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महाराणा प्रताप

सूची महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ। .

56 संबंधों: चम्पा (बहुविकल्पी), चेतक, एकलिंगजी, दामोदर स्वरूप 'विद्रोही', नाना साहेब, पद्माकर, पन्ना धाय, पाली, प्रताप, प्रताप गौरव केंद्र, प्रतापगढ़ (राजस्थान) का इतिहास, प्रतापगढ़, राजस्थान, पृथ्वीराज, फैज़ल ख़ान, भामाशाह, भामाशाह सम्मान, भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप, भारतवर्ष (टीवी सीरीज), भारतीय इतिहास तिथिक्रम, भिलाला, महाराणा प्रताप सागर, महाराणा प्रताप विमानक्षेत्र, महारानी जयवंताबाई, मेवाड़, मेवाड़ की शासक वंशावली, मोहन सिंह मेहता, रानी कर्णवती, राष्ट्रवीर, राजपूतों की सूची, राजस्थान, राजकमल प्रकाशन पुस्तक सूची, शरद मल्होत्रा, शक्ति सिंह, श्याम नारायण पाण्डेय, सिसोदिया (राजपूत), सुंधा माता, स्वीटी वालिया, सोहन लाल द्विवेदी, हम्मीर चौहान, हल्दीघाटी, हल्दीघाटी का युद्ध, जय सिंह द्वितीय, जगमाल सिंह, जोधा अकबर (टीवी धारावाहिक), वार (पंजाबी काव्य), विद्याधर शास्त्री, व्यक्तित्व, गोगुन्दा, कल्ला जी राठौड़, कालिका माता मन्दिर, चित्तौड़गढ़ दुर्ग, ..., कुम्भलगढ़ दुर्ग, अनुराग शर्मा, अमर सिंह प्रथम, अजबदे पंवार, उदयपुर, उदयसिंह द्वितीय सूचकांक विस्तार (6 अधिक) »

चम्पा (बहुविकल्पी)

चम्पा का प्रयोग निम्नलिखित अर्थों में किया जाता है-.

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चेतक

महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण irani मूल के घोड़े का नाम चेतक था। चेतक अश्व गुजरातमे चोटीलाके पास भीमोरा गांवका था.

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एकलिंगजी

एकलिंग राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित एक मंदिर परिसर है। यह स्थान उदयपुर से लगभग १८ किमी उत्तर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। वैसे उक्त स्थान का नाम 'कैलाशपुरी' है परन्तु यहाँ एकलिंग का भव्य मंदिर होने के कारण इसको एकलिंग जी के नाम से पुकारा जाने लगा। भगवान शिव श्री एकलिंग महादेव रूप में मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतो के प्रमुख आराध्य देव रहे हैं।मान्यता है कि यहाँ में राजा तो उनके प्रतिनिधि मात्र रूप से शासन किया करते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवाण जी कहा जाता है।ये राजा किसी भी युद्ध पर जाने से पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना कर उनसे आशीष अवश्य लिया करते थे। यहाँ मन्दिर परिसर के बाहर मन्दिर न्यास द्वारा स्थापित एक लेख के अनुसार डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। इतिहास बताता है कि एकलिंग जी को ही को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार यहाँ ऐतिहासिक महत्व के प्रण लिए थे। यहाँ के महाराणा प्रताप के जीवन में अनेक विपत्तियाँ आईं, किन्तु उन्होंने उन विपत्तियों का डटकर सामना किया। किन्तु जब एक बार उनका साहस टूटने को हुआ था, तब उन्होंने अकबर के दरबार में उपस्थित रहकर भी अपने गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वी राज को, उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से सराबोर पत्र का उत्तर दिया। इस उत्तर में कुछ विशेष वाक्यांश के शब्द आज भी याद किये जाते हैं: .

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दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'

दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' (जन्म:2 अक्टूबर 1928 - मृत्यु: 11 मई 2008) अमर शहीदों की धरती के लिये विख्यात शाहजहाँपुर जनपद के चहेते कवियों में थे। यहाँ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर विद्रोही जी का नाम आज भी उतना ही है जितना कि तब था जब वे जीवित थे। विद्रोही की अग्निधर्मा कविताओं ने उन्हें कवि सम्मेलन के अखिल भारतीय मंचों पर स्थापित ही नहीं किया अपितु अपार लोकप्रियता भी प्रदान की। उनका एक मुक्तक तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ: सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में उनकी पहचान वीर रस के सिद्धहस्त कवि के रूप में भले ही हुई हो परन्तु यह भी एक सच्चाई है कि उनके हृदय में एक सुमधुर गीतकार भी छुपा हुआ था। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द के विधान पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। भ्रष्टाचार, शोषण, अत्याचार, छल और प्रवचन के समूल नाश के लिये वे ओजस्वी कविताओं का निरन्तर शंखनाद करते रहे। उन्होंने चीन व पाकिस्तान युद्ध और आपातकाल के दिनों में अपनी आग्नेय कविताओं की मेघ गर्जना से देशवासियों में अदम्य साहस का संचार किया। हिन्दी साहित्य के आकाश में स्वयं को सूर्य-पुत्र घोषित करने वाले यशस्वी वाणी के धनी विद्रोही जी भौतिक रूप से भले ही इस नश्वर संसार को छोड़ गये हों परन्तु अपनी कालजयी कविताओं के लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा। .

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नाना साहेब

अपने रक्षकों के साथ '''नाना साहेब''' नाना साहेब (जन्म १८२४ - १८५७ के पश्चात से गायब) सन १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार थे। उनका मूल नाम 'धोंडूपंत' था। स्वतंत्रता संग्राम में नाना साहेब ने कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोहियों का नेतृत्व किया। .

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पद्माकर

रीति काल के ब्रजभाषा कवियों में पद्माकर (1753-1833) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों में अंतिम चरण के सुप्रसिद्ध और विशेष सम्मानित कवि थे। मूलतः हिन्दीभाषी न होते हुए भी पद्माकर जैसे आन्ध्र के अनगिनत तैलंग-ब्राह्मणों ने हिन्दी और संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि में जितना योगदान दिया है वैसा अकादमिक उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। .

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पन्ना धाय

पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में हुआ था। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना 'धाय माँ' कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की। पन्ना चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी। .

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पाली

पाली राजस्थान में उपर्युक्त ज़िले में बाँडी नदी के दाहिने किनारे पर स्थित नगर है। पाली की पूर्वी सीमाएँ अरावली पर्वत श्रृंखला से जुड़ी हैं। पाली की सीमाएँ उत्तर में नागौर और पश्चिम में जालौर से मिलती हैं। पाली शहर पालीवाल ब्राह्मणों का निवास स्थान था जब मुग़लों ने क़त्लेआम मचा दिया तो उन्हें यह शहर छोड़ कर जाना पड़ा। वीर योद्धा महाराणा प्रताप का यहीं ननिहाल है | यह भी मान्यता है की महाराणा प्रताप का जन्म पाली में ही हुआ है। यह नगर तीन बार उजड़ा और बसा। पाली के प्रसिद्ध जैन मंदिर भक्तों के साथ-साथ इतिहासवेत्ताओं को भी आकर्षित करते हैं। पाली के मुख्य उद्योगों में सूती कपड़े की रँगाई, छपाई, ताँबे का काम आदि प्रमुख हैं। पाली नगर में स्कूल, अस्पताल तथा कई मंदिर भी हैं। सोमनाथ तथा नौलखा आदि प्रसिद्ध मंदिर हैं। श्रेणी:राजस्थान के शहर bpy:পালি (ললিতপুর) pi:पमुख पत्त Pamukha patta.

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प्रताप

'प्रताप के निम्नलिखित आशय हो सकते हैं.

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प्रताप गौरव केंद्र

प्रताप गौरव केंद्र (Pratap Gaurav Kendra) एक नया दर्शनीय स्थल है जो भारतीय राज्य राजस्थान के उदयपुर ज़िले में स्थित है। इसकी शुरुआत वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति ने की थी जिसका लक्ष्य यह रखा गया कि लोग महाराणा प्रताप के बारे में और मेवाड़ के बारे में ऐतिहासिक जानकारी पा सके। .

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) का इतिहास

सुविख्यात इतिहासकार महामहोपाध्याय पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा (1863–1947) के अनुसार "प्रतापगढ़ का सूर्यवंशीय राजपूत राजपरिवार मेवाड़ के गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा से सम्बद्ध रहा है".

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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पृथ्वीराज

जुनाघर किला एक प्रसिद्ध किला है जहाँ बीकानेर के कई रजओं ने राज किया। पृथ्वीराज बीकानेरनरेश राजसिंह के भाई जो अकबर के दरबार में रहते थे। वे वीर रस के अच्छे कवि थे और मेवाड़ की स्वतंत्रता तथा राजपूतों की मर्यादा की रक्षा के लिये सतत संघर्ष करनेवाले महाराणा प्रताप के अनन्य समर्थक और प्रशंसक थे। जब आर्थिक कठिनाइयों तथा घोर विपत्तियों का सामना करते करते एक दिन राणा प्रताप अपनी छोटी लड़की को आधी रोटी के लिये बिलखते देखकर विचलित हो उठे तो उन्होंने सम्राट के पास संधि का संदेश भेज दिया। इसपर अकबर को बड़ी खुशी हुई और राणा का पत्र पृथ्वीराज को दिखलाया। पृथ्वीराज ने उसकी सचाई में विश्वास करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अकबर की स्वीकृति से एक पत्र राणा प्रताप के पास भेजा, जो वीररस से ओतप्रोत, तथा अत्यंत उत्साहवर्धक कविता से परिपूर्ण था। उसमें उन्होंने लिखा हे राणा प्रताप ! तेरे खड़े रहते ऐसा कौन है जो मेवाड़ को घोड़ों के खुरों से रौंद सके ? हे हिंदूपति प्रताप ! हिंदुओं की लज्जा रखो। अपनी शपथ निबाहने के लिये सब तरह को विपत्ति और कष्ट सहन करो। हे दीवान ! मै अपनी मूँछ पर हाथ फेरूँ या अपनी देह को तलवार से काट डालूँ; इन दो में से एक बात लिख दीजिए।' यह पत्र पाकर महाराणा प्रताप पुन: अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ हुए और उन्होंने पृथ्वीराज को लिख भेजा 'हे वीर आप प्रसन्न होकर मूछों पर हाथ फेरिए। जब तक प्रताप जीवित है, मेरी तलवार को तुरुकों के सिर पर ही समझिए।' पृथ्वीराज की पहली रानी लालादे बड़ी ही गुणवती पत्नी थी। वह भी कविता करती थी। युवास्था में ही उसकी मृत्यु हो गई जिससे उन्हें बड़ा सदमा बैठा। उसके शव को चिता पर जलते देखकर वे चीत्कार कर उठे: 'तो राँघ्यो नहिं खावस्याँ, रे वासदे निसड्ड। मो देखत तू बालिया, साल रहंदा हड्ड।' (हे निष्ठुर अग्नि, मैं तेरा राँघा हुआ भोजन न ग्रहण करुँगा, क्योंकि तूने मेरे देखते देखते लालादे को जला डाला और उसका हाड़ ही शेष रह गया)। बाद में स्वास्थ्य खराब होता देखकर संबंधियों ने जैसलमेर के राव की पुत्री चंपादे से उनका विवाह करा दिया। यह भी कविता करती थी। .

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फैज़ल ख़ान

फैजल खान (जन्म: ३० जनवरी १९९९) एक बाल अभिनेता, डांसर हैं।) वें भारतीय रियलिटी शो डांस इंडिया डांस लिल मास्टर्स सीजन २ के विजेता हैं। वर्तमान में सोनी इंडिया पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरिअल भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप में बाल महाराणा प्रताप की भूमिका निभाई थी। इनके अलावा ये सीआईडी में भी कार्य कर चूके है। .

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भामाशाह

तेली वैश्य समाज की शान दानवीर भामाशाह (1542 - लगभग 1598) बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे। मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए भामाशाह नाम इतिहास में अमर है। भामाशाह .

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भामाशाह सम्मान

भारत के मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वाणिज्यिक कर, केन्द्रीय विक्रयकर तथा प्रवेशकर के रूप में जिला स्तर पर सर्वाधिक राजस्व जमा करने वाले तीन व्यवसाईयों को भामाशाह सम्मान प्रदान किये जाने की योजना है। यह योजना 2008 में घोषित की गई थी। इस अभिनव योजना के तहत जिला स्तर पर सर्वाधिक कर चुकाने वाले तीन करदाताओं को भामाशाह सम्मान से विभूषित किया जावेगा तथा इन करदाताओं को क्रमश: एक लाख रूपये, 50 हजार रूपये एवं 25 हजार रूपये की नगद राशि से पुरस्कृत किया जायेगा। भामाशाह पुरस्कार, प्रेम और त्याग की मूर्ति भामाशाह के नाम पर रखा गया है जिन्होंने सन् 1576 में हल्दीघाटी के युध्द के पश्चात जब महाराणा प्रताप के पास कोई वित्तीय स्रोत नहीं था तब देश के इस महान सपूत ने अपना सर्वस्व उन्हें सौंप दिया। जिसमें उस समय की 20 लाख अशर्फियां तथा सोने एवं रत्नों का संग्रह भी था। इतिहास में उनके इस महान योगदान की कहानी वर्णित है और उनका यह कृत्य दानवीर नाम की संज्ञा का पर्याय बन चुका है। सत्ता को अपने वित्तीय सामर्थ्य से सशक्त आधार देने वाले ऐसे उत्कृष्ट व्यक्तित्व के नाम पर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा यह सम्मान रखा गया है। ---- भामाशाह सम्मान नाम से एक और पुरस्कार महाराजा मेवाड़ फाउण्डेशन की तरफ से भी दिया जाता है। यह पुरस्कार राजस्थान के विश्वविद्यालयों में नि:स्वार्थ सेवा एवं अन्य महान कार्य में दक्ष विद्यार्थियों को दिये जाते हैं। .

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भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप

भारत का वीर पुत्र - महाराणा प्रताप एक सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाला एक धारावाहिक है। यह २७ मई २०१३ से १० दिसम्बर २०१५ तक प्रसारित हो रहा था। इसे अभिमन्यु राज सिंह ने निर्देशित किया है। यह धारावाहिक १६वीं शताब्दी के मेवाड़ के राजपूत शासक, महाराणा प्रताप के जीवन पर आधारित एक भारतीय ऐतिहासिक नाटक है। यह ऐतिहासिक धारावाहिक १० दिसम्बर २०१५ को रात १० बजे अंतिम बार चला अर्थात अब यह पूरा हो चूका है इसके अंत में महाराणा प्रताप की बीमारी की वजह से मृत्यु हो जाती है। .

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भारतवर्ष (टीवी सीरीज)

भारतवर्ष: महानायकों की गौरव कथा एक भारतीय टेलीविजन ऐतिहासिक वृत्तचित्र श्रृंखला (डॉक्यूमेन्टरी) है, हिंदी समाचार चैनल एबीपी न्यूज पर अभिनेता-निर्देशक अनुपम खेर द्वारा होस्ट किया गया। यह 20 अगस्त 2016 को शुरू हुआ। यह शो भारत के 5000 वर्षीय इतिहास में व्यक्तित्वों के विचारों और विचारों को प्रस्तुत करता है और प्राचीन भारत से 19वीं शताब्दी तक का सफर दर्शाता है। सीजन-1 23 अक्टूबर 2016 को समाप्त हुआ। कुछ अंतराल के बाद सीजन 2 शुरू होगा। .

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भारतीय इतिहास तिथिक्रम

भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं तिथिक्रम में।;भारत के इतिहास के कुछ कालखण्ड.

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भिलाला

भिलाला (दरबार/ठाकुर) जाति मूल रूप से मिश्रित राजपूत और भील क्षत्रिय जाति है जो के राजपूत योद्धाओं के भील सरदारों/शासक/जमींदारों की कन्याओं से विवाह से उत्पन्न हुई| ये मुख्य रूप से मालवा, मेवाड और निमाड़ में रहते है| इन्हें दरबार/ठाकुर कहा जाता है और इनके रिति रिवाज और पोशाक राजपूती है और अधिकांश लोगो की रीति रिवाज पुराने ही हैं। सभी भीलाला हिन्दू हैं | .

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महाराणा प्रताप सागर

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के शिवालिक पहाड़ियों के आर्द्र भूमि पर ब्यास नदी पर बाँध बनाकर एक जलाशय का निर्माण किया गया है जिसे महाराणा प्रताप सागर नाम दिया गया है। इसे पौंग जलाशय या पौंग बांध के नाम से भी जाना जाता है। यह बाँध 1975 में बनाया गया था। महाराणा प्रताप के सम्मान में नामित यह जलाशय या झील (1572–1597) एक प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य है और रामसर सम्मेलन द्वारा भारत में घोषित 25 अंतरराष्ट्रीय आर्द्रभूमि साइटों में से एक है।"Salient Features of some prominent wetlands of India", pib.nic.in, Release ID 29706, web: सूर्योदय पौंग जलाशय और गोविन्दसागर जलाशय हिमाचल प्रदेश में हिमालय की तलहटी में दो सबसे महत्वपूर्ण मछली वाले जलाशय हैं।, इन जलाशयों में हिमालय राज्यों के भीतर मछली के प्रमुख स्रोत हैं। .

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महाराणा प्रताप विमानक्षेत्र

महाराणा प्रताप हवाई अड्डा या उदयपुर हवाई अड्डा या दाबोक हवाई अड्डा (आईएटीए: UDR, आईसीएओ: VAUD) उदयपुर, राजस्थान,भारत में स्थित एक घरेलू हवाई अड्डा है। यह 22 किमी की दूरी पर उदयपुर (14 मील) पूर्व में स्थित है। हवाई अड्डे का नाम भारत के राजस्थान राज्य के मेवाड़ की रियासत के एक शासक महाराणा प्रताप के नाम पर रखा गया। .

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महारानी जयवंताबाई

महारानी जयवंताबाई महाराणा उदय सिंह की पहली पत्नी थी, और इनके पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था। यह राजस्थान के जालौर की एक रियासत के अखे राज सोंगरा चौहान की बेटी थी। उनका शादी से पहले जीवंत कंवर नाम था जो शादी के बाद बदल दिया गया। जयवंता बाई उदय सिंह को राजनीतिक मामलों में सलाहें देती थी। 1572 में महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के बाद, जगमल अपने पिता की इच्छा के अनुसार सिंहासन पर चढ़ गए। प्रवेश समारोह शुरू होने से पहले, महाराणा प्रतापसिंह के अनुयायियों ने भौमिक रूप से जगमल को एक और सीट पर ले लिया और महाराणा प्रतापसिंह सिंहासन पर चढ़ गए। जयवंता बाई एक बहादुर, सीधी राजपूत रानी थी। वह भगवान कृष्ण की एक प्रफुल्लित भक्त थी और कभी उनके सिद्धांतों और आदर्शवादी विश्वासों से समझौता नहीं करती थी। उन्होंने प्रताप को अपने पोषित सिद्धांतों और धार्मिकता को पारित कर दिया, जो उनके द्वारा बहुत प्रेरित थे। बाद में उनके जीवन में, प्रताप ने उसी आदर्शवादी और सिद्धांतों का पालन किया जो जयवंता बाई ने किया। प्रताप एक महान राणा (राजा) बन गए। उन्होंने प्रताप को नैतिकता दी और उन्होंने इसका पालन किया और जिसके कारण उन्होंने महान लोगों की सूची में अपना नाम लिखा। उन्होंने प्रताप के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। .

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मेवाड़

राजस्थान के अन्तर्गत मेवाड़ की स्थिति मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में एक रियासत थी। इसे 'उदयपुर राज्य' के नाम से भी जाना जाता था। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, तथा चित्तौडगढ़ जिले थे। सैकड़ों सालों तक यहाँ रापपूतों का शासन रहा और इस पर गहलौत तथा सिसोदिया राजाओं ने १२०० साल तक राज किया। बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज बना। १५५० के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी चित्तौड़। राणा प्रताप सिंह यहीं का राजा था। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। .

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मेवाड़ की शासक वंशावली

राजस्थान के दक्षिण - पश्चिम भाग पर गुहिलों का शाषन था। "नैणसी री ख्यात" में गुहिलों की 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है जिनमें मेवाड़, बागड़ और प्रताप शाखा ज्यादा प्रसिद्ध हुई। इन तीनो शाखाओं में मेवाड़ शाखा अधिक महत्वपूर्ण थी। श्रेणी:राजस्थान का इतिहास श्रेणी:मेवाड़ के शासक श्रेणी:उदयपुर.

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मोहन सिंह मेहता

मोहन सिंह मेहता (1895-1986) देश के जाने माने शिक्षाविद, राजस्थान विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति, सेवा मंदिर और विद्या भवन उदयपुर के संस्थापक, भूतपूर्व विदेश सचिव पद्मविभूषण जगत मेहता के पिता थे। .

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रानी कर्णवती

रानी कर्णावती या कर्मवती (मृत्यु 8 मार्च 1535), राणा सांगा की पत्नी थीं जो अल्प काल के लिये बूँदी की शासिका भी रहीं। वे राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की माँ थीं और महाराणा प्रताप की दादी थीं। .

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राष्ट्रवीर

ऐसा व्यक्ति जो अपने देश या मातृभूमि के लिए अपने प्राणों के साथ सब कुछ गवाने का जज्बा रखता हो और राष्ट्र को एकत्र कर राष्ट्र की रक्षा कर सकने वाला राष्ट्रवीर कहलाता है। उदाहरण स्वरूप महाराजा सुहलदेव, महाराणा प्रताप सिंह, महाराजा रणजीत सिंह जैसे बहुत से परमवीर थे।.

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राजपूतों की सूची

महाराणा प्रताप, a Sixteenth century राजपूत ruler and great warrior of his time. Mughal Emperor Akbar sent many missions against him; however, he survived and fought to his last breath. He ultimately gained control of all areas of Mewar, excluding the fort of Chittor. राजपूत भारतीय उपमहाद्वीप (भारत, पाकिस्तान, बाँग्लादेश और नेपाल) की बहुत ही प्रभावशाली जाति है, जो शासन और सत्ता के सदैव निकट रही है। अपनी युद्ध-कुशलता और शासन-क्षमता के कारण राजपूतों ने पर्याप्त ख्याति अर्जित की। १५ अगस्त १९४७ को स्वतन्त्र हुए भारत की ६०० रियासतों में से लगभग ४०० पर राजपूत राजाओं का शासन था। भारत और पाकिस्तान, जिसे १५ अगस्त १९४७ के पूर्व हिन्दुस्तान के नाम से ही जाना जाता था, की कुल ४०० रियासतों के राजपूत राजाओं/राजपुत्रों की एक आंशिक सूची नीचे दी जा रही है, ताकि इतिहास के विद्यार्थी इस पर आगे काम कर सकें। .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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राजकमल प्रकाशन पुस्तक सूची

राजकमल प्रकाशन हिन्दी पुस्तकों को प्रकाशित करने वाला प्रकाशन संस्थान है। इसका मुख्यालय दिल्ली, भारत, में स्थित है। 1949 में स्थापित यह प्रकाशन प्रति वर्ष लगभग चार सौ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन करता है। .

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शरद मल्होत्रा

शरद मल्होत्रा एक भारतीय फ़िल्म तथा टेलीविज़न अभिनेता है इनका जन्म मुम्बई में ०९ जनवरी १९८३ में हुआ तथा इन्होनें अपनी पढ़ाई कोलकाता के सेंट जेवियर कालेज से २००३ में पूर्ण की। इन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत २००६ में एक धारावाहिक (कभी तो नज़र मिलाओ) से की थी उसमें ये एक कैमियो का किरदार निभा रहे थे। लेकिन इन्होंने अपनी प्रसिद्धि भारतीय टेलीविज़न चैनल सोनी टीवी के भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप से पायी हालांकि यह धारावाहिक १० दिसम्बर २०१५ को समाप्त हो गया है इसमें इन्होंने महाराणा प्रताप का किरदार किया था। इन्हें अबतक तीन बार इंडियन टेली अवार्ड मिल चुका है। .

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शक्ति सिंह

शक्ति सिंह सिसोदिया, जिन्हें शक्ति तथा सगत नामों से भी जाना जाता था, राणा उदय सिंह द्वितीय तथा रानी सज्जा बाई सोलंकिनी के पुत्र तथा महाराणा प्रताप के छोटे भाई थे। अपने पिता से शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों के कारण उन्होंने मुग़ल शासक अकबर के पाले में चले गये तथा बाद में उन्हें "मीर" की उपाधि प्रदान की गयी। १५६७ ईस्वी में धौलपुर से भाग गये जब अकबर ने वहाँ पड़ाव डाला था। उन्होंने अकबर की चित्तौड़ पर आधिपत्य जमाने की योजना अपने पिता को बता दी जिससे अकबर बहुत नाराज हो गया। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान वे अपने भाई महाराणा प्रताप के पक्ष में आ गये। उनके वंशज शक्तवत नाम से जाने जाते हैं। .

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श्याम नारायण पाण्डेय

वीर रस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय (1907-1991) श्याम नारायण पाण्डेय (1907 - 1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे। .

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सिसोदिया (राजपूत)

सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया यासिसोदिया एक राजपूत राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी राजपूत थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं। 'गुहिल' या 'गेहलोत' 'गुहिलपुत्र' शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत: ब्राह्मण मानते हैं, किंतु वे स्वयं अपने को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है। कुछ समय तक चित्तौड़ प्रतिहारों के अधिकार में रहा और गुहिल उनके अधीन रहे। भर्तृ पट्ट द्वितीय के समय गुहिल फिर सशक्त हुए और उनके पुत्र अल्लट (विक्रम संवत् १०२४) ने राजा देवपाल को हराया जो डा.

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सुंधा माता

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा के दौरान किसी कारणवश मूर्ति के खंड होने पर उसकी आराधना नहीं होती है, लेकिन राजस्थान में एक पर्वत ऐसा भी है जहाँ खंडित मूर्तियों को रखना पवित्र माना जाता है। विभिन्न राज्यों से सुंधा माता के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु अपने साथ खंडित देवी मूर्तियाँ साथ लाते है। इन प्रतिमाओं को पहाड़ की शिलाओं के नीचे जहाँ उचित समझते है, वहीं रख कर चले जाते हैं। .

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स्वीटी वालिया

स्वीटी वालिया (Sweety Walia) (जन्म;११ जून इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश,भारत एक भारतीय हिन्दी टेलीविज़न अभिनेत्री है। जिन्होंने कई बॉलीवुड धारावाहिकों में अभिनय किया है। स्वीटी वालिया बाल - टेलीविजन अभिनेत्री रोशनी वालिया की मां है, रोशनी वालिया जिन्होंने फैज़ल ख़ान के साथ भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप नामक धारावाहिक में महाराणा प्रताप की पत्नी अजबदे पंवार का अभिनय किया था। वालिया के पिता जो कि भारतीय सेना के ऑफिसर है। .

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सोहन लाल द्विवेदी

सोहन लाल द्विवेदी (22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। .

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हम्मीर चौहान

हम्मीर देव चौहान, पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। उन्होने रणथंभोर पर १२८२ से १३०१ तक राज्य किया। वे रणथम्भौर के सबसे महान शासकों में सम्मिलित हैं। हम्मीर देव का कालजयी शासन चौहान काल का अमर वीरगाथा इतिहास माना जाता है। हम्मीर देव चौहान को चौहान काल का 'कर्ण' भी कहा जाता है। पृथ्वीराज चौहान के बाद इनका ही नाम भारतीय इतिहास में अपने हठ के कारण अत्यंत महत्व रखता है। राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतिभा सम्पन शासक हम्मीर देव को ही माना जाता है। इस शासक को चौहान वंश का उदित नक्षत्र कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। डॉ॰ हरविलास शारदा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का प्रथम पुत्र था और इनके दो भाई थे जिनके नाम सूरताना देव व बीरमा देव थे। डॉक्टर दशरथ शर्मा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था वहीं गोपीनाथ शर्मा के अनुसार सभी पुत्रों में योग्यतम होने के कारण जैत्रसिंह को हम्मीर देव अत्यंत प्रिय था। हम्मीर देव के पिता का नाम जैत्रसिंह चौहान एवं माता का नाम हीरा देवी था। यह महाराजा जैत्रसिंह चौहान के लाडले एवं वीर बेटे थे। .

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हल्दीघाटी

हल्दीघाटी इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यह अरावली पर्वत शृंखला में एक दर्रा (pass) है। यह राजसमन्द और पाली जिलों को जोड़ता है। यह उदयपुर से ४० किमी की दूरी पर है। इसका नाम 'हल्दीघाटी' इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है। .

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हल्दीघाटी का युद्ध

हल्दीघाटी भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध राजस्थान का वह ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि की लाज बचाये रखने के लिए असंख्य युद्ध लड़े और शौर्य का प्रदर्शन किया। हल्दीघाटी राजस्थान के उदयपुर ज़िले से 27 मील (लगभग 43.2 कि.मी.) उत्तर-पश्चिम एवं नाथद्वारा से 7 मील (लगभग 11.2 कि.मी.) पश्चिम में स्थित है। यहीं सम्राट अकबर की मुग़ल सेना एवं महाराणा प्रताप तथा उनकी राजपूत सेना में 18 जून, 1576 को भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में प्रताप के साथ कई राजपूत योद्धाओं सहित हकीम ख़ाँ सूर भी उपस्थित था। इस युद्ध में राणा प्रताप का साथ स्थानीय भीलों ने दिया, जो इस युद्ध की मुख्य बात थी। मुग़लों की ओर से राजा मानसिंह सेना का नेतृत्व कर रहे थे। उदयपुर से नाथद्वारा जाने वाली सड़क से कुछ दूर हटकर पहाडि़यों के बीच स्थित हल्दीघाटी इतिहास प्रसिद्ध वह स्थान है, जहां 1576 ई. में महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह अकबर की सेनाओं के बीच घोर युद्ध हुआ था। इस स्थान को 'गोगंदा' भी कहा जाता है। अकबर के समय के राजपूत नरेशों में मेवाड़ के महाराणा प्रताप ही ऐसे थे, जिन्हें मुग़ल बादशाह की मैत्रीपूर्ण दासता पसन्द न थी। इसी बात पर उनकी आमेर के मानसिंह से भी अनबन हो गई थी, जिसके फलस्वरूप मानसिंह के भड़काने से अकबर ने स्वयं मानसिंह और सलीम (जहाँगीर) की अध्यक्षता में मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भारी सेना भेजी। हल्दीघाटी की लड़ाई 18 जून, 1576 ई. को हुई थी। इसमें राणा प्रताप ने अप्रतिम वीरता दिखाई। उनका परम भक्त सरदार झाला मान इसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था। स्वयं प्रताप के दुर्घर्ष भाले से गजासीन सलीम बाल-बाल बच गया। स्थति को भांपते हुए प्रताप अपने घायल, किन्तु बहादुर घोड़े पर युद्ध-क्षेत्र से बाहर आ गये, जहां चेतक ने प्राण छोड़ दिये। इस स्थान पर इस स्वामिभक्त घोड़े की समाधि आज भी देखी जा सकती है। इस युद्ध में प्रताप की 22 सहस्त्र सेना में से 14 सहस्त्र काम आई थी। इसमें से 500 वीर सैनिक राणा प्रताप के सम्बंधी थे। मुग़ल सेना की भारी क्षति हुई तथा उसके भी लगभग 500 सरदार मारे गये थे। सलीम के साथ जो सेना आयी थी, उसके अलावा एक सेना वक्त पर सहायता के लिये सुरक्षित रखी गई थी। और इस सेना द्वारा मुख्य सेना की हानिपूर्ति बराबर होती रही। इसी कारण मुग़लों के हताहतों की ठीक-ठीक संख्या इतिहासकारों ने नहीं लिखी है। इस युद्ध के पश्चात् राणा प्रताप को बड़ी कठिनाई का समय व्यतीत करना पड़ा था। किन्तु उन्होंने कभी साहस नहीं छोड़ा और अपने राज्य का अधिकांश मुग़लों से वापस छीन लिया था। यह युद्ध अनिर्णायक रहा| बलिदान भूमि हल्दीघाटी राजपूताने की वह पावन बलिदान भूमि है, जिसके शौर्य एवं तेज़ की भव्य गाथा से इतिहास के पृष्ठ रंगे हैं। भीलों का अपने देश और नरेश के लिये वह अमर बलिदान, राजपूत वीरों की वह तेजस्विता और महाराणा का वह लोकोत्तर पराक्रम इतिहास में प्रसिद्ध है। यह सभी तथ्य वीरकाव्य के परम उपजीव्य है। मेवाड़ के उष्ण रक्त ने श्रावण संवत 1633 वि.

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जय सिंह द्वितीय

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह (०३ नवम्बर १६८८ - २१ सितम्बर १७४३) अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन १७२७ में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर 'सवाई जयनगर', जयपुर बसाने वाले नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है। काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत, मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था। भारतीय ग्रंथों के अलावा गणित, रेखागणित, खगोल और ज्योतिष में उन्होंने अनेकानेक विदेशी ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक पद्धतियों का विधिपूर्वक अध्ययन किया था और स्वयं परीक्षण के बाद, कुछ को अपनाया भी था। देश-विदेश से उन्होंने बड़े बड़े विद्वानों और खगोलशास्त्र के विषय-विशेषज्ञों को जयपुर बुलाया, सम्मानित किया और यहाँ सम्मान दे कर बसाया। .

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जगमाल सिंह

उदयसिंह द्वितीय एक भारतीय शासक था। .

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जोधा अकबर (टीवी धारावाहिक)

जोधा अकबर ज़ी टीवी पर प्रसारित होने वाला एक ऐतहासिक धारावाहिक है। कार्यक्रम का प्रथम प्रसारण 18 जून 2013 को हुआ था। मशहूर चलचित्र निर्माता एकता कपूर ने इस धारावाहिक का उत्पादन किया है। रजत टोकस एवं परिधि शर्मा मुख्य भूमिका में है। .

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वार (पंजाबी काव्य)

वार पंजाबी साहित्य का एक काव्यभेद, जो वर्णनात्मक शैली में लिखा जाता है। "वार" शब्द संस्कृत की "वृ' धातु से व्युत्पन्न है। "कीर्ति', "घेरा', "धावा' (आक्रमण), "बार बार', बाह्य (पंजाबी वाहर .

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विद्याधर शास्त्री

विद्याधर शास्त्री (१९०१-१९८३) संस्कृत कवि और संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं के विद्वान थे। आपका जन्म राजस्थान के चूरु शहर में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) से शास्त्री की परीक्षा आपने सोलह वर्ष की आयु में उत्तीर्ण की थी। आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय) से आपने संस्कृत कलाधिस्नातक परीक्षा में सफलता प्राप्त की। शिक्षण कार्य और अकादमिक प्रयासों के दौरान आपने बीकानेर शहर में जीवन व्यतीत किया। १९६२ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से आपको सम्मानित किया गया था। .

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व्यक्तित्व

व्यक्तित्व (personality) आधुनिक मनोविज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण एवं प्रमुख विषय है। व्यक्तित्व के अध्ययन के आधार पर व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वकथन भी किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हो जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों एवं विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है। व्यक्तित्व एक स्थिर अवस्था न होकर एक गत्यात्मक समष्टि है जिस पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है और इसी कारण से उसमें बदलाव आ सकता है। व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार, क्रियाएं और गतिविधियों में व्यक्ति का व्यक्तित्व झलकता है। व्यक्ति का समस्त व्यवहार उसके वातावरण या परिवेश में समायोजन करने के लिए होता है। जनसाधारण में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप से लिया जाता है, परन्तु मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के रूप गुणों की समष्ठि से है, अर्थात् व्यक्ति के बाह्य आवरण के गुण और आन्तरिक तत्व, दोनों को माना जाता है। .

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गोगुन्दा

गोगुन्दा राजस्थान का एक कस्बा और तहसील मुख्यालय है। यह उदयपुर से ३५ किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह अरावली की पहाड़ियों पर उंचाई में स्थित है। यहीं पर सन १५२७ में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। पहले गोगुन्दा रियासत थी। बड़ी रियासतों मे इसका उल्लेख मिलता है। महाराणा प्रताप सिंह ने अपनी राजधानी बनाया था। यहाँ से पुरे मेवाड़ का राज्य संभालते थे। .

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कल्ला जी राठौड़

कल्ला जी राठौड़ जसोल,मेहवा के रावल मेघराज के ज्येष्ठ पुत्र थे,इनकी मृत्यू तीसरे साका युद्ध (विक्रम संवत 1624) में चितौड़गढ में अकबर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे ' ये मेवाड़ के लिये महाराणा प्रताप के साथ अकबर से युद्ध किया था ' .

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कालिका माता मन्दिर, चित्तौड़गढ़ दुर्ग

कालिका माता मन्दिर एक ८वीं सदी के भारत के राजस्थान राज्य के चित्तौड़गढ़ नगर पालिका में चित्तौड़गढ़ दुर्ग के भीतर स्थित एक हिंदू मन्दिर है। मन्दिर के अधिकतर हिस्से हाल ही के हैं। यह महाराणा प्रताप से पहले का है और यहां हर दिन हज़ारोंआगंतुकों आते हैं। इस मंदिर में पूजा देवी भद्रकाली की होती है। .

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कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार; इसे '''राम पोल''' कहा जाता है। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से ७० किमी दूर समुद्र तल से १,०८७ मीटर ऊँचा और ३० किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर १४४३ से शुरू होकर १५ वर्षों बाद १४५८ में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। बादल महल .

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अनुराग शर्मा

अनुराग शर्मा एक भारतीय टीवी अभिनेता है। इन्होंने अपने अभिनय के कैरियर की शुरुआत जी टीवी के पवित्र रिश्ता नामक धारावाहिक से की। इनके अलावा ये जी टीवी के जोधा अकबर (टीवी धारावाहिक) धारावाहिक में भी कार्य कर चूके हैं। .

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अमर सिंह प्रथम

राणा अमर सिंह (1597 – 1620 ई०) मेवाड के शिशोदिया राजवंश के शासक थे। वे महाराणा प्रताप के पुत्र तथा महाराणा उदयसिंह के पौत्र थे। राणा अमर सिंह भी महाराणा प्रताप जैसे वीर थे। इन्होंने मुगलों से 18 बार युद्ध लड़ा। प्रारम्भ में मुगल सेना के आक्रमण न होने से अमर सिंह ने राज्य में सुव्यवस्था बनाया। जहांगीर के द्वारा करवाये गयें कई आक्रमण विफल किये। अंत में खुर्रम ने मेवाड़ अधिकार कर लिया। हारकर बाद में इन्होनें अपमानजनक संधि की। वे मेवाड़ के अंतिम स्वतन्त्र शासक थे। राणा अमर सिंह प्रजा भक्त थे। इनको गुलामी में रहना अच्छा नहीं लगा, अतः इन्होंने आपना राज्य आपने पुत्र को दे कर ख़ुद एक कुटिया में रहने लग गए। .

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अजबदे पंवार

कोई विवरण नहीं।

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उदयपुर

उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर 'झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है। .

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उदयसिंह द्वितीय

उदयसिंह द्वितीय (जन्म ०४ अगस्त १५२२ – २८ फरवरी १५७२,चित्तौड़गढ़ दुर्ग, राजस्थान, भारत) एक मेवाड़के महाराणा थे और उदयपुर शहर के स्थापक थे जो वर्तमान में राजस्थान राज्य है। ये मेवाड़ साम्राज्य के ५३वें शासक थे उदयसिंह मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र थेTod, James (1829, reprint 2002).

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