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महासागरीय गर्त

सूची महासागरीय गर्त

ये महासागरीय बेसिन के सबसे नीचे भाग हैं और इनकी तली औसत महासागरीय नितल के काफी नीचे मिलती हैं। इनकी स्थिति सर्वत्र न मिलकर यत्र-तत्र बिखरे हुए रूप में मिलती हैं। वास्तव में ये महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे, पतले तथा गहरे अवनमन के क्षेत्र हैं। इनकी उतपत्ति महासागरीय तली में प्रथ्वी के क्रस्ट के वलन एवं भ्रंशन के परिणामस्वरूप मानी जाती हैं। अर्थात इनकी उतपत्ति विवर्तनिक क्रियाओं से हुई हैं। .

14 संबंधों: टार्डीग्रेड, निम्नस्खलन, पृथ्वी का इतिहास, पेलैजिक क्षेत्र, फ़िलिपीन सागर, फ़िलिपीन गर्त, भौतिकी की शब्दावली, भूगतिकी, महासागरीय द्रोणी, मॉरिशस, संमिलन सीमा, सुन्दा गर्त, ज्वालामुखीय चाप, अतल मैदान

टार्डीग्रेड

टार्डीग्रेड (Tardigrade) एक जल में रहने वाला आठ-टाँगों वाला सूक्ष्मप्राणी है। इन्हें सन् 1773 में योहन गेट्ज़ा नामक जीववैज्ञानिक ने पाया था। टार्डीग्रेड पृथ्वी पर पर्वतों से लेकर गहरे महासागरों तक और वर्षावनों से लेकर अंटार्कटिका तक लगभग हर जगह रहते हैं। टार्डीग्रेड पृथ्वी का सबसे प्रत्यास्थी (तरह-तरह की परिस्थितियाँ झेल सकने वाला) प्राणी है। यह 1 केल्विन (−272 °सेंटीग्रेड) से लेकर 420 केल्विन (150 °सेंटीग्रेड) का तापमान और महासागरों की सबसे गहरी गर्तो में मौजूद दबाव से छह गुना अधिक दबाव झेल सकते हैं। मानवों की तुलना में यह सैंकड़ों गुना अधिक विकिरण (रेडियेशन) में जीवित रह सकते हैं और अंतरिक्ष के व्योम में भी कुछ काल तक ज़िन्दा रहते हैं। यह 30 वर्षों से अधिक बिना कुछ खाए-पिए रह सकते हैं और धीरे-धीरे लगभग पूरी शारीरिक क्रियाएँ रोक लेते हैं और उनमें सूखकर केवल 3% जल की मात्रा रह जाती है। इसके बाद जल व आहार प्राप्त होने पर यह फिर क्रियशील हो जाते हैं और शिशु जन सकते हैं। फिर भी औपचारिक रूप से इन्हें चरमपसंदी नहीं माना जाता क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में यह जितनी अधिक देर रहें इनकी मृत्यु होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होती है जबकि सच्चे चरमपसंदी जीव अलग-अलग उन चरम-परिस्थितियों में पनपते हैं जिनके लिए वे क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से अनुकूल हों। .

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निम्नस्खलन

भूविज्ञान में निम्नस्खलन या सबडक्शन (subduction) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें दो भौगोलिक तख़्तों की संमिलन सीमा पर एक तख़्ता दूसरे के नीचे फिसलकर दबने लगता है, यानि कि उसका दूसरे तख़्ते के नीचे स्खलन होने लगता है। निम्नस्खलन क्षेत्र (सबडक्शन ज़ोन, subduction zone) पृथ्वी के वे इलाक़े होते हैं जहाँ यह निम्नस्खलन चल रहा हो। अक्सर इन निम्नस्खलन क्षेत्रों में ज्वालामुखी, पर्वतमालाएँ, या (यदि यह समुद्री क्षेत्र में हो) महासागरीय गर्त (खाईयाँ या ट्रेन्च) बन जाते हैं। निम्नस्खलन की प्रक्रिया की गति चंद सेन्टीमीटर प्रति वर्ष ही होती है। एक तख़्ता दूसरे तख़्ते के नीचे दो से आठ सेमी प्रति वर्ष के औसत दर से खिसकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारतीय प्लेट के यूरेशियाई प्लेट की संमिलन सीमा पर भारतीय प्लेट के निम्नस्खलन से ही हिमालय व तिब्बत के पठार की उच्चभूमि का निर्माण हुआ है। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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पेलैजिक क्षेत्र

पेलैजिक क्षेत्र (pelagic zone) किसी महासागर, सागर या झील के जल का वह भाग होता है जो न तो नीचे के फ़र्श के समीप हो और न ही उस जलसमूह के तट के समीप। इसे कभी-कभी खुला पानी (open water) भी कहा जाता है। पृथ्वी पर पेलैजिक क्षेत्र का कुल आयतन लगभग 13,300 लाख किमी3, औसत गहराई 3.68 किमी (2.29 मील) और अधिकतम गहराई 11 किमी (6.8 मील) है। पेलैजिक क्षेत्र में रहने वाली मछलियाँ पेलैजिक मछलियाँ कहलाती हैं। पृथ्वी के वायुमंडल की तरह पेलैजिक क्षेत्र को भी परतों में बाँटा जा सकता है। इस क्षेत्र के किसी भाग में एक काल्पनिक पानी का स्तम्भ के बारे में सोचा जाए तो जैसे-जैसे उसमें नीचे की ओर जाया जाए वैसे-वैसे दबाव बढ़ता, तापमान घटता और प्रकाश घटता जाता है। बढ़ती गहराई के साथ पेलैजिक जीवन भी घटता जाता है। .

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फ़िलिपीन सागर

फ़िलिपीन सागर (Philippine Sea) फ़िलिपीन्ज़ से पूर्वोत्तर में स्थित एक सीमांत समुद्र है। इसका अनुमानित ५० लाख वर्ग किमी का क्षेत्रफल उत्तर प्रशान्त महासागर के पश्चिमी भाग का हिस्सा है। दक्षिणपश्चिम में इसकी सीमा फ़िलिपीन द्वीपसमूह (लूज़ोन, कतंदुआनेस, सामार, लेयते और मिन्दनाओ); दक्षिणपूर्व में हालमाहेरा, मोरोताइ, पालाउ, याप और उलिथि; पूर्व में गुआम, साइपैन और तीनियन; पूर्वोत्तर में बोनिन और इवो जीमा; पश्चिमोत्तर में जापान के होन्शू, शिकोकु और क्युशु द्वीप; तथा पश्चिम में ताइवान पड़ती हैं। इस सागर का फ़र्श एक द्रोणी (बेसिन) है जो भिन्न प्रकार की भूआकृतियों के लिए जानी जाती है, जिसमें भ्रंश उपस्थित हैं। प्लेट विवर्तनिकी के कारण इसकी उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमाओं पर समुद्रसतह से ऊपर उभरी हुई महान चट्टानों द्वीप चापों के रूप में बनी हुई हैं जो इन सीमाओं पर सागर को घेरती हैं। फ़िलिपीन द्वीपसमूह, रयुक्यु द्वीपसमूह और मारियाना द्वीपसमूह इन द्वीप चापों के उदाहरण हैं। फ़िलिपीन सागर की एक और विशेषता बहुत ही गहरी महासागरीय गर्तों की उपस्थिति है, जिनमें फ़िलिपीन गर्त और पृथ्वी का सबसे गहरा स्थान मारियाना गर्त शामिल हैं। .

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फ़िलिपीन गर्त

फ़िलिपीन गर्त (Philippine Trench), जो कभी-कभी मिन्दनाओ गर्त (Mindanao Trench) भी कहलाता है, पश्चिमी प्रशांत महासागर के फ़िलिपीन सागर भाग में स्थित एक १,३२० किमी तक चलने वाला एक महासागरीय गर्त है। इस गर्त की चौड़ाई लगभग ३० किमी है और इसका सबसे गहरा बिन्दु (जो गालाथेआ गहराई कहलाता है) समुद्रतल से लगभग १०,५४० मीटर (३४,५८० फ़ुट) नीचे है। यह पृथ्वी का तीसरा सबसे निचला स्थान है। .

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भौतिकी की शब्दावली

* ढाँचा (Framework).

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भूगतिकी

भूगतिकी (Geodynamics) भूभौतिकी की वह शाखा है जो पृथ्वी पर केन्द्रित गति विज्ञान का अध्ययन करती है। इसमें भौतिकी, रसायनिकी और गणित के सिद्धांतों से पृथ्वी की कई प्रक्रियाओं को समझा जाता है। इनमें भूप्रावार (मैंटल) में संवहन (कन्वेक्शन) द्वारा प्लेट विवर्तनिकी का चलन शामिल है। सागर नितल प्रसरण, पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी, भूकम्प, भ्रंशण जैसी भूवैज्ञानिक परिघटनाएँ भी इसमें सम्मिलित हैं। भूगतिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों, गुरुत्वाकर्षण और भूकम्पी तरंगों का मापन तथा खनिज विज्ञान की तकनीकों के प्रयोग से पत्थरों और उनमें उपस्थित समस्थानिकों (आइसोटोपों) का मापन भूगतिकी में ज्ञानवर्धन की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर अनुसंधान में भी भूगतिकी का प्रयोग होता है। .

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महासागरीय द्रोणी

महासागरीय द्रोणी (oceanic basin) महासागरों के सागरतह पर स्थित बड़ी द्रोणियाँ होती हैं। यह भूवैज्ञानिक आकृतियाँ कई भागों की बनी होती हैं, जिनमें अतल मैदान शामिल होते हैं। भूवैज्ञानिक रूप से सक्रीय महासागरीय द्रोणियों में महासागरीय गर्त और निम्नस्खलन क्षेत्र भी सम्मिलित होते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि महाद्वीपीय ताक, मध्य-महासागर पर्वतमालाओं और महासागरीय गर्तों के बीच के क्षेत्रों में महासागरीय द्रोणियाँ फैली होती हैं। .

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मॉरिशस

मॉरीशस गणराज्य(अंग्रेज़ी: Republic of Mauritius, फ़्रांसीसी: République de Maurice), अफ्रीकी महाद्वीप के तट के दक्षिणपूर्व में लगभग 900 किलोमीटर की दूरी पर हिंद महासागर में और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित एक द्वीपीय देश है। मॉरीशस द्वीप के अतिरिक्त इस गणराज्य मे, सेंट ब्रेंडन, रॉड्रीगज़ और अगालेगा द्वीप भी शामिल हैं। दक्षिणपश्चिम में 200 किलोमीटर पर स्थित फ्रांसीसी रीयूनियन द्वीप और 570 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित रॉड्रीगज़ द्वीप के साथ मॉरीशस मस्कारेने द्वीप समूह का हिस्सा है। मारीशस की संस्कृति, मिश्रित संस्कृति है, जिसका कारण पहले इसका फ्रांस के आधीन होना तथा बाद में ब्रिटिश स्वामित्व में आना है। मॉरीशस द्वीप विलुप्त हो चुके डोडो पक्षी के अंतिम और एकमात्र घर के रूप में भी विख्यात है। .

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संमिलन सीमा

भूवैज्ञानिक प्लेट विवर्तनिकी में संमिलन सीमा (convergent boundary) वह सीमा होती है जहाँ पृथ्वी के स्थलमण्डल (लिथोस्फ़ीयर) के दो भौगोलिक तख़्ते (प्लेटें) एक दूसरे की ओर आकर टकराते हैं या आपस में घिसते हैं। ऐसे क्षेत्रों में दबाव और रगड़ से भूप्रावार (मैन्टल) का पत्थर पिघलने लगता है और ज्वालामुखी तथा भूकम्पन घटनाओं में से एक या दोनों मौजूद रहते हैं। संमिलन सीमाओं पर या तो एक तख़्ते का छोर दूसरे तख़्ते के नीचे दबने लगता है (इसे निम्नस्खलन या सबडक्शन कहते हैं) या फिर महाद्वीपीय टकराव होता है।Butler, Rob (October 2001).

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सुन्दा गर्त

सुन्दा गर्त (Sunda Trench), जो पहले जावा गर्त (Java Trench) कहलाता था, पूर्वोत्तरी हिन्द महासागर में स्थित एक ३,२०० किमी तक चलने वाला एक महासागरीय गर्त है। इस गर्त की सर्वाधिक गहराई ७,७२५ मीटर (२५,३४४ फ़ुट) है जो 10°19' दक्षिण, 109°58' पूर्व के निर्देशांक पर इण्डोनेशिया के योग्यकार्ता क्षेत्र से लगभग ३२० किमी दक्षिण में स्थित है और हिन्द महासागर का सबसे गहरा स्थान है। यह गर्त जावा से आगे लघुतर सुन्दा द्वीपसमूह से शुरु होकर सुमात्रा के दक्षिणी तट से नीचे से निकलकर अण्डमान द्वीपों तक चलता है। भूवैज्ञानिक रूप से यह हिन्द-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट और यूरेशियाई प्लेट (विशेषकर सुन्दा प्लेट) के बीच की सीमा है। यह गर्त प्रशांत अग्नि वृत्त का हिस्सा है। .

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ज्वालामुखीय चाप

ज्वालामुखीय चाप (volcanic arc) ज्वालामुखियों की एक शृंखला होती है जो दो भौगोलिक तख़्तों की संमिलन सीमा में निम्नस्खलित तख़्ते (subducting plate) के ऊपर बन जाती है। ऊपर से देखने पर ज्वालामुखियों की यह शृंखला एक चाप (आर्क) के आकार में नज़र आती है। यदि यह किसी महासागर में स्थित हो तो अक्सर यह ज्वालामुखी समुद्र सतह से ऊपर निकलकर ज्वालामुखीय द्वीप बना देते हैं और यह शृंखला एक द्वीप चाप के रूप में नज़र आती है। अक्सर इन द्वीपों से सामानांतर एक महासागरीय गर्त (ट्रेन्च) भी स्थित होता है। .

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अतल मैदान

अतल मैदान (abyssal plain) महासागरों की गहराईयों में सागरतह का विस्तृत मैदानी क्षेत्र होता है, जिसकी गहराई आमतौर पर 3,000 मीटर (9,800 फ़ुट) और 6,000 मीटर (20,000 फ़ुट) के बीच होती है। यह महाद्वीपीय चढ़ाव और मध्य-महासागर पर्वतमाला के बीच का क्षेत्र होता है और ऐसे मैदान पृथ्वी के लगभग 50% क्षेत्र पर फैले हुए हैं। यह विश्व के सबसे चपटे और सबसे कम अध्ययन करे गए क्षेत्रों में से हैं। अतल मैदान महासागरीय द्रोणियों के महत्वपूर्ण भाग होते हैं और इन द्रोणियों में इन मैदानों के अलावा एक महासागरीय गर्त और निम्नस्खलन क्षेत्र भी होते है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

महासागरीय गर्तों, गर्त

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