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महावीर

सूची महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (२४वें) तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। १२ वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। ७२ वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है। जैन ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है– अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए।महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो। यही महावीर का 'जीयो और जीने दो' का सिद्धांत है। .

123 संबंधों: चम्पापुरी, तिरहुत प्रमंडल, त्रिशला, तीर्थंकर, दिल्ली के दर्शनीय स्थल, दिगम्बर, दीपावली, दीपावली (जैन), धनतेरस, धनबाद, धरसेन, नालंदा जिला, निर्वाण, नवादा, पट्टावली, पद्मप्रभ, पर्यूषण पर्व, पार्श्वनाथ, पावापुरी, प्रमुख जैन तीर्थ, प्राचीन भारत, प्राकृत साहित्य, फाजिल नगर, बराबर गुफाएँ, बर्धमान जिला, बिहार, बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची, बिहार के व्यक्तियों की सूची, ब्रह्मचर्य, ब्रज संस्कृति, भद्रबाहु, भारत में धर्म, भारत का संक्षिप्त इतिहास (स्वतंत्रता-पूर्व), भारत का आर्थिक इतिहास, भारत के अभयारण्य, भारतीय दर्शन, भारतीय व्यक्तित्व, भारतीय गणित, भारतीय इतिहास तिथिक्रम, भारतीयकरण, भगवान, भीनमाल, मथुरा की मूर्तिकला, महावीर (बहुविकल्पी), महावीर जयन्ती, मागधी, माउंट आबू, मगही साहित्य, मक्खलि गोशाल, मुजफ्फरपुर, ..., मृगावती, योग, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, राजा सिद्धार्थ, लिच्छवि, लोहरदग्गा, लीड्स, श्रुतकेवली, षट्खण्डागम, समन्तभद्र, सांयोगिकी का इतिहास, सिद्धार्थ, सिमंधर स्वामी, संस्कृत ग्रन्थों की सूची, सुधर्मास्वामी, सूरौठ, हाथीगुम्फा शिलालेख, हाजीपुर, हिण्डौन, हिन्दी, जमुई, जय जिनेन्द्र, जगन्नाथ तर्कपंचानन, ज्ञानमति, जैन दर्शन, जैन धर्म, जैन धर्म का इतिहास, जैन धर्म के तीर्थंकर, जैन धर्म के घटनाक्रम, जैन नववर्ष, जैन प्रतीक चिन्ह, जैन ग्रंथ, जैन अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान, जीव, जीव (जैन दर्शन), वाराणसी, वाराणसी का इतिहास, विद्यानंद, वज्जिका भाषा और साहित्य, व्याख्याप्रज्ञप्ति, वैशाली, वैशाली जिला, खतरगच्छ, खरतरगच्छ, गच्छ, गणधर, गंधकुटी, गुना, गोपालकृष्ण अडिग, गोरखपुर, आचारांग, आचार्य शय्यंभव, आजीविक, आगम, आगम (जैन), इंद्रभूति गौतम, कन्फ़्यूशियस, कपिल, कल्पसूत्र (जैन), काशी का इतिहास, कुन्दकुन्द, कुशीनगर, क्रमचय, अब्द, अरिहन्त, अर्धमागधी, अहिंसा स्थल, अवधिज्ञान, अवसर्पिणी, अक्रियावाद, उत्तराध्ययन सूत्र, १५ अक्टूबर, २४ तीर्थंकर सूचकांक विस्तार (73 अधिक) »

चम्पापुरी

चंपा प्राचीन अंग की राजधानी, जो गंगा और चंपा के संगम पर बसी थी। प्राचीन काल में इस नगर के कई नाम थे- चंपानगर, चंपावती, चंपापुरी, चंपा और चंपामालिनी। पहले यह नगर 'मालिनी' के नाम से प्रसिद्ध था किंतु बाद में लेमपाद के प्राचीन राजा चंप के नाम पर इसका नाम चंपा अथवा चंपावती पड़ गया। यहाँ पर चंपक वृक्षों की बहुलता का भी संबंध इसके नामकरण के साथ जोड़ा जाता है। चंपा नगर का समीकरण भागलपुर के समीप आधुनिक चंपानगर और चंपापुर नाम के गाँवों से किया जाता है किंतु संभवत: प्राचीन नगर मुंगेर की पश्चिमी सीमा पर स्थित था। कहा जाता है, इस नगर को महागोविन्द ने बसाया था। उस युग के सांस्कृतिक जीवन में चंपा का महत्वपूर्ण स्थान था। बुद्ध, महावीर और गोशाल कई बार चंपा आए थे। १२वें तीर्थकर वासुपूज्य का जन्म और मोक्ष दोनों ही चंपा में हुआ था। यह जैन धर्म का उल्लेखनीय केंद्र और तीर्थ था। दशवैकालिक सूत्र की रचना यहीं हुई थी। नगर के समीप रानी गग्गरा द्वारा बनवाई गई एक पोक्खरणी थी जो यात्री और साधु संन्यासियों के विश्रामस्थल के रूप में प्रसिद्ध थी और जहाँ का वातावरण दार्शनिक बाद विवादों से मुखरित रहता था। अजातशत्रु के लिय कहा गया है कि उसने चंपा को अपनी राजधानी बनाया। दिव्यावदान के अनुसार विंदुसार ने चंपा की एक ब्राह्मण कन्या से विवाह किया था जिसकी संतान सम्राट् अशोक थे। चंपा समृद्ध नगर और व्यापार का केंद्र भी था। चंपा के व्यापारी समुद्रमार्ग से व्यापार के लिये भी प्रसिद्ध थे। .

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तिरहुत प्रमंडल

तिरहुत प्रमंडल का नक्शा बिहार में गंगा के उत्तरी भाग को तिरहुत क्षेत्र कहा जाता था। इसे तुर्क-अफगान काल में स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई बनाया गया। किसी समय में यह क्षेत्र बंगाल राज्य के अंतर्गत था। सन् १८७५ में यह बंगाल से अलग होकर मुजफ्फरपुर और दरभंगा नामक दो जिलों में बँट गया। ये दोनों जिले अब बिहार राज्य के अन्तर्गत है। वैसे अब तिरहुत नाम का कोई स्थान नहीं है, लेकिन मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों को ही कभी कभी तिरहुत नाम से व्यक्त किया जाता है। ब्रिटिस भारत में सन १९०८ में जारी एक आदेश के तहत तिरहुत को पटना से अलग कर प्रमंडल बनाया गया। तिरहुत बिहार राज्य के ९ प्रमंडलों में सवसे बड़ा है। इसके अन्तर्गत ६ जिले आते हैं.

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त्रिशला

त्रिशला जिन्हें पिर्यकारिणी भी कहा जाता है 24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की माता थी। .

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तीर्थंकर

जैन धर्म में तीर्थंकर (अरिहंत, जिनेन्द्र) उन २४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करते है। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर वह व्यक्ति हैं जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो)। तीर्थंकर को इस नाम से कहा जाता है क्योंकि वे "तीर्थ" (पायाब), एक जैन समुदाय के संस्थापक हैं, जो "पायाब" के रूप में "मानव कष्ट की नदी" को पार कराता है। .

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दिल्ली के दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारत की राजधानी ही नहीं पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र भी है। राजधानी होने के कारण भारतीय सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं प्राचीन नगर होने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से कुतुबमीनार और लौह स्तंभ जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं। एक ओर हुमायूँ का मकबरा जैसा मुगल शैली की ऐतिहासिक राजसिक इमारत यहाँ है तो दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं विरला मंदिर, बंगला साहब का गुरुद्वारा, बहाई मंदिर और देश पर जान देने वालों का स्मारक भी राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। भारत के प्रधान मंत्रियों की समाधियाँ हैं, जंतर मंतर है, लाल किला है साथ ही अनेक प्रकार के संग्रहालय और बाज़ार हैं जो दिल्ली घूमने आने वालों का दिल लूट लेते हैं। .

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दिगम्बर

गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेळगोळ में) दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है - श्वेताम्बर। दिगम्बर.

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दीपावली

दीपावली या दीवाली अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है।The New Oxford Dictionary of English (1998) ISBN 0-19-861263-X – p.540 "Diwali /dɪwɑːli/ (also Divali) noun a Hindu festival with lights...". दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।Jean Mead, How and why Do Hindus Celebrate Divali?, ISBN 978-0-237-534-127 भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। दीवाली नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश है। .

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दीपावली (जैन)

जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। .

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धनतेरस

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। जैन आगम में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। .

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धनबाद

धनबाद भारत के झारखंड में स्थित एक शहर है जो कोयले की खानों के लिये मशहूर है। यह शहर भारत में कोयला व खनन में सबसे अमीर है। पुर्व मैं यह मानभुम जिला के अधीन था। यहां कई ख्याति प्राप्त औद्योगिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संस्थान हैं। यह नगर कोयला खनन के क्षेत्र में भारत में सबसे प्रसिद्ध है। कई ख्याति प्राप्त औद्योगिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संसथान यहाँ पाए जाते हैं। यहां का वाणिज्य बहुत व्यापक है। झारखंड में स्थित धनबाद को भारत की कोयला राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर कोयले की अनेक खदानें देखी जा सकती हैं। कोयले के अलावा इन खदानों में विभिन्न प्रकार के खनिज भी पाए जाते हैं। खदानों के लिए धनबाद पूरे विश्‍व में प्रसिद्ध है। यह खदानें धनबाद की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। पर्यटन के लिहाज से भी यह खदानें काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पर्यटक बड़ी संख्या में इन खदानों को देखने आते हैं। खदानों के अलावा भी यहां पर अनेक पर्यटक स्थल हैं जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इसके प्रमुख पर्यटक स्थलों में पानर्रा, चारक, तोपचांची और मैथन प्रमुख हैं। पर्यटकों को यह पर्यटक स्थल और खदानें बहुत पसंद आती है और वह इनके खूबसूरत दृश्यों को अपने कैमरों में कैद करके ले जाते हैं। कम्बाइन्ड बिल्डिंग चौक .

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धरसेन

आचार्य धरसेन प्रथम शताब्दी के दिगम्बर साधु थे। .

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नालंदा जिला

नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला है जिसका मुख्यालय बिहार शरीफ है।। नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिये विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ विश्व के सबसे पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौज़ूद है, जहाँ सुदूर देशों से छात्र अध्ययन के लिये भारत आते थे। बुद्ध और महावीर कइ बार नालन्दा मे ठहरे थे। माना जाता है कि महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति पावापुरी मे की थी, जो नालन्दा मे स्थित है। बुद्ध के प्रमुख छात्रों मे से एक, शारिपुत्र, का जन्म नालन्दा मे हुआ था। नालंदा पूर्व में अस्थामा तक पश्चिम में तेल्हारा तक दछिन में गिरियक तक उतर में हरनौत तक फैला है.

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निर्वाण

निर्वाण का शाब्दिक अर्थ है - 'बुझा हुआ' (दीपक अग्नि, आदि)। किन्तु बौद्ध, जैन धर्म और वैदिक धर्म में इसके विशेष अर्थ हैं। श्रमण विचारधारा में (निर्वाण;निब्बान) पीड़ा या दु:ख से मुक्ति पाने की स्थिति है। पाली में "निब्बाण" का अर्थ है "मुक्ति पाना"- यानी, लालच, घृणा और भ्रम की अग्नि से मुक्ति। यह बौद्ध धर्म का परम सत्य है और जैन धर्म का मुख्य सिद्धांत। यद्यपि 'मुक्ति' के अर्थ में निर्वाण शब्द का प्रयोग गीता, भागवत, रघुवंश, शारीरक भाष्य इत्यादि नए-पुराने ग्रंथों में मिलता है, तथापि यह शब्द बौद्धों का पारिभाषिक है। सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग, मीमांसा (पूर्व) और वेदांत में क्रमशः मोक्ष, अपवर्ग, निःश्रेयस, मुक्ति या स्वर्गप्राप्ति तथा कैवल्य शब्दों का व्यवहार हुआ है पर बौद्ध दर्शन में बराबर निर्वाण शब्द ही आया है और उसकी विशेष रूप से व्याख्या की गई है। बौद्ध धर्म की दो प्रधान शाखाएँ हैं—हीनयान (या उत्त- रीय) और महायान (या दक्षिणी)। इनमें से हीनयान शाखा के सब ग्रंथ पाली भाषा में हैं और बौद्ध धर्म के मूल रूप का प्रतिपादन करते हैं। महायान शाखा कुछ पीछे की है और उसके सब ग्रंथ सस्कृत में लिखे गए हैं। महायान शाखा में ही अनेक आचार्यों द्वारा बौद्ध सिद्धांतों का निरूपण गूढ़ तर्कप्रणाली द्वारा दार्शनिक दृष्टि से हुआ है। प्राचीन काल में वैदिक आचार्यों का जिन बौद्ध आचार्यों से शास्त्रार्थ होता था वे प्रायः महायान शाखा के थे। अतः निर्वाण शब्द से क्या अभिप्राय है इसका निर्णय उन्हीं के वचनों द्वारा हो सकता है। बोधिसत्व नागार्जुन ने माध्यमिक सूत्र में लिखा है कि 'भवसंतति का उच्छेद ही निर्वाण है', अर्थात् अपने संस्कारों द्वारा हम बार बार जन्म के बंधन में पड़ते हैं इससे उनके उच्छेद द्वारा भवबंधन का नाश हो सकता है। रत्नकूटसूत्र में बुद्ध का यह वचन हैः राग, द्वेष और मोह के क्षय से निर्वाण होता है। बज्रच्छेदिका में बुद्ध ने कहा है कि निर्वाण अनुपधि है, उसमें कोई संस्कार नहीं रह जाता। माध्यमिक सूत्रकार चंद्रकीर्ति ने निर्वाण के संबंध में कहा है कि सर्वप्रपंचनिवर्तक शून्यता को ही निर्वाण कहते हैं। यह शून्यता या निर्वाण क्या है ! न इसे भाव कह सकते हैं, न अभाव। क्योंकि भाव और अभाव दोनों के ज्ञान के क्षप का ही नाम तो निर्वाण है, जो अस्ति और नास्ति दोनों भावों के परे और अनिर्वचनीय है। माधवाचार्य ने भी अपने सर्वदर्शनसंग्रह में शून्यता का यही अभिप्राय बतलाया है—'अस्ति, नास्ति, उभय और अनुभय इस चतुष्कोटि से विनिमुँक्ति ही शून्यत्व है'। माध्यमिक सूत्र में नागार्जुन ने कहा है कि अस्तित्व (है) और नास्तित्व (नहिं है) का अनुभव अल्पबुद्धि ही करते हैं। बुद्धिमान लोग इन दोनों का अपशमरूप कल्याण प्राप्त करते हैं। उपयुक्त वाक्यों से स्पष्ट है कि निर्वाण शब्द जिस शून्यता का बोधक है उससे चित्त का ग्राह्यग्राहकसंबंध ही नहीं है। मै भी मिथ्या, संसार भी मिथ्या। एक बात ध्यान देने की है कि बौद्ध दार्शनिक जीव या आत्मा की भी प्रकृत सत्ता नहीं मानते। वे एक महाशून्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं मानते। .

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नवादा

नवादा दक्षिण बिहार का एक खूबसूरत एवं ऐतिहासिक जिला है। इसका मुख्यालय पटना के दक्षिण-पूर्व में 93 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नवादा शहर में है। प्रकृति की गोद में बसा नवादा जिला को कई प्रमुख पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। ककोलत जलप्रपात, प्रजातंत्र द्वार, नारद संग्रहालय, सेखोदेवरा और गुनियाजी तीर्थ आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। नवादा के उत्तर में नालंदा, दक्षिण में झारखंड का कोडरमा जिला, पूर्व में शेखपुरा एवं जमुई तथा पश्चिम में गया जिला है। मगही यहाँ की बोली और हिन्दी तथा उर्दू मुख्य भाषाएँ हैं। .

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पट्टावली

Digambara'' परंपरा एक पट्टावली (संस्कृत से पत्ता: सीट, avali: श्रृंखला) का एक रिकार्ड है एक आध्यात्मिक वंश के प्रमुखों के मठवासी आदेश.

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पद्मप्रभ

पद्मप्रभ जी वर्तमान अवसर्पिणी काल के छठे तीर्थंकर है। कालचक्र के दो भाग है - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी। एक कालचक्र के दोनों भागों में २४-२४ तीर्थंकरों का जन्म होता है। वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के ऋषभदेव प्रथम और भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर थे। .

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पर्यूषण पर्व

जैन धर्मावलंबी भाद्रपद मास में पर्यूषण पर्व मनाते हैं। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्यूषण 8 दिन चलते हैं। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं। उन्हें वे 'दसलक्षण' के नाम से भी संबोधित करते हैं। .

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पार्श्वनाथ

भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेइसवें (23वें) तीर्थंकर हैं। जैन ग्रंथों के अनुसार वर्तमान में काल चक्र का अवरोही भाग, अवसर्पिणी गतिशील है और इसके चौथे युग में २४ तीर्थंकरों का जन्म हुआ था। .

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पावापुरी

पावापुरी में स्थित "जल मंदिर" राजगीर और बोधगया के समीप पावापुरी भारत के बिहार प्रान्त के नालंदा जिले मे स्थित एक शहर है। यह जैन धर्म के मतावलंबियो के लिये एक अत्यंत पवित्र शहर है क्यूंकि माना जाता है कि भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। यहाँ के जलमंदिर की शोभा देखते ही बनती है। संपूर्ण शहर कैमूर की पहाड़ी पर बसा हुआ है। .

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प्रमुख जैन तीर्थ

भारत पर्यंत जैन धर्म के अनेकों तीर्थ क्षेत्र हैं। यहाँ प्रमुख तीर्थ क्षेत्रों की जानकारी दी गयी है। यह जानकारी प्रमुख तीर्थ क्षेत्रों वाले राज्यों के अनुसार दी गई है। भारत के प्रमुख जैन तीर्थ क्षेत्र इस प्रकार हैं - श्री सियावास तीर्थ क्षेत्र बेगमगंज मध्य प्रदेश .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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प्राकृत साहित्य

मध्ययुगीन प्राकृतों का गद्य-पद्यात्मक साहित्य विशाल मात्रा में उपलब्ध है। सबसे प्राचीन वह अर्धमागधी साहित्य है जिसमें जैन धार्मिक ग्रंथ रचे गए हैं तथा जिन्हें समष्टि रूप से जैनागम या जैनश्रुतांग कहा जाता है। इस साहित्य की प्राचीन परंपरा यह है कि अंतिम जैन तीर्थंकर महावीर का विदेह प्रदेश में जन्म लगभग 600 ई. पूर्व हुआ। उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा ले ली और 12 वर्ष तप और ध्यान करके कैवल्यज्ञान प्राप्त किया। तत्पश्चात् उन्होने अपना धर्मोपदेश सर्वप्रथम राजगृह में और फिर अन्य नाना स्थानों में देकर जैन धर्म का प्रचार किया। उनके उपदेशों को उनके जीवनकाल में ही उनके शिष्यों ने 12 अंगों में संकलित किया। उनके नाम हैं- इन अंगों की भाषा वही अर्धमागधी प्राकृत है जिसमें महावीर ने अपने उपदेश दिए। संभवत: यह आगम उस समय लिपिबद्ध नहीं किया गया एवं गुरु-शिष्य परंपरा से मौखिक रूप में प्रचलित रहा और यही उसके श्रुतांग कहलाने की सार्थकता है। महावीर का निर्वाण 72 वर्ष की अवस्था में ई. पू.

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फाजिल नगर

फाजिलनगर उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले का छोटा सा कस्बा है। यह कुशीनगर से २० किमी पूरब में राष्ट्रीय राजमार्ग २८ पर स्थित है। गोरखपुर से इसकी दूरी ७१ किमी (पूर्व दिशा में) है। फाजिल नगर को 'पावापुरी' भी कहा जाता है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जैन धर्म की वास्तविक 'पावापुरी' यही है (न कि बिहार में स्थित पावापुरी) जहाँ महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। इसिलिए जैन श्रद्धालुओं ने यहाँ पर एक जैन मन्दिर का निर्माण कराया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि कुशीनगर से वैशाली जाते समय महात्मा बुद्ध यहाँ रुके थे और अपने एक शिष्य के घर भोजन किया था। पालि त्रिपिटक के अनुसार मल्ल राजाओं की दूसरी राजधानी थी। यहाँ के मन्दिर में अतिसुन्दर 'मनस्तम्भ' और चार सुन्दर मूर्तियाँ हैं। यहाँ दीपावली के अगले दिन एक मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा को 'निर्वाण महोत्सव' की छटा देखने बहुत से तीर्थयात्री आते हैं। यहाँ भगवान महावीर पी.जी. कॉलेज एवं अन्य विद्यालय हैं। श्रेणी:जैन तीर्थ श्रेणी:ऐतिहासिक स्थान श्रेणी:कुशीनगर श्रेणी:उत्तर प्रदेश के नगर.

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बराबर गुफाएँ

बराबर गुफाएं भारत में चट्टानों को काटकर बनायी गयी सबसे पुरानी गुफाएं हैं जिनमें से ज्यादातर का संबंध मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) से है और कुछ में अशोक के शिलालेखों को देखा जा सकता है; ये गुफाएं भारत के बिहार राज्य के जहानाबाद जिले में गया से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफाएं बराबर (चार गुफाएं) और नागार्जुनी (तीन गुफाएं) की जुड़वां पहाड़ियों में स्थित हैं - 1.6 किमी दूर स्थित नागार्जुनी पहाड़ी की गुफाओं को कभी-कभी नागार्जुनी गुफाएं मान लिया जाता है। चट्टानों को काटकर बनाए गए ये कक्ष अशोक (आर. 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व) और उनके पुत्र दशरथ के मौर्य काल ब्रिटिश लाइब्रेरी.

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बर्धमान जिला

वर्धमान भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल का एक जिला है। इसका मुख्यालय दामोदर नदी के किनारे २३ डिग्री २५' उत्तरी अक्षांश तथा ८७ डिग्री ८५' पूर्वी देशान्तर पर स्थित वर्धमान शहर में हैं। प्रदेश की राजधानी कोलकाता से १०० किलोमीटर दूर स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। इसका नामकरण २४वें जैन तीर्थंकर महावीर के नाम पर हुआ है। मुगल काल में इसका नाम शरिफाबाद हुआ करता था। मुगल बादशाह जहांगीर के फरमान पर १७वीं शताब्दी में एक व्यापारी कृष्णराम राय ने वर्धमान में अपनी जमींदारी शूरू की। कृष्णराम राय के वंशजों ने १९५५ तक वर्धमान पर शासन किया। वर्धमान जिले में मिले पाषाण काल के अवशेष तथा सिंहभूमि, पुरूलिया, धनबाद और बांकुड़ा जिले के अवशेषों में समानताएँ हैं। इससे पता चलता है कि यह सम्पूर्ण क्षेत्र एक ही प्रकार की सभ्यता और संस्कृति का पोषक था। वर्धमान नाम अपने आप में ही जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर वर्धमान से जुड़ा हुआ है। पार्श्वनाथ की पहाड़िया जैनों का एक महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र था। यह भी वर्धमान जिले के सीमा से लगा हुआ है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि महावीर अपने धर्म के प्रचार एवं प्रसार के सिलसिले में वर्धमान आए थे। जिले में विभिन्न तीर्थंकरो की पत्थर की बनी प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं। गुप्त काल एवं सेन युग में वर्धमान का एक महत्वपूर्ण स्थान था। सल्तनत काल एवं मुगलकालों में वर्धमान एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केन्द्र था। जहांगीर की पत्नी नूरजहां वर्धमान की ही थी। नूरजहाँ का पहला पति शेर अफगान वर्धमान का जागीरदार था। जहांगीर ने नूरजहाँ को हासिल करने के लिए कुतुबुद्दीन को वर्धमान का सूबेदार नियुक्त किया। कुतुबुद्दीन और शेर अफगान के बीच वर्तमान वर्धमान रेलने स्टेशन के निकट भयंकर संग्राम हुआ। अंततः दोनो ही मारे गए। आज भी इनकी समाधियो को एक दूसरे के पास वर्धमान में देखा जा सकता है। अकबर के समय में अबुल फजल और फैजी के षडयंत्रों का शिकार होने से बचने के लिए पीर बहराम ने दिल्ली छोड़ दिया। पीर बहराम को इसी वर्धमान शहर ने आश्रय दिया। आज भी यहाँ के हिन्दू और मुस्लिम उन्हें श्रद्धा-पूर्वक स्मरण करते हैं। वर्धमान में एक बहुत बड़ा आम का बगीचा है। यह बगीचा सैकड़ों हिन्दू औरतों के अपने पति के साथ उनकी चिता पर सती होने का गवाह है। मुगलों ने इस्ट इंडिया कम्पनी को तीन ग्राम- सुतानती, गोविन्दपुर तथा कलिकाता एक संधि के जरिए हस्तांतरित कर दिए थे। इस संधि पर हस्ताक्षर वर्धमान में ही हुआ था। कालांतर में यही तीनो ग्राम विकसीत होकर कोलकाता के रूप में जाने गए। .

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची

बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची .

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बिहार के व्यक्तियों की सूची

यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी बिहार के प्रमुख व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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ब्रह्मचर्य

ब्रह्मचर्य योग के आधारभूत स्तंभों में से एक है। ये वैदिक वर्णाश्रम का पहला आश्रम भी है, जिसके अनुसार ये ०-२५ वर्ष तक की आयु का होता है और जिस आश्रम का पालन करते हुए विद्यार्थियों को भावी जीवन के लिये शिक्षा ग्रहण करनी होती है। .

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ब्रज संस्कृति

ब्रज संस्कृति का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई यमुना की लहरों की आवाज़… श्री कृष्ण के साथ-साथ खेलकर यमुना ने महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना। यमुना की ये लहरें रसखान और रहीम के दोहों पर झूमी हैं… सूरदास और मीरा के पदों पर नाची हैं।यमुना ने ही जन्म दिया ब्रज-संस्कृति को… ब्रज की संस्कृति के साथ ही 'ब्रज' शब्द का चलन भक्ति आन्दोलन के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया। सूर, मीरा और रसख़ान के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं। कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरा से राजसी रहन-सहन छुड़वा दिया और सूरदास की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूरदास वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। कहते हैं कि आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं खोजे जाते लेकिन आस्था जन्म देती है संस्कृति को और गंगा और यमुना ने भी हमें सभ्यता और संस्कृति दी हैं। यमुना की देन है महाभारत कालीन सभ्यता और ब्रज का ‘प्राचीनतम प्रजातंत्र’ जिसके लिए बुद्ध ने मथुरा प्रवास के समय अपने प्रिय शिष्य (उनके भाई और वैद्य भी) ‘आनन्द’ से कहा था कि 'यह (मथुरा) आदि राज्य है, जिसने अपने लिये महासम्मत (राजा) चुना था।यमुना की देन यह संस्कृति अब ‘ब्रज संस्कृति’ कहलाती है। इस प्रकार ब्रज की संस्कृति यद्यपि एक क्षेत्रीय संस्कृति रही है, परंतु यदि इतिहास के आधार पर हम इसके विकास की चर्चा करें तो हमें ज्ञात होगा कि यह संस्कृति प्रारंभ से ही संघर्षशील, समन्वयकारी और अपनी विशिष्ट परंपराओं के कारण देश की मार्गदर्शिका, क्षेत्रीय होते हुए भी सार्वभौमिक तथा गतिशील व अपराजेय, साथ ही बड़ी उदात्त भी रही है। यह पूरे देश के आकर्षण का केंद्र रही है तथा इसी कारण इसे प्रदेश को सदा श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता रहा है। वैदिक काल से ही यह क्षेत्र तपोवन संस्कृति का केंद्र रहा। .

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भद्रबाहु

भद्रबाहु सुप्रसिद्ध जैन आचार्य थे जो दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा अंतिम श्रुतकेवली माने जाते हैं। भद्रबाहु चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु थे। भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग १५० वर्ष पश्चात् (ईसवी सन् के पूर्व लगभग ३६७) उनका जन्म हुआ था। इस युग में ५ श्रुतकेवली हुए, जिनके नाम है: गोवर्धन महामुनि, विष्णु, नंदिमित्र, अपराजित, भद्रबाहु। .

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भारत में धर्म

तवांग में गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा. बैंगलोर में शिव की एक प्रतिमा. कर्नाटक में जैन ईश्वरदूत (या जिन) बाहुबली की एक प्रतिमा. 2 में स्थित, भारत, दिल्ली में एक लोकप्रिय पूजा के बहाई हॉउस. भारत एक ऐसा देश है जहां धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म का यहां की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है - हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिक्ख धर्म.

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भारत का संक्षिप्त इतिहास (स्वतंत्रता-पूर्व)

कोई विवरण नहीं।

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भारत का आर्थिक इतिहास

इस्वी सन ०००१ से २००३ ई तक विश्व के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का अंश; ध्यातव्य है कि १८वीं शताब्दी के पहले तक भारत और चीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ थीं भारत का आर्थिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से आरम्भ माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित प्रतीत होती है जो यातायात में प्रगति के आधार पर समझी जा सकती है। लगभग 600 ई॰पू॰ महाजनपदों में विशेष रूप से चिह्नित सिक्कों को ढ़ालना आरम्भ कर दिया था। इस समय को गहन व्यापारिक गतिविधि एवं नगरीय विकास के रूप में चिह्नित किया जाता है। 300 ई॰पू॰ से मौर्य काल ने भारतीय उपमहाद्वीप का एकीकरण किया। राजनीतिक एकीकरण और सैन्य सुरक्षा ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ, व्यापार एवं वाणिज्य से सामान्य आर्थिक प्रणाली को बढ़ाव मिल। अगले 1500 वर्षों में भारत में राष्ट्रकुट, होयसला और पश्चिमी गंगा जैसे प्रतिष्ठित सभ्यताओं का विकास हुआ। इस अवधि के दौरान भारत को प्राचीन एवं 17वीं सदी तक के मध्ययुगीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आंकलित किया जाता है। इसमें विश्व के की कुल सम्पति का एक तिहाई से एक चौथाई भाग मराठा साम्राज्य के पास था, इसमें यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान तेजी से गिरावट आयी। आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव (विश्व अर्थव्यवस्था: एक हज़ार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था था। भारत में इसके स्वतंत्र इतिहास में केंद्रीय नियोजन का अनुसरण किया गया है जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व, विनियमन, लाल फीताशाही और व्यापार अवरोध विस्तृत रूप से शामिल है। 1991 के आर्थिक संकट के बाद केन्द्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति आरम्भ कर दी। भारत आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देन लग गया और विश्व की तेजी से बढ़ती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा। .

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भारत के अभयारण्य

भारत में 500 से अधिक प्राणी अभयारण्य हैं, जिन्हें वन्य जीवन अभयारण्य (IUCN श्रेणी IV सुरक्षित क्षेत्र) कहा जाता है। इनमें से 28 बाघ अभयारण्य बाघ परियोजना द्वारा संचालित हैं, जो बाघ-संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ वन्य अभयारण्यों को पक्षी-अभयारण्य कहा जाता रहा है, (जैसे केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान) जब तक कि उन्हें राष्ट्रीय उद्यान का दर्ज़ा नहीं मिल गया। कई राष्ट्रीय उद्यान पहले वन्य जीवन अभयारण्य ही थे। कुछ वन्य जीवन अभयारण्य संरक्षण हेतु राष्ट्रीय महत्व रखते हैं, अपनी कुछ मुख्य प्राणी प्रजातियों के कारण। अतः उन्हें राष्ट्रीय वन्य जीवन अभयारण्य कहा जाता है, जैसे.

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भारतीय दर्शन

भारत में 'दर्शन' उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का साक्षात्कार हो सके। 'तत्व दर्शन' या 'दर्शन' का अर्थ है तत्व का साक्षात्कार। मानव के दुखों की निवृति के लिए और/या तत्व साक्षात्कार कराने के लिए ही भारत में दर्शन का जन्म हुआ है। हृदय की गाँठ तभी खुलती है और शोक तथा संशय तभी दूर होते हैं जब एक सत्य का दर्शन होता है। मनु का कथन है कि सम्यक दर्शन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में नहीं डाल सकता तथा जिनको सम्यक दृष्टि नहीं है वे ही संसार के महामोह और जाल में फंस जाते हैं। भारतीय ऋषिओं ने जगत के रहस्य को अनेक कोणों से समझने की कोशिश की है। भारतीय दार्शनिकों के बारे में टी एस एलियट ने कहा था- भारतीय दर्शन किस प्रकार और किन परिस्थितियों में अस्तित्व में आया, कुछ भी प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना स्पष्ट है कि उपनिषद काल में दर्शन एक पृथक शास्त्र के रूप में विकसित होने लगा था। तत्त्वों के अन्वेषण की प्रवृत्ति भारतवर्ष में उस सुदूर काल से है, जिसे हम 'वैदिक युग' के नाम से पुकारते हैं। ऋग्वेद के अत्यन्त प्राचीन युग से ही भारतीय विचारों में द्विविध प्रवृत्ति और द्विविध लक्ष्य के दर्शन हमें होते हैं। प्रथम प्रवृत्ति प्रतिभा या प्रज्ञामूलक है तथा द्वितीय प्रवृत्ति तर्कमूलक है। प्रज्ञा के बल से ही पहली प्रवृत्ति तत्त्वों के विवेचन में कृतकार्य होती है और दूसरी प्रवृत्ति तर्क के सहारे तत्त्वों के समीक्षण में समर्थ होती है। अंग्रेजी शब्दों में पहली की हम ‘इन्ट्यूशनिस्टिक’ कह सकते हैं और दूसरी को रैशनलिस्टिक। लक्ष्य भी आरम्भ से ही दो प्रकार के थे-धन का उपार्जन तथा ब्रह्म का साक्षात्कार। प्रज्ञामूलक और तर्क-मूलक प्रवृत्तियों के परस्पर सम्मिलन से आत्मा के औपनिषदिष्ठ तत्त्वज्ञान का स्फुट आविर्भाव हुआ। उपनिषदों के ज्ञान का पर्यवसान आत्मा और परमात्मा के एकीकरण को सिद्ध करने वाले प्रतिभामूलक वेदान्त में हुआ। भारतीय मनीषियों के उर्वर मस्तिष्क से जिस कर्म, ज्ञान और भक्तिमय त्रिपथगा का प्रवाह उद्भूत हुआ, उसने दूर-दूर के मानवों के आध्यात्मिक कल्मष को धोकर उन्हेंने पवित्र, नित्य-शुद्ध-बुद्ध और सदा स्वच्छ बनाकर मानवता के विकास में योगदान दिया है। इसी पतितपावनी धारा को लोग दर्शन के नाम से पुकारते हैं। अन्वेषकों का विचार है कि इस शब्द का वर्तमान अर्थ में सबसे पहला प्रयोग वैशेषिक दर्शन में हुआ। .

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भारतीय व्यक्तित्व

यहाँ पर भारत के विभिन्न भागों एवं विभिन्न कालों में हुए प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची दी गयी है। .

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भारतीय गणित

गणितीय गवेषणा का महत्वपूर्ण भाग भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ है। संख्या, शून्य, स्थानीय मान, अंकगणित, ज्यामिति, बीजगणित, कैलकुलस आदि का प्रारम्भिक कार्य भारत में सम्पन्न हुआ। गणित-विज्ञान न केवल औद्योगिक क्रांति का बल्कि परवर्ती काल में हुई वैज्ञानिक उन्नति का भी केंद्र बिन्दु रहा है। बिना गणित के विज्ञान की कोई भी शाखा पूर्ण नहीं हो सकती। भारत ने औद्योगिक क्रांति के लिए न केवल आर्थिक पूँजी प्रदान की वरन् विज्ञान की नींव के जीवंत तत्व भी प्रदान किये जिसके बिना मानवता विज्ञान और उच्च तकनीकी के इस आधुनिक दौर में प्रवेश नहीं कर पाती। विदेशी विद्वानों ने भी गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान की मुक्तकंठ से सराहना की है। .

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भारतीय इतिहास तिथिक्रम

भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.

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भारतीयकरण

भारतीयकरण' का अर्थ है- जीवन के विविध क्षेत्रों में भारतीयता का पुनःप्रतिष्ठा। ‘भारतीयता’ शब्द ‘भारतीय’ विशेषण में ‘ता’ प्रत्यय लगाकर बनाया गया है जो संज्ञा (भाववाचक संज्ञा) रूप में परिणत हो जाता है। भारतीय का अर्थ है - भारत से संबंधित। भारतीयता से तात्पर्य उस विचार या भाव से है जिसमें भारत से जुड़ने का बोध होता हो या भारतीय तत्वों की झलक हो या जो भारतीय संस्कृति से संबंधित हो। भारतीयता का प्रयोग राष्ट्रीयता को व्यक्त करने के लिए भी होता है। भारतीयता के अनिवार्य तत्व हैं - भारतीय भूमि, जन, संप्रभुता, भाषा एवं संस्कृति। इसके अतिरिक्त अंतःकरण की शुचिता (आंतरिक व बाह्य शुचिता) तथा सतत सात्विकता पूर्ण आनन्दमयता भी भारतीयता के अनिवार्य तत्व हैं। भारतीय जीवन मूल्यों से निष्ठापूर्वक जीना तथा उनकी सतत रक्षा ही सच्ची भारतीयता की कसौटी है। संयम, अनाक्रमण, सहिष्णुता, त्याग, औदार्य (उदारता), रचनात्मकता, सह-अस्तित्व, बंधुत्व आदि प्रमुख भारतीय जीवन मूल्य हैं। .

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भगवान

भगवान गुण वाचक शब्द है जिसका अर्थ गुणवान होता है। यह "भग" धातु से बना है,भग के ६ अर्थ है:- १-ऐश्वर्य २-वीर्य ३-स्मृति ४-यश ५-ज्ञान और ६-सौम्यता जिसके पास ये ६ गुण है वह भगवान है। पाली भाषा में भगवान "भंज" धातु से बना है जिसका अर्थ हैं:- तोड़ना। जो राग,द्वेष,और मोह के बंधनों को तोड़ चुका हो अथवा भाव में पुनः आने की आशा को भंग कर चुका हो भावनाओ से परे जहाँ सारे विचार शून्य हो जाये और वहीँ से उनकी यात्रा शुरु हो उसे भगवान कहा जाता है। .

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भीनमाल

भीनमाल (English:Bhinmal) राजस्थान राज्य के जालौर जिलान्तर्गत भारत का एक ऐतिहसिक शहर है। यहाँ से आशापुरी माताजी तीर्थ स्थल मोदरान स्टेशन भीनमाल के पास स्थित है जिसकी यहां से दूरी 28 किलोमीटर है। शहर प्राचीनकाल में 'श्रीमाल' नगर के नाम से जाना जाता था। "श्रीमाल पुराण" व हिंदू मान्यताओ के अनुसार विष्णु भार्या महालक्ष्मी द्वारा इस नगर को बसाया गया था। इस प्रचलित जनश्रुति के कारण इसे 'श्री' का नगर अर्थात 'श्रीमाल' नगर कहा गया। प्राचीनकाल में गुजरात राज्य की राजधानी रहा भीनमाल संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान महाकवि माघ एवँ खगोलविज्ञानी व गणीतज्ञ ब्रह्मगुप्त की जन्मभूमि है। यह शहर जैन धर्म का विख्यात तीर्थ है। .

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मथुरा की मूर्तिकला

यक्षिणी- मथुरा चित्रकलामथुरा में लगभग तीसरी शती ई०पू० से बारहवीं शती ई० तक अर्थात डेढ़ हजार वर्षों तक शिल्पियों ने मथुरा कला की साधना की जिसके कारण भारतीय मूर्ति शिल्प के इतिहास में मथुरा का स्थान महत्त्वपूर्ण है। कुषाण काल से मथुरा विद्यालय कला क्षेत्र के उच्चतम शिखर पर था। सबसे विशिष्ट कार्य जो इस काल के दौरान किया गया वह बुद्ध का सुनिचित मानक प्रतीक था। मथुरा के कलाकार गंधार कला में निर्मित बुद्ध के चित्रों से प्रभावित थे। जैन तीर्थंकरों और हिन्दू चित्रों का अभिलेख भी मथुरा में पाया जाता है। उनके प्रभावाशाली नमूने आज भी मथुरा, लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद में उपस्थित हैं। इतिहास पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि मधु नामक दैत्य ने जब मथुरा का निर्माण किया तो निश्चय ही यह नगरी बहुत सुन्दर और भव्य रही होगी। शत्रुघ्न के आक्रमण के समय इसका विध्वंस भी बहुत हुआ और वाल्मीकि रामायण तथा रघुवंश, दोनों के प्रसंगों से इसकी पुष्टि होती है कि उसने नगर का नवीनीकरण किया। लगभग पहली सहस्राब्दी से पाँचवीं शती ई० पूर्व के बीच के मृत्पात्रों पर काली रेखाएँ बनी मिलती हैं जो ब्रज संस्कृति की प्रागैतिहासिक कलाप्रियता का आभास देती है। उसके बाद मृण्मूर्तियाँ हैं जिनका आकार तो साधारण लोक शैली का है परन्तु स्वतंत्र रूप से चिपका कर लगाये आभूषण सुरुचि के परिचायक हैं। मौर्यकालीन मृण्मूर्तियों का केशपाश अलंकृत और सुव्यवस्थित है। सलेटी रंग की मातृदेवियों की मिट्टी की प्राचीन मूर्तियों के लिए मथुरा की पुरातात्विक प्रसिद्ध है। लगभग तीसरी शती के अन्त तक यक्ष और यक्षियों की प्रस्तर मूर्तियाँ उपलब्ध होने लगती हैं। मथुरा में लाल रंग के पत्थरों से बुद्ध और बोद्धिसत्व की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं। महावीर की मूर्तियाँ भी बनीं। मथुरा कला में अनेक बेदिकास्तम्भ भी बनाये गये। यक्ष यक्षिणियों और धन के देवता कुबेर की मूर्तियाँ भी मथुरा से मिली हैं। इसका उदाहरण मथुरा से कनिष्क की बिना सिर की एक खड़ी प्रतिमा है। मथुरा शैली की सबसे सुन्दर मूर्तियाँ पक्षियों की हैं जो एक स्तूप की वेष्टणी पर खुदी खुई थी। इन मूर्तियों की कामुकतापूर्ण भावभंगिमा सिन्धु में उपलब्ध नर्तकी की प्रतिमा से बहुत कुछ मिलती जुलती है। .

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महावीर (बहुविकल्पी)

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महावीर जयन्ती

महावीर जयंती (महावीर स्वामी जन्म कल्याणक) चैत्र शुक्ल १३ को मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के उपलक्ष में मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। .

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मागधी

मागधी उस प्राकृत का नाम है जो प्राचीन काल में मगध (दक्षिण बिहार) प्रदेश में प्रचलित थी। इस भाषा के उल्लेख महावीर और बुद्ध के काल से मिलते हैं। जैन आगमों के अनुसार तीर्थकर महावीर का उपदेश इसी भाषा अथवा उसी के रूपांतर अर्धमागधी प्राकृत में होता था। पालि त्रिपिटक में भी भगवान्‌ बुद्ध के उपदेशों की भाषा को मागधी कहा गया है। .

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माउंट आबू

समुद्र तल से १२२० मीटर की ऊंचाई पर स्थित आबू पर्वत (माउण्ट आबू) राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी नगर है। यह अरावली पर्वत का सर्वोच्च शिखर, जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थान तथा राज्य का ग्रीष्मकालीन शैलावास है। अरावली श्रेणियों के अत्यंत दक्षिण-पश्चिम छोर पर ग्रेनाइट शिलाओं के एकल पिंड के रूप में स्थित आबू पर्वत पश्चिमी बनास नदी की लगभग १० किमी संकरी घाटी द्वारा अन्य श्रेणियों से पृथक् हो जाता है। पर्वत के ऊपर तथा पार्श्व में अवस्थित ऐतिहासिक स्मारकों, धार्मिक तीर्थमंदिरों एवं कलाभवनों में शिल्प-चित्र-स्थापत्य कलाओं की स्थायी निधियाँ हैं। यहाँ की गुफा में एक पदचिहृ अंकित है जिसे लोग भृगु का पदचिह् मानते हैं। पर्वत के मध्य में संगमरमर के दो विशाल जैनमंदिर हैं। राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित अरावली की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू की भौगोलिक स्थित और वातावरण राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न व मनोरम है। यह स्थान राज्य के अन्य हिस्सों की तरह गर्म नहीं है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां का ऐतिहासिक मंदिर और प्राकृतिक खूबसूरती सैलानियों को अपनी ओर खींचती है। माउंट आबू पहले चौहान साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में सिरोही के महाराजा ने माउंट आबू को राजपूताना मुख्यालय के लिए अंग्रेजों को पट्टे पर दे दिया। ब्रिटिश शासन के दौरान माउंट आबू मैदानी इलाकों की गर्मियों से बचने के लिए अंग्रेजों का पसंदीदा स्थान था। .

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मगही साहित्य

मगही साहित्य से तात्पर्य उस लिखित साहित्य से है जो पाली मागधी, प्राकृत मागधी, अपभ्रंश मागधी अथवा आधुनिक मगही भाषा में लिखी गयी है। ‘सा मागधी मूलभाषा’ से यह बोध होता है कि आजीवक तीर्थंकर मक्खलि गोसाल, जिन महावीर और गौतम बुद्ध के समय मागधी ही मूल भाषा थी जिसका प्रचलन जन सामान्य अपने दैनंदिन जीवन में करते थे। मौर्यकाल में यह राज-काज की भाषा बनी क्योंकि अशोक के शिलालेखों पर उत्कीर्ण भाषा यही है। जैन, बौद्ध और सिद्धों के समस्त प्राचीन ग्रंथ, साहित्य एवं उपदेश मगही में ही लिपिबद्ध हुए हैं। भाषाविद् मानते हैं कि मागधी (मगही) से ही सभी आर्य भाषाओं का विकास हुआ है। .

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मक्खलि गोशाल

मक्खलि गोसाल या मक्खलि गोशाल (560-484 ईसा पूर्व) 6ठी सदी के एक प्रमुख आजीवक दार्शनिक हैं। इन्हें नास्तिक परंपरा के सबसे लोकप्रिय ‘आजीवक संप्रदाय’ का संस्थापक, 24वां तीर्थंकर और ‘नियतिवाद’ का प्रवर्तक दार्शनिक माना जाता है। जैन और बौद्ध ग्रंथों में इनका वर्णन ‘मक्खलिपुत्त गोशाल’, ‘गोशालक मंखलिपुत्त’ के रूप में आया है जबकि ‘महाभारत’ के शांति पर्व में इनको ‘मंकि’ ऋषि कहा गया है। ये महावीर (547-467 ईसा पूर्व) और बुद्ध (550-483 ईसा पूर्व) के समकालीन थे। इतिहासकारों का मानना है कि जैन, बौद्ध और चार्वाक-लोकायत की भौतिकवादी व नास्तिक दार्शनिक परंपराएं मक्खलि गोसाल के आजीवक दर्शन की ही छायाएं अथवा उसका विस्तार हैं। .

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मुजफ्फरपुर

मुज़फ्फरपुर उत्तरी बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय तथा मुज़फ्फरपुर ज़िले का प्रमुख शहर एवं मुख्यालय है। अपने सूती वस्त्र उद्योग, लोहे की चूड़ियों, शहद तथा आम और लीची जैसे फलों के उम्दा उत्पादन के लिये यह जिला पूरे विश्व में जाना जाता है, खासकर यहाँ की शाही लीची का कोई जोड़ नहीं है। यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी यहाँ से लीची भेजी जाती है। 2017 मे मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी के लिये चयनित हुआ है। अपने उर्वरक भूमि और स्वादिष्ट फलों के स्वाद के लिये मुजफ्फरपुर देश विदेश मे "स्वीटसिटी" के नाम से जाना जाता है। मुजफ्फरपुर थर्मल पावर प्लांट देशभर के सबसे महत्वपूर्ण बिजली उत्पादन केंद्रो मे से एक है। .

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मृगावती

मृगावती से निम्नलिखित का बोध होता है-.

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योग

पद्मासन मुद्रा में यौगिक ध्यानस्थ शिव-मूर्ति योग भारत और नेपाल में एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने (योग) का काम होता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा बौद्ध धर्म,जैन धर्म और हिंदू धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बंधित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत्‌ में लोग इससे परिचित हैं। इतनी प्रसिद्धि के बाद पहली बार ११ दिसंबर २०१४ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष २१ जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है। भगवद्गीता प्रतिष्ठित ग्रंथ माना जाता है। उसमें योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सविशेषण, जैसे बुद्धियोग, संन्यासयोग, कर्मयोग। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता है। पाशुपत योग और माहेश्वर योग जैसे शब्दों के भी प्रसंग मिलते है। इन सब स्थलों में योग शब्द के जो अर्थ हैं वह एक दूसरे के विरोधी हैं परंतु इस प्रकार के विभिन्न प्रयोगों को देखने से यह तो स्पष्ट हो जाता है, कि योग की परिभाषा करना कठिन कार्य है। परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो। .

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रत्नकरण्ड श्रावकाचार

रत्नकरण्ड श्रावकाचार एक प्रमुख जैन ग्रन्थ हैं जिसके रचियता आचार्य समन्तभद्र हैं। इस ग्रंथ में जैन श्रावक की चर्या का वर्णन है। आचार्य समन्तभद्र ने जैन श्रावक कैसा होना चाहीए इसके बारे में विस्तार से बताया है| .

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राजा सिद्धार्थ

राजा सिद्धार्थ, जैन धर्म के २४वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के पिता थे। वह इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय थे और वैशाली के कुण्डग्राम गणराज्य के राजा थे। .

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लिच्छवि

लिच्छवि नामक जाति ईसा पूर्व छठी सदी में बिहार प्रदेश के उत्तरी भाग यानी मुजफ्फरपुर जिले के वैशाली नगर में निवास करती थी। लिच्छ नामक महापुरुष के वंशज होने के करण इनका नाम लिच्छवि पड़ा अथवा किसी प्रकार के चिह्न (लिक्ष) धारण करने के कारण ये इस नाम से प्रसिद्ध हुए। लिच्छवि राजवंश इतिहासप्रसिद्ध है जिसका राज्य किसी समय में नेपाल, मगध और कौशल मे था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में क्षत्रियों की इस शाखा का नाम 'निच्छवि' या 'निच्छिवि' मिलता है। पाली रूप 'लिच्छवि' है। मनुस्मृति के अनुसार लिच्छवि लोग व्रात्य क्षत्रिय थे। उसमें इनकी गणना झल्ल, मल्ल, नट, करण, खश और द्रविड़ के साथ की गई है। ये 'लिच्छवि' लोग वैदिक धर्म के विरोधी थे। इनकी कई शाखाएँ दूर दूर तक फैली थीं। वैशालीवाली शाखा में जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए और कोशल की शाक्य शाखा में गौतम बुद्ध प्रादुर्भूत हुए। किसी समय मिथिला से लेकर मगध और कोशल तक इस वंश का राज्य था। जिस प्रकार हिंदुओं के संस्कृत ग्रंथों में यह वंश हीन कहा गया है, उसी प्रकार बौद्धों और जैनों के पालि और प्राकृत ग्रंथों मे यह वंश उच्च कहा गया है। गौतम बुद्ध के समसामयिक मगध के राजा बिंबसार ने वैशाली के लिच्छवि लोगों के यहाँ संबंध किया था। पीछे गुप्त सम्राट् ने भी लिच्छवि कन्या से विवाह किया था। .

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लोहरदग्गा

लोहरदग्गा भारत में झारखंड प्रान्त का एक जिला है। वनाच्छादित पहाड़ों, झरनों, ऐतिहासिक धरोहरों और प्रकृति के अनमोल उपहारों से सजा लोहरदग्‍गा झारखंड में स्थित है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पहले यह लोहा गलाने का बड़ा केन्द्र था। इसलिए इसका नाम लोहरदग्‍गा रखा गया था। इसके पीछे उनका तर्क है कि लोहरदग्‍गा दो शब्दों लोहार और दग्‍गा से मिलकर बना है। लोहार का अर्थ होता है लोहे का व्यापारी और दग्‍गा का अर्थ होता है केन्द्र। जैन पुराणों के अनुसार भगवान महावीर ने लोहरदग्‍गा की यात्रा की थी। जहां पर भगवान महावीर रूके थे उस स्थान को लोर-ए-यादगा के नाम से जाना जाता है। लोहरदग्‍गा का इतिहास काफी गौरवशाली है। इसके राजाओं ने यहां पर अनेक किलों और मन्दिरों का निर्माण कराया था। इनमें कोराम्बे, भान्द्रा और खुखरा-भाकसो के मन्दिर और किले प्रमुख हैं। .

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लीड्स

लीड्स इंग्लैंड के वेस्ट यॉर्कशायर का एक शहर और महानगरीय प्रशासनिक प्रभाग है। 2001 में लीड्स के मुख्य शहरी उपखंड की आबादी 443,247 थी जबकि पूरे शहर की जनसंख्या थी। लीड्स वेस्ट यॉर्कशायर शहरी क्षेत्र का सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यावसायिक केंद्र है जिसकी जनसंख्या 2001 की जनगणना में 1.5 मिलियन थी और लीड्स का शहरी क्षेत्र जिसके महत्वपूर्ण भाग में लीड्स का एक आर्थिक क्षेत्र शामिल है, इसकी जनसंख्या 2.9 मिलियन थी। लीड्स व्यवसाय, कानूनी एवं वित्तीय सेवाओं के लिए लंदन के बाहर ब्रिटेन का सबसे बड़ा केंद्र है। ऐतिहासिक रूप से लीड्स यॉर्कशायर की वेस्ट राइडिंग का एक भाग है जिसके इतिहास का विवरण पांचवीं सदी में दर्ज पाया जा सकता है जब एल्मेट का साम्राज्य "लोइडिस" के वनों से घिरा हुआ था, जिससे लीड्स नाम की उत्पत्ति हुई है। इस नाम का प्रयोग सदियों से कई प्रशासनिक संस्थाओं के लिए किया जा रहा है। इसका नाम 13वीं सदी में एक छोटे से जागीर संबंधी नगर से कई स्वरूपों में बदलते हुए वर्तमान महानगरीय प्रशासनिक प्रभाग से जुड़े नाम के रूप में रूपांतरित हुआ है। 17वीं और 18वीं सदियों में लीड्स ऊन के उत्पादन और व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। फिर औद्योगिक क्रांति के दौरान लीड्स एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ; ऊन अभी भी एक प्रमुख उद्योग था लेकिन पटसन, इंजीनियरिंग, लोहे की ढलाई, छपाई और अन्य उद्योग महत्वपूर्ण थे। 16वीं सदी में आयरे नदी की घाटी में एक संक्षिप्त बाजार शहर से लीड्स का विस्तार आसपास के गांवों को अपने अंदर समाहित करते हुए 20वीं सदी के मध्य तक एक घनी आबादी वाले शहरी केंद्र के रूप में हो गया। इस क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन, रेल और सड़क के संचार नेटवर्क लीड्स को केंद्रित कर बनाए गए हैं और अन्य देशों के नगरों एवं शहरों के साथ जोड़ने की कई व्यवस्थाएं की गयी हैं। लीड्स के शहरी क्षेत्र की भागीदारी में इसकी सौंपी गयी भूमिका क्षेत्रीय आर्थिक विकास के लिए शहर के महत्त्व को पहचान दिलाती है। .

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श्रुतकेवली

श्रुतकेवली, श्रुतज्ञान अर्थात् शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता होते हैं। श्रुतकेवली और केवली, ज्ञान की दृष्टि से दोनों समान हैं, लेकिन श्रुतज्ञान परोक्ष और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष होता है। केवलियों को जितना ज्ञान होता है उसके अतनवें भाग का वे प्ररूपण कर सकते हैं और जितना वे प्ररूपण करते हैं उसका अनंतवाँ भाग शास्त्रों में संकलित किया जाता है। इसलिए केवलज्ञान से श्रुतज्ञान अनंतवें भाग का भी अनंतवाँ भाग है। श्रुतकेवली १४ पूर्वों के पाठी होते हैं। महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जंबूस्वामी, ये तीन केवली हुए। जंबूस्वामी के बाद दिगंबर परंपरा के अनुसार विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबहु तथा श्वेतांबर परंपरा के अनुसार प्रभव, शय्यंभव, वशोभद्र, सभूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र नाम के छह श्रुतकेवली हुए। स्थूलभद्र को श्रुतकेवलियों में न गिनने से श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार पांच ही श्रुतकेवली माने गए हैं। .

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षट्खण्डागम

षट्खण्डागम (अर्थ .

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समन्तभद्र

आचार्य समन्तभद्र दूसरी सदी के एक प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। वह जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धांत, अनेकांतवाद के महान प्रचारक थे। उनका जन्म कांचीनगरी (शायद आज के कांजीवरम) में हुआ था। उनकी सबसे प्रख्यात रचना रत्नकरण्ड श्रावकाचार हैं। .

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सांयोगिकी का इतिहास

सांयोजिकी (combinatorics) पर सबसे पुराना चिन्तन भारतीय मनीषियों द्वारा किया गया। भगवती सूत्र नामक जैन ग्रंथ में सांयोजिकी पर एक प्रश्न है। इसके उपरान्त पिंगल ने छंदशास्त्र में सांयोजिकी का सुन्दर प्रयोग किया है। महान गणितज्ञ महावीर और ब्रह्मगुप्त ने भी इस विषय पर बहुत काम किया है। यूरोप में चौदहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में काम आरम्भ हुआ जिसमें फिबोनाकी (Leonardo Fibonacci) आदि ने अग्रणी भूमिका निभाई। .

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सिद्धार्थ

सिद्धार्थ शब्द कई व्यक्तीयों के लिए प्रयोग किया जाता है। .

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सिमंधर स्वामी

जैन मान्यता के अनुसार सीमंधर स्वामी एक तीर्थंकर और अरिहन्त हैं जो वर्तमान समय में किसी अन्य लोक में विद्यमान (जीवित) हैं। .

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संस्कृत ग्रन्थों की सूची

निम्नलिखित सूची अंग्रेजी (रोमन) से मशीनी लिप्यन्तरण द्वारा तैयार की गयी है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं। विद्वान कृपया इन्हें ठीक करने का कष्ट करे। .

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सुधर्मास्वामी

आचार्य सुधर्मास्वामी भगवान महावीर के पांचवे गणधर थे वर्तमान में सभी जैन आचार्य व साधू उनके नियमों का समान रूप से पालन करते हैं। इनका जन्म ६०७ ईसा पूर्व हुआ था तथा इन्हें ५१५ ईसा पूर्व में केवलज्ञान प्राप्त हुआ एवं ५०७ ईसा पूर्व में १०० वर्ष की आयु में इनका निर्वाण हुआ। जिन्होंने गौतम गणधर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। श्रेणी:गणधर श्रेणी:607 में जन्में लोग श्रेणी:मृत लोग श्रेणी:जैन आचार्य.

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सूरौठ

सूरौठ भारतवर्ष के उत्तर-पश्चिम राज्य राजस्थान के करौली जिले के हिण्डौन उपखण्ड का एक कस्बा है। यह कस्बा राजस्थान के पूर्व में में बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी जयपुर से 172 किलोमीटर पूर्व स्थित हैै।यह हिण्डौन सिटी से 16 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यह राजस्थान के करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है एवं इस शहर का विधान सभा क्षेत्र हिण्डौन विधानसभा क्षेत्र(राजस्थान) लगता है। यहाँ के पास नक्कश की देवी - गोमती धाम का मंदिर तथा महावीर जी का मंदिर पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है। श्रेणी:राजस्थान के शहर.

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हाथीगुम्फा शिलालेख

हाथीगुफा हाथीगुफा में खाववेल का शिलालेख मौर्य वंश की शक्ति के शिथिल होने पर जब मगध साम्राज्य के अनेक सुदूरवर्ती प्रदेश मौर्य सम्राटों की अधीनता से मुक्त होने लगे, तो कलिंग भी स्वतंत्र हो गया। उड़ीसा के भुवनेश्वर नामक स्थान से तीन मील दूर उदयगिरि नाम की पहाड़ी है, जिसकी एक गुफ़ा में एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है, जो 'हाथीगुम्फा शिलालेख' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे कलिंगराज खारवेल ने उत्कीर्ण कराया था। यह लेख प्राकृत भाषा में है और प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए इसका बहुत अधिक महत्त्व है। इसके अनुसार कलिंग के स्वतंत्र राज्य के राजा प्राचीन 'ऐल वंश' के चेति या चेदि क्षत्रिय थे। चेदि वंश में 'महामेधवाहन' नाम का प्रतापी राजा हुआ, जिसने मौर्यों की निर्बलता से लाभ उठाकर कलिंग में अपना स्वतंत्र शासन स्थापित किया। महामेधवाहन की तीसरी पीढ़ी में खारवेल हुआ, जिसका वृत्तान्त हाथीगुम्फा शिलालेख में विशद के रूप से उल्लिखित है। खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था और सम्भवतः उसके समय में कलिंग की बहुसंख्यक जनता भी वर्धमान महावीर के धर्म को अपना चुकी थी। हाथीगुम्फा के शिलालेख (प्रशस्ति) के अनुसार खारवेल के जीवन के पहले पन्द्रह वर्ष विद्या के अध्ययन में व्यतीत हुए। इस काल में उसने धर्म, अर्थ, शासन, मुद्रापद्धति, क़ानून, शस्त्रसंचालन आदि की शिक्षा प्राप्त की। पन्द्रह साल की आयु में वह युवराज के पद पर नियुक्त हुआ और नौ वर्ष तक इस पद पर रहने के उपरान्त चौबीस वर्ष की आयु में वह कलिंग के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ। राजा बनने पर उसने 'कलिंगाधिपति' और 'कलिंग चक्रवर्ती' की उपाधियाँ धारण कीं। राज्याभिषेक के दूसरे वर्ष उसने पश्चिम की ओर आक्रमण किया और राजा सातकर्णि की उपेक्षा कर कंहवेना (कृष्णा नदी) के तट पर स्थित मूसिक नगर को उसने त्रस्त किया। सातकर्णि सातवाहन राजा था और आंध्र प्रदेश में उसका स्वतंत्र राज्य विद्यमान था। मौर्यों की अधीनता से मुक्त होकर जो प्रदेश स्वतंत्र हो गए थे, आंध्र भी उनमें से एक था। अपने शासनकाल के चौथे वर्ष में खारवेल ने एक बार फिर पश्चिम की ओर आक्रमण किया और भोजकों तथा रठिकों (राष्ट्रिकों) को अपने अधीन किया। भोजकों की स्थिति बरार के क्षेत्र में थी और रठिकों की पूर्वी ख़ानदेश व अहमदनगर में। रठिक-भोजक सम्भवतः ऐसे क्षत्रिय कुल थे, प्राचीन अन्धक-वृष्णियों के समान जिनके अपने गणराज्य थे। ये गणराज्य सम्भवतः सातवाहनों की अधीनता स्वीकृत करते थे। .

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हाजीपुर

हाजीपुर (Hajipur) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टुबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी।, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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हिण्डौन

हिण्डौन राजस्थान राज्य का ऐतिहासिक व पौराणिक शहर है। यह शहर अरावली पहाड़ी के समीप स्थित है। प्राचीनकाल में हिण्डौन शहर मत्स्य के अंतर्गत आता था। मत्स्य शासन के दौरान बनाए गई प्राचीन इमारतें आज भी मौजूद हैं। भागवतपुराण के अनुसार हिण्डौन, भक्त प्रहलाद व हिरण्यकश्यप की कर्म भूमि रही है। महाभारतकाल की राक्षसी हिडिम्बा भी इसी शहर में रहा करती थी। हिण्डौन, ऐतिहासिक मंदिरों व इमारतों का गढ़ माना जाता है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह एक प्रमुख औद्योगिक नगर है। यह नगर राजस्थान के पूर्व में हिण्डौन उपखण्ड में बसा हुआ है। प्रदेश की राजधानी जयपुर से 156 किलोमीटर पूर्व स्थित है। यह नगर देश में लाल पत्थरों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं के बहुत मंदिर यहाँ स्थित है। यह शहर राजस्थान के करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है एवं इस शहर का विधान सभा क्षेत्र हिण्डौन विधानसभा क्षेत्र(राजस्थान) लगता है। यहाँ का नक्कश की देवी - गोमती धाम का मंदिर तथा महावीर जी का मंदिर पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है ! हिण्डौन शहर अरावली पर्वत श़ृंखला की गोद में बसा हुआ क्षेत्र है !यहाँ की आबादी लगभग 1.35 लाख है। अमृत योजना में 151 करोड़ राजस्थान सरकार द्वारा स्वीक्रत किये गये हैं। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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जमुई

जमुई बिहार के जमुई जिले का मुख्यालय है। यह जैनों के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। प्राचीन समय में इस जगह को जूम्भिकग्राम और जमबुबानी के नाम से जाना जाता था। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण रहा है। माना जाता है कि 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने उज्जिहवलिया नदी के तट पर स्थित जूम्भिकग्राम में दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था। इस जिले की स्थापना गुप्त, पाल और चन्देल शासकों ने की थी। जमुई का संबंध प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत से भी जोड़ा जाता है। यहाँ माँ कलिका मंदिर, मलयपुर, जमुई, जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर एवं जमुई रेलवे स्टेशन से सटा हुआ है जो आस पास के इलाके में बहुत ही भव्य एवं प्रसिद्ध है। दूर दूर से सैलानी इस मंदिर में श्रद्धा करने आते हैं। .

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जय जिनेन्द्र

जय जिनेन्द्र! एक प्रख्यात अभिवादन है। यह मुख्य रूप से जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ होता है  "जिनेन्द्र भगवान (तीर्थंकर) को नमस्कार"। यह दो संस्कृत अक्षरों के मेल से बना है: जय और जिनेन्द्र। .

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जगन्नाथ तर्कपंचानन

जगन्नाथ तर्कपंचानन (1694-1807) प्रसिद्ध बंगाली पंडित थे। हुगली (त्रिवेणी) में इनका जन्म हुआ। ये बड़े ही प्रतिभाशाली थे। इनके पांडित्य पर मुग्ध होकर तत्कालीन वर्धमान नरेश तथा मुर्शिदाबाद के नवाब ने इन्हें अनेक पारितोषिक प्रदान किए थे। "विवाद मंगार्णव सेतु" तर्कशास्त्र पर इनका प्रामाणिक ग्रंथ है। कहा जाता है, इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की लेकिन इस समय रामचरितनाटक के अतिरिक्त कुछ उपलब्ध नहीं है। 113 वर्ष की आयु भोगने के बाद इनकी मृत्यु हुई। श्रेणी:तर्कशास्त्री.

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ज्ञानमति

माताजी मीडिया को संबोधित करते हुए ज्ञानमती माताजी एक प्रतिष्ठित जैन साध्वी हैं। इन्होंने उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप जैन मंदिर और मांगी तुंगी मैं अहिंसा की प्रतिमा का निर्माण करवाया था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के टिकैत नगर में २२ अक्टूबर १९३४ को छोटेलाल जैन और मोहिनी देवी के यहाँ हुआ था। जैन समुदाय में इनके प्रवचनों का महत्वपूर्ण स्थान है। .

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जैन दर्शन

जैन दर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है। इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जैन धर्म की मान्यता अनुसार 24 तीर्थंकर समय-समय पर संसार चक्र में फसें जीवों के कल्याण के लिए उपदेश देने इस धरती पर आते है। लगभग छठी शताब्दी ई॰ पू॰ में अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर के द्वारा जैन दर्शन का पुनराव्रण हुआ । इसमें वेद की प्रामाणिकता को कर्मकाण्ड की अधिकता और जड़ता के कारण मिथ्या बताया गया। जैन दर्शन के अनुसार जीव और कर्मो का यह सम्बन्ध अनादि काल से है। जब जीव इन कर्मो को अपनी आत्मा से सम्पूर्ण रूप से मुक्त कर देता हे तो वह स्वयं भगवान बन जाता है। लेकिन इसके लिए उसे सम्यक पुरुषार्थ करना पड़ता है। यह जैन धर्म की मौलिक मान्यता है। सत्य का अनुसंधान करने वाले 'जैन' शब्द की व्युत्पत्ति ‘जिन’ से मानी गई है, जिसका अर्थ होता है- विजेता अर्थात् वह व्यक्ति जिसने इच्छाओं (कामनाओं) एवं मन पर विजय प्राप्त करके हमेशा के लिए संसार के आवागमन से मुक्ति प्राप्त कर ली है। इन्हीं जिनो के उपदेशों को मानने वाले जैन तथा उनके साम्प्रदायिक सिद्धान्त जैन दर्शन के रूप में प्रख्यात हुए। जैन दर्शन ‘अर्हत दर्शन’ के नाम से भी जाना जाता है। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर (महापुरूष, जैनों के ईश्वर) हुए जिनमें प्रथम ऋषभदेव तथा अन्तिम महावीर (वर्धमान) हुए। इनके कुछ तीर्थकरों के नाम ऋग्वेद में भी मिलते हैं, जिससे इनकी प्राचीनता प्रमाणित होती है। जैन दर्शन के प्रमुख ग्रन्थ प्राकृत (मागधी) भाषा में लिखे गये हैं। बाद में कुछ जैन विद्धानों ने संस्कृत में भी ग्रन्थ लिखे। उनमें १०० ई॰ के आसपास आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित तत्त्वार्थ सूत्र बड़ा महत्वपूर्ण है। वह पहला ग्रन्थ है जिसमें संस्कृत भाषा के माध्यम से जैन सिद्धान्तों के सभी अंगों का पूर्ण रूप से वर्णन किया गया है। इसके पश्चात् अनेक जैन विद्वानों ने संस्कृत में व्याकरण, दर्शन, काव्य, नाटक आदि की रचना की। संक्षेप में इनके सिद्धान्त इस प्रकार हैं- .

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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जैन धर्म का इतिहास

उदयगिरि की रानी गुम्फा जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते है। http://www.umich.edu/~umjains/jainismsimplified/chapter20.html  संभेद्रिखर, राजगिर, पावापुरी, गिरनार, शत्रुंजय, श्रवणबेलगोला आदि जैनों के प्रसिद्ध तीर्थ हैं। पर्यूषण या दशलाक्षणी, दिवाली और रक्षाबंधन इनके मुख्य त्योहार हैं। अहमदाबाद, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बंगाल आदि के अनेक जैन आजकल भारत के अग्रगण्य उद्योगपति और व्यापारियों में गिने जाते हैं। जैन धर्म का उद्भव की स्थिति अस्पष्ट है। जैन ग्रंथो के अनुसार धर्म वस्तु का स्वाभाव समझाता है, इसलिए जब से सृष्टि है तब से धर्म है, और जब तक सृष्टि है, तब तक धर्म रहेगा, अर्थात् जैन धर्म सदा से अस्तित्व में था और सदा रहेगा। इतिहासकारो द्वारा Helmuth von Glasenapp,Shridhar B. Shrotri.

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जैन धर्म के तीर्थंकर

श्रेणी:जैन धर्म श्रेणी:जैन तीर्थंकर श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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जैन धर्म के घटनाक्रम

कोई विवरण नहीं।

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जैन नववर्ष

जैन नववर्ष दीपावली का दूसरा दिन होता है।यह दिन वीर निर्वाण संवत की शुरुआत माना जाता है।इस बारे में बहुत ही कम लोगों को विदित है।दीवाली को महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ था।.

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जैन प्रतीक चिन्ह

वर्ष १९७५ में १००८ भगवान महावीर स्वामी जी के २५००वें निर्वाण वर्ष अवसर पर समस्त जैन समुदायों ने जैन धर्म के प्रतीक चिह्न का एक स्वरूप बनाकर उस पर सहमति प्रकट की थी। आजकल लगभग सभी जैन पत्र-पत्रिकाओं, वैवाहिक कार्ड, क्षमावाणी कार्ड, भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस, दीपावली आमंत्रण-पत्र एवं अन्य कार्यक्रमों की पत्रिकाओं में इस प्रतीक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। .

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जैन ग्रंथ

जैन साहित्य बहुत विशाल है। अधिकांश में वह धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है। महावीर की प्रवृत्तियों का केंद्र मगध रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है। ये आगम ४५ हैं और इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं, दिगंबर जैन नहीं। दिंगबरों के अनुसार आगम साहित्य कालदोष से विच्छिन्न हो गया है। दिगंबर षट्खंडागम को स्वीकार करते हैं जो १२वें अंगदृष्टिवाद का अंश माना गया है। दिगंबरों के प्राचीन साहित्य की भाषा शौरसेनी है। आगे चलकर अपभ्रंश तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में जैन पंडितों ने अपनी रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया। आदिकालीन साहित्य में जैन साहित्य के ग्रन्थ सर्वाधिक संख्या में और सबसे प्रमाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। स्वयंभू, पुष्प दंत, हेमचंद्र, सोमप्रभ सूरी आदि मुख्य जैन कवि हैं। इन्होंने हिंदुओं में प्रचलित लोक कथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया और परंपरा से अलग उसकी परिणति अपने मतानुकूल दिखाई। .

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जैन अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान

बिहार राज्य के वैशाली जिले में वैशाली के ऐतिहासिक भग्नावशेष के पास बसाढ गाँव में यह संस्थान स्थित है। जैन धर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली गणराज्य के प्रतिष्ठित ज्ञात्रिक कुल में हुआ था। उनके जन्म स्थल के निकट ही जैन अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान की स्थापना १९५२ में हुई थी। यह संस्थान जैन धर्म के मौलिक सिद्धांत तथा प्राकृत साहित्य के ऊपर शोध कार्य करती है। संस्थान बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से संबद्ध है।.

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जीव

कवक जीव (Organism) शब्द जीवविज्ञान में सभी जीवन-सन्निहित प्राणियों के लिए प्रयुक्त होता है, जैसे: कशेरुकी जन्तु, कीट, पादप अथवा जीवाणु। एक जीव में एक या एक से अधिक कोशिकाएँ होते हैं। जिनमें एक कोशिका पाया जाता है उसे एक कोशिकीय जीव है; एक से अधिक कोशिका होने पर उस जीव को बहुकोशिकीय जीव कहा जाता है। मनुष्य का शरीर विशेष ऊतकों और अंगों में बांटा होता है, जिसमें कोशिकाओं के कई अरबों की रचना में बहुकोशिकीय जीव होते हैं। .

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जीव (जैन दर्शन)

जीव शब्द का प्रयोग जैन दर्शन में आत्मा के लिए किया जाता है। जैन दर्शन सबसे पुराना भारतीय दर्शन है जिसमें कि शरीर (अजीव) और आत्मा (जीव) को पूर्णता पृथक माना गया है।  इन दोनों के मेल को अनादि से बताया गया है, जिसे रत्नात्रय (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चरित्र) के माध्यम से पूर्णता पृथक किया जा सकता है। संयम से जीव मुक्ति या मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।"  आचार्य उमास्वामी ने तीर्थंकर महावीर के मन्तव्यों को पहली सदी में सूत्रित करते हुए तत्त्वार्थ सूत्र में लिखा है: "परस्परोपग्रहो जीवानाम्"। इस सूत्र का अर्थ है, 'जीवों के परस्पर में उपकार है'। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वाराणसी का इतिहास

वाराणसी का मूल नगर काशी था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग ५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कंद पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित प्राचीनतम ऋग्वेद सहित कई हिन्दू ग्रन्थों में नगर का उल्लेख आता है। सामान्यतः वाराणसी शहर को कम से कम ३००० वर्ष प्राचीन तो माना ही जाता है। नगर मलमल और रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दाँत और शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म ५६७ ई.पू.) के काल में, वाराणसी काशी राज्य की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक गतिविधियों का केन्द्र बताया है और इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५ कि॰मी॰ तक लिखा है। .

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विद्यानंद

आचार्य Vidyanand जी (हिंदी: आचार्य विद्यानंद) (जन्म 22 अप्रैल 1925) के एक वरिष्ठ सबसे प्रमुख विचारक, दार्शनिक, लेखक, संगीतकार, संपादक, क्यूरेटर और एक बहुमुखी जैन साधु समर्पित किया है, जो अपने पूरे जीवन में उपदेश और अभ्यास महान अवधारणा की अहिंसा (अहिंसा) के माध्यम से जैन धर्महै। वह है के शिष्य आचार्य Deshbhushan.

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वज्जिका भाषा और साहित्य

वज्जिका उत्तर बिहार के उस क्षेत्र की भाषा है जहाँ भगवान महावीर और बुद्ध की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि थी तथा प्रथम गणतंत्रात्मक वज्जिसंघ का राज्य था। अत: वज्जिका की प्राचीनता एवं गरिमा वैशाली गणतंत्र के साथ जुड़ी हुई है और शायद इसका पतन भी वैशाली के पतन के साथ ही साथ ही गया। यह भाषा लोककंठ में ही जीवित रही है, लिखित साहित्य के रूप में नहीं। या ऐसा भी संभव है कि इसका लिखित साहित्य विनष्ट हो गया हो, जैसा प्राकृत अपभ्रंश के बहुतेरे ग्रंथों के साथ हुआ। वज्जिका के स्वरूप का दर्शन बौद्ध-जैन-साहित्य से लेकर संतसाहित्य तक देखा जा सकता है। .

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व्याख्याप्रज्ञप्ति

व्याख्याप्रज्ञप्ति (प्राकृत में: 'विहायापण्णति' या 'विवाहापण्णति'; "Exposition of Explanations") पाँचवाँ जैन आगम है जिसे भगवतीसूत्र भी कहते हैं। कुल १२ जैन आगम हैं जो महावीर स्वामी द्वारा प्रख्यापित माने जाते हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति की रचना सुधर्मस्वामी द्वारा प्राकृत में की गयी है। यह सभी आगमों में बससे बड़ा ग्रन्थ है। कहते हैं कि इसमें ६० हजार प्रश्नों का संग्रह था जिनका उत्तर महावीर स्वामी ने दिया था। .

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वैशाली

वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक गाँव है। ऐतिहासिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह गाँव मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली के जिला बनने पर इसका मुख्यालय हाजीपुर बनाया गया। वज्जिका यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी। महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। अतिमहत्त्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिन्दू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है। मशहूर राजनर्तकी और नगरवधू आम्रपाली भी यहीं की थी| आज वैशाली पर्यटकों के लिए भी बहुत ही लोकप्रिय स्थान है। वैशाली में आज दूसरे देशों के कई मंदिर भी बने हुए हैं। .

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वैशाली जिला

वैशाली (Vaishali) बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली एक अलग जिला बना। वैशाली जिले का मुख्यालय हाजीपुर में है। बज्जिका तथा हिन्दी यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। वैशाली जिला भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए एक पवित्र नगरी है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ। भगवान बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावे आज यह जिला राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। .

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खतरगच्छ

खरतरगच्छ जैन संप्रदाय का एक पंथ है। इस गच्छ की उपलब्ध पट्टावली के अनुसार महावीर के प्रथम शिष्य गौतम हुए। जिनेश्वर सूरि रचित कथाकोषप्रकरण की प्रस्तावना में इस गच्छ के संबंध में बताया गया है कि जिनेश्वर सूरि के एक प्रशिष्य जिनबल्लभ सूरि नामक आचार्य थे। इनका समय १११२ से ११५४ ई. है। इनका जिनदत्त सूरि नामक एक पट्टधर था। ये दोनों ही प्रकांड पंडित और चरित्रवान् थे। इन लोगों के प्रभाव से मारवाड़, मेवाड़, बागड़, सिंध, दिल्ली एवं गुजरात प्रदेश के अनेक लोगों ने जैन धर्म की दीक्षा ली। उन लोगों ने इन स्थानों पर अपने पक्ष के अनेक जिन मंदिर और जैन उपाश्रय बनवाए और अपने पक्ष को विधिपक्ष नाम दिया। उनके शिष्यों ने जो जिन मंदिर बनवाए वे विधि चैत्य कहलाए। यही विधि पक्ष कालांतर में खरतरगच्छ कहा जाने लगा और यही नाम आज भी प्रचलित है। इस गच्छ में अनेक गंभीर एवं प्रभावशाली आचार्य हुए हैं। उन्होंने भाषा, साहित्य, इतिहास, दर्शन, ज्योतिष, वैद्यक आदि विषयों पर संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश एवं देश भाषा में हजारों ग्रंथ लिखे। उनके ये ग्रंथ केवल जैन धर्म की दृष्टि से ही महत्व के नहीं हैं, वरन समस्त भारतीय संस्कृति के गौरव माने जाते हैं। श्रेणी:जैन धर्म.

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खरतरगच्छ

खरतरगच्छ जैन संप्रदाय का एक पंथ है। इस गच्छ की उपलब्ध पट्टावली के अनुसार महावीर के प्रथम शिष्य गौतम हुए। जिनेश्वर सूरि रचित कथाकोषप्रकरण की प्रस्तावना में इस गच्छ के संबंध में बताया गया है कि जिनेश्वर सूरि के एक प्रशिष्य जिनबल्लभ सूरि नामक आचार्य थे। इनका समय १११२ से ११५४ ई. है। इनका जिनदत्त सूरि नामक एक पट्टधर थे। ये दोनों ही प्रकांड पंडित और चरित्रवान् थे। इन लोगों के प्रभाव से मारवाड़, मेवाड़, बागड़, सिंध, दिल्ली एवं गुजरात प्रदेश के अनेक लोगों ने जैन धर्म की दीक्षा ली। उन लोगों ने इन स्थानों पर अपने पक्ष के अनेक जिन मंदिर और जैन उपाश्रय बनवाए और अपने पक्ष को विधिपक्ष नाम दिया। उनके शिष्यों ने जो जिन मंदिर बनवाए वे विधि चैत्य कहलाए। यही विधि पक्ष कालांतर में खरतरगच्छ कहा जाने लगा और यही नाम आज भी प्रचलित है। इस गच्छ में अनेक गंभीर एवं प्रभावशाली आचार्य हुए हैं। उन्होंने भाषा, साहित्य, इतिहास, दर्शन, ज्योतिष, वैद्यक आदि विषयों पर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं देश भाषा में हजारों ग्रंथ लिखे। उनके ये ग्रंथ केवल जैन धर्म की दृष्टि से ही महत्व के नहीं हैं, वरन समस्त भारतीय संस्कृति के गौरव माने जाते हें। श्रेणी:जैन धर्म.

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गच्छ

गच्छ समुदाय भारत में श्रीपूज्य जैन Acharya के परिवार दीक्षित समुदाय है। गच्छ, श्रीपुज्य जैन आचार्य का परिवार अथवा एक श्रीपुज्य से दीक्षित यति समुदाय। प्रत्येक गच्छ की गुरु परंपरा को गच्छावली अथवा पट्टावली कहते हैं। इस समय जैन धर्म में चौरासी गच्छ जैन धर्म में ८४ गछ ही होते है जो भगवान महावीर स्वामी के समय से ही निर्धारित है और इन गच्छों का संचालन यति परंपरा के आचार्य यानि की श्रीपुज्य जी करते थे। इसमें सभी गच्छों के अलग अलग श्रीपुज्य होते हैं और उनके सम्प्रदाय में दीक्षित सभी साधू 'यति' कहलाते हैं। यति परम्परा जैन धर्म में दीक्षित सबसे पुराणी परम्परा है जो भगवान ऋषभ देव स्वामी के समय से चली आरही है।जब भगवान ऋषभ देव जी को पारना करना था तब सब किसी ने उनको धन माया भेट दी मगर उन्होंने किसी से ये सब स्वीकार नहीं किया। तब श्रेणिक राजा ने उनको गन्ने के रस को बोहरा कर पारना करवाया तभी से ही यति भगवन्तो को गौचरी बोहराने की परम्परा चली आ रही। फिर भगवान महावीर स्वामी से चतुर्विध संघ का चलन हुआ जिसमे जैन साधू /यति - साध्वी/यतिनिया श्रावक/ श्राविका को एक दुसरे का पूरक मान कर संघ की स्थापना की और ८४ गच्छो का निर्माण किया। ये ८४ गच्छ सिर्फ यति सम्प्रदाय के लिए ही था लेकिन कालांतर में यति प्रथा से अलग हुए या निकले गए साधुओं ने अपने अपने नए सम्प्रदाय का निर्माण किया और इन गच्छो के नामों का उपयोग करने लगे। पूर्व में जितने भी आगम- श्लोक- पूजाएँ और ग्रन्थ लिखे गए है वे सब जो आज जैन धर्म में हम पढ़ रहे है वो यति भगवन्तो की देन है। वर्तमान में यति परम्परा में कम ही लोग इसलिए दीक्षित होते हैं क्योंकि इस परम्परा में दीक्षित होने के लिए साधना-तप-त्याग-ब्रह्मचर्य-अस्तेय-का होना जरुरी है। समय के साथ इस साधू परम्परा में कमी आई और सब इस नयी सरल परम्परा में दीक्षित होने लगे और यति परम्परा जो जैन धर्म की रक्षा करने वाली और आज के इस शुद्ध और सात्विक परम्परा की जनक परम्परा है धीरे धीरे कम हो रही है। इस परम्परा में अंतिम दीक्षित यति कुमार विजय हैं जिनकी दीक्षा गुजरात के वडोदरा के वाल्वोद गाँव में हुई है। श्रेणी:जैन धर्म.

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गणधर

गणधर जैन दर्शन में प्रचलित एक उपाधि है। जो अनुत्तर, ज्ञान और दर्शन आदि धर्म के गण को धारण करता है वह गणधर कहा जाता है। इसको तीर्थंकर के शिष्यों के अर्थ में ही विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। गणधर को द्वादश अंगों में पारंगत होना आवश्यक है। प्रत्येक तीर्थंकर के अनेक गणधर कहे गए हैं। महावीर स्वामी के 11 गणधर थे। उनके नाम, गोत्र और निवासस्थान इस प्रकार हैं: १इंद्रभुति गौतम (गोर्वरग्राम) २.अग्निभूति गोतम (गोर्वरग्राम) ३.वायुभूति गोतम (गोर्वरग्राम) ४.व्यक्त भारद्वाज कोल्लक (सन्निवेश) ५.सुधर्म अग्निवेश्यायन कोल्लक (सन्निवेश) ६.मंडिकपुत्र वाशिष्ठ मौर्य (सन्निवेश) ७.भौमपुत्र कासव मौर्य (सन्निवेश) ८. अकंपित गोतम (मिथिला) ९.अचलभ्राता हरिभाण (कोसल) १०.मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक (सन्निवेश) ११.प्रभास कौंडिन्य (राजगृह)। .

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गंधकुटी

गंधकुटी बुद्ध, केवली या भगवान के विराजने का स्थान। मोह का क्षय होने से कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति होती है। तीर्थकर केवली के लिए इंद्र विशाल जंगन सभा (समवसरण) का निर्माण करता है। समवसरण के केंद्र में उच्च स्थान पर भगवान के लिए कुटी होती है। इसमें सदैव मलयचंदन, कालागरू आदि जलते रहते हैं अतएव इसे गंधकुटी कहते हैं। साधारण केवलियों के लिए केवल गंधकुटी बनती है। समवसरण के प्रतीक जैन मंदिरों में गंधकुटी के स्थान पर गर्भगृह होता है तथा मूर्तियाँ इसी में रहती हैं। महात्मा बुद्ध के बैठने के स्थान को भी दिव्यावदान आदि में 'गंधकुटी' नाम से ही अभिहित किया गया है। त्रिलोकप्रज्ञप्ति (गाथा 887-892) में गंधकुटी का वर्णन है। ऋषभदेव की गंधकुटी की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई क्रमश: 600, 600 और 900 दंड थी। इसके बाद नेमिनाथ पर्यंत तीनों में 25, 25 और साढ़े 37 दंड घटते गए। पार्श्वनाथ की गंधकुटी साढ़े 62 लं., चौ.

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गुना

गुना भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। यह शहर मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित है। ३५ किलोमीटर दूर राजस्थान सीमा है, पार्वती नदी मध्य प्रदेश और राजस्थान को अलग करती है। गुना मालवा का प्रवेश द्वार कहा जाता है और ग्वालियर संभाग में आता है। गुना शहर ७७' देशांतर तथा २५' अक्षांश तथा राष्ट्रीय राजमार्ग ३ (आगरा-मुम्बई) पर स्थित है। कोटा और बीना शहर से रेल मार्ग द्वारा भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। शहर में मुख्यतः हिन्दू, मुस्लिम तथा जैन समुदाय के लोग निवास करते हैं।। खेती यहाँ का मुख्य कार्य है। गुना (ग्वालियर संयुक्त राष्ट्र सेना, डॉ राजीव दुआ) प्राचीन अवंती किंगडम चंद Pradyota Mahesena द्वारा स्थापित का हिस्सा था। बाद में Shishusangh अवंत का राज्य है, जो मगध के बढ़ते साम्राज्य के गुना शामिल जोड़ा। 18 वीं सदी में, गुना मराठा नेता रामोजी राव सिंधिया ने विजय प्राप्त की, और शीघ्र ही भारत की आजादी के बाद जब तक ग्वालियर के राज्य का हिस्सा बना रहा था। गुना राज्य के ईसागढ़ जिले के हिस्से के रूप में दिलाई। 1897 में भारतीय रेलवे मिडलैंड एक रेल मार्ग गुना से गुजर निर्माण किया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति, गुना अपने 16 जिलों में से एक के रूप में 28 मई 1948 को मध्य भारत के नए राज्य का हिस्सा बन गया। 1 नवंबर, 1956 को मध्य भारत मध्य प्रदेश राज्य में विलय कर दिया गया था। गुना के पास बजरंगढ नामक ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ महावीर भगवान की प्राचीन मूर्ति है। स्वतंत्रता से पहले गुना ग्वालियर राज घराने का हिस्सा था। जिस पर सिन्धिया वंश का अधिकार था। कुल क्षेत्रफल ६४८४.६३ वर्ग कि॰मी॰ तथा जनसंख्या ८३८०२६ है। .

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गोपालकृष्ण अडिग

गोपालकृष्ण अडिग कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह वर्धमान के लिये उन्हें सन् 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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गोरखपुर

300px गोरखपुर उत्तर प्रदेश राज्य के पूर्वी भाग में नेपाल के साथ सीमा के पास स्थित भारत का एक प्रसिद्ध शहर है। यह गोरखपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यह एक धार्मिक केन्द्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख सन्तों की साधनास्थली रहा। किन्तु मध्ययुगीन सर्वमान्य सन्त गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया। यहाँ का प्रसिद्ध गोरखनाथ मन्दिर अभी भी नाथ सम्प्रदाय की पीठ है। यह महान सन्त परमहंस योगानन्द का जन्म स्थान भी है। इस शहर में और भी कई ऐतिहासिक स्थल हैं जैसे, बौद्धों के घर, इमामबाड़ा, 18वीं सदी की दरगाह और हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों का प्रमुख प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। 20वीं सदी में, गोरखपुर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक केन्द्र बिन्दु था और आज यह शहर एक प्रमुख व्यापार केन्द्र बन चुका है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय, जो ब्रिटिश काल में 'बंगाल नागपुर रेलवे' के रूप में जाना जाता था, यहीं स्थित है। अब इसे एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिये गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा/GIDA) की स्थापना पुराने शहर से 15 किमी दूर की गयी है। .

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आचारांग

आचारांग का द्वादशांग में प्रथम स्थान है। यह दो के श्रुतस्कन्धों में विभक्त है, इसमें श्रमण के आचार का वर्णन किया गया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के ९वे अध्ययन में भगवान महावीर की तपस्या का बड़ा मार्मिक वर्णन पाया जाता है। .

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आचार्य शय्यंभव

आचार्य शय्यंभव भगवान महावीर के चतुर्थ पट्टधर आचार्य थे।। इनका जन्म राजगृह के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। श्वेताम्बर मान्यताओं के अनुसार इन्होनें 'दशवईकालिका' नामक ग्रन्थ की रचना की थी। ऐसा मुमकिन है कि यह पूरी रचना आचार्य शय्यंभव की ना हों और कुछ भाग बाद में जोड़े गयें हो। .

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आजीविक

(बायें) महाकाश्यप एक आजिविक से मिल रहे हैं और परिनिर्वाण के बारे में ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। आजीविक या ‘आजीवक’, दुनिया की प्राचीन दर्शन परंपरा में भारतीय जमीन पर विकसित हुआ पहला नास्तिकवादी और भौतिकवादी सम्प्रदाय था। भारतीय दर्शन और इतिहास के अध्येताओं के अनुसार आजीवक संप्रदाय की स्थापना मक्खलि गोसाल (गोशालक) ने की थी। ईसापूर्व 5वीं सदी में 24वें जैन तीर्थंकर महावीर और महात्मा बुद्ध के उभार के पहले यह भारतीय भू-भाग पर प्रचलित सबसे प्रभावशाली दर्शन था। विद्वानों ने आजीवक संप्रदाय के दर्शन को ‘नियतिवाद’ के रूप में चिन्हित किया है। ऐसा माना जाता है कि आजीविक श्रमण नग्न रहते और परिव्राजकों की तरह घूमते थे। ईश्वर, पुनर्जन्म और कर्म यानी कर्मकांड में उनका विश्वास नहीं था। आजीवक संप्रदाय का तत्कालीन जनमानस और राज्यसत्ता पर कितना प्रभाव था, इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि अशोक और उसके पोते दशरथ ने बिहार के जहानाबाद (पुराना गया जिला) दशरथ ने स्थित बराबर की पहाड़ियों में सात गुफाओं का निर्माण कर उन्हें आजीवकों को समर्पित किया था। तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में किसी भारतीय राजा द्वारा धर्मविशेष के लिए निर्मित किए गए ऐसे किसी दृष्टांत का विवरण इतिहास में नहीं मिलता। .

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आगम

भारत के नाना धर्मों में आगम का साम्राज्य है। जैन धर्म में मात्रा में न्यून होने पर भी आगमपूजा का पर्याप्त समावेश है। बौद्ध धर्म का 'वज्रयान' इसी पद्धति का प्रयोजक मार्ग है। वैदिक धर्म में उपास्य देवता की भिन्नता के कारण इसके तीन प्रकार है: वैष्णव आगम (पंचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम। .

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आगम (जैन)

आगम शब्द का प्रयोग जैन धर्म के मूल ग्रंथों के लिए किया जाता है। केवल ज्ञान, मनपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता है। कहीं कहीं नवपूर्व के धारक को भी आगम माना गया है। उपचार से इनके वचनों को भी आगम कहा गया है। जब तक आगम बिहारी मुनि विद्यमान थे, तब तक इनका इतना महत्व नहीं था, क्योंकि तब तक मुनियों के आचार व्यवहार का निर्देशन आगम मुनियों द्वारा मिलता था। जब आगम मुनि नहीं रहे, तब उनके द्वारा रचित आगम ही साधना के आधार माने गए और उनमें निर्दिष्ट निर्देशन के अनुसार ही जैन मुनि अपनी साधना करते हैं। आगम शब्द का उपयोग जैन दर्शन में साहित्य के लिए किया जाता है। श्रुत, सूत्र, सुतं, ग्रन्थ, सिद्धांत, देशना, प्रज्ञापना, उपदेश, आप्त वचन, जिन वचन, ऐतिह्य, आम्नाय आदि सभी आगम के पर्यायवाची शब्द है। आगम शब्द "आ" उपसर्ग और गम धातु से निष्पन्न हुआ है। 'आ' उपसर्ग का अर्थ समन्तात अर्थात पूर्ण और गम धातु का अर्थ गति प्राप्त है अर्थात जिससे वस्तु तत्त्व (पदार्थ के रहस्य) का पूर्ण ज्ञान हो वह आगम है अथवा ये भी कहा जा सकता है कि आप्त पुरुष (अरिहंत, तीर्थंकर या केवली) जिनेश्वर रूप में जो ज्ञान का उपदेश देते है उन शब्दों को गणधर (उनके प्रमुख शिष्य) जिनकी लिपि बद्ध रूप में रचना करते है उन सूत्रों को आगम कहते है। .

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इंद्रभूति गौतम

इंद्रभूति गौतम (गौतम गणधर) तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर (मुख्य शिष्य) थे। जिन्होंने भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया। .

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कन्फ़्यूशियस

कन्फ्यूशियस का सन् १९२२ में बना चित्र (चित्रकार ई.टी.सी. वरनर) शानदोंग प्रांत में स्थित कन्फ़्यूशियस की समाधि जिस समय भारत में भगवान महावीर और बुद्ध धर्म के संबध में नए विचार रख रहें थे, चीन में भी एक सुधारक का जन्म हुआ, जिसका नाम कन्फ़्यूशियस था। उस समय चीन में झोऊ राजवंश का बसंत और शरद काल चल रहा था। समय के साथ झोऊ राजवंश की शक्ति शिथिल पड़ने के कारण चीन में बहुत से राज्य कायम हो गये, जो सदा आपस में लड़ते रहते थे, जिसे झगड़ते राज्यों का काल कहा जाने लगा। अतः चीन की प्रजा बहुत ही कष्ट झेल रही थी। ऐसे समय में चीन वासियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने हेतु महात्मा कन्फ्यूशियस का आविर्भाव हुआ। .

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कपिल

कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे। इन्हें सांख्यशास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है जिसके मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। कई लोग इन्हें अनीश्वरवादी मानते हैं लेकिन गीता में इन्हें श्रेष्ठ मुनि कहा गया है। कपिल ने सर्वप्रथम विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखा। संसार को स्वाभाविक गति से उत्पन्न मानकर इन्होंने संसार के किसी अति प्राकृतिक कर्ता का निषेध किया। सुख दु:ख प्रकृति की देन है तथा पुरुष अज्ञान में बद्ध है। अज्ञान का नाश होने पर पुरुष और प्रकृति अपने-अपने स्थान पर स्थित हो जाते हैं। अज्ञानपाश के लिए ज्ञान की आवश्यकता है अत: कर्मकांड निरर्थक है। ज्ञानमार्ग का यह प्रवर्तन भारतीय संस्कृति को कपिल की देन है। यदि बुद्ध, महावीर जैसे नास्तिक दार्शनिक कपिल से प्रभावित हों तो आश्चर्य नहीं। आस्तिक दार्शनिकों में से वेदांत, योग और पौराणिक स्पष्ट रूप में सांख्य के त्रिगुणवाद और विकासवाद को अपनाते हैं। इस प्रकार कपिल प्रवर्तित सांख्य का प्रभाव प्राय: सभी दर्शनों पर पड़ा है। कपिल ने क्या उपदेश दिया, इस पर विवाद और शोध होता रहा है। तत्वसमाससूत्र को उसके टीकाकार कपिल द्वारा रचित मानते हैं। सूत्र छोटे और सरल हैं। इसीलिए मैक्समूलर ने उन्हें बहुत प्राचीन बतलाया। 8वीं शताब्दी के जैन ग्रंथ 'भगवदज्जुकीयम्‌' में सांख्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है– 'तत्वसमाससूत्र' में भी ऐसा ही पाठ मिलता है। साथ ही तत्वसमाससूत्र के टीकाकार भावागणेश कहते हैं कि उन्होंने टीका लिखते समय पंचशिख लिखित टीका से सहायता ली है। रिचार्ड गार्वे के अनुसार पंचशिख का काल प्रथम शताब्दी का होना चाहिए। अत: भगवज्जुकीयम्‌ तथा भावागणेश की टीका को यदि प्रमाण मानें तो 'तत्वसमाससूत्र' का काल ईसा की पहली शताब्दी तक ले जाया जा सकता है। इसके पूर्व इसकी स्थिति के लिए सबल प्रमाण का अभाव है। सांख्यप्रवचनसूत्र को भी कुछ टीकाकार कपिल की कृति मानते हैं। कौमुदीप्रभा के कर्ता स्वप्नेश्वर 'सांख्यप्रवचनसूत्र' को पंचशिख की कृति मानते हैं और कहते हैं कि यह ग्रंथ कपिल द्वारा निर्मित इसलिए माना गया है कि कपिल सांख्य के प्रवर्तक हैं। यही बात 'तत्वसमास' के बारे में भी कही जा सकती है। परंतु सांख्यप्रवचनसूत्र का विवरण माधव के 'सर्वदर्शनसंग्रह' में नहीं है और न तो गुणरत्न में ही इसके आधार पर सांख्य का विवरण दिया है। अत: विद्वान्‌ लोग इसे 14वीं शताब्दी का ग्रंथ मानते हैं। लेकिन गीता (१०.२६) में इनका ज़िक्र आने से ये और प्राचीन लगते हैं। .

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कल्पसूत्र (जैन)

1375-1400 की इस कल्पसूत्र पाण्डुलिपि में महावीर के जन्म का चित्रण है। कल्पसूत्र नामक जैनग्रंथों में तीर्थंकरों (पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि) का जीवनचरित वर्णित है। भद्रबाहु इसके रचयिता माने जाते हैं। पारंपरिक रूप से मान्यता है कि इस ग्रन्थ की रचना महावर स्वामी के निर्वाण के १५० वर्ष बाद हुई। आठ दिवसीय पर्यूषण पर्व के समय जैन साधु एवं साध्वी कल्पसूत्र का पाठ एवं व्याख्या करते हैं। इस ग्रन्थ का बहुत अधिक आध्यात्मिक महत्व है इसलिये केवल साधु एवं साध्वी ही इसका वाचन करते हैं और सामान्य लोग इसे हृदयंगम करते हैं। .

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काशी का इतिहास

वाराणसी (बनारस), १९२२ ई गंगा तट पर बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं। हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी। तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार शुरू हुआ। कुछ समय उपरांत पश्चिम से आये ऊँचे कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन ली। ये बड़े लड़ाकू थे, उनके घर-द्वार न थे, न ही अचल संपत्ति थी। वे अपने को आर्य यानि श्रेष्ठ व महान कहते थे। आर्यों की अपनी जातियाँ थीं, अपने कुल घराने थे। उनका एक राजघराना तब काशी में भी आ जमा। काशी के पास ही अयोध्या में भी तभी उनका राजकुल बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे, यानि सूर्यवंश। काशी में चन्द्र वंश की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे परे पूर्व का देश अपवित्र माना जाता था।Chandravanshee .

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कुन्दकुन्द

कुंदकुंदाचार्य की प्रतिमा जी (कर्नाटक) कुंदकुंदाचार्य दिगंबर जैन संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका एक अन्य नाम 'कौंडकुंद' भी था। इनके नाम के साथ दक्षिण भारत का कोंडकुंदपुर नामक नगर भी जुड़ा हुआ है। प्रोफेसर ए॰ एन॰ उपाध्ये के अनुसार इनका समय पहली शताब्दी ई॰ है परंतु इनके काल के बारे में निश्चयात्मक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। श्रवणबेलगोला के शिलालेख संख्या ४० के अनुसार इनका दीक्षाकालीन नाम 'पद्मनंदी' था और सीमंधर स्वामी से उन्हें दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ था। आचार्य कुन्दकुन्द ने ११ वर्ष की उम्र में दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की थी। इनके दीक्षा गुरू का नाम जिनचंद्र था। ये जैन धर्म के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनके द्वारा रचित समयसार, नियमसार, प्रवचन, अष्टपाहुड, और पंचास्तिकाय - पंच परमागम ग्रंथ हैं। ये विदेह क्षेत्र भी गए। वहाँ पर इन्होने सीमंधर नाथ की साक्षात दिव्यध्वनि को सुना। वे ५२ वर्षों तक जैन धर्म के संरक्षक एवं आचार्य रहे। वे जैन साधुओं की मूल संघ क्रम में आते हैं। वे प्राचीन ग्रंथों में इन नामों से भी जाने जातें हैं- गौतम गणधर के बाद आचार्य कुन्दकुन्द को संपूर्ण जैन शास्त्रों का एक मात्र ज्ञाता माना गया है। दिगम्बरों के लिए इनके नाम का शुभ महत्त्व है और भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद पवित्र स्तुति में तीसरा स्थान है- आचार्य कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्र के रचियता आचार्य उमास्वामी के गुरु थे। .

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कुशीनगर

यह पन्ना कुशीनगर नामक स्थान और बौद्ध तीर्थ के लिये है। प्रशाशनिक जनपद के लिये देखें कुशीनगर जिला ---- कुशीनगर एवं कसिया बाजार उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी सीमान्त इलाके में स्थित एक क़स्बा एवं ऐतिहासिक स्थल है। "कसिया बाजार" नाम कुशीनगर में बदल गया है और उसके बाद "कसिया बाजार" आधिकारिक तौर पर "कुशीनगर" नाम के साथ नगर पालिका बन गया है। यह बौद्ध तीर्थ है जहाँ गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। कुशीनगर, राष्ट्रीय राजमार्ग २८ पर गोरखपुर से कोई ५० किमी पूरब में स्थित है। यहाँ अनेक सुन्दर बौद्ध मन्दिर हैं। इस कारण से यह एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी है जहाँ विश्व भर के बौद्ध तीर्थयात्री भ्रमण के लिये आते हैं। कुशीनगर कस्बे के और पूरब बढ़ने पर लगभग २० किमी बाद बिहार राज्य आरम्भ हो जाता है। यहाँ बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुद्ध इण्टरमडिएट कालेज तथा कई छोटे-छोटे विद्यालय भी हैं। अपने-आप में यह एक छोटा सा कस्बा है जिसके पूरब में एक किमी की दूरी पर कसयां नामक बड़ा कस्बा है। कुशीनगर के आस-पास का क्षेत्र मुख्यत: कृषि-प्रधान है। जन-सामन्य की बोली भोजपुरी है। यहाँ गेहूँ, धान, गन्ना आदि मुख्य फसलें पैदा होतीं हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर कुशीनगर में एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से संबन्धित है, किन्तु आस-पास का क्षेत्र हिन्दू बहुल है। इस मेले में आस-पास की जनता पूर्ण श्रद्धा से भाग लेती है और विभिन्न मन्दिरों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन करती है। किसी को संदेह नहीं कि बुद्ध उनके 'भगवान' हैं। .

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क्रमचय

गणित में, क्रमचय (परमुटेशन) की संकल्पना को सूक्ष्म रूप से विभिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है, सभी अर्थ वस्तुओं या मूल्य के क्रमपरिवर्तन (क्रमबद्ध रूप से पुनर्व्यवस्थित करना) की कार्रवाई से संबंधित हैं। अनौपचारिक रूप से, कुछ मानों (values) के एक सेट को विशेष क्रम में व्यवस्थित करना क्रमचय है। इस प्रकार सेट (1, 2, 3) के छह क्रमचय हैं अर्थात्,,,, और.

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अब्द

अब्द का अर्थ वर्ष है। यह वर्ष, संवत्‌ एवं सन्‌ के अर्थ में आजकल प्रचलित है क्योंकि हिंदी में इस शब्द का प्रयोग सापेक्षिक दृष्टि से कम हो गया है। शताब्दी, सहस्राब्दी, ख्रिष्टाब्द आदि शब्द इसी से बने हैं। अनेक वीरों, महापुरुषों, संप्रदायों एवं घटनाओं के जीवन और इतिहास के आरंभ की स्मृति में अनेक अब्द या संवत्‌ या सन्‌ संसार में चलाए गए हैं, यथा, १. सप्तर्षि संवत् - सप्तर्षि (सात तारों) की कल्पित गति के साथ इसका संबंध माना गया है। इसे लौकिक, शास्त्र, पहाड़ी या कच्चा संवत्‌ भी कहते हैं। इसमें २४ वर्ष जोड़ने से सप्तर्षि-संवत्‌-चक्र का वर्तमान वर्ष आता है। २. कलियुग संवत् - इसे 'महाभारत सम्वत' या 'युधिष्ठिर संवत्‌' कहते हैं। ज्योतिष ग्रंथों में इसका उपयोग होता है। शिलालेखों में भी इसका उपयोग हुआ है। ई.॰ईपू॰ ३१०२ से इसका आरंभ होता है। वि॰सं॰ में ३०४४ एवं श.सं.

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अरिहन्त

अर्हत् (संस्कृत) और अरिहंत (प्राकृत) पर्यायवाची शब्द हैं। अतिशय पूजासत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहंत' (अरि का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, सिद्ध से एक चरण पूर्व की स्थिति है। जैनों के णमोकार मंत्र में पंचपरमेष्ठियों में सर्वप्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया गया है। सिद्ध परमात्मा हैं लेकिन अरिहंत भगवान लोक के परम उपकारक हैं, इसलिए इन्हें सर्वोत्तम कहा गया है। एक में एक ही अरिहंत जन्म लेते हैं। जैन आगमों को अर्हत् द्वारा भाषित कहा गया है। अरिहंत तीर्थकर, केवली और सर्वज्ञ होते हैं। महावीर जैन धर्म के चौबीसवें (अंतिम) तीर्थकर माने जाते हैं। बुरे कर्मों का नाश होने पर केवल ज्ञान द्वारा वे समस्त पदार्थों को जानते हैं इसलिए उन्हें 'केवली' कहा है। सर्वज्ञ भी उसे ही कहते हैं। श्रेणी:जैन धर्म.

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अर्धमागधी

मध्य भारतीय आर्य परिवार की भाषा अर्धमागधी संस्कृत और आधुनिक भारतीय भाषाओं के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह प्राचीन काल में मगध की साहित्यिक एवं बोलचाल की भाषा थी। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने इसी भाषा में अपने धर्मोपदेश किए थे। आगे चलकर महावीर के शिष्यों ने भी महावीर के उपदेशों का संग्रह अर्धमागधी में किया जो आगम नाम से प्रसिद्ध हुए। .

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अहिंसा स्थल

अहिंसा स्थल दिल्ली के महरौली नगर में स्थित एक प्रमुख जैन मंदिर हैं। मंदिर के मूलनायक वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर हैं। .

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अवधिज्ञान

जैनसंमत आत्ममात्र सापेक्ष प्रत्यक्ष ज्ञान का एक प्रकार अवधिज्ञान है। परमाणपर्यंरूपी पदार्थ इस ज्ञान का विषय है। इसका विपर्यय विभंगज्ञान है। इसकी लब्धि जन्म से ही नारकों और देवों को होती है। अतएव उनका अवधिज्ञान भवप्रत्यय और शेष पंचेंद्रियतिर्यच और मनुष्यों का क्षायोपशयिक अथवा गुण प्रत्यय है, अर्थात् तपस्या आदि गुणों के निमित्त से उन्हें प्राप्त होनेवाली यह एक ऋद्धि है। गणगार को उनके गुणों के अनुसार प्राप्त होनेवाले अवधिज्ञान के ये छह भेद हैं-आनुगामिक, अनानुगामिक, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित। श्रेणी:जैन धर्म श्रेणी:दर्शन.

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अवसर्पिणी

अवसर्पिणी, जैन दर्शन के अनुसार सांसारिक समय चक्र का आधा अवरोही भाग है जो वर्तमान में गतिशील है। जैन ग्रंथों के अनुसार इसमें अच्छे गुण या वस्तुओं में कमी आती जाती है। इसके विपरीत उत्सर्पिणी में अच्छी वस्तुओं या गुणों में अधिकता होती जाती है। .

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अक्रियावाद

अक्रियावाद बुद्ध के समय का एक प्रख्यात दार्शनिक मतवाद। महावीर तथा बुद्ध से पूर्व के युग में भी इस मत का बड़ा बोलबाला था। इसके अनुसार न तो कोई कर्म है, न कोई क्रिया और न कोई प्रयत्न। इसका खंडन जैन तथा बौद्ध धर्म ने किया, क्योंकि ये दोनों प्रयत्न, कार्य, बल तथा वीर्य की सत्ता में विश्वास रखते हैं। इसी कारण इन्हें कर्मवाद या क्रियावाद कहते हैं। बुद्ध के समय पूर्णकश्यप नामक आचार्य इस मत के प्रख्यात अनुयायी बतलाए गए हैं। श्रेणी:दर्शन श्रेणी:भारतीय दर्शन श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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उत्तराध्ययन सूत्र

उत्तराध्ययन सूत्र जैन धर्म के श्वेताम्बर पन्थ का धर्मग्रन्थ है। कहते हैं कि महावीर स्वामी के निर्वाण के कुछ समय पहले दिए गये उपदेश इसमें संग्रहित हैं। .

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१५ अक्टूबर

१५ अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २८८वां (लीप वर्ष में १८९ वां) दिन है। साल मे अभी और ७७ दिन बाकी है। .

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२४ तीर्थंकर

२४ तीर्थंकरों का वर्णन आइटम विवरण: यह लगभग 9 फीट या 3 मीटर है 1 धनुष 1 लाख 100000 (एक लाख) 1 पूर्वा एक्स 84 लाख 84 लाख वर्ष .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

तीर्थंकर महावीर, भगवान महावीर, महावीर स्वामी, महावीर स्वामी जी, महावीर जी, वर्धमान, वर्धमान महावीर, श्री महावीर जी

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