन की कैथरीन, दार्शनिक यथार्थवाद, नीतिशास्त्र का इतिहास, मानवता, रामनरेश त्रिपाठी, शून्यवाद (नाइलिज़्म), संतसाहित्य, ज्योतिराव गोविंदराव फुले, विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, इकसिंगा, अभिप्रेरणा

एरागॉन की कैथरीन

एरागॉन की कैथरीन (कैस्टिलियाई: कैटालीना; ऐसे भी लिखते हैं Katherine of Aragon, 16 दिसम्बर 1485 – 7 जनवरी 1536) जून १५०९ से मई १५३३ ई॰ तक हेनरी अष्टम की पहली पत्नी के तौर पर इंग्लैंड की पटरानी थीं। रानी बनने से पहले वह हेनरी के बड़े भाई आर्थर की पत्नी के तौर पर वेल्स की राजकुमारी रह चुकी थीं। कैस्टिले की इसाबेल प्रथम और एरागॉन के राजा फर्डीनंड द्वितीय की बेटी कैथरीन का तीन वर्ष की उम्र में अंग्रेजी सिंहासन के उत्तराधिकारी व हेनरी सप्तम के पुत्र आर्थर के साथ विवाह तय कर दिया गया था। उनकी शादी सन 1501 में हुई और आर्थर पांच महीने बाद ही मर गया। यूरोपीय इतिहास में पहली महिला राजदूत बनने वाली कैथरीन को 1507 ई॰ में इंग्लैंड में स्पेन के राजदूत का दर्ज़ा मिला। इसके बाद कैथरीन ने आर्थर के छोटे भाई और 1509 में राजा बने हेनरी सप्तम से विवाह कर लिया। 1513 ई॰ में छ: महीनों के लिये जब हेनरी फ्रांस की यात्रा पर थे तब उन्होंने इंग्लैंड का शासन भी संभाला था। उस वक्त इंग्लैंड ने फ्लॉडॅन का युद्ध जीता जिसमें कैथरीन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1525 तक हेनरी रानी की परिचारिका ऐनी बोलिन के प्रति आसक्त हो चुका था और कोई जीवित पुरूष संतान ना पैदा कर पाने की वजह से कैथरीन से अलग होना चाहता था। आरंभ में तो दोनों का दांपत्य जीवन सुखद रहा, पर शीघ्र ही राजनीति उसके आड़े आई। हेनरी व ऐन द्वारा उसके विवाहविच्छेद के अनेक प्रयास किए गए और २३ मई १५३३ को अंतत: आर्कविशप थॉमस क्रैनमर ने उसके विवाह को अवैध घोषित किया और १० अगस्त को वह रानी के पद से वंचित कर दी गई। हेनरी अष्टम ने एनी बोलेन से विवाह कर लिया था। फलत: कैथरीन धार्मिक जीवन व्यतीत करने लगी। साथ ही आजीवन वह अपने विवाह की अवैधता तथा एनी बोलेन के शिशु के राज्याधिकार की वैधता स्वीकार कर लेने से इनकार करती रही। फलत: उसे मार डालने की धमकी दी जाने लगी और उससे उसकी बेटी मेरी छीन ली गई और उसे किमबोल्टन के किले में नज़रबंद कर दिए गया। एक रानी को मिलने वाले सभी अधिकार उससे छीन लिये गये, एकाकी जीवन व्यतीत करते हुए फलत: उसका स्वास्थ्य खराब हो गया और ८ जनवरी १५३६ को उसकी मृत्यु हुई। वह अपनी प्रजा के बीच एक बेहद लोकप्रिय रानी थी और उसकी दुखद परिस्थियों में हुई मृत्य ने अंग्रेजी प्रज़ा को घोर निराशा और दुख में डाल दिया। जुआन लुईस वाइव्स द्वारा लिखित विवादास्पद पुस्तक द एज़ुकेशन ऑफ़ क्रिस्चियन वूमेन, जो महिला के शिक्षा अधिकारों की वकालत करती है कैथरीन को ही समर्पित थी और उन्होंने ही उसका विमोचन किया था। कैथरीन के व्यक्तित्व का प्रभाव आमजन पर इतना गहरा था कि उनके दुश्मन थॉमस क्रॉमवेल ने एक बार कहा कि अगर महिला होने की बात छोड़ दी जाए तो वो इतिहास के सभी नायकों से श्रेष्ठ साबित होंगी। उन्होंने सफलतापूर्वक शैतानी मई दिवस (एविल मे डे) में भाग लेने वालों के लिये उनके परिवारों की खातिर क्षमा याचना की। गरीबों के लिये जनसेवा के विभिन्न नि:शुल्क कार्यक्रम शुरु करने के लिये उन्हें पूरे साम्राज्य में बहुत ख्याति मिली। वह मानवतावाद की प्रमुख पक्षधर और प्रख्यात विद्वानों तोटेरडम का इरासमस और थॉमस मोर की मित्र भी थीं। .

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दार्शनिक यथार्थवाद

यथार्थवाद (realism) से तात्पर्य उस विचारधारा से है जो कि उस वस्तु एवं भौतिक जगत को सत्य मानती है, जिसका हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। पशु, पक्षी, मानव, जल थल, आकाश इत्यादि सभी वस्तुओं का हम प्रत्यक्षीकरण कर सकते हैं, इसलिए ये सभी सत्य हैं, वास्तविक हैं। यथार्थवाद, जैसा यह संसार है वैसा ही सामान्यतः उसे स्वीकार करता है। यथार्थवाद यद्यपि आदर्शवाद के विपरीत विचारधारा है किन्तु यह बहुत कुछ प्रकृतिवाद एवं प्रयोजनवाद से साम्य रखती है। यथार्थवाद किसी एक सुगठित दार्शनिक विचारधारा का नाम न होकर उन सभी विचारों का प्रतिनिधित्व करता है जो यह मानते हैं कि वस्तु का अस्तित्व हमारे ज्ञान पर निर्भर करता है किन्तु यथार्थवाद विचारक मानते हैं कि वस्तु का स्वतंत्र अस्तित्व है, चाहे वह हमारे अनुभव में हो अथवा नहीं। वस्तु तथा उससे संबंधित ज्ञान दोनों अलग-अलग सत्तायें हैं। विश्व में अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जिनके विषय में हमें कोई ज्ञान नहीं होता परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वे वस्तुएं अस्तित्व में नहीं हैं। ज्ञान तो हमेशा बढ़ता जाता है। जगत का सम्पूर्ण रहस्य मानव ज्ञान की सीमा में कभी नहीं आ सकता। कहने का तात्पर्य यह है कि वस्तु की स्वतंत्र स्थिति है चाहे मनुष्य को उसका ज्ञान हो अथवा नहीं। व्यक्ति का ज्ञान उसे वस्तु की स्थिति से अवगत कराता है, परन्तु वस्तु की स्थिति का ज्ञान मनुष्य को न हो तो वस्तु का अस्तित्व नष्ट नहीं होता। यथार्थवाद के अनुसार हमारा अनुभव स्वतंत्र न होकर वाह्य पदार्थों के प्रति प्रतिक्रिया का निर्धारण करता है। अनुभव वाह्य जगत से प्रभावित है और वाह्य जगत का वास्तविक सत्ता है। यथार्थवाद के अनुसार मनुष्य को वातावरण का ज्ञान होना चाहिये। उसे यह पता होना चाहिए कि वह वातावरण को परिवर्तित कर सकता है अथवा नहीं और इसी ज्ञान के अनुसार उसे कार्य करना चाहिये। यथार्थवाद का नवीन रूप वैज्ञानिक यथार्थवाद है जिसे आज 'यथार्थवाद' के नाम से ही जान जाता है। वैज्ञानिक यथार्थवादियों ने दर्शन की समस्याओं को सुलझाने में विशेष रूचि प्रदर्शित नहीं की। उनके अनुसार यथार्थ प्रवाहमय है। यह परिवर्तनशील है और इसके किसी निश्चित रूप को जानना असंभव है। अतः वह यह परिकल्पित करता है कि यथार्थ मानव मन की उपज नहीं है। सत्य मानव मस्तिष्क की देन है। यथार्थ मानव-मस्तिष्क से परे की वस्तु है। उस यथार्थ के प्रति दृष्टिकोण विकसित करना सत्य कहा जायेगा। जो सत्य यथार्थ के जितना निकट होगा वह उतना ही यथार्थ सत्य होगा। .

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नीतिशास्त्र का इतिहास

यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। नैतिक मतवादों का विकास दो विभिन्न दिशाओं में हुआ है। एक ओर तो आचारशात्रज्ञों ने "नैतिक निर्णय" का विश्लेषण करते हुए उचित-अनुचित संबंधी मानवीय विचारों के मूलभूत आधार का प्रश्न उठाया है। दूसरी ओर उन्होंने नैतिक आदर्शों तथा उन आदर्शों की सिद्धि के लिए अपनाए गए मार्गों का विवेचन किया है। आचारशास्त्र का पहला पक्ष चिंतनशील है, दूसरा निर्देशनशील। इन दोनों को हमें एक साथ देखना होगा, क्योंकि प्रत्यक्षरूप में दोनों संलग्न और अविभाज्य हैं। .

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मानवता

कोई विवरण नहीं।

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रामनरेश त्रिपाठी

रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962) हिन्दी भाषा के 'पूर्व छायावाद युग' के कवि थे। कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर उन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले वह हिंदी के प्रथम कवि थे जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना। वह गांधी के जीवन और कार्यो से अत्यंत प्रभावित थे। उनका कहना था कि मेरे साथ गांधी जी का प्रेम 'लरिकाई को प्रेम' है और मेरी पूरी मनोभूमिका को सत्याग्रह युग ने निर्मित किया है। 'बा और बापू' उनके द्वारा लिखा गया हिंदी का पहला एकांकी नाटक है। ‘स्वप्न’ पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। .

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शून्यवाद (नाइलिज़्म)

शून्यवाद (नाइलिज़्म) (लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है, कुछ नहीं), एक दार्शनिक सिद्धांत है जो जीवन के एक या अधिक अर्थपूर्ण पहलुओं को नकारता है। आम तौर पर शून्यवाद (नाइलिज़्म) को सबसे अधिक अस्तित्व/मौज़ूदा शून्यवाद (नाइलिज़्म) के रूप में प्रस्तुत किया है जो तर्क देता है कि जीवन का कोई सार्थक अर्थ, कारण या वास्तविक महत्त्व नहीं है। इसे मानने वाले नाईलिस्ट (शून्यवादी) जोर दे कर कहते हैं है कि नैतिकता स्वाभाविक रूप से मौजूद नहीं होती, तथा किसी भी प्रकार के स्थापित किये गए नैतिक मूल्य कृत्रिम रूप से बनाये गये हैं। शून्यवाद (नाइलिज़्म) दर्शनवाद, अध्यात्मवाद या सिद्धांतवाद के रूप में भी हो सकता है, जिसका अर्थ है कि कुछ स्वरूपों में ज्ञान संभव नहीं है या हमारे विश्वास के विपरीत है, इस प्रकार यथार्थ के कुछ पहलू अस्तित्व में नहीं होते हैं। शून्यवाद (नाइलिज़्म) शब्द को कई बार आदर्शों की कमी के साथ जोड़ कर अस्तित्व की कथित निरर्थकता के कारण हुई निराशा की सामान्य मनोदशा में यह समझाने के लिए प्रयोग लिया जाता है कि कोई यह समझ कर विकास कर सकता है कि कोई आदर्श, नियम या कानून नहीं हैं। दूसरे आंदोलनों के साथ भविष्यवाद और विध्वंस को टिप्पणीकारों द्वारा विभिन्न समय पर विभिन्न सन्दर्भों में "शून्यवादी (नाइलिस्टिक)" के रूप में पहचाना गया है। शून्यवाद (नाइलिज़्म) एक एक विशेषता भी है जिसे, कई समय अवधियों के लिए जिम्मेदार माना गया है, उदाहरण के लिए, जीन बौड्रीलार्ड और अन्यों ने आधुनिकता के बाद के युग को शून्यवादी (नाइलिस्टिक) युग माना है और कुछ ईसाई ब्रह्मविज्ञानियों और धार्मिक गुरुओं द्वारा एकत्रित आंकड़ों ने इस बात पर जोर दिया है कि आधुनिकता के बाद का युग और इसके कई पहलू आस्तिकता को नकारने का प्रतिनिधित्व करते हैं और कहा कि इस तरह की अस्वीकृति एक प्रकार के शून्यवाद (नाइलिज़्म) को ही बढ़ावा देने के समान है। .

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संतसाहित्य

संतसाहित्य का इस लेख में अर्थ है- वह साहित्य जो निर्गुणिए भक्तों द्वारा रचा जाए। यह आवश्यक नहीं कि सन्त उसे ही कहा जाए जो निर्गुण ब्रह्म का उपासक हो। इसके अंतर्गत लोकमंगलविधायी सभी सत्पुरुष आ जाते हैं, किंतु आधुनिक कतिपय साहित्यकारों ने निर्गुणिए भक्तों को ही "संत" की अभिधा दे दी और अब यह शब्द उसी वर्ग में चल पड़ा है। "संत" शब्द संस्कृत "सत्" के प्रथमा का बहुवचनान्त रूप है, जिसका अर्थ होता है सज्जन और धार्मिक व्यक्ति। हिन्दी में साधु पुरुषों के लिए यह शब्द व्यवहार में आया। कबीर, सूरदास, गोस्वामी तुलसीदास आदि पुराने कवियों ने इस शब्द का व्यवहार साधु और परोपकारी, पुरुष के अर्थ में बहुलांश: किया है और उसके लक्षण भी दिए हैं। लोकोपकारी संत के लिए यह आवश्यक नहीं कि यह शास्त्रज्ञ तथा भाषाविद् हो। उसका लोकहितकर कार्य ही उसके संतत्व का मानदंड होता है। हिंदी साहित्यकारों में जो "निर्गुणिए संत" हुए उनमें अधिकांश अनपढ़ किंवा अल्पशिक्षित ही थे। शास्त्रीय ज्ञान का आधार न होने के कारण ऐसे लोग अपने अनुभव की ही बातें कहने को बाध्य थे। अत: इनके सीमित अनुभव में बहुत सी ऐसी बातें हो सकती हैं, जो शास्त्रों के प्रतिकूल ठहरें। अल्पशिक्षित होने के कारण इन संतों ने विषय को ही महत्व दिया है, भाषा को नहीं। इनकी भाषा प्राय: अनगढ़ और पंचरंगी हो गई है। काव्य में भावों की प्रधानता को यदि महत्व दिया जाए तो सच्ची और खरी अनुभूतियों की सहज एवं साधारणोकृत अभिव्यक्ति के कारण इन संतों में कइयों की बहुवेरी रचनाएँ उत्तम कोटि के काव्य में स्थान पाने की अधिकारिणी मानी जा सकती है। परंपरापोषित प्रत्येक दान का आँख मूँदकर वे समर्थन नहीं करते। इनके चिंतन का आकार सर्वमानववाद है। ये मानव मानव में किसी प्रकार का अंतर नहीं मानते। इनका कहना है कि कोई भी व्यक्ति अपने कुलविशेष के कारण किसी प्रकार वैशिष्ट्य लिए हुए उत्पन्न नहीं होता। इनकी दृष्टि में वैशिष्ट्य दो बातों को लेकर मानना चाहिए: अभिमानत्यागपूर्वक परोपकार या लोकसेवा तथा ईश्वरभक्ति। इस प्रकार स्वतंत्र चिंतन के क्षेत्र में इन संतों ने एक प्रकार की वैचारिक क्रांति को जन्म दिया। .

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ज्योतिराव गोविंदराव फुले

ज्योतिराव गोविंदराव फुले (जन्म - ११ अप्रैल १८२७, मृत्यु - २८ नवम्बर १८९०) एक भारतीय विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें 'महात्मा फुले' एवं 'ज्‍योतिबा फुले' के नाम से भी जाना जाता है। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे। .

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विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय

श्रेणी:पुस्तकालय विल्नुस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय (VUB) - सब से पुराना पुस्तकालय लिथुआनिया में है। वह जेशूइट के द्वारा स्थापित किया गया था। पुस्तकालय विल्नुस विश्वविद्यालय से पुराना है - पुस्तकालय १५७० में और विश्वविद्यालय १५७९ में स्थापित किया गया था। कहने तो लायक है कि अभी तक पुस्तकालय समान निर्माण में रहा है।पहले पुस्तकालय वर्तमान भाषाशास्त्र (फ़िलोलोजी) के वाचनालय में रहा था। आज पुस्तकालय में लगभग ५४ लाख दस्तावेज रखे हैं। ताक़ों की लम्बाई - १६६ किलोमीटर ।अभी पुस्तकालय के २९ हज़ार प्रयोक्ते हैं। १७५३ में यहाँ लिथुआनिया की प्रथम वेधशाला स्थापित की गयी थी। प्रतिवर्ष विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में बहुत पर्यटक आते हैं - न केवल लिथुआनिया से बल्कि भारत, स्पेन, चीन, अमरीका से, वगैरह। विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में प्रसिद्ध व्यक्तित्व भी आते हैं। उदाहरण के लिये - राष्ट्रपति, पोप, दलाई लामा, वगैरह। विल्नुस विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का सदर मकान उनिवेर्सितेतो ३ में, राष्ट्रपति भवन के पास स्थापित किया गया है। यहाँ १३ वाचनालय और ३ समूहों के कमरे हैं। दूसरे विल्नुस के स्थानों में अन्य पुस्तकालय के भाग मिलते हैं। .

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इकसिंगा

इकसिंगा या यूनिकॉर्न (जो लैटिन शब्दों - unus (यूनस) अर्थात् 'एक' एवं cornu (कॉर्नू) अर्थात् 'सींग' से बना है) एक पौराणिक प्राणी है। हालांकि इकसिंगे का आधुनिक लोकप्रिय छवि कभी-कभी एक घोड़े की छवि की तरह प्रतीत होता है जिसमें केवल एक ही अंतर है कि इकसिंगे के माथे पर एक सींग होता है, लेकिन पारंपरिक इकसिंगे में एक बकरे की तरह दाढ़ी, एक सिंह की तरह पूंछ और फटे खुर भी होते हैं जो इसे एक घोड़े से अलग साबित करते हैं। मरियाना मेयर (द यूनिकॉर्न एण्ड द लेक) के अनुसार, "इकसिंगा एकमात्र ऐसा मनगढ़ंत पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।", Geocities.com .

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अभिप्रेरणा

अभिप्रेरणा लक्ष्य-आधारित व्यवहार का उत्प्रेरण या उर्जाकरण है। अभिप्रेरणा या प्रेरणा आंतरिक या बाह्य हो सकती है। इस शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर इंसानों के लिए किया जाता है, लेकिन सैद्धांतिक रूप से, पशुओं के बर्ताव के कारणों की व्याख्या के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस आलेख का संदर्भ मानव अभिप्रेरणा है। विभिन्न सिद्धांतों के अनुसार, बुनियादी ज़रूरतों में शारीरिक दुःख-दर्द को कम करने और सुख को अधिकतम बनाने के मूल में अभिप्रेरणा हो सकती है, या इसमें भोजन और आराम जैसी खास ज़रूरतों को शामिल किया जा सकता है; या एक अभिलषित वस्तु, शौक, लक्ष्य, अस्तित्व की दशा, आदर्श, को शामिल किया जा सकता है, या इनसे भी कमतर कारणों जैसे परोपकारिता, नैतिकता, या म्रत्यु संख्या से बचने को भी इसमें आरोपित किया जा सकता है। .

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